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Shekhchilli Ki Anokhi Duniya (Hindi)

Published by THE MANTHAN SCHOOL, 2022-07-08 08:41:21

Description: Shekhchilli Ki Anokhi Duniya (Hindi)

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जीजा? आपने यह कटोरी िसर पर य रख ली?’’ सास ने भी चककर पछू ा-‘‘अरे! यह या दामाद जी? फरनी क कटोरी आपने िसर पर य रख ली? यह तो आपको खाने के िलए दी गई ह।ै ’’ शखे िच ली ने ब त अदब से पशे आते ए अपनी सास से कहा-‘‘यह फरनी मेरे िलए खाला जी ने भजे ी ह।ै मेरी अ मी ने मझु े यहाँ आते समय नसीहत दी थी क ‘बेटा! ससुराल म बड़-े बुजुग कु छ भी द तो िसर-माथे लने ा।’ उनक नसीहत याद आने से मने फरनी क कटोरी अपने िसर पर रख ली ह।ै ’’ शखे िच ली क बात सुनकर उसक सास सिहत सभी साल-े सािलयाँ हसँ ने लगे और हसँ ी कने पर उसक सास ने कहा-‘‘ठीक है बेटे! तमु ने फरनी को इ त ब शी ह-ै म यह बात अपनी बहन को बता दगँू ी मगर अब तमु फरनी खा लो।’’ शखे िच ली ने फरनी खा ली। खाना ख म होने पर सभी ने हाथ-मँुह धोया और सोने क तयै ारी शु हो गई। शेखिच ली के कमरे म जहाँ उसका पलगं लगा था, ठीक उसके ऊपर छत से लटकाकर एक मतबान रखा गया था। शखे िच ली जब पलगं पर लटे ा तब उसक नजर छत से लटकते मतबान पर पड़ी। वह यह जानने के िलए उ सकु हो गया क मतबान म या ह।ै मतबान ऊँ चाई पर था और पलगं पर खड़ा होने के बाद भी हाथ क प चँ से दरू था। शेखिच ली को पलंग के पास एक डडं ा पड़ा दख गया। वह उस डडं े को लके र उस मतबान को ठकठकाकर उसक आवाज से यह जानने का यास करने लगा क मतबान म या ह?ै इसी यास म एक बार डडं े क चोट मतबान पर कु छ जोर से पड़ गई और मतबान टूट गया और उसम रखा गया बेल का मरु बा शखे िच ली के शरीर पर िगर गया। शेखिच ली मुर बे क चाशनी से नहा-सा गया। शेखिच ली के कमरे से सटा एक और कमरा था िजसम घर के फालतू सामान रखे गए थ।े जाड़े क तैया रयाँ चल रही थ और रजाई बनवाने के िलए उसके ससुर ने ई धनु वाकर उस कमरे म रखवा दी थी जो इसी तरह फश पर खुली पड़ी थी। शेखिच ली ने यह सोचकर क उस कमरे म दहे - प छने के िलए कोई कपड़ा िमल जाएगा, अपने महुँ म बले के मुर बे क एक बड़ी डली डालते ए उस कमरे का दरवाजा खोल िलया। कमरे म अधँ ेरा था इसिलए शेखिच ली को कु छ दखाई नह दया और कसी चीज से टकराकर वह धे महँु फश पर िगर पड़ा। ठीक उसी समय उसक साली शक ला उसे तलाशते ए उसके कमरे म आई। िब तर पर उसे न दखे कर शक ला ने कमरे म इधर-उधर दखे ा। कमरे से लगे ए कमरे का दरवाजा खलु ा दखे कर वह उसके दरवाजे पर प चँ कर आवाज लगाई-‘‘जीजा!’’ शक ला क आवाज सनु कर शखे िच ली ने उसे कु छ कहा-मँुह म बेल का मरु बा ठँूसा

आ होने के कारण उसके मुहँ से अजीब-सी आवाज िनकली। तभी उसक साली हाथ म लालटेन लके र उस कमरे क ओर बढ़ी। शखे िच ली के पूरे शरीर पर ई िचपक गई थी िजसके कारण वह इनसान नह लग रहा था। उसे दखे कर शक ला भूत-भतू कहकर भागी। शखे िच ली ने दखे ा क शक ला के ह ला करने से घर के सारे लोग जग जाएगँ े और उसक यह हालत दखे कर उसका मजाक उड़ाएगँ े। लालटेन क रोशनी म उसने उस कमरे म एक और दरवाजा दखे ा तो उसने अनमु ान लगाया क यह दरवाजा बाहर क तरफ खलु ता ह।ै उसने दरवाजा खोला और ई से िलपटी अव था म ही वह दरवाजे से बाहर िनकलकर खदु को घर के िपछले िह से म पाया। ससुरालवाले घर म लोग जग गए थे और हर कमरे म िचराग रौशन होने लगा था। ससरु ालवाल क नजर म न आने क गरज से उसने पड़ोसी क चारदीवारी लाघँ ली और वह पड़ोसी के बथान म प चँ गया। बथान म एक तरफ दो गाय और चार भस बँधी थ तथा शेष भाग म भेड़ और बक रयाँ। तभी शखे िच ली ने अपनी ससरु ाल के पीछेवाले कमरे म रोशनी दखे ी और उसे शक ला क आवाज सनु ाई पड़ी-”अ बू! मने यह पर सफे द भूत दखे ा था। वह ब त भयानक चहे रे और वैसे ही भयानक शरीरवाला था। उसके चेहरे और शरीर पर सफे द-सफे द से अजीब उभार थे...उसक आवाज अजीब क म क गड़गड़ाहट पैदा करती थी।“ शक ला क आवाज सनु कर शेखिच ली भेड़ के बीच चपु चाप बठै गया। थोड़ी ही दरे म ससरु ाल म शाि त छा गई। सफे द भतू के च र म कसी को भी उसका खयाल नह आया। अभी िनि त होकर शखे िच ली ससुराल म वापसी क तैया रयाँ करता, उसके पहले ही चार चोर बारी-बारी से चारदीवारी लाघँ कर बथान म कू द-े धपाक! धपाक! धपाक! धपाक! चार आवाज कू दने क । शेखिच ली ने अपना शरीर समेट िलया और भड़े के बीच खुद को छु पा िलया। चार चोर क बल म िलपटे थ।े तीन चोर ने एक-एक भेड़ अपनी गोद म उठाई और चैथे चोर से फु सफु साकर कहा-‘‘एक भड़े तुम भी उठा लो और ज दी िनकल चलो। थोड़ी दरे म सबरे ा हो जाएगा। फर िनकल पाना मिु कल हो जाएगा।’’ चैथे चोर ने कहा-‘‘अरे यार! मेरे पास उस राहगीर से लटू ी गई िस भरी थैली ह।ै ...अ छा, इस थैली को क बल के खँूट म बाधँ लेता ँ फर एक भेड़ म भी लते ा चलँगू ा।...आज ठीक समय ह।ै एक िशकार वहाँ िमला और अब एक भड़े भी...।“ क बल को क धे पर सहजे कर उसने शेखिच ली को भड़े समझकर उठाया और उसे अपने क धे पर लादते ए कहा-‘‘ब त तैयार भड़े हाथ लगी ह!ै इसका गो त तो ब त चब दार होगा! अ छे दाम िमल जाएगँ े इसके !“ चार चोर बथान से िनकलकर सड़क पर आ गए और नदी क तरफ जानेवाले रा ते पर

मड़ु गए। शेखिच ली िबना कु छ बोले उस चोर के क धे पर लदा रहा। नदी का कनारा आ जाने पर सभी चोर ने अपने-अपने क ध से भेड़ उतारी। शखे िच ली का वजन कु छ अिधक था इसिलए जब चोर उसे उतारने लगा तब वह उसके हाथ से िगर पड़ा और उसके मुँह से आवाज िनकली-” कतनी जोर से पटका रे!“ चार चोर ने भड़े के मुहँ से आदमी क तरह आवाज िनकलते सुनी तो उ ह दहशत ने दबोच िलया। दरअसल एक राहगीर को लटू ने के बाद वे चार शेखिच ली क ससुराल म चोरी करने प चँ े थे और उनके घर म घुसते ही एक लड़क ‘भूत-भतू ’ कहते ए पूरे घर के लोग को जगाने लगी थी िजसके कारण वे लोग दीवार फाँदकर बथान म चले आए थे और वहाँ से चार भड़े उठाकर ले आए थे। भेड़ के मुँह से आदमी क आवाज िनकलते दखे चोर ने सोचा-िजसे वे भड़े समझ रहे ह, वह भड़े नह , भतू ह।ै उनक िघ घी बँध गई। एक चोर ने कहा-‘‘लगता ह,ै हम भेड़ क जगह भतू को उठाकर ले आए ह।’’ उस चोर क बात सनु कर शेखिच ली ने समझ िलया क चोर उसे भतू समझ रहे ह और उससे डर रहे ह। फर या था-शेखिच ली उठकर बैठा और जोरदार ढंग से अँगड़ाई लते े ए बोला-‘‘तो तुम लोग चोरी भी करते हो और राहगीर को लटू ते भी हो...!’’ अँगड़ाई लेते समय बोलने के कारण उसक आवाज अजीब ढंग से खुरदरी होकर िनकल रही थी। उसने अँगड़ाई लेने के बाद उठते ए कहा-‘‘तमु लोग को तु हारे कए क सजा तो िमलनी ही चािहए!’’ एक भेड़ को आदमी क आवाज म बोलते और अब आदमी क तरह खड़ा होते दखे चार चोर ने अपने क बल फके और परू ी ताकत से वहाँ से भागने लग।े शखे िच ली भी दौड़ा थोड़ी दरू तक और उन चोर को आखँ से ओझल होने तक दखे ता रहा फर लौटा और चार चोर के क बल उठाकर लेता आया। वह सबेरा होने से पहले साफ-सथु रा होना चाहता था ता क अपनी ससुराल लौट सके । वह तीन भड़े को नदी के कनारे बाधँ कर उनके पास ही चार क बल तह लगाकर रखने लगा। एक क बल के एक कोने म कु छ बधँ ा आ दखे कर उसे याद आया क चोर ने एक राहगीर से एक थैली भी लूट ली थी। इस क बल म वही थैली होगी। ऐसा सोचकर वह उस क बल को वैसे ही, वह छोड़ दया और खुद कपड़ा पहने ही नदी म उतरकर अपने कपड़ को रगड़-रगड़कर साफ कया और नदी से बाहर आने पर उसने थलै ीवाले क बल को अपने शरीर पर लपटे िलया तथा अपने कपड़े उतारकर सखू ने के िलए फै लाकर रख दया। अब उसे सुबह होने क ती ा थी। भेड़ क बगल म उसने एक क बल िबछा िलया और दो क बल को त कए के थान पर

रखकर लटे गया। अपने शरीर पर िलपटे क बल क खूटँ से बँधी थलै ी को टटोलकर वह सोचने लगा-‘यह खदु ा क महे रबानी ह।ै खदु ा ने ही एक थैली िस े मरे े पास िभजवाए ह ता क म इनका उपयोग अपनी ससरु ाल म कर सकँू । वाह! मरे े मौला...सचमचु तू िजसे चाहे उसे मालामाल कर दते ा ह!ै म तु हारा शु गजु ार ।ँ मुझे सचमचु धन क आव यकता थी। ससरु ाल म आया ँ तो कु छ अपनी जेब से भी खच ँ गा ही। अ बा ने चलते समय मा ा दस पए दये थे पर दस पय से या होता?’...थोड़ी दरे तक पसै के बारे म सोचते रहने के बाद अचानक शखे िच ली के दमाग ने झटका खाया क अगर ससुरालवाले उससे रात-भर गायब रहने का सबब पछू गे तब वह या बताएगा? थोड़ी दरे तक उसका दमाग क सा गढ़ने म लगा रहा फर वह सुकू न से न द के सागर म गोते लगाने लगा। उसे नदी के कनारे शीतल म द समीर म ज दी ही गहरी न द आ गई। सबु ह चहे रे पर सूरज क तेज धूप क गरमाहट के कारण जब उसक न द खुली तो खुद को नदी कनारे पाकर वह झटके से उठा। रात क सारी घटनाएँ उसे याद आ ग । उसने दखे ा, उसके कपड़े सूख गए ह। उसने अपने कपड़े पहन।े क बल क खटूँ से थैली खोलकर अपनी जबे के हवाले कया और चार क बल को क धे पर लटकाकर उसने भेड़ को खोला और तीन भेड़ को लके र वह अपनी ससुराल क तरफ चल पड़ा। सबु ह उसे िब तर पर नह दखे उसक ससुराल म कोहराम-सा मच गया और उसके साले व ससुर उसे खोजने के िलए िनकल पड़।े उ ह दरू से ही शेखिच ली भड़े के साथ आता दख गया तो वे दोन उसक तरफ दौड़ पड़।े शेखिच ली के िनकट प चँ कर उसके ससुर महमूद िमयाँ ने पछू ा-‘‘अरे बेटा, शखे िच ली! तमु कहाँ चले गए थे िबना बताए? घर म सभी हलकान हो रहे ह क जमाई राजा कहाँ चले गए!’’ ‘‘अरे, अ बा जरू ! मझु े मौका ही नह िमला क लोग को जगाऊँ या बताऊँ । असल म रात को मरे ी न द खुली। मझु े पशे ाब करने जाना था इसिलए मने अपने कमरे के पास वाला कमरा खोला और उसका दरवाजा खोलकर अपने घर के पीछेवाले बाग म चला गया य क उस समय गु ल के िलए घर के लोग को जगाना मने ठीक नह समझा। बाग म आते ही मने चार बार कसी के दीवार फादँ ने क आवाज सुनी। मने दखे ा, क बल से िलपटे चार चोर पड़ोसी क दीवार फाँदकर पीछे के रा ते से नदी क तरफ जा रहे ह। इनम से तीन चोर के क ध पर एक-एक भड़े लदी थी िजसे दखे कर म समझ गया क पड़ोसी क भड़े चरु ाकर ये लोग भाग रहे ह। बस, मने आव दखे ा न ताव और दीवार फादँ कर उनके पीछे चल दया। मरे ी अ मी कहा करती ह◌ं ै क ‘बेटा! पड़ोसी क जानमाल क िहफाजत करना हमारा फज ह.ै ..ऐसा मौका आए तो कभी पीछे नह हटना।’ बस, अपनी अ मी क बात याद कर म चोर का पीछा करते ए नदी कनारे प चँ गया और उनसे भेड़ छीनने के िलए उनसे लड़ने लगा। इस लड़ाई म एक चोर ने मुझे उठाकर जोर से पटक दया िजससे मेरे क धे िछल गए ह और पीठ म भी चोट आई ह। मगर खुदा का शु है क मने उन चार

को पीट- पीटकर भगा दया। उनके क बल भी छीन िलये और वे तीन भड़े भी छीन लाया...यह दिे खए, यही ह वे तीन भेड़।“ शखे िच ली के ससरु और साले ने शेखिच ली क वीरता क दा तान जब उसके मुँह से सनु ी तो उनका सीना फू ल गया। महमदू िमयाँ तो इतने खुश ए क बढ़कर अपने दामाद को गले लगा िलया। शखे िच ली ने अपने क धे से चार क बल उतारकर अपने साले को थमाते ए कहा-”जाओ, ये चार क बल कसी ज रतम द प रवार को दे आओ! उनके काम आ जाएगा।“ फर उसने महमूद िमयाँ से कहा- ‘‘अ बा जरू ! अपने घर से सटे, िपछले िह से म जो खटाल ह-ै ये भेड़ वह से रात को चरु ाई गई ह। आप इन भड़े को वहाँ प चँ वा द।’’ अभी वे ये बात कर ही रहे थे क महमदू साहब के पड़ोसी सािजद भेड़ को तलाशते ए उधर ही आते दखे। महमूद साहब ने आवाज लगाई- ‘‘सािजद भाई! जरा इधर तो आना।’’ सािजद क नजर उन पर पड़ी। वह उसे अपनी तीन भड़े भी दख ग । वह ल बे डग भरता आ उनके पास आ गया और बोला-‘‘अरे! महमदू भाई! सबु ह बथान क सफाई के दौरान हम पता चला क तीन भड़े गायब ह। म इन भेड़ क तलाश म ही िनकला था मगर मरे ी समझ म नह आ रहा क इतने सबरे े आप लोग यहाँ या कर रहे ह और ये भडे ◌ं ़े आपके पास कै से आ ग ?“ महमूद साहब ने वह सारी दा तान, जो उ ह शखे िच ली ने बताई थी, अपने पड़ोसी सािजद िमयाँ को सनु ा दी। ‘‘व लाह!“ सािजद िमयाँ ने सारी दा तान सनु कर हरै त-भरे अ दाज म कहा-‘‘अरे बेटा! वे चार और तुम अके ले! फर भी उन पर भारी पड़।े खुदा का शु ह.ै ..मगर बटे ा, इस तरह जान जोिखम म मत डाला करो...ये चोर बड़े जािलम होते ह। हिथयार लेकर चलते ह। अगर तु ह कु छ हो जाता तो...?’’ ‘‘कै से कु छ हो जाता जनाब! मरे ी अ मी कहा करती ह क जो लोग कसी भी भले काम के िलए अपना कदम बढ़ाते ह, उसका रखवाला खुद-ब- खुद खुदा हो जाता है और िजसका रखवाला खुदा हो, उसका कोई बाल भी बाँका नह कर सकता!’’ शखे िच ली ने शालीनता से उ र दया। महमदू िमयाँ ने सािजद भाई को वह उनक तीन भेड़ थमा द और अपने बटे े व दामाद के साथ घर लौटने को उ त ए क तु सािजद िमयाँ ने शखे िच ली को टोक दया-‘‘जरा दखे ँू बटे े, तु हारे क धे और पीठ क चोट।’’

