Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 वहन्दी ग़ज़ल िमाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, क्रू र–व्यवस्था, हताशा, घरु ्न एवं कंु ठा िे ग्रवित मानव िमदु ाय को वदशा दने े के वलये प्रवतरोध के स्वर को अपनाती है । नकारात्मक पररवस्थवतयों के प्रवत डर्कर ववरोध करने की भावना प्रवतरोध का प्रथम चरण है । यह भावना िमाज में कई क्रांवतयों की जन्मदाता भी रही है । ग़ज़लकार मानव मन मंे इि प्रवतरोध की भावना की वचगं ारी को बनाये रखने की बात करते हएु कहते हैं – हो गई है पीर पवतष -िी वपघलनी चावहए, इि वहमालय िे कोई गंगा वनकलनी चावहए ।”25 (दषु्ट्यन्त कु मार) “मंै अमन खाकर यहां पर कब तलक वजंदा रहूं इि तरह मरने िे तो मरने दो अब लड़ कर मझु े आपने िखु र्ागं रक्खे हंै बहुत ऊं ची जगह िम्भलकर उठना पड़ेगा और भी ऊपर मझु े ।”26(बल्ली विंह चीमा) िमाज में हो रहे अन्याय के प्रवत एक व्यवक्त का प्रवतरोध भी महत्त्वपणू ष है । यह प्रवतरोध िमाज मंे िकारात्मक पररणाम ला िकता है । यह प्रयाि अगर िामवू हक हो तो पररवतषन शीघ्र होगा । प्रवतरोध के इि िामवू हक रूप को ग़ज़लकार व्यक्त करते हुए कहता है – “विफ़ष अपना ही िही हाथ उठाओ िाथी और बहे तर हो अगर िाथ उठाओ िाथी ।”27 (रामकु मार कृ र्क) “बहुत जी वलए इन अधं ेरों िे डरकर चलो दखे लें काली रातों िे लड़कर ।”28 (बल्ली विंह ‘चीमा’) 25 कु मार, दषु्ट्यन्त. (2013) िाये मंे धूप. राधाकृ ष्ट्ण प्रकाशन प्राइवरे ् वलवमर्ेड. नई वदल्ली. प.ृ 30. 26 विहं , जीवन. (2017). आलोचना की यािा में वहन्दी ग़ज़ल. बोवध प्रकाशन. जयपरु . प.ृ 34 पर उद्धतृ . 27 विंह, जीवन. (2017). आलोचना की यािा में वहन्दी ग़ज़ल. बोवध प्रकाशन. जयपरु . प.ृ 77 पर उद्धतृ . 28 विहं , जीवन. (2017). आलोचना की यािा में वहन्दी ग़ज़ल. बोवध प्रकाशन. जयपरु . प.ृ 37 पर उद्धतृ . वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 101
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 जीवन की अवं तम िांि तक अपने कष्टों का वहम्मत के िाथ मकु ाबला करना प्रवतरोध का िाथषक रूप है । यह बात ग़ज़लकार कु छ इि प्रकार व्यक्त करता है – “आवख़री पत्ते ने बशे क चमू ली आवख़र ज़मीन पर लड़ा वो शान िे पागल हवाओं के वख़लाफ़ ।”29 (वद्वजने ्द्र वद्वज) “मैं तो कहता हूँ चलो वनकलो घरों को तोड़कर इि घरु ्न के िामने ये वखड़वकयाँ कु छ भी नहीं ।”