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KENDRIYA VIDYALAYA LALITPUR

Published by Santosh Kumar Nema, 2021-09-27 05:41:45

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किसलयनव पल्लवों की सजृ नात्मकता को परिलक्षित किती ववद्यालय परिका 2020-21 के न्द्रीय ववद्यालय, लक्षलतपुि आगिा संभाग

हमारे प्ररे णास्रोत एवं मार्दग र्कग सशु ्री निधि पाण्डेय श्री अन्नावी दििशे कु मार (भा.प्र.स.े ) (भा.प्र.स.े ) आयकु ्त जिलाधिकारी एिं अध्यक्ष के न्द्रीय विद्यालय सगं ठन विद्यालय प्रबिं न सविवि,के न्द्रीय श्री चदं ्रशखे र आजाि विद्यालय,लजलिपरु उपायकु ्त के न्द्रीय विद्यालय सगं ठन आगरा सभं ाग श्री (डॉ०)एम एल धमश्रा सहायक आयकु ्त के न्द्रीय विद्यालय सगं ठन आगरा सभं ाग

अध्यक्ष ववद्यालय प्रबंधन सवमवत  सदं ेश  िझु े यह िानकर हार्दकि प्रसन्निा हो रही है कक कें द्रीय विद्यालय लजलिपरु द्वारा सत्र 2020-21 हेिु ई-पकत्रका का प्रकाशन ककया िा रहा है । विद्यालय पकत्रका विद्यालय की कल्पनाशीलिा एिं रचनात्मकिा की अधभव्यक्तक्त को एक सशक्त आिार प्रदान करिी है । साथ ही साथ यह विद्यालय की िर्भि र िें होने िाली गविविधियों एिं उपलब्धियों को भी प्रविवबवं बि करिी है । िंै अपनी ओर से विद्यालय पकत्रका के सफल प्रकाशन हेिु विद्यालय के प्राचाय,ि सिस्त जशक्षक / जशजक्षकाओं एिं सभी विद्याधथयि ों को हार्दकि शभु कािनाएँ प्रके र्ि करिा हँ जिनके िागदि शनि एिं र्दशावनदेश, सहयोग िथा अथक प्रयास से विद्यालय पकत्रका का यह अकं ििि रूप लने े िा रहा है । िैं यह भी आशा करिा हँ कक विद्याधथयि ों की सिृ नशीलिा के वनरंिर विकास हेिु विद्यालय सदैि प्रयत्नशील रहेगा । अन्नािी र्दनशे कु िार, भा. प्र. स.े जिलाधिकारी, लजलिपरु एिं अध्यक्ष विद्यालय प्रबिं न सविवि, कंे द्रीय विद्यालय, लजलिपरु

उपायुक्त, के न्द्रीय ववद्यालय संर्ठन, आर्रा संभार्  सदं ेश  अत्यिं प्रसन्निा का विर्य है कक के न्द्रीय विद्यालय, लजलिपरु द्वारा अपनी िाकर्कि ई- पकत्रका 2020-21 का प्रकाशन करिाया िा रहा है। सिग्र सभं ािनाओं से सिब्धिि बाल कलाकारों एिं सिु ी जशक्षकों के भाि एिं विचारों का प्रविवबबं स्वरूप विद्यालय की िाकर्कि ई-पकत्रका आपके सिक्ष है । ककसी भी विद्यालय की पकत्रका उस विद्यालय का दपणि होिी ह।ै उसी से विद्यालय की सांस्कृ विक, शकै ्षणणक,खले कद एिं अनके रचनात्मक गविविधियों के साथ-साथ सार्हब्धत्यक अधभरुचच का भी पिा चलिा है। विद्यालय पकत्रका इस बाि का प्रिाण है कक जशक्षाधथयि ों के सिचु चि सकारात्मक, सिांगींण एिं सिृ नात्मक विकास हेिु विद्यालय पररिार प्रविबद्ध है। पकत्रका प्रकाशन पर िैं उन सभी अधभभािकों ,जशक्षाधथयि ों ,जशक्षक-जशजक्षकाओं िथा विद्यालय प्रबिं न सविवि के सदस्यों, जिन्होंने पकत्रका हेिु अपनी रचनाएं एिं कलाकृ वियं प्रकाशनाथि देकर प्रोत्सार्हि ककया है, उन सभी के प्रवि विनम्र साििु ाद ज्ञाकपि करिा हँ। पकत्रका के सपं ादक िथा सपं ादक िण्डल को हार्दकि बिाई एिं शभु कािनाएँ देिा हँ। इस ई-पकत्रका के प्रकाशन से छात्रों िें वनर्हि सिृ नात्मक प्रविभा उभर कर सािने आ सके गी िथा इन्हीं बाल कलाकारों िें से भविष्य िंे कु छ अच्छे चचत्रकार, पत्रकार, लखे क ि कवि रुप िें राष्ट्रीय एिं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने िें काियाब होंग।े यह िरे ा सहि विश्वास है। स्वािी वििके ानदं िी के शदों ों ि-ंे “उठो, िागो और िब िक िि रुको, िब िक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो िाए।” शभु कािनाएं । चन्द्रशखे र आिाद उपायकु ्त

 प्राचार्य की कलम से  िैं आि विद्यालय की िाकर्कि ई-पकत्रका 2020-21 के प्रकाशन के अिसर पर अत्यिं प्रसन्निा का अनभु ि कर रहा हँ। इसिें बच्चों एिं जशक्षकों के भाि एिं विचारों को ििि रूप देने का प्रयास ककया गया ह।ै विद्यालय पकत्रका छात्रों के सिांगीण विकास को सिाि के सािने रखने का एक िाध्यि है । इसके द्वारा विद्यालय की विधभन्न शकै ्षणणक एिं सह-पाठ्यगािी गविविधियों की झलक सिाि के कोन-े कोने िक पहुँचिी ह।ै इसी के साथ छात्रों की सार्हब्धत्यक अधभरुचच का भी विकास होिा है। विद्यालय पकत्रका के िाध्यि से प्रयास ककया गया है, कक छात्रों का सिचु चि विकास हो । छात्र सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ंे एिं नए सिाि का वनिाण करंे। िंै उन सभी अधभभािकों,जशक्षाधथयि ों ,जशक्षक-जशजक्षकाओं का अधभनदं न करिा हँ , जिन्होंने विद्यालय ई - पकत्रका हिे ु अपनी रचनाएँ एिं कलाकृ वियाँ प्रकाशन हेिु प्रदान की । िंै परि श्रद्धेय श्री अन्नािी र्दनशे कु िार जिलाधिकारी लजलिपरु एिं अध्यक्ष , विद्यालय प्रबंिन सविवि का भी हृदय से आभारी हँ जिन्होंने विद्यालय के विकास िंे सदिै अपना सहयोग प्रदान ककया एिं ई–पकत्रका के प्रकाशन हिे ु अपने आशीिाद रूपी शब्द छात्रों को र्दए । ि,ंै हिारे परि िागदि शकि श्री चन्द्रशखे र आिाद , उपायकु ्त के न्द्रीय विद्यालय सगं ठन क्षते ्रीय कायालय,आगरा का भी हृदय से आभारी हँ, जिन्होंने सिय- सिय पर वनदशे ों एिं परािशि के िाध्यि से छात्रों के सिांगीण विकास िें अपना सहयोग र्दया एिं सदं शे के िाध्यि से हिारे बच्चों को आशीिाद प्रदान ककया । ि,ैं श्री िंग लाल विश्रा , सहायक आयकु ्त के न्द्रीय विद्यालय सगं ठन क्षते ्रीय कायालय, आगरा का भी हृदय से आभारी ह,ँ आपके सहयोग के वबना विद्यालय द्वारा इस ऊँ चाई पर पहुँचना सभं ि नहीं था । िंै पकत्रका के सपं ादक िथा सपं ादक िण्डल को हार्दकि बिाई एिं शभु कािनाएँ दिे ा ह।ँ आपके द्वारा ई-पकत्रका का प्रकाशन कर भविष्य के रचनाकारों, चचत्रकारों को िन्म र्दया िा रहा है । हार्दकि शभु कािनाएँ । - सिीश कु िार शिा प्राचायि

