सरदार साहब ने फर फरमाया,\"आप लोग को यह ीकार करने म कोई आप न होगी क जो पु ष यं ज ी होकर भी एक गरीब कसान क भरी ई गाड़ी को दलदल से नकालकर नाले के ऊपर चढ़ा दे, उसके दय म साहस, आ बल और उदारता का वास है। ऐसा आदमी गरीब को कभी न सतावगे ा। उसका सकं ढ़ है, जो च को र रखगे ा। वह चाहे धोखा खा जाए, परंतु दया और धम से कभी न हटेगा।\"
1 जनवरी, 1935 आज के ट मचै म मुझे जतनी नराशा ई, म उसे नह कर सकता। हमारी टीम न से कह ादा मजबूत थी, मगर हम हार ई और वे लोग जीत का डंका बजाते ए ॉफ उड़ा ले गए। ? सफ इस लए क हमारे यहाँ यो ता शत नह । हम नते ृ के लए धन-दौलत ज री समझते ह। हज हाइनसे क ान चुने गए, के ट बोड का फै सला सबको मानना पड़ा। मगर कतने दल म आग लगी, कतने लोग ने -े हा कम समझकर इस फै सले को मजं रू कया, वह खेलने वाल से पू छए और जहाँ सफ मँुहदेखी है वहाँ उमंग कहा,ँ हम खेले और जा हरा दल लगाकर खले े। मगर यह स ाई के लए जान देने वाल क फौज न थी। खले म कसी का दल न था। म ेशन पर खड़ा अपना तीसरे दरजे का टकट लेने क फ म था क एक यवु ती न,े जो अभी कार से उतरी थी, आगे बढ़कर मझु से हाथ मलाया और बोली,\"आप भी इसी गाड़ी से चल रहे ह, म र जफर?\" मझु े हैरत ई, यह कौन लड़क है और इसे मरे ा नाम कर मालूम हो गया। मुझे एक पल के लए सकता-सा हो गया क जैसे श ाचार और अ े आचरण क सब बात दमाग से गायब हो गई ह । स दय म एक ऐसी शान होती है जो बड़े-बड़ का सर झुका देती है। मुझे अपनी तु ता क ऐसी अनभु ू त कभी न ई थी। मने नजाम हैदराबाद स,े हज ए ीलसी वायसराय स,े महाराज मैसरू से हाथ मलाया, उनके साथ बैठकर खाना खाया, मगर यह कमजोरी मुझ पर कभी न छाई थी। बस यही तो चाहता था क अपनी पलक से उसके पाँव चमू ल।ूँ यह वह सलोनापन न था, जस पर हम जान देते ह, न वह नजाकत जसक क व लोग कसम खाते ह। उस जगह बु क कांत थी, गभं ीरता थी, ग रमा थी, उमंग थी और थी आ -अ भ क न कं ोच लालसा। मने सवाल भरे अंदाज म कहा,\"जी हाँ।\" यह कै से पूछू ँ क मेरी आपसे भट कब ई। उसक बते क फु कह रही थी, वह मुझसे प र चत है। म बेगाना कै से बन।ूँ इसी सल सले म मने अपने मद होने का फज अदा कर
दया,\"मेरे लए कोई खदमत।\" उसने मसु कराकर कहा,\"जी हा,ँ आपसे ब त से काम लगूँ ी। च लए, अंदर वे टग- प म बठै । लखनऊ जा रहे ह ग?े म भी वह चल रही ँ।\" वे टग- म आकर उसने मझु े आरामकु रसी पर बठाया और खुद एक मामूली कु रसी पर बठै कर सगरेट के स मेरी तरफ बढ़ाती ई बोली,\"आज तो आपक बॉ लग बड़ी भयानक थी, वरना हम लोग पूरी इ नग से हारत।े \" मेरा ता ुब और भी बढ़ा। इस सदंु री को ा के ट म भी शौक है? मुझे उसके सामने आरामकु रसी पर बठै ते ए झझक हो रही थी, ऐसी बदतमीजी मने कभी न क थी। ान उसी तरफ लगा था। तबीयत म कु छ घटु न सी हो रही थी। रग म यह तजे ी और तबीयत म वह गुलाबी नशा न था जो ऐसे मौके पर भावतः मझु पर छा जाना चा हए था। मने पूछा,\" ा आप वह तशरीफ रखती थ ?\" उसने अपना सगरेट जलाते ए कहा,\"जी हाँ, शु से आ खर तक, मुझे तो सफ आपका खेल जँचा। और लोग तो कु छ बे दल से हो रहे थे और म उसका राज समझ रही ँ। हमारे यहाँ लोग म सही आद मय को सही जगह रखने का मा ा ही नह है, जसै े इस राजनी त पर ी ने हमारे सभी गुण को कु चल डाला हो। जसके पास धन है, उसे हर चीज का अ धकार है। वह कसी ान- व ान के , सा ह क-सामा जक जलसे का सभाप त हो सकता है, इसक यो ता उसम हो या न हो। नई इमारत का उ ाटन उसके हाथ कराया जाता है, बु नयाद उसके हाथ रखवाई जाती ह, सां ृ तक आंदोलन का नेतृ उसे दया जाता है, वह का ोके शन के भाषण पढ़ेगा, लड़क को इनाम बाटँ ेगा, यह सब हमारी दास- मनोवृ का साद है। कोई ता बु नह क हम इतने नीचे और गरे ए ह, जहाँ और अ यार का मामला है वहाँ तो खैर मजबूरी है, हम लोग के परै चूमने ही पड़ते ह। मगर जहाँ हम अपने तं वचार और तं आचरण से काम ले सकते ह, वहाँ भी हमारी जी- जरू ी क आदत हमारा गला नह छोड़ती। इस टीम का क ान आपको होना चा हए था, तब देखती क न कर बाजी ले जाता। महाराजा साहब म इस टीम का क ान बनने क इतनी यो ता है जतनी आपने असबली का सभाप त बनने क या मझु म सनमे ा ए ग क ।\" बलकु ल वही भाव जो मरे े दल म थे, मगर उसी जबान से नकलकर कतने असरदार और कतने आँख खोलने वाले हो गए। मने कहा,\"आप ठीक कहती ह। सचमचु यह हमारी कमजोरी है।\" \"आपको इस टीम म शरीक न होना चा हए था।\" \"म मजबरू था।\" इस सदंु री का नाम मस हेलेन मखु ज था। अभी इं ड से आ रही है, यही के ट मैच
देखने के लए बंबई उतर गई थी। इं ड म उसने डॉ री क श ा ा क है और जनता क सवे ा उसके जीवन का ल है। वहाँ उसने एक अखबार म मरे ी त ीर देखी थी और मेरा ज भी पढ़ा था। तब से वह मेरे लए अ ा ाल रखती है। यहाँ मझु े खेलते देखकर और भी भा वत ई। उसका इरादा है क ह ान क एक नई टीम तयै ार क जाए और उसम वही लोग लये जाएँ जो रा का त न ध करने के अ धकारी ह। उसका ाव है क म इस टीम का क ान बनाया जाऊँ । इसी इरादे से वह सारे ह ान का दौरा करना चाहती है। उसके ग य पता डॉ- एनमखु ् शज ने ब त संप छोड़ी है और वह उसक संपणू उ रा धका रणी है। उसका ाव सुनकर मरे ा सर आसमान म उड़ने लगा। मेरी जदगी का सुनहरा सपना इतने अ ा शत ढंग से वा वकता का प ले सके गा, यह कौन सोच सकता था। अलौ कक श म मेरा व ास नह , मगर आज मरे े शरीर का रोआँ-रोआँ कृ त ता और भ भावना से भरा आ था। मने उ चत और वन श म मस हेलेन को ध वाद दया।
2 जनवरी-म हैरान ँ, हेलने को मुझसे इतनी हमदद है, और यह सफ दो ाना हमदद नह है। इसम मुह त क स ाई है। दया म तो इतना आ त -स ार नह आ करता, और रही मरे े गुण क ीकृ त, तो म अ से इतना खाली नह ँ क इस धोखे म पडूँ। गुण क ीकृ त ादा-से- ादा एक सगरेट और एक ाली चाय पा सकती है। यह सेवा-स ार तो म वह पाता ँ जहाँ कसी मचै म खले ने के लए मुझे बलु ाया जाता है। तो भी वहाँ भी इतने हा दक ढंग से मरे ा स ार नह होता, सफ र ी खा तरदारी बरती जाती है उसने जसै मरेी सु वधा आरै मरे आराम के लए अपने को सम पत कर दया हो। म तो शायद अपनी े मका के सवा और कसी के साथ इस हा दकता का बरताव न कर सकता। याद रहे, मने े मका कहा है, प ी नह कहा। प ी क हम खा तरदारी नह करते, उससे तो खा तरदारी करवाना ही हमारा भाव हो गया है और शायद स ाई भी यही है। मगर फलहाल तो म इन दोन नेमत म से एक का भी हाल नह जानता। उसके ना ,े डनर, लंच म तो म शरीक था ही, हर ेशन पर (वह डाक थी और खास-खास ेशन पर ही कती थी) मवे े तथा फल मगँ वाती और मझु े आ हपूवक खलाती। कहाँ क ा चीज मश र है, इसका उसे खबू पता है। मरे े दो और घरवाल के लए तरह-तरह के तोहफे खरीदे, मगर हैरत यह है क मने एक बार भी उसे मना न कया। मना करता, मुझसे पछू कर तो लाती नह । जब वह एक चीज लाकर मुह त के साथ मझु े भट करती है तो म कै से इनकार क ँ । खदु ा जाने म मद होकर भी उसके सामने औरत क तरह शरमीला, कम बोलने वाला हो जाता ँ क जैसे मेरे मुँह म जबान ही नह । दन क थकान क वजह से रात भर मुझे बेचनै ी रही। सर म हलका सा दद था, मगर मने इस दद को बढ़ाकर कहा। अके ला होता तो शायद इस दद क जरा भी परवाह न करता, मगर आज उसक मौजूदगी म मुझे उसे दद को जा हर करने म मजा आ रहा था। वह मरे े सर पर तेल क मा लश करने लगी और म खामखाह नढाल आ जाता था। मरे ी बेचनै ी के साथ उसक परेशानी बढ़ती जाती थी। मझु से बार-बार पछू ती, ‘अब दद कै सा है’ और म अनमने ढंग से कहता, ‘अ ा ँ।’ उसक नाजकु हथे लय के श से मरे े ाण म गुदगुदी होती थी। उसका वह आकषक चेहरा मरे े सर पर झकु ा है, उसक गरम सासँ मरे े माथे को चूम रही ह और म गोया ज त के मजे ले रहा ँ, मरे े दल म अब उस पर फतह पाने क ा हश झकोले ले रही है। म चाहता ँ वह मेरे नाज उठाए। मेरी तरफ से कोई ऐसी पहल न होनी चा हए, जससे वह समझ जाए क म उस पर ल ू हो गया ँ। चौबीस घंटे के अंदर मेरी मनः त म कै से यह ां त हो जाती है, म कर ेम के ाथ से मे का पा बन जाता ँ। वह बद ूर उसी त ीनता से मेरे सर पर हाथ रखे बठै ी ई है। तब मुझे उस पर रहम आ जाता है और म भी उस अहसास से बरी नह ँ। मगर इस माशूक म आज जो लु आया, उस पर आ शक नछावर है। महु त करना गलु ामी है, महु त कया जाना बादशाहत। मने दया दखलाते ए कहा,\"आपको मेरे से बड़ी तकलीफ ई।\" उसने उमगकर कहा,\"मुझे ा तकलीफ ई। आप दद से बचे नै थे और म बठै ी थी। काश! यह दद मझु े हो जाता।\"
म सातव आसमान पर उड़ा जा रहा था। 5 जनवरी-कल शाम को हम लखनऊ प ँच गए। रा े म हेलने से सां ृ तक, राजनी तक और सा ह क पर खूब बात । जे ुएट तो भगवान् क दया से म भी ँ और तब से फु रसत के व कताब भी देखता ही रहा ँ। व ान क सगं त म भी बैठा ँ, ले कन उसके ान के व ार के आगे कदम-कदम पर मुझे अपनी हीनता का बोध होता है। हर एक पर उसक अपनी राय है और मालमू होता है क उसने छानबीन के बाद वह राय कायम क है। उसके वपरीत म उन लोग म ँ, जो हवा के साथ उड़ते ह, ज णक ेरणाएँ उलट-पलु टकर रख देती ह। म को शश करता था क कसी तरह उस पर अपनी अ का स ा जमा ँ, मगर उसके कोण मझु े बजे बान कर देते थ।े जब मने देखा क ान- व ान क बात म तो म उससे न जीत सकूँ गा तो मने एबीसी नया और इटली क लड़ाई का ज छेड़ दया, जस पर मने अपनी समझ म ब त कु छ पढ़ा था और इं ड तथा\"रासं ने इटली पर जो दबाव डाला है, उसक तारीफ म मने अपनी वाक् -श खच कर दी। उसने एक मसु कराहट के साथ कहा,\"आपका यह खयाल है क इं ड और\"रासं सफ इनसा नयत और कमजोर क मदद करने क भावना से भा वत हो रहे ह तो आपक गलती है। उनक सा ा - ल ा यह नह बरदा कर सकती क नया क कोई सरी ताकत फल-े फू ल।े मुसो लनी वही कर रहा है, जो इं ड ने कतनी ही बार कया है और आज भी कर रहा है। यह सारा ब पयापन सफ एबीसी नया म ावसा यक सु वधाएँ ा करने के लए है। इं ड को अपने ापार के लए बाजार क ज रत है, अपनी बढ़ी ई आबादी के लए जमीन के टु कड़ क ज रत है, अपने श त के लए ऊँ चे पद क ज रत है तो इटली को न हो? इटली जो कु छ कर रहा है, ईमानदारी के साथ एला नया कर रहा है। उसने कभी नया के सब लोग से भाईचारे का डंका नह पीटा, कभी शां त का राग नह अलापा। वह तो साफ कहता है क सघं ष ही जीवन का ल ण है। मनु क उ त लड़ाई ही के ज रए होती है। आदमी के अ े गुण लड़ाई के मदै ान म ही खुलते ह। सबक बराबरी के कोण को वह पागलपन कहता है। वह अपना शमु ार भी उ बड़ी कौम म करता है, ज रंगीन आबा दय पर कू मत करने का हक है। इस लए हम उसक काय णाली को समझ सकते ह। इं ड ने हमेशा धोखबे ाजी से काम लया है। हमेशा एक रा के व भ त म भेद डालकर या उनके आपसी वरोध को राजनी त का आधार बनाकर उ अपना पछल ू बनाया है। म तो चाहती ँ क नया म इटली, जापान और जमनी खबू तर कर तथा इं ड का आ धप टू टे। तभी नया म असली जनतं और शां त पदै ा होगी। वतमान स ता जब तक मट न जाएगी, नया म शां त का रा न होगा। कमजोर कौम को जदा रहने का कोई हक नह , उसी तरह जस तरह कमजोर पौधे को। सफ इस लए नह क उनका अ यं उनके लए क का कारण है ब इस लए क वही नया के इस झगड़े और र पात के लए ज दे ार ह।\" म भला इस बात से सहमत होने लगा। मने जवाब तो दया और इन वचार का इतने ही जोरदार श म खंडन भी कया। मगर मने देखा क इस मामले म वह संतु लत बु
