Important Announcement
PubHTML5 Scheduled Server Maintenance on (GMT) Sunday, June 26th, 2:00 am - 8:00 am.
PubHTML5 site will be inoperative during the times indicated!

Home Explore Vol. 6, Issue 65, September 2020

Vol. 6, Issue 65, September 2020

Published by Hello Ji, 2020-11-14 21:56:13

Description: Vol. 6, Issue 65, September 2020

Search

Read the Text Version

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 65, September 2020 िषष 6, अकं 65, वसतबं र 2020 अवधी मुिावरों एवं पिेसलयों (बझु ौव्वल) मंे असर्व्यक्त स्त्री-छसवयाँ िरस्वती समश्र शोधाथी भारतीय भाषा कंे द्र (वहिं ी) िविण वबहार कें द्रीय विश्वविद्यालय, गया, वबहार | सपं कष सिू – 7275457114 ईमले –[email protected] शोध िारांश प्रस्ततु शोध-आलखे में अवधी-भाषी क्षेिों मंे प्रित्रलत महु ावरों तर्ा पहते्रलयों को आधार बनाकर इस क्षिे की त्रस्त्रयों की पाररवाररक तर्ा सामात्रिक त्रस्र्त्रतयों का त्रवश्लेषण करने का प्रयास त्रकया गया है । कथ्य को अत्रधक प्रभावी ढगं से अत्रभव्यि करने के त्रलए प्रयिु होने वाले इन महु ावरों में अवधी समाि के लगभग सारे रंग त्रवद्यमान हैं । इस शोधालेख मंे अवधी महु ावरों तर्ा पहते्रलयों में अत्रभव्यि त्रस्त्रयों से सबं ंत्रधत लगभग सभी पक्ष दखे े िा सकते हंै । त्रपतसृ त्तात्मक सामात्रिक व्यवस्र्ा मंे वन्ध्या, त्रवधवा, पररत्यिा, कु रूप तर्ा मखु र त्रस्त्रयों की वास्तत्रवक त्रस्र्त्रतयों को भी महु ावरों तर्ा पहते्रलयों के माध्यम से त्रववते्रित करने का प्रयास त्रकया गया है । महु ावरों मंे प्रायः ऐसी त्रस्त्रयों के प्रत्रत व्यंग्य के दशना होते ह,ैं इन धारणाओंके पीछे के महत्त्वपणू ा कारणों को समझने का प्रयास त्रकया गया है । महु ावरे एक पीढ़ी से दसू री पीढ़ी के मध्य लोकानभु वों और लोक-ज्ञान को हस्तांतररत करने का माध्यम रहे ह,ैं अतः इनको माध्यम बनाकर प्रस्ततु आलेख मंे अवधी त्रस्त्रयों की त्रस्र्त्रत मंे होनवे ाले यगु ीन पररवतानों को भी समझने का प्रयास त्रकया गया है । अवधी पहते्रलयों में त्रित्रित स्त्री-छत्रवयों में स्त्री-िातुरी के भी तमाम रंग अत्रभव्यि हुए ह,ंै त्रिन्हंे इस आलखे मंे त्रववते्रित त्रकया गया है । बीज शब्द अवधी, लोकसात्रहत्य, महु ावरे, पहते्रलया,ाँ स्त्री-अत्रस्मता, स्त्री-प्रत्रतरोध आमुख कभी महु ािरे लोकोवक्त की तरह प्रयकु ्त होने लगते हंै । ] प्राचीन काल से ही महु ािरे तथा पहवे लयाँ िावचक डॉ. विद्या विन्िु वसहं वलखती हंै “महु ािरा शब्ि की परंपरा मंे समाज पर अपना प्रभाि छोड़ते चले आ रहे संरचना कै से हुई यह तो भाषा िजै ्ञावनक ही बता सकते हंै । इन कहाितों तथा महु ािरों मंे समाज का मनोविज्ञान हैं वकन्तु लगता है वक महँु वबराने या वचढाने से यह शब्ि और व्यिहार िखे ा जा सकता है । अिधी िेिों में बना होगा क्योंवक इसमंे व्यंग्य का बाहलु ्य होता है । कु छ महु ािरों तथा लोकोवक्तयों मंे कोई बड़ा अतं र नहीं है । पहवे लयाँ ऐसी भी हैं जो महु ािरों और लोकोवक्तयों की कभी कोई लोकोवक्त महु ािरे का रूप ले लेती है और तरह कभी-कभी प्रयोग की जाती ह।ैं ”1 अिधी के मधू षन्य विद्वान इन्िपु ्रकाश उपाध्याय ने है । पहली विशषे ता यह है वक महु ािरा वकसी िाक्य का महु ािरों की मखु ्य तीन विशषे ताओं का उल्लेख वकया अगं ीभतू तत्ि बनकर रहता ह,ै स्ितिं प्रयोग मंे इसका वर्ष 6, अकं 65 ,सितंबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 65, September 2020 81

