दो बकरिय ँा श्रद्ध प ांडये
एक नाला था। नाले के दोनों ककनारों पर हरी हरी घास उगी हुई थी। वहाँा भेड़ बकररयााँ घास चरने आती थी।ंी
न ले पि एक पेड़ गिि िय । इससे न ले पि पुल-स बन िय । पुल पि से होकि कभी कोई बकिी य भेड़ आती-ज ती िहती थी।
एक ददन दो बकररयाँा दोनों तरफ से आईं। पुल बहुत छोटा था। पलु पर से के वल एक ही बकरी जा सकती थी।
दोनों सोचने लिींा- भिू ी बकिी बोली- बहन क्य किंे?
हम दोनों एक स थ तो ज नहीां प एँािे। मंै बठै ज ती हूँा, तुम ननकल ज ओ।
क ली बकिी ने कु छ सोच । वह बठै ते-बैठते बोली-पहले तुम क्यों नहींा ननकल ज ती?
भिू ी बकिी ने धीिे से प वँा क ली बकिी पि िखे औि दसू िी औि कू द िई।
उसने क ली बकिी की ओि देख । बोली- शुक्रिय ,बहन शुक्रिय ।
क ली बकिी उठते हुए बोली-बहन ममलकि चलंे तो सब ठीक हो ज त है।
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