Important Announcement
PubHTML5 Scheduled Server Maintenance on (GMT) Sunday, June 26th, 2:00 am - 8:00 am.
PubHTML5 site will be inoperative during the times indicated!

Home Explore शाखा पुस्तिका ( अप्रैल, २०२२ )

शाखा पुस्तिका ( अप्रैल, २०२२ )

Published by Shrish Bhatt, 2022-03-29 16:49:33

Description: मासिक ई-शाखा पुस्तिका ( अप्रैल, २०२२ ), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उत्तराखण्ड

Search

Read the Text Version

╔═ ═╗ रा ीय यंसेवक सघं , उ राख ई - शाखा पु तका परमपू डॉ० कशवराव ब लराम हडगेवार “ महाम ल ेपु यभमू े वदथ, पत वषे कायो नम त ेनम त े ” चै - वशै ाख, िव मी स०ं - २०७९ अ लै - २०२२ ╚═ ═╝ 0

रणीय दवस अ ैल मास: चै -वैशाख ● ०१ ● ०२ (इस वष) गु तगे बहा र जय ती व० सं० १६७८,१६२१ ई० ● ०३ (इस वष) ○ व मी सवं त् २०७९, रा ीय शा लवाहन शक संवत् १९४४ नव वष ार भ, ● ०८ ○ चै -नवरा तार भ (चै शु ल तपदा) ● १० (इस वष) ● १३ ○ संघ सं थापक प०पू० डॉ. हेडगवे ार ज म दवस (चै शु ल तपदा) १ अ लै , १८८९ ई० ● १४ (इस वष) ○आय समाज थापना दवस (चै शु ल तपदा) १० अ ैल, १८७५ ई० ● १६ (इस वष) ○ भगवान झूलले ाल कट - दवस (झूलले ाल महो सव) ● २९ ○ स धी नववष ार भ, चै शु ल तीया व० संवत् १९४६ 1 ○ मंगल पा डे ब लदान दवस, १८५७ ई० ○ भगत सह एवं बटुके र द ारा द ली असे बली म बम फकना,१९२९ ई० ○ ी रामनवमी, चै शु ल नवमी ( ी राम ज मो सव) ○ समथ गु रामदास जय ती ज लयाँवाला बाग ब लदान दवस चै श.ु एकादशी, १९१९ ई० ○ दशम गु गो व द सह जी ारा खालसा प थ थापना दवस (३०-०३-१६९९), वैशाखी व.सं. १७५६ ○ डॉ. भीमराव अ बेडकर ज म दवस १८९१ ई० ○ भगवान महावीर जय ती (चै शु ल योदशी) हनमु ान जय ती (चै शु ल पू णमा) राजा र व वमा ज म दवस –♦♦◇ रा ाय वाहा, इदं रा ाय इदं न मम ◇♦♦–

।।ॐ।। रा ीय यसं ेवक सघं अ खल भारतीय त न ध सभा 11-13 माच 2022, कणावती - ाव - “ भारत को ावल ी बनाने हतु काय क अवसर बढ़ाना आव क “ ाकृ तक संसाधन क चुरता, मानवशि क िवपुलता और अंत न हत उ मकौशल क चलते भारत अपने कृ ष, िव नम ण, और सेवा े को प रव तत करते हुए काय क पय अवसर उ कर अथ व ा को उ र पर ले जाने क मता रखता ह। िवगत कोिवड महामारी क कालखडं म जह हमने रोजगार तथा आजीिवका पर उसक भाव का अनुभव कया ह, वह अनके नए अवसर को उभरते हुए भी दखा ह; जनका समाज क कु छ घटक ने लाभ उठाया ह। अ खल भारतीय त न ध सभा (अ.भा. .सभा) इस बात पर बल दना चाहती ह क रोजगार क इस चुनौती का सफलतापूवक सामना करने हतु समूचे समाज को ऐसे अवसर का लाभ उठाने म अपनी सि य भू मका नभानी होगी। अ.भा. .सभा का मत ह क मानव कि त, पय वरण क अनुकू ल, म धान तथा िवक करण एवं लाभ श का ायसंगत िवतरण करनेवाले भारतीय आ थक तमान (मॉडल) को मह िदया जाना चा हए, जो ामीण अथ वथा, सू उ ोग, लघु उ ोग और कृ ष आधा रत उ ोग को सवं धत करता ह। ामीण रोजगार, असगं िठत े एवं म हलाओ क रोजगार और अथ व ा म उनक सम भागीदारी जसै े े को बढ़ावा दना चा हए। हमारी सामा जक प र त क अनु प नई तकनीक तथा सॉ को अंगीकार करने क यास करना अ नवाय ह। यह उ खे नीय ह क दश क के भाग म उपयु िदशा पर आधा रत रोजगार सृजन क अनेक सफल उदाहरण उपल ह। इन यास म ानीय िवशषे ताओ, तभाओ और आव कताओ को भी ान म रखा गया ह। ऐसे अनेक ान पर उ मय , वसा यय , सू िव सं ान , यं सहायता समूह और ै क सगं ठन ने मू -व धत उ ाद , सहका रता, ानीय उ ाद क िवपणन और कौशल िवकास आिद क े म यास ारभं कए ह। इन यास ने ह श , खा सं रण, घरले ू उ ाद तथा पा रवा रक उ म जैसे वसाय को बढ़ावा िदया ह। उन सभी अनभु व को पर र साझा करते हुए जह आव कता ह वह , उ दोहराने क बारे म िवचार कया जा सकता ह । 2

कु छ शै क व औ ो गक सं ान ने रोजगार सृजन क काय म उ ेखनीय योगदान िदया ह| अ.भा. .सभा दुबल एवं वं चत घटक स हत समाज क बड़ भाग को ायी रोजगार उपल कराने म स म यशोगाथाओ क सराहना करती ह। समाज म ' दशी और ावल न क भावना उ करने क यास से उपयु पहल को ो ाहन मलगे ा| उ रोजगार मता वाले हमारे िव नम ण े को सु ढ़ करने क आव कता ह, जो आयात पर हमारी नभरता भी कम कर सकता ह। श ा और परामश ारा समाज, िवशषे कर यवु ाओ म उ मता को ो ाहन दने वाला वातावरण दना चा हए, ता क वे कवल नौकरी पाने क मान सकता से बाहर आ सक। इसी कार क उ मशीलता क भावना को म हलाओ, ामीण , दूर और जनजातीय े म भी बढ़ावा दने क आव कता ह। श ािवद्, उ ोग जगत क परु ोधा, सामा जक नेतृ , समाज, संगठन तथा िविवध सं ान इस िदशा म भावी भू मका नभा सकते ह और उसक लए यह आव क ह क सरकारी तथा अ यास इनक साथ मलकर चल। अ.भा. .सभा अनुभव करती ह क ती ता से बदलती आ थक तथा तकनीक प र क वै क चुनौ तय का सामना करने क लए हम सामा जक र पर नवो ेषी प तय ढूँढनी ह गी। उभरती ड जटल अथ व ा एवं नय त क स ावनाओ से उ रोजगार और उ मता क अवसर का गहन अ ेषण कया जाना चा हए| रोजगार क पवू और दौरान मानवशि क श ण, अनसु ान तथा तकनीक नवाचार, ाट अप और ह रत तकनीक उप म आिद क ो ाहन म हम सहभागी होना चा हए। अ.भा. .सभा भारतीय अथ व ा को सु ढ़ करते हुए धारण म एवं सम िवकास क ल को ा करने हतु नाग रक से रोजगार सृजन क भारत कि त तमान (मॉडल) पर काम करने का आवाहन करती ह। अ.भा. .सभा समाज क सभी घटक का आवाहन करती ह क िविवध कार क काय क अवसर को बढ़ाते हुए हमारे शा त मू पर आधा रत एक काय-सं ृ त को ा पत कर, जससे भारत वै क आ थक प र पर पुनः अपना उ चत ान अं कत कर सक। - शाखा - संघ क शाखा खेल खेलने अथवा कवायत (परडे ) करने का ान मा नह ह, अ पतु स न क सुर ा का बन बोले अ भवचन ह, त ण को अ न सन से मु रखने वाला सं ार पीठ ह, समाज पर अक ात् आने वाली िवप य अथवा संकटो म रत नरपे सहायता मलने का आशा क ह, म हलाओ क नभयता एवं स आचरण का आ ासन ह, दु तथा दश ोह शि य पर अपनी धाक ा पत करने वाली शि ह और सबसे मखु बात यह ह क समाज जीवन क िव भ े म सुयो कायकत , उपल कराने हतु यो श ण दने वाला िव ापीठ ह। - परमपू बालासाहब दवरस 3

♪ गणगीत - १ ♪ हम के शव के अनुयायी ह, हमने तो बढ़ना सीखा है। ल य र ह,ै पथ गम ह,ै क तु प चँ कर ही दम लग।े बाधा के ग र शखर पर, हमने तो चढ़ना सीखा ह।ै ।१।। या त त ा हम न भाती, के वल माँ क क त सुहाती। माता के हत तपल जीवन, हमने तो जीना सीखा ह।ै ।२।। अंधकार म ब धु भटकते, पंथ बना ाकु ल ःख सहते। पथ-दशक द पक बन तल- तल, हमने तो जलना सीखा ह।ै ।३।। तृ षत जन को जीवन दगे, श य- यामला भू म करग।े सरु स र देने हम ग र के सम, हमने तो गलना सीखा है।।४।। धरती को सुर भत कर दगे, हे माँ हम मधु ऋतु लायग।े शलू म भी सुमन के सम, हमने तो खलना सीखा है।।५।। ♪ गणगीत - २ ♪ पू य हडे गवे ार -२ म जगाया देशभ का वार । देश परत था ा त षडय था, मु पाने का दखता न तो त था। सगं ठन म से जोडे जन-मन के तार ।।१।। जा त-भाषा म थे देश के जन बटं े, अपनी सं कृ त व मू य से थे हम कटे। ह जन के दय म बहाई गंगधार ॥२॥ आ मगौरव से हत आ म व मतृ थे हम, आ मके त था जीवन न था अपनापन । मत-मन म भरा संघ-गीता का सार ॥३॥ माँ का ं दन सनु ा माग अ त चुना, सघं क सृ से सू अनुपम बुना। व म फर ई भरतभू क जयकार।।४।। 4

������ सुभा षत ( त ण यंसेवक हते ु ) ना भषके ो न सं कार: सह य यते मगृ ःै । व मा जतरा य य वयमेव मृग ता ॥ अथ - वन के पशु सह का न तो रा या भषके करते ह, न अ य कोई सं कार, क तु सह अपने परा म से ही वन के रा य को ा त कर लते ा है और वयं वनराज बन जाता है। ������ सुभा षत ( बाल यसं ेवक हते ु ) यवा य दानने सव तु य त ज तवः। त मात् यं ह व ं वचने का द र ता॥ अथ - मधुर एवं य वचन बोलने से सभी ाणी स न होते ह। य वचन से पराया भी अपना हो जाता ह।ै अतः मधुर वचन बोलनमे कृ पणता नह करनी चा हये। ������ सुभा षत ( ौढ़ यंसवे क हते ु ) मातृवत् परदारेषु पर ा ण लो वत्। आ मवत् सवभूतेषु यः प य त सः प डतः॥ अथ - जो सरे क ी को माता के समान, सरे के धन को म के समान और सब ा णय के सखु ःख को अपने ही सुख ःख के समान देखता है वही स चा ववके पु ष है। ✇ अमृतवचन ( त ण यसं वे क हते ु ) के वल भू म के कसी टुकड़े को रा नह कहते ह। एक वचार, एक आचार, एक स यता एवं एक पर परा से जो लोग पुरातन काल से चले आये ह, उ ह लोग से रा बनता ह।ै - प० प०ू डॉ० हेडगेवार जी ✇ अमृतवचन ( बाल यंसवे क हते ु ) जस कार हम ःख पसंद नह करत,े उसी कार और लोग भी इसे पसंद नह करत,े यह जानकर हम उनके साथ वसै ा वहार नह करना चा हए, जैसा हम उ ह अपने साथ नह करने देना चाहते। - भगवान महावीर जनै ✇ अमृतवचन ( ौढ़ यसं ेवक हते ु ) सामा जक समरसता नमाण कये बना सामा जक समता था पत नह हो सकती। हम सब भारतीय पर पर सगे भाई ह - ऐसी भावना अपे त ह,ै इसे ही ब धुभाव कहा जाता है और आज इसी का अभाव ह।ै जा तयाँ आपसी ेष और ई या को बढ़ाती है। - डॉ० भीमराव अंबडे कर 5

