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SHREE MAHAPRABHAVAK BHAKTAMAR STOTRA

Published by DRRINASHAH8, 2022-02-09 00:29:54

Description: SHREE MAHAPRABHAVAK BHAKTAMAR STOTRA

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यं - ऋि - ीं अह णमो अ ांगमहा णिम कु शलाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो निमऊण अ े म े ु िवघ े ु पीड़ा जठर पीड़ा भं जय भं जय सव पीड़ा सव रोग िनवारणं कु कु ाहा। नमो अ जतश ु पराजयं कु कु ाहा। अ - ीं पापांधकारिनवारणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 51

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 52

18. श ु सै ं भक का ोक - िन ोदयं द लत मोह महा कारं, ग ं न रा वदन न वा रदानाम् । िव ाजते तव मुखा मन का ं-, िव ोतय गदपवू शशा िब म् ॥18॥ अथ - हमशे ा उिदत रहने वाला, मोह पी अंधकार को न करने वाला जसे न तो रा स सकता है, न ही मघे आ ािदत कर सकते ह, अ धक का मान, जगत को का शत करने वाला आपका मखु कमल प अपवू च म ल शो भत होता है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१८) स क् ान कलाधर - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ ानोदय सव दय है, िन स अ णोदय है। मोह ितिमर हट जाता है, िम ा-तम फट जाता है॥ बादल नहीं छला करत,े रा नहीं िनगला करत।े ऐसा चाँ द िनराला है, मुखड़ा कमलों वाला है॥ नव काश भर देता है, जग ोितत कर देता है। घटती उसक का नही,ं हटती समरस शा नही॥ं ऐसा चाँ द िनराला है, ान कलाओं वाला है। कमल पी मखु मं डल, दीि मान अ ं त िवमल॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 53

यं - ऋि - ीं अह णमो िवउयणयि प ाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो शा ान बोधनाय परमि ाि जयं कराय ां ीं ौं ीं नमः । नमो भगवते श ुसै िनवारणाय यं यं यं रु िव ं सनाय नमः ीं ीं नमः । नमो भगवते जय िवजय मोहय मोहय ं भय ं भय ाहा। ीं परम ॅये नमः । अ - ीं च व वलोको ोतनकराय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 54

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 55

19. परिव ा छेदक का ोक -िकं शवरीषु श शनाि िवव ता वा, यु खु े ु द लतषे ु तमः सु नाथ । िन शा लवन शा लनी जीवलोके , काय िकय लधरैजलभारन ःै ॥19॥ अथ - हे ािमन्! जब अंधकार आपके मखु पी च मा के ारा न हो जाता है तो राि म च मा से एवं िदन म सयू से ा योजन? पके ए धा के खते ों से शोभायमान धरती तल पर पानी के भार से झकु े ए मघे ों से िफर ा योजन। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१९) िन यो रिव-श श-मं डल - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ िदन के लए िदवाकर ह, िन श के लए िनशाकर ह। दोनों चमका करते ह, अ कार भी हरते ह॥ पर मखु च तु ारा जो, जीवों को है ारा जो। वह अ ान अँधरे े को, िम ातम के घेरे को॥ एक अके ला भगा रहा, सारा जग जगमगा रहा। सूय च से मतलब ा? रही ज रत भी अब ा॥ जगत का शत करने क , थ रोशनी भरने क । ों फसलों के पकने पर, थ बरसते ह जलधर॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 56

यं - ऋि - ीं अह णमो िव ाहराणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ां ीं ं ः य ीं वषट् नमः ाहा। अ - ीं सकलकाल दोषिनवारणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 57

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 58

20. सं तान सं पि सौभा दायक का ोक - ानं यथा िय िवभाित कृ तावकाशं , नवै ं तथा ह रहरािदषु नायके षु । तजे ः ु र णषु याित यथा मह ं , नैवं तु काचशकले िकरणाकु लेऽिप ॥20॥ अथ - अवकाश को ा ान जस कार आप म शो भत होता है वसै ा िव ु महेश आिद देवों म नही।ं का मान म णयों म, तेज जसै े मह को ा होता है वसै े िकरणों से ा भी काँ च के टुकड़े म नहीं होता। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२०) ि मिू त और र य मिू त - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ जैसी के वल ोित- भा, स क् ान कला ितभा। शोभा पाती भुवर म, वसै ी ह रहर म॥ पर का शत दीि नही,ं शु च अख ि नही।ं जगमग म ण मु ाओं म, हीरों क क णकाओं म॥ जसै ा तेजो पँ ुज भरा, चकाचौधं मय सहज खरा। वसै ा तेज न काँ चों म, िकरणा कु लत िकराचों म॥ कभी ा हो सकता है, नहीं ा हो सकता है। सरू ज से िकरणों भरते, पराव त उनको करत॥े मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 59

