सपाही, \"ऐसा ान पहाड़ म ही मल सकता है। हमालय क गोद म च लए, वह आप उप व से बच सकती ह।\" रानी, \"(आ य स)े श ओु ं म जाऊँ ? नपे ाल कब हमारा म रहा है?\" सपाही, \"राणा जंगबहा र ढ़ त राजपतू ह।\" रानी, \" कतु वही जंगबहा र तो है, जो अभी-अभी हमारे व लॉड डलहौजी को सहायता देने पर उ त था?\" सपाही (कु छ ल त सा होकर), \"तब आप महारानी चं कुँ व र थ , आज आप भखा रन ह। ऐ य के षे ी और श ु चार ओर होते ह। लोग जलती ई आग को पानी से बझु ाते ह, पर राख माथे पर लगाई जाती है। आप जरा भी सोच- वचार न कर, नेपाल म अभी धम का लोप नह आ है। आप भय- ाग कर, हमालय क ओर चल। दे खए, वह आपको कस भाँ त सर और आँख पर बठाता है?\" रानी ने रात इसी वृ क छाया म काटी। सपाही भी वह सोया। ातःकाल वहाँ दो ती गामी घोड़े दखाई पड़े। एक पर सपाही सवार था और सरे पर एक अ तं पवान यवु क। यह रानी चं कुँ व र थी, जो अपने र ा ान क खोज म नेपाल जाती थी। कु छ देर बाद रानी ने पूछा, \"यह पड़ाव कसका है?\" सपाही ने कहा, \"राणा जगं बहा र का। वे तीथया करने आए ह, कतु हमसे पहले प ँच जाएँ ग।े \" रानी, \"तमु ने उनसे मझु े यह न मला दया? उनका हा दक भाव कट हो जाता।\" सपाही, \"यहाँ उनसे मलना असभं व है। आप जाससू क से न बच सकत ।\" उस समय या करना ाण को अपण कर देना था। दोन या य को अनेक बार डाकु ओं का सामना करना पड़ा। उस समय रानी क वीरता, उसका यु -कौशल तथा फु रती देखकर बूढ़ा सपाही दातँ तले उँगुली दबाता था। कभी उनक तलवार काम कर जाती और कभी घोड़े क तेज चाल।
या बड़ी लंबी थी। जठे का महीना माग म ही समा हो गया। वषा तु आई। आकाश म मघे -माला छाने लगी। सूखी न दयाँ उतर चल । पहाड़ी नाले गरजने लगे। न न दय म नाव, न नाल पर घाट; कतु घोड़े सधे ए थे। यं पानी म उतर जाते और डू बते-उतरात,े बहते, भवँ र खाते पार प ँच जात।े एक बार ब ू ने कछु ए क पीठ पर नदी क या क थी। यह या उससे कम भयानक न थी। कह ऊँ च-े ऊँ चे साखू और म ए के जगं ल थे और कह हरे-भरे जामुन के वन। उनक गोद म हा थय और हरण के झडुं कलोल कर रहे थे। धन क ा रयाँ पानी से भरी ई थ । कसान क याँ धन रोपती थ और सुहावने गीत गाती थ । कह उन मनोहारी नय के बीच म, खेत क मड़ पर छाते क छाया म बठै े ए जम दार के कठोर श सनु ाई देते थ।े इसी कार या के क सहत,े अनेकानेक व च देखते दोन या ी तराई पार करके नपे ाल क भू म म व ए। ातःकाल का सुहावना समय था। नपे ाल के महाराज सुर व म सह का दरबार सजा आ था। रा के त त मं ी अपने-अपने ान पर बैठे ए थे। नेपाल ने एक बड़ी लड़ाई के प ात् त त पर वजय पाई थी। इस समय सं ध क शत पर ववाद छड़ा था। कोई यु - य का इ ु क था, कोई रा - व ार का। कोई-कोई महाशय वा षक कर पर जोर दे रहे थे। के वल राणा जंगबहा र के आने क देर थी। वे कई महीन के देशाटन के प ात् आज ही रात को लौटे थे और यह सगं , जो उ के आगमन क ती ा कर रहा था, अब मं -सभा म उप त कया गया था। त त के या ी आशा और भय क दशा म, धानमं ी के मुख से अं तम नणय सनु ने को उ ुक हो रहे थ।े नयत समय पर चोबदार ने राणा के आगमन क सचू ना दी। दरबार के लोग उ स ान देने के लए खड़े हो गए। महाराज को णाम करने के प ात् वे अपने सुस त आसन पर बैठ गए। महाराज ने कहा, \"◌ाणाजी, आप सं ध के लए कौन सा ाव करना चाहते थे?\" राणा ने न भाव से कहा, \"मरे ी अ -बु म तो इस समय कठोरता का वहार करना अनु चत है। शोकाकु ल श ु के साथ दयालतु ा का आचरण करना सवदा हमारा उ े रहा है। ा इस अवसर पर ाथ के मोह म हम अपने ब मू उ े को भूल जाएँ गे? हम ऐसी सं ध चाहते ह, जो हमारे दय को एक कर दे। य द त त का दरबार हम ापा रक सु वधाएँ दान करने को क टब हो तो हम सं ध करने के लए सवथा उ त ह।\" मं मडं ल म ववाद आरंभ आ। सबक स त इस दयालतु ा के अनुसार न थी, कतु महाराज ने राणा का समथन कया। य प अ धकांश सद को श ु के साथ ऐसी नरमी पसंद न थी, तथा प महाराज के वप म बोलने का कसी को साहस न आ। या य के चले जाने के प ात् राणा जंगबहा र ने खड़े होकर कहा, \"सभा म उप त स नो, आज नेपाल के इ तहास म एक नई घटना होने वाली है, जसे म आपक जातीय
नी तम ा क परी ा समझता ँ, इसम सफल होना आपके ही कत पर नभर है। आज राज-सभा म आते समय मझु े यह आवेदन-प मला है, जसे म आप स न क सवे ा म उप त करता ँ। नवेदक ने तुलसीदास क यह चौपाई लख दी है- आपत-काल पर खए चारी। धीरज धम म अ नारी।\" महाराज ने पूछा, \"यह प कसने भजे ा है?\" \"एक भखा रन न।े \" \" भखा रन कौन है?\" \"महारानी चं कुँ व र।\" कड़बड़ ख ी ने आ य से पूछा, \"जो हमारी म अं ेजी सरकार के व होकर भाग आई ह?\" राणा जगं बहा र ने ल त होकर कहा, \"जी हाँ! य प हम इसी वचार को सरे श म कट कर सकते ह।\" कड़बड़ ख ी, \"अं ेज से हमारी म ता है और म के श ु क सहायता करना म ता क नी त के व है।\" जनरल शमशेर बहा र, \"ऐसी दशा म इस बात का भय है क अं ेजी सरकार से हमारे सबं ंध टू ट न जाएँ ।\" राजकु मार रणवीर सह, \"हम यह मानते ह क अ त थ-स ार हमारा धम है, कतु उसी समय तक, जब तक क हमारे म को हमारी ओर से शंका करने का अवसर न मले!\" इस संग पर यहाँ तक मतभदे तथा वाद- ववाद आ क एक शोर सा मच गया और कई धान यह कहते ए सनु ाई दए क महारानी का इस समय आना देश के लए कदा प मगं लकारी नह हो सकता। तब राणा जगं बहा र उठे। उनका मुख लाल हो गया था। उनका स चार ोध पर अ धकार जमाने के लए थ य कर रहा था। वे बोले, \"भाइयो, य द इस समय मरे ी बात आप लोग को अ ंत कड़ी जान पड़ तो मुझे मा क जएगा, क अब मुझम अ धक वण करने क श नह है। अपनी जातीय साहसहीनता का यह ल ाजनक अब मुझसे नह देखा जाता। य द नपे ाल के दरबार म इतना भी साहस नह क वह अ त थ-स ार और सहायता क नी त को नभा सके तो म इस घटना के संबधं म सब कार का भार अपने ऊपर लेता ँ। दरबार अपने को इस वषय म नद ष समझे और इसक सवसाधारण म घोषणा कर दे।\"
कड़बड़ ख ी गरम होकर बोल,े \"के वल यह घोषणा देश को भय से र हत नह कर सकती।\" राणा जगं बहा र ने ोध से ह ठ चबा लया, कतु सँभलकर कहा, \"देश का शासन-भार अपने ऊपर लने े वाल क ऐसी अव ाएँ अ नवाय ह। हम उन नयम स,े ज पालन करना हमारा कत है, मँुह नह मोड़ सकते। अपनी शरण म आए ए का हाथ पकड़ना, उनक र ा करना राजपूत का धम है। हमारे पूव-पु ष सदा इस नयम पर-धम पर ाण देने को उ त रहते थे। अपने माने ए धम को तोड़ना एक तं जा त के लए ल ा द है। अं ेज हमारे म ह और अ तं हष का वषय है क बु शाली म ह। महारानी चं कुँ व र को अपनी म रखने से उनका उ े के वल यह था क उप वी लोग के गरोह का कोई क शषे न रहे। य द उनका यह उ े भगं न हो, तो हमारी ओर से शंका न होने का न उ कोई अवसर है और न हम उनसे ल त होने क कोई आव कता।\" कड़बड़ ख ी, \"महारानी चं कुँ व र यहाँ कस योजन से आई ह?\" राणा जंगबहा र, \"के वल एक शां त य सखु - ान क खोज म, जहाँ उ अपनी रव ा क चता से मु होने का अवसर मले। वह ऐ यशाली रानी जो रंगमहल म सुख- वलास करती थी, जसे फू ल क सेज पर भी चनै न मलता था, आज सकै ड़ कोस से अनेक कार के क सहन करती, नदी-नाले, पहाड़-जंगल छानती यहाँ के वल एक र त ान क खोज म आई है। उमड़ी ई न दय और उबलते ए नाले, बरसात के दन, इन ख को आप लोग जानते ह और यह सब उसी एक र त ान के लए, उसी एक भू म के टु कड़े क आशा म। कतु हम ऐसे दयहीन ह क उनक यह अ भलाषा भी पूरी नह कर सकते। उ चत तो यह था क उतनी-सी भू म के बदले हम अपना दय फै ला देते। सो चए, कतने अ भमान क बात है क एक आपदा म फँ सी ई रानी अपने ःख के दन म जस देश को याद करती है, यह वही प व देश है। महारानी चं कुँ व र को हमारे इस अभय द ान पर, \"हमारी शरणागत क र ा का परू ा भरोसा था और वही व ास उ यहाँ तक लाया है। इसी आशा पर क पशुप तनाथ क शरण म मुझे शां त मलगे ी, वह यहाँ तक आई ह। आपको अ धकार है, चाहे उनक आशा पणू कर या धलू म मला द। चाहे र णता के , शरणागत के साथ सदाचरण के नयम को नभाकर इ तहास के पृ पर अपना नाम छोड़ जाएँ , या जातीयता तथा सदाचार-सबं ंधी नयम को मटाकर यं अपने को प तत समझ। मझु े व ास नह है क यहाँ एक भी मनु ऐसा नरा भमान है क जो इस अवसर पर शरणागत-पालनधम को व तृ करके अपना सर ऊँ चा कर सके । अब म आपसे अं तम नपटारे क ती ा करता ँ। क हए, आप अपनी जा त और देश का नाम उ ल करगे या सवदा के लए अपने माथे पर अपयश का टीका लगाएँ गे?\" राजकु मार ने उमगं म कहा, \"हम महारानी के चरण तले आँख बछाएँ ग।े \" क ान रणवीर सह, \"हम उनको ऐसी धमू से लाएँ गे क संसार च कत हो जाएगा।\" राणा जगं बहा र ने कहा, \"म अपने म कड़बड़ ख ी के मखु से उसका फै सला सुनना
चाहता ँ।\" कड़बड़ ख ी एक भावशाली पु ष थे और मं मडं ल म वे राणा जंगबहा र के व मंडली के धान थे। वे ल ा भरे श म बोल,े \"य प म महारानी के आगमन को भयर हत नह समझता, कतु इस अवसर पर हमारा धम यही है क हम महारानी को आ य द। धम से मुहँ मोड़ना कसी जा त के लए मान का कारण नह हो सकता।\" कई नय ने उमगं भरे श म इस सगं का समथन कया। महाराज सरु व म सह, \"इस नपटारे पर बधाई देता ँ। तमु ने जा त का नाम रख लया। पशपु त इस उ म काय म तु ारी सहायता कर।\" सभा वस जत ई। ग से तोप छू टने लग । नगर-भर म खबर गँूज उठी क पजं ाब क रानी चं कुँ व र का शभु ागमन आ है। जनरल रणवीर सह और जनरल रणधीर सह बहा र पचास हजार सने ा के साथ महारानी क अगवानी के लए चल।े अ त थ-भवन क सजावट होने लगी। बाजार अनेक भाँ त क उ म साम य से सज गए। ऐ य क त ा व स ान सब कह होता है, कतु कसी ने भखा रनी का ऐसा स ान देखा है? सेनाएँ बड बजाती और पताका फहराती ई एक उमड़ी नदी क भाँ त जाती थ । सारे नगर म आनंद-ही-आनंद था। दोन ओर संुदर व भूषण से सजे दशक का समहू खड़ा था। सेना के कमांडर आगे-आगे घोड़ पर सवार थे। सबके आगे राणा जगं बहा र जातीय अ भमान के मद म लीन, अपने सुवणख चत हौदे म बैठे ए थे। यह उदारता का एक प व था। धमशाला के ार पर यह जुलूस का। राणा हाथी से उतरे। महारानी चं कुँ व र कोठरी से बाहर नकल आ । राणा ने झकु कर वंदना क । रानी उनक ओर आ य से देखने लग । यह वही उनका म बढ़ू ा सपाही था। आँखे भर आ , मुसकरा , खले ए फू ल पर से ओस क बूँद टपक । रानी बोली, \"मेरे बढ़ू े ठाकु र, मरे ी नाव पार लगाने वाले, कस भाँ त तु ारा गणु गाऊँ ?\" राणा ने सर झुकाकर कहा, \"आपके चरणा वद से हमारे भा उदय हो गए।\" नपे ाल क राजसभा ने प ीस हजार पए से महारानी के लए एक उ म भवन बनवा दया और उनके लए दस हजार पए मा सक नयत कर दए। वह भवन आज तक वतमान है और नेपाल क शरणागत यता तथा णपालन-त रता का ारक है। पंजाब क रानी को लोग आज तक याद करते ह। यह वह सीढ़ी है जससे जा तया,ँ यश के सुनहरे शखर पर प ँचती ह। ये ही घटनाएँ ह, जनसे जातीय इ तहास काश और मह को ा होता है।
