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मङ्गलम ् अहंि नमासम मातरम ् गुरुंि नमासम ादरिं || स्ियंि पठासम िदि ा प्रियंि िदासम िदि ा || र्हतंि करोसम िदि ा शभु िं करोसम िदि ा || प्रिभिंु नमासम ादरिं गरु ुिं नमासम ादरिं || चलासम नीसत त्पथे हरासम मातभृ ू- व्यथाम ् || दिासम ाितु ाव्रतंि जृ ासम कीसति त्कथाम ् || िभंिु नमासम ादरम ् अहंि नमासम मातरम ् | काव्या कक्षा – ६ 51
िस्तुत गीत बालगीत है। एक बालक प्रिस्ततृ नील गगन मंे चदंि ा मामा की ओर आकप्रर्ति हो अनरु ोि करता है र्क चिदं ा मामा आएूँ उ पर स्नेह बर ाएँू, उ े गीत ुनाएूँ। चिंदा मामा कहाँू े आते हैं, कहाूँ जाते हैं-यह बात भी उ े अचिंभे मंे िालती है। (क) कु त आगच्छस मातलु चन्र? कु ि गसमष्यस मातलु चन्र? असतशयप्रिस्ततृ नीलाकाश: निै दृश्यते क्िसचदिकाशः कथिं ियास्यस मातुलचन्र? कु ि आगच्छस मातलु चन्र? (ख) कथमायास न भो! मम गेहम ् मातलु ! र्करस कथिं न स्नेहम ् कदाऽऽगसमष्यस मातलु चन्र? कु त आगच्छस मातुलचन्र? (ग) ििलंि ति चजन्रकाप्रितानम ् तारकखसचतिं स तपररिानम ् मांि दास्यस मातुलचन्र? कु त आगच्छस मातुलचन्र? (घ) त्िररतमेर्ह मांि श्रािय गीसतम ् प्रिय मातलु ! िियि मे िीसतम ् र्कन्नायास्यस मातुलचन्र? कु त आगच्छस मातुलचन्र? अञ्जसल कक्षा – ६ 52
माहेश्वर ूि – जनक, प्रििरण और इसतहा : िंस्कृ त व्याकरण (MaheswarSootra) पाजणनी के 14 माहेश्वर ूि : िंस्कृ त व्याकरण माहेश्वर िू ( िंस्कृ त: सशि िू ाजण या महेश्वर ूिाजण) को िंस्कृ त व्याकरण का आिार माना जाता है। पाजणसन ने संि ्कृ त भार्ा के तत्कालीन स्िरूप को पररष्कृ त एििं सनयसमत करने के उद्देश्य े भार्ा के प्रिसभन्न अियिों एिंि घिकों यथा ध्िसन-प्रिभाग (अक्षर माम्नाय), नाम ( ंजि ्ञा, िनि ाम, प्रिशेर्ण), पद, आख्यात, र्क्रया, उप ग,ि अव्यय, िाक्य, सलङ्ग इत्यार्द तथा उनके अन्त मि ्बन्िों का मािेश अष्टाध्यायी में र्कया है। अष्टाध्यायी में 32 पाद हंै जो आठ अध्यायों मे मान रूप े प्रिभक्त हंै। व्याकरण के इ महनीय ग्रन्थ मे पाजणसन ने प्रिभप्रक्त-ििान िसं ्कृ त भार्ा के प्रिशाल कलेिर का मग्र एिंि म्पणू ि प्रििेचन लगभग 4000 ूिों मंे र्कया है , जो आठ अध्यायों में ( िंख्या की दृप्रष्ट े अ मान रूप े) प्रिभाजजत हंै। तत्कालीन माज मे लेखन ामग्री की दषु ्िाप्यता को ध्यान में रखते हुए पाजणसन ने व्याकरण को स्मसृ तगम्य बनाने के सलए ूि शैली की हायता ली है। पनु ः, प्रििचे न को असतशय जिं क्षप्त बनाने हेतु पाजणसन ने अपने पूििि ती िैयाकरणों े िाप्त उपकरणों के ाथ- ाथ स्ियिं भी अनेक उपकरणों का ियोग र्कया है जजनमे सशि िू या माहेश्वर िू ब े महत्िपूणि हंै। माहेश्वर ूिों की उत्पप्रि भगिान निराज (सशि) के द्वारा र्कये गये ताण्िि नतृ ्य े मानी गयी है। “निृ ाि ाने निराजराजो ननाद ढक्कािं निपञ्चिारम।् उद्धिुकि ामो नकार्दस द्धानेतर्द्वमशे सशि ूिजालम॥् “ 53
अथाति :- 1. “नतृ ्य (ताण्िि) के अि ान ( मासप्त) पर निराज (सशि) ने नकार्द ऋप्रर्यों की स प्रद्ध और कामना के उद्धार (पसू त)ि के सलये निपञ्च (चौदह) बार िमरू बजाया। इ िकार चौदह सशि िू ों का ये जाल (िणमि ाला) िकि हुयी।” 2. िमरु के चौदह बार बजाने े चौदह िू ों के रूप मंे ध्िसनयाँू सनकली, इन्हींि ध्िसनयों े व्याकरण का िकाट्य हुआ। इ सलये व्याकरण ूिों के आर्द-िितकि भगिान निराज को माना जाता है। िस प्रद्ध है र्क महप्रर्ि पाजणसन ने इन ूिों को देिासिदेि सशि के आशीिादि े िाप्त र्कया जो र्क पाजणनीय सिं ्कृ त व्याकरण का आिार बना। माहेश्वर िू ों की कु ल िखं ्या 14 है जो सनम्नसलजखत हैं: देिांिशी कक्षा- ६ 1. अ, इ ,उ ,ण।् 2. ॠ ,ॡ ,क्,। 3. ए, ओ ,ङ्। 4. ऐ ,औ, च।् 5. ह, य ,ि ,र ,ट्। 6. ल ,ण ् 7. ञ ,म ,ङ ,ण ,न ,म।् 8. झ, भ ,ञ।् 9. घ, ढ ,ि ,र्।् 10. ज, ब, ग ,ि ,द, श।् 11. ख ,फ ,छ ,ठ ,थ, च, ि, त, ि।् 12. क, प ,य।् 13. श ,र् , ,र।् 14. ह ल|् 54