ाथना (स ध नयमानुसार उ चारण हते )ु नम ते सदा व सले मातभृ ूमे, वया ह भमू े सखु वँ् व धतोऽहम्। महामङ् गले पु यभूमे वदथ, पत वषे कायो नम ते नम ते ॥१॥ भो श मन् ह रा ाङ् गभतू ा, इमे सादरन् वान् नमामो वयम्। वद याय कायाय ब ा कट यम्, शभु ामा शषन् दे ह त पतू य।े अज याञ् च व य देहीश श म्, सुशीलञ् जगद् यने न म् भवते ्। ुतञ् चैव यत् क टकाक णमागम्, वयम् वीकृ तन् नस् सगु ङ् कारयते ् ॥२॥ समु कष न ेयस यैकमु म्, परम साधनन् नाम वीर तम्। तद तस् फु र व या यये न ा, द तः जागतु ती ाऽ नशम्। वजे ी च नस् सहं ता कायश र्, वधाया य धम य संर णम।् परव्ँ वभै वन् नते ुमेतत् वरा म्, समथा भव वा शषा ते भशृ म॥् ३॥ ।। भारत माता क जय ।। ोकानुसार अनुवाद हे व सलमयी मातृभू म! म तझु े नर तर णाम करता ।ँ हे ह भू म ! तनू े ही मझु े सुख म बढ़ाया ह।ै हे महामङ् गलमयी पु यभू म ! तरे े ही कारण मेरी यह काया (शरीर) अ पत (सम पत) हो। तझु े म अन त बार णाम करता ँ। हे सवश मान् परमे र ! ये हम ह रा के अगं भतू घटक, तुझे आदरपूवक णाम करते ह। तेरे ही काय के लए हमने अपनी कमर कसी ह।ै उसक पू त के लए हम शभु आशीवाद दे॥ व के लए अजेय ऐसी श , सारा जगत् वन हो ऐसा वशु शील (च र ) तथा बु पवू क वयं वीकृ त हमारे क टकमय माग को सुगम करे, ऐसा ान भी हम दे॥ अ यदु य स हत नः ेयस् क ा त का वीर त नामक जो एकमवे े उ साधन ह,ै उसका हम लोग के अ त: करण म फु रण हो। हमारे दय म अ य तथा ती येय न ा सदैव जागतृ रहे। तेरे आशीवाद से हमारी वजयशा लनी संग ठत कायश वधम का र ण कर अपने इस रा को परम वैभव क थ त पर ले जाने म अतीव समथ हो। ॥ भारत माता क जय॥ 6

आ सरसघं चालक प० प०ू डॉ० के शवराव ब लराम हेडगेवार जी क जय ी पर वशेष : १अ ैल १८८९ ई० सं जीवन प रचय २२ जनू १८९७ ई० • नागपुर म ज म (कु ल का मलू थान आ के तले ंगाना भाग म कु दकु त ाम)। १९०१ ई० • ी के शवराव ब लराम हडे गेवार परू ा नाम। • ेय ब लराम प त हडे गवे ार पू य पताजी। १९०६ ई० • ेया ीमती रेवतीबाई ( ीमती यमनु ाबाई) पू या माता जी। १९०७/०८ ई० • ३ भाई एव३ं ब हन म सबसे छोटे। १९०८ ई० • ६-७ वष क आयु म ाथ मक श ा के बीच चचे क के कोप से पी ड़त। १९१० ई० • ाथ मक श ा के बाद अ ययन हेतु नागपुर के ही नील सट हाई कू ल म वेश। 7 मा ८ वष क आयु म देशभ का उ कृ उदाहरण (इं लै ड क महारानी व टो रया के रा यारोहण के ६० वष पणू होने के उपल य म मली मठाई को कू ड़ेदान म फकना। • १२ वष क आय,ु इं लै ड के ही राजा एडवड स तम के रा यारोहण के अवसर पर स नता करने हेतु राज न लोग और ए ैस मल के मा लक ारा छोड़ी गयी आ तशबाजी का ब ह कार। • नागपरु थत छ प त शवाजी महाराज के (सीतावड ) कले के ऊपर \"अं ेज \" का झ डा (यू नयन जकै ) उतार कर भगवा वज फहराने हेतु प ँचने के लए म के साथ अपने गु जी ी बझे जी के कमरे म सरु गं खोदना। • अं जे से देश को वत कराने हेतु चल रहे सभी कार के सगं ठन , आ दोलन अथवा काय म म कसी न कसी प म सहभाग। १७ वष क आयु म बम बनाने म श त। वजयादशमी के दन नकले जुलसू म 'व देमातरम'् का उ ोष, 'रावण मारने का वा त वक अथ या ह?ै ' वषय पर पहला भाषण, सरकार ारा राज ोह का मकु दमा चलाने का असफल यास। १९ वष क आयु म र ले प रप ( र ले सकु लर) के वरोध म व ालय नरी क का व दे मारतम् के उ ोष से वागत, व ालय से न कासन, मा याचना नह । • कोलकाता के नशे नल मे डकल कॉलजे म अ ययन हेतु वशे । • कोलकाता के दंग म घायल क सेवा हेतु महा व ालयी व ा थय के साथ 'सु ूषा-पथक' बनाकर घायल क सवे ा। • कोलकाता के स ा तकारी सगं ठन 'अनशु ीलन स म त' क अ तरगं सद यता ा त, अ तरगं त ा ारा त त।

१९१३ ई० • बगं ाल म दामोदर नद म आई भीषण बाढ़ के समय ५ अ य व ा थय के साथ रामकृ ण मशन क ओर से पी ड़त क सहायता के लए कोलकाता से थान। १२ सत बर, १९१४ ई० • गंगा और सागर के संगम पर मकर सं ा त के मेले के अवसर पर हजै ा फै लने पर पथक बनाकर १९१५ ई० पी ड़त क सेवा-सु षू ा एवं औषधोपचार। १९१६ ई० द ा त समारोह (अ तम वष क परी ा उ ीण कर एल.एम. ए ड एस. क उपा ध लके र डॉ टर १९१७ ई० बन।े १९२० ई० सत बर १९२० ई० नेशनल मे डकल कॉलजे क पूण मा यता के लए सफल आ दोलन। २६ दस बर १९२० ई० २३ फरवरी १९२१ ई० • च क सक य उपा ध लेकर नागपुर वापस, म य भारत ा त म ा तकारी काय का सफल मई १९२१ ई० सयं ोजन। १९ अग त १९२१ ई० • सबसे बड़े भाई ी महादेव शा ी क लेग से मृ यु। १२ जलु ाई १९२२ ई० १९२२ ई० चाचा जी को े षत प ारा वसाय न करते ए अ ववा हत रहकर रा काय करने का नणय, (१९१७ म म य ा त एवं बरार े म के वल ७५ च क सक ही नजी वसाय कर रहे थे)। नागपरु म होने वाले काँ से के अ खल भारतीय अ धवशे न हते ु वयंसवे क दल मुख एवं आवास व था मखु घो षत। तलक जी क मृ यु के प ात् नागपरु अ धवेशन के अ य पद हते ु ी अर व द जी से पुडुचेरी आ म म भट। अ धवेशन ार भ (१४५८३ त न ध,३००० वागत स म त के सद य एव७ं -८ हजार दशक) जला धकारी स रल जै स इर वन ारा धारा १४४ के अ तगत १ माह क सजा \" कसी भी सावज नक सभा म कसी भी कार से सहभा गता करने पर तब ध।\" काटोल तथा भरतवाड़ा के पूव के भाषण के कारण राज ोह के आरोप म मुकदमा ल पब (दज)। मुकदमे का नणय ( लेमी के यायालय ारा एक वष तक राज ोही भाषण न करने हते ु अ भवचन देते ए एक-एक हजार क २ जमानत तथा १०००/- पये का मुचलका लखकर देना, न मानने पर १ वष का स म कारावास)। कारागार से मु (२५ प ड वजन बढ़ा, कपड़े छोटे पडे)। ा तीय कां ेस के लए चुनाव तथा ा तीय कां ेस के सहमं ी नयु । 8

२७ सत बर १९२५ ई० व.स.ं १९८२ वजयादशमी के दन नागपुर म संघ थापना। १७ अ ैल १९२६ ई० • संघ के नामकरण हते ु अपने घर पर बठै क, रा ीय वयसं वे क सघं नाम घो षत। • मो हते का बाड़ा नामक थान, सघं थान न त। १९ सत बर, १९२६ ई० औपचा रक प से संघ मुख घो षत। १९२८ ई० कां से के कोलकाता अ धवशे न म ी सुभाषच बोस से देश क प र थ तय के बारे म वचार- वमश। १० नव बर १९२९ ई० सरसंघचालक घो षत एवं थम सरसघं चालक णाम । १२ जुलाई १९३० ई० ी गु द णा महो सव पर स या ह म भाग लेने के नणय के कारण अपनी अनपु थ त म संघ काय संचालन क योजना। (नागपरु काय का भार ी बाबा साहब आ टे तथा ी बापूराव भदे को दया एवं डॉ. पराजं पे को सरसंघचालक घो षत कया) २१ जलु ाई १९३० ई० यवत माल म जंगल स या ह कर असहयोग आ दोलन म सहभाग, ६ एवं ३ माह (कु ल ९ माह) का स म कारावास। १४ फरवरी १९३१ ई० कारावास से मु , १६ फरवरी नागपरु प चँ ना, जलु ाई शु समारोह म सहभाग, अ लै १९३२ ी गु जी से नागपरु म थम भट। १९३३ ई० नाग नद के पार रे शमबाग म एक कसान से ७००/- . म लगभग सवा दो एकड़ भू म य। २६ दस. १९३४ ई० ी अ पाजी जोशी, ी अ णा साहब भोपटकर के साथ वधा म महा मा गाधँ ी से भट। २ मई १९३५ ई० सागं ली म ए काय म के अवसर पर पणू गणवेश म थम छाया च । अ टूबर १९३५ ई० शारी रक श ण एवं आचार प त क पुनरचना हते ु स द म ी अ पाजी जोशी, ी दादा साहब देव, ी कृ ण राव मोहरीर के साथ ी नाना साहब टालाटुले के नवास पर बैठक। मई १९३६ ई० आ जग शंकराचाय जय ती परं शंकराचाय प०ू वामी व ाशंकर भारती ारा रा सने ाप त क उपा ध से वभू षत। २४ माच १९३६ ई० “संघ थापना व ध\" पहली बार एक मह वपूण सूचना प क का लेखन। १९३८ ई० नागपरु के अ धकारी श ण वग (संघ श ा वग) का दा य व ी गु जी को दया। 9