से काम नह लेना चाहती या नह ले सकती। ेशन पर उतरते ही मुझे यह फ ई क हेलने को अपना महे मान कै से बनाऊँ । अगर होटल म ठहराऊँ तो भगवान् जाने अपने दल म ा कहे। अगर अपने घर ले जाऊँ तो शरम मालूम होती है। वहाँ ऐसी च-संप और अमीर जैसे भाव वाली यवु ती के लए सु वधा क ा साम याँ ह। यह सयं ोग क बात है क म के ट अ ा खले ने लगा और पढ़ना- लखना छोड़-छाड़कर उसी का हो रहा और एक ू ल का मा र ँ, मगर घर क हाल बद रू है। वही पुराना, अँधरे ा, टू टा-फू टा मकान तगं गली म, वही परु ाने रंग-ढंग, वही पुराना ढ र। अ ा तो शायद हेलने को घर म कदम ही न रखने द। और यहाँ तक नौबत ही आने लगी, हेलने खदु दरवाजे से ही भागगे ी। काश! आज अपना मकान होता, सजा-सवँ रा, म इस का बल होता क हेलेन क महे मानदारी कर सकता, इससे ादा खशु नसीबी और ा हो सकती थी क बेसरोसामानी का बुरा हो। म यही सोच रहा था क हेलने ने कु ली से असबाब उठवाया और बाहर आकर एक टै ी बुला ली। मेरे लए इस टै ी म बठै जाने के सवा सरा चारा ा बाक रह गया था। मुझे यक न है, अगर म उसे अपने घर ले जाता तो उस बेसरोसामानी के बावजदू वह खुश होती। हेलेन च-सपं है, मगर नखरेबाज नह । वह हर तरह क आजमाइश और तजुरबे के लए तयै ार रहती है। हेलने शायद आजमाइश को और नागवार तजरु ब को बलु ाती है, मगर मझु म न वह क ना है, न वह साहस। उसने जरा गौर से मरे ा चहे रा देखा होता तो उसे मालूम हो जाता क उस पर कतनी श मदगी और कतनी बेचारगी झलक रही थी। मगर श ाचार का नबाह तो ज री था, मने आप क ,\"म तो आपको भी अपना महे मान बनाना चाहता था, मगर आप उलटा मझु े होटल लये जा रही ह।\" उसने शरारत से कहा,\"इसी लए क आप मेरे काबू से बाहर न हो जाएँ । मरे े लए इससे ादा खुशी क बात ा होती क आपके आ त स ार का आनंद उठाऊँ , ले कन मे ई ालु होता है, यह आपको मालमू है। वहाँ आपके इ म आपके व का बड़ा ह ा लगे, आपको मझु से बात करने का व ही न मलगे ा और मद आमतौर पर कतने बेमरु त तथा ज भलू जाने वाले होते ह, इसका मझु े अनभु व हो चुका है। म तु एक ण के लए भी अलग नह छोड़ सकती। मझु े अपने सामने देखकर तमु मझु े भलू ना भी चाहो तो नह भूल सकत।े \" मुझे अपनी इस खुशनसीबी पर हैरत ही नह , ब ऐसा लगने लगा क जसै े सपना देख रहा ँ। जस सुंदरी क एक नजर पर म अपने को कु रबान कर देता, वह इस तरह मुझसे महु त का इजहार करे। मेरा तो जी चाहता है क इसी बात पर उनके कदम को पकड़कर सीने से लगा लूँ और आँसुओं से तर कर ँ। होटल म प ँच।े मेरा कमरा अलग था। खाना हमने साथ खाया और थोड़ी देर तक वह
हरी-हरी घास पर टहलते रहे। खला ड़य को कै से चुना जाए, यही सवाल था। मेरा जी तो यही चाहता था क सारी रात उसके साथ टहलता र ँ, ले कन उसने कहा,\"आप अब आराम कर, सबु ह ब त काम है।\" म अपने कमरे म जाकर लटे ा रहा, मगर सारी रात न द नह आई। हेलेन का मन अभी तक मरे ी आँख से छपा आ था, हर ण वह मेरे लए पहेली होती जा रही थी। 12 जनवरी-आज दन भर लखनऊ के के टर का जमाव रहा। हेलेन दीपक थी और पतंगे उसके गद मडँ रा रहे थे। यहाँ से मरे े अलावा दो लोग का खेल हेलने को ब त पसंद आया-बृज और सा दक। हेलने उ ऑल इं डया टीम म रखना चाहती थी। इसम कोई शक नह है क दोन इस फन म उ ाद ह, ले कन उ ने जस तरह शु आत क है, उससे तो यही मालमू होता है क वह के ट खले ने नह , अपनी क त क बाजी खले ने आए ह। हेलने कस मजाज क औरत है, यह समझना मु ल है। बजृ मुझसे ादा संुदर है, यह म भी ीकार करता ँ, रहन-सहन म पूरा साहब है। ले कन प ा शोहदा, लोफर है। म नह चाहता क हेलने उससे कसी तरह का सबं धं रख।े अदब तो उसे छू नह गया। बदजबान पहले सरे का, बे दा गंदे मजाक, बातचीत का ढंग नह और मौके -महल क समझ नह । कभी-कभी हेलेन से ऐसे मतलब भरे इशारे कर जाता है क म शरम से सर झकु ा लेता ँ ले कन हेलेन को शायद उसका बाजा पन, उसका छछोरापन महससू नह होता। नह , वह शायद उसके गंदे इशार का मजा लेती है। मने कभी उसके माथे पर शकन नह देखी। यह म नह कहता क यह हँसमुखपन कोई बुरी चीज है, न जदा दली का म न ँ, ले कन एक लडे ी के साथ तो अदब और कायदे का लहाज रखना ही चा हए। सा दक एक त त कु ल का दीपक है, ब त ही शु -आचरण, यहाँ तक क उसे ठंडे भाव का भी कह सकते ह। वह ब त घमंडी, देखने म चड़ चड़ा है, ले कन अब वह भी शहीद म दा खल हो गया है। कल आप हेलेन को अपने शरे सुनाते रहे और वह खुश होती रही। मुझे तो उन शेर म कु छ मजा न आया। इससे पहले मने इन हजरत को कभी शायरी करते नह देखा, यह म ी कहाँ से फट पड़ी है? प म जा ई ताकत है, और ा क ँ? इतना भी न सझू ा क उसे शरे ही सनु ाना है तो हसरत या जगर या जोश के कलाम से दो- चार शेर याद कर लते ा। हेलेन सबका कलाम पढ़ थोड़े ही बैठी है। आपको शरे कहने क ा ज रत, मगर यही बात उनसे कह ँ तो बगड़ जाएँ गे, समझगे मुझे जलन हो रही है। मझु े जलन होने लगी। हेलेन क पजू ा करने वाल म एक म ही ँ? हा,ँ इतना ज र चाहता ँ क वह अ े-बुरे क पहचान कर सके , हर आदमी से बते क ुफ मुझे पसदं नह , मगर हेलने क नजर म सब बराबर ह। वह बारी-बारी से सबसे अलग हो जाती है और सबसे मे करती है। कसी क ओर ादा झुक ई है, यह फै सला करना मु ल है। सा दक क धन-संप से वह जरा भी भा वत नह जान पड़ती। कल शाम को हम लोग सनमे ा देखने गए थे। सा दक ने आज असाधारण उदारता दखाई। जबे से पया नकालकर सबके लए टकट लने े चले। मयाँ सा दक, जो इस अमीरी के बावजूद
तगं दल आदमी है, म तो कं जसू क ँगा, हेलने ने उसक उदारता को जगा दया है। मगर हेलने ने उ रोक लया और खुद अंदर जाकर सबके लए टकट लाई। और य भी वह इतनी बदे द से पया खच करती है क मयाँ सा दक के छ े छू ट जाते ह। जब उनका हाथ जेब म जाता है, हेलेन के पए काउंटर पर जा प ँचते ह। कु छ भी हो, म तो हेलने के भाव- ान पर जान देता ँ। ऐसा मालूम होता है क वह हमारी फरमाइश का इंतजार करती रहती है और उनको पूरा करने म उसे खास मजा आता है। सा दक साहब को उसने अलबम भट कर दया, जो यूरोप के लभ च क अनकु ृ तय का सं ह है और जो उसने यूरोप क तमाम च शालाओं म जाकर खदु इक ा कया है। उसक आँख कतनी स दय- ेमी ह। बजृ जब शाम को अपना नया सटू पहनकर आया, जो उसने अभी सलाया है, तो हेलेन ने मुसकराकर कहा,\"देखो कह नजर न लग जाए तु ! आज तो सरे यसू ुफ बने ए हो।\" बृज बाग-बाग हो गया। मने जब लय के साथ अपनी ताजा गजल सुनाई तो वह एक-एक शरे पर उछल पड़ी। अ ु त का -मम है। मझु े अपनी क वता-रचना पर इतनी खुशी नह ई थी, मगर तारीफ जब सबका बलु ौवा हो जाए तो उसक ा क मत। मयाँ सा दक को कभी अपनी सदुं रता का दावा नह कया। भीतरी स दय से आप जतने मालामाल ह, बाहरी स दय म उतने ही कं गाल। मगर आज शराब के दौर म कहा,\"भई, तु ारी ये आँख तो जगर के पार ई जाती ह।\" और सा दक साहब उस व उसके परै पर गरते क गए। ल ा बाधक ई। उनक आँख क ऐसी तारीफ शायद ही कसी ने क हो। मुझे कभी अपने प-रंग, चाल-ढाल क तारीफ सनु ने क इ ा नह ई। म जो कु छ ँ, जानता ँ। मुझे अपने बारे म यह धोखा कभी नह हो सका क म खबू सरू त ँ। यह भी जानता ँ क हेलने का यह सब स ार कोई मतलब नह रखता। ले कन अब मझु े भी यह बेचैनी होने लगी क देखो मझु पर ा इनायत होती है। कोई बात न थी, मगर म बेचैन रहा। जब म शाम को यू नव सटी ाउंड से खेल क ै स करके आ रहा था तो मेरे ये बखरे ए बाल कु छ और ादा बखर गए थ।े उसने आस ने से देखकर फौरन कहा,\"तु ारी इन बखरी ई जु पर नसार होने को जी चाहता है।\" म नहाल हो गया, दल म ा- ा तफू ान उठे, कह नह सकता। मगर खदु ा जाने , हम तीन म से एक भी उसक कसी अदा या अंदाज या प क शसं ा श से नह कर पाता। हम लगता है क हम ठीक श नह मलत।े जो कु छ हम कह सकते ह, उससे कह ादा भा वत ह। कु छ कहने क ह त ही नह होती। 1 फरवरी-हम द ी आ गए। इस बीच म मरु ादाबाद, ननै ीताल, देहरा न वगरै ह जगह के दौरे कए, मगर कह कोई खलाड़ी न मला। अलीगढ़ और द ी से कई अ े खला ड़य के मलने क उ ीद है, इस लए हम लोग वहाँ कई दन रहग।े माच म ऑ े लयन टीम यहाँ से रवाना होगी। तब तक वह ह ान म सारे पहले से न त मैच खले चकु होगी। हम उससे आ खरी मचै खेलगे और खुदा ने चाहा तो ह ान क सारी शक का बदला चकु ा दग।े सा दक और बजृ भी हमारे साथ घूमते रहे। म तो न चाहता था क ये लोग आएँ , मगर हेलेन को शायद े मय के जमघट म मजा आता है। हम सब-के -सब एक ही होटल म ह और सब हेलने के मेहमान ह। ेशन पर प ँचे तो
सकै ड़ आदमी हमारा ागत करने के लए मौजूद थे। कई औरत भी थ , ले कन हेलने को न मालूम औरत से आप है। वह उनक सगं त से भागती है, खासकर संुदर औरत क छाया से भी र रहती है। हालाँ क उसे कसी संुदरी से जलने का कोई कारण नह है। यह मानते ए भी क उस पर ख नह हो गया है, उसम आकषण के ऐसे त मौजदू ह क कोई परी भी उसके मकु ाबले खड़ी नह हो सकती। नख- शख ही तो सबकु छ नह है, च का स दय, बातचीत का स दय, अदाओं का स दय भी तो कोई चीज है। ेम उसके दल म है या नह , खदु ा जान,े ले कन मे के दशन म वह बेजोड़ है। दलजोई और नाजबरदारी के फन म हम जसै े दलदार को भी उससे श मदा होना पड़ता है। शाम को हम लोग नई द ी क सैर को गए। दलकश जगह है, खलु ी ई सड़क, जमीन के खूबसूरत टु कड़े, सुहानी र बश, उसको बनाने म सरकार ने बदे रेग पया खच कया है और बजे रत। यह रकम रआया क भलाई पर खच क जा सकती थी, मगर इसको ा क जए क जनसाधारण इसके नमाण से जतने भा वत ह, उतने अपनी भलाई क कसी योजना से न होते। आप दस-पाचँ मदरसे ादा खोल देते या सड़क क मर त म या खते ी क जाँच-पड़ताल म इस पए को खच कर देते, मगर जनता को शान-शौकत, धन-वैभव से आज भी जतना मे है, उतना आपके रचना क काम से नह है। बादशाह क जो क ना उसके रोम-रोम म घुल गई है, वह अभी स दय तक न मटेगी। बादशाह के लए शान-शौकत ज री है। पानी क तरह पया बहाना ज री है। कफायतशार या कं जसू बादशाह, चाहे वह एक-एक पैसा जा क भलाई के लए खच करे, इतना लोक य नह हो सकता। अं जे मनो व ान के पं डत ह। अं ेज ही , हर एक बादशाह जसने अपने बा बल और अपनी बु से यह ान ा कया है, भावतः मनो व ान का पं डत होता है। इसके बगरै जनता पर उसे अ धकार कर ा होता। खरै , यह तो मने यँू ही कहा, मुझे ऐसा अंदेशा हो रहा है क शायद हमारी टीम सपना ही रह जाए। अभी से हम लोग म अनबन रहने लगी है। बजृ कदम-कदम पर मरे ा वरोध करता है। म आम क ँ तो वह अदबदाकर इमली कहेगा और हेलने को उससे ेम है। जदगी के कै से-कै से मीठे सपने देखने लगा था, मगर बजृ , कृ त ाथ बजृ मेरी जदगी तबाह कए डालता है। हम दोन के य पा नह रह सकत,े यह तय बात है एक को मैदान से हटना पड़ेगा। 7 फरवरी-शु है द ी म हमारा य सफल आ। हमारी टीम म तीन नए खलाड़ी जुड़े- जाफर, मेहरा और अजुन सह। आज उनके कमाल देखकर ऑ े लयन के टर क धाक मेरे दल से जाती रही। तीन गद फकते ह। जाफर अचूक गद फकता है, महे रा स क आजमाइश करता है और अजनु ब त चालाक है। तीन ढ़ भाव के लोग ह, नगाह के स े और अकथ। अगर कोई इनसाफ से पछू े तो म क ँगा क अजनु मुझसे बहे तर खले ता है। वह दो बार इं ड हो आया है, अं ेजी रहन-सहन से प र चत है और मजाज पहचानने वाला भी अ ल दरजे का है, स ता और आचार का पुतला। बृज का रंग फ का पड़ गया। अब अजनु पर खास कृ पा- है