 सपं ादक की कलम से  के न्द्रीय विद्यालय सगं ठन के सभी आदरणीय अधिकारीगण, सम्मानीय प्राचायि श्री सिीश कु िार शिा िी, विद्वान जशक्षक साधथयों, आदरणीय अधभभािकगण एिं स्नरे्हल बच्चों आप सभी को सादर अधभिादन। यह विद्यालय पकत्रका, के न्द्रीय विद्यालय लजलिपरु के आदरणीय प्राचायिि ी, विद्वान जशक्षक साधथयों एिं देश के भविष्य स्नरे्हल बच्चों, सभी के विजशष्ट् कायों एिं उपलब्धियों को सिकपिि है। विद्यालय का प्रयास रहा है कक यह विद्यालय पकत्रका सत्र 2020-21 के सभी कायों एिं उपलब्धियों को ज्यादा से ज्यादा प्रस्तिु कर सके िथा इस पकत्रका िंे प्रकाजशि सािग्री छात्र स्रोि बन सके । -छात्राओं एिं अन्य सभी पाठकों के जलए प्ररे णा/ प्राचायि िी को िझु े इस सिाचार पकत्रका के सम्पादन का कायभि ार सौपने के जलए बहुिबहुि - िन्यिाद, साथ ही साथ सभी जशक्षक साधथयों एिं स्नरे्हल छात्रछात्राओं को इस प्रकाशन कायि / को सफलबनाने िें सहयोग के जलए आभार। -चड़ािणण स्नािकोत्तर जशक्षक ( र्हन्दी )

 From the Editor’s Desk  Writing is an age-old form of expression that has urged human beings to express their entire gamut of emotions in black and white and produce some of the finest pieces of literary gems! This issue of e-magazine is reflecting the same aspiration and creative urge. It is a humble yet sincere effort of the editorial team in showcasing an array of articles written by the budding student writers as well as the seasoned teachers of our Vidyalaya. I sincerely acknowledge the invaluable guidance and support provided by the principal of our Vidyalaya shri Satish Kumar Sharma in bringing out the magazine in its current format. I also extend my heartfelt thanks to shri S. K Nema for his painstaking efforts in conceptualizing and designing this magazine. The entire editorial team of English Department viz- Shri Saurabh singh and Mrs- Mohini Soni deserve kudos for their meticulous and diligent approach in editing the articles. Happy Reading! Regards and best wishes -Samarth Shukla. P.G.T, English.

 ववद्यालय प्रबंध सवमवत  1 अध्यक्ष श्री अन्नािी र्दनशे कु िार (IAS) िाननीय जिलाधिकारी, लजलिपरु 2 िाधमत अध्यक्ष श्री लिकु श कु िार कत्रपाठी िाननीय अपर जिलाधिकारी )न्याक्तयक(, लजलिपरु श्री सरु ेश कु िार प्राचाय,ि ििाहर निोदय विद्यालय ,लजलिपरु 3 & 4 प्रख्यात शशक्षानवद् सिस्य प्राचायि जिला जशक्षा एिं प्रजशक्षण सिं ान, लजलिपरु 5 ससं ्कृ नत के क्षते ्र में प्रनतधित श्री सशु ील जसन्हा व्यनि सिस्य सगं ीि िंे प्रख्याि व्यक्तक्तत्व श्रीििी अकं ी , 6 & 7 अधििावक प्रनतनिधि िािा र्हिदंे ्र प्रिाप जसहं , कक्षा-I (B) सिस्य श्रीििी रोशनी बनो, िािा िोहम्मद िसु ्तफा कक्षा -V(B) 8 क्षेत्र के प्रख्यात धचककत्सा श्री गोविन्द प्रसाद शकु ्ला धचककत्सक सिस्य िखु ्य चचककत्सा अधिकारी, लजलिपरु प्रनतनिधि-अिसु धू चत श्री प्रदीप ििा, 9 जानत/अिसु धू चत िवनयर िले ीक ि ऑकफसर, BSNL लजलिपरु जिजानत एवं अल्पसंख्यक श्री सन्तोर् कु िार निे ा 10 शशक्षक प्रनतनिधि सिस्य पीिीिी(कं प्यिर विज्ञान) के . वि. लजलिपरु 11 सधचव श्री एस. के . शिा प्राचाय,ि के . वि. लजलिपरु 12 सहयोशजत सिस्य श्री पी. सी. राय जिला कपछड़ा िगि कल्याण अधिकारी, लजलिपरु 13 कें द्रीय कमचम ारी कल्याण श्री रािने ्द्र कु िार िालिीय समन्वय सधमनत सिस्य Dy. CTI, भारिीय रेलिे ,लजलिपरु 14 तकिीकी सिस्य श्री आकाश सचान , अधिशार्ी अधभयिं ा, विििु विभाग ,लजलिपरु

 सरं क्षक  श्री सिीश कु िार शिा ( प्राचायि )   सपं ादक मण्डल  सपं ादक वहदं ी ववभार् श्री चड़ािणण (स्नािकोत्तर जशक्षक,र्हदं ी) (िखु ्य सपं ादक) श्री अिय कु िार जसहं (प्रजशजक्षि स्नािक जशक्षक, र्हदं ी) ड . ककरण राठौर (प्रजशजक्षि स्नािक जशक्षक, र्हदं ी) श्री ऋकर् प्रिाप जसहं (प्राथविक जशक्षक) श्रीििी िािरु ी शिा (प्राथविक जशजक्षका) सपं ादक अंग्रजे ी ववभार् श्री सिथि शकु ्ल (स्नािकोत्तर जशक्षक,अगं ्रिे ी) (िखु ्य सपं ादक) श्री सौरभ जसहं (प्रजशजक्षि स्नािक जशक्षक,अगं ्रिे ी) श्रीििी िोर्हनी सोनी (प्रजशजक्षि स्नािक जशक्षक, अगं ्रिे ी) श्री अनप कु िार जसहं (प्राथविक जशक्षक) संपादक ससं ्कृ त ववभार् श्री आलोक कु िार िनै (प्रजशजक्षि स्नािक जशक्षक,ससं ्कृ ि) प्रारूप एवं संकल्पना श्री सिं ोर् कु िार निे ा (स्नािकोत्तर जशक्षक,कं प्यिर विज्ञान) श्री अरुण जसहं राठौर (प्रजशजक्षि स्नािक जशक्षक,शारीररक जशक्षा) श्री सयै द शाज़ हुसनै (पसु ्तकालय अध्यक्ष) श्री आनदं पाराशर (कं प्यिर अनदु ेशक )

 Vidyalaya Family  S.No Name of Staff member Designation 1 Mr. Satish Kumar Sharma Principal 2 Mr. R.K. Tripathi PGT (Physics) 3 Mr. Keshav Dass PGT (Maths) 4 Mr. S.K. Nema PGT (CS) 5 Mr. Chooramani PGT (Hindi) 6 Mr. Ajay Bahadur PGT (Commerce) 7 Mrs. Reena Krishnan PGT (Bio) 8 Mr. Samarth Shukla PGT (English) 9 Mr. Abhishek Mishra PGT (Economics) 10 Mr. Saurabh Singh TGT(English) 11 Mrs. Mohini Soni TGT(English) 12 Mr. Sandeep Kumar TGT (Science) 13 Ms. Manisha Choudhary TGT(Science) 14 Mr. Vibhooti Bhooshan Jha TGT (Maths) 15 Mr. S.N. Khan TGT(Maths) 16 Mr. Ajay Kumar Singh TGT(Hindi) 17 Mrs. Kiran Rathore TGT(Hindi) 18 Mr. Arun Singh Rathore TGT(P&HE) 19 Mr. Ankit Shrivas TGT(WE) 20 Ms. Pooja Kushwaha TGT(SST) 21 Mr. Alok Jain TGT(Sanskrit) 22 Mr. S.S. Husain Librarian 23 Mr. S. K. Chaturvedi PRT 24 Mr. Rishi Pratap Singh PRT 25 Ms. Madhuri Sharma PRT 26 Ms. Dolly Dutta PRT 27 Mr. Anoop Kumar Singh PRT 28 Mrs. Rachna Gupta PRT (Music) 29 Mrs. Sarita Kushwaha PRT 30 Mr. Vivek Gautam PRT 31 Mr. Shubham Kumar PRT 32 Mr. Satish Kumar Chaturvedi PRT Mr. Rinku Yadav PRT 33 Mr. Ankit Jain PGT(Chemistry) 34 Mr. Anand Parashar Computer Instructor 35 Ms. Ankita Anand Nurse 36 