फरवरी १९३९ ई० स द म ी बबनराव प डत जी के नवास पर मुख कायकता ( ी गु जी, ी अ पा जी जोशी, ी बाला साहब देवरस, ी ता या राव तलै ंग, ी ब ल राव पतक , ी बाबा साहब १९३९ ई० सालोडकर, ी नाना साहब टालाटुल,े ी कृ णराव मोहरीर) के साथ संघ के वधान, आ ाय, १३ अग० १९३९ ई० ाथना, कायप त तथा त ा आ द वषय पर वचार करने हते ु १० दवसीय बैठक ार भ। ३१ जनवरी १९४० ई० २० मई १९४० ई० ाथना के लए कु छ आधारभतू वचार के आधार पर ी नाना साहब टालाटुले ारा ग ९ जून १९४० ई० म ाथना क रचना। उपरा त ी नरह र नारायण भड़े ारा वतमान प प ाथना क रचना। १४ जनू १९४० ई० १९ जनू १९४० ई० ी गु जी क सरकायवाह दा य व के लए घोषणा। २० जून १९४० ई० २० जून १९४० ई० राज ग र म च क सा हते ु थान। २१ जनू १९४० ई० डॉ. यामा साद मुखज का कोलकाता से भट करने हेतु आगमन। अ धकारी श ण वग (सघं श ा वग) के नजी समारोह (द ा त) म अ तम उ ोधन। नागपुर के मेयो च क सालय म वशे । मु बई के एक वयंसवे क क श य या (ऑपरेशन) क सफलता पर बधाई हते ु प लेखन। ी सुभाष च बोस का भट हेतु आगमन। भा य से वाता न हो पाना। • ी गु जी को उ रा धकारी घो षत कया। • ल बर पं चर • शु वार ये कृ ण प तीया शक स वत् १८६२ ातः९ बजकर २७ मनट पर वगवास। • अ तम सं कार हेतु सायं ५ बजे धरमपठे थत ी बाबा साहब घटाटे के बंगले से शव या ा ार भ (लगभग सवा मील ल बी)। • रा ९ बजे ये ब धु ी ता या जी हेडगवे ार ारा अ तम सं कार। प० प.ू डॉ. हेडगेवार जी ने कहा - के वल इ ा मा से ही काय नह होगा। सा ात भगवान को भी दशावतार लके र मनु श के ारा ही कम करना पड़ा। 10

������ ������चचा : परमपू डॉ र जी के व श गुण ������ त दन १ गुण रण कराय - ➡ खर देशभ : १. आठ वष क अव था म रानी व टो रया के रा यारोहण के ६० वष परू े होने के उपल य म ा त मठाई को कू ड़े के ढेर पर फक दया। २. जब हाई- कू ल के व ाथ थ,े नील सट हाई- कू ल म कु यात र ले सकु लर के वरोध म आ दोलन क योजना बनायी। कू ल के नरी ण के समय 'व दे मातरम'् का उ ोष। व ालय ब द । 'व दे मातरम'् कहना अपराध नह , अतः गदन हलाकर भी दोष मानने से इ कार। व ालय छोड़ दया। ३. कोलकाता के नशे नल मे डकल कॉलेज म वशे , ा तकारी काय से स पक, म य भारत के ा तकारी काय के मखु रह।े म यं भारत कां से कमेट के जनरल सै े टरी बन।े आजाद क लड़ाई म सहयोग हेतु समाचार प नकाला। १९२१ म राज ोहा मक भाषण के अपराध म १ वष क सजा। १९३० म जंगल स या ह (यवतमाल म),९ मास का कठोर कारावास। ➡ साहस,सहनशीलता और वा भमान : १. यवतमाल क सड़क पर घमू ते समय वहाँ क च लत था के अनसु ार वहाँ के यूरो पयन कले टर को णाम करने से मना कर दया। २. १९२६ म नागपुर म म जद के सामने वयं बाजा बजाना (साहस)। ३. कोलकाता म म क चुनौती के उ र म उसको अपनी भुजा पर मु का मारने के लए नम त करना (सहनशीलता)। ४. नधन होने पर भी कसी से एक पसै े क सहायता वीकार नह क ( वा भमान)। ➡ े -शील : १. डॉ टरी वरोधी लोग ने गु ड को १०० . डॉ टर जी को मारने के लए दये। दो-तीन दन डॉ टर जी क ग त व ध देखकर गु ड ने डॉ टर जी के परै छू कर मा माँगी और सारी बात बता द । २. एक म के लए ५०० पये अपने वरोधी बै र टर अ यकं र से मागँ ने जाना और बै र टर अ यकं र का आ ासन-प ( ा मसरी नोट) डॉ. हेडगवे ार से लखवाने से मना करना। 11

➡ येय न ा (जीवन ल य) : १. डॉ टरी पास करने पर मै डकल कॉलेज के धानाचाय ारा ३०० पये क नौकरी के ताव को नौकरी करने का कोई वचार नह ' कहकर अ वीकार कर दया। २. ववाह के लए अपने चाचा जी को प लखकर मना कर दया। जीवन म जो काय अंगीकार कया है, उसम प रवार चलाने का अवकाश नह । अत: कसी बा लका के जीवन का वनाश करने से कोई लाभ नह । ➡ ढ़न य: १. अडे ाम शाद म से अगले दन ात:काल क परडे म नागपरु प ँचने के लए बलै गाड़ी से बाजार आये। वहाँ से मोटर न मलने पर २० मील र नागपरु प ँचने के लए पदै ल चल दये (काय म के लए आ ह)। २. १९३३ म नागपुर म २००० पये द णा ई। १९३४ म ल य ४००० पये न त कया। ३५०० पये द णा हो गयी। ५०० पये और होनी चा हए इसके लए च तत देखकर एक म ने कहा, 'डॉ टर, आपका ४००० ल य था, ३५०० तो आपने एक त कर लये याने ल य लगभग परू ा हो गया, फर आप ५०० पये के लए य परेशान ह?\" डॉ टर जी ने कहा, \"महाशय जी, मझु म य द इतनी ढ़ता न होती तो म भी अ य लोग के समान एक बंगला खरीदकर आन द से जीवन तीत करता।\" अपने इस ढ़ न यी वभाव के कारण डॉ टर जी ने उस वष अ त म ४००० द णा परू ी करा ही डाली। ➡ एक ही धुन : नर तर म के प रणाम व प व जसै ी देह भी ीण होने लगी थी। पीठ म नर तर दद रहने लगा। जाड़े के दन म भी पसीने के कारण त दन तीन बार ब नयान बदलनी पड़ती थी। बहार म राज गरी के जल के नसै गक उ ण कु ड म य द कु छ समय नान कया जाये तो ब त लाभ होगा, यह वचार कर डॉ टर जी राज गरी गये। राज गरी म उपचार तो ार भ हो गया पर तु डॉ टर जी व ाम न कर वहाँ आस-पास से आने वाले लोग से घ न ता बढ़ाने म जटु गये तथा उ ह संघ काय समझाने का य न करने लग।े नगर म जाकर अनके गणमा य लोग को भी संघ काय के बारे म बताने का उप म उ ह ने चालू कर दया। फर आस-पास सघं काय कै से ार भ कया जाये और बहार म कायवृ क से या कया जा सकता है, इस पर कायकता क बैठक म घ ट वचार होता। प रणाम व प राज गरी और आस-पास अनेक थान पर शाखाएँ ार भ हो गयी। डॉ टर जी के साथ आये कायकता परेशान थे क वे यहाँ उपचार कराने आये ह अथवा संघ काय का व तार करने। पर तु उ ह तो एक ही धनु थी- संघ-काय-वृ क । 12

॥ वष तपदा उ व ॥ अपे त कायकता : • मु य श क • गणगीत हते ु • अमतृ वचन हते ु • एकलगीत हते ु • ाथना हते ु • काय म अ य •व ा • काय म व ध बताने एवं म चासीन ब धु का प रचय कराने हेत।ु णाम करके बठै ना, जूत,े च पल, वाहन • काय म थल क आ त रक (स जा आ द) व था हते ु । • काय म थल क बा व था ( वागत करते ए काय म म बैठने से पवू वज व थत एवं यथा थान खड़े ह बतान,े तलक लगान,े सचू ना देने आ द) हते ।ु आव यक साम ी : • उपयु एवं व छ थान ( वछावन स हत) • चनू ा एवं र सी (रखे ाकं न हेत)ु वज (सही माप का, धुला एवं लोहा कया आ पु प क लड़ी स हत) • वजद ड (सीधा एवं उपयु नाप का) • वज द ड हेतु टै ड (य द टै ड क व था नह है तो उ चत सं या म ट/प थर/बा ट म म भर कर रखना) • च (भारतमाता, डॉ टर जी एवं ी गु जी के माला स हत) • मा यापण के लए स ाट व मा द य एवं पू. डॉ टर हडे गेवार जी का अ त र च । • व ा एवं अ य जी के लए म च / कु सया।ँ • स जा साम ी ( र बन, आल पन, से ट पन, चादर/चाँदनी, पद, सतु ली, ग द आ द।) • पु प, थाली, धपू ब ी, बड़ा द पक, लेट, मा चस, च हते ु मेज, चादर। • तलक हेतु च दन अथवा रोली, अ त, कटोरी/थाली। काय म य द रा म है तो समु चत काश व था। • व न वधक बटै री स हत (य द आव यक हो तो) काय म व ध : • स पत् • गणगीत •अ धकारी आगमन • काय म क व ध बताना एवं सूचनाय •द • आ सरसघं चालक णाम १,२,३ 13

• आरम •द • वजारोहण • मंचासीन ब धु का प रचय • अमतृ वचन • एकलगीत • व ा ारा उ ोधन • अ य ीय आशीवचन • ाथना • वजावतरण • व कर वशेष : • अ धकारी आगमन के समय उ क आ ा होगी प ात् आरम एवं द क आ ा होगी। • वजारोहण तथा वजावतरण के समय व ा एवं अ य जी दा हने अ ेसर के बराबर एवं दाँयी ओर तथा माननीय सघं चालक / कायवाह अपने नधा रत थान पर खड़े ह ग।े इस दन आ सरसघं चालक णाम होता ह।ै • इस हते ु मा यापण के लए प.ू डॉ टर जी का माला स हत एक बड़े च क व था ♪ वष तपदा हते ु एकल गीत ♪ द जए आशीष अपना भावमय है याचना जीत ले जग का दय जो आपका वह शील अनुपम। व को नवनीत कर दे नहे मय वाणी सुधा सम। मातृभू क वदे ना जो आपके उर म पली थी। अंश भी हमको मले तो पणू होवे साधना ।।१।। आपक ही ेरणा से येय पथ पर बढ़ रहे ह। आपसे यो तत अनेक द प तल - तल जल रहे ह। रा -जीवन का गहन तम शी ही मटकर रहेगा। सु त ह रा को द आपने नवचेतना ।।२।। माग सकं टपूण है पर आप ह जब मागदशक । शलू भी ह गे सुमन जब जी रहे ह को टसाधक। द जए वह श जससे बढ़ सक पथ पर नर तर। कर सक साकार ऋ षवर आपक हम क पना ।।३।। 14