30 (माधव कौवशक) 5. उपेवक्षत एवं शोवर्त वगष का वचिण : आज िमाज मुख्य रूप िे दो वगों मंे बंर्ा हआु वदखाई दते ा है । पहला वगष शोर्क और दिू रा शोवर्त है । ववश्व की लगभग प्रत्यके ववधा के िावहत्य मंे उपेवक्षत एवं शोवर्त जनता के अवधकारों एवं जीवन को िधु ारने की बात रचनाकारों ने की है । वहन्दी ग़ज़ल भी उपेवक्षत एवं शोवर्त वगष की िमस्याओं का वचिण करने मंे अग्रणी भवू मका वनभा रही है । िमाज की इतनी प्रगवत के बावजदू िमाज का एक वगष आधारभतू आवश्यकताओं िे वंवचत है । िमकालीन वहन्दी ग़ज़ल उपेवक्षत एवं शोवर्त वगष के जीवन िे िम्बवन्धत इन ववववध िमस्याओं को इि प्रकार अवभव्यक्त करती है – “वकतने बबे ि हैं ये फु र्पाथ पर िोनवे ाले गो पररन्दों को भी घर की तलाश होती है ।”31 (अदम गोंडवी) “मझु िे अब यह भी वशकायत है ज़माने भर की मझु पे दो गज़ ये जगह क्यों है वठकाने भर की ।”32 (कँु अर ‘बेचैन’) 29 वद्वज, वद्वजने ्द्र. (2003). जन-गण-मन. दषु्ट्यन्त – दवे ाँश प्रकाशन. वहमाचल प्रदशे . प.ृ 45. 30 कौवशक, माधव. (2014). ख़ूबिूरत है आज भी दुवनया. भारतीय ज्ञानपीठ. नयी वदल्ली. प.ृ 53. 31 गोंडवी, अदम. (2013). धरती की ितह पर. वकताबघर प्रकाशन. नयी वदल्ली. प.ृ 56. 32 बचे नै , कँु अर. (2006). कोई आवाज़ दते ा ह.ै डायमंड पॉके र् बुक्ि. नई वदल्ली. प.ृ 71. वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 102
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 दशे की आवथकष िमवृ द्ध में योगदान दने े तथा िबको अन्न उपलब्ध कराने वाले वकिान तथा उिके पाररवाररक िदस्य भखू तथा ग़रीबी के िाथ जीवन व्यतीत कर रहे हंै । ऐिी पररवस्थवत मंे वकिानों के िमक्ष खेती को उत्तम मानन,े परु ाने वदनों को याद करने तथा मज़दरू ी करने के अलावा कोई मागष नहीं रहता है । वकिानों की इि वस्थवत को व्यक्त करते वनम्नांवकत शरे दृष्टव्य हंै – “लड़ मरंू या मार द,ंू हंै रास्ते दो ही मेरे रब्बा खदु कु शी मंै कर भी ल,ंू तो कजष िे बच्चे नहीं बचते काम खेती का रहा होगा, कभी उत्तम मगर ‘बल्ली’ आजकल कजाष चकु ाने के वलए पैिे नहीं बचते ।”33 (बल्ली विहं चीमा) “खेत िारे वछन गए घर बार छोर्ा रह गया गाँव मरे ा शहर का बि एक महु ल्ला रह गया ।”34 (ओम प्रकाश यती) 6. स्त्री जीवन का वचिण : िन ित्तर के बाद का िावहत्य नारी के स्वतंि अवस्तत्व को वचवित करना आरम्भ कर दते ा ह,ै लवे कन वहन्दी ग़ज़ल में नारी के इि स्वतिं जीवन एवं यथाथष को बहुत दरे िे उद्घावर्त होने का अविर वमला । इिका मखु ्य कारण वहन्दी ग़ज़ल का काफी लम्बे िमय तक मखु ्य धारा िे अलग एक गौण ववधा बने रहना भी था । िमकालीन वहन्दी ग़ज़ल िामावजक, राजनीवतक, आवथषक व्यवस्था के वणनष िे आगे ववमशष और अवस्मता तक पहुचँ गई है । िमाज में वस्त्रयों की वस्थवत, िमस्या और अवधकार आज भी उन्हें नहीं वमल रहे हंै । वहन्दी ग़ज़ल िमाज मंे वस्त्रयों के जीवन के ववववध पक्षों को व्यक्त करती है । वनम्नावं कत शरे दृष्टव्य हंै – “िच है वक अपने हक़ के वलए बोल रही है लवे कन अभी भी वकतनी बेज़ुबान है औरत ।”