पजं ाब नैशनल बकंै , अचं ल कार्यालय रायपरु छत्तीसगढ़ एवं झारखंड राज्य की अरवध् ार्िष क हिन्दी गृह पत्रिका वरष् : 2021-22, अंक-4, अक्ूट बर-मार,च् 2022 जोहार दर्पण 4अंक
बकंै िं ग में ग्राहक सेवा का महत्व सोनम शिखा तिर्की ग्राहक : ग्राहक की कोई वैधानिक की सेवाएं लते ा है चाहे वह किसान हो या परिभाषा नहीं है, किसी व्यक्ति के लिए फिर व्यापारी, नौकरीपशे ा या सवे ानिवतृ प्रबधं क बंैक के ग्राहक के रूप मंे जाना जाने के कर्मचारी, विद्यार्थी या फिर अध्यापक मडं ल कार्लया य : राचँ ी दक्षिण लिए व्यक्ति का या तो चालू खाता या किसी न किसी रूप में सभी बकंै की सवे ाएं बचत खाता, सावधि जमा, आवर्ती जमा, प्राप्त करते हंै। बकैं िं ग सं स्थान ग्राहकों की एक ऋण खाता या कु छ इसी तरह का आवश्यकता एवं उपलब्धता के आधार पर जमा खाता होना चाहिए। आम बोलचाल अपनी सेवाएँ प्रदान करते हंै। की भाषा मंे ग्राहक (बकैं के सं दर्भ मं)े उसी को कहते हैं जो या तो बैकं का बकंै िंग सवे ा : सामान्यतः बंकै िं ग सेवाओं खाताधारक हो या बैंक में बकंै से सं बं धित का आशय ऐसी सवे ाओं से होता है जो कार्यों से जुड़ा हो। किसी बकैं / वित्तीय सं स्थान द्वारा ग्राहकों की जरुरत एवं सवे ाओं की उपलब्धता के ग्राहक सेवा : ग्राहक सेवा एक ऐसा शब्द आधार पर मुहैया कराई जाती है। है जो व्यवसायों द्वारा अपने उत्पादों और सवे ाओं को खरीदने या उपयोग करने बकैं िं ग सवे ाओं के सं दर्भ मंे ग्राहक और वाले ग्राहकों को सं तुष्ट करने के लिए लागू उपभोक्ता में भदे होता है जिन्ेंह निम्नलिखित तकनीकों और रणनीतियों का जिक्र करता परिभाषाओं से समझा जा सकता है - है। सामान्यतः यह ग्राहकों की समस्याओं को हल करने और किसी उत्पाद के प्रति ग्राहक : कोई व्यक्ति बकैं का ग्राहक तभी उनकी सं तषु ्टि एवं विश्वसनीयता बढाने मंे माना जाता है जब सं बं धित बकैं में उसका मदद करने के लिए आमने सामने बात खाता खलु ा हो। चीत करने का एक सूक्ष्म अभ्यास है। उपभोक्ता : उपभोक्ता होने के लिए सामान्य बंैकिगं : वरमत् ान मंे लगभग बंैक मंे खाता होना आवश्यक नहीं है। प्रत्यके व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बंैक उपभोक्ता की श्ेरणी में वह व्यक्ति भी आता है जिसका खाता तो बैकं में नहीं होता है लके िन बंैक उसे सवु िधाएं प्रदान पीएनबी जोहार दरण्प 16 छत्तीसगढ़ एवं झारखण्ड राज्य की अर्धवार्िष क हिन्दी पत्रिका