- ीराम कथा स ेश - मानस के क क धा का ड म सु ीव से यह अपे ा क जाती है क वषा ऋतु उपरातं वह सीता क खोज म अपना योगदान द, कतु वषा ऋतु के बाद शरद ऋतु भी जाने वाली है और सु ीव राम को भूल ही गए ह। मानस म राम ल मण संवाद का एक सगं ह,ै जसम भगवान ने ल मण से कहा क सु ीव ने मेरी सधु भलु ा द है, य क वह रा य, धन, पुरी अथात् सगे सबं ंधी व प रवार और ी पा गया ह।ै मानस के राम के वचन बड़े सौ य ह, जो क इस कार ह:- सु ीवहँु सु ध मो र बसारी। पावा राज कोस पुर नारी॥ जे ह सायक मारा म बाली। ते ह सर हत मढ़ू कहँ काली ।। ४/१८/४ तुलसी हम श ा देते ह क अकृ त , व ासघात मनु य को जब रा य सुख, धन सखु , प रवार सुख व प नी सुख म से एक भी मल जाए, तो सव थम वह ई र को भलु ा देता है, यहां तो सु ीव को चार सखु मले ह, सु ीव मुझे य न भलू ।े गढ़ू भाव यह है क पी ड़त सु ीव अब नदयी बन गया है, राम का ख नह देखता। व कृ त नी सु ीव ने उपकार करने वाले को ही भलु ा दया है। ठ क इसी कार आज हम अ धकांश ह अ य समदु ाय ारा वशेषकर मुसलमान , ईसाईय ारा पी ड़त ह क पीड़ा, चीख न देखते ह और न सनु ते ह और उसे भूलने का य न करते ह। उसी ंृखला म ी ववके रजं न अ नहो ी ारा नद शत ' द क मीर फाइ स' ह समाज को जा त करने का एक यास है । हम ह धम क र ा करने के लए अब उठना है और जो सोए ए ह ह, उनको जागतृ कराना है। मरण रहे झु गी झोपड़ी म रहने वाला ह समाज को हम सव थम जाग क व बलवान बनाना ह।ै शाखा म उनक उप थ त वाछं नीय ह।ै हमारा उनसे मले मलाप ही पछड़े समाज को समृ क ओर अ सर करगे ा। जागृ त अव था म लाने के लए ही ' द का मीर फाइ स' नामक फ म द शत क जा रही है। कृ पया अपने समाज को संग ठत कर और क मीर वदे ना से भ व य क वेदना को च हत कर व वदे ना नवृ काय म म भागीदारी सु न त कर। ☉ भोजन के समय यु होने वाली सामा सं ृ त श ावली ☉ शद सं कृ त शद सं कृ त स ज़ी शाकं चटनी अवलेहः रोट रो टका/पो लका मा त म् दाल सपू म् मठाई म ा नं कढ़ तेमनम् खीर पायसम् चावल ओदनम् नमक लवणं पानी जलम् मच म रच: अचार स धतम् खीरा ध धं ककड़ी पुषम् लौक अलाव:ू याज ककट म खन नवनीतम् पला डुः खचड़ी कृ शरः 15

⠿ वचारणीय ब ु (वष तपदा) ⠿ (१) इस वष चै शु ल तपदा या चै मास के शु ल प का थम दवस २ अ ैल, २०२२ को ह।ै भारतीय कालगणना म इसे ही वष तपदा' कहते ह। यह वष का थम दन है। वष क गणना व म स वत् से होती ह।ै सामा यतः सभी प चांग इसी स वत् का योग करते ह। अनेक अ य स वत का योग भी अपने देश म च लत ह।ै व म स वत् क मा यता सवा धक एवं सावभौ मक ह।ै (२) 'स वत'् या 'स व सर' या 'वष' समानाथ ह। इन सभी श द म एक ही भाव का बोध होता है। यह सभी ऋतु के एक च क पणू ता को कट करते ह। जब सरा च ार भ होता है तब एक स वत/् स व सर या वष ार भ होता ह।ै उदाहरणतः एक शरद ऋतु से सरी शरद् ऋतु के आगमन तक एक वष क अव ध पणू होती ह।ै 'जीवमे शरदः शतम्\" के कथन म इस बात क पु होती है। उपरो पं हमारी सौ वष जी वत रहने क कामना को करती ह।ै जो काल वभाग सब ऋतु और ा णय का आधार ह,ै उसे स व सर कहते ह। सूय स व सर या काल का अ धदेवता ह।ै (३) परु ाण तथा स ा त शरोम ण आ द थ के अनसु ार सृ का आर भ वष तपदा (अथात् चै शु क-१), जसे महारा म गड़ु ी पड़वा भी कहते ह, को आ था। परु ाण क न न उ भी इस त य का उ ाटन करती है- \"चै े मा स जग ा, संसज थमे दन।े शु प े सम ं तु तदा सूय दये स त।\" अथात् - चै मास के शु ल प के थम दवस सयू दय होने पर ा जी ने जगत क सृ क । अतएव चै शु ल प -१ से ही नवीन स व सर के ार भ होने क मा यता दान हो गई है। व म स वत् के इसी दवस से ार भ होने क मा यता है। यह वचार वै ा नक आधार पर भी उ चत है। (४) इसी दन थम सूय दय आ, इसी लए यह दन सूयवार अथात् र ववार कहलाया। इस दन सभी न मेष रा श म थ।े (५) भारतीय कालगणना म परू े दन को २४ होरा म वभ कया है। इसी होरा से अं जे ी श द Hour बना ह।ै यह भाषा व ान से स त य ह।ै यके होरा का वामी कोई न कोई ह होता ह।ै सृ के ार भक दन र ववार के बाद २५ वाँ होरा च मा के वा म व म पड़ता था, अतः वह दन च वार अथात् सोमवार कहलाया। इसी कार स ताह के दन का नामकरण आ। (६) च मा जस न म पणू ता ा त करता ह,ै वह मास उस न के नाम से जाना गया। जसै े च ा न , जस मास म सायं से ातः तक दखायी दया, वह चै मास, वशाखा दखाई दे तो वशै ाख, ये ा दखाई दे तो ये आ द नाम से व यात ए। (७) अत: यही स होता है क नववष तपदा को ही होना मा हए। वाभा वक ही है क पृ वी ने जस दन से सयू का प र मण आर भ कया होगा, तो वह उस समय सम व (Equinox) पर होगी। उसके बाद च मा क घटती-बढ़ती कला के आधार पर ही तपदा, तीया, तृतीया, पू णमा, अमाव या आ द का नधारण कया गया। 16

(८) भारतीय कालगणना अ त ाचीन है। हमारे यहाँ कहे जाने वाले संक प म सृ के आर भ काल से अब तक का वणन होता है- \" ा णेऽह न तीयपराध, ेतवाराहक ,े वैव तम रे, अ ा वश ततमे, क लयगु े। क ल थमचरणे ........\" अथात् - ा के तीय पराध के ेतवाराह क प के ववै वत म व तर के २८ व क लयुग के थम चतथु ाश म ........\" (९) यह है हमारी कालगणना। इस कालगणना का ान हमारे यहाँ एक पीढ़ से सरी पीढ़ को आज तक ा त आ है। (१०) क प या ह?ै इस भू प ड से सूय प ड तक फै ले ए म डल क आय।ु यह सौर म डल के नाम से भी जाना जाता ह।ै ा ड क कु ल आयु ७२०० क प है। एक क प म कु ल मलाकर १००० बार सतयगु , ेता, ापर और क लयगु - चार यगु तीत होते ह। इन चार यगु क वष सं या ४३ लाख २० हजार वष। मानव के जातीय इ तहास क से एक क प को १४ म व तर म वभ कया जाता ह।ै अब तक ६ म व तर बीत चकु े ह। सातवाँ चल रहा ह।ै इसम भी २७ बार चार युग बीत चुके ह। अ ाइस बार तीन युग बीतकर चौथा यगु चल रहा है जसके स वत् २०७८ म ५१२३ वष पूरे हो गए ह। इस कार २०७९ युगा द ५१२४ ार भ होगा। क प के आर भ से २०७८ स वत् तक १,९७,२१,४९९,१२३ और सृ के आर भ से अब तक १,९५,५८,८५,३२२ वष बीत चकु े ह। यह गणना यो तष व ान के ारा नण त है। आधु नक वै ा नक के अनसु ार सृ क उ प का समय २ अरब वष। (११) हमारी च लत मखु कालगणनाय न नवत् ह :१.क पा द २. सृ स वत् ३. वामन स वत् ४. ीराम स वत् ५. ीकृ ण स वत् ६. यु ध र (युगा द) स वत् ७. बौ स वत् ८. महावीर जैन स वत् ९. व म स वत् १०. शा लवाहन शक स वत् ११. ी शंकराचाय स वत् (१२) नवीन स वत् का वतन कसी रा ापी मह व क घटना क मृ त म उस घटना के सू धार या जनता ारा कया जाता है। उपरो सभी स वत का चलन इसी कार आ है। (१३) व म स वत् सवमा य है। यह महाराज व मा द के सहासना ढ़ होने के दन से स ब धत ह।ै शक ने ई०पू०६४ म उ जनै पर आ मण कर अपने अधीन कर लया। शक ईरान के सी तान देश के नवासी थ।े उ जनै के राजा ग धवसेन ने शक से अ य त साहस एवं शौयपूवक यु कया। अ ततः घायल होने के उपरा त व यपवत क तलहट म अपना आ य थान बनाया। व म इ ह के पु थे। उस समय व म क आयु मा १० वष थी। शक के लोमहषक अ याचार उ ह ने अपने ने से देखे थ।े उ जनै के नवा सय का क ण- दन उ ह ने अपने कान से सनु ा था। भारतीय सं कृ त के समलू नाश के संकट का भय सव ा त हो गया था। ऐसी क ठन प र थ त म व म ने शनःै शनैः नवयुवक क सेना ग ठत कर मा १७ वष क आयु म उ जैन पर आ मण कर शक को परा त कर उनका समूलो छेदन कर दया। यह ई०प०ू ५७ क घटना ह।ै भारतीय सं कृ त पर आए भीषण संकट से मु करने म जो अतलु नीय परा म, सूझ-बूझ और रण कौश य व म ने अपने जीवन म कट कया और धमरा य क थापना कर भारतीय सं कृ त के सवागीण वकास का माग श त कया, उसी के प रणाम व प महाराज 17

