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ग़ज़ल चन्दन स ंहि सिष्ट ीमा शलु ्क हायक आयकु ्त ( वे ासनवतृ ) राहज़न भी रहिरों में आ गया ह,ै कासिला मसु ककल दरों मंे आ गया ह।ै पाँवा मंे अि कीमती े जख़्म हैं कु छ, ताज़ कोई ठोकरों में आ गया ह।ै हर सक ी को मोज़ज़ा दरकार है ि , आज ई ा म खरों में आ गया ह।ै मछसलयाँा अि सहज़रतों का ोचती ह,ैं कीच गारा पोखरों में आ गया ह।ै काट कर जो फंे क डाले थे ज़मीं पर, कु छ िदन ा उन परों में आ गया ह।ै इतने ारे डर इकट्ठा कर सलए ह,ंै मेरा डर ारे डरों में आ गया ह।ै शह्र की रिंगीसनयाँा वीरान हंै ि, जश्न ारा खण्डरों में आ गया ह।ै रूह उ की आज तक भी अनछु ई ह,ै सजस्म तो ौदागरों मंे आ गया ह।ै 45
अि नहीं प्या ा मरेगा कोई 'चन्दन', िाढ़ का पानी घरों में आ गया ह।ै [ राहज़न = लटु ेरा; रहिर = मागदग शगक; दर = द्वार, स्थान, अंिदर, म;ें क़ासिला = कारवा,ाँ यात्री-दल; सहज़रत = प्रस्थान, गमन; पोखर = तालाि; कीच-गारा = कीचड़ और मलिा; मोज़ज़ा = चमत्कार; दरकार = इसछछत; ई ा = म ीहा, दवे दतू ; म खरों = सवदषू कों, हाँ ोड़ों; पर = पिंख; शह्र = शहर; जश्न = उत् व; खण्डर = ध्वस्त इमारत, खाँडहर ] 46
मुंबई के ककले एवंु गफाएंु आर. एस. चौहान सेवावनवरृ ् सहायक आयक्त वर्मत ान में मंुबई ववश्व पटल पर एक वैवश्वक शहर के रूप मंे जाना जार्ा ह।ै मगर यह शहर आधवनकर्ा के साथ-साथ परार्न के ववशाल भुडं ार को अपने गभत में सुजं ोये हएु है और वर्तमान में भी इसकी प्राचीन ववरासर् प्रचर मात्रा मंे दृविगोचर होर्ी ह।ै आधवनकर्ा अर्ीर् से स्व-प्ररे रर् पथृ कर्ा और नवीन भावों के अन्वषे ण की प्रविया ह।ै भारर् एक साुंस्कृ वर्क रूप से समदृ ्ध दशे ह।ै मंुबई समदृ ्ध ववरासर् का धनी ह,ै जो अपने गौरवशाली अर्ीर् के बारे में बर्ार्ा ह।ै हमारे पवू जत ों ने सवदयों से हमारी सांसु ्कृ वर्क और स्मारकीय ववरासर् को संरु विर् वकया ह।ै भारर्ीय ववरासर् कई शर्ावददयों पहले की ह।ै यह ववशाल और जीवुरं ् ह।ै हमने अपनी सुंस्कृ वर् और परंुपरा को शरू से ही महत्व वदया है और इसे अपनी आने वाली पीव़ियों के वलए खबू सरू र्ी से सरंु विर् वकया ह।ै हमारी साुंस्कृ वर्क ववरासर् हमारे वलए अत्युंर् महत्वपणू त ह।ै मबंु ई में ववद्यमान गफा समहू भारर् की धरोहर हैं और रॉक-कट-आवकत टेक्चर का बजे ोड़ नमनू ा ह।ै इन्हें इनके सौन्दयशत ास्त्र और महत्ता की वजह जाना जार्ा ह।ै बड़े-बड़े पहाड़ और चट्टानों को काटकर बनाई गई ये गफाएुं भारर्ीय कारीगरी और वास्र्कला का बेहर्रीन नमनू ा ह।ै इन गफाओंु मंे कहीं-कहीं दीवारों पर की गई नक्काशी बौद्ध धमत से जड़ी हईु ह,ै जबवक कई गफाओंु मंे मौजदू वास्र्कला और मवू र्यत ाुं र्ीन अलग-अलग धमों से जड़ी ह-ंै बौद्ध धमत, जैन धमत और वहदंु ू धम।त यह आपसी धावमिकं सौहार्द्त को भी दशातर्ा ह।ै ये गफा समहू बौद्ध, वहन्दू और जैन धमत को समवपरत ् पववत्र स्थान ह,ै जो वक न के वल अविर्ीय कलात्मक सजृ न और एक र्कनीकी उत्कृ िर्ा ह,ै बवकक यह प्राचीन भारर् के धयै तवान चररत्र की व्याख्या भी करर्ा ह।ै एलीफंै टा गफाएंु यनू से ्को की ववश्व ववरासर् मंे भी शावमल ह।ै यहाँा अर्ीर् में वनवमतर् वकलों की भी प्रचर भरमार ह,ै जो वक हमारे गौरवशाली इवर्हास के सािी ह।ंै इन वकलों का वनमातण मख्यर्ः ववदशे ी शासकों ने वकया था। आधवनकीकरण से र्ात्पयत ववकासात्मक वस्थवर् से होर्ा है जबवक परम्परागर् वस्थवर् इसके ववपरीर् ह।ै समाज के ववकास में आधवनकीकरण एवंु परम्परा का अपना ववशषे महत्व होर्ा ह।ै प्रत्येक दशे की प्रगवर् मंे यह दोनों र्त्व ववद्यमान होर्े ह।ैं अर्ः मंबु ई शहर परार्न और आधवनकर्ा का वमश्रण ह।ै मुंबई महाराष्ट्र राज्य की राजधानी ह।ैं इसे भारर् की आवथकत राजधानी के रूप मंे भी जाना जार्ा हlैं इसे मायानगरी, सपनो की नगरी एवंु वफकम वसटी भी कहा जार्ा ह।ंै 47
मबुं ई का इवर्हास अवर् प्राचीन हlै शरूआर् मंे मंुबई सार् िीपों का समहू हआु करर्ा था। कावंु दवली के वनकट उत्तरी मुंबई मंे वमले प्राचीन अवशेष सुंके र् करर्े ह,ंै वक यह िीप समहू पाषाण यग से बसा हुआ ह।ै इस िीप समहू को ११.०५.१६६१ में इगंु्लडंै के चाकसत II और पर्गत ाल की कै थरीन ब्रगाजंु ा सपत्री, वकुं ग जॉन IV के वववाह के फलस्वरूप पर्तगाल िारा वब्रवटश साम्राज्य को दहज़े के रूप में दे वदया गया थाl र्दोपरांुर् इन सार् िीप समहू ों को होनतबी वेकलाडत प्रोजेक्ट के अुंर्गरत ् जोड़ वदया गया और यह कायत १८४५ मंे सुपं न्न हो गया। वर्मत ान में मुबं ई शहर एक लघ प्रायिीप की आकृ वर् में हlै वहृ द रूप में मंबु ई साकसटे िीप के रूप में जाना जार्ा ह,ै वजसमे मुबं ई महानगर और ठाणे शहर सम्मवलर् हlैं इसे ववश्व का ७ वांु सबसे घनी बस्र्ी वाला और १३ वाुं सवावत धक जनसुंख्या वाला िीप माना गया ह।ै इस िीप के उत्तर में वसई खाड़ी, उत्तरपवू त में उकहास नदी, पवू त में ठाणे खाड़ी और बंबु ई बंुदरगाह, र्था दविण और पविम मंे अरब सागर ह।ंै मुंबई शहर इस िीप के दविणी छोर पर एक प्रायिीप पर बसा है और मुबं ई के उपनगर िीप के बाकी अवधकाशुं भागों पर बसे ह।ंै मबुं ई ऐवर्हावसक महत्व का शहर हlै यहाुं पाुंच गफा समहू ह-ैं एलीफैं टा (घारापरी गफाए)ंु , महाकाली गफाएंु (कोंडीवटी बौद्ध लणे ी), कन्हरे ी गफाए,ुं जोगेश्वरी गफाएंु, मुंडपशे ्वर गफाएंु आवदl मुबं ई शहर में दस से ज्यादा वकले ह-ंै कास्टेकला दे अगआदा फोटत (बारंु्द्ा फोटत), मावहम फोटत, वली फोटत, सायन फोटत, वशवडी फोटत, म़ि फोटत, डोंगरी फोटत, सटंे जॉजत फोटत, बेलापर फोटत, धारवी फोटत (रीवा फोटत या काला वककला), बॉम्बे कासल। इसके अवर्ररक्त मबुं ई उपनगर में वस्थर् वकले ह-ैं वसई फोटत, कनालत ा फोटत, घोड़बुंदर फोटत, अनातला फोटत इत्यावद। कन्हरे ी गफा 48
मुंबई की गफाएुं एलीफंै टा गफु ाएं कन्हरे ी गफु ाएं जोगेश्वरी गफु ाएं मंडपेश्वर गफु ाएं कन्हरे ी गफु ा 49
मुबं ई के ककले सायर् का ककला किवड़ी का ककला अर्ााला का ककला बले ापर का ककला वसई का ककला कर्ाला ा का ककला घोड़बंदु र का ककला वली का ककला 50
कर्नला न ककलन, पर्वेल, किलन : रनयगढ़ िीवधर् ककलन, तनलकु न : िनु ्र्र, किलन : पणु े र्नणघे नट पवता ीय दरे कन दृश्य, तनलकु न : िनु ्र्र, किलन : पणु े 51
लोर्नड गफु नएं, किवडं ी-कल्यनण क्षते ्र कन्हरे ी गफु नए,ं सिं य गनाधँ ी र्शे र्ल पनका , बोरीवली गधं रपनले गफु नएं (महनड़/पनंडवन गफु नए)ं , मबंु ई-गोवन महनमनग,ा महनड़ 52
चमचा प्रजाति तपन कु मार, अपर आयिु \"दरु ्लभ\" या \"संकटग्रस्त\" प्रजाततयों के बारे में अक्सर तिद्वानों की र्ेखनी चर्ती ही रहती ह।ै ऐसी प्रजाततयाँा भर्े ही भतिष्य में र्पु ्त हो जायें पर र्ोगों के \"ध्यानाकर्लण\" का सखु तो उससे पहर्े र्टू ही र्ेती ह।ैं मझु े इससे कोई तिकायत नहीं है और मैं भी अपना 'नतै तक दातयत्ि' ऐसी प्रजाततयों के प्रतत महससू करता ह।ँा पर मझु े तिकिा ये है तक \"सुर्भ और तचरजीिी\" प्रजाततयों को कोई उनके र्ाख उपयोगी होने के बािजदू तिज्जो नहीं दे रहा। कोई उनकी बात नहीं करता। तो ये सोचा गया तक आज ऐसी ही एक प्रजातत की बात होगी। आज \"चमचों\" की बात होगी। \"चमचा\" िब्द की व्यतु ्पति के सम्बन्ध में कोई ठोस प्रमाण नहीं तमर्ते, पर ये माना जा सकता है तक तजस प्रकार रसोईघर का चमचा तबना तकसी ना-नकु ु र या िंका के हर बतनल मंे महु ँा मारकर अपनी उपयोतगता सातबत करता है, उसी प्रकार ऐसे रीढ-तिहीन तकन्तु उपयोगी जीिों को \"चमचा\" कहा जाना चातहए। 'चमचा' संपणू ल भारत मंे प्रचरु मात्रा मंे पाए जाने िार्ी सुर्भ प्रजातत ह।ै तिकल्पों का भी इस प्रजातत में भरपरू आतधक्य ह।ै तजस भी प्रकार का चमचा चातहए, आसानी से उपर्ब्ध रहगे ा। यह प्रजातत बहतु ही समझदार (चार्)ू , र्गनिीर् (तदखािे िार्ी) और महे नती (स्िार्ल तमतित) होती ह।ै इसमें \"अतभनय\" करने की गज़ब प्रततभा होती है, कोई माई का र्ार् भांप नहीं सकता तक ये अतभनय है या सच्चाई। समझदार इतनी तक जानती है कब, कहाँा और कै से व्यिहार करना ह।ै \"तिनम्रता\" तो इसमंे कू ट-कू टकर भरी ही होती है और बड़े से बड़े अपमान को भी हसँा ी मंे उड़ा दने े का फ़न भी तसफ़ल इसी प्रजातत को ब्रह्मा जी ने तदया ह।ै \"परोपकारी\" ऐसी तक घर में भर्े ही बार्-बच्चे इनकी िक्र् भूर् जायें पर सेिा में कोई कमी कभी नहीं आने दते ी। इसका सबसे उपयोगी गणु इसका \"खोजी स्िभाि\" ह।ै भ-ू मडं र् में घटने िार्ी तचु ्छ से भी तचु ्छ घटना की जानकारी ये ढूंढ तनकार्ती है और न तसर्ल तनकार्ती है बतल्क उसे सही व्यति तक अतिर्म्ब पहुचं ाती भी ह।ै भगिान न करे तक जानकारी मानो तकसी कारण से नहीं तमर् पाई तो भी तचतं ा की कोई बात नहीं क्योंतक ये प्रजातत बहुत ही कु िर् और रचनािीर् र्ेखक भी ह।ै कहातनयाँा रचने मंे इस प्रजातत को माँा सरस्िती का आिीिालद प्राप्त ह।ै 53
यह प्रजातत अपनी स्ियं की रतचत कहानी का \"क्रे तडट\" ये स्ियं कभी नहीं र्ेती, सदिै उसे दसू रे के नाम के सार् प्रस्तुत करती ह,ै यही इसके त्यागी स्िभाि का पररचायक भी ह।ै \"तिनोदी\" ऐसी तक सदिै भींनी-भींनी मसु ्कान अपने र्र्ाट पर सजाए रहती ह।ै \"याददाश्त\" इतनी तजे तक बीतसयों सार् पहर्े घटी घटना को भी अगर्े बीतसयों सार् तक याद रख सकती हैं और इसकी उपयोतगता के तो कहने ही क्या... एक बार आदिे तमर्ा नहीं तक जटु जाती है उसे परू ा करने में, और येन-के न- प्रकारेण काम परू ा करके ही दम र्ते ी ह।ै इतनी गणु िती होने के बािजदू अहकं ार इस प्रजातत को छू तक नहीं गया ह।ै भर्े ही दसू रे र्ोग तकतनी ही तखल्र्ी उड़ायें, तकतना ही ततरस्कार की दृति से दखे ंे, पर ये सच्चे साधक की भांतत अपने कमल मंे र्गी रहती ह।ै दसू रे र्ोग भर्े ही अपने \"आत्म-सम्मान\" को सहजने मंे र्गे रहते हों पर इसके अपने बनाए अर्ग उसरू ् ह,ंै तजनसे ये कभी समझौता नहीं करती। और करे भी क्यों, हर िर्ल उसे तरक्की इन उसरू ्ों की िजह से ही तो तमर्ती है िनाल िो है ही तकस र्ायक। गीता के तजस ममल को बड़े-बड़े ऋतर्-मतु न समझ नहीं सके , इसने स्ियं को डुबो तर्या है उसम।ंे मान-सम्मान की इसे तबर्कु र् भखू नहीं ह,ै तमर्ता हो तमर्े न तमर्े तो न सही। इसका कमल ही इसकी पजू ा ह,ै अज्ञानी मढ़ू परु ुर् उसे भर्े ही चापर्सू ी समझें तो ये उनकी परेिानी ह।ै इसकी इन्हीं तििरे ्ताओं के कारण ये सतदयों से र्गातार मागँा मंे बनी हईु ह।ै भर्े ही तकतना भी तस्र्त-प्रज्ञ जीि हो, पर \"चमचों\" न का मोह नहीं छोड़ पाता। इस प्रजातत का एकमात्र अिगणु ये है तक ये \"तटकाऊ\" नहीं होती। रंग-बदर्ने का हुनर इसके खनू मंे होता ह।ै 54
नयन पडंा ्या, दनरीक्षक एक दिन गौतम बदु ्ध अपने दिष्यों के साथ एकिम िातंा बैठे हएु थे। उन्हंे इस प्रकार बैठे हएु िखे उनके दिष्य द ंादतत हएु दक कहीं वे अस्वस्थ तो नहीं ह।ैं एक दिष्य ने उनसे पछू ा दक आज वह मौन क्यों बठै े हंै? क्या दिष्यों से कोई गलती हो गई ह?ै इसी बी एक अन्य दिष्य ने पछू ा दक क्या वह अस्वस्थ ह?ैं पर बदु ्ध मौन रह।े तभी कु छ िरू खड़ा व्यदि जोर से द ल्लाया, “आज मझु े सभा में बैठने की अनमु दत क्यों नहीं िी गई ह?ै ” बदु ्ध आँखंे बिां करके ध्यान मग्न हो गए। वह व्यदि दिर से द ल्लाया, “मझु े प्रवेि की अनुमदत क्यों नहीं दमली?” इस बी एक उिार दिष्य ने उसका पक्ष लेते हुए कहा दक उसे सभा में आने की अनमु दत प्रिान की जाये। बदु ्ध ने आखंे खोली और बोले, “नहीं वह अछू त ह,ै उसे आज्ञा नहीं िी जा सकती। यह सनु दिष्यों को बड़ा आश्चयय हुआ।” बदु ्ध उनके मन का भाव समझ गए और बोले, “हाँ वह अछू त ह।ै इस पर कई दिष्य बोले दक- हमारे धमय मंे तो जात- पात का कोई भेि ही नहीं, दिर वह अछू त कै से हो गया? तब बदु ्ध ने समझाया, “आज वह क्रोदधत हो कर आया ह।ै क्रोध से जीवन की एकाग्रता भगां होती ह।ै क्रोधी व्यदि प्रायः मानदसक दहसां ा कर बैठता है इसदलए वह जब तक क्रोध मंे रहता है तब तक अछू त होता है इसदलए उसे कु छ समय एकाातं में ही खड़े रहना ादहए।” क्रोदधत दिष्य भी बदु ्ध की बातें सनु रहा था। पश्चाताप की अदग्न मंे तपकर वह समझ कु ा था दक अदहसां ा ही महान कतयव्य व परम धमय ह।ै वह बदु ्ध के रणों में दगर पड़ा और कभी क्रोध न करने की िपथ ली। आिय यह दक क्रोध के कारण व्यदि अनथय कर बठै ता है और बाि मंे उसे पश्चाताप होता है इसदलए हमंे क्रोध नहीं करना ादहए। असल मायने में, क्रोदधत व्यदि अछू त हो जाता है और उसे अके ला ही छोड़ िने ा ादहए। क्रोध करने से तन, मन, धन तीनों की हादन होती ह।ै क्रोध से ज्यािा हादनकारक कोई और वस्तु नहीं ह।ै 55
श्री मानव सेवा संघ (अनाथ एवं वृद्ध आश्रम) मंबई में स्वच्छता अभियान के तहत इस आयक्तालय द्वारा वॉटर कू लर सप्रेम िेंट भकया गया। 56
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श्री रवि कु मार राणे, अधीक्षक, द्वारा बनाये गए कु छ कार्टून्स, फोर्ोज एिं पंेवर्ंग्स 58
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अपना ददद कै से बयाँा करँा मकु े श ज़मश्रा, अधीक्षक ददद अपना कै से बयाँा करँा । लहू अपना कै से रवाँा करंू ।। मनु ्तज़िर हूाँ मंै आज भी तेरा । तेरी तस्वीर कै से फना करंू ।। जला तो ज़दया तरे े ज़लखे हुए ख़त । पर तेरी यादोँा को कै से मना कराँ ।। हाय वो याद आना शब ए वस्ल का। गिु रा वक़्त ज़फर से कै से जवांू कराँ ।। जब सनु ता ही नही तेरी ए चारागर । तू बता इस ज़दल की कै से दवा कराँ ।। लगता नही ये ज़दल अब तेरे बग़रै कहीं । अपनी इस तन्हाई को कै से कारवााँ कराँ ।। 63
प्रकृ ति एन. एन. कमलापरु े, िररष्ठ अनुिाद अवधकारी ऋतु बदली, मेघों ने नभ मंे काली चादर तानी ह।ै अम्बर के विस्ततृ आँचल से झरता वनमलम पानी ह।ै पश-ु पक्षी, पादप, जन-मन में निजीिन संचार हुआ, िसधु ा ने पररधान बदल अब पहनी चूनर धानी ह।ै तप्रया अविरत विरता मेह धरा पर, सािन की बौछारों म।ंे विरवहन के उर आि लिाता, टप-टप की झकं ारों मंे। कोयवलया की कू क उठाती हूक वजया मंे रह रह कर, होते सिं वपया तो डूबी रहती बस अवभसारों म।ंे प्रीिम सजनी की यादों से व्याकु ल हंै परदसे ी आँिन में। साजन भी हंै दग्ध विरह से वनष्ठुर िरै ी सािन म।ंे सोच रहे हैं सिं होती तो अंकपाश मंे भर लेत,े बादल, िर्ाम, आवलंिन सब आि लिाते तन मन मे 64
कोंडाणा गुफाएं आर. एस. चौहान सहायक आयुक्त (सेवास्नवतृ ) कोंडाणा गफु ाएं कोंडाणा गांव में स्थित हैं। ये गुफाएं १६ गुफाओं का समहू हैं। ये गफु ाएं राजमची स्कल्ले के आधार पर स्थित हैं। इस गुफाओं पर ऊपर से राजमची स्कल्ले से उतर कर भी जाया जा सकता हंै। यह गफु ा समहू कजजत थटेशन से लगभग १४ स्कलो मीटर की दूरी पर लोनावला के ३३ स्कलो मीटर उत्तर और कालाज गफु ाओं के १६ स्कलो मीटर उत्तर पस्िम पर स्थित हंै। इन गफु ाओं की दूरी तल गांव से लगभग ४५ से ६० स्मनट के सफर की हंै। आमतौर पर गुफाएं पहाड़ों या चट्टानों को खोदकर गफु ाएं बनाई जाती हैं लेस्कन गफु ाएं जमीन के भीतर भी बनाई जाती हंै और प्राकृ स्तक रूप से भी बनती हंै। प्राकृ स्तक रूप से जमीन के नीचे गुफाएं पानी की धारा से बनती हैं। जवालामुखी की वजह से भी गफु ाओं का स्नमाजण होता है। दुस्नया मंे अनेक छोटी बड़ी गुफाएं है, जो स्क स्कसी आियज से काम नहीं है और अपनी और आकस्षजत करती है। दुस्नया मंे स्वस्भन्न प्रकार की अनेकानेक गुफाएं हंै। उत्तर मंे अमरनाि व दस्िण में महाबलीपरु म से ले करके पस्िम मंे अफ़ग़ास्नथतान के बास्मयान और पूवज मंे स्बहार मंे स्थित बराबर तक गुफाएं पाई जाती हंै। इस के अस्तररक्त मध्य भारत में भोपाल के समीप स्थित भीमबेटका की गुफाएं अस्त प्राचीन गफु ाएं हंै, स्जनका सम्बन्ध महाभारत काल से है। महाराष्ट्र राज्य में भारत की सवाजस्धक गफु ाएं पाई जाती हंै। यह गुफाएं बहुत प्राचीन हंै और इनमंे से बहुत गफु ाओं का स्नमाजण ईसा पवू ज पहली सदी में हो चुका िा। कोंडाणा गफु ाएं ईसा पूवज प्रिम सदी में बनाई गई।ं काष्ठ प्रस्तरूप में स्कया गया स्नमाजण दशजनीय हैं। इन गफु ाओं मंे चैत्य के अस्िम भाग में स्शलालेख है स्जसके द्वारा दाता की जानकारी स्मलती हंै। यह इलाका प्राकृ स्तक सौन्दयज से पररपूणज है। यह एक खूबसरू त, रमणीय और शोभनीय रैक है। वषाज ऋतु मंे इन गफु ाओं की सैर पर जाया जा सकता हंै और एक यादगार और अस्वथमरणीय सफर का आनंद स्लया जा सकता है। वषाज ऋतु में इन गुफाओं के ऊपर से पानी झरनों के रूप में प्रवास्हत होता हैं। इस झरनों में सैलानी नहा कर वषाज ऋतु का आनंद लेते हैं। इस आयकु ्तालय के अस्धकाररओं ने ०३.०७.२०२१ को इन गुफाओं का भ्रमण स्कया। यह एक अस्वथमणीय स्रप िा, जो स्क इन के मानस पटल पर एक अस्मट छाप छोड़ गया है। 65
कोंडाणा गुफाओं की झलस्कयां 66
गोपाल दसहं मीना सहायक आयकु ्त दोस्तों हर इसं ान के ददल अधरू े सपने परू े करने हो तो नींद भी लंबी होनी की गहराइयों मंे कु छ सपने छु पे चादहए । होते ह।ैं दिन्हंे वे परू ा करना चाहते ह।ैं क्या आपने अभी तक अपने उन सपनों को परू ा करने के दलए कोई िरुरी कदम उठाया ह?ै क्या आपने उस सपने को परू ा करने की शरु ुआत की ह?ै आि मैं आपको दिंदगी का एक सच बताना चाहता ह।ँू िो आपका िानना बहतु ही िरुरी ह।ै आपके सपने की ओर आपका पहला कदम बहुत ही मदु ककल हो सकता ह।ै सब कु छ आसान होगा। यह बात कहकर मंै आपसे झठू नहीं बोलना चाहता। इतना मदु ककल भी हो सकता है दक आप हदियार ही डाल द।ें अपने आपसे कह दें दक मझु से नहीं होगा। अगर आपने अपने सपने को परू ा करने का फै सला कर ही दलया है तो मंै आपको अपने तिबु े से एक सलाह दगूँ ा। आपको कभी भी बाधाओं के खत्म होने का इतं ज़ार नहीं करना है क्योंदक आपके रास्ते में आने वाली बाधाएं कभी भी खत्म नहीं होंगी। आप सभी िानते होंग।े तैरने के दलए आपको नदी मंे कू दना पड़ेगा, नदी दकनारे खड़े होकर आप तैरना नहीं सीख सकते इसदलए अगर आप बाधाओं के खत्म होने का इतं ज़ार करेंगे तो आपका सपना एक सपना ही बनकर रह िाएगा। सपनों को हकीकत मंे बदलने का एक ही रास्ता है, दहम्मत करके इन बाधाओं के सामने खड़े हो िाइय।े दकसी भी सपने को परू ा करते समय रास्ते की सबसे बड़ी समस्या वे लोग होते हंै िो हमारे सपने से सहमत नहीं होत।े ऐसे लोग आपको हमशे ा ही आपके सपने से भटकाने की कोदशश करते ह।ंै िैसे दक आप गलत कर रहे ह।ैं आपका सपना परू ा 67
ही होगा। ऐसा करना चादहए िा। वसै ा करना चादहए िा। आपका ऐसे लोगो की ओर ध्यान न दते े हएु अपने सपने को परू ा करना ह।ै मनैं े ऐसा इसदलए कहा क्योंदक दवपक्षी और बरु ाई करने वाले लोग हर इसं ान की दिदं गी मंे होते ह।ंै यह एक आम बात ह।ै अगर आप ऐसे लोगो की सनु ेंगे तो आप कभी भी शरु ुआत नहीं कर पाएगं ।े यह तो िी पहली समस्या, अगर हम दसू री समस्या की बात करें तो ज्यादातर लोग अपने सपने को इसदलए परू ा नहीं कर पाते क्योंदक वे ऐसा सोचतंे है दक दकसी भी सपने को परू ा करने के दलए हमारे पास अच्छे हनु र होने चादहए। हमारे पास योग्यता होनी चादहए, लेदकन यह बात सच नहीं ह।ै सच यह है दक आप उस काम को करने से ज्यादा सीखगें े न दक इतं ज़ार करने स,े क्योंदक उस सपने के दलए काम करते समय आपका हनु र और योग्यता अपने आप ही बढ़ती चली िायगे ी। िब भी आप अदं र से टूट िाएं या दफर आपको घबराहट महससू हो, ऐसे समय मंे अपनी आँखू े बंद कर लीदिये और सोदचये की आपका सपना परू ा हो गया ह।ै आप लोगों के दलए एक उदाहरण बन चकु े ह।ैं सभी की िबु ान पर बस आपका ही नाम ह।ै ऐसा करने से आपको सहारा दमलेगा। एक कमाल की ऊिाा दमलेगी। मंै तो आपसे बस इतना कहगूँ ा। अपना सपना परू ा कीदिये नहीं तो आप दकसी दसू रे के यहाँू नौकर बनकर उनके सपने परू े करंेगे। 68
अनि़ु ाधा बग,े अधीक्षक अभ्यास परिपरू ्ण बनाता ह।ै यह नननित रूप से एक आम प्रयोग में लाये जाने वाला वाकयांाश ह।ै साधािर्तया यह दशाणता है नक कै से हम उस कौशल को प्राप्त कि पायें जो हमािे पास नहीं है। नहीं नहीं....नज़ंदा गी का असली मतलब बताने उदाहािर् के तौि पि मानो हम कहते हंै नक हम का काम उनका ह,ै मिे ा काम तो मेहनत की अपनी दो तजणनी उँगनलयों से एक नमनट मंे बीस शब्द टाइप कि पाते हैं। हम एक ननर्यण लेते हैं नवफलता पि ज्ञान दने े का है। नक हम इस कौशल को बेहति बनायेंगे औि एक टाइनपांग कलास मंे छः महीने भाग लेते हैं औि िोज़ अभ्यास किते ह।ंै हम नबना की-बोर्ण को दखे े अपनी दस उँगनलयों का प्रयोग किके पचास शब्द प्रनत नमनट के औसत से टाइप किने का कौशल हानसल कि लते े ह!ंै हमािे अभ्यास ने हमंे औि अनधक परिपरू ्ण बना नदया। जब इस अवधािर्ा को हम अपने अध्यानममक जीवन मंे प्रयोग किते ह,ंै यह एक अलग अर्ण ले लेता है। वह इसनलए नक हमािा अन्दि का साि, हमािी आममा नक प्रकृ नत, पहले से ही परिपरू ्ण ह।ै हमािा अभ्यास या स्वयंा की चेष्टा हमािे भीति की परिपरू ्णता को हमािे बाहि के बौनिक, भावनाममक एवां सहज स्वभाव मंे लाने के नलए ह।ै इस प्रकाि हम कहावत मंे सशां ोधन किते हुए कह सकते हैं -\"प्रयास से परिपरू ्तण ा प्रकट होती ह।ै \" िामकृ ष्र् मठ एवंा नमशन के स्वामी िांगनार्नांदा (1908-2005) ने बहुत ही खूबसूित तिीके से इस नवचाि को एक लेख में व्यक्त नकया, \"एक वास्तव मंे, सच्ची प्रकृ नत की आममा है जो नक अमि, स्वयंा प्रकाशमान, सािी शनक्त, खशु़ ी एवंा गौिव का स्त्रोत ह,ै वह हि चीज़ जो आममा के दैवमव के प्राकट्य में सहायक है वह लाभप्रद एवंा नैनतक है औि वो सब जो इस भीति की अनभव्यनक्त को िोकता ह,ै हाननकािक एवां अनैनतक ह।ै \" 69
हमािी नदव्य प्रकृ नत का एक संानक्षप्त नवविर्, \"अपने भीति की गहिाई मंे हम इस क्षर् भी परिपरू ्ण ह,ंै हमें इस परू ्तण ा को नसफण खोज लने ा है औि सम्परू ्ण होने के नलए इस परिपरू ्तण ा तक जीना ह।ै हमने एक भौनतक शिीि मंे जन्म नलया है नजससे नक हम नवकास कि सकें , अपनी नदव्य क्षमता को हानसल कि सकंे । आतंरा िक रूप से हम पहले ही पिमाममा के सार् एक ह।ैं हमािे धमण के पास वो ज्ञान है नक हम कै से इस एकता को समझ सकंे औि िास्ते में होने वाले गिै जरूिी अनभ़ु वों का सजृ न ना किंे।\" हम अपनी नदव्य क्षमताओां का नवकास कै से किें इस नवषय पि मैं अपने नवचाि व्यक्त किते समय अकसि नमृ य के दृष्टान्त को इस्तेमाल किता ह।ँ मंै श्रोताओंा से पछू ता ह,ँ \"एक यव़ु ा को एक अच्छा नहन्दू शास्त्रीय नमृ य किने के नलए सबसे आवश्यक चीज़ कया होती ह?ै \" ज्यादाति लोग वही उत्ति दते े ह,ंै जो मेिे नदमाग में होता ह:ै \"अभ्यास!\" नमृ य के बािे में पसु़ ्तकें पढने से आप एक अच्छे नमृ य किने वाले नहीं बन सकते। ना ही नसफण कक्षा मंे शानमल होने से अगि आप अभ्यास नहीं किते। लगाताि अभ्यास किनी की आवश्यकता है नजससे की शिीि लचीला हो सके औि कई हिकतों, नस्र्नतयों मद़ु ्राओ,ां इशािों एवां भाव-भनंा गमाओंा पि आपका अनधकाि हो सके । इसी प्रकाि से, अपनी नदव्य क्षमताओां का नवकास किने के नलए- अपनी भीतिी परिपरू ्तण ा को अपने बाहिी बौनिक एवां सहज प्रकृ नत में प्रकट होने दने े के नलए- आवश्यकता है ननयनमत अभ्यास की। 70
श्री आर.एस. चौहान, सहायक आयकु ्त (सेवाननवतृ ्त) जी.एस.टी.(लेखापरीक्षा-II) आयुक्तालय मंे ह दिं ी पखवाड़े का ०१.०९.२०२१ से १४.०९.२०२१ तक सफल आयोजन ककया l इस के अंति र्तग ह दंि ी के प्रचार, प्रसार और बढ़ावा देने के ललए ह दंि ी से सम्बंधि ित ववववि कायकग मो का भी आयोजन ककया र्या । ह दिं ी हदवस १४.०९.२०२१ को मनाया र्या । 71
वर्ष १९१८ में ग ांधी जी ने हिन्दी स हित्य सम्मेलन में हिन्दी भ र् को र ष्ट्रभ र् बन ने को कि थ । इसे ग धंा ी जी ने जनम नस की भ र् भी कि थ । “िर देश क सम्म न िै म तभृ र् गवष से किो िै िम री हिदां ी भ र् ” -अज्ञ त 72
आगे बढ़ने का प्रयास शप्रयकं ा छापोशलया, अधीक्षक अतीत को भलू ने और वततमान में जीने की शिक्षा बचपन से दी जाती है लेशकन ऐसा करना आसान नहीं ह।ै कई बार भतू वततमान को डराता ह,ै असरु क्षा और बेचैनी की भावना पदै ा करता ह।ै ऐसे में शदमाग की हाडत शडस्क से सभी गैरजरूरी फाइल्स को शडलीट करने की जरूरत पडती ह।ै बीती याद,ंे गहरे घाव, आहत कर दने े वाली कोई घटना या अन्याय....शदमाग की मेमोरी मंे न जाने शकतनी ऐसी फाइल्स भरी रहती ह,ंै शजन्हें जल्दी रीसाइशकल शबन में न डाला जाए तो वायरस अटैक हो सकता है और शदमाग के हाडतवेयर में एरर आ सकता ह।ै शजस तरह लपै टॉप या कं प्यटू र में कोई भी गैरजरूरी फाइल्स या प्रोग्राम्स इसशलए शडलीट करने की जरूरत पडती है क्योंशक ये काफी स्पसे लेते हंै और इनसे शसस्टम स्लो होता है, उसी तरह मन से भी परु ानी यादों को बाहर करना जरूरी होता है। कई बार शसस्टम को रीबटू भी करना पडता है और ऐसा खदु न कर पाने की शस्िशत मंे एक्सपटत की मदद लेनी पडती ह।ै ररश्तों के वततमान को अतीत की जो बातंे सबसे ज्यादा प्रभाशवत करती हैं, वे हंै- शववाह पवू त प्रेम या िारीररक िोषण, ब्रेक-अप, शववाहते र सबं धं , तलाक, शप्रयजन की मौत आशद। ये शस्िशतयां कई बार इतनी हावी हो जाती हंै शक व्यशि एक ही जगह खडा रह जाता है, आगे बढ ही नहीं पाता। इमोिनल ड्राइवसत मनोशवज्ञान मंे माना जाता है शक मन के तीन ताकतवर इमोिनल ड्राइवसत हैं- प्यार, डर और गसु ्सा। इनमें क्रोध के उफान को समझना आसान हो सकता है मगर इससे उबरना कशिन होता ह।ै मन की इस दशु नया मंे प्यार की भी बडी भूशमका होती ह।ै प्यार हो या न हो, इसे समझन,े भलू ने या इससे उबरने मंे काफी समय लगता ह।ै ब्रेक-अप, तलाक या मतृ ्यु जसै ी घटनाएं शदलो-शदमाग पर लबं े समय तक छाई रहती ह।ंै इन्हंे भुलाने का अित है- उस अटैचमटंे या जडु ाव को खो दने ा और उस याद को शदल से शनकाल दने ा। जाशहर है, इस प्रशक्रया में काफी वि लगता ह।ै 73
भावनाओं का टकराव शहदं ी की एक कशवता कहती ह,ै 'लो अतीत से उतना ही, शजतना पोषक ह.ै ..। जीवन मंे नई संभावनाएं तब तक जन्म नहीं ले सकती, जब तक परु ाने लगावों या यादों को खत्म न शकया जाए। इसके बरक्स एक समस्या यह भी है शक जीवन से जसै े ही कोई ररश्ता खत्म होता ह,ै एक अजीब िनू ्य या खालीपन पदै ा होने लगता ह।ै धीरे-धीरे इस खालीपन में भय अपनी जडें फै लाने लगता ह।ै नए रास्ते पर चलने का भय, कोई अनजाना-अनदखे ा भय, शवफल होने, खो दने ,े शनरािा या हतािा शमलने जसै े कई भय मन को जकड़ लते े ह।ंै कु छ परु ाना छू टता है तो नए को पकड़ने मंे ये तमाम भय बाधा डालते ह।ैं भशवष्य में भी कहीं ऐसा न हो...यह सोच ददत को बढा दते ी ह।ै दसू री ओर मन का कोई शहस्सा कहता है, जाने दो, जो होगा दखे ा जाएगा, अतीत को भलु ा दो...। खदु के शलए प्ररे णा पैदा करें जब तक आने वाले कल की सकारात्मक कल्पना मन मंे नहीं होगी, बीते कल को नहीं भलु ाया जा सकता। भशवष्य के प्रशत स्पष्ट दृशष्टकोण जरूरी ह।ै अगर मानशसक तौर पर परेिान हंै तो िरीर को बहे तर बनाने की कोशिि करें। इसके शलए ट्रेनर, इसं ्ट्रक्टर, योग या आध्याशत्मक गरु ु की मदद भी ले सकते ह।ंै िारीररक रूप से शफट रहेगं े तो मन की दशु नया भी बदलगे ी। कररयर या हॉबीज को बदल कर दखे ें, लक्ष्य बदल,ें नए दोस्त बनाएं, ररश्तेदारों से घलु ंे-शमलें, अपने घर को सजाएं या कोई नई वस्तु खरीद।ंे कु छ भी ऐसा करें, शजससे अपने प्रशत अच्छा महससू हो। माफ करना सीखंे कहानी को दोबारा शलख पाने का साहस कम लोगों मंे होता है और ये वे लोग ह,ंै जो माफ करना जानते ह।ैं शजसने हटत शकया, गलत शकया या अन्याय शकया, भला उसे कै से माफ शकया जा सकता ह?ै मन में पहला सवाल यही आता ह।ै माफ करने के शलए बहुत कु छ छोड़ना पड़ता ह।ै मन को समझाना पड़ता है शक क्रोध को छोड़ने और माफ करने से बडे नकु सान से बचा जा सकता ह।ै माफ करना एक शनणतय ह।ै जो भी गलत हुआ, भले ही इसके शलए दसू रा शजम्मदे ार िा मगर क्रोध या बदला लने े की भावना के साि जीवन मंे आगे नहीं बढा जा सकता। दृढ इच्छािशि के बलबूते शनणयत लें। सामने वाले को भी अपने शनणयत की जानकारी शमलने द।ंे माफ करें और माफी मांगं,े शफर भले ही इसका नतीजा कु छ भी हो। वततमान में रहें अतीत को भलू ना और वतमत ान मंे जीना एक अभ्यास ह,ै शजसकी कोई प्रामाशणक टेकनीक नहीं ह।ै दभु ागत्य से, हम ऐसे समय मंे ह,ैं जहां अतीत या भशवष्य का भय हमेिा वतमत ान को प्रभाशवत करता ह।ै वतमत ान मंे रहने की कला शनरंतर सजग रहने से आती ह।ै हर क्षण को जीना, वतमत ान पर कंे शित रहना ऐसी शस्कल है, जो हर दबाव को दरू करती ह।ै 74
दतरुवल्लवु र (திருவள்ளுவர)் : तदमल संगम सादहत्य के कबीर दिनशे कु मार वोहरा सहायक आयकु ्त (सवे ादनवतृ ) भारत में यदि भाषाओं की बात करंे तो तदमल भाषा दन:संिहे ही सबसे प्राचीन भाषा के रूप में जानी जाती ह,ै इसमंे कोई िो मत नहीं ह।ै दवशषे ज्ञ इसे ससं ्कृ त से भी प्राचीन भाषा मानते ह।ैं यही एक भाषा है दजसका उिय भारत की अन्य भाषाओं की तरह संस्कृ त से नहीं हुआ ह।ै मलू तः तदमल भाषा के प्राचीन सादहत्य को सगं म सादहत्य के रूप में भी जाना जाता ह।ै लगभग ईसा पवू व िसू री एवं ईसा पश्चात तीसरी शताब्िी के मध्य दलखे गए तदमल सादहत्य को ही ‘सगं म सादहत्य’ अथवा ‘संगम काल’ के नाम से जाना जाता ह।ै प्राप्त जानकारी के अनसु ार िदिण भारत में उस काल मंे तीन सगं मों (तदमल कदवयों का समागम) का आयोजन दकया गया था। इनमें पहला मिरु ै मं,े िसू रा कपाडापरु म एवं अदं तम संगम भी मिरु ै मंे आयोदजत दकया गया था। जानकारी अनसु ार समस्त ‘सगं म सादहत्य’ में ४७३ कदवयों की लगभग २३८१ रचनाएँ सदममदलत ह।ैं हालांदक इस काल का अदिकतर सादहत्य अब उपलब्ि नहीं है दकन्तु इनका कु छ शेष भाग अभी भी अमलू ्य रचनाओं के रूप में उपलब्ि ह।ै इनमें तदमल संस्कृ दत, सादहत्य, िमव, राजनीदत एवं ऐदतहादसक रचनाओं का समावेश ह।ै यह अमलू ्य सादहत्य िरोहर चोल, चरे और पाडं ्यन राजवंशों के साम्राज्य मंे फली-फू ली। सगं म सादहत्य के ही एक प्रख्यात कदव हंै दजन्हें हम दतरुवल्लवु र के नाम से भी जानते ह।ंै दतरु शब्ि का अथव सममान अथवा श्री भी होता ह।ै कदव दतरुवल्लवु र का जन्म ईसा पवू व 30 से 200 वषों के बीच माना जाता ह।ै कहा जाता है दक उनका अदिकाशं समय मिरु ै में बीता, क्योंदक वहाँ के पांड्यन वशं ीराजा तदमल सादहत्य को प्रोत्साहन िते े थे। पांड्यन राजाओं के िरबार मंे ही दतरुवल्लवु र रदचत \"दतरुक्कु लर\" को महान ग्रन्थ के रूप में मान्यता दमली। उनकी दलखी हईु रचना ‘दतरुक्कु रल’ तदमल की एक सबसे सममानीय प्राचीन कृ दत ह,ै दजसका सभी 75
बहतु सममान करते ह।ै बहतु से जैन दवद्वान् और इदतहासकार यह मानते है दक दतरुवल्लवु र एक जैन मदु न थ,े क्योंदक दतरुक्कु रल का पहला अध्याय जैन िमव के प्रथम तीथकं र ऋषभिवे को समदपवत है एवं उनकी कदवताओं का प्रारमभ ही जैन मदु न ऋषभिवे की स्तदु त से आरमभ होता ह।ै इतना ही नहीं, दतरुक्कु रल की अदिकांश दशिाएँ जनै िमव की दशिाओं से काफी मेल खाती हैं । यह भी एक सत्य है दक िदिण भारत में जैन िमव का प्रचार-प्रसार पवू वकाल मंे बहतु तज़े ी से हुआ था। ऐसा माना जाता है दक दतरुवल्लवु र का जन्म मायलापरु जो दक आज के चने ्नई मंे ह,ै यहाँ पर हआु था। इस तरह दतरुवल्लवु र के िमव के बारे में भी अनके भ्ादं तयाँ ह।ै उनकी सादहदत्यक पजंू ी को िखे ते हएु हालादं क यह उतना महत्वपणू व नहीं ह।ै दतरुक्कु रल बाइबल, कु रान और गीता के बाि सबसे अदिक भाषाओं मंे अनवु ादित दकया गया ग्रन्थ ह।ै दतरुक्कु रल शब्ि बनता है दतरु और कु रल िो शब्िों के दमलान से। यह ग्रन्थ तीन भागों मंे दवभादजत ह।ै पहले भाग में दववके और सममान के सही आचरण को बताया गया ह।ै भाग िो मंे सांसाररक दवषयों की चचाव की गई है और तीसरे और अदं तम भाग मंे परु ूष और मदहला के बीच प्रेम सबं िं ों पर दवचार दकया गया ह।ै प्रथम भाग मंे 38 अध्याय ह,ैं िसू रे में 70 अध्याय और तीसरे मंे 25 अध्याय ह।ैं कु ल दमलाकर इस कृ दत मंे 1330 िोहे हैं जो अत्यतं उच्चकोटी के ह।ंै दतरुवल्लवु र को िदिण के कबीर के रूप मंे भी िखे ा जाता ह।ै दतरुक्कु लर में भी कबीर की तरह प्रमे , सिाचार और सामादजक एकरसता के बारे में बताया ह।ै इस तरह उनके और कबीर के मानवीय जीवन-मलू ्यों मंे समरसता एक ही तरह की ह।ंै सबसे अच्छी और महत्वपणू व बात यह है दक इन िोनों संतों को सभी िमव अपना मानते थ।े दतरुवल्लवु र की कदवताओं से एक सारांश यह दनकाला जा सकता है कोई भी सािारण व्यदक्त गहृ स्थ जीवन जीने के साथ-साथ एक सादत्वक और पदवत्र जीवन भी व्यतीत कर सकता ह।ै उनका मानना था दक सादत्वक जीवन जीने के दलए दकसी गहृ स्थ को सनं ्यासी बन कर पररवार को पररत्याग करने की आवश्यकता नहीं ह।ै उनकी सभी कदवताएँ नैदतकता और ज्ञान से भरपरू हंै और इसीदलए यह मानवता के दलए एक आिशव जीवन का ग्रन्थ भी ह।ंै दतरुवल्लवु र के कहे गए कु छ अनमोल शब्िों को नीचे वदणतव दकया गया ह:ै 1) जब भी जीवन में अवसर दमले तो उसका ज़रूर प्रयोग करना चादहए। जहाँ तक हो सके सिाचार का कायव ही करंे। 2) मानव दजतना भीतर से सशक्त होगा उसका व्यदक्तत्व उतना ही ऊँ चा होगा। 76
3) यदि आप अच्छे शब्ि-ज्ञाता है और उसके उपरांत भी अपशब्िों का प्रयोग करते हैं तो इसका तात्पयव यह हआु दक आप एक पड़े पर पके फल लगे होने के बावजिू भी कच्चे फल तोड़ कर खा रहे ह।ैं 4) जल दजतना भी गहरा हो, कमल का फू ल सिवै पानी से ऊपर आकर ही दखलता ह।ै मानव का बड़ा अथवा महान होना यह उसकी मानदसक शदक्त पर दनभरव करता ह।ै 5) यदि आवश्यकता के समय थोड़ी-सी भी मिि दमल जाए तो इससे ज़्यािा महत्वपणू व कु छ भी नहीं हो सकता ह।ै सत्य यह है दक दतरुवल्लवु र का ग्रन्थ दतरुक्कु रल तदमल समाज और सादहत्य की समदृ ि का प्रतीक ह।ै यह ग्रन्थ रामायण और महाभारत की तरह ही एक सवकव ालीन प्रदसि ग्रन्थ ह।ै इसी ग्रन्थ के कारण दतरुवल्लवु र का नाम न के वल तदमल सादहत्य मंे बदल्क भारतीय और दवश्व सादहत्य में भी सिवै अजर-अमर रहगे ा और समस्त मानव-जीवन की प्रेरणा भी बना रहगे ा। 77
जीएसटी (लेखा परीक्षा-II) मुंबई के अधिकाररयों एवुं कममचाररयों द्वारा धकए रक्तदान की झलधकयांु 78
कार्ाालर् में ह दिं ी को प्रोत्साह त करने ेतु हिहिन्न प्रकार के पोस्टर लगाए गए ैं 79
हितेश कु मावत, जो हक बीएससी हितीय वर्ष के हवद्यार्थी ि,ंै को हितशे कु मावत हित्रकारी एवं नतृ ्य का बितु शौक ि।ै उनके िारा बनाई गई पेहं ंग्स की कु छ झलहकया.ं .. 80
मधरु वाणी की शलि अभयकु मार पशी े अधीक्षक “शब्द दसू रों को चोट पहचुं ा सकते ह,ैं इसलिए कठोर भाषा, पीठ पीछे ल ंुदा और दोस्तों को लचढ़ा े से सदवै बच ा चालहए।” हम एक आत्मा ह,ैं एक लदव्य अलस्तत्व ह।ैं हािाँालक, हम एक भौलतक शरीर में रहते हैं- सलन लहत आत्माओंु की तरह मजबतू लवचारों और भाव ाओुं के साथ। इसी प्रकार, हमारे पास एक आत्मा प्रकृ लत, एक बौलिक प्रकृ लत और एक स्वाभालवक प्रकृ लत ह।ै उनहो ें इस बहिता को म के ती चरणों के रूप में वलणति लकया ह:ै परम चैतनय या आध्यालत्मक (जो आत्मा ह)ै ; बौलिक या मा लसक; और सहज या शारीररक-भाव ात्मक। यह स्वाभालवक, पशु जैसी प्रकृ लत है लजसमंे गसु ्सा, ईर्षया,ि भय या दसू रों के लिए हाल कारक हो े की प्रवलृ ियाुं होती ह।ंै आध्यालत्मक पथ पर प्रगलत कर े का एक लहस्सा सहज म को ल यलुं ित कर ा सीख ा है। यह वो जगह है जहाुं यम, दस ैलतक प्रलतबुंध, लियानवय मंे आते ह।ैं वे प्रवलृ ियों की एक सचू ी प्रदा करते हैं लजनहंे हमंे दम कर ा चालहए। मलस्तर्षक को काबू में रख े का शास्त्रीय लहदंु ू लचिण वह है जो रथ चािक अप ी िगाम से ती , चार या पाचुं घोडों की एक टीम को वापस खींचकर उनहंे ल यिंु ण में रखता ह।ै यह यम वो िगाम हैं जो हमारे सहज और बौलिक स्वरूपों को ल यंुलित कर े मंे मदद करते ह,ंै जो मजबतू जुंगी घोडे की तरह हंै जो काबू मंे हों तो हमारे लिए काम कर सकते हंै और अगर बेकाबू हों तो जुंगिीप पर उतर सकते ह।ैं पहिा यम चोट पहचाँ ा ा या अलहसंु ा ह:ै लवचार, शब्द या कमि से दसू रों को कु सा हीं पहचँा ा ा, चोट पहचँा ा ा। जैसा लक हम सब जा ते हैं, एक प्रमखु लहनदू लसिाुंत ह।ै यक़ी हम में से ज्यादातर शारीररक लहसुं ा मंे लिप्त हीं होते हंै। हम इस बात से यह ल र्षकषि ल काि सकते हैं लक अलहसुं ा हमारे लिए कोई चु ौती प्रस्ततु हीं कर सकती ह।ै हािाुंलक, अलहसुं ा की पररभाषा पर अलधक बारीकी से दखे े पर, हम दखे ते हैं लक इसमंे हमारे लवचार या शब्दों से दसू रों को कु सा हीं पहचँा ा चालहए इसलिए एक आध्यालत्मक जीव के अ सु रण कर े वािों को हमारी भाषा और हमारे लवचारों से चोट िगे, इसका अभ्यास कर े की आवश्यकता ह।ै आध्यालत्मक पथ पर प्रगलत कर े के लिए हमें अप े कमजोर लबदुं ओु ुं पर ध्या कें लित कर े और उनहंे सधु ार े का प्रयास कर े की आवश्यकता होती ह।ै इसके अिावा, हमें इस दृलिकोण को धारण कर े की आवश्यकता है लक चाहे हम लकसी लवशेष अभ्यास मंे लकत ा ही अच्छा क्यों कर रहे हों, हम हमशे ा बेहतर कर सकते ह,ैं हमारे व्यवहार को और भी पररर्षकृ त कर े के तरीके खोज सकते हैं। शायद बातचीत सचुं ार के लिए हमारा सबसे शलिशािी उपकरण है और इस योग्य है लक इस पर हम अप ा ध्या कें लित करें। 81
आयकु ्तालय द्वारा Twitter Handle पर अपलोड की गई कु छ तस्वीरें 82
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स्वच्छता अभियान 84
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स्वामी दर्ानंद सरस्वती दीपक कु मार, आशुक्तलक्तपक ग्रेड- I आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दर्ानंद सरस्वती एक महान देशभक्त व उच्च श्रेणी के समाजसेवी थे। उनका प्रभावशाली व्र्क्तक्तत्व और असीम ज्ञानकोश उन्हंे इक्ततहास में क्तवशेष स्थान प्रदान करता है। ज्ञानवान, गुणवान सवय सम्पन्न स्वामीजी का सम्पूणय जीवन समाज कल्र्ाण कार्ों में बीता था। वे मूक्ततयपूजा मंे आस्था नहीं रखते थे। बाल्र्काल से ही उन्होंने सभी वेद और उपक्तनषदों का क्तनरंतर अभ्र्ास क्तकर्ा था। स्वामी दर्ानंद सरस्वती वैक्तदक धमय के प्रबल समथयक रहे, उनका जीवन चररत्र अत्र्ंत रोचक व प्रशंसनीर् है। एक समृद्ध ब्राह्मण पररवार मंे जन्मे स्वामी दर्ानंद सरस्वती का बचपन का नाम मूलशंकर था। उनके क्तपताजी एक टैक्स-कलेक्टर व माताजी गृहणी थी। स्वामी जी का बचपन सुक्तवधा- सम्पन्न था और उन्हंे क्तकसी प्रकार का अभाव न था। प्रारम्भ से ही उन्होंने वेदों-शास्त्रों, धाक्तमयक पुस्तकों व संस्कृ त भाषा का अध्र्न क्तकर्ा। बचपन से क्तपता के साथ धाक्तमयक क्तिर्ा-कलापों मंे सक्तिर् शाक्तमल होने वाले स्वामी दर्ानंद सरस्वती (मूलशंकर क्ततवारी) के क्तपता क्तशव-भक्त थे। एक बार क्तशवराक्तत्र पर जब उपवास, व्रत और जागरण के क्तलए स्वामी दर्ानंद सरस्वती अपने क्तपता के साथ क्तशव मंक्तदर में थे तब अधयरात्री में उन्होने देखा की कु छ चूहों का समूह क्तशवजी का प्रसाद खा रहे थे। तब स्वामी दर्ानंद सरस्वती के बालमन ने सोचा क्तक- जब ईश्वर अपने भोग की रक्षा नहीं कर सकते हंै तो वह हमारी रक्षा कै से करंेगे? इस प्रसंग के बाद स्वामी दर्ानंद सरस्वती का क्तवश्वास मूक्ततय पूजा से उठ गर्ा था और र्ुवा अवस्था में आते-आते उन्होंने ज्ञान प्राक्ति हेतु घर त्र्ाग क्तदर्ा था। स्वामी जी के माता-क्तपता उनका क्तववाह कर देना चाहते थे परंतु उनकी सोच तो कु छ और ही थी और वे 1846 में अपना घर-बार छोड़ कर चले गए। अगले 25 साल उन्होंने क्तहमालर् की पहाक्तड़र्ों में भटकते, ज्ञानाजयन करते और अपने गुरू की सेवा करते हुए क्तबतार्े। स्वामी जी ने र्ोग क्तवद्या एवं शास्त्र ज्ञान श्री क्तवरजानंद से प्राि क्तकर्ा था। ज्ञान प्राक्ति के उपरांत जब स्वामी दर्ानंद 86
सरस्वती ने गुरू-दक्तक्षणा देने की बात कही तब उनके गुरू क्तवरजानंद ने समाज मंे व्र्ाि कु रीक्तत, अन्र्ार्, और अत्र्ाचार के क्तवरुद्ध कार्य करने और आम जनमानस में जागरूकता फ़ै लाने को कहा। र्ही श्री क्तवरजानंद की गुरु-दक्तक्षणा थी। समाज में व्र्ाि कु रीक्ततर्ों से लोहा लेने वाले र्ुगपुरुष स्वामी दर्ानंद सरस्वती का जीवन- चररत्र अत्र्ंत प्रेरणादार्ी था। स्वामीजी ने समाज के नैक्ततक जीवन मूल्र्ों का जतन करने के साथ- साथ उनमें मौजूद अन्र्ार्पूणय क्षक्ततर्ां दूर करने के क्तलए प्रर्ास क्तकए। मानवतावाद, समानता, नारी क्तवकास, एकता और भाईचारे की भावना को बल क्तदर्ा। देश की आज़ादी के क्तलए क्तनडरता से कटाक्ष पूणय भाषण क्तदर्े। पूरा भारत देश और मानवसमाज स्वामी दर्ानंद सरस्वती के अमूल्र् र्ोगदान के क्तलए उनका आभारी रहेगा। हम ऐसी महान शक्तससर्त को शत-शत नमन करते हंै। 87
अहकं ार एम. एस. गुरव, एम. टी. एस. एक बार एक महात्मा एक राज्य से गजु र रहा था। उसने सोचा राजा से ही ममल लँू। वह राजा के पास गया। राजा ने उसका खब आदर सत्कार मकया। इसमलए वह महात्मा कु छ मदनों के मलए राजा के पास ही रुक गया। राजा ने उस महात्मा से बहतु से सवाल मकय।े उस महात्मा ने बड़े ही मवस्तार से राजा के सभी सवालों का जवाब मदया। अब उस महात्मा के जाने का समय हो गया था। राजा ने महात्मा से कहा मक हे महात्मा, मंै आपको उपहार स्वरूप कु छ दने े की इच्छा रखता ह।ूँ आप मरे े खजाने में से कु छ भी ले सकते ह।ंै महात्मा ने राजा से कहा मक तमु खजाने के रक्षक हो। खजाना तमु ्हारी सम्पमि नहीं ह।ै यह तो राज्य की सम्पमि ह।ै राजा ने कहा महल तो मेरा ही है। आप महल ले लीमजए। महात्मा ने कहा, नहीं यह महल भी तमु ्हारा नहीं ह।ै इस महल पर भी प्रजा का ही अमिकार ह।ै मजस भी इसं ान के अंदर अहकं ार जन्म ले लेता ह,ै वह इसं ान अपने आपको श्रेष्ठ और समझदार समझने लगता ह।ै लमे कन वह नहीं जानता मक उसका अंहकार उसे अदं र से िीरे-िीरे खोखला बना दते ा ह।ै इसी अंहकार के कारण एक मदन वो अपना सब कु छ गवाँू दते ा ह।ै अगर आपके अंदर भी अहकं ार है तो उसे आज ही त्याग दो, नहीं तो भमवष्य मंे आपको पछताना पड़ सकता ह।ै 88
आयुक्तालय की विविध गविविवधयों की झलवकयाँा सेवानिवनृ ि समारोह के दौराि कु छ यादगार पल सनं वधाि नदवस के उपलक्ष्य में प्रस्िाविा-पठि का दृश्य 89
सवे ानिवनृ ि समारोह के दौराि कु छ यादगार पल सवे ानिवनृ ि समारोह के दौराि कु छ यादगार पल 90
माििीय श्री रमेश चन्द्र, आयकु ्त महोदय, द्वारा श्री रामनिवास मीिा को नदए गए प्रशनस्ि पत्र की झलकी श्री रामनिवास मीिा को डॉ.सुशील कु मार शमा,ा सदस्य सनचव, ि.रा.का.स. एवं उप महाप्रबधं क (राजभाषा) पनिम रेलवे, मंबु ई द्वारा माििीय श्री रमेश चन्द्र, आयकु ्त महोदय, द्वारा हस्िाक्षररि प्रशनस्ि पत्र प्रदाि नकया गया। 91
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