अकबरी लोटा अन्नपूर्ाा नन्द वर्ाा
लाल झाऊलाल को खाने-पीने की कर्ी न थी क्योंकक ठठे री बाज़ार र्ंे उनकी दकु ान थी। अच्छा पसै ा मर्ल जाता था पर 250 रुपये कभी एक साथ देखने को नहीीं मर्ले.
एक ददन पत्नी ने अचानक 250 रुपये की र्ागँा करके झाऊलाल को चौंका ददया पतत को चौंकते देख उन्होंने कहा – यदद आप न दे सकें तो र्ैं अपने भाई से र्ाँगा लाँूगी
झाऊलाल ने रौब र्ंे कहा- ढाई सौ रुपये के मलए भाई से भीख र्ाागँ ोगी? र्ुझसे ले लेना लेककन र्ुझे इसी जजदीं गी र्ंे चादहए। अजी इसी सप्ताह र्ंे ले लेना सप्ताह से आपका र्तलब सात ददन है या सात वर्?ा झाऊलाल ने रौब र्ंे कहा- आज से सातवंे ददन र्ुझसे 250 रुपये ले लेना।
जसै े जसै े ददन बीतने लगे वसै े वसै े झाऊ लाल की चचतीं ा बढ़ने लगी। जब चार ददन बीत गए तो अपनी प्रततष्ठा की चचतीं ा होने लगी
पाचाँ वे ददन घबराकर अपने मर्त्र बबलवासी मर्श्र से चचाा की
छठंे ददन वे सोचने लगे – यदद रुपया न दे पाया तो क्या हुआ? कोई आजीवन कारावास तो नहीीं देगी बस जरा सा हाँस देगी पर उसकी हँासी ककतनी पीड़ा दायक होगी
कहीीं बबलवासी न आए तो ? इसी उधेड़बनु वे छत पर टहल रहे थे कक उन्हंे प्यास लगी । उन्होंने नौकर को बलु ाया
नौकर तो आया नहींी हााँ पत्नी एक बेढींगे लोटे र्ंे पानी लेकर आईं जो उन्हंे कभी भी पसींद नहीीं था
पपता डर्रू र्ाँा चचलर् बेटा बेढंीगा लोटा
झाऊलाल ने कु छ कहा नही,ंी वे पत्नी का अदब र्ानते थे इसमलए चपु चाप पानी पी मलया। उन्होंने यह भी सोचा कक लोटे र्ें पानी दे तो भी गनीर्त है। अभी अगर कु छ कहूँागा तो बाल्टी र्ंे भोजन मर्ल सकता है
अभी र्जु ककल से एक घूँाट पी पाए होंगे कक न जाने कै से उनका हाथ दहल गया और लोटा हाथ से छू ट गया।
लोटे ने दायें देखा न बाएाँ बबजली की गतत से ततर्जंी जले से नीचे चला और भीड़ वाली गली र्ें अदृकय हो गया।
गली र्ंे जोर का शोर उठा, झाऊलाल नीचे जाना ही चाहते थे कक देखा एक अगंी ्रेज मसर से पैर तक भीगा हुआ, एक पैर पर नाचता हुआ आँागन र्ंे घुस आया।
3-बबल्कु ल नहीीं और र्ैं 1-तभी बबलवासी मर्श्र आआ ऐसे आदर्ी को जानना गए। आते ही उन्होंने भीड़ को भी नहीीं चाहता जो राह बाहर तनकाला। कु सी पर अगीं ्रेज चलते लोगों पर लोटे से को बैठाया। वार करे। 2-अंीग्रेज ने पूछा – आप इस शख्स को जानते हंै ?
2- पमु लस र्ंे 1--क्या करना ररपोटा कर देना चादहए इस चादहए। आदर्ी का ? 4-पास र्ें ही है 3-कहाँा है चमलए पर पहले पुमलस स्टेशन र्ंै यह लोटा ? खरीदना चाहता 5- आप इस हूाँ रद्दी लोटे का क्या करेंगे? 6- जनाब! यह रद्दी नहीीं बजल्क 8- यह बात ! ऐततहामसक अकबरी लोटा है जजसकी तलाश दतु नया भर र्ें है 7-दरअसल यह अकबरी लोटा है
सोलहवींी शताब्दी की बात है। बादशाह हुर्ायूँा शरे शाह से हारकर भागा था और मसधीं के रेचगस्तान र्ें भटक गया था। वह प्यासा था तब एक ब्राह्र्र् ने इसी लोटे से पानी पपलाकर हुर्ायूाँ की प्यास बुझाई थी।
हुर्ायँाू ने ब्राह्र्र् का पता लगाकर उसे 10 सोने के लोटे देकर यह लोटा खरीद मलया वह लोटा हुर्ायूँा को बहुत प्यारा था। वह उसी से वजू करता था
16 57 तक शाही घराने र्ें था। उसके बाद लापता हो गया
बबलवासी जी की बातें सनु कर साहब की आाखँ ें कौड़ी से पकौड़ी के आकार की हो गई
बहस के बाद बबलवासी जी ने लोटे की बोली लगानी शरु ू कर दी
अींग्रेज के दो सौ बोली लगाने पर बबलवासी जी ने 250 देकर लोटा ले चाहा तभी 50 अंीग्रेज ने 500 रुपये 100 की बोली लगाकर लोटा खरीद मलया
अब र्ंै र्ेजर डगलस को ददखाऊाँ गा जो र्झु े जहाँगा ीरी अींडा ददखाकर नीचा ददखाते थे ।
एक कबूतर ने नूरजहाँा से जहाँगा ीर का प्रेर् कक तुर्ने र्ेरा करवाया था जहाँगा ीर के पूछने पर --- एक कबूतर कै से उड़ जाने ददया
उसके भोलेपन पर देखकर जहााँगीर को नूरजहाँा से प्रेर् हो गया। कबूतर का एहसान वह कभी नहीीं भलू ा। उसके एक अडंी े को अपनी आँाखों के सार्ने एक बबल्लोर की हााडँ ी र्ें सभंी ालकर टागंी कर रखता। वही जहागाँ ीरी अडंी ा पपछले वर्ा र्ेजर डगलस 300 सौ रुपये र्ंे खरीदकर ले गए थे। अब र्ेरा अकबरी लोटा उनके जहाँागीरी अडीं े से एक पुकत परु ाना है ।
इस ररकते से आपका अींग्रेज ने झाऊलाल को 500 लोटा अडीं े का बाप है रुपये ददए और अपनी राह ली
उस सर्य ऐसा लग आपके पास 250 रहा था र्ानो झाऊलाल रुपये कहााँ से के 6 ददन के बढ़े दाढ़ी के बाल खुशी से लहरा आए? रहे हों । इस भेद को र्ेरे मसवाय र्ेरा ईकवर जानता है आप उसी से पछू लीजजए
पैसे चुपचाप सींदकू र्ंे रखे उस ददन आधीरात तक उन्हें नीदीं नहीीं आई और दबे पावँा ताली पत्नी एक बजे वे धीरे से उठे और पत्नी के के गले र्ें डाल दी। गले से चाबी तनकली
वहाँा से आकर अगंी ड़ाई ली और दसू रे ददन सबु ह आठ बजे तक चनै की नीींद सोए
द्वारा श्रद्धा पाींडये
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