व मा द य को 'शका र व मा द य' क उपा ध से अलंकृ त कया गया। कृ त रा ने उनके नाम से व म स वत् का चलन भी अगं ीकार कया। (१४) चै मास म अपने देश क वस त बयार कहती हअै भन दन, बोर से लद आम क डाली से कोयल कू कती है शभु कामना, खते म सव र फै ली ह रयाली, रंग- बरंगे, पु प क सगु ध, मर का गु जन, यह धरती, यह आकाश, ये सयू करण कहती ह \"नववष तु हारा वागत\"। (१५) चै शु ल - १ व म स वत् क त थ से अनके मखु घटनाय जड़ु ी ह, जसै े- ● सृ क उ प एवं व म कालगणना का ार भ दवस। ● भारत म च लत सभी भारतीय स वत का ार भ दवस। ● माँ गा क उपासना \"नवरा त\" का ार भ दवस। ● मयादा पु षो म भगवान ी रामच जी का रा या भषेक दवस। ● यु ध र का रा या भषके एवं क लयगु का ार भ दवस, ● यु ध र स वत् (यगु ा द) का ार भ दवस। ● उ जनै के स ाट व मा द य ारा शक को परा त करने पर रा या भषेक दवस, 'शका र व मा द य' उपा ध अलकं रण दवस एवं कृ त रा ारा व मी संवत्' ार भ दवस। ● व ण अवतार झलू ले ाल जय ती (चै शु ल तीया) ● आय समाज का थापना दवस। ● शा लवाहन शक (भारत सरकार का रा ीय स वत)् ार भ दवस। ● रा के भ व य ा डॉ. के शव ब लराम हडे गवे ार जी का ज म दवस। (१६) जस कार व म ने नवयवु क का सगं ठन कर, शक को परा त कर रा को भीषण सकं ट से मु कया था, उसी कार आधु नक युग म रा के अ तवा संकट से नपटने हेतु ह समाज जागतृ करने के उ े य से प.प.ू डॉ. हेडगेवार जी ने रा ीय वयसं ेवक सघं क थापना १९२५ म वजयादशमी के दन क थी। यगु ा पू. डॉ. हडे गेवार जी का ज म सन् १८८९ ई. क वष तपदा को आ था। उनके जीवन का मरण आज के दन करना अ य त समीचीन होगा। (१७) रा ीय वयसं ेवक सघं का उ े य अ य त सरल श द म कया जा सकता ह-ै ' ह समाज क जागतृ सगं ठत श ारा धम सरं ण करते ए ह समाज को परम वभै व ा त कराना ह।ै ' ाथना क अ तम पं य म इसी भाव को कट कया गया है। इस ल य को सतत यान म रख प र म क पराका ा, ववके के अवल बन क सहायता तथा धयै के धरातल पर खड़े रहकर ल य भदे करने म हम अव य सफल ह गे, इसम संदेह नह ह।ै अमतृ वचन (वष तपदा हेत)ु प. पू. ी गु जी ने कहा - ह रा के म और ह समाज के सगं ठन के ा डॉ॰ जी क आराधना का एकमेव माग हअै पने सकं ण व को भुलाकर इस संगठन पी वराट देह का स वधन करना। हम डॉ टर साहब के पजु ारी कहलाने के अ धकारी तभी बनगे जब जस येय क ा त के लए यह सगं ठन नमाण कया गया है उस यये को शी ा त करने के न य से हम अपन-े अपने थान पर संघ काय म जटु जाय । 18

♪ वष तपदा हते ु एकल (गढ़वाली) गीत ♪ शभु घड़ी शुभ दन बार छ आज, नववष को यौहार छ आज। रंग- बरगं ा फू ल ख यान, धरती कू शंृगार छ आज।।धृ.।। ये शुभ दन ही ाजीन, करी सृ क सु दर रचना, फै ली उ यालू तब चार द श, परू ण े ग न सबुका सुपना। सागर न दयाँ उ च हमालय, गाणा स ब म हार छ आज।।१।। राम-कृ ण और धमराज कू , झलू ले ाल-परश-ु व म कू , दयान द-शकं र स त अर, संघजनक के शव महान् कू । ेरकमय जीवन दशन कू , मान दवस स कार छ आज।।२।। मात शारदा, ल मी, काली, अर नव गा प धरीक , असरु म दनी सहवा हनी भ कू भ डार भरीक । माँ अ बे का उ च भवन मा, जकै ार क झंकार छ आज।।३।। काल क गणना सबसे पैली, भारत से ही व मा फै ली। कम- ान- व ान स यता, धम, सं कृ त, यख क शलै ी, भारत भू म भारत माँ क , होण ल य जकै ार छ आज ।।४।। ♪ सेवा गीत ♪ नमल पावन भावना, सभी के सखु क कामना। गौरवमय समरस जनजीवन, यही रा आराधना।। चले नरंतर साधना ... {२} जहाँ अ श ा अधं कार है, वहाँ ान का द प जलाय, नहे भरी अनपु म शैली स,े सं कार क जोत जगाय। सभी को लेकर साथ चलग,े बल का कर थामना ।।१।। चले नरंतर साधना ... {२} जहाँ ा धय और अभाव , म मानवता तडप रही, घोर वकार अ भशाप से, देखो जगती झलु स रही। एक एक आँसू को प छ, सारी पीड़ा लाघं ना ।।२।। चले नरंतर साधना ... {२} जहाँ वषमता भदे अभी है, नई चेतना भरनी है, यायपूण मयादा धार, वकास रचना करनी ह।ै वा भमान से खड़े सभी ह , करे न कोई याचना ।।३।। चले नरतं र साधना ... {२} नर सवे ा नारायण सवे ा, है अपना कत महान, अपनी भ अपनी श , ये करना जन जन का काम। अपने तप से गटायग,े मा भारत कमलासना ।।४।। चले नरंतर साधना ... {२} 19

- सेवा का आन द ( सेवा कथा ) - राजा भोज वयं सं कृ त के महान व ान् थे तथा अ य व ान का ब त स मान करते थे। एक बार रा य के बाहर के अनेक व ान भी राजसभा म आम त थे। राजा भोज ने उनसे कहा क वे अपने जीवन म घट स ची व आदश घटना सुनाए।ँ व ान ने अपन-े अपने जीवन म घट वशेष घटनाय सुनाई। अ त म एक द न-हीन सा दखने वाला व ान् अपने आसन से उठा और बोला-महाराज! म या बताऊँ ? वा तव म म तो आपक राजसभा म आने का अ धकारी ही नह था, क तु मेरी प नी का ब त आ ह था, इस लए चला आया। या ा का यान रखकर मरे ी प नी ने एक पोटली म मरे े लए चार रो टयाँ बाँध द । माग म भूख लगने पर जब म रो टयाँ खाने बैठा तब एक बु ढ़या मरे े नकट आकर बैठ गई। प था क वह भूखी थी। दयाभाव से मने उसको एक रोट दे द , जसे वह चट से खा गई। इसके बाद मने फर से खाने के लए रो टय को छु आ तो वह बु ढ़या फर रोट क आशा म ललचाई से मरे ी ओर देखने लगी। मझु े लगा क वह मन ही मन कह रही है क बाक रो टयाँ भी दे दो, और मने तब उसके सामने सारी रो टयाँ ही रख द । बस महाराज! यही है मेरे जीवन म हाल ही म घट वशषे घटना। खुद भूखा रहकर एक अ य भखू े जीव को तृ त करने म मुझे ब त आन द का अनभु व आ। राजा भोज इस वृ ा त को सनु कर भाव- वभोर हो गए और उस व ान् को अनेक मू यवान् व तुएं भट व प दान क । - सवे ा सुभा षत - समाजै मभी ं नो वषै ेन न सा त।े समाज सामर ा वै ना ः प ा ह व त॥े अथः समाज म जो अभी ऐ य अथात एकता का भाव है, वह भदे भाव के रहते नह हो सकता ह,ै य क समाज म पर पर समरसता के बना यह अस भव है। समरसता के अ त र सरा कोई माग नह है। व क मुख कालगणनाओं क ाचीनता ● भारतीय कालगणना (क प संवत) १,९७,२९,४९,१२४ ● चीन क कालगणना ९,६०,०२,३१९ ● खताई कालगणना ८,८८,३८,३९३ ● म क कालगणना २,७६,०७५ ● पारसी कालगणना १,८९,९८१ ● तुक कालगणना ९,६३० ● य द कालगणना ५,७८४ ● ईरानी कालगणना ६,०२८ ● यूनानी कालगणना ३,५९४ ● रोमन कालगणना २,७६९ ● ईसवी कालगणना २,०२२ ● हजरी काल गणना १,४४४ ● व मी सवं त् २,०७९ 20

������ ������डॉ० हडे गेवार जी के जीवन संग ៙ १. ये सम पत जीवन ៙ व ालय म पढ़ते समय ही के शवराव (प. पू. डॉ टर जी) का स पक ा तकारी आ दोलन के साथ हो गया था। ां तकारी ग त व धय का के उस समय बगं ाल था। अतः डॉ टर जी ने च क सा शा के अ ययन हेतु कोलकाता जाने का न य कया। कोलकाता म रहने क समु चत व था हो सके इस हेतु डॉ॰ मुजे ने कोलकाता थत \"महारा लॉज\" के लए के शवराव को एक प रचय प दे दया। कोलकाता प ँच कर जब ये \"महारा लॉज\" म गये तो वहाँ पता लगा क रहने के लए एक भी थान खाली नह है। महारा से ही आये कु छ अ य व ा थय ने कु छ कमरे कराये पर लके र अपने रहने क व था कर रखी थी। उस थान को 'शा त नके तन' नाम दया आ था। महारा लॉज के कायवाह ने के शवराव को शा त नके तन भेज दया। वहाँ भी यही थ त थी। एक भी थान र नह था। डॉ. मुजे ारा भजे े ए को टाला भी नह जा सकता था। अ त म एक कमरे म दो चारपाइय के बीच का थान के शवराव को दलवाया गया। उस छोटे से कमरे म दो चारपाइयाँ बछने के बाद थोड़ा थान ही बचता था। के शवराव ने उस छोटे थान म ही अपनी दरी बछा ली और स न भाव से कहा क, यह जगह तो मरे े लए पया त ह।ै ' येय सम पत जीवन कभी शारी रक सुख-सु वधा क ओर अपनी नह करता। उनका यान तो अपने येय क ओर ही रहता है। ៙ २. लोकसं ही ៙ सन् १९३६ के शीत- श वर क घटना ह।ै नागपुर के अ बाझरी मैदान म काय म हो रहा था। सब ओर त बू लगे थे। डॉ. जी के लए भी एक वत त बू लगाया गया। उस त बू म एक के लए ही थान था। ी परशुराम प त ब ड़ये के ज मे यह काम था क रा के समय सारी व था देखना और उसके प ात् सोना। उसी के अनसु ार रा के १० बजे वे सारी व थाएँ देख रहे थ।े यह सब देखते ए वे डॉ टर जी के त बू के सामने प ँचे। कड़ी ठ ड थी, उस ठ ड म डॉ टर जी बाहर खड़े कह जाने क तयै ारी म थ।े \" प त जी शी ता से उनके पास प ँचे और पूछा, \"आप इस समय कहाँ जा रहे ह? मझु े बताइय।े \" 21

