Important Announcement
PubHTML5 Scheduled Server Maintenance on (GMT) Sunday, June 26th, 2:00 am - 8:00 am.
PubHTML5 site will be inoperative during the times indicated!

Home Explore SHREE MAHAPRABHAVAK BHAKTAMAR STOTRA

SHREE MAHAPRABHAVAK BHAKTAMAR STOTRA

Published by DRRINASHAH8, 2022-02-09 00:29:54

Description: SHREE MAHAPRABHAVAK BHAKTAMAR STOTRA

Search

Read the Text Version

यं - ऋि - ीं अह णमो ख ोसिहप ाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो ीं ीं ीं ऐं ौं प ाव ै दे ै नमो नमः ाहा। प च य म ां ीं नमः । अ - ीं कोिटभा र भाम त भाम ल ाितहायॅ यु ाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 101

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 102

35. िद िन ितहाय का ोक - गापवग गम माग िवमागणे ः , स म त कथनकै पटु लो ाः । िद िन भवित ते िवशदाथ सव-, भाषा भाव प रणाम गुणःै यो ः ॥35॥ अथ - आपक िद िन ग और मो माग क खोज म साधक, तीन लोक के जीवों को समीचीन धम का कथन करने म समथ, अथ वाली, सम भाषाओं म प रवितत करने वाले ाभािवक गुण से सिहत होती है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३५) िद - िन ाितहाय- पक - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ िद - िन ओकं ार मयी, घन-गजन झं कार मयी। ग-मो मग दशाती, पथ श करती जाती॥ स क् धम सनु ाती ई, ि भुवन पार लगाती ई। -गुणो-ं पयायों का, िवशद व ु समदु ायों का॥ भाव-अथ कटाती है, प रवितत हो जाती है। ोताओं क भाषा म, भावों भरी िपपासा म॥ सहज प पर णत होती, िद िन िन:सतृ होती। यही िवल ण अितशय है, अनके ा िन:सं शय है॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 103

यं - ऋि - ीं अह णमो ज ोसिहप ाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो जय िवजय अपरा जते महाल ी अमृत विषणी अमतृ ािवणी अमतृ ं भव भव वषट् सुधाय ाहा। नमो गजगमने सव क ाण मूतये र र नमः ाहा। ीं ीं ौं ां ीं ं ः हर हर। अ - ीं जलधरपटलग जतसवभाषा कयोजन माण िद िन ाितहायॅ यु ाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 104

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 105

36. ल ी दायक का ोक - उि हेम नव प ज पु का ी, पयु सन् नख मयूख शखा भरामौ । पादौ पदािन तव य जने ध ः , प ािन त िवबुधाः प रक य ॥36॥ अथ - पु त नव ण कमलों के समान शोभायमान नखों क िकरण भा से सु र आपके चरण जहाँ पड़ते ह वहाँ देव गण ण कमल रच देते ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३६) चरण-कमल तल ण-कमल - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ भु के चरण युगल कै स?े नतू न ण-कमल जसै े। भा पँ ुज िबखराते ह, र जाल फै लाते ह॥ नख- शख स रत उजयाला, चतुमुखी आभा वाला। िनकल रहा है चरणों से, दीि नखों क िकरणों स॥े के चरणा ुज जहाँ -जहाँ , पड़ते भु के वहाँ -वहाँ । कदम-कदम पर िबछते ह, सरु गण जनको रचते ह॥ कमल पाँ वड़े सोने के , सु र और सलोने के । कमल चरणों क चरे ी है, िवभिू त भवु र तेरी है॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 106

यं - ऋि - ीं अह णमो िव ोसिहप ाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ीं ीं क लकंु ड दंड ािमन् आग आग आ मं ान् आकषय आकषय आ मं ान् र र परमं ान् छंद छंद मम समीिहतं कु कु ाहा। अ - ीं पाद ासेप ीयु ाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 107

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 108

37. दु ता ितरोधक का ोक - इ ं यथा तव िवभिू तरभू ने , धम पदेशनिवधौ न तथा पर । या भा िदनकृ त: हता कारा, ता ु तो हगण िवका शनोऽिप॥ 37॥ अथ - हे जने ! इस कार धम पदेश के काय म जसै ा आपका ऐ य था वसै ा अ िकसी का नही आ। अधं कार को न करने वाली जैसी भा सयू क होती है वसै ी अ काशमान भी हों क कै से हो सकती है? मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३७) समवशरण का वैभव - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ जतना जसै ा जो ऐ य, पाया जाता हे जनव । वभै व धम सभाओं का, सव दयी िवधाओं का॥ धम-देशना वले ा म, समवसरण के मेला म। नहीं दसू रों का वैसा, पाया जाता तुम जसै ा॥ जसै ी दीि िदवाकर म, िदपती घोर ितिमर-हर म। वसै ा कहाँ सतारों म? िटम-िटम ोित हजारों म॥ परम ोित परमे र हे! के वल ान िदवाकर हे! समवसरण अ धनायक हे! आ त के ायक हे! मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 109