उस व्यक्ति के रिक्त स्थान को भरने के सबसे प्रमखु है। ऐसा इसलिए भी है लिए किसी अन्य को उस योग्य बनाता है की उपरोक्त उदाहरण लगभग प्राकृतिक उसे आगे बढ़ने की हिम्मत देता है। हम घटनाएँ हैं जो चलती रहतीं हंै, घटती पल पल अलगाव को जीते हैं, बस हमंे रहती हंै, जिसपर हमारा ज़ोर कम होता पता नहीं चलता। जसै ,े जब हम साँ स है, जिसे हम खुद नियं त्रित नहीं कर लते े हैं और लेने के बाद उसे ना छोड़ा सकत।े सिर्फ़ आदत और रिश्ते ही ऐसे जाए, उस हवा को ना अलग किया जाए घटक हंै जिनपर इंसान का ज़ोर होता तो हमारे प्राण पखरे ू उड़ जाएँ गे। यहाँ है, जिसका चनु ाव आपके हाथ में होता भी अलगाव हमंे पल पल जीवन प्रदान है, जिसे आप जब चाहें बदल सकते हंै, करता है। छोड़ सकते हंै। आदत और रिश्तों का तलु नात्मक अध्ययन भी करंे तो पाएँ गे की जब शरीर को कोई अगं ख़राब हो रिश्तों का पलड़ा थोड़ा भारी होगा, अगर जाता है, इस स्थिति में आ जाता है कि मरे ी माने तो। मेरा मानना इसलिए भी उसका उपयोग नहीं किया जा सकता सही है की आदतंे तो आपकी बनायी हुई और उसका रहना जीवन मंे बाधक होता हैं उसे आप खदु पर नियं त्रण कर बदलने है तब भी उस अंग को शरीर से अलग की पहल कर सकते हैं और वो बदल भी कर देना उचित होता है।आपके आचरण जायगंे ी। लके िन रिश्तों की प्रकृति थोड़ी में भी कई आदतंे और बरु ी लतें भी ऐसी अलग होती है जसै े कु छ रिश्ते आपको होतीं हैं जिनसे अलगाव कर आप अपना जन्म के साथ विरासत में मिलते हंै तो और अपने लोगों का जीवन और भविष्य कु छ चाहे अनचाहे आपसे चिपक जाते बदल सकते हंै। हैं, कु छ यँ ू ही बन जाते हैं। रिश्ते भी कई प्रकार के होते हैं मखु ्यतः स्थायी और रिश्तों मंे भी अलगाव की महत्वपरू ्ण अस्थायी रिश्ते ज़्यादा देखे जाते हंै। कु छ भमू िका होती है। अगर मरे ी मानें तो रिश्ते स्थायी होते हंै जैसे जो रिश्ते हमंे रिश्तों मंे अलगाव की भमू िका ऊपर वर्णित सभी अलगाव के उदाहरणों मंे अंचल कार्लया य, रायपुर 31 वरष् : 2021-22, अंक-4, अक्ूट बर-मार्च 2022
जन्म के साथ मिलते है जसै े माँ बाप,भाई बहन, दादा दादी और की सिर्फ़ ग़लत ही नहीं बल्कि एक ख़तरनाक पहल होती है। ऐसे अनेक रिश्ते। कु छ अस्थायी होते हैं जसै े पड़ोसी, दोस्त, हम हमेशा यह सोचं ते हंै की अगर उनसे बिछड़न होगा तो हम सहकर्मी, व्यावसायिक साझदे ार इत्यादि। अस्थायी रिश्तों मंे भी किसे अपना कहेंग,े कै से हमारा काम चलेगा, हमारे बरु े समय कु छ ऐसे होते हंै जिनपर हमारा बस नहीं चलता जसै े हम चाह में कौन हमारी मदद करेगा। उस बिछड़न के वियोग में हम यह कर भी पड़ोसी नहीं बदल सकते। ध्यान नहीं दे पाते की यही तो है जो हमारे बुरे समय का इंतेज़ार कर रहा है और बुरा समय आने पर हाल को और बदतर बना अब चर्चा करते हैं रिश्तों से अलगाव की बात पर। उपरोक्त देगा। फिर उस दिन अतं तः आप बिछड़न की राह को चुनंगे े और जितने भी रिश्ते बताए गए हंै गिनाये गए हैं उन सभी मंे से कु छ इस पश्चाताप के साथ अलगाव कर लेगं े की काश ये पहल हमने रिश्ते आपकी सेहत के लिए अच्छे होते हैं, कु छ बरु े होते हैं। हो उस समय की होती तो आज ये दरु ्दशा नहीं होती। सकता है की किसी किसी के लिए सभी के सभी रिश्ते अच्छे हो,ं जिसकी सम्भावना थोड़ी कम ही