डॉ टर जी ने हँसते ए कहा, 'उमरडे के मरे े म अभी श वर देखने आये ह। ये ब तर साथ नह लाये थे। अत: मने उनको अपने ब तर पर जगह द ह।ै अब म देख रहा ँ क मरे ी भी व था हो सकती है ? ी परशरु ाम प त ने अपना यह अनभु व बताते ए लखा क म उनके दय क उदारता देखकर च कत रह गया। वे चाहते तो कसी को भी बुला उनक व था करवा सकते थे पर वयं चाहे कतनी भी क ठनाई म ह , सरे को कोई क न हो इसका उ ह सदैव यान रहता था। ៙ ३. भाषण से नह यं के वहार से प रवतन ៙ सघं म होने वाले सारे काय म यथासमय ह , इसके लए परम पू य डॉ टर जी का आ ह रहा करता था। लोग समय पर आय इस लए ७.०० बजे के काय म का समय ६.३० बजे बताया जाना उ ह पस द नह था। जो समय न त हो वह ठ क बताया जाये और उसी समय पर काय म ार भ हो, यही वे आ ह के साथ वयंसेवक को बतलाते थे और काय म समय पर करा भी लते े थ।े एक बार गु पजू ा का काय म ७.०० बजे था। माननीय व नाथराव के लकर नयो जत अ य थ।े वे समय पर नह आये। काय म ार भ कर दया गया। आ य यह है क के लकर जी इससे ब त स तु ए। देरी से प चँ ने का ःख उ ह अव य आ क तु काय म समय पर ार भ होने से उ ह स तोष भी आ। प रणामतः बाद म वे सदा समय से ५.०० मनट पूव काय म म उप थत रहा करते थ।े इस कार भाषण व नयम से नह , य वहार से ही वे वयंसेवक तथा सघं से स ब धत जनता म प रवतन ला रहे थ।े डॉ टर जी सघं के श ा वग म पूरे ४० दन २४ घ टे रहा करते थे। छोट -छोट बात क ओर यान देते ए मागदशन करते । परोसन'े सी सामा य बात म भी भाग लते े। सघं म सारा काम अपने हाथ करना चा हये, इस ओर यान भी आक षत करत।े अपने लए लगने वाले पा डाल वयं हम ही खड़े करने चा हय।े जो-जो काय कर सकते ह, उसे कर यह कह कर ो सा हत करते। इससे धन तो कम लगता ही था, साथ ही काम क अनभु व भी ा त होता था। आ म नभरता का पाठ वयसं वे क इस तरह सीख रहे थ।े छोटे-बड़े का भदे भाव भी न होता जा रहा था। बना भाषण दये ही ' डग नट ऑफ लबे र' का पाठ उ ह याद हो गया। ៙ ४. दल से बड़ा देश ៙ सन् १९३६ म महारा के फै जपरु नामक थान पर ए कां से के अ धवेशन के समय कां से का झ डा बीच म ही अटक गया। वज त भ ८० फु ट ऊँ चा था और उस पर चढ़कर डोरी ठ क करने का साहस कसी का नह हो रहा था। सारा काय म क गया था। तभी दशक म से एक त ण आगे आया और सरसराते ए वज त भ पर चढ़कर उसके अ तम छोर तक प चँ गया और डोरी ठ क कर द । वज ऊपर चढ़ गया और सबने स तोष क सासँ ली। उस त ण क प०ं जवाहरलाल नेह समते सभी नते ा ने बड़ी शंसा क । उसका स मान करने क बात तय ई। क तु तभी यह बात भी फै ल गयी क वह संघ का वयसं ेवक ह।ै बस नेह जी का उ साह ठ डा हो गया और स मान करने क योजना यागद गयी। 22

៙ ५. समाज क च ा ៙ एक स जन डॉ टर जी से मलने आये थ।े बातचीत समा त हो चकु थी। डॉ टर जी ने उनको चाय पीने के लए कने को कहा। घर के अ दर पू य भाभी जी को आवाज देकर चाय बनाने के लए कहा। काफ समय बीत गया क तु चाय नह आई। वे स जन कह जाने क ज द म थे। डॉ टर जी ने उ ह आ ह के साथ कु छ देर और कने के लए कहा। कु छ समय और बीत गया क तु चाय नह आई। मामला या है ? यह देखने के लए डॉ टर जी अ दर गय।े वहाँ एक पा म उबलता आ पानी और कोने म चुपचाप बठै भाभी जी के अ त र कु छ भी दखाई नह दया। डॉ टर जी समझ गए। घर म आव यक सामान तो था ही नह , आव यक साम ी खरीद लाने के लए पसै े भी नह थे। डॉ टर जी नकट क कान पर गये तथा वयं चाय का सामान लेकर आय।े तब उन स जन को चाय पलायी जा सक । आ थक सकं ट का डॉ टर जी से आर भ का साथ था। वे वयं श ा से डॉ टर थे तथा उस समय स पूण म य ा त म डॉ टर क सं या १०० से अ धक नह थी। वे चाहते तो डॉ टरी का वसाय कर अपने आ थक संकट को अ छ कार र कर सकते थ।े क तु उ ह स पणू समाज क च ता थी। यूनतम आव यकता का अभाव भी उनके रा काय म बाधक नह हो पाया। इसी कारण वे इतना महान काय कर सके । ៙ ६. पार रक ेह ៙ एक बार डॉ टर जी अपने ५-७ वयंसेवक के साथ बड़े सबेरे ईकर जी के घर प ंच।े चाय-पान हो रहा था, साथ ही वाता भी। ईकर जी ने संघ और डॉ टर जी पर सा दा यक होने का आरोप लगाया। डॉ टर जी ने उसे अ वीकार कया। उ ह ने कहा, आपम और मझु म वसै े कोई वशषे मतभेद नह । म आपको ब त दन से और ब त अ छ तरह जानता ँ। या आप इसका ामा णक उ र दग?े ईकर जी बोल,े \"मने आपसे अ ामा णक बात कब क ह? आप पू छए, म अव य ही उ र ंगा।\" डॉ टर जी ने कहा, मान ली जए क आज रा को दो बजे कसी ने आपको न द से जगाकर कह दया क ईकर जी, भारत म फर से एक बार शवाजी का रा य ार भ हो गया ह,ै आपको कै सा लगगे ा? ईकर जी बोल,े \"अरे डॉ टर, इसम भी कोई पूछने क बात है ? \" म तो फू ला नह समाऊँ गा। मठाई बाटूँगा, यौहार मनाऊँ गा।\" डॉ टर जी ने मु कराते ए पूछा, तो बताइये आ खर आप और हमम या मतभेद ह?ै हम तो वही यौहार मनाने क थ त नमाण करने का यास कर रहे ह। हम यह बात प बोलते ह, य क वह थ त नमाण करने का आ म व ास हमम ह।ै आपका आ म व ास टूट चकु ा ह।ै आपका अपने समाज के त व ास नह रहा। मुझे अपने समाज पर पूरा व ास है और काय करने क श भी। ईकर जी त भत देखते रहे। इन सारी मुलाकात से वयसं ेवक के ान म वृ तो होती ही थी ब क आ म व ास के साथ-साथ अ या य नेता के त आदर भी नमाण होता था। बातचीत का ढंग कै सा होना चा हए और मत भ नता के बाद भी पार प रक नेह स ब ध कै से ह ? इसका सं कार वयंसेवक के मन पर होता रहा। 23

म क जीत (बोध कथा) म भी संसार को सुग ध ँगा यह ढ़ न य कर एक न हा सा पु प-बीज धरती क गोद म अपने सकं प के साथ करवट बदल रहा था। धरती बोली- पगल!े तू मरे ा बोझ सहन नह कर पायगे ा। पर म के कण पर जल क कु छ बदूं के सहयोग से वह ऊपर उठने लगा। उगी पौध पर वायु देवता का कोप बरसा। तेरी यह ह मत मेरे वगे के सम कै से टके गा? फू ल का वह न हा पौधा वन तापूवक दाँये-बायँ े झुककर आगे बढ़ता रहा। उपवन म उगी झा ड़याँ उसका बढ़ना नह देख पाई। चार ओर से उ ह ने पु प वृ पर आघात जारी रखा। पर उसने ह मत नह हारी, बढ़ता ही रहा। माली उसक धुन पर मु ध हो उठा। उसने सारी झा ड़य को काट गराया। सयू देव ने पौधे को उठते देखा तो बोल-े मरे े चंड ताप के सम टक सके गा? साहसी व कमठ पौधा कु छ नह बोला, नर तर तप कर आगे बढ़ता रहा। पहली कली वक सत ई और सारे ससं ार ने देखा क जो बीज डाला वह वृ बना, पु प क सुग ध उसने फै ला द । तकू लता से जो न घबराये, नर तर बढ़ता जाता है उसे कोई नह रोक सकता ह।ै भगत सह क देशभ (बोध कथा) १३ अ लै सन् १९१९ को अमृतसर के ज लयाँवाला बाग म इक जनता पर गोर ने मशीनगन चलाई। उसके अगले दन भगत सह ात:काल व ालय गए। भगत सह क छोट बहन अमतृ कौर अपने भाई क मनोदशा का वणन इस कार करती ह-ै \"पता लगा क वे व ालय गए ही नह । सीधे प चँ े ज लयाँवाला बाग। लौटने म काफ देर हो गई थी। घर म सब च तत थ,े काफ देर के बाद मुहँ लटकाये ए वे घर प चँ ।े \" मने पूछा - \"इतनी देर कहाँ लगी, भयै ा?\"उ र मला - \"एक चीज देखो।\" मने कहा \" -\" या लाए हो?\" उ ह ने जेब से एक लाल सी दखती शीशी नकाली और कहा-\"देखो, इसम ज लयाँवाला बाग क र से सनी म ह।ै गोर ने भनू दया नह थे देशवा सय को। कतने जीवन गए ह ग?े \" जो वहाँ देखा और सनु ा, वह क- क कर सुनाते रह।े उस दन उ ह ने खाना नह खाया। बाग से ब त से फू ल तोड़कर उसने शीशी को सजाया। उसे णाम कया। न जाने या बुदबुदाते थ।े स भवतः मन ही मन कु छ संक प करते ह । कई दन तक वे शीशी पर ा-समु न चढ़ाते रहे।\" ता मा के धर से उनका ऐसा स ब ध जुड़ा क वयं भी ब लदान हो गए। वैशाखी पव यह उ सव सौर मास वशै ाख क थम त थ को मनाया जाता ह।ै जस समय अ न क फसल पककर तैयार हो जाती ह,ै उस समय कसान उसे देखकर खशु ी से नाच उठता है। प व न दय -सरोवर म नान कर, नवीन व धारण करके , म दर व गु ार म जाता है। वैशाखी के दन पजं ाब म थान- थान पर बड़े-बड़े मेले लगते ह। घर म वा द पकवान बनाये जाते ह। इसे मेष-सं ा त के प म उ र भारत म मनाया जाता है। आज से ३२४ वष पवू इसी पनु ीत पव पर गु गो व द सह ने अपने श य को अमृतपान कराकर 'खालसा प थ' क थापना क थी। इसी दन अमृतसर (पजं ाब) ज लयावँ ाला बाग म वतं ता क मागँ के लए एक सभा म भारी सं या म नर-नारी उप थत थे। इस बाग म चार ओर ऊँ ची द वार थी। आने-जाने के लए चार ओर ४ दरवाजे थ।े अं ेज जनरल डायर ने बना चेतावनी दए सभा पर गो लयाँ बरसाना आर भ करवा दया। नकलने का कोई माग नह था। सभी नह थे थे। ी-पु ष, ब चे आ द हजार लोग मारे गये। पूरा बाग खून से रंग गया। उस बाग का य बड़ा का णक था। बाद म स ा तकारी 'ऊधम सह' ने जनरल डायर का इं लै ड म वध करके ज लयाँवाला बाग ह याका ड का तशोध लया। 24