यं - ऋि - ीं अह णमो स ोसिहप ाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो भगवते अ ितच े ऐं ीं ं ू ीं मनोवां छत स यै नमो नमः अ ितच े ीं ठः ठः ाहा। अ - ीं धम पदेशसमयेसमवशरणािद ल ी िवभिू त िवराजमानाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 110

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 111

38. वभै ववधक का ोक - ोत दािवल िवलोल कपोल मलू -, म मद मरनाद िववृ कोपम् । ऐरावताभ िमभ मु त मापत ं , वा भयं भवित नो भवदा तानाम् ॥38॥ अथ - आपके आ त मनु ों को, झरते ए मद जल से जसके ग ल मलीन, कलुिषत तथा चं चल हो रहे है और उन पर उ होकर मं डराते ए काले रंग के भौरे अपने गजु ं न से ोध बढा़ रहे हों ऐसे ऐरावत क तरह उ , सामने आते ए हाथी को देखकर भी भय नहीं होता। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३८) ोध पी पशतु ा पर िवजय - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ भीम-काय ऐरावत सा, महा भयं कर पवत सा। कोई गज उ ं ृखल हो, मतवाला हो, चं चल हो॥ गालों से मद झरने से, कलिु षत उनके करने स।े भौरं े भी मँ डराते हो,ं ोध अ धक भडक़ाते हो॥ं ऐसा हाथी स खु हो, बेवश, बरे स, बे◌े ख हो। िक ु आपके शरणागत, यािक आपके क तन रत॥ तिनक न उससे डरते ह, वश म उसको करते ह। ोिं क आप अभयं कर ह, वीतराग तीथकर ह॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 112

यं - ऋि - ीं अह णमो मणबलीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो भगवते अ महानागकु लो ािटनी काल द मृतको ािपनी परमं णा शनी देिव शासनदेवते ीं नमो नमः ाहा। नमः श िु वजयरण रणा े ां ीं ँ ू ः नमः । ीं नमो नमः ाहा। अ - ीं ह ािदगवॅ दु ॅरभयिनवारणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 113

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 114

39. संह शि सं हारक का ोक - भ भे कु गलदु ल शो णता -, मु ाफल कर भूिषत भिू मभागः । ब मः मगतं ह रणा धपोऽिप, ना ामित म यगु ाचल सं तं ते ॥39॥ अथ - संह, जसने हाथी का ग ल िवदीण कर, िगरते ए उ ल तथा र िम त गजमु ाओं से पृ ी तल को िवभिू षत कर िदया है तथा जो छलागं मारने के लये तैयार है वह भी अपने परै ों के पास आये ए ऐसे पु ष पर आ मण नहीं करता जसने आपके चरण यगु ल प पवत का आ य ले रखा है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३९) िहंसक बबरता पर िवजय - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ बबर संह हा थयों पर, झपटे अगर छलाँ ग भर। खनू ी पं जे गाड़े हो,ं गज गल म क फाड़े हो॥ं टपक रहे हों गज-मु ा, उ ल और धर स ा। वसुधा का ंगार करे, मानो मु ा हार धरे॥ ऐसे संह के पं जों म, फँ स कर ू र शकं जों म। कभी शकार न हो सकता, उस पर वार न हो सकता॥ यिद वह भ तु ारा है, यगु पद-शैल सहारा है। चरणों क हो ओट जहाँ , उस पर कोई चोट कहाँ? मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 115

यं - ऋि - ीं अह णमो वचबलीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो एषु वृ षे ु व मान तव भयहरं विृ वणायषे ु मं ाः पनु ः त ा अतो ना पर मं िनवदे नाय नमः ाहा। अ - ीं युगािददेवनाम सादात् के शरभयिवनाशकाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 116

