शखे िच ली अ मी को अपनी एक बाँह म भरे ए आँगन क तरफ दखे ने लगा। उसे अपने दपु े म हाथ प छती ई आती रिजया बगे म दख गई। रिजया ने जैसे ही शेखिच ली को दखे ा तो सकु चा गई मगर शेखिच ली ने अपनी दसू री बाहँ म उसे भी भर िलया। अरसे बाद अ मी और बेगम से िमलकर शखे िच ली समझ नह पा रहा था क कै से अपनी खुशी का इजहार करे। वह खशु ी से भरा आ अचानक बोल पड़ा-‘‘अ मी, आज तो तु हारे हाथ का बना आ मुग िबरयानी खाऊँ गा।’’ अ मी उसक बाहँ से िनकलती ई बोली-‘‘ठीक है बेटा! तू रिजया के सगं बातचीत कर। म अभी आई।’’ इतना कहकर अ मी अचानक झटके से घर के बाहर चली गई। शखे िच ली रिजया को साथ लेकर अपने ऊपरवाले कमरे म चला गया। कमरे म◌ं े सब कु छ पहले जसै ा ही था मगर चादर बदरंग हो गई थी। शखे िच ली को कमरे म बठै ाकर उसक बगे म नीचे चली गई और थोड़ी दरे म एक िगलास शबत लके र आई। उसने शेखिच ली को शबत दे दया और चुपचाप शेखिच ली का महुँ दखे ती रही। शेखिच ली ने रिजया बगे म को पहली बार भरपरू नजर से दखे ा तो उसे लगा क रिजया कु हाला-सी गई ह,ै थोड़ी दबु ली भी हो गई ह।ै शेखिच ली ने रिजया से पूछा-‘‘ या बात ह,ै दबु ली हो गई हो!’’ शौहर का सवाल सनु कर रिजया क आखँ नम हो ग । उसने धीम-े से कहा-‘‘कु छ दन से घर क हालत ठीक नह ह।ै अ मी परेशान ह। बिनया का ब त उधार चढ़ चकु ा ह,ै ऐसे म◌ं े तुमने मगु िबरयानी क फरमाइश कर दी ह.ै ..अ मी शायद मुग िबरयानी के िलए ज री चीज जुटाने गई ह।’’ ‘‘अ छा, यह बात ह!ै िच ता न करो। आज ही बिनए का उधार चकु ता हो जाएगा। वैसे कतना उधार है बिनए का। तुमने कहा, ब त उधार चढ़ गया ह।ै कतना होगा?’’ शखे िच ली ने पूछा। ‘‘यही कोई ढाई-तीन सौ पए।’’ रिजया बेगम ने बताया। ‘‘ !ँ ठीक ह!ै आने दो अ मी को!’’ शखे िच ली ने आ त वर म कहा और रिजया बगे म क बाँह पकड़कर उसे अपने पास बैठा िलया। लगभग एक घंटे के बाद शखे िच ली ने नीचे रसोई म◌ं े बतन खनकने क आवाज सनु ी तो उसने रिजया बगे म से कहा-‘‘रिजया! लगता ह,ै अ मी आ गई ह। तुम जाओ और अ मी का काम सभँ ालो और थोड़ी दरे के िलए अ मी को मरे े पास भेज दो।’’
रिजया नीचे चली गई। वह समझ गई थी क शखे िच ली बिनए के बकाए के स ब ध म अ मी से कु छ कहगे ा। रिजया ने रसोई म जाकर दखे ा तो अ मी याज काटने म लगी थ । उसने अ मी के हाथ से चाकू ले िलया और कहा-‘‘अ मी, आपको आपके बटे े ने ऊपर बलु ाया ह।ै ’’ अ मी ऊपर प चँ तो शखे िच ली ने अठारह हजार पए जेब से िनकालकर अ मी को दते े ए कहा-‘‘अ मी! ये अठारह हजार पए ह। मरे े साल भर क कमाई! मझु े ल दन जानवे ाले जहाज पर काम िमल गया था। अब तमु िजस कसी का भी जो भी बकाया हो, उसे चुका दो।’’ अ मी ने पए अपने हाथ म िलये और ऊपर से ही आवाज लगाई- ‘‘रिजया...ओ रिजया! जरा ऊपर तो आना।“ ‘‘आई अ मी!’’ कहते ए रिजया ऊपर आ गई। अ मी ने रिजया के हाथ म◌ं े अठारह हजार पए रखते ए कहा-‘‘ले बेटा, िगन के दखे , यह अठारह हजार पये...तेरे शौहर क साल भर क कमाई।’’ शखे िच ली ने अ मी को टोका-‘‘अरे! यह या अ मी? रिजया बेगम घर के बारे म या जानती ह?ै वह या समझगे ी क इन पय से या करना ह?ै ’’ ‘‘अरे बावले! तू रिजया को या समझता ह?ै वह ब त समझदार ह।ै उसे िज मेदार बनाना मेरा काम ह।ै पसै े वही सँभालेगी। घर कै से चलाना है और घर के िलए या कु छ मगँ ाना ह,ै यह म उसे बता दया क ँ गी।“ शेखिच ली चपु हो गया। रिजया ने पए िगने। उसे ब से म रखा और अ मी के साथ रसोई म चली गई। शेखिच ली ने अपने कपड़े उतारे और ान करने के िलए गुसलखाने म चला गया। वह काफ दरे तक ान करता रहा ता क उसक या ा क थकान िमट जाए। गसु लखाने से िनकलने पर उसके नथन म िबरयानी क खशु बू समा गई और वह ज दी से ऊपर गया तथा कु ता-पाजामा पहनकर गोल टोपी लगा ली और अपना चेहरा आईने म दखे ने लगा। तभी उसे अ मी क आवाज सनु ाई पड़ी-‘‘आ जा बेटा शेख!ू द तरखान िबछा दया ह।ै ’’ अ मी क आवाज सुनकर वह नीचे आया और बोला-‘‘यह या अ मी! तरे ह महीने तो अके ले ही खाता रहा ।ँ आज तो अके ले मत िखलाओ। आओ, तमु दोन भी मरे े साथ बैठो! मेरे ही साथ खाओ।’’
अ मी और रिजया बेगम ने ब त टालना चाहा मगर शखे िच ली नह माना और उन दोन को भी शखे िच ली के साथ खाने के िलए बठै ना पड़ा। शखे िच ली ने जी भर के खाया और रिजया बेगम से कहने लगा-‘‘अ मी के हाथ क मगु िबरयानी का जोड़ कोई नह लगा सकता...।’’ खा-पीकर तीन दरे तक ग प लगाते रह।े फर अ मी ने कहा-‘‘जाओ बेटा, तमु लोग आराम करो। और हा,ँ रिजया! तुम मुझे दो सौ साठ पए दो ता क म बिनए के मँुह पर मार आऊँ । अभी िबरयानी के िलए चावल दने े म आनाकानी कर रहा था...।’’ रिजया फौरन ऊपर गई और तीन सौ पए लके र आई और अ मी को दते े ए कहा-‘‘हा,ँ अ मी, िजसका िजतना बकाया ह,ै अब चुका दीिजए। कसी को टोकने का मौका न िमले।’’ अ मी पए लके र घर से बाहर चली ग और शेखिच ली रिजया को अपनी बाहँ म भरकर अपने कमरे क ओर चला गया। कमरे म जाकर उसने दरवाजा ब द कर िलया। शखे िच ली ने गावँ भर का च र लगाया। अपने दो त से िमला। अ मी के पाँव दबाए। रिजया से जी-भर बातं◌े क । एक दन अपनी अ मी और रिजया के साथ शहर गया। वहाँ होटल म खाना खाया। िसनेमा हाॅल म जाकर िसनेमा दखे ा और इन ‘ फजूल ख चय ’ के िलए अ मी या रिजया से पैसे नह िलये। ह त-े दस दन के बाद ही शखे िच ली का मन गाँव से ऊबने लगा। उसने रिजया बेगम से कहा-‘‘बगे म! यह सच है क तु हारे साथ रहने पर मेरी िज दगी सँवर जाती है और सब कु छ अ छा लगने लगता है मगर इस तरह गाँव म बठै े रहने से तो पैसे नह आ जाएगँ े और बठै कर खाने से तो का ँ का खजाना भी खाली हो जाता ह।ै म सोचता ँ क काम क तलाश म फर कह चला जाऊँ । ब बई दखे आया ।ँ वह मेरे लायक जगह नह ह।ै औरत पीछे लग जाती ह। तुम भी सोचो, मझु े कहाँ जाना चािहए और म भी दखे ता ँ क मेरे लायक अ छी जगह कौन-सी ह।ै ’’ शेखिच ली क बात सनु कर रिजया बेगम उदास हो गई। उसने शेखिच ली से कहा-‘‘घर म स ाह हजार पए ह। तुम यह , अपना कोई छोटा-मोटा ध धा य नह शु कर लते े हो?’’ ‘‘नह बेगम! ध धा करके दखे चुका। उसके बाद जो कु छ भी आ, उसे भुला पाना अभी तक मुम कन नह आ। म कह कोई नौकरी ही क ँ गा। खुदा ने चाहा तो उसम ही बरकत होगी।’’ इस तरह, वह कहाँ जाए और या करे, इसी गनु -धनु मं◌े दो दन और गुजर गए। अ ततः तीसरे दन शखे िच ली द ली जाने के िलए ेन का टकट कटाकर ले आया और अपनी अ मी और बेगम से बताया क वह नौकरी क तलाश मं◌े द ली जा रहा ह।ै अ मी और रिजया ने उदास मन से उसे िवदा कया।
घर से िवदा होकर शेखिच ली टेशन प चँ ा। द ली जानेवाली ेन आई तो वह ेन क एक बोगी म जाकर बैठ गया। दसू रे दन वह नई द ली रेलवे टेशन पर उतरा। चँू क वह ब बई और ल दन जसै े शहर का मआु यना कर चकु ा था इसिलए द ली क भीड़ दखे कर चकराया नह । बस, उसे इतना ही खयाल आया क द ली भी बड़ा शहर ह-ै बते रतीब ◌ीड़ से भरी सड़क वाला शहर। शेखिच ली नई द ली रेलवे टेशन से कनाॅट लेस होते ए पदै ल ही ‘ज तर-म तर’ आ गया। उस थान पर पहले से ही कु छ चहल-पहल थी। ‘ज तर-म तर’ म वेश करना चाहा तो गटे पर ही उसे दरबान ने रोक दया और टकट घर दखाते ए कहा क पहले टकट खरीद ल, फर वशे कर। गटे से शेखिच ली ने भीतर का नजारा दखे ा। कु छ अजीब-सी दीवार के िसवा उसे कु छ दखा ही नह । उसने दरबान से कहा-‘‘ या मैदान म लटे ने के िलए भी टकट खरीदना पड़गे ा...यह तो सरासर लटू ह।ै ’’ दरबान ने शखे िच ली से कहा-‘‘जब मैदान म◌ं े लेटना ही है तो बगलवाले ितकोने पाक म चले जाओ। वहाँ तु ह कोई रोके गा नह ।’’ शखे िच ली ज तर-म तर के ितकोने पाक म चला गया और वहाँ लेटकर सोचने लगा-‘अब नौकरी क तलाश म कधर जाऊँ ।’ सोचते-सोचते शखे िच ली को न द आ गई। शखे िच ली मैदान म सोया पड़ा था तभी एक िब ली का ब ा वहाँ भटकता आ आ गया और उसके सीने के पास जाकर दबु क गया। शखे िच ली को सीने के पास अजीब-सी गदु गदु ी महससू ई और उसक झपक टूट गई। उसने उस िब ली के ब े को खदु से अलग करना चाहा मगर बार-बार हटाने पर भी वह याऊँ - याऊँ करता आ उसके पास आ जाता था। अ त म शखे िच ली उस िब ली के ब े को अपने सीने से िचपकाकर सहलाने लगा। ितकोने पाक म जहाँ पर वह िब ली के ब े के साथ लेटा आ था, वह उसके पास ही दो दो त बठै कर बात कर रहे थे। एक कह रहा था-‘‘अभी मं◌ै यहाँ से उठकर ‘ब ली मरान’ जाऊँ गा...शायद वहाँ जाने से कु छ काम बन जाए।’’ शेखिच ली ने सोचा-यह ‘िब ली मरान’ शायद ऐसी जगह हो जहाँ िब ली से स बि धत कारोबार होता हो। हो सकता है क वहाँ िब ली मारकर उसक खाल िनकाली जाती हो! इसी कारण उस जगह का नाम िब ली मरान पड़ा हो! ‘ब ली मरान’ को ‘िब ली मरान’ सुनकर शखे िच ली अपनी जगह से उठा और िब ली के ब े को खदु से सटाकर, लोगां◌े से िब ली मरान जाने का रा ता पूछता आ ब ली मरान प चँ गया। ब ली मरान क बशे मु ार भीड़वाली सड़क पर ध े खाता आ वह उधर से गुजरनेवाले से पूछता रहा-”िब ली का ब ा खरीदोग?े “ लोग ‘नह ’ कहकर उससे क ी काटते ए िनकल जात।े हलकान होकर शखे िच ली एक