यं - ऋि - ीं अह णमो चारणाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ां ीं ंू ः श ु भय िनवारणाय ठः ठः नमः ाहा। नमो भगवते पु ाय अथ सौ ं कु कु ाहा ीं नमः । अ - ीं के वल ान का शतलोक पाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 60

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 61

21. सववशीकरण का ोक - म े वरं ह रहरादय एव ा, ेषु यषे ु दयं िय तोषमिे त । िकं वी तेन भवता भिु व येन ना ः , क नो हरित नाथ भवा रेऽिप ॥21॥ अथ - हे ािमन!् देखे गये िव ु महादेव ही म उ म मानता ँ, ज देख लने े पर मन आपम स ोष को ा करता है। िक ु आपको देखने से ा लाभ? जससे िक ी पर कोई दसू रा देव ज ा र म भी च को नहीं हर पाता। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२१) वीतरागता और सरागता - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ मानँ ू अपना ब त भला, जो म इनको देख चला। ये कै से ह? रागी ह, महादेव बड़भागी है॥ ोिं क इ िनरखने स,े अ तरह परखने से। बड़ा लाभ तो यही आ, मन सं तोिषत नहीं आ॥ िक ु आपके दशन स,े और सू अवलोकन स।े मझु को यह नकु सान आ, र मेरा ान आ॥ तमु पर ऐसा िटका अरे! ज -ज को िबका अरे! यह चं चल मन अटक रहा, तव पद म सर पटक रहा॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 62

यं - ऋि - ीं अह णमो प समणाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमः ी म णभ जय िवजय अपरा जते सव सौभा ं सव सौ ं कु कु ाहा। नमो भगवते श भु य िनवारणाय नमः । अ - ीं सवदोषहरशभु दशनाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 63

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 64

22. भूतिपशाच बाधा िनरोधक का ोक - ीणां शतािन शतशो जनय पु ान्-, ना ा सुतं दपु मं जननी सूता । सवा िदशो दधित भािन सह र ं , ा ेव िद नयित ु रदंशुजालम् ॥22॥ अथ - सकै ड़ों याँ सकै ड़ों पु ों को ज देती ह, पर ु आप जसै े पु को दसू री माँ उ नहीं कर सक । न ों को सभी िदशाय धारण करती ह पर ु का मान् िकरण समहू से यु सयू को पवू िदशा ही ज देती ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२२) च तम को न करता है - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ यहाँ सैकड़ों मिहलाएँ , बनती रहती माताएँ । सौ-सौ बालक जनती ह, पुन: सतू ा बनती ह॥ िक ु आपक माता सी, भगवन् ज दाता सी। नहीं दसू री होती है, मं गल सव सं जोती है॥ सभी िदशाएँ -िविदशाएँ , नभ का आँ गन चमकाएँ । िटम-िटम नभ के तारों से, गोदी भरी हजारों स॥े िक ु एक तेज ी को, सूरज से ओज ी को। पवू िदशा ही जनती है, स ी माता बनती है॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 65

यं - ऋि - ीं अह णमो आगासगािमणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो ी वीरेिहं जं ृभय जं ृभय मोहय मोहय ं भय ं भय अवधारणं कु कु ाहा। अ - ीं अ तु गणु ाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 66

