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Published by sanjeev kumar, 2023-07-02 03:10:18

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अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था | अकबर की भूराजस्व नीति की विशेषताएं | मुगलों से पूर्व भू-राजस्व व्यवस्था | टोडरमल की भूमि व्यवस्था rojpadhegk.com/2023/04/blog-post_14.html Nitesh Kumar Verma  अकबर बहुमुखी प्रतिभा का स्वामी था। विभिन्न क्षेत्रों में उसके सुधारों में उसकी भूमि व्यवस्था विशेष प्रशंसनीय है। इस विभाग में उसने बहुत-से सुधार तथा परिवर्तन किए। इस कार्य में उसकी सहायता ख्वाजा अब्दुल मजीद तथा राजा टोडरमल ने की। सर्वप्रथम सु आरों की योजना ख्वाजा अब्दुल मजीद ने लागू की, जब उसे दीवान बनाया गया। उसने सरकारों में उपज के अनुसार के आधार पर लगान निश्चित करने का प्रयास किया। दूसरी ओर भूमि- कर निर्धारण उस समय हुआ, जब मुफ्फरपुर तुख्ती दीवान बना। अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था  Akbar's land revenue s ystem भू-राजस्व प्रशासन में प्रारम्भिक प्रयोग कृ षि योग्य भूमि तीन वर्गों में बाटी हुईं थी खालसा, जागीर तथा मदद-ए-माश। जागीरों के भू- राजस्व प्रशासन का दायित्व उनसे सम्बद्ध मनसबदारों का था एवं मदद-ए-माश के अन्तर्गत भूमि की आय पर धार्मिक व्यक्तियों का अधिकार होता था। राज्य के लिए खालसा भूमि ही राजस्व का साधन होती थी। • अकबर ने शासन की बागडोर वास्तविक रूप से अपने हाथों में सम्भालते ही राज्य की आय के अराजकता, मुख्य स्रोत भू-राजस्व की महत्ता को समझते हुए भू-राजस्व प्रशासन में व्याप्तदस्तावेज़ों में गड़बड़ी, किसानों के अनावश्यक शोषण एवं राज्य की आय में अनश्चितता की स्थिति को सुधारने एवं अपने साम्राज्य में भू- राजस्व प्रशासन में एकरूपता लाने के प्रयास चालु कर दिए। अकबर के प्रारम्भिक प्रयोगों में शाह मन्सूर, मुज़फ्फ़र खाँ तरबाती एवं राजा टोडरमल का विशेष योगदान था । 1/5

मुज़फ्फ़र खाँ तरबाती और राजा टोडरमल ने स्थानीय कानूनगो के दस्तावेज़ों का गहन अध्ययन किया था। राजा टोडरमल ने पुरे गुजरात की कृ षि लायक भूमि का सर्वेक्षण किया तथा उसके आधार पर वहां भू-राजस्व का निर्धारण किया। • बाबर तथा हुमायूं के शासनकाल में भू-राजस्व प्रशासन में कोई भी परिवर्तन नहीं किया गया था। इन दोनों ही बादशाहों को प्रशासनिक सुधार करने का न तो वक्त मिला एवं न ही उनमें नव-विजित साम्राज्य की जटिल भू-राजस्व व्यवस्था की जटिलताओं को समझ सकनें की योग्यता थी तथा न उसमें सुधार करने हेतु आवश्यक संसाधन इन लोगों ने पूर्ववर्ती भू-राजस्व व्यवस्था को लगभग ज्यों का त्यों बनाए रखा।  उसने सम्पूर्ण भूमि व्यवस्था को पुनः संगठित किया। 