मनुष्यता व्याख्या प्रस्तुत पाठ मंे कवि मैथलीशरण गपु ्त ने सही अथों मंे मनषु ्य वकसे कहते हंै उसे बताया ह।ै कविता परोपकार की भािना का बखान करती है तथा मनुष्य को भलाई और भाईचारे के पथ पर चलने का सलाह देती ह।ै (1) विचार लो वक मर्तयय हो न मरृ्तयु से डरो कभी, मरो परन्तु यों मरो वक याद जो करे सभी। हुई न यों स-ु मरृ्तयु तो िथृ ा मरे, िथृ ा वजए, मरा नहीं िहीं वक जो वजया न आपके वलए। िही पश-ु प्रिवृ ि है वक आप आप ही चरे, िही मनषु ्य है वक जो मनषु ्य के वलए मरे।। व्याख्या - कवि कहते हंै मनषु ्य को ज्ञान होना चावहए की िह मरणशील है इसवलए उसे मरृ्तयु से डरना नहीं चावहए परन्तु उसे ऐसी समु रृ्तयु को प्राप्त होना चावहए वजससे सभी लोग मरृ्तयु के बाद भी याद करंे। कवि के अनुसार ऐसे व्यवि का जीना या मरना व्यथय है जो खुद के वलए जीता हो। ऐसे व्यवि पशु के समान है असल मनषु ्य िह है जो दसू रों की भलाई करे, उनके वलए वजए। ऐसे व्यवि को लोग मरृ्तयु के बाद भी याद रखते ह।ैं (2) उसी उदार की कथा सरस्िती बखानती, उसी उदार से धरा कृ ताथय भाि मानती। उसी उदार की सदा सजीि कीवतय कू जती, तथा उसी उदार को समस्त सवृ ि पजू ती। अखडं आर्तम भाि जो असीम विश्व मंे भरे, िही मनषु ्य है वक जो मनषु ्य के वलए मरे।। व्याख्या - कवि के अनसु ार उदार व्यवियों की उदारशीलता को पसु ्तकों, इवतहासों में स्थान दके र उनका बखान वकया जाता ह,ै उनका समस्त लोग आभार मानते हैं तथा पूजते हंै। जो व्यवि विश्व में एकता और अखंडता को फै लता है उसकी कीवतय का सारे संसार मंे गुणगान होता है। असल मनषु ्य िह है जो दसू रों के वलए वजए मरे।
(3) क्षदु ातय रंवतदेि ने वदया करस्थ थाल भी, तथा दधीवच ने वदया पराथय अवस्थजाल भी। उशीनर वक्षतीश ने स्िमांस दान भी वकया, सहर्य िीर कणय ने शरीर-चमय भी वदया। अवनर्तय दहे के वलए अनावद जीि क्या डरे, िही मनषु ्य है वक जो मनुष्य के वलए मरे।। व्याख्या - इन पंवियों में कवि ने पौरवणक कथाओं का उदारहण वदया है। भखू से व्याकु ल रंवतदिे ने माँागने पर अपना भोजन का थाल भी दे वदया तथा देिताओं को बचाने के वलए दधीवच ने अपनी हड्वडयों को व्रज बनाने के वलए वदया। राजा उशीनर ने कबतू र की जान बचाने के वलए अपने शरीर का मांस बहवे लए को दे वदया और िीर कणय ने अपना शारीररक रक्षा किच दान कर वदया। नश्वर शरीर के वलए मनषु ्य को भयभीत नही होना चावहए। (4) सहानुभवू त चावहए, महाविभवू त है िही, िशीकृ ता सदैि है बनी हुई स्ियं मही। विरुद्धिाद बदु ्ध का दया-प्रिाह में बहा, विनीत लोक िगय क्या न सामने झुका रह?े अहा! िही उदार है परोपकार जो करे, िहीं मनषु ्य है वक जो मनुष्य के वलए मरे।। व्याख्या - कवि ने सहानभु ूवत, उपकार और करुणा की भािना को सबसे बड़ी पंूजी बताया है और कहा है की इससे ईश्वर भी िश में हो जाते ह।ंै बदु ्ध ने करुणािश परु ानी परम्पराओं को तोड़ा जो वक दवु नया की भलाई के वलए था इसवलए लोग आज भी उन्हें पजू ते हंै। उदार व्यवि िह है जो दसू रों की भलाई करे। (5) रहो न भलू के कभी मदांध तुच्छ विि में सन्त जन आपको करो न गिय वचि में अन्त को हैं यहाँा विलोकनाथ साथ मंे दयालु दीन बन्धु के बडे विशाल हाथ हैं अतीि भाग्यहीन हैं अंधरे भाि जो भरे िही मनषु ्य है वक जो मनुष्य के वलए मरे।। व्याख्या - कवि कहते हंै की अगर वकसी मनषु ्य के पास यश, धन-दौलत है तो उसे इस बात के गिय मंे अँाधा होकर दसू रों की उपके ्षा नही करनी नहीं चावहए क्योंवक इस संसार मंे कोई अनाथ नहीं ह।ै ईश्वर का हाथ सभी के सर पर ह।ै प्रभु के रहते भी जो
व्याकु ल है िह बड़ा भाग्यहीन ह।ै (6) अनंत अतं ररक्ष में अनंत देि हैं खड़े¸ समक्ष ही स्िबाहु जो बढा रहे बड़े–बड़े। परस्परािलम्ब से उठो तथा बढो सभी¸ अभी अमत्र्य–अंक में अपंक हो चढो सभी। रहो न यों वक एक से न काम और का सरे¸ िही मनषु ्य है वक जो मनषु ्य के वलए मरे।। व्याख्या - कवि के अनुसार अनंत आकाश मंे असंख्य देिता मौजूद हैं जो अपने हाथ बढाकर परोपकारी और दयालु मनुष्यों के स्िागत के वलए खड़े हैं। इसवलए हमंे परस्पर सहयोग बनाकर उन ऊचाइयों को प्राप्त करना चावहए जहााँ दिे ता स्ियं हमंे अपने गोद मंे वबठायंे। इस मरणशील संसार में हमंे एक-दसू रे के कल्याण के कामों को करते रहंे और स्ियं का उद्धार करंे। (7) 'मनुष्य माि बन्धु ह'ै यही बड़ा वििेक ह¸ै परु ाणपुरूर् स्ियंभू वपता प्रवसद्ध एक ह।ै फलानुसार कमय के अिश्य बाह्य भेद ह¸ै परंतु अतं रैक्य में प्रमाणभतू िदे ह।ंै अनथय है वक बंधु हो न बंधु की व्यथा हरे¸ िही मनुष्य है वक जो मनषु ्य के वलए मरे।। व्याख्या - सभी मनषु ्य एक दसू रे के भाई-बधं ू है यह बहुत बड़ी समझ है सबके वपता ईश्वर ह।ंै भले ही मनुष्य के कमय अनेक हंै परन्तु उनकी आर्तमा मंे एकता है। कवि कहते हंै वक अगर भाई ही भाई की मदद नही करेगा तो उसका जीिन व्यथय है यानी हर मनषु ्य को दसू रे की मदद को तर्तपर रहना चावहए। (8) चलो अभीि मागय में सहर्य खले ते हुए¸ विपवि विप्र जो पड़ें उन्हें ढके लते हुए। घटे न हले मेल हाँा¸ बढे न वभन्नता कभी¸ अतकय एक पंथ के सतकय पंथ हों सभी। तभी समथय भाि है वक तारता हुआ तरे¸ िही मनषु ्य है वक जो मनुष्य के वलए मरे।।
व्याख्या - अंवतम पंवियों मंे कवि मनुष्य को कहता है वक अपने इवच्छत मागय पर प्रसन्नतापूियक हसं ते खले ते चलो और रास्ते पर जो बाधा पड़े उन्हंे हटाते हुए आगे बढो। परन्तु इसमें मनुष्य को यह ध्यान रखना चावहए वक उनका आपसी सामंजस्य न घटे और भेदभाि न बढे। जब हम एक दसू रे के दखु ों को दरू करते हुए आगे बढंेगे तभी हमारी समथयता वसद्ध होगी और समस्त समाज की भी उन्नवत होगी। कवि परिचय मैविलीशिण गुप्त इनका जन्म 1886 में झाँासी के करीब वचरगााँि में हुआ था। अपने जीिन काल मंे ही ये राष्रकवि के रूप में विख्यात हुए। इनकी वशक्षा- दीक्षा घर पर ही हुई। संस्कृ त, बागं्ला, मराठी और अंग्रेजी पर इनका सामान अवधकार था। ये रामभि कवि ह।ंै इन्होने भारतीय जीिन को समग्रता और प्रस्तुत करने का प्रयास वकया। प्रमुख कायय कृ वतयााँ - साके त, यशोधरा जयद्रथ िध। कविन शब्दों के अिय 1. मरृ्तय - मरणशील 2. िथृ ा - व्यथय 3. पश–ु प्रिवृ ि - पशु जसै ा स्िभाि 4. उदार - दानशील 5. कृ ताथय - आभारी 6. कीवतय - यश 7. क्षुधाथय - भखू से व्याकु ल 8. रंवतदिे -एक परम दानी राजा 9. करस्थ - हाथ मंे पकड़ा हुआ 10. दधीची - एक प्रवसद्ध ऋवर् वजनकी हड्वडयों से इदं ्र का व्रज बना था 11. पराथय - जो दसू रे के वलए हो 12. अवस्थजाल - हड्वडयों का समहू 13. उशीनर - गंधार देश का राजा 14. वक्षतीश - राजा 15. स्िमांस - शरीर का मांस 16. कणय - दान देने के वलए प्रवसद्ध कंु ती पुि 17. अवनर्तय - नश्वर 18. अनावद - वजसका आरम्भ ना हो 19. सहानभु वू त - हमददी 20. महाविभवू त - बड़ी भारी पँाजू ी 21. िशीकृ ता - िश मंे की हुई 22. विरूद्धिाद बुद्ध का दया–प्रिाह मंे बहा - बदु ्ध ने करुणािश उस समय की पारम्पररक मान्यताओं का विरोध वकया था।
23. विनीत - विनय से यिु 24. मदांध - जो गिय से अधाँ ा हो। 25. विि - धन-सपं वि 26. अतीि - बहुत ज्यादा 27. अनंत - वजसका कोई अंत ना हो 28. परस्परािलम्ब - एक-दसू रे का सहारा 29. अमरृ्तय–अकं - दिे ता की गोद 30. अपकं - कलंक रवहत 31. स्ियभं ू - स्िंय से उर्तपन्न होने िाला 32. अतं रैक्य - आर्तमा की एकता 33. प्रमाणभतू - साक्षी 34. अभीि - इवक्षत 35. अतकय - तकय से परे 36. सतकय पथं - सािधानी यािा कविता का साि ‘मनषु ्यता’ कविता मंे कवि ने मनुष्य के िास्तविक गुणों से पररवचत कराया है। कवि के कथनानुसार, मनषु ्य तभी मनषु ्य कहलाने लायक ह,ै जब उसमंे परवहत-वचतं न के गुण हों। मनषु ्य का जीिन िास्ति में परवहत के वलए न्योछािर हो जाने पर ही सफल ह।ै ऐसे व्यवि को संसार याद रखता है। यवद मनुष्य परवहत के वलए स्ियं को समवपयत नहीं करता तो उसका जीिन व्यथय है। प्रकृ वत के समस्त प्रावणयों में से के िल मनुष्य के पास ही वििेक ह।ै मरृ्तयु की साथयकता भी दसू रों के वलए िफु बायन होने में ह।ै यह तो पश-ु प्रिवृ ि है वक िह के िल अपने ही खाने-पीने का ख्याल रखे। सरस्िती भी उदार व्यवि का गणु गान करती ह।ै पथृ ्िी भी उसका आभार मानती ह।ै उसके यश की कीवतय चारों वदशाओं मंे गूँाजती है। कवि महान परोपकारी व्यवियों यथा- दधीवच, रंवतदिे , उशीनर, कणय आवद का उदाहरण दते े हुए अपने तथ्य को स्पि करते हैं। हमंे कभी भी अपने धन तथा िफु शलता पर गिय नहीं करना चावहए। जब तक परम वपता परमेश्वर हमारे साथ ह,ैं तब तक हम भाग्यहीन तथा अनाथ नहीं हैं। परोपकारी व्यवि का सम्मान तो देिता भी करते हंै। सभी मनषु ्य िास्ति मंे बंधु ह,ंै परंतु हम अपने कमों के अनसु ार पफल भोगते हैं। मनुष्य को सहर्य अपने मागय पर आगे बढना चावहए। उसे विपवियों से नहीं घबराना चावहए। िास्ति में मनुष्य जीिन की साथयकता परोपकार में ह,ै अन्यथा यह जीिन विफल ह।ै
