उद्यमेन वह वसध्यस्मि कायामवण न मनषरथैः। न वह सप्तस्य वसंहस्य प्रविशस्मि मखे मृगा:।।
संस्कृ त श्लषक श्लषक 1:- न चोरहायफ न राजहायफ न भ्रिृभाज्यंि न च भारकारर !व्यये कृ िे िधफति एि तनत्यिं तिद्याधनिं सिफधनप्रधानम् !! तहन्दी अथफ : इसे न ही कोई चोर चुरा सकिा है, न ही राजा छीन सकिा है, न ही इसको संिभालना मुखिल है और न ही इसका भाइयोिं मंे बिंटिारा होिा है. यह खचफ करने से बढ़ने िाला धन हमारी तिद्या है जो सभी धन से श्रेष्ठ है. श्लषक 2:- आलस्यिं तह मनुष्याणांि शरीरस्थो महान् ररपुुः ! नास्त्युद्यमसमो बन्ुुः कृ त्वा यंि नािसीिति !! तहन्दी अथफ : मनुष्य का सबसे बड़ा शत्ु आलस्य है. मनुष्य का सबसे बड़ा तमत् पररश्रम होिा है क्ोतंि क पररश्रम करने िाला कभी िुखी नहींि रहिा अनन्या शमाफ आठिीिं अ मां मााँ, माँा त्वम् संिसारस्य अनुपम् उपहार, न त्वया सदृश्य कस्याुः स्नेहम्, करुणा-ममिायाुः त्वम् मूतिफ, न कोअतप कत्तफुम् शक्नोति िि क्षतिपूतिफ। िि चरणयोुः मम जीिनम् अखस्त, ‘माँा’शब्दस्य मतहमा अपार, न मााँ सदृश्य कस्याुः प्यार, माँा त्वम् संिसारस्य अनुपम् उपहार। तनशा कु मारी कक्षा- 8 ब
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