सी धे-सादे कसान धन हाथ आते ही धम और क त क ओर झुकते ह। द समाज क भाँ त वह पहले अपने भोग- वलास क ओर नह दौड़त।े सुजान क खते ी म कई साल से कं चन बरस रहा था। महे नत तो गाँव के सभी कसान करते थ,े पर सुजान के चं मा बली थे, ऊसर म भी दाना छ ट आता तो कु छ-न-कु छ पैदा हो जाता था। तीन वष लगातार ईख लगती गई। उधर गुड़ का भाव तजे था। कोई दो-ढाई हजार हाथ म आ गए, बस च क वृ धम क ओर झुक पड़ी। साधु-सतं का आदर-स ार होने लगा, ार पर धनू ी जलने लगी, काननू गो इलाके म आते तो सुजान महतो के चौपाल म ठहरते। हलके के हैड कां े बल, थानेदार, श ा- वभाग का अफसर, एक-न-एक उस चौपाल म पड़ा रहता। महतो मारे खशु ी के फू ले न समाते। ध भाग! उसके ार पर अब इतने बड़े-बड़े हा कम आकर ठहरते ह, जन हा कम के सामने उसका मुहँ न खलु ता था, उ क अब ‘महतो- महतो’ करते जबान सूखती थी। कभी-कभी भजन-भाव हो जाता। एक महा ा ने डौल अ ा देखा तो गाँव म आसन जमा दया। गाँजे और चरस क बहार उड़ने लगी। एक ढोलक आई, मजं ीरे मँगाए गए, स ंग होने लगा। यह सब सुजान के दम का जलूस था। घर म सेर ध होता था, मगर सुजान के कं ठ तले एक बदूँ भी जाने क कसम थी। कभी हा कम लोग चखते, कभी महा ा लोग। कसान को ध-घी से ा मतलब? उसे रोटी और साग चा हए। सजु ान क न ता का अब पारावार न था। सबके सामने सर झकु ाए रहता, कह लोग यह न कहने लग क धन पाकर उसे घमंड हो गया। गावँ म कु ल तीन कु एँ थ,े ब त से खेत मे पानी न प ँचता था, खेती मारी जाती थी। सजु ान ने प ा कु आँ बनवा दया। कु एँ का ववाह आ, य आ, भोज आ। जस दन पहली बार परु चला, सुजान को मानो चार पदाथ मल गए। जो काम गावँ म कसी ने न कया था, वह बाप- दादा के पु - ताप से सुजान ने कर दखाया। एक दन गावँ म गया के या ी आकर ठहरे। सजु ान ही के ार पर उनका भोजन बना। सुजान के मन म भी गया करने क ब त दन से इ ा थी। यह अ ा अवसर देखकर वह भी चलने को तैयार हो गया। उसक ी बुलाक ने कहा, \"अभी रहने दो, अगले साल चलगे।\"
सुजान ने गभं ीर भाव से कहा, \"अगले साल ा होगा, कौन जानता है? धम के काम म मीन-मखे नकालना अ ा नह , जदगी का ा भरोसा?\" बुलाक , \"हाथ खाली हो जाएगा।\" सुजान, \"भगवान् क इ ा होगी तो फर पए हो जाएँ गे। उनके यहाँ कस बात क कमी है?\" बलु ाक इसका ा जवाब देती? स ाय म बाधा डालकर अपनी मु बगाड़ती? ातःकाल ी और पु ष गया करने चल।े वहाँ से लौटे तो य और भोज क ठहरी। सारी बरादरी नमं त ई, ारह गाँव म सपु ारी बटँ ी। इस धूमधाम से यह लाभ आ क चार ओर वाह-वाह मच गई। सब यही कहते थे क भगवान् धन दे तो दल भी ऐसा दे। घमंड तो छू नह गया, अपने हाथ से प ल उठाता फरता, कु ल का नाम जगा दया। बटे ा हो तो ऐसा हो। बाप मरा तो भनू ी-भाँग भी नह थी। अब ल ी घटु ने तोड़कर आ बठै ी है। एक षे ी ने कहा, \"कह गड़ा आ धन पास आ गया है।\" इस पर चार ओर से उस पर बौछार पड़ने लग , \"हाँ, तु ारे बाप-दादा जो खजाना छोड़ गए थे, वही उसके हाथ लग गया है। अरे भैया, यह धम क कमाई है। तमु भी तो छाती फाड़कर काम करते हो, ऐसी ईख नह लगती? ऐसी फसल नह होती? भगवान् आदमी का दल देखते ह। जो खच करता है, उसी को देते ह।\" सुजान महतो सुजान भगत हो गए। भगत के आचार- वचार कु छ और होते ह, वह बना ान कए कु छ नह खाता। गंगाजी अगर घर से र ह और वह रोज ान करके दोपहर तक घर न लौट सकता तो पव के दन तो उसे अव ही नहाना चा हए। भजन-भाव उसके घर अव होना चा हए। पूजा-अचना उसके लए अ नवाय है। खान-पान म भी उसे ब त वचार करना पड़ता है। सबसे बड़ी बात यह है क झठू का ाग करना पड़ता है। भगत झठू नह बोल सकता। साधारण मनु को अगर झठू का दंड एक मले तो भगत को एक लाख से कम नह मल सकता। अ ान क अव ा म कतने ही अपराध हो जाते ह। ानी के लए मा नह है, ाय नह है, य द है तो ब त क ठन। सजु ान को भी अब भगत क मयादा को नभाना पड़ा। अब तक उसका जीवन मजरू का जीवन था। उसका कोई आदश, कोई मयादा उसके सामने न थी। अब उसके जीवन म वचार का उदय आ, जहाँ तक माग काँट से भरा आ था। ाथ-सवे ा ही पहले उसके जीवन का ल था, इसी काँटे से वह प र तय को तौलता था। वह अब उ औ च के काँट पर तौलने लगा। य कहो क जड़-जगत से नकलकर उसने चेतन-जगत म वशे कया। उसने कु छ लेन-े देन करना शु कया था। अब उसे ाज लेते ए आ ा न-सी होती थी। यहाँ तक क गउओं को हते समय उसे बछड़ का ान बना रहता था। कह बछड़ा भूखा न रह जाए, नह तो उसका रोयाँ ःखी होगा। वह गावँ का मु खया था, कतने ही मुकदम म उसने झूठी शहादत बनवाई थ , कतन से डाँड लेकर मामले को रफा-दफा
करा दया था। अब इन ापार से उसे घणृ ा होती थी। झठू और पंच से कोस र भागता था। पहले उसक यह चे ा होती थी क मजूर से जतना काम लया जा सके , लो और मजरू ी जतनी कम दी जा सके , दो, पर अब उसे मजरू के काम क कम, मजरू ी क अ धक चता रहती थी, कह बेचारे मजरू का रोयाँ ःखी हो जाए। उसके दोन जवान बेटे बात-बात म उस पर फ याँ कसते, यहाँ तक क बलु ाक भी अब उसे कोरा भगत समझने लगी थी, जसे घर के भले-बरु े से कोई योजन न था। चते न-जगत म आकर सजु ान भगत कोरे भगत रह गए। सजु ान के हाथ से धीरे-धीरे अ धकार छीने जाने लग।े कस खते म ा बोना है, कसको ा देना है, कससे ा लने ा है, कस भाव ा चीज बक , ऐसी-ऐसी मह पणू बात म भी भगतजी क सलाह न ली जाती थी। भगत के पास कोई जाने ही न पाता। दोन लड़के या यं बुलाक र ही से मामला तय कर लया करती। गावँ भर म सुजान का मान-स ान बढ़ता था, अपने घर म घटता था। लड़के उसका स ार अब ब त करते। हाथ से चारपाई उठाते देख लपककर खदु उठा लाते, चलम न भरने देत,े यहाँ तक क उसक धोती छाटँ ने के लए भी आ ह करते थे, मगर अ धकार उसके हाथ म न था। वह अब घर का ामी नह , मं दर का देवता था। एक दन बलु ाक ओखली म दाल छाटँ रही थी। एक भखमंगा ार पर आकर च ाने लगा। बुलाक ने सोचा, दाल छाँट लँू तो उसे कु छ दे ँ। इतने म बड़ा लड़का भोला आकर बोला, \"अ ा, एक महा ा ार पर खड़े गला फाड़ रहे ह? कु छ दे दो, नह तो उनका रोयाँ ःखी हो जाएगा।\" बलु ाक ने उपे ा के भाव से कहा, \"भगत के पाँव म ा महे ँदी लगी है, कु छ ले जाकर नह देते? ा मेरे चार हाथ ह? कस- कस का रोयाँ सखु ी क ँ ? दन भर तो ताँता लगा रहता है।\" भोला, \"चौपट करने पर लगे ए ह, ा? अभी महगू बग ( पए) देने आया था। हसाब से 7 मन आ। तोला तो पौने सात मन ही नकल।े \" मने कहा, \"दस सरे और ला, तो आप बैठे-बैठे कहते ह, अब इतनी र कहाँ जाएगा। भरपाई लख दो, नह तो उसका रोयाँ ःखी होगा। मने भरपाई नह लखी। दस सेर बाक लख दी।\" बुलाक , \"ब त अ ा कया तुमने, बकने दया करो। दस-पाँच दफे महँु क खा जाएँ गे, तो आप ही बोलना छोड़ दगे।\" भोला, \" दन भर एक-न-एक खचु ड़ नकालते ह। सौ दफे कह दया क तुम घर-गहृ ी के मामले म न बोला करो, पर इनसे बना बोले रहा ही नह जाता।\"
बलु ाक , \"म जानती थी क इनका यह हाल होगा तो गु मं न लने े देती।\" भोला, \"भगत ा ए क दीन- नया दोन से गए। सारा दन पूजा-पाठ म उड़ जाता है। अभी ऐसे बूढ़े नह हो गए क कोई काम ही न कर सक।\" बुलाक ने आप क , \"भोला, यह तु ारा कु ाय है। फावड़ा, कु दाल अब उनसे नह हो सकता, ले कन कु छ-न-कु छ तो करते ही रहते ह। बैल को सानी-पानी देते ह, गाय हते ह, और भी जो कु छ हो सकता है, करते ह।\" भ ुक अभी तक खड़ा च ा रहा था। सुजान ने जब घर म से कसी को कु छ लाते न देखा, तो उठकर अंदर गया और कठोर र म बोला, \"तुम लोग को कु छ सनु ाई नह देता क ार पर कौन घटं े भर से खड़ा भीख माँग रहा है? अपना काम तो दन भर करना ही है, एक ण भगवान् का काम भी तो कया करो।\" बलु ाक , \"‘तमु तो भगवान् का काम करने को बठै े ही हो, ा घर-भर भगवान् ही का काम करेगा?\" सुजान, \"आटा मने मर-मरकर पीसा है, अनाज दे दो। ऐसे मड़ु चर के लए पहर रात से उठकर च नह चलाती ँ।\"
सुजान भंडार-घर म गए और एक छोटी सी छबड़ी को जौ भरे ए नकले। जौ सरे भर से कम न था। सजु ान ने जान-बझू कर के वल बुलाक और भोला को चढ़ाने के लए, भ ा परंपरा का उ ंघन कया था। तस पर भी यह दखाने के लए क छबड़ी म ब त ादा जौ नह ह, वह उसे चुटक से पकड़े ए थे। चुटक इतना बोझ न सँभाल सकती थी। हाथ कापँ रहा था। एक ण वलंब होने से छबड़ी के हाथ से छू टकर गर पड़ने क सभं ावना थी। इस लए वह ज ी से बाहर नकल जाना चाहते थ।े सहसा भोला ने छबड़ी उनके हाथ से छीन ली और ो रयाँ बदलकर बोला, \"सत का माल नह है, जो लुटाने चले हो। छाती फाड़-फाड़कर काम करते ह, तब दाना घर म आता है।\" सजु ान ने ख सयाकर कहा, \"म भी तो बैठा नह रहता।\" भोला, \"भीख भीख क तरह ही दी जाती है, लटु ाई नह जाती। हम तो एक बेला खाकर दन काटते ह क दाना-पानी बना रहे, और तु लुटाने क सझू ी। तु ा मालूम क घर म ा हो रहा है?\" सुजान ने इसका कोई जवाब न दया। बाहर आकर भखारी से कह दया, \"‘बाबा, इस समय जाओ, कसी का हाथ खाली नह है।\" और पड़े के नीचे बठै कर वचार म म हो गया। अपने ही घर म उसका यह अनादर! अभी वह अपा हज नह है, हाथ-पावँ थके नह ह। घर का कु छ-न-कु छ काम करता ही रहता है। उस पर यह अनादर? उसी ने घर बनाया, यह सारी वभू त उसी के म का फल है, पर अब इस घर पर उसका कोई अ धकार नह रहा। अब वह ार का कु ा है, पड़ा रहे और घर वाले जो खा दे द, वह खाकर पटे भर लया करे। ऐसे जीवन को ध ार है। सुजान ऐसे घर म नह रह सकता। सं ा हो गई थी। भोला का छोटा भाई शकं र ना रयल भरकर लाया। सजु ान ने ना रयल दीवार से टकाकर रख दया। धीरे-धीरे तबं ाकू जल गया। जरा देर म भोला ने ार पर चारपाई डाल दी। सुजान पेड़ के नीचे से न उठा। कु छ देर और गुजरी, भोजन तयै ार आ, भोला बलु ाने आया। सुजान ने कहा, \"भूख नह है।\" ब त मनावन करने पर भी न उठा। तब बलु ाक ने आकर कहा, \"खाना खाने नह चलते? जी तो अ ा है?\" सजु ान को सबसे अ धक ोध बुलाक पर था। यह भी लड़क के साथ है। यह बठै ी देखती रही और भोला ने मरे े हाथ से अनाज छीन लया। इसके मुहँ से इतना न नकला क ले जाते ह तो ले जाने दो। लड़क को न मालूम हो क मने कतने म से यह गहृ ी जोड़ी है, पर यह तो जानती है। दन को दन और रात को रात नह समझा। भाद क अँधरे ी रात म मड़ैया लगा के जुआर क रखवाली करता था। जठे -बैसाख क दोपहरी म भी दम न लेता था, और अब मेरा घर पर इतना भी अ धकार नह है क भीख तक दे सकूँ । माना क भीख इतनी नह दी जाती, ले कन इनको तो चुप
रहना चा हए था, चाहे म घर म आग ही न लगा देता। कानून से भी मेरा कु छ होता है। म अपना ह ा नह खाता, सर को खला देता ँ, इसम कसी के बाप का ा साझा? अब इस व मनाने आई है, जसने खसम क लात न खाई ह , कभी कड़ी नगाह से देखा तक नह । पए जमा कर लए ह, तो मझु ी से घमंड करती है। अब इसे बटे े ारे ह, म तो नख ू , लटु ाऊ, घर-फँू कू , घ घा ँ। मरे ी इसे ा परवाह? तब लड़के न थे, जब बीमार पड़ी थी और म गोद म उठाकर वै के घर ले गया था। आज इसके बटे े ह और यह उनक माँ है। म तो बाहर का आदमी ँ। मझु े घर से मतलब ही ा? बोला, \"अब खा-पीकर ा क ँ गा, हल जोतने से रहा, फावड़ा चलाने से रहा। मुझे खलाकर दाने को खराब करेगी? रख दे, बटे े सरी बार खाएँ ग?े \" बुलाक , \"तमु तो जरा-जरा सी बात पर तनक जाते हो। सच कहा है, बढ़ु ापे म आदमी क बु मारी जाती है। भोला ने इतना तो कहा था क इतनी भीख मत ले जाओ या और कु छ?\" सुजान, \"हाँ, बचे ारा इतना कहकर रह गया। तु तो मजा तब आता, जब वह ऊपर से दो- चार डंडे लगा देता। ? अगर यही अ भलाषा है तो पूरी कर लो। भोला खा चुका होगा, बलु ा लाओ। नह , भोला को बलु ाती हो, तु न जमा दो दो-चार हाथ। इतनी कसर है, वह भी पूरी हो जाए।\" बुलाक , \"हाँ, और ा, यही तो नारी का धरम है। अपने भाग सराहो क मुझ जसै ी सीधी औरत पा ली। जस बल चाहते हो, बठाते हो। ऐसी महँु जोर होती तो घर म एक दन भी नबाह न होता।\" सुजान, \"हाँ भाई, वह तो म ही कह रहा ँ क देवी थी और हो। म तब भी रा स था और अब भी दै हो गया ँ। बेटे कमाऊ ह, उनक सी न कहोगी तो ा मेरी सी कहोगी, मझु से अब ा लने ा-देना है?\" बलु ाक , \"तुम झगड़ा करने पर तुले बठै े हो और म झगड़ा बचाती ँ क चार आदमी हँसगे। चलकर खाना खा लो सीधे स,े नह तो म जाकर सो र ँगी।\" सुजान, \"तुम भूखी सो रहोगी? तु ारे बटे क तो कमाई है। हाँ, म बाहरी आदमी ँ।\" बलु ाक , \"बटे े तु ारे भी तो ह।\" सुजान, \"नह , म ऐसे बेट से बाज आया। कसी और के बेटे ह ग।े मेरे बेटे होते तो ा मेरी ग त होती?\" बुलाक , \"गा लयाँ दोगे तो म भी कु छ कह बठै ूँगी। सुनती थी, मरद बड़े समझदार होते ह, पर तमु सबसे ारे हो। आदमी को चा हए क जैसा समय देखे वसै ा ही काम करे। अब हमारा और तु ारा नबाह इसी म है क नाम के मा लक बने रह और वही कर जो लड़क
