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E-MAGAZINE KV JANAKPURI

Published by SHIVAM RAGHUVANSHI, 2021-05-06 17:21:16

Description: FINAL FOR E BOOK

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KENDRIYA VIDYALAYA jANAKPURI new delhi-110058



अभिव्यक्ति मानव हृदय का स्वािाववक गणु है I -प्रेमचन्द



सदं ेश यह हर्ष का ववर्य है कक कें द्रीय ववद्यालय जनकपरु ी द्वारा अपने ववद्यार्थयष ों एवं भशक्षकों की साहहक्ययक प्रतििा को मखु ररि करने हेिु ववद्यालय पत्रिका का प्रकाशन ककया जा रहा है। नौतनहाल बच्चों की लखे नी से तनकली नवीन रचनाएँ अपने-अपने शब्दों व रंगों से आलोककि होकर ववद्यालय-वाहिका को और अर्िक सगु ंर्िि करिी हैं।पत्रिका ववभिन्न ववचारों की अभिव्यक्ति को एक साथ एक मंच देने का सशति माध्यम है। पत्रिका के माध्यम से ववद्यालय मंे वर्िष र आयोक्जि गतिववर्ियों की झाँकी प्रस्िुि करने का िी अवसर भमलिा है। ववद्यालय के प्राचाय,ष उप-प्राचाय,ष सिी सहयोगी अध्यापकों व ववद्यार्थयष ों को इस पत्रिका के प्रकाशन के भलए मरे ी ओर से बहुि-बहुि शिु कामनाएँ। अध्यक्ष ववद्यालय ववकास सभमति के .वव. जनकपरु ी



सदं ेश यह अययंि प्रसन्निा का ववर्य है कक के न्द्रीय ववद्यालय जनकपरु ी सि 2020- 21 के भलए अपनी वावर्कष ववद्यालय पत्रिका का प्रकाशन करने जा रहा है| मेरा यह ववश्वास है कक हमारे ववद्यालय न के वल शकै ्षणणक उयकृ ष्ििा िक ही सीभमि हैं वरन ववद्यार्थयष ों को उनके बहुमखु ी ववकास के भलए समरु ्चि वािावरण प्रदान कराने के महि दातययव का िी सफलिापवू कष तनवहष न कर रहे हैं| ववद्यालय पत्रिका ववद्यालय द्वारा ववभिन्न क्षेिों में ककये गए उयकृ ष्ि प्रयासों व सराहनीय उपलक्ब्ियों के साथ-साथ ववद्यार्थयष ों की रचनायमकिा को प्रदभशिष करने हेिु एक प्रिावी व साथकष माध्यम है| ववद्यालय पत्रिका ववद्यार्थयष ों को मौभलक सजृ न के भलए प्ररे रि करिी है और सजृ नायमक लखे न की यह अभिरूर्च ही आगे चलकर महान लेखकों एवं पिकारों को जन्म देिी है| पत्रिका के सफल प्रकाशन हेिु ववद्यालय के प्राचाय,ष भशक्षकगण एवं ववद्यार्थयष ों के प्रति मंै अपनी हाहदषक शिु कामनाएँ प्रकि करिा हूँ क्जनके अथक प्रयास,सहयोग व हदशा-तनदेशन में पत्रिका का यह वावर्कष अंक प्रकाभशि होने जा रहा है| नागेन्द्र गोयल उपायतु ि के न्द्रीय ववद्यालय संगठन हदल्ली सिं ाग



संदेश यह अययंि हर्ष का ववर्य है कक के न्द्रीय ववद्यालय जनकपरु ी सि 2020-21 के भलए अपनी वावर्कष ववद्यालय पत्रिका का प्रकाशन करने जा रहा है| अपने ववचारों को प्रकि करने की स्पष्ििा, शालीनिा, प्रखरिा व गहनिा ववद्यार्थयष ों के ज्ञानाजनष का एक प्रबल पक्ष है| ववद्यालय पत्रिका ववद्यार्थयष ों के इस प्रबल पक्ष को उत्तरोत्तर ववकभसि करने का अवसर प्रदान करिी है| ववद्यालय पत्रिका ववद्यालय के ववद्यार्थयष ों की कल्पनाशीलिा एवं रचनायमकिा की अभिव्यक्ति को एक सशति आिार प्रदान करिी है| साथ ही यह ववद्यालय मंे वर्ष िर होने वाली गतिववर्ियों व उपलक्ब्ियों को िी प्रतित्रबतं्रबि करिी है| मैं पत्रिका के सफल प्रकाशन हेिु ववद्यालय के ववद्यार्थयष ों, भशक्षकगण एवं प्राचायष को अपनी हाहदषक शिु कामनाएँ प्रेवर्ि करिा हूँ एवं उनके उज्जवल िववष्य की कामना करिा हूँ| संजीि कु मार सहायक आयतु ि के न्द्रीय ववद्यालय संगठन हदल्ली सिं ाग



