रा ीय यंसवे क सघं , उ राखडं ई - शाखा पु तका बाह र भीत र एको जान इ गरु गआनु बताई, जन नानक बनु आपा चीनै मटै न म क काई।। ी गु तेग बहादुर जी का “४०० वाँ” काशो व फा गनु - चै , व मी सं० - २०७८ माच - २०२२ 0
रणीय दवस माच मास : फा नु -चै ● ०१, (इस वष) महा शवरा त - फा गनु कृ ा- चतुदशी जय ती ● ०२ १९२७ ई० रा ीय इ तहासकार पु षो म नागेश ओके जय ती ● ०८, ( तवष) अतं रा ीय म हला दवस ● ०८, १५३५ ई० च ौड़ का सरा साका (जौहर), अपने स मान सती व क र ा हते ु च ौड़ ● ०८, (इस वष) ● ११, १९२४ ई० क महारानी कमवती ारा १३००० छ ा णय स हत ज दा जलना। ● १३, १९४० ई० स त तुकाराम जय ती ● १६, १८५८ ई० स ां तवीर - हेमू कालाणी जी जय ती ● १७, (इस वष) ऊधम सह ारा जनरल माईके ल ओ डायर क ह या कर ज लयाँवाला बाग ह याका ड का तशोध । ● १८, (इस वष) ● २१, ४७६ ई० थम र ा मखु (चीफ ऑफ डफे स टाफ) ी व पन रावत जी जय त ● २३, १९३१ ई० हो लका दहन फा गनु पू णमा, ● ३०, १८८७ ई० चैत य महा भु जय ती (१४८५ ई०) फा गनु पू णमा व. स.ं १५४० शु भुधन फु गलो जय ती (१८५० ई.) फा गनु पू णमा व.स.ं १९०७ महाराणा ताप राजया भषेक दवस, फा गनु पू णमा व. हो लको सव (धलु डी) चै कृ ण तपदा। व व यात खगोलशा ी आयभट जी क जय ती भगत सह, सुखदेव, राजगु ब लदान (फासँ ी) दवस। मा० अ पा जोशी जी जय ती –♦♦◇ रा ाय वाहा, इदं रा ाय इदं न मम ◇♦♦– 1
♪ गणगीत ( त ण यंसवे क हते ु ) ♪ कदम नर तर चलते जनके , म जनका अ वराम ह।ै वजय सु न त होती उनक , घो षत यह प रणाम ह॥ै लौ कक और अलौ कक ब धन, जनको बाधँ नह पात।े घर व न-बाधाएँ फर भी, त नक नह वे घबराते। मान चनु ौती कर सामना, यह जीवन सं ाम है ॥१॥ साहस स बल होता जनका, धैय सार थ होता है। लोक हतषै ी बनकर अपने, ाण को भी खोता ह।ै काल सदा लखता पृ पर, उनका व णम नाम है ॥२॥ कालच के माथे पर जो पौ ष क भाषा लखत।े उनक मृ यु कभी नह होती, वे के वल करते दखते। मातृभू म क पावन गीता, गाते आठ याम ह ॥३॥ ♪ गणगीत ( ौढ़ यसं वे क हते ु ) ♪ वणमयी लकं ा न मले माँ, अवधपुरी क धलू मले | सोने म काटँ े चुभते ह, म म ह फू ल खले || इ ासन वभै व नह यारा, माता क गोद यारी, नमो-नमो जग जग क जननी, कण-कण पर सतु ब लहारी, पु प क श या न मले माँ, कदम-कदम पर शलू मले ||१|| सोने म काटं े चभु ते ह............................. तेरा सुख सव व हमारा, तरे ा ःख आ ान बन,े तरे ी शान बढाते जाए,ं मृ यु वजय क शान बने | आजीवन पतवार चलाए,ं धार मले या कू ल मले ||२|| सोने म कांटे चुभते ह............................. नयन म यो तत रहना माँ, सर पर वर का कर धरना माँ, रग-रग म जीवन भरना माँ, तु ह रे णा का झरना माँ, जीवन पु य सम पत हो नत, अमतृ रस म मलू मले ||३|| सोने म काटं े चुभते ह............................. वणमयी लंका न मले माँ, अवधपुरी क धूल मले | सोने म काटं े चभु ते ह, म म ह फू ल खले || 2
♪ गणगीत ( बाल यसं ेवक हते ु ) ♪ हे ज मभू म भारत, हे कमभू म भारत ! हे व दनीय भारत, अ भन दनीय भारत !! जीवन समु न चढ़ाकर आराधना करगे, तरे ी जनम-जनम भर हम वदं ना करगे॥ हम अचना करगे …१ म हमा महान तू है, गौरव नधान तू ह,ै तू ाण है हमारी, जननी समान तू ह।ै तरे े लये जयगे, तेरे लये मरग,े तेरे लये जनम भर, हम साधना करगे॥ हम अचना करगे…२ जसका मुकु ट हमालय, जग जगमगा रहा ह,ै सागर जसे रतन क , अजँ ु ल चढ़ा रहा ह।ै वह देश है हमारा, ललकार कर कहग,े उस देश के बना हम, जी वत नह रहग॥े हम अचना करगे…३ जो सं कृ त अभी तक जय सी बनी ह,ै जसका वशाल म दर, आदश का धनी ह।ै उसक वजय- वजा ले हम व म चलग,े सुर सं कृ त पवन बन हर कुं ज म बहग॥े हम अचना करगे…४ शा त वतं ता का, जो द प जल रहा है, आलोक का प थक जो, अ वराम चल रहा है। व ास है क पल भर, कने उसे न दग,े उस द प क शखा को, यो तत सदा रखग॥े हम अचना करगे…५ ♪ सचं लन गीत ♪ हमा तंगु गंृ से, बु शु भारती। वयं भा समु वला, वतं ता पुकारती॥ अम य वीरपु हो, ढ त सोच लो। श त पु य पथं ह,ै बढे चलो,बढे चलो॥ असं य क त-र मया,ँ वक ण द दाह-सी। सपूत मातृभू म के , को न शरू साहसी॥ अरा त सै य सधु म,सुवाड़वा न-से जलो। वीर हो जयी बनो, बढे चलो, बढे चलो॥ 3
������ सुभा षत ( त ण यसं वे क हते ु ) यु ाहार वहार य यु चे य कमस।ु यु व ावबोध य योगो भव त ःखहा।। ( गीता, अ याय ६-१७ ) अथ - जो यो य आहार- वहार करता है, कम म यो य य न करता है और स तु लत सोता व जागता है उसका ही योग स होता है और वह योग ःख का नाश करता है। ������ सुभा षत ( बाल यसं वे क हते ु ) े ं जनं गु ं चा प मातरं पतरं तथा। मनसा-कमणा-वाचा सेवते सततं सदा।। अथ - हम सदैव अपने गु , अपने माता पता तथा स जन का स मान करना चा हए और मन, वचन तथा कम से उनक सवे ा करनी चा हए। ������ सुभा षत ( ौढ़ यसं ेवक हते ु ) र व ो घना वृ ा नद गाव स जनाः। एते परोपकाराय यगु े देवेन न मता॥ अथ - सूय, च , बादल, वृ , नद , गाय और स जन - ये येक यगु म ई र ने परोपकार करने के लए नमाण कये ह। ✇ अमतृ वचन ( त ण यंसवे क हते ु ) सद् थं का अ ययन करने वाले, चतन और मनन करने के बाद अ छ बात को जीवन म उतारने वाले मानव का जीवन ही साथक ह।ै - सतं तुकाराम ✇ अमतृ वचन ( बाल यंसेवक हते ु ) हम जो भी काम करते ह, इसे गभं ीरता से, अ छ तरह से और पूणता से कर; इसे कभी भी आधा - अधूरा नह कर, तब तक वयं को सतं ु न समझ जब तक क आप इसे अपना सव े नह दे द। - यामा साद मखु ज ✇ अमतृ वचन ( ौढ़ यंसवे क हते ु ) सेवा नया का सबसे बड़ा तप ह।ै सेवा सधा मक वा स य का मतू प ह।ै सवे ा सबसे बड़ा वशीकरण मं है। सेवा सगं ठन का सबसे वा द फल ह।ै - आचाय महा जी 4
ाथना (स ध नयमानसु ार उ चारण हेतु) नम ते सदा व सले मातभृ ूम,े वया ह भूमे सुखवँ् व धतोऽहम्। महामङ् गले पु यभूमे वदथ, पत वेष कायो नम ते नम ते ॥१॥ भो श मन् ह रा ाङ् गभतू ा, इमे सादरन् वान् नमामो वयम्। वद याय कायाय ब ा कट यम,् शुभामा शषन् दे ह त पतू य।े अज याञ् च व य देहीश श म,् सशु ीलञ् जगद् येन न म् भवते ्। ुतञ् चवै यत् क टकाक णमागम,् वयम् वीकृ तन् नस् सुगङ् कारयते ् ॥२॥ समु कष न ेयस यकै मु म्, परम साधनन् नाम वीर तम्। तद तस् फु र व या यये न ा, द तः जागतु ती ाऽ नशम्। वजे ी च नस् सहं ता कायश र्, वधाया य धम य सरं णम।् परवँ् वभै वन् नते ुमते त् वरा म्, समथा भव वा शषा ते भृशम्॥३॥ ।। भारत माता क जय ।। ोकानुसार अनुवाद हे व सलमयी मातभृ ू म! म तुझे नर तर णाम करता ।ँ हे ह भू म ! तूने ही मुझे सुख म बढ़ाया ह।ै हे महामङ् गलमयी पु यभू म ! तेरे ही कारण मरे ी यह काया (शरीर) अ पत (सम पत) हो। तुझे म अन त बार णाम करता ।ँ हे सवश मान् परमे र ! ये हम ह रा के अगं भूत घटक, तझु े आदरपवू क णाम करते ह। तेरे ही काय के लए हमने अपनी कमर कसी है। उसक पू त के लए हम शुभ आशीवाद दे॥ व के लए अजेय ऐसी श , सारा जगत् वन हो ऐसा वशु शील (च र ) तथा बु पवू क वयं वीकृ त हमारे क टकमय माग को सुगम करे, ऐसा ान भी हम दे॥ अ युदय स हत नः ेयस् क ा त का वीर त नामक जो एकमवे े उ साधन ह,ै उसका हम लोग के अ त: करण म फु रण हो। हमारे दय म अ य तथा ती येय न ा सदैव जागतृ रहे। तरे े आशीवाद से हमारी वजयशा लनी सगं ठत कायश वधम का र ण कर अपने इस रा को परम वैभव क थ त पर ले जाने म अतीव समथ हो। ॥ भारत माता क जय॥ 5