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 67

23. ते बाधा िनवारक का ोक - ामामनं ित मुनयः परमं पमु ांस-, मािद वणममलं तमसः पर ात् ामवे स गुपल जय मृ ं ु, ना ः शवः शवपद मुनी पं थाः ॥23॥ अथ - हे मुनी ! तप ीजन आपको सयू क तरह तजे ी िनमल और मोहा कार से परे रहने वाले परम पु ष मानते ह। वे आपको ही अ तरह से ा कर ु को जीतते ह। इसके सवाय मो पद का दसू रा अ ा रा ा नहीं है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२३) साथक नाम समु य - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ हे मिु नयों के नाथ मुनी, तमु हो भजते परम गनु ी। सयू का तुम को कहत,े तजे व रिव से रहत॥े अमल तु ीं कहलाते हो, तामस दरू भगाते हो। तु ीं परम पु षो म हो, तु ीं मो के सं गम हो॥ तमु को जसने पाया है, भलीभाँ ित अपनाया है। वही मौत को जीत चकु ा, भव-भय उसका बीत चकु ा॥ वह मृ ु य कहलाता, जो तमु को सचमुच ाता। ोिं क छोडक़र तु कही,ं मो -पं थ है और नही॥ं मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 68

यं - ऋि - ीं अह णमो आसीिवसाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो भगवती जयावती मम समीिहताथ मो सौ ं कु कु ाहा। ीं ीं ीं सव स ाय ीं नमः । अ - ीं मनोवां छतफलदायकाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 69

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 70

24. शरो रोगनाशक का ोक - ाम यं िवभुम चं मसं मा ं , ाणमी र मन मन गके तमु ् । योगी रं िविदतयोगमनके मके ं , ान पममलं वद स ः ॥24॥ अथ - स न पु ष आपको शा त, िवभ,ु अ च , असं , आ , ा, ई र, अन , अनं गके त,ु योगी र, िविदतयोग, अनके , एक ान प और अमल कहते ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२४) िननाम नाम सि - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ सं तों ने इन नामों से, भजा िविवध सरनामों स।े नाथ! आप ही अ य हो, शा त् िनमल अ य हो॥ परे िवक ों से रहत,े सं ातीत तु कहत।े तु ीं थम तीथकर हो, आिद , शवशं कर हो॥ ई र तमु को सं त कह, नहीं तु ारा अंत कहे। कामदेव का नाश िकया, स क् ान काश िकया॥ योगी र कहलाते हो, योग माग बतलाते हो। तु ीं अनके पी हो, एकमवे च पी हो॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 71

यं - ऋि - ीं अह णमो िदि िवसाणं ौं ौं नमः ाहा। मं – ावर जं गम वायकृ ितमं सकल िवषं य े ः अ णिमताय ये ि िवषयान् मुनी े व माण ामी सव िहतं कु कु ाहा। ां ीं ं ौं ः अ स आ उ सा ां ौं ाहा। ीं ीं सौं नमः । अ - ीं सह नामाधी राय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 72

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 73

25. ि दोष िनरोधक का ोक - बु मवे िवबधु ा चत बिु बोधा-, ं शं करोऽ स भुवन य शं कर ात् । धाता स धीर शवमाग िवधिे वधानात्, ं मेव भगव ु षो मोऽ स ॥25॥ अथ - देव अथवा िव ानों के ारा पू जत ान वाले होने से आप ही बु ह। तीनों लोकों म शा करने के कारण आप ही शं कर ह। हे धीर! मो माग क िव ध के करने वाले होने से आप ही ा ह। और हे ािमन्! आप ही प से मनु ों म उ म अथवा नारायण ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२५) वा िवक आ पना - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ बो ध लाभ के पाने स,े के वल ान जगाने से। बु आप ही स ए, शं कर परम स ए॥ ोिं क तीन ही लोकों के , हरने वाले शोकों के । मं गल क ता शं कर हे! ऋषभदेव तीथकर हे! देवों ारा अ चत हो, धीर नाम से च चत हो। मिु -माग बतलाते हो, िव ध-िवधान जतलाते हो॥ इससे तु ीं िवधाता हो, सृि िनयम िनमाता हो। पु षो म तु ी,ं समवसरण अ तु ी॥ं मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ।उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 74

यं - ऋि - ीं अह णमो उ तवाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ां ीं ौं ः अ स आ उ सा ां ौं ाहा। नमो भगवते जय िवजय अपरा जते सव सौभा ं सव सौ ं कु कु ाहा। नमः परम पदाय। अ - ीं ष शनपारंगताय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 75