१३ अ ैल इ तहास- ृ त अनपु म ा ततीथ : ज लयावँ ाला बाग भारतीय वत ता के लए ए सघं ष के गौरवशाली इ तहास म अमतृ सर के ज लयावँ ाला बाग का अ तम थान ह।ै इस आधु नक तीथ पर हर देशवासी का म तक उन वीर क याद म वयं ही झुक जाता ह,ै ज ह ने अपने र से भारत क वत ता के पेड़ को स चा। १३ अ लै , १९१९ को बसै ाखी का पव था। य तो इसे पूरे देश म ही मनाया जाता ह;ै पर खालसा प थ क थापना का दन होने के कारण पजं ाब म इसका उ साह देखते ही बनता है। इस दन जगह-जगह मेले लगते ह, लोग प व न दय म नान कर पजू ा करते ह; पर १९१९ म इस पव पर वातावरण सरा ही था। इससे पूव अं ेज सरकार ने भारतीय के दमन के लए 'रौलट ए ट' का उपहार दया था। इसी के वरोध म एक वशाल सभा अमतृ सर के ज लयाँवाला बाग म आयो जत क गयी थी यह बाग तीन ओर से द वार से घरा था और के वल एक ओर से ही आन-े जाने का ब त छोटा सा माग था। सभा क सूचना मलते ही जनरल डायर अपने ९० सश सै नक के साथ वहाँ आया और उसने उस एकमा माग को घेर लया। इसके बाद उसने बना चते ावनी दये नह थे ी, पु ष, ब च और वृ पर गोली चला द । यह गोलीवषा १० मनट तक होती रही। सरकारी रपोट के अनसु ार इसम ३७९ लोग मरे तथा १,२०८ घायल ए; पर सही सं या १,२०० और ३,६०० ह।ै सैकड़ लोग भगदड़ म दब कर कु चले गये और बड़ी सं या म लोग बाग म थत कु एँ म गर कर मारे गये। इस नरसंहार के वरोध म पूरे देश का वातावरण गरम हो गया। इसके वरोध म परू े देश म धरने और दशन ए। सरकारी जाँच स म त ‘ह टर कमेट ' के सामने इस का ड के खलनायक जनरल डायर ने वयं वीकार कया क ऐसी घटना इ तहास म लभ ह।ै जब उससे पूछा गया क उसने ऐसा य कया ? तो उसने कहा क उसे श दशन का यह समय उ चत लगा। उसने यह भी कहा क य द उसके पास गो लयाँ समा त न हो गयी होती, तो वह कु छ देर और गोली चलाता। वह चाहता था क इतनी मजबूती से गोली चलाए, जससे भारतीय को फर शासन का वरोध करने क ह मत न हो। उसने इसके लए ड ट क म र क आ ा भी नह ली। जब उससे पूछा गया क उसने गोलीवषा के बाद घायल को अ पताल य नह प चँ ाया, तो उसने लापरवाही से कहा क यह उसका काम नह था। व क व रवी नाथ ठाकु र ने इस नरसंहार के वरोध म अं जे ारा द 'सर' क उपा ध लौटा द । जब जनता का ब त दबाव पड़ा, तो शासन ने जनरल डायर से यागप ले लया। उस समय पजं ाब म गवनर के पद पर माइके ल ओडायर बठै ा था। वह भी ऐसा ही ू र था। जनरल डायर के सर पर उसका ही वरदह त था। २८ मई, १९१९ को गवनर के पद से मु होकर वह वापस इं लै ड चला गया। वहाँ उसके शसं क ने उसे स मा नत कर एक अ छ धनरा श उसे भट क । उसने भारत के वरोध म एक पु तक भी लखी। । पर भारत माँ वीर सूता ह।ै ा तवीर ऊधम सह ने ल दन के कै सटन हॉल म १२ माच, १९४० को माइके ल ओडायर के सीने म छह गोली उतार कर इस रा ीय अपमान का बदला लया। इस बाग म द वार पर लगे गो लय के नशान आज भी उस ू र जनरल डायर क याद दलाते ह, जब क वहाँ थत अमर शहीद यो त हम देश के लए मर मटने को े रत करती है। 25

१४ अ लै ज -िदवस सं वधान नमाता : डा0 अ बडे कर भारतीय सं वधान के नमाता डा० भीमराव अ बेडकर का ज म १४ अ ैल, १८९१ को म , म य देश म आ था। उनके पता ी रामजी सकपाल तथा माता भीमाबाई धम ेमी द पती थे। उनका ज म महार जा त म आ था, जो उस समय अ पृ य मानी जाती थी। इस कारण भीम को कदम-कदम पर असमानता और अपमान सहना पड़ा। इससे उसके मन का संक प मश: ढ़ होता गया क उ ह इस बीमारी को भारत से र करना है। व ालय मे उ ह सबसे अलग बैठना पड़ता था। यास लगने पर अलग रखे घड़े से पानी पीना पड़ता था। एक बार वे बैलगाड़ी म बैठ गये तो उ ह ध का देकर उतार दया गया। वह सं कृ त पढ़ना चाहते थ,े पर कोई पढ़ाने को तैयार नह आ। एक बार वषा म वह एक घर क द वार से लगकर बौछार से वयं को बचाने लग,े तो मकान माल कन ने उ ह क चड़ म धके ल दया। इतने भदे भाव सहकर भी भीमराव ने उ च श ा ा त क । गरीबी के कारण उनक अ धकांश पढ़ाई म के तेल क ढबरी के काश म ई। य प सतारा के उनके अ यापक ी अ बा वाडेकर, ी पडसे तथा मु बई के कृ णाजी के लु कर ने उ ह भरपरू सहयोग भी दया। जब वे महाराजा बड़ोदरा के पास सै नक स चव के नाते काम करते थ,े तो चपरासी उ ह फाइल फक कर देता था। यह देखकर उ ह ने नौकरी छोड़ द तथा मु बई म ा यापक हो गये। १९२३ म वे ल दन से बै र टर क उपा ध लेकर भारत वापस आये और वकालत शु कर द । इसी साल वे मु बई वधानसभा के लए भी नवा चत ए; पर छु आछू त क बीमारी ने उनका पीछा नह छोड़ा। १९२४ म भीमराव ने नधन और नबल के उ थान हते ु 'ब ह कृ त हतका रणी सभा' बनायी और संघष का रा ता अपनाया। १९२६ म महाड़ के चावदार तालाब से इसक शु आत ई। जस तालाब से पशु भी पानी पी सकते थ,े उससे पानी लने े क अछू त वग को मनाही थी। डा० अ बेडकर ने इसके लए संघष कया और उ ह सफलता मली। उ ह ने अनके पु तक लख तथा 'मूकनायक' नामक पा क प भी नकाला। इसी कार १९३० म ना सक के कालाराम म दर म वेश को लेकर उ ह ने स या ह एवं सघं ष कया। उ ह ने पछू ा क य द भगवान सबके ह, तो उनके म दर म कु छ लोग को वेश य नह दया जाता। अछू त वग के अ धकार के लए उ ह ने कई बार कां से तथा टश शासन से संघष कया। भारत के वत होने पर उ ह के य म म डल म व ध म ी क ज मेदारी द गयी। भारत का नया सं वधान बनाने के लए ग ठत स म त के वे अ य थ।े इस नाते उ ह आधु नक मनु कहना उ चत ही है। सं वधान म छु आछू त को द डनीय अपराध बनाने के बाद भी वह समाज म ब त गहराई से जमी थी। इससे वे ब त खी रहते थे। अ तत: उ ह ने ह धम छोड़ने का न य कया। यह जानकारी होते ही ईसाई और मसु लमान नते ा उनके पास तरह-तरह के लोभन लेकर प चँ गय;े पर डा० अ बेडकर जानते थे क इन वदेशी मजहब म जाने का अथ देश ोह है। अत: वजयादशमी (१४ अ ू बर १९५६) को नागपरु म अपनी प नी तथा हजार अनयु ा यय के साथ उ ह ने भारत म ज मे बौ मत को अगं ीकार कया। यह भारत तथा ह समाज पर उनका ब त बड़ा उपकार ह।ै छह दस बर, १९५६ को इस महान् देशभ का देहा त आ। 26

२६ अ लै ज -तथ अ त च कार : राजा र व वमा आज तो च कला क तकनीक ब त वक सत हो गयी है। अब पे सल, रबड़, रगं या कू ची क आव यकता ही समा त हो गयी लगती है। सगं णक (क यटू र) ारा यह सब काम आज आसानी से हो जाते ह। एक साथ छह रगं क छपाई भी अब स भव है; पर कु छ समय पवू तक ऐसा नह होता था। तब एक-एक च को बनाने और उसम सजीवता लाने के लए कई दन और महीने लग जाते थे। च के रगं म भेद न हो जाय,े यह बड़े अनभु व और साधना का काम था। ऐसे युग म भारतीय च कला को परू े व म स करने वाले थे राजा र व वमा। राजा र व वमा का ज म के रल के क लमनरू म २९ अ लै , १८४८ को आ था। इनके घर म ार भ से ही च कारी का वातावरण था। इसका भाव बालक र व पर भी पड़ा। वे भी पे सल और कू ची लके र तरह-तरह के च बनाया करते थे। इनके चाचा राजा राज वमा ने इनक च देखकर इ ह व धवत च कला क श ा द । इसके बाद तो र व वमा ने मड़ु कर नह देखा। उ ह ने आगे चलकर च कला क अपनी वत शैली भी वक सत क । उनक च कारी सबका मन मोह लते ी थी। एक बार स अं जे च कार थयोडोर जॉ सन ावणकोर आये। वे र व वमा क च कारी देखकर दंग रह गय।े र व वमा ने अपने च म पा के चहे रे पर रगं के जो योग कये थ,े उससे थयोडोर जॉ सन ब त भा वत ए। उ ह ने र व वमा को कै नवास पर तैल च बनाने का श ण दया और इसके लए उ ह ो सा हत कया। धीर-े धीरे र व वमा इस कार के तैल च बनाने म भी न णात हो गये। र व वमा अपने च म ह पौरा णक कथा से पा का चयन करते थ।े १८७३ म उ ह ने म ास म आयो जत एक तयो गता म भाग लया। इसम उनके ारा न मत नायर म हला के च को थम पुर कार ा त आ। फर उ ह ने अपने च क द शनी पणु े म लगाई। इससे उनक स देश भर म फै ल गयी। उन दन कै मरे का चलन नह था। अत: उ ह र- र से च बनाने के नम ण मलने लगे। अनके राजा-महाराजा और ध नक ने उनसे अपने प रजन के गत और सामू हक च बनवाय।े १८८८ म बड़ौदा नरेश ी गायकवाड़ ने उ ह अपने दरबार म बुलाया। वे दो वष तक वहाँ रहे और महल क कला द घा के लए अनेक च बनाय।े उनके च क इतनी मागँ थी क बड़ौदा नरशे ने उ ह मु बई म तलै च क छपाई के लए से था पत करने क सलाह द , जससे उनके च सामा य लोग को भी उपल ध हो सक। राजा र व वमा ने च कला म एक नया युग ार भ कया। उ ह ने अपने कौशल से व भर म भरपूर या त और स मान अ जत कया। उनके च भारत के अनेक मह वपणू घरान , राज प रवार और कला द घा म आज भी सुर त ह। इनम त अन तपरु म् क ी च कला द घा मुख है। अब तो उनके च का मू य लाख -करोड़ ० म आंका जाता ह।ै अपने अ तम दन म राजा र व वमा अपने ज म थान क लमनरू ही आ गये और यह कला साधना करते रहे। २ अ ू बर, १९०६ को वे म के पास अ गल म उनक कलम और कू ची के रंग सदा के लए मौन हो गय।े 27