सािजद िमयाँ क जवानी कु ती लड़ने और पहलवानी करने म बीती थी इसिलए वे शरीर पर लगनवे ाली चोट क पहचान भी रखते थे और उसका इलाज भी जानते थ।े सािजद िमयाँ क पेशकश सुनकर महमदू िमयाँ ने भी अपने दामाद से कहा-‘‘हाँ बेटे, सािजद भाई को चोट का अ छा तजुबा ह।ै इ ह अपनी चोट दखा दो, या पता यही कोई नु खा सझु ा द!’’ शेखिच ली ने अपने कु त का बटन खोलकर क धे क चोट दखाई। सािजद िमयाँ ने चोट दखे ते ए कहा-‘‘अरे, लगता है क उन लोग ने तु ह अपने क धे पर उठाकर कह उछाल दया ह.ै ..।“ फर सोचते ए कहा-”तब तो चोट पीठ और कू हे पर भी होनी चािहए!’’ सािजद िमयाँ घमू कर शखे िच ली क पीठ क तरफ चले गए और कु ता उठाकर शखे िच ली से कहा-‘‘बटे े, तु हारी पीठ पर खनू जमने के नीले िनशान पड़ गए ह। म घर से काढ़ा बनवाकर भेज दते ा ।ँ ज दी आराम आ जाएगा। ले कन इस बात का खयाल रखना क आज तमु पीठ के बल नह सोओ!“ इसके बाद शखे िच ली का िसर सहलाकर सािजद िमयाँ ने उसका माथा चूमा और फर अपने घर क राह ली। महमदू िमयाँ भी बेटे सलीम और दामाद शेखिच ली के साथ अपने घर चले आए। शेखिच ली ने जसै े ही अपनी ससुराल म कदम रखा, वसै े ही शक ला दौड़ी ई आई और बोली-‘‘जीजा, आप अपने कमरे म मत जाना य क उसके साथ वाले कमरे म मने सफे द भतू दखे ा ह।ै अ मी ने कहा है क कसी प चँ े ए सयाने को बलु ाकर उस भूत को िड बाब द कराएगँ ी तब ही उस कमरे म कोई जाएगा। जानते ह जीजा, मने अपनी आखँ से सफे द भूत को दखे ा-बाप रे! उसक आवाज ब त डरावनी थी।’’ शक ला एक ही सासँ म िबना के बोले जा रही थी। शखे िच ली को तो भतू क असिलयत का पता था ही, उसने कहा- ‘‘शक ला! अ मी से जाकर कहो- कसी सयाने को बुलाने क ज रत नह , बस! एक कटोरे म मझु े थोड़ा लोबान जलाकर दे जाओ और हा,ँ मुझे एक मजबतू डडं े क ज रत भी पड़गे ी। म दखे लँगू ा भूत को...तुम िच ता न करो। जाओ, जो चीज मने मागँ ी ह उसे ज दी लेकर आओ।’’ थोड़ी दरे म ही शखे िच ली क सास अपने हाथ म डडं ा और धपू दान म लोबान जलाकर लते ी आ और शखे िच ली से बोल -‘‘बेटा! सोच लो, तब कदम बढ़ाओ। कु छ भतू तो बड़े सयान के बस म भी नह आते...।’’ ‘‘आप िच ता न कर अ मीजान, म महफू ज र गँ ा और उस सफे द भतू को एक बोतल म ब द कर उसे जम दोज करने के बाद ही म अब कोई और काम क ँ गा।’’ इतना कहकर

शखे िच ली ने अपनी सास से एक खाली बोतल भी मँगवा दने े के िलए कहा। सास खुद जाकर बोतल ले आ और शेखिच ली को थमा दी। शखे िच ली अपने कमरे क तरफ जाते ए बोला-‘‘ यान रह,े जब तक म आवाज न द,ँू उस तरफ कोई नह आएगा।’’ वह अपने कमरे म चला गया तथा भीतर से दरवाजा ब द कर िलया। फर लोग ने उसके चीखने, िच ला-िच लाकर कसी को धम कयाँ दने े, उठा-पटक और लाठी से कसी को पीटे जाने क आवाज सुन । फर सब कु छ शा त हो गया। शेखिच ली ने य पूवक बोतल म लोबान का धआु ँ भरकर ढ न लगा दया था। अपने कमरे म बले के मुर बावाले मतबान को (जो कल रात उसक लाठी से टूट गया था) भी उसने टुकड़-े टुकड़े कर डाला। मतबान का सारा मुर बा पलगं के पास फश पर िछतरा गया। फर उसने बगलवाले कमरे म ई पर डडं े चलाए और चीख-चीखकर मं ो ार करने लगा। थोड़ी दरे के बाद दरवाजा खोला और उसने आवाज लगाई-‘‘जो भी आना चाह,े आ जाए। अब कोई खतरा नह ह।ै भूत मरे े क जे म ह।ै ’’ शखे िच ली क सास और साली दौड़ती ई आ । उनके पीछे-पीछे साला भी आया। शेखिच ली ने बोतलवाला हाथ उठाकर कहा, ‘‘भूत अब बोतल म कै द ह।ै ’’ फर उसने साले से कहा-‘‘चलो मेरे साथ कसी सुनसान जगह पर...हा,ँ एक कु दाल ले लो साथ म। इस बोतल को िम ी म दफन कर दने ा ह।ै ’’ साला कु दाल लेकर आ गया और शेखिच ली उसके साथ जाकर बोतल को जमीन म गाड़कर चला आया। अपनी सास को दखे कर उसने कहा- ‘‘मुझे अफसोस है क छत से लटका आ एक मतबान भूत से लड़ने म चकनाचूर हो गया...पता नह उस मतबान म या कु छ भरा आ था। दरअसल आ यह क जब म भूत को मं ा से घरे ने लगा तब वह लोबान के धएु ँ से बचने के िलए उस मतबान म जा िछपा िजसके कारण मझु े मतबान पर भी चोट करनी पड़ी।’’ ‘‘अरे कोई बात नह ! उस मतबान म बले का मरु बा रखा आ था... फर बन जाएगा।’’ शखे िच ली क सास ने कहा। अभी घर म भूत पकड़े जाने का क सा सुनन-े सुनाने का िसलिसला शु ही आ था क सािजद िमयाँ के घर से शखे िच ली के िलए काढ़ा आ गया। शखे िच ली ने काढ़ा िपया तब ससुराल म उसक ‘रात क वीरता’ क कहानी सनु ाई जाने लगी और दखे ते-ही-दखे ते शखे िच ली अपनी ससुराल म हरफनमौला नौजवान मान िलया गया।

गावँ म कोई भी बात आग क तरह फै लती ह।ै शेखिच ली के कारनामे भी उसक ससरु ाल के गावँ म मश र हो गए और आलम यह रहा क जब तक शखे िच ली अपनी ससुराल म रहा तब तक उसक खाितरदारी होती रही। ससरु ाल के गाँव म उसक शोहरत बुलि दय को छू रही थी। ायः रोज ही कसी-न- कसी घर से उसके िलए दावत का बुलावा आ जाता और सास-ससुर के कहने पर शेखिच ली दावत खाने चला जाता और लौटते समय वह दावत पर बुलानवे ाले घर के कसी ब े को चादँ ी का एक िस ा ज र थमा आता। इस तरह शखे िच ली अपनी ससरु ाल के गावँ म साहसी, भरोसमे द और दानवीर के प म ज दी ही यात हो गया। उसक चचा सास क बहन के गाँव म भी प चँ ी। उस समय रिजया बगे म दो-चार दन के िलए अपनी खाला के घर आई ई थी। यह चचा उस तक भी प चँ ी। उसने अपनी खाला से शखे िच ली के बारे म हो रही चचा का यौरा दया। रिजया क खाला ने रिजया से कहा-‘‘बटे ी, मने भी तेरे शौहर क चचा कई लोग के महँु से सुनी ह।ै सुना है क शेखिच ली बहे द नेक-तबीयत और शाहखच इनसान ह।ै ब से उसे खास लगाव ह।ै जहाँ भी जाता ह,ै उस घर के ब को कु छ ज र दते ा ह।ै खुदा उसे बरकत द!े म भी उसे बुलाना चाहती ।ँ ऐसे इनसान का कदम ब त पाक होता ह।ै म चाहती ँ क वह आए और मेरे यहाँ भी दो-चार दन रहकर जाए। मेरा गाँव तो शहर के पास ह-ै एक दन तमु दोन शहर भी चली जाना और िसनेमा दखे आना। म आज ही तु हारे घर जाती ँ और दामाद को यहाँ आने का बलु ावा दे आती ।ँ ’’ रिजया को मानो मँहु माँगी मुराद िमल गई। कु छ ऐसा ही सोचकर उसने अपनी खाला से शेखिच ली क चचा क थी। उसका भी मन शेखिच ली से िमलने के िलए बेचैन हो रहा था। खाला के सामने रजाम दी से उसने िसर िहलाया और शरमाकर अपने कमरे म चली गई। खाला हसँ ती ई अपनी बहन के गावँ चल पड़ी-शखे िच ली को अपने घर बुलाने के िलए। दो दन के बाद ही शेखिच ली अपने साले के साथ खाला के घर प चँ ा और जब उसका रिजया बेगम से सामना आ तब उसने उससे िशकायती लहजे म कहा-‘‘इस तरह फु कत क सजा दने ी थी तो मुझे लके े य आई? बेहतर होता क तुम अके ले आई होती।...तु हारे िबना मरे ा मन वहाँ लग ही नह रहा ह।ै यह तो खदु ा ने मेहरबानी क है क खाला को मझु े बुलाने के िलए भजे दया।’’ रिजया को ेम कट करने का शेखिच ली का यह अ दाज ब त पस द आया। रात को उसने सोने से पहले शखे िच ली से कहा-‘‘मझु े नगे म कई जगह से पसै े िमले ह। तमु हाँ कर दो तो कल हम िसनेमा दखे ने चल। टकट के पसै े म दे दगँू ी और आन-े जाने म जो खच

आएगा वह भी म ही दे दगँू ी। इस गावँ से सटा आ ही शहर है जहाँ िसनमे ा हाॅल ह।ै दोन जने चलगे और शहर के होटल म खाना भी खाएँगे। मने सनु ा ह,ै 16 होटल म तरह-तरह के लजीज खाने िमलते ह...मने कभी होटल म नह खाया। अभी मेरे पास पसै े ह, या पता कल खच ही हो जाए!ँ पसै े के तो पखं होते ह...पैसे आए नह क फु र से उड़ गए। बस, तमु हाँ कह दो तो म अभी ही खाला से इजाजत ले लूँगी क कल हम दोन शहर जाएगँ े।’’ शखे िच ली ने मु ध होकर रिजया बगे म क बात सनु , फर उसने कहा-‘‘बेगम! अपने नगे के पैसे तमु अपने पास ही रहने दो। मरे े पास पया पसै े ह। खाला से तमु नह , म इजाजत माँगँगू ा और शहर म और तमु ही नह हम सभी चलगे यानी सलीम और खालाजान भी। िसनमे ा मने भी कभी नह दखे ा है और न होटल म खाना खाया ह।ै हम सभी साथ-साथ शहर चलगे और साथ-साथ िसनेमा दखे गे, साथ-साथ होटल म खाना खाएगँ े और साथ-साथ वापस लौटग।े चलो, चलकर खाला को राजी कर ल।’’ शेखिच ली रिजया को साथ लके र खाला के पास प चँ ा। उस व खाला चकै े म थी खाना पकाने म मशगलू । शेखिच ली ने शहर चलने का ताव रखा तो वे थोड़ा झप ग मगर शेखिच ली क िजद के आगे उनक एक न चली। शखे िच ली ने उनसे शहर चलने के िलए एक अ छी बैलगाड़ी का इ तजाम करने को कहा। खाला ने साथ चलने के िलए भी हामी भर दी और बैलगाड़ी के इ तजाम के िलए भी। दसू रे दन बैलगाड़ी पर सवार होकर शखे िच ली, रिजया बगे म, सलीम और खालाजान शहर प चँ ।े सबसे पहले होटल म तबीयत के अनुसार सबने खाना खाया। मुगलई पराँठा और अफगानी सालन से पटे भरने के बाद खाने क तारीफ करते ए वे लोग िसनेमा हाॅल प चँ े और टकट कटाकर हाॅल म घसु ।े एक टाॅच वाले आदमी ने हाॅल म उनसे टकट माँगा तो शेखिच ली ने उसके आगे चार टकट बढ़ा दए। उस आदमी ने टकट अपने हाथ म लेकर उसका आधा भाग फाड़कर अपने पास रख िलया और आधा भाग उसे लौटा दया। टकट फटता दखे शेखिच ली गु से म आ गया था, अब टकट क अधकटी दखे कर उसका गु सा और बढ़ गया। उसने उस आदमी क गदन पकड़ ली और गु से म बोला-‘‘अबे! तनू े मेरा टकट य फाड़ दया? अभी तो मने िसनमे ा भी नह दखे ा ह।ै पसै े दके र हमने टकट खरीदा है और तू मु त म इसका आधा अपनी जेब म डाल रहा ह?ै ’’ तुर त शेखिच ली के साले सलीम ने ह त पे कया और बताया- ‘‘जीजा, िसनेमा हाॅल म ऐसा ही होता ह।ै यह आदमी हम अपनी सीट पर बठै ाएगा। और इस अधकटी से िसनमे ा हालॅ चलानेवाले को पता चलेगा क कस- कस सीट पर आदमी बैठा आ है ता क उस सीट के िलए कसी और को टकट नह बचे ा जाए...आप शा त हो जाइए...इसम गु सा करने क कोई बात नह ह।ै ’’ ‘‘अ छा...अ छा, अब समझाना ब द भी करो! म तो इससे मजाक कर रहा था...आिखर अपनी ससरु ाल आया .ँ ..इतना मजाक भी न क ँ !’’ झप िमटाते ए शेखिच ली ने कहा।

टाॅचवाले आदमी ने उन लोग को उनक सीट पर िबठा दया और वहाँ से चला गया। शेखिच ली क समझ म नह आ रहा था क घु प अँधरे े हालॅ म कोई िसनेमा कै से दखे गे ा? मगर वह चुप ही रहा। ‘दखे , आगे या होता ह’ै , के अ दाज म वह हाॅल क गितिविधयाँ दखे ने म मशगलू हो गया। हाॅल धीरे-धीरे भर गया फर एक घंटी बजने क आवाज सुनाई पड़ी। और पदा हटने लगा... फर िसनमे ा शु आ। शेखिच ली का मुहँ आ य से फै ल गया। िसनेमा दखे ने म उसे मजा आने लगा। िसनेमा का एक - य था िजसम नाियका को खलनायक दबोच लते ा है और उसके साथ जबद ती करने पर उता हो जाता ह।ै नाियका अपने बचाव के िलए चीखती ह.ै .. उसक चीख सुनकर शखे िच ली बेचनै हो गया। अपना आपा खोकर सीट से खड़ा हो गया और ललकारने लगा-‘‘अबे! ओ दु ! छोड़ दे उसे वरना म तु हारा कचूमर िनकाल दगँू ा...शरम नह आती एक औरत पर अपनी ताकत आजमा रहा ह.ै ..िह मत है तो मुझस.े ..’’ तभी हालॅ म बठै े लोग चीखने लग-े ‘‘अबे बठै ...यह कौन गवँ ार आ गया है हाॅल म!’’ सलीम ने शेखिच ली को पकड़कर सीट पर बठै ा िलया और समझाया- ‘‘जीजा...यह िसनमे ा ह.ै ..सचमुच क घटना नह ह.ै .. य नाराज हो रहे ह...?’’ शखे िच ली फर झप गया और ह...ह...ह करते ए झपी ई हसँ ी हसँ ता आ बोला-‘‘म तो मजाक कर रहा था।’’ िसनेमा दखे कर लौटते समय भी शखे िच ली ने सबको होटल म ले जाकर खाना िखलाया और फर बैलगाड़ी पर बठै कर सभी के साथ खाला के घर आ गया। खाला तो उस पर मु ध हो गई। जब शेखिच ली सलीम के साथ अपनी ससरु ाल लौटा तब खाला ने उसे िवदा करते समय कहा-‘‘बेटा! मने तु हारी िजतनी तारीफ सुनी थी उससे बढ़कर पाया। तमु वाकई एक नेक दल इनसान हो...खुदा तु ह बरकत द।े ’’ कु छ दन के बाद रिजया बेगम भी खाला के घर से लौट आई। जब शखे िच ली अपनी बगे म के साथ अपनी ससुराल से िवदा आ तो उसके ससुर-सास, साला-साली सबक आँख नम हो ग -रिजया बगे म के िलए नह ...शखे िच ली के िवयोग के कारण उनके आसँ ू छलछला आए थ।े