को अ ा लगे। म यह बात समझ गई, तुम नह समझ पाते? जो कमाता है, उसी का घर म राज होता है, यही नया का द ूर है। म बना लड़क से पछू े कोई काम नह करती, तुम अपने मन क करते हो? इतने दन तक तो राज कर लया, अब इस माया म पड़े हो? आधी रोटी खाओ, भगवान् का भजन करो और पड़े रहो। चलो, खाना खा लो।\" सजु ान, \"तो अब म ार का कु ा ँ?\" बुलाक , \"बात जो थी, वह मने कह दी। अब अपने को जो चाहो समझो।\" सुजान न उठा। बुलाक हारकर चली गई। सजु ान के सामने अब एक नई सम ा खड़ी हो गई थी। वह ब त दन से घर का ामी था और अब भी ऐसा ही समझता रहा। प र त म कतना उलट-फे र हो गया था, इसक उसे खबर न थी। लड़के उसका सेवा-स ान करते ह, यह बात उसे म म डाले ए थी। लड़के उसके सामने चलम नह पीत,े खाट पर नह बैठते, ा यह सब उसके गृह ामी होने का माण न था? पर आज उसे यह ात आ क यह के वल ा थी, उसके ा म का माण नह । अब तक जस घर म राज कया, उसी घर म पराधीन बनकर वह नह रह सकता। उसको ा क चाह नह , सवे ा क भखू नह । उसे अ धकार चा हए। वह इस घर पर सर का अ धकार नह देख सकता, मं दर का पजु ारी बनकर वह नह रह सकता। न जाने कतनी रात बाक थी। सजु ान ने उठकर गँड़ासे से बैल का चारा काटना शु कया। सारा गाँव सोता था, पर सजु ान चारा काट रहा था। इतना म उ ने अपने जीवन म कभी न कया था। जब से उ ने काम करना छोड़ दया था, बराबर चारे के लए हाय-हाय पड़ी रहती थी। शकं र भी काटता था, भोला भी काटता था, पर चारा परू ा न पड़ता था। आज वह इन ल ड को दखा दगे, चारा कै से काटना चा हए, उसके सामने क टया का पहाड़ खड़ा हो गया और टु कड़े कतने महीन और सडु ौल थे, मानो साँचे म ढाले गए ह। महुँ -अँधरे े बुलाक उठी तो क टया का ढेर देखकर दंग रह गई और बोली, \" ा भोला आज रात भर क टया को काटता रह गया? कतना कहा क बटे ा, जी से जहान है, पर मानता ही नह । रात को सोया ही नह ।\" सजु ान भगत ने ताने से कहा, \"वह सोता ही कब है? जब देखता ँ, काम ही काम करता रहता है। ऐसा कमाऊ संसार म और कौन होगा?\" इतने म भोला आँख मलते ए बाहर नकला। उसे भी यह ढेर देखकर आ य आ। माँ से बोला, \" ा शंकर आज बड़ी रात को उठा था अ ा?\" बुलाक , \"वह तो पड़ा सो रहा है। मने तो समझा, तुमने काटी होगी।\"
भोला, \"म तो सवरे े उठ ही नह पाता। दन भर चाहे जतना काम कर ल,ूँ पर रात को मुझसे नह उठा जाता।\" बुलाक , \"तो ा तु ारे दादा ने काटी है?\" भोला, \"हा,ँ मालमू होता है रात भर सोए नह । मझु से कल बड़ी भूल ई। अरे, वो तो हल लके र जा रहे ह। जान देने पर उता हो गए ह ा?\" बुलाक , \" ोधी तो सदा के ह। अब कसी क सुनगे थोड़े ही।\" भोला, \"शंकर को जगा दो, म भी ज ी से मँहु -हाथ धोकर हल ले जाऊँ ।\" जब और कसान के साथ भोला हल लके र खते म प ँचा तो सुजान आधा खते जोत चुका था। भोला ने चपु के से काम करना शु कया। सजु ान से कु छ बोलने क ह त न पड़ी। दोपहर ई। सभी कसान ने हल छोड़ दया, पर सुजान भगत अपने काम म म रहा। भोला थक गया था। उसक बार-बार इ ा होती क बलै को खोल दे, मगर डर के मारे कु छ कह नह सकता। सबको आ य हो रहा है क दादा कै से इतनी महे नत कर रहे ह? आ खर डरते-डरते बोला, \"दादा, अब तो दोपहर हो गई। हल खोल द न?\" सजु ान, \"हाँ, खोल दो। तमु बैल को लेकर चलो, म डाँड फककर आता ँ।\" भोला, \"‘म सझं ा को डाडँ फक ँगा।\" सुजान, \"‘तमु ा फक दोग।े देखते नह हो, खेत कटोरे क तरह गहरा हो गया है। तभी तो बीच म पानी जम जाता है। इस गोइंड के खते म बीस मन का बीघा होता था। तुम लोग ने इसका स ानाश कर दया।\" बलै खोल दए गए। भोला बैल को लके र घर चला गया, पर सजु ान डाँड फकते रहे। आध घटं े के बाद डाँड फककर वह घर आए, मगर थकान का नाम न था। नहा-खाकर आराम करने के बदले उ ने बलै को सहलाना शु कया, उनक पीठ पर हाथ फे रा, उनके परै मले, पँूछ सहलाई। बैल क पछूँ खड़ी थ । सुजान क गोद म सर रखे उ अकथनीय सखु मल रहा था। ब त दन के बाद आज उ यह आनंद ा आ था। उनक आँख म कृ त ता भरी ई थी, मानो वे कह रहे थे, हम तु ारे साथ रात- दन काम करने को तयै ार ह। अ कृ षक क भाँ त भोला अभी कमर सीधी कर रहा था क सुजान ने फर हल उठाया और खते क ओर चले। दोन बैल उमगं से भरे दौड़े चले जाते थे, मानो उ यं खेत म प ँचने क ज ी थी। भोला ने मड़ैया म लटे े-लेटे पता को हल लये जाते देखा, पर उठ न सका। उसक ह त
छू ट गई। उसने कभी इतना प र म न कया था। उसे बनी-बनाई गृह ी मल गई थी, उसे - चला रहा था। इन दाम वह घर का ामी बनने का इ ु क न था। जवान आदमी को बीस धधं े होते ह। हँसन-े बोलने के लए, गाने-बजाने के लए भी तो उसे कु छ समय चा हए। पड़ोस के गाँव म दंगल हो रहा है। जवान आदमी कै से अपने को वहाँ जाने से रोके गा? कसी गाँव म बारात है? वृ जन के लए ये बाधाएँ नह । उ न नाच-गाने से मतलब, न खले -तमाशे से गरज, के वल अपने काम से काम है। बुलाक ने कहा, \"भोला, तु ारे दादा हल लेकर गए।\" भोला, \"जाने दो अ ा, मझु से यह नह हो सकता।\" सुजान भगत के इस नवीन उ ाह पर गाँव म टीकाएँ , \" नकल गई सारी भगती। भगत बना आ था, माया म फँ सा आ है। आदमी काहे को, भतू है।\" मगर भगतजी के ार पर अब फर साधु-सतं आसन जमाए देखे जाते ह। उनका आदर- स ार होता है। अबक उसक खेती ने सोना उगल दया है। बखु ारी म अनाज रखने क जगह नह मलती। जस खेत म पाचँ मन मु ल से होता था, उसी खते म अबक दस मन क उपज ई है। चतै का महीना था। ख लहान म सतयुग का राज था। जगह-जगह अनाज के ढेर लगे ए थे। यही समय है, जब कृ षक को भी थोड़ी देर के लए अपना जीवन सफल मालमू होता है, जब गव से उनका दय उछलने लगता है। सजु ान भगत टोकरे म अनाज भर-भर कर देते थे और दोन लड़के टोकरे लेकर घर म अनाज रख आते थे। कतने ही भाट और भ कु भगतजी को घरे े ए थे। उनम वह भ कु भी था, जो आज से आठ महीने पहले भगत के ार से नराश होकर लौट गया था। सहसा भगत ने उस भ ुक से पछू ा, \" बाबा, आज कहा-ँ कहाँ च र लगा आए?\" भ कु , \"अभी तो कह नह गया भगतजी, पहले तु ारे ही पास आया ँ।\" भगत, \"‘अ ा, तु ारे सामने यह ढेर है। इसम से जतना अनाज उठाकर ले जा सको, ले जाओ।\" भ कु ने ु ने से ढेर को देखकर कहा, \" जतना अपने हाथ से उठाकर दे दोग,े उतना ही लगँू ा।\" भगत, \"नह , तुमसे जतना उठ सके , उठा लो।\" भ कु के पास एक चादर थी, उसने कोई दस सेर अनाज उसम भरा और उठाने लगा। संकोच के मारे और अ धक भरने का साहस न आ।
भगत उसके मन का भाव समझकर आ ासन देते ए बोल,े \"बस, इतना तो एक ब ा भी उठा ले जाएगा।\" भ ुक ने भोला क ओर सं द ने से देखकर कहा, \"मरे े लए इतना ही काफ है।\" भगत, \"नह , तुम सकु चाते हो। अभी और भरो।\" भ कु ने एक पसँ रे ी अनाज और भरा, और फर भोला क ओर सशकं से देखने लगा। भगत, \"उसक ओर ा देखते हो, बाबाजी? म जो कहता ँ, वह करो। तुमसे जतना उठाया जा सके , उठा लो।\" भ ुक डर रहा था क कह उसने अनाज भर लया और भोला ने गठरी न उठाने दी तो कतनी भ होगी, और भ कु को हँसने का अवसर मल जाएगा। सब यही कहगे क भ ुक कतना लोभी है? उसे अनाज भरने क ह त न पड़ी। तब सुजान भगत ने चादर लके र उसम अनाज भरा और गठरी बाधँ कर बोल,े \"इसे उठा ले जाओ।\" भ कु , \"बाबा, इतना तो मझु से उठ न सके गा।\" भगत, \"अरे! इतना भी न उठ सके गा। ब त होगा तो मन भर, भला जोर तो लगाओ, देख,ूँ उठा सकते हो या नह ।\" भ कु ने गठरी को आजमाया। भारी थी, जगह से हली भी नह , फर बोला, \"भगतजी, यह मुझसे न उठ सके गी।\" भगत, \"अ ा, बताओ कस गाँव म रहते हो?\" भ ुक, \"बड़ी र है भगतजी, अमोला का नाम तो सनु ा होगा।\" भगत, \"अ ा, आग-े आगे चलो, म प ँचा ँगा।\" यह कहकर भगत ने जोर लगाकर गठरी उठाई और सर पर रखकर भ कु के पीछे हो लये। देखने वाले भगत का पौ ष देखकर च कत हो गए। उ ा मालमू था क भगत पर इस समय कौन सा नशा था। आठ महीने के नरंतर अ वरल प र म का आज उ फल मला था। आज उ ने अपना खोया अ धकार फर पाया था। वही तलवार, जो के ले को नह काट सकती, सान पर चढ़कर लोहे को काट देती है। मानव-जीवन म लाग बड़े मह क व ु है। जसम लाग है, वह बढ़ू ा भी हो तो जवान है। जसम लाग नह , गरै त नह , वह जवान भी मृतक है। सुजान भगत म लाग थी और उसी ने उ अमानषु ीय बल दान कर दया था। चलते समय उ ने भोला क ओर सगव ने से देखा और बोले, \"ये
भाट और भ कु खड़े ह, कोई खाली हाथ न लौटने पाए।\"
र मजान के परू े तीस रोज के बाद ईद आई है। कतना मनोहर, कतना सुहावना भाव है! वृ पर अजीब ह रयाली है, खेत म कु छ अजीब रौनक है, आसमान पर कु छ अजीब ला लमा है। आज का सूय देखो, कतना ारा, कतना शीतल है, यानी संसार को ईद क बधाई देता है! गावँ म कतनी हलचल है। ईदगाह जाने क तैया रयाँ हो रही ह! कसी के कु रते म बटन नह ह, पड़ोस के घर म सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। कसी के जूते कड़े हो गए ह, उनम तले डालने के लए तले ी के घर पर भागा जाता है। ज ी-ज ी बैल को सानी-पानी दे द, ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पदै ल रा ा, फर सकै ड़ आद मय से मलना, दोपहर के पहले लौटना असंभव है। लड़के सबसे ादा स ह। कसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, कसी ने वह भी नह , ले कन ईदगाह जाने क खशु ी उनके ह े क चीज है। रोजे बड़े-बूढ़ के लए ह गे, इनके लए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थ,े आज वह आ गई। अब ज ी पड़ी है क लोग ईदगाह नह चलत।े इ गहृ ी क चताओं से ा योजन! सेवैय के लए ध और श र घर म है या नह , इनक बला स,े ये तो सेवैयाँ खाएँ ग।े वह ा जान क अ ाजान बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे ह। उ ा खबर क चौधरी आँख बदल ल, तो यह सारी ईद महु रम हो जाए। उनक अपनी जबे म तो कु बेर का धन भरा आ है। बार-बार जबे से अपना खजाना नकालकर गनते ह और खुश होकर फर रख लते े ह। महमूद गनता है, एक-दो, दस, बारह, उसके पास बारह पसै े ह। मोह सन के पास एक, दो, तीन, आठ, नौ, पं ह पैसे ह। इ अन गनत पसै म अन गनती चीज लाएँ ग-े खलौने, मठाइयाँ, बगलु , गद और जाने ा- ा, और सबसे ादा स है हा मद। वह चार-पाँच साल का गरीब सूरत, बला-पतला लड़का, जसका बाप गत वष हैजे क भट हो गया और माँ न जाने पीली होती-होती एक दन मर गई। कसी को पता ा बीमारी है। कहती तो कौन सनु ने वाला था? दल पर जो कु छ बीतती थी, वह दल म ही सहती थी और जब न सहा गया तो संसार से वदा हो गई। अब हा मद अपनी बढ़ू ी दादी अमीना क गोद म सोता है और उतना ही स है। उसके अ ाजान पए कमाने गए ह, ब त सी थै लयाँ लेकर आएँ ग।े अ ीजान अ ाह के घर से उसके लए बड़ी अ ी-अ ी चीज लाने गई ह, इस लए हा मद स है। आशा तो बड़ी चीज है, और फर