ाथना ( अ य और श ाथ ) व सले मातभृ मू े! = (ह)े वा स यमयी मातभृ ू म ते = तझु े सदा = नर तर नमः = णाम। ह भमू े = हे ह भू म! वया = तरे े ारा अहम् = म सुखं व धतः = सखु म बढ़ाया गया ँ (व धतोऽहम् = व धतः + अहम)् महामङ् गले पु यभमू े = हे परम मंगलम य पु यभू म ! वदथ = ( वत् + अथ) तरे े लए एषः = यह कायः = शरीर पततु = गर।े नम ते नम ते तझु े अनके बार णाम। (पत वेष = पततु + एष) श मन् भो श मान् परमे र ! ह रा ाङ् गभतू ा ( ह रा + अङ् गभतू ाः) ह रा के अंगभतू घटक इमे = ये वयम् = हम वाम् = तझु े सादरम् आदर स हत नमामः = णाम करते ह। वद याय = तरे े कायाय = काय के लए इयम् = यह क ट = कमर (कट यम् = क ट + इयम्) ब ा बँधी है, त पतू ये = उसक पू त के लए शुभां आ शषम् = शुभ आशीवाद दे ह = दे। ईश = हे ईश! व य = व के लए अज याम् = जसे जीतना अश य है (ऐसी) श म् = श दे ह = दे (देहीश = दे ह + ईश) येन = जससे जगद् = जगत् न म् = न भवेत् = हो (ऐसा) सुशीलम् = अ छा शील, यत् = जो वयं वीकृ तम् = अपनी रे णा से वीकृ त कये ए नः = हमारे क टकाक णमागम् = क टकमय माग को (क टक (काटँ ा) + आक ण ( ा त) सगु म् कारयते ् = सगु म करे (ऐसा) तु म् = ान चवै = (च + एव) भी (दे ह = दे)। समु कष नः ये स य = समु कष और न: ये स का (समु कष = ऐ हक और पारलौ कक क याण नः ये स = मो ) एकं परं उ ं साधनम् = एकमा परम उ साधन (जो) वीर तं नाम = वीर त नामक (है) तत् = वह अ तः = अ त:करण म फु रतु = फु रत हो। अ या = ीण न होने वाली ( फु र व या फु रतु + अ या) ती ा = ती यये न ा = यये के त न ा अ नशम् न य द तः = दय म ( त् + अ तः) जागतु = जा त रह।े वजे ी वजयशा लनी च = और नः = हमारी संहता = सगं ठत कायश ः = कायश अ य = इस धम य = धम का संर णम् = सरं ण वधाय = करते ए ( वधाया य = वधाय + अ य) एतत् = इस वरा म् = हमारे रा को परं वभै वम् = परम वभै व क थ त म नेतुम् = ले जाने के लए ते = तरे े आ शषा = आशीवाद से भशृ म् = चुर समथा = समथ भवतु = हो (भव वा शषा = भवतु + आ शषा)। भोजन म ऊँ ापणं ह व ा नौ णा तम्। ैव तेन ग त ं कमसमा धना॥ अथ - य म आ त देने का साधन (सु च, सुवा, हाथ क मृ ग, हसं , ा आ द मु ाए)ँ अपण ह।ै पी अ न म प होमकता ारा जो अ पत कया जाता है, वह भी ही है। इस कम से क ही ा त होती है। ऊँ सह नाववत।ु सह नौ भुन ु । सह वीय करवावहै। तेज वनावधीतम तु मा व षावह।ै ॐ शा तः! शा तः!! शा तः!!! अथ - हम दोन (गु और श य) पर पर मलकर सरु ा कर। हम मलकर खाय (देश म कोई भखू ा न रह)े । हम साथ मलकर परा म कर। हम देश को संगठन पी तप या म उ व लत एवं द त कर। हम प ठत एवं अ ययनशील ह । पर पर ेष न कर। शा त हो ! शा त हो !! शा त हो !!! 6
┆┆ चचा ┆┆ शाखा का वा षको व ● अपनी शाखा का मू यांकन अपने लए एवं दशन समाज के लए करना आव यक। ● मू यांकन एवं दशन से ही काय को ग त एवं कायकता मलते ह। काय क ग त एवं काय का अपे त प रणाम कायकता के आधार पर हो। ● अपनी-अपनी शाखा म वा षको सव क योजना: काय एवं कायकता के मू याकं न के लए। ● अपने शाखा े के नये ब धु को सघं के नकट लाने के लए। ● कायकता के शारी रक, बौ क एवं मान सक वकास अथात् कायकता नमाण के लए। ● अपनी शाखा के वा षक मू याकं न के लए अपे त काय म एवं सं या ( वयंसेवक एवं आग तुक) पर वचार । करणीय काय : व र अ धका रय से परामश करते ए शाखा क टोली के साथ बैठकर दनाकं , समय, थान (पया त समय पूव ही) न त करना। ● वयंसवे क क सचू ी, गणवेश का नरी ण, अपणू गणवशे पूण कराना एवं नये वयंसवे क का गणवेश तयै ार करवाना। ( दशन करने वाले वयसं वे क का वशे न त करना चा हए) ● व भ न कार के शारी रक काय म ( गत एवं सामू हक) हेतु वयसं ेवक का पया त समय पवू चयन, श ण एवं अ यास। ● संघ थान क स पणू व था ( ल खत अनुम त, व छता, रेखाकं न, वज मडं ल, वज द ड, वज, वज टै ड, पु प लड़ी आ द) मचं क स पूण व था (मचं नमाण, त त, कु सयाँ आ द), दरी, चादर, च , मालाय, धूपब ी, मा चस, व नवधक, च के लए मजे , चादर व मचं स जा एवं काय म के व प आ द क व था शाखा टोली के वयंसवे क म वत रत कर पूण करवाना। ● काय म हेतु व ा एवं अ य पया त समय पवू न त कर वाता करके अनमु त लने ा आव यक है। ● काय म म सामा य जनता क उप थ त के लए भावी योजना (गटशः सूची, सचू ना एवं पनु ः मरण करवा कर लाने क यो य व था) अपे त ह।ै ● अपे ा है शाखा के वा षको सव क स पूण योजना ( न त करने से लेकर स प न करने तक) शाखा टोली के कायकता ारा या वत हो। आव यक होने पर व र अ धकारी परामश देकर काय म को भावी एवं प रणामकारी बनाय। वा षको सव के उपरा त शी ही शाखा टोली एवं इस काय म म लगे ब धु अपने व र अ धका रय के साथ बैठकर काय म क समी ा कर उपयोगी ब को ल पब कर । ● नये आये ए ब धु को शाखा पर नय मत लाने क भावी योजना भी बनानी चा हए। 7
◉ सवे ा गीत ◉ स ची सवे ा भपु ूजा ह,ै उ म य वधान ह।ै द र नारायण बन आता , कृ पा स धु भगवान् ह।ै ये सवे ा धम महान है..... ॥ ०ु ।। कु छ भाई ह पछड़े पी ड़त, यह कसका अपराध ह,ै स दय से रह रहे उपे त, कसक भलू माद ह।ै युग-युग के घाव को धोकर, मलहम हम लगाना है, हाथ-हाथ म लेकर उनको, अपने साथ चलाना है। है पावन कत हमारा, नह दया अहसान है। द र नारायण ...... ॥१॥ धरती, पवत, गगन, पवन ये सबको मले समान ह, गीता, गगं ा, गौ माँ सबक , सारे स त महान् ह। कोई अनचु र दास नह है, कोई यारा पतू नह , भारतवासी एक दय ह, कोई न न अछू त नह । श ा सं कार का अवसर, यह अ धकार समान है॥ द र नारायण ...... ॥२॥ नया ने चेताया हमको, झकझोरा घटना ने, अब न रहगे व देखते, टेरा दस दशा ने। खडे े ग र, नगर क गदं ब ती हो या जंगल के , हर घर कु टया के दरवाजे, हाथ लगायगे चलके । अंग-अंग चैत य जगाना, एक सू अ भयान है॥ द र नारायण ...... ॥३॥ ◉ ातं क संगठना क सरं चना ◉ संघ ने अपने काम क सु वधा के लए उ राख ड के वभाग एवं जल क रचना न न कार से क है: 1. देहरादून वभाग - उ री महानगर, द णी महानगर, वकासनगर एवं परु ोला जला | 2. ह र ार वभाग - ह र ार, ऋ षके श एवं ड़क जला | 3. टहरी वभाग - टहरी, उ रकाशी एवं देव याग जला 4. पौड़ी वभाग- पौड़ी, थलीसण एवं कोट ार जला | 5. चमोली वभाग- चमोली, कण याग एवं याग जला 6. पथौरागढ़ वभाग- पथौरागढ़, डीडीहाट एवं च पावत जला 7. अ ोड़ा वभाग- अ मोड़ा, रानीखेत एवं बागे र जला 8. ननै ीताल वभाग- नैनीताल, ह ानी, ऊधम सह नगर एवं काशीपुर जला 8