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 65, September 2020 िषष 6, अंक 65, वसतबं र 2020 कोई अथष नहीं है । महु ािरों की कोई अपनी स्ितिं सत्ता कपड़ों को गिं ा करने के वलए कोई बचचा नहीं होता नहीं होती । िसू री विशषे ता यह है वक महु ािरा सििै अतुः िे साफ-सथु री बनी रहती हैं जबवक सतं ानिती अपने मलू रूप मंे ही प्रयकु ्त होता है । इसमंे आये शब्िों वस्त्रयाँ बचचों के तेल-उबटन लगाती हैं जो बचचों को के स्थान पर यवि उनके पयाषयिाची शब्ि रख विए जाएँ िलु ार करते समय उनके चहे रे पर भी लग जाता है । तो इनका सौन्ियष नष्ट हो जाता है । “जसै े ‘कमर टूट सास, ननि को लके र भी अनके महु ािरे प्रचवलत हैं । इन जाना’ एक महु ािरा है । यवि इसके स्थान पर ‘कवट भगं महु ािरों से अिधी पररिारों की आतं ररक वस्थवतयों का होना ’वलखा जाये तो िह पिू ोक्त अथष का द्योतक पता चलता है । सास-बह के मध्य एक अदृश्य वखचं ाि किावप नहीं हो सकता ।”1 इसी प्रकार महु ािरे की तीसरी सििै उपवस्थत रहता है इसके पीछे सासों द्वारा स्ियं बह बड़ी विशेषता यह है वक इसका िाचयाथष से सीधा संबंध रूप मंे सहे गए िखु ों से उपजी बिले की भािना, बटे े के नहीं होता बवल्क लक्ष्याथष की सहायता से ही इसके पराए हो जाने का भय, अपनी सत्ता बह के पास िास्तविक अथष तक पहचुं ा जा सकता है । “जसै े ‘गड़ा हस्तांतररत हो जाने जसै े भय कारण के रूप में उपवस्थत मिु ाष उखाड़ना’, इसका अवभधये ाथष है कि में िफनाये रहते हंै । सास की बह के प्रवत और बह की सास के प्रवत गए मिु े को उखाड़ना परन्तु इसका लक्ष्याथष है वकसी िबी िबाई बात को वफर से उठाना । इस प्रकार महु ािरे का संििे ना प्रायुः विखािटी ही रहती है । इस आशय का असली अथष उसके अवभधेयाथष से वबल्कु ल वभन्न होता एक महु ािरा िवे खये वजसमे िािी सास को बह पर इतना है ।”2 स्नेह आया वक कं डा (उपले) लके र आसं ू पोछने लगीं अथाषत ममता का झठू ा प्रिशनष वकया - िवै नक बातचीत में प्रयोग वकये जाने िाले इन महु ािरों “बहुत मोहानी अवजया सास,ू कं डा लइ के पोंछै आसँ ु में अिधी समाज के लगभग सारे रंग विद्यमान हैं । इनमंे ।”4 स्त्री तथा जावतगत विशषे ताएँ भी पररलवित हुई हैं । महु ािरों मंे उपवस्थत स्त्री-स्िरों को समझने के वलए कु छ बहुएँ अपनी वनिं ा सनु ते हएु बहुत बार सासों को टोक महु ािरों का विश्लेषण आिश्यक होगा । अिधी ििे ों में भी िते ी हंै वक आज मंै आपकी बह हँ और आप मरे ी िन्ध्या स्त्री की वस्थवत अचछी नहीं रही है । संतानहीन वनिं ा कर रही हैं कल को आपकी बटे ी भी वकसी की बह वस्त्रयों पर कटाि यहाँ भी विखाई पड़ जाता है । वनम्न बनगे ी तब आपको पता चलगे ा वक अपनी व्यथष वनिं ा महु ािरा िवे खये – सनु कर कै सा प्रतीत होता है । बह द्वारा सास को सचते “बावं झवन कै फु फु नी वचक्कन, लरकौरी कै महँु वचक्कन करता ऐसा ही महु ािरा प्रचवलत है – ।”3 अथातष िन्ध्या स्त्री के कपडे साफ-सथु रे रहते हंै जबवक पिु िती माओंके चहे रे वचकने होते हंै । िन्ध्या वस्त्रयों के 1उपाध्याय, कृ ष्ट्णििे , (2014), लोक संस्कृ वत की रूपरेखा, लोकभारती 3 पीयषू , जगिीश (संपा.), (2010), अिधी ग्रथं ािली (खंड-7), िाणी ] प्रकाशन, इलाहाबाि, पषृ ्ठ सं. 303 प्रकाशन, विल्ली, पषृ ्ठ सं. 355 2िही, 4 िही, वर्ष 6, अकं 65 ,सितंबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 65, September 2020 82