ब क आशा! उनक क ना तो राई का पवत बना लेती है। हा मद के पाँव म जतू े नह ह, सर पर एक पुरानी-धरु ानी टोपी है, जसका गोटा काला पड़ गया है, फर भी वह स है। जब उसके अ ाजान थै लयाँ और अ ीजान नयामत लके र आएँ गी, तो वह दल के अरमान नकाल लेगा। तब देखेगा, मोह सन, नरू े और श ी कहाँ से उतने पसै े नकालगे। अभा गन अमीना अपनी कोठरी म बठै ी रो रही है। आज ईद का दन, उसके घर म दाना नह ! आज आ बद होता तो ा इसी तरह ईद आती और चली जाती! इस अंधकार और नराशा म वह डू बी जा रही है। कसने बलु ाया था इस नगोड़ी ईद को? इस घर म उसका काम नह , ले कन हा मद! उसे कसी के मरन-े जीने से ा मतलब? उसके अंदर काश है, बाहर आशा। वप अपना सारा दल-बल लके र आए, हा मद क आनंद भरी चतवन उसका व ंस कर देगी। हा मद भीतर जाकर दादी से कहता है, \"तुम डरना नह अ ा, म सबसे पहले आऊँ गा। बलकु ल न डरना।\" अमीना का दल कचोट रहा है। गाँव के ब े अपन-े अपने बाप के साथ जा रहे ह। हा मद का अमीना के सवा और कौन है! उसे कै से अके ले मेले जाने दे? उस भीड़-भाड़ म ब ा कह खो जाए तो ा हो? नह , अमीना उसे य न जाने देगी। न ी सी जान! तीन कोस चलगे ा कै से? परै म छाले पड़ जाएँ गे। जतू े भी तो नह ह। वह थोड़ी-थोड़ी र पर उसे गोद म ले लेती, ले कन यहाँ सवे ैयाँ कौन पकाएगा? पसै े होते तो लौटते-लौटते सब साम ी जमा करके चटपट बना लेती। यहाँ तो घंट चीज जमा करने म लगग।े मागँ े का ही तो भरोसा ठहरा। उस दन फहीमन के कपड़े सले थे, आठ आने पैसे मले थे। उस अठ ी को ईमान क तरह बचाती चली आती थी इसी ईद के लए, ले कन कल ालन सर पर सवार हो गई तो ा करती? हा मद के लए कु छ नह है तो दो पैसे का ध तो चा हए ही। अब तो कु ल दो आने बचे रहे ह। तीन पैसे हा मद क जबे म, पाचँ अमीना के बटु वे म। यही तो बसात है और ईद का ोहार, अ ाह ही बेड़ा पार लगाए। धोबन और नाइन, मेहतरानी और चु ड़हा रन सभी तो आएँ गी? और महँु चुराए? साल भर का ोहार है। जदगी खै रयत से रहे, उनक तकदीर भी तो उसी के साथ है। ब को खदु ा सलामत रखे, ये दन भी कट जाएँ ग।े गाँव से मले ा चला, और ब के साथ हा मद भी जा रहा था। कभी सबके सब दौड़कर आगे नकल जाते, फर कसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथ वाल का इंतजार करते। यह लोग इतना धीरे-धीरे चल रहे ह? हा मद के परै म तो जैसे पर लग गए ह। वह कभी थक सकता है? शहर का दामन आ गया। सड़क के दोन ओर अमीर के बगीचे ह। प चारदीवारी बनी ई ह। पड़े म आम और ली चयाँ लगी ई ह। कभी-कभी कोई लड़का कं कड़ी उठाकर आम पर नशाना लगाता है। माली अंदर से गाली देता आ नकलता है। लड़के वहाँ से एक फलागँ पर ह। खूब हँस रहे ह, माली को कै सा उ ू बनाया है। बड़ी-बड़ी इमारत आने लग । यह अदालत है, यह कॉलजे है, यह ब-घर है। इतने बड़े
कॉलेज म कतने लड़के पढ़ते ह गे? सब लड़के नह ह जी! बड़े-बड़े आदमी ह, सच! उनक बड़ी-बड़ी मँछू ह। इतने बड़े हो गए, अभी तक पढ़ते जाते ह। न जाने कब तक पढ़गे और ा करगे इतना पढ़कर! हा मद के मदरसे म दो-तीन बड़े-बड़े लड़के ह, बलकु ल तीन कौड़ी के ! रोज मार खाते ह, काम से जी चरु ानेवाले। इस जगह भी उसी तरह के लोग ह गे और ा, ब-घर म जा होता है। सुना है, यहाँ मरु द क खोप ड़याँ दौड़ती ह और बड़े- बड़े तमाशे होते ह, पर कसी को अंदर नह जाने देते और वहाँ शाम को साहब लोग खले ते ह। बड़े-बड़े आदमी खले ते ह, म◌ँ छू -दाढ़ी वाले। और ममे भी खले ती ह, सच! हमारी अ ाँ को यह दे दो, ा नाम है, बटै तो उसे पकड़ ही न सक, घुमाते ही लढ़ु क जाएँ । महमूद ने कहा, \"हमारी अ ीजान का तो हाथ काँपने लगे, अ ाह कसम।\" मोह सन बोला, \"चलो माना, आटा पीस डालती ह। जरा सा बटै पकड़ लगी तो हाथ कापँ ने लगग!े सकै ड़ घड़े पानी रोज नकालती ह। पाँच घड़े तो तरे ी भस पी जाती है। कसी मेम को एक घड़ा पानी भरना पड़े तो आँख तक अँधेरा छा जाए।\" महमूद, \"हा,ँ उछल-कू द तो नह सकत , ले कन उस दन मरे ी गाय खुल गई थी और चौधरी के खेत म जा बड़ी थी, अ ा इतना तेज दौड़ी क म उ न पकड़ सका, सच।\" आगे चल।े हलवाइय क कान शु । आज खूब सजी ई थ । इतनी मठाइयाँ कौन खाता? देखो न, एक-एक कान पर मन ह गी। सुना है, रात को ज ात आकर खरीद ले जाते ह। अ ा कहते थे क आधी रात को एक आदमी हर कान पर जाता है और जतना माल बचा होता है, वह तुलवा लेता है और सचमुच के पए देता है, बलकु ल ऐसे ही पए। हा मद को यक न न आया, \"ऐसे पए ज ात को कहाँ से मल जाएँ गे?\" मोह सन ने कहा, \" ज ात को पए क ा कमी? जस खजाने म चाह चले जाएँ । लोहे के दरवाजे तक उ नह रोक सकते जनाब, आप ह कस फे र म! हीरे-जवाहरात तक उनके पास रहते ह। जससे खुश हो गए, उसे टोकर जवाहरात दे दए। अभी यह बैठे ह, पाचँ मनट म कलक ा प ँच जाएँ ।\" हा मद ने फर पछू ा, \" ज ात ब त बड़े-बड़े होते ह?\" मोह सन, \"एक-एक सर आसमान के बराबर होता है जी! जमीन पर खड़ा हो जाए तो उसका सर आसमान से जा लग,े मगर चाहे तो एक लोटे म घसु जाए।\" हा मद, \"लोग उ कै से खशु करते ह गे? कोई मुझे यह मंतर बता दे तो एक जन को खुश कर लँू।\" मोह सन, \"अब यह तो न जानता, ले कन चौधरी साहब के काबू म ब त से ज ात ह। कोई चीज चोरी हो जाए, चौधरी साहब उसका पता लगा दगे और चोर का नाम बता दगे। जमु राती का बछवा उस दन खो गया था। तीन दन हैरान ए, कह न मला, तब झख मारकर चौधरी के पास गए। चौधरी ने तुरंत बता दया, मवेशीखाने म है और वह मला।
ज ात आकर उ सारे जहान क खबर दे जाते ह।\" अब उसक समझ म आ गया क चौधरी के पास इतना धन है और उनका इतना स ान है। आगे चल।े यह पु लस लाइन है। यह सब कानस ट बल कवायद करते ह। रैटन! फाय फो! रात को बचे ारे घमू -घमू कर पहरा देते ह, नह तो चो रयाँ हो जाएँ । मोह सन ने तवाद कया, \"यह कानस ट बल पहरा देते ह? तभी तमु ब त जानते हो अजी हजरत, यह चोरी करते ह। शहर के जतने चोर-डाकू ह, सब इनके मुह े म जाकर ‘जागते रहो! जागते रहो!’ पकु ारते ह। तभी इन लोग के पास इतने पए आते ह। मेरे मामू एक थाने म कानस ट बल ह। सौ पया महीना पाते ह, ले कन पचास पए घर भजे ते ह। अ ाह कसम! मने एक बार पूछा था क मामू, आप इतने पए कहाँ से पाते ह? हँसकर कहने लगे-बटे ा, अ ाह देता है। फर आप ही बोल-े हम लोग चाह तो एक दन म लाख मार लाएँ । हम तो इतना ही लते े ह, जसम अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए।\" हा मद ने पछू ा, \"यह लोग चोरी करवाते ह, तो कोई इ पकड़ता नह ?\" मोह सन उसक नादानी पर दया दखाकर बोला, \"अरे पागल! इ कौन पकड़ेगा! पकड़ने वाले तो यह लोग खदु ह, ले कन अ ाह इ सजा भी खबू देता है। हराम का माल हराम म जाता है। थोड़े ही दन ए, मामू के घर म आग लग गई। सारी लईे -पूजँ ी जल गई। एक बरतन तक न बचा। कई दन पड़े के नीचे सोए, अ ाह कसम, पेड़ के नीचे! फर जाने कहाँ से एक सौ कज लाए तो बरतन-भाड़ँ े आए।\" हा मद, \"एक सौ तो पचास से ादा होते ह? कहाँ पचास, कहाँ एक सौ। पचास एक थलै ी भर होता है। सौ तो दो थै लय म भी न आएँ ?\" अब ब ी घनी होने लगी। ईदगाह जाने वाल क टो लयाँ नजर आने लग , एक से एक भड़क ले कपड़े पहने ए। कोई ताँगे पर सवार, कोई मोटर पर, सभी इ म बस,े सभी के दल म उमंग। ामीण का यह छोटा सा दल अपनी वप ता से बेखबर, संतोष और धैय म मगन चला जा रहा था। ब के लए नगर क सभी चीज अनोखी थ । जस चीज क ओर ताकत,े ताकते ही रह जाते और पीछे से हॉन क आवाज होने पर भी न चते त।े हा मद तो मोटर के नीचे जात-े जाते बचा। सहसा ईदगाह नजर आई। ऊपर इमली के घने वृ क छाया है, नीचे प ा फश है, जस पर जानमाज बछी ई ह और रोजदार क पं याँ एक के पीछे एक न जाने कहाँ तक चली गई ह, प जगह के नीचे तक, जहाँ जानमाज भी नह ह। नए आने वाले आकर पीछे क कतार म खड़े हो जाते ह, आगे जगह नह है। यहाँ कोई धन और पद नह देखता। इसलाम क नगाह म सब बराबर ह। इन ामीण ने भी वजू कया और पछली पं म खड़े हो गए। कतना संुदर सचं ालन है, कतनी सदंु र व ा! लाख सर एक साथ सजदे म झकु जाते ह और एक साथ खड़े हो जाते ह, कई बार यही या होती है, जसै े बजली क लाख ब याँ एक साथ दी ह और एक साथ बुझ जाएँ , और यही म चलता रहे। कतना अपूव था, जसक सामू हक याएँ व ार और अनेकता दय को ा,
गव और आ ानदं से भर देती थी, मानो ातृ का एक सू इन सम आ ाओं को एक लड़ी म परोए ए है। नमाज ख हो गई। लोग आपस म गले मल रहे ह। तब मठाई और खलौने क कान पर धावा होता है। ामीण का यह दल इस वषय म बालक से कम उ ाही नह है। यह देखो, हडोला है, एक पसै ा देकर चढ़ जाओ। कभी आसमान पर जाते ए मालमू होगे, कभी जमीन पर गरते ए। यह चरखी है, लकड़ी के हाथी, घोड़े, ऊँ ट छड़ म लटके ए ह। एक पैसा देकर बठै जाओ और प ीस च र का मजा लो। महमदू और मोह सन, नरू े और श ी इन घोड़ और ऊँ ट पर बठै ते ह। हा मद र खड़ा है। तीन ही पैसे तो उसके पास ह। अपने कोष का एक तहाई जरा सा च र खाने के लए नह दे सकता। सब चर खय से उतरते ह। अब खलौने लगे। उधर कान क कतार लगी ई ह। तरह- तरह के खलौने ह- सपाही और गजु रया, राज और वक , भ ी और धो बन और साधु। वाह! कतने संदु र खलौने ह, जैसे अब बोलना ही चाहते ह । महमदू सपाही लेता है, खाक वरदी और लाल पगड़ीवाला, कं धे पर बं क रखे ए, मालमू होता है, अभी कवायद कए चला आ रहा है। मोह सन को भ ी पसदं आया। कमर झकु ई है, ऊपर मशक रखे ए है। मशक का महुँ एक हाथ से पकड़े ए है। कतना स है, शायद कोई गीत गा रहा है। बस, मशक से पानी उडेल़ ना ही चाहता है। नरू े को वक ल से मे है। कै सी व ा है उसके मुख पर, काला चोगा, नीचे सफे द अचकन, अचकन के सामने क जबे म घड़ी, सनु हरी जंजीर, एक हाथ म कानून का पोथा लये ए। मालूम होता है, अभी कसी अदालत से जरह या बहस कए चला आ रहा है। यह सब दो-दो पसै े के खलौने ह। हा मद के पास कु ल तीन पैसे ह, इतने महँगे खलौने वह कै से ल?े खलौना कह हाथ से छू ट पड़े तो चरू -चरू हो जाए। जरा पानी पड़े तो सारा रंग धलु जाए। ऐसे खलौने लके र वह ा करेगा, कस काम के ! मोह सन कहता है, \"मरे ा भ ी रोज पानी दे जाएगा साझँ -सबरे े।\" महमूद कहता है, \"और मेरा सपाही घर का पहरा देगा। कोई चोर आएगा तो फौरन बं क से ढेर कर देगा।\" नरू े कहता है, \"और मरे ा वक ल खबू मकु दमा लड़ेगा।\" श ी कहता है, \"और मेरी धो बन रोज कपड़े धोएगी।\" हा मद खलौन क नदा करता है, \" म ी ही के तो ह, गरे तो चकनाचरू हो जाएँ ।\" ले कन ललचाई ई आँख से खलौन को देख रहा है और चाहता है क जरा देर के लए उ हाथ म ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते ह ले कन लड़के इतने ागी नह होते ह, वशेषकर जब अभी नया शौक है। हा मद ललचाता रह जाता है। खलौने के बाद मठाइयाँ आती ह। कसी ने रेव ड़याँ ली ह, कसी ने गुलाब जामनु , कसी
ने सोहन हलवा। मजे से खा रहे ह। हा मद बरादरी से पथृ क् है। अभागे के पास तीन पसै े ह। नह कु छ लेकर खाता? ललचाई आँख से सबक ओर देखता है। मोह सन कहता है, \"हा मद, रेवड़ी ले जा, कतनी खशु बदू ार ह!\" हा मद को सदं ेह आ, ये के वल ू र वनोद है, मोह सन इतना उदार नह है, ले कन यह जानकर भी वह उसके पास जाता है। मोह सन दोने से एक रेवड़ी नकालकर हा मद क ओर बढ़ाता है। हा मद हाथ फै लाता है। मोह सन रेवड़ी अपने मुँह म रख लते ा है। महमूद, नूरे और श ी खूब ता लयाँ बजा-बजाकर हँसते ह। हा मद ख सया जाता है। मोह सन, \"अ ा, अबक ज र दगे हा मद, अ ाह कसम, ले जा।\" हा मद, \"खे रहो। ा मरे े पास पैसे नह ह?\" श ी, \"तीन ही पसै े तो ह। तीन पैसे म ा- ा लोग?े \" महमूद, \"हमसे गुलाबजामनु ले जाओ हा मद। मोह सन बदमाश है।\" हा मद, \" मठाई कौन बड़ी नेमत है। कताब म इसक कतनी बुराइयाँ लखी ह।\" मोह सन, \"ले कन दल म कह रहे होगे क मले तो खा ल।ँू अपने पसै े नह नकालते?\" महमूद, \"खबू समझते ह इसक चालाक । जब हमारे सारे पैसे खच हो जाएँ गे, तो हम ललचा-ललचाकर खाएगा।\" मठाइय के बाद कु छ कान लोहे क चीज क लगी थ , कु छ गलट और कु छ नकली गहन क । लड़क के लए यहाँ कोई आकषण न था। वे सब आगे बढ़ जाते ह, हा मद लोहे क कान पर क जाता है। कई चमटे रखे ए थे। उसे खयाल आया, दादी के पास चमटा नह है। तवे से रो टयाँ उतारती है तो हाथ जल जाता है। अगर वह चमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वह कतना स ह गी! फर उनक उँग लयाँ कभी न जलगी। घर म एक काम क चीज हो जाएगी। खलौने से ा फायदा? थ म पसै े खराब होते ह। जरा देर ही तो खुशी होती है, फर तो खलौने को कोई आँख उठाकर नह देखता। यह तो घर प ँचत-े प ँचते टू ट-फू ट बराबर हो जाएँ ग।े चमटा कतने काम क चीज है। रो टयाँ तवे से उतार लो, चू म सक लो। कोई आग माँगने आए तो चटपट चू े से आग नकालकर उसे दे दो। अ ा बचे ारी को कहाँ फु रसत है क बाजार आएँ , और इतने पैसे ही कहाँ मलते ह? रोज हाथ जला लते ी ह। हा मद के साथी आगे बढ़ गए। सबील पर सबके सब शरबत पी रहे थे। देखो, सब कतने लालची ह। इतनी मठाइयाँ ल , मुझे कसी ने एक भी न दी। उस पर कहते ह, मरे े साथ खले ो, मेरा यह काम करो। अब अगर कसी ने कोई काम करने को कहा, तो पूछँ◌ूगा।