प्रिसभन्न ंिस्थान और उनके ंसि ्कृ त ध्येय-िाक्य िंस्थान ध्येय िाक्य र्हन्दी अथि काशी र्हन्दू प्रिश्वप्रिद्यालय प्रिद्ययाऽमतृ मश्नुते प्रिद्या े अमतृ की िासप्त होती है। गुरुकु ल कािंगिी प्रिश्वप्रिद्यालय ब्रह्मचयणे तप ा देिा ब्रहमचयि के तप े हररद्वार, उिराखण्ि मतृ ्युमपाघ्नत देि लोग मतृ ्यु को जीत लेते हैं अजखल भारतीय आयपु ्रिजि ्ञान शरीरमाद्यिं खलु शरीर ही भी िमों िंस्थान िमि ािनम ् (कतवि ्यों) को परू ा करने का ािन है। प्रिश्वप्रिद्यालय अनुदान आयोग ज्ञान-प्रिज्ञानिं प्रिमकु ्तये ज्ञान-प्रिज्ञान े प्रिमुप्रक्त िाप्त होती है। आन्र प्रिश्वप्रिद्यालय तेजजस्िनाििीतमस्तु हमारा ज्ञान तेजिान बने। प्रबरला िौद्योसगकी एििं प्रिज्ञान ज्ञानंि परमिं बलम ् ज्ञान ब े बड़ा बल सिं ्थान, प्रपलानी है। िनस्थली प्रिद्यापीठ ा प्रिद्या या प्रिमकु ्तये प्रिद्या िह है जो मपु ्रक्त र्दलाए । बंिगाल असभयािंप्रिकी एिंि प्रिज्ञान उप्रिष्ठत जाग्रत िाप्य उठो, जागो और तब तक मत रुको जब प्रिश्वप्रिद्यालय, सशिपरु िरान ् सनबोित तक अपने लक्ष्य तक ना पहुूँच जाओ भारतीय िशा सनक कमचि ारी ंिगच्छध्िंि ििं दध्िम ् ाथ चलो, ाथ महाप्रिद्यालय, हैदराबाद बोलो। 55
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नव सजृ न कला , समाज व ससं ्कृ ति मानव एक सामातजक व्यति है और उसमे सामातजक पर्ावा रण के अनुसार ही व्यवहार व सोच का तवकास होिा ह।ै क्र्ोंकक वह बाल्र्काल से उसी समाज व ससं ्कृ ति मे रहिा आर्ा है ।इस िरह उसके अंिःमन पर संस्कृ ति का अतमट प्रभाव रहिा है ,जोकक कला के माध्र्म से अपने तवचारों को तचत्र व सातहत्र् के स्वरुप मे प्रदर्शाि कर एक नव सजृ नात्मक सोच को तवकतसि करिा है । इस िरह कह सकिे है कक कला व समाज में घतनष्ट समबन्ध है और समाज कलाकार को एक कदशा प्रदान करिा है , औपचाररक व अनौपचाररक तशक्षा भी इसी समाज संस्कृ ति का ही अंग है ।तवधालर्ी तशक्षा के अिं गिा तवधार्थार्ों मे नव सजृ निा व नर्ी तवचारधारा , नर्े आर्ाम तवकतसि करने मे कला का महत्वपणू ा र्ोगदान है । कला का सम्बन्ध तचत्रकारी िक सीतमि न होकर सभी तवषर् एवं तवषर् वस्िओु ं मे भी बराबर है । प्रकृ ति एवं पर्ावा रण मे तवधमान वस्िुर्े सभी के तलए र्गु ों र्गु ों से समानरूप मे है परन्िु एक रचनात्मक और नवप्रविानकारी कलाकार , तवद्याथी कलाकार उनका समुतचि नर्े स्वरुप ससे माज को कला के माध्र्म से अवगि करवािा है । इस िरह कला का आर्ाम सीतमि न होकर प्रत्र्के स्वरुप मे तवधमान है व्यापक है ।जो समाज व तशक्षा के साथ तवकतसि होिा रहिा है । कदनेश चन्द गपु ्ता स्नािक तशक्षक ( कला तशक्षा) 73