๏ ी तेग बहादरु जी का ४०० वाँ काशो व ๏ ी तगे बहा र जी का ज म ी हरगो बद सा हब जी के घर वशै ाख शु ल प पचं मी संवत 1678, 1 अ ैल 1621 को अमतृ सर म आ। उनके बचपन का नाम \" तआग म ल\" था। करतारपरु के भीषण यु म तेग (तलवार) से अ त कौशल द शत करने पर ी हरगो वद जी ने स न होकर उनका नाम तआग म ल से तेग बहा र कर दया। करतारपरु क धरती पर ही ी गु तेग बहा र जी का अनंद कारज (शुभ ववाह) भी आ। उनक धमप नी माता गजु री देवी थी। पता हरगो वद क इ छानसु ार गु तेग बहा र ी गु नानक देव जी क श ा (नाम जपो, करत करो, वंड छको) का चार- सार करने हते ु बाबा बकाला चले गए। एक बार भाई म खण शाह जी ने गु तेग बहा र जी के पास प चँ कर दो मोहर चढ़ाकर माथा टेका तो गु तेग बहा र जी ने कहा क हम माया क भूख नह है पर आपने तो जहाज के सकं ट त होने के समय ई र से दसवतं (दसवंध) ५०० मोहर देने का वचन दया था पर तु अब आप अपने सकं प से हटकर दो ही रख रहे ह। यह श द सुनकर भाई म खण शाह जी क आखं से आसं ू छलक पड़े। वे कोठे पर चढ़ ऊच वर म कहने लगे- \" गु लाधो रे ! गु लाधो रे !! \" ी गु तेग बहा र सा हब जी नौव गु के प म गु ग पर बैठे । उ ह ने ी आनदं पुर सा हब यह नया नगर बसाया जसका पवू नाम \"च क नानक \" था। उस समय द ली के ू र बादशाह औरंगजबे ने चार तरफ जु म ढाया आ था उसने अपने पता को कै द कर लया व अपने भाइय को धोखे से मारकर द ली का रा य ा त कया था। च ँ द श हाहाकार मचा था। धम का बेड़ा डूबता आ दख रहा था। कह कोई समाधान नह दखता था। तलवार के बल पर पं डत के जनऊे उतारे जा रहे थ।े उनके माथे का तलक मटाया जा रहा था। उस समय पं डत कृ पाराम ने सभी मु य पं डत को एक कर इस सम या के नदान हेतु ी गु तगे बहा र जी के पास आनदं पुर सा हब जाकर ाथना करने का न य कया। गु तेग बहा र जी ने पं डत से सहानभु ू तपूवक कहा - हम ाणपण से इसका वरोध करग।े उनके 9 वष य पु गो वद राय ने भी हाथ जोड़, माथा झकु ा पतवृ चन का समथन कया। गु तेग बहा र जी ने पं डत कृ पाराम से कहा - द ली के बादशाह से कह द क य द गु तेग बहा र मुसलमान बन जाए तो हम सब भी मुसलमान बनने को तयै ार ह। औरगं जेब ने समाचार पाकर गु तगे बहा र जी को गर तार करने का आदेश दे दया। गु तेग बहा र जी गु ग बालक गो वद राय को स पकर अ यतं भाव पूण वातावरण म अनंदपरु से द ली को चल पड़े और सभी लोग उनके साथ चल पड़े। क रतपुर सा हब प ंचकर गु जी ने सभी को वापस अनदं पुर सा हब जाने का आदेश दे दया। अपने पाचं गु स ख - भाई दयाला जी, भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी, भाई उदा जी और भाई गु द ा जी को साथ लेकर द ली के लए चल पड़े। बीच रा ते म ही गु तगे बहा र व भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी, भाई दआला जी को गर तार कर औरगं जबे तक यह सूचना प ंचा द गई। तीन स ख के साथ गु तगे बहा र को पजरे म कै द कर द ली लाया गया। काजी ने उ ह कलमा पढ़ कर मसु लमान बन जाने पर बादशाह के दरबार म स मान पाने क सलाह द । उ ह अनके ानेक लोभन दए गए। गु तगे बहा र काजी के वपरीत उसे धम-कम क श ा देने लगे तो ोध से आगबबलू ा होकर काजी ने सपा हय से उ ह कठोर पजरे म कै द करवा दया। ऐसे पजरे म जसम वे सीधे बठै व खड़े नह हो सकते थे। पजरे के चार ओर तीखी व नकु ली क ल लगा द थी। औरंगजेब ने गु जी को भया ातं करने के लए सव थम उनके तीन स ख को कठोर पीड़ा देते ए ब लदान करने का आदेश दया। तीन को कलमा पढ़ने तथा अनके लोभन दए गए। परंतु वे क चत भी पथ वमखु नह ए। भाई मतीदास क अं तम इ छा परू ी करते ए उनका मखु गु जी क तरफ कया गया और फर काज़ी के कथनानसु ार ज लाद ने भाई मतीदास के सर के ऊपर आरा चलाना शु कर उनके शरीर को चीर कर दो टुकड़े कर डाले। ब लदान के समय मतीदास जी जपुजी सा हब का पाठ करते ए वाहेगु जी के चरण म लीन हो गए। काजी के कहे अनसु ार पानी क देग आग के ऊपर 9
रखकर उबलते पानी म भाई दयाला को बठाया गया। ध य ी गु अजुन देव का नाम उ चारण करते ए वह ब लदान हो गए। फर भाई सतीदास को गु जी के स मखु ई म लपेट कर जदा जलाया गया। ध य ी गु नानक देव कहते ए उ ह ने ाणो सग कया।औरंगजबे को तीन स ख के ब लदान होने का समाचार दया गया। तब उसने आदेश दया क य द गु तेग बहा र जी मसु लमान बनने के लए तैयार नह है तो उ ह भी ब लदान कर उनके शरीर को सुबह से शाम तक चादँ नी चौक म लावा रस अव था म पड़ा रहने दया जाए तथा अगले दन शरीर के चार टुकड़े कर द ली के चार कोन पर टागँ दया जाए। यारे गु स ख को औरगं जेब के आदेश का पता चलते ही द ली म भाई नानू जी के घर भाई जैता जी, भाई ल खी शाह ब जारा, भाई नगाही जी और कई अ य गु सख ने मलकर वचार कया क धम र क ी गु तगे बहा र जी के ब लदानोपरांत मतृ शरीर का हम अपमान नह होने दग।े भाई जतै ा जी ने ी गु तगे बहा र जी का शीश ी आनदं परु सा हब लाने क और भाई ल खी शाह बंजारा ने धड़ का दाह सं कार करने क ज मदे ारी उठाई। ११ नव० स०ं १६७५ को ी गु तेग बहा र को चादँ नी चौक ( द ली) म पजरे से बाहर नकालते ए डराते ए कहा क आपक आंख के सामने आपके यारे ३ स ख शहीद कर दए गए ह। आपके सामने तीन बात ह १. कलमा पढ़ लो (मसु लमान बन जाओ) २. कोई चम कार दखाओ ३. मृ यु वीकार करो। गु जी तीसरी शत वीकारते ए नान व नत नेम पणू कर पालथी मारकर बठै गए और जपुजी सा हब का पाठ ारभं करते ए ोक पढ़ा - जनी नामु धआइआ गए मसक त घा ल। नानक ते मखु उजले के ती छु टी ना ल।। ी गु तगे बहा र के संके त के बाद काजी के आदेश से ज लाद ने गु जी के शीश पर तलवार से वार कर सर धड़ से अलग कर दया। जोर से आधं ी चलनी शु ई चार ओर अधं रे ा छा गया व हाहाकार मच गया। इस भागदौड़ के बीच बड़ी शी ता से भाई जैता जी ने गु जी का शीश उठाकर कपड़े म लपेट लया। भाई ल खी शाह ब जारा अपने बलै वाले सकै ड़े ग े (गाड़ी) को तजे ी से ला ी गु तेग बहा र जी का धड़ उठाकर ई से भरे ग े म रख अपने घर ले गया। अपने घर म गु जी के धड़ को रख चता बनाकर अपने घर को ही आग लगा धड़ का सं कार कर दया। उधर चांदनी-चौक म कोई कहता गु जी का धड़ और शीश आकाश म उड़ गए तो कोई कु छ और कहता। लालची काजी तड़प-तड़प कर मरा व नरकवास गया। सरी तरफ भाई जैता जी क ठन चुनौती व बु म ा का प रचय देते ए शीश को सुर त द ली से अनदं पुर सा हब ले जाने म सफल हो पाए। जब क रा त पर फौज का स त पहरा लगाया गया था। सघन चे कग क जा रही थी। भाई जतै ा जी ने प के रा ते छोड़कर खेत वाले रा ते को चुना। पचं म दवस वे क रतपरु सा हब प चं े और अनदं पुर सा हब संदेश भजे ा गया क भाई जतै ा जी गु जी का शीश लके र आए ह। गो वद राय सा हब, माता गजु री जी सब संगत के साथ क रतपरु सा हब प चं ।े बारी-बारी से सभी ने शीश के दशन कए। माता गजु री जी स तगु जी के श य के स मखु कहने लगी \"गु जी! आपक तो नभ गई मेरी भी नभ जाए\"। गो वद राय जी ने भाई जैता जी के वीरतापणू काय क शंसा करते ए उ ह गले लगाते ए कहा - \"रंगरटे ा! गु का बटे ा\"। ी गु तगे बहा र जी का शीश पालक म सजाकर ी आनदं परु सा हब लाया गया। गु जी का शीश का जहाँ सं कार आ वहाँ आनदं परु सा हब त त है, जहाँ उनके धड़ का सं कार आ वहाँ गु ारा रकाबगजं है तथा द ली म जहाँ पर उनका ब लदान आ वहाँ प व गु ारा शीशगंज है। ध य ी गु तेग बहा र जी! सकल जगत म खालसा पंथ गाजे। जगे धरम ह ू सकल भंड भाज।े । 10
