THE BISHOP'S SCHOOL, CAMP 1 Ch – 1 - REVISION बात अठन्नी की लेखक- श्री सुदर्शन CLASS - 9 SUBJECT - HINDI
General Instructions 1. The Microphone should be muted and video should be switched off. 2. These sessions are recorded ones and will be uploaded on teams. 3. Attendance with the joining time and leaving time has been downloaded by your teacher. 4. If there are any doubts, it should be typed in the chat window and will be solved at the end of the session. 5. Keep your notebook and pen ready. 6. Maintain a calm environment and concentrate on your Class. Any misbehavior will be dealt with immediately. 2
GRAMMAR PORTION FOR SECOND TERM… 3
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लेखक पररचय सुप्रससद्ध कहानीकार श्री सुदर्शन जी का जन्म सन 1896 मंे (वर्शमान पासकस्तान) में हुआ था ।इनका वास्तसवक नाम बद्रीनाथ था। प्रारं भ में सुदर्शन जी ने उदूश मंे अपनी रचनाएँ सिखीं । धीरे -धीरे इन्हनं े सहंदी भाषा में सिखना र्ुरू सकया। सर्क्षा प्राप्त करने के बाद उन्हनं े दैसनक पत्र 'आयश - गजट' में संपादक के रूप में कायश सकया । 16 सदसंबर 1967 कह इनका स्वगशवास हुआ। इनकी रचनाओं में आयश समाज के ससद्धांर्हं की छाप है। इनकी कहासनयाँ जीवन के यथाथश का सचत्रण करर्ी हैं , सजनका संदेर् आदर्शवादी हहने के साथ- साथ समाज- सुधार भी है । इनकी भाषा सहज ,सरि ,मुहावरे दार हहने के साथ-साथ बहुर् प्रभावर्ािी है। िेखक- श्री सुदर्शन इनका दृसिकहण सुधारवादी था। इनकी पहिी कहानी 'हार की जीर्' थी। 10
इनकी अन्य प्रमुख रचनाएं सच का सौदा , अठन्नी का चहर, साइसकि की सवारी , र्ीथश - यात्रा, पत्थरहं का सौदागर, पृथ्वी -वल्लभ इत्यासद हंै। कहानी - िेखन के असर्ररक्त आपने अनेक सिल्हं के सिए पटकथा एवं गीर् भी सिखे । इनकी सभी रचनाओं में समस्याओं का समाधान आदर्शवाद से सकया गया है। प्रस्तुर् कहानी 'बार् अठन्नी की' हमारे समाज की न्याय -व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य है । 11
कहानी का उद्देश्य प्रस्तुर् कहानी एक अत्यंर् मासमशक एवं उद्देश्यपूणश कहानी है सजसमें कहानीकार सुदर्शन ने हमारे समाज की न्याय व्यवस्था पर करारा व्यंग्य सकया है। िेखक ने बर्ाया है सक गरीब व्यक्तक्त के साथ अन्याय हहर्ा है संपन्न एवं उच्च पदहं पर बैठे िहग अपने धन एवं पद का िाभ उठार्े हैं एवं न्याय व्यवस्था कह प्रभासवर् करर्े हंै। इंजीसनयर जगर् ससंह र्था रसीिा के माध्यम से िेखक सुदर्शन ने हमारे समाज की कमजहर न्याय व्यवस्था एवं भ्रिाचार कह पाठकहं के समक्ष रखा है। 12