35 (कु मार नयन) 33 विंह. जीवन. (2017). आलोचना की यािा में वहन्दी ग़ज़ल. बोवध प्रकाशन. जयपरु . प.ृ 33 पर उद्धतृ . 34 विन्हा, अवनरुद्ध. ‘वहन्दी ग़ज़ल में लोक वणषन’. हररगंधा. िावहवत्यक माविकी. (मखु ्य ि.ं श्याम िखा श्याम). अंक : 206. अक्तू बर 2011. प.ृ 11. 35 दनकौरी. दीवक्षत (ि.ं ). (2009). ग़ज़ल... दुष्ट्यन्त के बाद : भाग –1. वाणी प्रकाशन. नई वदल्ली. प.ृ 284. वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 103
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 “ख़दु कु शी करने पे आमाद: हईु ंयों वततवलयाँ बाग़ मंे िैरे–िबु ्ह के हक़ उन्हें हाविल न थे ।”36 (दवे ने ्द्र शमाष ‘इन्द्र’) अदम स्त्री के आदशष रूप को व्यक्त करने के िाथ उि पर होने वाले अन्याय, दरु ाचार एवं व्यवभचार िे िम्बवन्धत बात भी करते हंै । वनम्नावं कत शेर दृष्टव्य है – “कहीं हो वज़क्र अक़ीदत िे िर झकु ा दने ा, बड़ी अज़ीम ये औरत की ज़ात होती है ।”37 (अदम गोंडवी) 7. वदृ ्ध जीवन का वचिण : वकिी भी िमाज में बड़े बज़ु गु ष व्यवक्तयों का ववशरे ् स्थान एवं आदर होता है । परु ानी पीढ़ी ही नई पीढ़ी को परु ानी मान्यताओ,ं धारणाओं एवं मानवीय मलू ्यों िे पररवचत कराती है । मनषु्ट्य के कवठन िमय में बड़े–बढू ़ों का िाथ वकिी-न-वकिी रूप में अवश्य रहता है । दषु्ट्यन्त जीवन मंे इनकी उपवस्थवत को कु छ इि प्रकार व्यक्त करते हैं – “िर पे धपू आई तो दरख़्त बन गया मं,ै तेरी वज़न्दगी में अकिर मैं कोई वजह रहा हूँ ।”38 (दषु्ट्यन्त कु मार) माता-वपता के प्रवत बच्चों की लापरवाही तथा अनदखे ी इि प्रकार बढ़ती जा रही है वक उनके पाि दो घड़ी बैठकर हालचाल जानने का भी िमय नहीं है । ऐिी वस्थवत मंे वदृ ्ध माता–वपता अके लपे न के वशकार बन जाते हंै । वदृ ्धों की इि िमस्या को ग़ज़लकार मावमषक ढंग िे व्यक्त करते हएु कहते हैं – “डॉक्र्र ने हालेवदल उिका िनु ा 36 इन्द्र. दवे ने ्द्र शमा.ष (2016). ऐिा मनैं े क्या कहा. अयन प्रकाशन. नई वदल्ली. प.ृ 70. 37 गोंडवी, अदम. (2013). धरती की ितह पर. वकताबघर प्रकाशन. नयी वदल्ली. प.ृ 19. 38 कु मार, दषु्ट्यन्त. (2013) िाये मंे धूप. राधाकृ ष्ट्ण प्रकाशन प्राइवरे ् वलवमर्ेड. नई वदल्ली. प.ृ 53. वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 104