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 65, September 2020 िषष 6, अंक 65, वसतंबर 2020 “वजन करा तू सासु बरु ाई, तोहरी वधयिो के आगे आयी लाज के भय से प्रौढाएँ अपना मन मार कर स्ियं को घर- ।”5 पररिार की वजम्मिे ाररयों मंे उलझा लते ी थीं । इसी तरह इसी तरह ननि-भाभी के मध्य भी एक तरह का मौन यदु ्ध की एक लोकोवक्त अिध में प्रचवलत है जो महु ािरे की वछड़ा रहता है । वजस घर मंे एक पिु ी के रूप मंे जन्म लने े तरह भी प्रयकु ्त होती है । एक स्त्री िसू री स्त्री से कह रही से लके र अबतक उसका एकछि अवधकार रहा िह है वक जबतक बेटी नहीं है तबतक खा ले और जबतक भाभी के आने के बाि वछन जाता है । िस्ततु ुः यही बह नहीं है तबतक पहन ले अन्यथा वफर तो उन्हंे ही कारण है वक ननि, भाभी के हर काम में मीन-मखे वखलाने-पहनाने मंे उम्र गजु र जाएगी – वनकाल कर अपने िोभ को शांत करने का प्रयास करती “खाय ले, खाय ले वबवटयिा नाय, पवहरर ले, पवहरर ले रहती हंै । अिधी ििे ों मंे ननि-भाभी के बीच के सबं ंधों पतोवहया नाय ।”9 का यह रूप गीतों, कथाओ,ं लोकोवक्तयों के साथ ही अिधी ििे ों में खाली समय वबताने के वलए पहवे लयाँ महु ािरों का भी विषय बना है । एक उिाहरण प्रस्ततु है पछू े जाने की भी परंपरा रही है । इन पहवे लयों के माध्यम – से बवु द्ध तथा चातयु ष की परीिा भी हो जाती है । “कु बरी सिवत सताि,ै काठे के ननि वबरािै ।”6 जनसाधारण के मध्य पहले ी वजज्ञासा, रहस्य और अथातष ् सौतन कु बड़ी हो तो भी सताती है और ननि मनोरंजन के साधन के रूप में लोकवप्रय है । अिधी में काठे (लकड़ी) की भी हो तो वबराती (महंु वचढाती) ह।