आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ َا َ ْﱂ َ َ� َﮐ ْﯿ َﻒ َ َﴐ َبﷲ َﻣ َﺜ ًﻼ َﳇِﻤ ًﺔ َﻃ ِّﯿ َﺒ ًﺔ �ा आप ﷺने नहीं देखा िक अ�ाह तआला ने क�लमा त�बा क� �मसाल कै से बयान फ़रमाई ? ُٔأ ُ﴾ َﳇ َﻬﺎ ُ َّﰻ ِﺣ ِۢﲔ٢٥ٓ ُﺮ ُﺗوْﺆ َِنﰏ٢َﻛ٤ّ ل◌ِلﻠَو َّﻨَﻓﺎْﺮِ ُﻋ َسﻬ َﻟﺎ َﻌِ َّﻠﰲ ُﻬٱﻟْ َّﻢﺴ َﯾ َﻤَﺘ ٓﺎ َ ِﺬءٞ َِ�ِٕ﴿ ْذ َﻛ ِنَﺸ َر َﺠِّ َﲠَﺮ ٖﺎۗة َوَ َﯾﻃ ِّﯿْ َﺒِﴬ ٍﺔ ُ َٔأبٱْﺻ َّﻠُ َُ�ﻬٱﺎْ ََٔ��ْ ِﻣﺑ َﺜﺎﺖ जैसे िक एक पाक�ज़ा दर� हो इसक� जड़ मज़बतू तरीन हो और शाख़� आ�ान तक बलु � हो।ं �जसे हर व� फल ही लगते रहे ह� इसके रब के �� स।े अ�ाह तआला लोगों को �मसालों से समझा रहा है तािक समझ जाएं । (सरू ह इब्राहीम:24-25) इस आयत क� त�ीर म� इ� अ�ास र�ज़य�ा� अ�ु फ़रमाते ह:� क�लमा त�बा से मरु ाद …… ला इला-ह इ��ाह क� शहादत ह।ै पाक�ज़ा दर� से मरु ाद …… मो�मन है �जसके िदल म� ला इला-ह इ��ाह जम गया है …… उसक� ब�ु नयाद मज़बतू हो गई ह।ै आ�ान म� शाख़ों से मरु ाद …… नके आमाल ह� आ�ान पर प�ंचते रहते ह� अ�ाह के हाँ मक़बलू होते ह�, अज्र और दरजात म� इज़ाफ़ा का बाइस ह।� [2]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ अ��ु �ल�ािह वहद� वस् सलातु वस् सलामु अ़ ला मल् ला न�ब� बअ़ द् ह आस्मान, ज़मीनों और तमाम मख़्लक़ू से ज़्यादा वज़नी वज़ीफ़ा और दुआ के िलए अज़ीम वसीला रसूल�ु ाह ﷺबयान फ़रमाते ह� िक मूसा अलैिहस् सलाम ने अ�ाह तआला से अज़र् िकया िक ऐ मरे े रब मझु े ऐसी चीज़ बताईए �जसके ज़�रए से म� आप को याद िकया क�ं और उसके वसीले से आप से दआु िकया क�ं । अ�ाह तआला ने फ़रमाया: मसू ा, ला इला-ह इ��ाह पढ़ा कर। मसू ा अलिै हस् सलाम ने अज़्र िकया: ऐ मेरे रब! इसे तो तरे े सारे ही ब�े पढ़ते ह�। अ�ाह तआला ने फ़रमाया ऐ मसू ा! अगर मरे े �सवा सातों आ�ान और इनके सब रहने वाले और सातों ज़मीन� एक पलड़े म� रख दी जाएं और दसु रे पलड़े म� �सफ़र् ला इला-ह इ��ाह रख कर वज़न िकया जाए, तो ला इला-ह इ��ाह वाला पलड़ा भारी हो जाएगा। (नसाई:10670, अल-म�ु दरक �लल-हािकम:1936 सहीह अल श�तश् शख़े ैन) आप ﷺक� शफ़ाअत का मुस्तिहक़ कौन? अबू �रैरह र�ज़य�ा� अ�ु ने अज़्र िकया िक वह कौन ख़शू नसीब श� है जो आप ﷺक� शफ़ाअत का मु�िहक़ होगा आप ﷺने फ़रमाया जो श� ख़लु ूसे �न�त से क�लमा ला इला-ह इ��ाह का इक़रार करेगा। (बख़ु ारी:99) [3]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ नोट: ख़ुलूसे �न�त से कहने का मतलब है िक �शकर् से बचे, जो �शक्र से ना बचा वह ख़लु ूसे �न�त से इसका क़ाइल नहीं �ाह ज़बान से इसे पढ़ता हो। ख़ािलसतन अल्लाह क� रज़ा के िलए किलमा के इक़रार क� फ़ज़ीलत रसलू े अकरम ﷺने फ़रमाया िक: \"जब इ�ान स�े िदल से ला इला-ह इ��ाह का इक़रार करता है तो उसके �लए आ�ान के दरवाज़े खोल िदए जाते ह� यहां तक िक वह अश� इलाही क� तरफ़ बढ़ता रहता ह,ै बशति� क कबीरा गुनाहों बचा रह।े \" (�त�मज़ी: 3939 सनद�ु हसन) रसलू ु�ाह ﷺने फ़रमाया: जो श� ख़ा�लसतन अ�ाह तआला को राज़ी करने के �लए ला इला-ह इ�ा अ�ाह का इक़रार करता है अ�ाह तआला उस पर दोज़ख़ के अज़ाब को हराम कर देता ह।ै (बख़ु ारी व म�ु �म) आमाल क� कमज़ोरी के बावजदू जन्नत में दािख़लह नबी करीम ﷺने फ़रमाया: जो श� िदल क� गहराइयों से गवाही दे िक अ�ाह तआला के �सवा कोई माबदू नही।