और अजुन पर फतेह पाना मरे े लए आसान नह है, मुझे तो डर है क वह कह मरे ी राह का रोड़ा न बन जाए। 25 फरवरी-हमारी टीम पूरी हो गई। दो ये र हम अलीगढ़ से मले, तीन लाहौर से और एक अजमेर से और कल हम बबं ई आ गए। हमने अजमेर, लाहौर और द ी म वहाँ क टीम से मैच खले े तथा उन पर बड़ी शानदार वजय पाई। आज बंबई क ह टीम से हमारा मकु ाबला है और मुझे यक न है क मदै ान हमारे साथ रहेगा। अजनु हमारी टीम का सबसे अ ा खलाड़ी है और हेलेन उसक इतनी खा तरदारी करती है क मुझे जलन नह होती, इतनी खा तरदारी तो मेहमान क ही क जा सकती है, महे मान से ा डर! मजे क बात यह है क हर अपने को हेलेन का कृ पा-पा समझता है और उससे अपने नाज उठवाता है। अगर कसी के सर म दद है तो हेलेन का फज है क उसक मजाजपुरसी करे, उसके सर म चंदन तक घसकर लगा दे। मगर उसके साथ ही उसका रोब हर एक के दल म इतना छाया आ है क उसके कसी काम क आलोचना करने का साहस नह कर सकता। सब-के -सब उसक मरजी के गलु ाम ह। वह अगर सबके नाज उठाती है तो कू मत भी हर एक पर करती है। शा मयाने म एक-स-े एक संुदर औरत का जमघट है, मगर हेलेन के कै दय क मजाल नह क कसी क तरफ देखकर मुसकरा भी सक। हर एक के दल म ऐसा डर छाया रहता है क जसै े वह हर जगह पर मौजदू है। अजुन ने एक मस पर यूँ ही कु छ नजर डाली थी, हेलेन ने ऐसी लय क आँख से उसे देखा क सरदार साहब का रंग उड़ गया। हर एक समझता है क वह उसक तकदीर क मा लक है और उसे अपनी तरफ से नाराज करके वह शायद जदा न रह सके गा। और क तो म ा क ँ, मने ही गोया अपने को उसके हाथ बचे दया है। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है क मझु म कोई ऐसी चीज ख हो गई, जो पहले मरे े दल म डाह क आग सी जला दया करती थी। हेलेन अब कसी से बोल,े कसी से मे क बात करे, मझु े गु ा नह आता। दल पर चोट लगती ज र है, मगर उसका इजहार अके ले म आँसू बहाकर करने को जी चाहता है। वह ा भमान कहाँ गायब हो गया, नह कह सकता। अभी उसक नाराजगी से दल के टु कड़े हो गए थे क एकाएक उसक एक उचटती ई सी नगाह ने या एक मसु कराहट ने गुदगुदी पदै ा कर दी। मालूम नह क उसम वह कौन सी ताकत है, जो इतने हौसलामदं नौजवान दल पर कू मत कर रही है। उसे बहा री क ँ, चालाक और फु रती क ँ, हम सब जसै े उसके हाथ क कठपुत लयाँ ह। हमम अपनी कोई शि सयत, कोई ह ी नह है, उसने अपने स दय स,े अपनी बु से, अपने धन से और सबसे ादा सबको समटे सकने क अपनी ताकत से हमारे दल पर अपना आ धप जमा लया है। 1 माच-कल ऑ े लयन टीम से हमारा मैच ख हो गया। पचास हजार से कम तमाशाइय क भीड़ न थी। हमने पूरी ई न से उनको हराया और देवताओं क तरह पजु ।े हमम से हर एक ने दलोजान से काम कया और सभी यकसां तौर पर फू ले ए थे। मैच ख होते ही शहरवाल क तरफ से हम एक शानदार पाट दी गई। ऐसी पाट तो शायद वायसराय क तरफ से भी न दी जाती होगी। म तो तारीफ और बधाइय के बोझ से
दब गया। मने 44 रन म पाँच खला ड़य का सफाया कर दया था। मझु े खदु अपने भयानक गद फकने पर अचरज हो रहा था। ज र कोई अलौ कक श हमारा साथ दे रही थी। इस भीड़ म बंबई का स दय अपनी पूरी शान और रंगीनी के साथ चमक रहा था और मरे ा दावा है क सुदं रता क से यह शहर जतना भा शाली है, नया का सरा शहर शायद ही हो। मगर हेलेन इस भीड़ म भी सबक य का क बनी ई थी। यह जा लम महज हसीन ही नह , मीठा बोलती भी है और उसक अदाएँ भी मीठी ह। सारे नौजवान परवान क तरह उस पर मँडरा रहे थ,े एक से एक खूबसूरत, मनचल,े और हेलने उनक भावनाओं से खले रही थी, उसी तरह जैसे वह हम लोग क भावनाओं से खेला करती थी। महाराज कु मार जैसा संदु र जवान मने आज तक नह देखा। सूरत से रोब टपकता है। उनके ेम ने कतनी सदंु रय को ख दया है, कौन जाने। मरदाना दलकशी का जा सा बखरता चलता है। हेलने उनसे भी वैसी ही आजाद बेतक ुफ से मली जैसे सरे हजार नौजवान स।े उनके स दय का, उनक दौलत का उस पर जरा भी असर न था। न जाने इतना गव, इतना ा भमान उसम कहाँ से आ गया है! कभी नह डगमगाती, कह रोब म नह आती, कभी कसी क तरफ नह झकु ती। वही हँसी-मजाक, वह ेम का दशन, कसी के साथ कोई वशषे ता नह , दलजोई सबक क , मगर उसी बेपरवाही क शान के साथ। हम लोग सैर करके कोई दस बजे रात को होटल प ँचे तो सभी जदगी के नए सपने देख रहे थे। सभी के दल म एक धकु धकु -सी हो रही थी क देख अब ा होता है। आशा और भय ने सभी के दल म एक तूफान सा उठा रखा था, गोया आज हर एक के जीवन क एक रणीय घटना होने वाली है। अब ा ो ाम है, इसक कसी को खबर न थी। सभी जदगी के सपने देख रहे थे। हर एक के दल पर एक पागलपन सवार था, हर एक को यक न था क हेलेन क खास उस पर है, मगर यह अंदेशा भी हर एक के दल म था क खुदा न खा ा कह हेलने ने बवे फाई क तो यह जान उसके कदम पर रख देगा, यहाँ से जदा घर जाना कयामत था। उसी व हेलेन ने मझु े अपने कमरे म बलु ा भजे ा। जाकर देखता ँ तो सभी खलाड़ी जमा ह। हेलने उस व अपनी शरबती बेलदार साड़ी म आँख म चकाच ध पैदा कर रही थी। मुझे उस पर झझँु लाहट ई, इस आम मजमे म मझु े बुलाकर कवायद करने क ा ज रत थी। म तो खास बरताव का अ धकारी था। म भलू रहा था क शायद इसी तरह उनम से हर एक अपने को खास बरताव का अ धकारी समझता था। हेलेन ने कु रसी पर बठै ते ए कहा,\"दो ो, म कह नह सकती क आप लोग क कतनी कृ त ँ और आपने मरे ी जदगी क कतनी बड़ी आरजू परू ी कर दी। आपम से कसी को म र रतनलाल क याद आती है?\" रतनलाल! उसे भी कोई भलू सकता है। वह जसने पहली बार ह ान क के ट टीम को इं ड क धरती पर अपने जौहर दखाने का मौका दया, जसने अपने लाख पए
इस चीज पर नजर कए और आ खर बार-बार पराजय से नराश होकर वह इं ड म आ ह ा कर ली। उसक वह सरू त अब भी हमारी आँख के सामने फर रही है। सब ने कहा,\"खबू अ ी तरह, अभी बात ही कै दन क है।\" \"आज इस शानदार कामयाबी पर म आपको बधाई देती ँ। भगवान ने चाहा तो अगले साल हम इं ड का दौरा करगे। आप अभी से इस मोरचे के लए तैया रयाँ क जए। लु तो जब है क हम एक मचै भी न हार, मदै ान बराबर हमारे साथ रहे। दो ो, यही मरे े जीवन का ल है। कसी ल को पूरा करने के लए जो काम कया जाता है, उसी का नाम जदगी है। हम कामयाबी वह होती है, जहाँ हम अपने परू े हौसले से काम म लगे ह , वही ल हमारा हो, हमारा मे हो, हमारे जीवन का क हो। हमम और इस ल के बीच म और कोई इ ा, कोई आरजू दीवार क तरह न खड़ी हो। माफ क जएगा, आपने अपने ल के लए जीना नह सीखा। आपके लए के ट सफ एक मनोरंजन है, आपको उससे मे नह । इसी तरह हमारे सकै ड़ दो ह, जनका दल कह और होता है, दमाग कह और, और वह सारी जदगी नाकाम रहते ह। आपके लए म ादा दलच ी क चीज थी, के ट तो सफ मुझे खशु करने का ज रया था। फर भी आप कामयाब ए। मु म आप जसै े हजार नौजवान ह, जो अगर कसी ल क पू त के लए जीना और मरना सीख जाएँ तो चम ार कर दखाएँ । जाइए और वह कमाल हा सल क जए। मरे ा प और मरे ी रात वासना का खलौना बनने के लए नह ह। नौजवान क आँख को खशु करने और उनके दल म म ी पैदा करने के लए जीना म शमनाक समझती ँ। जीवन का ल इससे कह ऊँ चा है। स ी जदगी वह है, जहाँ हम अपने लए नह सबके लए जीते ह।\" हम सब सर झुकाए सनु ते रहे और झ ाते रहे। हेलने कमरे से नकलकर कार म जा बठै ी। उसने अपनी रवानगी का इंतजाम पहले ही कर लया था। इसके पहले क हमारे होशोहवास सही ह और हम प र त समझ, वह जा चुक थी। हम सब ह े भर तक बबं ई क ग लय , होटल , बगँ ल क खाक छानते रहे, हेलेन कह न थी और ादा अफसोस यह है क उसने हमारी जदगी का जो आइ डयल रखा, वह हमारी प ँच से ऊँ चा है। हेलेन के साथ जदगी का सारा जोश और उमंग ख हो गई।
जु न शखे और अलगू चौधरी म गाढ़ी म ता थी। साझे म खते ी होती थी। कु छ लने - देन म भी साझा था। एक को सरे पर अटल व ास था। जु न जब हज करने गए थ,े तब अपना घर अलगू को स प गए थे और अलगू जब कभी बाहर जाते तो जु न पर अपना घर छोड़ देते थे। उनम न खान-पान का वहार था, न धम का नाता; के वल वचार मलते थ।े म ता का मलू मं भी यही है। इस म ता का ज उसी समय आ, जब दोन म बालक ही थे और जु न के पू पता जुमराती उ श ा दान करते थे। अलगू ने गु जी क ब त सवे ा क थी, खबू रका बयाँ माजँ ी, खबू ाले धोए। उनका ा एक ण के लए भी व ाम न लेने पाता था, क के चलम अलगू को आध घटं े तक कताब से अलग कर देती थी। अलगू के पता पुराने वचार के मनु थ।े उ श ा क व ा क अपे ा गु क सवे ा-शु ूषा पर अ धक व ास था। वह कहते थे क व ा पढ़ने से नह आती, जो कु छ होता है, गु के आशीवाद से। बस गु जी क कृ पा- चा हए। अतएव य द अलगू पर जमु राती शेख के आशीवाद अथवा स ंग का कु छ फल न आ, तो यह मानकर संतोष कर लेगा क व ोपाजन म मने यथाश कोई बात उठा नह रखी, व ा उसके भा ही म न थी तो कै से आती? मगर जमु राती शखे यं आशीवाद के कायल न थे। उ अपने सोटे पर अ धक भरोसा था, और उसी सोटे के ताप से आज आस-पास के गावँ म जु न क पजू ा होती थी। उनके लखे ए रेहननामे या बैनामे पर कचहरी का महु रर भी कलम न उठा सकता था। हलके का डा कया, कां ेबल और तहसील का चपरासी-सब उनक कृ पा क आकां ा रखते थे। अतएव अलगू का मान उनके धन के कारण था, तो जु न शेख अपनी अनमोल व ा से ही सबके आदरपा बने थ।े जु न शेख क एक बढ़ू ी खाला (मौसी) थी। उसके पास ब त थोड़ी सी म यत थी; परंतु उसके नकट संबं धय म कोई न थी। जु न ने लंब-े चौड़े वादे करके वह म यत अपने नाम लखवा ली थी। जब तक दानप क र ज ी न ई थी, तब तक खालाजान का खबू आदर-स ार कया गया। उ खूब ा द पदाथ खलाए गए। हलव-े पलु ाव
क वषा क गई पर र ज ी क मोहर ने इन खा तरदा रय पर भी मानो मोहर लगा दी। जु न क प ी करीमन रो टय के साथ कड़वी बात के कु छ तजे , तीखे सालन भी देने लगी। जु न शेख भी न ु र हो गए। अब बचे ारी खालाजान को ायः न ही ऐसी बात सनु नी पड़ती थ । बु ढ़या न जाने कब तक जएगी। दो-तीन बीघे ऊसर ा दे दया, मानो मोल ले लया है! बघारी दाल के बना रो टयाँ नह उतरत ! जतना पया इसके पटे म झ क चुके , उतने से तो अब तक गाँव मोल ले लेते। कु छ दन खालाजान ने सनु ा और सहा; पर जब न सहा गया तब जु न से शकायत क । जु न ने ानीय कमचारी-गृह ामी के बंध म दखल देना उ चत न समझा। कु छ दन तक और य ही रो-धोकर काम चलता रहा। अंत म एक दन खाला ने जु न से कहा,\"बेटा! तु ारे साथ मेरा नवाह न होगा। तुम मझु े पए दे दया करो, म अपना पका खा लूगँ ी।\" जु न ने धृ ता के साथ उ र दया,\" पए ा यहाँ फलते ह?\" खाला ने न ता से कहा,\"मुझे कु छ खा-सूखा चा हए भी क नह ?\" जु न ने गंभीर र म जवाब दया,\"तो कोई यह थोड़े ही समझा था क तुम मौत से लड़कर आई हो?\" खाला बगड़ गई, उ ने पचं ायत करने क धमक दी। जु न हँस,े जस तरह कोई शकारी हरन को जाल क तरफ जाते देखकर मन-ही-मन हँसता है। वह बोल,े \"हाँ, ज र पंचायत करो। फै सला हो जाए, मझु े भी यह रात- दन क खट-खट पसदं नह ।\" पंचायत म कसक जीत होगी, इस वषय म जु न को कु छ भी संदेह न था। आस-पास के गाँव म ऐसा कौन था, जो उसके अनु ह का ऋणी न हो ऐसा कौन था जो उसको श ु बनाने का साहस कर सके ? कसम इतना बल था, जो उसका सामना कर सके ? आसमान के फ र े तो पचं ायत करने आवगे नह । इसके बाद कई दन तक बढ़ू ी खाला हाथ म एक लकड़ी लये आस-पास के गाँव म घूमती रही। कमर झकु कर कमान हो गई थी। एक-एक पग चलना भर था, मगर बात आ पड़ी थी, उसका नणय करना ज री था। बरला ही कोई भला आदमी होगा, जसके सामने बु ढ़या ने ःख के आँसू न बहाए ह । कसी ने तो य ही ऊपरी मन से ँ-हाँ करके टाल दया, और कसी ने इस अ ाय पर जमाने को गा लयाँ द । कहा,\"क म पाँव लटके ए ह, आज मरे कल सरा दन, पर हवस नह मानती। अब तु ा चा हए? रोटी खाओ और अ ाह का नाम लो। तु अब खेती-बाड़ी से ा काम है?\" कु छ ऐसे स न भी थे, ज हा -रस के रसा ादन
