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Published by Pushpa Tiwari, 2020-09-11 03:04:27

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‘िहंदी ह हम’ (िहंदी िदवस िवशेषांक)

ी. संजय यादव ाचाय एह ॉन इंटरनेशनल ू ल मयूर िवहार फे स -1, िद ी- 110091 संदे श आज म एक नई ऊजा और अ ंत हष के साथ अपने आपको को स िचत व गौरवा त होते हए इस पि का के उद् घाटन संकरण की आप सभी को अंतमन से बधाई देता ँ | \"यो ही िनरतः स तेज ी भवेिदह |\" अथात जो अपने कत पथ म लगा है, इस संसार म वही तेज ी है | \"िहंदी ह हम”- ई पि का िह दु ान के भावी पीिढ़यों की भावोिभ को साकार प देने की िदशा म एक मह पूण पहल ह | इस पि का के मा म से िव ािथयों को िव ालयी र पर अपनी रचना कता को प रलि त करने का अवसर ा होगा | इस पहल के िलए म ाथिमक िवभाग की मु ा ािपका ीमती अंजू गु ा और िहंदी िवभाग की अ ािपकाओं की शंसा करना चाहता ँ| आज हमारी युवा पीढ़ी को सही मानव मू ों का ान होना िनतांत आव क है | यह पि का उसी ओर संके त करती है | यहाँ िव ािथयों की रचनाओं म सां ृ ितक िवरासत और मानवीय मू ों का ताना- बाना बुना है | म िव ािथयों से यह अनुरोध करना चा ँगा िक हम अपने क पथ पर सदैव अ सर रहना चािहए और ल ा के िलए िनर र यासरत रहना चािहए | इस पि का की प रक ना को मूत प दान करने के िलए व अपना या अ पम योगदान देने के िलए इससे जुड़े मेरे सहभागी शंसा के साथ-साथ बधाई के पा है | म िवशेष प से िव ािथयों के उ वल भिव की कामना करता ँ और यह आशा करता ँ िक ये पि का िव ािथयों के भिव िनमाण म एक मील का प र सािबत होगी |

ीमती अंजू गु ा मु ा ािपका एह ॉन इंटरनेशनल ू ल मयूर िवहार फे स -1, िद ी-110091 संदे श आज ू लों की भूिमका के वल शै िणक उ ृ ता तक ही सीिमत ना होकर अपने िव ािथयों को ो ािहत और सश करण के ारा आजीवन िश ाथ , गहन िवचारक और वैि क समाज का सद भी बनाना है | इस हेतु िव ािथयों के स क यास का प 'िहंदी ह हम' पि का आपके सम ुत करते ए मुझे िवशेष स ता हो रही है | इस पि का म िव ािथयों की ितभा व लेखन कौशल किवता के प म भाषा और भावों की सू म कड़ी है | यह पि का दपण ह - िव ािथयों की सृजना कता का उनकी िन ा, प र म और ब आयामी का | इस पि का के ारा हमारा यास िव ािथयों की सृजना कता को उभारना है | इस पि का म सािह , सामािजक चेतना के साथ का समसामियक िवषयों का ताना-बाना है | हम इस पि का के मा म से छा ों की अंतिनिहत भावों को उभारने का यास कर रहे ह | पि का म िनिहत िव ािथयों की रचनाओं को देखने से यह आभास होता है िक वे अपने कत के साथ साथ समाज का देश के ित जागृत है | म हमारे िव ालय की बंध सिमित और धानाचाय जी को िवशेष प से ध वाद देना चाहती ँ िजनके मागदशन से हम इस कागजी प रक ना को एक पि का का साकार प दे पाएँ | म आशा करती ँ िक हम भिव म भी इसी कार का मागदशन िमलता रहेगा, िजससे िक हम समाज को एक बेहतर भिव दे पाएँ |