रफ़्तार रफ़्िार की कहानी सनु ो मेरी जबु ानी र्हीं बाि िो है सबको समझानी सनु ो मेरी कहानी संघषा की लड़ाई है ना जाने कौन सी घड़ी आई है बाि मझु े थोड़ी दरे में समझ आई है र्हीं िो मेरी सच्चाई है धीरे चलिा रहा आगे बढ़िा रहा अपने सपने को पाने की लड़ाई लड़िा रहा अडा रहा डटा रहा र्दु ्ध का मदै ान है अपनी कलम से अपनी कहानी तलखिा रहा रास्िे में कांटंे आर्गें े वही िो िुझे िरे ी मतं जल िक पहुचाएगं े िमु ्हंे तगराने के सौ बहाने बनार्गें े समर् की रफ़्िार में वो भी एक कदन िझु े अपनाएगं े मुतककलों का दौर है वही िो आगे बढ़ने की डोर है जो झकु गर्ा वही कमजोर है सहजिा का समर् आर्ा है मंतजल को पाने का रास्िा कदखार्ा है अतडग सा चट्टान था टूट गर्ा वो मेरा अतभमान था महे नि करके जो तमला खदु का बनार्ा मकु ाम था रास्िे मंे मुतककल आएगी समर् की घड़ी भी िझु े तसखलाएगी िरे ा समर् भी आएगा िु भी एक कदन बादशाह कहलाएगा बड़े बड़े कतवर्ों की कहानी नहीं है सुनानी तलखिा हँू खदु की कलम से अपनी रफ्िार की कहानी.... उमेश कु मार िाथसमक सशक्षक 74
IMPORTANCE OF COMMUNICATION SKILLS IN LIFE Good communication skills in life will ensure everyone around you understands you and you understand them. You will be confident and assertive. There will be less misunderstanding and you will rarely have to face issues that come with poor communication. Some of the advantages of good communication skills are ➢ It will be easy for you to make and keep friends. ➢ You will have a good relationship with everyone around you. ➢ Your daily functioning will be at its optimal best. ➢ Your daily chores and errands will also happen at their optimal best. ➢ You will have less stress because poor communication also leads to a lot of mental stress. ❖ Importance of Communication Skills for Students One of the biggest reasons why many students suffer is because of poor communication skills. It affects their functioning in schools and colleges and also affects their ability to understand what the teacher is teaching. Hence, as a student, you need to develop your communication skills because:- ➢ It will help you communicate with teachers on things you have a tough time understanding. ➢ It will help you build relationships with your fellow students. ➢ Your grades will improve as these skills help with studying and revision. ➢ You will be able to study subjects you like by convincing your parents to let you study for the career you want. ➢ You will have much less mental stress compared to other students only because you are a better communicator. ❖ Some of Important ways to Improve English Communication Skills. Communication in English is mandatory these days as it is a Universal Communication Language. So, every student must know how to speak English. Most of the students are confused to find the best ways to improve English communication. Let’s just get the things straight and know how to improve English communication in an easy and effective manner through the following points: - 75