1573 ई0 में गुजरात के पश्चात् अकबर ने राजा टोडरमल को वहां के भूमि-प्रबन्ध के लिए भेजा। वह शेरशाह सूरी के समय में भी माल मंत्री के पद पर रहा था। अतः उसने बड़ी योग्यता तथा अपने पूर्व अनुभव का उपयोग करके वहां भूमि का प्रबन्ध किया । अकबर उसके भूमि-प्रबन्ध से बहुत प्रभावित हुआ। अब उसने बंगाल तथा बिहार को छोड़कर अपने शेष साम्राज्य में राजा टोडरमल द्वारा स्थापित भूमि प्रबन्ध को लागू किया। सम्पूर्ण मुगल साम्राज्य को 182 परगनों में बांट दिया गया। प्रत्येक परगना एक अधिकारी के अधीन कर दिया गया, जो करोड़ी कहलाता था, क्योंकि उन दिनों प्रत्येक परगने से लगभग एक करोड़ वार्षिक भूमिकर प्राप्त होता था। इस व्यवस्था में भी सुधार की आवश्यकता थी. क्योंकि इसमें कु छ त्रुटियाँ थी। • राजा टोडरमल के सुधार 1582 ई० में बादशाह अकबर ने राजा टोडरमल को दीवन-ए-अशरफ के पद पर नियुक्त किया। वह पदभार संभालते ही टोडरमल ने भूमि- सुधार की अपनी विस्तृत योजना लागू की। इसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है  (1). भूमि की ठीक-ठाक नाप करवाई अब तक भूमि की नाप सन की रस्सी से की जाती थी, जो भींगने पर सिकु ड़ जाती थी और सख्त गर्मी में फै ल जाती थी। इस दोष को दूर करने के लिए टोडरमल ने जरीबों से भूमि की नये सिरे से पैमाइश करवाई। जरीब बांसों में लोहे के छल्ले डालकर बनाई जाती थी, जिसके घटने-बढ़ने की संभावना नहीं रहती थी। इस पैमाइश को पटवारी के कागजों में स्थायी रूप से दर्ज कर लिया जाता था।  (2). भूमि का वर्गीकरण राजा टोडरमल ने प्रति बीघा उपज को निश्चित करने के लिए कृ षि योग्य भूमि को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा (क). पोलज भूमि- यह अत्यन्त उपजाऊ भूमि थी जिसमें वर्ष में दो फसलें पैदा की जाती थीं और धरती को कभी परती नहीं छोड़ा जाता था। 2/5

(ख). परौंती भूमि- यह द्वितीय श्रेणी की भूमि थी और कु छ समय तक फसलें उगाने के बाद उसकी उर्वरा शक्ति कम हो जाती थी। फलतः इसे कु छ समय के लिए परती छोड़ दिया जाता था, अर्थात् कु छ समय तक इस पर खेती नहीं की जाती थी। (ग). चाचर भूमि यह तृतीय श्रेणी की भूमि थी और इसकी उपजाऊ शक्ति बहुत - कम था। इसे तीन-चार वर्ष के लिए परती छोड़ना पड़ता था। (घ) बंजर भूमि - इस जमीन की उर्वरा शक्ति बहुत ही कम थी और इसे 5-6 या अधिक वर्षों तक परती छोड़ना पड़ता था ताकि यह अपनी उर्वरा शक्ति पुनः प्राप्त कर लें।  (3). औसत उपज निकालना प्रथम तीन प्रकार की भूमि को अलग-अलग तीनभागों में पुनः विभाजित किया जाता था बढ़िया, मध्यम तथा घटिया तीनों भागों की भूमि - की कु ल उपज की औसत उपज निकाल ली जाती थी और उस आधार पर ही सरकार उस भूमि पर अपना भाग निश्चित करती थी।  (4). राज्य का भाग अर्थात् लगान निश्चित किया राजा टोडरमल ने औसत उपज का 1/3 भाग लगाने के रूप में राज्य का भाग निश्चित किया।  (5). लगान नकद या अनाज के रूप में सरकार ने किसानों को छू ट दे दी कि ये लगान अपनी इच्छानसार नकद या अनाज के रूप में चुका सकते थे किन्तु सरकार नकद लगान लेना अधिक पसन्द करती थी। लगान को नकद मूल्य में परिवर्तित करने के लिए कम वर्षों के भावों का औसत निकाला गया और उसी के आधार पर राज्य का भाग निश्चित किया गया। इस भाग को पटवारी के कागजात में दर्ज कर दिया गया। अकाल, सूखा तथा अन्य प्राकृ तिक विपदाओं के समय लगान में कमी कर दी जाती थी। स्थिति गंभीर होने पर सारे का सारा लगान माफ कर दिया जाता था और किसानों में तकावी भी बांटी जाती थी। (6). भूमि-कर की वसूली अकबर ने जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी थी और किसान तथा सरकार का सीधा सम्पर्क स्थापित कर दिया था। फलतः लगान वसूल करने के लिए सरकार ने राजकीय कर्मचारियों की नियुक्ति की थी। ये अधिकारी अमीन कहलाते थे। इनकी सहायता के लिए बितिम्ची, पोहार, कानूनगो पटवारी तथा मुकद्दम आदि होते थे। लगान वसूल करने वाले कर्मचारियों को आदेश दिए गए थे कि वह लगान वसूल करते समय किसानों से सम्मानपूर्वक व्यवहार करें और जनहित को ध्यान में रखें। किसान स्वयं की राजकोष में धन जमा करा सकता था। पटवारी लगान प्राप्ति की रसीद देता था, सम्पूर्ण भूमि तथा भूमि-कर का विवरण रखता था। निश्चित लगान के अतिरिक्त एक पाई भी वसूल नहीं 3/5

की जाती थी। भूमि सुधार के लाभ अधिकांश विद्वानों ने अकबर की भूमिकर व्यवस्था की भूरी-भूरी प्रशंसा की है। लेनपूल को कहना है, \"आज तक मध्य युग के इतिहास में किसी भी व्यक्ति का नाम इतना ख्यातिपूर्ण नहीं माना गया है, जितना कि टोडरमल का और इसका कारण यह है कि अकबर के सुधारों में से कोई भी सुधार इतनी अधिक मात्रा में प्रजा के हितों की पूर्ति करने वाला न था जितनी कि इस महान् अर्थशास्त्री (टोडरमल) द्वारा की गई लगान की पुनर्व्यवस्था संक्षेप में इस लगान व्यवस्था के निम्नलिखित लाभ थे : (i) राज्य तथा किसानों का आपस में सीधा सम्पर्क स्थापित हो गया।  (ii) राज्य की आय निश्चित हो गई और लगान निश्चित होने से बेईमानी तथा भ्रस्टाचार के लिए कोई स्थान न रहा।  (iii) सरकारी कर्मचारी अब न तो किसी से मनमाना लगान वसूल कर सकते थे और न ही उन पर अत्याचार या दबाव डाल सकते थे।  (iv) किसान स्वयं लगान को राजकोष में जमा करवा सकता था। इससे उसके सम्मान में वृद्धि हुई। (v) प्रजा को बहुत से करों से राहत मिल गई और किसानों का भूमि पर स्वामित्व निश्चित हो गया। (vi) कृ षि उपज बढ़ी और किसान खुशहाल हो गए और अनाज सस्ता होने से जनसाधारण हो बहुत लाभ पहुँचा। निश्चय ही सरकार की यह व्यवस्था न्यायाचित तथा उदार थी। डॉ त्रिपाठी के अनुसार, “अकबर ने मालगुजारी की वह व्यवस्था की. जिसमें स्थायित्व का तत्व रहा और जिसे किसान समझ सकें । मालगुजारी की दरें बांध दी गई, जिसमें किसान तथा सरकार दोनों भावी लेन-देन की चिन्ता से मुक्त हो गए।\" जहांगीर ने अकबर की लगान व्यवस्था में कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया और इस प्रबन्ध को बनाए रखा । ♦अहदी एवं दाखिली सैनिक:-  मनसबदारों के सैनिकों के अतिरिक्त दो प्रकार के तथा घुड़सवार सैनिक थे जो 2 मुगल कालीन भारत और 'दाखिली' कहलाते थे। 'अहदी' सैनिक बादशाह द्वारा नियुक्त किये जाते थे एवं वे उसके अंगरक्षक के रूप में कार्य करते थे। यद्यपि इनका मनसबदारों से कोई सम्बन्ध न होता था किन्तु बादशाह के प्रत्यक्ष आदेश से इन्हें मनसबदारों के साथ नियुक्त कर दिया जाता था। 'अहदी' प्रत्यक्ष रूप से बादशाह के अधीन होते थे। इनके लिये पृथक दीवान एवं बख्शी की व्यवस्था की. गई थी। इन्हें वेतन भी अधिक मिलता था। 'अहदी' सैनिक का वेतन 500 रुपये प्रतिमास तक पहुँच 4/5