होती है लेकिन चँू कि अपवाद तो इस प्रकार हमने बिछड़न के सकारात्मक बिंदओु ं को का भी अपना एक रेज़र्वेशन होता है तो कु छ अपवाद पाए जा देखा। बिछड़न देखने और सनु ने में तो एक नकारात्मक शब्द है सकते हैं। ख़ैर यह तो हर इंसान के हिसाब से बदलती रहती लेकिन अगर थोड़ी गहराई में गोते लगाया जाए तो इससे एक है। अब जो अच्छे रिश्ते होते हंै, वो बहुत ही क़ीमती होते हंै, नहीं अनके सकारात्मक पहलू निकलकर सामने आयंगे े। वह रिश्ते आपकी आपके अपनों की परवाह करते हैं, बरु े वक़्त पर साथ देते हैं, अच्छे कामों मंे सहयोग करते हंै, आपकी फ़िक्र करते हैं, आपकी अनपु स्थिति में आपके परिवार का देखभाल और रक्षा करते हैं, सदैव आपकी भलाई और कल्याण के बारे में सोचं ते हंै, सही राह दिखाते हंै और अच्छी आदतों से दोस्ती भी कराते हैं। ऐसे रिश्तों को हमेशा सहेजना चाहिए, इनकी कदर करनी चाहिए और अपने हृदय में जगह भी देनी चाहिए। अब आते हैं बरु े रिश्तों पर, बरु े रिश्ते वसै े रिश्ते होते हैं जो आपके सामने तो अपने पन का परु ज़ोर दिखावा करेंगे और दसू री तरफ़ अपनी ज़हरीली दाँ तों की धार भी तेज करते रहते हंै ताकि समय मिलते ही प्रेम भाव से ऐसा डँसे की आपको पता भी ना चले और आप निपट भी जाए। ऐसे लोग मीठी ज़हर के समान होते हंै। ये लोग ठीक उस जीव की तरह होते हैं जो आपको बताते हंै की आप ऊपर चढ़ो मैं नीचे से आपकी मदद कर रहा हँू लके िन वो वास्तव मंे आपका परै खिं चने का काम कर रहे होते हैं। जीवन का असल अनुभव ऐसे लोगों की पहचान करना ही है। कई बार आपको यह पता भी होता है की वे लोग कौन है, फिर भी हम अलगाव के डर से उनको अपनाते रहते हैं जो पीएनबी जोहार दर्णप 32 छत्तीसगढ़ एवं झारखण्ड राज्य की अरध्वार्षि क हिन्दी पत्रिका
मजं िल रख दो न मिली तो क्या माँज माँज के चेहरे हैं चमके कु छ तो रूप दिखाने रख दो। नई राह ढूंढ लंेगे तेरे लब है और तरे ी ही दुआ हम वो मुसाफिर नहीं मरे े मन्नतों को पैताने रख दो॥ जो चलना छोड़ दंेगे कु छ ऐसी नशा हो कि होश न आए कदम चलते रहेंगे आज शाम मझु े मैयखाने रख दो। जब तक श्वास है किस गली जीवन की शाम ढल जाए परिस्थिति से परे कु छ लकड़ियाँ चित्ता मंे जलाने रख दो॥ स्वयं पर हमंे विश्वास है इस पहचानी बगे ैरत दुनिया मंे आए अब तूफ़ान या कु छ चहे रे अनजाने रख दो। आधं ियां हो कई बात मरे े मानो यारा या तो हम वो परिं दे नहीं फिर से नए बहाने रख दो॥ जो उड़ना छोड़ देंगे इक जादू है उन आँखों में भाई डू ब न जाऊँ होश ठिकाने रख दो। नंगे लोग घमू रहे लाचार उनके कपड़े कु छ पुराने रख दो॥ सह न पाऊँ जमाने के तोहमत मरे े कु छ अलग जमाने रख दो मन भर गया सुकँू से ‘बाबा’ मरे ी खुशियाँ तहखाने रख दो॥ डॉ. मयरू ा श्रीवास्तव दीपक राम मुख्य प्रबधं क वरिष्ठ प्रबंधक सुरक्षा मडं ल कार्यला य, रायपरु डल: राचँ ी उत्तर व राँची दक्षिण अंचल कार््यालया य, रायपरु 33 वरर्ष्ष : 2021-22, अकं -4, अक्टू बर-मार्च 2022