◉ बड़ी कहानी ◉ ������ अ तीय यो ा : बाजी भु देशपा े शवाजी महाराज के स पक म आए ए य म अभूतपवू साहस, आ म व ास, समपणवृ , आ मब लदान, व जगीषु भावना, वरा य के त भ तथा शवाजी के त अटूट व ास एवं ा देखने म आई ह।ै इ ह क सहायता से छ प त शवाजी ने शू य म से एक सा ा य क थापना करने म सफलता पायी। २ माच, १६६० क घटना ह।ै शवाजी ने प हालगढ़ नामक कले म डेरा डाला। उनका पीछा करते ए स जौहर क फौज ने प हालगढ़ को आ घरे ा। स जौहर ह शी था और अफजलखाँ के वध के बाद बीजापरु के बादशाह आ दलशाह ने उसे शवाजी को समा त करने के लए भेजा था। स जौहर ने बड़ी सझू बझू के साथ प हालगढ़ क घरे ाब द क थी। च ान-च ान पर फौजी चौ कयाँ इस कार बनाई क र तक नगाह रखी जाये। इतना ही नह तो प हालगढ़ से बीस कोस र वशालगढ़ के कले क घेराब द कर प हालगढ़ को स भा वत सहायता क स भावना भी समा त कर द थी। छ प त शवाजी पर घर आया यह सकं ट अ य त वकट था। शवाजी के पास प हालगढ़ कले म ६००० मावले सै नक थे। इ ह सै नक म उनके मुख साथी और यो ा बाजी भु देशपा डे भी थे। बाजी भु जानते थे क शवाजी के दय म कौन सा तूफान उमड़ रहा ह।ै बड़े प र म से नमाण कए छोटे से वरा य पर यह संकट आया था। इस संकट से जझू ने के लए शवाजी प हालगढ़ से नकल नह सकते थे, न ही बाहर के सा थय को सचू ना भजे सकते थ।े स जौहर का घेरा इतना जबरद त एवं उसका बंध इतना सश था क प हालगढ़ से च ट भी बाहर नह नकल सकती थी। बाहर स जौहर क लगभग ३५००० सने ा घरे ा डाले पड़ी थी। छ प त शवाजी ने दो स भावना पर अपनी रणनी त तय क थी। थम, वषा ऋतु आने वाली थी। जोरदार वषा म श ु का घेरा ढ ला पड़ जायगे ा। काल-े काले बादल के अ धकार म अपने मावले सै नक के साथ श ु के घरे े क कमजोर पं म से सावधानी पवू क नकल जायगे। तीय, नते ा पालकर बीजापरु के आस-पास वचरण कर रहे ह। शवाजी के व त साह सक एवं कु शल यो ा शवाजी के प हालगढ़ म घरे होने का समाचार पाकर स जौहर क सने ा पर पीछे से आ मण कर घेरा तोड़ दगे और शवाजी को प हालगढ़ से नकल जाने का अवसर मल जायेगा। बड़ी ही वकट थ त म शवाजी फं स गये थे। ऐसी दशा म अ छे से अ छे सेनाप त का भी दल बठै सकता था। पर तु छ प त शवाजी और उनके साथी सरी म के बने थ।े वे बड़े वीर थे और बड़े ही धयै वान भी। वे अवसर क ती ा करने लगे। दो मास बीत गए। अपे त नेताजी पालकर भी कसी ओर से अभी कट नह ए। अचानक एक दन हर-हर महादेव क व न से आकाश गजंू गया। नते ाजी पालकर ने शवाजी को प हालगढ़ से नकल जाने के लए स जौहर क सेना पर आ मण कया था। बड़े वेग एवं उ साह से आ मण आ था पर तु स जौहर के कु शल ब ध से नेताजी पालकर घरे ा तोड़ने म असफल रहे। शवाजी ने कले से यह देखा। नते ाजी पालकर समझ गये क यहां टकराना थ ह।ै अत: वह लौट गये। अब शवाजी के सामने वषा ऋतु क ती ा के अलावा और कोई रा ता नह बचा था। स जौहर क योजना थी क प हालगढ़ कले म रसद समा त होने पर शवाजी कले से बाहर आने को ववश ह गे। तब 11
पकड़कर आ दलशाह के सम पेश कर इनाम पाया जाये। प हालगढ़ इतना ऊँ चा और उसका माग इतना गम था क स जौहर के वश क बात नह थी क वह उसम वेश कर पाता। अतः घरे ाब द चलती रही। छ प त शवाजी भी अपनी योजनानसु ार यो य अवसर क ती ा करते रह।े चार मास बीत गए। बरसात आ गई। छ प त शवाजी ने अपने त को भजे कर यह पता लगाने क चे ा क क घरे ाब द म वषा से कोई रा ता नकलने का बना या? थोड़े दन म त ने समाचार दया क एक दशा म नकलने का माग सभं व है, य प वह बड़ा क ठन ह।ै क चड़ और पानी का ाब य है। उस ओर घना जंगल भी ह।ै बाघ, चीते, शरे आ द हसक जानवर क आ य थली ह।ै स जौहर क घेराब द वहाँ पर श थल है। छ प त शवाजी समाचार पाकर स न ये। उ ह ने तरु त उस थ त का लाभ उठाने क योजना बना डाली। उस माग से अपने चु नदा सा थय के साथ नकलकर वह बीस कोस र थत वशालगढ़ के कले म प ँचना चाहते थ।े आषाढ़ क पू णमा थी। देखते-देखते आकाश म च मा बादल म जा छपा। काल-े काले बादल छाये थे, घोर अ धकार था। वषा हो रही थी। रा के १० बजे थे, ऐसे म शवाजी ने य बक भा कर को प हालगढ़ कले का दा य व देकर बाजी भु देशपा डे को कहा क अपने साथ ६०० सै नक को लके र चलो। बाजी भु देशपा डे अ य त स न थे क शवाजी महाराज ने मझु े अपनी सेवा म रखने के यो य समझा। उ ह ने ६०० सै नक का बड़ी सावधानी से चयन कया। कले का येक सै नक शवाजी के साथ चलने के लए उतावला था। शवाजी महाराज ने कले से पदै ल ही नकलने क योजना बनाई। घोड़ के टाप क आवाज श ु को सावधान कर सकती थी। अतः सभी पदै ल ही नकलने के लए आगे बढ़े। पर तु बाजी भु देशपा डे ने शवाजी के लए पालक का बधं कया था। पालक को उठाने वाले बड़े ताकतवर मावले सै नक थ।े सावधानी से सभी पैदल कले के बाहर उस माग से नकले जस माग क खोज त ने क थी। सभी सै नक सावधानी से आगे बढ़ते जा रहे थे। लगभग १० कोस का माग तय हो चकु ा था। शवाजी ने बाजी भु को आवाज देकर पछू ा -\"बाजी अब कै सा?\" बाजी भु ने कहा - अब बस १० कोस और। चलत-े चलते भोर हो रही थी। बादल भी छंट गय।े अब के वल ५ कोस का माग और बचा था। शवाजी के म त क म उधड़े बनु चल रही थी। भावी का उ ह पवू ही भान हो जाता था। उ ह लगा क अब तक स जौहर को प हालगढ़ से नकलने क सूचना मल गयी होगी। उसने पीछा करने को घड़ु सवार भजे े ह गे। यह वचार चल ही रहा था क घोड़ के टाप क आवाज र से आती सनु ाई द । इस समय वे लोग अ यंत तगं घाट म से नकल रहे थ।े बाजी भु देशपा डे को भी घोड़ क तग त से दौड़ने क व न सनु ाई दे रही थी। उ ह ने र तक दौड़ाई। उ ह ने देखा क लगभग २००० सै नक पीछा करते आ रहे ह। उ ह ने तरु त सबको रोका और शवाजी से ाथना क क आप लोग चल, म इस घाट म आने वाले घड़ु सवार को तब तक रोककर रखूगँ ा जब तक आप वशालगढ़ कले पर प चँ ने का सकं े त तोप के गोले दागकर नह देत।े तोप के गोल क व न से यह न य हो जायगे ा क आप सकु शल कले म प ँच गये ह। छ प त शवाजी इस बात पर तयै ार नह ए। उ ह ने कहा क हम सब मलकर श ु का यहाँ सामना करगे। बाजी भु शवाजी के सामने हाथ जोड़कर बड़ी बचे नै ी से ाथना कर रहे थ।े उ ह ने कहा \" ीमतं आपका जीवन इस नव अ जत वरा य क र ा के लए अ त आव यक है। आपको यहाँ से सरु त नकालने का दा य व मुझ पर है। अत: मेरा नवेदन वीकार कर मुझे अपने कत का पालन करने द। श ु क सने ा प ँचने ही वाली ह।ै अतः अब सोच- वचार के लए अ धक समय नह है। कृ पया मरे ा अनरु ोध वीकार कर।\" शवाजी महाराज दो ण के लए त ध खड़े रह।े वे समझ रहे थे क बाजी भु और उनके साथी या कु छ कर दखाने को छटपटा रहे ह। उनको लगा क वरा य क देवी उनके इन अनमोल सा थय के ाण क भट चाह रही ह।ै बड़ा रोमांचकारी य था। शवाजी अपने इन अ तीय सा थय को छोड़कर जाना नह चाह रहे थ।े सरी ओर बाजी भु के आ ह म ती ता एवं बचे ैनी बढ़ती जा रही थी। बाजी भु ने शवाजी महाराज को अ तम बार उनके सामने नतम तक होकर कहा - 12