From the Principal’s Pen - “Every artist dips his brush in his own soul, and paints his own nature into his pictures.” –Henry Ward Beecher Education is the ultimate realm, where socializing and humanizing occurs continuously from birth till death. The major transformation of an individual happens under the guidance of a teacher. The flourishing national development and a vibrant and prosperous society are a reflection of dedicated efforts of teachers. The teacher has to construct meaningful educational experiences that allow students to solve real-world problems, tinker with the big ideas, gain powerful skills, and cultivate habits of mind and heart that aim at betterment of all. The global outbreak of Covid 19 pushed teachers into a completely unfamiliar zone. But the teachers emerged as real heroes and corona - warriors by accepting the challenges boldly and gracefully. Not only this, they stretched their limits while ensuring mental well - being of students and establishing multiple channels of engagement with parents. The whole spectrum of activities conducted during the session further ensured that the spark of creativity, inherent in every student, became more bold and bright. Kendriya Vidyalaya Janakpuri enjoys the reputation of catering to the individual needs and talents of the students. The aim of all academic and co- curricular activities is to ensure that all students bloom to their full potential. “ABHIVYAKTI” is a reflection of concerted efforts of the teachers to nurture creative propensities of students. Flip the pages and venture on a reading journey. It will definitely make you appreciate the efforts of the students of the Vidyalaya, in transforming a period of crisis into one bubbling with curiosity, innovativeness and creativity. Jai Hind.

Profundity Words are pearls, in the ocean of thoughts Dive into the ocean, gather them For they will give tremendous force Thoughts, flooding mind, will then pour To shape the future of mankind. Civilizations functioned and progressed When thoughts through words, exchanged, Between generations, crossing barriers Of diversity, and enriched the ocean further. Feel words, touch them, for then will come A revolution, where thoughts will hold all In peace and love, sharing and growing. Jagdeep Kaur PGT (English)

RESULT AT A GLANCE 2019-20 Class XII RESULT 2015 2016 2017 2018 2019 2020 97.25 96 93.22 98.56 100 100 CLASS X RESULT 2015 2016 2017 2018 2019 2020 100 100 100 98.78 100 99.15 CBSE 0.1% SL NO. NAME OF THE STUDENT CLASS & %AGE SECTION 1. AAKRITI RAI 98.00% 2. V LAKSHMI XB 97% 3. PAKHI CHATURVEDI 4. KRITI KANNAN XA 96.80% 96.60% XC XA

PERFORMANCE INDEX 2019-2020 CLASS - XII CLASS - X

MIGHTY CONTRIBUTIONS……….. Mr. Pawan Kumar Gupta, PGT History, took Live Classes on PM eVidya T.V. Channel for class XII. His lessons for XI have been recorded at NCERT for PM eVidya T.V. channel. Ms. Poornima Khanna, PGT Commerce, took Facebook Live classes for the students of class XI of Delhi Region. Her sincere efforts to connect with the students during the pandemic deserve praise and appreciation. Ms. Venita Raina, TGT Sanskrit, took Facebook Live classes. All the students of class VI were benefited by her Sanskrit Sessions. Ms. Tripti Sharma, TGT Science, has been selected as a counsellor by NCERT, for Manodarpan Programme. Being a part of Mental Well Being Programme-Sahyog, she conducted sessions which were telecast by CIET and NCERT on Kishor Manch. Napoleon Hill rightly said- “Every Adversity, Every Failure, Every Heartbreak, Carries With It The Seed Of An Equal Or Greater Benefit”.