1. Find an English-speaking Friend Today many students search for the ways to develop English communication skills as they have seen the fluent English speakers to grow in their career. They join English speaking classes to improve their English but to no avail. First of all, you should search for a friend who can speak English with you. If that friend is as enthusiastic about improving his English-speaking skills as you are then you are surely on the way to speak good English. Both of you can communicate with each other and point out your errors and make the other one correct. 2. Be a good listener- Listening is the Key Well, listening plays a prominent role in understanding English. The more you will listen to English, the more you will be able to speak English in a good way. Suppose you are in a discussion and you listen to the speaker well and understand him then only you can pose a question before him and put your points before him. In that case, there will be a two-way conversation which will surely help you and let you improve your English-speaking skills. 3. Language Aura-Just be surrounded by the English language One of the best ways to learn a language- English in this case, is that you should be always surrounded by the language. When you stick to a habit of listening, speaking and writing English all the time, you will slowly become familiar with English and its intonations & rhythms. Just watch any show in English and try to watch it again and again till you understand every single word used in the show. Well, this will surely help you gain confidence and help you gain the best communication skills in English. 4. Read Aloud Reading English aloud can certainly help you in enhancing your English communication skills. When you read aloud, you will be able to focus on the pacing as well as the pronunciation. 76
5. Talk and Talk…Just Talk with Yourself You might have heard many people saying that talking to yourself can help you improve English. Well, yes! This is true! You will always embarrass while speaking English in front of the English speakers if you do not possess good English-speaking skills. What you can do is that you can do it all alone by speaking to yourself. This is one of the strangest and amazing ways to learn English. The best part is that no one is going to listen to you whether you are speaking right or wrong. Just stand in the front of a mirror and try speaking English all the time. When you make it a habit, gradually you will see your English-speaking skills going strong than the previous occasions when you had no idea of speaking in the English language. 6. Study, Learn and have Fun-Listen to English Music & Movies Improving English communication skills require you to be surrounded by English stuff all the time. Listening to English music and watching English movies will really help you become a native English speaker. Listening to any music in the English language will help you learn the vocabulary and phrases in a much natural manner. Students who prefer watching English movies as well as listening to English movies are much better at speaking English than the ones who don’t prefer to watch any