ब ों का कोना





िकसान और चोर एक बार की बात है | एक िकसान दू सरे गाँव म कोई ापार करने जा रहा था। रा े म िकसान को एक वन से जाना था। थोड़ी देर बाद घने जंगल के बीच चोरों ने उसे पकड़ िलया। चोरों ने उसे डराया -धमकाया और पये देने को कहा। लेिकन िकसान ने उ एक भी पया देने से मना कर िदया। चोरों ने उसे नाना कार का भय िदखाया । लेिकन चोर सफल नही ं ए। थक हार कर उ ोने अपने सरदार को बुलाया । सरदार बड़ा बलशाली और देखने म डरावना था । उसने ज़बरद ी िकसान से उसकी पोटली छीन ली और उसम पैसे ढू ंढने लगा । लेिकन सरदार को के वल एक िस ा िमला । उसे बड़ा अचरज आ और उसने िकसान से पूछा “ के वल एक िस े के िलए ों तुमने इतनी ताड़ना ों सही ? ऐसा ा है इस िस े म ?” िकसान ने उ र िदया “यह िस ा प र म और ईमानदारी से कमाया आ है । इसिलए मुझे ये इतना ि य है । लेिकन तुम जैसे चोर लुटेरे इसका मू नही ं समझगे ।” सरदार अपने आचरण पर ब त ल त आ और उसने िकसान से मा माँग ली । अपने सािथयों के साथ चोरी छोड़ कर ईमानदारी से जीवन जीने की क़सम भी खाई । िश ा : ईमानदारी से अिजत िकए आ धन ब मू है । नाम- त त िम ा क ा- ५ ए







सं ृ त भाषा की मह ा संसार की सम ाचीनतम भाषाओं म सं ृ त का सव थान है । िव सािह की थम पु क ऋ ेद सं ृ त म ही रची गई है। स ूण भारतीय सं ृ ित, पर रा और मह पूण राज इसम िनिहत है। अमरभाषा या देववाणी सं ृ त को जाने िबना भारतीय सं ृ ित की मह ा को जाना नही ं जा सकता । देश िवदेश के कई बड़े िव ान सं ृ त के अनुपम और िवपुल सािह को देखकर चिकत रह गए ह। कई िवशेष ों ने वै ािनक रीित से इसका अ यन िकया और गहरी गवेषणा की है। सम भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी यिद कोई भाषा है तो वह सं ृ त है । भारत के सां ृ ितक, ऐितहािसक,धािमक, आ ा क, दाशिनक, सामािजक और राजनीितक जीवन एवं िवकास के सोपानों की संपूण ा ा सं ृ त वां य मे उपल है। “ ाग संतोष सेवाद तं सं ृ तम्, िव क ाण िन ायु ं सं ृ तम्। ान िव ान स ेलनं सं ृ तम् , भु मु दबयो ावनं सं ृ तम्।।“ ी. वके टेश



का ांजिल चुप करके बैठे घरों म, राजा भी और रं क भी, ये िजंदगी थमी थमी, यह िजंदगी है थम गई ऑिफस है खाली, सुनसान पड़ी है फै यां, हाय रे ये कै सा वायरस, इंसान की मजबू रयां हर तरफ फै ली है चु ी, हर कोना, हर गली, यह िजंदगी थमी थमी…. है चीन से फै ला जहर, ईरान पे टू टा कहर मॉल हो या िसनेमाघर सुनसान पड़े ह हर घड़ी इटली और अमे रका भी बन गया, शमशान का सा मंजर, हर ओर दुख का कािफला है और बढ़ते फासले भारत भी बच न पाया, इस सं मण के जाल से चीख-पुकार चारों तरफ है, इस सम संसार म महामारी ये कै सी फै ली धुन क गई संसार की यह िजंदगी थमी थमी…. यह िजंदगी थमी थमी……… संिद है हर छीकं तक, संगीन है वातावरण खामोिशयां हर ओर ह, बीमा रयों का शोर है, ये जो मजदू र है ये व से मजबूर ह चेहरे कभी िदखते नही,ं Mask ही Mask चारों पीठ पर लदी है गथडी एक तो सामान की, ओर है इसका ना कोई प है, ना कोई आकार है और कांधे पर पड़ी है एक ब ी बेजान सी सांसे जैसे ह लीज पर और जीवन भी उधार ह ताले लगे ह सड़कों पे, पर जाना ब त ही दू र है यह िजंदगी थमी थमी……… न गोलग े िबक रहे, न िट यों के ठे ले ह ाण संकट म झलू रहे, पर सबके सब मजबूर ह न बगर, न चाऊमीन, न मोमोज के मेले ह ये िजंदगी थमी थमी…….. न बथडे, न शादी, न बाजा है, न बाराती ह हर शय म कोरोना है, इसी बात का तो रोना है छा और छा ाएं , सब ब ा िलए तैयार ह यह िजंदगी थमी……. पर हम सबने िमल करके कोरोना को हराना है िश क भी अब सारे पढ़ाने को बेकरार ह घर से िनकलना मा पहनकर पर हाथ िकसी से ना िमलाना है कब खुलगे ू ल हमारे , सभी सोच कर परे शान सैिनटाइज करके खुद को और देश को बचाना है ह बचाव म ही इलाज, यही समझाना है यह िजंदगी नही ंथमेगी, यह िजंदगी चलती रहेगी कॉपी और िकताब की अब है नही ंअहिमयत कोई ीमती अंजू गु ा ऑनलाइन टीिचंग चल रही, कमी है िकस बात की A दीवार सब िगर गई ू ल की और ार की ये िजंदगी थमी थमी…….. ठप आ िबजनेस सभी का ख ए संसाधन सभी