सत्संगनतः सतां सगं नत सत्सगं नतः कथ्यत।े सज्जनानां संगत्या ह्र्यं वर्विारं ि पवर्वत्रम भर्वनत। अनया मनषु ्यस्य महान उपकारः भर्वनत। अनया जनः स्र्वार्भथ ार्वं पररत्यज्य लोककल्यािकामः भर्वनत । ्जु नथ ानां संगत्या ्बु दुथ ्धः आगच्छनत । ्बु दुथ ्धः ्ःु िजननी अश्स्त । ्षु ्ट्यु ोधनसंगत्या भीष्मोऽवप गोहरिे गतः । रार्विसगं त्या समदु ्रः अवप क्षदु ्र न्ीर्व बन्धनं प्राप्तः । सतां संगने ्जु नथ ः अवप सजु नः भर्वनत। ्जु नथ ाः सतां सगं ेन ्रु्वयसथ नम अवप त्यज्यश्न्त। यर्ा पषु ्पकटटः पषु ्पःप सह नपृ ािां शशरः आरोहनत, तर्रप ्व ्जु नथ ाः सज्जनानां सगं ेन ससं ार-सागरं तरश्न्त। पारस-मखि-साहियेि लौहम अवप सरु ्विं जायते।। ऋषीिाम सगं त्या र्वयाधः र्वाल्मीककः अवप कवर्व र्वाल्मीककः अभर्वत । अतः सत्सगं नत सर्वानथ ्ोषान अपनयनत। बदु ्ध ननमलथ करोनत। र्वािौ सत्यं शसिं नत। सत्संगनतः मनषु ्यस्य सर्वरथ ्ा टहतं करोनत। अतः साश्वर्व्मचु ्यत-े सत्संगनतः कर्य ककं न करोनत पंसु ाम ।्रू ीकरोनत कु मनतं वर्वमलीकरोनत िते श्चिरंतनमधं िलु कु ीकरोनत । भतू ेषु ककं ि करुिां बहुलीकरोनत सगं ः सतां ककमु न मंगलमातनोनत ।। अंककत सातर्वीं ् सफलताया: मूलमतं ्रम ् ॐ सर्वे भर्वन्तु सखु िनः सर्वे सन्तु ननरामयाः। सर्वे भद्राखि पश्यन्तु मा कश्श्िद्ःु िभाग्भर्वते । ॐ शाश्न्तः शाश्न्तः शाश्न्तः॥ सभी सिु ी होर्वंे, सभी रोगमकु ्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और ककसी को भी ्ःु ि का भागी न बनना पड।े ॐ शानं त शांनत शांनत॥ प्रतीक कु मार छठी ब

संस्कृ ि िार्ायााः महयवं संस्कृ त भाषा वर्वश्र्वस्य सर्वाथसु भाषासु प्रािीनतमा भाषा अश्स्त |सर्वासथ ां भाषािाम इयं जननी | र्व्े ाः, रामायि:, महाभारत:, भगर्वत-गीता इत्याट् ग्रन्र्ा: संस्कृ तभाषया एर्व वर्वर्ितानन | सर्वाथसु भाषासु अपके ्षया ससं ्कृ त भाषायाम अ्धकप्ानन सश्न्त|भारत-यरू ोपीय भाषार्वगीया अनेकाः भाषाः संस्कृ त प्रभार्विे ससं ्कृ तशब््प्राियु ं ि प्र्श्यशथ ्न्त| र्व्े -शास्त्र-परु ाि-इनतहास-कार्वय-नाटक-्श्नाथट्शभ: अनन्त र्वांग्मयं वर्वलसश्न्त अश्स्त एषा ्ेर्व-र्वाक | ससं ्कृ त र्वागं ्मयं वर्वश्र्व र्वांग्मये स्र्वस्य अदवर्वतीयं स्र्ानम अलंकरोनत| अश्र्वघोष-काशल्ास-्ंडी-भर्वभनू त-जय्ेर्व आट् कर्वयः महाकार्वयकार: नाटककारश्ि अश्स्मनेर्व भाषायां सश्न्त| एषा भाषा संगिक कृ ते अवप सर्वोत्तमा भाषा अश्स्त|सम्पिू थ भारतर्वषमथ एकसतू ्रे बवनानत इयं भाषा |ससं ्कृ तमरे ्व भारतस्य गौरर्वम अश्स्त| अतः र्वयं सर्वे अर्वश्यमेर्व पठनीयम इयं भाषा| उक्तमवप अश्स्त- “ िारिस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृ ति: संस्कृ ि: िथा|” रक्षक्षि िांक (सािवीं ब) सबसे पहले उठना होगा कतरथ ्वय पर् उठ कर आगे बढ़ना होगा जब तक ना लक्ष्य शमले सार्ी कांटो की ्ितं ा मत करना तुमको िलते रहना होगा ख़तरों से कभी तू मत डरना कतरथ ्वय प्र्क के ये कं ठ-हार इक बार जो प्रि कर लोगे तुम स्र्वागत से ऐसे मत डरना ्नु नया सारी झकु जाएगी तुम िलोगे तो िल पडगे ी ये इस डगर के प्रहरी हो तुम तमु रुकोगे तो रुक जाएगी हर अमार्वस के सहरी हो तुम बस तमु कोशशश करते रहना अपनी श्ि् पर अडते रहना। अर्र्वथ शमाथ (सातर्वीं ब)