ं वह अके ला है ……… उस का कोई शरीक नही,ं और महु �द ﷺउसके ब�े और उसके रसलू ह�। और यह िक ईसा अलिै हस् सलाम भी अ�ाह के ब�े और रसलू और उसका क�लमा ह� जो िक अ�ाह तआला ने हज़रत मरयम अलैिहस् सलाम क� तरफ़ भजे ा। और वह (ईसा अलैिहस् सलाम) उसक� भेजी �ई �ह ह�। [4]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ और ज�त और दोज़ख़ बरहक़ ह।� अ�ाह तआला इस गवाही देने वाले को ज�त म� दा�ख़ल फ़रमाएं गे �ाह उसके अमल कै से ही हो।ं (बख़ु ारी: 3435 व मु��म:149) आज तझु पर ज़�ु नहीं होगा रसूल�ु ाह ने फ़रमाया: िक़यामत के िदन परू ी काइनात के सामने एक श� को बलु ाया जाएगा उसके सामने �न�ानवे र�ज�र उसक� बरु ाईयों के रख िदए जाएं गे, हर र�ज�र इतना ल�ा चौड़ा फै ला होगा �जतनी नज़र काम करती ह…ै ……अ�ाह तआला क� तरफ़ से सवाल होगा ……… इन बरु ाईयों म� से िकसी एक बरु ाई का भी इनकार कर सकता ह?ै मरे े �नगरां फ़�र�ों ने कहीं तझु पर ज़ु� तो नहीं िकया? वह जवाब देगा ……… ऐ मरे े रब ऐसा नहीं ह।ै िफर सवाल होगा कोई उज़्र हो तो पशे करो या कोई नके � हो तो सामने लाओ!!! ब�ा डरते डरते जवाब देगा या रब कोई उज़्र भी नहीं और कोई नके � भी नहीं ……… अ�ाह तआला फ़रमाएं गे तरे ी एक नेक� हमारे पास महफू ज़ है ……… याद रख! आज तझु पर ज़�ु नहीं िकया जाएगा। चुनाचं े एक काग़ज़ का टुकड़ा �नकाला जाएगा उसम� �लखा होगा{अश्हदू अल् ला इलाह इ��ाह व अश्हदू अ�ा महु �दर् रसलू �ु ाह} ब�ा अज़र् करेगा। या अ�ाह! इन बड़े बड़े गनु ाहों के अ�ार के सामने इस टुकड़े क� �ा है�स�त है। जवाब �मलेगा ……… आज तुझ पर ज़�ु नहीं होगा। [5]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ चुनाचं े गनु ाहों के वह बड़े बड़े र�ज�र तराज़ू के एक पलड़े म� रख िदए जाएं गे और काग़ज़ का टुकड़ा दसु रे पलड़े म� रख कर वज़न िकया जाएगा तो वह क�लमे वाला पलड़ा भारी हो जाएगा। (�त�मज़ी: 2850 सनद�ु हसन, अल-म�ु दरक:9 सहीह अलश् श�त मु��म) ग़ौर फ़रमाएं ! गुनाहों के अ�ार के मक़ु ाबले म� यह क�लमा �ंू मक़बलू �वा, �ोिं क स�े िदल से पढ़ा गया था वरना \"अ��ु ाह �बन उबयै \" मनु ािफ़क़ जो क�लमा भी पढ़ता था और रसलू ु�ाह ﷺक� इ��दा म� नमाज़� भी पढ़ता था इसके बावजदू उसको कोई अमल काम ना आया, �ोिं क उसक� ज़बान पर तो क�लमा जारी था लेिकन िदल म� कु फ़्र था। मालूम �वा िक अल्लाह के हां क़ु बिू लयत का ताल्लुक़ बराहे रास्त इन्सान के िदल से है बअज़् औक़ात दो अश्ख़ास क�लमा पढ़ते ह� लेिकन उनके ख़ुलूस म� कमी बशे ी से दजा्र व फ़ज़ीलत का इतना फ़क़्र होता है �जतना ज़मीन और आ�ान के दर�मयान फ़ा�सला ह।ै ला इला-ह इल्लल्लाह के पढ़ने वाले को लािज़म है िक वह ला इला-ह इ��ाह के मतलब को ख़ूब अ�� तरह समझता हो जैसा िक क़ु रआने पाक म� अ�ाह र�लु ् इ�त का इरशादे �गरामी ह:ै ﴾�ُ ﴿ َﻓﺎ ْﻋ َﻠ ْﻢ َاﻧَّ ُﻪ َﻻ ِا ٰﻟ َﻪ ِا َّﻻ َا [6]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ पस ख़बू अ�� तरह समझ लो िक अ�ाह के �सवा कोई माबदू नही।ं (सरू ह महु �द, पारा:26, आयत:19 ) रसूलु�ाह ﷺने फ़रमाया \"जो श� इस हाल म� मरे िक वह ला इला-ह इ��ाह क� समझ रखता हो तो वह ज�त म� जाएगा।\" (म�ु �म:145) इस क�लमा का फ़ाएदा तभी प�ंचेगा ……… िक इसम� जो इक़रार िकया है ख़बू अ�� तरह समझ कर उसके तक़ाज़े पूरे करे वरना �जहालत के �सवा कु छ नही।