एह.कॉन इंटरनशे नल िव8ालय मयूर िवहार- <द.ली-110091 ‘मेरी भाषा मरे ी पहचान’ िहं दी संस्कृ त पित्रका 1
संपादकीय आन्या अरोड़ा जैसा िक बड़े बजु ुगोर्ं ने कहा है \"ज्ञान का एकमात्र स्रोत अनुभव ह\"ै ।िवद्याथीर् पिरषद वास्तव मंे आपको नते तृ ्व, सचं ार, एकता, संगठन और साव्जर िनक बोलने जसै े कौशल को बढ़ावा देने का अवसर देती ह।ै मंै धन्य हूं िक मुझे यह अवसर प्राप्त हुआ ।िवद्याथीर् पिरषद में मरे ा अनभु व शानदार रहा ह।ै हालांिक यह वषर् िवद्याथीर् पिरषद के िकसी भी अन्य वषर् की तरह नहीं है क्योंिक इस वषर् महामारी के कारण सब कु छ ऑनलाइन ह।ै हमंे एक नया अनभु व िमल रहा है जो बकाया ह।ै मैंने िवद्याथीर् पिरषद से िजम्मेदारी िनभाना सीखा है और उसको पूरा करने का पणू ्र प्रयास िकया ह।ै यहाँ से मंनै े सीखा िक आपके जीवन में िकतनी भी बाधाएँ आय,ें लेिकन बस रुकें नहीं। मैंने प्रौद्योिगकी के बारे मंे भी बहुत कु छ सीखा, मुझे पता चला िक कै से अपने घरों मंे रहकर भी हम जानकारी साझा कर सकते ह,ंै अध्ययन कर सकते हैं व िविभन्न िवधानसभाओं और प्रितयोिगताओं मंे भाग ले सकते ह।ंै मनैं े अपनी िशक्षकों से बहुत सा ज्ञान अिज्र त िकया तथा साझा भी।मैंने इस अवसर प्राप्त कर अपनी अिभलाषा परू ी की ही है साथ ही साथ बहुत सा अनभु व भी प्राप्त िकया ह।ै मुझे यह अद्भतु अवसर देने के िलए मंै अपने िशक्षकों को धन्यवाद करना चाहूगं ी । - आन्या अरोड़ा 2
मनस्वनी पाडं ेय मंै मनस्वनी पांडेय, सािहित्यक राजदू त आप सभी को सहयोग के िलए धन्यवाद देती हूँ। आप सब की िविभन्न रचनाओं को पढ़कर हमारे ज्ञान में विृ द्ध हुई है । इन रचनाओं को सपं ािदत करते समय हमें व्याकरण तथा वाक्य संरचना के कायर् में एक नया अनभु व प्राप्त हुआ। इससे हमें स्वरिचत रचनाओं को भी िलखने की प्रेरणा िमली। अपने सहपािठयों के साथ िमलकर सम्पादन कायर् करने हतु सगं ठनात्मक रूप से एक अच्छा अनभु व प्राप्त हुआ। इस प्रकार समाचार पत्र का काय्र एक रचनात्मक अनुभव दे गया। आपका सब सहयोग अपिे क्षत ह।ै धन्यवाद मनीषा ित्रपाठी (िहं दी अध्यािपका) िवद्याथीर् िकसी भी देश के भावी कण्धर ार ह|ंै इनमंे असीम सभं ानाएं हंै यिद उन्हंे कायर् करने का सही अवसर प्रदान िकया जाए तो वे अपनी प्रितभा का प्रदशर्न पूरी तरह से करते ह|ैं िहं दी-ससं ्कृ त पित्रका (अक्टू बर मास) का िनमारण् जब सदन के िवद्याथीर् आन्या अरोड़ा और मनस्वनी पाडं ेय के साथ िकया तो पाया िक इन िवद्यािथ्र यों मंे रचनात्मक एवं िक्रयात्मक क्षमताओं का बेजोड़ सगं म ह।ै | इस पित्रका के िनमार्ण मंे इन दोनों छात्राओं का महत्त्वपणू र् योगदान सराहनीय ह।ै 3