छाि – जीवन साटहत्य समाज का ्पिथ होता हप तर्ा छात्र साटहत्य का ग्रहीत होता हप l छात्र समाज का आशा – समु न हप तर्ा भार्वी किधथ ार हप l अतः: छात्र का ननप तक कतरथ ्वय हप कक र्वह सयु ोग्य नागररक बनकर अपने माता – वपता के सार् – सार् ्ेश और समाज की प्रनतष्ठा बढ़ाये l इस श्िंृ ला मंे छात्र के प्रर्म गरु ु माता – वपता का भी कतथर्वय होता हप कक र्वह अपने पतु ्र – पतु ्री को उत्तम शशक्षा सलु भ करायें l माता – वपता के दर्वारा छात्र – छात्रा को ज्ञानाजनथ की उत्तम र्वयर्वस्र्ा सलु भ करायें जाने पर वर्वदयार्ी का परम कतरथ ्वय होता हप कक र्वह एक तपस्र्वी की भांनत तपो शील बनकर वर्वदयावययन मंे तल्लीन हो जाये l मनीवषयों ने एक उत्तम वर्वदयार्ी के पािं लक्षि बताये हैं l काक चेष्िा, बको ध्यानं, स्वान तनद्रा िथवै च । अल्पहारी, गहृ ययागी, ववद्याथी पंच लक्षणं ॥ सरल शब््ों मंे मतलब यह हप कक एक वर्वदयार्ी में पािं लक्षि होने िाटहए... कौर्वे की तरह जानने (सीिन)े की िषे ्टा, बगुले की तरह वयान (लक्ष्य के श्न्द्रत), कु त्ते की तरह सोना / ननदं ्रा (सजग), अल्पाहारी, आर्वश्यकतानसु ार िाने र्वाला और वर्वदयावययन तक गहृ -त्यागी होना िाटहए l वयान रहे, प्रत्येक छात्र / छात्रा राष्र का भार्वी किधथ ार हप, र्वह वर्वश्र्व का प्ररे िा प्र्ीप हप l अतः: उसे स्ा स्मरि रहना िाटहए कक उसे आग़ में तपकर कंु ्न बनना हप, उसे साधनारूपी अनल ने मंे तपना हप और लक्ष्य प्राश्प्त तक ननरंतर प्रयत्नशील रहना हप l कहा गया हप – उद्यमेन हह भसध्यक्न्ि कायाषणण न मनोरथैाः । न हह सुप्िस्य भसहं स्य प्रववशक्न्ि मखु े मगृ ााः ॥ अर्ाथत पररश्म (कडी मेहनत) करने से ही सारे कायथ शसदध होते हैं, के र्वल सोिने (इच्छा करने) से नहीं होता । क्योंकक सोते हुए शरे के मुँह में टहरि स्र्वयं प्रर्वशे नहीं करते । इसका तात्पयथ यह हप कक शरे के मुँह में अपने आप ही शशकार नहीं आता उसे शशकार करने के शलए महे नत करनी पडती ह।प अत: एक वर्वदयार्ी को अनशु ाशसत रहकर ज्ञान की ज्योनत जलानी हप l उसे ्नु नयाुँ का पर्-प्र्शनथ करना हप l अतएर्व उसका कतरथ ्वय हप कक र्वह वर्वदयावययन में मन रमाये और अपने ज्ञानज्योनत से वर्वश्र्व को आलोककत करे l भशवा (सािवीं ब)