खाएँ मठाइया,ँ आप मँुह सड़ेगा, फोड़े-फंु सयाँ नकलगी, आप ही जबान चटोरी हो जाएगी। तब घर से पैसे चुराएँ गे और मार खाएँ ग।े कताब म झूठी बात थोड़े ही लखी ह। मरे ी जबान खराब होगी? अ ा चमटा देखते ही दौड़कर मरे े हाथ से ले लगी और कहगी, ‘मेरा ब ा अ ा के लए चमटा लाया है। कतना अ ा लड़का है।’ इन लोग के खलौने पर कौन इ आएँ देगा? बड़ क आएँ सीधे अ ाह के दरबार म प ँचती ह और तरु ंत सुनी जाती ह। म भी इनके मजाज स ँ? हम गरीब ही सही, कसी से कु छ मागँ ने तो नह जात।े आ खर अ ाजान कभी-न-कभी आएँ ग।े अ ा भी आएँ गी ही। फर इन लोग से पूछू ँगा, कतने खलौने लोग?े एक-एक को टोक रय खलौने ँगा और दखा ँगा क दो के साथ इस तरह का सलूक कया जाता है। यह नह क एक पसै े क रेव ड़याँ ल , तो चढ़ा- चढ़ाकर खाने लगे। सबके सब हँसगे क हा मद ने चमटा लया है। हँस मरे ी बला स!े उसने कानदार से पूछा, \"यह चमटा कतने का है?\" कानदार ने उसक ओर देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा, \"तु ारे काम का नह है जी!\" \" बकाऊ है क नह ?\" \" बकाऊ नह है? और यहाँ लाद लाए ह?\" \"तो बताते नह , कतने पसै े का है?\" \"छह पैसे लगग।े \" हा मद का दल बैठ गया। \"ठीक-ठीक पाँच पसै े लगग,े लने ा हो लो, नह चलते बनो।\" हा मद ने कलजे ा मजबतू करके कहा, \"तीन पसै े लोग?े \" यह कहता आ वह आगे बढ़ गया क कानदार क घुड़ कयाँ न सुन।े ले कन कानदार ने घुड़ कयाँ नह द , बलु ाकर चमटा दे दया। हा मद ने उसे इस तरह कं धे पर रखा, मानो बं क है और शान से अकड़ता आ सं गय के पास आया। जरा सुन, सबके सब ा- ा आलोचनाएँ करते ह। मोह सन ने हँसकर कहा, \"यह चमटा लाया पगल,े इसे ा करेगा?\" हा मद ने चमटे को जमीन पर पटकर कहा, \"जरा अपना भ ी जमीन पर गरा दो। सारी पस लयाँ चूर-चरू हो जाएँ गी बेचारे क ।\" महमूद बोला, \"तो यह चमटा कोई खलौना है?\" हा मद, \" खलौना नह है! अभी कं धे पर रखा, बं क हो गई। हाथ म ले लया, फक र का चमटा हो गया। चा ँ तो इससे मजीरे का काम ले सकता ँ। एक चमटा जमा ँ तो
तुम लोग के सारे खलौन क जान नकल जाए। तु ारे खलौने कतना ही जोर लगाएँ , मरे े चमटे का बाल भी बाँका नह कर सकते। मेरा बहा र शेर है चमटा।\" श ी ने खजँ री ली थी। भा वत होकर बोला, \"मेरी खँजरी से बदलोग?े दो आने क है।\" हा मद ने खँजरी क ओर उपे ा से देखा, \"मेरा चमटा चाहे तो तु ारी खँजरी का पटे फाड़ डाले। बस, एक चमड़े क झ ी लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी। जरा सा पानी लग जाए तो ख हो जाए। मेरा बहा र चमटा आग म, पानी म, आँधी म, तूफान म बराबर डटा खड़ा रहेगा।\" चमटे ने सभी को मो हत कर लया, अब पसै े कसके पास धरे ह? फर मेले से र नकल आए ह, नौ कब के बज गए, धपू तेज हो रही है। घर प ँचने क ज ी हो रही है। बाप से जद भी कर तो चमटा नह मल सकता। हा मद है बड़ा चालाक, इसी लए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे। अब बालक के दो दल हो गए ह। मोह सन, अहमद, श ी और नूरे एक तरफ ह, हा मद अके ला सरी तरफ। शा थ हो रहा है। श ी तो वधम हो गया, सरे प से जा मला, ले कन मोह सन, महमूद और नूरे भी हा मद से एक-एक, दो-दो साल बड़े होने पर भी हा मद के आघात से आतं कत हो उठे ह। उसके पास ाय का बल है और नी त क श । एक ओर म ी है, सरी ओर लोहा, जो इस व अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शरे आ जाए, मयाँ भ ी के छ े छू ट जाएँ , मयाँ सपाही म ी क बं क छोड़कर भाग, वक ल साहब क नानी मर जाए, चोगे म मँुह छपाकर जमीन पर लेट जाएँ । मगर यह चमटा, यह बहा र, यह मे- हद लपककर शेर क गरदन पर सवार हो जाएगा और उसक आँख नकाल लेगा। मोह सन ने एड़ी-चोटी का जोर लगाकर कहा, \"अ ा, पानी तो नह भर सकता?\" हा मद ने चमटे को सीधा खड़ा करके कहा, \" भ ी को एक डाँट लगाएगा, तो दौड़ा आ पानी लाकर उसके ार पर छड़कने लगगे ा।\" मोह सन परा हो गया, पर महमूद ने कु मकु प ँचाई, \"अगर बचा पकड़ जाए तो अदालत म बँधे-बधँ े फरेगा। तब तो वक ल साहब के परै पड़ेगा।\" हा मद इस बल तक का जवाब न दे सका। उसने पछू ा, \"हम पकड़ने कौन आएगा? नूरे ने अकड़कर कहा, \"यह सपाही बं कवाला।\" हा मद ने महँु चढ़ाकर कहा, \"यह बचे ारा हम बहा र मे- हद को पकड़ेगा! अ ा लाओ, अभी जरा कु ी हो जाए। इसक सूरत देखकर र से भागेगा। पकड़ेगा ा बचे ारा।\" मोह सन को एक नई चोट सूझ गई, \"तु ारे चमटे का मँुह रोज आग से जलेगा।\"
उसने समझा था क हा मद लाजवाब हो जाएगा, ले कन यह बात न ई। हा मद ने तुरंत जवाब दया, \"आग म बहा र ही कू दते ह जनाब, तु ारे यह वक ल, सपाही और भ ी ल डय क तरह घर म घुस जाएँ ग।े आग म वह काम है, जो यह म-े हद ही कर सकता है।\" महमूद ने एक जोर लगाया, \"वक ल साहब कु रसी-मजे पर बठै ग,े तु ारा चमटा तो बावरचीखाने म जमीन पर पड़ा रहने के सवा और ा कर सकता है?\" इस तक ने श ी और नूरे को भी राजी कर दया! कतने ठकाने क बात कही है प े ने! चमटा बावरचीखाने म पड़ा रहने के सवा और ा कर सकता है? हा मद को कोई फड़कता आ जवाब न सूझा, तो उसने धाधँ ली शु क , \"मेरा चमटा बावरचीखाने म नह रहेगा। वक ल साहब कु रसी पर बैठग,े तो जाकर उ जमीन पर पटक देगा और उनका कानून उनके पटे म डाल देगा।\" बात कु छ बनी नह , खाली गाली-गलौज थी। ले कन काननू को पेट म डालने वाली बात छा गई। ऐसी छा गई क तीन सरू मा मँहु ताकते रह गए, मानो कोई धले चा कानकौआ कसी गडं ेवाले कनकौए को काट गया हो। कानून मँहु से बाहर नकलने वाली चीज है। उसको पेट के अंदर डाल दया जाना बते कु सी बात होने पर भी कु छ नयापन रखती है। हा मद ने मैदान मार लया। उसका चमटा मे- हद है। अब इसम मोह सन, महमूद, नूरे, श ी कसी को भी आप नह हो सकती। वजते ा को हराने वाल से जो स ार मलना ाभा वक है, वह हा मद को भी मला। और ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खच कए, पर कोई काम क चीज न ले सके । हा मद ने तीन पसै े म रंग जमा लया। सच ही तो है, खलौन का ा भरोसा? टू ट-फू ट जाएँ ग।े हा मद का चमटा तो बना रहेगा बरस । सं ध क शत तय होने लग । मोह सन ने कहा, \"जरा अपना चमटा दो, हम भी देख। तुम हमारे भ ी लेकर देखो।\" महमूद और नूरे ने भी अपन-े अपने खलौने पेश कए। हा मद को इन शत को मानने म कोई आप न थी। चमटा बारी-बारी से सबके हाथ म गया, और उनके खलौने बारी-बारी से हा मद के हाथ म आए। कतने खबू सूरत खलौने ह। हा मद ने हारने वाल के आँसू प छे, \"म तु चढ़ा रहा था, सच! यह चमटा भला इन खलौन क ा बराबरी करेगा, मालमू होता है, अब बोल,े अब बोल।े \" ले कन मोह सन क पाट को इस दलासे से संतोष नह होता। चमटे का स ा खबू बठै गया था। चपका आ टकट अब पानी से नह छू ट रहा है।
मोह सन, \"ले कन इन खलौन के लए कोई हम आ तो न देगा?\" महमूद, \" आ को लए फरते हो, उलटे मार न पड़े। अ ा ज र कहगी क मले े म यही म ी के खलौने मले?\" हा मद को ीकार करना पड़ा क खलौन को देखकर कसी क माँ इतनी खशु न होगी, जतनी दादी चमटे को देखकर ह गी। तीन पसै ही म तो उसे सबकु छ करना था और उन पसै के इस उपाय पर पछतावे क बलकु ल ज रत न थी। फर अब तो चमटा म-े हद है और सभी खलौन का बादशाह है। रा े म महमूद को भूख लगी। उसके बाप ने के ले खाने को दए थे। महमदू ने के वल हा मद को साझी बनाया, उसके अ म मँहु ताकते रह गए। यह उस चमटे का साद था। ारह बजे गावँ म हलचल मच गई। मले वे ाले आ गए। मोह सन क छोटी बहन दौड़कर आई और भ ी उसके हाथ से छीन लया। मारे खुशी के जो उछली तो मयाँ भ ी नीचे आ रहे और गलोक सधार गए। इस पर भाई-ब हन म मार-पीट ई, दोन खूब रोए। उसक अ ा यह शोर सनु कर बगड़ी और दोन को ऊपर से दो-दो चाँटे और लगाए। मयाँ नूरे के वक ल का अंत उनके त ानकु ू ल इससे ादा गौरवमय आ। वक ल जमीन पर या ताक पर तो नह बठै सकता था, उसक मयादा का वचार तो करना ही होगा। दीवार म खँू टयाँ गाड़ी गई ं, उन पर लकड़ी का पटरा रखा गया। पटरे पर कागज का कालीन बछाया गया। वक ल साहब राजा भोज क भाँ त सहासन पर वराजे। नरू े ने उ पखं ा झलना शु कया। अदालत म खर क ऊ ट याँ और बजली के पंखे रहते ह, ा यहाँ मामलू ी पखं ा भी न हो! कानून क गरमी दमाग पर चढ़ जाएगी क नह ? बाँस का पखं ा आया और नूरे हवा करने लगा। मालमू नह , पखं े क हवा से या पखं े क चोट से वक ल साहब गलोक से मृ लु ोक म आ गए और उनका माटी-चोला माटी म मल गया! फर बड़े जोर-शोर से मातम आ और वक ल साहब क अ घूरे पर डाल दी गई। अब रहा महमूद का सपाही। उसे चटपट गावँ का पहरा देने का चाज मल गया, ले कन पु लस का सपाही कोई साधारण तो नह , जो अपने पैर चले। वह पालक पर चलगे ा। एक टोकरी आई, उसम कु छ लाल रंग के फटे-परु ाने चथड़े बछाए गए, जसम सपाही साहब आराम से लटे े। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने ार का च र लगाने लगे। उनके दोन छोटे भाई सपाही क तरह ‘सोने वालो जागते रहो’ पुकारते चलते ह। मगर रात तो अँधेरी होनी चा हए, नूरे को ठोकर लग जाती है। टोकरी उसके हाथ से छू टकर गर पड़ती है और मयाँ सपाही अपनी बं क लये जमीन पर आ जाते ह और उनक एक टाँग म वकार आ जाता है। महमूद को आज ात आ क वह अ ा डॉ र है, उसको ऐसा मरहम मल गया है जससे वह टू टी टाँग को आनन-फानन म जोड़ सकता है, के वल गलू र का ध चा हए। गलू र का ध आता है। टाँग जवाब दे देती है। श - या असफल ई तब उसक सरी
टागँ भी तोड़ दी जाती है। अब कम-स-े कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है। एक टागँ से तो न चल सकता था, न बैठ सकता था। अब वह सपाही सं ासी हो गया है, अपनी जगह पर बैठा-बठै ा पहरा देता है। कभी-कभी देवता भी बन जाता है। उसके सर का झालरदार साफा खुरच दया गया है। अब उसका जतना पांतर चाहो कर सकते हो। कभी-कभी तो उससे बाट का काम भी लया जाता है। अब मयाँ हा मद का हाल सु नए। अमीना उसक आवाज सुनते ही दौड़ी और उसे गोद म उठाकर ार करने लगी। सहसा उसके हाथ म चमटा देखकर वह च क । \"यह चमटा कहाँ था?\" \"मने मोल लया है।\" \"कै पसै े म?\" \"तीन पसै े दए।\" अमीना ने छाती पीट ली, \"यह कै सा बसे मझ लड़का है क दोपहर ई, कु छ खाया न पया। लाया ा, चमटा! सारे मेले म तझु े और कोई चीज न मली, जो यह लोहे का चमटा उठा लाया?\" हा मद ने अपराधी-भाव से कहा, \"तु ारी उँग लयाँ तवे से जल जाती थ , इस लए मने इसे लया।\" बु ढ़या का ोध तरु ंत हे म बदल गया, ेह भी वह नह , जो ग होता है और अपनी सारी कसक श म बखरे देता है। यह मूक हे था, खबू ठोस, रस और ाद से भरा आ। ब े म कतना ाग, कतना स ाव और कतना ववके है! सर को खलौने लेते और मठाई खाते देखकर इसका मन कतना ललचाया होगा! इतना ज इससे आ कै से? वहाँ भी इसे अपनी बु ढ़या दादी क याद बनी रही। अमीना का मन ग द हो गया। और अब एक बड़ी व च बात ई, हा मद के इस चमटे से भी व च ! ब े हा मद ने बढ़ू े हा मद का पाट खेला था। बु ढ़या अमीना बा लका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फै लाकर हा मद को आएँ देती जाती थी और आँसू क बड़ी-बड़ी बदूँ गराती जाती थी। हा मद इसका रह ा समझता!