का अ ा अवसर मला। झुक ई कमर, पोपला महुँ , सन के से बाल, इतनी साम ी एक हो, तब हँसी न आवे? ऐसे ाय य, दयाल,ु दीन-व ल पु ष ब त कम थे, ज ने उस अबला के खड़े को गौर से सनु ा हो और उसको सां ना दी हो। चार तरफ घूम-घामकर बेचारी अलगू चौधरी के पास आई। लाठी पटक दी और दम लेकर बोली,\"बेटा, तुम भी दम भर के लए मेरी पचं ायत म चले आना।\" अलगू,\"मुझे बुलाकर ा करोगी? कई गाँव के आदमी तो आवगे ही।\" खाला,\"अपनी वपदा तो सबके आगे रो आई। अब जाने न जाने का इ यार उनको है।\" अलगू,\"अब इसका ा जवाब ँ? अपनी खुशी। जु न मेरा पुराना म है। उससे बगाड़ नह कर सकता।\" खाला,\"बटे ा, ा बगाड़ के डर से ईमान क बात न कहोगे?\" हमारे सोए ए धम- ान क सारी सपं लुट जाए, तो उसे खबर नह होती, परंतु ललकार सनु कर वह सचते हो जाता है, फर उसे कोई जीत नह सकता। अलगू इस सवाल का कोई उ र न दे सका, पर उसके दय म ये श गजूँ रहे थे,\" ा बगाड़ के डर से ईमान क बात न करोग?े \" सं ा समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बठै ी। शेख जु न ने पहले से ही फश बछा रखा था। उ ने पान, इलायची, े -तंबाकू आ द का बधं भी कया था। हाँ, वह यं अलब ा अलगू चौधरी के साथ जरा री पर बठै े ए थे। जब पचं ायत म कोई आ जाता था, तब दबे ए सलाम से उसका ागत करते थ।े जब सूय अ हो गया और च ड़य क कलरवयु पंचायत पड़े पर बैठी, तब यहाँ भी पचं ायत शु ई। फश क एक-एक अंगलु जमीन भर गई पर अ धकाशं दशक ही थे। नमं त महाशय म से के वल वे ही लोग पधारे थे, ज जु न से अपनी कु छ कसर नकालनी थी। एक कोने म आग सलु ग रही थी। नाई ताबड़तोड़ चलम भर रहा था। यह नणय करना असभं व था क सुलगते ए उपल से अ धक धआु ँ नकलता था या चलम के दम से। लड़के इधर-उधर दौड़ रहे थे। कोई आपस म गाली-गलौज करते और कोई रोते थे। चार तरफ कोलाहल मच रहा था। गावँ के कु े इस जमाव को भोज समझकर झुडं -के -झंडु जमा हो गए थे। पंच लोग बैठ गए, तो बूढ़ी खाला ने उनसे वनती क ,\"पंचो, आज तीन साल ए, मने अपनी सारी जायदाद अपने भानजे जु न के नाम लख दी थी। इसे आप लोग जानते ही ह गे। जु न ने मझु े ता-हयात रोटी-कपड़ा देना कबलू कया। साल भर तो मने इसके साथ रो-धोकर काटा, पर अब रात- दन का रोना नह सहा जाता। मुझे न पेट क रोटी मलती है न तन का कपड़ा। बके स बवे ा ँ , कचहरी-दरबार नह कर सकती। तु ारे सवा और कसको अपना ःख सनु ाऊँ ? तमु लोग जो राह नकाल दो, उसी राह पर चल।ूँ अगर मझु म कोई ऐब देखो तो मेरे महुँ पर थ ड़ मारो। जु न म बरु ाई देखो, तो उसे समझाओ,
एक बके स क आह लते ा है। म पचं का सर-माथे पर चढ़ाऊँ गी।\" रामधन म , जनके कई आसा मय को जु न ने अपने गाँव म बसा लया था, बोल,े \"जु न मयाँ, कसे पचं बदते हो? अभी से इसका नपटारा कर लो, फर जो कु छ पंच कहगे, वही मानना पड़ेगा।\" जु न को इस समय पंचायत के सद म वशषे कर वे ही लोग दीख पड़े, जनसे कसी- न- कसी कारण उनका वमै न था। जु न बोल,े \"पचं का अ ाह का है। खालाजान जसे चाह, उसे बद। मुझे कोई उ नह ।\" खाला ने च ाकर कहा,\"अरे अ ाह के बंदे! पचं का नाम नह बता देता? कु छ मुझे भी तो मालमू हो।\" जु न ने ोध म कहा,\"अब इस व मेरा महँु न खलु वाओ। तु ारी बन पड़ी है, जसे चाहो, पंच बदो।\" खालाजान जु न के आ पे को समझ गई, बोली,\"बटे ा, खुदा से डरो। पचं न कसी के दो होते ह, न कसी के न। कै सी बात करते हो! और तु ारा कसी पर व ास न हो तो जाने दो अलगू चौधरी को तो मानते हो? लो, म उ को सरपचं बदती ँ।\" जु न शखे आनंद से फू ल उठे, परंतु भाव को छपाकर बोल,े \"अलगू ही सही, मेरे लए जैसे रामधन वसै े अलगू।\" अलगू इस झमेले म फँ सना नह चाहते थ।े वे क ी काटने लगे। बोल,े \"खाला, तमु जानती हो क मेरी जु न से गाढ़ी दो ी है।\" खाला ने गभं ीर र म कहा,\"बेटा, दो ी के लए कोई अपना ईमान नह बेचता। पंच के दल म खदु ा बसता है। पंच के मुहँ से जो बात नकलती है, वह खुदा क तरफ से नकलती है।\" अलगू चौधरी सरपचं ए। रामधन म और जु न के सरे वरो धय ने बु ढ़या को मन म ब त कोसा। अलगू चौधरी बोल,े \"शखे जु न! हम और तमु पुराने दो ह। जब काम पड़ा, तुमने हमारी मदद क है और हम भी जो कु छ बन पड़ा, तु ारी सेवा करते रहे ह, मगर इस समय तमु व बूढ़ी खाला, दोन हमारी नगाह म बराबर हो। तुमको पंच से कु छ अज करना हो, करो।\" जु न को परू ा व ास था क अब बाजी मरे ी है। अलगू यह सब दखावे क बात कर रहा है। अतएव शातं च होकर बोल,े \"पंच , तीन साल ए खालाजान ने अपनी जायदाद मरे े नाम ह ा कर दी थी। मने उ ता-हयात खाना-कपड़ा देना कबलू कया था। खदु ा गवाह
है, आज तक खालाजान को कोई तकलीफ नह दी। म उ अपनी माँ के समान समझता ँ। उनक खदमत करना मरे ा फज है मगर औरत म जरा अनबन रहती है, उसम मरे ा ा बस है? खालाजान मझु से माहवार खच अलग मागँ ती ह। जायदाद जतनी है, वह पंच से छपी नह । उससे इतना मनु ाफा नह होता है क माहवार खच दे सकूँ । इसके अलावा ह ानामे म माहवार खच का कोई ज नह । नह तो म भलू कर भी इस झमेले म न पड़ता। बस, मुझे यही कहना है। आइंदा पंच को इ यार है, जो फै सला चाह, कर।\" अलगू चौधरी को हमेशा कचहरी म काम पड़ता था। अतएव वह पूरा कानूनी आदमी था। उसने जु न से जरह शु क । एक-एक जु न के दय पर हथौड़े क चोट क तरह पड़ता था। रामधन म इन पर मु ए जाते थ।े जु न च कत थे क अलगू को ा हो गया। अभी यह अलगू मरे े साथ बठै ा आ कै सी-कै सी बात कर रहा था। इतनी ही देर म ऐसी कायापलट हो गई क मरे ी जड़ खोदने पर तलु ा आ है। न मालूम कब क कसर नकाल रहा है? ा इतने दन क दो ी भी काम न आवेगी? जु न शखे तो इसी सकं - वक म पड़े ए थे क इतने म अलगू ने फै सला सुनाया,\"जु न शेख! पचं ने इस मामले पर वचार कया। उ यह नी त-संगत मालूम होता है क खालाजान को माहवार खच दया जाए। हमारा वचार है क खाला क जायदाद से इतना मनु ाफा अव होता है क माहवार खच दया जा सके । बस, यही हमारा फै सला है, अगर जु न को खच देना मंजरू न हो, तो ह ानामा र समझा जाए।\" यह फै सला सनु ते ही जु न स ाटे म आ गए। जो अपना म हो, वह श ु का वहार करे और गले पर छु री फे रे, इसे समय के हेर-फे र के सवा और ा कह? जस पर पूरा भरोसा था, उसने समय पड़ने पर धोखा दया। ऐसे ही अवसर पर झूठे-स े म क परी ा क जाती है। यही क लयुग क दो ी है। अगर लोग ऐसे कपटी-धोखेबाज न होत,े तो देश म आप य का कोप होता? यह हैजा- ेग आ द ा धयाँ म के ही दंड ह। मगर रामधन म और अ पंच अलगू चौधरी क इस नी त-परायणता क शंसा जी खोलकर कर रहे थ।े वे कहते थे,\"इसका नाम पंचायत है। ध-का- ध और पानी-का-पानी कर दया। दो ी दो ी क जगह है, कतु धम का पालन करना मु है। ऐसे ही स वा दय के बल पर पृ ी ठहरी है, नह तो वह कब क रसातल को चली जाती।\" इस फै सले ने अलगू और जु न क दो ी क जड़ हला दी। अब वे साथ-साथ बात करते नह दखाई देते थे। इतना परु ाना म ता- पी वृ स का एक झ का भी न सह सका, सचमुच वह बालू क ही जमीन पर खड़ा था। उनम अब श ाचार का अ धक वहार होने लगा। एक- सरे क आवभगत ादा करने लगे। वे मलत-े जुलते थे, मगर उसी तरह, जैसे तलवार से ढाल मलती है। यही चता रहती थी क कसी तरह बदला लने े का अवसर मले।
अ े काम क स म बड़ी देर लगती है पर बुरे काम क स म यह बात नह होती। जु न को भी बदला लने े का अवसर ज ही मल गया। पछले साल अलगू चौधरी बटेसर से बैल क एक ब त अ ी जोड़ी मोल लाए थ।े बैल पछाही जा त के सदुं र, बड़े- बड़े स गवाले थे। महीन तक आस-पास के गाँव के लोग दशन करते रहे। दैवयोग से जु न क पचं ायत के एक महीने के बाद इस जोड़ी का एक बैल मर गया। जु न ने दो से कहा,\"यह दगाबाजी क सजा है। इनसान स भले ही कर जाए, पर खुदा नके - बद सब देखता है।\" अलगू को सदं ेह आ क जु न ने बैल को वष दला दया है। चौधराइन ने भी जु न पर ही इस घटना का दोषारोपण कया। उसने कहा,\"जु न ने कु छ कर-करा दया है। चौधराइन और करीमन म इस वषय पर एक दन खबू ही वाद- ववाद आ। दोन दे वय ने श -बा क नदी बहा दी। ं , व ो , अ ो और उपमा आ द अलकं ार म बात । जु न ने कसी तरह शां त ा पत क । उ ने अपनी प ी को डाँट-डपटकर समझा दया। वह उसे उस रणभू म से हटा भी ले गए। उधर अलगू चौधरी ने समझान-े बझु ाने का काम अपने तकपणू सोटे से लया। अब अके ला बलै कस काम का? उसका जोड़ ब त ढूँढ़ा गया, पर न मला। नदान, यह सलाह ठहरी क इसे बेच डालना चा हए। गावँ म एक समझू सा थे, वह इ ा-गाड़ी हाँकते थे। गाँव से गुड़-घी लादकर मडं ी ले जात,े मडं ी से तले -नमक भर लाते और गाँव म बचे त।े इस बैल पर उनका मन लहराया। उ ने सोचा, यह हाथ लगे तो दन भर म बेखटके तीन खपे ह । आजकल तो एक ही खेप म लाले पड़े रहते ह। बलै देखा, गाड़ी म दौड़ाया, बाल-भ री क पहचान कराई, मोल-तोल कया और उसे लाकर ार पर बाधँ ही दया। एक महीने म दाम चकु ाने का वादा ठहरा। चौधरी को भी गरज थी ही, घाटे क परवाह न क । समझू सा ने नया बलै पाया तो लगे उसे रगेदन।े वह दन म तीन-तीन, चार-चार खपे करने लग।े न चारे क फ थी, न पानी क , बस खेप से काम था। मंडी ले गए, वहाँ कु छ सखू ा भसू ा सामने डाल दया। बचे ारा जानवर अभी दम भी न लेने पाया क फर जोत दया। अलगू चौधरी के घर था तो चैन क वशं ी बजती थी। बैलराम छठे-छमाहे कभी बहली म जोते जाते थे। खूब उछलत-े कू दते और कोस तक दौड़ते चले जाते थे। वहाँ बेलराम का रा तब था, साफ पानी, दली ई अरहर क दाल और भसू े के साथ खली और यही नह , कभी-कभी घी का ाद भी चखने को मल जाता था। शाम-सबेरे एक आदमी खरहरे करता, प छता और सहलाता था। वहाँ वह सुख-चनै , कहाँ यह आठ पहर क खपत! महीने भर ही म वह पस सा गया। इ े का जआु देखते ही उसका ल सूख जाता था। एक-एक पग भर था, ह याँ नकल आई थ पर था वह पानीदार, मार क बरदा थी। एक दन चौधरी खेप म सा जी ने ना बोझ लादा। दन भर थका जानवर, परै न उठते थे, पर सा जी कोड़े फटकारने लग।े बस फर ा था, बलै कलजे ा तोड़कर चला। कु छ र दौड़ा और चाहा क जरा दम ले लँू, पर सा जी को ज प ँचने क फ थी, अतएव उ ने कई कोड़े बड़ी नदयता से फटकारे। बैल ने एक बार फर जोर लगाया; पर अबक
बार श ने जवाब दे दया। वह धरती पर गर पड़ा, और ऐसा गरा क फर न उठा। सा जी ने ब त पीटा, टाँग पकड़कर ख चा, नथुन म लकड़ी ठूँस दी, पर कह मतृ क भी उठ सकता है? तब सा जी को कु छ शक आ। उ ने बलै को गौर से देखा, खोलकर अलग कया और सोचने लगे क गाड़ी कै से घर प ँच।े ब त चीखे- च ाए; पर देहात का रा ा ब क आँख क तरह साँझ होते ही बदं हो जाता है। कोई नजर न आया। आस- पास कोई गाँव भी न था। मारे ोध के उ ने मरे ए बलै पर और र लगाए और कोसने लग,े \"अभागे! तुझे मरना ही था तो घर प ँचकर मरता, ससरु ा बीच रा े ही म मर गया! अब गाड़ी कौन ख चे?\" इस तरह सा जी खूब जल-े भनु ।े कई बोरे गुड़ और पीपे घी उ ने बेचे थे दो-ढाई सौ पए कमर म बधँ े थे। इसके अलावा गाड़ी पर कई बोरे नमक के थे अतएव छोड़कर जा भी न सकते थे। लाचार बेचारे गाड़ी पर ही लेट गए। वह रतजगा करने क ठान ली। चलम पी या फर ा पया। इस तरह सा जी आधी रात तक न द को बहलाते रहे। अपनी जान म तो वह जागते ही रहे, पर पौ फटते ही जो न द टू टी और कमर पर हाथ रखा तो थलै ी गायब! घबराकर इधर-उधर देखा, तो कई कन र तेल भी नदारद। अफसोस म बेचारे ने सर पीट लया और पछाड़ खाने लगा। ातःकाल रोत-े बलखते घर प ँचे। सा आइन ने जब यह बरु ी सुनावनी सनु ी, तब पहले तो रोई, फर अलगू चौधरी को गा लयाँ देने लगी,\" नगोड़े ने ऐसा कु ल नी बैल दया क ज भर क कमाई लुट गई।\" इस घटना को ए कई महीने बीत गए। अलगू जब अपने बलै के दाम माँगते, तब सा और सा आइन, दोन ही झ ाए ए कु े क तरह चढ़ बैठते और अंडबडं बकने लगत,े \"वाह! यहाँ तो सारे ज क कमाई लटु गई, स ानाश हो गया, इ दाम क पड़ी है। मुरदा बैल दया था, उस पर दाम माँगने चले ह। आँख म धलू झ क दी, स ानाशी बैल गले बाँध दया, हम नरा प गा ही समझ लया है। हम भी ब नए के ब े ह, ऐसे बु ू कह और ह गे, पहले जाकर कसी ग े म महुँ धो आओ, तब दाम लेना। न जी मानता हो तो हमारा बलै खोल ले जाओ। महीना भर के बदले दो महीना जोत लो, और ा लोग?े \" चौधरी के अशुभ चतक क कमी न थी। ऐसे अवसर पर वे भी एक हो जाते और सा जी के बराने क पु करते। परंतु डेढ़ सौ पए से इस तरह हाथ धो लेना आसान न था। एक बार वह भी गरम पडे़। सा जी बगड़कर लाठी ढूँढ़ने घर चले गए। अब सा आइन ने मैदान लया। ो र होते-होते हाथापाई क नौबत आ प ँची। सा आइन ने घर म घुसकर कवाड़ बंद कर लय।े शोरगुल सुनकर गाँव के भलेमानस जमा हो गए। उ ने दोन को समझाया। सा जी को दलासा देकर घर से नकाला। वह परामश देने लगे क इस तरह से काम न चलगे ा, पंचायत कर लो, जो कु छ तय हो जाए, उसे ीकार कर लो। सा जी राजी हो गए। अलगू ने भी हामी भर ली। पचं ायत क तैया रयाँ होने लग । दोन प ने अपन-े अपने दल बनाने शु कर दए। इसके बाद तीसरे दन उसी वृ के नीचे पचं ायत बैठी। वही सं ा का समय था। खेत म