English movies and shows. Watching movies is much better than listening to English songs as you would be able to learn slang, idioms, and pronunciation by doing that. Students who are always worried as to how to develop communication skills in English can learn a lot from the above- mentioned techniques. They will really get to know the best ways as to how to learn communication skills in English by adopting these strategies. Kamal Arora TGT(English) 77
\"स्वर्ं की खोज\" खदु में खदु को खोजिी म,ैं हर कदन खदु को टोकिी म।ैं इस सादा सरल रोज़ाना की तज़न्दगी स,े कई मतु ककल सवाल पूछिी म।ैं कभी जीवन के सार को समझिी, कभी अपने सपनों को संभालिी, पल-पल बीििे हुए आज मंे, अपने नर्े कल को ढूढं िी म।ैं हसूँ िे-खले िे गजु रिी हुई शाम म,ंे खुद से कई तशकार्िें करिी म।ैं सपनों की एक डोर तलए, उड़कर नर्े जहाूँ को िलाशिी म।ंै कदन के उजालों की िरह..... राि में तसिारों की िरह..... फू लों की महक की िरह.... नकदर्ों के शोर की िरह..... अपनी भी एक अलग पहचान बनाने की, रोज़ाना छोटी-छोटी कोतशशे करिी म।ंै रंग-रंग की दतु नर्ा के कई रंगों को तमलाकर, एक सनु ्दर रंग बनाने के , कई हज़ारों ख्वाबों की िरह, एक वसै ा ही ख्वाब रखिी म।ैं तनशा ककर्प प्राथतमक तशतक्षका 78
स्िािीनता गिं ्राम मंे र्हंिदी की भसू मका 19िीिं शताधदी के उिरािि में र्हिंदी को अदालतों आर्द मंे ििेश समल गया ,परंितु इ े र्हिंदी के पक्षिारों को ंति ोर् नहीिं हुआ | एक और िथम भारतीय स्ितंििता गिं ्राम ( न 18 57 ) की पराजय बोि और दू री ओर ( न 18 85) मंे राष्ट्रीय कािंग्रे की स्थापना के कारण भारतीयों के मन मंे अपनी स्ितंििता की सचिंगारी परू ी तरह बझु ी नहींि थी | अपनी इ करुण पराजय के पश्चात जब भारतीय पौरुर् , भारतीय मनीर्ा तथा रणबांिकु रों ने अपने असभयान की अ फलता की आंितररक गंिभीर पड़ताल की तब उन्हंे यह महत्िपणू ि िू समला की उपयकु ्त रल , हज, ामान्य भार्ा का अभाि होने के कारण आंिदोलन के लक्ष्यों को , असभिाय को यथा मय जन ामान्य तक नहीिं पहंुिचाया जा का और इ कारण िि ािारण जनता को ठीक े िंगर्ठत ही नहींि र्कया जा का | परंितु एक बात तो सनजश्चत थी की स्ितिंिता गंि ्राम के िसत अगंि ्रेजों द्वारा अपनाए गए दमनकारी रूप के कारण लोगों को अंिग्रजे ों े गहरी घणृ ा हो गई थी और उन मंे राष्ट्रीय चते ना का उदय हो गया था | िपं णू ि देश अब एक राजनीसतक इकाई मंे पररिसतति हो चकु ा था अतः भी के बीच िंपकि भार्ा की जरूरत मह ू की जाने लगी | तात्कासलक राष्ट्रीय नेताओिं , माज िु ारकों , सशक्षा शाजियों तथा ार्हत्यकारों ने र्हंिदी को इ लक्ष्य के सलए िदि ा योग्य पाया | िशि ्री िकील चिंर चिजी, कप्रिंरि रप्रिरंि , महात्मा गांििी आर्द ने िि अनमु सत े र्हिंदी को स्िीकार र्कया | िॉक्िर उदय नारायण दबु े ने इ मस्त घिं र्ि की प्रििचे ना करते हुए ठीक सलखा है - “ यह ंिघर्ि प्रब्रर्िश शा न के प्रिरुद्ध स्िशा न, पर राज्य के प्रिरुद्ध स्िराज्य , परतंििता के स्थान पर स्ितिंिता का घंि र्ि था | इ ी िकार राजभार्ा का आिंदोलन भी अगिं ्रेजी जै ी प्रिदेशी भार्ा के जखलाफ स्िदेशी भार्ाओिं का आिंदोलन था “ | श्री र्कशोरी दा िाजपईे जी ने तात्कासलक नते ाओंि की राष्ट्रभार्ा के िसत ोच को इन शधदों में व्यक्त र्कया है: - 79
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