पं डत अयो ानाथ का देहांत आ तो सबने कहा, \"ई र आदमी को ऐसी ही मौत दे।\" चार जवान बटे े थे, एक लड़क । चार लड़क के ववाह हो चुके थे, के वल लड़क ारँ ी थी। सपं भी काफ छोड़ी। एक प ा मकान, दो बगीच,े कई हजार के गहने और बीस हजार नगद। वधवा फू लमती को प त-शोक तो आ और कई दन तक वह बेहाल रही; ले कन जवान बेट को सामने देखकर उसे ढाँढ़स आ। चार लड़के एक-से-एक सशु ील, चार ब एँ एक-स-े एक बढ़कर आ ाका रणी। जब वह रात को लटे ती तो चार बारी-बारी से उसके पाँव दबात । वह ान करके उठती तो उसक साड़ी छाँटत । सारा घर उसके इशारे पर चलता था। बड़ा लड़का कामता एक द र म 50 पए पर नौकर था, छोटा उमानाथ डॉ री पास कर चुका था और कह औषधालय खोलने क फ म था, तीसरा दयानाथ बी-ए- थम म फे ल हो गया था और प काओं म लेख लखकर कु छ-न-कु छ कमा लते ा था, चौथा सीतानाथ चार म सबसे कु शा और होनहार था और अब क साल बी-ए- क तैयारी म लगा आ था। कसी लड़के म वह सन, वह छैलापन, वह लुटाऊपन न था, जो माता- पता को जलाता और कु ल-मयादा को डु बाता। फू लमती घर क माल कन थी, गोया क कुं जयाँ बड़ी ब के पास रहती थ । बु ढ़या म वह अ धकार- ेम न था, जो वृ जन को कटु और कलहशील बना दया करता है कतु उसक इ ा के बना कोई बालक मठाई तक न मँगा सकता था। सं ा हो गई थी। पं डत को मरे आज बारहवाँ दन था। कल तेरह है, भोज होगा। बरादरी के लोग नमं त ह गे। उसी क तैया रयाँ हो रही थ । फू लमती अपनी कोठरी म बठै ी देख रही थी क प दे ार बोरे म आटा लाकर रख रहे थे। घी के टीन आ रहे ह। शाक- भाजी के टोकरे, श र क बो रया,ँ दही के मटके चले आ रहे ह। महापा के लए दान क चीज लाई ग -बरतन, कपड़े, पलगं , बछापन, छात,े जूते, छ ड़याँ, लालटेन आ द, कतु फू लमती को कोई चीज नह दखाई गई। नयमानुसार ये सब सामान उसके पास आने चा हए थे। वह के व ु को देखती, उसे पसदं करती, उसक मा म कमी-बशे ी का फै सला करती, तब इन चीज को भंडारे म रखा जाता। उसे दखाने और उसक
राय लेने क ज रत नह समझी गई? अ ा! वह आटा तीन बोरी आया? उसने तो पाँच बोर के लए कहा था। घी भी पाँच ही कन र ह, उसने तो दस कन र मगँ वाए थ।े इसी तरह शाक-भाजी, श र, दही- ध आ द म भी कमी क गई होगी। कसने उसके म ह पे कया? जब उसने एक बात तय कर दी, तब कसे उसको घटाने-बढ़ाने का अ धकार है। आज चालीस वष से घर के के मामले म फू लमती क बात सवमा थी। उसने सौ कहा तो सौ खच कए गए, एक कहा तो एक! कसी ने मीन-मखे न क । यहाँ तक क प-ं अयो ानाथ भी उसक इ ा के व न कहते थे पर आज उसक आँख के सामने प से उसके क उपे ा क जा रही है। इसे वह कर ीकार कर सकती? कु छ देर तक तो वह ज कए बठै ी रही; पर अंत म न रहा गया। ाय -शासन उसका भाव हो गया था। वह ोध म भरी ई आई और कामतानाथ से बोली, \" ा आटा तीन बोरे ही लाए? मने तो पाचँ बोरे के लए कहा था और घी भी पाँच ही टन मगँ वाया! तु याद है, मने दस कन र कहा था? कफायत को म बरु ा नह समझती, ले कन जसने यह कु आँ खोदा, उसी क आ ा पानी को तरस,े यह कतनी ल ा क बात है!\" कामतानाथ ने मा-याचना न क , अपनी भूल ीकार न क , ल त भी नह आ। एक मनट तो व ोही भाव से खड़ा रहा, फर बोला, \"हम लोग क सलाह तीन ही बोर क ई और तीन बोरे के लए पाँच टन घी काफ था। इसी हसाब से और चीज भी कम कर दी गई ह।\" फू लमती उ होकर बोली, \" कसक राय से आटा कम कया गया है?\" \"हम लोग क राय से।\" \"तो मरे ी राय कोई चीज नह है?\" \"है नह ले कन अपना हा न-लाभ तो हम भी समझते ह।\" फू लमती ह -ब होकर उसका मुहँ ताकने लगी। इस वा का आशय उसक समझ म न आया। अपना हा न-लाभ! अपने घर म हा न-लाभ क ज ेदार वह आप है। सर को, चाहे वे उसके पेट के जनमे पु ही न ह , उसके काम म ह पे करने का ा अ धकार? यह ल डा तो इस ढठाई से जवाब दे रहा है मानो घर उसी का है, उसी ने मर-मरकर गृह ी जोड़ी है, म तो गरै ँ! जरा हेकड़ी तो देखो। उसने तमतमाते ए मुख से कहा, \"मरे े हा न-लाभ के ज दे ार तमु नह हो। मझु े इ यार है, जो उ चत समझूँ वह क ँ । अभी जाकर दो बोरे आटा और पाचँ टन घी और लाओ। आगे के लए खबरदार, जो कसी ने मरे ी बात काटी।\" अपने वचार से उसने काफ त ीह कर दी थी। शायद इतनी कठोरता अनाव क थी। उसे अपनी उ ता पर खेद आ। लड़के ही तो ह, समझे ह ग,े कु छ कफायत करनी
चा हए। उनसे इस लए न पछू ा होगा क अ ा तो खदु हरेक काम म कफायत कया करती ह। अगर इ मालूम होता क इस काम म म कफायत पसदं न क ँ गी, तो कभी इ मेरी उपे ा करने का साहस न होता। य प कामतानाथ अब भी उसी जगह खड़ा था और उसक भावभं गमा से ऐसा ात होता था क इस आ ा का पालन करने के लए वह ब त उ कु नह है, पर फू लमती न श्चं त होकर अपनी कोठरी म चली गई। इतनी त ीह पर भी कसी को उनक अव ा करने क साम हो सकती है, इसक संभावना का ान भी उसे न आया। पर - समय बीतने लगा, उस पर यह हक कत खलु ने लगी क इस घर म अब उसक वह है सयत नह रही, जो दस-बारह दन पहले थी। संबं धय के यहाँ से नवे ते म श र, मठाई, दही, अचार आ द आ रहे थे। बड़ी ब इन व ुओं को ा मनी-भाव से सभँ ाल-सभँ ालकर रख रही थी। कोई भी उससे पूछने नह आता। बरादरी के लोग भी जो कु छ पूछते ह, कामतानाथ से या बड़ी ब से। कामतानाथ कहाँ का बड़ा इंतजामकार है, रात- दन भंग पए पड़ा रहता है, कसी तरह रो-धोकर द र चला जाता है। उनम भी महीने म पं ह नाग से कम नह होते। वह तो कहो, साहब पं डतजी का लहाज करता है, नह अब तक कभी का नकाल देता और बड़ी ब जैसी फू हड़ औरत भला इन बात को ा समझगे ी? अपने कपड़े-ल े तक तो जतन से रख नह सकती, चली है गहृ ी चलाने। भद होगी और ा। सब मलकर कु ल क नाक कटवाएँ ग।े व पर कोई-न-कोई चीज कम हो जाएगी। इन काम के लए बड़ा अनभु व चा हए! कोई चीज तो इतनी ादा बन जाएगी क मारी-मारी फरेगी। कोई चीज इतनी कम बनगे ी क कसी प ल पर प ँचेगी, कसी पर नह । आ खर इन सब को हो ा गया है! अ ा, ब तजोरी खोल रही है? वह आज मरे ी आ ा के बना तजोरी खोलने वाली कौन होती है। कुं जी उसके पास है अव ; ले कन जब तक म पए न नकलवाऊँ , तजोरी नह खोलती; आज तो इस तरह खोल रही है मानो म ँ ही नह । यह मुझसे न बरदा होगा। वह झमककर उठी और ब के पास जाकर कठोर र म बोली, \" तजोरी खोलती हो ब , मने तो खोलने के लए नह कहा?\" बड़ी ब ने न ंकोच भाव म उ र दया, \"बाजार से सामान आया है, तो दाम न दया जाएगा?\" \"कौन चीज कस भाव से आई है और कतनी आई है, यह मझु े कु छ नह मालमू ! जब तक हसाब- कताब न हो जाए, पए कै से दए जाएँ ?\" \" हसाब- कताब सब हो गया है?\" \" कसने कया?\"
\"अब म ा जानूँ, कसने कया? जाकर मरद से पछू ो। मझु े मला, पए लाकर दे दो, पए लये जाती ँ।\" फू लमती खून का घूटँ पीकर रह गई। इस व बगड़ने का अवसर न था। घर म मेहमान ी-पु ष भरे ए थ।े अगर इस व उसने लड़क को डाँटा तो लोग यही कहगे क इनके घर म पं डतजी के मरते ही फू ट पड़ गई। दल पर प र रखकर फर अपनी कोठरी म चली आई। जब महे मान वदा हो जाएँ ग,े तब वह एक-एक क खबर लगे ी। तब देखगे ी, कौन उसके सामने आता है और ा कहता है? इनक सारी चौकड़ी भुला देगी। कतु कोठरी के एकांत म भी वह न त न बठै ी थी, सारी प र त को ग - से देख रही थी, कहाँ स ार का कौन सा नयम भगं होता है, कहाँ मयादाओं क उपे ा क जाती है। भोज आरंभ हो गया। सारी बरादरी एक साथ पंगत म बठा दी गई। आँगन म मु ल से दो सौ आदमी बठै सकते ह। ये पाचँ सौ आदमी इतनी सी जगह म कै से बैठ जाएँ ग?े ा आदमी के ऊपर आदमी बैठाए जाएँ गे? दो पगं त म लोग बठाए जाते तो ा बरु ाई हो जाती? यही तो होता क बारह बजे क जगह भोज दो बजे समा होता; मगर यहाँ तो सबको सोने क ज ी पड़ी ई है। कसी तरह यह बला सर से टले और चनै से सोएँ । लोग कतने सटकर बठै े ए ह क कसी को हलने क भी जगह नह । प ल एक-पर-एक रखे ए ह। पू रयाँ ठंडी हो ग , लोग गरम-गरम माँग रहे ह। मैदे क पू रयाँ ठंडी होकर चमड़ी हो जाती ह। इ कौन खाएगा? रसोइए को कढ़ाव पर से न जाने उठा लया गया। यही सब बात नाक काटने क ह। सहसा शोर मचा, तरका रय म नमक नह । बड़ी ज ी-ज ी नमक पीसने लगी। फू लमती ोध के मारे ह ठ चबा रही थी, पर इस अवसर पर मँुह न खोल सकती थी। नमक पसा और प ल पर डाला गया। इतने म फर शोर मचा, \"पानी गरम है, ठंडा पानी लाओ।\" ठंडे पानी का कोई बधं नह था, बरफ भी न मगँ ाई थी। आदमी बाजार दौड़ाया गया, मगर बाजार म इतनी रात गए बरफ कहा?ँ आदमी खाली हाथ लौट आया। महे मान को वही नल का पानी पीना पड़ा। फू लमती का बस चलता तो लड़क का मुहँ नोच लेती। ऐसी छीछालदे र उसके घर म कभी न ई थी। उस पर सब मा लक बनने के लए मरते ह! बरफ जैसी ज री चीज मगँ वाने क भी कसी को सु ध कहाँ से रहे, जब कसी को गप लड़ाने से फु रसत मले। महे मान अपने दल म ा कहगे क चले ह बरादरी को भोज देने और घर म बरफ तक नह । अ ा, फर यह हलचल मच गई! अरे, लोग पंगत से उठे जा रहे ह। ा मामला है? फू लमती उदासीन न रह सक । कोठरी से नकलकर बरामदे म आई और कामतानाथ से पूछा, \" ा बात हो गई ल ा? लोग उठे जा रहे ह?\" कामता ने कोई जवाब न दया, वहाँ से खसक गया। फू लमती झँुझलाकर रह गई। सहसा कहा रन मल गई। फू लमती ने उससे भी वही कया। मालमू आ, कसी के शोरबे म
मरी ई चु हया नकल आई। फू लमती च ल खत सी वह खड़ी रह गई। भीतर ऐसा उबाल उठा क दीवार से सर टकरा ले। अभाग,े भोज का बधं करने चले थ।े इस फू हड़पन क कोई हद है, कतने आद मय का धम स ानाश हो गया। फर पंगत न उठ जाए? आँख से देखकर अपना धम कौन गँवाएगा? आह! सारा कया-धरा म ी म मल गया! सकै ड़ पए पर पानी फर गया, बदनामी ई वह अलग। मेहमान उठ चुके थे। प ल पर खाना -का- पड़ा था। चार लड़के आँगन म ल त से खड़े थे। एक सरे को इलजाम दे रहा था। बड़ी ब अपनी देवरा नय पर बगड़ रही थी। देवरा नयाँ सारा दोष कु मुद के सर डालती थ । कु मुद खड़ी रो रही थी। उसी व फू लमती झ ाई ह आकर बोली, \"महँु पे का लख लगी क नह ? या अभी कु छ कसर बाक है? डू ब मरो सब-के -सब जाकर चु ू भर पानी म। शहर म कह मँुह दखाने लायक भी नह रहे!\" कसी लड़के ने जवाब न दया। फू लमती और भी चंड होकर बोली, \"तमु लोग को ा? कसी को शरम-हया तो है नह । आ ा तो उनक रो पड़ी है, ज ने अपनी जदगी घर क मरजाद बनाने म ख कर दी। उनक प व आ ा को तुमने कलं कत कया? सारे म थ-ू थू हो रही है। अब कोई तु ारे ार पर पेशाब करने तो आएगा नह ।\" कामतानाथ कु छ देर तो चपु चाप खड़ा सनु ता रहा, आ खर झुँझलाकर बोला, \"अ ा, अब चपु रहो अ ा। भलू ई, हम सब मानते ह, बड़ी भयकं र भूल ई ले कन ा अब उसके लए घर के ा णय को हलाल कर डालोगी? सभी से भूल होती ह। आदमी पछताकर रह जाता है। कसी क जान तो नह मारी जाती?\" बड़ी ब ने अपनी सफाई दी, \"हम ा जानते थे क बीबी (कु मुद) से इतना सा काम भी न होगा। इ चा हए था क देखकर तरकारी कढ़ाव म डालत । टोकरी उठाकर कढ़ाव म डाल दी। इसम हमारा ा दोष?\" कामतानाथ ने प ी को डाटँ ा, \"इसम न कु मदु का कसूर है न तु ारा, न मेरा। संयोग क बात है। बदनामी भाग म लखी थी, वह ई। इतने बड़े भोज म एक-एक मु ी तरकारी कढ़ाव म नह डाली जाती, टोकरे-के -टोकरे उड़ेल दए जाते ह। कभी-कभी ऐसी घटना हो ही जाती है, पर इसम कै सी जग-हँसाई और कै सी नाक-कटाई। तुम खामखाह जले पर नमक छड़कती हो।\" फू लमती ने दातँ पीसकर कहा, \"शरमाते तो नह , उलटे बेहयाई क बात करते हो।\" कामता ने नःसकं ोच होकर कहा, \"शरमाऊँ , कसी क चोरी क है। चीनी म च टे और आटे म घुन, यह नह देखे जात।े पहले हमारी नगाह न पड़ी, बस यह बात बगड़ गई। नह , चुपके से चु हया नकालकर फक देते। कसी को खबर तक न होती।\"