शेखिच ली क ल दन-या ा शखे िच ली अपने ढंग का आला इनसान था। उसे लोग बवे कू फ समझते थे मगर वह खदु को न तो बवे कू फ समझता था और न होिशयार। वह समय क ज रत को समझते ए पल म◌ं े जीता था। हीरो बनने के शौक ने उसे ब बई प चँ ाया था और हीरोइन क बहे याई से भागकर वह जहाज पर चढ़ गया था। यह जहाज मालवाहक जहाज था िजस पर सामान लदा आ था। जहाज पर लदा सामान इं लड भेजा जा रहा था। सामान के अलावा जहाज पर कु छ मजदरू और जहाज के अ य मुलािजम थे। कोई या ाी नह था। संयोग क बात थी क उस जहाज के कु छ मजदरू क अदला-बदली ब बई ब दरगाह पर क गई थी िजसके कारण शखे िच ली के अजनबी होने पर भी कसी ने उस पर यान नह दया। शेखिच ली आलािलबास म था। उसे फ म के सनक िनमाता िनदशक ने शानदार कोट-पट दलवा दया था िजसके कारण वह रईस दख रहा था। जहाज के तट छोड़ चुकने के बाद उसक आ त रक गितिविधयाँ शु हो ग । शखे िच ली के िलए सम दर का वातावरण और पानी का शोर दोन ही नया था। ठंडी हवा क थप कय से उसे न द आने लगी और उसने सामान के कु छ बडं ला◌ं े को एक साथ लगाकर उस पर लटे ने क जुगत बना ली और उस पर लटे भी गया। थोड़ी ही दरे म उसे न द आ गई। जहाज के मलु ािजम और मजदरू के खाने का समय आ तो जहाज का घिड़ याल बज उठा। सभी मजदरू और मलु ािजम भोजन के िलए एक जगह जमा होने लग।े एक मलु ािजम क नजर बंडल पर सोए शखे िच ली पर पड़ी तो उसने शेखिच ली को जगाया-‘‘ओ! मैन! अवके ...इ स मील टाइम।’’ शेखिच ली जगकर अपने जगानेवाले अं जे क तरफ दखे ा तो मन-ही- मन भयभीत हो उठा क अब तो यह अं ेज हगं ामा खड़ा कर दगे ा। वह इस बात से भी आशं कत हो उठा था क कह उसे चोर न समझ िलया जाए। मगर जब उस अं ेज मलु ािजम ने उसे मु कु राकर दखे ा-‘ यू मैन? लेबर?’ तो शखे िच ली क समझ म कु छ नह आया मगर उसने हामी भर दी और उस आदमी ने उसे इशारा करते ए साथ आने को कहा। जहाज के उस भाग म दोन प चँ े िजस भाग म भोजन क व था हो रही थी। शखे िच ली क आखँ फै ल ग । जहाज पर अफगानी भी थे, ईरानी भी, अंगेर् ेज भी थे और ह शी भी। उसे एक-दो मजदरू भारतीय भी दख।े उसने वहाँ का जायजा िलया। भारतीय मजदरू शखे िच ली के िलबास से भािवत होकर उसके पास आ गया और पछू ा-‘‘इंिडयन हो?’’

शखे िच ली ‘इंिडयन’ समझता था, इसिलए बोला-”हाँ।“ ‘‘कहाँ चढ़े-ब बई म।’’ उसने दसू रा कया। शखे िच ली ने फर कहा-”हा।ँ “ उस आदमी ने कहा-‘‘आई एम सोलंक । इस जहाज पर एक साल से मजदरू का काम कर रहा ।ँ तु हारा नाम रिज टर म दज आ या नह ? नह आ हो तो करवा लो, नह तो जहाज का मनै ेजर मजदरू ी दते े समय कच- कच कर सकता ह।ै अरे, म भूल ही गया था। तुम नए हो और तु ह पता नह होगा क इतने बड़े जहाज म तुम कस काम के िलए कससे और कब िमलो! मझु े भी पहले महीने म ब त क ठनाई का सामना करना पड़ा था मगर धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। म जहाज के सभी अिधका रय को पहचानने लगा और सभी अिधकारी मझु े पहचानने लगे। तु हारे साथ भी ऐसा ही होगा।...और तु ह घबराने क ज रत नह । म एक साथी का इ तजार एक साल से इस जहाज पर कर रहा ।ँ इस जहाज पर मेरी भाषा...मरे ा मतलब है क िह दी या उदू समझनवे ाला कोई नह । बस, एक राॅबट है जो टूटी-फू टी िह दी बोल लेता ह।ै तु हारे िमलने से मुझे इतनी खुशी ई है क म तु ह बता नह सकता। अब दोन बैठकर खबू ग प कया करगे। जहाज पर समय ही समय ह।ै छह महीने म थर गित से चलने के बाद यह जहाज इं लड प चँ गे ा तब हम फर से दखाई दगे ी जीवन क हलचल। फलहाल तो इस जहाज के अलावा सम दर का मचलता पानी दखे ो या फर सनू ा आसमान िजसम कभी-कभी बादल भी तैरते दख जाएँगे...।’’ शखे िच ली ने सोचा-यह जहाजी सोलंक तो गजब का बातनू ी आदमी है ले कन है भला आदमी। दो त क तरह वहार कर रहा ह।ै चलो, इस जहाज पर इसका साथ रहगे ा। उसे यह बात समझ म आ गई थी क छह महीने तक उसे इसी जहाज पर मजदरू क हिै सयत से रहना होगा। उसने चुपचाप सोलकं क बात सनु । इसी दौरान वह आदमी, िजसने शेखिच ली को जगाया था, उसे इशारे से बलु ाया। शेखिच ली ने सोलकं क तरफ वाचक -ि से दखे ा। सोलंक ने हसँ ते ए कहा-‘‘अ छा आदमी ह।ै यही है राबॅ ट िजसके बारे मं◌े मने तमु से कहा था। लगता ह,ै यह तु ह जानता ह।ै चलो, वह तु ह बुला रहा ह।ै म भी तु हारे साथ चलता ।ँ ’’ सोलकं अपने साथ शखे िच ली को लके र राबॅ ट के पास प चँ ा और बोला-‘‘हाय राॅबट! िमलो-मरे े नए दो त से।“ फर उसने शेखिच ली से कहा-”अरे! तुमने तो अपना नाम ही नह बताया।’’ शेखिच ली ने अपना नाम बताने के िलए अपना मँहु खोला ही था क राबॅ ट ने कहा-‘‘िमल चकु ा ।ँ अ छा आदमी ह।ै मने इसे अपने खाने क लेट लेने के िलए

बुलाया...यह नया आदमी ह।ै इसे यहाँ कै से या करना ह,ै बताना होगा।“ जहाज म सभी पंि ब होकर कचन से खाना लेने लगे। शेखिच ली ने दखे ा- अिधकारी, कमचारी और मजदरू सभी को एक जसै ा खाना िमला। बकरे क टाँग का भनू ा आ गो त और पाव तथा एक मग म शराब। शेखिच ली ने खाना शु कया। पाव के साथ गो त उसे अ छा लगा। मगर मग म िमले पेय पदाथ के बारे म वह कु छ जानता नह था िजसके कारण उसने राॅबट और सोलकं से पछू ा-‘‘इस मग म या ह?ै ’’ राबॅ ट ने उसे बताया-‘‘शराब ह।ै “ और आ य से पूछा-‘‘तुम शराब नह जानत?े कै से जहाजी हो!’’ शराब का नाम सनु ते ही शेखिच ली ने मग को परे हटा दया। राॅबट का आ य और बढ़ गया। उसने िवि मत वर म उससे फर पछू ा-‘‘ या वाकई तुम शराब नह पीते?’’ ‘‘तौबा...तौबा! शराब भी कोई पीने क चीज ह!ै मरे ी अ मी कहा करती ह क शराब से जहे न खराब होता है और शराब पीनेवाले को दोजख म भी जगह नह िमलती ह।ै ’’ ‘‘अ छी बात ह।ै मगर मने तु हारे जसै ा कोई दसू रा जहाजी नह दखे ा ह।ै भाई, गजब का िजगर है तु हारा! िबना शराब के तमु छह महीने क यह या ा कै से परू ी करोगे, यह तो मेरी समझ म नह आता।’’ आ य से आखँ फाड़कर सोलंक ने शखे िच ली को दखे ते ए कहा। तभी राबॅ ट ने शखे िच ली का मग उठा िलया और कहा-‘‘जाने दो सोलंक . ..जब उसे पीने क ज रत महसूस होगी, वह भी लेगा। फलहाल हम लोग उसके िह से क शराब आधा-आधा बाटँ लेते ह।’’ फर शेखिच ली क तरफ दखे ता आ बोला-‘‘तु ह कोई एतराज तो नह ह.ै ..अरे...तमु ने तो अपना नाम हम◌ं े बताया ही नह !’’ राबॅ ट क बात सुनकर शखे िच ली ने कहा-‘‘तमु लोग खदु म इतने मश फ रहे क मेरे नाम क परवाह तुम लोग को रही ही नह । तमु लोग ने तो मुझे बोलने का मौका ही नह दया और अब तोहमत लगा रहे हो क मने तुम लोगां◌े को अपना नाम नह बताया! खैर, जाने दो, मरे ा नाम शेखिच ली ह।ै ’’ ‘‘हा,ँ तो िम टर िच ली! य द हम लोग रोज तु हारे मग क शराब पी ल तो या तु ह कोई एतराज ह?ै ’’ राॅबट ने पूछा।

‘‘मझु े या एतराज होगा? म तो शराब पीता नह । तुम लोग पीओग,े ऐसा सोचकर म शराब ले िलया क ँ गा वरना म यह मग नह लेने क सोच रहा था।’’ शेखिच ली ने कहा। ‘‘अरे...रे...रे! ऐसा भलू के भी नह करना वरना यहाँ कोई तु ह जहाजी नह मानगे ा...तुम रोज शराब ले िलया करना और हम लोग को दे दने ा। अपने दो त म अपने िह से क शराब बाँटना तु ह अ छा लगगे ा।’’ सोलंक ने बातचीत म ह त ेप करते ए कहा। इस तरह शखे िच ली के िह से क शराब सोलंक और राॅबट ने गटक ली। सामा य से अिधक मा ा म शराब पीने के कारण दोन नशे म आ गए और शखे िच ली के आजू-बाजू खड़े होकर उसे अपना यारा दो त बताने लग।े शेखिच ली उन दोन क हालत दखे कर समझ गया क शराब आदमी के दमाग पर भाव डालती ह।ै नशे क हालत म आदमी का वहार अटपटा हो जाता ह।ै शायद इसीिलए अ मी कहती ह◌ं ै क शराब इनसान के जेहन को ग दा करती ह।ै एक मग शराब के एवज म राबॅ ट और सोलकं उस जहाज पर शेखिच ली के सबसे बड़े िहतैषी हो गए। इसका फायदा शखे िच ली को आ। जहाज के मजदरू के रिज टर मं◌े राॅबट ने शेखिच ली का नाम िलखवा दया। उसके िलए काम तय आ-जहाज के पाल क रि सय का तनाव बरकरार रखना तथा मुसीबत के समय म सािथय को आगाह करना। दरअसल राॅबट और सोलंक जहाजी जीवन क अ छी पहचान रखते थे और एक मग शराब ित दन पाने के लोभ म शेखिच ली के िलए ह का- फु का काम दलाकर उसे खुश रखना चाहते थे। वे यह भी समझते थे क शरीर को थका दने वे ाला काम करने से शखे िच ली को भी थकान िमटाने के िलए शराब क ज रत पड़ सकती ह।ै राबॅ ट और सोलकं से दो ती का एक फायदा शखे िच ली को और आ िजससे उसक भावी या ा सगु म हो गई। आ यह क एक दन खाना खाते, शराब पीते सोलंक और राॅबट बहक गए। दोन छह माह बाद ल दन प चँ कर ऐश-मौज करने के बारे म बात करने लगे। सोलकं ने कहा-‘‘यार राबॅ ट! तुम अं ेज हो और ल दन म तु हारा अपना मकान ह।ै छः माह बाद जब तु ह एकमु त पगार िमलेगी तो तुम उससे मौज-म ती कर सकोगे मगर म तो मौज-म ती करने क ि थित म हो ही नह सकता। मरे ा वहाँ मकान नह ह।ै या तो कसी स ते होटल म र गँ ा या फर जहाज पर। दोन ही ि थित मं◌े मेरे पैसे तुमसे अिधक खच ह गे।’’ ‘‘अबे, जहाज पर रहने पर तु हारा या खचा होगा?’’ राबॅ ट ने सोलकं के क धे पर

हाथ मारते ए पछू ा। ‘‘ य खच नह होगा? ब दरगाह या शहर के बीच म ह?ै ब दरगाह से शहर तक जान-े आने म ही अ छा-खासा खच हो जाएगा। ऐसे म ऐश-मौज क ँ गा तो मेरे पास या बचेगा जो लेकर जाऊँ गा?’’ उनके बीच यह बातचीत हो ही रही थी क शखे िच ली अपना खाना ख म कर उन दोन के बीच आ बठै ा। वे दोन मग से धीरे-धीरे शराब पीते ए बात कर रहे थे। पसै े क बात सुनते ही शेखिच ली ने उनसे पूछा- ”दो तो! या तमु लोग मुझे बता सकते हो क छः महीने बाद जब यह जहाज इं लड प चँ जाएगा तब मझु े कतने पैसे िमलगे?“ सोलंक ने सुधारा-”पैसे नह , प ड। इं लड म पैसे- पए नह चलत।े वहाँ प ड चलता ह।ै तु हारे पास जो पए-पैसे ह उसे जहाज के खजाचं ी के पास जमा कराकर उसके बदले म तमु प ड ले सकते हो। जब एक महीने बाद जहाज फर इंिडया रवाना होगा तो इंिडया प चँ कर प ड को इसी जहाज म पए म◌ं े बदलवा सकते हो। इस जहाज म मु ा बदलने क व था है इसिलए तु ह सिु वधा रहगे ी। पए लेकर इं लड मं◌े भटकते रह जाओगे मगर वहाँ कोई पए के बदले तु ह कु छ भी नह दगे ा, इस बात को याद रखना।“ शखे िच ली को बैठे-िबठाए यह ज री जानकारी भी िमल गई। इस तरह जहाज म छः महीने तक शखे िच ली आराम से खाता-बितयाता रहा। उसके गाँव के लोग यह क पना भी नह कर सकते थे क शेखिच ली इं ल◌ं ैड या ा पर िनकल चकु ा ह।ै सोलंक ने उसे भरोसा दलाया क एक साल बाद जब वह इंिडया प चँ ेगा तब उसके पास अ छी रकम होगी। ल दन प चँ ने के बाद जहाज ने लगं र डाला। राॅबट और सोलकं ने शखे िच ली को पगार लने े और पास के पए बदलकर प ड लने े म मदद क । राबॅ ट ने शखे िच ली से पूछा-‘‘तुम अब कधर जाओग?े ’’ शखे िच ली ने िनराशापूवक िसर िहलाते ए कहा-‘‘पता नह कधर?’’ . तभी सोलंक ने उससे कहा-‘‘शेख! तुम मरे े साथ जहाज पर ही क जाओ। एक महीने बाद तो इसी जहाज से वापस जाना है हमं◌।े साथ रहगे तो समय अ छा बीतेगा?’’ राॅबट ने दखे िलया था क शखे िच ली के पास अ छी रकम ह।ै वह उस पर बोझ नह बनगे ा इसिलए उसने कहा-‘‘िम टर िच ली! छः महीने तक म तु हारी शराब पीता रहा। अब मझु े भी कु छ खाितरदारी का मौका दो। मेरे साथ चलो। ल दन म मरे ा प रवार रहता

ह।ै हम लोग साथ रहग।े तु ह◌ं े कोई तकलीफ नह होगी और तुम दिु नया का यह बहे तरीन शहर भी दखे सकोगे। जब भी इ छा होगी हम लोग आकर सोलंक से भी िमल लग।े ’’ शेखिच ली को राॅबट क यह बात पस द आई और वह सोलंक से िवदा लेकर राबॅ ट के साथ चला गया। दो दन तक राबॅ ट के घर से ही उसने ल दन क तड़क-भड़क-भरी िज दगी का जायजा िलया। राॅबट के आने क खुशी म राॅबट के घर के लोग ने अपने प रजन को आमि ात कया। यानी दो दन जलसे और दावत म िबताने के बाद शेखिच ली तीसरे दन राबॅ ट के घर से ल दन घूमने के िलए िनकला। चार तरफ उसे खुिशयाँ िबखरी सी दख -ऊँ ची अ ािलकाएँ, बड़ी-बड़ी दकु ान, तेज र तारवाले वाहन। साफ-सथु री चड़ै ी सड़क। मु ध-सा शेखिच ली ल दन क सड़क पर इधर-उधर दखे ता आ चलता रहा। शाम हो गई। उसने अपनी जबे म राॅबट के घर का पता िलखकर रख िलया था। उसने सोचा, भाड़े का कोई वाहन लके र वह राबॅ ट के पास प चँ जाएगा। अभी वह वाहन के िलए आवाज लगाने ही जा रहा था क उसक नजर सामने के एक होटल पर पड़ी िजस पर बोड लगा था: ‘इंिडयन होटल’। अं जे ी म िलखी गई इबारत के नीचे उदू हफ उभरे थे तथा वशे ार के दोन बाजू लगी इ तहे ारी त ती पर िलखा था: मुगलई पराँठा, त दरू ी मुग, शाही कबाब, मुग िबरयानी का जायका लीिजए! इ तहे ार पढ़ते ही शेखिच ली क तबीयत मचल गई। छः महीने हो चले थे। उसे घर का खाना नसीब नह आ था। जहाज पर पाव और भूना आ अथवा उबला आ गो त खात-े खाते वह ऊब चुका था। राॅबट के घर म भी उसे अं जे ी खाना से ही स तोष करना पड़ा था। अपनी जेब म पड़े पसै को छू कर उसने सोचा-पहले कु छ ढंग का खाना खा लेते ह फर चलगे राबॅ ट के पास। सयं ोग से होटल का मािलक गोल टोपीवाला आदमी था िजसक ह क दाढ़ी भी थी। शेखिच ली को उसे दखे कर अपना िलया याद आ गया। होटल के मािलक ने सूट-बटू म शखे िच ली को होटल म वशे करते दखे कर सोचा-ज र यह श स िह दु तान का कोई जाना-माना रईस है जो ल दन घूमने आया ह।ै उसने अदब से शखे िच ली को सलाम कया। िवन तापवू क उसक अगवानी क और उसे एक मजे पर ले जाकर बैठा दया। शेखिच ली ने मुगलई पराँठा और त दरू ी मगु मगँ ाया और वाद लके र खाया। जब वह खाना खाकर पसै े चुकाने के िलए होटल मािलक के पास प चँ ा तो होटल मािलक ने उसे पान क एक िगलौरी दी। ससुराल म कभी उसे साले ने पान क िगलौरी िखलाई थी और महुँ से पीक िनकलने पर उसने सोचा था क उसे कोई भयकं र रोग हो गया है और इसके

बाद उसने जो हगं ामा खड़ा कया था, उसक याद आते ही शेखिच ली को हसँ ी आ गई। होटलवाले से िगलौरी लके र उसने अपने मुँह म दबाया और पसै े चुकाकर होटल से बाहर आ गया। इं लड म िसगार, िसगरेट, चु ट आ द पीनवे ाले लोग तो थे क तु पान खानवे ाले नह , इसिलए वहाँ पान क िवशेषता को जाननेवाले लोग नह थे। िगलौरी चुभलाते ए शेखिच ली एक लै पपो ट के पास खड़ा हो गया और कसी भाड़े के वाहन क ती ा करने लगा। उसके महँु म◌ं े िगलौरी गल चुक थी। पीक से महुँ भर चकु ा था। अचानक उसने वह पीक लै पपो ट के पास उगल दी। उसके आस-पास से गजु रते लोग ने दखे ा तो वे घबरा गए। सोचा-इस आदमी को ज र कोई भयानक रोग ह।ै हो सकता है क लीवर- रे चर का के स हो। उन लोग ने ए बलु स बुला िलया। शेखिच ली चीखता रह गया मगर उसक बात कसी क समझ म नह आई और उसे ए बलु स पर लाद दया गया। दो हे पर ने उसका हाथ-पावँ मजबूती से पकड़ िलया और उसके चेहरे पर आॅ सीजन मा क लगा दया गया। ए बलु स म बठै ी नस ने उसे एक सईु लगा दी िजससे उसे तुर त न द आ गई। इस तरह ल दन घमू ने िनकला शखे िच ली ल दन के बड़े सरकारी अ पताल म प चँ गया। उसे जब भी होश आता तो वह उस नस से, जो उसक िनगरानी कर रही थी, बार- बार एक ही बात कहता-‘‘नस, मुझे जाने दो। म ठीक ।ँ मुझे कोई रोग नह ह।ै ’’ मगर नस उसे सुई लगाकर सुला दते ी। वह समझ रही थी क अपनी बीमारी से घबराकर शखे िच ली अनाप-शनाप बोल रहा ह।ै इस तरह प ह दन बीत गए। शेखिच ली के शरीर क हर तरह क जाचँ ई। जाचँ रपोट क ती ा थी। इसी दौरान बार-बार सुई लगानवे ाली नस क सेवा का समय और थान बदल गया और उसके बाद एक दसू री नस को शखे िच ली क दखे भाल करने का दािय व िमल गया। यह नस थोड़ी िह दी जानती थी। उसक एक सहले ी ने एक भारतीय रईस से मे िववाह कर िलया था और वह अपने पित के साथ िह दु तान चली गई थी। एक बार जब वह अपने प रजन से िमलने िह दु तान से ल दन प चँ ी तब अपनी सहले ी से भी िमली। नस ने तब उस सहले ी क ठाठ दखे ी थी...दरअसल उसका पित एक रजवाड़े से ता लकु रखता था िजसके कारण उसक सहले ी रािनय जसै ा िलबास पहनती थी। नस ने जब शेखिच ली को दखे ा तो उसने भी क पना कर ली क शेखिच ली भी भारत का कोई रईस होगा. ..कोई जम दार। गरीब लोग को ल दन आने क ज रत ही या ह?ै वह ब त ेम से शेखिच ली क सेवा करने लगी। शेखिच ली क सारी जाँच रपोट आ गई और यह खलु ासा हो गया क उसे कोई रोग नह ह।ै तब नस ने शेखिच ली से कहा-‘‘तमु पूरी तरह व थ हो! अब तुम अ पताल से छु ी पा सकते हो?’’ जब शेखिच ली अ पताल से जाने लगा तब नस ने उससे पूछा-‘‘ल दन म तमु कहाँ रहोग?े ’’ शखे िच ली ने अपनी जेब से राबॅ ट का पता वाला कागज िनकाला और उसे पढ़कर सनु ा दया।

मगर नस के मन म तो कु छ और था। उसने शखे िच ली से कहा- ‘‘शेख! मझु े अपनी सवे ा का मौका दो। तमु मेरे साथ चलो। मरे े घर मं◌े रहो! म अके ली रहती ।ँ मेरा मन नह लगता ह।ै तुम रहोगे तो मन लगना आसान हो जाएगा। म तु हारी सुिवधा का खयाल रख◌ँ गू ी।’’ शेखिच ली ने सोचा-अब दस-बारह दन ही तो ल दन म रहना ह।ै इस बेचारी नस क इ छा भी परू ी कर दने े म कोई बुराई नह है य क अ मी अ सर कहा करती थ क अगर कोई तमु से मे पवू क कु छ करने को कहता है और वसै ा करने से कसी का कु छ नह िबगड़ता है तो तुम उसक इ छा अव य पूरी कर दो।...नस भी तो माँ के सामान ही होती ह.ै .. नह -नह , बहन के समान! तभी तो नस को िस टर कहते ह...बहन के बारे म सोचते ही शेखिच ली भावकु हो उठा य क उसक कोई बहन नह थी। उसने सोचा-य द मरे ी बहन मझु से कहती क मरे े घर चलो तो या म उससे ना कहता...? उसने तुर त फै सला िलया। वह राॅबट के घर बाद म जाएगा, पहले नस के साथ उसके घर जाएगा। इतनी बड़ी दिु नया मं◌े उसका कोई नह है और वह चाहती है क म उसके साथ र ।ँ वह नस के साथ उसके घर चला आया। नस उसके साथ ब त उदारता से पेश आ रही थी। नस ने दो दन के बाद अ पताल से ह ते भर क छु ी ले ली और शेखिच ली को साथ लके र ल दन क सरै पर िनकल गई। शखे िच ली सोचता-ज र िपछले ज म म यह नस उसक बहन रही होगी तभी तो वह उसके िलए इतना कु छ कर रही ह।ै दसू री तरफ नस सोच रही थी क शेखिच ली ब त संकोची ह।ै ऐसे भी भारतीय मलू के लोग मे कट करने म दरे करते ह। एक शाम नस शेखिच ली को साथ लके र पब म चली गई। वहाँ का नजारा दखे कर शखे िच ली घबरा गया। मद और औरत साथ बठै कर खलु आे म वहाँ शराब पी रहे थ।े अं ेजी साज क धुन पर जोड़े नाच रहे थ।े ेमी यगु ल झूम रहे थ।े मदहोशी म एक-दसू रे को चूम रहे थ।े पब का - य दखे कर शखे िच ली ने नस से पछू ा-‘‘ओह! यह कै सी ग दी जगह पर हम आ गए? दखे ो तो यहाँ बठै नेवाल के पास थोड़ी भी हया नह ह.ै ..ये इस तरह एक-दसू रे को चूम रहे ह क दखे नेवाले को भी शम आ जाए।’’ नस ने थोड़ा खलु ते ए शखे िच ली क कमर म हाथ डाल दया और बोली-‘‘अरे! इसम शम क या बात ह?ै लो, तुम भी मुझे चमू लो। यहाँ ेमी यगु ल इसी के िलए तो आते ह।’’ शेखिच ली नस क बाहँ से िछटक गया और बोला-‘‘अ छा, ठीक ह।ै तु ह यहाँ जो भी करना ह,ै करो और ज दी चलो। मुझे यहाँ कु छ अजीब-सा लग रहा ह।ै “ नस शेखिच ली के साथ एक खाली मजे पर चली गई और बये रे से दो पगै काॅच लाने

को बोली। ‘ काॅच’ शेखिच ली के िलए नया श द था। उसने नस से पूछा-‘‘यह काॅच या होता ह?ै ’’ नस ने मु कु राते ए कहा-‘‘यह एक महगँ ी शराब ह।ै ’’ ‘‘शराब?’’ भौच ा रह गया शेखिच ली! बोला-‘‘तमु मुझे शराब पीने को दोगी? तौबा...तौबा! म शराब नह पी सकता। तु ह पीना है तो पीओ। म बठै ा रह◌ँ गूं ा।’’ नस के ब त कहने पर भी शखे िच ली ने जाम को हाथ नह लगाया। नस ने अपना जाम पी िलया फर मजबूर होकर शखे िच ली के िलए मँगाया गया जाम भी धीरे-धीरे पीने लगी। शराब पीते ए नस ने शखे िच ली से पछू ा-‘‘िडयर! म तु ह कै सी लगती ?ँ मरे ा मतलब है क मुझे दखे कर तु हारे मन म या खयाल आता ह?ै “ शेखिच ली नस के इस पर उ सािहत होकर बोला-‘‘मेरी कोई बहन नह ह।ै म जब भी तु ह दखे ता ँ तो मुझे लगता है क मेरी बहन होती तो िबलकु ल तु हारी तरह ही मेरा खयाल रखती।’’ शखे िच ली का जवाब सुनकर नस िख हो गई और बुदबदु ाई- ‘घामड़! कतना मखू आदमी ह.ै ..कु छ समझता ही नह ।’ थोड़ी दरे चपु रहने के बाद नस ने शोख नजर से शेखिच ली को दखे ते ए पूछा-‘‘शखे ! शादी के बारे म तु हारा या खयाल ह?ै ’’ ‘‘शादी के बारे म?’’ शेखिच ली ने जवाब दया-‘‘जब मेरी शादी ई तब मझु े ब त खशु ी हो रही थी। बाद म रिजया बगे म के प मं◌े मुझे ऐसी प ी िमल गई िजससे मेरी नीरस िज दगी म नए सपने िझलिमला उठे और कु छ कर गजु रने क तम ा अगँ ड़ाई लेने लगी।’’ बचे ारी नस जैसे आसमान से िगरी। उसने खदु को संयत कया और बोली-‘‘कोई बात नह , अब हम दोन साथ रहग।े तुम उससे तलाक ले लेना फर हम लोग शादी कर लग।े ’’ ”तलाक! शादी! यह तुम या बोल रही हो...तुम तो मेरी बहन जसै ी हो?’’ शखे िच ली आ य से बोला। ‘बहन’ सनु ते ही नस का गु सा सातव आसमान पर प चँ गया और वह चीख पड़ी-‘‘भाड़ म जाओ मूख! मेरा इतना समय बबाद कराया...बड़ा आया ‘बहन’ कहनवे ाला! भागो...भाग जाओ...दरू हो जाओ मेरी नजर से।’’ नस आपा खोकर चीख रही थी। पब के बये र ने नस का चीखना सनु ा तो वे यह समझ बठै े क इस मिहला के साथ बैठे

ि ने ज र कोई गु ताखी क ह।ै वे भाग-े भागे नस के पास प चँ े और पूछने लगे-‘‘ या आ मडै म?’’ नस चीखी-‘‘ ो िहम आउट।’’ और दखे ते ही दखे ते बेयर ने शखे िच ली को पब से ध ा दके र िनकाल बाहर कया। शखे िच ली समझ नह पाया क अचानक उसके साथ या आ क नस नाराज हो गई और बये र ने उसे पब से िनकाल बाहर कया! हारा- थका-सा शेखिच ली ल दन क सड़क पर िनपट अके ला चलने लगा। उसे याद आया क एक-दो दन म ही जहाज ब बई के िलए अपना लगं र उठा लगे ा। उसने जबे से राॅबट का पता िनकाला और एक भाड़े क कार म बैठकर राॅबट के पास प चँ ा। राॅबट उसे दखे कर खशु ी से उछल पड़ा और बोला-‘‘िम टर िच ली! म तो परेशान हो रहा था क तमु िबना बताए कहाँ चले गए। अ छा आ, तुम आ गए। हम कल सुबह ही जहाज म प चँ कर अपना-अपना नाम वापसी रिज टर म दज कराना होगा।“ राबॅ ट के कहने पर शखे िच ली ने पास क दकु ान से अपनी अ मी और बगे म के िलए दो सु दर तोहफा खरीदा और राबॅ ट के साथ ग प लड़ाते ए आपबीती सनु ाई। उसक आपबीती सनु कर राॅबट हसँ त-े हसँ ते लोट-पोट हो गया। दसू रे दन सबु ह जहाज पर प चँ कर दोन अपने यार सोलंक से िमले और एक भ पू क आवाज के साथ जहाज तट छोड़ने लगा। शखे िच ली ने आसमान क ओर दखे त-े दखे ते सोचा-छः महीने बाद ही सही, अब म फर अ मी और बगे म से िमल सकँू गा।

शेखिच ली को िमला कले म मकान आगरा टेशन पर शखे िच ली अपने गाँव का टकट कटाकर ेन म बठै ने के िलए लटे फामॅ पर जा रहा था क उसे ताजमहल के छोटे-छोटे ित प को बेचता एक यवु क दखा। उस यवु क ने भी गोल टोपी पहन रखी थी। वह भी कु ता-पाजामा पहने आ था और उसक भी छोटी दाढ़ी थी। शखे िच ली को वह युवक जँच गया। ेन आने म अभी दरे थी। शखे िच ली उस युवक के पास आ गया और पछू ा-‘‘ या तमु ये छोटे ताजमहल बेच रहे हो?’’ उस युवक ने हामी भर दी। शखे िच ली ने उससे फर पछू ा-‘‘ या तु हारे ताजमहल भी संगमरमर के बने ह?’’ उस यवु क ने फर हामी भरी। फर शेखिच ली ने उससे पूछा-‘‘ले कन कोई यह छोटा ताजमहल य खरीद?े ’’ उस युवक ने पहली बार कु छ कहने के िलए महँु खोला, उसने कहा- ‘‘जनाब! ताजमहल एक ऐसा शाहकार है िजसे शहशं ाह शाहजहाँ ने अपनी बगे म मुमताज महल क याद म बनवाया था। दोन के मे क दा ताँ इस महल म◌ं े पैव त ह।ै ताजमहल के वल इमारत नह , मे क -पित-प ी के मे क -एक मकु ि मल दा तान ह।ै दिु नया भर के लोग यहाँ आते ह और यह ताजमहल खरीदकर ले जाते ह-अपने मे का इजहार करने के िलए। ताजमहल का यह ित प भट करने का मतलब ही अपने ेम का इजहार करना होता ह।ै ’’ शेखिच ली ने सोचा, वह भी तो अपनी बीवी रिजया बगे म से बेइ तहा महु बत करता है मगर उसने कभी भी उसके सामने अपनी मुह बत का इजहार नह कया। सच कह तो कभी इसक ज रत ही नह पड़ी। मगर अब इतने दन तक रिजया से दरू रहने के कारण ‘ताजमहल’ क इस चचा से शेखिच ली के मन मं◌े भी रिजया के सामने अपना ेम कट करने क इ छा अँगड़ाई लने े लगी और उसने ताजमहल क एक छोटी और यारी-सी ितकृ ित खरीद ली और उसे अ छी तरह एक िड बे म ब द करवाकर अपने पास रख िलया। रिजया के िलए खरीदी गई यह चीज शेखिच ली के मन को सकु ू न से भर गई। उसे पहली बार महससू हो रहा था क वह रिजया से कतना यार करता ह।ै रिजया के खयाल म डूबा आ वह लटे फाम पर चला आया। उसके गाँव जानेवाली ेन लग चकु थी और वह ेन म जा बैठा। ेन चली और शेखिच ली खयाल क दिु नया म खो सा गया। वह बार-बार अ मी के हाथ के बने पकवान क याद करता और बार-बार रिजया का चहे रा उसके जेहन मं◌े क ध जाता और वह मन-ही-मन रिजया से सवं ाद करने लगता।