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 117

40. सवाि शामक का ोक - क ातं काल पवनो त वि क ं , दावानलं लत मु ल मु ु ल म् । िव ं जघ िु मव स खु मापत ं , ाम क तन जलं शमय शेषम् ॥40॥ अथ - आपके नाम यशोगान पी जल, लयकाल क वायु से उ त, च अि के समान लत, उ ल चनगा रयों से यु , सं सार को भ ण करने क इ ा रखने वाले क तरह सामने आती ई वन क अि को पणू प से बुझा देता है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४०) अशा क ाला का शमन - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ आँ धी लयं कारी हो, दावानल यिद भारी हो। धधका हो ालाओं स,े भभका तेज हवाओं स॥े चनगारी चनगारी हो, अँगारे भी जारी हो।ं चारों ओर मचे हा! हा! मानो िव आ ाहा॥ लपट ऐसी िनकल रही,ं मानों जग को िनगल रही।ं िक ु आपका जप-बल ही, नामों का मं ि त जल ही॥ अि च बझु ाता है, शा -सुधा बरसाता है। वीतराग म राग कहाँ ? अरे राग क आग कहाँ ? मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 118

यं - ऋि - ीं अह णमो कायबलीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ीं ीं ीं ां ीं अि मपु शमनं शा ं कु कु ाहा। सौं ीं ौं ौं सं ुदरपाय नमः । अ - ीं सं साराि तापिनवारणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 119

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 120

41. भजु ं ग भयभं जक का ोक - र े णं समद कोिकल क नीलं , ोधो तं फ णन मु ण मापत म् । आ ामित मयुगने िनर शं क-, व ाम नागदमनी िद य पं सु ः ॥41॥ अथ - जस पु ष के दय म नाम पी-नागदौन नामक औषध मौजदू है, वह पु ष लाल लाल आँ खो वाले, मदयु कोयल के क क तरह काल,े ोध से उ त और ऊपर को फण उठाये ए, सामने आते ए सप को िनः शं क होकर दोनों परै ो से लाँ घ जाता है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४१) िवषय भजु ं गों के िवष का उपचार - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ ऊपर को फण िकए ए, लाल-लाल दग लए ए। ोध भरा मतवाला हो, कोयल जसै ा काला हो॥ सप भजु ं ग िनराला हो, बढक़र डसने वाला हो। मगर आपके नामों क , ुित के आयामों क ॥ नाग दमिनयाँ जो रखता, मन ही मन अमृत चखता। ऐसा भ उलाँ घगे ा, पाँ व नाग पर रख देगा॥ सप पटक फण रह जाय,े भ मगर बढ़ता जाय।े पथ उसका िन:शं क रहे, निह अिह का आतं क रहे॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 121

यं - ऋि - ीं अह णमो खीर सवीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो ां ीं ंू ौं ः जलदेिवकमले प दिनवा सनी प ोप र-सं ते सि ं देिह मनोवां छतं कु कु ाहा। ीं आिददेवाय ीं नमः । अ - ीं ामनागदमनीशि स ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 122

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 123

42. यु भय िवनाशक का ोक - व ुर गज ग जत भीमनाद-, माजौ बलं बलवता मिप भूपतीनाम् । उ ि वाकर मयूख शखापिव ं, ना म इवाशु भदा मुपिै त ॥42॥ अथ - आपके यशोगान से यु े म उछलते ए घोड़े और हा थयों क गजना से उ न भयं कर कोलाहल से यु परा मी राजाओं क भी सने ा, उगते ए सयू िकरणों क शखा से वधे े गये अंधकार क तरह शी ही नाश को ा हो जाती है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४२) कम श ुओं पर िवजय- आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ घोड़े िहन-िहन करते हो,ं गज चंघाड़े भरते हो।ं रण का भयं कर हो, श ु फौज बलव र हो॥ वह भी पीठ िदखायगे ी, अपने मँ ुह क खायगे ी। उिदत सयू क िकरणों स,े उनक पनै ी नोकों स॥े अ कार भद जाता है, अंग-अंग छद जाता है। ों ही तुमको भजने से, ुित िवनय सरजने से॥ भ िवजय पा जाता है, दु न घबरा जाता है। सने ा छ - भ होती, डर से खदे ख होती॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 124

यं - ऋि - ीं अह णमो स सवीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो निमऊण िवषधर िवष णाशन रोग शोक दोष ह क दमु जाई सहु नाम गहण सकल सहु दे नमः ाहा। ीं ीं बल परा माय नमः । अ - सं ामम े ेमं कराय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 125