ै पहले ी को ‘बझु ौिल’ कहा गया है । िहां ये यही कारण है वक भावभयों के आते ही घर पर ननि का वििग्धतापणू ष और बौवद्धक चमत्कार की अवभव्यवक्त के अवधकार नहीं रह जाता – रूप मंे प्रकट होती है । “भउजी के घर िआु र, ननिी के लबलब ।”7 इन पहवे लयों मंे अथष वछपे होते हंै वजन्हंे प्रश्नों के माध्यम अिधी लोक मंे वस्त्रयों के अवधक उम्र की हो जाने पर से पछू ा जाता है । अिधी मंे खसु रो की पहवे लयाँ प्रवसद्ध ज्यािा सजने-सँिरने पर भी व्यंग्य वकया जाता है । इस रही हंै । एक उिाहरण प्रस्ततु है – आशय का वनम्न महु ािरा िखे ा जा सकता है – “बढू ी ,सािन भािों बहतु चलत है माघ पसू माँ थोरी“ घोड़ी लाल लगाम”8 इसके पीछे के सामावजक कारणों अमीर खसु रो यँू कहें तू बझू पहले ी मोरी ।”10 पहवे लयों की प्रमखु विशषे ता यह है वक इनमे भाि कम का विश्लेषण करने पर प्रतीत होता है वक लोक वस्त्रयों से होते हंै जबवक शब्िों की करामात अवधक होती है । यह आशा करता है वक प्रौढ़ हो जाने पर िे अपनी पवु ियों पहवे लयों की रचना चलते-वफरत,े गािं ों की चौपालों में तथा बहुओं को श्रगंृ ार करने का मौक़ा िंे । यवि िे स्ियं बैठे-बवतयाते ही हो जाती थी । इन पहवे लयों में शावब्िक ही सजती संिरती रहगें ी तो बह बेवटयों को इसका चमत्कार अवधक रहता है । अिधी मंे स्त्री-आधाररत अिसर नहीं वमल पायगे ा अतुः मन होने पर भी लोक पहवे लयाँ न के बराबर वमलती हैं परन्तु वफर भी कु छ ऐसी 5 िही, पषृ ्ठ सं. 356 9पीयषू , जगिीश (सपं ा.), (2010), अिधी ग्रंथािली (खडं -7), िाणी प्रकाशन, ] 6 िही, पषृ ्ठ सं. 370 विल्ली, पषृ ्ठ सं.356 7 िही, पषृ ्ठ सं. 356 10 ग्राम – कोरिा, वजला – उन्नाि, उत्तरप्रेिश वनिासी बलभद्र िीवित से सनु ी 83 8 िही, गयी वर्ष 6, अकं 65 ,सितंबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 65, September 2020