पेड़ -अजं ली 7 अ पडे ़ों को मत कटने देना चिड़डय़ों को मत रोने देना। पडे है उनका रैनबसेरा उसे कभी न उजडने देना। हर शाखा पर हर पत्ती पर, अपने सपने सोते हैं। शाखंे कटने पर वे सपने, शशशओु -ं सा रोते हैं। पडे ़ों के सगं बढ़ना सीखो, पडे ़ों के सगं खखलना। पडे ो के सगं , सगं इतराना- पडे ो के सगं ड़हलना। एक कदम स्वच्छता की ओर -जाहन्वी राठौर 5 अ आज है 2 अक्टूबर का ड़दन, आज का ड़दन है बडा महान, आज के ड़दन दो फू ल खखले थ,े नाम एक का गाधं ी और एक का नाम लाल बहादुर एक का नारा अमन, जय ककसान। ,एक का जय जवान

मेरी स्वरचित कचवता -स्माररका उपाध्याय 9 मंड़दर बनाना, बटे ा वाररस है, बेटी पारस है। मस्जिद बनाना, बटे ा वशं है, बेटी अशं है। अनाथ आश्रम बनाना, बेटा आन है, बेटी शान है। अस्पताल बनाना, गुरूद्वारा बनाना, बेटा ससं ्कार है, बटे ी संस्कृ तत है। स्कू ल बनाना, बटे ा राग है, बटे ी बाग है। पर कभी वदृ ्धाश्रम मत बनाना। बटे ा दवा है, बटे ी दुआ है। नींद अपनी भलु ा के सलु ाया हमको, बेटा भाग्य है, बटे ी तवधाता है। आसँ ू तगरा के हँसाया हमको, बटे ा गीत है, बेटी सगं ीत है। ददद कभी न देना उन हस्तिय़ों को, बेटा प्रमे है, बेटी पजू ा है। भगवान ने माँ-बाप बनाया शजनक़ों।

पापा मरे े ह,ंै खामोश थोडे नादान से हैं -प्रियंका गौतम 8 ब थोडे से करारे हंै हैं खामोश कफर भी, ककस तरह से शकु िया अदा करूँ मैं, पापा मरे े प्यारे- प्यार हंै इस खामोशी से मसु ्कु राऊँ तो कै से मंै जसै े गमी की बाररश होती है,बजे ान , जसै े आसमान के शसतारे होते हंै मौसमी, आपने ही तो समझा मझु े ये लढु ़कती धूप, जो न कह सकी वो कै से सनु ाऊँ मैं, ये लहराती हवा, कु छ नहीं है, देखने वाला सब देख रहा है। , अगर है वो, और,कह रहा है , पापा मरे े हैं खामोश, नहीं हैं ,पापा के जसै ी सोि , पता नहीं है,मरे ी मंशजल कहाँ , कफर भी , पापा हंै तो है ये जहाँ रूठ गयी हंै कशलया,ँ पापा मरे े हैं खामोश, रूठ गये हैं ये पत्तें, खो गया है ये रािा, खामोश ह़ोंगे पापा मेरे सोिा न था कभी, अब कहीं नहीं चमल रहा जो, अहसान आपका न भलू ँूगी सदा, पापा मरे े हैं खामोश। पापा की ऊँ गली पकड के िल।ूँ इसी से तो मझु े राह चमली, ये जमीं ,ये आसमां , कै सी ये खामोशी िहे रे पे है। कु छ नहीं है आपसे आगे, मुस्कु राहट भी अब तो कहीं पे है हंै खामोश कफर भी कह रहे हैं, हर पल जरूरी है आपका तवश्वास एक मुस्कु राहट सी चमल गयी, कफर, पापा मरे े क्य़ों हंै खामोश। महससू हो रहा है ,परू ा ये अहसास , तब तो शजदंगी भी लगने लगी मदहोश, पापा मरे ै है खामोश।

बात कु छ खास -सोनाली दिनकर 7 ब तवद्यालय मंे आ गए राम कपरू , आठवीं कक्षा मंे पढ़त-े पढ़ते बन गए कली से फू ल। मुख्य अध्यातपका उससे प्रश्न कर बैठी, ककसने बनाया ताजमहल बताओ मेरे बटे े, तवद्याथी घबराया और बोला , मनंै े नहीं बनाया यह कहकर उसने सन्नाटा तोडा। शशशक्षका ने उसे सजा सनु ाई पर उसे कु छ पता न था मरे े भाई। कफर आए उसके माता-तपता और बात सनु कर ड़दया उन्ह़ोंने उसे िाटँ ा, तभी उसे हुआ अपनी गलती का एहसास, सभी बात में यह बात थी कु छ खास।

अच्छी आदत गरम व ताजा खाना खाओ, खलु ी िीज तमु कभी न खाना, बासी को मत हाथ लगाओ, महे नत से मत जी िरु ाना, पानी तपयो हमशे ा साफ़, मत भलू ो यह अच्छी बात। खुली िीज पर मक्खी आए, तवष-तवषाणु छोडकर जाए। मक्खी, खटमल, जएु ँ व मच्छर, तमु रहना इन सबसे बिकर, जब तमु पडो कभी बीमार, घर मंे सबका कहना मानो, करो शीघ्र उत्तम उपिार, बड़ों की बाते भलू न जानी। शजसमे तमु को हो नकु सान, उसे दूर से करो प्रणाम। सुंदर सेहत वाले बच्चे दुतनया मंे होते हंै अच्छे ।

हंै पापा मरे े कहााँ मानसी यादव 8 गमु समु से हो गये झरने, नाजकु - सा हो गया आसमां बेजुबान - सी हो गयी दुतनयां रूठ-सी गयी हंै नड़दयाँ रूह -सा हो गया समां खो गया है ये जहाँ हैं पापा मरे े कहाँ ? झड गये फू ल उठने लगा धआु ँ शसकु ड गयी कशलयाँ बैिेन-सा हो रहा है ये आसमां हैं पापा मरे े कहाँ ? ऐसा कभी देखा नहीं, न कभी सनु ा पापा क्य़ों होते हैं खामोश दुतनया भी पापा के तबन है मदहोश ये झरने जोर से कहने लगे आखँ ़ों में आसँ ू आने लगे क्य़ों कहता है ये जहाँ हैं पापा मरे े कहाँ ? कै सी नाराजगी अब ड़दल में बसी है मसु ्कान भी अब वो कहीं है गुम हो गये हैं हम आखँ ें क्य़ों हंै नम पापा के तबन नहीं है समां हैं पापा मरे े पर कहाँ ?