च मे क दकु ान म◌ं े प चँ गया और दकु ानदार से बोला-‘‘जनाब! मझु े यह िब ली का ब ा बेचना ह।ै इसे कहाँ बचे ूँ क कु छ अ छी क मत िमल जाए।’’ वह दकु ानदार बजु गु और रहम दल था। उसने शखे िच ली से कहा- ‘‘बटे े! यह तो साधारण घरेलू िब ली का ब ा ह।ै भला इसे कौन खरीदगे ा? यहाँ तो लोग कु े पालने के शौक न ह। तमु ऐसा करो क यहाँ से जनपथ बाजार चले जाओ और कसी िवदशे ी मिहला से यह िब ली का ब ा बचे ने क कोिशश करो। शायद वहाँ तु हारी तकदीर साथ दे तो इसके अ छे दाम िमल जाएँ वरना तमु इस िब ली को बेच नह पाओग।े ’’ शेखिच ली वहाँ से भनु भुनाते ए िनकला-‘अजीब जगह है यह भी। नाम है िब ली मरान और काम है च मे और जूते का ापार!’ खैर! वह वहाँ से रा ता पूछता आ जनपथ प चँ ा और कसी िवदशे ी मिहला के आने का इ तजार करता रहा। थोड़ी दरे ही उसे ती ा करनी पड़ी। तकदीर ने जनपथ म उसका साथ दया। दो िवदशे ी मिहलाएँ उसके पास से होकर गुजर । शेखिच ली ने उनके पास जाकर कहा-‘‘वाटं टू परचजे कै ट?’’ दोन िवदशे ी मिहलाएँ शखे िच ली क बात सनु कर वहाँ ठमककर क ग । िब ली का ब ा उनक ओर दखे कर बार-बार याऊँ - याऊँ कर रहा था। उसम से एक मिहला को उस िब ली के ब े पर दया आ गई। उसने शेखिच ली के हाथ से िब ली के ब े को ले िलया और उसे सहलाती ई बोली-‘‘ यटू !’’ फर उसने शखे िच ली से पछू ा-‘‘हाउ मच?’’ शखे िच ली समझ गया क उससे िब ली के ब े क क मत पूछी जा रही ह।ै ल दन क या ा ने उसे अं ेजी क थोड़ी-ब त समझ दे ही दी थी। वही समझ इस समय उसके काम आ रही थी। उसने िवन तापवू क कहा- ”वन ह डे ओनली।“ उस िवदशे ी मिहला ने सौ पए का नोट िनकालकर शखे िच ली को दया और िब ली के ब े को सहलाती ई अपनी सहले ी के साथ आगे बढ़ गई। शखे िच ली सौ पए अपनी जेब म◌ं े रखकर सोचने लगा-इस अजनबी शहर म प चँ ते ही िबना पजूँ ी लगाए सौ पए क कमाई हो गई। अब भखू िमटाने और रात िबताने क व था कर लेना ज री ह।ै जनपथ बाजार से िनकलते ही उसे पानी का ठेला िलये एक हमउ लड़का खड़ा िमल गया। शखे िच ली को यास लगी थी। उसने उस ठेलवे ाले लड़के के पास प चँ कर ताबड़तोड़ चार िगलास पानी िपया और वहाँ से जाने लगा मगर उस ठेलेवाले लड़के ने उसे रोक िलया और बोला-‘‘भाई, चार िगलास पानी के एक आना ए। एक पैसे िगलास पानी ह।ै तुम तो िबना पसै े दए पानी पीकर जा रहे हो! यह भी कोई तरीका ह?ै ’’
शखे िच ली च कत हो गया-‘‘यह या? द ली म पानी िबकता ह?ै “ उसने लड़के से पछू ा! लड़के ने आखँ नचाकर कहा-‘‘और नह तो या? िनकालो एक आना।“ उसने शखे िच ली के आगे पैसा लने े के िलए हाथ बढ़ा दय।े शेखिच ली अभी भी असमंजस म◌ं े था। उसने फौरन कहा-‘‘भाई मरे े! पानी तो कु दरत क दने ह।ै इसके कै से पसै े?’’ उस लड़के ने कहा-‘‘पानी पीकर मसखरी मत करो भाई! इस ठेले म हम मापकर पानी िमलता ह।ै अगर तुमने पसै े नह दए तो मािलक मरे ी खाल उतार लेगा।“ तभी शेखिच ली ने दखे ा, कु छ लोग आए, ठेलवे ाले लड़के से पानी लके र पीया, पैसे चुकाए और चले गए। तब शेखिच ली को िव ास आ क द ली म पानी भी िबकता ह।ै उसने जबे से एक आना िनकालकर ठेलेवाले को दे दया और अपने िलए राि -िव ाम क व था के िलए आगे बढ़ा। भीड़ तो सड़क पर बशे मु ार थी मगर उसे अपने मतलब का कोई आदमी नह दख रहा था िजससे वह अपने िलए रात को ठहरने क जगह के बारे म पूछ सके । जब वह पहाड़गंज से गजु रने लगा तब उसे अपने जसै ा एक आदमी दख गया। उसने उससे पूछा-‘‘जनाब! बड़ी महे रबानी होगी, य द आप मझु े रात िबताने के िलए कह कोई स ती जगह...मरे ा मतलब ह,ै सराय वगैरह बता द।’’ अपने िलए स मानजनक स बोधन से वह आदमी खुश आ और बोला-‘‘लगता ह,ै परदसे ी हो।’’ ‘‘हा,ँ भाई! परदसे ी ही ।ँ गावँ से यहाँ रोजी-रोटी क तलाश म आज ही आया ।ँ यहाँ मेरा कसी से प रचय नह है इसिलए रहने क जगह क तलाश मं◌े ।ँ ’’ शेखिच ली ने िवनीत वर म कहा। ‘‘अरे, कोई प रिचत नह तो या आ? तुम मुझसे बात कर रहे हो तो प रचय भी हो ही गया। द ली म◌ं े तमु कह भी रात िबताने क जगह लोगे तो सौ-पचास खच हो जाएगँ े। बरे ोजगार आदमी हो। कहाँ से दोगे इतने पसै ?े पहले काम तलाशो फर रहने के िलए खच करने क सोचना।“ थोड़ी दरे चपु रहने के बाद वह बोला-”म भी परदसे ी ।ँ इसिलए तु हारा दद समझता ।ँ म जब द ली आया था तब मुझे कोई भी मददगार नह िमला। मने तो महीन फु टपाथ पर गजु ारे ह। तमु चाहो तो म तु हारे िलए अपने साथ रहने क व था कर सकता ।ँ अभी म एक बड़े आदमी के घर पर नौकरी कर रहा ।ँ उसने
मझु े रहने के िलए एक कमरा दे रखा ह।ै उसके मकान के पीछे के िह से म यह कमरा ह।ै वह कभी दखे ने नह आता क म कमरे म या कर रहा ।ँ अगर वह दखे गे ा या तु हारे बारे म◌ं े पछू ेगा तो म बोल दगँू ा क गाँव से मेरा भाई आया ह।ै ’’ अ धे को या चािहए-दो आखँ ! शखे िच ली उसके ताव पर स हो गया और बोला-‘‘मझु े तमु जैसे नके इनसान के साथ रहने म खुशी होगी।’’ शखे िच ली ने उसके साथ-साथ चलते ए कहा-‘‘मेरा नाम शखे िच ली है और तु हारा?’’ उसने शखे िच ली क तरफ दखे ा और मु कु राते ए कहा-‘‘मनमोहन! मनमोहन द रयाल है मरे ा नाम, पहाड़ का रहनवे ाला ।ँ ’’ चलते ए वे दोन एक भ इमारत के पास प चँ गए। उस लड़के ने गटे खोला और शेखिच ली के साथ इमारत के पीछे क तरफ चला गया। उसने उसके िलए अपना कमरा खोल दया। कमरा या, वह एक हालॅ था िजसम एक तो या, दस िब तर लग सकते थ।े शखे िच ली ने दखे ा-सारा कमरा खाली पड़ा ह।ै कमरे के एक कोने म एक चटाई िबछी ई है िजस पर एक िब तर पड़ा ह।ै िब तर के पास ही अलगनी पर कु छ मैले-कु चैले कपड़े टँगे ह और वह पर एक टूटा, जगं खाया ब सा पड़ा ह।ै कमरे म रोशनी और हवा के िलए बड़ी-बड़ी िखड़ कयाँ थ । मनमोहन ने कमरा खोलकर शखे िच ली से कहा-‘‘अब तमु जाओ और आराम करो। म जाकर मािलक के िलए खाना तयै ार करता ।ँ शाम ढलने से पहले म काम िनपटाकर आ जाऊँ गा।’’ ‘‘हा,ँ ठीक ह।ै म तु हारा इ तजार क ँ गा।’’ शेखिच ली ने कहा। मनमोहन जब वहाँ से जाने लगा तो शखे िच ली ने महससू कया क वह कसी चीज या आदमी को तलाशता आ इमारत के आगवे ाले भाग क ओर जा रहा ह।ै शेखिच ली को उसक चाल पर स दहे आ। ले कन मनमोहन बड़ी इमारत का दरवाजा खोलकर उसम चला गया और भीतर से दरवाजा ब द कर िलया। लगभग एक घंटे बाद वह अपने कमरे म लौटा। शखे िच ली िब तर पर आखँ ब द कए पड़ा रहा। मनमोहन अपने कमरे म प चँ कर कु छ करता, उससे पहले ही सीटी बजने क आवाज ई। मनमोहन हड़बड़ाता आ कमरे से बाहर िनकल गया। उसके कमरे से बाहर जाने क आहट सनु कर शेखिच ली अपनी जगह से उठा और दबे पावँ मनमोहन के पीछे आया। उसने दखे ा क मनमोहन कोठी के िपछवाड़े म◌ं े खड़ा एक आदमी से बात कर रहा था। मनमोहन कह रहा था-‘‘आज तुमने दरे कर दी।’’
उस आदमी ने फु सफु साते ए कहा-‘‘अरे भाई! कारोबारी आदमी .ँ ..दरे -सबेर हो ही जाती ह।ै तुम फटाफट प ह पए के अम द तोड़ दो। टोकरी भर के दने ा।“ ‘‘टोकरी भर के बीस पए लगग।े ’’ मनमोहन ने उस आदमी से कहा। ‘‘प ह ही िमलगे। कौन तु ह अपनी जबे से खच करना पड़ता है जो इस तरह मोल करते हो? या यह नह जानत,े मु त के बलै के दाँत नह िगने जात!े जो िमल रहा ह,ै वही ब त ह।ै ’’ उस आदमी ने मनमोहन से कड़ी आवाज म कहा। मनमोहन ने फर कु छ नह कहा और टोकरी उठाकर अपने कमरे के पास ही लगे अम द के बगीचे म जाकर अम द तोड़ने लगा। एक टोकरी अम द तोड़कर वह ज दी ही उस आदमी के पास आया और उसके झोले म अम द उड़ले कर उससे प ह पए लके र अपने कमरे म आ गया। उस समय शखे िच ली तजे ी से िब तर पर जाकर लटे गया था। उसके दमाग म मनमोहन के ित जो नके भावना थी, वह गायब हो चकु थी और वह सोच रहा था-यह मनमोहन तो नमकहराम ह।ै िजस थाली म खा रहा है उसी म छेद कर रहा ह।ै इस आलीशान मकान के मािलक ने अपनी कोठी क चाबी इसे दे रखी ह।ै रहने के िलए कमरा दे रखा ह।ै जो खाता ह,ै इसे भी िखलाता ह,ै फर भी यह बगे रै त उससे छु पकर उसक बिगया का अम द चुराकर बचे ता ह।ै शेखिच ली िबना कु छ बोले आखँ ब द कए पड़ा रहा। वह मनमोहन क गितिविधयां◌े पर आँख ब द कए ही गौर कर रहा था। उसने अपनी अधखुली आँख से दखे ा-मनमोहन उसके कपड़ क तरफ गया और उसक कमीज क जेब से सौ पए का नोट िनकाल िलया जो उसे िब ली बचे ने के बाद िमले थ।े मनमोहन ने वह नोट अपने टूटे ब से म छु पा दया और आकर सो गया। जब मनमोहन के खराटे ग◌ूँ ूंजने लग,े तब शेखिच ली अपनी जगह से उठा। उसने मनमोहन के ब से से अपने सौ पए िनकाल िलये। उसने दखे ा क मनमोहन के ब से म सौ-सौ के और नोट भी पड़े ह तो उसने उसम से भी सौ पए िनकाले और अपने पास रख िलये। दसू रे दन सबु ह मनमोहन और शेखिच ली दोन जगे। तैयार ए। मनमोहन मािलक क कोठी म गया और वहाँ से ना ता तयै ार कर लेता आया। शखे िच ली और मनमोहन दोन बठै कर खाने लग।े खात-े खाते शेखिच ली ने मनमोहन से पूछा-‘‘मनमोहन, या तु हारा मािलक कं जसू और काइँया ह?ै ’’