पर्वत प्रदेश में पार्स कवर्ता की व्याख्या 1. पावस ऋतु थी, पववत प्रदेश, पल-पल परिवर्तवत प्रकृ र्त-वेश। मेखलाकाि पववत अपाि अपने सहस्रु दृग - सुमन फाड़, अवलोक िहा है बाि-बाि नीचे जल मंे र्नज महाकाि, र्जसके चिणों में पला ताल दपवण सा फै ला है र्वशाल! शब्दाथव: पावस-ऋतु = वर्ाा ऋतु, परिवर्तात = बदलता हुआ, प्रकृ र्त वेश = प्रकृ र्त का रूप (वशे भरू ्ा), मेखलाकाि = मंडप के आकाि वाला, अपाि = र्िसकी सीमा न हो, सहड्ड = हशािों, दृग-समु न = फू ल रूपी आँखें, अवलोक = दखे िहा, र्नि = अपना, महाकाि = र्वशाल आकाि, ताल = तालाब, दपाण = शीशा। व्याख्या: कर्व कहते हैं र्क वर्ाा ऋतु थी। संपणू ा प्रदेश पवता ों से र्ििा हुआ था। वर्ाा ऋतु में बादलों की उमड़-िमु ड़ के कािण प्रकृ र्त प्रत्येक क्षण अपना रूप परिवर्तात कि िही थी। कभी बादलों की िटा के कािण अंध्काि हो िाता था, तो कभी बादलों के हटने से प्रदशे चमकने लगता था। इसी प्रकाि क्षण-प्रर्त-क्षण प्रकृ र्त अपना रूप परिवर्तात कि िही थी। इस प्राकृ र्तक वाताविण में मंडप के आकाि का र्वशाल पवात अपने समु न ;पफू लोंद्ध रूपी नेत्रों को फै लाए नीचे शीशे के समान चमकने वाले तालाब के र्नमाल िल को दखे िहा ह।ै ऐसा प्रतीत होता है मानो यह तालाब उसके चिणों में पला हुआ है औि यह दपाण िैसा र्वशाल है। पवात पि उगे हुए फू ल, पवता के नेत्रों के समान लग िहे हैं औि ऐसा प्रतीत होता है मानो ये नेत्रा दपाण के समान चमकने वाले र्वशाल तालाब के िल पि दृर्िपात कि िहे हंै अथाात पवात अपने सौंदया का अवलोकन तालाब रूपी दपाण में कि िहा ह।ै भाव यह है र्क वर्ाा ऋतु में प्रकृ र्त का रूप र्नखि िाता है। वह इस ऋतु में अपने सौंदया को र्नहाि िही ह।ै काव्य-सौंदयव: भाव पक्ष: 1. वर्ाा ऋतु के समय प्रकृ र्त के सौंदया का वणना अत्यंत सिीव लगता ह।ै 2. पवात का मानवीकिण र्कया गया ह।ै
कला पक्ष: 1. पवात प्रदशे , परिवर्तात प्रकृ र्त मंे अनपु ्रास अलंकाि ह।ै 2. पल-पल, बाि-बाि में पनु रुर्ि प्रकाश अलंकाि है। 3. ‘दृग-समु न’ मंे रूपक अलंकाि तथा ‘दपाण-सा पैफला’ मंे उपमा अलंकाि ह।ै 4. र्चत्रात्मक शलै ी तथा संस्कृ तर्नष्ठ शब्दावली का प्रयोग र्कया गया ह।ै 2. र्गरि का गौिव गाकि झि-झि मद मंे नस-नस उत्तेर्जत कि मोती की लर्ड़यों-से सुंदि झिते हंै झाग भिे र्नझवि! र्गरिवि के उि से उठ-उठ कि उच्चाकाुंक्षाओुं से तरुवि हैं झाँाक िहे नीिव नभ पि अर्नमेष, अटल, कु छ र्चतुं ापि। शब्दाथव: र्गरि = पवता , गौिव = सम्मान, मद = मस्ती, आनदं , उत्तेर्ित किना = भड़काना, र्नर्ाि = र्िना, उि = हृदय, उच्चाकांक्षाओं = ऊँ ची आकांक्षा, तरुवि = वकृ ्ष, नीिव = शांत, नभ = आकाशऋ अर्नमेर् = र्स्थि दृर्ि, अपलक, अटल = र्स्थि। व्याख्या: फे न से भिे हुए र्िने र्ि-र्ि किते हुए बह िहे है।ं ऐसा प्रतीत होता है मानो उस र्िने का स्वि िोम-िोम को िोमांर्चत कि िहा है औि उत्साह भि िहा ह।ै र्िते हुए पानी की बँूदंे मोर्तयों के समान सुशोर्भत हो िही ह।ैं ऊँ चे पवात पि अनेक वकृ ्ष लगे हुए हैं। ये वकृ ्ष ऐसे प्रतीत होते हंै मानो ये पवातिाि के हृदय में उठने वाली महत्वाकांक्षाएँ हों। उन्हंे एकटक शांत आकाश की ओि देखते हुए लगता है र्क मानो ये र्चंर्तत होकि अपने स्थान पि खड़े हं।ै काव्य-सौंदयव: भाव पक्ष: 1. पवात का मानवीकिण र्कया गया ह।ै 2. प्रकृ र्त सौंदया का सिीव र्चत्राण र्कया गया है। कला पक्ष: 1. संस्कृ तर्नष्ठ शब्दों का प्रयोग र्कया गया है। 2. भार्ा प्रभावोत्पादक होने के साथ-साथ भावार्भव्यर्ि में सक्षम ह।ै 3. ‘र्ि-र्ि’, ‘नस-नस’, ‘उठ-उठ’ मंे पनु रुर्ि प्रकाश अलंकाि ह।ै
4. ‘र्िते र्ाग’, ‘नीिव नभ’, ‘अर्नमेर् अटल’ में अनुप्रास अलंकाि ह।ै 5. मोर्तयों की लर्ड़यों से सुंदि ‘‘उच्चाकांक्षाओं से तरुवि’’ मंे उपमा अलंकाि है। 3. उड़ गया, अचानक लो, भूध्र फड़का अपाि पािद के पि! िव-शेष िह गए हैं र्नझवि! है टूट पड़ा भू पि अंुबि! ध्ाँस गए धिा मंे सभय शाल! उठ िहा धुआँा, जल गया ताल! यों जलद-यान में र्वचि-र्वचि था इदुं ्र खेलता इदंु ्रजाल। शब्दाथव: भूध्र = पवात, वारिद = बादल, िव-शेर् = के वल शोि बाकी िह िाना, र्नर्िा = र्िना, अंबि = आकाश, भू = ध्रती, धिा, सभय = डिकि, शाल = वकृ ्ष, ताल = तालाब, िलद = यान ;बादल रूपी वाहनद्ध, र्वचि-र्वचि = िमू -िमू कि, इदं ्रिाल = इदं ्रधनरु ्। व्याख्या: कर्व कहते हंै र्क दखे ा! अचानक यह क्या हो गया? वह पहाड़ िो अभी तक र्दखाई दे िहा था, वह न िाने कहाँ चला गया। वह पवता बादलों के अनेक पि फड़फड़ाने के कािण न िाने कहाँ र्िप गया अथाात आकाश मंे अत्यर्ध्क संख्या मंे बादल र्िि आए औि वह पवात उन बादलों की ओट मंे र्िप गया। इस धंुधमय वाताविण में िबर्क सब कु ि र्िप गया, के वल र्िने के स्वि सुनाई दे िहे ह।ैं ऐसा प्रतीत हो िहा है मानो ध्रती पि आकाश टूट पड़ा हो। इस वाताविण मंे शांत स्वभाव वाले शाल के वकृ ्ष भी धिती के अंदि धँस गए। ऐसे िौद्र वाताविण में धंधु को देखकि ऐसा प्रतीत हो िहा है मानो यह धंुध न होकि तालाब के िलने से उठने वाला धुआँ ह।ै इस प्रकाि बादल रूपी वाहन मंे िमू ता हुआ प्रकृ र्त का दवे ता इदं ्र नए-नए खेल खेल िहा है अथाात प्रकृ र्त र्नत्य प्रर्त नवीन क्रीड़ाएँ कि िही ह।ै काव्य-सौंदयव: भाव पक्ष: 1. पिू े पद्य मंे प्रकृ र्त का मानवीकिण र्कया गया है। कला पक्ष: 1. ‘अपाि वारिद के पि में’ रूपक अलंकाि औि ‘र्वचि-र्वचि’ मंे पुनरुर्ि प्रकाश अलंकाि ह।ै 2. संस्कृ तर्नष्ठ भार्ा का प्रयोग र्कया गया है। 3. र्चत्रात्मक शलै ी औि दृश्य र्बंब का प्रयोग र्कया गया ह।ै
कर्व परिचय सुर्मत्रानुंदन पंुत इनका िन्म सन 20 मई 1900 को उत्तिाखंड के कौसानी-अल्मोड़ा मंे हुआ था। इन्होनें बचपन से ही कर्वता र्लखना आिम्भ कि र्दया था। सात साल की उम्र में इन्हंे स्कू ल में काव्य-पाठ के र्लए पिु स्कृ त र्कया गया। 1915 में स्थायी रूप से सार्हत्य सिृ न र्कया औि िायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप मंे िाने गए। इनकी प्रािर्म्भक कर्वताओं में प्रकृ र्त प्रेम औि िहस्यवाद र्लकता ह।ै इसके बाद वे माक्सा औि महात्मा गांधी के र्वचािों से प्रभार्वत हुए। प्रमुख कायव कर्वता सगुं ्रह – कला औि बूढ़ा चाँद, र्चदबं िा कृ र्तयााँ – वीणा, पल्लव, यगु वाणी, ग्राम्या, स्वणरा ्किण औि लोकायतन। पुिस्काि – पद्मभूर्ण, ज्ञानपीठ, सार्हत्य अकादमी पिु स्काि। कर्वता का साि ‘पवात प्रदशे में पावस’ कर्वता प्रकृ र्त के कु शल र्चतेिे सरु्मत्रानदं न पतं द्वािा िर्चत ह।ै इस कर्वता में वर्ाा ऋतु मंे क्षण-क्षण प्रकृ र्त के परिवर्तात हो िहे परिवेश का र्चत्राण र्कया गया है। मेखलाकाि पवात अपने ऊपि र्खले हुए पफू लों के िंगों के माध्यम से तालाब के िल में अपना प्रर्तर्बंब दखे कि अपने सौंदया को र्नहाि िहा ह।ै तालाब का िल दपाण के समान प्रतीत हो िहा है। र्िने र्िते हुए ऐसे प्रतीत होते हंै मानो वे पवात का गौिव गान कि िहे ह।ंै र्िनों की र्ाग मोती की लर्ड़यों की भाँर्त प्रतीत हो िहा ह।ै पवता पि उगे हुए ऊँ चे-ऊँ चे वकृ ्ष शांत आकाश में र्स्थि, अपलक औि र्चतं ाग्रस्त होकि र्ाँक िहे ह।ंै अचानक पवात बादलों के पीिे र्िप गया। उस समय र्िने का के वल शोि बाकी िह गया। तब आकाश ऐसा प्रतीत हो िहा था मानो वह पथृ ्वी पि टूट कि र्गि िहा ह।ै वाताविण मंे धंुध चािों आिे फै ल गई। धंुध ऐसी प्रतीत हो िही थी मानो वह तालाब के िलने पि उठने वाला धआु ँ हो। इस प्रकाि बादल रूपी वाहन मंे र्वचिण किता हुआ इदं ्र अपना खेल खले िहा था। इन्हीं चीशों का संपणू ा कर्वता मंे पंत िी ने प्रकृ र्त का मानवीकिण र्कया ह।ै