लघुकथा - जीवन की परख किवता – कहाँ गया वो समां, कहाँ गया वो ज़माना ब त समय पहले की कहाँ गया वो समां, बात है । एक को कहाँ गया वो ज़माना ? उसके िपता ने मरते कहाँ खो गई पेड़ों की समय दो बड़े- बड़े हीरे छाया कहाँ खो गया पंिछयों देते ए कहा िक इनम का चहचहाना से एक हीरा असली है ों हमने उजाड़ा इतना सु रअपना ही आिशयाना ? और एक काँच का टुकडा। वो अमुवा की डाली पर ब ों का झलू - पर ु आज तक कोई भी असली हीरा नही ंपरख झलू कर अ ी तोडना जामुन, अम द, शहतूत की डालों पर लेट-लेट पाया।यह मेरे िपता जी की दी ई िनशानी है कर ाद चखना वो हरी-हरी मखमली घास का िबछौना िजसे आज म तु सौपं रहा ँ।यह कहकर कहाँ गया वो समां, कहाँ गया वो ज़माना ? उसके िपता ने ाण ाग िदए। ों हमने उजाड़ा इतना सु रअपना ही आिशयाना ? कु छ िदन बाद वह हीरे लेकर अनेक वो तपती गम म झरने म दौड़-दौड़ कर राजाओं के पास गया और शत रखी िक यिद तिपश बुझाना िदन -भर नदी तालाब म खेल-खेल कर समय कोई असली हीरा पहचान जाएगा तो वह िबताना हंसो,ं कछु ओं संग खेल-खेल कर आनंद लेना हीरे को राजकोष म जमा करा देगा। अ था हीरे कहाँ गया वो समां, कहाँ गया वो ज़माना ? की कीमत राजा को अदा करनी होगी। इस ों हमने उजाड़ा इतना सु र अपना ही आिशयाना ? कार वह अ म एक छोटे से रा म प ँचा। वो खेतों म िमलझुलकर सबके पकवान जाड़े का समय था।राजा ने धूप सकने के िलए भरपेट खाना वो कोयल के मीठे गंुजन की लोरी सुनकर दरबार मैदान म लगा रखा था। ने राजा अक ात् ही सो जाना वो शु हवाओं की महक से िफर से ताज़ा हो के पास जाकर अपनी शत दोहरायी। शत जाना कहाँ गया वो समां कहाँ गया वो ज़माना ? सुनकर सभी मौन थे। तभी एक बूढ़े तथा अ े ने हीरों को परखने की अनुमित माँगी| ों अब जंगल आते नही ं नज़र पेड़- पौधे फल-फू ल हो गए बंजर राजा से अनुमित लेकर अ े ने हीरों को दुखद है धरती को यंू उझाडना, ह रयाली पर छु आ और तुरं त उ र दे िदया, \"ये असली हीरा है हण लगाना दुखद है दू षण का बढ़ना गाँव-गाँव का तथा दू सरा काँच का टुकडा है।\" सभी हैरान रह शहरीकरण हो जाना झरनों तालाबों का सूख-सूख कर नाला बनना | गए। राजा ने पूछा, महोदय! िबना आँखों के कहाँ गया वो समां, कहाँ गया वो ज़माना ? आपने कै से असली हीरे को परखा? तब अ े ों हमने उजाड़ा इतना सु र अपना ही आिशयाना ? आदमी ने कहा िक हम सभी धूप म बैठे ह इस रे नू द ा धूप म जो ठं डा बना रहा वह हीरा है और जो गरम हो गया वह काँच का टुकडा है। जीवन म आप भी इस बात को परखना िक जो इ ान बात-बात पर गरम हो जाए , ोध करे वह काँच है और जो इ ान जीवन की धूप म भी ठं डा बना रहे वह हीरा है। ीमती िशखा स ेना