कौए पचं ायत कर रहे थ।े ववाद वषय यह था क मटर क फ लय पर उनका कोई है या नह ? और जब तक यह हल न हो जाए, तब तक वे रखवाले क पुकार पर अपनी अ स ता कट करना आव क समझते थे। पड़े क डा लय पर बठै ी शकु -मडं ली म छड़ा आ था क मनु को उ बमे ुरौ त कहने का ा अ धकार है, जब उ यं अपने म से दगा करने म भी संकोच नह होता। पचं ायत बठै गई, तो रामधन म ने कहा,\"अब देरी ा है? पचं का चनु ाव हो जाना चा हए। बोलो चौधरी, कस- कस को पंच बदते हो?\" अलगू ने दीन भाव से कहा,\"समझू सा ही चनु ल।\" समझू खड़े ए और कड़ककर बोल,े \"मरे ी ओर से जु न शेख।\" जु न का नाम सुनते ही अलगू चौधरी का कलेजा धक् -धक् करने लगा, मानो कसी ने अचानक थ ड़ मार दया हो। रामधन अलगू के म थे, वह बात को ताड़ गए। पछू ा,\" चौधरी, तु कोई उ तो नह ?\" चौधरी ने नराश होकर कहा,\"नह , मुझे ा उ होगा?\" अपने उ रदा य का ान ब धा हमारे सकं ु चत वहार का सधु ारक होता है। जब हम राह भूलकर भटकने लगते ह, तब यही ान हमारा व सनीय पथ- दशक बन जाता है। प -संपादक अपनी शां त कु टी म बैठा आ कतनी धृ ता और तं ता के साथ अपनी बल लखे नी से मं मंडल पर आ मण करता है। परंतु ऐसे अवसर आते ह, जब वह यं मं मडं ल म स लत होता है। मडं ल के भवन म पग धरते ही उसक लखे नी कतनी मम , कतनी वचारशील, ायपरायण हो जाती है। इसको उ रदा य का ान कहा जाता है। नवयुवक युवाव ा म कतना उ ंड रहता है। माता- पता उसक ओर से कतने च तत रहते ह, वे उसे कु ल-कं लक समझते ह, परंतु थोड़े ही समय म प रवार का बोझ सर पर पड़ते ही अ त- च उ युवक, कतनी धैयशील, कै सा शांत च हो जाता है, यह भी उ रदा य के ान का फल है। जु न शेख के मन म भी सरपचं का उ ान हण करते ही अपनी ज ेदारी का भाव पदै ा आ। उसने सोचा, म इस व ाय और धम के सव आसन पर बठै ा ँ। मेरे मँुह से इस समय जो कु छ नकलगे ा, वह देववाणी के स श है-और देववाणी म मरे े मनो वकार का कदा प समावेश न होना चा हए। मझु े स से जौ भर भी टलना उ चत नह । पचं ने दोन से सवाल-जवाब करने शु कए। ब त देर तक दोन दल अपन-े अपने प का समथन करते रहे। इस वषय म तो सब सहमत थे क समझू को बलै का मू देना चा हए। परंतु दो महाशय इस कारण रयायत करना चाहते थे क बलै के मर जाने से समझू को हा न ई। इसके तकू ल दो स मलू के अ त र समझू को दंड भी देना चाहते थे, जससे फर कसी को पशुओं के साथ ऐसी नदयता करने का साहस न हो। अंत म जु न ने फै सला सुनाया,\"अलगू चौधरी और सा , पचं ने तु ारे मामले पर
अ ी तरह वचार कया। समझू के लए उ चत है क बलै का पूरा दाम द। जस व उ ने बैल लया, उसे कोई बीमारी न थी। अगर उसी समय दाम दे दए जाते तो आज समझू उसे फे र लेने का आ ह न करते। बैल क मृ ु के वल इस कारण ई क उससे बड़ा क ठन प र म लया गया और उसके दाने-चारे का कोई अ ा बंध न कया गया।\" रामधन म बोल,े \"समझू ने बलै को जान-बझू कर मारा है, अतएव उससे दंड लने ा चा हए।\" जु न बोल,े \"यह सरा सवाल है। हमको इससे कोई मतलब नह ।\" झगड़ू सा ने कहा,\"समझू के साथ कु छ रयायत होनी चा हए।\" जु न बोल,े \"यह अलगू चौधरी क इ ा पर नभर है। वह रयायत कर, तो उनक भलमनसी।\" अलगू चौधरी फू ले न समाए। उठ खड़े ए और जोर से बोले, \"पंच-परमे र क जय!\" इसके साथ ही चार ओर से त न ई,\"पंच-परमे र क जय!\" ेक मनु जु न क नी त को सराहता था,\"इसे कहते ह ाय! यह मनु का काम नह । पचं म परमे र वास करते ह, यह उ क म हमा है। पंच के सामने खोटे को कौन खरा कह सकता है?\" थोड़ी देर के बाद जु न अलगू चौधरी के पास आए और उनके गले लपटकर बोले, \"भयै ा, जब से तुमने मेरी पंचायत क , तब से म तु ारा ाणघातक श ु बन गया था; पर आज मुझे ात आ क पंच के पद पर बठै कर न कोई कसी का दो होता है, न न। ाय के सवा और कु छ नह सझू ता। आज मझु े व ास हो गया क पचं क जबु ान से खदु ा बोलता है।\" अलगू रोने लगे। इस पानी से दोन के दल का मलै धलु गया। म ता क मरु झाई ई लता फर हरी हो गई।
स तीकुं ड म खले ए कमल वसंत के धीमे-धीमे झ क से लहरा रहे थे और ातःकाल क मदं -मंद सुनहरी करण उनसे मल- मलकर मसु कराती थ । राजकु मारी भा कुं ड के कनारे हरी-भरी घास पर खड़ी संदु र प य का कलरव सनु रही थी। उसका कनकवण तन इ फू ल क भाँ त दमक रहा था, मानो भात क सा ात् सौ मू त है, जो भगवान् अंशमु ाली के करण-कर ारा न मत ई थी। भा ने मौल सरी के वृ पर बैठी ई एक ामा क ओर देखकर कहा, \"मरे ा जी चाहता है क म भी एक च ड़या होती। उसक सहेली उमा ने मसु कराकर पूछा, \" ?\" भा ने कुं ड क ओर ताकते ए उ र दया, \"वृ क हरी-भरी डा लय पर बैठी ई चहचहाती, मेरे कलरव से सारा बाग गँूज उठता।\" उमा ने छेड़कर कहा, \"नौगढ़ क रानी ऐसे कतने ही प य का गाना जब चाहे सुन सकती है।\" भा ने संकु चत होकर कहा, \"मुझे नौगढ़ क रानी बनने क अ भलाषा नह है। मरे े लए कसी नदी का सुनसान कनारा चा हए। एक वीणा और ऐसी ही सुदं र सहु ावने प य के सगं ीत क मधरु न म मेरे लए सारे ससं ार का ऐ य भरा आ है।\" भा का सगं ीत पर अप र मत ेम था। वह ब धा ऐसे ही सखु - देखा करती थी। उमा उ र देना ही चाहती थी क इतने म बाहर से कसी के गाने क आवाज आई, \"कर गए थोड़े दन क ी त।\" भा ने एका मन होकर सुना और अधीर होकर कहा, \"ब हन, इस वाणी म जा है। मुझसे अब बना सुने नह रहा जाता, इसे भीतर बुला लाओ।\" उस पर भी गीत का जा असर कर रहा था। वह बोली, \" न ंदेह, ऐसा राग मने आज तक नह सुना, खड़क खोलकर बुलाती ँ।\"
थोड़ी देर म रा गया भीतर आया, \"संदु र-सजीले बदन का नौजवान था। नंगे परै , नंगे सर कं धे पर एक मगृ चम, शरीर पर एक गे आ व , हाथ म एक सतार। मखु ार वद से तजे छटक रहा था। उसने दबी ई से दोन कोमलांगी रम णय को देखा और सर झुकाकर बठै गया। भा ने झझकती ई आँख से देखा और नीचे कर ली। उमा ने कहा, \"योगीजी, हमारे बड़े भा थे क आपके दशन ए, हमको भी कोई पद सुनाकर कृ ताथ क जए।\" योगी ने सर झकु ाकर उ र दया, \"हम योगी लोग नारायण का भजन करते ह। ऐस-े ऐसे दरबार म हम भला ा गा सकते ह, पर आपक इ ा है तो सु नए, \"कर गए थोड़े दन क ी त। कहाँ वह ी त, कहाँ यह बछरन, कहाँ मधवु न क री त, कर गए थोड़े दन क ी त।\" योगी का रसीला क ण र, सतार का सुमधरु ननाद, उस पर गीत का माधयु भा को बसे धु कए देता था। इसका रस भाव और उसका मधुर रसीला गान, अपूव सयं ोग था। जस भाँ त सतार क न गगनमंडल म त नत हो रही थी, उस भाँ त भा के दय म लहर क हलोर उठ रही थ । वे भावनाएँ जो अब तक शांत थ , जाग पड़ । दय सुख- देखने लगा। सतीकुं ड के कमल त ल क प रयाँ बन-बनकर मँडराते ए भ र से कर जोड़ सजल नयन हो, कहते थ-े \"कर गए थोड़े दन क ी त।\" सुख और हरी प य से लदी ई डा लयाँ सर झुकाए चहचहाते ए प य से रो-रोकर कहती थ - \"कर गए थोड़े दन क ी त।\" और राजकु मारी भा का दय भी सतार क म ानी तान के साथ गजँू ता था- \"कर गए थोड़े दन क ी त।\" भा बघौली के राव देवीचदं क इकलौती क ा थी। राव परु ाने वचार के रईस थे। कृ क उपासना म लवलीन रहते थ,े इस लए इनके दरबार म र- र के कलावंत और गवैये आया करते और इनाम-एकराम पाते थ।े राव साहब को गान से मे था, वे यं भी इस व ा म नपणु थ।े य प अब वृ ाव ा के कारण यह श नःशेष हो चली थी, पर फर भी व ा के गूढ़ त के पूण जानकार थे। भा बा काल से ही इनक सोहबत म बैठने लगी। कु छ तो पवू ज का सं ार और कु छ रात- दन गाने क ही चचाओं ने उसे भी इस फन म अनरु कर दया था। इस समय उसके स दय क खूब चचा थी। राव साहब ने
नौगढ़ के नवयवु क और सुशील राजा ह र ं से उसक शादी तजवीज क थी। उभय प म तैया रयाँ हो रही थ । राजा ह र ं मये ो कॉ लज अजमेर के व ाथ और नई रोशनी के भ थ।े उनक आकां ा थी क उ एक बार राजकु मारी भा से सा ा ार होने और मे ालाप करने का अवसर दया जाए, कतु राव साहब इस था को षत समझते थे। भा राजा ह र ं के नवीन वचार क चचा सनु कर इस संबंध से ब त सतं ु न थी। पर जब से उसने इस ेममय युवा योगी का गाना सनु ा था, तब से तो वह उसी के ान म डू बी रहती। उमा उसक सहेली थी। इन दोन के बीच कोई परदा न था। परंतु इस भदे को भा ने उससे भी गु रखा। उमा उसके भाव से प र चत थी, ताड़ गई। परंतु उसने उपदेश करके इस अ को भड़काना उ चत न समझा। उसने सोचा क थोड़े दन म ये अ आप से आप शांत हो जाएगी। ऐसी लालसाओं का अंत ायः इसी तरह हो जाया करता है कतु उसका अनुमान गलत स आ। योगी क वह मो हनी मू त कभी भा क आँख से न उतरती, उसका मधुर राग त ण उसके कान म गजँू ा करता। उसी कुं ड के कनारे वह सर झकु ाए सारे दन बैठी रहती। क ना म वही मधुर दय ाही राग सुनती और वही योगी क मनोहरणी मू त देखती। कभी-कभी उसे ऐसा आभास होता क बाहर से यह आवाज आ रही है। वह च क पड़ती और तृ ा से े रत होकर वा टका क चारदीवारी तक जाती और वहाँ से नराश होकर लौट आती। फर आप ही वचार करती, \"यह मरे ी ा दशा है! मझु े यह ा हो गया है! म ह क ा ँ, माता- पता जसे स प द, उसक दासी बनकर रहना धम है। मुझे तन-मन से उसक सवे ा करनी चा हए। कसी अ पु ष का ान तक मन म लाना मरे े लए पाप है! आह! यह कलु षत दय लेकर म कस मुहँ से प त के पास जाऊँ गी! इन कान से कर णय क बात सुन सकूँ गी, जो मरे े लए ं से भी अ धक कणकटु ह गी! इन पापी ने से वह ारी- ारी चतवन कै से देख सकूँ गी, जो मेरे लए व से भी दयभेदी ह गी। इस गले म वे मृ ल मे बा पड़गे जो लौहदंड से भी अ धक भारी और कठोर ह गे। ारे, तुम मरे े दय-मं दर से नकल जाओ। यह ान तु ारे यो नह । मरे ा वश होता तो तु दय क सेज पर सुलाती; परंतु म धम क र य म बँधी ँ।\"
इस तरह एक महीना बीत गया। ाह के दन नकट आते जाते थे और भा का कमल- सा मखु कु लाया जाता था। कभी-कभी वरह-वदे ना एवं वचार- व व से ाकु ल होकर उसका च चाहता क सतीकुं ड क गोद म शां त ल,ूँ कतु राव साहब इस शोक म जान ही दे दग,े यह वचार कर वह क जाती। सोचती, म उनक जीवन-सव ँ, मझु अभा गनी को उ ने कस लाड़- ार से पाला है म ही उनके जीवन का आधार और अंतकाल ही आशा ँ। नह , य ाण देकर उनक आशाओं क ह ा न क ँ गी। मरे े दय पर चाहे जो बीत,े उ न कु ढ़ाऊँ गी! भा का एक योगी गवयै े के पीछे उ हो जाना कु छ शोभा नह देता। योगी का गान तानसेन के गान से भी अ धक मनोहर न हो, पर एक राजकु मारी का उसके हाथ बक जाना दय क बलता कट करता है राव साहब के दरबार म व ा क , शौय क और वीरता से ाण हवन करने क चचा न थी। यहाँ तो रात- दन राग-रंग क धमू रहती थी। यहाँ इसी शा के आचाय त ा के मसनद पर वरा जत थे और उ पर शसं ा के ब मू र लटु ाए जाते थ।े भा ने ारंभ ही से इसी जलवायु का सेवन कया था और उस पर इनका गाढ़ा रंग चढ़ गया था। ऐसी अव ा म उसक गान- ल ा ने य द भीषण प धारण कर लया तो आ य ही ा है! शादी बड़ी धूमधाम से ई। राव साहब ने भा को गले लगाकर वदा कया। भा ब त रोई। उमा को वह कसी तरह छोड़ती न थी। नौगढ़ एक बड़ी रयासत थी और राजा ह र ं के सु बधं से उ त पर थी। भा क सेवा के लए दा सय क एक परू ी फौज थी। उसके रहने के लए वह आनदं -भवन सजाया गया था, जसके बनाने म श - वशारद ने अपूव कौशल का प रचय दया था। ंगार- चतुराओं ने ल हन को खूब सँवारा। रसीले राजा साहब अधरामतृ के लए व ल हो रहे थे। अंतःपरु म गए। भा ने हाथ जोड़कर, सर झुकाकर, उनका अ भवादन कया। उसक आँख से आँसू क नदी बह रही थी। प त ने ेम के मद म म होकर घघूँ ट हटा दया, दीपक था, पर बुझा आ। फू ल था, पर मुरझाया आ। सरे दन से राजा साहब क यह दशा ई क भ रे क तरह त ण इस फू ल पर मडँ राया करते। न राज-पाट क चता थी, न सरै - शकार क परवाह। भा क वाणी रसीला राग थी, उसक चतवन सखु का सागर और उसका मुख-चं आमोद का सुहावना कुं ज। बस, मे -मद म राजा साहब बलकु ल मतवाले हो गए थ,े उ ा मालूम था क ध म म ी है। यह असंभव था क राजा साहब के दयहारी और सरस वहार का, जसम अनरु ाग भरा आ था, भा पर कोई भाव न पड़ता। मे का काश अँधरे े दय को भी चमका देता है। भा मन म ब त ल त होती। वह अपने को इस नमल और वशु मे के यो न पाती थी, इस प व मे के बदले म उसे अपने कृ म, रँगे ए भाव कट करते ए मान सक क होता था। जब तक राजा साहब उसके साथ रहत,े वह उनके गले लता क भाँ त लपटी ई घंट ेम क बात कया करती। वह उनके साथ सुमन-वा टका म चुहल