ं किलमा तय्यबा के पहले िहस्से \"ला इलाह\" के मअन् ा ला इलाह का मतलब है िक…कोई माबदू नहीं … यानी एक अ�ाह के इक़रार से पहले…ला का इक़रार करवा कर परू े आलम के तमाम आक़ाओं क� नफ़� करवाई गई ह।ै �ोिं क ٭आप एक ही आक़ा के नौकर उस व� तक नहीं बन सकत…े जब तक बाक़� तमाम क� नौकरी से इनकार ना कर द�। � ٭सफ़्र एक ही चौखट पर तब ही सर झकु सकता है…जब दूसरी तमाम चौख़टों से ब�े नयाज़ हो जाए। ٭जब आप ने रौशनी को पस� कर �लया ह…ै तो �ज़मनन आप ने तारीक� से नफ़रत का इज़हार कर िदया। ٭आप एक ही जा�नब अपना मँहू नहीं कर स�े …जब तक आप हर तरफ़ से अपना मँहू ना फे र ल�। [7]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ तमाम बाितल माबदू ों का इनकार सब से पहली चीज़ है अ�ाह तआला इरशाद फ़रमाते ह� \"ऐ इ� आदम! अगर तू �ए ज़मीन के बराबर गनु ाह लेकर आए और मझु से इस हाल म� �मले िक िकसी को मेरे साथ शरीक ना िकया हो तो म� �ए ज़मीन के बराबर मिग़्फ़रत लेकर तुझे �मलोगं ा\" (�त�मज़ी:3885, व क़ालल् अ�ानी: सहीह) अल्लाह तआला िशकर् को कभी नहीं बख़्शेगा �َ َو �َ َﺸ ٓﺎ ُۚء ِﻟ َﻤﻦ َٰذ ِﻟ َﻚ ُدو َن َﻣﺎ �ُ ْ َﴩ َك ِﺑ ِۦﻪ َوﯾَ ْﻐ ِﻔ ُﺮ �ُ﴿ْ ِٕا ِ َّﴩن ْكٱ َِّﺑﭑَ� ََّﻻ�ِ َﻓ َﯾ َﻘْﻐ ْ ِﺪﻔ ُﺮ َﺿ َٔأ َّﻞن ﴾١١٦ َﺿ َﻠٰ َۢﻼ َﺑ ِﻌﯿ ًﺪا बशे क अ�ाह तआला अपने साथ �शक्र को नहीं ब�गे ा और इसके इलावा �जस गनु ाह को चाहेगा ब� देगा। और जो अ�ाह के साथ शरीक ठहराएगा, दरहक़�क़त वह गुमराही म� ब�त आगे �नकल गया ह।ै (सरू ह �नसा, पारा 5 आयत 116) रसलू ु�ाह ﷺने फ़रमाया \"जो श� इस हाल म� मरे िक अ�ाह तआला के साथ िकसी को शरीक ठहराता था वह आग म� दा�ख़ल होगा\"। (अल-बख़ु ारी: 4497) मख्खी क� वजह से एक आदमी जहन्नम मंे चला गया रसलू ु�ाह ﷺने फ़रमाया \"एक आदमी �सफ़र् म�ी क� वजह से ज�त म� चला गया और दूसरा जह�म म\"� सहाबा ने अज़्र िकया \"या रसलू ु�ाह !ﷺवह कै से?\" नबी अकरम ﷺने फ़रमाया \"दो आदमी एक क़बीले के पास से गज़ु रे, उस क़बीले का एक बतु था �जस पर चढ़ावा चढ़ाए बग़रै [8]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ कोई आदमी वहां से नहीं गज़ु र सकता था, चुनाचं ा उनम� से एक श� से कहा गया िक इस बतु पर चढ़ावा चढ़ाओ, उसने कहा िक मेरे पास ऐसी कोई चीज़ नही,ं क़बीले के लोगों ने कहा त�ु � चढ़ावा ज़�र चढ़ाना होगा �ाह म�ी ही पकड़ कर चढ़ाओ, मसु ािफ़र ने म�ी पकड़ी और बतु क� नज़्र कर दी… लोगों ने उसे जाने िदया, चुनाचं े वह इस चढ़ावे क� वजह से जह�म म� चला गया। क़बीले के लोगों ने दसु रे आदमी से कहा िक तुम भी कोई चीज़ बतु क� नज़्र करो, उसने कहा … म� अ�ाह तआला के इलावा िकसी दसु रे के नाम का चढ़ावा नहीं चढ़ाऊं , लोगों ने उसे क़� कर िदया… और वह ज�त म� चला गया।\" (इ� अबी शबै ह, शअु ब् ल् ईमान �लल-बहै क़�: 7093) अक्सर लोग अल्लाह पर ईमान लाने बावजदू िशकर् करते हैं ﴾١٠٦﴿ َو َﻣﺎ ُﯾ ْﺆ ِ ُ� َٔأ ْﻛ َ ُﱶ ُﱒ ِﺑﭑ َّ�ِ ِٕا َّﻻ َو ُﱒ ُّﻣ ْ ِﴩ ُﻛﻮ َن \"और इनम� से अ�र लोग अ�ाह को मानते तो ह� मगर इस तरह िक साथ दूसरों को शरीक भी ठहराते ह�। (यसू ुफ़:106) अज़ाब से बचना ब�त आसान था … लेिकन इ�े आदम ना माना रहमतलु ् �लल-आलमीन ﷺने इरशाद फ़रमाया: िक़यामत के िदन अ�ाह तआला सब से हलके अज़ाब म� म�ु �ला श� से कहगे ा िक अगर तरे े क़�े म� द�ु ा व मा-फ़�हा और इसके �म� माल व दौलत होती तो तू �ा आज वह सब कु छ इस अज़ाब से छु टकारा पाने के �लए िफ़द्या म� दे देता? वह कहगे ा … हा।