िुटकु ले -श्रये ा ससरोदठया 10 ब मम्मी : तमु ्हारी आखँ लाल क्य़ों है बेटा ? बटे ा: मम्मी आज मैं कक्षा मंे ठीक से सो नहीं पाया। टीिर : बताओ कालू हमंे लडाई क्य़ों नहीं करनी िाड़हए ? काल:ू लडाई से इततहास बनता है, और याद करना पडता है। पापा : बटे ा इंसान अपनी गलततय़ों से ही सीखता है पप्प:ू कक आज तक मंै कु छ सीखा तभी मैं कहँ क्य़ों । नहीं टीिर – ताजमहल कहाँ है? छात्र – पता नहीं। टीिर: टेबल पर खडे हो जाओ। छात्र: अभी भी नहीं ड़दखा।

वरदान मागँा गाँ ी नहीं - अजं ली वमा( 7 अ) यह हास एक तवराम है, जीवन महासंग्राम है। ततल-ततल चमटूँगी पर दया की भीख मैं लगँू ी नहीं, वरदान मागँ ूँगी नहीं। स्मतृ त सुखद प्रहऱों के शलए, अपने खडं हऱों के शलए, यह जान लो मैं तवश्व की सम्पतत्त िाहगँ ी नहीं, वरदान मागँ ँूगी नहीं। क्या हार मंे क्या जीत मे,ं ककिं चित नहीं भयभीत मंै संघषद पथ पर जो चमले यह भी सही वह भी सही, वरदान मागँ ँगू ी नहीं। लघतु ा न अब मरे ी छु ओ, तमु हो महान बने रहो अपने हृदय की वदे ना मंै व्यथद त्यागूगँ ी नहीं। वरदान मागँ ँूगी नहीं। िाहे हृदय को ताप दो, िाहे मझु े अचभशाप दो, कु छ भी करो कतवद ्य पथ से ककन्तु भागँूगी नहीं। वरदान मागँ ँूगी नहीं।

देश हमें देता है सब कु छ -अजं ली अ 7 देश हमें देता है सब कु छ हम भी तो कु छ देना सीख,े सूरज हमंे रोशनी देता, हवा नया जीवन देती है, भखू चमटाने को हम सबको धरती पर होती खते ी है। औऱों का भी ड़हत हो शजसमंे, हम ऐसा कु छ करना सीखं।े पचथक़ों को जलती दोपहर मंे पडे सदा देते हंै छाया, खशु बू भरे फू ल देते हैं, हमको नव फू ल़ों की माला त्यागी तरूओं के जीवन से, हम भी तो कु छ जीना सीखंे। जो अनपढ़ हंै, उन्हंे पढ़ाएँ जो िपु हंै, उनको वाणी दें जो तपछडा है, उसे बढ़ाएँ प्यासी चमट्टी को पानी दें हम महे नत के दीप जलाकर, नया उजाला करना सीख।ें

चकताबें कु छ कहना िाहती हंै -अजं ली 7 ककताबें करती हैं बात,ंे बीते जमाऩों की दुतनया की, इंसाऩों की आज की, कल की एक-एक पल की खुशशय़ों की , हार की प्यार की , मार की क्या तमु नहीं सनु ोगे? इन ककताब़ों की बातें ककताबें मंे चिड़डयाँ िहिहाती है। ककताब़ों में झरने गुनगनु ाते हंै, पररय़ों के ककस्से सुनाती हंै। ककताब़ों में साइंस की आवाज है, ककताब़ों का ककतना बडा ससं ार है ककताब़ों में ज्ञान की भरमार है। क्या तमु इस ससं ार मंे नहीं जाना िाहोगे। ककताबें कु छ कहना िाहती हंै तमु ्हारे पास रहना िाहती है।

शायरी -वन्दना 10 अ वे दोि मरे ी नजर मंे बहुत मायने रखते हंै, जो वक्त आने पर मरे े सामने आईना रखते हंै। मागँ ी थी मौत तो शजन्दगी दे दी, अधँ रे े में भी रोशनी दे दी। खदु ा से पछू ा मरे े शलए क्या तोहफा है? जवाब में उसने आपकी दोिी दे दी। दुतनयादारी मंे हम थोडे कच्चे हैं, पर दोिी के मामले में सच्चे हैं। बस एक बात पर कायम है, कक हमारे दोि हमसे भी अच्छे हंै। धन ताश के पत्त़ों से ताजमहल नहीं बनता, नदी को रोकने से समंदर नहीं बनता। शजन्दगी से लडते रहो हर पल, एक जीत से कोई शसकं दर नहीं बनता।

इतना सा ही है ससं ार -असं िका िाक्यवार 5 अ सबसे पहले मरे े घर का अडं े जसै ा था आकार, तब मंै यही समझती थी बस इतना सा ही है ससं ार l कफर मेरा घर बना घ़ोंसला सखू े ततनके से तयै ार तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है ससं ार l कफर मैं तनकल गयी शाख़ों पर हरी-भरी थी सकु ु मार तब मंै यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार l कफर मंै उडी आसमान मंे दूर-दूर तक पखं पसार तभी समझ में मेरी आया इतना सा ही है ससं ार l

बेटी बिाओ मैं भी लते ी सासँ ह,ँ -िेवांिी उपाध्याय 3 अ पत्थर नहीं इन्सान हँ l कै से दामन छु डा शलया कोमल मन है मेरा जीवन के पहले ही चमटा ड़दया l वही भोला-सा है िहे रा, जज़्बात़ों मंे जीती ह,ँ तझु से ही बनी हँ बटे ा नहीं पर बेटी ह।ँ बस प्यार की भखू ी हँ l जीवन पार लगा दँूगी अपना लो मंै बटे ा भी बन जाऊँ गी l ड़दया नहीं कोई मौका बस पराया बनाकर सोिा एक बार गले से लगा लो। कफर िाहे हर कदम आजमा लो, हर लडाई जीत कर ड़दखाऊँ गी, मैं अति में जलकर भी जी जाऊँ गी l िदं लोग़ों की सनु ली तमु न,े मेरी पकु ार ना सुनी, मंै बोझ नहीं भतवष्य हँ बेटा नहीं पर बेटी हँ ।

कामयाबी -िासिका िमा 9 ब समय से पहले शाम ढलती नहीं, रोने से तकदीर बदलती नहीं, दूसऱों की कामयाबी अखरती है तमु ्हंे, कामयाबी राह पर पडी चमलती नहीं। अगर चमल भी गयी झठू ी कामयाबी, इत्तफाक समझो,बहुत ड़दन तक पिती नहीं , कामयाबी का मतलब पानी मंे आग लगाना हैं, पर पानी मंे आग आसानी से लगती नहीं। क्य़ों लगता हैं कक शजिंदगी सनू ी-सनू ी है दुतनया अपने जज्बात समझती नहीं, हार के बाद भी,टूटकर भी, सभं ल गया जो , कफर कौन-सी मुश्किल बात है,जो बनती नहीं। वायदा बाधं कर बैठे रहने से पहले सोिो, यँू ही अपने आप शजिंदगी सवँ रती नहीं, तो कर तनश्चय प्रसन्नशील रहँ मैं भी कामयाबी कदम िमू गे ी,यह सत्य है , वो कभी एक जगह ठहरती नहीं।

सफे द कु मचु दनी -खिु बू िजापतत 10 ब िट्टानी भाग़ों का पौधा, औषधीय गणु वाला, धवल श्वते फू ल़ों से सजकर लगता बडा तनराला भारत सड़हत कई देश़ों में अपनी छटा ड़दखाता l चमस्त्र और यनू ान आड़द से इसका गहरा नाता, बाग-बगीि़ों की शोभा यह खेती भी कर सकते तवषवाला होने के कारण तबल्ली पालक डरते l अंग सभी उपयोगी इसके कं दमलू सब खाते, और सगु श्कित फू ल़ों से हम महँगे इत्र बनाते l कं द पराग और फू ल़ों से औषचध खबू बनात,े साधारण से जरटल रोग तक जड से दूर भगाते।