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 65, September 2020 िषष 6, अकं 65, वसतबं र 2020 पहवे लयाँ हंै वजनमे स्त्री की सामावजक वस्थवतयों के संके त इस पहले ी का उत्तर ‘जठे ’ (वहिं ी माह का नाम) ह।ै इस वछपे हएु हंै । यह पहवे लयाँ प्रत्यि तो वकसी अन्य अथष पहले ी के माध्यम से अिधी स्त्री का िाक् चातयु ष िखे ा में प्रयकु ्त होती हैं परन्तु परोि रूप से इनमंे वस्त्रयों की जा सकता है । सास द्वारा िरे से आने का कारण पछू ने वस्थवतयों को भी िखे ा जा सकता है । उिाहरण के वलए पर बह कहती है वक रास्ते में जठे जी खड़े थ,े मैं उनका वनम्न पहले ी िखे ी जा सकती है – स्पशष नहीं कर सकती थी अतुः उनके जाने की प्रतीिा तब सह्यों मारर तहु ार ,कंु िारर-जब रह्यों बारर“। करती रही और इसी मंे मझु े आने मंे िरे हो गयी । जठे के वबयावह के मारौ हमका हम मरि बखानी तहु काँ ,।।”11 बारे में बताने के वलए भी उसने सीधे ‘जठे ’ न कहकर सीधे अथों मंे इस पहले ी का उत्तर ‘वमटटी के बरतन’ है कहा वक वजस महीने के पहले बसै ाख और बाि मंे आसाढ़ पड़ता है िे मागष मंे खड़े थे । परन्तु इस पहले ी मंे ध्िवनत हो रहा अथष इसे सीधे-सीधे अिधी स्त्री से जोड़ रहा है । इस पहले ी की रचना-प्रवक्रया एक अन्य पहले ी प्रचवलत है वजसमे सास ने बह को कपरू का विश्लेषण करने पर स्पष्ट प्रतीत होता है वक इसकी लाने के वलए भजे ा । कपरू उस बह के पवत का नाम भी रचना संभितुः वकसी स्िावभमावननी स्त्री के द्वारा हईु था अतुः सास ने सोचा वक िखे ो अब यह िकू ानिार से होगी जो सीधे-सीधे परु ुष को चनु ौती िे रही है वक कपरू कै से मांगगे ी (अिधी ििे ों मंे पवत का नाम लेना जबतक मै बारी कँु िारी थी अथातष ् जबतक मझु े िवजतष ह)ै , बह अत्यतं चतरु थी उसने िकु ानिार से कहा सामावजक मान्यता ि अवधकार प्राप्त नहीं था तबतक तमु ने मझु े बहुत कष्ट पहचुं ाया परन्तु वििाह हो जाने और ,मलयावगरर कै बास ,संख यस उज्जर सवस बरन“ सामावजक मान्यता प्राप्त हो जाने के बाि मझु पर हाथ हे बवनया तू तौल िे लेन पठायीं सासु ,।”13 उठाकर विखाओ तो तो मंै समझँू वक तमु असली परु ुष हो । इस तरह की खलु ी चनु ौती वस्त्रयाँ सीधे नहीं िे इस पहले ी का उत्तर ‘कपरू ’ है । शंख की तरह सफ़े ि, सकती थीं और न ही खलु ा विरोध ही कर सकती थीं चन्द्र के िणष का, मलयवगरी पर िास करनेिाला पिाथष अतुः उन्होंने अपनी बात को कहने के वलए पहले ी को सनु ते ही बवनया समझ गया और उसने कपरू तौल कर माध्यम बनाया होगा । िे विया । इस पहले ी के माध्यम से सास का मनोविज्ञान, नियिु वतयों की चतरु ता और अिधी रीवत-ररिाजों का अिधी समाज में जठे )पवत का बड़ा भाई) का नाम लने े सहज अनमु ान हो जाता है । तथा परिा करने की परम्परा रही है । यहाँ तक वक जठे अिधी ििे ों में वििाह के समय िर से पहले ी पछू े जाने का स्पशष भी िवजतष माना गया है । एक पहले ी प्रचवलत की परम्परा रही है । इन पहवे लयों को छंि कहा जाता है है वजसके माध्यम से अिधी ििे ों की इस मान्यता का । इन पहवे लयों के माध्यम से िर का बवु द्ध-परीिण वकया पता चलता है – जाता है । ऐसे कु छ छंि ग्राम के सरी खडे ा, वनिावसनी ,उनपर चढ़े असाढ़ ,बैसाख के उप्पर िै चढें“ श्रीमती प्रवतमा ने सनु ाये – बीवच रवहया मा ठाढ़ रहे कै से आइत सासु ,।”12 11 पीयूष, जगिीश (संपा.), (2010), अिधी ग्रंथािली (खंड-7), िाणी 12िही, ] प्रकाशन, विल्ली, पषृ ्ठ सं. 377 13 िही, वर्ष 6, अंक 65 ,सितंबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 65, September 2020 84