๏ भगवान महावीर जनै ๏ भगवान महावीर वामी का ज म 599 ई.पू .वशै ाली के नकट कंु ड ाम म आ था। महावीर वामी के बचपन का नाम वधमान था, ले कन जनै सा ह य म उ ह ‘महावीर’ और ‘ जन’ नाम से भी पकु ारा गया है। उनके पता का नाम स ाथ था जो य वंश से सबं धं रखते थे और उनक माता का नाम शला था। जो वैशाली के ल छवी वशं के राजा चटे क क बहन थी। जैन ंथ के अनुसार 23 नते ृ व कर पा नाथ के मो ा त करने के 188 वष के बाद इनका ज म आ था। जैन थं उ रपुराण म वधमान, वीर, अ तवीर, महावीर और स म त ऐसे 5 नाम का उ लेख है। राजकु ल म ज म लने े के कारण वधमान का ारं भक जीवन अ यंत आनदं और सखु मय तीत आ। बड़े होने पर उनके माता- पता ने उनका ववाह एक सुदं र क या यशोदा से कर दया। कु छ समय के बाद उनके घर म एक क या ने ज म लया जसका नाम यदशना अथवा आणो जा रखा गया। यवु ाव था म इस क या का ववाह जमाली नामक युवक से कया जो बाद म महावीर वामी के अनयु ायी बने। महावीर वामी ने 30 वष क आयु तक गहृ थ जीवन तीत कया। परंतु सासं ा रक जीवन से उ ह आंत रक शां त न मल सक । जसके कारण अपने माता- पता क मृ यु के बाद उ ह ने अपने बड़े भाई नदं वधन से आ ा लेकर 30 वष क आयु म गहृ याग कर दया और सं यासी हो गए। उ ह ने 12 वष तक कठोर तप या क । इस अव ध म उ ह अनेक क उठाने पड़े। वामी महावीर ने दगबं र साधु क क ठनता अगं ीकार कया और नव रह।े ते ाबं र सं दाय जसम साधु ेत व धारण करते ह। उनके अनसु ार महावीर द ा के उपरातं कु छ समय छोड़कर नव रहे और उ ह ने के वल ान क ा त भी दगंबर अव था म ही क । अपने परू े साधना काल के दौरान महावीर ने क ठन तप या क और मौन रहे। जब वे यानम न रहकर इधर-उधर घूमते थे तो लोग उ ह परेशान करते थ,े परंतु फर भी वे पणू प से मौन और शातं रहते थ।े उ ह ने अपने शरीर के ज म को ठ क करने के लए औष ध तक का भी योग नह कया था। इस कार वधमान अपार धीरज के साथ अपनी तप या म 12 वष 5 माह और 15 दन तक लीन रहे और 13 वष म वैशाखी क दसव के दन उ ह कै व य अथात ान ा त आ। जै नय के अनसु ार उ ह मनु य, देवता, ज म-मरण, इस संसार तथा अगले ससं ार का ान ा त हो गया था। इं य पर उ ह ने वजय ा त कर ली और वे ‘ जन’ तथा ‘महावीर’ के नाम से पुकारे जाने लगे और वे बंधन हीन हो गए। अतः न थ माने जाने लगे। उस समय महावीर क आयु लगभग 42 वष क थी। ान ा त के बाद आगामी 30 वष महावीर वामी ने अपने ान और अनभु व का चार करने म बताए। उनके धम चार के माग म अनेक क ठनाइयां आई। फर भी वे अपने य न म लगे रह।े , अनपढ़, अस य तथा ढ़वाद लोग उनका वरोध करते थ।े परंतु वे उनके दल को अपने उ च च र और मधुर वाणी से जीत लेते थे। कभी भी उ ह ने अपने वरो धय से भी बेरै भाव न रखा। जनसाधारण लोग उनसे अ य धक भा वत होते थे। उ ह ने काशी, कौशल, मगध, अगं , म थला, व ज आ द देश म पदै ल घमू कर अपने उपदेश का चार कया। जैन सा ह य के अनसु ार ब बसार तथा उनके पु अजातश ु महावीर वामी के अनुयायी बन गए थे। उनक पु ी चंदना तो महावीर वामी क थम भ ुणी थी। इसके अलावा महावीर वामी क स य वाणी तथा जीवन के सरल माग से भा वत होकर सकै ड़ लोग उनके अनुयायी बनने लग।े राजा-महाराजा, वसाय- ापारी तथा जन साधारण लोग उनके स ातं का अनसु रण करने लगे और धीर-े धीरे उनके अनयु ा यय क सं या काफ बढ़ गई। 30 वष तक अपने उपदेश का चार करने के प ात 527 ईसा पवू म महा मा महावीर वामी का आधु नक पटना के नकट पावा नामक थान पर देहातं हो गया। उस समय उनक आयु 72 वष थी। उनक मृ यु के बाद भी उनका धम फलता फू लता रहा और आज भी व मान ह।ै जैन समाज के अनुसार महावीर वामी के ज म दवस को महावीर जयतं ी तथा उन के मो दवस को द पावली के प म धमू धाम से मनाया जाता है। . 28

आचार वभाग शाखा लगाते समय क आ ाय - शाखा व कर करते समय क आ ाय - सीट संके त ー0ー0 १. अ से र हेतु: ー000(एक ल बी, तीन छोट ) (एक ल बी, एक छोट , एक ल बी एक छोट ) २. अ ेसर स यक् १. संघ द ३. आरम् २. आरम् ४. स पत् हेतु सीट ー00(एक ल बी, दो छोट ) ३. अ ेसर ५. संघ द ४. अ ेसर स यक् ६.सघं स यक् ५. आरम् ७. अ ेसर अधवृ ६.सघं स पत् ८. सं या ७. संघ द ९. आरम् ८. सघं स यक १०. संघ द ९. अ ेसर अधवृ ११. आरम् १०. संघ आरम् १२. सघं द ११. सघं द ( वज लगेगा) १३. ाथना हेतु सीट सकं े त 0 (एक छोट ) १२. वज णाम १,२,३ १४. वज णाम १,२,३ १३. सं या १५. संघ व कर १४. आरम् १५. सघं द Youtube १६. आरम् १७. संघ द १८. व थान 29

सयू नम ार तन से, मन से एवं वाणी से क ई सूय पासना ही 'सयू नम कार' है। उसके दो आधु नक प ह। पहला सां घक सयू नम कार और सरा संगीत के साथ सूयनम कार । सगं ीत के साथ सयू नम कार लगाने से वे अ धक आकषक, रजं क एवं भावी बनते ह। वे सां घक होने पर और भी फल द हो जाते ह। सूय नम कार करते समय ाणायाम ( ासं - ांस क व ध परू क, रेचक, कुं भक) का अ यास न न प त से करना अपे त ह।ै सरल उपासना और सौ य स तु लत ायाम यह सूयनम कार क वशेषता ह।ै 'सूयनम कार' नामक यह ायाम सात आसन का समु चय भी ह।ै ये आसन ह - १. ताड़ासन २. उ ानासन ३. अ चालन आसन ४. द डासन ५. सा ागं णाम आसन ६. भजु ंगासन ७. अधोमुख ान आसन। उपासना ोक यये ः सदा स वतमृ डलम यवत , नारायण: सर सजासन स न व ः। के यरू वान् मकर-कु डलवान् करी टः,हारी हर यमय वपधु तृ शखं -च ः॥ (सू - मरसू-भाखप-ू हमआस-अभास) ॐ म ाय नमः - हत करने वाला म ॐ रवये नमः - श द का उ प ोत ॐ सयू ाय नमः - उ पादक, संचालक ॐ भानवे नमः - ओज, तेज ॐ खगाय नमः - आकाश म वचरण करने वाला ॐ पू णे नमः - पु देने वाला ॐ हर यगभाय नमः - बलदायक ॐ मरीचये नमः - ा धहार/ करण से यु ॐ आ द याय नमः - सयू ॐ स व े नमः - सृ उ पादनकता ॐ अकाय नमः - पूजनीय ॐ भा कराय नमः - क तदायक ॐ ी स वतसृ यू नारायणाय नमः - सृ का उ पादन और संचालन करने वाले नारायण सूय 30

सूय नम कार थ त - योगाथ दए गए यू-आर कोड को कै न कर य- के आधार पर Youtube मा यम से भी सूय नम कार का अ छा अ यास कया जा सकता है। फल������ु������त ������ोक आ द य य नम कारान् ये कु व त दन-े दने। आयुः ा बलम् वीय तजे स् तेषां च जायते॥ आव यक सूचनाय - १. कमर दद ( लप ड क), गदन दद ( पॉ डलाइ टस) से पी ड़त ब धु थ त २ व ७ म गदन ऊपर तानकर करगे तो लाभ मलेगा। २. ग त धीमी तथा ाणायाम या का पालन करने से थकान क अपे ा और अ छे प रणाम मलते ह। ३. त दन ५ मनट सूय नम कार कर। 31

◉ सा ा हक खेल योजना ◉ सोमवार गणशे छू , म शवाजी, मढक छू , मरु ादाबाद लोटा, सदु शन च , हवाई जहाज, अंग छू , जय हनुमान । मंगलवार खजाना, हनुमान क पूछँ , बगड़ा बलै , मरखनी गाय, नद -टाप,ू ग दा नाला, म ँ ब दा वीर बरै ागी, ह बनाना। बधु वार माल छू , गु -चेला, राम-राजा-रावण, रले गाड़ी, जंजीर बनाना, र शा, समोसा दौड़, डम दौड़। गु वार कु कु ट यु , टक यु , द वार यु , ीवा यु ,श प रचय, घड़ु सवार यु , सघाड़े क बले । शु वार नते ा क खोज, अयो या-मथरु ा-काशी, फल क खोज, सं या, डाकखाना, क क बेल, हनुमान दौड़, आग लगी है - आ रहे ह। श नवार खो-खो, नम ते जी, च दन, सं या बनाना, राम- याम, टाईम बम, चुनौती, सहगढ़ का कला। र ववार वशषे काय म - कब ी/खो-खो, म डल खो, प तथा अ य खेल का चयन कर सकते ह। ◉ मुख आ ाए ँ व उनका अथ ◉ आा अथ १. चल चलना २. चल दौड़ना ३. तभ ४. उप वश कना ५. उ त बठै ना ६. कु उठना/खड़े होना ७. तसर ८. पुरसर ार भ करना ९. द णसर पीछे हटना १०. वामसर आगे बढ़ना ११. द णवतृ दाय ओर हटना १२. वामवतृ बाय ओर हटना १३. अ वृत दाय मड़ु ना १४. व म बाय मड़ु ना पीछे मड़ु ना पूव रचना/समा त करना 32

(सं ृ तगीतम)् िह दरु ा संघटकं , सजु न व दनीयम।् के शवं मरा म सदा, परमपजू नीयम।् । रा मदं िह दनू ां खलु सनातनम,् िवघटनया जातं, चरदा यभाजनम।् दःु खदै यपीिड़ त म त पीिड़ त दयम।् ।१।। भगव वज एव रा गु रयं महान,् दशे ोऽयं खलु दवे ो जग त महीयान।् बोधय त म त त वं सतत मरणीयम।् ।२।। वीर तमवे परं, धमिनदानम,् सशु ीलमवे लोके ऽ मन् परमिनधानम।् उपिदश त म त त वं, दढृ ़ माचरणीयम।् ।३।। नते ंु िनजरा मदं, परमवैभवम,् नयत िवलयम तगतसकलभदे भावम।् संघम म तजप तमके मषे णीयम।् ।४।। अथः ๏ िह द-ू रा का सघं टन करने वाल,े स न के व दनीय तथा परम पजू नीय \"के शव\" का म सदा मरण करता ँ। ๏ यह िह दओु ं का सनातन रा िवघटन के कारण िचर दासता का पा तथा दःु ख दै य से पीिड़ त हो गया है यह अनभु व करके उनका दय पीिड़ त रहता था। ๏ 'भगवा वज' ही हमारा महान् रा गु है और यह देश ही नह ससं ार म पजू नीय देव है, जसको सदा याद रखना चािहये, उ ह ने हम इस त व का बोध कराया। ๏ वीर त ही धम-र ा का परम साधन है और इस ससं ार म सशु ील (उ मशील) ही सबसे बड़ ी िनिध है। इस उपदेश सार का दढृ ़ ता से आचरण करना चािहये यह भी उ ह ने ही हम बताया। ๏ अपने रा को परमवैभव ा कराने के लये हम अपने अ दर के सभी भदे -भाव को समा कर द। इसी सघं मं को जपने वाले उस एक महापु ष का ही मरण करना चािहए। 33


Like this book? You can publish your book online for free in a few minutes!
Create your own flipbook