संस्कृ त भाषा गंगा न्ी इर्व गंगा न्ी इर्व अश्स्त| यट् इ्ं शषु ्का भर्वेद तटहथ सर्वाःथ भाषाः ननमलूथ ाः भवर्वष्यश्न्त | - महात्मा गाधं ी ससं ारस्य प्रािीनभाशासु ससं ्कृ तस्य सर्वोन्न्तं स्र्ानं वर्वददयते | इच्छाम्यहं यत अ्धका्धकः जनाः संस्कृ तावययनं कु यःुथ | अनया भाषया अस्माकं ्ेशस्य एकता र्वधतथ े, सर्वाथः, भाषाः ि बलं प्राप्नरु ्वश्न्त | -पश्डडत जर्वाहरलाल नहे रू ससं ्कृ तं अस्माकं ्ेशस्य अमलु ्यानन्धः अश्स्त | इ्ं सर्वसथ म्म्तम मतमश्स्त , यत ससं ्कृ तावययेनन र्वयम भारतर्वषसथ ्य इनतहासस्य र्वास्तवर्वक - ज्ञानं प्राप्तंु शक्नमु परु ािानन इनतहासरुपाियेर्व सश्न्त | ्शनथ ्साटहत्ययोः ि अगावग्यान - भडडारं संस्कृ ते प्राप्यते | -श्ी लाल बहा्रु शास्त्री मम ववद्यालयाः कंे द्रीय ववदयालय जनकपरु ी, अक्स्ि मम ववद्यालयाः स्वच्छं , तनमलष म ् अति-शोिनम,् अक्स्ि मम ववद्यालयाः || मािवृ याष प्रिानाचायाष, प्रमे प्रदािंु उप-प्रिानाचायाष अनशु ाशन वप्रय: भशक्षकााः, अनशु ाभसि छािााः सम्पणू ष देहली नगरे, श्रेष्ठमक्स्ि मम ववद्यालयाः || कक्षा मध्ये सभु शक्षणम,् क्रीडाक्षिे े नव-उयसाहम ् संगणक-कक्षे बहु-क्जज्ञासा, पसु ्िकालये नव ज्ञानं-ववज्ञानम ् बहु सनु ्दरं, बहु प्रतिक्ष्ठिम,् अक्स्ि मम ववद्यालयाः || नक्न्दनी (कक्षा-सप्िमी)

है तिरंगे की शान मंे तिरंगे की शान में तिन्दा तिन्दुस्िान.... भारि की पहचान जब िक है आजाद हम कोई भदे ना हो िन का िन से तजन्दा है अतभमान कोई खेद ना हो मन का मन से तजन्दा तहन्दसु ्िान तमले हर चहे रे को खतु शयां चहक उठे हर घर मसु ्कान कोई ना रहे यहााँ गरीब सभी रहंे तदल के करीब तकसी कहने में ना आ ना दखे जाि ना ही मजहब सबका है यह तहन्दसु ्िां दखे िु बस उसका ईमान िेरा प्यार तजिना फलेगा तजिना दगे ा िु सम्मान ध्यान रख िु भारिवासी आजादी है सौहादद तनवासी वंभशका रावि ( X-D ) तजस तदन भलू ेगा िू इसको खो जाएगा आजादी नाम DEAR NATURE I love the sound of birds so early in the morn I like the sound of puppies soon after they are born. I love the smell of flowers and the taste of honey from bees. I love the sound the wind makes when it’s blowing through the trees. I love the way the sky looks on a bright and sunny day and even when it’s rainy, I love the shades of gray. I love the smell of the ocean, the sound of waves upon the sand I love the feel of seashells and how they look in my hand. And when the sun is gone, I love the moon that shines so bright I love the sounds of crickets and other creatures of the night. So when I lay me down to sleep, I thank the Lord above For all the things of nature and more, all the things I love. Tanushka Gupta ( 9th B )

It Matters Do scold me because its better But don't scold me in get together Because it all matters . Don't let me chatter But think at least a moment in my matter Because it all matters ......... Give me time to develop myself As I am a child and its my nature Because it all matters .................... Don't underestimate me just because I am your junior ...... Cos I am vying to reach greater heights sooner or later Cos it all matters .................... My confidence is still in a shutter Please, don’t let it shatter in a matter As its my most powerful supporter Because it all matters ............................. Try to ............ Appreciate and encourage me in all matters ..................... Because you are the one who can understand me better . Shiva ( Class VII B ) Earth Day Our Earth is special, there is just one. It gives us water, soil, and sun. People and animals share the land, Let's all lend a helping hand! You can save water, and plant a tree Make a better home for you and me. Recycle things, don't throw away. Make every day on Earth Day! Pranav Sharma VIII-A