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 65, September 2020 www.jankriti.com िषष 6, अकं 65, वसतंबर 2020 अिधी समाज की सामावजक संरचना ि सांस्कृ वतक छन पके तीर ,छन पके आइयाँ“। गवतविवधयों को भी समझा जा सकता है । अिधी धन्य धन्य मरे ी सातों बवहनी वजनका मंै िीर ,।”14 समाज के मलू ्य, परम्पराए,ँ आवि भी इनके माध्यम से स्पष्ट हो जाते हंै ,तथा इन परम्पराओं की मखु ्य िाहक ,छन पके सरु मा ,छन पके आइयाँ“ वस्त्रयों की िास्तविक पररवस्थवतयां भी । सनष्कर्ष – इस शोधालेख के अंतगतष वकये गए विश्लेषण तोहार वबवटया मैं अइसे राखँू जसै े आखँ ों मंे रहे सरु मा , से यह वनष्ट्कषष वनकलता है वक अिधी समाज में वस्त्रयों ।”15 की पाररिाररक, सामावजक, धावमकष आवि वस्थवतयों की इस छंि के माध्यम से िर ने िधू के प्रवत सहज ही अपने वनवमवष त के पीछे कई महत्त्िपणू ष कारक कायष करते हंै । प्रमे का प्रिशनष भी कर विया और साथ ही िधू के पररिार में वस्त्रयों के मध्य उत्पन्न होने िाली असरु िा की पररिार की वस्त्रयों को आश्वस्त भी कर विया वक िह भािना तथा पारस्पररक असंतोष भी उनकी हीन वस्थवत उनकी बेटी अथाषत अपनी िधू को आखँ ों के सरु मे की के पीछे का महत्त्िपणू ष कारण है । चँवू क महु ािरों तथा तरह सभं ालकर और सखु सवु िधाओं के साथ रखगे ा । पहवे लयों का रचनाकार प्रायुः परु ुष-िगष होता है अतुः िह वस्त्रयों के मध्य की इन वस्थवतयों को व्यगं्य का विषय इस तरह लोक जीिन के मध्य जन्मी तथा विकवसत हईु बना लते ा है । लोकगीतों की तरह इनपर वस्त्रयों का ये पहवे लयाँ अत्यंत ज्ञानिधषक, सशक्त, मनोरंजन के एकावधकार नहीं रहता ,यही कारण है वक अिधी भािों से भरी हईु होने के साथ ही तकष शवक्त का विकास लोकोवक्तयों, महु ािरों, पहवे लयों आवि मंे स्त्री-प्रवतरोध करने में भी सिम हैं । परस्पर पहवे लयों के व्यिहार से के वचह्न सामान्यतुः नहीं प्राप्त होते । स्त्री-अवस्मता पर इसके प्रयोक्ताओं की िाकशवक्त में कलात्मकता आती प्रश्नवचह्न लगाते इन माध्यमों में वस्त्रयों से सम्बवन्धत है तथा साथ ही स्मरण शवक्त और विचार शवक्त भी पषु ्ट एकतरफा विचार िखे ने को वमलते हैं । साथ ही होती है । अवभव्यवक्त के इन माध्यमों से स्त्री के प्रवत परु ुषों की लोकोवक्तयों, कहाितों, महु ािरों तथा पहवे लयों के प्रयोग एकांगी तथा वनम्नस्तरीय विचारधारा भी स्पष्ट से जहाँ भाषा की व्यंजकता मंे िवृ द्ध होती है िहीं कथ्य पररलवित होती है । की सपं ्रेषणीयता भी बढ़ जाती है । इनके माध्यम से िन्दर्ष ग्रन्थ  पीयषू , जगिीश (सपं ा.), (2010), अिधी ग्रथं ािली (खडं -7), िाणी प्रकाशन, विल्ली , पषृ ्ठ स.ं 353  उपाध्याय, कृ ष्ट्णििे , (2014), लोक ससं ्कृ वत की रूपरेखा, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाि, पषृ ्ठ सं. 303  पीयषू , जगिीश (संपा.), (2010), अिधी ग्रंथािली (खंड-7), िाणी प्रकाशन, विल्ली, पषृ ्ठ स.ं 356  ग्राम – कोरिा, वजला – उन्नाि, उत्तरप्रेिश वनिासी बलभद्र िीवित से सनु ी गयी 14 ग्राम - बारी खेड़ा, पोस्ट – मिई, वजला – उन्नाि, उत्तरप्रिेश 15 िही ] वनिावसनी श्रीमती िगु ाष ििे ी से सुना गया वर्ष 6, अंक 65 ,सितंबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 65, September 2020 85






























Like this book? You can publish your book online for free in a few minutes!
Create your own flipbook