अमीर वगश द्वारा गरीबहं के प्रसर् सकया जा रहा र्हषण एवं उनके सनदशयी एवं क्ूरर व्यवहार का सचत्रण करना िेखक का उद्देश्य है।साथ ही यह भी सक दुसनया न्यायपूणश नहीं बक्ति अंधेर नगरी है, जहां पर बडे-बडे अपराधी र्ह पकडे नहीं जार्े , के वि गरीब और िाचारहं पर ही कानून चिर्ा है। िेखक ने इस कहानी के माध्यम से आसथशक सवषमर्ा एवं ररश्वर्खहरी के सवरुद्ध िहगहं के भीर्र चेर्ना जागृर् करने एवं अन्याय के सवरुद्ध आवाज उठाने के सिए प्रेररर् करने का प्रयास सकया है। यह कहानी उद्देश्य पूणश हहने के साथ-साथ यथाथश के बहुर् सनकट है। 13
रसीिा इंजीसनयर बाबू जगर्ससंह के यहाँ नौकर था। दस रुपए वेर्न था। गांव में उसके बूढे सपर्ा ,पत्नी, एक िडकी और दह िडके थे। इन सब का भार उसी के कं धहं पर था। वह सारी र्नख्वाह घर भेज देर्ा, पर घर वािहं का गुजारा न चि पार्ा। उसने इंजीसनयर साहब से वेर्न बढाने की बार-बार प्राथशना की। पर वह हर बार यही कहर्े , \"अगर र्ुम्हें कहई ज्यादा दे र्ह अवश्य चिे जाओ । मंै र्नख्वाह नहीं बढाऊँ गा। 14
वह सहचर्ा, \"यहाँ इर्ने सािहं से हँ, अमीर िहग नौकरहं पर सवश्वास नहीं करर्े और मुझ पर यहाँ कभी सकसी ने संदेह नहीं सकया।यहाँ से जाऊँ र्ह र्ायद कहई ग्यारह- बारह दे दे , पर ऐसा आदर न समिेगा।“ सजिा मसजस्ट्रेट र्ेख सिीमुद्दीन इंजीसनयर बाबू के पडहस में रहर्े थे। उनके चौकीदार समयाँ रमजाऩा और रसीिा में बहुर् मैत्री थी। 15
दहनहं घंटहं साथ बैठकर बार्ंे करर्े। र्ेख साहब ििहं के र्ौकीन थे , रमजान रसीिा कह िि देर्ा। इंजीसनयर साहब कह समठाई का र्ौक था, रसीिा रमजान कह समठाई देर्ा। एक सदन रमजान ने रसीिा कह उदास देखकर कारण पूछा पहिे र्ह रसीिा सछपार्ा रहा सिर। सिर रमजान ने कहा, \"कहई बार् नहीं है, र्ह और खाओ सौगंध।“ रसीिा ने रमजान का हठ देखा र्हआँखें भर आईं । बहिा ,\"\"घर से खर् आया है ,बच्चे बीमार हंै, और रुपया नहीं है।“ \"र्ह मासिक से पेर्गी माँग िह।“ \"कहर्े हंै, एक पैसा भी न दूँगा ।\" 16
रमजान ने ठं डी सांस भरी। उसने रसीिा कह ठहरने का संके र् सकया और आप कहठरी मंे चिा गया। थहडी देर बाद उसने कु छ रुपए रसीिा की हथेिी पर रख सदए। रसीिा के मुँह से एक र्ब्द भी न सनकिा। सहचने िगा, \" बाबू साहब की मैंने इर्नी सेवा की ,पर दुख में उन्हनं े साथ न सदया। रमजान कह देखह गरीब है, परं र्ु आदमी नहीं देवर्ा है ईश्वर उसका भिा करंे ।“ रसीिा के बच्चे स्वस्थ हह गए। उसने रमजान का ऋण चुका सदया। के वि आठ आने बाकी रह गए। रमजान ने कभी भी पैसे न माँगे सिर भी रसीिा उसके आगे आँख न उठा पार्ा। 17
एक सदन की बार् है। बाबू जगर् ससंह सकसी से कमरे में बार् कर रहे थे। रसीिा ने सुना। इंजीसनयर बाबू कह रहे हैं, \"बस पाँच सौ ? इर्नी- सी रकम देकर , आप मेरा अपमान कर रहे हंै ।” \"हुजूर ,मान जाइए ।आप समझंे आपने मेरा काम मुफ्त सकया है ।“ 18