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 126

43. सव शािं तदायक का ोक - कु ा भ गज शो णत वा रवाह-, वेगावतार तरणातुर योध भीमे । यु े जयं िव जत दजु य जये प ा-, ाद प ज वना ियणो लभ े ॥43॥ अथ - हे भगवन् ! आपके चरण कमल प वन का सहारा लेने वाले पु ष, भालों क नोकों से छेद गये हा थयों के र प जल वाह म पड़े ए तथा उसे तरै ने के लये आतरु ए यो ाओं से भयानक यु म दजु य श ु प को भी जीत लेते ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४३) चेतन-कम यु म आ -िवजय - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ पैने बरछ , भालों स,े तलवारो,ं करवालों स।े कट-कट ह ी मरते हो,ं नदी खनू क भरते हो॥ं शूर वीर अतराते हो!ं आतरु ता िदखलाते हो!ं ! शी पार हो जाने क , दु न पर जय पाने क ॥ दु न महा भयं कर हो, जसे जीतना दु र हो। सो भी जय पा जाता है, रण म नाम कमाता है॥ जसके चरण सरोजों क , मं ुजल पद अंभोजों क । शीतल छ ाया हो, जसने तुमको ाया हो॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 127

यं - ऋि - ीं अह णमो म र सवीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो च े री देवी च धा रणी जनशासन सवे ाका रणी ोप व िवना शनी धमशांित का रणी नमः कु कु ाहा। ीं ीं नमः । अ - ीं वनगजािदभयिनवारणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 128

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 129

44. भयानक जल िवपि िवनाशक का ोक - अ ोिनधौ ु भत भीषण न च -, पाठीन पीठ भय दो ण वाडवा ौ । र रंग शखर त यानपा ा-, ासं िवहाय भवतः रणाद् ज ॥44॥ अथ - ोभ को ा भयं कर मगरम ों के समहू और मछ लयों के ारा भयभीत करने वाले दावानल से यु समु म िवकराल लहरों के शखर पर त है जहाज जनका, ऐसे मनु , आपके रण मा से भय छोड़कर पार हो जाते ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४४) भव-समु क भि नौका - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ मगर म घिडय़ाल जहाँ , जीव-ज ु िवकराल जहाँ । लहर अित उ ाल जहाँ , बडवानल क ाल जहाँ॥ सुलगी महा समु र म, जल के ु बवं डर म। डावाँ डोल जहाज ए, ाणों के मँ हु ताज ए॥ जल-या ा करने वाल,े महा मृ ु वरने वाल।े िक ु आपको रटने स,े भि माग पर डटने से॥ सखु ासीन बहते जाते, भय-िवहीन बढ़ते जाते। अपने इ िठकानों पर, बठै कु शल जल यानों पर॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 130

यं - ऋि - ीं अह णमो अमीय सवीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो रावणाय िवभीषणाय कुं भकरणाय लं का धपतये महाबल परा माय मन ंिततं कु कु ाहा। अ - ीं सं सारा तारणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 131

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 132

45. सव भयानक रोग िवनाशक का ोक - उ तू भीषण जलोदर भारभु ा:, शो ां दशामुपगता ुत जीिवताशा:। ादप ज रजोमृत िद देहाः , म ा भव मकर ज तु पा:॥ 45॥ अथ - उ ए भीषण जलोदर रोग के भार से झुके ए, शोभनीय अव ा को ा और नहीं रही है जीवन क आशा जनके , ऐसे मनु आपके चरण कमलों क रज प अ त से ल शरीर होते ए कामदेव के समान प वाले हो जाते ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४५) ज -जरा-मृ ु रोग िवनाशक - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ भीषण रोग जलोदर हो, बदसरू त ल ोदर हो। टेढ़े मढ़े े अंग ए, अवयव सारे भं ग ए॥ च ा जनक अव ा हो, हालत िब ु ल ख ा हो। चारों ओर िनराशा हो, िगनती क ही ासा हो॥ अगर आपको वह भज ल,े अमतृ मयी चरण-रज ल।े अपने अंग रमायगे ा, तो सब रोग भगायेगा॥ नव-जीवन पा जायगे ा, सु र तन पा जायेगा। मनहर, मं जु मनोजों सा, सु र, नेघड़ सरोजों सा॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 133

यं - ऋि - ीं अह णमो अ ीण महाणसाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो भगवती ु ोप व शांितका रणी रोगक रोपशमनं शांितं कु कु ाहा। ीं भगवते भयभीषणहराय नमः । अ - ीं दाहतापजलोदरा ादशकु सि पातािदरोगहराय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 134