महाराज य द एक बाजी भु चला गया तो आप अपने हाथ से अनके बाजी तयै ार कर लगे। पर तु कह आप को कु छ हो गया तो अनेक बाजी मलकर भी एक शवाजी तैयार नह कर पायग।े ऐसा समय वरला ही आता है क जब अनयु ायी ही नेता को आ ा देता दखाई दे और नते ा को उसका कहना मानना पड़े। आज भी ऐसा ही ण था। छ प त शवाजी को बाजी भु के हठ के आगे झकु ना पड़ा। सगं ही ऐसा था क शवाजी अ धक कु छ कह न सके । शवाजी क आयु इस समय ३० वष थी, जब क बाजी भु ४५ वष के थे। वयोवृ बाजी क इ छानसु ार शवाजी महाराज ने चलने क ठान ली। बाजी भु के साथ ३०० चुने ए मावले सै नक को छोड़कर शवाजी आगे बढ़ गय।े जाते ए शवाजी ने कहा-“बाजी भु म आगे बढ़ता ँ। वशालगढ़ प चँ ने पर तीन तोप दाग ंगा। उनक व न मरे े प चँ ने का सकं े त होगी। उस आवाज को सनु कर आप लोग भी वशालगढ़ क ओर चल देना।\"आपक जैसी आ ा कहकर बाजी भु ने अपने सा थय स हत उस सकं री घाट म मोचाब द कर ली। थोड़ी देर म श ु सने ा आ गई। पहाड़ी े था। घोड़े या आद मय को भी चढ़ना क ठन था। स मसदू सेना का सचं ालन कर रहा था। उसने सने ा को आदेश दया क \"मारो इन का फर को।\" घाट इतनी संकरी थी क सेना एक साथ आगे नह बढ़ सकती थी। बाजी भु ने इस सकं री घाट के महु ाने पर वयं मोचा लगा रखा था। अतः श ु के आठ - दस सै नक बढ़ते तो बाजी भु अपने सा थय स हत उ ह गाजर-मूली क तरह काट देते थ।े बाजी भु का रणकौशल तो आज देखते ही बनता था। उसके भाले क नोक पर श ु के मु ड ही मु ड लटकते नजर आ रहे थ।े कभी भाले क जगह दोन हाथ से तलवार चलाते ए वह श ु सेना पर काल बन जाते थे। स मसदू के होश ठकाने आ गय।े घमासान यु था। चार - पाचँ घ टे यह थ त बनी रही। दोपहर हो चकु थी। बाजी भु को भी अनेक घाव लगे थ।े शरीर से र बह रहा था। शरीर श थल हो रहा था, पर तु इ छाश ढ़ थी। शवाजी के वशालगढ़ तक प चँ ने तक जी वत रहना है, श ु को रोककर रखना ह।ै उनके कई साथी वीरग त को ा त हो गये थे। उ ह लग रहा था क उनका समय अब नकट है पर तु कत पू त करने क इ छा के कारण अद य उ साह एवं साहस भी श ु पर उ ह भारी बना रहा था। बाजी भु अपने सा थय स हत श ु को आगे न बढ़ने देने के न य को सफलता से नभा रहे थ।े सभी ने अनमु ान लगाया क स भवतः शवाजी अब वशालगढ़ के कले पर प चं े ह गे। तोप के गोल क आवाज क ती ा करते ए बाजी भु अभी भी श ु का सफाया कर रहे थ।े शरीर से ब त अ धक र साव हो चुका था। उनके कान शवाजी के वशालगढ़ प ँचने क सचू ना देने वाले तोप के गोल क आवाज सनु ने को अधीर हो रहे थ।े छ: घ टे जझू ते-जूझते बाजी भु का शरीर छलनी हो गया था। स मसूद हैरान था क इतने अ धक घाव लगने और इतना अ धक र बहने के बाद यह अभी भी लड़ कै से रहा है। यह आदमी है या फ र ता? बाजी भु का संक प उ ह श दे रहा था। शवाजी को वशालगढ़ के कले पर सुर त प चँ ना ही चा हए, यह वचार श का ोत था। । - इतने म ही तोप के गोल क आवाज सनु ाई द । बाजी के मखु म डल पर अपवू शा त उभर आई। उनका सकं प परू ा आ। उ ह ने शरीर गरते- गरते कहा – महाराज आपने मुझे वशालगढ़ बुलाया था। इस शरीर से नह , अब सरा शरीर धारण कर आऊँ गा। वरा य के काय को आगे बढ़ाने म आपका हाथ बटँ ाऊँ गा। यह कहकर शवाजी क ओर हाथ जोड़कर धराशायी हो गये। उनके ह ठ से एक बार फर अ प श द नकले-\"महाराज मा करना ... पहली बार आपक आ ापालन ... नह कर पा रहा ँ ... वशालगढ़ नह प चं पाया। –♦♦◇ य नाय ु पू े रम े त देवताः ◇♦♦– 13
������ म क जीत ( बोधकथा ) म भी संसार को सगु ध ँगा यह ढ़ न य कर एक न हा सा पु प-बीज धरती क गोद म अपने संक प के साथ करवट बदल रहा था। धरती बोली- पगले! तू मेरा बोझ सहन नह कर पायगे ा। पर म के कण पर जल क कु छ बंूद के सहयोग से वह ऊपर उठने लगा। उगी पौध पर वायु देवता का कोप बरसा। तेरी यह ह मत मेरे वेग के सम कै से टके गा? फू ल का वह न हा पौधा वन तापवू क दायँ े-बाँये झकु कर आगे बढ़ता रहा। उपवन म उगी झा ड़याँ उसका बढ़ना नह देख पाई। चार ओर से उ ह ने पु प वृ पर आघात जारी रखा। पर उसने ह मत नह हारी, बढ़ता ही रहा। माली उसक धनु पर मु ध हो उठा। उसने सारी झा ड़य को काट गराया। सूय देव ने पौधे को उठते देखा तो बोले-मरे े चंड ताप के सम टक सके गा? साहसी व कमठ पौधा कु छ नह बोला, नर तर तप कर आगे बढ़ता रहा। पहली कली वक सत ई और सारे ससं ार ने देखा क जो बीज डाला वह वृ बना, पु प क सगु ध उसने फै ला द । तकू लताओं से जो न घबराये, नर र बढ़ता जाता है उसे कोई नह रोक सकता ह।ै ������ रखवाली कौन करेगा ! ( सेवा कथा ) भ रैदास के नाम से स संत र वदास साधु-सतं क बड़ी सवे ा करते थ।े एक बार एक साधु उनके पास आया। रैदास ने उसे भोजन कराया और अपने बनाए ए जूते उसे पहनाए। साधु बोला, 'रदै ास जी, मेरे पास एक अनमोल व तु है। आप साधु- -सतं क सेवा करते ह, इस कारण म उसे आपको ंगा। इसे 'पारस' कहते ह। और इसे लोहे को छु आ देने मा से वह सोना हो जाता है। और ऐसा कहते-कहते उसने उनक राँपी को पारस से पश करके सोना बना डाला। यह देख रदै ास जी को ःख आ क वे अब जतू े कै से सी सकग।े तब साधु ने कहा, 'अब आपको जतू े सीने क कोई आव यकता नह । इसी से सकै ड़ रा पयाँ आ सकती है इस पर रैदास जी बोले, 'मगर य द म सोना बनाता र ँ तो मेरे सोने क रखवाली कौन करगे ा? तब तो मझु े भगवान् के भजन के बदले सोने क ही चता लगी रहेगी। क तु साधु न माना और पारस प थर को छ पर म रख कर चला गया क ज रत पड़ने पर सतं रदै ास इसका उपयोग कर सक और अपने भौ तक सकं ट से छु टकारा पा सक। एक वष बाद वह साधु फर रदै ास के पास आया और उसे यह देख आ य आ क रैदास क हालत वैसी ही ह।ै उसने जब पारस प थर के बारे म पछू ा तो वे बोले, 'मझु े नह मालूम, आपने जहाँ रखा होगा, वह होगा। और वह साधु यह देखकर दंग रह गया क पारस प थर छ पर म उसी थान पर रखा आ ह।ै तब वह बोला, 'आप सचमचु ध य ह। आप चाहते तो इस प थर से मं दर बना सकते थे। नधन को दान कर सकते थे। इस पर रदै ास ने उ र दया, 'महाराज! अभी तो म छप-े छपे चुपचाप भगवान का भजन कर लते ा ँ। अगर मं दर बनाता या दान करता तो स मलती और मुझे लोग तंग करत।े म इस झगड़े म ब कु ल नह पड़ना चाहता। 14