26. आधा शीशी एवं सव पीड़ा िवनाशक का ोक - तु ं नम भुवनाि हराय नाथ, तु ं नमः िततलामल भषू णाय । तु ं नम जगतः परमे राय, तु ं नमो जन भवोद धशोषणाय ॥26॥ अथ - हे ािमन्! तीनों लोकों के दःु ख को हरने वाले आपको नम ार हो, ीतल के िनमल आभषु ण प आपको नम ार हो। तीनों जगत् के परमे र! आपको नम ार हो और सं सार समु को सखु ा देने वाले आपको नम ार हो। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२६) -नमन और भाव-नमन - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ हे तीनों ही लोकों के , द:ु खो-ं क ो-ं शोकों के । दरू करैया नमन-नमन, चरू करैया नमन-नमन॥ अलं कार भू-मं डल के , आभूषण अवनी-तल के । शरोमणी हे नमन-नमन, अ गणी हे नमन-नमन। तीन लोक के ामी हे, परमे र अ भरामी हे। मन-वच-तन से नमन-नमन, िनज चेतन से नमन-नमन॥ स ु सोखने वाले हे, मण रोकने वाले हे। भवद ध शोषक नमन-नमन, युग उ ोषक नमन-नमन॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 76

यं - ऋि - ीं अह णमो िद तवाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो ीं ीं ीं ं ं परजनशािं त वहारे जयं कु कु ाहा। अ - ीं नानादःु खिवलीनाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 77

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 78

27. श ु उ लू क का ोक - को िव योऽ यिद नाम गणु रै शषे ै-, ं सं तो िनरवकाश तया मनु ीश । दोषै पा िविवधा य जातगवः , ांतरेऽिप न कदा चदपी तोऽ स ॥27।। अथ - हे मनु ीश! अ ान न िमलने के कारण सम गुणों ने यिद आपका आ य लया हो तो तथा अ अनके आधारों को ा होने से अहंकार को ा दोषों ने कभी म भी आपको न देखा हो तो इसम ा आ य? मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२७) दोषों क अ भ ं जना - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ गुण सारे के सारे ही, आये शरण तु ारे ही। वहीं ठसाठस िपल बैठे , आप सहारे िमल बैठे ॥ दोष गव से इतराय,े इधर-उधर सब छतराय।े फू ले नहीं समाते थ,े िविवध िठकाने पाते थ॥े खोटे - खोटे देवों के , छोटे-छोटे देवों के । इसी लए मदहोशों न,े सपने म भी दोषों न॥े नहीं आपको झाँका भी, मू आपका आँ का भी। इसम अचरज कौन अरे? गुण ही गणु से आप भरे॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 79

यं - ऋि - ीं अह णमो त तवाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो च े रीदेवी च धा रणी च े ण अनुकू लं साधय साधय श नू ु लू य नु ूलय ाहा। नमो भगवते सवाथ स ाय सुखाय ीं ीं नमः । अ - ीं सकलदोषिनमु ाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 80

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 81

28. अशोक वृ ितहाय का ोक - उ ैरशोकत सं त मु यूख, माभाित पममलं भवतो िनता म।् ो स रण म तमो िवतानं , िब ं रवे रव पयोधर पा वित ॥28॥ अथ - ऊँ चे अशोक वृ के नीचे त, उ त िकरणों वाला, आपका उ ल प जो प से शोभायमान िकरणों से यु है, अंधकार समहू के नाशक, मघे ों के िनकट त सयू िब क तरह अ शो भत होता है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२८) अशोक- ाितहाय- प - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ त अशोक क छाँ व तल,े लगते हो भु ब त भले। प र याँ िनखर रही,ं ऊपर-ऊपर िबखर रही॥ं परमौदा रक काया से, उ वृ क छाया स।े सयू िब हो िनकल रहा, अँ धयारे को िनगल रहा॥ फू ट रहीं ह उसम स,े छूट रहीं ह उसम स।े िकरण ऊपर-ऊपर को, भदे रहीं है अ र को॥ कजरारे बादल दल से, मानो िग र नीलाचं ल से। सयू आरती करता है, भि -भारती भरता है॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 82

यं - ऋि - ीं अह णमो महातवाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो भगवते जय िवजय जं ृभय जं भृ य मोहय मोहय सव सि सं पि सौ ं कु कु ाहा। अ - ीं अशोकत िवराजमानाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 83