‘‘नह भाई! वह तो ब त उदार और दयालु ह।ै जब मझु े कु छ पसै क ज रत पड़ती है तो वह दे दते ा ह।ै एक बार म बीमार पड़ गया था तब उसने मरे े इलाज के िलए अपने पसै े क परवाह नह क थी।’’ मनमोहन ने कहा। ‘‘अरे, जब तु हारा मािलक इतना उदार है तब तुम चोरी से उसके अम द य बचे ते हो? और अपने घर आए अितिथ क जेब से पैसे य चुराते हो?’’ शखे िच ली ने पछू ा। शखे िच ली के सवाल पर मनमोहन चका-‘‘अरे! शखे भाई! तुमने कै से जाना क म अम द बचे ता ?ँ ’’ ‘‘म सब जानता ।ँ तुमने मरे ी जबे से पए िनकाले, वह भी!’’ शखे िच ली ने कहा-‘‘और म तु हारे मािलक या माल कन से अभी िमलकर तु हारी कलई खोलगँू ा। बताऊँ गा क तुम जैसे ि पर भरोसा करना ठीक नह ह।ै ’’ ‘‘नह शखे , ऐसा मत करना! म तु हारा पया अभी वापस करता ँ और भिव य म ऐसी गलती नह दहु राने का तुमसे वादा करता ।ँ ’’ मनमोहन ने िगड़िगड़ाते ए शखे िच ली से कहा। उसका चेहरा सफे द पड़ चकु ा था और उसके शरीर म आतकं क थरथरी थी। ‘‘तमु मेरे पसै े या वापस करोगे! म तु हारे ब से से अपना पया िनकाल चुका ँ और तु ह सबक िसखाने के िलए तु हारे भी सौ पए मने िनकाल िलये ह, शषे रकम रहने दी ह।ै चाहता तो वह भी िनकाल लेता...तु हारे जैसे ि को दडं तो िमलना ही चािहए। अब म तु हारे मािलक से िमलूँगा।’’ घबराए मनमोहन ने शखे िच ली के पाँव पकड़ िलये और कहा-‘‘नह -नह , शखे िच ली! ऐसा मत करो। नह तो म कह का नह र गँ ा। मेरी बढ़ू ी माँ ह।ै भाई-बहन ह। य द मरे ी नौकरी गई तो सबके सब िबलट जाएँगे। बरबाद हो जाएगँ े। म तुमसे वादा करता ँ क फर कभी ऐसी गलती मझु से नह होगी।’’ ‘‘...और अगर ई तो तु हारी खैर नह ।“ शेखिच ली ने कहा। ”तुमने मझु े बेरोजगार समझकर पनाह दी थी न, अब मरे ी स ाई भी जान लो। म सरकार ारा िनयु एक जासूस ँ और द ली म बढ़ती चो रय को काबू म करने के िलए भजे ा गया ।ँ ’’ शखे िच ली ने गजब के ठ से के साथ कहा, मानो वह सचमुच जासूस हो! शेखिच ली का खलु ासा सनु कर मनमोहन पसीन-े पसीने हो गया। फर उसने कहा-‘‘म तो कल ही तु ह अपना भाई मान चकु ा ।ँ तमु जासूस हो तो मेरा खयाल रखना। म तु हारी सवे ा करता र गँ ा।“ इतना कहकर मनमोहन ने अपने ब से मं◌े बचाकर रखे पए िनकालकर िगने और शेखिच ली को दते े ए कहा-‘‘यह एक भाई को दसू रे भाई ारा
दया गया तोहफा ह।ै दखे ो, इनकार नह करना और याद रखना, इस मनमोहन का घर तु हारा घर ह।ै म जानता ,ँ तमु जासूस को अपनी असिलयत छु पाकर रहना होता है इसिलए तु ह जब भी ज रत पड़,े मरे े घर आ सकते हो। म हमेशा तु हारी सहायता के िलए त पर र गँ ा।’’ शखे िच ली ने पए लके र अपनी जेब म◌ं े रख िलये तथा मनमोहन को चेतावनी दते े ए वह वहाँ से चल दया क य द भिव य म मनमोहन ने कोई गलत काम कया तो वह उसे ब शेगा नह । कोठी से बाहर आकर शेखिच ली ने जेब से पए िनकालकर िगने। पूरे हजार पए थे अथात् शखे िच ली क जबे म परू े बारह सौ पए आ चकु े थ।े शेखिच ली वहाँ से सीधे डाकघर गया और सात सौ पए अपनी अ मी के नाम मनीआडॅ र कर दया और पाचँ सौ पए अपनी जेब म रखकर काम क तलाश म िनकल गया। सड़क पर चलते ए वह सोच रहा था क अ मी को जब पए िमलगे तो वह यही सोचेगी क म ठीक ँ और काम पर लग गया ।ँ दो दन भटकने के बाद शेखिच ली को एक बँगले म माली क नौकरी िमल गई। वह बगीचे क दखे भाल करने लगा। वह कु छ भी करता तो बड़ी लगन से करता। बगँ ले क माल कन ने एक दन उससे पूछा-‘‘शखे ! या तुम ब घी चला लते े हो?’’ अपने गाँव म◌ं े शखे िच ली अपनी बैलगाड़ी चला लते ा था। उसने िव ासपूवक कहा-‘‘जी, माल कन! ब घी, टमटम, ए ा सब चला सकता ।ँ ’’ ‘‘अरे तमु तो ब त काम के आदमी हो! इतने नरम द हो, पहले य नह बताया? यह बाग-बगीचे का काम म कसी और से करा लँूगी। तमु अब मेरी सेवा म रहोग।े मरे े घर म।’’ माल कन ने कहा। ‘‘जैसी आपक आ ा माल कन! म तो आपका सेवक !ँ जो भी कहगी, क ँ गा।’’ शेखिच ली ने कहा। माल कन शेखिच ली को अपने साथ लके र अपने पित के पास आई और उससे बोली-‘‘सुनते हो! अपना यह शखे िच ली ब त काम का आदमी ह।ै यह ब घी, टमटम, ए ा सब चला लेता ह।ै ऐसे नरम द नौकर को माली के प म खटाना मखू ता ह।ै ऐसा सोचकर इसे म अपनी सवे ा के िलए ले आई ।ँ यह यह , हमारे साथ, हमारे घर म रहगे ा।’’ ‘‘हा-ँ हा,ँ य नह ! तुमने ठीक फै सला कया ह।ै ’’ शखे िच ली के मािलक ने कहा। वह
जवाहरात का ापार करनवे ाला एक स प जौहरी था। उसने शखे िच ली को टोकते ए कहा-‘‘...और सुनो शेख! मेम साहब जो भी कह, उसे तुर त पूरा करना वरना तु हारी खैर नह ।’’ ” ‘खैर नह ’ य कहते हो? साफ कहो न क म-उदलू ी क सजा हमारे यहाँ तुर त दी जाती ह-ै नौकरी से बखा तगी के प म। समझ गए?’’ माल कन के कहने के अ दाज से ही शेखिच ली ने समझ िलया क उसका नया मािलक और नई माल कन दोन परले दज के घमंडी और काइँया ह। उसने तुर त िसर िहलाकर हामी भर दी और मन-ही-मन कहा- ‘कोई बात नह ह,ै सेठ और सेठानी! तू डाल-डाल तो म पात- पात!...दखे , आगे या होता ह!ै ’ शखे िच ली को माल कन अपने साथ बँगले म ले गई। उसे सारे कमरे दखाए। रसोई और आगँ न दखाया तथा शखे िच ली को धमकाते ए कहा-”दखे ो शखे ! पूरे बगँ ले क सफाई तु हारी िज मदे ारी होगी। कह भी कचरा दखा तो समझो, तु हारी नौकरी गई।’’ शखे िच ली शा त रहा। वह बोलता भी या? ले कन माल कन क मग रयत पर उसे ोध आ रहा था। ‘अमाँ! यह भी कोई तरीका है बात करने का? यही बात सेठानी यार से बोल सकती ह.ै ..मगर यह तो बात-बात पर नौकरी से िनकाल दने े क धमक दे रही ह।ै ’ तभी सेठ ने शखे िच ली को ब घी िनकालकर उसमं◌े घोड़ा जोतने क आ ा दते े ए कहा-‘‘माल कन से कह दो, वे तैयार हो जाए।ँ हम लोग आज कु छ खरीदारी करगे और घूमने भी जाएगँ े।’’ शखे िच ली माल कन को तैयार होने के िलए कहकर ब घी िनकालने चला गया। उसने ब घी म घोड़ा जोता और ब घी लाकर मािलक के बगँ ले के सामने लगा दया। थोड़ी ही दरे म सठे और सठे ानी बगँ ले के बाहर िनकले और ब घी पर बठै गए। सेठ ने शेखिच ली से कहा-‘‘तुम पहली बार हम लोगा◌ं े के साथ बाजार जा रहे हो इसिलए तु ह यह बता दने ा ज री हो गया है क तमु रा ते म◌ं े तब ही कु छ बोलना जब हम तुमसे कु छ पूछं◌े। हम लोग को बकबक सनु ने क आदत नह ह।ै इसिलए अपनी जुबान ब द ही रखना, समझ गए?’’ ‘‘जी!’’ शेखिच ली ने सिं सा उ र दया। ब घी पर सठे -सेठानी बठै े। शखे िच ली ब घी चलाने लगा। हालाँ क वह पहली बार ब घी चला रहा था मगर उसे ब घी चलाने म कोई परेशानी नह ई। सेठ उसे बाएँ चलो, दाएँ चलो कहता रहा। फर एक बाजार म खलु ी जगह पर ब घी कवाई और सठे ानी के साथ उतरकर बाजार चला गया।
शखे िच ली ब घी पर बठै ा आ उनके लौटने क ती ा करते ए सोचने लगा-‘इतने मग र लोगां◌े के साथ रहना मुम कन नह ह।ै माना क म इनका नौकर ँ मगर या ये ब घी से उतरकर यह भी नह कह सकते थे क म कूँ ?’ थोड़ी दरे के बाद सेठ-सेठानी लौट आए। उनके पास कु छ थलै े थे िजनम खरीदे गए सामान थ।े इसके बाद सेठ-सठे ानी ब घी पर बैठकर शहर का नजारा दखे ते रह।े ब घी कभी बाएँ ले चलने को कहते तो कभी दाएँ। थोड़ी दरे के बाद ही शखे िच ली ने दखे ा- सेठानी का पस सीट से फसलकर जमीन पर िगर गया ह।ै शखे िच ली चाहता तो ब घी रोककर पस उठाकर माल कन को दे दते ा मगर उसे तो सठे ने कु छ भी बोलने से मना कर दया था। उसने सोचा-यह भी ठीक ह,ै इस तरह ही इनक मग रयत क सजा दी जाए। ऐसा सोचकर उसने घोड़े को दो कोड़े लगाए और लगाम के इशारे से घोड़े तेज भागने लगे। ब घी तेजी से दौड़ने लगी। बगँ ला वापस प चँ ने पर सठे ानी को पता चला क उसका पस कह िगर गया ह।ै वह परेशान हो उठी। पस म हजार पए से अिधक बचा आ था। उसने घबराकर सेठ से पूछा और सठे ने शेखिच ली से पछू ा- ” या उसने सठे ानी का पस कह दखे ा ह?ै “ शखे िच ली ने शालीनता से कहा-‘‘जी हा,ँ जरू ! बाजार से आगे बढ़ने पर जो पहला दायाँ मोड़ है उसी मोड़ पर ब घी मुड़ते ही झटके से माल कन का पस िगर गया था। मने अपनी आँख से दखे ा था।’’ ‘‘अरे घामड़! जब दखे ा था तब बताया य नह ?’’ सठे चीखा। ‘‘कै से बताता मािलक, आपने मुझे अपनी तरफ से बोलना मना कर रखा था।’’ शेखिच ली ने शा त होकर उ र दया। सठे को अब कु छ नह सझू रहा था क या बोले। िचढ़कर उसने कहा-‘‘जा, दफा हो मगर अब याद रखना क कह भी कु छ भी िगरे तो उसे तुर त उठाकर मझु े दे दने ा। समझ गया?’’ ‘‘जी!’’ शेखिच ली ने कहा और वहाँ से लौटकर घोड़े को अ तबल म बाधँ ने चला गया। थोड़ी ही दरे के बाद सेठ के कु छ र तेदार बँगले म आए। बाहरवाले कमरे म बठै कर सेठ उनसे बात◌ं े करने लगा। सठे ानी अपने र तेदार क मेहमाननवाजी मं◌े लग गई। मेज पर उन लोग के िलए ना ता सजाया। सठे के साथ वे लोग ना ता करने बठै े ही थे क शेखिच ली एक थलै े म◌ं े कोई चीज िलये आया और चपु चाप सठे को थमा दया। सेठ ने थलै ा लेते ए नरम क तु गरम वर म पूछा-‘‘ या है इसम?’’