प्रकृ चत की संुदरता -वर्षा गौतम 10 ब भगवान ने बनाई प्रकृ तत है तवश्व की अद्भतु कृ तत है चमतभाषी पर इसकी अद्भतु कृ तत इंसान प्राणी पौधे पक्षी सब है इस तनभरद प्रकृ तत जीवन की साक्षी खुशशयाँ और सदु ंरता देने को रहती तत्पर बहती नड़दयाबँ हते झरने , है ककतने अनमोल कल-कल बहते पानी का न है कोई तौल ऊँ िे -ऊँ िे पहाड बडे हंै लम्बे पहाड बडे हंै पथृ ्वी पर रहते पशु-पक्षी भी बडे अनमोल है बडे भले है प्रकृ तत की सदंु रता है अपार जीवन की है इस पर भरमार मत करो नष्ट इसे मत करो भ्रष्ट इसे प्रकृ तत माता हमारी सुन्दर, अनमोल, अच्छी, न्यारी।

पेड़ -अनषु ्का 6 ब माँ मझु को भी खुरपी दे दो, मंै भी पौधा लगाऊँ गी l सीिूँगी पानी से उसको, मंै भी पडे लगाऊँ गी l पडे बडा जब होगा मरे ा, चिड़डयाँ गीत सनु ाएगी l आम लगंगे े जब उस पर, कु तर - कु तर कर खाऊँ गी l चिड़डय़ों के संग खले गँू ी, पडे ़ों पर िढ़ जाऊँ गी, ऊँ िी डाल पर लगा आम पडे पर िढ़ खाऊँ गी।

पडे ़ -पडे ़ तमु ज ंदाबाद -आयरु ्षी 6 ब पडे -पडे तमु शजिंदाबाद करते दुतनया तमु आबाद, भखू लगे तो फल देते हो, धूप लगे तो छाया, गमी मंे पखं ा झलते हो, करते दान समिू ी काया । काटता है जब कोई वकृ ्ष तो, मौन मखु र करते संवाद , आधँ ी,तफू ान से लड जाते शरू वीर हो तमु जाबँ ाज , पडे , बीमार को दवा देते हो, अतं समय तक देते साथ अपने पत्ते झरा-झराकर स्वयं बना लते े हो खाद बीज तगरा भू पर अपने तमु कफर से उग आते हो, जीवन रूकता नहीं कहीं पर सबको ये शसखलाते हो।

बझो तो ाने -डॉ. अरुण ससहं राठौर,िारीररक सिक्षक (1) एक सासँ में खले ा जाता, घर मंे जाकर मारा जाता। एक मरे तो एक अमर हो जाता , हुततु ू से भी जाना जाता।। (2) हाथी भी है घोडा भी है, राजा भी है सेना भी है। काला भी है गोरा भी है, ६४ खाऩों का िोकटा भी है। बुचद्ध से ये खले ा जाता और धैयद यहाँ पे परखा जाता।। (3) लाल नीली पीली हरी तिरी, लोहे की छड से है जडु ती। शजससे उठा सर के ऊपर, िानू ने िादँ ी है जीती।। (4) िार साल में खले ा जाये, तवश्व जहाँ एकत्र हो जाये। सब अपनी शतक्त ड़दखलाए,ँ अपने देश का मान बढ़ाये।। (5) तगल्ली उडे, उडे है डंडा, उछले गदंे गपक्ले बंदा। तनकली गदें भगे है बदं ा, नहीं तो उठ गई ऊँ गली तनकल गया बदं ा।। (6) छू के बोले शब्द कमाल, बठै े भागे लगाये छलागं । तीन-तीन की तकु डी आती, नौ की फ़ौज को वो भगाती।।

बझो तो ाने -डॉ. अरुण ससहं राठौर,िारीररक सिक्षक (7) आत्मरक्षा हमंे शसखलाता, जापान का खले कहलाता। इप्पोन चमलने पर, खेल खत्म ये हो जाता।। (8) छोरा हरयाणा का, फंे का भाला जापान। 87.58 मी. पे गाडा झडं ा, ककया स्वणद देश के नाम ।। (9) भारत की एक मैं मड़हला खखलाडी, जीता शजसने कासं ्य और िादँ ी। हैदराबाद में जन्मी हँ म,ंै पुसलाद नाम से जानी जाती ।। ( 10 ) रबर की बनी में गोलाकार, कू दे मारंे फें के और दे थप्पड मझु मंे बारम्बार। शजस घर तगर जाऊ वो दुखी हो जाता, कोई न मझु को रखना िाहता।।  उत्तर  4. ओलतं पक्स 8. नीरज िोपडा 1. कबड्डी 2. शतरंज 3. भारोतोलन (वटे शलस्तटिं ग ) 10. वॉलीबॉल 5. किके ट 6. खो-खो 7. जडु ो 9. पसु लाद वकें ट (पी.वी.) शसिु

बोना (नन्हा) पंछी -अपं्रकत कु मार जनै )स्नातकोत्तर सिक्षक रसायन तवज्ञान( बोना (नन्हा) पछं ी जब पहली उडान भरता है ! एक बार नहीं सौ बार पख़ं जमीं पर पटकता है, तब लडखडा कर वह कु छ कदम उडता है, और कफर िोट खाकर नीिे तगरता है! बोना पछं ी कफर........ कफर एक ड़दन वह अपनी हार को जीत मंे बदलता है बोना पछं ी आसमान को छू ता है, ड़दशाओं पर राज करके वह सीमाएँ काटता है और अपने बोनपे न का एहसास खत्म करता है , यड़द वह तगरकर हार जाता तो जीत की पहली उडान कै से भरता यड़द वह तनराश होता तो शजिंदगी कै से जीता कै से िीरकर हवाओं को मशं जल का रािा बनाता

कफर एक ड़दन बोना पछं ी आसमान जीतता है अनुभव सीखता है और अपने अतं को खोजता है कफर एक ड़दन अपने अतं का पता लगा, तनणयद के ड़दन पछू ता है, खुदा से क्या मंै अपना सफर पूरा करके लौटा हँ l तब उसे जवाब हाँ मंे चमलता है कफर बोना पंछी उस डगर से भी ऊँ िा उडता है शजस डगर पर आसमान लटकता है....

बिपन की सीख -श्रीमती पजू ा कु िवाहा, िसिसक्षत स्नातक सिसक्षका(सामासजक तवज्ञान) यह उन ड़दऩों की बात है जब मंै नाना जी के साथ अचधक समय व्यतीत ककया करती थी। उस समय मंै बहुत छोटी थी। पाठशाला जाना शरु ू हो गया था। ककहरा और तगनती शसखाने का दौर शरु ू हो गया था। मैं अपना अचधक समय नानाजी के साथ ही रहा करती थी। एक्का एक, दोनी दो दोहरात-े दोहराते उनके साथ दूर-दूर तक खते ़ों को देखने जाना, फसल़ों के बारे मंे देखना, बुआइ , तनराई आड़द करते हुए सभी ककसाऩों को देखा करती थी और उन्हीं के साथ मेरा खेलना भी हो जाता था। पावँ के ऊपर चमट्टी को दबा-दबा कर अपनी गुड़डया के शलए घर बनाने का काम बहुत िाव से ककया करती थी। उन ड़दऩों कहातनयाँ सनु ाने का बहुत प्रिलन था। लगभग में हर रात नाना जी से कहातनयाँ सनु ा करती थी। कहातनयाँ सनु े तबना मैं कभी नहीं सोती थी। नाना जी से के वल मंै ही कहातनयाँ नहीं सुना करती थी, बल्कि पडोस के सभी बच्चे एककत्रत हो जाते थे। अपने गावँ के ततराहे पर आसपास के सभी घऱों से एक-एक खरटया आकर जमा हो जाते थ।े उस पर अपने-अपने कथरी लगाना िद्दर लगाना और खासकर तककया नानाजी के शलए तो मंै ही लके र आती थी। गावँ के सभी बूढ़े बुजगु द ततराहे पर ही अपनी अपनी खरटया तबछाते थे। िादँ नी रात के तो कहने ही क्या। हम सब बच्च़ों को खबू खेलने चमलता था उस रात। कहानी कहने का जो अंदाज नानाजी का था, वह पूरे गावँ में लोकतप्रय था। ऐसा लगता था, मानो वह कहानी का ही एक पात्र है। वह कहानी सुनाते- सनु ाते उसी में रम जाते थ।े नानाजी बहुत ही सरल स्वभाव के व्यतक्त थ।े सबसे छोटी होने के कारण मझु े सबका स्नहे सवाचद धक चमलता था। एक ड़दन की बात है। नानाजी ततराहे पर खरटया डाले बैठे ही थे कक हम सभी बच्चे आसपास आ करके बैठ गए। पनू म की रात थी। और उनसे कहानी का आग्रह करने लगे-“ नाना एक कहानी हो जाए”। “अरे नहीं तबरटया! आज मन नहीं है।“-नानाजी बोल।े “नहीं-नहीं,एक कहानी सुना देव।“ थोडी देर मनौती कराने के बाद नानाजी तयै ार हो जाते हंै- “अच्छा! ठीक है। िलो सब जन नीके बैरठ जाओ।“ और कहानी शरु ू हो गई। एक समय की बात है। एक गरु ुकु ल मंे एक ऋतष मुतन रहा करते थ।े उनके कई तवद्याथी उसी गरु ुकु ल मंे तनवास करते थे और अध्ययन भी ककया करते थ।े वे बच्चे उस आश्रम में रहकर अलग-अलग प्रकार के कायद भी ककया करते थे। जसै े गरु ु के शलए चभक्षा मागँ कर लाना, आश्रम की साफ सफाई रखना गरु ुजी की पजू ा के शलए फू ल लके र आना आड़द।