करती, उनके लए फू ल का हार गँूथती और उनके गले म हार डालकर कहती, \" ारे, देखना ये फू ल मरु झा न जाएँ , इ सदा ताजा रखना।\" वह चाँदनी रात म उनके साथ नाव पर बैठकर झील क सैर करती और उ मे का राग सुनाती। य द उ बाहर से आने म जरा भी देर हो जाती, तो वही मीठा-मीठा उलाहना देती, उ नदय तथा न ु र कहती। उनके सामने वह यं हँसती, उसक आँख हँसती और आँख का काजल भी हँसता था। कतु आह! जब वह अके ली होती, उसका चचं ल च उड़कर उसी कुं ड के तट पर जा प ँचता_ कुं ड का वह नीला-नीला पानी, उस पर तैरते ए कमल और मौल सरी क वृ - पं य का सुदं र आँख के सामने आ जाता। उमा मुसकराती और नजाकत से लचकती ई आ प ँचती, तब रसीले योगी क मो हनी छ व आँख म आ बैठती और सतार से सुल लत सरु गजँू ने लगत-े \"कर गए थोड़े दन क ी त।\" तब वह एक दीघ नः ास लके र उठ बैठती और बाहर नकलकर पजरे म चहकते ए प य के कलरव म शां त ा करती। इस भाँ त यह तरो हत हो जाता। इस तरह कई महीने बीत गए। एक दन राजा ह र ं भा को अपनी च शाला म ले गए। उसके थम भाग म ऐ तहा सक च थ।े सामने ही शूरवीर महाराणा ताप सह का च नजर आया। मुखार वद से वीरता क ो त ु टत हो रही थी। त नक और आगे बढ़कर दा हनी ओर ा मभ जगमल, वीरवर सागँ ा और दलेर गादास वराजमान थे। बा ओर उदार भीम सह बैठे ए थे। राणा ताप के स ुख महारा के सरी वीर शवाजी का च था। सरे भाग म कमयोगी कृ और मयादा पु षो म राम वराजते थ।े चतुर च कार ने च - नमाण म अपवू कौशल दखाया था। भा ने ताप के पाद-प को चूमा और वह कृ के सामने देर तक ने म ेम और ा के आँसू भरे, म क झकु ाए खड़ी रही। उसके दय पर इस समय कलु षत ेम का भय खटक रहा था। उसे मालमू होता था क यह उन महापु ष के च नह , उनक प व आ ाएँ ह। उ के च र से भारतवष का इ तहास गौरवा त है। वीरता के ब मू जातीय र उ को ट के जातीय ारक और गगनभेदी जातीय तुमुल न है। ऐसी उ आ ाओं के सामने खड़े होते उसे संकोच होता था। वह आगे बढ़ी, सरा भाग सामने आया। यहाँ ानमय बु योगसाधना म बठै े ए दीख पड़े। उनक दा हनी और शा शकं र थे और दाश नक दयानंद। एक दीवार पर गु गो वद अपने देश और जा त पर ब ल चढ़ने वाले दोन ब के साथ वराजमान थे। सरी दीवार पर वेदांत क ो त फै लाने वाले ामी रामतीथ और ववके ानंद वराजमान थे। च कार क यो ता एक-एक अवयव से टपकती थी। भा ने इनके चरण पर म क टेका। वह उनके सामने सर न उठा सक । उसे अनुभव होता था क द आँख उसके षत दय म चुभी जाती ह। इसके बाद तीसरा भाग आया। यह तभाशाली क वय क सभा थी। सव ान पर आ दक व वा ी क और मह ष वेद ास सशु ो भत थ।े दा हनी ओर ंगार रस के अ तीय क व कालीदास थे, बा तरफ गभं ीर भाव से पूण भवभू त। नकट ही भतृह र अपने
सतं ोषा म म बैठे ए थे। द ण क दीवार पर रा भाषा हदी के क वय का स ेलन था। स दय क व, सरू , तेज ी तलु सी, सकु व के शव और र सक बहारी यथा म वराजमान थे। सूरदास से भा का अगाध मे था। वह समीप जाकर उनके चरण पर म क रखना ही चाहती थी क अक ात् उ चरण के स ुख सर झकु ाए उसे एक छोटा सा च दखाई पड़ा। भा उसे देखकर च क पड़ी। यह वही च था, जो उसके दय-पट पर खचा आ था। वह खुलकर उसक तरफ ताक न सक , दबी ई आँख से देखने लगी। राजा ह र ं ने मुसकराकर पछू ा, \"इस को तुमने कह देखा है?\" इस से भा का दय काँप उठा। जस तरह मगृ -शावक ाध के सामने ाकु ल होकर इधर-उधर देखता है, उसी तरह भा अपनी बड़ी-बड़ी आँख से दीवार क ओर ताकने लगी। सोचने लगी, ‘ ा उ र ँ? इसको कह देखा है, उ ने यह मुझसे कया? कह ताड़ तो नह गए? हे नारायण! मेरा तप तु ारे हाथ है, कर इनकार क ँ ?’ महँु पीला हो गया। सर झुकाकर ीण र म बोली, \"हा,ँ ान आता है क कह देखा है।\" ह र ं ने कहा, \"कहाँ देखा है?\" भा के सर म च र सा आने लगा। बोली, \"शायद एक बार यह गाता आ मेरी वा टका के सामने जा रहा था। उमा ने बुलाकर इसका गाना सुना था।\" ह र ं ने पूछा, \"कै सा गाना था?\" भा के होश उड़े ए थे। सोचती थी, राजा के इन सवाल म ज र कोई बात है। देख,ँू लाज रहती है या नह । बोली, \"उसका गाना ऐसा बरु ा न था।\" ह र ं ने मसु कराकर कहा, \" ा गाता था?\" भा ने सोचा, इन का उ र दे ँ तो बाक ा रहता है। उसे व ास हो गया क आज कु शल नह है, वह छत क ओर नरखती ई बोली, \"सूरदास का कोई पद था।\" ह र ं ने कहा, \"यह तो नह , \"कर गए थोड़े दन क ी त।\" भा क आँख के सामने अँधरे ा छा गया। सर घूमने लगा, वह खड़ी न रह सक , बैठ गई और हताश होकर बोली, \"हाँ, यह पद था।\" फर उसने कलेजा मजबतू करके पछू ा, \"आपको कै से मालमू आ?\" ह र ं बोल,े \"वह योगी मरे े यहाँ अकसर आया-जाया करता है। मुझे भी उसका गाना पसंद है। उसी ने मझु े यह हाल बताया था, कतु वह तो कहता था क राजकु मारी ने मेरे गान को ब त पसदं कया और पुनः आने के लए आदेश कया।\"
भा को अब स ा ोध दखाने का अवसर मल गया। वह बगड़कर बोली, \"यह बलकु ल झूठ है। मने उससे कु छ नह कहा।\" ह र ं बोल,े \"यह तो म पहले ही समझ गया था क उन महाशय क चालाक है। ड ग मारना गवयै क आदत है परंतु इसम तो तु इनकार नह क उसका गान बुरा न था?\" भा बोली, \"ना! अ ी चीज को बरु ा कौन कहेगा?\" ह र ं ने पूछा, \" फर सुनना चाहो तो उसे बुलवाऊँ । सर के बल दौड़ा आएगा।\" ा उनके दशन फर ह गे? इस आशा से भा का मुखमंडल वक सत हो गया। परंतु इन कई महीन क लगातार को शश से जस बात को भलु ाने म वह क चत् सफल हो चकु थी, उसके फर नवीन हो जाने का भय आ। बोली, \"इस समय गाना सनु ने को मरे ा जी नह चाहता।\" राजा ने कहा, \"यह म न मानूगँ ा क तमु और गाना नह सनु ना चाहत , म उसे अभी बलु ाए लाता ँ।\" यह कहकर राजा ह र ं तीर क तरह कमरे से बाहर नकल गए। भा उ रोक न सक । वह बड़ी चता म डू बी खड़ी थी। दय म खशु ी और रंज क लहर बारी-बारी से उठती थ । मु ल से दस मनट बीते ह गे क उसे सतार के म ाने सरु के साथ योगी क रसीली तान सनु ाई दी- \"कर गए थोड़े दन क ी त।\" वह दय ाही राग था, वही दय-भेदी भाव, वही मनोहरता और वही सबकु छ, जो मन को मोह लते ा है। एक ण म योगी क मो हनी मू त दखाई दी थी। वह म ानापन, वही मतवाले ने , वही नयना भराम देवताओं का सा प। मखु मंडल पर मदं -मंद मुसकान थी। भा ने उसक तरफ सहमी ई आँख से देखा। एकाएक उसका दय उछल पड़ा। उसक आँख के आगे से एक परदा हट गया। ेम- व ल हो, आँख म आँसू भरे वह अपने प त के चरणर वद पर गर पड़ी और ग द कं ठ से बोली, \" ारे यतम!\" राजा ह र ं को आज स ी वजय ा ई। उ ने भा को उठाकर छाती से लगा लया। दोन आज एक ाण हो गए। राजा ह र ं ने कहा, \"जानती हो, मने यह ागँ रचा था? गाने का मझु े सदा से सन है और सनु ा है तु भी इसका शौक है। तु अपना दय भट करने से थम एक बार तु ारा दशन करना आव क तीत आ और उसके लए सबसे सुगम उपाय यही सूझ पड़ा।\" भा ने अनरु ाग से देखकर कहा, \"योगी बनकर तमु ने जो कु छ पा लया, वह राजा रहकर
कदा प न पा सकते। अब तुम मरे े प त हो और यतम भी हो पर तमु ने मझु े बड़ा धोखा दया और मेरी आ ा को कलं कत कया। इसका उ रदाता कौन होगा?\"
आ गरा कॉलजे के मदै ान म सं ा-समय दो यवु क हाथ-स-े हाथ मलाए टहल रहे थे। एक का नाम यशवंत था, सरे का रमेश। यशवतं डीलडौल का ऊँ चा और ब ल था। उसके मखु पर सयं म और ा क कां त झलकती थी। रमेश छोटे कद और इकहरे बदन का, तेजहीन और बल आदमी था। दोन म कसी वषय पर बहस हो रही थी। यशवंत, \"हाँ, देख लने ा। तमु ताना मार रहे हो, ले कन म दखला ँगा क धन को कतना तु समझता ँ?\" रमशे , \"खरै , दखला देना। म तो धन को तु नह समझता। धन के लए 15 वष से कताब चाट रहा ँ, धन के लए माँ-बाप, भाई-ब हन सबसे अलग यहाँ पड़ा ँ, न जाने अभी कतनी सला मयाँ देनी पड़गी, कतनी खशु ामद करनी पड़ेगी। ा इसम आ ा का पतन न होगा? म तो इतने ऊँ चे आदश का पालन नह कर सकता। यहाँ तो अगर कसी मुकदमे म अ ी र त पा जाएँ तो शायद छोड़ न सक। ा तुम छोड़ दोग?े \" यशवतं , \"म उनक ओर आँख उठाकर भी न देखूँगा और मुझे व ास है क तमु जतने नीच बनते हो, उतने नह हो।\" रमेश, \"म उससे कह नीच ँ, जतना कहता ँ।\" यशवतं , \"मुझे तो यक न नह आता क ाथ के लए तमु कसी को नकु सान प ँचा सकोगे?\" रमेश, \"भाई, संसार म आदश का नवाह के वल सं ासी ही कर सकता है म तो नह कर सकता। म तो समझता ँ क अगर तु ध ा देकर तमु से बाजी जीत सकूँ , तो तु ज र गरा ँगा और बरु ा न मानो तो कह ँ, तुम भी मझु े ज र गरा दोग।े ाथ का ाग करना क ठन है।\"
यशवंत, \"तो म क ँगा क तमु भाड़े के ट ू हो।\" रमेश, \"और म क ँगा क तुम काठ के उ ू हो।\" यशवंत और रमेश साथ-साथ ू ल म दा खल ए और साथ-ही-साथ उपा धयाँ लेकर कॉलजे से नकले। यशवंत कु छ मदं बु , पर बला का महे नती था। जस काम को हाथ म लेता, उससे चपट जाता और उसे पूरा करके ही छोड़ता। रमेश तजे ी था पर आलसी। घटं े-भर भी जमकर बठै ना उसके लए मु ल था। एम-ए- तक तो वह आगे रहा और यशवंत पीछे, मेहनत बु -बल से परा होती रही; ले कन स वल स वस म पासा पलट गया। यशवंत सब धधं े छोड़कर कताब पर पल पड़ा, घूमना- फरना, सैर-सपाटा, सरकस- थएटर, यार-दो , सबसे मँुह मोड़कर अपनी एकांत कु टीर म जा बठै ा। रमशे दो के साथ गपशप उड़ाता, के ट खेलता रहा। कभी-कभी मनोरंजन के तौर पर कताब देख लेता। कदा चत् उसे व ास था क अब क भी मरे ी तेजी बाजी ले जाएगी। अकसर जाकर यशवतं को परेशान करता, उसक कताब बंद कर देता; कहता, \" ाण दे रहे हो? स वल स वस कोई मु तो नह है, जसके लए नया से नाता तोड़ लया जाए।\" यहाँ तक क यशवतं उसे आते देखता, तो कवाड़ बदं कर लते ा। आ खर परी ा का दन आ प ँचा। यशवतं ने सबकु छ याद कया, पर कसी का उ र सोचने लगता तो उसे मालूम होता, मने जतना पढ़ा था, सब भूल गया। वह ब त घबराया आ था। रमशे पहले से कु छ सोचने का आदी न था। सोचता, जब परचा सामने आएगा, उस व देखा जाएगा। वह आ व ास से फू ला-फू ला फरता था। परी ा का फल नकला तो सु कछु आ तजे खरगोश से बाजी मार ले गया था। अब रमेश क आँख खलु , पर वह हताश न आ। यो आदमी के लए यश और धन क कमी नह , यह उसका व ास था। उसने काननू क परी ा क तयै ारी शु क और य प उसने ब त ादा महे नत न क , ले कन अ ल दरजे म पास आ। यशवंत ने उसको बधाई का तार भजे ा; वह अब एक जले का अफसर हो गया था। दस साल गजु र गए। यशवतं दलोजान से काम करता था और उसके अफसर उससे ब त स थे। पर अफसर जतने स थ,े मातहत उतने ही अ स रहते थ।े वह खदु जतनी मेहनत करता था, मातहत से भी उतनी ही महे नत लने ा चाहता था, खदु जतना बेलौस था, मातहत को भी उतना ही बले ौस बनाना चाहता था। ऐसे आदमी बड़े कारगजु ार समझे जाते ह। यशवतं क कारगजु ारी का अफसर पर स ा जमता जाता था। पाचँ वष म ही वह जले का जज बना दया गया। रमेश इतना भा शाली न था। वह जस इजलास म वकालत करने जाता, वह असफल रहता। हा कम को नयत समय पर आने म देर हो जाती तो खुद भी चल देता और फर बुलाने से भी न आता। कहता, \"अगर हा कम व क पाबंदी नह करता तो म क ँ ?
