गीताया: महत्वपरू ्ाा: श्लोका: यो न हृष्यतत न द्वते ि न शोचतत न काङ्क्षतत। शभु ाशभु परित्यागी भक् त तमान्यः स मे तियः।।12.17।। जो न कभी हर्षता होता ह,ै न द्वषे किता ह,ै न शोक किता ह,ै न कामना किता है औि जो शुभ-अशुभ कमोंमंे िाग-द्वषे का त्यागी ह,ै वह भतिमान् मनषु ्य मझु े तिय ह।ै न तह कतित्षर्मतप जातु ततष्ठत्यकमका ृ त्। कायाते ह्यश: कमा सवा िकृ ततजैगुार्ै:।। 3.5 अर्ा- कोई भी मनषु ्य षर् भि भी कमा ककए तिना नहीं िह सकता। सभी िार्ी िकृ तत के अधीन हंै औि िकृ तत अपने अनसु ाि हि िार्ी से कमा किवाती है औि उसके परिर्ाम भी दते ी ह।ै यद्यदाचितत श्रषे ्ठस्तत्तदवे ते िो जनः। स यत्िमार्ं कु रुते लोकस्तदनवु तता ।े ।3.21।। लोकसगं ्रह ककसको किना चातहये औि ककसतलये किना चातहये सो कहते हैं श्रेष्ठ परु ुष जोजो कमा किता है अर्ाता ् िधान मनषु ्य तजसतजस कममा ें िताता है दसू िे लोग उसके अनयु ायी होकि उसउस कमका ा ही आचिर् ककया किते ह।ैं तर्ा वह श्रेष्ठ पुरुष तजसतजस लौककक या वैकदक िर्ाको िामातर्क मानता है लोग उसीके अनसु ाि चलते हंै अर्ाात् उसीको िमार् मानते हंै। कमेतन्ियातर् सयं म्य य आस्ते मनसा स्मिन्। इतन्ियार्ाता न्वमढू ात्मा तमथ्याचािः स उच्यत।े ।3.6।। अर्-ा जो आत्मज्ञानी न होनपे ि भी शास्त्रतवतहत कमा नहीं किता उसका वह कमा न किना ििु ा है यह कहते हैं जो मनषु ्य हार् पिै आकद कमेतन्ियोंको िोककि इतन्ियोंके भोगोंको मनसे तचन्तन किता िहता है वह तवमढू ात्मा अर्ाता ् मोतहत अन्तःकिर्वाला तमथ्याचािी ढोंगी पापाचािी कहा जाता ह।ै कस्माच्च ते न नमिे न्महात्मन् गिीयसे ब्रह्मर्ोऽप्याकदकर्त्र।े अनन्त दवे शे जगतिवास त्वमषिं सदसत्तत्पिं यत।् ।11.37।। हे महात्मन् ! ब्रह्मा के भी आकद कताा औि सिसे श्रेष्ठ आपके तलए वे कै से नमस्काि नहीं किंे? (क्योंकक) हे अनन्त! हे दवे ेश! हे जगतिवास! जो सत् असत् औि इन दोनों से पिे अषितत्त्व ह,ै वह आप ही ह।ैं चतै न्य-कोतवाल:, कषा -सप्तमी 51
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