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 84

29. संहासन ितहाय का ोक - संहासने म ण मयूख शखा िव च े, िव ाजते तव वपःु कनकावदातम् । िब ं िवयि लसदंशु लता िवतानं , तु ोदयाि शरसीव सह र ःे ॥29॥ अथ - म णयों क िकरण- ोित से सुशो भत संहासन पर, आपका सुवण िक तरह उ ल शरीर, उदयाचल के उ शखर पर आकाश म शो भत, िकरण प लताओं के समहू वाले सूय म ल क तरह शोभायमान हो रहा है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२९) संहासन- ाितहाय- पक - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ संहासन के म णयों क , र जिटल िकं क णयों क । रंग-िबरंगी िकरणों से, िकरणों क भी नोकों स॥े चि त जो संहासन है, म ण-मं िडत पीठासन है। उस पर कं चन काया है, महा पु क माया है॥ उदयाचल का उ शखर, उसी शखर क चोटी पर। मानो सरू ज उिदत आ, अवनी अंबर मुिदत आ॥ रिव क िकरण लताओं का, कोिट-कोिट समदु ायों का। मानो तना चँ दोवा है, ा ही बिढय़ा शोभा है? मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 86

यं - ऋि - ीं अह णमो घोरतवाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - णमो णिमऊण पासं िवसहर फु लंगमं तो िवसहर नाम रकार मं तो सव सि मीहे इह समरंताण म े जा गई क दमु ं सव सि ः नमः ाहा। अ - ीं म णमु ाख चत संहासन ाितहायॅ यु ाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 86

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 87

30. चमर ितहाय का ोक - कु ावदात चल चामर चा शोभं , िव ाजते तव वपःु कलघौतका म् । उ शा शु च िनझर वा रधार-, मु े टं सरु िगरे रव शातकौ म् ॥30॥ अथ - कु के पु के समान धवल चँ वरों के ारा सु र है शोभा जसक , ऐसा आपका ण के समान सु र शरीर, सुमे पवत, जस पर च मा के समान उ ल झरने के जल क धारा बह रही है, के ण िनिमत ऊँ चे तट क तरह शोभायमान हो रहा है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३०) चल चाँ वर ाितहाय पक - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ कुं द-कुं द मचकुं द धवल, सरु भत सुमनस वृ नवल। शु चँ वर के ढुरने स,े नीचे ऊपर िफरने से॥ ण का आभा वाली, िद -देह शोभा शाली। इतनी मन भावन लगती, र परम पावन लगती॥ मानो झरना झरता हो, जल पात सा िगरता हो। णाचल के आँ गन पर, धवल धार से छल-छल कर॥ उगते ए कलाधर क , शु ो ा श शधर क । लगती जतनी िनमल है, धारा उतनी उ ल है॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 88

यं - ऋि - ीं अह णमो घोरगणु ाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ीं ीं पा नाथाय ीं धरणे प ावती सिहताय अ े म े ु िवध े ु ान् ं भय ं भय र ां कु कु ाहा। अ - ीं चतःु षि चामर ाितहायॅ यु ाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 89

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 90

31. छ ितहाय का ोक - छ यं तव िवभाित शशां का -, मु ःै तं िगत भानकु र तापम् । मु ाफल करजाल िववृ शोभं , ापय जगतः परमे र ं ॥31॥ अथ - च मा के समान सु र, सूय क िकरणों के स ाप को रोकने वाल,े तथा मोितयों के समूहों से बढ़ती ई शोभा को धारण करने वाल,े आपके ऊपर त तीन छ , मानो आपके तीन लोक के ािम को कट करते ए शो भत हो रहे ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३१) छ य-र य- ाितहाय पक - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ तीन छ अित सु र ह, िवशद शीष के ऊपर ह। च का से उ ल ह, सौ , अचं चल, शीतल ह॥ झलिमल मिय झ रयों ने, म णयों क व रयों न।े शोभा अ धक बढ़ाई है, भुता ही कटाई है॥ मात का तजे खर, रोक रहे अपने ऊपर। मानो वे दरशाते ह, छ य बतलाते ह॥ तीन लोक के ामी हो, भ नयन पथगामी हो। ाितहाय छ य का, चम ार र य का॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 91

यं - ऋि - ीं अह णमो घोर गुण-पर माणं ौं ौं नमः ाहा। मं - उवस हरं पासं वं दािम क धणमु ं िवसहर िवस णणा सणं मं गल क ाण आवासं ीं नमः ाहा। अ - ीं छ य ाितहायॅ यु ाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 92