मझु े ा गरज पड़ी है क घंट उनके इजलास पर खड़ा उनक राह देखा क ँ ?\" बहस इतनी नभ कता से करता है क खशु ामद के आदी ाम क नगाह म उसक नभ कता गु ाखी मालमू होती। सहनशीलता उसे छू नह गई थी। हा कम हो या सरे प का वक ल, जो उसके मुँह लगता, उसक खबर लेता था। यहाँ तक क एक बार वह जला जज ही से लड़ बठै ा। फल यह आ क उसक सनद छीन ली गई, कतु मुव ल के दय म उसका स ान -का- रहा। तब उसने आगरा कॉलेज म श क का पद ा कर लया, कतु यहाँ भी भा ने साथ न छोड़ा। सपल से पहले ही दन खटखट हो गई। सपल का स ांत यह था क व ा थय को राजनी त से अलग रहना चा हए। वह अपने कॉलजे के कसी छा को कसी राजनी तक जलसे म शरीक न होने देते। रमेश पहले ही दन इस आ ा का खु मखु ा वरोध करने लगा। उसका कथन था क अगर कसी को राजनी तक जलस म शा मल होना चा हए तो व ाथ को। यह भी उसक श ा का एक अंग है। अ देश म छा ने यगु ांतर उप त कर दया है तो इस देश म उनक जुबान बदं क जाती है। इसका फल यह आ क साल ख होने से पहले ही रमेश को इ ीफा देना पड़ा, कतु व ा थय पर उसका दबाव तल भर भी कम न आ। इस भाँ त कु छ तो अपने भाव और कु छ प र तय ने रमेश को मार-मारकर हा कम बना दया। पहले मुव ल का प लेकर अदालत से लड़ा, फर छा का प लके र सपल से राड़ मोड़ ली और अब जा का प लके र सरकार को चुनौती दी। वह भाव से ही नभ क, आदशवादी, स भ तथा आ ा भमानी था। ऐसे ाणी के लए जा- सवे क बनने के सवा और उपाय ही ा था? समाचार-प म वतमान प र त पर उसके लखे नकलने लग।े उसक आलोचनाएँ इतनी , इतनी ापक और इतनी मा मक होती थ क शी ही उसक क त फै ल गई। लोग मान गए क इस े म एक नई श का उदय आ है। अ धकारी लोग उसके लखे पढ़कर तल मला उठते थे। उसका नशाना ठीक बैठता था, उससे बच नकलना असंभव था। अ त ो याँ तो उनके सर पर से सनसनाती ई नकल जाती थ । उनका वे र से तमाशा देख सकते थे, अ भ ताओं क वे उपे ा कर सकते थ।े ये सब श उनके पास प ँचते ही न थे, रा े ही म गर पड़े थ।े पर रमशे के नशाने सर पर बैठते और अ धका रय म हलचल और हाहाकार मचा देते थे। देश क राजनी तक त चताजनक हो रही थी। यशवतं अपने पुराने म के लखे को पढ़-पढ़कर काँप उठते थ।े भय होता, कह वह काननू के पंजे म न आ आए। बार-बार उसे सयं त रहने क ताक द करते, बार-बार म त करते क जरा अपनी कलम को और नरम कर दो, जान-बझू कर वषधर कानून के महुँ म उँगली डालते हो? ले कन रमेश को नेतृ का नशा चढ़ा आ था। वह इन प का जवाब तक न देता था। पाँचव साल यशंवत बदलकर आगरा का जला-जज हो गया।
देश क राजनी तक दशा चताजनक हो रही थी। खु फया पु लस ने एक तूफान खड़ा कर दया था। उसक कपोलक त कथाएँ सनु -सुन कर ाम क ह फना हो रही थी। कह अखबार का महुँ बदं कया जाता था, कह जा के नेताओं का। खु फया पु लस ने अपना उ ू सीधा करने के लए ाम के कु छ इस तरह कान भरे क उ हर एक तं वचार रखने वाला आदमी खनू ी और का तल नजर आता था। रमशे यह अंधेर देखकर चुप बैठने वाला मनु न था। - अ धका रय क नरंकु शता बढ़ती थी, - उसका भी जोश बढ़ता था। रोज कह -न-कह ा ान देता; उसके ायः सभी ा ान व ोहा क भाव से भरे होते थे। और खरी बात कहना ही व ोह है। अगर कसी का राजनी तक भाषण व ोहा क नह माना गया तो समझ लो, उसने अपने आंत रक भाव को गु रखा है। उसके दल म जो कु छ है, उसे जबान पर लाने का साहस उसम नह है। रमेश ने मनोभाव को गु रखना सीखा ही न था। वह सबकु छ सहने तो तैयार बैठा था। अ धका रय क आँख म भी वह सबसे ादा गड़ा आ था। एक दन यशवतं ने रमशे को अपने यहाँ बुला भेजा। रमशे के जी म तो आया क कह दे, तु आते ा शरम आती है? आ खर हो तो गुलाम ही। ले कन फर कु छ सोचकर कहला भजे ा, कल शाम को आऊँ गा। सरे दन वही ठीक 6 बजे यशवंत के बँगले पर जा प ँचा। उसने कसी से इसका ज न कया। कु छ तो यह खयाल था क लोग कहग,े म अफसर क खशु ामद करता ँ और कु छ यह क शायद इससे यशवतं को कोई हा न प ँच।े वह यशवंत के बगँ ले पर प ँचा तो चराग जल चकु े थ।े यशवतं ने आकर उसे गले से लगा लया। आधी रात तक दोन म म खबू बात होती रह । यशवतं ने इतने समय म नौकरी के जो अनुभव ा कए, सब बयान कए। रमेश को यह जानकर आ य आ क यशवंत के राजनी तक वचार कतने वषय म मरे े वचार से भी ादा तं ह। उसका यह खयाल बलकु ल गलत नकला क वह बलकु ल बदल गया होगा, कादारी के राग अलापता होगा। रमेश ने कहा, \"भले आदमी, जब इतने जले ए हो तो छोड़ नह देते नौकरी? और कु छ न सही, अपनी आ ा क र ा तो कर सकोगे।\" नौकरी? और कु छ न सही, अपनी आ ा क र ा तो कर सकोगे।\" यशवतं , \"मेरी चता पीछे करना, इस समय अपनी चता करो। मने तु सावधान करने को बुलाया है। इस व सरकार क नजर म तुम बेतरह खटक रहे हो। मुझे भय है क तुम कह पकड़े न जाओ।\" रमेश, \"इसके लए तो तयै ार बैठा ँ।\" यशवतं , \"आ खर आग म कू दने से लाभ ही ा?\"
रमशे , \"हा न-लाभ देखना मेरा काम नह । मरे ा काम तो अपने कत का पालन करना है।\" यशवंत, \"हठी तो तमु सदा के हो, मगर मौका नाजकु है, सँभले रहना ही अ ा है। अगर म देखता क जनता म वा वक जागृ त है, तो तुमसे पहले मैदान म आता। पर जब देखता ँ क अपने ही मरे ग देखना है तो आगे कदम रखने क ह त नह पड़ती।\" दोन दो ने देर तक बात क । कॉलजे के दन याद आए। कॉलेज के सहपा ठय क परु ानी ृ तयाँ मनोरंजन और हा का अ वरल ोत आ करती ह। अ ापक पर आलोचनाएँ , कौन-कौन साथी ा कर रहा है, इसक चचा ई। बलकु ल यह मालूम होता था क दोन अब भी कॉलजे के छा ह। गंभीरता नाम को भी न थी। रात ादा हो गई, भोजन करते-करते एक बज गया। यशवंत ने कहा, \"अब कहाँ जाओग,े यह सो जाओ, और बात ह गी। तमु तो कभी आते भी नह ?\" रमशे तो रमते जोगी थे ही; खाना खाकर वह बात करते-करते सो गए। न द खुली तो 9 बज गए थे। यशवतं सामने खड़ा मुसकरा रहा था। इसी रात को आगरे म भयकं र डाका पड़ गया। रमेश 10 बजे घर प ँचा तो देखा, पु लस ने उसका मकान घेर रखा है। इ देखते ही एक अफसर ने वारंट दखाया। तरु ंत घर क तलाशी होने लगी। मालूम नह , कर रमशे के मजे क दराज म एक प ौल नकल आया। फर ा था, हाथ म हथकड़ी पड़ गई। अब कसे उनके डाके म शरीक होने से इनकार हो सकता था, और भी कतने ही आद मय पर आफत आई। सभी मखु नेता चुन लए गए। मुकदमा चलने लगा। और क बात को ई र जान,े पर रमशे नरपराध था। इसका उसके पास ऐसा बल माण था, जसक स ता से कसी को इनकार न हो सकता था। पर ा वह इस माण का उपयोग कर सकता था? रमेश ने सोचा, यशवतं यं मेरे वक ल ारा सफाई के गवाह म अपना नाम लखवाने का ाव करेगा। मुझे नद ष जानते ए वह कभी मुझे जले न जाने देगा। वह इतना दयशू नह है। ले कन दन गुजरते जाते थे और यशवंत क ओर से इस कार का कोई ाव न होता था; रमेश खुद सकं ोचवश उसका नाम लखवाते ए डरता था। न जाने इसम उसे ा बाधा हो। अपनी र ा के लए वह उसे सकं ट म न डालना चाहता था। यशवतं दयशू न था, भावशू न था, ले कन कमशू था। उसे अपने परम म को नद ष मारे जाते देखकर ःख होता था, कभी-कभी रो पड़ता था; पर इतना साहस न होता क सफाई देकर उसे छु ड़ा ल।े न जाने अफसर को ा महससू हो? कह यह न समझने लग क म भी ष ं का रय से सहानभु ू त रखता ँ, मरे ा भी उनके साथ कु छ सपं क है। यह मरे े ह ानी होने का दंड है, जानकर जहर नगलना पड़ रहा है। पु लस ने अफसर पर इतना आतंक जमा दया क चाहे मरे ी शहादत से रमेश छू ट भी जाए, खु मखु ा
मझु पर अ व ास न कया जाए, पर दल से यह सदं ेह कर र होगा क मने के वल एक देश-बधं ु को छु ड़ाने के लए झठू ी गवाही दी? और बधं ु भी कौन? जस पर राज- व ोह का अ भयोग है। इसी सोच- वचार म एक महीना गुजर गया। उधर म ज ेट ने यह मुकदमा यशवं त ही के इजलास म भजे दया। डाके म कई खनू हो गए थे और उस म ज ेट को उतनी ही कड़ी सजाएँ देने का अ धकार न था जतनी उसके वचार म दी जानी चा हए थ ।
यशवंत अब बड़े संकट म पड़ा। उसने छु ी लने ी चाही; मजं रू न ई। स वल सजन अं जे था। इस वजह से उसक सनद लने े क ह त न पड़ी। बला सर पर आ पड़ी थी और उससे बचने का उपाय न सझू ता था। भा क कु टल ड़ा दे खए। साथ खले े और साथ पढ़े ए दो म एक- सरे के स खु खड़े थ,े के वल एक कठघरे का अंतर था। पर एक क जान सरे क मु ी म थी। दोन क आँख कभी चार न होत । दोन सर नीचा कए रहते थ।े य प यशवतं ाय के पद पर था और रमशे मलु जम, ले कन यथाथ म दशा इसके तकू ल थी। यशवतं क आ ा ल ा, ा न और मान सक पीड़ा से तड़पती थी और रमेश का मुख नद षता के काश से चमकता रहता था। दोन म म कतना अंतर था? एक उदार था, सरा कतना ाथ ? रमेश चाहता तो भरी अदालत म उस रात क बात कह देता। ले कन यशवतं जानता था, रमशे फासँ ी से बचने के लए भी उस माण का आ य न लगे ा, जसे म गु रखना चाहता ँ। जब तक मकु दमे क पे शयाँ होती रह , तब तक यशवंत को अस ममवदे ना होती रही। उसक आ ा और ाथ म न सं ाम होता रहता था; पर फै सले के दन तो उसक वही दशा हो रही थी जो कसी खनू के अपराधी क हो। इजलास पर जाने क ह त न पड़ती थी। वह तीन बजे कचहरी प ँचा। मलु जम अपना भा - नणय सनु ने को तयै ार खड़े थे। रमशे भी आज रोज से ादा उदास था। उसके जीवन-सं ाम म वह अवसर आ गया था, जब उसका सर तलवार क धार के नीचे होगा। अब तक भय सू प म था, आज उसने लू प धारण कर लया था। यशवतं ने ढ़ र म फै सला सुनाया। जब उसके मखु से ये श नकले क रमशे चं को 7 वष क क ठन कारावास, तो उसका गला ँ ध गया। उसने तजवीज मजे पर रख दी। कु रसी पर बैठकर पसीना प छने के बहाने आँख से उमड़े ए आँसओु ं को प छा। इसके आगे तजवीज उससे न पढ़ी गई। रमशे जेल से नकलकर प ा ां तकारी बन गया। जेल क अँधरे ी कोठरी म दन भर के क ठन प र म के बाद सधु ार के मनसूबे बाधँ ा करता था। सोचता, मनु पाप करता है? इस लए न क संसार म इतनी वषमता है। कोई तो वशाल भवन म रहता है और कसी को पेड़ क छाहँ भी मय र नह । कोई रेशम और र से मढ़ा आ है, कसी को फटा व भी नह । ऐसे ाय वहीन ससं ार म य द चोरी, ह ा और अधम है तो यह कसका दोष? वह एक ऐसी स म त खोलने का देखा करता, जसका काम ससं ार से इस वषमता को मटा देना हो। ससं ार सबके लए है और उसम सबको सखु भोगने का समान अ धकार है। न डाका, डाका है, न चोरी, चोरी। धनी अगर अपना धन खशु ी से नह बाँट देता तो उसक इ ा के व बाटँ लेने म ा पाप? धनी उसे पाप कहता है तो कहे। उसका बनाया आ कानून दंड देना चाहता है तो दे। हमारी अदालत भी अलग होगी।
उसके सामने वे सभी मनु अपराधी ह गे, जनके पास ज रत से ादा सखु -भोग क साम याँ ह। हम भी उ दंड दगे, हम भी उनसे कड़ी महे नत लग।े जले से नकलते ही उसने इस सामा जक ां त क घोषणा कर दी। गु सभाएँ बनने लग , श जमा कए जाने लगे और थोड़े ही दन म डाक का बाजार गरम हो गया। पु लस ने उसका पता लगाना शु कर दया। उधर ां तका रय ने पु लस पर भी हाथ साफ करना शु कर दया। उनक श दन- दन बढ़ने लगी। काम इतनी चतुराई से होता था क कसी को अपराधी का कु छ सरु ाग न मलता। रमशे कह गरीब के लए दवाखाना खोलता, कह बक डाके के पय से उसने इलाके खरीदना शु कया। जहाँ कोई इलाका नीलाम होता, वह उसे खरीद लेता। थोड़े ही दन म उसके अधीन एक बड़ी जायदाद हो गई। इसका नफा गरीब के उपकार म खच होता था। तुरा यह क सभी जानते थे, यह रमशे क करामात है, पर कसी क मुहँ खोलने क ह त न होती थी। स -समाज क म रमेश से ादा घृ णत और कोई ाणी ससं ार म न था। लोग उसका नाम सुन कान पर हाथ रख लेते थ।े शायद उसे ासा मरता देखकर कोई एक बँूद पानी भी उसके मँुह म न डालता; ले कन कसी क मजाल न थी क उस पर आ पे कर सक। इस तरह कई साल गुजर गए। सरकार ने डाकु ओं का पता लगाने के लए बड़े-बड़े इनाम रख।े यरू ोप से गु पु लस के स ह आद मय को बुलाकर इस काम पर नयु कया। ले कन गजब के डकै त थे, जनक ह त के आगे कसी क कु छ न चलती थी। पर रमेश खुद अपने स ातं का पालन न कर सका। - दन गुजरते थे, उसे अनभु व होता था क मरे े अनयु ा यय म असतं ोष बढ़ता जाता है। उनम भी जो ादा चतरु और साहसी थे, वे सर पर रोब जमाते और लूट के माल म बराबर ह ा न देते थे। यहाँ तक क रमशे से कु छ लोग जलने लग।े वह राजसी ठाट से रहता था। लोग कहते, \"उसे हमारी कमाई को य उड़ाने का ा अ धकार है?\" नतीजा यह आ क आपस म फू ट पड़ गई। रात का व था; काली घटा छाई ई थी। आज डाकगाड़ी म डाका पड़ने वाला था। ो ाम पहले से तैयार कर लया गया था। पाचँ साहसी युवक इस काम के लए चुने गए थे। सहसा एक यवु क ने खड़े होकर कहा, \"आप बार-बार मुझी को चनु ते ह? ह ा लेने वाले तो सभी ह, म ही बार-बार अपनी जान जो खम म डालूँ?\" रमशे ने ढ़ता से कहा, \"इसका न य करना मेरा काम है क कौन कहाँ भेजा जाए। तु ारा काम के वल मरे ी आ ा का पालन है।\" यवु क, \"अगर मझु से काम ादा लया जाता है तो ह ा नह ादा दया जाता?\" रमेश ने उसक ो रयाँ देख और चपु के से प ौल हाथ म लके र बोला, \"इसका फै सला वहाँ से लौटने के बाद होगा।\"