������ म के लये ब लदान ( ेरक सगं ) चैत य महा भु ने अपनी लखी पु तक के स ब ध म रधनु ाथ प डत से चचा क । जसै े ही उ ह ने पु तक के कु छ अंश सनु ाने ार भ कए जो ार भ म तो रघनु ाथ प डत ब त ही स न ए, पर तु य - य चैत य उ ह पु तक सुनाते गए उनका चेहरा उदास होता गया। थोड़ी ही देर म तो वे फू ट-फू टकर रोने लगे। यह सब देख महा भु च कत से रह गए। उ ह ने बड़े नहे से रघनु ाथ प डत से पछू ा, “ य म ! या बात है, यह एकाएक रोना कै सा? दय क बात नःसंकोच बता , म चे ा क ँ गा क तु हारा ःख र हो।\"- संकोच से रघनु ाथ ने बताया – “भाई, बात यह है क मने एक पु तक बड़े प र म से लखी ह।ै सोचता था क इस पु तक के समान कोई सरी पु तक नह होगी। यह अपने म अ तीय होगी और इसक परू े संसार म शंसा होगी। पर तु अब तु हारी पु तक के अंश सनु ने के प ात् मेरा म र हो गया ह।ै कहाँ मरे ी पु तक और कहाँ तु हारी! न य ही तु हारी पु तक े ह।ै सोच रहा था – मेरा प र म थ गया। इसी वेदना के कारण मरे ी आखँ म आसँ ू आ गए।\" चैत य यह सनु कर जोर-जोर से हँसने लगे और बोले “ब धवु र, थत होने क कोई बात नह । लोग अपने म के लए सव व ब लदान कर देते ह, ये तो के वल कागज के प ने ह।” ऐसा कहते ए उ ह ने स पणू थ नद म वा हत कर दया और बोले – “अब तो तुम स न हो न? अब हँस दो एक बार ।” महा भु के ऐसे याग से व ल रघनु ाथ कृ त ता और आभार से भरे उनसे लपट गए। ≺ देवभू म उ राख ≻ १. प चब - ी आ द ब , ी वृ ब , ी भ व य ब , ी योग ब , ी ब नाथ। २. प च के दार - म हे र, तुगं नाथ, नाथ, क पे र, ी के दारनाथ। ३. प च याग - देव याग, याग, कण याग, न द याग - व णु याग। ≺ पंजाबी गीत ≻ पता वारया ते लाल चार वारे, ओ ह ु तेरी शान बदले। जनम गरु ादं ा पटना सा हबदा, आन पुर डरे ा लाये॥१॥ पता ज ादं े तगे बहादुर, माँ गजु री दा जाये॥२॥ हटे गुरांदे नीला घोड़ा, हथ बच बाज सहु ाये ॥३॥ चलो वीर चल दशन क रये, गु गो व सह आय॥े ४॥ 15
⭗ रणीय महापु ष ⭗ ������ स तुकाराम - भारत क महान स त पर परा म अ णी स त तुकाराम का ज म ८ माच, १६०८ को पुणे म आ। पता वो होबा तथा माता कनकाई सा वक वृ के द पती थ।े बा यकाल से ही तकु ाराम व ल भ के सं कार से ओत ोत थ।े वे वर व सतं ोषी वभाव के थे। वा याय, क तन-भजन, स संग म उनक अ य त च थी। मा नौ वष क आयु म उ ह स स त ारा “रामकृ ण ह र\" म का उपदेश दया गया। स त नामदेव ारा उ ह व म दशन देकर भजन लखने को कहा गया। उ ह ने जो रचनाएँ लख उ ह 'अभंग' कहा जाता ह।ै उ ह ने लगभग ६००० अभगं क रचना क । स त तुकाराम क चतु दक स देखकर रामे र भ तथा मु बा जी जसै े लोग उनसे जलने लग।े उनके अभगं सं ह को इ ायणी नद म डुबो दया। वे भगवान् क मू त के स मखु अ न जल यागकर ब हयाँ वापसी हेतु तप म बैठ गये। कहते ह भगवान् ने युवक वशे म कट होकर तकु ाराम क सभी पु तक सरु त लौटा द । यह सब देख उनके वरोधी भी उनक शरण म आ गय।े कहते ह एक बार शवाजी महाराज को मगु ल ने घरे लया। तकु ाराम क ाथना से शकं र भगवान कट ए और शवाजी का छ वेश बना कर एक ओर भागने लगे। जब मगु ल सै नक उनके पीछे दौड़ पड़े तब असली शवाजी सकु शल बच गय।े स न होकर शवाजी ारा भट व प वण मु ाएँ दये जाने पर उ ह ने यह कहकर लने े से मना कर दया क मेरे लए सोना और म बराबर ह।ै अपने अभगं ारा भगव का स देश बाटँ ते ए सतं तकु ाराम १६५० ई. म सदा के लए व ल धाम चले गय।े ������ व व ात खगोलशा ी : आयभट - खगोलशा का अथ है ह, न क थ त एवं ग त के आधार पर प चांग का नमाण, जससे शुभ काय के लए उ चत मु त नकाला जा सके । इस े म भारत का लोहा नया म मनवाने वाले वै ा नक आयभट के समय म अं जे ी त थयाँ च लत नह थ । अपने एक थ म उ ह ने क लयुग के ३,६०० वष बाद क म यम मेष सं ा त को अपनी आयु २३ वष बतायी ह।ै इस आधार पर व ान् उनक ज म त थ २१ माच, ४७६ ई० मानते ह। उनके ज म थान के बारे म भी व ान एवं इ तहासकार म मतभेद ह। उ ह ने वयं अपना ज म थान कु सुमपरु बताया है। कु समु पुर का अथ है फू ल का नगर। इसे व ान् लोग आजकल पाट लपु या पटना बताते ह। ९७३ ई० म भारत आये प शया के व ान अलब नी ने भी अपने या ा वणन म 'कु समु परु के आयभट' क चचा अनके थान पर क ह।ै कु छ व ान का मत है क उनके प चांग का चलन उ र क अपे ा द ण म अ धक है, इस लए कु सुमपुर कोई द ण भारतीय नगर होगा। कु छ लोग इसे व य पवत के द ण म बहने वाली नमदा और गोदावरी के बीच का कोई थान बताते ह। कु छ व ान आयभट को के रल नवासी मानते ह। 16
य प आयभट ग णत, खगोल या यो तष के े म पहले भारतीय वै ा नक नह थे; पर उनके समय तक पुरानी अ धकांश गणनाएँ एवं मा यताएँ वफल हो चुक थ । पतै ामह स ा त, सौर स ा त, व स स ा त, रोमक स ा त और पौ लष स ा त, यह पाचँ स ा त परु ाने पड़ चकु े थे। इनके आधार पर बतायी गयी ह क थ त तथा हण के समय आ द क य थ त म काफ अ तर मलता था । इस कारण भारतीय यो तष पर से लोग का व ास उठ रहा था । ऐसे म लोग इ ह अवै ा नक एवं अपणू मानकर वदेशी एवं वधम प चांग क ओर झुकने लगे थे । शा का गहन अ ययन कर आयभट ने इस थ त को समझा और उसक क मय को रकर नये कार से जनता के स मखु तुत कया । उ ह ने पृ वी तथा अ य ह क अपनी धरु ी तथा सयू के आसपास घूमने क ग त के आधार पर अपनी गणनाएँ क । इससे लोग का व ास फर से भारतीय खगोल व ा एवं यो तष पर जम गया । इसी कारण लोग उ ह भारतीय खगोलशा का वतक भी मानते ह। उ ह ने एक थान पर वयं को कु लप आयभट कहा है। इसका अथ कु छ व ान् यह लगाते ह क वे नाल दा व व ालय के कु लप त भी थे। उनके थ ' आयभट यम'् से हम उनक मह वपणू खोज एवं शोध क जानकारी मलती ह।ै इसम कु ल १२१ ोक ह, ज ह गी तकापाद , ग णतपाद , काल यापाद और गोलापाद नामक चार भाग म बाँटा है। वृ क प र ध और उसके ास के संबधं को ‘पाई' कहते ह। आयभट ारा बताये गये इसके मान को ही आज भी ग णत म योग कया जाता है। इसके अ त र पृ वी, च मा आ द ह के काश का रह य, छाया का मापन, कालगणना, बीजग णत, कोण म त, त व ध, मूल– याज, सयू दय व सयू ा त के बारे म भी उ ह ने न त स ा त बताये। आयभट क इन खोज से ग णत एवं खगोल का प र य बदल गया। उनके योगदान को सदा मरण रखने के लए १९ अ ैल, १९७५ को अ त र म था पत कये गये भारत म ही न मत थम कृ म उप ह का नाम 'आयभट' रखा गया। ������ आदश कायकता : अ ा जी जोशी - एक बार रा ीय वयसं ेवक सघं के सं थापक डा० हडे गेवार ने कायकता बठै क म कहा क या के वल संघकाय कसी के जीवन का येय नह बन सकता ? यह सनु कर ह रकृ ण जोशी ने उन ५६ सं था से यागप दे दया, जनसे वे स ब थे। यही बाद म अ पा जी के नाम से स ए । ३० माच, १८९७ को वधा म ज मे अ पा जी ने ा तका रय के साथ काम कया, कां से म रहकर देखा। कां ेस के कोषा य जमनालाल बजाज के वे नकट सहयोगी थ;े पर डा० हडे गेवार के स पक म आने पर उ ह ने बाक सबको छोड़ दया। डा० हेडगवे ार, ी गु जी और बालासाहब देवरस, इन तीन सरसघं चालक के दा य व हण के समय वे उप थत थे। उनका बचपन ब त गरीबी म बीता। इनके पता एक वक ल के पास मुंशी थ।