पूर््वाचं ल दर्प्ण एचपीसीएल, पूर्वी अंचल एवं पूर्व् मध््याचां ल की हिं दी गृह पत्रिका 5अकं हिन्दुस्तान पटे ्रोलियम कॉर्पोरशे न लिमिटेड (भारत सरकार उपक्रम) 771, परू ््वांचा ल भवन, आनदं पुर, कोलकाता, पश्चिम बगं ाल - 700107
प्रबंधकीय मडं ल पूर््वांचल दर्पण् एचपीसीएल, परू ्वी अचं ल एवं पूर््व मध््यााचं ल की हिं दी गहृ पत्रिका मखु ्य सरं क्षक अनकु ्रमणिका श्री मोहित धवन क्र शीर््कष रचनाकार पृष्ठ मुख्य महाप्रबधं क (प्रभारी) परू ्वी अंचल 1 मखु ्य महाप्रबं धक (प्रभारी) परू ्वी अंचल का सं देश 4 संरक्षक 2 मखु ्य महाप्रबं धक परू ््व मध््यांचल का सं देश 5 आलेख, कहानी एवं अन्य ेलख सं ेदश श्री सी आर विजय कु मार 3 प्रमुख-राजभाषा का सं देश 6 मुख्य महाप्रबधं क 4 सम्पादकीय 7 परू ्व् मध््यांचल 5 हिंदी से प्रेम मकु े श कु मार 12 मार्दग् र्कश् 6 एचपीसीएल और हमारा जीवन अर््णव साहा 15 श्री सशु ील कु मार रॉय 7 अच्ेछ और बरु े व्यवहार का प्रतिदान अभिषेक कु मार गुप्ता 16 महाप्रबन्धक (प्रभारी)-एलपीजी एसबीयू, पूर्वी अंचल 8 साईबार अपराध शिशिर कु मार नाग 17 सम्पादक 9 जल है तो कल है जगदीप मरु्मू 18 श्री अतनु चट्टोपाध्याय 10 स्वच्छ हवा सनु ील कु मार 19 सहायक प्रबंधक-राजभाषा 11 प्लास्टिक/ पोलिथीन मकु ्त भारत नईम अहमद 20 पूर्वी अचं ल एवं पूर््व मध््यांचल 12 आध्यात्मिकता और काम : अर््थ और परू ््तति की एक खोज भाबना गरु ु 21 सह सम्पादक 22 13 कु म्हार की चिंता अभय कु मार श्री राजशे ्वर प्रसाद 14 मास्टर मोसाय की स्कू टी हरे कृ ष्ण सरदार 24 वरिष्ठ प्रशासनिक सहायक-राजभाषा 15 राजभाषा आपकी व्यावसायिक सहयोगी अमित गपु ्ता 26 16 किताबेंे पढ़ने की आदत का महत्व प्रियं का कु मारी 28 17 दल्ली राजहरा भ्रमण लक्ष्मी नारायण ध्रुव 29 18 अभिव्यक्ति की आजादी आनं द लोहरा 30 19 धन्यवाद एचपीसीएल सुबल चन्द्र दास 33 20 लसू िफ़े र सायन साहा 34 21 एचपीसीएल और हमारे जीवन मेंे इसकी भमू िका कृ ष्ण कन्ैहया 36 22 आधुनिक तकनीकी का हमारे जीवन पर प्रभाव अनुपम कु मार 37 23 भारतीय दर््शन मेंे पं चतत््वोों का महत्व कल्पतरु भट्टाचार््य 38 24 स्वच्छ भारत : एक स्वप्न या साध्य रिजवान अपसर 42 25 हमारी हिंदी भाषा प्रकृ ति की ध्वनि ॐ की देन है राजशे ्वर प्रसाद 42 26 अब कौन हमेंे समझाएगा नितिन श्रीवास्तव 43 काव््यांजलि27 समय का महत्व अभिनीत सक्नेस ा 44 28 सीमा पर कठिनाइयाँ 44 रिजवान अपसर चिंता मकु े श कु मार 45 29 एवं देबाशीस नं दी जीवन प्रकाश 46 अन्य कवितायेें प्रमोद कु मार महापात्र 46 मोहम्मद सलीम खान 30 स्त्री की वही पहचान अशोक कु मार सिंह 31 फर््क प्रियं का सिंह 32 नवोन्मेषी पहल के रूप मेंे \"नवोत्कर््ष\" कार््यक्रम का आयोजन 11 33 \"राजभाषा प्रबं धन-नए आयाम\" विषय पर सं गोष्ठी का आयोजनअन्य 47 34 विज्ञापन 52 नोट : पूर््वााचं ल दर््पण पत्रिका मेंे प्रकाशित विचार लेखकोों के अपने हैैं। इससे संपादक मंडल अथवा हमारे ससं ्थान का सहमत होना अनिवार््य नहीीं है। रचनाओं की मौलिकता और उनमेंे प्रस्ुतत तथ्ययों, आकं ड़ों आदि की यथार््थता के लिए भी संबधं ित लेखक ही जिम्मदंेम ार है। निःशुल्क व आतं रिक वितरण हेतु मदु ्रित व प्रकाशित। मदु ्रण एवं पत्रिका डिजाइन : अंजनी प्रकाशन, कोलकाता, पश्चिम बगं ाल, मो. 8820127806, ई-मेंले : [email protected]
स्वच्छ हवा सनु ील कु मार क हा जाता है कि जीवन जीने के लिए 3 सबसे महत्वपूर््ण चीजों कि जरूरत सहायक प्रबंधक-अभियंत्रण होती है भोजन, जल एवं हवा। भोजन के बेगसू राय रिटले क्षेत्रीय कार््ययालय बिना मनषु ्य महीनों भर जिन्दा रह सकता है, पानी के बिना 2 से 3 दिन तक लके िन हवा के बिना मानव के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हवा हमारे लिए जरूरी ही नही,ं बल्कि सबसे जरूरी चीज है। जो कि कई बीमारियों को बुलावा देती हैंै। वायु प्रदषु ण सार्व्जनिक जब हवा हमारे शरीर के अदं र पहुँुचता है यानि हमारे फे फड़़ों तक, तो स्वास्थ्य समस्या है। वैश्विक स्तर पर नीति-गत समाधान की जरूरत अपनी एक बहुमलू ्य वस्तु हमारे खनू को देती है और जिस समय वह है। सरकार की नीतियों को अमल करते हुए व्यक्तिगत तौर पर भी बाहर जाती है तब हमारे खून का बहुत सारा जहर अपने साथ लके र कोशिश हो कि हमारे आस-पास की हवा शदु ्ध हो सके । हम जिस हवा आती है जिससे हमारा खून साफ होता है और हम रोग-मुक्त रहते मेें साँ स लेते हैैं, उसे स्वच्छ रखना हमारी जरूरत है। यदि वायु प्रदषु ण हैंै। लेकिन क्या जो हवा आजकल हम ले रहे हैंै वह वाकई मेंे स्वच्छ को कम किया जा सके तो लाखों लोगों कि जाने बचाई जा सकती हैंै। है। पूरी दनु िया मेें जो ग्लोबल वार््मििंग हो रही है जिसके कारण हवा प्रदषू ित हो रही है और हम दिन पर दिन बीमार होते जा रहे हैैं जो कि अगर मनषु ्य को शुद्ध हवा चाहिए, तो सिर््फ पर््ययावरण दिवस ही बहुत ही गं भीर मामला है। नहीं है पड़े -पौधे लगाने के लिए बल्कि हमेें हमेशा प्रयास करना चाहिए कि अधिक से अधिक पड़े लगाये और पर््ययावरण को स्वच्छ रखने मेंे सच तो यही है कि दनु िया मेंे कहीं भी चले जाएँ , शुद्ध हवा अहम योगदान प्रदान करेें। लोगों मेंे पर््ययावरण के प्रति जागरूकता के लिए तरसना पड़ता है और वास्तव मेंे यही स्वच्छ हवा-वायु प्राण फै लानी चाहिए ताकि सभी लोगों को ये समझ आ जाये कि शुद्ध हवा है जो जिंदगी का बहुत ही आवश्यक तत्व है। शदु ्ध हवा मेंे जहर मेें साँ स लने ा कितना जरूरी है। लोग अपने घरों के पास कम से कम घलु ने का स्तर चरम सीमा पर है जिसे वायु प्रदषु ण कहते हैैं। देश के 2 पेड़ तो लगा ही सकते हैैं। शहरों मेें जिस तरह से लोग साँ स लते े हैंै वह बहुत ही प्रदषू ित