कसी तरह रात बीती। सवेरा आ और ेन शखे िच ली के गाँव प चँ कर क । वह ेन से उतरा और अपने गावँ क ताजी हवा म साँस◌ं े लते े ए फु ि लत होने लगा। उसके हाथ म ताजमहल का िड बा था और मन म रिजया से िमलने क उ सकु ता। वह बेहद उ सािहत था। अ मी और रिजया से िमलने क बेताबी म◌ं े वह सुध-बधु खोकर तेजी से अपने घर क ओर भागा चला जा रहा था। घर प चँ ा तो अ मी दरवाजे क सफाई करने म त दख । उसने छत क ओर दखे ा तो रिजया गीले कपड़े सूखने के िलए फै लाती ई दखी। शेखिच ली ने दरू से ही आवाज दी-‘‘अ मी! रिजया!’’ शेखिच ली क आवाज सनु कर दोन चक पड़ और आवाज क दशा म दखे ने लग । शखे िच ली दौड़ता आ आया और अपनी अ मी से िलपट गया। तब तक रिजया भी छत से फटाफट उतरकर भागती ई नीचे प चँ ी। वह भी बेताबी से िलपट जाना चाहती थी क तु अ मी क मौजूदगी ने उसे सकं ोच म डाल दया। वह ठमक गई और दपु े क ओट से शखे िच ली क ओर दखे ने लगी। शखे िच ली ने अ मी को अपनी एक बाहँ म सहजे कर, दसू रे हाथ से रिजया को अपनी बाँह के घेरे म ले िलया और उ ह खदु से िलपटाए ए ही आगँ न म चला आया। अ मी उसक बाँह से िनकलकर दरवाजे का पदा ठीक करने लग । रिजया मु होकर उसके बैठने के िलए आगँ न क चकै पर चादर िबछाने लगी। शखे िच ली चैक पर बैठा और अपने हाथ का ताजमहल वाला िड बा चकै पर रखकर अपने कु त के नीचे हाथ डाला तथा कपड़े म◌ं े लपेटकर कमर म बाधँ े गए पाँच हजार पए िनकालकर अ मी को थमा दया और बोला-‘‘ले अ मी, यह है मरे ी द ली क कमाई। रख ले।’’ फर उसने वह िड बा उठाया और रिजया क ओर बढ़ाते ए कहा-‘‘ले, यह तरे े िलए आगरा से लाया ।ँ ’’ रिजया ने िड बा खोलकर उससे ताजमहल िनकाला। सफे द दक-दक, संगमरमर का ताजमहल! उसने अ मी के सामने ताजमहल रख दया और कहा-‘‘दिे खए अ मी, कतना खूबसूरत है यह ताजमहल-िबलकु ल असली ताजमहल क तरह! र ीभर फक नह ह।ै ’’ अ मी ने ताजमहल दखे ा और मु कु राती ई अपनी ब को दखे ते ए बोल -‘‘बेटा! इस ताजमहल के साथ शेखू क जो भावना जुड़ी ह,ै वह इससे भी अ छी ह।ै ’’ रिजया अ मी क बात सनु ने के बाद शसं ा मक -ि से शेखिच ली क तरफ दखे ने लगी। अ मी शेखिच ली ारा दए गए पए अपनी ब के हाथ म दते े ए बोल -‘‘ले बटे ा!

इसे भी उन पय के साथ रख दे और जब कभी भी कसी खच के िलए पसै े िनकल तो कस कारण से, कब, कतना पसै ा िनकला उसका िहसाब िलखकर रखना। इस तरह से गहृ थी म◌ं े होनवे ाले खच कभी बके ाबू नह ह गे।’’ अ मी से पए लके र रिजया ऊपर चली गई। वह ताजमहल भी अपने साथ ऊपर ले गई। नीचे शेखिच ली अपनी अ मी क गोद म िसर रखकर लेट गया और बोला-‘‘अ मी, आज तुम मरे े िलए मुग िबरयानी बना दो और मुग रोगन जोश भी। ब त दन हो गए, ढंग का खाना नसीब नह आ। अ मी उसका िसर सहलाती ई बोल -‘‘ठीक है बेटे! तू नहा-धोकर ऊपर जाकर अपने कमरे म आराम कर और म तु हारे िलए मुग िबरयानी बनाने का ब दोब त करती ।ँ ’’ उस दन शेखिच ली ने अरसे बाद अ मी के हाथ का लजीज खाना खाया। उसका मन तृ आ। दरे तक अपने कमरे म रिजया के साथ बैठा बात करता रहा। धीरे-धीरे शेखिच ली के मन क बात जुबान पर आ गई। उसने कहा-‘‘बगे म! अब अ मी और तमु से दरू रहना मुझे जरा भी अ छा नह लगता। म कोिशश क ँ गा क गाँव म ही कु छ काम कर लूँ। कल म अपने गाँव के जम दार से िमलने जाऊँ गा। उसका कारोबार गावँ से लेकर शहर तक फै ला आ ह।ै अगर मझु े उसके यहाँ नौकरी िमल जाए तो समझ लो क मरे ी परदशे जाने क मजबरू ी नह रहगे ी...’’ रिजया बगे म यह सनु कर मु कु रा दी और शेखिच ली के गले म अपनी बाहँ डालकर बोली-‘‘अब छोड़ो भी। कल क कल सोचना।“ इसके बाद दोन पित-प ी एक-दसू रे क बाहँ म खो गए। दसू रे दन शखे िच ली तड़के जगा और नहा-धोकर उसने सूट-बटू -टाई म खदु को सँवारा। अ मी तब तक जग गई थ । अपने बटे े को इस कदर सजा-धजा दखे कर वह चकरा ग । यह या, कल आया और आज चल दया! वह झँुझला ग और शखे िच ली से बोल -‘‘शेखू! यह या कर रहे हो! कल ही तो आए हो और आज जाने क तैयारी कर बैठे। बेटे! कभी सोचा है क रिजया के भी कु छ अरमान ह गे? मरे ी भी कु छ हसरत ह गी?’’ शेखिच ली ने हसँ ते ए कहा-‘‘सब सोचा है अ मी, सब सोचा ह।ै और इसी सोच के कारण यह रहने क व था करने के िलए अभी जा रहा ।ँ लौटकर आऊँ गा तो बताऊँ गा क बात या ह।ै ’’ अपनी अ मी को जवाब दते ा आ शखे िच ली अपने घर से िनकलकर गावँ के जम दार

शखे मतु जु ा अली के घर क तरफ चल पड़ा। शेख मतु जु ा अली का घर कसी कले से कम नह था। कले के भीतर उसके लठैत से लके र कमचा रया◌ं े तक के रहने का इ तजाम था। इसी कले म वह अपनी रयाया के दखु - तकलीफ भी सुनता था। िशकार करने और तरह-तरह के घोड़े पालने का शौक न शखे मतु ुजा शाह-तबीयत आदमी था। िजस चीज को पस द कर िलया, उसे पा लने ा उसक फतरत थी। शेखिच ली जब उसके कले के ार पर प चँ ा तब तक ार खुला नह था। उसने वह टहलते ए ार खलु ने का इ तजार कया और जब ार खुला तो उसने कले म वशे करने क कोिशश क ले कन दरबान ने उसे कले म जाने से रोक दया और ार के पास ही बने ती ालय मं◌े बठै ा दया। उससे पछू ताछ होने लगी क वह कहाँ से आया है और जम दार शखे मुतजु ा अली से य िमलना चाहता ह।ै दरअसल उसे सूट-बटू -टाई मं◌े दखे कर शखे मतु ुजा अली के का र दे सोचने लगे थे क वह कह बाहर से आया ह।ै इसीिलए उससे इस तरह से पूछताछ हो रही थी। शेखिच ली ने उनका म बनाए रखा और यह खुलासा नह कया क वह इसी गावँ का नौजवान है और नौकरी के िलए जम दार के पास आया ह।ै इसक जगह उसने बताया वह ब बई, द ली और ल दन म अपनी सवे ाएँ दे चकु ा है और उसने शेख मुतुजा अली साहब क बड़ी शोहरत सनु ी है इसिलए वह उनसे िमलने चला आया ह।ै शखे िच ली क बात जम दार तक प चँ तो जम दार ने उसको अपने पास बलु ा िलया। सूट-बटू म शेखिच ली का ि व भावशाली दख रहा था। जम दार ने उसे अपने पास बठै ाया और उससे आने का कारण पछू ा। तब शखे िच ली ने उसे बताया क वह इसी गाँव मं◌े पदै ा आ और यह के मदरसे म तालीम हािसल क । उसके अ बा शखे बद ीन के इ तकाल के कु छ दन पहले से ही वह रोजी-रोजगार के िलए कभी यहा,ँ कभी वहाँ घमू ता रहा ह।ै यह रोजगार क तलाश ही थी िजसके कारण वह ल दन भी गया मगर कह भी उसका जी नह रमा। जो बात इस गाँव म ह, वह और कह नह ह।ै अब अपनी िम ी, अपना वतन छोड़कर कह जाने क इ छा ही नह होती। इतना कहने के बाद उसने जम दार क शान म कशीदा पढ़ना शु कर दया-”शखे साहब, मने अपने गाँववाल से आपक इतनी तारीफ सुनी है क मुझे िव ास हो गया क य द म आपसे िमलँूगा तो िनि त प से आपके यहाँ मझु े अपने लायक कोई काम िमल जाएगा। यही सोचकर आज म आपके पास चला आया ।ँ “

शेखिच ली के नौकरी माँगने का यह अ दाज जम दार शखे मतु जु ा अली को ब त पस द आया और उसने उससे कहा-‘‘ठीक है बरखुरदार! अभी से म तु ह अपना िनजी सलाहकार िनयु करता ँ पर यान रह,े म जो क ,ँ उसका िबना कोई मीन-मेख िनकाले तमु अ रशः पालन करना। म-उदलू ी और काम के ित लापरवाही मझु े र ी-भर भी बदा त नह । जैसा क ,ँ वसै ा ही करोगे तो हमारे यहाँ तु हारी िनभ जाएगी और कभी भी कसी चीज के िलए तु ह सोचना नह पड़गे ा।’’ शेखिच ली ने कहा-‘‘मझु से आपको कोई िशकायत नह होगी। मगर मरे ा काम या होगा? काम पर आने का समय और जाने का समय या होगा?’’ जम दार शखे मुतुजा ने हो-हो-हो करके हसँ ते ए कहा-‘‘बरखरु दार! तमु से इस नौकर वाले सवाल क मझु े कोई उ मीद नह थी। तुम मेरे िनजी सलाहकार हो। अब तुम मेरे पास रहा करोगे। जब कभी भी म रयाया के बीच र गँ ा, तमु यान रखोगे क म कससे या कह रहा .ँ ..हा,ँ जब कभी भी कोई काम मुझे स पना होगा, म तु ह स प दगँू ा। सामा य दन म तमु अपनी इ छा से कह भी आ-जा सकते हो। इस कले म हर श स तु ह सलाम करेगा-चाहे वह कतने ही बड़े पद पर य न हो...आई बात समझ मं◌?े अब जाओ और अपने गावँ के पहरावे म आओ, नह तो तमु से गाँव के लोग कु छ बोलने-बितयाने म िहच कचाएँगे। जम दारी चलाने के िलए च प-े च पे म घट रही घटना क जानकारी रखनी होती है और यह जानकारी हािसल होती है रयाया क िनकटता से। जानकारी ही हमारी ताकत ह,ै इस बात को हमेशा यान म रखो। और अब जाओ! मौज करो! कल से यहाँ आ जाना। आज म तु हारे बैठने-रहने का ब ध करवा दगँू ा। तु हारा काम दखे लूँ तो तु हारी पगार भी तय हो जाएगी।’’ शखे िच ली जम दार से िवदा लके र अपने घर क ओर जाने लगा। वह खशु था क जम दार के पास उसे नौकरी िमल गई। मगर उलझन थी क बड़ी चालाक से जम दार ने उसका काम िनधा रत नह कया। मतलब यह क वह उससे मज के मतु ािबक, जब-जब जो चाह,े करवाया करेगा। पगार भी तय नह क िजसका मतलब है क जब वह खशु होगा तो अ छे पसै े दगे ा और नाराज आ तो ठगा दखा दगे ा। शखे िच ली ने िन कष िनकाला क यह जम दार िजतना उदार दखता है उतना ही काइँया और धूत ह.ै ..मगर वह करता भी या? ऐसे ही लोग से तो दिु नया भरी ह।ै शेखिच ली अपने घर आ गया और अ मी को बताया-‘‘अ मी! मझु े इसी गाँव मं◌े नौकरी िमल गई।’’ इसके बाद उसने सारा क सा बयान कर दया। सब कु छ सुनने के बाद उसक अ मी ने कहा-‘‘ले कन जरा सभँ ल के रहना। वह जम दार बड़ा चटं ह।ै ’’ ‘‘हा,ँ अ मी! म समझता ँ पर तु हारा बेटा भी कम नह ह।ै ऐसे ही चंट लोग को धलू

चटाकर आया ।ँ दखे ना, यह जम दार तु हारे बेटे को अ छी पगार दगे ा।’’ दसू रे दन शखे िच ली अपनी नौकरी पर गया। जम दार ने कले म उसके रहने, खाने- पीने का ब ध कर दया था। शेखिच ली को दखे ते ही उसने कहा-‘‘शेखिच ली! सामने जो सफे द घोड़ा बँधा ह,ै उसे ले जाकर पानी दखा लाओ। इस घोड़े से तमु भी दो ती कर लो तो अ छा य क म इसी घोड़े पर बठै कर िशकार करने के िलए जाया करता ।ँ ’’ ऐसे मौके के िलए शेखिच ली मानिसक प से तयै ार होकर आया था। उसने अदब से झुककर कहा-‘‘जनाब! आपक आ ा का अ रशः पालन होगा।’’ वह घोड़े को कले के अ दर ही बने तालाब के पास ले गया और तालाब क प र मा कराकर घोड़े को ले आया और जम दार शखे मतु जु ा अली से कहा-‘‘ जरू ! आपके घोड़े ने जी भर के पानी का दीदार कर िलया ह।ै ’’ जम दार ने दखे ा, उसका घोड़ा जीभ िनकाले हाँफ रहा ह।ै उसने घोड़े क हालत दखे ी और अनमु ान लगा िलया क घोड़ा अब भी यासा ह।ै उसने अचरज से शेखिच ली क ओर दखे ते ए कहा-‘‘अरे शखे िच ली! यह घोड़ा तो अब भी यासा ह!ै तुम तो इसे पानी िपलाने गए थ?े या घोड़े ने पानी नह पीया?’’ ‘‘ जरू ! आपने मुझे घोड़े को पानी दखाने क आ ा दी थी, िपलाने क नह और आपने आदशे दे रखा है क आपक बात का अ रशः पालन कया जाए, उसम मीन-मेख नह िनकाली जाए सो म घोड़े को पानी दखाकर लाया -ँ िपलाकर नह !’’ शेखिच ली ने ग भीर मु ा म बड़े अदब से अपनी बात कह । जम दार ठगा-सा शखे िच ली का मुँह दखे ता रह गया और धीरे से बोला-‘‘कोई बात नह , अब िपला लाओ पानी।’’ शेखिच ली घोड़े को पानी िपलाकर ले आया। घोड़े को दखे कर शखे मतु जु ा अली िनि त हो गया क घोड़े क यास बुझ चुक ह।ै उसने शखे िच ली को अपने पास बठै ाया और समझाने लगा-‘‘दखे ो बरखरु दार! समय के अनसु ार बात समझने क आदत डालो। इससे तमु अ छे मलु ािजम बन सकोगे और तु हारी तर का रा ता तयै ार होगा। अ छा मुलािजम वह होता है जो बताए गए काम को अजं ाम तक प चँ ा द।े एक काम बताया जाए तो उससे जुड़े अ य काय को भी िनपटा सके । इसके िलए बताए गए काम का कारण और उसका प रणाम समझ लेना ज री होता ह-ै समझ गए?“ शखे िच ली ने अदब से कहा-‘‘जी हाँ! अब म भी ऐसा ही क ँ गा।’’ दसू रे दन शखे िच ली जब जम दार के पास आया तो जम दार ने कहा-‘‘शेखिच ली!

