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Vol. 6, Issue 65, September 2020

Published by jankritipatrika, 2020-10-12 08:19:44

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Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 65, September 2020 िषष 6, अंक 65, वसतंबर 2020 अवधी मुिावरों एवं पिेसलयों (बझु ौव्वल) मंे असर्व्यक्त स्त्री-छसवयाँ िरस्वती समश्र शोधाथी भारतीय भाषा कंे द्र (वहिं ी) िविण वबहार कें द्रीय विश्वविद्यालय, गया, वबहार | सपं कष सिू – 7275457114 ईमले –[email protected] शोध िारांश प्रस्ततु शोध-आलखे में अवधी-भाषी क्षेिों में प्रित्रलत महु ावरों तर्ा पहते्रलयों को आधार बनाकर इस क्षेि की त्रस्त्रयों की पाररवाररक तर्ा सामात्रिक त्रस्र्त्रतयों का त्रवश्लेषण करने का प्रयास त्रकया गया है । कथ्य को अत्रधक प्रभावी ँगं से अत्रभव्यि करने के त्रलए प्रयिु होने वाले इन महु ावरों में अवधी समाि के लगभग सारे रंग त्रवद्यमान हंै । इस शोधालखे मंे अवधी महु ावरों तर्ा पहते्रलयों में अत्रभव्यि त्रस्त्रयों से सबं ंत्रधत लगभग सभी पक्ष दखे े िा सकते हैं । त्रपतसृ त्तात्मक सामात्रिक व्यवस्र्ा मंे वन्ध्या, त्रवधवा, पररत्यिा, कु रूप तर्ा मखु र त्रस्त्रयों की वास्तत्रवक त्रस्र्त्रतयों को भी महु ावरों तर्ा पहते्रलयों के माध्यम से त्रववते्रित करने का प्रयास त्रकया गया है । महु ावरों मंे प्रायः ऐसी त्रस्त्रयों के प्रत्रत व्यगं्य के दशना होते ह,ंै इन धारणाओंके पीछे के महत्त्वपणू ा कारणों को समझने का प्रयास त्रकया गया है । महु ावरे एक पीढ़ी से दसू री पीढ़ी के मध्य लोकानभु वों और लोक-ज्ञान को हस्तातं ररत करने का माध्यम रहे ह,ैं अतः इनको माध्यम बनाकर प्रस्ततु आलेख मंे अवधी त्रस्त्रयों की त्रस्र्त्रत में होनवे ाले यगु ीन पररवतना ों को भी समझने का प्रयास त्रकया गया है । अवधी पहते्रलयों मंे त्रित्रित स्त्री-छत्रवयों में स्त्री-िातुरी के भी तमाम रंग अत्रभव्यि हुए ह,ंै त्रिन्हें इस आलखे में त्रववते्रित त्रकया गया है । बीज शब्द अवधी, लोकसात्रहत्य, महु ावरे, पहते्रलयााँ, स्त्री-अत्रस्मता, स्त्री-प्रत्रतरोध आमुख कभी महु ािरे लोकोवक्त की तरह प्रयकु ्त होने लगते हंै । ] प्राचीन काल से ही महु ािरे तथा पहवे लयाँ िावचक डॉ. विद्या विन्िु वसंह वलखती हंै “महु ािरा शब्ि की परंपरा में समाज पर अपना प्रभाि ो ते चले आ रहे सरं चना कै से हुई यह तो भाषा िजै ्ञावनक ही बता सकते हंै । इन कहाितों तथा महु ािरों मंे समाज का मनोविज्ञान हैं वकन्तु लगता है वक महँु वबराने या वचढाने से यह शब्ि बना होगा क्योंवक इसमें व्यंग्य का बाहलु ्य होता है । कु र व्यिहार िखे ा जा सकता है । अिधी ििे ों में पहवे लयाँ ऐसी भी हैं जो महु ािरों र लोकोवक्तयों की महु ािरों तथा लोकोवक्तयों में कोई ब ा अतं र नहीं है । तरह कभी-कभी प्रयोग की जाती ह।ंै ”1 कभी कोई लोकोवक्त महु ािरे का रूप ले लेती है र है । पहली विशषे ता यह है वक महु ािरा वकसी िाक्य का अिधी के मधू नष ्य विद्वान इन्िपु ्रकाश उपाध्याय ने अगं ीभतू तत्ि बनकर रहता ह,ै स्ितंि प्रयोग में इसका महु ािरों की मखु ्य तीन विशषे ताओं का उल्लेख वकया वर्ष 6, अंक 65 ,सितंबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 65, September 2020 81






































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