कर चले हम फ़िदा कविता की व्याख्या 1. कर चले हम फ़िदा जानो-तन साफियो अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो सााँस िमती गई, नब्ज़ जमती गई फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने फदया कट गए सर हमारे तो कु छ गम नहीं सर फहमालय का हमने न झुकने फदया मरते-मरते रहा बााँकपन साफियो अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो शब्दािथ: फ़िदा = न्योछावर, जानो-तन = जान और शरीर, वतन€=€देश, नब्ज़ = नाड़ी। व्याख्या: यदु ्ध भफ़ू ि िंे सैफ़नक अपने प्राण न्योछावर करते हुए अन्य सैफ़नकों (साफ़ियों) से कहते हंै फ़क हे साफ़ियो, अब हि अपना शरीर तिा जान देश पर न्योछावर करके ितृ ्यु की गोद िंे जा रहे ह।ंै अब यह दशे तुम्हारे हवाले है अिाात अब तिु इस देश की रक्षा करो। हिारी सााँसंे ििती जा रही हैं और नब्ज़ भी किशोर होती जा रही ह।ै इतना होने के बावजदू भी हिने अपने आगे बढ़ते हुए कदिों को रुकने नहीं फ़दया। िातभृ फ़ू ि की रक्षा करते हुए हिारे शीश भी कट गए, परंतु हिंे इसका कोई दखु नहीं ह।ै हिंे तो खशु ी है फ़क हिने अपनी जान न्योछावर करके फ़हिालय ;अपने दशे द्ध की रक्षा की। अपने दशे के फ़सर को नहीं झुकने फ़दया। िरते दि तक हिारा बााँकपन कायि रहा अिाात िरते दि तक हिने फ़हम्ित नहीं हारी। हे साफ़ियो, अब हि यह दशे तुम्हारे हवाले करके ितृ ्यु की गोद िें जा रहे ह।ंै काव्य-सौंदयथ: भाव पक्ष: 1. दशे -प्रेि की चरि भावना उजागर की गई ह।ै 2. िातृभफ़ू ि की रक्षा हते ु जान न्योछावर करने की प्रेरणा दी गई ह।ै कला पक्ष: 1. उदाू शब्दावली का भरपूर प्रयोग फ़कया गया ह।ै 2. भाषा भावाफ़भव्यफ़ि िंे सक्षि ह।ै 3. ‘िरते-िरते’ िें पनु रुफ़ि प्रकाश अलंकार ह।ै 2. फजदा रहने के मौसम बहुत हंै मगर
जान देने की रुत रोश आती नहीं हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे वो जवानी जो खाँ मंे नहाती नहीं आज धरती बनी है दुल्हन साफियो अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो शब्दािथ: रुत = िौसि, ट्टतु, हुस्न = सौंदया, इश्क = प्यार, रुस्वा = बदनाि, खँूा = खनू । व्याख्या: दशे की रक्षा करते हुए सैफ़नक गफ़वात होते हुए कहते हैं फ़क फ़जंदा रहने के तो बहुत अवसर प्राप्त होते ह,ैं परंतु जान दने े की ऋतु रोज़ नहीं आती अिाात जान देने का अवसर रोज़ नहीं फ़िलता। जो जवानी खनू िंे सराबोर नहीं होती, वही प्यार और सौंदया को बदनाि करती ह।ै आज धरती ही दलु ्हन का रूप धारण कर चकु ी ह।ै हिंे इसकी िाँाग अपने खनू से भरनी ह।ै हे साफ़ियो! अब हि ितृ ्यु की गोद िें जा रहे हंै। यह वतन की रक्षा करने का भार अब तुम्हारे कं धों पर है। काव्य-सौंदयथ: भाव पक्ष: 1. दशे की रक्षा के फ़लए अपना सवास्व न्योछावर करने के फ़लए प्ररे रत फ़कया गया ह।ै 2. धरती को दलु ्हन की संज्ञा दके र उसकी िाँाग बफ़लदान के रि से भरने की बात सािाक बन पड़ी ह।ै कला पक्ष: 1. उदाू शब्दावली का प्रचरु प्रयोग फ़कया गया ह।ै 2. भाषा प्रभावोत्पादक ह।ै 3. राह कु बाथफनयों की न वीरान हो तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले ितह का जश्न इस जश्न के बाद है फज़दगी मौत से फमल रही है गले बााँध लो अपने सर से क़िन साफियो अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो शब्दािथ: वफु बााफ़नयों = बफ़लदानों, राह = िागा, रास्ता, वीरान€=€सनु सान, काफ़िले = याफ़ियों का सिूह, ितह = जीत, जश्न = खशु ी। व्याख्या: सैफ़नक अपने साफ़ियों को संदशे दते े हंै फ़क बफ़लदाफ़नयों का रास्ता कभी सनु सान नहीं होने दने ा। तुि सदवै नए काफ़िले सजाकर आगे बढ़ते रहना। इस बफ़लदान के बाद तुम्हें जीवन की खशु ी िनाने के अवसर फ़िलंेगे। इस सिय फ़ज़दगी ितृ ्यु
से गले फ़िल रही है अिाात यह जीवन क्षणभगं रु होने के कारण ितृ ्यु के सिीप है। अब तिु अपने फ़सर पर किन बाँाधकर ितृ ्यु को गले लगाने के फ़लए तैयार हो जाओ। अिाात दशे की रक्षा के फ़लए तत्पर हो जाओ। काव्य-सौंदयथ: भाव पक्ष: 1. फ़नरंतर कु बााफ़नयााँ दने े के फ़लए प्रेररत फ़कया गया ह।ै 2. दशे -प्रेि की भावना को जनिानस िें भरने का सफल प्रयास फ़कया गया ह।ै कला पक्ष: 1. उदाू शब्दावली का प्रयोग है। 2. भाषा प्रभावोत्पादक ह।ै 4. खींच दो अपने खाँ से ज़मी पर लकीर इस तऱि आने पाए न रावण कोई तोड़ दो हाि अगर हाि उठने लगे छ न पाए सीता का दामन कोई राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साफियो अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो। शब्दािथ: खाँू = खून, रि, ज़िी = धरती, पथृ ्वी, भूफ़ि, दािन€= आाँचल, वतन = दशे । व्याख्या: सैफ़नक अपना बफ़लदान दने े से पहले अपने साफ़ियों से कहता है फ़क हे साफ़ियो! अपने रि से शिीन पर लकीर खींच दो ताफ़क इस ;हिारीद्ध तरपफ कोई भी रावण रूपी शिु अपने पैर न पसारे अिाात अपने अदं र इतनी शफ़ि भर लो फ़क कोई शिु हिारी ओर रुख न करे। यफ़द कोई शिु भारत िाता के आाचँ ल को छू ने का दसु ्साहस करे तो उसका हाि तोड़ दो अिाात शिु के िनसबू ों को काियाब न होने दो। इस प्रकार का काया करो फ़क कोई सीता के पफ़वि आाचँ ल को छू न सके अिाात भारत िाता पर कोई आाचँ न आ सके । तुम्हीं राि हो और तुम्हीं लक्ष्िण हो अिाात बरु ाइयों (शिाुतु ा) को दरू करने के फ़लए तुिने यह शरीर धारण फ़कया ह,ै इसफ़लए अब तिु देश की रक्षा करो। अब यह दशे तुम्हारे हवाले है। काव्य-सौंदयथ: भाव पक्ष: 1. कफ़व बफ़लदान के फ़लए प्ररे रत कर रहे हं।ै 2. फ़वफ़भन्न उदाहरणों के द्वारा सैफ़नकों को बफ़लदान के फ़लए प्रेररत फ़कया गया ह।ै
कला पक्ष: 1. उदाू शब्दों का प्रयोग फ़कया गया है तिा भाषा प्रभावोत्पादक ह।ै 2. दृष्ांत अलंकार का प्रयोग फ़कया गया है। कफवता का सार ‘कर चले हि फ़फदा’ गीत कै िी आशिी द्वारा रफ़चत है। यह गीत भारत-चीन के बीच हुए युद्ध की पषृ ्ठभफ़ू ि पर बनी फ़िल्ि ‘हकीकत’ के फ़लए फ़लखा गया िा। इस गीत िंे फ़हिालय क्षिे ा िें लड़े गए भारत-चीन युद्ध का अंकन फ़कया गया है। सैफ़नक िरणासन्न होने तक अपने देश की रक्षा करता ह।ै िरते सिय वह अपने देश की रक्षा का भार अपने साफ़ियों के कं धे पर छोड़कर चला जाता है। उसकी सााँस ििने लगी और नब्श भी ठंडी पड़ती गई अिाात वह िरणासन्न दशा िें पहुँाच गया, फ़पफर भी उसके कदि नहीं रुके । वह स्वतंिाता की बफ़लवेदी पर फ़नरंतर आगे बढ़ता गया। सैफ़नकों ने अपने शीश स्वतंिाता की बफ़लवदे ी पर चढ़ा फ़दए। परंतु फ़हिालय पवात के शीश को उन्होंने झकु ने नहीं फ़दया। िरते दि तक उनका बााँकपन कायि रहता है। उनके अनुसार फ़जंदा रहने के बहुत-से अवसर फ़िलते हैं, पर दशे के फ़लए कु बाानी करने के अवसर बार-बार नहीं फ़िलते। जवानी की सािाकता इसिंे है फ़क वह अपना खनू दशे के फ़लए कु बाान कर द।े धरती िाता दलु ्हन के सिान है। हिंे उसकी िााँग खनू से भरनी है। सैफ़नक िरने से पहले कहता है फ़क यह कु बाानी दने े का क्रि फ़नरंतर चलता रहगे ा। तुि फ़नत्यप्रफ़त नए काफ़प फले सजाते रहो। इस कु बाानी के बाद जीत का जश्न िनाने का अवसर फ़िलेगा। फ़जदगी िौत का वरण कर रही ह।ै अब तिु अपने शीश पर किन बाँाधकर दशे पर न्योछावर होने के फ़लए तैयार हो जाओ। तिु अपने खनू से लक्ष्िण रेखा की तरह लकीर खींच दो, ताफ़क कोई रावण रूपी शिु इस तरफ न आ पाए। यफ़द भारत िाता की तरफ कोई हाि उठने लगे तो उस हाि को तोड़ दो। भारत िाता, सीता िाता के सिान पफ़वि ह।ै तुि स्वयं को इतना सािथ्र्यवान बना लो फ़क कोई भी शिु इस पफ़वि दािन को न छू सके । तुम्हंे ही राि और लक्ष्िण की भफ़ू िका फ़नभानी है और देश की बफ़लवदे ी पर कु बाानी दने ी ह।ै