‘‘खदु दखे लीिजए मािलक!’’ शेखिच ली का ठंडा और शालीन उ र था। सेठ ने थैला खोलकर दखे ा-‘‘अरे! यह तो घोड़े क लीद ह।ै यह तू मरे े पास इस तरह य लाया?’’ ोध से काँपते ए सेठ ने शेखिच ली से पछू ा। ‘‘मािलक! कु छ दरे पहले आपने म दया था क कह भी, कु छ भी िगरे तो तुम उसे तरु त उठाकर मेरे पास ले आना।...इस समय म अ तबल म घोड़ा बाँधने गया तो उसक लीद िगरी और म म क तामील करते ए उसे तुर त उठाकर आपके पास ले आया।’’ इतना सनु ते ही सेठ आग-बबूला हो गया और चीखा-‘‘कमअ ल! जा, भाग जा! म तु ह एक पल भी अब इस घर म बदा त नह क ँ गा।’’ ”कमअ ल म नह मािलक, आप ह। आपको म दने ा नह आता और आप लोग से वहार करना नह जानत।े आप नौकर कै से रख सकते ह? म खदु अपनी राह लते ा -ँ अलिवदा!“ ऐसा कहते ए शेखिच ली सठे के घर से िनकलकर मनमोहन के कमरे क तरफ जाने लगा-यह सोचकर क आज क रात मनमोहन के कमरे म िबताकर कल फर कसी नए काम क खोज म िनकल पड़गे ा।
जज साहब क ससरु ाल म शहर जाने के तरु त बाद शखे िच ली को जेल क हवा खानी पड़ी। यह तो खदु ा का शु है क जले म◌ं े शखे िच ली ने अ ल से काम िलया और रहा होकर बाहर आ गया। जले से छू टने के बाद शखे िच ली को शहर म रहने और खाने क िच ता सताने लगी। जेल म◌ं े था तब यह िच ता न थी। शहर उसके िलए अजनबी था जहाँ वह गावँ से कमाने के िलए आया था। वह अब इस सवाल से परेशान था क जाए तो कधर जाए! िज दगी जीने के िलए- िसर छु पाने के िलए जगह, करने को कोई काम, दोन ज री ह और इन दोन क ज रत का मारा था शखे िच ली! जेब म अ मी के दये पचास पए सुरि त थ।े टटोलकर दखे ा तो झोले म कु छ मठ रयाँ बची थ । उसने खदु ा का शु या अदा कया क जेल के अिधका रय और िसपािहय ने उसके असबाब पर हाथ नह डाला। वह एक मठरी िनकालकर उसे खाते ए शहर क एक सड़क पर चलने लगा। उसे रिजया बगे म क कही बात याद आ रही थी क परेशानी आती है तु ह कु छ िसखाने के िलए। चलते-चलते उसक िनगाह म एक मुसा फरखाना आ गया। वह उस मसु ा फरखाने म चला गया और मुसा फरखाने के चबूतरे पर बैठकर सोचने लगा-अब या क ँ ? गाँव लौट नह सकता य क अ मी ने कु छ कमाकर आने को कहा ह।ै कसी के घर जा नह सकता य क शहर म म कसी को जानता नह । बठै े-बठै े इस मुसा फरखाने म दन गुजार नह सकता य क जेब म िसफ पचास पए ह। वह भी पए ऐसे ह िजसे दते े समय अ मी ने कहा था-‘व -ज रत काम आएगा।’ इसी उधड़े -बुन म वह चबतू रे पर िनढाल भाव से पड़ा रहा। कु छ समय बीता, तब उसने दखे ा क उसी क उ के तीन यवु क वहाँ आए और चबूतरे के एक कोने म बैठकर कसी जज साहब के काइँयापने क बात करने लगे। थोड़ी दरे तक उनक बात होती रही और बातचीत के दौरान ही उन तीन मं◌े से एक ने कहा-”अब ब द भी करो उस कनकटवा क बात। वह इतना बड़ा और मग र तबीयत इनसान है क हम उसका कु छ िबगाड़ नह सकत।े बदला लेने क बात तो दरू , उसका हम बाल भी बाकँ ा नह कर सकते। हो सकता है क उससे बदला लने े के च र म हम दसू रा कान भी कटवाना पड़।े उस म ार ने तो िबना पसै े दए हमसे बगे ार कराया और कान काटकर िनकाल बाहर कया। यह दिु नया ऐसे ही म ार से भरी ई ह।ै हम जैस के िलए स करने के िसवा और चारा ही या ह?ै “ शेखिच ली उनक बात सनु रहा था। वह अपनी जगह से उठा और उनके पास जाकर
बोला-‘‘भाइयो, तुम लोग को दखे कर और तमु लोग क बात सनु कर ऐसा लगता है क तमु तीन कसी के सताए ए हो...म शखे िच ली ।ँ गावँ से आया ।ँ स ा इनसान ँ और मसु ीबत म रहते ए भी म मुसीबत के मार क सहायता करने का ज बा रखता ।ँ तमु इसे मेरी फतरत कह सकते हो। म कसी पर कसी क यादती कतई बदा त नह कर सकता।“ उन तीन म से एक युवक ने कहा-‘‘तुमने अभी-अभी कहा क तुम मसु ीबत म हो... या है तु हारी मुसीबत, हम बताओ...शायद हम तु हारे काम आ सक।’’ ‘‘हाँ-हाँ, य नह , ज र बताऊँ गा।’’ मदद क आशा िमलते ही शखे िच ली जोश म आते ए बोला-‘‘मगर पहले तुम लोग मुझे अपनी आपबीती सनु ाओ। तु हारी कु छ बात मने सनु ी ह िजससे म इस नतीजे पर प चँ ा ँ क तुम लोग कसी जज क म ारी के मारे हो और उसे सजा दने ा चाहते हो। म चाहता ँ क तमु लोग खुलकर मझु े सारी बात सुना दो ता क म तय कर सकूँ क तुम लोगां◌े पर ई यादती क सजा म दे सकता ँ या नह ।’’ तीन म से एक ने बताया-‘‘इसी शहर म एक जज ह।ै नाम है मु तफा अली खान। वह अपने यहाँ साठ पए मािसक वते न, खाना, कपड़ा और रहने क जगह दने े क शत पर नौकर रखता ह।ै नौकरी करने के िलए उसक एक शत नौकरी करनवे ाले को मंजूर करनी पड़ती है क अगर वह अपनी मज से नौकरी छोड़कर जाएगा तो उसे पगार क रकम नह दी जाएगी और उसका एक कान काट िलया जाएगा। वह जज अपने नौकर को इतना तगं करता है क आिजज आकर नौकरी करनवे ाला अपना कान कटवाकर उसक नौकरी से मु होने मं◌े ही अपनी भलाई समझता ह।ै हम तीन र ते म भाई ह। तीन ही अपने-अपने गाँव से कमाने के िलए आए ह। सबसे पहले म ही गया था काम करने ले कन एक महीने बाद ही कान कटवाकर भाग आया। फर मेरा बदला लेने के िलए मेरा यह भाई ‘िच क’ू गया मगर एक महीने के अ दर अपना कान कटवाकर वापस आ गया। इसके बाद मेरा चेचरा भाई टंकू जज से बदला लेने के िलए उसके यहाँ नौकरी करने गया और दो ह ते म ही कान कटवाकर वापस आ गया।’’ शखे िच ली उसक दा तान सुनकर सजं ीदा हो गया। उसने उस यवु क से कहा-‘‘पहले तमु मुझे अपना नाम बताओ।’’ ‘‘मरे ा नाम मंसूर ह।ै “ उसने कहा। ‘‘ठीक है मसं रू , िच कू और टंकू । आज और अभी से हम लोग दो त ए। हर महीने क पहली तारीख को हम लोग यह , इसी चबतू रे पर िमला करगे। अब मझु े उस जज का पता बता दो, म उससे ज दी ही िहसाब- कताब बराबर करके तुम लोग से िमलूँगा। वसै े हर महीने क पहली तारीख को दोपहर से शाम तक का समय हम लोगा◌ं े क मलु ाकात के
िलए तय कर िलया जाए ता क उस दन हम लोग एक-दसू रे क ज रत को जान सक। या पता हमम से कसी को कसी तरह क मदद क ज रत हो!“ उन तीन ने हामी भर दी और शखे िच ली को उस कनकटवा जज का पता बता दया। शखे िच ली उनसे िवदा लेकर उस जज का मकान खोजते ए उसके महल के गेट पर प चँ गया। गेट पर एक त ती लटक ई थी-मु तफा अली खान। गटे पर एक दरबान तैनात था। शखे िच ली ने उससे गटे खोलने के िलए कहा तो दरबान ने उसे डाटँ कर भाग जाने को कहा। शखे िच ली ने दरबान को दबु ारा कहा-‘‘भाईजान! मेहरबानी करके मझु े दर आने दो, मझु े जज साहब से िमलना ह।ै ’’ ‘‘भाग जाओ, जज साहब अभी कचहरी से नह लौटे ह। जब लौट आएँगे तब आना।’’ दरबान ने िझड़कते ए शेखिच ली से कहा। शखे िच ली ने मन ही मन फै सला कर िलया था क चाहे जैसे भी हो, वह जज साहब से िमलकर नौकरी हािसल करके रहगे ा। इसिलए वह दरबान के िझड़कने के बावजूद गेट के पास ही खड़ा रहा। साढ़े पाँच बजे शाम को जज साहब ब घी से अपने महल के गटे पर प चँ ।े गेट पर ब घी क और दरबान अदब से गटे खोलकर सलाम क मु ा म खड़ा हो गया। शेखिच ली को समझते दरे नह लगी क ब घी से उतरनेवाला श स ही कनकटव जज मु तफा अली खान ह।ै वह फु त से जज के पास गया और बोला- ‘‘ जूरेआला! म आपके पास आपक िखदमत के इरादे से हािजर आ ।ँ मझु े पता चला है क आपको घर के काम-काज के िलए एक आदमी क ज रत ह,ै म भी काम क तलाश म गावँ से आया ँ और बड़ी उ मीद के साथ आपके पास आया ।ँ ’’ जज ने शेखिच ली को ऊपर से नीचे तक दखे ा और उसे काम का आदमी समझकर कहा-‘‘भीतर चलकर बात करो।’’ और खुद गटे के भीतर चला गया तथा महल क तरफ जात-े जाते उसने दरबान से कहा- ‘‘आने दो उसे।’’ शखे िच ली तजे गित से महल के दरवाजे पर प चँ गया। जज मु तफा अली खान ने उससे कहा-‘‘दखे ो बरखुरदार! हमारे यहाँ तु ह काम तो िमल जाएगा ले कन उसक शत भी है क य द तुम छह महीने के अ दर काम छोड़ोगे तो तु ह पगार नह िमलगे ी और तु हारा एक कान काट िलया जाएगा। मजं ूर है तो साठ पया मािसक वेतन, खाना, कपड़ा और रहने क सुिवधा के एवज म आज से ही काम पर लग जाओ।’’ शेखिच ली ने अदब से कहा-‘‘ जरू , मौिखक बात नह , बस नौकरी शु करने से पहले शतनामा िलखकर द तखत करवा ल मगर मरे ी भी एक शत है क छह माह से पहले य द आपने मझु े हटाया तो आपको साल भर के वेतन का भगु तान तो करना ही पड़गे ा, इसके साथ ही एक आदमी पर साल भर म खाने और कपड़ा पर आनवे ाला खच जोड़कर उसका
एकमु त भगु तान करना पड़गे ा। ये बात भी शतनामा म िलखी होनी चािहए।’’ शखे िच ली ने आगे कहा-‘‘हा,ँ कान तो आपको भी कटवाना पड़गे ा।’’ जज ने शखे िच ली को ऊपर से नीचे तक दखे ा और मन-ही-मन सोचा- या िप ी या िप ी का शोरबा! मुझसे शत तय कर रहा ह।ै दस दन म कान कटवाकर भागने म अपनी भलाई समझेगा। कतने आए... कतने गए- हँ ! ले कन कट तौर पर उसने कहा-‘‘तुम आदमी दलच प हो! तु ह काम पर रखना, अ छा तजुबा होगा। चलो तु हारे िलए शतनामा तयै ार कर दते ा ।ँ ’’ जज साहब मु कु राते ए उसे लके र महल के भीतर चले गए। बठै क म जाकर उ ह ने शतनामा िलखकर तैयार कया और उसे पढ़कर सुनाने लगे। मगर, शेखिच ली ने उ ह बीच म ही रोक दया और कहा-‘‘रहने दीिजए जूर! म खदु पढ़ लूँगा। हा,ँ इस शतनामे मं◌े यह बात भी शािमल कर दीिजए क हर महीने क पहली तारीख को मुझे महल से बाहर जाने क इजाजत होगी और पहली तारीख को म कोई काम नह क ँ गा।’’ जज साहब ने शखे िच ली क ओर पहली बार चककर दखे ा और सोचा-यवु क तजे -तरार है और पढ़ा-िलखा भी...चलो, कोई बात नह । और उ ह ने शतनामे म◌ं े शेखिच ली के कहे अनुसार बात भी दज कर द । शतनामे क काबन काॅपी पर शेखिच ली ने द तखत करके जज साहब को दे दया और शतनामे क मलू ित पर जज साहब से द तखत कराकर अपने पास रख िलया। उस दन से जज साहब के घर का काम-काज करने के िलए उनके घर म रहने लगा। जज साहब ने उसे नौकरी पर रखते समय साफ-साफ कहा-‘‘दखे ो शेखिच ली! तु हारे काम क पहली शत है क तुम हमशे ा काम के िलए तैयार रहोगे और िजस समय भी जो भी काम तु ह कहा जाए उसे अजं ाम दने े म कोई कोताही नह करोगे। इसी म तु हारी और तु हारे कान क भलाई ह।ै ’’ काम के पहले दन ही जज मु तफा अली खान अपने नौकर पर हावी हो जाया करता था। मगर शेखिच ली ने जज को ऐसा कोई मौका नह दया। जज साहब ने शेखिच ली से अपनी बगे म को िमलवाया और शेखिच ली से कहा-‘‘दखे ो शखे िच ली! तु ह बगे म सािहबा का हर म मानना होगा। मेरे नह रहने पर यही तु ह काम दया करगी।“ इसके बाद जज साहब ने हाथ-परै धोए और कपड़े बदलकर बैठक म चले गए। शेखिच ली बेगम सािहबा क िखदमत के िलए क गया। बगे म सािहबा ने उसको अपने
चार साल के बटे े क दखे भाल करने क िज मदे ारी स पी और खुद रसोई म खाना बनाने चली गई। शखे िच ली बैठकर जज साहब के बटे े को घरू ने लगा। घूर-घरू कर दखे े जाने से चार साल का वह ब ा डर गया और उसके चेहरे से शेखिच ली ने अनुमान लगाया क लड़का डरकर रोने ही वाला है क उसने फु कारते ए कहा-‘‘अबे! याद रखना...अगर महँु से आवाज िनकली या तू रोया तो तेरा गला काट डालगँू ा।’’ बचे ारा लड़का सहमकर प थर के बुत क तरह बैठा रहा। शखे िच ली क तरफ दखे ने क भी उसे िह मत नह ई। बेगम सािहबा ने खाना पका िलया। द तरखान िबछा। जज साहब आए। द तरखान पर बठै े। बेगम सािहबा ने गरम-गरम खाना परोसा। जज साहब खा चकु े तब बगे म सािहबा खाने बठै । अपने लाडले को भी साथ ही खाने पर बैठा िलया। बगे म सािहबा खा चकु तब शेखिच ली ने जठू े बतन हटाए। बतन साफ कए। इसके बाद बेगम सािहबा ने उसके िलए चार रो टयाँ और गो त िनकालकर रख दया तथा कहा-‘‘शेखिच ली, तू भी खा ले ले कन इतना ही खाना क रात को य द कसी काम से तु ह आवाज दी जाए तो जगने म तु ह कोई परेशानी नह हो।’’ शेखिच ली ने हामी भरी और जायका लेकर गो त के साथ रोटी खाने लगा। रोटी खाकर उसने वह बतन भी धोकर रख दया और बताए गए थान पर जाकर सो गया। अभी उसक झपक ही लगी थी क जज साहब ने उसे आवाज दी- ‘‘शेखिच ली! अबे ओ शखे िच ली!! जरा इधर तो आना।’’ शेखिच ली तरु त िब तर से उठा और भागता आ जज साहब के कमरे म प चँ ा-‘‘जी हा,ँ जरू ! या म ह?ै ’’ उसने ब त अदब के साथ ज साहब से पूछा। ‘‘अरे! जरा ब े को ले जाओ और इसे नाली पर बैठाकर पाखाना कराकर ले आओ।’’ जज साहब ने कहा। ‘‘जी जरू !’’ कहता आ शखे िच ली ब े क बाँह पकड़कर उसे नाली क तरफ ले जाने लगा। शाम को ही शेखिच ली ने इस ब े के मन म अपने ित खौफ पैदा कर दी थी िजसके कारण शेखिच ली को दखे कर ब ा बेहद सहमा आ था। उसे नाली पर बठै ाकर शखे िच ली ने उसे डराते ए कहा-‘‘दखे , जज साहब ने िसफ पाखाना कराने को कहा है अगर तमु ने पेशाब करने क जुरत क तो समझ लने ा क म पीट-पीटकर तु हारी हालत खराब कर दगँू ा।’’ बचे ारा ब ा समझ नह पा रहा था क या करे! शखे िच ली के डर से उसके हाजत का
दबाव गायब हो गया और उसने शेखिच ली से डरते ए कहा-‘‘हो गया। चलो, अ बा के पास ले चलो।’’ शखे िच ली ने ब े को ले जाकर जज साहब को स पा और उ ह बताया-‘‘अजीब लड़का ह।ै नाली पर बैठने म इसे मजा आता है शायद। इसे पाखाना तो या, पशे ाब तक नह करना था। बस जाकर नाली पर बैठा रहा। फर बोला-हो गया, ले चलो अ बा के पास।’’ वह ब ा शखे िच ली से इतना आतं कत था क जज साहब ारा पूछे जाने पर क ‘बटे े, पाखाना करना ह.ै ..?’ सीधे बोला-‘नह करना ह।ै ’ जज साहब ने शेखिच ली को जाकर सोने क इजाजत दे दी। मगर उस रात उस ब े ने जज साहब के िब तर पर ही पाखाना, पेशाब दोन कर दया और बगे म भुनभनु ाती ई उठी और रात को चादर साफ कया। दसू रे दन सबु ह शखे िच ली जज साहब के जगते ही उनक तीमारदारी के िलए हािजर आ और पछू ा-‘‘मेरे िलए या म है जूर?’’ ‘‘पानी गरम करके गुसलखाने म रख दो, म ान क ँ गा।’’ जज साहब ने म फरमाया। शखे िच ली ने एक दगे ची पानी खौलाया और खौलता आ पानी उसने गुसलखाने क बा टी म डाल दया। जज साहब जब ान करने गए तो पानी िनकालने के िलए जसै े मग डुबोया, वैसे ही छटपटाकर अपना हाथ बा टी से ख च िलया और तरु त ठंडे पानी मं◌े हाथ डुबोकर गु से म चीख पड़-े ”अबे ओ शखे िच ली...इधर तो आ।“ शखे िच ली दौड़ा आ आया और जज साहब से पूछा-‘‘ या म है जूर?’’ ‘‘ जूर के ब !े तु ह यह भी अ दाजा नह है क नहाने के िलए पानी कतना गरम करते ह?“ जज साहब ने डाटँ ते ए कहा। ‘‘ जूर! पानी तो दगे ची म गरम होता है और बा टी म रखने के बाद नहानवे ाला खुद अपने मनमतु ािबक उसम ठंडा पानी िमलाता है ता क िजतना गरम पानी उसे चािहए उतना ही गरम पानी तयै ार हो। अलग-अलग आदमी अलग-अलग गरमी पस द करता ह।ै कसी को कु नकु ना पानी अ छा लगता है तो कसी को गुनगनु ा, कसी को ससु ुम तो कसी को मीठा गरम और कसी को...।’’ ‘‘अबे चपु हो जा! अब से इतना गरम पानी मरे े नहाने के िलए मत रखना, समझ गया?’’ जज साहब डपट पड़।े
‘‘जी हा,ँ जूर! ऐसा ही होगा।’’ शेखिच ली ने कहा और वहाँ से चला आया। नहा-धोकर जज साहब तयै ार ए और खाना खाकर कचहरी जाने क गरज से बोले-‘‘शेखिच ली! म तो कचहरी जा रहा ।ँ दन म◌ं े बेगम सािहबा जो भी कह, वह करना। ठीक ह?ै ’’ ‘‘जी हा,ँ जरू ! बगे म सािहबा जो भी कहगी, वही क ँ गा।’’ शखे िच ली ने अपने जवाब से जज साहब को स तु कया। कचहरी जाते समय जज साहब ने अपनी बगे म से कहा-‘‘यह नया नौकर कु छ यादा ही चालाक ह।ै इसे इतना तंग करो क यह भाग ही जाए।’’ इसके बाद कचहरी चले गए। थोड़ी दरे के बाद बगे म सािहबा ने शखे िच ली को बलु ाया और उससे कहा-‘‘शेखिच ली! घर के िपछवाड़े म टूटी परु ानी दीवार का मलबा पड़ा आ ह।ै एक टोकरी ले ले और ट क टुकि़डय का चूरा बनाकर एक टोकरी सखु ले आ िजसम ट के छोटे-छोटे रोड़े भी ह और उससे छोटे कं कड़ भी। त दरू खड़ा करना ह।ै दोपहर तक यह काम िनपटा ले फर यहाँ मेरे साथ लगकर त दरू ी रोटी बनाने के िलए चू हा बनाने का काम परू ा करवा। परु ाना त दरू खराब हो चुका ह।ै ’’ शखे िच ली ने बेगम सािहबा से कहा-‘‘जी माल कन!’’ और वह एक टोकरी लके र घर के िपछवाड़े म चला गया। वहाँ उसने एक साबूत दीवार भी दखे ी जो सखु के गारे से रोड़ को लपटे कर खड़ी क गई थी। शेखिच ली ने उस दीवार को ख ती मार-मारकर िगरा िलया और फर उसे सखु व रोड़ा बटोरने मं◌े कोई मेहनत नह करनी पड़ी। िसर पर सखु और रोड़ क टोकरी उठाए शखे िच ली बगे म सािहबा के पास प चँ गया। उस समय बेगम सािहबा नहा-धोकर बाल सखु ाने के िलए आगँ न म धपू म बैठी थ । शखे िच ली को इतनी ज दी सुख और रोड़े के साथ हािजर आ दखे वे भीतर ही भीतर खीज उठ । शेखिच ली ने अदब से पछू ा-‘‘सुख और रोड़े कहाँ रख द?ँू ’’ बेगम सािहबा खीजी ई तो थ ही, उ ह ने तरु त खीज-भरे वर म कहा-‘‘मेरे िसर पर!’’ और थोड़ी भी दरे कए िबना, आ ाकारी सवे क क तरह टोकरी क सुख व रोड़े शेखिच ली ने बगे म सािहबा के िसर पर उड़ले दया। बेचारी बगे म हत भ रह ग । सुख मं◌े रखे गए रोड़ से उनके िसर म चोट आ ।
शेखिच ली क इस हरकत पर आग-बबलू ा होती ई बेगम ने कहा-‘‘तुम िनहायत ही बदतमीज क म के इनसान हो! तुम जसै े नौकर क हम कोई ज रत नह ह।ै जाओ-चले जाओ नौकरी छोड़कर।’’ शखे िच ली ने ब त िवन ता से उ र दया-‘‘बस, बगे म सािहबा! आपका हर म बजा लाऊँ गा मगर यह म नह मान सकता। यह मरे े कान का ही नह , जज साहब के कान का भी सवाल ह।ै आप िनकाल रही ह तो जरा जज साहब से भी इजाजत ले लीिजए।“ बगे म पाँव पटकती ई वहाँ से चली ग । शखे िच ली ने म ती म दन-भर आराम कया। शाम को जब जज साहब आए तो बगे म सािहबा ने उ ह शखे िच ली क गु ताख हरकत के बारे म नमक-िमच िमलाकर बताया। जज साहब को शेखिच ली क हरकत के बारे म जो जानका रयाँ िमल उससे वे तशै म आ गए और शेखिच ली को अपने सामने हािजर होने का म फरमाया। शखे िच ली सहज भाव म जज साहब के सामने पेश आ। जज साहब ने उससे पूछा-‘‘ या बात है शेखिच ली! आज तुमने बगे म सािहबा के साथ बहे द गु ताख हरकत क है िजसक सजा तु ह िमलनी ही चािहए।’’ शखे िच ली ने बेहद अदब के साथ जज साहब से कहा-‘‘ जूर, मने बेगम सािहबा का म बजा लाने के िसवा कु छ कया ही नह है तो गु ताख हरकत करने का कोई सवाल ही पदै ा नह होता...ज र आपको कोई गलतफहमी ई ह।ै ’’ ‘‘गलतफहमी के ब !े तनू े सुख -रोड़े का भरा टोकरा बगे म के िसर पर नह उड़ले ा ह?ै ’’ जज साहब ने ोध से फु फकारते ए पूछा। ‘‘जी हाँ, जूर! मने ऐसा अव य कया ह,ै मगर यह बेगम का आदशे था िजसका पालन करना मरे ा फज था...सो मने कया! मुझे बगे म ने टोकरी म सखु -रोड़ा लाने को कहा। म ले के आया और उनसे पूछा- सुख -रोड़ा कहाँ पर रख◌ँ ू? बेगम सािहबा ने उ र दया-मेरे िसर पर। और मने उनके कहने के मुतािबक कर दया। आप बगे म सािहबा से पूछ ल, य द मेरी बात म र ी-भर भी झठू हो तो आप मुझे फाँसी पर चढ़ा द...उफ नह क ँ गा।’’ शेखिच ली ने कहा। जब साहब चुप हो गए। करते भी या? मगर बगे म सािहबा तनी रह । उ ह ने रात को रोटी और खीर क कटोरी शखे िच ली के सामने रखते ए कहा-‘‘मुझे तुम जैसे शाितर से िनपटना आता ह।ै यह ले और रोटी खा...रोटी तु ह ऐसे खाना है क तू खा भी ले और रोटी
साबतू थाल म बनी रह।े खीर क याली के महुँ पर कागज बधँ ा आ है उसे खोले बगरै तु ह खीर गटकना ह,ै ऐसा नह करने पर तु ह जो सजा िमलगे ी, उसे तू जनम भर याद रखेगा।’’ िजस समय बेगम सािहबा शेखिच ली को यह फरमान सुना रही थ , उस समय जज साहब वह बैठे म द-म द मु कु रा रहे थ।े मगर वे कु छ बोले नह । शखे िच ली अपनी थाल क रोटी को दखे ते ए सोच रहा था क या करे...कै से खाए क भखू भी िमटे और बेगम क शत भी परू ी हो। सोचते-सोचते उसने रोटी को बीच से खा िलया िजससे गोलाई म रोटी का बाहरी कनारा बचा रह गया। फर उसने खीर क याली उठाई और एक चाकू से िम ी क उस याली क पदी म छेद कया और उस छेद म मँुह लगाकर वह खीर भी सड़ु क गया। उसक कार तानी दखे कर जज साहब और बगे म सािहबा दोन ही अवाक् रह गए। शखे िच ली ब त िवन तापवू क उ ह आदाब बजाता आ सोने चला गया। उसके जाने के बाद जज साहब ने अपनी बेगम से कहा-‘‘इस बार तो ऐसे नौकर से पाला पड़ा है क हमारी अ ल ही काम नह करती। इसे हटने को कह भी नह सकता...अगर क ँ तो साल-भर क पगार और खुराक दोन दने ी होगी और इसके साथ अपना कान भी कटाना पड़गे ा... या क ँ , कु छ समझ म नह आता।...अ छा, कल इसे कोई और मुि कल काम स पकर दखे ता ।ँ “ दसू रे दन जज साहब कचहरी जाने लगे तब उ ह ने शखे िच ली से कहा-‘‘सुनो बरखुरदार, आज तुम हल-बलै लेकर खेत पर जाओ और दोपहर तक खेत जोत डालो। फर लौटते समय जगं ल जाकर कोई िशकार मार लाओ और साथ ही कु छ लकिड़ याँ जलावन के िलए भी लेते आओ... दखे ो यह काम तु ह हर हाल म आज ही िनपटा लने ा ह।ै िशकार और लकिड़ य का ब ध तु ह करना ही पड़गे ा।’’ जज साहब ने चते ावनी दने े के अ दाज म कहा। ‘‘जो म जूर!’’ िसर झकु ाकर शखे िच ली ने कहा और जज साहब के जाते ही वह हल-बलै लेकर खेत पर चला गया। बैल को हल से जोतकर उसने खते के बीच म एक खूँटा गाड़ा और एक बड़ी-सी र सी का एक िसरा बैल के गले म बाधँ ा और दसू रा िसरा खटँू े से बाँधकर बैल को डडं े से मारा-सटाक् ! बैल गित से दौड़ने लगा। हल का फाल जहा-ँ तहाँ खेत को कोड़ने लगा। इस तरह शखे िच ली ने दोपहर तक खेत जोतने का काम कया। फर उसने कु हाड़ी उठाई और हल म लगी लकड़ी क ब ली को चीड़ कर उसक लकि़डयाँ एकि त कर ल । अब शेष थी िशकार क सम या। उसने जज साहब क िब ली को उधर आते दखे ा तब अचानक उसे सम या का समाधान िमल गया। उसने िब ली को मारकर उसक खाल उधेड़ दी और बो टयाँ बनाकर एक कपड़े म◌ं े बाधँ िलया। इस तरह शेखिच ली ने जज साहब ारा बताई ई सारी बात पूरी कर द और आराम से शाम होने
का इ तजार करता रहा। शाम ई तो वह घर गया और बगे म सािहबा को जलावन और गो त थमा दया। खदु हाथ-महुँ धोकर अपने िब तर पर िचत लटे कर आराम करने लगा। उसे िव ास था क जज साहब उससे पछू गे ज र क दन-भर कै से काम कया? आ भी वही। जज साहब को गो त और पराठँ ा परोसा गया। वे उसे खाते रहे और सोचते रह-े गजब का नौकर है शखे िच ली। पता नह कै से जलावन भी ले आया और िशकार भी! उ ह ने शेखिच ली को आवाज दके र बुलाया। शेखिच ली के आने पर उ ह ने पछू ा-‘‘खेत जोत आए?’’ ‘‘जी हा!ँ ’’ शखे िच ली ने संि -सा उ र दया। ‘‘जलावन के िलए लकिड़ याँ कहाँ से लाए?’’ जज साहब ने खशु होते ए पूछा। ‘‘हल चीड़ कर!’’ शेखिच ली ने कहा। ”जलावन ज री था और जंगल दरू इसिलए मने हल क लकड़ी ही काट डाली और ले आया।“ ‘‘ फर यह िशकार?’’ गो त का एक टुकड़ा मँुह म डालते ए शखे िच ली से जज साहब ने पछू ा। ‘‘िशकार के िलए भी कोई कड़ी मेहनत नह करनी पड़ी। वह जो िब ली थी न...उसी को मारकर बो टयाँ बना ल ।’’ शखे िच ली ने कहा। शखे िच ली क बात सनु कर जज साहब तौबा-तौबा कहते ए खाने क थाल छोड़कर उठ गए और शखे िच ली को कोसते ए कु ली करने लगे- ‘‘उफ! तमु ने तो नाक -दम कर रखा ह।ै ’’ शेखिच ली सहज भाव से बोला-‘‘ जरू , मने तो के वल आपके म क तामील करने क कोिशश क ह।ै ’’ ‘‘भाग जाओ!’’ जज साहब चीखे और शेखिच ली अपने कमरे मं◌े चला गया। दसू रे दन से शखे िच ली से काम लेने का िसलिसला ब द हो गया। न जज साहब उसे कु छ करने को कहते और न बेगम सािहबा ही उसे कोई काम कहत । ऐसा कु छ दन चला। एक दन जज साहब के जाने के बाद बगे म सािहबा को तार से सूचना िमली क उनके मायके से कु छ लोग शाम को उनके घर प चँ नवे ाले ह। बगे म सािहबा तार दखे कर घबरा ग य क घर म आटा ख म हो चला था और घी भी नह था। उ ह ने शेखिच ली से
कहा-‘‘जाओ, दौड़कर कचहरी जाओ, जज साहब इजलास म ह ग।े पता करके उनके पास प चँ ो और उनसे कहो क घर मं◌े आटा और घी दोन ख म हो गए ह। वे या तो पसै े भेज या शाम को आटा और घी लेकर आएँ।’’ म िमलना था क शेखिच ली दौड़ पड़ा। दौड़ता आ वह कचहरी प चँ ा और जज साहब क इजलास का पता लगाकर वहाँ प चँ गया। मगर अदली ने उसे इजलास के बाहर ही रोक िलया। शेखिच ली जज साहब से ज री काम होने क दलील दते ा रहा िजसे इजलास म बैठे जज साहब दखे ते रहे मगर वे कु छ कहत,े उससे पहले ही उ ह अपनी तरफ दखे ता दखे शेखिच ली ने गटे पर से ही हाँक लगाई-‘‘ जूर, घर म आटा और घी नह ह, बगे म सािहबा ने पसै े मगँ ाए ह।’’ शखे िच ली क बात सनु कर इजलास म बठै े लोग हसँ ने लग।े जज साहब ने इससे खुद को अपमािनत महसूस कया और शखे िच ली को डाटँ कर वहाँ से लौट जाने को कहा। शाम को जज साहब जब घर आए उस समय तक उनक ससरु ाल के लोग भी पधार चकु े थे, मगर शेखिच ली के कारण हसँ ी का पा ा बनने से जज साहब गु से म थे। उ ह ने ससरु ाल के लोग के सामने ही अपनी बेगम को जी भर के फटकार लगाई। फर शखे िच ली को बुलाकर समझाया- ‘‘इजलास म जब म बैठा र ँ और तु ह कु छ वहाँ बताना हो तो इतने धीरे बोलना क मरे े िसवा और कोई नह सुने। समझे?’’ शेखिच ली ने हामी भर दी। संयोग क बात यह ई क दसू रे दन ही जज साहब के घर म आग लग गई। शेखिच ली को दौड़ाया गया क वह जाकर जज साहब को खबर कर द।े शखे िच ली इजलास म प चँ ा। उस दन अदली उसे पहचान गया इसिलए उसे रोका नह । जज साहब के सामने प चँ कर शखे िच ली फु सफु साते ए बोला-‘‘ जूर, आपके घर म आग लग गई ह।ै ’’ वह इतना धीरे बोल रहा था क जज साहब सनु नह पा रहे थे। कई बार दहु राने के िलए कहने पर वे जान पाए क उनके घर म आग लगने क खबर दने े आया है शखे िच ली। वे हड़बड़ाकर अपनी मजे से उठे और घर आकर आग बुझाने क व था कराई। फर वे कचहरी जाकर अपने शेष काय पूरे कए। शाम को लौटने पर उ ह ने शेखिच ली को नसीहत दी क उसे इजलास प चँ ते ही जोर से आग लगने क खबर दे दने ी चािहए थी। ‘‘कै से दते ा जरू ! आपने ही तो फरमाया था क इजलास म र ँ तो ऐसे बोलना क कोई दसू रा नह सनु सके ।’’
‘‘अ छा...अ छा! अब सनु लो, अब कभी कह आग लगे तो वहाँ बालू फकना, पानी फकना...इससे आग बझु जाएगी...समझ?े ’’ ‘‘जी हा,ँ जूर! अब ऐसा ही क ँ गा।’’ शखे िच ली ने कहा। दसू रे दन सबु ह बगे म सािहबा रसोई म थ और जज साहब के नहाने के िलए पानी गरम कर रही थ क कसी काम से जज साहब ने बगे म सािहबा को आवाज लगाई। बगे म सािहबा जज साहब के पास चली ग और शखे िच ली ने रसोई म जाकर चू हे क आँच को तेज कर दया और चपु के से रसोई से बाहर आकर अपने काम म लग गया। पहले दन ही शेखिच ली ने गुसलखाने म खौलता आ पानी रख दया था, इसके बाद से जज साहब के नहाने के िलए बगे म सािहबा ही पानी गरम करती थ । थोड़ी दरे के बाद बेगम सािहबा आ और गरम पानी गसु लखाने क बा टी मं◌े रख आ । जज साहब गुसलखाने म घसु े और एक लोटा पानी अपनी दहे पर डाला और चीख पड़-े ‘‘बाप रे! परू े शरीर म◌ं े आग लग गई।’’ शखे िच ली एक कन तर म बालू भरकर तैयार बैठा था। वह कन तर उठाए दौड़ता आ आया और गुसलखाने से छटपटाकर बाहर आते जज साहब पर एक कन तर बालू उड़ले दया। अब तो जज साहब आपे से बाहर हो गए और शखे िच ली को कोसने लगे-‘‘अरे बदतमीज, यह कै सी मूखता ह?ै मझु पर बालू य फका? दखे नह रहा, म गसु लखाने से िनकल रहा ?ँ ’’ ‘‘ जूर, अभी-अभी आपने ही तो आवाज लगाई थी क परू े शरीर म आग लग गई और जनाब ने ही कल फरमाया था क जहाँ आग लगी हो, वहाँ बालू फकने से आग बअे सर हो जाती ह।ै इसिलए मने बालू फका था जरू !’’ शेखिच ली ने मासिू मयत से कहा। बचे ारे जज साहब अवाक् रह गए। सोचा-‘उफ! इस मूख को कु छ भी कहना अपनी ही िम ी पलीद करना ह।ै ’ अपने गु से पर काबू रखते ए जज साहब कचहरी चले गए। शाम को कचहरी से घर लौटे तो उ ह यह पैगाम िमला क साले क शादी के िलए लड़क दखे ने जाना है इसिलए वे ज दी से ज दी अपनी ससुराल प चँ जाए।ँ जज साहब के िलए यह पगै ाम कसी सम या से कम नह था। वे सोच रहे थे क शेखिच ली को घर पर छोड़कर जाने का मतलब है क वह बगे म सािहबा का जीना हराम करके रख दगे ा।...और साथ लेकर चलने का मतलब है क अपनी िम ी पलीद करा लो...अजीब साँप-छछू ँदर वाली ि थित थी। ‘कर भी तो या कर’ क उधड़े बुन मं◌े पड़े
जज साहब ने अ ततः िनणय िलया क शखे िच ली को अपने साथ लके र जाना ही ठीक रहगे ा। बस, उसे कड़े अनुशासन म रखना होगा और उ ह ने उसे बलु ाकर कहा-‘‘शखे िच ली, ज दी से तैयार हो जाओ। बगे म सािहबा के गावँ चलना ह।ै ’’ शेखिच ली तुर त अपने कमरे म गया। कपड़े पहनकर वह दौड़ता आ गेट के बाहर गया और पसं ारी क दकु ान से जमाल गोटा खरीदकर ले आया। दो कपड़े अपने झोले म रखे और आकर बोला-‘‘ जूर, म तयै ार ।ँ ’’ जज साहब ने अपने कमरे से आवाज लगाई-‘‘बस! म भी तयै ार ँ जरा कपड़े सहजे लँू।’’ जज साहब बाहर िनकले-एक छोटे ब से को हाथ म उठाए। उ ह ने वह ब सा शेखिच ली को थमा दया और खुद घोड़ा खोलने के िलए अ तबल क ओर चले गए। ससुराल नह जाना होता तो वे घोड़ा कतई नह खोलते। शेखिच ली अपनी जबे म जमाल गोटे क गोिलयाँ टटोलते ए, ब सा उठाए अ तबल के पास खड़ा हो गया। जज साहब घोड़ा लके र िनकले और अपने पीछे शेखिच ली को बैठाया। घोड़े को एड़ लगाई...घोड़ा दौड़ने लगा। लगभग आधा रा ता कट चुका था और रात गहराने लगी थी। रा ते म एक कहवाघर दखे कर जज साहब ने घोड़ा रोका और शेखिच ली को दो कहवा बनवाने का म दया। शेखिच ली ने एक कहवा लके र उसम जमाल गोटा िमलाया और उसे लेकर जज साहब के पास चला आया- ‘‘ जरू ! आप कहवा पीएँ! म भी पी के आता ।ँ “ ऐसा कहते ए शखे िच ली ने जज साहब को कहवे का सकोरा थमा दया और खदु कहवाखाने के भीतर चला गया। जज साहब घोड़े पर बठै े-बैठे कहवा का मजा लने े लगे। उधर शखे िच ली ने कहवाखाने के मािलक से कहा-‘‘घोड़े पर जज साहब बठै े ह...उनके लटे ने-बठै ने का इ तजाम करो। ऐसा आदमी िज दगी म बार-बार तो तु हारे कहवाघर म आनेवाला नह । य द तमु ने अ छी खाितरदारी कर दी तो हो सकता है क तु हारा वह वारा- यारा कर द। जाओ, बाहर चारपाई डाल दो और उ ह आ हपवू क बैठने के िलए कहो।’’ घुड़सवार के जज होने क बात सनु कर कहवाघर चलानवे ाले क िस ी-िप ी गुम हो गई। वह तुर त एक चारपाई लेकर बाहर आया और चारपाई िबछाकर बोला-‘‘अहोभा य जज साहब! आप पधारे! इस गरीब को आपक िखदमत का मौका िमला, इससे बड़ी खुशी क या बात हो सकती ह!ै आइए, थोड़ी दरे अपनी दहे को राहत दे लीिजए फर अपनी मंिजल क तरफ बढ़ जाइएगा...।’’
जज साहब ने जब यह िवन पशे कश सुनी तो वे घोड़े से उतर आए और चारपाई पर बठै कर कहवा का मजा लने े लग।े शखे िच ली जब बाहर आया तब जज साहब ने कहा-‘‘शखे िच ली, यह थोड़ी दरे आराम कर लते े ह, फर चलगे। रात भी गहरा गई ह।ै घोड़ा भी थक गया होगा। ठीक है न?’’ शेखिच ली ने कहा-‘‘िबलकु ल ठीक है जरू !’’ इसके बाद शेखिच ली ने कहवाखाने वाले से एक बोरा िलया और उसे जमीन पर िबछाकर लेट गया। थोड़ी ही दरे म उसे न द आ गई और वह गहरी न द सो गया। जज साहब चारपाई पर बठै े थे। कहवा ख म हो चकु ा था। उ ह अपने शरीर म थोड़ी हलचल-सी महसूस ई। वे लेट गए। उ ह पेट म रह-रहकर मीठा दद उठता महसूस आ। उ हां◌ने े आवाज दके र शेखिच ली को जगाया और तबीयत िबगड़ने क बात कही। शेखिच ली तो जानता था क जज साहब के पेट म जमाल गोटा अपना कमाल दखा रहा है इसिलए उसने कु छ कहा नह । थोड़ी ही दरे मं◌े जज साहब उठे और शेखिच ली से कहा- ‘‘शायद मझु े द त आनेवाला ह।ै तमु एक लोटा पानी मँगा दो, म फा रग होकर आता ।ँ ’’ शखे िच ली ने कहवाखाने के मािलक को कहकर एक म पानी बाहर रखवा दया और एक लोटा मँगाकर जज साहब को दे दया। जज साहब पानी लेकर पास के जगं ल म चले गए और थोड़ी दरे के बाद हाँफते ए लौटे और चारपाई पर लेट गए। शखे िच ली ने उ ह प तहाल दखे ा तो कहा-‘‘लगता है क अरसे बाद आपने आज जो घड़ु सवारी क ह,ै उससे ही शायद आपका नाला सरक गया ह.ै ..थोड़ा आराम कर लीिजए। म म पानी भरा आ ह।ै य द कह फर जाना पड़,े ऐसा सोचकर मने यह इ तजाम करवा दया ह।ै म भी जरा लटे लँू। य द कोई म हो तो किहए।’’ जज साहब ने हाथ के इशारे से उसे जाने के िलए कहा और खुद लेट गए। शेखिच ली बोरे पर ल बी ताने सो गया और जज साहब रात-भर जगं ल से िब तर, िब तर से जगं ल करते रह।े सबु ह तक उनक हालत ऐसी हो गई क वे िब तर से िहलना भी नह चाह रहे थ।े कहवाघर के मािलक ने उ ह म ा िपलाया तो उ ह ने थोड़ी राहत महससू क । सुबह शखे िच ली अपनी न द से जागा और जज साहब से पछू ा-‘‘ य जूर! आगे बढ़ने क तयै ारी क जाए?’’ ‘‘अभी थोड़ा ठहरो। चलना होगा तो क गँ ा।’’ जज साहब ने उ र दया। थोड़ी दरे के बाद ही जज साहब लोटा लके र फर जंगल क तरफ जाते दख।े इसी समय एक घोड़े पर सवार दो आदमी कहवाघर प चँ ।े उ ह ने शखे िच ली को घोड़े को