मरे ा गावँ ऋषि एस. पाण्डेय कड़ी धूप मंे एक हलकी सी, एकल खिड़की संचालक छावँ ढूँढ रहा ह।ूँ मडं ल कार्यालय : बिलासपुर बड़े-बड़े शहरों के बीच ‘ऋषि’ मंै अपना छोटा-सा गाँव ढूँढ रहा हूँ। जब भी शहर की धूप, शरीर को विचलित करती है। मरे े गाँव की यादें, मन को तपृ ्त कर देती हंै। मरे े गाँव का कच्चा मकन, मझु े आज भी याद करता होगा। जो गया, फिर लौटा नहीं, खुद से आज भी कहता होगा। शहर की ऊँ ची ईमारत, कितनी भी मजबूत हो उसमंे बहुत सूनापन है। मेरे गाँव का मकन छोटा है, लके िन उसमंे बहुत अपनापन है। वो खेत, फसलें और पगडंडियां मझु से कभी बिछड़ंेगी नहीं। क्योंकि मंै आज भी उनमं,े छोटा-बच्चा बन कर भटक रहा हँ।ू बड़े-बड़े शहरों के बीच ‘ऋषि’, मैं अपना छोटा-सा बचपन ढूँढ रहा ह।ूँ पीएनबी जोहार दरपण् 34 छत्तीसगढ़ एवं झारखण्ड राज्य की अरव्ध ार्िष क हिन्दी पत्रिका
उम्र तो महज़ नम्बर होते हैं लोग अक्सर कहते पाये जाते हैं की… बाबू से भैया, भैया से अंकल बनाता है… उम्र तो महज़ नम्बर होते हंै… और ….रिश्तों के पाठ पढ़ाते सिखाते… फ़रमाया भी सही है सबने… बडु ्ढा बुड्ढी भी हमको कहलवाता है… क्यूँकि…वह नम्बर ही तो होता है जब… इसलिए भी शायद उमर नम्बर कहलाता है… लोग लल्ला कहकर… माँ बाप और लंगोटिए यारों… को बस… पावँ जमीं पर… धरने ना देते हैं… ये नम्बर चकमा नहीं पाता है… फिर बदलकर नम्बर ही तो… चाहे जितने भी बढ़ा ले आँकड़े ये… लल्ला लाल बन जाता है… माँ बाप के लिए उसका बाबू और… सपने… अपने और अपनों के … पूरा करने और यारों का यार ही कहलाता है… बढ़ते नम्बर के साथ बड़ा होता जाता है… सलाम है उनलोगों को… जो इस नम्बर को आइना दिखाते हंै… नम्बर ही तो है वो… ये बढ़ती उमर बता उन्ंहे डराते हंै… तो जो… जीवन के हर पड़ाव से… वो… दिल तो अभी बच्चा है जी… नज़दीकी गुफ़्तगू कराता है… और और… अभी तो मंै जवान हूँ समेट कर खट्ेट मीठे अनुभवों को… कह उस नम्बर को महँु चिढ़ाते हंै। कारवाँ जीवन का आगे बढ़ाता है…, यही तो हैं वो लोग… जो हर पड़ाव पर कहत…े पाए जाते हंै की नम्बर ही तो हमें योग्य बनाता है… उम्र तो महज़ नम्बर होते हैं ॥॥ और सवे निवृत्ति भी कमबख़्त यही नम्बर करवाता है… दौड़ना भी हमें सिखाता है और… सजु ीत कु मार सिंह व्हील चये र भी यही दिलाता है… खले इस नम्बर का इतना निराला है… प्रबधं क जो बढ़ती उमर हमारी बताता है और… अचं ल कार्यला य, रायपुर पल पल घटती जीवन का एहसास भी कराता है… तभी तो उमर महज़ नम्बर कहलाता है… वरर्षष् : 2021-22, अकं -4, अक्टू बर-मार्च 2022 चहे रे पर झुर्िर याँ और सफ़े द बाल भी तो… यही नम्बर दे जाता है… जाने कब हमें हँसाते खेलात…े अंचल कार््यायालय, रायपुर 35
Search
Read the Text Version
- 1 - 44
Pages: