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मुंबई दर्पण, अंक-5, अप्रेल-जून, 2022...

Published by Anjani Prakashan, 2023-07-07 05:47:59

Description: मुंबई दर्पण, अंक-5, अप्रेल-जून, 2022...

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पंजाब एण्ड सिंध बकंै , अंचल कार्यालय, मबंु ई की तिमाही पत्रिका वर-्ष 2022-23, अंक-5, अप्रैल-जनू , 2022 MUMBAI 5अकं DARPAN जनू 2022 मंुबई दरपण् ‫ممبئی درپن‬ जहाँ सेवा ही जीवन ध्येय है। Where Service is a way of life.

24 जनू 2022 को 114 वरष् परू े होने पर 115वां स्थापना दिवस उत्साह के साथ मनाया गया। आंचलिक कार्यालय मंुबई और सभी शाखाओं ने कार्यक्रम आयोजित कर ग्राहकों को धन्यवाद दिया।

आचं लिक कार्यालय मंबु ई मंे दिनाकं 20-05-2022 को सतर्क ता जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया

मंबु ई दर्णप पंजाब एण्ड सिंध बैंक, अंचल कारम्बुं यालई दरयप्णमुंबई अंचल कार्यालय मुबं ई पंजाब एण्ड सिंध बंकै , अंचल कार्यालय, मुंबई की तिमाही ई-पत्रिका 27/29 अंबालाल दोषी मार्ग फोरट् मुंबई-400001 वर्ष-2022-23, अंक-5, अप्रैल-जून, 2022 ई-मेल : [email protected] , दूरभाष : 022-22626055 çca/kdh; eaMy अनकु ्रमणिका इस अंक में पृष्ठ संख्या सं पादकीय 4 5 आं चलिक प्रबं धक का सं देश 6 8 विद्यार्थी जीवन और राजनीति 10 12 जलवायु परिवरन्त एक अभिशाप 13 14 मीडिया के शिकं जे में फं सते बच्चे चार फूं दनो ं वाली टोपी भारत की सामाजिक समस्याएँ हवा और सूरज सरं क्षक संपादकीय श्री चमन लाल भाषा के बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि भाषा का सं बं ध सं स्ृक ति और सं स्कारों से है। इसके फील्ड महाप्रबधं क, मबुं ई अचं ल अलावा यह हमारी जीवन शैली एवं रीति-रिवाज स े भी जडु ़ी हुई है। पत्रिका एक साधन है जो भाषा के द्वारा स्थानीय उप संरक्षक सं स्ृक ति तथा सं स्कारों की खुशबू बिखेरती है। श्री भगवान चौधरी यह पत्रिका एक साधन है, जो हमारे विचारों को वाणी देने तथा लिपिबद्ध करने का कार्य करती है। हिन्दी भाषा विश्व की तमाम भाषाओं में से एक मधरु तथा वजै ्ञानिक भाषा है। सहायक महाप्रबंधक, मुंबई अंचल भारतीय सं विधान मंे राजभाषा का दर्जा प्राप्त हिन्दी मंे पत्रिका प्रकाशित करने से हिन्दी अपना सं देश लिए बृहत्तर क्षेत्र तक सहजता से पहुँचती है। “मं बु ई दर्पण” पत्रिका के माध्यम से हमारा निरन्तर प्रयास बना रहेगा कि मं ुबई सहित परू े राष्र्ट म ंे हिन्दी का उत्तरोत्तर विकास होता रहे तथा हिन्दी के प्रति सभी अपनी निष्ठा बनाए रखे।ं हिन्दी के प्रति हमारा लगाव एवं साहित्य के प्रति रूचि के फलस्वरूप “मं बु ई दर्पण” को आसान और रोचक एवं तथ्यपरक रूप से सँ वारने की हमारी कोशिश में कु छ त्रुटियाँ हो सकती हंै, भविष्य में इसमें और अधिक निखार लाने हेतु आपके सझु ाव एवं मार्गदर्शन अपके ्षित है। शभु कामनाओं सहित, (रवि यादव) राजभाषा अधिकारी अंचल कार्यालय मुंबई मार्गदर्शक सरबजीत सिं ह सहायक महाप्रबंधक 4यह गृह पत्रिका के वल आतं रिक परिचालन हेतु है। ‘मबुं ई दर्पण’ के इस अंक में प्रकाशित कोई भी सामग्री जैसे लेख, कविता पंजाब एण्ड सिंध बकैं , अंचल कार्ालय य, मबंु ई की तिमाही पत्रिका संबंधित लेखकों की है। इसमंे संपादक अथवा बकंै का कोई उत्तरदायित्व नहीं है।





मबंु ई दरणप् के रूप मंे ले सकता है। यदि वे अठारह वर्ष से अधिक आयु के हंै तो अपने मताधिकार का प्रयोग बड़ी ही सावधानी व विवके से करंे तथा अपने आस-पास स्वतं त्रता के पश्चात् विगत पाँ च दशकों में देश की राजनीति के समस्त लोगों को भी सही व योग्य व्यक्ति को ही अपना मत के स्वरूप मंे अत्यधिक परिवरनत् देखने को मिला है। आज देने हेत ु प्रेरित करें। विद्‌यार्थी स्वयं अपने मतों के मलू ्य को समझंे राजनीति स्वार्थी लोगों स े भरी पड़ी है। ऐसे लोग अपने स्वार्थ तथा दसू रों को भी इसकी महत्ता बताय ंे जिससे राष््टर के शासन की को ही सर्वोपरि मानते हंै, देश की सरु क्षा व सम्मान उनकी बागडोर गलत हाथों में न पड़ने पाए। प्राथमिकता नहीं होती है। विभिन्न अपराधों मंे लिप्त लोग भी आज देश के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हंै। भारतीय नागरिक विद्य‌ ार्थियों को अपनी शिक्षा प्राप्ति के दौरान ऐसी राजनीतिक होने के कारण हमारा यह दायित्व बनता है कि हम देश की गतिविधियों में भाग लने े से बचना चाहिए जिनसे उनकी सामूहिक राजनीति मंे बढ़ते अपराधीकरण को रोकंे । विद्‌यार्थियों को शिक्षा बाधित हो। आज के चतरु राजनीतिज्ञ अपनी स्वार्थ सिद्‌धि यदि राजनीति के मूल सिद्ध‌ ातं ों की जानकारी होगी, तभी वे हेतु विद्य‌ ार्थियों को मोहरा बनाते हैं। उन्हें तोड़-फोड़ तथा अन्य देश के नागरिक होने का करतव् ्य भली-भाँ ति निभा सकते हंै। हिंसात्मक गतिविधियों के लिए उकसाया जाता है। परिणामस्वरूप गाँ धी जी एक कु शल राजनीतिज्ञ थ,े हालाँ कि वे साथ-साथ विद्य‌ ार्थियों का अमूल्य समय नष्ट हो जाता है। महाविद्य‌ ालयों एक सं त और समाज-सधु ारक भी थे। आज के विद्य‌ ार्थियों को मंे छात्र-राजनीति मंे प्रवेश करने का अर्थ इतना है कि सभी छात्र उनके जीवन स े प्रेरणा लने ी चाहिए। लोकतं त्र की मूल भावना को समझें तथा साथ-साथ राजनीति के उच्च मापदंडों को आत्मसात् कर आवश्यकता पड़े तो राजनीतिक राजनीति में अपराधी तत्वों के समावशे को रोकने के लिए यह प्रवशे लके र राष््रट निर्माण की ओर कदम उठायं।े छात्र हमारे समाज आवश्यक है कि हम विद्‌यार्थी जीवन से ही छात्रों को राजनीति की के यवु ा वर्गों का सही अर्थों म ंे तभी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं जब शिक्षा प्रदान करंे। शिक्षकों का यह दायित्व बनता है कि वह छात्रों वे योग्यता से सं पन्न और चरित्रवान् हो।ं को वास्तविक राजनीतिक परिस्थितियों से अवगत कराय ें ताकि वे बड़े होकर सही तथा गलत की पहचान कर सकें । सभी विद्य‌ ार्थियों *** *** *** का यह करव्त ्य बनता है कि वह राष्टर्हित को ही सर्वोपरि समझंे। \"हिं दुस्तान की भाषा हिं दी है और उसका दृश्यरूप या उसकी लिपि सरवग् णु कारी नागरी ही है।\" – गोपाललाल खत्री 7 वरष-् 2022-2023, अंक-5, अप्ैलर -जनू , 2022











मबुं ई दरर्पण्प अश्लेषा भोसले अधिकारी फोर्ट शाखा भारत की सामाजिक समस्याएँ य द्यपि भारत वर्ष में विभिन्नता में भी एक दसू रे से नही ं मिलती है। सामाजिक समस्या है, जो कम होने या एकता कायम है तथापि हमारे देश में साम्प्रदाय जाति, क्षेत्रीय भाषा, दर्शन, इन विभिन्नताओं के परिणामस्वरूप हमारे घटने की अपके ्षा यह दिनोदं िन बढ़ती जा बोली, खान-पान, पहनावा-ओढ़ावा, रहन- देश मंे कभी बडे़-बड़े दंगे फसाद खड़े रही है। कालाधन, काला बाजार, मदु ्रा- सहन और कार्य कलाप की विभिन्नताएँ एक हो जाते हंै। इनके मूल मे ं प्रान्तीयता, स्फीति, महँगाई आदि सब कु छ भ्रष्टाचार छोर से दसू रे छोर तक फै ली हुई हैं। यहाँ भाषावाद, सम्प्रदायवाद या जातिवाद ही की जड़ से ही पनपता है। अगर निकट हिन्,ुद मुस्लिम, सिख, ईसाई, जनै , बौद्ध, होता है। इस प्रकार से हमारे देश की ये भविष्य मंे इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सनातन इत्यादि सभी स्वतं त्रतापूर्वक रहते सामाजिक बुराई राष्ट्रीयता में बाधा पहुँचाती हमने प्रयास नही ं किया तो यह निश्चय हैं। हिन्,दु मसु ्लिम, सिख, जैन, पारसी है। अंधविश्वास और रूढ़िवादिता हमारे देश हमारी बची खुशी सामाजिक मान्यताओं इत्यादि जाति और सम्प्रदाय के लोग निवास की भयं कर सामाजिक समस्या है। कभी को निगलने में देर नही ं लगायगे ी। करते हैं। यहाँ का धरातल कहीं पर्वतीय हे, तो कहीं समतल है, तो कहीं पठारी है किसी अपशकु न जो अंधविश्वास के आधार छूआछूत, जातिवाद और भाई-भतीजावाद और कही ं तो घने-घने जं गलों से ढका हुआ है। भाषा की विविधिता भी हमारे देश मंे पर होता है। इससे हम कर्महीन होकर हमारी सामाजिक समस्याओं की रीढ़ है। फै ली है। हमारे देश मंे कई भाषाएँ है और इससे कहीं अधिक उपभाषाएँ या बोलियाँ भाग्यवादी बन जाते हैं। इस प्रकार की सामाजिक समस्याओं के हंै। खान-पान, पहनावे आदि की विभिन्नता भी देखी जा सकती है। कोई चावल खाना नारी के प्रति अत्याचार, दरु ाचार, भ्रष्टाचार कारण ही सामाजिक विषमता बढ़ती जा पसन्द करता है तो कोई गेहँू, कोई मांस- या बलात्कार का प्रयास करना हमारी एक रही है। इसी के फलस्वरूप हम अभी तक मछली चाहता है तो कोई फल-सब्जियों पर लज्जापरू ्ण सामाजिक समस्या है। इससे रूढि़वादी और सं कीर्ण मनोवृत्तियों के बने ही प्रसन्न रहता है। इसी तरह से विचारधारा हमारी सामाजिक मान्यता का हास हुआ हुए हैं और चतरु ्दिक विकास में पिछड़े है, फिर भी हम चेतन नहीं हंै। दहेज हुए हैं। अशिक्षा और निर्धनता भी हमारी प्रथा जसै ी कु रीतियों को जन्मा कर नारी भयं कर सामाजिक समस्याएँ हंै। इनसे को बेरहम कष्ट देते हैं। उसे पीडि़त करते हमारा न तो बौद्धिक विकास होता है और हंै। भ्रष्टाचार हमारे देश की सबसे बड़ी न शारीरिक विकास ही। \"जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता।\" – देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद 13 वर्ष-2022-2023, अंक-5, अप्ैरल-जनू , 2022