ं [9]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ अ�ाह फ़रमाएगा… म� ने तझु से इससे भी आसान तर चीज़ मागं ी थी जबिक अभी तो प�ु े आदम म� था, वह यह िक… मरे े साथ �शक्र ना करना वरना तझु े जह�म म� दा�ख़ल कर दूंगा… मगर तूने नाफ़रमानी क� और �शकर् करके ही रहा। (अल-बख़ु ारी:3334, म�ु �म:7261) िशकर् क्या है ? अ�ाह ने एक �मसाल से हम� समझाया…ग़ौर से सनु ो: ऐ लोगो! एक �मसाल दी जा रही है उसे ग़ौर से सनु ो, अ�ाह तआला को छोड़ कर �जन माबदू ों को तुम पकु ारते हो… वह एक म�ी भी पैदा नहीं कर स�,े �ाह वह सब जमा हो जाएं … और अगर म�ी उन से कोई चीज़ छ�न कर ले जाए… तो वह सब इससे छु ड़ा भी नहीं सकत,े मदद चाहने वाले भी कमज़ोर ह� और �जन से मदद चाहते हो वह भी कमज़ोर ह…� इन लोगों ने अ�ाह तआला क� क़द्र ही नहीं क� जसै ा िक उसक� क़द्र करने का हक़ था। हक़�क़त यह है िक अ�ाह ब�त ताक़त और इ�त वाला ह।ै (सूरह हज, आयत 73-74) सब से ज़्यादा गुमराह कौन ? उससे �ादा गमु राह कौन है जो अ�ाह को छोड़ कर उन से दआु करता है जो िक़यामत तक इसक� दआु ओं को क़ु बलू नहीं कर स�…े ब�� वह तो इनक� दआु ओं से ही ग़ािफ़ल ह।� (सरू ह अल-अहक़ाफ़:5) [10]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ अल्लाह के िसवा िजन से दुआएं करते हो वह तुम ही जसै े बंदे हैं अ�ाह के �सवा �जन से तुम दआु एं करते हो, वह तुम जसै े ही ब�े ह�। पस दआु एं करो इन स।े अगर तुम स�े हो तो इ�� चािहए िक वह तु�ारी दआु ओं को क़ु बलू कर�। (सरू ह अल-आराफ़:194) मुदा्र हंै िज़न्दा नहीं इनको इतना पता नहीं िक कब उठाए जाएंगे और अ�ाह के इलावा �जन से यह दआु एं करते ह� वह कु छ पदै ा नहीं करते और वह तो ख़दु पदै ा िकए गए ह।� मदु � ह� �ज़�ा नहीं और इतना नहीं जानते िक कब उ�� दोबारा �ज़�ा िकया जाएगा। त�ु ारा माबदू �ब�ु ल अके ला माबदू ह।ै तो �जनको आ�ख़रत क� �ज़दं गी का यक़�न नहीं उनके िदल नहीं मानत,े दर हक़�क़त वह मुतक��र ह�। (सरू ह अन- नहल: 20-22) कहते हैं िक अल्लाह के ह�ज़रू यह हमारे िसफ़ारशी हंै वह अ�ाह के �सवा उन लोगों क� इबादत करते ह� जो इनको नुक़्सान और फ़ाएदा दे ही नहीं सकत…े और कहते ह� िक अ�ाह के �ज़रू यह हमारे �सफ़ारशी ह…� ऐ नबी ﷺइन से पछू � िक तुम अ�ाह को यह नई बात ऐसे बता रहे हो जसै े उसे कोई इ� ही नहीं है, ना आ�ानों का और ना ज़मीन का। वह पाक और आली शान है उस �शक्र से जो यह कर रहे ह�।\" (सरू ह यनु सु :आयत 18) कहते हैं िक यह हमें अल्लाह के क़रीब करते हंै [11]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ \"�जन लोगों ने अ�ाह के इलावा दूसरों को वली बना रखा है (वह कहते ह� िक) हम इनक� ब�गी इस ग़ज़र् के �लए करते ह� िक यह हम� अ�ाह के क़रीब कर द�। यक़�नन अ�ाह इनके दर�मयान फ़ै सला करेगा �जस मुआमले म� यह इ��लाफ़ कर रहे ह�, जो लोग झूठे हों और हक़ का इनकार करने वाले हों अ�ाह उ�� िहदायत नहीं देता।