े इनके १२ वष क अव था म प चँ ते तक पताजी, चाचाजी और तीन भाई दवगं त हो गये। ऐसे म बड़ी क ठनाई से इ ह ने क ा दस तक पढ़ाई क । १९०५ म बगं -भगं आ दोलन से भा वत होकर वह वात य समर म कू द गय।े १९०६ म लोकमा य तलक के दशन हेतु जब वे व ालय छोड़कर रेलवे टेशन गय,े तो अगले दन अ यापक ने उ ह ब त मारा; पर इससे उनके अ त:करण म देश ेम क वाला और धधक उठ ।१४ वष क अव था म इनका ववाह हो गया और ये भी एक वक ल के पास मुशं ी बन गय;े पर सामा जक काय के त इनक स यता बनी रही। वे नय मत अखाड़े म जाते थे। वह इनका स पक सघं के वयसं वे क ी अ णा सोहनी और उनके मा यम से डा० हडे गवे ार से आ । डा ० जी देश भर म ा तका रय को व भ न कार क सहायता साम ी भेजते थे , उसम अ पा जी उनके व त सहयोगी बन गये । कई बार तो उ ह ने ी वेष धारणकर यह काय कया । 17
दन - रात कां से के लए काम करने से इनक आ थक थ त बगड़ गयी । यह देखकर कां ेस के कोषा य जमनालाल बजाज ने इ ह कां ेस के कोष से वते न देना चाहा ; पर इ ह ने मना कर दया । १९ ४७ के बाद जहाँ अ य कां े सय ने ता प और पशन ली , वह अ पा जी ने यह वीकार नह कया । आपातकाल म वे मीसा म ब द रहे ; पर उससे भी उ ह ने कु छ लाभ नह लया । वे देशसवे ा क क मत वसलू ने को पाप मानते थ।े एक बार कां ेस के काम से अ पा जी नागपरु आये । तब डा ० हडे गेवार के घर म ही बैठक के प म शाखा लगती थी । अ पा जी ने उसे देखा और वापस आकर १८ फरवरी १९ २६ को वधा म शाखा ार भ कर द । यह नागपुर के बाहर रा ीय वयसं वे क सघं क पहली शाखा थी । डा ० जी ने उ ह वधा जला सघं चालक का दा य व दया। नव बर , १९२९ म नागपुर म मुख कायकता क एक बठै क म सबसे परामश कर अ पा जी ने नणय लया क डा ० हडे गवे ार सघं के सरसंघचालक होने चा हए। १० नव बर शाम को जब सब संघ थान पर आय,े तो अ पा जी ने सबको द देकर सरसघं चालक णाम १, २, ३ क आ ा द । सबके साथ डा० जी ने भी णाम कया। इसके बाद अ पा जी ने घो षत कया क आज डा० जी सरसंघचालक बन गये ह । १९३४ म गा धी जी को वधा के सघं श वर म अ पा जी ही लाये थ।े १९४६ म वे सरकायवाह बन।े अ त समय तक स य रहते ए २१ दस बर, १९७९ को अ पा जी जोशी का देहा त आ। ������ स का ा वीर : हमे ू कालाणी - अं जे के शासनकाल म भारत का कोई ा त सरु त नह था। उ र, द ण, परू ब, प म सब ओर उनके अ याचार से लोग त थे; पर जेल और फाँसी के भय से उनके व खड़े होने का साहस कम ही लोग दखा पाते थ।े जहाँ एक ओर शासन के अ याचार चरम पर थ,े तो सरी ओर गा धी जी के नेतृ व म अ हसक स या ह आ दोलन भी चल रहा था । स या हय पर अं ेज पु लस ड डे बरसाती और गोली चलाती थी। फर भी वे शा त रहते थे। शासन से असहयोग और वदेशी व तु का ब ह कार ही इनका एकमा श था। व दे मातरम् और भारत माता क जय उनका मखु नारा था। सरी ओर एक धारा ा तका रय क थी , जो श के बल पर अं जे को जबरन अपनी मातृभू म से खदेड़ना चाहते थे। उनक मा यता थी क ह थयार के बल पर राज करने वाल को ह थयार क ताकत से ही भगाया जा सकता है। ऐसे ही एक ा तवीर थे हेमू कालाणी, जनका ज म अ वभा जत भारत के स ध ा त के स खर नगर म ११ माच १९२४ को आ था। य तो पूरे देश म इस वचार को मानने वाले युवक थ;े पर बगं ाल और पंजाब इनके गढ़ थ।े हमे ू भी इसी वचार का समथक था। इन वीर ा तका रय क कहा नयाँ वह अपने म को सनु ाता रहता था। एक बार हमे ू को पता लगा क गोरे सै नक क एक प टन वशषे रेल से स खर क ओर से गजु रने वाली है। यह प टन 'भारत छोड़ो आ दोलन' के स या हय के दमन के लए भेजी जा रही थी। हर दन ऐसे समाचार का शत होते ही थे । हेमू गा धीवाद स या ह म व ास नह रखते थे । उनसे यह नह सहा गया क वदेशी सै नक भारतीय पर अ याचार कर । 18
उ ह ने अपने कु छ म को एक कया । उ ह ने सोचा क पट रयाँ उखाड़ द , तो रले घटना त हो जाएगी । सैकड़ अं जे सै नक मारे जायगे और अपने देशवा सय क र ा होगी । इस योजना को सुनकर कु छ साथी डर गये ; पर न द और कशन नामक यवु क तयै ार हो गये । तीन हथौड़े , गती , स बल आ द लेकर स खर क ब कु ट फै के पास एक ए । रले लाइन उसके पास म ही थी । उस समय चादँ नी रात थी । तीन यवु क तेजी से अपने काम म जटु गये। वे म ती म गीत गाते ए नभयतापवू क अपने काम म लगे थे; पर सरी ओर शासन भी सावधान था । उसने उस रले गाड़ी क सरु ा के लए वशषे प से कु छ सपाही तैनात कर रखे थे। उन सपा हय ने जब कु छ आवाज सुनी तो वे दौड़ पड़े और तीन को पटरी उखाड़ते ए रंगे हाथ पकड़ लया। यायालय म उन पर मुकदमा चलाया गया। हमे ू तो आ मब लदान के लए त पर ही थे। उ ह ने अपने दोन सा थय को बचाने के लए इस का ड क पूरी ज मदे ारी वयं पर ले ली। यायालय ने उसे फासँ ी क सजा सुनायी। २३ जनवरी, १९४३ को १९ वष क सकु ु मार अव था म यह ा तकारी हँसते ए फाँसी पर चढ़ गया। उस समय उनके चेहरे का तेज देखते ही बनता था। हेमू कालाणी का ब लदान थ नह गया। वह आजाद के द वान के लए चनगारी बन गय।े स ध के घर-घर म उसक कथाएँ कही जाने लग । आज तो स ध ा त भारत म ही नह है; पर वहाँ से भारत आये लोग हमे ू का मरण सदा करते ह। - एका ता म - यं वै दका म शः परु ाणा, इ ं यमं मात र ानमा ः। वदे ा नोऽ नवचनीयमके ं यं श ेन व न दश ॥ शवै ा यमीशं शव इ वोचन्, यं वै वा व ु र त ुव । बु थाह त बौ जैनाः सत-् ी-अकाले त च स स ः॥ शा े त के चत् कृ तः कु मारः ामी त माते त पते त भ ा। यं ाथय े जगदी शतारं स एक एव भरु तीयः॥ - बौ क वभाग के अ ब ु - (क) शाखा के यसं ेवक ारा शाखा पर ( त दन) - १. गीत, २. सभु ा षत, ३. अमतृ वचन, ४. बोध कथा। ४. समाचार समी ा (१० माह)/ ज ासा समाधान (२ माह) (ख) वासी कायकताओं ारा शाखा पर (सा ा हक) - १. चचा, २. बड़ी कहानी, ३. बौ क वग, 19
आचार वभाग शाखा लगाते समय क आ ाय - शाखा व कर करते समय क आ ाय - सीट संके त ー0ー0 १. अ से र हते ु: ー000(एक ल बी, तीन छोट ) (एक ल बी, एक छोट , एक ल बी एक छोट ) २. अ ेसर स यक् १. सघं द ३. आरम् २. आरम् ४. स पत् हेतु सीट ー00(एक ल बी, दो छोट ) ३. अ से र ५. संघ द ४. अ ेसर स यक् ६.संघ स यक् ५. आरम् ७. अ ेसर अधवृ ६.सघं स पत् ८. सं या ७. संघ द ९. आरम् ८. सघं स यक १०. संघ द ९. अ से र अधवृ ११. आरम् १०. संघ आरम् १२. संघ द ११. सघं द ( वज लगेगा) १३. ाथना हेतु सीट सकं े त 0 (एक छोट ) १२. वज णाम १,२,३ १४. वज णाम १,२,३ १३. सं या १५. संघ व कर १४. आरम् १५. सघं द १६. आरम् १७. सघं द १८. व थान 20