हवा है लके िन इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी मेंे और कोई चारा ही कहाँ है। सभी लोगों को स्वच्छ हवा और पीने का शुद्ध पानी तो चाहिए लोगों को अपनी आवश्यकता की पूर््तति करने के लिए गांवों से बाहर ही जीवन जीने के लिए। इसके लिए तो पर््ययावरण को बचाना ही जाना पड़ता है और शहर मेंे काम करते हुए उन जहरीली हवाओं का होगा। पर््ययावरण जैस-े जसै े नष्ट होगा, हवा और पानी की उपलब्धता भी सवे न करना पड़ता है जो कि कल-कारखानो,ं मोटर गाड़ियों एवं और शदु ्धता प्रभावित होती जायेगी। बेहतर जीवन के लिए इन दोनों नशीले पदार्थथों के सवे न से निकलते हैैं जो कि हमारे शरीर के लिए की उपलब्धता और शुद्धता जरूरी है। सही नहीं है। अब पर््ययावरण को बचाने का एक मात्र उपाय है कि अधिक से ताप बिजली घरों कि चिमनियों से निकलने वाली गैस, कोयलों अधिक पड़े -पौधे लगाय।े अपने घरों और कार््ययालय के आस-पास मेें की राख के कण, फसलों मेंे कीट-नाशकों का उपयोग, नशीली पदार्थथों भी पौधे लगाने चाहिए जो 24 घं टे ऑक्सीजन देते है। आओं हम का सेवन इत्यादि कारण है, हमारे वायु प्रदषु ण के । डीजल की गाड़ियों सब मिलकर अधिक से अधिक पड़े लगाये और पर््ययावरण को स्वच्छ या जेनरेटरों से निकलने वाले धँ ुए मेें ऐसे खतरनाक तत्त्व होते हैैं रखने मेें अहम योगदान देें। \"अपनी सरलता के कारण हिं दी प्रवासी भाइयोों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई।\" - भवानीदयाल सनं ्यासी 19 हिं दसु ्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरशे न लिमिटेड, एचपीसीएल, परू ्वी अंचल एवं पूर्व् मध््यांचल की हिं दी गहृ पत्रिका
अनपु म कु मार प्रबंधक-वित्त रांची ल््ययूब क्षेत्रीय कार््ययालय, रांची आधनु िक तकनीकी का हमारे जीवन पर प्रभाव आ ज का युग विज्ञान का युग है। जीवन के हर क्षेत्र मेें विज्ञान तक सरू ज की रौशनी भी नहीं देखत।े जब आपस मेंे मिलेेगं े ही नहीं तो और उस पर आधारित तकनीक का बोल-बाला है। हम मित्रता कै से बढ़ेगी, भाईचारा कै से बढ़़ेगा। यदि किसी वजह से साथ तकनीक पर इतने ज्यादा निर््भर हैैं कि अब उसके बिना जीवन की मेंे बठै े तो भी मोबाइल मेंे लगे रहते हैैं। एक दसू रे को कु छ कहना हो कल्पना भी सं भव नहीं हैैं। तकनीक के इस प्रयोग ने हमारे जीवन को तो बोलने कि बजाय मसै ेज भजे ते हैंै। जवाब भी मसै जे से मिलता है। काफी सवु िधाजनक बना दिया है। चाहे घर का काम हो, यातायात के साधन हो या औद्योगिक उत्पादन हो, सब कु छ आधुनिक तकनीक के घरों मेें पहले लोग साथ मेंे खाना खाते थे। रात को पूरा परिवार सहारे पहले से बहे तर और तजे गति से हो रहा है। जीवन को सखु ी साथ मेंे बठै कर टीवी देखता, एक दसू रे से बातेंे करते। यदि टीवी न और सरु क्षित बनाने के लिए एक से बढ़कर एक आविष्कार हो रहे हैंै। हो, तो जाकर पड़ोसियों से बातेें करत।