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 135

46. बं धन िवमोचक का ोक - आपादक मु ृ ल वेि ता ा, गाढं वृहि गडकोिट िनघृ ज ा:। ाम म मिनशं मनुजा: र :, स : यं िवगत ब भया भव ॥ 46॥ अथ - जनका शरीर परै से लेकर क पय बडी़बडी़ सांकलों से जकडा़ आ है और िवकट सघन बेिड़यों से जनक - जं घाय अ छल ग ह ऐसे मनु िनर र आपके नाममं को रण करते ए शी ही ब न मु हो जाते है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४६) कम ब न से मिु - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ बड़ी-बड़ी जं जीरों को, लके र कसा शरीरों को। जकड़ िदया है जोरों से, नख- शख चारों ओरों से॥ मोटी लौह ंखलाएँ , छ ल रहीं हो जं घाएँ । इतना, ढ़तम बं धन हो, पराधीन बं दीजन हो॥ महाम यिद जपता है, तो त हो सकता है। लगातार यिद जाप करे, मुि यं ही आप वरे॥ हो जाता ं द अहो, त ण ही िनब अहो। टूटे ब न कम के , कटे वैभव धम के ॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 136

यं - ऋि - ीं अह णमो व माणाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो ां ीं ीं ं ौं ः ठः ठः जः जः ां ीं ं ू ः यः ाहा। अ - ीं नानािवधकिठनब नदरू करणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 137

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 138

47. सव भय िनवारक का ोक - म ि पे मृगराज दवानलािह-, सं ामवा र ध महोदर ब नो म्। त ाशु नाशमपु याित भयं भयेव, य ावकं विममं मितमान धीते॥ 47॥ अथ - जो बिु मान मनु आपके इस वन को पढ़ता है उसका म हाथी, संह, दवानल, यु , समु जलोदर रोग और ब न आिद से उ भय मानो डरकर शी ही नाश को ा हो जाता है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४७) स भयों से मुि - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ जो इस मं गल-गीता को, पावन-परम पनु ीता को। भि भाव से पढ़ते ह, दय े म म जड़ते ह॥ वही िववके कहलात,े उनके ये भय भग जात।े मद उ गजे ों का, बबर संह मगृ े ों का॥ धू धू करते ामों का, सप का, सं ामों का। ो भत ए समु ों का, रोग जलोदर ों का॥ ब न का भी भय भगता, भ मो मग म लगता। दैिहक, दैिवक िवपदाएँ , ण म सभी पला जाएँ ॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 139

यं - ऋि - ीं अह णमो स ायदणाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो ां ीं ं ः य ीं ीं फट् ाहा। नमो भगवते उ भयहराय नमः । अ - ीं ब िवधिव िवनाशाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 140

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 141

48. मनोवां छत सि दायक का ोक - ो जं तव जने गुणैिनब ां, भ ा मया चरवण िव च पु ाम।् ध े जनो य इह क गतामज ं , तं मानतु मवशा समपु ैित ल ी:॥ 48॥ अथ - हे जने देव! इस जगत् म जो लोग मरे े ारा भि पवू क (ओज, साद, माधुय आिद) गुणों से रची गई नाना अ र प, रंग िबरंगे फू लों से यु आपक ुित प माला को कं ठा करता है उस उ त स ान वाले पु ष को अथवा आचाय मानतंगु को ग मो ािद क िवभिू त अव ा होती है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४८) शभु ाशीष एवं वरदान ाि - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ रंग-िबरंगे फू लों क , वण वण अनकु ू लों क । यह भ ामर माला है, गणु का धागा डाला है॥ जो भी इसको पिहनग,े आ कं ठ गत कर लग।े झमी ई भि यों स,े ा भरी शि यों स॥े वह ल ी को पायग,े िनज स ान बढ़ायगे। मानतु ीमान रह, मुिनवर भ धान रह॥ उनके ही आशीषों का, मं गलमयी मनु ीशों का। भाव चरु ा अनुवाद िकया, मधुर-मधरु आ ाद लया॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 142

यं - ऋि - ीं अह णमो स सा णं ीं अह णमो भगवते महित महावीर व माण बुि रसीणं ां ीं ं ौं ः अ स आ उ सा ौं ौं ाहा। मं - नमो बं भचा रणे अ ारह सह सीलागं रथ धा रणे नमः ाहा। ीं ल ी ा ै नमः । अ - ीं सकलकायॅ साधनसमथाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 143

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 144

146


Like this book? You can publish your book online for free in a few minutes!
Create your own flipbook