सयू नम ार तन से, मन से एवं वाणी से क ई सयू पासना ही 'सयू नम कार' ह।ै उसके दो आधु नक प ह। पहला सां घक सूयनम कार और सरा सगं ीत के साथ सयू नम कार । सगं ीत के साथ सूयनम कार लगाने से वे अ धक आकषक, रजं क एवं भावी बनते ह। वे सां घक होने पर और भी फल द हो जाते ह। सूय नम कार करते समय ाणायाम ( ासं - ांस क व ध पूरक, रचे क, कंु भक) का अ यास न न प त से करना अपे त ह।ै सरल उपासना और सौ य स तु लत ायाम यह सयू नम कार क वशषे ता ह।ै 'सयू नम कार' नामक यह ायाम सात आसन का समु चय भी ह।ै ये आसन ह - १. ताड़ासन २. उ ानासन ३. अ चालन आसन ४. द डासन ५. सा ागं णाम आसन ६. भुजंगासन ७. अधोमुख ान आसन। उपासना ोक यये ः सदा स वतमृ डलम यवत , नारायण: सर सजासन स न व ः। के यूरवान् मकर-कु डलवान् करी टः,हारी हर यमय वपुधतृ शंख-च ः॥ (सू - मरसू-भाखप-ू हमआस-अभास) ॐ म ाय नमः - हत करने वाला म ॐ रवये नमः - श द का उ प ोत ॐ सयू ाय नमः - उ पादक, सचं ालक ॐ भानवे नमः - ओज, तेज ॐ खगाय नमः - आकाश म वचरण करने वाला ॐ पू णे नमः - पु देने वाला ॐ हर यगभाय नमः - बलदायक ॐ मरीचये नमः - ा धहार/ करण से यु ॐ आ द याय नमः - सूय ॐ स व े नमः - सृ उ पादनकता ॐ अकाय नमः - पूजनीय ॐ भा कराय नमः - क तदायक ॐ ी स वतृसयू नारायणाय नमः - सृ का उ पादन और संचालन करने वाले नारायण सूय 21
सूय नम कार थ त - योगाथ दए गए यू-आर कोड को कै न कर य- के आधार पर Youtube मा यम से भी सयू नम कार का अ छा अ यास कया जा सकता है। फल���������ु ���त ������ोक आ द य य नम कारान् ये कु व त दन-े दन।े आयःु ा बलम् वीय तेजस् तषे ां च जायते॥ आव यक सचू नाय - १. कमर दद ( लप ड क), गदन दद ( पॉ डलाइ टस) से पी ड़त ब धु थ त २ व ७ म गदन ऊपर तानकर करगे तो लाभ मलेगा। २. ग त धीमी तथा ाणायाम या का पालन करने से थकान क अपे ा और अ छे प रणाम मलते ह। ३. त दन ५ मनट सयू नम कार कर। 22
◉ सामू हक समता ◉ ाथ मक योग - योग - 1 सर एक, , , चतु पद (परु सर, तसर, वामसर, द णसर) योग - २ वतन (वाम, द ण, अ , वामाध, द णाध वृ ) योग - ३ मतकाल ( व वध योग तथा वतन) योग - ४ संचलन ( व वध योग तथा वतन) संयु योग - योग - १ एक पद् परु सर + वाम/द ण/अ वृ योग - २ पद् परु सर + वाम/द ण/अ वृ योग - ३ ( यके योग म २-२ या ह।) योग - ४ मतकाल + पद् पुर सर + वाम/द ण/अ वृ गण के २ समान भाग करके योग ३ को वाम तथा द ण योग - ५ वृ के साथ करना। गण के ३ समान भाग करके योग ३ को तीन वतन के साथ करना। सचू ना १. उपरो सभी योग म हाथ नह हलगे ा। २. अ वृ के अलावा सभी योग चार दशा म पूण होने ह। सचं लन के साथ योग - योग - १ ४ मतकाल + ४ कदम आगे + वाम वृ (४ अंक तक) - (यही काय शेष दशा म करना है।) योग - २ उपरो योग द ण वृ के साथ करना। द ण वृ करते समय पहला कदम उसी दशा म आगे योग - ३ रखकर शेष काय ४ अकं तक दा हनी ओर होगा।) योग - ४ उपरो योग अ वृ के साथ करना। उपरो योग वामा / द णा वृत के साथ करना। संयु योग - गण क सं या अ धक होने पर उपरो चार योग वाम, -द ण व अ वृ के साथ एक साथ करने से दशनीय सयं ु योग बना सकते ह। 23
वशषे योग - योग - १ (१). ४ मतकाल +कदम आगे + वाम वृ करके ८ अकं तक आगे जाना। (२). अ वृ । (३). ७ कदम आगे + आठवाँ दा हना पैर से द ण वृ करके शेष ८ कदम आगे। (४). अ वृ योग - २ (१). ४ मतकाल + ८ कदम आगे + बायां पैर उसी दशा म रखकर द ण वृ करते ए शेष ८ अकं पूरे करना। (२). अ वृ । (३). ८ कदम आगे प ात् वामवृ + ८ कदम आग।े (४). अ वृ । योग - ३ गण के दाये बाय दो भाग करके उपरो योग संयु प से करना। योग - ४ बाय ओर के वयंसवे क द ण वृ तथा दाय ओर के वयसं वे क वाम वृ । योग - ५ बाय ओर के वयसं वे क वाम वृ तथा दा हनी ओर के वयंसेवक सीधे आगे जायगे। योग - ६ योग ५ का वपरीत योग वशेष - अपनी क पना श से और योग बनाये जा सकते ह। योग करने के प ात् ा त को लखकर अव य भेज। ◉ मुख आ ाए ँ व उनका अथ ◉ आा अथ १. चल चलना २. चल दौड़ना ३. तभ ४. उप वश कना ५. उ त बठै ना ६. कु उठना/खड़े होना ७. तसर ८. परु सर ार भ करना ९. द णसर पीछे हटना १०. वामसर आगे बढ़ना ११. द णवतृ दाय ओर हटना १२. वामवतृ बाय ओर हटना १३. अ वतृ दाय मड़ु ना १४. व म बाय मड़ु ना पीछे मड़ु ना पूव रचना/समा त करना 24
सा ा हक खले योजना सोमवार गणेश छू , म शवाजी, मढक छू , मुरादाबाद लोटा, सुदशन च , हवाई जहाज, अगं छू , जय हनमु ान । मंगलवार खजाना, हनमु ान क पछूँ , बगड़ा बलै , मरखनी गाय, नद -टाप,ू ग दा नाला, म ँ ब दा वीर बरै ागी, ह बनाना। बुधवार माल छू , गु -चेला, राम-राजा-रावण, रले गाड़ी, जजं ीर बनाना, र शा, समोसा दौड़, डम दौड़। गु वार कु कु ट यु , टक यु , द वार यु , ीवा यु ,श प रचय, घुड़सवार यु , सघाड़े क बेल। शु वार नते ा क खोज, अयो या-मथुरा-काशी, फल क खोज, सं या, डाकखाना, क क बेल, हनमु ान दौड़, आग लगी है - आ रहे ह। श नवार खो-खो, नम ते जी, च दन, सं या बनाना, राम- याम, टाईम बम, चनु ौती, सहगढ़ का कला। र ववार वशषे काय म - कब ी/खो-खो, म डल खो, प तथा अ य खले का चयन कर सकते ह। ◉ भारत माता क आरती ◉ आरती भारत माता क , जगत क भा य वधाता क ॥ मुकु टसम हम ग रवर सोह,े चरण को र नाकर धोए, देवता कण-कण म छाये वदे के छंद, ान के कं द, करे आनदं , स य यामल ऋ षजननी क ॥1॥ जगत क ........... जगत से यह लगती यारी,बनी है इसक छ व यारी, क नया झमू उठे सारी,देखकर झलक, झुक है पलक, बढ़ है ललक, कृ पा बरसे जहाँ दाता क ॥2॥ जगत क ........... पले जहाँ रघकु ु ल भषू ण राम,बजाये बसं ी जहाँ घन याम, जहाँ पग-पग पर तीरथ धाम,अनेको पंथ, सह संत, व वध सद् थं सगणु -साकार जग माँ क ॥3॥ जगत क ........... गोद गंगा-जमनु ा लहरे,भगवा फहर-फहर फहर,े तरगं ा लहर-लहर लहर,े ए ह ख ड, करगे अख ड, य न कर च ड सवमगं ल-व सल माँ क ॥4।। जगत क ........... बढ़ाया सतं ने स मान, कया वीर ने जीवनदान, ह व म न हत है ाण,चलगे साथ, हाथ म हाथ, उठाकर माथ, शपथ गीता - गौमाता क ॥5॥ जगत क ........... ॥भारत माता क जय॥ 25
।।भारत माता।। ॐ सङ् ग छ वं संवद वं ,सं वो मनां स जानताम।् देवा भागं यथा पवू ,सं जानानां उपासते ।।१।। समानो मं ः स म तः समानी, समानं मनः सह च मषे ाम।् समानं म म भम ये वः, समानेन वो ह वषा जहु ो म ।।२।। समानीव आकू त:, समाना दया न व: । समानम तु वो मनो यथा व सुसहास त ।।३।। ।। ॐ शां त: शां त: शां त: ।। 26
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