एक ड़दन की बात है। गरु ुजी ने सभी तवद्याचथि य़ों का परीक्षण करने की सोिी। अतः उन्ह़ोंने सभी तवद्याचथि य़ों को अपने पास बुलाया और कहा- “आप सभी बच्च़ों को एक ड़दन के शलए अपने- अपने घर भजे ा जाता है। अपने-अपने घर जा कर आप सबको अपने ही घर वाल़ों की नजर से बिाकर घर की कोई विु िपु िाप आश्रम में ले आना हंै। ककिं तु इस किया की एक शतद है। शतद यह कक जब तमु उस विु को िरु ा रहे हो तब तमु ्हें कोई भी ना देखंे। सभी बच्च़ों ने हामी भर दी। अब गुरु जी ने सभी बच्च़ों को घर जाने का आदेश ड़दया और अगली सबु ह आने के शलए कहा। सभी बच्चे अपने-अपने घऱों से कु छ न कु छ विु लके र आए थे, ककंि तु रामज्ञ खाली हाथ वापस आया। गरु ुजी ने पछू ा- “यह क्या रामज्ञ? तमु कोई विु क्य़ों नहीं लाए? रामज्ञ के पास कोई उत्तर ना था। तभी मनसखु ा बोला- “गुरुजी! उसको अके ले समय नहीं चमला होगा, कोई न कोई आसपास रहा होगा, इसीशलए वह कोई भी विु नहीं ला पाया।“ रामज्ञ ने तब भी कोई उत्तर नहीं ड़दया। गुरुजी ने एक और अवसर ड़दया- “रामज्ञ ! आज की रात तमु कफर से घर जाओ और मेरे शलए कोई विु अवश्य लके र आना।“ रामज्ञ ने हाँ मंे शसर ड़हला ड़दया। वह कफर गया और अगले सबु ह गरु ु के सामने उपस्थित हो गया - खाली हाथ। यह देखकर गरु ु जी ने उससे आने का कारण पछू ा। रामज्ञ बोला- “गरु ुजी ककसी भी प्रकार की विु लाने के शलए आपने एक शतद रखी थी कक मझु े कोई भी ना देख पाए। जब मंै विु लने े गया उस समय पररवार का कोई भी व्यतक्त मरे े आस- पास भी नहीं था। मैं आराम से वह विु उठा सकता था। ककंि तु उस समय मंै अपने आप को देख रहा था। आप ही बताइए गरु ुजी - क्या मनैं े आपकी शतद परू ी की? इसका तनधारद ण अब आप ही कीशजए।“ गरु ुजी ने रामज्ञ को अपने पास बुलाया। सभी तवद्याथी देखकर मन ही मन मसु ्कु रा रहे थे कक आज तो रामज्ञ की खैर नहीं। जैसे ही रामज्ञ गुरुजी के पास पहुिँ ा,गरु ुजी मुस्कु राने लगे और उन्ह़ोंने उसकी पीठ भी थपथपाई- “बहुत अच्छे! तमु ने ककसी भी विु को ना लाने का तनणयद कर बहुत अच्छा तनणयद शलया। तमु सत्य कहते हो। कोई भी ना देख रहा हो तब भी हम स्वयं अपनी गतततवचधय़ों की तनगरानी करते हंै। अथातद हम खुद को देख रहे होते हंै, हमारा ईश्वर हमंे देख रहा होता है। अतः हम पर हमशे ा उस ईश्वर की नजर रहती हैं। इसशलए ऐसा कायद हमंे नहीं करना िाड़हए और मरे े इस परीक्षण मंे तमु उत्तीणद होते हो। सभी तवद्याथी आश्चयद िककत हो रहे थे क्य़ोंकक इस परीक्षण में के वल रामग्य ही सफल हुआ था, अन्य सभी तवद्याथी अनतु ्तीणद माने गए। अपनी कहानी को परू ा करके नाना जी ने कहा-“ तो तबरटया! ई कहानी से तमु का का सीख चमली के हमए कबहँ भी िोरी न करै के िाही कहे की भगवान सबै पर तनगरानी राखत हैं।

नाना जी की इस कहानी को ऐसे तो वषों हो गए हैं, ककंि तु इस कहानी ने बहुत ही महत्वपणू द सीख दी जो आज भी कोई गलत काम करने से स्वयं को रोक देती है l जब भी ऐसी कोई पररस्थितत आती है, तब नाना जी अवश्य याद आते हैं।

मुसीबत़ों के गावँ मंे, रे मन ! दुःख़ों की छावँ म,ंे पल रे मन, बढ़ रे मन, - संतोर्ष कु मार नमे ा हो सशक्त, हो समथ,द )स्नातकोत्तर सिक्षक, कं प्यटू र तवज्ञान( काट मुश्किल़ों का सर, रािे प्रशि कर, पवतद ़ों को िूर कर, आगे बढ़, आगे बढ़ । गहरी खाइय़ों को भर, ऊँ ि-नीि को चमटा, िीर दे, तू धरा, ये जहाँ समकक्ष कर, पाताल को वश मंे कर, आगे बढ़, आगे बढ़ । आसमान पार कर, स्वगद को बना ले घर, अनल हो यड़द प्रबल, आगे बढ़, आगे बढ़ । नीर तीव्र धार बन, ििवात हो गर कहीं, अचं धयारी रात़ों से लड, अटल हो, अिल बन, एक नया प्रभात कर, आगे बढ़, आगे बढ़ । ततचमर का तवनाश कर, आनदं का प्रकाश भर, सव्यसािी का तीर बन, आगे बढ़, आगे बढ़ । लक्ष्य का हरण कर, वज्र सम कठोर बन, शत्रु का दमन कर, आगे बढ़, आगे बढ़। हो सशक्त, हो समथ,द काट मुश्किल़ों का सर, रािे प्रशि कर, आगे बढ़, आगे बढ़ ।