पतझर मंे टू टी पत्तिय ाँ साराांश इस पाठ मंे दो प्रसंग ह।ंै पहला 'गगन्नी का सोना' का है गिसमें लेखक ने हमें उन लोगों से परिगित किाया है िो इस संसाि को िीने औि िहने योग्य बनाए हुए ह।ंै दसू िा प्रसंग है 'झेन की देन' िो हमें ध्यान की उस पगध्दत की याद गदलाता है िो बौद्ध दर्शन में दी हुई है गिसके कािण आि भी िापानी लोग अपनी व्यस्ततम गदनियाश की बीि कु छ िैन के समय गनकाल लेते ह।ंै (1) गिन्नी का सोना र्दु ्ध सोना औि गगन्नी का सोना अलग होता ह।ै गगन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँाबा गमलाया िाता है गिससे यह ज्यादा िमकता है औि र्दु ्ध सोने से मिबूत भी हो िाता है इस कािण औितंे अक्सि इसी के गहनें बनाती ह।ंै र्दु ्ध आदर्श भी र्ुद्ध सोने की तिह होता है पिन्तु कु छ लोग उसमंे व्यावहारिकता का थोड़ा-सा ताँाबा गमलाकि िलाते हंै गिन्हें हम 'प्रैगक्िकल आइडीयागलस्ि' कहते हंै पिन्तु वक़्त के साथ उनके आदर्श पीछे हिने लगते हंै औि व्यावहारिक सझू बझू ही के वल आगे आने लगती है यानी सोना पीछे िह गया औि के वल तााँबा आगे िह गया। कु छ लोग गांधीिी को 'प्रैगक्िकल आइडीयागलस्ि' कहते ह।ैं वे व्यावहारिकता के महत्व को िानते थे इसगलए वे अपने गवलक्षण आदर्श को िला सकें विना ये देर् उनके पीछे कभी न िाता। यह बात सही है पिन्तु गांधीिी कभी आदर्श को व्यावहारिकता के स्ति पि नही उतिने दते े थे बगकक वे व्यावहारिकता को आदर्ों के स्ति पि िढ़ाते थे। वे सोने में ताँाबा गमलाकि नहीं बगकक ताँाबे में सोना गमलाकि उसकी कीमत बढ़ाते थे इसगलए सोना ही हमेर्ा आगे िहता। व्यवहािवादी लोग हमेर्ा सिग िहते ह।ंै हि काम लाभ-हागन का गहसाब लगाकि किते हैं वे िीवन मंे सफल होते ह,ंै दसू िों से आगे भी िाते हंै पिन्तु ऊपि नहीं िढ़ पाते। खदु ऊपि िढ़ंे औि साथ मंे दसू िों को भी ऊपि ले िलें यह काम गसफश आदर्शवादी लोगों ने ही गकया ह।ै समाि के पास अगि र्ाश्वत मकू य िैसा कु छ है तो वो इन्हीं का गदया ह।ै व्यवहािवादी लोग तो के वल समाि को नीिे गगिाने का काम गकया ह।ै (2) झेन की देन लेखक िापान की यात्रा पि गए हुए थे। वहाँा उन्होंने अपने एक गमत्र से पछू ा गक यहाँा के लोगों को कौन-सी बीमारियाँा सबसे अगधक होती हैं इसपि उनके गमत्र ने िवाब गदया मानगसक। िापान के 80 फीसदी लोग मनोिोगी ह।ैं लेखक ने िब विह िानना िाहा तो उनके गमत्र ने बताया की िापागनयों की िीवन की िफ़्ताि बहुत बढ़ गयी ह।ै लोग िलते नहीं, दौड़ते ह।ंै महीने का काम एक गदन मंे पूिा किने का प्रयास किते ह।ैं गदमाग में 'स्पीड' का इिं न लग िाने से हिाि गनु ा अगधक तेिी से दौड़ने लगता ह।ै एक क्षण ऐसा आता है िब गदमाग का तनाव बढ़ िाता है औि पूिा इिं न िूि िाता है इस कािण मानगसक िोगी बढ़ गए ह।ैं र्ाम को िापानी गमत्र उन्हंे 'िी-सेिेमनी' मंे ले गए। यह िाय पीने की गवगध है गिसे िा-नो-यू कहते ह।ैं वह एक छः मंगिली इमाित थी गिसकी छत पि दफ़्ती की दीवािोंवाली औि ििाई की ज़मीनवाली एक सनु ्दि पणशकु िी थी। बाहि बेढब-सा एक गमििी का बितन था गिसमे पानी भिा हुआ था गिससे उन्होंने हाथ-पााँव धोए। तौगलये से पोंछकि अंदि गए। अंदि बैठे 'िािीन' ने उठकि उन्हंे झकु कि प्रणाम गकया औि बैठने की िगह गदखाई। उसने अँागीठी सुलगाकि उसपि िायदानी िखी। बगल के कमिे से िाकि बितन ले आया औि उसे तौगलये से साफ़ गकया। वह सािी गियाएाँ इतनी गरिमापूणश तिीके से कि िहा था गिससे लेखक को उसकी हि मदु ्रा मंे सुि गूाँि हों। वाताविण इतना र्ांत था की िाय का उबलना भी साफ़ सुनाई दे िहा था।
िाय तैयाि हुई औि िािीन ने िाय को प्यालों में भिा औि उसे तीनो गमत्रों के सामने िख गदया। र्ागन्त को बनाये िखने के गलए वहाँा तीन व्यगियों से ज्यादा को एक साथ प्रवेर् नही गदया िाता। प्याले मंे दो घूाँि से ज्यादा िाय नहीं थी। वे लोग ओठों से प्याला लगाकि एक- एक बूँाद कि डेढ़ घंिे तक पीते िह।े पहले दस-पंद्रह गमनि तक लेखक उलझन मंे िहे पिन्तु गफि उनके गदमाग की िफ़्ताि धीमी पड़ती गयी औि गफि गबककु ल बंद हो गयी। उन्हें लगा वो अनंतकाल में िी िहे हों। उन्हंे सन्नािे की भी आवाज़ सुनाई दने े लगी। अक्सि हम भतू काल मंे िीते हंै या गफि भगवष्य में पिन्तु ये दोनों काल गमथ्या ह।ंै वतशमान ही सत्य है औि हमें उसी मंे िीना िागहए। िाय पीते-पीते लेखक के गदमाग से दोनों काल हि गए थे। बस वतशमान क्षण सामने था िो की अनंतकाल गितना गवस्ततृ था। असल िीना गकसे कहते हैं लेखक को उस गदन मालूम हुआ । लेखक पररचय रगिन्र के लेकर इनका िन्म 7 मािश 1925 को कोंकण क्षेत्र में हुआ था। ये छात्र िीवन से ही गोवा मगु ि आदं ोलन में र्ागमल हो गए। गांधीवादी गिंतक के रूप में गवख्यात के लेकि ने अपने लेखन में िन-िीवन के गवगवध पक्षों, मान्यताओं औि व्यगकतगत गविािों को देर् औि समाि परिप्रेक्ष्य मंे प्रस्ततु गकया ह।ै इनकी अनभु विन्य गिप्पगणयों में अपनी गिंतन की मौगलकता के साथ ही मानवीय सत्य तक पहुिाँ ने की सहि िेष्टा िहती ह।ै प्रमुख कायय कृ गतयाँा - कोंकणी में उिवाढािे सिू , सगमधा, सांगली ओथांबे, मिाठी में कोंकणीिें िािकिण, िापान िसा गदसला औि गहदं ी मंे पतझड़ मंे िूिी पगियााँ पिु स्काि - गोवा कला अकादमी के सागहत्य पिु स्काि सगहत कई अन्य पिु स्काि। कगिन शब्दों के अर्य 1. व्यावहारिकता - समय औि अवसि देखकि काम किने की सझू 2. प्रगै क्िकल आईगडयागलस्ि - व्यावहारिक आदर्श 3. बखान - बयान किना 4. सझू -बुझ - काम किने की समझ 5. स्ति - श्रणे ी 6. के स्ति - के बिाबि 7. सिग - सिते 8. र्ाश्वत - िो बदला ना िा सके 9. र्दु ्ध सोना - गबना गमलावि का सोना 10. गगन्नी का सोना - सोने में ताबाँ ा गमला हुआ 11. मानगसक - गदमागी 12. मनोरुग्न - तनाव कि कािण मन से अस्वस्थ 13. प्रगतस्पधाश - होड़ 14. स्पीड - गगत 15. िी-सिे ेमनी - िापान में िाय गपने का गवर्ेष आयोिन
16. िा-नो-यू - िापान में िी सेिेमनी का नाम 17. दफ़्ती - लकड़ी की खोखली सड़कने वाली दीवाि गिस पि गित्रकािी होती है 18. पणशकु िी - पिों से बानी कु गिया 19. बेढब से - बेडौल सा 20. िािीन - िापानी गवगध से िाय गपलाने वाला पाि का सार इस पाठ में दो प्रसंग सगममगलत ह।ंै 1. गिन्नी का सोना -र्ुद्ध सोना अलग होता है औि गगन्नी का सोना अलग होता है। गगन्नी के सोने मंे थोड़ा-सा ताँाबा गमलाया िाता ह,ै इसगलए यह अलग से िमकता ह।ै यही कािण है गक यह श्यादा िमकता है औि र्ुद्ध सोने से मज़बतू होता है। औितें इसी सोने के गहने बनवाती ह।ंै लेखक सोने के माध्यम से आदर्ों की बात किता ह।ै र्ुद्ध आदर्श भी र्ुद्ध सोने के समान होते ह।ैं कु छ लोग उसमें व्यावहारिकता का थोड़ा-सा-ताबााँ गमलाकि उसे िलाते हैं। इन लोगों को हम ‘प्रैि् गक्िकल आइगडयागलस्ि’ कहते ह।ंै वास्तगवकता मंे बखान आदर्ों का नहीं होता, बगकक व्यावहारिकता का होता ह।ै कु छ समय पश्चात आदर्श पीछे हिने लगते हंै तथा व्यावहारिक सूझ-बूझ आगे आने लगती ह।ै कु छ लोग कहते हंै गक गांधीिी प्रैगक्िकल आइगडयागलस्ि थे। वे व्यावहारिकता को पहिानते थे। इसीगलए वे अपने गवलक्षण आदर्श िला सके । गांधी िी कभी भी आदर्ों को व्यावहारिकता के स्ति पि उतिने नहीं दते े थे। बगकक व्यावहारिकता को आदर्ों के स्ति पि िढ़ाते थे। वे सोने में तााँबा नहीं बगकक ताँाबा मंे सोना गमलाकि उसकी कीमत बढ़ाते थे। इसीगलए सोना हमेर्ा आगे आता िहा। व्यवहािवादी लोग हमेर्ा सिग िहते ह।ंै लाभ-हागन का गहसाब लगाकि ही कदम उठाते हं।ै वे िीवन में सफल होते हंै तथा अन्यों से आगे िाते ह।ंै पि क्या वे उपि िढ़ पाते ह।ंै खदु उपि िढ़ंे औि अपने साथ दसू िों को भी उफपि िढ़ा लें । यही महत्व की बात ह।ै यह काम तो हमेर्ा आदर्वश ादी लोगों ने ही गकया ह।ै समाि को आदर्शवादी लोगों ने ही र्ाश्वत मूकय गदए ह।ंै व्यवहािवादी लोगों ने तो समाि को गगिाया ही ह।ै 2. झेन की देन - इस प्रसगं में िापान की गदनियाश एवं िहन-सहन का वणनश किते हुए लेखक कहता है गक िापान में अस्सी फीसदी लोग मनोिोगी ह।ंै यहााँ िीवन की िफ्रताि बढ़ गई है। यहाँा व्यगि िलते नहीं हैं बगकक दौड़ते है।ं यहाँा लोग बकते हंै तथा एकांत में बड़बड़ाते िहते है।ं यहाँा के लोग अमेरिका से िक्कि लेने की होड़ मंे एक महीने मंे पूिा होने वाला काम एक गदन में ही पिू ा किने की कोगर्र् किते है।ं इससे तनाव बढ़ता ह।ै यही कािण है गक यहाँा मानगसक िोगी बढ़ िहे हंै। लेखक के िापानी गमत्र उन्हें एक र्ाम एक िी-सेिेमनी में ले गए। यह िाय पीने की एक गवगध ह।ै िापानी मंे इस गवगध को िा-नो-यू कहते हैं। वह एक छह मगं िली इमाित थी, गिसकी छत पि दफ्रती की दीवािों वाली औि तातामी (ििाई) की ज़मीन वाली एक सदंु ि पणकश ु िी थी। बाहि एक बेढब-सा गमट्टी का बितन था। उसमंे पानी भिा हुआ था। उस पानी में उन लोगों ने हाथ-पााँव धोए। तौगलये से पोंछकि अंदि गए। अंदि बैठे ‘िािीन’ ने उन्हें झकु कि प्रणाम गकया औि बैठने की िगह गदखाई। गफि उसने अगाँ ीठी सुलगा कि उस पि िायदानी िखी। वह बगल के कमिे से कु छ बितन ले आया। उसने तौगलये से बितन साफ गकए। उसने ये सब कायश अत्यतं संज़ीदगी से गकए। उस र्ांत वाताविण मंे िायदानी के पानी का उबाल भी सुनाई दे िहा था। िाय तैयाि होने पि उसने उसे प्यालों मंे भिा। गफि उसने वे प्याले हम तीन गमत्रों के सामने िख गदए। वहााँ की गवर्ेषता यह है गक वहााँ तीन आदगमयों से श्यादा को प्रवेर् नहीं गदया िाता। प्यालों मंे दो घिाूँ से श्यादा िाय नहीं थी। वे लोग होंठों से प्याला लगाकि एक-
