श्री सिीश नशिोले, उप आयुक्त के स्थािान्द्िरण के उपलक्ष्य मंे आयोनजि नवदाई समारोह का दृश्य 92
सॉफ्ट नस्कल प्रनशक्षण कायका ्रम आजादी का अमिृ महोत्सव समारोह सिका िा जागरूकिा सप्ताह समारोह का दृश्य 93
कु छ महत्वपणू ा ट्नवट्स सॉफ्ट नस्कल प्रनशक्षण कायाक्रम आजादी के अमिृ महोत्सव के िहि आयकु ्त महोदय द्वारा सैनिटाइजर, मास्क व जटू -बगै का नविरण नकया गया 94
सकारात्मक विचारों का प्रभाि उमशे कु मार कर सहायक इस बात को हम एक उदाहरण से समझते हैं। एक मोहन नाम का इसं ान चंदन की लकड़ियों का व्यापार करता था। इस व्यापार मंे इसने बहुत ही नाम कमाया था। दसू री ओर सोहन नाम का एक बढ़ई था ड़िसने तरह- तरह की लकड़ियों से अच्छे-अच्छे समान बनाये थे, लड़े कन उसने कभी भी चंदन की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं ड़कया था। एक बार एक आदमी ने सोहन को चदं न की लकड़ियों से एक टेबल बनाने को कहा। सोहन को पता चला ड़क मोहन नाम का एक व्यड़ि चदं न की लकड़ियों का व्यापार करता ह।ै सोहन उसकी दकु ान पर चला गया लड़े कन सोहन को चंदन की लकड़ियााँ अच्छी नहीं लगी। उसने मोहन के माहँु पर ही मोहन और उन लकड़ियों में कमी ड़नकालना शरु ू कर ड़दया। अब मोहन के पास दो रास्ते थे। पहला- वह भी गसु ्सा करे और अपने एक ग्राहक को खो द।े ड़िससे उसका व्यापार मंे नकु सान हो। दसू रा- वह अपने गसु ्से पर ड़नयतं ्रण करे और अपने एक ग्राहक को सामान बेचकर मनु ाफा कमाय।े मोहन ने दसू रा रास्ता चनु ा। उसने सोहन से पछू ा- क्या आपने कभी भी चंदन की लकड़ियों का इस्तमे ाल ड़कया ह?ै सोहन बोला नहीं, मंै पहली बार ही चदं न की लकड़ियों पर काम कराँ गा। यह सनु कर मोहन बोला- आप चंदन की लकड़ियााँ ले िाइय।े अगर आपको काम करने के बाद मिा नहीं आया तो मैं सारे के सारे पैसे वापस कर दगँाू ा। साथ ही साथ, आप इन लकड़ियों को भी मफु ्त मंे रख सकते हो। सोहन ने सोचा- यह तो बहुत ही फायदे का सौदा ह।ै उसने लकड़ियाँा लेकर काम करना शरु कर ड़दया। उन्हंे पहली बार उन लकड़ियों पर काम करके अच्छा लग रहा था। सोहन को अहसास हुआ ड़क उसे मोहन को भला- बरु ा नहीं कहना चाड़हए था। इसके ड़लए सोहन ने मोहन से मााँफी माँागी। यहााँ से हम क्या सीखते है ड़क मोहन िानता था ड़क सोहन गलत ह।ै अगर वह चाहता तो उसके साथ झगिा करके अपनी बात साड़बत कर सकता था लड़े कन मोहन ने ऐसा नहीं ड़कया। उसने सोहन के मँाहु पर नहीं कहा ड़क वह गलत ह।ै इसके बिाय उसने सोहन को इस बात का अहसास करवाया। ऐसा करके वह ररस्तो की किवाहट से बच पाये। ड़कसी भी बात को सकारात्मक और नकारात्मक बनाना आपके ही हाथ में होता है। 95