\" (सूरह अज़- ज़मु र:3) मेरे बन्दों को बताओ…िक मैं तो िबल्कु ल क़रीब ह�ं َد ْﻋ َﻮ َة١٨٦ِ َﻓﰉِٕﺎ َِﻟّﱏَﻌ َّﻠ َُﻗﻬ ِﺮْﯾﻢ َ ٌْۖ�ﺐ ُ ٔﺷُأ ُِﺟﺪﯿو َنُﺐ ََﻓو ِْٕﻠا ََيذاْﺴ ََتﺳ ِﺠَٔأ َﻟﯿ ُﺒ َﻚﻮ ْا َد َﻋﺎ ِ ۖن ٱﻟ َّﺪا ِع ِٕا َذا ِﻋ َﺒﺎ ِدي َﻋ ِّﲎ ِﱄ َو ْﻟ ُﯿ ْﺆ ِﻣ ُﻨﻮ ْا ऐ नबी, मेरे ब�े अगर तमु से मेरे मतु ा��क़ पछू � तो उ�� बता दो िक म� उन से क़रीब ही �ं, पुकारने वाला जब मझु े पकु ारता है तो म� उसक� पुकार को क़ु बलू करता �ं। तो उ�� चािहए िक वह मेरा �� मान� और मझु पर ईमान लाएं तािक नेक राह पर आएं । (सरू ह अल-बक़रह:186) ﴾﴿ َو َﻗﺎ َل َر ُّﺑ ُ ُﲂ ٱ ْد ُﻋﻮ ِﱏٓ َٔأ ْﺳ َت ِﺠ ْﺐ َﻟ ُ ْﲂ \"तु�ारा रब कहता है मझु े पकु ारो और म� त�ु ारी दआु एं क़ु बलू क�ं गा।\" (सूरह अल-मअु �् मन:60) कौन है जो मुझ से मांगे और मैं उसे अता क�ं ? रसूले अकरम ﷺने फ़रमाया \"जब रात का �तहाई िह�ा बाक़� रह जाता है तो हमारा बज़ु ुगर् व बरतर परवरिदगार आ�ाने द�ु ा पर ना�ज़ल होता है और फ़रमाता ह…ै कौन है जो मझु से दआु करे और म� उसक� दआु [12]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ क़ु बलू क�ं ? कौन है जो मझु से मागं े और म� उसे अता क�ं ? कौन है जो मझु से ब��श चाहे और म� उसे ब� दूं?\" (अल-बख़ु ारी: 1145, मु��म: 1808) तुम सब भूके हो िसवाए इसके िजसे मंै �खलाऊं हदीसे क़ु दसी म� अ�ाह तआला का फ़रमान: \" ऐ मरे े ब�ो! तुम सब भूके हो �सवाए उसके �जसे म� �खलाऊं �लहाज़ा मुझ ही से खाना मागं ो म� त�ु � �खलाऊं गा…ऐ मरे े ब�ो! तुम सब नंगे हो �सवाए उसके �जसे म� पहनाऊं पस तमु मझु ही से �लबास मागं ो म� तु�� (�लबास) पहनाऊं गा।\" (म�ु �म: 6737) अ�ाह तआला के �लए अ�रान वग़रै ा क� �मसाल� मत दो ﴾٧٤﴿ َﻓ َﻼ َﺗ ْ ِﴬ ُﺑﻮ ْا ِ َّ�ِٱ ْ َٔ� ْﻣ َﺜﺎ َۚل ِٕا َّنٱ َّ َ� َﯾ ْﻌ َﻠ ُﻢ َو َٔأﻧ ُﺘ ْﻢ َﻻ َﺗ ْﻌ َﻠ ُﻤﻮ َن \"लोगो! तमु अ�ाह तआला के �लए �मसाल� ना िदया करो…�ोिं क अ�ाह तआला तो सब कु छ जानता है जबिक तमु नहीं जानत।े \" (सूरह नहल आयत:74) अके ले अल्लाह के िज़क्र से यह बह�त कु ढ़ते हैं ﯾ َ﴾ﻦ َﻻ ُﯾ ْﺆ ِﻣ ُﻨﻮ َن ِﺑﭑ ْ ٔٓ� ِﺧ َﺮ ِةۖ َو ِٕا َذا٤ﺬ٥ِ ُذ﴿ﻛَِو َِٕاﺮ َذٱاَّﻟ ِﺬُذﯾﻛَِﻦَﺮ ِ ٱ�َّ ُ� ُد َوو ِﻧْﺣ ِۦٓﻪَ ِٕﺪا ُﻩَذاٱ ْ ُ َﴰْ َٔأﱒ َّز�َ ْْﺴت َت ُﻗ ْبﻠُ ِﻮ ُ ُﴩبو ٱَنَّﻟ [13]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ \"जब अके ले अ�ाह तआला का �ज़क्र िकया जाता है तो आ�ख़रत पर ईमान ना रखने वालों के िदल कु ढ़ने लगते ह� और जब उसके �सवा दूसरों का �ज़क्र होता है तो फ़ौरन ख़शु ी से �खल उठते ह�।\" (सरू ह ज़ुमर:45) फ़ौत शुदा बुज़ुग� क� यादगारंे । िशक्र का सबब बनीं क़ु रआने पाक म� क़ौमे नहू अलैिहस् सलाम के पाचँ माबदू ो।ं वद्द, सवु ाअ,् यग़सू , यऊ़ क़ और नस्र का �ज़क्र है �जनक� पर��श क� वजह से क़ौमे नहू को ग़क़्र िकया गया। इनके बारे म� इ� अ�ास र�ज़य�ा� अ�ु से �रवायत है िक उस क़ौम के यह नेक लोग थे जब वह मर गए तो शैतान ने उनक� क़ौम को यह बात सम्झा� िक यह नेक लोग थे… उन क� याद को ताज़ा रखने के �लए उनक� त�ीर� और मुज�मे बना लो… चनु ाचं ा उ�ोनं े ऐसा ही िकया। इनके बाद इनक� ब-े अक़ल औलादों ने इन बज़ु गु � क� त�ीरों और मुज�मों क� बा-क़ाइदा पर��श शु� कर दी। (बख़ु ारी: 4920) अल्लाह क� मख़्लक़ू में बदतरीन लोग उ�लु मो�मनीन उ� सलमह र�ज़य�ा� अ�ु ने म�ु ह�ह म� ईसाइ�ों का एक �गरजा देखा �जसम� तसावीर भी थी।