एक बूँदा िाय पीते िह।े किीब डेढ़ घिं े तक िुगस्कयों का यह गसलगसला िलता िहा। इस गगतगवगध से गदमाग की िफ्रताि धीमी पड़ने लगी। गफि थोड़े समय बाद पिू ी तिह से बंद हो गई। लेखक को लगा गक वह अनंतकाल मंे िी िहा ह।ै उसे सन्नािा भी सुनाई दने े लगा। अकसि हम या तो गरु ्िे हुए गदनों की खट्टी-मीठी यादों मंे उलझे िहते हंै या भगवष्य के िंगीन सपने दखे ते िहते हैं। हम या तो भतू काल में िहते हंै या भगवष्यकाल मं।े असल में दोनों काल गमथ्या हैं। हमािे सामने िो वतशमान क्षण ह,ै वही सत्य ह।ै हमें उसी मंे िीना िागहए। िाय पीते-पीते लेखक, के मन से भूत औि भगवष्य, दोनों काल उड़ गए थ।े उसके सामने के वल वतशमान क्षण था औि वह अनंतकाल गितना गवस्ततृ था। उस गदन लेखक को िीने का वास्तगवक अथश मालूम हुआ। िापागनयों को झेन पिंपिा की यह एक बड़ी दने है।
साराांश कारतूस यह पाठ जााँबाज़ वज़ीर अली के जजिंदगी का एक अिंश ह।ै इस नाटक में उस जहस्से को बताया गया है जब वज़ीर अली अपने दशु ्मन के कंै प में जाकर वहाँा से अपने जलए कारतूस ले जाता है और अपने बहादरु ी का गणु गान अपने दशु ्मनों से करवाता ह।ै नाटक के पात्र – कननल, लेफ्टटनंेट, फ्सपाही, सवार (वज़ीर अली) अंिग्रेज़ सरकार के आदशे ानसु ार वज़ीर अली को जगरफ्तार करने के जलए कननल काजलंिज अपने लेजफ्टनंेट और जसपाजहयों के साथ जंिगल मंे डेरा डाले हुए ह।ैं उन्हें जिंगल मंे आये हुए हफ्ते गजु र गए हैं परन्तु वह अभी तक वजीर अली को जगरफ्तार नही कर पाये हं।ै वजीर अली के जदल में अंिग्रेज़ों के प्रजत नफरत की बातंे सनु कर उन्हें रॉजबनहुड की याद आ जाती है। अपने पांिच महीने के शासनकाल मंे उसने अवध के दरबार से अंिग्रेजी हुकू मत को साफ़ कर जदया। सआदत अली आजसफउद्दौला का भाई है साथ ही वज़ीर अली का दशु ्मन भी है क्योंजक आजसफउद्दौला के यहाँा लड़के की कोई उम्मीद नहीं थी परन्तु वज़ीर अली ने सआदत अली के सारे सपने को तोड़ जदया। अिंग्रेज़ों ने सआदत अली को अवध के तख़्त पर बैठाया क्योंजक वो अंिग्रेज़ों से जमलकर रहता है और ऐश पसिंद आदमी है। इसके बदले में सआदत अली ने अिंग्रेज़ों को आधी दौलत और दस लाख रूपये नगद जदए। लेजफ्टनटें कहता है जक सनु ा है वज़ीर अली ने अफ़गाजनस्तान के बादशाह शाहे-ज़मा को जहन्दसु ्तान पर हमला करने की दावत दी है इसपर कनलन ने कहा जक अफ़गाजनस्तान को हमले की दावत सबसे पहले टीपू सलु ्तान ने दी, जफर वज़ीर अली ने भी उसे जदल्ली बलु ाया जफर शमसदु ्दौला ने भी जो नवाब बिगं ाल का ररश्ते का भाई है और बहुत खतरनाक है। इस तरह पूरे जहन्दसु ्तान में किं पनी के जखलाफ लहर दौड़ गयी है। यजद यह कामयाब हो गयी तो लाडन क्लाइव ने बक्सर और प्लासी के यदु ्ध में जो हाजसल जकया था वह लाडन वेल्जली के हाथों खो देगी। कननल परू ी एक फ़ौज जलए वज़ीर अली का पीछा जंिगलों मंे कर रहा है परन्तु वह पकड़ में नहीं आ रहा है। कनलन ने वज़ीर अली द्वारा किं पनी के वकील की हत्या करने का जकस्सा सुनाते हुए कहा जक हमने वज़ीर अली को पद से हटाकर तीन लाख रूपए सालना दके र बनारस भेज जदया। कु छ महीने बाद गवननर जनरल ने उसे कलकत्ता बलु ाया। वज़ीर अली बनारस में रह रहे कंि पनी के वकील के पास जाकर पछू ा जक उसे कलकत्ता क्यों बलु ाया जाता है इसपर वकील ने उसे बरु ा-भला कह जदया, जजस कारण वज़ीर अली ने वकील को खिंजर से मार जदया। उसके बाद वह अपने कु छ साजथयों के साथ आजमगढ़ भाग गया वहािं के शासन ने उनलोगों को सुरजित घागरा पहुचाँ ा जदया अब वे इन्हीं जंिगलों मंे कई साल से भटक रहे ह।ंै लेजफ्टनेंट द्वारा पछू े जाने पर कनलन ने वज़ीर अली की स्कीम बताते हुए कहता है जक वे जकसी तरह नेपाल पहुचाँ ना चाहते ह।ंै अफ़गानी हमले का इतिं ज़ार करें ताक़त बढ़ाएँा। वह सआदत अली को उसके पद से हटाकर खदु कब्ज़ा करे और अंिग्रज़े ों को जहन्दसु ्तान से जनकाल द।े लेजफ्टनेंट अपनी शिंका जताते हुए कहता है जक हो सकता है की वे लोग नेपाल पहुचाँ गए हों जजसपर कनलन उसे भरोसा जदलाते हुए बताता है जक अिंग्रेजी और सआदत अली की फौजंे बड़ी सख्ती से उनका पीछा कर रही हैं और उन्हें पता है की वह इन्हीं जंगि लों मंे ह।ै तभी एक जसपाही आकर कननल को बताता है जक दरू से धलू उड़ती जदखाई दे रही है लगता है कोई काजफला चला आ रहा हो। कननल सभी को मसु ्तैद रहने का आदशे दते ा ह।ै लेजफ्टनटें और कननल दखे ते हंै की के वल एक ही आदमी है। कननल जसपाजहयों से
उसपर नजर रखने को कहता है। घड़ु सवार उनकी और आकर रुक जाता है और इज़ाज़त लेकर कननल से जमलने अंिदर जाता है और एकािंत की माँाग करता है जजसपर कनलन जसपाही और लेजफ्टनटें को बाहर भेज दते े हैं। वह कननल से कहता है जक वज़ीर अली को पकड़ना कजठन और कारतूस की मााँग करता है। कननल उसे कारतूस दे देता ह।ै जब वह कारतूस लेकर जाने लगता है तो कनलन उससे उसका नाम पछू ता है। वह अपना नाम वज़ीर अली बताता है और कारतूस दने े के कारण उसकी जान बख्शने की बात कहता है। उसके चले जाने के बाद लेजफ्टनेंट जब पछू ता है जक कौन था तब कनलन एक जाँाबाज़ जसपाही बतलाता ह।ै लेखक पररचय हबीब तनवीर इनका जन्म 1923 मंे छत्तीसगढ़ के रायपरु में हुआ था। इन्होनंे 1944 मंे स्नातक की उपाजध प्राप्त की। उसके बाद जिटेन की नाटक अकादमी से नाट्य-लेखन अध्यन करने गए और जफर जदल्ली लौटकर पेशेवर नाट्य पािंच की स्थापना की। प्रमुख कायन प्रमखु नाटक – आगरा बाज़ार, चरनदास चोर, देख रहे हैं नैन, जहरमा की अमर कहानी। बसिंत ऋतू का सपना, शाजापरु की शािंजत बाई, जमट्टी की गाडी और मदु ्रारािस नाटकों का आधजु नक रूपांितर जकया। परु स्कार – फे लोजशप, पद्मश्री सजहत कई अन्य परु स्कार। कफ्िन शब्दों के अर्न 1. खेमा – डेरा 2. अफ़साने – कहाजनयााँ 3. कारनामे – ऐसे काम जो याद रहंे 4. पदै ाइश – जन्म 5. तख़्त – जसंिहासन 6. मसलेहत – रहस्य 7. ऐश पसदिं – भोग जवलास पसंिद करने वाला 8. जाँाबाज़ – जान की बाज़ी लगाने वाला 9. दमखम- शजि और दृढ़ता 10.जाती तौर पर – व्यजिगत रूप से 11.वज़ीफा – परवररश के जलए दी जाने वाली राजश 12.मकु रनर – तय करना 13.तलब जकया – याद जकया 14.हुक्मरािं – शासक 15.गदन – धलू