मेरी बेगम क तबीयत खराब ह,ै जरा जाओ और ज दी से हक म को बुलाकर ले आओ।’’ कु छ दरे के बाद शखे िच ली हक म को लके र लौट आया। हक म बेगम क न ज टटोलकर दखे ने लगा। हक म अभी कसी भी नतीजे पर नह प चँ ा था क एक ताबूत उठाए चार लोग आए। शेखिच ली ने ताबूत को बगे म के कमरे के बाहर रखवा दया। तभी एक नौकर लोबान और अगरबि याँ लके र आ गया। शेखिच ली ने उसे भी ताबतू के पास रख दया। शखे मतु ुजा अली हक म के साथ अपनी बेगम के पास खड़ा था और वह से शखे िच ली क कार तानी दखे रहा था। थोड़ी दरे के बाद हक म ने अपने ब से से कु छ दवाइयाँ िनकाल और उसे घ टकर बेगम को िपलाया। शखे मुतुजा अली ने दखे ा, छह आदमी कु दाल, फावड़ा और हल लेकर वहाँ आ गए और शेखिच ली ने उ ह भी कमरे से बाहर खड़ा कर दया। ठीक उसी समय बगे म अपने िब तर पर उठकर बठै गई और उसने हक म एवं शेख मतु जु ा अली को बताया क अब उसे अ छा महसूस हो रहा ह।ै बगे म के व थ होते ही शखे मतु जु ा अली बगे म के कमरे से बाहर िनकला और शेखिच ली से पछू ा-‘‘यह सब या है शखे िच ली? यह ताबतू , यह कु दाल, फावड़ा, हल- यह माजरा या ह?ै ’’ शेखिच ली ने कहा-‘‘कल जूर ने ही तो फरमाया क अ छा मलु ािजम वह होता है जो बताए गए काम का कारण और उसके प रणाम समझकर उससे जड़ु े ए सारे काम िनपटा द।े म तो वही कर रहा ँ जूर! आपने हक म साहब को बलु वाया। कारण था क बगे म बीमार थ । हक म साहब क दवा काम नह करती तो बीमारी का प रणाम बेगम क मौत ही होती, सो मने ताबूत, क खोदनेवाले आ द का इ तजाम हक म साहब को बुलाने के साथ ही कर िलया।“ हक म ने जब शेखिच ली का जवाब सनु ा तो समझ गया क यह नया आदमी शखे मतु ुजा अली को नह जानता है इसिलए ऐसी बात कर रहा ह।ै यह मतु जु ा अली तो अब इस नौजवान क चमड़ी उधड़े दगे ा। ऐसा सोचते ही हक म शखे िच ली के बचाव म आगे आया और बोला-‘‘शेख साहब! हमारी हक मी क कताब म िलखा है क रोगी के सामने य द म यत का नजारा हो तो उसक जीवनीशि कई गुना तजे ी से असर करती ह।ै इस नौजवान ने जो कु छ भी कया, उसका असर तो आपने दखे ा ही क दवा दते े ही बगे म सािहबा उठ बैठ , वरना महीन लग जाते उ ह ठीक होने म।’’

शखे मतु जु ा अली अजीब ि थित म था, वह न तो शखे िच ली को डाटँ पा रहा था और न उसे शाबाशी दे पा रहा था। थोड़ी दरे तक वह अजीब नजर से शखे िच ली क तरफ दखे ता रहा और हक म को छोड़ने के िलए बाहर चला आया। शखे िच ली ने ताबूत वहाँ से वापस भजे दया और क खोदनवे ाल को लौट जाने को कहकर अपने बठै ने क जगह पर आ गया। हक म को छोड़कर जब जम दार शेख मुतजु ा अली अपनी बठै क म प चँ ा तो उसने शेखिच ली को नह बलु ाया। वह समझ चकु ा था क इस आदमी को नसीहत न दने ा ही बहे तर ह।ै धीरे-धीरे शखे िच ली को यह नौकरी रास आने लगी। वह शखे मुतजु ा अली का ि य मलु ािजम बन गया। िबना कसी लाग-लपेट के वह मुतजु ा अली के गलत िनणय को चुनौती दे दया करता था। इससे कई बार वह बड़े नुकसान से बच चुका था। इसिलए वह शखे िच ली क कसी भी बात का बरु ा नह मानता था। एक दन यँू ही व काटने के िलए शेख मतु ुजा अली ने अपनी बैठक म अपने कािबल मुलािजम को बलु ा िलया। फर उसे ग पबाजी क चचा छेड़ दी। शेख मुतुजा अली ने झूठ बोलने क एक ितयोिगता ही बठै े-बठै े आयोिजत कर ली। उसने घोषणा कर दी क सबसे शानदार झूठ बोलनवे ाले को वह अपने कले मं◌े एक उ दा मकान दगे ा और उसके ताउ वहाँ रहने- खाने का इ तजाम भी करवा दगे ा। इस घोषणा के बाद वहाँ बैठे लोग म झठू बोलने क होड़-सी लग गई। एक मुलािजम ने कहा-‘‘शेख साहब, म एक बार जंगल म आ दवािसय क ब ती म रात िबताने के िलए गया। उस ब ती क एक झ पड़ी मं◌े मझु े रहने क जगह िमल गई। उस झ पड़ी के दरवाजे पर भस से भी बड़ी च टयाँ बँधी थ । सुबह मझु े झ पड़ीवाले ने च टी का दधू दया पीने के िलए। एक लोटा दधू म पी गया। भस के दधू से उ दा और मीठा था वह दधू !’’ शखे मुतुजा अली ने कहा-‘‘इसम झूठ या ह?ै इस वै ािनक युग म ऐसा होना स भव ह।ै ...कोई और कु छ सुनाओ।’’ एक अ य मुलािजम ने कहना शु कया-‘‘शखे साहब! एक दन म जगं ल म राह भटक गया और पहाड़ क तलहटी तक चला गया जहाँ बड़-े बड़े सरु ंग थ।े उन सुरंग से मने ऐसे चूहे िनकलते दखे े जो हाथी से भी बड़े थ।े ’’ शखे मतु ुजा अली ने पनु ः अपनी बात दहु राई-‘‘यह भी स भव ह।ै िव ान ने इतनी तर कर ली है क वह चूह को हाथी का कद दे द।े कोई और कु छ सुनाओ...तमु लोग ढंग क झठू भी नह बोल पात!े ’’ शेख मतु ुजा अली ने अपने मुलािजम को उकसाया।

तीसरा मलु ािजम खड़ा आ और बोला-‘‘ जरू ! मने एक घोड़े जसै े म छर को दखे ा। मने उसक पीठ सहलाई और उस पर बैठ गया। उस म छर ने मझु े आकाश क सैर कराई फर मुझे मरे े घर पर उतारकर उड़ गया।’’ शेख मतु ुजा अली फर िनराश आ और बोला-‘‘भाई, हवाई जहाज और हले ीकाॅ टर तो उड़ ही रहे ह, म छर क आकृ ित ही तो उ ह दने ी ह.ै ..तु हारे झठू म भी दम नह ह,ै बैठ जाओ।’’ इसी तरह कसी ने तरबूज के आकार के अगं ूर क चचा क तो कसी ने िब ली िजतने बड़े हाथी क । कसी ने पलंग सिहत आकाश म उड़ने क चचा क तो कसी ने पेड़ उखाड़कर चीता का िशकार करने क । तरह-तरह के झूठ बोले गए मगर शखे मुतुजा अली कसी भी झूठ से भािवत नह हो सका। अ त म शेखिच ली अपने थान से तजे ी से उठा और तेज वर म बोला-‘‘भाइयो, यह जम दार परले दज का मखू ह।ै इसको इसक जम दारी से बदे खल कर दने ा चािहए।’’ शखे िच ली के इस तरह चीखने से वहाँ बैठे लोग हत भ रह गए और एक-दसू रे का महँु दखे ने लगे। जम दार शेख मुतुजा का चहे रा गु से से लाल हो उठा। उसक आँख म खून उतर आया और उसने अपनी कमर से लटक यान से तलवार ख च ली और कहा-‘‘खामोश! शेखिच ली! य अपनी मौत बुला रहा ह?ै ’’ शेखिच ली ने अदब से कहा-‘‘मौत नह बुला रहा जरू ...म तो सबसे यारा झठू बोल रहा ।ँ ’’ उसक बात सुनते ही जम दार हसँ पड़ा और उसे उस ितयोिगता का िवजते ा घोिषत कर दया। इस तरह कले के अ दर शखे िच ली को एक शानदार मकान िमल गया और वह अपनी अ मी और रिजया बगे म को साथ लाकर उस मकान म रहने लगा। अब उसे उनक परव रश क िच ता नह रही।

शखे िच ली ने दकु ान खोली जज साहब का कान कतरकर आने के बाद शेखिच ली ने सोचा-उसके पास साल भर क पगार और खुराक के पैसे ह। एक हजार पए कम नह होत।े अब घर चलकर अ मी और अ बू से िमल आऊँ । एक महीने से यादा हो गए उन लोग को दखे ।े रिजया बेगम मझु े दखे कर खशु हो जाएगी। गावँ चलकर ही सोचगे क अब करना या ह।ै जज साहब का क सा तो ख म आ। शखे िच ली का मन उतावला हो रहा था अपनी रिजया बेगम से िमलने के िलए। सराय म उसने अपनी जबे के पसै े िगन।े हजार पए अ मी को दने े के िलए उसने अलग रख िलय,े फर भी उसके पास डढ़े -दो सौ पए बच रहे थे। इसम शहर आते समय अ मी ने जो पचास पए दए थे वह भी शािमल था। शेखिच ली सराय से बाहर िनकला। एक होटल म◌ं े जाकर भरपटे भोजन कया। फर शहर क सड़क पर मटरग ती करता आ सड़क के कनारे खुली दकु ान को गौर से दखे ता रहा। वह कभी बड़ी दकु ान म नह गया था। उसक जबे म पसै े थे। वह सोच रहा था क अ मी, अ बू और रिजया बगे म के िलए कु छ खरीद।े मगर कसी दकु ान म वशे करने का साहस उसे नह हो रहा था। एक दकु ान के बाहर ककर वह दरे तक उसम आन-े जानवे ाले लोगा◌ं े को दखे ता रहा। उसने दखे ा क सभी आग तुक का वागत दकु ानदार एक ही तरीके से करता ह।ै कोई सामान ले तब भी, न ले तब भी, उससे फर आने को कहता ह।ै दकु ान म लहगँ े और सािड़ या,ँ कु ता-पाजामा जसै ी अनके चीज सजाकर रखी गई थ । शेखिच ली थोड़ी दरे तक बाहर से ही दकु ान का जायजा लेता रहा और फर दकु ान म वेश कर गया। दकु ानदार से उसने अपने अ बू के िलए कु ता-पाजामा का जोड़ा दखाने के िलए कहा। एक जोड़ा उसे पस द आ गया और उसने उसे खरीद िलया। इसी तरह अ मी के िलए साड़ी और रिजया बगे म के िलए लहगँ ा-चु ी का जोड़ा उसने खरीदा। सारे सामान को एक थलै ी म रखवाकर उसने पसै े चुकाए। दकु ानदार ने उससे खुद अपने िलए भी कु छ लेने का आ ह कया तब शेखिच ली ने अपने िलए लखनवी कु ता, चूड़ीदार पाजामा और गोल टोपी खरीद ली और सारा सामान लेकर दकु ान से बाहर आया। वह इस खरीदारी से ब त खुश था। जीवन म पहली बार उसने खरीदारी क थी, वह भी अपनी अ ल क कमाई से। उ साह के साथ शखे िच ली गाँव क ओर चल पड़ा। क धे म◌ं े झोला और हाथ म अ मी, अ बू और रिजया बेगम के िलए सौगात िलये शेखिच ली ल बे डग भरता आ चला जा रहा था। उसे दिु नया क कोई परवाह नह थी। आँख के सामने कभी अ मी का चहे रा तो कभी रिजया का चहे रा क ध-क ध जाता था। वह रात चढ़ने के बाद अपने घर प चँ ा। अ मी को आवाज दके र जगाया। उसके अचानक आगमन पर अ मी खशु । उसने अ मी

के िलए लाई गई साड़ी उ ह दी। यह पहला मौका था जब उनके लाड़ले ने उनके िलए कु छ खरीदा था। रसीदा बेगम क आँख म खुशी के आँसू आ गए। उ ह ने शेखिच ली का िसर सहलाकर यार कया और कहा-‘‘बटे ा, रिजया के िलए कु छ नह लाया।’’ ‘‘लाया ँ अ मी, ले कन पहले अ बू के िलए जो लाया ँ वह दखे ो।’’ तब तक बटे े क आवाज सुनकर शेख बद ीन भी जग गए थ।े वे भी वहाँ प चँ गए और शेखिच ली को गले से लगाया। शखे िच ली ने उ ह जब कु ता-पाजामा दया तो उ हा◌ं ेने शेखिच ली का िसर चूमकर उसे यार दया। फर शखे िच ली ने रिजया बेगम के िलए िलया गया लहगँ ा-चु ी अपनी अ मी को दते े ए कहा-‘‘लो अ मी, यह रिजया के िलए लाया ,ँ उसे दे दो।’’ रसीदा बेगम ने नीचे से ही आवाज दके र रिजया बगे म को जगाया और उसे नीचे बलु ाया। उन दी-सी रिजया जब नीचे आई तो शेखिच ली को दखे कर हरै त मं◌े पड़ गई। रसीदा बेगम ने रिजया को शेखू ारा लाया गया लहगँ ा-चु ी जब दया तो वह शरमा-सी गई और शोख नजर से शेखिच ली क तरफ दखे ने लगी। शेखिच ली ने जबे से हजार पए िनकाले और अ मी को थमाते ए कहा-‘‘अ मी! यह है तरे े बेटे क कमाई!’’ रसीदा बगे म ने आसमान क तरफ हाथ उठाकर दआु क -‘‘या परवर दगार! ऐसी औलाद तू सबको दने ा।’’ इस तरह उस रात शखे िच ली के आने से उसके प रवार म खिु शय का माहौल बन गया। दरे रात तक प रवार के लोग बैठकर बात करते रह।े फर शखे िच ली रिजया बेगम के साथ अपने कमरे म चला गया। अरसे बाद अपने खािव द से िमलकर रिजया ब त स ई थी मगर अ मी और अ बू क उपि थित म◌ं े वह खलु कर अपनी स ता का इजहार नह कर पाई थी। कमरे म प चँ कर वह शेखिच ली से िलपट गई। शखे िच ली भी अनशु ासन क मु ा से मु होकर अपनी बेगम से िचपट गया। थोड़ी ही दरे बाद दोन क त ा टूटी तब शखे िच ली ने कहा- ‘‘िच ता मत करो, अब कम-स-े कम एक साल तक म िनि त र गँ ा। अ मी को साल भर क कमाई क रकम पशे गी दे चुका ँ इसिलए वे तो मुझे काम पर जाने के िलए कतई जोर नह दे सकत । रही बात अ बू क तो उ ह ने न पहले कु छ कहा है और न अब कु छ कहग।े ’’ रिजया ने जब शखे िच ली क बात◌ं े सनु तो जैसे आसमान से जमीन पर िगरी। वह अब

नह चाहती थी क शखे िच ली घर पर रहे और उसके पास बैठकर उसका मुँह िनहारता रहे और उसक सु दरता का बखान करता रह।े अब से दो महीने पहले क बात होती तो शेखिच ली क बात सनु कर वह खुश होती। मगर शखे िच ली जब काम के िलए शहर गया तब उसक अ मी रसीदा बगे म ने रिजया को अपने पास बैठाकर अ छी तरह समझाया था क शेखिच ली के िलए काम करना कतना और य ज री ह।ै अ मी क बात उसे ठीक लग क हमेशा तो अ बाजान कमाते नह रहग।े एक दन उनक भी दहे थके गी तब य द शेखिच ली दिु नयादारी क बात नह सीखे रहगे ा तब कै से अपने प रवार क िज मेदा रय का िनवहन कर सके गा? रिजया को अपनी सास क कही बात याद आ ग । उसने तरु त शखे िच ली से कहा-‘‘तो या तुमने साल भर बैठे रहने का इरादा कर िलया ह?ै अगर ऐसा है तो म यही क गँ ी क ऐसा सोचना तु हारे िलए उिचत नह ह।ै तु हारे पास कु छ पैसे आ गए ह तो तु ह यह सोचना चािहए क तमु उन पैस से कोई छोटा-मोटा ध धा शु कर लो। महे नत और लगन से ध धा करोगे तो उसम तर भी होगी और धीरे-धीरे ध धा चमकने लगेगा और तु हारी तर का ज रया बनेगा।’’ शखे िच ली को रिजया क बात अ छी लग । उसने तुर त रिजया से कहा-‘‘बगे म! तमु ठीक कहती हो। यह बात तु हारे दमाग म आई कै स?े म तो कभी सोच भी नह पाया क म कोई ध धा कर सकता ।ँ ...ले कन रिजया, म या ध धा क ँ गा? मुझे तो कु छ आता नह । िज दगी म पहली बार आज मने कपड़ा खरीदा ह।ै कहो तो कपड़े का ही ध धा क ँ ?’’ ‘‘कोई भी ध धा बरु ा नह है और कसी भी ध धे से तर का रा ता िनकल सकता ह।ै शत यह क ध धा लगन और मेहनत से कया जाए। वसै े मरे ी राय है क तुम जो भी ध धा करो, उसके बारे म पहले तजुबा हािसल करो। अगर कपड़े क दकु ान खोलना चाहते हो तो पहले कपड़े क दकु ान म काम करो। जब कपड़े के वसाय के बारे म अ छी जानकारी हो जाए तब ध धा शु करना।’’ शखे िच ली ने मु ध नजर से रिजया को दखे ा और सोचने लगा- ‘ कतनी समझदार है मरे ी बेगम!’ दसू रे दन ही शखे िच ली कसी कपड़े क दकु ान म नौकरी तलाशने के िलए शहर आ गया। एक दकु ानदार ने उसे मासमू और महे नती समझकर अपनी दकु ान म रख िलया। शखे िच ली लगन से काम करते ए कु छ ही दन म अपने मािलक का िव ास-पा ा बन गया। एक दन दकु ानदार को कसी काम से कह जाना था। उसने कहा- ‘‘शेखिच ली, आज तुम दकु ान सँभालो। कोिशश करना क कोई ाहक आए तो लौटे नह । दो पसै े नीच,े दो

