Jankriti [Multilingual International Monthly Magazine] जनकृ ति [बहुभाषी अंिरराष्ट्रीय मासिक पत्रिका] ISSN: 2454-2725 IMPACT FACTOR: 2.0202 69 [GIF] क्या वास्तव मंे तुम परु ुषाथा हो ?/मिसके मन में लहराता है परु ुषाथा / िो होता है स्वामी सहस का / दसू रों को ऊपर उठाता है वो / रखकर प्राण हथेली पर / दके र अपना सवसा ्व / ओ परु ुषाथी !/ तमु ने तो िलाया है मझु े / बार -बार .... भारतीय वमै दक सामहत्य मंे नारी को दवे ी का स्वरुप माना गया है | वह िन्मदात्री है | उसकी अमस्मता की रक्षा करना समाि का नमै तक दामयत्व बनता ह।ै वह मायके मंे अपनी उड़ान , भाई बहन सब छोड़ कर ससरु ाल आती है , आते ही उस पर अकं ु श लगा मदए िाते हैं , उसकी स्वतंत्रता छीन ली िाती है , उसे एक बोनसाई बनाकर रख मदया िाता है , िो मखलता तो है पर उसमंे कभी पररपक्वता नहीं आती। हरकीरत हीर के सपं ादन में बोमध प्रकाशन से आई पसु ्तक ' अवगठंु न की ओट से सात बहने ' ने स्त्री मवमशा के उस अनछु ए पहलू को हमारे सामने रखा है | नारी शमि को सममपता इस कृ मत की कमवताओं का आस्वाद मबलकु ल मभन्न है | इसी काव्य सगं ्रह में असममया की एक कवमयत्री कंु तला दत्त की ''बोन्साई '' शीषका कमवता की इसी संदभा में कु छ पमं ियाँा हैं - बोन्साई की तरह रोपा गया हमंे / एक 'शो पीस ' की तरह / सिाया गया हमें / बस एक मनमश्चत पररमध तक / पलने और बढ़ने मदया गया हमंे / हाथ और पाँाव / फ़ै लाने की स्वतंत्रता /होती हमें / बढ़ने लगें तो / मनमश्चत अवमध पर काट -छाँाट मदया िाता है हमंे / और मनमश्चत अमन्वमत पर फल प्रामप्त की / की िाती है आशा हमसे / पर उन फलों मंे / वह खामसयत / वह पररपक्वता नहीं होती / िो आम फलों मंे होती है / मिनसे इक बलवान पौधा / मफर दोबारा िन्म ले सके / बोन्साई उम्र भर के मलए / होकर रह िाते हैं बौने .... २१ वीं सदी की कवमयमत्रयों की रिनाओं में यह साफ प्रदमशता होता है मक भारतीय समाि ने हमशे ा से ही ममहलाओं को परु ुषों की अपेक्षा दसू रे दिे का स्थान मदया ह.ै उनकी सामामिक और आमथका मस्थमत शोमषत और असहाय से अमधक नहीं दखे ी गई. ममहलाओंको हमशे ा और हर क्षते ्र मंे कमतर ही आकं ा गया मिसके पररणामस्वरूप उनके पथृ क अमस्तत्व को कभी भी पहिान नहीं ममल पाई. उसे बिपन से ही उसके स्त्री होने आभास मदला मदया िाता है , उसकी सपं णू ता ा के मवषय में गभं ीरता से मिंतन करना मकसी ने िरूरी नहीं समझा। डॉ मामलनी गौतम अपने काव्य संग्रह ''बँदाू -बँदाू का अहसास '' मंे 'काव्य कोमकला ' शीषका कमवता में मलखती हैं - मंै हाँ औरत / सर से पावँा तक औरत / पालने मंे ही मघस -मघस कर / मपला दी िाती है मझु े घटु ्टी / मरे े औरत होने की / उसी पल से मझु े / कर मदया िाता है मवभि / अलग -अलग भमू मकाओंमें / बना मदया िाता है मझु े / नाज़कु , कोमल , लिीली / तामक मंै मज़न्दगी भर / उगती रहँा उधार के आगाँ न मंे / पनपती रहाँ अमर बेल बनकर / मकसी न मकसी तने का सहारा मलए / कु छ भी तो नहीं होता मरे ा अपना / न िड़ें .... न आगँा न / और न आसमान …… इस परु ुष प्रधान समाि ने हमशे ा ही स्त्री को घर की िारदीवारी में कै द रखा है । परु ाने समय से ही दवे दासी प्रथा , सती प्रथा , दहिे प्रथा , पदाा प्रथा ने मस्त्रयों की मस्थमत को दयनीय बना मदया ह।ै इस परु ुष प्रधान समाि मंे स्त्री बिपन में मपता , िवानी मंे पमत और बढ़ु ापे मंे पतु ्रों की अवहले ना का मशकार होती आई ह।ै कभी धोखे से िायदाद लेकर बेटा मााँ को एयरपोटा पर अके ला छोड़ मवदशे िला िाता है , तो कभी िायदाद के मलए उसकी हत्या तक कर दते ा है , उसे घर से मनकाल दते ा है , या उसके मरने का इतं िार करता है तामक िल्द से िल्द उसकी िायदाद पर कब्िा कर सके । िो माँा बटे े के िन्म पर खमु शयाँा मानाती नहीं थकती वही माँा अपने अमं तम मदनों में उसी बटे े की आखाँ ों मंे खटकने लगती ह।ै इसी दृष्ट्व्य को हरकीरत हीर के सम्पादन में बोमध प्रकाशन से आई पसु ्तक 'मााँ की पकु ार ' में आशमा कौल ने अपनी 'मवडंबना ' शीषका कमवता में बखबू ी मदखाया है - ] 69 वषष 4, अकं 38, जनू 2018 ISSN: 2454-2725 Vol. 4, Issue 38, June 2018
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