16.काजफ़ला – एक िते ्र से दसू रे िेत्र में जाने वाले याजत्रयों का समहू 17.शबु ्हे – सदिं हे 18.जदवार हमगोश दारद – दीवारों के भी कान होते हंै 19.लावलश्कर – सने ा का बड़ा समहू और यदु ्ध सामग्री 20.कारतसू – पीतल और दफ़्ती आजद की एक नली जजसमें गोली तथा बारूद भरी होती ह।ै पाि का सार अंिग्रशे ी सरकार वज़ीर अली को जगरफ्रतार करना चाहती है। इस कायन के जलए कन नल काजलंिज अपने लेफ्रटीनटें के साथ जगिं ल मंे डेरा डाले हुए ह।ैं उन्हंे वहााँ अपनी पफौजों के साथ बैठे हुए कई हफ्रते गुज़र गए ह,ंै परिंतु अभी तक वे वज़ीर अली को जगरफ्रतार नहीं कर पाए ह।ंै वज़ीर अली के जदल मंे अंिग्रेज़ों के प्रजत नफरत भरी हुई है। सआदत अली आजसफ उद्दौला का भाई है। वह वशीर अली का दशु ्मन ह।ै नवाब आजसफ उद्दौला का कोई लड़का नहीं था। वशीर अली के जन्म को सआदत अली ने अपनी मौत माना। अंिग्रेज़ों ने सआदत अली को अवध के तख्त पर बैठाया था। वह अिंग्रेज़ों का दोस्त था और बहुत ऐश-पसिंद आदमी था। उसने अपनी आधी जायदाद तथा दस लाख रुपये अगंि ्रेजों को दे जदए थे। अब वह मज़े करता ह।ै वशीर अली ने अफगाजनस्तान के बादशाह शाहे-शमा को जहिंदसु ्तान पर हमला करने की दावत दी थी। कननल का कहना है जक अफगाजनस्तान को हमले की दावत सबसे पहले टीपू सलु ्तान ने दी, जफर वशीर अली ने ही उसे जदल्ली बुलाया जफर शमसदु ्दौला ने भी। शमसदु ्दौला नवाब बंगि ाल का ररश्ते का भाई था। वह बहुत खतरनाक था। इस प्रकार कंि पनी के जखलाफ सारे बगिं ाल में एक लहर दौड़ गई थी। यजद यह कामयाब हो गई तो लाडन क्लाइव ने बक्सर तथा प्लासी में जो कु छ हाजसल जकया था, वह लाॅडन वेल्जली के हाथों सब चला जाएगा। कननल ने बताया जक वशीर अली के पीछे हमारी एक परू ी फौज है। वह बरसों से हमारी आँाखों मंे धलू झोंक रहा है तथा इन्हीं जिंगलों मंे जफर रहा है और हाथ नहीं आता। उसने वफिं पनी के वकील का कत्ल कर जदया था। वकील के कत्ल का जकस्सा इस प्रकार है कंि पनी ने वशीर अली को उसके पद से हटाने के बाद तीन लाख रुपया सालाना वज़ीफा दके र बनारस भेज जदया। कु छ महीने बाद गवननर जनरल ने उसे कलकत्ता (कोलकाता) बलु ाया। इस पर वशीर अली बनारस मंे रह रहे कंि पनी के वकील के पास गया। वकील ने उसकी बात नहीं सनु ी और उसे बरु ा-भला सनु ा जदया। इस पर वशीर अली ने खिंजर से वकील की हत्या कर दी। जफर वह अपने कु छ साजथयों के साथ आजमगढ़ भाग गया। वहाँा शासन ने उसे अपनी जहफाज़त में घाघरा तक पहुचँा ा जदया। अब वह अपने साजथयों के साथ इन जगंि लों में भटक रहा है। कननल लेफ्रटीनटंे के पछू ने पर उसकी स्कीम बताता ह।ै वह जकसी भी तरह नेपाल पहुचाँ ना चाहता है। वह अफगानी हमले का इतंि ज़ार करना और अपनी ताकत बढ़ाना चाहता ह।ै वह सआदत अली को हटाकर खदु अवध् पर कब्शा करना चाहता हेॅ।ै वह अंिग्रेज़ों को जहदंि सु ्तान से जनकाल दने ा चाहता है। अंिग्रेज़ी फौज़ और सआदत अली के जसपाही बड़ी सख्ती से उसका पीछा कर रहे हं।ै वह इन्हीं जिंगलों में ह।ै तभी एक जसपाही आकर कनलन को बताता है जक दरू से धलू उड़ती जदखाई दे रही ह,ै जैसे परू ा काजफला चला आ रहा हो। कननल और लेफ्रटीनेंट दरू से दखे ते हैं जक के वल एक घड़ु सवार ह,ै जो उनकी ओर बढ़ा चला आ रहा ह।ै वह उस पर नज़र रखते ह,ैं पर वह उनकी तरफ ही आकर रुक जाता है। वह इज़ाज़त लेकर अिंदर आ जाता है और एकांित की मााँग करता ह।ै एकािंत होने पर वह कनलन को कहता है जक वशीर अली को जगरफ्रतार करना बहुत कजठन ह।ै वह कनलन से वशीर अली को पकड़ने के जलए कु छ कारतूस मााँगता ह।ै वह जब कारतसू लेकर जाने लगता ह,ै तब कनलन उससे उसका नाम पछू ता है। वह बताता है वज़ीर अली,और घोड़े पर बैठकर चला जाता है। कननल दखे ता रह जाता है। लेफ्रटीनेटं के पछू ने पर कननल उसका पररचय ‘जाँाबाज़ जसपाही’ के रूप मंे बताता है।
हरिहि काका पाठ का साि कथाकार मिमथलेश्वर ने हररहर काका कहानी के बहाने ग्रािीण पाररवाररक जीवन िें ही नहीं, हिारी आस्था के प्रतीक धिमस्थानों और धिमध्वजा-धारकों िंे जो स्वाथम-लोलुपता घर करती जा रही ह,ै उसे उजागर मकया ह।ै हररहर काका एक वदृ ्ध और मनिःसंतान व्यमि ह,ंै वैसे उनका भरा-परू ा पररवार ह।ै गााँव के लोग कु िागम पर न चलंे। यह सीख दने े के मलए एक ठाकु रबारी भी है लेमकन हररहर काका की मवडंबना दमे खए मक ये दोनों उनके मलए काल और मवकराल बन जाते ह।ैं न तो पररवार को हररहर काका की मिक्र ह,ै न िठाधीश को। दोनों उन्हंे सखु नहीं दखु दने े िंे, उनका महत नहीं, अमहत करने िंे ही िगन रहते ह।ंै दोनों का लक्ष्य एक ही ह,ै हररहर काका की ज़िीन हमथयाना। इसके मलए उन्हें चाहे हररहर काका के साथ छल, बल, कल का प्रयोग भी क्यों न करना पड़े। पाररवाररक संबंधों िें भ्रातभृ ाव को बेदखल कर पााँव पसारती स्वाथम-मलप्सा और धिम की आड़ िें िलने-िू लने का अवसर पा रही महसावमृ ि को बेनकाब करती यह कहानी आज के ग्रािीण ही नहीं, शहरी जीवन के यथाथम मचत्र को भी उजागर करती ह।ै पाठ का सार मिमथलेश्वर द्वारा मलखी कहानी ‘हररहर काका’ ग्रािीण पररवेश िंे रहने वाले एक वदृ ्ध व्यमि की कहानी ह,ै मजसने अपना संपूणम जीवन सादगी िें व्यतीत मकया ह,ै पर जीवन के अंमति पड़ाव पर वह बेबसी और लाचारी का मशकार हो गया ह।ै उसके सगे-संबंधी सब स्वाथी होकर अपनी स्वाथम-मसमद्ध िंे लगे हएु ह।ैं लेखक हररहर काका की मज़दगी से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ ह।ै वह उनका सम्िान करता ह।ै वह उनके व्यवहार एवं मवचारों के कारण उनिें श्रद्धा रखता ह।ै हररहर काका उसे बहुत दलु ार मकया करते थे। वह उसे कं धे पर बैठाकर घुिाया करते थे। उसे अत्यमधक प्यार करते थे। बड़ा होने पर वह उनके दोस्त भी बन गए। परंतु अब हररहर काका जीवन के अंमति पड़ाव से गुशर रहे ह।ैं उन्होंने बातचीत बंद कर दी ह।ै वे शांत बैठे रहते ह।ैं लेखक के नुसार उनके मपछले जीवन को जानना अत्यंत आवश्यक ह।ै वे लेखक के गााँव के ही रहने वाले ह।ंै लेखक का गााँव कस्बाई शहर आरा से चालीस मकलोिीटर की दरू ी पर ह।ै हसन बाशार बस स्टैंड के पास ह।ै गााँव की कु ल आबादी ढाई- तीन हज़ार ह।ै गाँाव िंे ठाकु र जी का मवशाल िंमदर ह।ै इसकी स्थापना के मवषय िें स्पष्ट मववरण नहीं मिलता। यह िंमदर गाँाव वालों के मलए बहुत िहत्वपूणम ह।ै उनका िानना है मक यहााँ िााँगी गई हर िन्नत शरूर परू ी होती ह।ै ठाकु रबारी के पास कािी ज़िीन ह।ै पहले हररहर काका मनयमित रूप से ठाकु रबारी जाते थे, परंतु पररमस्थमतवश अब उन्होंने यहाँा आना बंद कर मदया। हररहर काका के चार भाई ह।ंै सभी मववामहत ह।ंै उनके बच्चे भी बड़े ह।ैं हररहर काका मनिःसंतान ह।ंै वे अपने भाइयों के पररवार के साथ ही रहते ह।ंै हररहर काका के पास कु ल साठ बीघे खेत ह।ंै प्रत्येक भाई के महस्से 15 बीघे खेत ह।ैं पररवार के लोग खेती-बाड़ी पर ही मनभमर ह।ैं भाइयों ने अपनी पमत्नयों को हररहर काका की अच्छी प्रकार सेवा करने के मलए कहा ह।ै कु छ सिय तक तो वे भली-भााँमत उनकी सेवा करती रहीं, परंतु बाद िंे न कर सकीं। एक सिय ऐसा आया जब घर िें कोई उन्हंे पानी देने वाला भी नहीं था। बचा हअुाा भोजन उनकी थाली िंे परासाे जाने लगा। उस मदन उनकी सहनशमि सिाप्त हो गई, जब हररहर काका के भतीजे का मित्र शहर से गाँाव आया। उसके मलए तरह-तरह के स्वामदष्ट व्यंजन बनाए गए। काका ने सोचा मक उन्हंे भी स्वामदष्ट व्यंजन खाने को मिलंेगे, परतुं ऐसा नहीं हअुाा। उनको वही रूखा-सूखा भोजन परोसा गया। हररहर काका आग बबलू ा हो गए। उन्होंने थाली उठाकर आँागन िें िें क दी आरै बहुओं को खरी-खोटी सनु ाने लगे। ठाकु रबारी के पजु ारी उस सिय िंमदर के कायम के मलए दालान िें ही उपमस्थत थे। उन्होंने िंमदर पहुचाँ कर इस घटना की सूचना िहतं को दी। िहतं ने इसे शुभ संके त सिझा और सारे लोग हररहर काका के घर की तरि मनकल पड़े। िहतं काका को सिझाकर ठाविु रबारी ले आए। उन्होंने संसार की मनदा शुरू कर दी और दमु नया को स्वाथी कहने लगे तथा ईश्वर की िमहिा का गुणगान करने लगे। िहतं ने हररहर काका को सिझाया मक अपनी ज़िीन िंमदर के नाि मलख दो मजससे तुम्हंे बैकु ठ की प्रामप्त होगी तथा लोग तमु ्हंे हिेशा याद करेंगे। हररहर काका उनकी बातें ध्यान से सनु ते रह।े वे दमु वधा िंे पड़ गए। अब उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।