रसीिा इंजीसनयर बाबू जगर् ससंह के यहां नौकर था सजसका वेर्न दस रुपये था। गांव मंे उसका पररवार था।पररवार में उसके बूढे सपर्ा ,पत्नी एक िडकी और दह िडके थे। वह अपना सारा वेर्न गांव भेज देर्ा था। वह अपने मासिक से अपना वेर्न बढाने की बार-बार प्राथशना करर्ा। परं र्ु उसके मासिक उससे कह देर्े सक कहई र्ुम्हें अगर ज्यादा दे, र्ह चिे जाओ मंै र्ुम्हारा वेर्न नहीं बढाऊँ गा । 19
वह सहचर्ा सक अमीर िहग नौकरहं पर सवश्वास नहीं करर्े ,पर यहाँ मुझ पर कभी सकसी ने संदेह नहीं सकया। वह सहचर्ा सकयहाँ सेजाऊँ गा र्ह र्ायद कहई मुझे थहडा ज्यादा पैसा दे देगा। परं र्ु मुझे ऐसा आदर नहीं समिेगा। सजिा मसजस्ट्रेट र्ेख सिीमुद्दीन इंजीसनयर बाबू के पडहसी थे। उनकी चौकीदार का नाम रमजाऩा था। 20
रमजाा़न और रसीिा मंे गहरी मैत्री थी। रमजाना़ रसीिा कह िि देर्ा क्हसं क उसके मासिक कह ििहं का र्ौक था। रसीिा रमजाना़ कह समठाई देर्ा क्हसं क उसके मासिक कह समठाइयहं का र्ौक था। एक सदन रसीिा बहुर् उदास था।रमजााऩ द्वारा उदासी का कारण पूछने पर उसने बर्ाया सक उसके बच्चे बीमार हैं और उसके पास घर भेजने के सिए पैसे नहीं हंै। रमजााऩ उसे सिाह देर्ा है सक अपने मासिक से पेर्गी माँग िह। रसीिा उसे बर्ार्ा है मासिक ने उसे पैसे देने से मना कर सदया। 21
र्ब रमजान उसे अपने पास जमा सकए हुए पैसे देर्ा है। रसीिा के मन में यह ख्याि आर्ा है सक उसने अपने मासिक की इर्नी सेवा की परं र्ु उन्हनं े दुख मंे उसका साथ नहीं सदया। रमजा़ना कह देखह गरीब है परं र्ु उसने मेरी मदद की। ऐसा व्यक्तक्त आदमी नहीं देवर्ा है। रसीिा के बच्चे ठीक हह गए उसने रमजााऩ का कजश चुका सदया। के वि आठ आने बाकी रह गए। 22
रमजा़ान में कभी भी पैसे नहीं माँगे िेसकन रसीिा उसके सामने आँख नहीं उठा पार्ा था। एक सदन बाबू जगर्ससंह से समिने कहई व्यक्तक्त आर्ा है। वह उन्ंे पाँच सौ रुपए ररश्वर् देर्ा है। घर मंे उपक्तस्थर् रहने के कारण यह बार्ंे रसीिा सुन िेर्ा है। और वह समझ जार्ा है सक कमरे के अंदर ररश्वर् िी जा रही है। 23
अवतरण (पृष्ठ संीख्या - 6) \" अगर तुम्हें कोई ज्याादा दे तो चले जाओ । मैं तनख्वाह नही ीं बनाऊँ गा ।\" १. यह वाक्य ककस सींदर्श मंे कहे गए हैं ? स्पष्ट कीकजए। २. श्रोता कौन है ? वह वेतन बढाने को क्योीं कह रहा है ?अपने कवचार बताइए ? ३. रसीला की आकथशक स्थथकत कै सी थी ? बाबू जगतकसंीह के अपने नौकर के प्रकत व्यवहार के बारे मंे अपने कवचार र्ी व्यक्त कीकजए ? ४.'पर ऐसा आदर ना कमलेगा' रसीला का ऐसा सोचने का क्या कारण है ? तकश पूणश उत्तर दीकजए। 24
END OF TODAY’S SESSION
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