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 बि यही थी बढू ़े रोगी की दवा ।”39 (कु मार ववनोद) िमकालीन वहन्दी ग़ज़ल वदृ ्ध जीवन के नकारात्मक पक्ष को ही उजागर नहीं करती, बवल्क उनके जीवन के िकारात्मक पक्ष का वचिण भी करती है । वदृ ्ध व्यवक्त आज भी जीवन के प्रवत िम्मान एवं उत्िाह का भाव रखते हैं । वदृ ्धावस्था के वनराशा एवं आशावाद दोनों स्वरों को व्यक्त करते वनम्नांवकत शरे दृष्टव्य हंै – “ियू ष को िहना न आया बफष बन कर गल रहे हंै वदृ ्ध उगता ियू ष लगता पर यवु ाजन ढल रहे हैं ।”40 (महाश्वते ा चतवु दे ी) 8. बाल जीवन का वचिण : वकिी भी दशे की रीढ़ बच्चे कहे जाते हंै । इन बच्चों पर दशे का उज्जवल भववष्ट्य वनभषर करता है । िमाज मंे बच्चों के प्रवत दवु ्यवष हार एवं अत्याचार बढ़ रहे हंै । ववश्व के लगभग प्रत्येक दशे में बच्चों के प्रवत अमानवीय एवं अनैवतक व्यवहार वदखाई दते ा है । इि प्रकार की पररवस्थवतयाँ बच्चों के भीतर बाल-िलु भ गवतवववधयों को रोक कर, उन्हंे बड़े लोगों जैिा व्यवहार करने पर मजबरू कर दते ी हंै । यह बात ग़ज़लकार इि प्रकार व्यक्त करते हैं – “नन्हें बच्चों िे ‘कँु अर’ छीन के भोला बचपन उनको हुवशयार बनाने पे तलु ी है दवु नया ।”41 (कँु अर ‘बेचैन’) “एक बढू ा–िा मझु े बच्चा वमला था वलए कांधों पे अपने झरु रषयों ।”42 (कु मार ववनोद) 39 कु मार, ववनोद. (2010). बरे ंग हंै िब वततवलयाँ. आधार प्रकाशन. हररयाणा. प.ृ 27. 40 चतुवेदी, महाश्वते ा की ग़ज़ल. ग़ज़ल गररमा िैमाविक (िं. भानुवमि). वर्ष : 7. अकं : 1. अप्रलै –जनू 2018. प.ृ 9 41 मजु ावर, िरदार(ि.ं ). (2014). वहन्दी ग़ज़ल का वतमष ान दशक. वाणी प्रकाशन. नयी वदल्ली. प.ृ 66. 42 कु मार, ववनोद. (2010). बरे ंग हैं िब वततवलयाँ. आधार प्रकाशन. हररयाणा. प.ृ 54. वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 105
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 इि प्रकार कहा जा िकता है वक िमकालीन वहन्दी ग़ज़ल िमिामवयक ववमशों एवं िामावजक चते ना के ववववध पक्षों को आत्मिात करते हएु चली है । िमकालीन वहन्दी ग़ज़लकारों ने िमाज के ऐिे वगष की िमस्याओं को वण्य-ष ववर्य बनाना अपना कत्तषव्य माना ह,ै जो िवदयों िे गलु ामी की दास्तां मंे जकड़े हुए हैं । िामावजक चेतना का भौवतक पक्ष हो या बदलते हुए िामावजक िम्बन्धों का वचिण, िमकालीन वहन्दी ग़ज़ल ने जीवन के प्रत्येक रूप को स्वर प्रदान वकया है । यही नहीं वहन्दी ग़ज़ल ने िमाज के उपवे क्षत एवं कमजोर वगष का वणषन कर यह विद्ध वकया है वक ग़ज़ल प्रमे ववर्यक भावों की अवभव्यवक्त के िाथ ही िामावजक कु रीवतयों को व्यक्त करने का िामथ्यष भी स्वयं में िमावहत वकये हुए है । वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 106
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 107
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