मुबं ई दरर्प्पण हवा और ब हुत पहले की बात है, तब हवा और सरू ज में खूब अच्छी दोस्ती थी। पर एक दिन हवा और सरू ज में बहस छिड़ गई। हवा कह रही थी – “मंै सूरज बड़ी हँू।” अब कौन फै सला करे कि दोनों मंे कौन बड़ा है? इतने में दोनों को दरू सड़क पर चलता एक राहगीर दिखाई दिया। अचानक सरू ज के मन में एक बात मकु े श महाकालकर आई। बोला – “सनु ो हवा, जो इस राहगीर का कु रता उतरवा दे, समझो कि वह बड़ा है। क्या तमु तैयार हो अपनी ताकत आजमाने के लिए ?” अधिकारी अंचल कार्लया य मंबु ई हवा बोली - “हाँ , जरूर।” पहले हवा ने अपनी ताकत आजमाई। अभी थोड़ी देर पहले तो धीरे-धीरे सहु ावनी हवा चल रही थी, पर देखते ही देखते खबू जोर की आँ धी चलने लगी। सड़क पर चलते राहगीर ने कसकर अपने कपड़े पकड़ लिया, ताकि वे आँ धी मंे उड़ न जाएँ । अब हवा को गसु ्सा आया। उसने और भी तजे ी दिखाई। पर राहगीर ने अब कपड़े और भी कसकर पकड़ लिए थे। फिर भला वे कै से उड़ पाते ? हवा थक कर बोली - “सरू ज दादा, मै,ं तो सफल नहीं हो सकी। अब आप अपनी ताकत आजमाइए।” सूरज ने भी अपना प्रचं ड रूप दिखाना शुरू किया। देखते ही देखते खूब गरमी पड़ने लगी। राहगीर पसीन-े पसीने हो गया। उसने झट अपना कु रता उतारा और कं धे पर रख लिया। फिर उसी तरह आगे चल पड़ा। इसे हवा न े भी देखा और सरू ज ने भी। हवा बोली - “आज मंै समझ गई सरू ज दादा, आप ही बड़े हो।” फिर हवा और सरू ज दोनों एक साथ हँस दिए। उनके मन का सारा मैल बह गया था। दोनों की दोस्ती और भी पक्की हो गई। 14 \"उसी दिन मरे ा जीवन सफल होगा जिस दिन मैं सारे भारतवासियों के साथ शुद्ध हिं दी में वार्तालाप करूँ गा।\" – शारदाचरण मित्र पजं ाब एण्ड सिंध बकंै , अचं ल कार्यालय, मुबं ई की तिमाही पत्रिका

मुंबई दरप्ण अंचल कार्यालय मबुं ई के समस्त शाखाओं द्वारा 21 जनू , 2022 को आयोजित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की झलकियाँ 21 जनू को ही क्यों मनाया जाता है योग दिवस ? 21 जून के दिन को अतं र्राष्ट्रीय योग दिवस के लिए चुनने की भी एक वजह है। दरअसल, यह दिन उत्तरी गोलार््धद का सबसे लंबा दिन है, जिसे ग्रीष्म संक्रांति भी कह 15सकते हंै। भारतीय संस्ृक ति के दृष्टिकोण स,े ग्रीष्म सकं ्रांति के बाद सरू ्य दक्षिणायन हो जाता है और सूर्य के दक्षिणायन का समय आध्यात्मिक सिद्धियाँ प्राप्त करने में बहुत लाभकारी है। इसी कारण 21 जनू का दिन अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए निर्धारित किया गया था।वर्ष-2022-2023, अकं -5, अप्रैल-जून, 2022


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