भशक्षक ज्ञान के आधार शशक्षक, मान के आधार शशक्षक । जीर्वन समर में, पर्रीली डगर में, पर्-प्र्शकथ , ट्ग््शकथ हंै शशक्षक । मानर्व बनाना, जीर्वन सजाना, सरु शभत, सौम्य और शशष्ट सभ्यता के बीज शशक्षक । ्ेकर हमें ज्ञान की पँुजू ी, सब समस्याओं की बनकर कुँ जी, ज्ञान के आगार शशक्षक, राष्र के आधार शशक्षक । इनकी बातें सर पर धार, हम सब करें इनका सम्मान, तभी बनेगा राष्र महान, तभी बनेगा राष्र महान ।। अनषु ्का ठाकु र, आठवीं ‘ब’ गणपिरे ािुतनकोअविाराः सङ्णकाः 1) गिानां पनतः सः गिपनत ( गिेशः)। गिकानां पनतः सः सङ्गिकः ( कम्प्यटू र ) ।। 2) गिपतःे र्वाहनः मषू कः। सङ्गिकस्यावप र्वाहनं मषू कः ।। (माऊस) 3) गिपनतः वर्वदयानन्धः। सङ्गिकोअवप वर्वदयानन्धः।। 4) गिपतेः स्र्ानम उच्िासने। सङ्गिकस्यावप स्र्ानम उच्िासने।। 5) गिपतेः परु तः वयानस्र्ः भक्तः। सङ्गिकस्यावप परु तः एकाग्र्ितः साधकः।। 6) गिपनतः भक्तय जीर्वने सिु कत्ताथ ्ःु िहत्ताथ। सङ्गिकोअवप कायेषु सिु कताथ ्ःु ि हत्ता।थ । एर्वं सङ्गिकः गिपतःे लम्बो्स्य मतू ःथ नतू नः अर्वतार। नमः सङ्गिकाय।। प्रांजभल दशमी ङ

अवसर की उपादेयिा पररश्स्र्नतयाँु अपने सार् अर्वसर और िनु ौनतयां ्ोनों ही लके र आती हंै| मािथ 2020 में जब हम सभी अपने अपने घरों मंे ब्ं हुए, तब ऐसी आशा और उम्मी् मन में र्ी कक शाय् कु छ ही समय में सब ठीक हो जाएगा| लेककन समय बीतता गया और यह आशा बलर्वती होने की बजाय ननबलथ होती गयी | ऐसे समय मंे यह आर्वश्यक र्ा कक मेरे छात्रों के मन में नकारात्मकता की परछाई भी न आय,े क्योंकक हमशे ा हंसन-े िेलने र्वाले बच्िे घरों में कप ् र्|े इस श्स्र्नत में ननयशमत शशक्षा से अलग कु छ सार्कथ तर्ा वर्वशषे ्ेने की प्रबल इच्छा ने मझु े प्रेररत ककया अपने छात्रों को र्वटप ्क गखित तर्ा ससं ्कृ त सभं ाषि की कक्षाओं मंे जोडने के शलए | ससं ्कृ त भाषा ज्ञान र्व वर्वज्ञान का भडडार हप, र्वजप ्ञाननक भाषा हप, ऐसा कहते तो सभी हंै पर इस बार इसका ही साक्षात्कार कराने के शलए सरलतम तरीके से छात्रों को ससं ्कृ त सभं ाषि की प्रावर्व्ध बताई | लगभग ५० से भी अ्धक छात्र इस शशवर्वर मंे जडु ,े सीिा तर्ा अंत में र्वे अपना पररिय ससं ्कृ त मंे ्े पाने में सफल हुए तर्ा सरल र्वाक्यों की रिना भी कर पाए| ्सू रा सफल प्रयोग र्ा छात्रों को र्वटप ्क गखित का पररिय ्ेना|र्वटप ्क गखित प्रािीन गिना पदधनत की र्वह सरलतम प्रावर्व्ध हप, श्जसमे 16 सतू ्रों तर्ा 13 उप-सतू ्रों की सहायता से अंक-गखितीय गिनाएं( Arthmatical Calculations) बडी ही सरलता के सार् तर्ा तीव्रता के सार् ककया जा सकता हप| इससे छात्रों की ्िन्तन र्व ताककथ क शश्क्त में र्वदृ ्ध होती हप| ज्ञान के इस अदभतु प्रयोग को स्र्वीकार करने तर्ा सफल बनाने मंे ननश्श्ित रूप से वर्वदयालय प्रशासन, छात्रों का तर्ा अशभभार्वकों का महत्र्वपिू थ योग्ान रहा, और इस काम को आगे भी सिु ारु रिने के शलए प्रेरिा स्रोत भी हप| रानी झा प्र. स्ना. भशक्षक्षका (ससं ्कृ ि)