े अब लोग बाहर से आते ही इसका मानव समाज को बहुत लाभ हो रहा है। अपना-अपना मोबाइल लेकर बैठ जाते हैंै। परिवार वालों को आपस मेें बात करने का समय ही नही।ं बच्चे माता-पिता से बात करने के इस बात मेंे कोई शक नहीं है कि तकनीक हमारे जीवन का बजाय मोबाइल पर चैट करना ज्यादा पसं द करते हैंै। अभिभावकों को अतिआवश्यक अगं बन गई है और इससे हमेंे बहुत लाभ भी हुआ पता ही नहीं चलता कि मरे े बच्चे के जीवन मेें क्या हो रहा। एक दसू रे है। किन्ुत आधनु िक तकनीक की इस चकाचौधं मेंे मानवीय सं वदे नाएं के प्रति जो भावनात्मक लगाव हुआ करता था, वो दिनो-ं दिन कम हो जिस तरह मजाक बन कर रह गई है, उस तरफ बहुत कम लोगों का रहा है। कई बार कं प्टूय र के दसू रे छोर पर बैठे अनजान व्यक्ति से हम ध्यान गया है। लोगों के पास अब एक दसू रे के लिए समय ही नहीं घं टों बात करते हैैं, उसके साथ अपनी कई बातेें साझा करते हैैं पर रहा। लोग या तो काम मेें व्यस्त रहते हैैं या आधनु िक उपकरणों मेंे अपने परिवार वालों के साथ कई दिनों तक बातेें नहीं होती। इससे लगे रहते हैंै। मोबाइल-कं प्ूटय र-इंटरनटे से लोगों को फु र््सत ही नहीं परिवार के सदस््योों का एक दसू रे पर जो प्रेम हुआ करता था, अब वसै ा मिलता हैंै। नहीं रहा। एक ही घर मेंे रहकर भी लोग एक दसू रे के लिए अजनबी हैंै। तकनीक के आवश्यकता से अधिक प्रयोग से मनुष्य भावनाशनू ्य पहले बच्चे घर से निकलने और खले ने का बहाना खोजते थे। होता जा रहा है। किसी तरह मौका मिला नहीं कि मैदान की तरफ भागे। छुट्टियों के दिन मदै ानों पर परै रखने को जगह नहीं मिला करती थी। बच््चों का आधनु िकीकरण के शौक के कारण लोग अपने माता-पिता का जुननू नजर आता था। मदै ान मेंे भी बच्चे अपने खेलने की जगह बाँ ट सम्मान करना भलू गए हैैं। लते े थे कि किसकी टीम कहाँ खेलेगी। यदि कोई और उस जगह पर खेलने आ जाए तो घमासान मच जाता था। साथ मेंे खेलने से बच््चों वर््तमान युग विज्ञान का युग है। हर दिन एक नयी तकनीक का मेंे मित्रता कि भावना बढ़ती। आपस मेंे भाईचारा बढ़ता। आज हालत आविष्कार हो रहा है। लोगों का रहन-सहन, सोच-विचार बदल रहा बिल्कु ल उलटा है। बच््चों के लिए खले का मतलब हो गया है कं प्टयू र है। कं प्यटू र तथा इन्टरनेट ने पूरी दनु िया को एक शहर बना दिया है। गेमिंग। पूरा दिन निकल जाता है कं प्टूय र पर खेलते हुए। कई दिनों ऐसे मेंे हर कोई आधनु िक बनना और दिखना चाहता है। \"हिं दुस्तान की भाषा हिं दी है और उसका दृश्यरूप या उसकी लिपि सर््वगणु कारी नागरी ही है।\" - गोपाललाल खत्री 37 हिं दसु ्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरशे न लिमिटेड, एचपीसीएल, परू ्वी अचं ल एवं पूर्व् मध््यांचल की हिं दी गहृ पत्रिका
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