बंुदेलखडं ी हास्य कचवता-िौका (रसोई) की लड़ ाई -ऋप्रर्ष िताप ससहं )िाथतमक सिक्षक( मिी लडाई िौका में जब िाऱों तरफ िले हचथयार टुकडा टुकडा आलू के भय गोभी-चभिं डी कर रई हाहाकार िटनी बट गई नोन चमिद की चिमटा िटके सौ सौ बार रोटी नि रई उरसा पे यंू बले न िले तजे रफ़्तार कडी बन गई बगैं न की यूं चमिनद को डर गओ आिार शकरकं द को हलआु बन गओ महुं में आ रव पानी बारंबार यहाँ की बातंे अब यहीं छोडो और आगे को सुनो बयान िढ़ी करैया िलू ्हे ऊपर पडू ी तगरी तले में जाय रोबे तले अरशसया मन में जी को तगरो फसूकर आए गशु जया कै रई ऐंठन खुल गई अब तो मरत बित हंै नाय जल्दबाजी में लपं बझु गई ड़दया में बाती जलत है नाय तबही करैया िलू ्हे पे से औधं ी तगरी धारा पे आय खीर तबिारी दब के मर गई तुरतई दे दए अपने प्रान भाग्य बडे हलआु के समझो एकदम भगो बिा के जान ऐसी बनी रसोई पिं ़ों अब जाबे खाबे पे ध्यान।

ज़रा सचु नए तो ! -डॉ. प्रकरण राठौर िसिसक्षत स्नातक सिसक्षका(दहिं ी) जीवन में सुनने को महत्व दंे । जब कोई व्यतक्त हमारी बात ध्यान से सुनता है, तब हम बहुत खशु हो जाते हैं, पर कहीं न कहीं हम शजतनी अपके ्षाएँ दूसऱों से करते हैं उतना हम दूसऱों के शलए खरा नहीं उतर पाते अथातद हमारे शलए वक्ता बनना आसान और श्रोता बनना करठन हो जाता है । वाितवकता तो यह है कक मनषु ्य अपने जीवन में शजतना अचधक सनु ता है, उसकी जानकाररय़ों का खजाना उतना ही अचधक समदृ ्ध होने लगता है । उसका हर एक शब्द कणतद प्रय हो जाता है तथा वह एक अच्छे श्रोता के पश्चात सफल वक्ता बन जाता है । भाषा का तवकास िार कौशल के माध्यम से होता है – सुनना , बोलना, पढ़ना और शलखना। शजसमंे प्रथम िान सनु ने का है । एक छोटा शशशु भी लगभग प्रथम वषद तक सनु ने का ही कायद करता है । प्रायः कु छ लोग दूसऱों की बात़ों को अनसनु ा कर देते हंै या उनकी बात न सुनकर उल्टा उन्हें ही समझाने लगते हैं । ऐसा करना ककसी का अपमान करने से कम नहीं हैं । जब हम समस्याओं से चघरे ककसी व्यतक्त की बात सनु लते े हैं, तब वह अपने आपको हिा महससू करता है । उसकी सोि श्रोता के शलए सकारात्मक हो जाती है । इस तरह ककसी की बात को गभं ीरता से सनु ना भी ककसी को सम्मान देने से कम नहीं है । वतमद ान समय की दौड-भाग में हम सुनने की कला खो रहे हंै । के वल वािक बने रहना ही उचित नहीं हैं । उचित है कक जीवन मंे अच्छे व सकारात्मक तविाऱों को कु छ देर मौन रहकर श्रवण करें व अपने हृदय को शातं त प्रदान करें, ताकक हमारे भीतर सतु विाऱों का सिं ार हो और जीवन के हर क्षते ्र मंे हम कियाशील होकर सफलता की ओर अग्रसर हो सके । सनु ना समझ का प्रवशे द्वार है । सनु ने से न के वल हमारी एकाग्रता बढ़ती है अतपतु हमारे संपणू द व्यतक्तत्व में सकारात्मक पररवतनद होता है ।अतः आवश्यक है कक हम जीवन में सुनने की कला तवकशसत करें।

चबल्ली को ुखाम ित्यरु ्षा गौतम कक्षा – 3 ब तबल्ली बोली बडी जोर का , मुझको हुआ जखु ाम , िहू े िािा िरू न दे दो , जल्दी हो आराम , िूहा बोला बतलाता हँ , एक दवा बजे ोड , अब आगे से िहू े खाना , तबलकु ल ही दो छोड आ की बेटटयां आन्या खरे कक्षा – 5 ब आसँ ू की एक बदँू सी होती है बरे टयां , स्पशद खरु दरा हो तो रोटी है बरे टयां रोशन करेगा बटे ा तो शसफद एक ही कु ल को, दोऩों कु ल़ों की लाज को ढोती है बरे टयाँ , कोई नहीं यारो ककसी से कम , हीरा अगर बटे ा है तो मोटी है बरे टयाँ , खदु काटँ ़ों की राह में िलती है पर , दूसऱों की राह मंे फू ल बोती है बरे टया,ं तवचध का तवधान है यही , दुतनया की रस्म है यही, मुट्ठी से भरे नीर की तरह होतीं है बरे टयाँ |

सर चनकला राधिका रैकवार कक्षा – 1 ब सरू ज तनकला चमटा अधँ रे ा , देखो बच्चो हुआ सबरे ा , आया मीठी हवा का फे रा , चिड़डय़ों ने कफर छोडा बसरे ा , जागो बच्चो अब मत सोओ , इतना सनु ्दर समय न खोओं | आओ प्रण लंे तरुण रावत कक्षा – 1 ब एक , दो , तीन , िार , हाथं ़ों को धोओं बार- बार , पािं , छः , सात , आठ , साबनु लगाकर रगडो हाथ , नौ , दस , ग्यारह , बारह , झाग बनाओ खबू सारा , तरे ह , िौदह , पदं ्रह , सोलह , ऊँ गली फँ सा बना लो झोला , सत्रह , अट्ठारह , उन्नीस , बीस , नाखून रगडकर कीटाणु खींि, स्वच्छ हांथ़ों के लाभ अपार , इनसे करो कोरोना पर बार |

मेरा स्कल अधिराज िताप ससहं कक्षा – 5 अ ककतना सनु ्दर है स्कू ल , इसके रंग – तबरंगे फू ल , फू ल सुहाने सबको भाते , उन्हें देहकर सब ललिाते , टीिर हमको पाठ पढाते , नयी नयी बातंे बतलाते || तम्बाक चनषेध अतनिका िमा कक्षा – 4 ब शसगरेट , शसगार , बीडी , तम्बाकू , इतने बरु े है , जसै े हो डाकू , जो इनको खाए , ये उनको खा जाए , ऐसा राक्षस और कौन है , आप ही बताएं , फें फडे आपके काले होकर सडेंगे , कैं सर के मरीज आप बनगंे े , यड़द नशे की लत में आप पडेंगे , तम्बाकू नशे की लत है मानो , आत्महत्या करना है जानो , हो स्वि से प्रेम तो बाबु , िक्कर मंे न पडना सवे न के तम्बाकू |

स्वछता विै व िताप ससहं कक्षा – 5 अ छोटी – छोटी बात़ों के जब ध्यान रक्खे जायगंे े , तब ही तो देश में स्वखणिम स्वछता ला पाएगं े , कू डा – किडा को हमशे ा कू डा दान में डालंे , गोबर , पत्ती और कीट़ों का जतै बक खाद बना लें , शौंि के शलए बाहर नहीं के वल शौंिालय जाओ , डायररया जसै ी तबमाररय़ों से खदु को बिाओ , स्वछता ही सवे ा मंत्र है सबकी शजम्मदे ारी , इसमंे भाग न लने े से स्वस्थ्य पर पडेगा असर भरी | कोजशश कर सौम्य श्री / कक्षा – 5 अ कोशशश कर , हल तनकलेगा , आज नहीं तो कल तनकलगे ा | अजनदु के सा सध , मरुिल में भी जल तनकलेगा | महे नत कर पौध़ों को पानी दे , बजं र जमीन में भी फल तनकलगे ा | ताक़त जटु ा ड़हम्मत को आग दे , फौलाद का भी बल तनकलगे ा | शजंिदा रख ड़दल में उम्मीद़ों को , गरल के समदं र से भी गगं ाजल तनकलेगा | कोशशश जारी रख कु छ कर गजु रने की , जो है आज थमा थमा सा , िल तनकलगे ा |