ं उ� सलमह र�ज़य�ा� अ�ु ने यह च�दीद म�ज़र रसलू ु�ाह ﷺको बताया तो नबी ﷺने फ़रमाया इनम� अगर कोई सॉलेह और दीनदार श� फ़ौत हो जाता तो यह लोग उसक� क़ब्र के पास म��द बना लेते…और िफर फ़ौत शदु ा श� क� त�ीर बना लेते थ।े फ़रमाया िक अ�ाह क� म�लूक़ म� इस िक़� के अफ़राद बदतरीन लोग ह�। (अल-बख़ु ारी:1341, म�ु �म:1209) क़ब्रों को सज्दह गाह बनाने वाले शरीर तरीन लोग हैं [14]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ इ� मसऊ् द र�ज़य�ा� अ�ु से �रवायत है िक रसलू े अकरम ﷺने फ़रमाया िक बदतरीन और शरीर तरीन लोग वह होगं े िक �जनक� �ज़दं गी म� बड़े बड़े आस़ारे िक़यामत नमदू ार होगं ।े (मसु नद इमाम अहमद) यह वह लोग होगं े जो क़ब्रों को स�ह गाह बनाएं गे। (अबू हा�तम, सहीह) क़ब्र को पुख़्ता करना और उस पर बठै ना जा�बर र�ज़य�ा� अ�ु से �रवायत है िक नबी करीम ﷺने क़ब्र को पु�ा बनान,े उस पर बठै ने और उस पर इमारत तामीर करने से मना फ़रमाया है। (म�ु �म: 2289) ख़बरदार! मैं तुमको क़ब्रों में मसािजद तामीर करने से मना करता ह�ं जु�बु �बन अ��ु ाह र�ज़य�ा� अ�ु कहते ह� िक म�ने रसूले अकरम ﷺको वफ़ात से पाचँ रोज़ क़� यह फ़रमाते �ए सनु ा: ख़बरदार! तमु से पहले लोग अपने अ��या और नेक लोगों क� क़ब्रों को इबादत गाह बना �लया करते थ,े म� तमु को क़ब्रों पर मसा�जद तामीर करने से मना करता �ं। (म�ु �म: 1216) आप ﷺके इरशाद के मुतािबक़ … लानती कौन ? इ�े अ�ास से �रवायत है िक रसलू ु�ाह ﷺने उन औरतों को लानती क़रार िदया है जो क़ब्रों क� ब�त �ज़यारत करती ह।� और उन लोगों को भी लानती क़रार िदया जो क़ब्रों पर म��द� बनाते और क़ब्रों पर चराग़ां करते ह।� (सनु न अत-�त�मज़ी:321 व क़ाल हदीस हसन, इ� माजा :हसन) [15]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ रसलू ुल्लाह ﷺने लानत फ़रमाई रसूल�ु ाह ﷺने य�िदयों और ईसाइ�ों पर लानत फ़रमाई, �ोिं क वह न�बयों क� क़ब्रों को स�ह गाह बना लेते थ।े (अल-बख़ु ारी) अल्लाह के िसवा िकसी और के नाम पर ज़बह रसलू े अकरम ﷺने इरशाद फ़रमाया: \"जो श� अ�ाह के इलावा िकसी और के नाम पर जानवर ज़बह करे उस पर अ�ाह तआला क� लानत हो।\" (मु��म:5239) क़ब्र वालों को … आप ﷺभी नहीं सुना सकते और बराबर नहीं हो स�ा अधं ा और आखँ ों वाला … और ना ही अधं रे ा और रौशनी … और ना ही साया और धपू … इसी तरह बराबर नहीं हो स�े �ज़दं े और मदु � … अ�ाह �जसको चाहे सनु ाता है और आप ﷺ नहीं सुना सकते उनको जो क़ब्रों म� ह�। (सरू ह फ़ा�तर आयत 22) क़ब्रों पर मेले और उस्र मेरी क़ब्र को मले ों ठेलों और उस� क� जगह ना बना लेना और मझु पर द�द भजे ो, पस बशे क त�ु ारा द�द मुझ तक प�ंचा िदया जाता ह,ै तमु जहां पर भी हो। (अबू दावूद: 2044, अहमद, व क़ालल अ�ानी: सहीह) जो शख़्स हड् डी पत्थर मनके और सीपी वग़रै ा लटकाए [16]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ रसूलु�ाह ﷺने फ़रमाया िक जो श� तमीमह (हड्डी, प�र और सीपी वग़रै ा) लटकाता है अ�ाह तआला उसक� �ािहश को परू ा ना करे और जो श� �शफ़ा पाने के �लए घ�ू घे लटकाए अ�ाह उसे आराम ना दे। (सहीह इ� िह�ान) एक और �रवायत म� है िक �जस श� ने अपने गले म� तमीमह (हड्डी, प�र, सीपी और मनके वग़रै ा) लटकाए उसने �शक्र िकया। (मसु नद अहमद: 17884, सहीह इ� िह�ान: 6086) रसूले अकरम ﷺने फ़रमाया: \"झाड़ फंू क के �श�कया दम, तमीमह (हड्डी, प�र, मनके , सी�पयां और नज़रे बद के जूते लटकाना) और महु �त के टोटके करना सब �शक्र ह।