यवु क, \"म जाने से पहले इसका फै सला करना चाहता ँ।\" रमशे ने इसका जवाब न दया। वह प ौल से उसका काम-तमाम कर देना ही चाहता था क युवक खड़क से नीचे कू द पड़ा और भागा। कू दने-फादँ ने म उसका जोड़ न था। चलती रेलगाड़ी से फाँद पड़ना उसके बाएँ हाथ का खेल था। वह वहाँ से सीधा गु पु लस के धान के पास प ँचा। यशवतं ने भी पशन लके र वकालत शु क थी। ाय- वभाग के सभी लोग से उसक म ता थी। उनक वकालत ब त ज चमक उठी। यशवंत के पास लाख पए थे। उ पशन भी ब त मलती थी। वह चाहते तो घर बैठे आनदं से अपनी उ के बाक दन काट देते। देश और जा त क कु छ सेवा करना भी उनके लए मु ल न था। ऐसे ही पु ष से न ाथ सेवा क आशा क जा सकती है। यशवंत ने अपनी सारी उ पए कमाने म गुजारी थी और वह अब कोई ऐसा काम न कर सकते थ,े जसका फल पय क सरू त म न मले। य तो सारा स समाज रमशे से घणृ ा करता था, ले कन यशवंत सबसे बढ़ा आ था। कहता, अगर कभी रमशे पर मुकदमा चलगे ा, तो म बना फ स लये सरकार क तरफ से परै वी क ँ गा। खु मखु ा रमशे पर छ टे उड़ाया करता, \"यह आदमी नह , शतै ान है, रा स है, ऐसे आदमी का तो मुँह न देखना चा हए! उफ! इसके हाथ कतने भले घर का सवनाश हो गया, कतने भले आद मय के ाण गए। कतनी याँ वधवा हो ग , कतने बालक अनाथ हो गए। आदमी नह , पशाच है। मेरा बस चल,े तो इसे गोली मार ँ, जीता दीवार म चनवा ँ।\" सारे शहर म शोर मचा आ था, \"रमेश बाबू पकड़े गए।\" बात स ी थी। रमेश चुपचाप पकड़ा गया था। उसी यवु क न,े जो रमशे के सामने कू दकर भागा था, पु लस के धान से सारा क ा च ा बयान कर दया था। अपहरण और ह ा का कै सा रोमाचं कारी, कै सा पैशा चक, कै सा पापपूण वृ ांत था! भ समदु ाय बगल बजाता था। सठे के घर म घी के चराग जलते थ।े उनके सर पर एक नगं ी तलवार लटकती रहती थी, आज वह हट गई। अब वे मीठी न द सो सकते थे। अखबार म रमेश के हथकं डे छपने लगे। वे बात जो अब तक मारे भय के कसी क जबान पर न आती थ , अब अखबार म नकलने लग । उ पढ़कर पता चला था क रमशे ने कतना अंधेर मचा रखा था? कतने ही राजे और रईस उसे महावार टै दया करते थे। उसका परचा प ँचता, फलाँ तारीख को इतने पए भजे दो, फर कसक मजाल थी क उसका टाल सके । वह जनता के हत के लए जो काम करता, उसके लए भी अमीर से चंदे लए थे। रकम लखना रमेश का काम था। अमीर को बना कान-पूछँ हलाए वह रकम दे देनी पड़ती थी।
ले कन भ समदु ाय जतना ही स था, जनता उतनी ही ःखी थी। अब कौन पु लस वाल के अ ाचार से उनक र ा करेगा? कौन सठे के जु से उ बचाएगा, कौन उनके लड़क के लए कला-कौशल के मदरसे खोलगे ा? वे अब कसके बल पर कू दगे? वह अब अनाथ थे। वही उनका अवलंब था। अब वे कसका महँु ताकगे। कसको अपनी फ रयाद सनु ाएँ ग?े पु लस शहादत जमा कर रही थी। सरकारी वक ल जोर से मुकदमा चलाने क तैया रयाँ कर रहा था। ले कन रमेश क तरफ से कोई वक ल न खड़ा होता था। जले भर म एक ही आदमी था, जो उसे काननू के पजं े से छु ड़ा सकता था। वह था यशवतं ! ले कन यशवतं जसके नाम से कान पर उँगली रखता था, ा उसी क वकालत करने को खड़ा होगा? असभं व। रात के 9 बजे थे। यशवंत के कमरे म एक ी ने वेश कया। यशवंत अखबार पढ़ रहा था। बोला, \" ा चाहती ह?\" ी, \"वही जो आपके साथ पढ़ता था और जस पर डाके का झठू ा अ भयोग चलाया जाने वाला है।\" यशवंत ने च ककर पूछा, \"तमु रमेश क ी हो?\" ी, \"हा।ँ \" यशवंत, \"म उनक वकालत नह कर सकता।\" ी, \"आपको इ यार है। आप अपने जले के आदमी ह और मरे े प त के म रह चकु े ह, इस लए सोचा था, बाहर वाले को बुलाऊँ , मगर अब इलाहाबाद या कलक े से ही कसी को बुलाऊँ गी।\" यशवतं , \"मेहनताना दे सकोगी?\" ी ने अ भमान के साथ कहा, \"बड़े-स-े बड़े वक ल का मेहनताना ा होता है?\" यशवतं , \"तीन हजार पए रोज?\" ी, \"बस, आप इस मुकदमे को ले ल तो आपको तीन हजार पए रोज ँगी।\" यशवतं , \"तीन हजार पए रोज?\" ी, \"हा,ँ और य द आपने उ छु ड़ा लया, तो पचास हजार पए आपको इनाम के तौर पर और ँगी।\" यशवतं के मुहँ म पानी भर आया। अगर मकु दमा दो महीने भी चला, तो कम-से-कम एक लाख पए सीधे हो जाएँ ग।े परु ार ऊपर स,े पूरे दो लाख क गोटी है। इतना धन तो जदगी भर जमा न कर पाए थे, मगर नया ा कहेगी? अपनी आ ा भी तो नह
गवाही देती। ऐसे आदमी को काननू के पंजे से बचाना असं ा णय क ह ा करना है। ले कन गोटी दो लाख क है। रमशे के फँ स जाने से इस ज े का अंत तो आ नह जाता। इसके चेले-चापड़ तो रहगे ही। शायद वे अब और भी उप व मचाएँ । फर म दो लाख क गोटी जाने ँ? ले कन मझु े कह मँहु दखाने क जगह न रहेगी। न सही। जसका जी चाहे खशु हो, जसका चाहे नाराज। ये दो लाख नह छोड़े जाते। कु छ म कसी का गला तो दबाता नह , चोरी तो करता नह ? अपरा धय क र ा करना तो मरे ा काम ही है।\" सहसा ी ने पूछा, \"आप जवाब देते ह?\" यशवतं , \"म कल जवाब ँगा। जरा सोच लूँ।\" ी, \"नह , मुझे इतनी फु रसत नह है। अगर आपको कु छ उलझन हो तो साफ-साफ कह दी जएगा, म और बंध क ँ ।\" यशवतं को और वचार करने का अवसर न मला। ज ी से फै सला ाथ ही क ओर झुकता है। यहाँ हा न क सभं ावना नह रहती। यशवंत, \"आप कु छ पए पशे गी के दे सकती ह?\" ी, \" पय क मुझसे बार-बार चचा न क जए। उनक जान के सामने पय क ह ी ा है? आप जतनी रकम चाह, मझु से ले ल। आप चाहे उ छु ड़ा न सक, ले कन सरकार के दातँ ख े ज र कर द।\" यशवंत, \"खरै , म ही वक ल हो जाऊँ गा। कु छ पुरानी दो ी का नवाह भी तो करना चा हए।\" पु लस ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया, सैकड़ शहादत पेश क । मुख बर ने तो पूरी गाथा ही सनु ा दी; ले कन यशवंत ने कु छ ऐसी दलील पेश क शहादत को कु छ इस तरह झठू ा स कया और मुख बर क कु छ ऐसी खबर ली क रमशे बदे ाग छू ट गया। उन पर कोई अपराध स न हो सका। यशवंत जैसे संयत और वचारशील वक ल का उनके प म खड़े हो जाना ही इसका माण था क सरकार ने गलती क । सं ा का समय था। रमशे के ार पर शा मयाना तना आ था। गरीब को भोजन कराया जा रहा था। म क दावत हो रही थी। यह रमेश के छू टने का उ व था। यशवतं को चार ओर से ध वाद मल रहे थे। रमेश को बधाइयाँ दी जा रही थ । यशवतं बार-बार रमेश से बोलना चाहता था, ले कन रमशे उसक ओर से मँहु फे र लेता था। अब तक उन दोन म एक बात भी न ई थी। आ खर यशवतं ने एक बार झझुँ लाकर कहा, \"तुम तो मझु से इस तरह ऐंठे ए हो, मानो मने तु ारे साथ कोई बुराई क है।\"
रमेश, \"और आप ा समझते ह क मरे े साथ भलाई क है? पहले आपने मेरे इस लोक का सवनाश कया, अबक परलोक का कया। पहले ाय कया होता तो मरे ी जदगी सधु र जाती और अब जले जाने देते, तो आकबत बन जाती।\" यशवंत, \"यह तो कहोगे क इस मामले म कतने साहस से काम लेना पड़ा?\"
पं जाब के सह राजा रणजीत सह संसार से चल चकु े थे और रा के वे त त पु ष, जनके ारा उनका उ म बंध चल रहा था, पर र के षे और अनबन के कारण मर मटे थ।े राणा रणजीत सह का बनाया आ संुदर कतु खोखला भवन अब न हो चकु ा था। कुँ वर दलीप सह अब इं ड म थे और रानी चं कुँ व र चनु ार के ग म। रानी चं कुँ व र ने वन होते ए रा को ब त सँभालना चाहा कतु शासन- णाली न जानती थी और कू टनी त ई ा क आग भड़काने के सवा और ा करती? रात के बारह बज चुके थ।े रानी चं कुँ व र अपने नवास-भवन के ऊपर छत पर खड़ी गंगा क ओर देख रही थी और सोचती थी, \"लहर इस कार तं ह? उ ने कतने गावँ और नगर डु बोए ह, कतने जीव-जतं ु तथा नगल गई ह, कतु फर भी वे तं ह। कोई उ बदं नह करता। इसी लए न क वे बदं नह रह सकत ? वे गरजगी, बल खाएँ गी और बाधँ के ऊपर चढ़कर उसे न कर दगी, अपने जोर से उसे बहा ले जाएँ गी।\" यह सोचते-सोचते रानी गादी (ग ी) पर लटे गई, उसक आँख के सामने पूवाव ा क ृ तयाँ मनोहर क भाँ त आने लग । कभी उसक भ ह क मरोड़ तलवार से भी अ धक ती थी और उसक मुसकराहट वसंत क सुगं धत समीर से भी अ धक ाण- पोषक, कतु हाय! अब इनक श हीनाव ा को प ँच गई। रोए तो अपने को सनु ाने के लए, हँसे तो अपने को बहलाने के लए। य द बगड़े तो कसी का ा बगाड़ सकती है और स हो तो कसी का ा बना सकती है? रानी और बादँ ी म कतना अंतर है? रानी क आँख से आँसू क बँूद झरने लग , जो कभी वष से अ धक ाणनाशक और अमृत से अ धक अनमोल थ । वह इसी भाँ त अके ली, नराश, कतनी बार रोई, जब क आकाश के तार के सवा और कोई देखने वाला न था। इसी कार रोते-रोते रानी क आँख लग ग । उसका ारा, कलेजे का टु कड़ा, कुँ वर दलीप सह, जसम उसके ाण बसते थ,े उदास मुख आकर खड़ा हो गया। जसै े गाय दन भर जंगल म रहने के प ात् सं ा को घर आती ह और अपने बछड़े को देखते ही मे और उमगं से मतवाली होकर न म ध भरे, पूछँ उठाए दौड़ती ह, उसी भाँ त चं कुँ व र अपने
दोन हाथ फै लाए कुँ वर को छाती से लपटाने के लए दौड़ी। परंतु आँख खुल ग और जीवन क आशाओं क भाँ त वह वन हो गया। रानी ने गगं ा क ओर देखा और कहा, \"मुझे भी अपने साथ लते ी चलो।\" इसके बाद रानी तुरंत छत से उतरी। कमरे म लालटेन जल रही थी। उसके उजाले म उसने एक मलै ी साड़ी पहनी, गहने उतार दए, र के एक छोटे से ब े को और एक ती कटार को कमर म रखा। जस समय वह बाहर नकली, नरै ा पणू साहस क मू त थी। सतं री ने पकु ारा, \"कौन?\" रानी ने उ र दया, \"म ँ झगं ी।\" \"कहाँ जाती है?\" \"गगं ाजल लाऊँ गी। सुराही टू ट गई है, रानी जी पानी मागँ रही ह।\" सतं री कु छ समीप आकर बोला, \"चल, म भी तेरे साथ चलता ँ, जरा क जा।\" झगं ी बोली, \"मरे े साथ मत आओ। रानी कोठे पर ह, देख लगी।\" सतं री को धोखा देकर चं कुँ व र गु ार से होती ई अँधेरे म काँट से उलझती, च ान से टकराती गगं ा के कनारे पर जा प ँची। रात आधी से अ धक बीत चुक थी। गगं ाजी म सतं ोषदा यनी शां त वराज रही थी। तरंग तार को गोद म लये सो रही थ । चार ओर स ाटा था। रानी नदी के कनारे- कनारे चली जाती थी और मुड़-मुड़कर पीछे देखती थी। एकाएक एक ड गी खँूटे से बँधी ई दखाई पड़ी। रानी ने उसे ान से देखा तो म ाह सोया आ था। उसे जगाना काल को जगाना था। वह तुरंत र ी खोलकर नाव पर सवार हो गई। नाव धीरे-धीरे धार के सहारे चलने लगी, शोक और अंधकारमय क भाँ त, जो ान को तरंग के साथ बहाता चला जाता हो। नाव के हलने से म ाह च ककर उठ बैठा। आँख मलत-े मलते उसने सामने देखा तो पटरे पर एक ी हाथ म डाडँ ा लये बठै ी है। घबराकर पूछा, \"तू कौन है रे? नाव कहाँ लये जाती है?\" रानी हँस पड़ी। भय के अंत को साहस कहते ह। बोली, \"सच बताऊँ या झठू ?\" म ाह कु छ भयभीत सा होकर बोला, \"सच बताया जाए।\" रानी बोली, \"अ ा तो सनु ो। म लाहौर क रानी चं कुँ व र ँ। इसी कले म कै दी थी। आज भागी जाती ँ। मझु े ज ी बनारस प ँचा दे, तझु े नहाल कर ँगी और शरारत करेगा तो देख, कटार से सर काट ँगी। सवरे ा होने से पहले मुझे बनारस प ँचना चा हए।\" यह धमक काम कर गई। म ाह ने वनीत भाव से अपना कं बल बछा दया और तजे ी से डाँड चलाने लगा। कनारे के वृ और ऊपर जगमगाते ए तारे साथ-साथ दौड़ने लगे।
ातःकाल चनु ार के ग म के मनु अचं भत और ाकु ल था। संतरी, चौक दार और ल डयाँ सब सर नीचे कए ग के ामी के सामने उप त थे। अ षे ण हो रहा था, परंतु कु छ पता न चलता था। उधर रानी बनारस प ँची, परंतु वहाँ पहले से ही पु लस और सेना का जाल बछा आ था, नगर के नाके बंद थे। रानी का पता लगाने वाले के लए एक म मू पा रतो षक क सचू ना दी गई थी। बदं ीगहृ से नकलकर रानी को ात हो गया क वह और ढ़ कारागार म है। ग म ेक मनु उसका आ ाकारी था, ग का ामी भी उसे स ान क से देखता था, कतु आज तं होकर भी उसके ह ठ बदं थे। उसे सभी ान म श ु दीख पड़ते थे। पखं र हत प ी को पजरे के कोने म ही सखु है। पु लस के अफसर ेक आन-े जाने वाल को ान से देखते थे कतु उस भखा रन क ओर कसी का ान नह जाता था, जो एक फटी ई साड़ी पहन,े या य के पीछे-पीछे, धीरे-धीरे सर झकु ाए गगं ा क ओर चली आ रही थी। न वह च कती है, न हचकती है, न घबराती है। इस भखा रन क नस म रानी का र है। यहाँ से भखा रन ने अयो ा क राह ली। वह दन भर वकट माग से चलती और रात को कसी सनु सान ान पर लटे जाती थी। मुख पीला पड़ गया था। पैर म छाले थे। फू ल सा बदन कु ला गया था। वह ायः गावँ म लाहौर क रानी के चरचे सनु ती। कभी-कभी पु लस के आदमी भी उसे रानी क टोह म द च दीख पड़ते। उ देखते ही भखा रनी के दय म सोई ई रानी जाग उठती। वह आँख उठाकर उ घृणा- से देखती और शोक तथा ोध से उसक आँख जलने लगत । एक दन अयो ा के समीप प ँचकर रानी एक वृ के नीचे बैठी ई थी। उसने कमर से कटार नकालकर सामने रख दी थी। वह सोच रही थी क कहाँ जाऊँ ? मरे ी या का अंत कहाँ है? ा इस ससं ार म अब मरे े लए कह ठकाना नह है? वहाँ से थोड़ी र पर आम का एक ब त बड़ा बाग था। उसम बड़े-बड़े डेरे और तबं ू गड़े ए थे। कई संतरी चमक ली वर दयाँ पहने टहल रहे थे, कई घोड़े बधँ े ए थे। रानी ने इस राजसी ठाट-बाट को शोक क से देखा। एक बार वह भी कभी क ीर गई थी। उसका पड़ाव इससे कह बड़ा था। बैठे-बैठे सं ा हो गई। रानी ने वह रात काटने का न य कया। इतने म एक बूढ़ा मनु टहलता आ आया और उसके समीप खड़ा हो गया। ऐंठी ई दाढ़ी थी, शरीर म सटी ई अचकन थी, कमर म तलवार लटक रही थी। इस मनु को देखते ही रानी ने तरु ंत कटार उठाकर कमर म ख स ली। सपाही ने उसे ती से देखकर पूछा, \"बटे ी, कहाँ से आई हो?\"
रानी ने कहा, \"ब त र स।े \" \"कहाँ जाओगी?\" \"यह नह कह सकती, ब त र।\" बठै े-बठै े सं ा हो गई। रानी ने वह रात काटने का न य कया। इतने म एक बूढ़ा मनु टहलता आ आया और उसके समीप खड़ा हो गया। ऐंठी ई दाढ़ी थी, शरीर म सटी ई अचकन थी, कमर म तलवार लटक रही थी। इस मनु को देखते ही रानी ने तरु ंत कटार उठाकर कमर म ख स ली। सपाही ने उसे ती से देखकर पछू ा, \"बेटी, कहाँ से आई हो?\" रानी ने कहा, \"ब त र स।े \" \"कहाँ जाओगी?\" \"यह नह कह सकती, ब त र।\" सपाही ने रानी क ओर फर ान से देखा और कहा, \"जरा अपनी कटार दखाओ।\" रानी कटार सभँ ालकर खड़ी हो गई और ती र म बोली, \" म हो या श ?ु \" सपाही ने कहा, \" म ।\" सपाही के बातचीत करने के ढंग म और चहे रे म कु छ ऐसी वल णता थी, जससे रानी को ववश होकर व ास करना पड़ा। वह बोली, \" व ासघात न करना। यह देखो।\" सपाही ने कटार हाथ म ली। उसको उलट-पलु टकर देखा और बड़े न भाव से उसे आँख से लगाया। तब रानी के आगे वनीत भाव से सर झकु ाकर वह बोला, \"महारानी चं कुँ व र?\" रानी ने क ण र म कहा, \"नह , अनाथ भखा रनी। तमु कौन हो?\" सपाही ने उ र दया, \"आपका एक सेवक।\" रानी ने उसक ओर नराश से देखा और कहा, \" भा के सवा इस ससं ार म मरे ा कोई नह ।\" सपाही ने कहा, \"महारानीजी, ऐसा न क हए। पजं ाब के सह क महारानी के वचन पर अब भी सैकड़ सर झकु सकते ह। देश म ऐसे लोग व मान ह, ज ने आपका नमक खाया है और उसे भूले नह ह।\" रानी, \"अब इसक इ ा नह । के वल एक शांत ान चाहती ँ, जहाँ पर एक कु टी के सवा कु छ न हो।\"
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