पसै े ऊपर करके कपड़ा बेच लेना और शाम को जब म आऊँ तो िहसाब दे दने ा।’’ शेखिच ली ने हामी भर दी। दकु ानदार चला गया। दोपहर म◌ं े दो ाहक दकु ान म आए। पहले ाहक ने एक कपड़ा िनकलवाया और उसक क मत पछू ने लगा। शेखिच ली ने कहा-‘‘बस, भाई, दो पैसे ऊपर, दो पैसे नीचे दके र कपड़ा ले लो।’’ 5 शेखिच ली क बात सनु कर उस ाहक ने कहा-‘‘सो तो ठीक है भाई! मगर तुम दाम तो बताओ।’’ ‘‘यही दाम समझ लो।’’ शखे िच ली ने कहा। वह ाहक झ ला गया और िचढ़कर बोला-‘‘अजीब दकु ानदार हो तमु ! रखो अपना कपड़ा। दाम तो ठीक से बता नह सकते और दकु ान खोलकर बैठ गए हो। मझु े नह लेना ह।ै ’’ वह ाहक पैर पटकता आ दकु ान से बाहर चला गया। तभी दसू रा ाहक, जो इस माजरे को गौर से दखे -सनु रहा था, तरु त बोला-‘‘कोई बात नह है भाई! कपड़ा म ले लते ा ।ँ यह लो, दौ पैसे नीचे और दो पैसे ऊपर।’’ उसने कपड़े के नीचे दो पसै े और कपड़े के ऊपर दो पसै े रखकर कहा-‘‘अब हो गए कपड़े मेरे। है न?’’ शखे िच ली ने चार पैसे अपने पास रखे और कपड़ा उस ाहक को दे दया। शाम को दकु ानदार आया और शखे िच ली से दन का िहसाब माँगा तो शेखिच ली ने दकु ानदार को बताया-‘‘ दन भर म कु ल दो ाहक आए थे। उनम से एक िबना कपड़ा िलये लौट गया और दसू रे ने कपड़े के थान के नीचे दो पसै े और थान के ऊपर दो पैसे रखकर थान ले िलया। ये रहे चार पैसे।’’ दकु ानदार ने शखे िच ली क बात सुनकर अपना िसर पीट िलया। फर ोध से बोला-‘‘अरे तु हारी अ ल कहाँ गई? हर थान के साथ कपड़े के दाम क िचट लगी ई ह।ै उसम दो पसै े ऊपर या नीचे क बात कही थी मन।े तमु ने तो चार पसै े म कपड़े का थान बचे दया। ये चार पसै े तो तमु अपने पास ही रखो। मझु े तो तमु परू े थान के पसै े चुकाओ, इसी म तेरी भलाई ह।ै ’’ बेचारा शेखिच ली! उसे कु छ समझ म नह आ रहा था क या करे! वह दकु ान के बाहर आ गया। जेब म दकु ानदार के दए चार पसै े थ।े उसे भखू लग रही थी। दन भर उसने कु छ खाया नह था। उसने सोचा-पहले पेट पजू ा कर ली जाए फर इस सम या का िनदान भी सोच लग।े

उसने रोटी क दकु ान से चार पैसे क रोटी खरीदी और उसे हाथ म लेकर खाने ही जा रहा था क कु े ने उसके हाथ से रोटी छीन ली और वहाँ से भागने लगा। कु े के गले म प ा पड़ा था िजसका मतलब था क कु ा पालतू ह।ै भूख से शखे िच ली क अतँ िड़ याँ कु लबुला रही थ । हाथ से रोटी िछन जाने के कारण वह ु ध हो उठा था। शेखिच ली ने भी कु े के पीछे दौड़ लगा दी क वह उसके महुँ से अपनी रोटी वापस ले ले। कु े के पीछे वह परू ी र तार से भाग रहा था। कु छ दरू भागने के बाद कु ा एक शानदार मकान म घसु गया और एक कमरे म घसु कर कह िछप गया। शखे िच ली उस कमरे म घसु ा तो पाया क कमरे मं◌े कु ा भी नह है और न कोई आदमी ह।ै एक औरत गसु लखाने म बठै ी कपड़ा धोती उसे दखी। कमरे म पलंग के ऊपर ही नोट क एक ग ी पड़ी थी। सौ-सौ के नोट क ग ी! शखे िच ली ने नोट क ग ी उठाई और अपनी टोपी उतारकर उसम◌ं े उसने नोट क ग ी रखी और फर टोपी पहनकर उसी तरह दौड़ता आ वहाँ से िनकल गया। कपड़ा धो रही मिहला ने दौड़कर वहाँ से िनकल रहे शखे िच ली को दखे ा। मगर वह कु छ समझ पाती, इससे पहले ही शेखिच ली उस घर से ब त दरू िनकलकर सड़क क भीड़ म खो चुका था। उस औरत के घर से िनकलकर शखे िच ली अपने डरे े आ गया। उसने नोट िगने। पूरे दस हजार पए थे। वह सोचने लगा उस कु े के बारे म जो उसके हाथ से रोटी छीनकर ले गया था। फर उसने सोचा-‘चार रोटी के बदले दस हजार पए। सौदा बुरा नह रहा।’ दसू रे दन हजार पए लेकर वह दकु ान गया और दकु ानदार से पछू ा- ‘‘मेरे मािलक, मेरे हाथ से कल जो थान चार पैसे का िबका था उसक क मत कतनी थी?’’ ‘‘एक सौ बीस पए।’’ दकु ानदार ने कहा। जब शेखिच ली ने दकु ानदार के पसै े चकु ाए तब दकु ानदार ने कहा- ‘‘शखे िच ली! तुम िनहायत ही शरीफ और ईमानदार इनसान हो। तु हारी जगह कोई भी होता तो वह मेरा पसै ा चुकाने नह आता। भाग गया होता यहाँ से। हा,ँ यह ठीक है क तुम लोग क म ारी और धतू ता समझ नह पाते हो।’’ शेखिच ली मासिू मयत से दकु ानदार क तरफ दखे ता रहा और बोला- ‘‘मािलक! म आपक दकु ान म इसिलए नौकरी कर रहा ँ क म यह काम सीख सकूँ । इस वसाय के नफा-नकु सान को समझ लेने के बाद म अपनी दकु ान खोलना चाहता ।ँ मझु े उ मीद है क आपक सवे ा करते ए म अपनी दकु ान शु करने लायक बन जाऊँ गा।’’ दकु ानदार शखे िच ली क साफगोई से भािवत आ और उससे कहा- ‘‘शेखिच ली! दकु ानदारी क मोटी बात तो म तु ह िसखा दगँू ा, जसै े कपड़ा कस थोक ापारी से लाओ और कस कपड़े पर कतना मुनाफा लके र बचे ो। बाक वसाय क बारी कयाँ तो तु ह

समय ही िसखाएगा। यह समय सबसे बड़ा गु ह।ै बस, आखँ -कान खोलकर रहने क आदत डालो। खदु -ब-खुद तमु दकु ानदारी का नर भी सीख जाओग।े ...ले कन शखे िच ली! अपनी दकु ान खोलने के िलए तो तु ह पूजँ ी क ज रत होगी। पूँजी के िबना तो दकु ानदारी नह हो सकती। कु छ पँजू ी है तु हारे पास दकु ान म◌ं े लगाने के िलए?’’ ‘‘हा,ँ है न! मरे े पास दस-बारह हजार पए जमा हो चकु े ह। कु छ दन आपके यहाँ र गँ ा तो वह मेहनताना भी मरे ी बचत ही होगी। मरे ा कोई खचा तो है नह । चार रोटी रोज का खचा ह।ै जो बचेगा, वह अ मी को दे आऊँ गा।’’ दकु ानदार ने शखे िच ली क पीठ थपथपाई और कहा-‘‘ठीक है शेखिच ली, ईमानदारी से काम मं◌े लगे रहो। ज दी ही अपनी दकु ान का तु हारा सपना पूरा होगा।“ उस दकु ानदार ने शेखिच ली को थोक कपड़ा दकु ानदार के पास भेजना शु कया, फर कपड़े के थान पर उसका मू य कस तरह िलखा जाता ह,ै यह नर भी उसे िसखाया। एक दन शखे िच ली के िलए कराए क एक दकु ान भी दखे दी। उस दकु ानदार क मदद से शखे िच ली क अपनी कपड़े क दकु ान उस शहर म खलु गई। उसका मािलक दकु ानदार हमेशा उसक सहायता के िलए त पर रहता। इस तरह कु छ ही समय म उसक दकु ान चल िनकली। फर या था, शेखिच ली ने एक कराए का मकान भी ले िलया और अपनी अ मी और रिजया बगे म को बलु ाकर शहर ले आया। शहर म उसक िज दगी आराम से कटने लगी।

िसर मुड़ाते ओले पड़े शखे िच ली अपनी अ मी रसीदा बेगम क सीख पर अमल करते ए खदु को एक िज मदे ार गृह थ बनाने म लगा आ था। हर रोज शेखिच ली सबु ह-सबु ह घर से िनकल जाता और शाम ढले वापस आता। इससे उसके जीवन म एक िनयिमतता आ गई थी। रोज उसे अपनी मेहनत के एवज म दस-प ह पए िमल जाते थे। वह पए सीधे अपनी अ मी रसीदा बेगम क हथले ी पर रख दते ा। उसके अ बा शेख बद ीन ने भी उससे यह जानना नह चाहा क वह कहाँ जाता ह,ै या करता है और कतना कमाता है य क शखे बद ीन को भरोसा था क उनका बटे ा कु छ भी करेगा मगर वह गलत काम नह करेगा इसिलए वे उसके ित िनि त रहते। रसीदा बगे म से उ ह शेखिच ली क गितिविधय और कमाई दोन के बारे म जानका रयाँ िमल ही जाती थ । इधर, शखे िच ली क प ी रिजया बेगम महससू करने लगी थी क शखे िच ली कु छ िचि तत रहने लगा है इसिलए एक रात उसने शेखिच ली से पूछ ही िलया-‘‘ या बात ह,ै इन दन तमु खोए-खोए से रहते हो! पहले क तरह न तो बात करते हो और न हसँ त-े हसँ ाते हो...मझु से नाराज हो या?’’ ‘‘नह रिजया! तमु से नाराज नह ।ँ नाराजगी क कोई बात भी नह ह।ै दरअसल मझु े इस बात क िच ता है क इन दन म िजस बागान म डाल काटने का काम कर रहा ,ँ वहाँ का काम दो-चार दन म ख म हो जाएगा। मरे ी िच ता का कारण यही ह।ै म समझ नह पा रहा ँ क इसके बाद या क ँ गा।’’ शखे िच ली ने कहा। अपने शौहर को तस ली दने े के खयाल से रिजया बेगम ने कहा- ‘‘दखे ो दलवर, मन को मायूस मत होने दो। िज दगी म जब इस तरह क परेशानी आती है तो उसका मकसद कु छ िसखाना ही होता ह।ै िजस दन यह बात इनसान समझ लेता है उस दन उसक सारी परेशािनयाँ ख म हो जाती ह। बागान का काम ख म हो रहा है तो होने दो...यह बात सोचो क बागान इस दिु नया का एक छोटा...ब त छोटा...ब त-ब त-ब त छोटा-सा िह सा है और काम करने के िलए पूरी दिु नया पड़ी ह।ै तुम मेहनती हो, ईमानदार हो और नेक दल इनसान हो...तु ह भला काम य नह िमलगे ा?. ..गावँ म मान लो क काम कम है तो शहर जाओ। शहर क िज दगी क र तार गावँ से तजे ह।ै वहाँ रोज करने को सकै ड़ काम िमल सकते ह... तमु अपने लायक काम चनु सकते हो।’’ रिजया के समझाने से शखे िच ली को मानिसक ताकत िमली और उसे िव ास आ क िज दगी बस यह ख म नह हो जाती। उसने मन-ही-मन फै सला कया क बागान का काम ख म होते ही वह शहर चला जाएगा और वह कोई काम करेगा।

समय क र तार कभी थमती नह । आिखर वह दन भी आ ही गया जब शेखिच ली ने बागान का काम पूरा कर दया और अपना महे नताना लके र अपने घर वापस आ गया। रसीदा बगे म को अपनी कमाई क रकम स पकर शेखिच ली सीधे रिजया के पास प चँ ा और उससे कहा-‘‘रिजया! कल म शहर जाऊँ गा। यहाँ का काम ख म हो चकु ा ह।ै शहर म काम िमल गया तो वहाँ अपना ठकाना बनाने क कोिशश क ँ गा जहाँ दोन रह सक, नह तो अपना गाँव तो है ही।’’ रिजया बेगम ने समझदार प ी होने का सबूत दते े ए शखे िच ली का मनोबल बढ़ाया। उसने उसे कई तरह से यह बात समझाई क िज दगी म इस तरह के लमहात आते ह और गुजर जाते ह। आदमी य द अपने मनसूब के ित ईमानदार है तो िज दगी क ऐसी उलझन उसे कामयाब होने से नह रोक पात और खदु -ब-खुद उसके िलए कामयाबी क राह बना दते ी ह... दरअसल मुि कल यह बताने के िलए आती ह क तु ह कामयाब होना है तो और मश त करो...और उ साह से काम करो। दसू रे दन शेखिच ली रिजया से िवदा लके र शहर चला गया। जाते समय उसने अपनी अ मी और अ बू से बस इतना कहा क मेरे िलए दआु करना क म कामयाब इनसान बनकर लौटूँ। वह चँू क पहली बार शहर जा रहा था इसिलए जाते समय उसक अ मी ने उसे पचास पए दये और कहा-‘‘बटे ा, इसे अपने पास रख लो ता क व -ज रत तु हारे काम आए।’’ शेखिच ली पैदल चलता आ ही शहर प चँ ा। रिजया ने उसके झोले म मठ रयाँ रख दी थ । शहर प चँ ने पर उसने थकावट महसूस क । उसे भूख भी लगी थी और यास भी। उसके िलए अजनबी शहर म◌ं े बठै कर सु ताने लायक जगह तलाशना आसान नह था। थके पाँव से वह धीरे-धीरे चलता आ शहर के मु य माग से गुजर रहा था। शहर क रौनक उसके िलए बमे ानी थी। उसे तो महज ऐसी जगह क तलाश थी जहाँ वह बठै सके । चलते-चलते वह एक अजीब-सी सीलन-भरी जगह पर प चँ गया जहाँ लोग इधर-उधर बठै कर शराब पी रहे थे। एक अजीब-सी उबकाऊ ग ध से सारा माहौल िसमटा था। शराब पीनेवाल क बतकही से वहाँ एक अजीब-सा शोर पैदा हो रहा था। शेखिच ली को यह दगु ध-भरा माहौल और िच ल-प क आवाज, पस द तो नह आ मगर उसने दखे ा क यहाँ दरू -दरू तक लोग सड़क के कनारे और शराब के ठेके के सामने वाले मैदान म बैठकर खा-पी रहे ह। तब उसने भी मैदान क तरफ कदम बढ़ाए और एक जगह एका त पाकर वह बठै गया। वह जहाँ बैठा था उससे सौ कदम क दरू ी पर एक याऊ भी था जहाँ जाकर लोग हाथ- मँुह धोते थे और पानी पीते थ।े दरू से ही शखे िच ली ने अपनी ज रत क सारी ि थितय का जायजा िलया और झोले म हाथ डालकर चार-छः मठ रयाँ िनकाल ल और उ ह धीरे- धीरे खाने लगा। मठ रयाँ खाकर उसने अपने को थोड़ा ठीक महससू कया और याऊ पर