फू लमती ने च कत होकर कहा, \" ा कहता है, मरी चु हया खलाकर सबका धम बगाड़ देता?\" कामता हँसकर बोला, \" ा पुराने जमाने क बात करती हो, अ ा? इन बात से धम नह जाता। यह धमा ा लोग जो प ल पर उठ गए ह, इनम ऐसा कौन है जो भेड़- बकरी का मासं न खाता हो? तालाब के कछु ए और घ घे तक तो कसी से बचते नह । जरा सी चु हया म ा रखा था?\" फू लमती को ऐसा तीत आ क अब लय आने म ब त देर नह है। जब पढ़े- लखे आद मय के मन म ऐसे अधा मक भाव आने लग, तो फर धम क भगवान् ही र ा करे। वह अपना मुँह लेकर चली गई। दो महीने गजु र गए ह। रात का समय है। चार भाई दन के काम से छु ी पाकर कमरे म बठै गप-शप कर रहे ह। बड़ी ब भी ष ं म शरीक है। कु मदु के ववाह का छड़ा आ है। कामतानाथ ने मसनद पर टेक लगाते ए कहा, \"दादा क बात दादा के साथ गई। मरु ारी पं डत व ान भी ह और कु लीन भी ह ग।े ले कन जो आदमी अपनी व ा और कु लीनता भी कु लहनता को पय पर बेचे, वह नीच है, ऐसे नीच आदमी के लड़के से हम कु मुद का ववाह सत म भी न करगे, पाचँ हजार दहेज तो र क बात है। उसे बताओ धता और कसी सरे वर क तलाश करो। हमारे पास कु ल बीस हजार ही तो ह। एक-एक ह े म पाचँ -पाचँ हजार आते ह। पाचँ हजार दहेज म दे द, तो और पाँच हजार नेग- ोछावर, बाज-े गाजे म उड़ा द, तो फर हमारी तो ब धया ही बैठ जाएगी।\"
दयानाथ एक समाचार-प देख रहे थे। आँख से ऐनक उतारते ए बोल,े \"मेरा वचार भी एक प नकालने का है। से और प म कम-स-े कम दस हजार का कै पटल चा हए। पाँच हजार मेरे रहगे, तो कोई-न-कोई साझेदार पाँच हजार का मल जाएगा। प म लेख लखकर मेरा नवाह नह हो सकता।\" कामतानाथ ने सर हलाते ए कहा, \"अजी, राम भजो, सत म कोई लेख छापता नह , पए कौन दए देता है।\" दयानाथ ने तवाद कया, \"नह , यह बात तो नह है। म तो कह भी बना पेशगी परु ार लए नह लखता।\" कामता ने जैसे अपने श वापस लय,े \"तु ारी बात म नह कहता भाई! तुम तो थोड़ा- ब त मार लेते हो ले कन सबको तो नह मलता।\" बड़ी ब ने ा से कहा, \"क ा भा वान हो तो द र घर म सुखी रह सकती है। अभागी हो तो राजा के घर म भी रोएगी। यह सब नसीब का खेल है।\" कामतानाथ ने ी क ओर शंसा भाव से देखा, \" फर इसी साल हम सीता का ववाह भी करना है।\" सीतानाथ सबसे छोटा था। सर झकु ाए भाइय क ाथ भरी बात सनु -सुनकर कु छ कहने के लए उतावला हो रहा था। अपना नाम सनु ते ही बोला, \"मेरे ववाह क आप लोग चता न कर। म जब तक कसी धधं े म न लग जाऊँ गा, ववाह का नाम भी न लूँगा, और सच पू छए तो म ववाह करना नह चाहता। देश को इस समय बालक क ज रत नह , काम करने वाल क ज रत है। मेरे ह े के पए आप कु मुद के ववाह म खच कर द। सारी बात तय हो जाने के बाद यह उ चत नह क पं डत मुरारीलाल से संबंध तोड़ लया जाए।\" उमा ने ती र म कहा, \"दस हजार कहाँ से आएँ ग?े \" सीता ने डरते ए कहा, \"म तो अपने ह े के पए देने को कहता ँ।\" \"और शेष?\" मरु ारीलाल से कहा जाए क दहेज म कु छ कमी कर द। वह इतने ाथाध नह ह क इस अवसर पर कु छ बल खाने को तयै ार न हो जाएँ अगर वह तीन हजार म संतु हो जाएँ , तो पाचँ हजार म ववाह हो सकता है।\" उमा ने कामतानाथ से कहा, \"सनु ते ह भाईसाहब, इनक बात?\" दयानाथ बोल उठे, \"तो इसम आप लोग का ा नुकसान है? यह अपने पए दे रहे ह, खच क जए। मरु ारी पं डत से हमारा कोई बैर नह है। मझु े तो इस बात क खशु ी हो रही है,
भला हमम कोई तो ाग करने यो है। इ त ाल पए क ज रत नह है। सरकार से वजीफा पाते ही ह। पास होने पर कह -न-कह जगह मल जाएगी। हम लोग क हालत तो ऐसी नह ।\" कामतानाथ ने रद शता का प रचय दया, \"नुकसान क एक ही कही। इसम से एक को क हो तो ा और लोग बठै े देखगे? यह अभी लड़के ह, इ ा मालूम, समय पर एक पया एक लाख का काम करता है? कौेन जानता है, कल इ वलायत जाकर पढ़ने के लए सरकारी वजीफा मल जाए, या स वल स वस म आ जाएँ । उस व सफर क तैया रय म चार-पाँच हजार लग जाएँ गे। तब कसके सामने हाथ फै लाए फरग?े म यह नह चाहता क दहेज के पीछे इनक जदगी न हो जाए।\" इस तक ने सीतानाथ को भी तोड़ लया। सकु चाता आ बोला, \"हा,ँ य द ऐसा आ तो बेशक मझु े पए क ज रत होगी।\" \" ऐसा होना असंभव है?\" \"असभं व तो म नह समझता, ले कन क ठन अव है। वजीफे उ मलते ह, जसके पास सफा रश होती ह, मझु े कौन पछू ता है?\" \"कभी-कभी सफा रश धरी रह जाती ह और बना सफा रश वाले बाजी मार ले जाते ह।\" \"तो आप जैसा उ चत समझ। यहाँ तक मंजरू है क वलायत न जाऊँ , पर कु मुद अ े घर जाए।\" कामतानाथ ने न ा भाव से कहा, \"अ ा घर दहेज देने से नह मलता भयै ा। जैसा तु ारी भाभी ने कहा, यह नसीब का खले है। म तो चाहता ँ क मरु ारीलाल को जवाब दे दया जाए और और कोई ऐसा वर खोजा जाए, जो थोड़े म राजी हो जाए। इस ववाह म म एक हजार से ादा खच नह कर सकता। पं डत दीनदयाल कै से ह?\" उमा ने स होकर कहा, \"ब त अ े। एम-ए-, बी-ए- न सही, जजमानी से आमदनी अ ी है।\" दयानाथ ने आप क , \"अ ा से भी तो पूछ लेना चा हए।\" कामतानाथ को इसक कोई ज रत न महसूस ई। बोले, \"उनक तो जैसे बु ही हो गई है। वही पुराने युग क बात। मुरारीलाल के नाम पर उधार खाए बठै ी ह, यह नह समझत क वह जमाना नह रहा। उनको तो बस कु मदु मुरारी पं डत के घर जाए, चाहे हम लोग तबाह हो जाएँ ।\" उमा ने शकं ा उप त क , \"अ ा अपने सब गहने कु मदु को दे दगी, देख ली जएगा।\" कामतानाथ का ाथ नी त से व ोह न कर सका। बोले, \"गहन पर उनका पूरा अ धकार
है। यह उनका ी-धन है, जसे चाह दे सकती ह।\" उमा ने कहा, \" ी-धन है तो ा वह उसे लटु ा दगी। आ खर वह भी तो दादा क ही कमाई है।\" \" कसी क कमाई हो। ी-धन पर उनका अ धकार है।\" \"यह कानूनी गोरखधंधे ह। बीस हजार म तो चार ह ेदार ह और दस हजार के गहने अ ा के पास रह जाएँ । देख लने ा, इ के बल पर वह भी कु मुद का ववाह मरु ारी पं डत के घर करगी।\" उमानाथ इतनी बड़ी रकम को इतनी आसानी से नह छोड़ सकता। वह कपट-नी त म कु शल है। कोई कौशल रचकर माता से सारे गहने ले लगे ा। उस व तक कु मदु के ववाह क चचा करके फू लमती को भड़काना उ चत नह । कामतानाथ ने सर हलाकर कहा, \"भई, म इन चाल को पसदं नह करता।\" उमानाथ ने ख सयाकर कहा, \"गहने दस हजार से कम के न ह गे।\" कामतानाथ ने अ वच लत र म कहा, \" कतने ही के ह , म अनी त म हाथ नह डालना चाहता।\" \"तो आप अलग बै ठए। हा,ँ बीच म भाजँ ी न म रएगा।\" \"और तमु सीता?\" \"म भी अलग र ँगा।\" ले कन जब दयानाथ से यही कया गया, तो वह उमानाथ का सहयोग करने को तयै ार हो गया। दस हजार म ढाई हजार तो उसके ह गे ही। इतनी बड़ी रकम के लए य द कु छ कौशल भी करना पड़े तो है। फू लमती रात को भोजन करके लेटी थ क उमा और दया उसके पास जाकर बैठ गए। दोन ऐसा मँुह बनाए ए थे, मानो कोई भारी वप आ पड़ी है। फू लमती ने सशंक होकर पछू ा, \"तुम दोन घबराए ए मालूम होते हो।\" उमा ने सर खुजलाते ए कहा, \"समाचार-प म लेख लखना बड़े जो खम का काम है अ ा, कतना ही बचकर लखो, ले कन कह -न-कह पकड़ हो ही जाती है। दयानाथ ने एक लेख लखा था। उस पर पाचँ हजार क जमानत मागँ ी गई है! अगर कल तक जमानत न जमा क गई, तो गर ार हो जाएँ गे और दस साल क सजा ठु क जाएगी।\" फू लमती ने सर पीटकर कहा, \"तो ऐसी बात लखते हो बेटा, जानते नह हो,
आजकल हमारे अ दन आए ए ह। जमानत कसी तरह टल नह सकती?\" दयानाथ ने अपराधी भाव से उ र दया, \"मने तो अ ा ऐसी कोई बात नह लखी थी; ले कन क त को ा क ँ ? हा कम जला इतना कड़ा है क जरा भी रयायत नह करता। मने जतनी दौड़-धूप हो सकती थी, वह सब कर ली।\" \"तो तुमने कामता से पए का बधं करने को नह कहा?\" उमा ने मुँह बनाया, \"उनका भाव तो तुम जानती हो अ ा, उ पए ाण से ारे ह। उ चाहे काला पानी हो जाए, वह एक पाई न दग।े \" दयानाथ ने समथन कया, \"मने तो उनसे इसका ज ही नह कया।\" फू लमती ने चारपाई से उठते ए कहा, \"चलो, म कहती ँ, देगा कै से नह ? पए इसी दन के लए होते ह क गाड़कर रखने के लए?\" उमानाथ ने माता को रोककर कहा, \"नह अ ा, उनसे कु छ न कहो। पए तो न दगे, घर म रहने भी न दगे उ े, और हाय-हाय मचाएँ गे। उनको अपनी नौकरी क खै रयत मनानी है, इ घर म रहने न दगे, अफसर म जाकर खबर दे द, तो आ य नह ।\" फू लमती ने लाचार होकर कहा, \"तो फर जमानत का ा बधं करोग?े मरे े पास तो कु छ नह है। हा,ँ मरे े गहने ह, इ ले जाओ, कह गरवी रखकर जमानत दे दो और आज से कान पकड़ो क कसी प म एक श भी न लखोगे।\" दयानाथ कान पर हाथ रखकर बोला, \"यह तो नह हो सकता अ ा, क तु ारे जवे र लके र म अपनी जान बचाऊँ । दस-पाँच साल क कै द ही तो होगी, झेल लूँगा। यह बैठा- बैठा ा कर रहा ँ?\" फू लमती छाती पीटते ए बोली, \"कै सी बात मुँह से नकालते हो बेटा, मरे े जीत-े जी तु कौन गर ार कर सकता है? उसका महुँ झुलस ँगी। गहने इसी दन के लए ह या और कसी दन के लए। जब तु न रहोग,े तो गहने लेकर ा आग म झ कूँ गी?\" उसने पटारी लाकर उसके सामने रख दी। दया ने उमा क ओर जसै े फ रयाद क आँख से देखा, और बोला, \"आपक ा राय है भाईसाहब? इसी मारे म कहता था, अ ा को बताने क ज रत नह । जेल ही हो जाती या और कु छ।\" उमा ने जैसे सफा रश करते ए कहा, \"यह कै से हो सकता था क इतनी बड़ी वारदात हो जाती और अ ा को खबर न होती। मुझसे यह नह हो सकता था क सुनकर पेट म डाल लते ा; मगर अब करना ा चा हए; यह म खदु नणय नह कर सकता। न तो यही अ ा लगता है क तुम जले जाओ और न यही अ ा लगता है क अ ा के गहने रखे जाएँ ।\"
फू लमती ने थत कं ठ से पूछा, \" ा तमु समझते हो, मझु े गहने तमु से ादा ारे ह। म तो अपने ाण तक तु ारे ऊपर ोछावर कर ँ, गहन क बसात ही ा है?\" दया ने ढ़ता से कहा, \"अ ा, तु ारे गहने तो न लँूगा, चाहे मुझ पर कु छ ही न आ पड़े। जब आज तक तु ारी कु छ सवे ा न कर सका, तो कस मुँह से तु ारे गहने उठा ले जाऊँ । मझु जैसे कपूत को तो तु ारी कोख से ज ही न लने ा चा हए था। सदा तु क देता रहा।\" फू लमती ने भी उतनी ढ़ता से कहा, \"तमु अगर य न लोग,े तो म खदु जाकर इ गरवी रख ँगी और हा कम जला के पास जाकर जमानत कर आऊँ गी। अगर इ ा हो तो यह परी ा भी ले लो। आँख बंद हो जाने के बाद ा होगा, भगवान् जाने, ले कन जब तक जीती ँ, कोई तु ारी ओर तरछी आँख से देख नह सकता।\" उमानाथ ने मानो माता पर अहसान रखकर कहा, \"अब तो हमारे लए कोई रा ा नह रहा, दयानाथ! ा हरज है, ले लो, मगर याद रखो, ही हाथ म पए आ जाएँ , गहने छु ड़ाने पड़गे। सच कहते ह, मातृ दीघ तप ा है। माता के सवाय इतना ेह और कौन कर सकता है। हम बडे़ अभागे ह क माता के त जतनी ा रखनी चा हए, उसका शताशं नह रखत।े \" दोन ने जैसे बड़े धम-संकट म पड़कर गहन क पटारी सँभाली और चलते बने। माता वा भरी आँख से उनक ओर देख रही थी और उसक सपं णू आ ा का आशीवाद जसै े उ अपनी गोद म समटे लेने के लए ाकु ल हो रहा था। आज कई महीने के बाद उनके भ मात-ृ दय को अपना सव अपण करके जसै े आनंद क वभू त मली। उसक ा मनी-क ना इसी ाग के लए, इसी आ -समपण के लए जसै े कोई माग ढूँढ़ती रहती थी। अ धकार या लोभ या ममता क वहाँ गंध तक न थी। ाग ही उसका अ धकार है। आज अपना खोया आ अ धकार पाकर, अपनी सरजी ई तमा पर अपने ाण क भट करके वह नहाल हो गई। तीन महीने और गजु र गए। माँ के गहन पर हाथ साफ करके चार भाई उसक दलजोई करने लगे थे। अपनी य को भी समझाते रहते थे क उसका दल न खाएँ । अगर थोड़े श ाचार से उसक आ ा को शां त मलती है, तो इसम ा हा न है। चार करते अपने मन क पर माता से सलाह ले लेते, या ऐसा जाल फै लाते क वह सरला उनक बात म आ जाती और हरेक काम म सहमत हो जाती। बाग का बचे ना उसे ब त बुरा लगता था, ले कन चार ने ऐसी माया रची क वह उसे बचे ने पर राजी हो गई, कतु कु मदु के ववाह के वषय म मतै न हो सका। माँ पं- मुरारीलाल पर जमी ई थी, लड़के दीनदयाल पर अड़े ए थ।े एक दन आपस म कलह हो गई। फू लमती ने कहा, \"मा-ँ बाप क कमाई म बेटी का ह ा भी है। तु सोलह हजार का बाग मला, प ीस हजार का एक मकान। बीस हजार नगद ह। ा पाचँ हजार भी कु मदु का ह ा नह है?\"