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िहं दी के महु ावरों पर आधाǐरत एक कथा -- ग णत के महु ावर पर आधा रत एक लघकु था -- यु त महु ावरे - १) तीन पाचं करना - बना कारण ह झगड़ना २) छ ीस का आकं ड़ा - कसी से आपसी मतभदे या बैर होना ३) नौ दो यारह होना - भाग जाना ४) एक और एक यारह होना - कसीका साथ मलने पर सश त हो जाना बहुत समय पहले क बात है, महारा के एक गावँ पढं रपरु म एक लकड़हारा रहता था। उसका नाम था नरह र। वह त दन जगं ल से लक ड़यां काट-काट कर बाज़ार बेचने जाता था और जो भी कमाई होती थी वो एक पोटल म बांधकर शाम को उसी जगं ल के रा ते घर वा पस आ जाता था। ऐसे ह एक दन जब वो वा पस आ रहा था तो अ धेरा हो चकु ा था। एक चोर, जो नरह र को लूटने क ती ा म बठै ा था उसने उसका रा ता रोक लया और अनाव यक ह उससे तीन पांच करने लगा १) । नरह र को कु छ समझ नह ं आया क वो बना कारण ह उससे य झगड़ रहा है। वो चं तत हो गया क अब वो या करे यूं क वहा कोई भी उसक सहायता करने वाला नह ं था। तभी वहां से नरह र का पड़ौसी गुज़रा िजसका नाम था व ठल। व ठल से नरह र क बनती नह ं थी और दोन का छ ीस का आकं ड़ा २) था। व ठल ने सब कु छ देखा और तुरंत ह समझ गया क वो चोर नरह र को लटू ना चाह रहा है। व ठल ने नरह र से अपने मतभेद को भुलाकर उसक सहायता करने का न चय कया। व ठल ने ज़ोर ज़ोर से शोर मचाना शु कर दया क , \"भागो भागो ! शेर आ रहा है। जान बचानी है तो भागो-भागो\"। ये सनु कर वो चोर नरह र को छोड़कर तरु ंत ह वहां से नौ-दो यारह ३) हो गया। नरह र भी जब भागने लगा तब व ठल ने उसे बताया क ये तो उसक नरह र को बचाने क युि त थी और उसने झूठे ह शोर मचाया था। तब नरह र ने भी अपना मतभेद भलु ाकर व ठल का आभार य त कया और उसे गले से लगा लय। अब वो दोन ह त दन एक साथ आने जाने लगे व इस तरह दोन एक और एक यारह हो गए ४) । नैितक गुप्ता सातवीं- अ
कक्षा सातवीं के छात्रों द्वारा मुहावरों पर आधािरत कु छ िवशेष प्रस्तिु तयों की झलक 13
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ईमानदारी सबसे बड़ी पूँजी रामनगर के गावँ में एक िशक्षक मानिसं ह रहते थे, जो बहुत नके िदल थे और सब बच्चों को एक नज़र से देखते थे | उनकी कक्षा मंे महशे नाम का बालक पढ़ता था, जो गरीब था पर बहुत ही होनहार था | वह बालक िशक्षक मानिसं ह की आँ खों का तारा था | वह कक्षा के अन्य बच्चों को एक आँ ख न भाता था | िफर भी महशे एक चुप सौ को हराए पर कायम रहता था | समय बीत रहा था, पर अचानक एक िदन मोहन के िपताजी का देहातं हो गया | अब तो महशे के पास कु छ भी शषे न रहा और उसका पिरवार एक मटु ्ठी अन्न को तरसने लगा | अब वह स्कू ल कै से जाये? यह सोचते हुए वह काम की तलाश में सड़क पर चला जा रहा था िक तभी उसे िकसी के बुलाने की आवाज आई | उसके सामने एक सठे खड़े थे | उन्होंने बताया िक उनकी एक बड़ी हवेली है और उन्हें उसकी साफ – सफाई करवानी है l अत: इस काय्र के िलए उन्होंने कई मजदू रों से बात की, लिे कन सभी बड़ी हवले ी को देखते ही नौ दो ग्यारह हो जाते है | महशे ने सहषर् उस काम को स्वीकार कर िलया क्योिक अधं ा क्या चाहे दो आँ खे | अगले िदन महशे समय पर हवेली सफाई करने के िलए पहुँच गया| उसने एक पंथ दो काज से अपनी उलझन का उपाय िनकाल िलया था | उसने अच्छे से सारे घर के कमरों की सफाई शरु ू कर दी | घर की सफाई करते हुए उसे छठी का दू ध याद आने लगा | तभी एक कमरे की सफाई करते हुए वहाँ रखी कीमती घड़ी को देखकर महशे की आँ खे चार हो गई | आिख़रकार वह लालच के जाल मंे फँ स ही गया | उसे अपनी पाँचों उं गिलयाँ घी में िदखाई देने लगी | अब तो उसके मन से एक आवाज उठी – “काश यह घड़ी मुझे िमल जाती |” लिे कन ऐसे समय मंे उसे अपने िशक्षक मानिसं ह की दी हुई सौ बात की एक बात वाली सीख याद आ गई िक “ बेटा कभी िकसी की चीज नहीं चुराना | भले ही कोई इन्सान तमु ्हे चोरी करते देखे या न देखे पर ईश्वर अवश्य देख लेता है |” िशक्षक की बातंे याद आते ही महशे भागकर सीधा अपने स्कू ल के िशक्षक मानिसं ह के पास आकर रोने 15
अगर तमु न होते बापू ! उपकार कै से भलू े , यह गुलिसता तमु ्हारा, अगर तमु ना होते बापू िफर क्या होता हमारा | व्यापारी बन के आये , इंग्लडैं से पराये, धीरे से रूप बदला पर हम समझ न पाए | छल के दम पर , कब्जाया मलु ्क सारा, अगर तमु ना होते बापू िफर क्या होता हमारा | तुम सत्य और अिहं सा के प्रितमान बनके आए, भारत की अिस्मता के सम्मान बनके आए | इतना सरल स्वभावी दिु नया मंे कौन होगा, िजसकी सुने िहमालय वो इतना मौन होगा | अचरज करे ससं ार , कै से िफरंगी हारा , अगर तमु ना होते बापू िफर क्या होता हमारा | 16
िहन्दसु ्तान हूँ मंै भी एक इनसान हूँ परू ा िहन्दुस्तान हूँ तूफानों से न डरता हूँ मैं एक वीर जवान हूँ। िहं दुस्तान हूं , िहं दुस्तान हूँ ,िहं दुस्तान हूँ , एक मैं जवान हूँ , देश की िमट्टी खून और पसीना , रात िदन मेहनत करना यही मेरा जीना , देश की िमट्टी खनू और पसीना , रात िदन महे नत करना यही मरे ा जीना , िहं दुस्तान हूं , िहं दुस्तान हूं , िहं दुस्तान हूँ , एक मैं जवान हूँ , ना जान की परवाह ना दुश्मनों का डर , यही मरे ा धम्र , यही मेरा कमर् , ना जान की परवाह ना दुश्मनों का डर , यही मरे ा धमर् , यही मेरा कम्र देश की िमट्टी यही मरे ा जीवन , पढ़ना , िलखना , खले ना , कू दना , यह था मरे ा बचपन , देश की िमट्टी यही मेरा जीवन , पढ़ना , िलखना, खले ना, कू दना यह था मरे ा बचपन , िहं दुस्तान हूं , िहं दुस्तान हूं , िहं दुस्तान , हूँ , एक मैं जवान हूँ , 17
संस्कृ त पित्रका गिणत उत्सव पर आधािरत संस्कृ त गितिविध की झलक कक्षा छठी से आठवीं के छात्रों द्वारा 18
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मुख्याध्यािपका की कलम से िहं दी व संस्कृ त िवभाग को अपनी तीसरी सनु ीता राजीव पित्रका ‘मेरी भाषा मरे ी- पहचान', सफलतापूवर्क प्रेिषत करने के िलए हािद्र क बधाई । ये पषृ ्ठ अपने मंे िकतने भावों को संजोकर आपके िलए लाए ह,ंै इसका अनमु ान आप पढ़कर ही लगा सकते हंै । बच्चों को लखे न के िलए प्रेिरत करना उनका भाषा के प्रित प्रमे भाव रखना और सपं ादन के कौशल को सीखना, यह सब इस पित्रका के माध्यम से सभं व हो पाया है । हमारी हािद्र क इच्छा है िक हमारे छात्र अपने ज्ञान के साथ अपनी कलम के धनी बनंे आपके सझु ाव की हमंे प्रतीक्षा रहगे ी । श्रीमती सनु ीता राजीव (मखु ्याध्यािपका माध्यिमक वगर् ) 22
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