समयस्य महहमा समयः एक ्पिथ ः अश्स्त, यश्स्मन सतं असतं ि मरिं दृश्यते | समयः एक औष्धः अश्स्त, यर्ा मनसः व्रिः अपगतः भर्वनत समयः एका न्ी अश्स्त | यः एतस्य मलू ्यं न जानानत तस्य जीर्वनं जले ननमग्नं भर्वनत | समयः तस्य भ्राता अश्स्त यः एतस्य सम्मानं करोनत | समयः अस्माकं प्र्शकथ ः अश्स्त यः अस्माकं अग्रेगन्तुम शशक्ष्यनत | कृ ष्िा गौतमी. र्वी अष्टमी-'्' अनशु ासन अनशु ासनस्य अस्माकं जीर्वने अनतमहत्र्वं अश्स्त। अनशु ासनम शब्् 'अन'ु उपसगपथ रू ्वकथ 'शासनम' शब््ेन ननशमतथ ं अश्स्त। अस्य अर्मथ श्स्त - शासनस्य अनसु रिम। अतः ननयमानां पालनं ननयन्त्रिं स्र्वीकरिं र्वा अनशु ासनम कथ्यते। जीर्वनस्य प्रत्येकश्स्मन क्षेत्र कनतपयानां ननयमानां पालनं आर्वश्यक र्वततथ ।े प्रातः शीघ्रं जागरिं ननयशमतर्वयायाम,ं ननयमने स्र्वकायथ करिं, कायथ प्रनत पिू सथ मपिथ ं अनशु ाशसत जीर्वनस्य अंगनानन सश्न्त। प्रकृ त्याः श्षृ ्टयाः र्वा मलू ेअवप अनशु ासनं दृश्यते। प्रकृ त्याः ननयमाः शाश्र्वताः, ध्ररु ्वाः ि सश्न्त। पथृ ्र्वी, ग्रहाः, नक्षत्रः, सयू ःथ , िन्द्रः, आ्यः ि सर्वे अनशु ासने बदधाः सश्न्त। शरीरस्य आरोग्याय यर्ा संतुशलतं भोजनं अपके ्षते तर्रप ्व राष्रस्य समाजस्य ि उत्र्ानाय अनशु ासनं अपके ्षत।े छात्रािाम कृ ते अनशु ासनस्य बहुमहत्र्वं अश्स्त, यट् छात्राः वयानेन पठश्न्त तटहथ भवर्वष्ये जीर्वनस्य प्रत्येकश्स्मन क्षेत्रे साफल्यं प्राप्नरु ्वश्न्त। अंजशल सप्तमी अ

सिु ावर्िानी 1-अभिवादनशीलस्य तनययं वदृ ्िोपसवे वन:। चयवारर िस्य विनष ्िे आयवु वदष ्या यशोबल।ं । अथाषि:- बड़ों का अभिवादन करने वाले मनषु ्य की और तनयय वदृ ्िों की सेवा करने वाले मनषु ्य की आय,ु ववद्या, यश और बल -ये चार चीजें बढ़िी है। 2-दजु नष :पररहिवष ्यो ववद्यालंकृ िो सन । मणणना िवू र्िो सप:ष ककमसौ न ियकं र:।। अथािष :- दषु ्ि व्यक्ति यहद ववद्या से सशु ोभिि िी हो अथािष वह ववद्यावान िी हो िो िी उसका पररययाग कर देना चाहहए। जसै े मणण से सशु ोभिि सपष तया ियकं र नहीं होिा? 3- हस्िस्य िरू ्णम दानम, सययं कं ठस्य िरू ्णं। श्रोिस्य िरू ्णं शास्िम,िरू ्न:ै ककं प्रयोजनम।। अथाषि:- हाथ का आिरू ्ण दान है, गले का आिरू ्ण सयय है, कान की शोिा शास्ि सनु ने से है, अन्य आिरू ्णों की तया आवश्यकिा है। 4-यस्य नाक्स्ि स्वयं प्रज्ञा, शास्िं िस्य करोति ककं । लोचनाभ्याम ववहीनस्य, दपणष :ककं कररष्यति।। अथािष :- क्जस मनषु ्य के पास स्वयं का वववके नहीं ह,ै शास्ि उसका तया करंेगे। जैसे निे ववहीन व्यक्ति के भलए दपणष व्यथष है। वंभशका सनै ी सािवीं ब