िहतं ने ठाकु रबारी िंे ही उनके रहने तथा खाने-पीने की उमचत व्यवस्था करवा दी। जैसे ही इस घटना की सचू ना उनके भाइयों को लगी, वैसे ही वे उन्हंे िनाने के मलए मिर ठाकु रबारी पहुचाँ े। पर वे उन्हें घर वापस लाने िंे सिल न हो सके । पर अगले ही मदन वे ठाकु रबारी पहुचाँ े और काका के पााँव पकड़कर रोने लगे। उनसे अपने दवु्र्यवहार के मलए िाि़ा ी िाँागने लगे। हररहर काका का मदल पसीज गया। वे घर वापस आ गए। अब काका की बहुत सेवा होने लगी। उन्हें मजस मकसी वस्तु की इच्छा होती तो आवाज़ लगा दते े और वस्तु उन्हंे तुरंत मिल जाती। गाँाव िें काका की चचाम होने लगी। घर के सदस्य ज़िीन अपने नाि मलखवाने का प्रयत्न करने लगे, परंतु हररहर काका के सिक्ष अनेक ऐसे उदाहरण थे मजन्होंने जीते-जी अपनी ज़िीन अपने ररश्तेदारों के नाि मलख दी थी और बाद िें पछताते रह।े िहतं भी िौका दखे ते ही उनके पास आ जाते आरै उन्हंे सिझाते रहते। पर काका के कान पर जाँू न रंेगती। कु छ सिय बाद िहतं जी की मचताएाँ बढ़ने लगीं। वे इस कायम का उपाय सोचने लगे। एक मदन योजना बनाकर िहतं ने अपने आदमियों को भाला, गंड़ासा और बंदकू से लैस करके काका का अपहरण करवा मदया। हररहर काका के भाइयों एवं गााँव के लोगों को जब खबर लगी, तब वे ठाकु रबारी जा पहुचाँ े। उन्होंने िंमदर का दरवाज़ा खुलवाने का प्रयत्न मकया, पर वे असिल रह।े तब उन्होंने पमु लस को बलु ा मलया। िंमदर के अंदर िहतं एवं उसके आदमियों ने काका से ज़बरदस्ती कु छ सादे कागज़ों पर अाँगठू े के मनशान ले मलए। काका िहतं के इस रूप को देखकर हरै ान हो गए। पुमलस ने बहुत िमु श्कल से िंमदर का दरवाज़ा खुलवाया, परंतु उन्हें अंदर कोई हलचल मदखाई नहीं दी। तभी एक किरे से धक्का िारने की आवाज़ आई। पमु लस ने ताला तोड़कर देखा तो काका रमस्सयों से बँाधे मिले। उनके िँुाह िंे कपड़ा ठूाँसा हुआ था। उन्हें बंधन से िुि करवाकर उनके भाई उन्हंे घर ले गए। अब उनका बहुत ध्यान रखा जाने लगा। दो-तीन लोग रात िंे उन्हें घेर कर सोते थे। जब वे गााँव िंे जाते तब भी हमथयारों से लैस दो-तीन व्यमि उनके साथ जाते थे। उन पर मिर से दबाव डाला जाने लगा मक वे अपनी ज़िीन अपने भाइयों के नाि कर द।ंे जब एक मदन उनकी सहनशमि ने जवाब दे मदया तब उन्होंने भी भयानक रूप धारण कर मलया। उन्होंने काका को धिकाते हुए कहा मक सीधे तरीके से तुि हिारे नाि शिीन कर दो, नहीं तो िार कर यहीं घर िंे ही गाड़ देंगे और गाँाव वालों को पता भी नहीं चलेगा। हररहर काका ने जब साि इनकार कर मदया तो उनके भाइयों ने उन्हें िारना शरु ू कर मदया। हररहर काका अपनी रक्षा के मलए मचल्लाने लगे। भाइयों ने उनके िाुँह िें कपड़ा ठूँास मदया। उनके मचल्लाने की आवाज़ सनु कर गााँव वाले इकट्ठा होने लगे। िहतं तक भी खबर पहुचँा गई। वह पुमलस लेकर वहाँा आ पहुचँा ा। पमु लस ने काका को बंधनिुि करवाकर उनका बयान मलया। काका ने बताया मक िेरे भाइयों ने ज़बरदस्ती इन कागज़ों पर िेरे अँागूठे के मनशान मलए ह।ैं उनकी दशा दखे कर िालूि हो रहा था मक उनकी मपटाई हुई ह।ै अब हररहर काका ने पमु लस से सरु क्षा की िााँग की। अब वे घर से अलग रह रहे ह।ैं उन्होंने अपनी सेवा के मलए एक नौकर रख मलया। दो-चार पुमलसकिी उन्हें सुरक्षा दे रहे हैं और उनके पैसे पर िौज कर रहे ह।ैं एक नेताजी ने उनके सिक्ष प्रस्ताव रखा मक वे ज़िीन पर ‘उच्च मवद्यालय’ खोल द,ंे पर काका ने इनकार कर मदया। गााँव िंे अिवाहों का बाज़ार गिम हो रहा ह।ै लोग सोचते हंै मक काका की ितृ ्यु के बाद िहतं साधुओं एवं संतों को बलु ाकर ज़िीन पर कब्जा कर लेगा। अब काका गूाँगेपन का मशकार हो गए ह।ैं वे ररि आँाखों से आकाश की ओर ताकते रहते ह।ैं
पाठ का संक्षिप्त परिचय सपनों के -से दिन यह पाठ गुरुदयाल ¯सह की आत्मकथा का एक अंश है। यह एक ऐसी कथा ह,ै जिसे भुला देना कजठन ह।ै इस पाठ के स्मजृ ि में बने रहने की िो अन्य विह ह,ै वह यह जक इसे पढ़िे हुए पाठक को बार-बार ऐसा लगिा है जक िो जदनचयाा मेरी थी, िो शरारिंे, चुहलबाजियाँा, आकांक्षाएँा, सपने मरे े थे, िो मनंै े आि िक जकसी को बिाए भी नहीं, वे लेखक को के से मालूम हो गए और उसने जबना मुझसे जमले ही मेरी दनै ंजदनी के से जलख डाली? पाठ का साि लेखक अपनी आत्मकथा के इस अंश में बिािे हैं जक बचपन में िब वह और मेरे साथी खेला करिे थे िो सभी एक िैसे लगिे थे। नंगे पााँव, फटी मैली सी-कच्छी आरै टूटे बटनों वाले कई िगह से फटे उनके कु िे और जबखरे बाल। खेलिे हुए इधर-उधर भागिे-भागिे वे जगर पड़िे जिससे पाँाव जछल िािे थे। उनकी चोट दखे कर माँा, बहनंे िथा जपिा उनकी जपटाई जकया करिे थे। इसके बाविदू भी वे बच्चे अगले जदन जफर खेलने जनकल पड़िे । लेखक बचपन मंे यह सब नहीं समझ पाए था। िब अध्यापक की ट्रैजनग में उन्होंने बाल-मनोजवज्ञान जवषय पढ़ा, िब उन्हें यह बाि समझ मंे आई। सभी बच्चों की आदिंे जमलिी-िलुिी थीं। उनमेंसे अजधकिर स्कू ल नहीं िािे थे या जफर पढ़ने में रुजच न लेिे थे। पढ़ाई का महत्व नहीं समझा िािा था। स्वयं मािा-जपिा भी पढ़ाने मंे रुजच नहीं लेिे थे। वे उन्हें पंजडि घनश्याम दास से लंडे पढ़वाकर मनु ीमी जसखाने में ज़्यादा रुजच लेिे थे। लेखक के आधे से ज़्यादा साथी रािस्थान या हररयाणा से आकर मंडी में व्यापार या दकु ानदारी करने आए पररवारों से थे। उनकी बोली कम समझ मंे आिी थी। उनकी बोली पर हसँा ी भी आिी थी पर खेलिे समय कभी-कभी ये बोली समझ में आ िािी थी। बचपन में लेखक को घास अजधक हरी और फू लों की सुगंध अजधक मनमोहक लगिी थी। लेखक को अभी िक पफू लों की सगु ंध याद है। उन जदनों स्कू ल मंे शरु ू के साल मंे डेढ़ महीना पढ़ाई हुआ करिी थी, जफर डेढ़-दो महीनों की छु रियााँ हो िाया करिी थीं। लेखक हर साल माँा के साथ नजनहाल िाया करिे थ।े जिस साल नजनहाल न िा पािे थे, उस साल भी अपने घर से थोड़ा बाहर िालाब पर चले िािे। दसू रे बच्चे िालाब में कु दकर नहािे थे। कभी-कभी उनके मुँाह में गदं ा पानी चला िािा था। इस प्रकार छु रियााँ बीिने लगिीं। मास्टरों की डााँट का डर बढ़िा चला िािा। मास्टर िी जहसाब के कम से कम दो सौ सवाल जदया करिे थे। उनके करने का जहसाब लगाने लगिे। उस समय जदन छोटे लगने लगिे। स्कू ल का डर सिाने लगिा। कु छ सहपाठी ऐसे भी थे िो काम करने से अच्छा मास्टर की जपटाई खाना उजचि समझिे थे। उनका नेिा ओमा हुआ करिा। उसके िैसा लड़का कोई नहीं था। उसका जसर हााँड़ी जििना बड़ा था। उसका जसर ऐसे लगिा मानों जबल्ली के बच्चे के माथे पर िरबिू रखा हो। वह हाथ-पााँव से नहीं अजपिु जसर से लड़ाई करिा था। वह अपना जसर दसू रे के पेट या छािी में मारा करिा था। सहपाजठयों ने उसके जसर की टक्कर का नाम ‘रेल-बम्बा’ रखा हुआ था। लेखक का स्कू ल बहुि छोटा था। उसमंे के वल नौ कमरे थे, िो अगं ्रेिी के अक्षर एच की भााँजि बने थे। पहला कमरा हडे मास्टर श्री मदनमोहन शमाा िी का था। वे स्कू ल की प्रेयर के समय बाहर आिे थे। पी.टी. अध्यापक प्रीिम चंद लड़कों की किारों का ध्यान रखिे थ।े वे बहुि कठोर थे और छात्रों की खाल खींचा करिे थे। परंिु हेडमास्टर उसके जबल्कु ल उलटे स्वभाव के थे। वे पाँाचवीं और आठवीं कक्षा को अंग्रेिी पढ़ािे थे। वे कभी भी जकसी छात्रा को मारिे नहीं थे। के वल गसु ्से में कभी-कभी गाल पर हलकी चपि लगा देिे थ।े कु छ छात्रों को छोड़कर बाकी सब रोिे हुए ही स्कू ल िाया करिे थे। कभी-कभी स्कू ल अच्छा भी
लगिा था िब पी.टी. टीचर कई रंगों की झंजडयााँ पकड़वाकर स्काउजटग का अभ्यास करवािे थे। यजद हम ठीक से काम करिे िो वे ‘शाबाश’ कह कर हमारा हौसला बढ़ािे थे। लेखक को हर वषा अगली श्रेणी में प्रवेश करने पर परु ानी पुस्िकें जमल िाया करिी थीं। हमारे हडे मास्टर एक धनाढ्य लड़के को उसके घर िाकर पढ़ाया करिे थे। वह लड़का लेखक से एक श्रेणी आगे था। इसजलए उसकी पसु ्िकंे लेखक को जमल िाया करिी थीं। उन्हीं पसु ्िकों के कारण लेखक अपनी पढ़ाई िारी रख सका। बाकी सब चीिों पर साल का मात्र एक-दो रुपये खचा हुआ करिा था। उस समय एक रुपये मंे एक सेर घी और दो रुपये में एक मन गेहाँ जमल िाया करिा था। इसी कारण, खािे-पीिे घरों के लड़के ही स्कू ल िाया करिे थे। लेखक अपने पररवार मंे से स्कू ल िाने वाला पहला लड़का था। यह दसू रे जवश्व-युद्ध का समय था। नाभा ररयासि के रािा को अगं ्रिेां ने सन 1923 मंे जगरफिार कर जलया था। िजमलनाडु मंे काडेाएके नाल में िंग शुरू होने से पहले उनका दहे ांि हो गया था। उनका बेटा जवलायि मंे पढ़ रहा था। उन जदनों अंग्रेि फै ाि मंे भरिी करने के जलए नौटंकी वालों को साथ लेकर गााँवों में िाया करिे थे। वे फै ाि के सखु ी िीवन का दृश्य प्रस्िुि करिे थे िाजक नौिवान फै ाि मंे भरिी हो िाएाँ। िब लेखक स्काउजटग की वदी पहन कर परेड करिे, िब उनको भी ऐसा ही महससू होिा था। लेखक ने मास्टर प्रीिमचंद को कभी मुसकरािे हुए नहीं दखे ा। उनकी वेशभूषा सभी को भयभीि कर दिे ी थी। उनसे सभी डरिे थे और नफ़रि भी करिे थे। वे बहुि कजठन सिा जदया करिे थ।े वह चाै थी श्रेणी मंे फारसी पढ़ािे थे। एक बार एक शब्द रूप याद न कर पाने के कारण उन्होंने लड़कों को मगु ाा बना जदया था। िब हडे मास्टर शमाा िी ने यह दृश्य देखा िो वे प्रीिम जसह पर क्रोजधि होकर बोले ‘ह्वाट आर यू डूईगं , इि इट द वे टू पजनश द स्टूडंेट्स आॅफ फोथा क्लास? स्टाप इट एट वन्स।’ शमाा िी गुस्से में कााँपिे हुए अपने दफिर मंे चले गए। इस घटना के बाद प्रीिम जसंह कई जदनों िक स्कु ल नहीं आए। शायद हडे मास्टर ने उन्हें मअु त्तल कर जदया था। अब फारसी शमाा िी स्वयं या मास्टर नाहै ररया राम िी पढ़ाने लगे थे। पी. टी. मास्टर अपने घर पर आराम करिे रहिे थे। उन्हंे अपनी नौकरी की जबलकु ल भी जचिं ा नहीं थी। वे अपने जपंिरे मंे रखे दो िोिों को जदन में कई बार भीगे हुए बादाम जखलािे थे और उनसे मीठी-मीठी बािें करिे रहिे। यह सब लेखक िथा उनके साजथयों को बड़ा जवजचत्र लगिा था जक इिने कठोर पी.टी. मास्टर िोिे के साथ इिनी मीठी बािें के से कर लेिे ह!ैं ये सब बािंे उनकी समझ से परे थीं। वे उन्हंे अलौजकक मानिे थे।
पाठ का सकं्षिप्त परिचय टोपी शुक्ला राही मासमू रज़ा के उपन्यास टोपी शक् ुला के इस अशं के पात्र अपनपन की तलाश में भटकते हुए नज़र आते हंै। कथानायक टापेी के अपनेपन की पहली खोज परू ी होती है अपने प्यारे दोस्त हफ्रफन की दादी माँा मंे, अपने घर की नौकरानी सीता में और अपने गाँाव की बोली म।ंे कहते हैं ‘प्रेम न माने जात-पात, भखू न जाने खखचड़ी-भात।’ टोपी को भी इससे काई ेअतं र नहीं पडता खक खजसके आचलाँ की छावाँ मंे बठै कर वह स्नेह का अपार भंडार पाता ह,ै प्रेम के सागर मंे गोते लगाता ह,ै उसका रहन-सहन क्या ह,ै खान-पान क्या ह,ै रीखत-ररवाज क्या ह,ै सामाखजक हैखसयत क्या ह?ै हालाँाखक टोपी के खपता एक जाने - माने डाक्टॅर ह,ंै पररवार भी भरा-परू ुा ह,ै घर में खकसी चीज़ की कमी नहीं, खफर भी वह लाख मना करने के बावजूद इफ्रफन की हवले ी की तरफ जरूर चला जाता है। उसे वहाँा जाने से रोकने वाले पररवार के लागों ने कभी इस बात का पता लगाने की कौखशश भी नहीं की खक टोपी जैसा आज्ञाकारी बालक आखखर उनका यह आदेश क्यों नहीं मानता। पाठ का साि ‘टोपी शक्ला’ कहानी राही मासमू रज़ा दवु् ारा खलखे उपन्यास का एक अंश ह।ै कहानी ‘टोपी’ के इदद- खगदद घमू ती है। वह इस कहानी का मखय पात्र ह।ै टौपी के खपता डाक्टर हं।ै उनका पररवार भरा-परू ा ह।ै यह पररवार अत्यखिक संस्कारवादी ह।ै घर मंे खकसी भी वस्त की कमी नहुं ी ह।ै टोपी का एक दोस्त है - हफ्रफन। पर टोपी हमशे ा उसे हफ्रफन कह कर पकारता था। दोनों एक दसू रे के खबना अिरू े थ।े दोनों के घर अलग-अलग थे। दोनों के मज़हब अलग थे। खफर भी दोनों मंे गहरी दोस्ती थी। दोनों मंे प्रेम का ररश्ता था। कहानी के प्रारंभ में लेखक इफ्रफन के खवशय में भी बताते हंै क्योंखक परू ी कहानी में इफ्रफन का खजक्र बार-बार आता ह।ै लेखक खहंद-ू मखस्लम की बात भी नहुं ी करते। इस कहानी के दो पात्र ह-ंै बलभद्र नारायण शक्ला यानी टोपी आरै सययद ज़रगाम मतदज़ा यानी इफ्रफन। इफ्रफन के दादा आरै परदादा प्रखसद्ध् मौलवी थे। मरने से पहले उन्होंने वसीयत की खक उनकी लाश कबदला ले जाई जाए। इफ्रफन के खपता ने ऐसी कोई वसीयत नहीं की थी। उन्हंे एक खहदस्तानी कखिस्तान मंे दपफनाया गया। इफ्रफन की दादी नमाज़-रोज़े की पाबंद थीं, पर जब उनके इकलातैुे बेटे को चेचक खनकली तो वह चारपाई के पास एक टाँाग पर खड़ी रहीं और बोलीं - माता मोरे बच्चे को माफ कर दयो।य् वे परू ब की रहने वाली थीं इसखलए मरते दम तक परू बी बोलतीं रहीं। वे गाने-बजाने मंे रुखच लेती थी। इफ्रफन की छठी पर उन्होंने जी भरकर ज़श्न मनाया था। इफ्रफन की दादी ज़मीदांर की बटेी थीं। उन्हें दिू -घी बहत पसंद था, परंत लखनऊ आकर वह उन सब चीज़ों के खलए तरस गई।ं यहाँा आते ही उन्हें मालैखवन बन जाना पड़ता था क्याुेखुुं क उनके पखत हर वक्त मालैवी ही बने रहते थे। इफ्रफन की दादी को मरते वक्त अपना घर, आम का पेड़ और अनेक चीज़ंे याद आई।ं उन्हें बनारस के फातमैन में दफन खकया गया। इफ्रफन तब चाै थी कक्षा में पढ़ता था आरै टोपी उसका दोस्त बन चका था। वह अपनी दादी से बहुत प्रमे करता था। दादी उसे तरह-तरह की कहाखनयााँ सनाती थीं। टोपी
को दादी की भाषा बहुत अच्छी लगती थी, परंत उसके खपता उसे यह भाषा बोलने नहीं देते थे। वह जब भी इफ्रफन के घर जाता, तब दादी के पास बैठने की कोखशश करता था। डाक्टर भगृ नारायण नीले तले वाले के घर मंे बीसवीं सदी प्रवेश कर चकी थी यानी खाना मेज़-कसी पर होने लगा था। टोपी को बगंै न का भरता अच्छा लगा। वह बोला - अम्मी, जरा बगैं न का भरता।य् अम्मी शब्द सन कर सभी टोपी कोदखे ् ुाने लगे। टोपी की दादी सभद्रादेवी ने कहा ‘अम्मी’ शब्द इस घर में कै से आया? टोपी ने उत्तर खदया - ई हम इफ्रफन से सीखा ह।ै रामदलारी बोली तैं कउनो खमयाँा के लडक़ा से दोस्ती कर खलहले बाय का रे? । इस पर सभद्रा देवी गरज उठीं बहू, तम से खकतनी बार कहा है खक मरे े सामने गवााँरों की यह जबान न बोला करो।, लडाईा़ का मारेचा बदल गया। जब भगृ नारायण को पता चला खक टोपी ने कलेक्टर साहब के लड़के से दोस्ती कर ली है तो वे अपना गस्सा पी गए। इसके बाद टोपी को बहुत मार पड़ी। खफर भी टोपी ने इफ्रफन के घर न जाने की हाँा नहीं भरी। मन्नी बाबू आरै भरैव उसकी कटाई का तमाशा देखते रह।े मन्नी बाबू ने टोपी की खशकायत करते हुए कहा खक ये उस खदन कबाब खा रहा था। यह बात सरासर गलत थी जबखक मन्नी बाबू स्वयं कबाब खा रहे थे, पर टोपी के पास अपनी सफाई दने े का कोई रास्ता नहीं था। अगले खदन टोपी स्कू ल गया तब उसने इफ्रफन को सारी घटना बताई। दोनों जगराखफया का घटंुा छाडे कर सरक गए। उन्होनें पचंम की दकान से के ले खरीदे। टोपी के वल फल खाता था। टोपी ने कहना शरू खकया खक क्या ऐसा नहीं हो सकता खक हम अपनी दादी बदल लें, पर यह बात इफ्रफन को अच्छी नहीं लगी। इफ्रफन ने कहा, मेरी दादी कहती हैं खक बूढ़े लोग मर जाते हंै। इतने में नौकर ने आकर सचू ना दी खक इफ्रफन की दादी मर गई ह।ैं शाम को जब टोपी इफ्रफन के घर गया तो वहाँा सन्नाटा पसरा पडा ा़था। वहाँा लोगों की भीड़ जमा थी। टोपी के खलए सारा घर मानो खाली हो चका था। टोपी ने इफ्रफन से कहा तोरी दादी की जगह हमरी दादी मर गई होती तब ठीक भया होता। टोपी ने दस अक्तू बर सन पैंतालीस को कसम खादइ खक अब वह खकसी ऐसे लड़के से दोस्ती नहीं करेगा खजसके खपता ऐसी नौकरी करते हों खजसमें बदली होती रहती ह।ै इसी खदन इफ्रपफन के खपता की बदली मरादाबाद हो गई। अब टोपी अके ला रह गया। नए कलेक्टर ठाकर हररनाम खसह के तीनों लड़कों में से कोई उसका दोस्त न बन सका। डब्बू बहुत छोटा था। बीलू बहुत बड़ा था। गड्डू के वल अगं ्रेज़ी बोलता था। उनमें से खकसी ने टोपी को अपने पास फटकने न खदया। माली और चपरासी टोपी को जानते थे इसखलए वह बँागले में घस गया। उस समय तीनों लड़के खक्रके ट खेल रहथे े। उनके साथ टोपी का झगड़ा हो गया। डब्बू ने अलसखे शयन कत्ते को टोपी के पीछे लगा खदया। टोपी के पटे मंे सात सइयााँ लगीं तो उसे होश आया। खफर उसने कभी कलेक्टर के बँगा ले का रुख नहीं खकया। घर में टोपी का दुःख समझने वाला कोई न था। बस घर की नौकरानी सीता उसका दुःख समझती थी। जाड़ों के खदनों मंे मन्नी बाबू और भरै व के खलए नया कोट आया। टोपी को मन्नी बाबू का काटे खमला - काटे नया था, पर था तो उतरन। टोपी ने वह कोट उसी वक्त नोकरानी के बेटे को दे खदया। वह खश हो गया। टोपी को खबना कौट के जाड़ा सहन करने के खलए मजबरू होना पड़ा। टोपी दादी से झगड़ पड़ा। दादी ने आसमान खसर पर उठा खलया। खफर माँा ने टोपी की बहुत खपटाई की। टोपी दसवीं कक्षा में पहुचँा गया। वह दो साल फे ल हो गया था। उसे पढ़ने का उखचत समय नहीं खमलता था। खपछले दजे के छात्रों के साथ बैठना उसे अच्छा नहीं लगता था। अब वह अपने घर के साथ-साथ स्कल मंे भी अके ला हो गया था। मास्टर ने भी उस पर ध्यान दने ा बदं कर खदया। टोपी को भी शमद आने लगी थी। जब उसके सहपाठी अब्दल वहीद ने उस पर व्यग्ंय बाण कसा तो टोपी को बहत बरा लगा। उसने पास होने की कसम खाई। इसी बीच चनाव आ गए। डाुॅ. भगृ नारायण चनाव मंे खड़े हो गए पर उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई। ऐसे वातावरण मंे टोपी का पास हो जाना ही काफी था। इस पर भी दादी बाले उठीकंृ तीसरी बार तीसरे दजे में पास हुए हो, भगवान नज़र से बचाए।
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