ै \" (अबू दावूद: 3883 व क़ालल अ�ानी: सहीह) आदमी … दम वाले धागे के सुपदु ्र रसूल�ु ाह ﷺने फ़रमाया: \"जो श� अपने गले या बाज़ू म� कोई चीज़ लटकाता है तो उसक� �ज़�दे ारी उसी चीज़ के सुपुदर् कर दी जाती ह।ै \" (�त�मज़ी:2072, व क़ाल:हसन) �ज़ैफ़ा र�ज़य�ा� अ�ु ने एक श� के हाथ म� बख़ु ार क� वजह से धागा दम िकया �वा देखा तो �ज़ैफ़ा र�ज़य�ा� अ�ु ने उसे काट िदया और िफर सरू ह यसू फ़ु क� आयत 106 �तलावत फ़रमाई िक: \"इनम� से अ�र अ�ाह को मानते तो ह� मगर इस तरह िक उसके साथ दूसरों को शरीक ठहराते ह�।\" (इ� अबी हा�तम: 12872) जानवर के गले में नज़रे बद क� रस्सी [17]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ रसलू ु�ाह ﷺने अपने एक सहाबी को भेजा िक िकसी ऊँ ट क� गदर्न म� कोई ऐसी र�ी या हार बाक़� ना रहने िदया जाए (जो नज़रे बद वग़रै ा के �सल�सले म� लोग बाधं िदया करते थ)े अगर नज़र आए तो उसको फ़ौरन काट िदया जाए। (बख़ु ारी: 3005 व मु��म: 2115) बीमारी क� वजह से बाज़ू में पीतल का छ�ा रसूलु�ाह ﷺने एक श� के बाज़ू म� पीतल का छ�ा देखा, नबी ﷺ ने पछू ा: यह �ा ह?ै उस श� ने कहा िक वाहनाह बीमारी क� वजह से पहना ह।ै नबी ﷺने फ़रमाया: अगर इस छ�े को पहने �ए तझु े मौत आ जाती तो तू इसी के सुपदु र् कर िदया जाता।\" (तबरानी: 14770, व क़ालल अ�ानी: सहीह) अल्लाह के िसवा िकसी और क� क़सम रसलू �ु ाह ﷺने फ़रमाया: \"�जसने अ�ाह के �सवा िकसी और क� क़सम खाई उसने कु फ़्र िकया या �शकर् िकया।\" (�त�मज़ी:1535, व क़ालल अ�ानी: सहीह) िसतारों क� गिदर्श पर ईमान लाने वाले कािफ़र हो गए ज़ैद �बन ख़ा�लद र�ज़य�ा� अ�ु से �रवायत है िक रसलू ु�ाह ﷺने मक़ामे �दै�बयह म� हम� स�ु ह क� नमाज़ पढ़ाई, उस रात बा�रश �ई थी। रसूल�ु ाह ﷺनमाज़ से फ़ा�रग़ होकर सहाबा िकराम र�ज़य�ा� अ�ु क� तरफ़ मूतव�ा �ए और पूछा िक �ा त�ु � मालूम है िक अ�ाह [18]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ तआला ने �ा इरशाद फ़रमाया ह?ै सहाबा र�ज़य�ा� अ�ु ने अज़र् िकया िक अ�ाह तआला और उसका रसलू ﷺही बहे तर जानते ह�। रसूल�ु ाह ﷺने फ़रमाया अ�ाह तआला फ़रमाता है आज सु�ह मेरे ब�त से ब�े मो�मन हो गए और ब�त से कािफ़र, �जस ने यह कहा िक यह बा�रश अ�ाह तआला के फ़ज़्ल व िकराम और उसक� रहमत से �ई ह,ै वह मुझ पर ईमान लाया और �सतारों क� पर��श से इनकार िकया। और �जसने यह कहा िक यह बा�रश फ़ु लां फ़ु लां �सतारे क� ग�दश क� वजह से �ई ह,ै उसने मेरा इनकार िकया और �सतारों पर ईमान लाया। (बख़ु ारी: 4147, मु��म:240) मुिश्रक�न से िनकाह हरिगज़ ना करो और अपनी औरतों के �नकाह मु�श्रक मद� से हर�गज़ ना करो, जब तक वह ईमान ना ले आएं । एक आज़ाद म�ु श्रक मद्र से मो�मन ग़लु ाम �ादा बहे तर ह,ै �ाह वह (म�ु श्रक मदर्) त�ु � िकतना ही पस� हो।\" (सूरह अल-बक़रह, आयत 221) मुिश्रक�न के िलए बिख़्शश क� दुआ ना करो नबी और ईमान वालों को यह लाइक़ नहीं िक वह म�ु श्रक�न के �लए ब��श मागं ,� �ाह वह उनके क़रीबी �र�ेदार ही �ंू ना हो।