राष्टर्ीय जशक्षा नीचत 2020 - सिव कु मार चतवु िे ी िाथतमक सिक्षक कंे द्रीय तवद्यालय संगठन राष्ट्रीय शशक्षा नीतत 2020 को लागू करने हेतु कृ त संकल्कित है । इसी सदं भद मंे शशक्षक़ों का इस शशक्षा नीतत से अवगत होना परम आवश्यक है। इसीशलए राष्ट्रीय िर पर वहृ द पमै ाने पर राष्ट्रीय शशक्षा नीतत-2020 के अनसु ार प्रशशक्षण कायशद ालाओं का आयोजन ककया जा रहा है । शशक्षा व्यविा मंे सधु ार के शलए तवगत समय में भी भी प्रयास हुए, परंतु बहुत सी योजनाएँ अव्यविा की भटंे िढ़ गई। ककसी भी देश की शशक्षा व्यविा ही उसका भतवष्य तय करती है । इसीशलए माननीय प्रधानमतं ्री जी ने इसरो के प्रशसद्ध वजै ्ञातनक डॉक्टर के . किरू ीरंजन जी को इस बात का गरु ुतर भार सौंपा। देशभर के शशक्षक़ों एवं अन्य बचु द्धजीतवय़ों से सुझाव मागँ े गए । शशक्षा से सबं चं धत सभी आयाम़ों को समाड़हत करते हुए उन सभी सुझाव़ों का गहन अध्ययन ककया गया। तत्पश्चात् जो नवनीत तनकलकर सामने आया, वह है, राष्ट्रीय शशक्षा नीतत-2020 । 

अमतृ वाणी संस्कृ तभाषा सुरस सबु ोधा विश्िमनोो्ा लललता हृद्या रमनणीया। अमनतृ िाणी ससं ्कृ तषा ा ोैि क्लिष्टा ो क कनाोा ।। कविकु लगरु ु िाल्मीकक विरचकता रामनायण रमनणीय कथा। अतीिसरला मनधरु मनंजुला ोैि क्लिष्टा ो क कनाोा ।। व्यास विरचकता गणशे ललखिता मनहाषारते पणु ्य कथा। कौरि पाण्डि सगं र मनचथता ोिै क्लिष्टा ो क कनाोा ।। कु रुक्षेत्र समनरागं णगीता विश्िििं तता षगि्ीता। अतीि मनधरु ा कमनमतीवपका ोिै क्लिष्टा ो क कनाोा ।। कवि कु लगरु ु ोि रसोन्मने जा ऋतु रघु कु मनार कविता। विक्रमनमनालविका-शाकु न्तल- ोिै क्लिष्टा ो क कनाोा ।। जयतु ससं ्कृ तमन।् जयतु षारतमन।् ।

सदैव परु तो निधने ि चरणम्।। कल कल परु तो वोधिे ह करणमन्। सतैि परु तो वोधिे ह करणमन।् । वगनरलशिरे ोोु वोजवोके तोमन्। विोिै याों ोगारोहणमन।् । बलं स्वकीयं षिवत साधोमन।् सतैि परु तो .......................।। पचथ पा ाणााः वि मनााः प्रिरााः। िहिं स्ााः पशिाः पनरतो घोरााः।। सतु ुष्करं िलु यद्यवप गमनोमन।् सतैि परु तो .......................।। जहीिह षीवतंि षज-षज शविमन।् विधिे ह राष्ट्रे तथाऽोुरविमन।् । कु रु कु रु सततं ध्यये -स्मरणमन।् सतैि परु तो .......................।।

मिसा सततम् स्मरणीयम् मनोसा सततमन् स्मरणीयमन् िकसा सततमन् ितोीयमन् लोकिहतमन् मनमन करणीयमन् ॥धृ॥ ो षोग षिोे रमनणीयमन् ो क सिु शयोे शयोीयमन् अहवोि शमन् जागरणीयमन् लोकिहतमन् मनमन करणीयमन् ॥१॥ ो जातु तुाःिमन् गणोीयमन् ो क वोज सौख्यमन् मनोोीयमन् कायम क्षते ्रे त्वरणीयमन् लोकिहतमन् मनमन करणीयमन् ॥२॥ तुाःि सागरे तरणीयमन् कष्ट पितम े करणीयमन् विपवि विवपोे भ्रमनणीयमन् लोकिहतमन् मनमन करणीयमन् ॥३॥ गहोारण्ये घोान्धकारे बन्धु जोा ये स्थिता गह्वरे तत्र मनया सन्चरणीयमन् लोकिहतमन् मनमन करणीयमन् ॥४॥

मम कामिा षारत मनमन मनातषृ चू मनाः वपतषृ चू मनाः षारतमन् । षारतं मनमन तेिषचू मनाः पणु ्यषचू मनाः षारतमन् । एतत् ोमनाचमन श्रद्धया एतत् वप्रयं मनमन षारतमन् । अन्नं जलं क फलावो यच्छवत, आश्रयमनवप षारतमन् । विद्या धों सौख्यकं यच्छवत िहतकर मनमन षारतमन् जीिों मनमन षारताय उन्नत िाो् षारतमन् ॥ ए ाअस्ति एका कामनोा रोगााः ो सन्तु तेशमनध्ये स्यात् सिु मनयं मनमन षारतमन् स्वस्याः षिते ् मनमन षारतमन् ।।

ससं ्कृ त भाषा का मिततव लशष्टाकार लशष्ट : आकार: लशष्टाकाराः इवत कथ्यते । अस्माकं आकार: अधाः कवतचकत् लशष्टाकारा: तिााः सन्तन्त । १. सत्यं ितेत । २. गुरूो िदृ ्धाो् वपतोॄ ो पजू यते ् । ३. धमन:म आकानरताः । ४. परोपकार कु यातम ् । ५. सत्यकमनम कु यातम ् । ६. तुष्टससं गम त्यजते ् । ७. सत्यङगवत कु यातम ् । ८. अलशलक्षताो् लशक्षयते ् । ९. कायम यथा समनयं कु यातम ् । १०. अवतवोद्रा, क्रोधं आलस्य,ं इत्याित ११. अोतृ ं ो ितेत् । १३. परवोन्ां ो कु यातम ् । १४. आत्माप्रशसं ा ो कु यातम ् । १५. कौयम ो कु यातम ् ।

स्काउट गाइड नियमााः १. स्काउट विश्वसोीयाः षिवत । २. स्काउट किमव्यवोष्ठाः षिवत । ३. स्काउट सिे चं मनत्रं षिवत, परस्परं भ्रातराः षिन्तन्त । ४ स्काउट विोिी षिवत । ५. स्काउट पशपु लक्षणं चमनत्रं प्रकृ वतप्रेमनी क षिवत । ६. स्काउट अोुशासोशील सािजम वोक सम्पविरक्षाथं क कृ तप्रयत्नो षिवत । ७. स्काउट साहसी षिवत । ८. स्काउट चमनतव्ययी षिवत । ९.स्काउट मनोसा, िकसा, कमनमणा क शदु ्धा षिवत । १०. अोोे प्रकारेण गाइड कब बुलबुल आतीोां वोयमनााः षिवत ।

नवभभन्न संस्थाि और उिके संस्कृ त ध्येय-वाक्य काशी हिन्दू विश्वविद्यालय विद्ययाऽमृतमश्नतु े विद्या से अमनतृ की प्रावि होती है। अखिल भारतीय आयवु िजि ्ञान ससं ्थान शरीरमाद्यं खलु धममसाधनम् शरीर ही सषी धमनों (कतमव्यों) को परू ा करोे का साधो है। विश्वविद्यालय अनदु ान आयोग ज्ञान-विज्ञानं विमकु ्तये ्ाो-वि्ाो से विमनवु ि प्राि होती है। के न्द्रीय माध्यवमक शशक्षा बोर्ड असतो मा सद्गमय हमनें असत्य से सत्य की ओर ले कलें


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