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 93

32. देव दंदु भु ी ितहाय का ोक - ग ीरतार रवपू रत िद भाग-, लै ो लोक शुभ सं गम भिू तद ः । स मराज जय घोषण घोषकः सन्, खे दु ु भ नित ते यशसः वादी ॥32॥ अथ - ग ीर और उ श से िदशाओं को गु ायमान करने वाला, तीन लोक के जीवों को शभु िवभिू त ा कराने म समथ और समीचीन जनै धम के ामी क जय घोषणा करने वाला दु ु भ वा आपके यश का गान करता आ आकाश म श करता है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३२) देव-दु ु भ ाितहाय पक - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ बजा गगन म न ारा, िदग् िदग गँ जू ा सारा। मधरु -मधुर ऊँ चे र स,े ई घोषणा अ र से॥ स -धम क जय जय जय, आ -धम क जय जय जय। जय बोलो तीथकर क , जय बोलो अभयं कर क ॥ जन-जन का यह मले ा है, तीन लोक तक फै ला है। ए इके जीव सभी, हष ु अतीव सभी॥ बजा जीत का डंका है, इसम भी ा शं का है। जय के नारे लगा रही, िवजय दु ु भ जगा रही॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 94

यं - ऋि - ीं अह णमो घोर गुण-बं भचा रणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो ां ीं ं ौं ः सवदोष िनवारणं कु कु ाहा सव सि ं विृ ं वांछां कु कु ाहा। अ - ीं लै ो ा ािवधाियने ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 95

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 96

33. पु विृ ितहाय का ोक - म ार सु र नमे सुपा रजात-, स ानकािद कु समु ो र विृ ा । ग ोदिब ु शुभम म पाता, िद ािदवः पतित ते वचसां तितवा ॥33॥ अथ - सुगं धत जल िब ओु ं और म सगु त वायु के साथ िगरने वाले े मनोहर म ार, सु र, नमे , पा रजात, स ानक आिद क वृ ों के पु ों क वषा आपके वचनों क पं ि यों क तरह आकाश से होती है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३३) पु -वृि - ाितहाय- पक - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ रम झम अमृत-वषण के , शीतल सखु द समीरण के । मं द-मं द झोकं े बहते, सुर भत ग यु रहत॥े उन झोकों से िगरे ए, डंठल नीचे िकए ए। फू लों क लग रही झड़ी, उपमा ऐसी जान पड़ी॥ क वृ न न वन के , अ र के च न वन के । पा रजात म ार सुमन, स ानक सु र कु सुमन॥ ऊ वमखु ी होकर िगरत,े मानो िद -वचन खरत।े पं ि ब वषृ भे र के , त िनब जने र के ॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 97

यं - ऋि - ीं अह णमो आमोसिहप ाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ीं ीं ीं ं ू ान सि परमयोगी राय नमो नमः ाहा। अ - ीं सम जाितपु वृि ाितहायॅ यु ाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 98

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 99

34. भामं डल ितहाय का ोक - शु भा वलय भू रिवभा िवभो े, लोक ये िु तमतां ुितमा प ी। ो ि वाकर िनरंतर भू रसं ा, दी ा जय िप िनशामिप सोम सौ ाम् ॥34॥ अथ - हे भो! तीनों लोकों के का मान पदाथ क भा को ितर ृ त करती ई आपके मनोहर भाम ल क िवशाल का एक साथ उगते ए अनके सूय क का से यु होकर भी च मा से शो भत राि को भी जीत रही है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३४) आभा-मं डल ाितहाय- पक - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ तजे ो रा श महा-मं गल, चमक रहा आभा-मं डल। र पँ जु िबखराता है, ऐसी का िदखाता है॥ जसै े अनिगनती सरू ज, एक साथ ले तजे - ज। पृ भिू म म उदय ए, तम ोम सब िवलय ए॥ िव मान तीनों जग का, दीि मान तीनों जग का। व ु समहू लजाया है, भा देख शरमाया है॥ िफर भी सौ चाँदनी सा, भा-मं डल हत रजनी सा। शोभनीय है, शीतल है, आदश दपण-तल है॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 100


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