दोस्ती की परख कदलीप जे. मोरे हडे हवालदार एक बार की बात ह।ै दो दोस्त जगं ल से गजु र रहे थ।े तभी अचानक उन्होंने दखे ा कक वहां पर एक भालू आ गया। उनमंे से एक दोस्त तो तरु ंत ही पेड़ पर चढ़ गया। दसू रे ने भी पेड़ पर चढ़ने की कोकिि की, मगर वह चढ़ नहीं पाया। उसके पास बचने का कोई भी रास्ता नहीं था। इसकलए वह जमीन पर मदु े की तरह लेट गया। भालू उसके पास आया और उसे संघू ने लगा। भालू उसे मदु ाा समझ कर वहां से चला गया। पेड़ पर बैठा हआु दोस्त नीचे उतरा और उससे पछू ा कक भालू ने तमु से क्या कहा? उसने जवाब कदया कक भालू ने मझु से कहा कक ऐसे दोस्त का कवश्वास मत करो जो खतरा आने पर अपनी जान बचाने के कलए तमु ्हें अके ला छोड़ द।े दोस्तों, इस कहानी से मंै आपको ये समझाना चाहता हूँ कक अगर हम ककसी दोस्त की खिु ी का कहस्सा बन सकते हैं तो हम उसी दोस्त के गम का कहस्सा बनने से क्यों पीछे हट जाते ह।ंै कजदं गी मंे एक बात हमिे ा याद रखना जो लोग आसमान साफ होने पर आप को छाता उधार दे दते े ह,ंै लके कन बाररि होने पर उसे वाकपस ले लेते ह।ंै ऐसे लोगों से हमिे ा ही दरू रहना चाकहए, क्योंकक ऐसे लोग मसु ीबत आने पर आप का साथ नहीं दगें े । --------------------- 96
यह गलती भूलकर भी मत करना आँाचल अरोरा कर सहायक एक बार की बात ह।ै अपने छोटे भाई के जन्मदिन पर बड़े भाई ने उसे कार उपहार में िी। कार बहुत ही शानिार थी। वह उस कार को लके र घमू ने दनकल गया। एक ट्रैदिक दसग्नल पर वह रुक गया। वहााँ पर िटे-परु ाने कपड़ो मंे एक गरीब तुम्हें जीवन मंे क्या चादहए? लड़का खड़ा हुआ था। वह लड़का उस चमचमाती हुई कार को पसै ों को साइड में रख िो, और दिर बताओ जीवन में तमु ्हंे िखे कर उसके पास आ गया और बोला- लगता ह,ै यह कार आपने क्या चादहए? आज ही खरीिी ह।ै कार में बठै े हएु आिमी ने कहा- नहीं, आज मेरा जन्मदिन है और मेरे बड़े भाई ने उपहार के रूप मंे यह कार मुझे िी ह।ै साइड मंे रखे हुए पैसे ..! गरीब लड़का कु छ िरे चपु रहा और दिर बोला- एक दिन मैं भी अपने छोटे भाई को उसके जन्मदिन पर ऐसी ही कार उपहार करुँा गा। कार में बठै े हुए व्यदि को उस गरीब लड़के की यह बात बहुत ही अच्छी लगी। उसने उस गरीब लड़के से कहा- आओ मंै तमु ्हंे भी शहर घूमा िते ा ह।ाँ वह लड़का कार मंे बैठ गया। िोनों के िोनों अब शहर घमू ने दनकल पड़े। कु छ िरे बाि वह गरीब लड़का बोला- सर क्या आप अपनी गाडी के साथ एक बार मेरी कॉलोनी में चलेगं े? यह सनु कर वह व्यदि सोचने लगा, गरीब लोगों की सोच ही ऐसी होती ह।ै यह मझु े अपनी कॉलोनी मंे ले जाएगा और दिर अपने लोगों के बीच तरह- तरह की ढींगें हाकाँ े गा। उस दिन जन्मदिन होने के कारण वह व्यदि खशु था। उसने कहा- चलो ठीक ह।ै बताओ कहााँ है तमु ्हारी कॉलोनी? लड़के ने रास्ता बताना शरु ु दकया और घर के सामने गाडी को रुकवा दलया और कहा- आप 2 दमनट के दलए रुको, मंै अभी आता ह।ँा लड़का अंिर गया और अपने भाई को लके र बाहर आया। उसके भाई के िोनों परै नहीं थे। उसने गाडी के पास आकर अपने भाई से कहा- एक दिन मैं तमु ्हारे जन्मदिन पर ऐसी ही कार तमु ्हें उपहार मंे िगँाू ा। यह सनु कर कार में बठै े आिमी की आखँा ें भर आयी। वह मन ही मन सोचने लगा दक मंै इस लड़के को जज करके क्या-क्या सोच रहा था। उसने उन िोनों भाईयों को दिर से गाडी मंे बठै ाया और शहर घमु ाया। वह गरीब लड़का अमीर आिमी बना और उसने अपने छोटे भाई के जन्मदिन पर उसे गाडी उपहार में िी। िोस्तों, इस कहानी से मैं आपको यह समझाना चाहता हाँ दक अपना समय िसू रों को जज करने में बबािा मत करो। ज्यािातर लोग यही बातें करते ह।ैं वो ऐसा है, यह वैसा ह,ै ऐसा करना चादहए था, वैसा करना चादहए था। िसू रों को जो करना ह,ै वे करेंग।े आप उन्हंे जज करके अपना ही समय बबााि कर रहे ह।ंै 97
कफ परेड में स्थित कु छ इमारतंे व थिल छायावित्र : श्री आर. एस. िौहान, सहायक आयक्त (सवे ावनवतृ ्त), िी. एस. टी. (लखे ा परीक्षा-II) मबुं ई वर्ल्ड ट्रे् सटें र, कफ परे्, मबुं ई प्रवे ि्ेटं होटल, कफ परे्, मुंबई ३९, सी ववंु्, कफ परे्, मबुं ई (अवनल अम्बानी का वनवास-स्थान) कोलाबा-बाुदं ्रा-सीप्झ (मटे ्रो लाइन-३) का आरंुभस्थल कफ परे्, मबुं ई मेकसड टावर, कफ परे्, मबंु ई बी. ्ी. सोमानी इटुं रनेशनल स्कू ल एवंु िी.्ी. सोमानी मेमोररयल स्कू ल,कफ परे्, मुबं ई बकै बे बस आगार, कफ परे्, मंुबई कख्यात आदशड को-ऑप हाउवसुगं सोसाइटी वलवमटे्, कफ परे्, मुंबई 98
सजा जरूर मिलेगी राजेन्द्र कटाररया कर सहायक एक बार एक लालची कौवा एक घर के पास से गुजर रहा था। तभी उसकी नजर रसोई पर पड़ी। रसोई मंे मछली बनाई जा रही थी। यह दखे कर कौवे के महुँ में पानी आ गया। उसने रसोईघर मंे घसु ने की सोची। लके कन उसकी समझ में नहीं आ रहा था कै से घसु ूं। तभी उसकी नजर कबतू र के एक घोसले पर पड़ी। उसने सोचा कक अगर मंै कबतू र से दोस्ती कर लूं तो शायद मैं रसोईघर में घसु सकता ह।ुँ कबतू र जब दाना चगु ने के कलए रसोईघर से बाहर कनकला तो कौवा भी उसके पीछे-पीछे चल कदया। कबतू र ने पीछे मड़ु कर दखे ा और कौवे से पछू ा- तमु मेरा पीछा क्यों कर रहे हो? कौवे ने कहा- तमु मझु े बहतु अच्छे लगते हो। मैं तमु से दोस्ती करना चाहता ह।ुँ यह सुनकर कबतू र ने कहा- हम दोस्त कै से बन सकते है? मंै बीज खाता ह,ँु और तुम कीड़े खाते हो। कौवे ने चालाकी कदखाते हुए कहा- मेरे पास घर नहीं ह।ै इसकलए हम साथ तो रह ही सकते ह।ंै रही बात भोजन की, हम भोजन खोजने साथ-साथ जाएूगं ।े तमु अपना भोजन खोजना। मंै अपना भोजन खोजगँुू ा। कबतू र ने कहा- चलो ठीक ह।ै अब घर चलते ह।ैं दोनों घर पहुचँ गये। अगले कदन कबतू र ने कौवे को खाना खोजने के कलए साथ चलने को कहा। कौवे ने बोला- आज मेरी तबीयत खराब ह।ै तमु ही चले जाओ। कबतू र अके ला ही चला गया। रसोईघर मंे आज किर से मछली बनाई जा रही थी। खाना तयै ार हो चकु ा था। कौवे के महँु में मछली को दखे कर पानी आ रहा था। जैसे ही घर का माकलक रसोईघर से बाहर कनकला, कौवे ने मछली को देखकर खाना शरु ू कर कदया। माकलक जब वापस आया तो कौवे को मछली खाते दखे कर उसे बहतु गुस्सा आया। गसु ्से में उसने कौवे को पकड़कर उसकी गदनद मरोड़ दी। खाना खोजने के बाद कबतू र जब वापस आया तो उसने कौवे की हालत देखी। कौवे की ऐसी हालत दखे ते ही वह सब कु छ समझ गया। दोस्तों इस कहानी से मंै आपको ये समझाना चाहता हँु कक बरु ा काम करने वाले या किर बरु ी सोच रखने वाले लोगों के साथ हमशे ा बरु ा ही होता ह।ै अगर आपने कु छ गलत ककया है तो आपको सजा जरूर कमलेगी। आज नहीं तो कल कमलेगी। 99
गीता का उपदेश तपन िु मार अपर आयकु ्त महाभारत में प्रसंग आता है कि िु रुक्षेत्र मंे जब सने ाएँ अंकतम रूप से यदु ्ध िे किये सज जाती ह,ैं तब अजनु मोह से किर जाते ह।ैं सम्मखु समस्त बंध-ु बाधं वों, गरु ुजनों, श्रेष्ठों िो दखे िर पार्ु िा मन उचट जाता है और वे गांडीव त्यागिर किकर्ि हो रणभकू म मंे बैठ जाते ह।ंै श्री िृ ष्ण उन्हें ढाँढ़स दते े हंै और यदु ्ध िो ही परम िर्त्वु ्य बतािर अजनु िी िंिा िा संधान िरते ह।ंै ससु कजजत मध्य िु रुक्षते ्र िे , धनंजय िहते हएु िनू ्य हएु , आरूढ़ ितागं अश्वश्वते िे , किरीटमकु ्त िे ि कबखरे हुए, गाडं ीव किकर्ि स्िं ध किए, खड़ग,िर, भाि त्यागे सभी, पार्ु पाि में पिो -पेि िे . िक्षण नहीं योद्धा िे भेष िे . सनै ्य सम्मखु कबछी कसधं ु सी, पार्ुसारर्ी अश्व साधे रह,े गरजे िु कपत किसी कसहं सी, किं तु िौन्तेय भय मंे हैं नहीं, क्षीण बस दवै मसु ्िाते रह,े िम्पन हृदय िु टुंबक्ििे िे . महारर्ी क्षबु ्ध रण-भकू म म,ें गंजू े नाद िोर यदु ्ध िोष िे . ददै ीप्त अकडग रर् पर खड़े, महाबाहो िे िव िरण आए, िरबद्ध िीि ईि िो नवाए, वो हैं कपतामह,िु ि िे बड़े, इदं ्रप्रस्र् नहीं कप्रय अब मझु े, कवषकिप्त िरों सगं बींध द,ँू न हृदय भाव िेष हंै रोष िे . क्या वदृ ्धागं िु रुप्रर्मेि िे . वो उजिी पतािा ज्ञान िी, आकिंगन अनाकदह ने किया, गरु ुवर द्रोण िे सम्मान िी, मोहकसक्त िो धीरज कदया, मैं सतु सम ऋकष िा ऋणी, िोि-मोह से वीर ररक्त हो, हर सिँू न प्राण गरु ुश्रेष्ठ िे . नािि हैं ये अकजुत तेज िे . दषु ्ट दयु ोधन है कनिुजज सही, ये जो सामने हंै सब कवरुद्ध, पर सम रक्त,वह भ्रातृ मही, दाकयत्व इनिे ही ये धमुयदु ्ध , मौन सब मदँू आखँ ंे धारे रह,े क्यँू दडं कमिे कपतृ जयेष्ठ िो, खि सगं संबधं ी ये अद्वेष िे . इस महासमर परस्पर द्वेष िे . अगर िटीं यंे मानव िंखृ िा, िांकत कचर्त् न अजुन िे पड़ी, है िोिपु यदु ्ध से िै सा भिा, िै सा दकु दनु , ये कनदयु ी िड़ी, िषे होगा क्या गौरव ताज में, िु िनाि िा मंै िारण बनँ,ू सतं ्रस्त कवधवाओं िे दिे िे . न नीच सम नीचे अन्मिे िे . 100
पनु ः पनु ः माधव ने समझाया, तीक्ष्ण पाञ्चजन्य ने हिुं ार भरी , अन्याय समग्र स्मरण िराया, अिाट्य गाडं ीव ने टंिार िरी, यदु ्ध ही ितुव्य परन्ति कप्रये, नारायणी पर िकपध्वज टूट पड़े, कनग्रह हते ,ु अनीकत अिेष िे . आरम्भ आयावु तु में नवोन्मेष िे . संिय गडु ािे ि िा िटा नहीं , शब्दार्थ: ये संताप हृदय िा कमटा नहीं, आरूढ़: चढ़ना ितांग : रर् नारायण स्वयं कनमोही ठहरे, अश्वश्वेत: सफ़े द िोड़े गाडं ीव: अजुन िा धनषु किं तु नर िाकपत इस दोष िे . स्िं ध: िन्धा पार्:ु अजुन पाि: बधं न कसधं :ु सागर ऋकषिे ि ने अब िहा सनु ो, िु कपत: क्रु द्ध िौन्तये : अजुन पार्ु िीकतु या अपयि चनु ो, ददै ीप्त: प्रिािमान िर: बाण धमकु वमखु हो कधि् स्वीिारो, प्रर्मेि: प्रर्म ईि/ सन्दभु मंे भीष्म या अक्षय यि सम सरु ेि िे . िु रु: िु रुविं सतु : पतु ्र मकह: बड़ा िोिपु : िािच सम्बन्धी कवस्ततृ चहओुं र अनाचार ह,ै सतं ्रस्त: बहुत दखु ी धनजं य: अजुन दजु नु बिी सजजन िाचार ह,ै किरीट: मिु ु ट पार्ुसारर्ी: िृ ष्ण राजवधू भी सरु कक्षत हंै नहीं, महाबाहो: अजुन िे िव: िृ ष्ण प्रमाण अगकनत हैं कवभ्रेष िे . अनाकदह: िृ ष्ण अद्वषे : द्वषे रकहत/कमत्रवत अन्मिे : सयू ु माधव:िृ ष्ण किकववष नाि िे हते ु बनो, परंति: अजुन कनग्रह: नाि िरना ससु ंस्िृ त नव समाज बनु ो, अिषे : अंतहीन गडु ािे ि: अजनु प्रिाकं त समर से ही जन्मगे ी, नारायण: िृ ष्ण ऋषीिे ि: िृ ष्ण किं कचत संदहे न अभ्रषे िे . कवभ्रेष: दषु ्िमु, अपराध अभ्रेष: उपयकु ्तता, औकचत्य याज्ञसने ी: द्रौपदी उन्मषे :आँख खिु ना/ ज्ञान होना ऋण सब िपटों िा िौटाओ, पाञ्चजन्य: िृ ष्ण िा िंख पररणकत षड्यतं ्रों िो पहुचँ ाओ, नारायणी: िृ ष्ण िी सने ा कजसने िु रुओ िी और सधु अपने रणप्रण िी अब िो, से यदु ्ध मंे भाग किया. िहू दो याज्ञसने ी िे िे ि िो. िकपध्वज: अजुन नवोन्मेष: नया प्रयोग आकभत प्रभु रूप कवराट हुए, अजनु दवे िे से साक्षात हुए, रण रण नहीं अब िमु हुआ, दीप नैन प्रजवकित उन्मषे िे . 101
नकारात्मक विचार हमे न्त कु मार मीणा कर सहायक जिसके कारण आप अपनी इच्छाओं और सपनों के साथ समझौता कर लेते ह,ैं और आप खदु के ही कु छ जिश्वास बना लते े हैं िो जक सच नहीं होते। िैसे जक आपको लगता है जक आप व्यापार नहीं कर सकते क्योंजक आपके पास पैसा नहीं ह।ै आप अच्छे नबं र नहीं ला सकते क्योंजक आप एक एिरेि स्टूडेंट हो। आप कामयाब नहीं हो सकते क्योंजक आपको इतनी समझ नहीं ह।ै इन नकारात्मक जिचारों के कारण हर जकसी के पास अपनी-अपनी समस्याएँ ह।ंै आप व्यापारी नहीं बन सकते, अच्छे जिद्याथी नहीं बन सकते, अच्छे पजत नहीं बन सकते, अच्छे जपता नहीं बन सकते, अच्छे अध्यापक नहीं बन सकत।े अगर आप इन सभी नकारात्मक जिचारों को खत्म करना चाहते हंै तो ध्यान से इस कहानी को समझो। एक बार की बात ह।ै स्िामी जििके ानदं िी कहीं िा रहे थ।े रास्ते में एक पलु आया। िसै े ही स्िामी िी पलु पार करने लग।े बंदरों ने चारो तरफ से उन्हंे घेर जलया। बदं रों को दखे कर स्िामी िी डर गए और उनसे बचने की कोजिि करने लग।े स्िामी िी को डरा दखे कर बदं र उन पर और भी अजिक हािी हो गए। तभी पास से गिु र रहे एक आदमी ने स्िामी िी से कहा जक तमु इन बदं रों से डरो मत। तमु जितना डरोगे ये बंदर तमु ्हंे उतना ही डराएगं े। अगर तमु इनका सामना करोगे तो ये बदं र तमु से डर कर भाग िाएगं े, इसजलए तमु इनका डटकर सामना करो। स्िामी िी बदं रों से न डरते हुए उनका सामना करते हंै और थोडी ही देर में सारे बंदर िहाँ से भाग िाते ह।ैं दोस्तों इस कहानी के माध्यम स,े मंै आपको यह समझाना चाहता हँ जक आपके अदं र िो ये नकारात्मक जिचार चल रहे हैं, ये उन बंदरों की तरह ही ह।ंै िब तक आप इनका डटकर सामना नहीं करंेग,े ये नकारात्मक जिचार आपके मन मंे चलते ही रहगंे े। एक समय ऐसा भी आएगा, िब ये नकारात्मक जिचार आप पर हािी हो िाएंगे इसजलए इन नकारात्मक जिचारों से डरो मत। एक बार इनका सामना करके दखे ो, आपको अच्छे पररणाम िरूर जमलेंग।े 102
एन. एन. कमलापरु े, वररष्ठ अनवु ाद अकधकारी एक गावंा में एक भोला-भाला ककसान रहता था जो बहतु ही ईमानदार था। वह हमशे ा ही दसू रे लोगों की मदद करता रहता था। एक कदन रात के समय वह अपने खेतों से लौट रहा था, तभी उस का पैर कााटँ ों से भरे एक पौधे पर पड़ा। उसने सोचा कक ये काँटा ंे ककसी दसू रे इसां ान को भी चभु सकते ह,ंै इसकलए इस पौधे को उखाड़ दने ा चाकहए, जैसे ही वह पौधे को उखाड़ने लगा तो उसे सोने के कु छ कसक्के कदखाई कदये, उसने वे कसक्के नहीं उठाये, और कहा कक अगर ये कसक्के मझु े भगवान ने कदखाये हैं तो वह इन कसक्कों को मरे े घर भी पहुचाँ ायगे ा। मेरी रेखाएाँ पढ़ लंे ध्यान से वह ककसान घर की ओर चल पड़ा और घर पहचुँा कर सारी बात अपनी और देख, क्या कलखा है तमु लोगों के भकवष्य मंे... पकनन को बता दी। उसकी पकनन ने उसी कदन बातों ही बातों में ये सारी बातें पड़ोस में रहने वाली एक औरत को बता दी। उस औरत ने ये सारी बातंे अपने पकत को बता दी। उनके घर के सभी सदस्य उसी रात को उस जगह पहुचाँ गये जहाँा उस ककसान को परै में काँाटा लगा था और सभी ने कमलकर खोदना चालू कर कदया। वहााँ पर उन्हंे बहुत से घड़े कमले जैसे ही उन्होंने घड़ों को खोला तो सभी के सभी चौंक गये क्योकक उन मंे सोने के कसक्कें नहीं बककक साापँ कबच्छू भरे पड़े थे। सभी आपस मंे बात करने लगे कक वह ककसान हमंे इन सााँप कबच्छु ओंा से मरवाना चाहता था। सभी ने कमलकर योजना बनाई कक इन घड़ों मंे भरे सापँा कबच्छू को उसी के घर में छोड़ दते े हैं और उन्होंने ऐसा ही ककया। लके कन भगवान की लीला को कोई भी नहीं समझ सकता। जसै े ही उन लोगों ने उस ककसान के घर मंे उन साापँ कबच्छु ओां को छोड़ा तो वे सभी सोने के कसक्कों में बदल गय।े जब वह ककसान सुबह उठा तो उसने उन कसक्कों को घर में पड़ा पाया। उसने इन सभी के कलए भगवान को धन्यवाद ककया। मैं आपको समझाना चाहता हाँ कक आप की ककस्मत मंे जो कलखा है वो आपको जरूर कमलगे ा। आज नहीं तो कल कमलेगा। ककसी ने सही ही कहा है दाने-दाने पर कलखा होता है खाने वाले का नाम। 103
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