किवता – मेरा वतन किवता –खुद से मुलाक़ात मेरा वतन, है मेरा अिभमान | आज दो घड़ी के िलए खुद से मुलाकात इस पर कु बा, मेरी जान || की वंदन क ँ इसका, सुबह व शाम | िकतनी िज़ंदा ं ये जानने की तहकीकात भारतीय ँ म, िमला ये वरदान || की मु ु राते होठं ो दमकते चेहरे के पीछे न कोई िह दू , न मु म यहाँ | कही ं कु छ दफन तो नही ं !! धम की िविभ ताएँ , है यहाँ || उन वजाहतों को कु रे दने की कोिशश मेरा वतन, के वल स ाई िसखाये | की स ावना अपनाने पर, बल िदए जाये || पर सुकू न ए ये जान कर िक हर मु ु राते चेहरे के पीछे हमेशा कोई बहती यहाँ है, के वल ेम की धारा | दद ही नही ं िछपा रहता ेष से कोसो,ं दू र सब रहे || उसकी मु ु राहट के पीछे होता है उसका शीशे की मािनंद चमकता िहल-िमलकर, सब ख़ुशी के गीत गाये | बीता आ कल ख़ुशी के रं ग म, िमले और िमल जाये || जो आज की मु ु राहट को उसकी पहचान बनाता है ऐसा वतन बना है सबकी आन िव म जो अपना फै लाये मान || ीमती िशखा शमा मेरा वतन, है मेरा अिभमान | इस पर कु बा, मेरी जान ||

किवता –आशाएँ िनराशा का दीप बुझा कर, आशाओं का दीप जलाया, जीवन की हर चुनौितओं से लड़कर, िदल म एक आशा थी, सपने पूरा करने मन म आशाओं का िफर दीप जलाया | की चाह थी, छोड़ो कु छ भी तुम मगर, आशा मत ार बाँटने की आशा थी, ार से बोलने छोड़ो, की भाषा थी | सपने पूरे होगं े तभी, जब मन म आशा का पहले था मन एकांत, लेिकन अब सबके दीप जलेगा | साथ हो गया शांत, िदल म एक आशा थी सपने पूरा करने की देखी जो सबकी भाषा, टू टने लगी मन म चाह थी || छु पी आशा, - िदल म एक आशा थी सपने पूरा करने की ाित िघ याल चाह थी || बंधन सारे तोड़ िदए ह, र े सारे छोड़ िदए ह , दुिनया का कै सा नज़ारा है, एक िकनारे से िगरके , दू सरे िकनारे का सहारा है | िदल म एक आशा थी सपने पूरा करने की चाह थी ||

किवता -कोरोना म कु छ करो ना किवता - कु छ खल खलाती सी िजंदगी कोरोना कोरोना कोरोना ा है िजंदगी, चारों तरफ कोरोना ों के उ र ढू ँढ़ती ये िजंदगी ऐसी दशा कभी देखी ना तभी अंतरा ा बोली -कु छ करो ना ा है िजंदगी, रात के बाद सवेरा होती ये िजंदगी ू ल ऑिफस छोड़ो ना लॉक डाउन का मौका है ा ह िजंदगी, कु छ करो ना, छोटी छोटी बातों म मु राहट ढू ँढ़ती ये िजंदगी अपने घर पर ही रहो कोरोना को ऐसे ही हराओ ना ह मु ल इसे समझना - 2 माता िपता, दादा दादी के साथ बैठो इस िजंदगी के प ों को, िफर से उनकी बात सुनो पा रवा रक मू ों को िफर से िजयो ना पर सीखा ही देती है, िजंदगी अपने भी शौक पूरे करो ना और आसान हो ही जाती है, यह िजंदगी प ी संुदर सी पिटंग बनाओ या कु छ बागबानी करो ना की चहचहाट से, खल खलाती है िजंदगी आव क सेवाओं का आभार मानों डू बते को सहारा देने से, खल खलाती है िजंदगी डॉ र ,नस, सफाईकम को सराहो ना कोरोना को चुनौती मानो ा है िजंदगी, सभी सावधानी बरतो माँ के ार करने से सँवर जाती है िजंदगी, अपने आसपास सफाई रखो ब े की एक तपकी से महकती है िजंदगी, भु से रोज़ ाथना करो ह गम इस िजंदगी म, कोरोना को दू र भगाओ ना ह दुःख इस िजंदगी म, कोरोना को दू र भगाओ ना | पर ज रत ह , खुशी को ढू ंढने की,पर ज रत मोिनका राय ह, सुःख को तलाश करने की, तो ा है िजंदगी, बस, ार है िजंदगी, िव ास है िजंदगी, एहसास है िजंदगी, वंदना दुआ


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