छािजीवनम ् अष्िादश त्रबन्दु 1-अवययनं परमं तप उच्यते I 2- छात्रजीर्वनमरे ्व मानर्वजीर्वनस्य प्रभातर्वेला अधारशशला ि र्वततथ े I 3- य: छात्र: आलस्य त्यक्त्र्वा पररश्मिे वर्वघावयनं करोनत स एक साफल्यं लभते I 4- समस्तजीर्वनस्य वर्वकासस्य हासस्य र्वा कारिम एतज्जीर्वनमरे ्वाश्स्त I 5- कस्म्प ित कालाय भ्रमवप उनर्वायमथ I 6- र्वस्ततु : वर्वधार्ी जीर्वनं साधनामयं जीर्वनम I 7- त्नन्तर ि लघसु ाश्त्र्वक भोजनं ्गु ्धं ि गटृ हत्र्वा वर्वधालयं गत्तर्वयम I 8- छात्रजीर्वने पररश्मस्य महती आर्वश्यकता र्वततथ े I 9- छात्र:े असत्यर्वा्न न क्ावप कत्तरथ ्वयम I 10- अतएर्व छात्र:प प्रात: काले ब्रहममहु ुते एर्व उत्र्ातर्वय I 11- वर्वधार्ीजीर्वने एर्व समस्तानां मनर्वो्ितगुिाना वर्वकासो भर्वती I 12-तत: प्रनतननर्वतृ ्य स्नान सनवयोपासनाट्क वर्वधाय अवययनं कत्तरथ ्वयम I 13- अत: छात्रािा शारीररक िररत्रत्रकं ि वर्वकासं अत्यंताननर्वामथ I 14- तत्र गत्र्वा गुरून नत्र्वा अवययनं कत्ततर्वयम I 15- अत: तषे ा सम्यक रक्षि पोषिम ि कत्तरथ ्वयम I 16- छात्रजीर्वन पिु तथ ः अनुशासन बदधः भर्वनत I 17- छात्र एर्व राष्टरस्यानपु मा नन्धरश्स्त I 18- वर्वधार्ी जीर्वनमेर्व सम्पिू थ अगशमजीर्वन्स्य आधारशशला I कननष्क सप्तमी अ

“The reading of all good books is like conversation with the finest (people) of the past centuries.” – Descartes

“Books are a uniquely portable magic.” -Stephen King

“The more that you read, the more things you will know. The more that you learn, the more places you’ll go.” – Dr. Seuss

Drawing is a form of probing. And the first generic impulse to draw derives from the human need to search, to plot points, to place things and to place oneself.― John Berger

While drawing I discover what I really want to say.―Dario Fo

Art is unquestionably one of the purest and highest elements in human happiness. It trains the mind through the eye, and the eye through the mind. As the sun colours flowers, so does art colour life.― John Lubbock

“A trophy carries dust. Memories last forever.”– Mary Lou Retton

NATIONAL SPORTS DAY

NATIONAL SPORTS DAY In the dust of defeat as well as the laurels of victory, there is a glory to be found if one has done his best. - Eric Liddell

INTERNATIONAL YOGA DAY

“Yoga is the journey of the self, through the self, to the self.” ―The Bhagavad Gita

Life isn’t about waiting for the storm to pass; it’s about learning to dance in the rain.-Vivian Greene

ACADEMIC INITIATIVES

Before G-Suite, G-Suite Classwork videos through classroom WhatsApp Online Subject Committee PTM Meeting

NEWER WAYS EXPLORED!

STAY HOME-STAY SAFE ISRO ONLINE CYBER SPACE COMPETITION

AMBEDKAR JAYANTI

EARTH DAY

WORLD ENVIRONMENT DAY

ANTI-CHILD LABOUR DAY

TRIBUTE TO CORONA WARRIORS POEM RECITATION



INTERNATIONAL TIGER DAY

FANCY DRESS COMPETITION I WANT TO BECOME A…


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