जाता था। आरम्भ में एक अहदी के पास आठ-आठ सवार होते थे किन्तु बाद में उसे पाँच सवार तक रखने की आज्ञा दी गई। प्रति चार मास पश्चात अहदियों का निरीक्षण किया जाता था। 'दाखिली' वे सैनिक थे जिनकी नियुक्ति राज्य द्वारा होती थी तथा वेतन भी राज्य द्वारा दिया। • जाता था परन्तु वे मनसबदारों के नेतृत्व में कार्य करते थे।  ♦'अहदी' सैनिक विभाजन :- अकबर की सेना मुख्य रूप से चार भागों अथवा डिवीजनों में विभाजित थी। प्रथम, पैदल सेना थी जिसके अन्तर्गत, बन्दूकची, शमशेरबाज़ (तलवार चलाने वाले), दरबान, पहलवान, कहार आदि सम्मिलित थे। बादशाह स्वयं प्रधान सेनापति था तथा उसके अधीन अनेक सेनापति होते थे। दूसरे तोपखाना था जो 'मीर आतिश' अथवा 'दारोग-ए- तोपखाना' के अधीन होत तथा उसकी सहायता के लिये 'मुशरिफ' नामक पदाधिकारी की व्यवस्था थी। मीर आतिश अपने विभाग की सभी आवश्यकताओं को बादशाह के समक्ष रखता तथा उनके सम्बन्ध में स्वीकृ ति प्राप्त करता था। वह समय-समय पर तोपखाने का निरीक्षण करता था तथा रण-स्थल में तोपखाने की स्थिति को निश्चित करता था। तोपखाने के सैनिकों की नियुक्ति तथा उनकी पदोन्नति के सम्बन्ध में उसकी संस्तुति का महत्व था। तीसरे, घुड़सवार डिवीज़न था जो सेना का सर्वप्रधान अंग था। घुड़सवार सेना को संगठित करने के लिये बादशाह ने अनेक सुधार किया। घोड़ों को दागने की प्रथा पुनः प्रचलित की गई तथा मनसबदारी व्यवस्था के आधार पर इसे पुनर्गठित करने का प्रयास किया गया। चौथे, नौसेना थी किन्तु यह अधिक शक्तिशाली न थी। अकबर ने नौसेना के संगठन का कार्य 'मीर बहर' को प्रदान किया। वह नावों का निर्माण करवाता नाविकों की नियुक्ति करता, नदियों का निरीक्षण करता तथा चुंगी की वसूली करवाता था। इसके अतिरिक्त अकबर ने अपनी सेना में हाथियों का भी प्रयोग किया। हाथियों को दस, बीस तथा तीस के समूहों में संगठित किया गया तथा इसे 'हल्का' का नाम दिया गया। मनसबदारों को घोड़ों के अतिरिक्त एक निश्चित संख्या में हाथी भी रखने पड़ते थे। ♦मुगल भू-राजस्व व्यवस्था के गुण एवं दोष:- » महान मुगल शासकों की भू-राजस्व व्यवस्था मध्यकालीन परिस्थितियों को देखते हुए उदार तथा व्यवस्थित कही जा हैं। राजपूत, मराठा, सिक्ख एवं अन्य परवर्ती भारतीय शासकों के अतिरिक्त ब्रिटिश भारतीय शासकों ने भी मुगलों की भू-राजस्व प्रणाली को अपने भूमि-प्रशासन का आधार बनाया था। मुगल काल लगान कु ल उत्पादन पर नहीं अपितु लाभांश (बीज, खाद आ का खर्चा निकाल कर ) के आधार पर वसूला जाता था जब कि अंग्रेज़ों ने भारत में लगान निर्धारण में कु ल उत्पादन को आधार बनाया था इसीलिए मुगल काल की तुलना में ब्रिटिश काल में किसानों की दशा कहीं अधिक खराब थी । और पढ़ें 7.मनसबदारी व्यवस्था की विशेषताएं 5/5