जाकर पानी पी आया। भोजन पेट म प चँ ने का तरु त असर आ और शखे िच ली अलसाकर मैदान म बठै गया फर उसने झोले को िसरहाना बनाया और जमीन पर लेट गया। सारा िज म थककर चूर था...वह वह िनढाल पड़ा रहा और न जाने कब उसे न द आ गई। शाम ढली। रात आई। शेखिच ली मदै ान म◌ं े पड़ा रहा। रात जब गहराने लगी तब शराब के ठेके पर पुिलस का छापा पड़ा। शराब बचे नवे ाले और शराब पीनेवाले दोन पर पिु लस क गाज िगरी। िसपािहय ने मदै ान म पड़े शखे िच ली को भी शराबी-कबाबी समझकर दो-चार हटं र जमाए और उसे अपनी िगर त म ले िलया। बेचारा शखे िच ली हटं र क चोट पड़ते ही िबलिबलाकर उठा और खुद को िसपािहय से िघरा दखे ा तो उसक िघ घी बधँ गई। िसपािहय ने उससे उसका नाम-पता पूछा तो हकलाहट के कारण उसके मुँह से कोई बात साफ नह िनकली। एक िसपाही ने कहा-‘‘ले चलो इसे भी। इतना पीए ए है क महुँ से आवाज भी नह िनकल रही ह।ै ’’ एक िसपाही ने उसक बाँह उमठे और दसू रे ने उसके हाथ म हथकड़ी डाल दी और शेखिच ली भी आम शरािबय के साथ हवालात के हवाले हो गया। दसू रे दन उसे जेल भेज दया गया। उसने अिधका रया◌ं े को समझाने क ब त कोिशश क क वह शराब नह पीता ह,ै शहर के बारे म भी कु छ नह जानता ह,ै बस खुली जगह दखे कर वह उस मैदान म अपनी थकान िमटाने के िलए लटे गया था और उसे न द आ गई थी, मगर अिधका रय ने उसक एक न सनु ी और कहा क नशा टूटने पर सभी ऐसे ही कहते ह। इस तरह शखे िच ली शहर प चँ ने के साथ ही सीधे जेल क या ा पर भजे दया गया। जेल प चँ ने पर शखे िच ली का मन परेशान हो उठा था तभी उसे रिजया बगे म क कही बात याद आई-‘परेशािनय का मकसद हमेशा कु छ िसखाना होता ह।ै ’ नसीहत याद आते ही शेखिच ली का मन शा त हो गया और जले म भी वह अपनी सामा य दनचया म लग गया। जले मं◌े उससे जो भी काम कराया जाता उसे वह मन लगाकर करता। जो भी खाना िमलता उसे िच से खाता और िनि त होकर सोता। उसके आचार- वहार से जले के अिधका रय को उस पर भरोसा हो चला था क वह एक नके - दल इनसान है और कोई गलत काम नह कर सकता। इस तरह जेल म ह ता-दस दन िनकल गए।

एक दन उसे जेल म ट ढोने के काम पर लगा दया गया। जले क ऊँ ची चारदीवारी के शीष पर लोहे क उ टी क ल लगाने का काम चल रहा था ता क कोई अपराधी उ ह लाघँ कर नह जा सके । शेखिच ली अपने काम म जटु ा आ था क उसक नजर एक ह े- क े मु छड़ इनसान पर पड़ी जो जले क दीवार से सटाकर एक खँूटा ठोकने क कोिशश कर रहा था। शेखिच ली ने अपनी आदत के मतु ािबक उससे पछू ा-‘‘यह तुम या कर रहे हो?’’ उस आदमी ने घबराकर शखे िच ली क तरफ दखे ा और हड़बड़ाकर उसके पास आकर धीरे से बोला-‘‘चुप रहो! म डाकू ।ँ आज रात म जेल से भागने क व था म◌ं े लगा ।ँ तमु चाहो तो म तु ह भी अपने साथ जले से बाहर िनकाल लूँगा। आज रात मरे े साथी आएँगे और मुझे र सी के सहारे जले क दीवार फादँ ने म मदद दग।े तुम चाहो तो यह मदद तु ह भी िमल जाएगी।’’ शेखिच ली को भला या एतराज हो सकता था! उसने हामी भर दी। डाकू ने उसे जबान ब द रखने क नसीहत दते े ए कहा-‘‘म जब जले से भागने लगँगू ा तब तु हारी बरै क के सामने तीन बार ताली बजाऊँ गा। िबना समय गवँ ाए तुम उस जगह पर आ जाना जहाँ मने खूँटा गाड़ा ह।ै ’’ इस तरह शखे िच ली का जेल से भागने का काय म बन गया। उसे रात होने क ती ा थी। म य राि के बाद उसने तीन ताली क आवाज सनु ी। उसने अपने कमरे का दरवाजा खोलना चाहा तो वह वाकई आसानी से खलु गया। शखे िच ली स होकर िब ली जैसी फु त से कमरे से बाहर िनकला और दबे कदम से ल बे डग भरता आ खटूँ ेवाले थान पर प चँ गया। दरअसल डाकू ने भागने के थान क िनशानदहे ी के िलए खटँू ा गाड़ा था। खटूँ ेवाली जगह पर प चँ कर शेखिच ली ने पाया क डाकू वहाँ पहले से मौजदू ह।ै शखे िच ली के प चँ जाने के बाद डाकू ने जेल क दीवार को तीन बार हाथ से थपथपाया। दीवार के पृ भाग से उसी समय उसी तरह क थपथपाहट क आवाज आई। डाकू ने शखे िच ली से कहा-‘‘घबराओ मत। मरे े साथी मझु े सहयोग दने े के िलए दीवार के उस पार प चँ चुके ह।’’ फर उसने एक बड़ी-सी र सी िनकाली और उसका छ ला बनाकर जेल क दीवार के पार उछाल दया। दसू री तरफ से वह र सी ख च ली गई। र सी का दसू रा िसरा डाकू ने शखे िच ली को थमा दया और कहा- ‘‘ठीक से इस र सी को पकड़े रहो। छोड़ना मत। म र सी के सहारे दीवार के उस पार प चँ जाता ,ँ फर तुम भी इसी तरह आ जाना।’’ शखे िच ली ने बात मान ली और र सी को मजबूती से पकड़ िलया। अचानक शखे िच ली के दमाग म◌ं े यह बात क ध गई क डाकू उसे मूख बना रहा ह।ै खदु तो र सी के सहारे उस पार प चँ जाएगा और वह इस पार फँ सा रह जाएगा य क डाकू के िलए तो वह खदु र सी पकड़े ए ह।ै जब वह खुद र सी पर चढ़ना चाहगे ा तब उसके िलए र सी पकड़नेवाला कोई नह रहगे ा। इस तरह वह जले अिधका रय क नजर म भी आ सकता है

और एक कु यात डकै त को भागने म मदद करने के कारण उसे डकै त का साथी मान िलया जा सकता ह।ै यह िवचार आते ही शेखिच ली ने खुद से पूछा-‘हाय, यह म या कर रहा ?ँ अगर यह डाकू भाग िनकला तब कल लोग मझु े इसका साथी मान लगे और मुझे डाकू शेखिच ली कहा जाएगा।...तौबा...तौबा! यह डकै त मुझे अधँ ेरे म रखकर जले क दीवार फादँ कर फरार हो रहा है और म उसके िलए र सी थामे ?ँ नह , म इस दगाबाज, फरेबी इनसान को अभी सबक िसखाऊँ गा।’ ऐसा सोचकर शेखिच ली ने र सी छोड़ दी। डाकू जो र सी के शीष पर प चँ नेवाला था, अचानक ऊँ चाई से जमीन पर िगर गया। धपाक् क आवाज से रात का स ाटा काँप गया। जले का सरु ाद ता स य आ और डाकू और शखे िच ली दोन पकड़े गए। ऊँ चाई से िगरने के कारण डाकू के एक पावँ क ह ी टूट गई थी और वह दद से िबलिबला रहा था। जेल अिधका रय ने डाकू क मरहम-प ी कराकर उसके पाँव पर ला टर चढ़वा दया और उसे ददु ा त अपराधी मानकर ‘सेल’ म डाल दया गया। फर जेल अिधका रय के सामने शेखिच ली क पेशी ई। शखे िच ली ने सादगी से कहा-‘‘जनाबेआला! म एक शादीशदु ा शरीफ नौजवान ।ँ अ मी क सलाह और बीबी क हौसला-अफजाई पर म िजस दन गावँ से शहर आया उस दन ही पिु लस ने मझु े शराबनोशी के इ जाम म पकड़कर जले भजे दया, जब क खदु ा गवाह है क मरे ी जुबान पर कभी शराब का एक कतरा भी नह आया। मेरा कसूर बस इतना था क म अनजाने ही थका-मादँ ा होने के कारण उस जगह पर जाकर सो गया था जहाँ पिु लस का छापा पड़ा था। खुली जगह दखे कर म वहाँ गया था। मझु े पता ही नह था क वहाँ शराब का ठेका चल रहा ह।ै ...यह तो ई मेरे जेल आने क बात! अब कल रात क दा तान भी सनु लीिजए। कल रात मझु े हाजत मालमू पड़ी। म फा रग होने के खयाल से अपने बैरक के दरवाजे पर आया। दरवाजे पर द तक दने े क कोिशश क तो पाया क दरवाजा खुला आ ह।ै म हाजत के िलए जेल क दीवार के पास गया तो दखे ा, एक आदमी र सी के सहारे दीवार पर चढ़ रहा ह।ै मुझे लगा क यह आदमी दशे और समाज के िलए खतरनाक भी हो सकता है और मने र सी को जोर का झटका दके र उस आदमी को िगरा दया। आज मझु े मालूम आ क वह ि जो जेल से भागना चाह रहा था, एक डाकू ह।ै सचमुच दशे और समाज के िलए घातक इनसान! मझु े अपने कए का कोई अफसोस नह है बि क फÂ है क मने कानून और समाज के िलए एक नके काम कया ह।ै “ जेल अिधका रय ने शेखिच ली के बयान को कलमब द कया और उसे जले से मिु दलाने क पैरवी के साथ उसका बयान दडं ािधकारी के पास भेज दया। दडं ािधकारी ने शेखिच ली क रहाई का आदशे जारी कर दया। जले से बाहर जाते समय उसने जले अिधका रय का आभार जताया। जले अिधका रय ने उसक पीठ थपथपाते ए पछू ा-‘‘अब रहाई के समय कै सा लग रहा ह?ै ’’ शेखिच ली ने कहा-‘‘कै सा लगगे ा साहब? गावँ से कमाने आया था मगर यहाँ तो िसर

मड़ु ाते ही ओले पड़।े ’’

ताजमहल बेचूँगा तब न! द ली रेलवे टेशन पर शेखिच ली खड़ा था। उसने द ली छोड़ने का फै सला तो कर िलया था मगर अपने गाँव वापसी पर वह पनु वचार कर रहा था। वह सोच रहा था क ल दन या ा म तेरह महीने लगे थे तब वह अ मी को अठारह हजार पए दके र आया था...अभी गाँव जाऊँ तो पाँच हजार ही दे पाऊँ गा... या क ँ ? लौट जाऊँ या और कह जाकर फर से नौकरी करने का यास क ँ ? वह इसी उधेड़बनु म◌ं े टकट िखड़क के पास खड़ा था क तभी कू ली ब के शोर से टकट िखड़क के आस-पास का वातावरण गूजँ उठा। शेखिच ली ने दखे ा, िव ालय के गणवशे म कू ली ब का एक समूह वहाँ आया और ब को वह खड़ा रहने का िनदश दके र उनके साथ आया िश क टकट कटाने के िलए लाइन म◌ं े खड़ा हो गया। शेखिच ली क िच इस बात म◌ं े पैदा हो गई क इतने सारे ब े एक साथ जा कहाँ रहे ह! वह टकट िखड़क के पास खड़ा रहा और ब के साथ आए िश क ने टकट िखड़क पर टकट काटने के िलए बठै े कमचारी से जब यह कहा क ‘स ाईस टकट आगरा के िलए’ तो वह समझ गया क ये ब े आगरा जा रहे ह। टकट िखड़क से वह िश क जब टकट िगनता आ बाहर िनकला तो शखे िच ली ने उस िश क को टोका-”जनाब! या आप बताएँगे क एक साथ इतने सारे ब े आगरा य जा रहे ह और इनके माँ-बाप इनके साथ य नह ह?’’ िश क ने मु कु राते ए शखे िच ली क तरफ दखे ा और बोला-‘‘भाई मेरे! ये सभी ब े ा िव ालय के छा ा ह। ये इतने छोटे नह ह क कह जाने के िलए इनके माता-िपता ह । सभी दसव म◌ं े पढ़ते ह। म इनके इितहास का िश क ँ और िव ालय क तरफ से आयोिजत एक काय म के तहत इ ह दशे भर के ऐितहािसक थल का य दशन कराने के िलए िनकला ।ँ द ली के ऐितहािसक थल को इन ब ने दखे ा है और अब आगरा का ताजमहल दखे ने जा रहे ह।’’ शखे िच ली ने भी इितहास क कताब म ताजमहल के बारे म◌ं े पढ़ा था। उसने सोचा क य न गावँ जाने के बजाय वह भी आगरा चला जाए! यह िवचार आते ही उसने अपने िलए आगरा का टकट कटाया और आगरा जानवे ाली ेन म बठै गया। आगरा प चँ ने के बाद उसने सोचा क अगर उसे यहाँ कोई नौकरी िमल जाएगी तो कर लेगा। उसे भखू महससू हो रही थी। उसने टेशन के पास के ही एक होटल म◌ं े खाना

खाया। फर ताजमहल जाने के िलए ए ा म बठै गया। उसे ए ा म बैठाकर ए ावाला सीलन भड़ी गिलय से ताजमहल जानेवाली राह पर अपना तागँ ा ले आया। शखे िच ली ने आगरा के जन-जीवन पर नजर दौड़ाई और उसने महसूस कया क आगरा म आम जन बहे द संघषपूण जीवन जी रहा ह।ै सैलािनय को अपने-अपने तागँ े पर बैठाने के िलए िजस तरह तागँ वे ाले ज ोजहद कर रहे थ,े उससे शखे िच ली ने िन कष िनकाला क यहाँ ताँगे अिधक ह और उन पर सवारी करनवे ाले लोग क तादाद कम ह।ै फर शखे िच ली के मन म ऊहापोह के बादल मँडराने लग।े उसने सोचा-माना क आगरा म ताजमहल है ले कन ताज को दखे ते रहने से तो पेट नह भरेगा? आिखर पटे भरने के िलए कोई काम तो करना होगा! यहाँ तो छोटी कमाई के िलए ही ताँगेवाले आपस मं◌े जझू ते ह तो बाक शह रय का या हाल होगा? इसी उधड़े बनु म वह पड़ा रहा और ताँगा ताजमहल के पास प चँ गया। ताँगे से उतरकर वह ताजमहल दखे ने चला गया। उसे जब इस खूबसरू त इमारत के बारे म यह जानकारी िमली क यह एक मकबरा ह।ै जहाँ दो क पोशीदा ह तो उसका रहा-सहा आकषण भी जाता रहा। उसके मन म ताजमहल के प रसर म बैठे-बठै े ही खयाल आया-कै सी अ धेरगद मची ई ह।ै यहाँ मकबरे को महल के प मं◌े चा रत कर पैसा कमाने का नायाब तरीका िनकाल िलया ह।ै असल म ताजमहल दखे ने जाने के िलए भी शखे िच ली को टकट कटाना पड़ गया था िजससे वह खीज गया था। ताजमहल को चार तरफ से दखे चुकने के बाद शखे िच ली महल के पा व के मदै ान क हरी घास पर बैठकर थकान िमटाने लगा। वह अब गावँ वापसी के बारे म फर से सोचने लगा था। तभी उसके पास दो अफ मची आकर बठै गए। दोन अफ म क िपनक म थे और आपस म कु छ बितया रहे थे। धीरे-धीरे वे ऊँ ची आवाज म बात करने लग।े एक ने कहा-‘‘म इस ताजमहल के िलए एक लाख पए दे सकता ।ँ ’’ दसू रे ने झटके से कहा-‘‘तू एक लाख दे सकता है तो म दो लाख दे सकता ।ँ ’’ पहले अफ मची ने कहा-‘‘म तीन लाख दे दगँू ा मगर तु हारे क जे म इस ताजमहल को आने नह दगँू ा...ताजमहल खरीदने का वाब अपने मन से िनकाल दो।’’ उन दोन क बकबक से शेखिच ली क त ा टूटी और वह मन-ही-मन कु ढ़ता आ अपनी जगह से उठा और उन अफ मिचय को जाकर टोका- ‘‘अबे, यह तुम लोग कस बहसबाजी म पड़ गए? पहले यह तो जान लो क म यह ताजमहल बचे गँू ा या नह ? बड़े आए ताज क क मत लगानेवाले- हँ !’’ वे दोन अफ मची सकते म आ गए मानो उनसे कोई भारी गनु ाह हो गया हो! उन दोन को सकते म ही छोड़ शखे िच ली वहाँ से ल बे पग भरता आ टेशन जाने के िलए बढ़ चला। टेशन जानेवाले ए ा पर बठै कर शखे िच ली अ मी के हाथ से बनी मगु िबरयानी का वाद याद करने लगा।


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