ं (सरू ह अत-तौबा:113) दर अस्ल यह लोग तो जानवरों क� तरह हैं [19]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ अ�ाह तआला इरशाद फ़रमाते ह:� \"हमने ब�त से �जन व इ�ान जह�म के �लए पैदा िकए ह�। इनके िदल ह� … मगर समझने के �लए इ��माल नहीं करत।े इनक� आखँ � ह� … मगर वह इन से देखते नही।ं इनके कान ह� … मगर वह इन से सनु ते नही।ं दर अ� यह तो जानवरों क� तरह ह�, ब�� उन से भी गए गज़ु रे।\" (अल-आराफ़: 179) अगर नजात चाहते हो तो ... सोचो ... ओर ग़ौर करो कोई शख़्स अल्लाह तआला का फ़रमांबरदार उस वक़्त तक नहीं बन सकता, जब तक िक तमाम शतै ानी क़ु �तों का बाग़ी ना हो जाए … और शतै ान क� ताक़त का एक बड़ा मरकज़ इ�ान क� अपने जी म� उठने वाली �ािहशात ह।� फ़रमाने बारी तआला ह:ै �ा आप ने उस श� को देखा जो अपनी �ािहशात को माबदू बनाए बठै ा ह।ै पस मक़ामे ला इला-ह इ��ाह को हा�सल करने के �लए सब से पहले अपनी �ािहशात के बतु क� पूजा तकर् कर दे, �ाह वह दौलते द�ु ा क� �ािहश हो या ख़ानदान और �बरादरी के �सूम व �रवाजात। ग़ज़्र [20]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ अ�ाह क� महु �त म� इतना शदीद हो िक उसक� महु �त म� तमाम �ािहशात और महु �तों से अपने िदल को आज़ाद कर दे। अ�ाह ने अपने ख़ास ब�ों क� यह अलामत इरशाद फ़रमाई है िक ﴾ِ�َّ ِّ ﴿ َوٱ َّﻟ ِﺬﯾ َﻦ َءا َﻣ ُﻨ ٓﻮ ْا َٔأ َﺷ ُّﺪ ُﺣ ّٗﺒﺎ ईमान वाले लोग अ�ाह से शदीद महु �त करते ह� (सूरह अल-बक़रह, आयत 165) सूरततु ् तौबा म� अ�ाह तआला इरशाद फ़रमाते ह:� आप कह दी�जए िक अगर त�ु ारे बाप … और त�ु ारे बटे े … और त�ु ारे भाई … और तु�ारी बी�वयां … और त�ु ारे ख़ानदान … और त�ु ारे कमाए �ए माल … और त�ु ारे वह कारोबार �जनके म�े से तमु डरते हो … और त�ु ारी वह �रहाइश गाह� �ज�� तमु पस� करते हो … अगर यह सब कु छ तु�� अ�ाह से और उसके रसूल से और उसक� राह म� �जहाद से �ादा अज़ीज़ ह,� तो तमु अ�ाह के �� से अज़ाब के आने का इ��ज़ार करो। अ�ाह नाफ़मान्र ों को िहदायत नहीं िदया करता। (अत-तौबा, आयत 24) [21]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़ यक़ीनन अलाह तआला नह� बख़शेगा िक उसके साथ िशक� िकया जाए इसके इलावा िजनको चाहे माफ़ फ़रमा देगा (सूरह अन-�नसा, पारा 5, आयत 116) िशक� से बरात का अक़ीदा ऐसा नह� िक कोई इ�ान यह कह कर जान छु ड़ा ले िक … \"वह �शकर् को अ�ा नहीं समझता या िदल से क़ु बूल नहीं करता\" ताग़ूत िसर� पर छाया हो तो ख़ामोशी ही ईमान �ब�ाह के हक़ पर जमु ्र हो जाया करती है। िफर बा�तल के �लए तावीलात क� तलाश और दर�मयानी राह� �नकालने का चलन हो जाए और �ए बा�तल क� पदार् पोशी हक़ से क� जाने लगे तो … यह जुमर् ऐसा है िक आज तक �सफ़्र बनी इस्राईल का इ��याज़ बन सका ह।ै ताग़ूत कोई परहज़े ी िक़सम की चीज़ नह� �वा करती िक �सफ़्र ब-े तव�हु ी का मु�िहक़ हो। ताग़ूत से दशु मनी व बरात भी कोई नफ़ली इबादत नह� �जसका कर लेना बुलंिदए दरजात का सबब हो। इस आ�ान क� छत तले ताग़तू अ�ाह का सब से बड़ा द�ु न है और अश� अज़ीम के मा�लक से ईमान व वफ़ादारी के सबतू के �लए व बलु � तरीन आवाज़ म� अ�ाह के इस द�ु न से बग़ु ्ज़ व िहक़ारत का इज़हार और �म�ार कर देने का अज़्म ईमान का िह�ा, �नजात का सबब और अ��या अलैिहस् सलाम का अहम तरीन व बनु यादी �मशन है। [22]
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