कामता ने न ता से कहा, \"अ ा, कु मदु आपक लड़क है तो हमारी ब हन है। आप दो- चार साल म ान कर जाएँ गी, पर हमारा और उसका ब त दन तक सबं धं रहेगा। तब यथाश कोई ऐसी बात न करगे, जससे उसका अमगं ल हो, ले कन ह े क बात कहती हो तो कु मुद का ह ा कु छ नह । दादा जी वत थे तब और बात थी। वह उसके ववाह म जतना चाहते खच करत,े कोई उनका हाथ न पकड़ सकता था, ले कन अब तो हम एक-एक पैसे क कफायत करनी पड़ेगी, जो काम एक हजार म हो जाए, उसके लए पाँच हजार खच करना कहाँ क बु मानी है।\" उमानाथ ने सधु ारा, \"पाँच हजार दस हजार क हए!\" कामता ने भव सकोड़कर कहा, \"नह , म पाचँ हजार ही क ँगा। एक ववाह म पाचँ हजार खच करने क है सयत नह ह।\" फू लमती ने जद पकड़कर कहा, \" ववाह तो मरु ारीलाल के पु से ही होगा, चाहे पाचँ हजार खच ह , चाहे दस हजार। मेरे प त क कमाई है। मने मर-मरकर जोड़ा, अपनी इ ा से खच क ँ गी। तु ने मरे ी कोख से नह ज लया है, कु मुद भी उसी कोख से आई है। मेरी आँख म तमु सब बराबर हो, म कसी से कु छ मागँ ती नह । तुम बठै े तमाशा देखो, म सबकु छ कर लगँू ी, बीस हजार कु मुद का है।\" कामतानाथ को अब कड़वे स क शरण लेने के सवा और कोई माग न रहा। बोला, \"अ ा, तुम बरबस बात बढ़ाती हो। जन पय को तुम अपना समझती हो, वह तु ारे नह ह, हमारे ह। तमु हमारी अनमु त के बना उसम से कु छ नह खच कर सकती!\" फू लमती को जसै े सप ने डस लया, \" ा कहा! फर तो कहना। म अपने ही संचे पए अपनी इ ा से खच नह कर सकती?\" \"वह पए तु ारे नह रहे, हमारे हो गए।\" \"तु ारे ह गे, ले कन मेरे मरने के पीछे।\" \"नह , दादा के मरते ही हमारे हो गए।\" उमानाथ ने बहे याई से कहा, \"अ ा काननू -कायदा तो नह जानती, नाहक उलझती ह।\" फू लमती ोध- व ल होकर बोली, \"भाड़ म जाए तु ारा कानून। म ऐसे कानून को नह मानती। तु ारे दादा ऐसे बड़े ध ासठे न थे। मने ही पेट और तन काटकर यह गृह ी जोड़ी है, नह आज बठै ने को छाँह न मलती! मेरे जीते-जी तमु मेरे पए नह छू सकते। मने तीन भाइय के ववाह म दस-दस हजार खच कए ह। वही म कु मदु के ववाह म भी खच क ँ गी।\" कामतानाथ भी गरम पड़ा, \"आपको कु छ भी खच करने का अ धकार नह है।\" उमानाथ ने बडे़ भाई को डाँटा, \"आप खाम ाह अ ा के महँु लगते ह। भाईसाहब! मुरारीलाल को प लख दी जए क तु ारे यहाँ कु मदु का ववाह न होगा, बस छु ी ई। यह कायदा- काननू तो जानती नह , थ क बहस करती ह।\"
फू लमती ने संय मत र म कहा, \"अ ा, ा कानून है, जरा म भी सनु ।ँू \" उमा ने नरीह भाव से कहा, \"कानून यही है क बाप के मरने के बाद जायदाद बटे क हो जाती है, माँ का हक के वल रोटी-कपड़े का है?\" फू लमती ने तड़पकर पछू ा, \" कसने यह काननू बनाया है।\" उमा ने शांत- र र म बोला, \"हमारे षय ने, महाराज मनु न,े और कसन।े \" फू लमती एक ण अवाक् रहकर आहत कं ठ से बोली, \"तो इस घर म म तु ारे टु कड़ पर पड़ी ई ँ।\" उमानाथ ने ायाधीश क नममता से कहा, \"तुम जैसे समझो।\" फू लमती क सपं ूण आ ा मानो इस व पात से ची ार करने लगी। उसके मुख से जलती ई चगा रय क भाँ त ये श नकल पड़े, \"मने घर बनवाया, मने संप जोड़ी, मने तु ज दया, पाला और आज म इस घर म गैर ँ? मनु का यही कानून है और तुम उसी काननू पर चलना चाहते हो? अ ी बात है। अपना घर- ार लो। मुझे तु ारी आ ता बनकर रहना ीकार नह ! इससे कह अ ा है क मर जाऊँ । वाह रे अंधरे ! मने पड़े लगाया और म ही उसक छाँव म खड़ी नह हो सकती; अगर यही कानून है, तो इसम आग लग जाए।\" चार यवु क पर माता के इस ोध और आतकं का कोई असर न आ। कानून का फौलादी कवच र ा कर रहा था। इन काँट का उन पर ा असर हो सकता था? जरा देर म फू लमती उठकर चली गई। आज जीवन म पहली बार उसका वा -भ मातृ अ भशाप बनकर उसे ध ारने लगा। जस मातृ को उसने जीवन क वभू त समझा था, जसके चरण पर वह सदैव अपनी सम अ भलाषाओं और कामनाओं को अ पत करके अपने को ध मानती थी, वही मातृ आज उसे अ कुं ड सा जान पड़ा, जसम उसका जीवन जलकर भ हो रहा था। सं ा हो गई थी। ार पर नीम का वृ सर झुकाए न खड़ा था, मानो ससं ार क ग त पर ु हो रहा हो। अ ाचल क ओर काश और जीवन का देवता फू लमती के मातृ क ही भाँ त अपनी चता म जल रहा था। फू लमती अपने कमरे म जाकर लटे ी, तो उसे मालमू आ, उसक कमर टू ट गई है। प त के मरते ही लड़के उसके श ु हो जाएँ ग,े उसको म भी मालूम न था। जन लड़क को उसने दय-र पला- पलाकर पाला, वही आज उसके दय पर य आघात कर रहे ह। अब वह घर उसे काँट क सेज लग रहा था। जहाँ उसक कु छ क नह , कु छ गनती नह , वहाँ अनाथ क भाँ त पड़ी रो टयाँ खाए, यह उसक अ भमानी कृ त के लए अस था।
पर उपाय ही ा था? वह लड़क से अलग होकर रहे भी तो नाक कसक कटेगी! ससं ार उसे थकू े तो ा, और लड़क को थूके तो ा, बदनामी तो उसी क है। नया यही तो कहेगी क चार जवान बेट के होते बु ढ़या अलग पड़ी ई मजूरी करके पटे पाल रही है। ज उसने हमशे ा नीच समझा, वही उस पर हँसग।े नह , वह अपमान इस अनादर से कह ादा दय वदारक था। अब अपना और घर का परदा ढका रखने म ही कु शल है। हा,ँ अब उसे अपने बेट क बात और लात गरै क बात और लात क अपे ा फर भी गनीमत है। वह बड़ी देर तक मँहु ढापँ े अपनी दशा पर रोती रही। सारी रात इसी आ वेदना म कट गई। शरद का भात डरता-डरता ऊषा क गोद से नकला, जैसे कोई कै दी छपकर जले से भाग आया हो। फू लमती अपने नयम के व आज तड़के ही उठी, रात भर म उसका मान सक प रवतन हो चकु ा था। सारा घर सो रहा था और वह आँगन म झाड़ू लगा रही थी। रात क ओस म भीगी ई प जमीन नगं े परै से काटँ क तरह चभु रही थी। पं डतजी उसे कभी इतने सवेरे उठने न देते थे। शीत उसके लए ब त हा नकारक थी, पर अब वह दन नह । कृ त को भी समय के साथ बदल देने का य कर रही थी। झाड़ू r से फु रसत पाकर उसने आग जलाई और चावल-दाल क कं क ड़याँ चुनने लगी। कु छ देर म लड़के जाग,े ब एँ उठ । सभी ने बु ढ़या को सद से सकु ड़े ए काम करते देखा, पर कसी ने यह न कहा क अ ा, हलकान होती हो? शायद सब-के -सब बु ढ़या के इस मान- मदन पर स थे। आज से फू लमती का यही नयम हो गया क जी-तोड़कर घर का काम करना और अंतरंग नी त से अलग रहना। उसके मुख पर जो एक आ गौरव झलकता रहता था, उसक जगह अब गहरी वदे ना छाई ई नजर आती थी। जहाँ बजली जलती थी, वहाँ अब तले का दीया टम टमा रहा था, जसे बुझा देने के लए हवा का एक हलका सा झ का काफ है। मरु ालीलाल को इ ारी प लखने क बात प हो चुक थी। सरे दन प लख दया गया। दीनदयाल से कु मदु का ववाह न त हो गया, दीनदयाल क उ चालीस के कु छ अ धक थी, मयादा म भी कु छ हेठे थे, पर रोटी-दाल से खुश थ।े बना कसी ठहराव के ववाह करने पर राजी हो गए। त थ नयत ई, बारात आई, ववाह आ और कु मदु वदा कर दी गई। फू लमती के दल पर ा गुजर रही थी, इसे कौन जान सकता है पर चार भाई ब त स थे, मानो उनके दय का काँटा नकल गया हो। ऊँ चे कु ल क क ा मँुह कै से खोलती। ह र-इ ा बेकस का अं तम अवलबं है। घरवाल ने जससे ववाह कर दया, उसम हजार ऐब ह तो भी उसका उपा , उसका ामी है। तरोध उसक क ना से परे था। फू लमती ने कसी काम म दखल न दया। कु मुद को ा दया गया, महे मान का कै सा स ार कया गया, कसके यहाँ से नेवते म ा आया, कसी बात से भी उसे सरोकार न था। उससे कोई सलाह भी ली गई तो यही कहा, \"बटे ा, तुम लोग जो करते हो, अ ा ही करते हो, मझु से ा पछू ते हो।\"
जब कु मुद के लए ार पर डोली आ गई और कु मुद माँ के गले लपटकर रोने लगी तो वह बटे ी को अपनी कोठरी म ले गई और जो कु छ सौ-पचास पए और दो-चार मामूली गहने उसके पास बच रहे थे, बटे ी के आँचल म डालकर बोली, \"बेटी, मेरी तो मन क मन म रह गई नह ा आज तु ारा ववाह इस तरह होता और तुम इस तरह वदा क जात ।\" आज तक फू लमती ने अपने गहन क बात कसी से न कही थी। लड़क ने उसके साथ जो कपट- वहार कया था, इसे चाहे वह अब तक न समझी हो, ले कन इतना जानती थी क गहने फर न मलगे और मनोमा ल बढ़ने के सवा कु छ हाथ न लगगे ा; ले कन इस अवसर पर उसे अपनी सफाई देने क ज रत मालूम ई। कु मुद यह भाव मन म लेकर जाए क अ ा ने अपने गहने ब ओं के लए रख छोड़े, इसे वह कसी तरह न सह सकती थी, इसी लए वह अपनी कोठरी म ले गई थी; ले कन कु मुद को पहले ही इस कौशल क टोह मल चकु थी, उसने गहने और पए आँचल से नकालकर माता के चरण पर रख दए और बोली, \"अ ा, मेरे लए तु ारा आशीवाद ही लाख पय के बराबर है। तुम इन चीज को अपने पास रखो। न जाने अभी तु कन वप य का सामना करना पड़े?\" फू लमती कहना ही चाहती थी क उमानाथ ने आकर कहा, \" ा कर रही है कु मुद? चल, ज ी कर, साइत टली जाती है। वह लोग हाय-हाय कर रहे ह, फर तो दो-चार महीने म आएगी ही, जो कु छ लेना-देना हो ले लेना।\" फू लमती के घाव पर मानो नमक पड़ गया। बोली, \"मेरे पास अब ा है भयै ा, जो म इसे ँगी। जाओ बेटी, भगवान् तु ारा सोहाग अमर कर।\" कु मदु वदा हो गई। फू लमती पछाड़ खाकर गर पड़ी। जीवन क अं तम लालसा न हो गई। एक साल बीत गया। फू लमती का कमरा घर के सब कमर म बड़ा और हवादार था। कई महीन से उसने बड़ी ब के लए खाली कर दया था और खदु एक छोटी सी कोठरी म रहने लगी थी, जैसे कोई भखा रन हो। बटे और ब ओं से अब उसे जरा भी ेह न था। वह अब घर क ल डी थी। घर के कसी ाणी, कसी व ु, कसी संग से उसे योजन न था। वह के वल इसी लए जीती थी क मौत न आती थी। सुख या ःख का अब उसे लशे मा भी ान न था। उमानाथ का औषधालय खुला, म क दावत ई, नाच-तमाशा आ। दयानाथ का से खलु ा, फर जलसा आ। सीतानाथ को वजीफा मला और वलायत गया, फर धूमधाम ई; ले कन फू लमती के मखु पर आनदं क छाया तक न आई। कामतानाथ टाइफाइड म महीने भर बीमार रहा और मरकर उठा। दयानाथ ने अबक अपने प का चार बढ़ाने के लए वा व म एक आप जनक लखे लखा और छह महीने क सजा पाई। उमानाथ ने एक फौजदारी के मामले म र त लेकर गलत रपोट लखी और उनक सनद छीन ली गई पर फू लमती के चेहरे पर रंज क परछा तक न पड़ी। उसके जीवन म अब कोई आशा,
कोई दलच ी, कोई चता न थी। बस पशओु ं क तरह काम करना और खाना, यही उसक जदगी के दो काम थे। जानवर मारने से काम करता है, पर खाता है मन स।े फू लमती ब-े कहे काम करती थी, पर खाती थी वष के कौर क तरह। महीन सर म तेल न पड़ता, महीन कपड़े न धुलत,े कु छ परवाह नह । वह चेतनाशू हो गई थी। सावन क झड़ी लगी ई थी। मले रया फै ल रहा था। आकाश म म टयाले बादल थ,े जमीन पर म टयाला पानी। आ वायु शीत- र और ास का वतरण करती फरती थी। घर क महरी बीमार पड़ गई। फू लमती ने घर के सारे बरतन माजँ े, पानी म भीग-भीगकर सारा काम कया, फर आग जलाई और चू े पर पती लयाँ चढ़ा द । लड़क को समय पर भोजन तो मलना ही चा हए। सहसा उसे याद आया क कामतानाथ नल का पानी नह पीत।े उसी वषा म गंगाजल लाने चली। कामतनाथ ने पलंग पर लटे े-लटे े कहा, \"हने दो अ ा, म पानी भर लाऊँ गा। आज महरी खूब बैठी रही।\" फू लमती ने म टयाले आकाश क ओर देखकर कहा, \"तुम भीग जाओगे बेटा, सद लग जाएगी।\" कामतानाथ बोल,े \"तुम भी तो भीग रही हो। कह बीमार न पड़ जाओ।\" फू लमती नमम भाव से बोली, \"म बीमार न पड़ू ँगी! मुझे भगवान् ने अमर कर दया है।\" उमानाथ भी वह बैठा था। उसके औषधालय म कु छ आमदनी न होती थी; इसी लए ब त च तत रहता था। भाई-भावज क मँुहदेखी करता रहता था। बोला, \"जाने भी दो भैया! ब त दन ब ओं पर राज कर चकु ह, उसका ाय तो करने दो।\" गंगा बढ़ी ई थी, जसै े समु हो। तज सामने के कू ल से मला आ था। कनारे के वृ क के वल फु न गयाँ पानी के ऊपर रह गई थ । घाट ऊपर तक पानी म डू ब गए थे। फू लमती कलसा लये नीचे उतरी। पानी भरा और ऊपर जा रही थी क पावँ फसला, सँभल न सक , पानी म गर पड़ी। पल भर हाथ-पाँव चलाए, फर लहर उसे नीचे ख च ले ग । कनारे पर दो-चार पडं े च ाए, \"अरे दौड़ो, बु ढ़या डू बी जाती है।\" दो-चार आदमी दौड़े भी, ले कन फू लमती लहर म समा गई थी, उन बल खाती ई लहर म, ज देखकर दय काँप उठता था। एक ने पछू ा, \"यह बु ढ़या कौन थी?\" \"अरे, वही पं डत अयो ानाथ क वधवा है।\" \"अयो ानाथ तो बड़े आदमी थे।\" \"हाँ, थे तो पर इसके भा म ठोकर खाना लखा था।\"
\"उनके तो कई लड़के बड़े-बड़े ह और सब कमाते ह।\" \"हाँ, सब ह भाई, मगर भा भी तो कोई व ु है?\"
Published by Pratibha Pratishthan 1661 Dakhni Rai Street, Netaji Subhash Marg, New Delhi-110002 ISBN 978-93-5048-759-4 PREMCHAND KI LOKPRIYA KAHANIYAN by Premchand Edition First, 2012
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