पुचकारकर चारा िखलाते ए दखे ा तो उसे घोड़े का मािलक समझ बठै े। उनम से एक ने शेखिच ली से पछू ा-‘‘घोड़ा बचे ोग?े हम दरू जाना ह।ै हम दो आदमी ह और हमारे पास एक ही घोड़ा ह।ै ’’ ‘‘हा,ँ यह घोड़ा िबकाऊ ह।ै एक हजार पए दो और घोड़ा लेकर उड़ान भरो। दरे करोगे तो सौदा नह क ँ गा, समझ?े “ शखे िच ली ने सनक अ दाज मं◌े कहा। उस आदमी ने एक हजार पए शखे िच ली को थमा दये। उसने घोड़े क लगाम उसे थमाते ए कहा-‘‘इस घोड़े को म ब त यार करता था...इसे अब ज दी ले जाओ, कह मेरा मोह न जाग जाए...हा,ँ यादगार के प म मझु े इसक दमु के बाल काट लने े दो।’’ शेखिच ली ने घोड़े क दमु के बाल काट िलये और उसके खरीदार को तस ली दी क दो-चार महीने म इसक दमु के और शानदार बाल िनकल आएँग।े दमु के बाल कट जाने के बाद वह आदमी घोड़ा लेकर चला गया। इधर शेखिच ली ने दमु के बाल को एक चहू े क िबल म घुसड़े दया और फर उसे पकड़कर चीखने लगा-‘‘ जूर, जज साहब, दिे खए... या गजब हो रहा ह.ै ..आपका घोड़ा जमीन म◌ं े धसँ ा जा रहा ह.ै ..ज दी आइए... अपनी आखँ ा◌ं े से दिे खए यह अनहोनी।’’ जज साहब जंगल से फा रग होकर लौटे तो पाया क शेखिच ली घोड़े का दमु पकड़े ख च रहा है और चीख रहा ह-ै ‘‘ जरू ! दिे खए यह कै सी अनहोनी! न कभी दखे ा न सनु ा। चहू े के पीछे घोड़ा िबल म समा गया। उसक दमु भी उखड़ रही ह.ै ..या खुदा म या क ँ ?’’ जज साहब भी इस अजूबे को अपनी आखँ से दखे रहे थ।े वे भी दौड़।े शखे िच ली क सहायता के िलए उ ह ने घोड़े क दमु के बाल पकड़े और जोर लगाकर ख चा तो घोड़े का बाल पकड़े वे िचत िगरे और उनके ऊपर शेखिच ली िगरा। जज साहब कभी िबल को दखे त,े कभी अपनी मु ी म दबे घोड़े क दमु के बाल को और कभी खदु पर िगरे शखे िच ली को। कसी तरह शेखिच ली उनके शरीर से उठा। जज साहब भी उठे। शेखिच ली ने कहा-‘‘यह कोई जादईु वाकया-सा लगता है जरू ! एक चहू ा आया। घोड़े के सामने गया और मुड़कर िबल मं◌े घुस गया। फर आपका घोड़ा िबल को सघूँ ने लगा और दखे ते ही दखे ते उसका मँुह िबल मं◌े समा गया। फर आगे क टागँ सिहत आधा शरीर, फर पूरा शरीर। मने उसक दमु पकड़ ली थी िजसके बाल आपक मु ी म ह। मने ब त शोर मचाया मगर कोई फायदा नह आ। आप भी आए तो दरे स।े ’’
जज साहब को जैसे काठ मार गया था। वे सोच रहे थे क आिखर वे ससुराल कै से जाएगँ े? खरै ! उ ह ने कहवाघर के मािलक से कहकर एक घोड़े का इ तजाम कया। घोड़ा खरीदकर शेखिच ली को साथ लेकर वे अपनी ससुराल प चँ ।े रा ते भर वे खामोशी से सोचते रहे क घोड़ा इस तरह जमीन म िबला नह सकता। ज र घोड़े के गायब होने के पीछे शेखिच ली का हाथ ह।ै मगर कोई सबतू नह है क शेखिच ली ने घोड़े के िलए कोई गोलमाल कया ह।ै इसिलए वे शा त रह।े ससरु ाल प चँ कर उ ह ने साले को बता दया क वे आराम करगे य क उनक तबीयत ठीक नह ह?ै फर उ ह ने शखे िच ली को बुलाकर कहा क अ तबल म घोड़े क मािलश करते रहो। जब तक म जग न जाऊँ , तमु सोना मत और घोड़े क मािलश करना भी ब द मत करना। मगर या ा क थकान के कारण शेखिच ली क पलक भी बोिझल हो चली थ । अ तबल म प चँ कर उसने घोड़े को यह सोचकर बाधँ ने क जहमत नह उठाई क आिखर यह घोड़ा भागकर जाएगा कहाँ? और वह अ तबल म सो गया। जब उसक न द खुली तो घोड़ा वहाँ से गायब था। शखे िच ली ने सोचा, यह नई मसु ीबत आ गई, पता नह कै से दरू होगी! अभी वह यह सोच ही रहा था क उसे अ तबल के कनारे एक सफे द खरगोश दख गया। शखे िच ली ने अ तबल म◌ं े पड़ी र सी का एक फ दा तैयार कया और उस खरगोश को बड़ी चालाक से अपनी िगर त म ले िलया और िनि त होकर उसक मािलश करने लगा। थोड़ी दरे के बाद जज साहब जगे और सीधे अ तबल क ओर यह दखे ने आए क शेखिच ली घोड़े क मािलश कर रहा है या नह । अ तबल मं◌े प चँ कर वे यह दखे कर हरै ान रह गए क शेखिच ली एक खरगोश क मािलश कर रहा ह।ै उ ह ने शेखिच ली से पूछा-‘‘शेखिच ली! घोड़ा कहाँ ह?ै ’’ ‘‘घोड़े क ही मािलश कर रहा ँ जरू !’’ सहज भाव म शखे िच ली ने कहा। ‘‘ या बकते हो? तुम तो खरगोश क मािलश कर रहे हो?’’ जज साहब आपे से बाहर होते ए बोले। ‘‘ जरू ! रात भर क मािलश और िघ से से घोड़ा छोटा होकर खरगोश म त दील हो गया ह,ै इसम मरे ा या कसरू !’’ मासिू मयत से शखे िच ली ने कहा। ‘‘धत!् तुम झूठ बोल रहे हो! न तो घोड़ा चहू े क िबल म जा सकता है और न ही घोड़ा
खरगोश म त दील हो सकता ह।ै तुमने मुझे धोखा दया ह।ै म तु ह नौकरी से िनकालता ।ँ ’’ ‘‘बशे क िनकािलए जरू , मगर शतनामे के अनुसार कान और एक साल के वते न व खुराक के साथ।’’ शेखिच ली ने िवन ता से कहा। जज साहब या कहते, पाँव पटकते ए चले गए। जज साहब के ससरु ालवाल ने शेखिच ली को खाना खाने के िलए बुलाया तो शेखिच ली से पूछा-‘‘जज साहब या पस द करते ह? उनके िलए या परोसा जाना चािहए?’’ शखे िच ली ने सहजता से कहा-‘‘जज साहब का पटे ब त खराब ह।ै उ ह तो मगँू क दालवाली िखचड़ी ही दी जाए तो बेहतर! रही मेरी बात तो आप लोग जो भी उिचत समझ मरे े िलए परोस द।’’ जािहर सी बात है क शखे िच ली क जबद त महे माननवाजी जज साहब क ससरु ाल म ई और जज साहब िखचड़ी सड़ु कने म लगे रह।े खाना ख म होने के बाद जज साहब उठकर सोने चले गए और शेखिच ली बैठकर शाही मुग का मजा लते ा रहा। दरअसल वह चाहता भी था क जज साहब उठकर जाएँ तो वह अपनी जेब म पड़ी जमालगोटे क एक और गोली क करतबबाजी दखाए। जज साहब के उठते ही उसने अपना वाक् -जाल फै लाना शु कर दया। उसने जज साहब क सास से कहा-‘‘माँ जी, जज साहब का पेट ब त खराब ह।ै य द उनके िलए एक िगलास ल सी बन जाए तो ठीक रहगे ा।’’ ल सी बन गई। ल सी कसी और के हाथ मं◌े न पड़ जाए, ऐसा सोचकर शेखिच ली ने कहा-‘‘माँ जी, मुझे ल सी दे द। म जज साहब को िपला दगँू ा और अपने बारे म काम भी पूछ लूँगा...नह तो जज साहब सोचगे क उनक ससुराल आकर म अपने कत को भी भलू गया।’’ जज साहब क सास ने ल सी शेखिच ली को दे दी। शखे िच ली ल सी लेकर उठा और जमालगोटा क गोली ल सी मं◌े डालकर उसे िहलाता-िमलाता आ जज साहब के पास प चँ ा। ब त िवन ता से उसने जज साहब क ओर ल सी बढ़ाते ए कहा-‘‘ जूर! एक िगलास ल सी पी ल। माँ जी ने भजे ा ह।ै इससे आपके पटे को आराम िमलेगा।’’ जज साहब भी जानते थे क ल सी पटे बाधँ ने का काम करती है इसिलए उ ह ने ल सी
ले ली और गटागट पी गए। उ ह ल सी िपलाकर शेखिच ली ने उनसे कहा-‘‘ जूर, मझु े अगर अपने ही कमरे म सोने क इजाजत दे द तो यादा ठीक रहगे ा... या पता, रात- िबरात आपको कसी चीज क ज रत पड़ जाए। आपक तबीयत ठीक नह है न! इसिलए ही बोल रहा .ँ ..बाक जूर क मज ।’’ जज साहब ने सोचा, यह शखे िच ली भी अजीब ह।ै अभी मने इसे िनकालने क बात कही थी, इसक नीयत पर स दहे कया था और यह है क मेरी सहे त क िच ता से दबु ला हो रहा ह।ै उ ह शखे िच ली पर तरस आया और उ ह ने उदारता से कहा-‘‘हाँ, शखे िच ली, घोड़े तो राह लग गए। अब अ तबल म तु हारा या काम, तु हारा यह सोना ठीक रहगे ा।’’ जज साहब क वीकृ ित िमलते ही शेखिच ली जज साहब के कमरे म ही जमीन पर चादर िबछाकर सो गया। थोड़ी दरे म ही जज साहब अपने पटे क बचे नै ी से परेशान हो गए और शेखिच ली से कहा-‘‘शखे िच ली, उठो! मरे े साथ चलो। मझु े मैदान जाना पड़गे ा।’’ शेखिच ली तो इस ि थित का अ दाजा लगा ही चुका था। उसने लेटे-लटे े ही कहा-”आपके िब तर के पीछे एक मतबान ह।ै उसी मं◌े फा रग हो लीिजए। सबु ह इस मतबान को िनबटा दया जाएगा।’’ बचे ारे जज साहब! करते भी या? मजबरू होकर उ ह ने मतबान का उपयोग कया। रात म कई बार उ ह जगना पड़ा। हर बार उ ह ने मतबान का उपयोग कया। सुबह होने से कु छ पहले उनक बचे नै ी शा त ई। तब उ ह ने शखे िच ली को जगाया और कहा-‘‘शखे िच ली, जाओ, इस मतबान को िनबटा आओ।’’ शेखिच ली ने छू टते ही कहा-‘‘आपने मुझे समझ या रखा ह?ै मेरी नौकरी के मसिवदे म यह काम शािमल नह ह.ै ..आप मझु े ऐसा करने के िलए िववश नह कर सकत।े हा,ँ म आपक यह मदद कर सकता ँ क आप यह मतबान उठाकर अपनी काखँ मं◌े दबा ल और म दशु ाले से आपको लपटे दते ा ँ ता क आप जब यहाँ से िनकल तो यह मतबान नह दखे। अभी घर के लोग सोए ए ह। यह काम आप ज दी िनबटा ल तो ठीक, नह तो लोग के जग जाने के बाद आपको इसका भी अवसर नह िमलेगा।’’ जज साहब के पास दसू रा कोई चारा नह था। वे मतबान उठाए, चादर से िलपटे घर से बाहर िनकले और शखे िच ली ने उनके घर के लोग को जगाना शु कया-‘‘माँ जी, उ ठए। भाई साहब, जािगए। दिे खए, जज साहब नाराज होकर जा रहे ह।’’ शखे िच ली क आवाज सुनकर जज साहब क ससुराल के लोग जग गए। बड़ा साला
अपने बहनोई को मनाने के िलए दौड़ा। साले को आता दखे जज साहब और तेज चलने लगे मगर साले ने उ ह पकड़कर रोक ही िलया और बोला-‘‘यह या जीजा! कोई ऐसे भी जाता ह?ै चिलए, लौट चिलए। अ मीजान परेशान हो रही ह।’’ ‘‘नह -नह , म ऐसे नह लौट सकता। मझु े जाने दो, जरा म मैदान होकर आता ।ँ ’’ जज साहब ने कहा। मगर उनके साले ने उनका दशु ाला पकड़ िलया और उसे ख चने लगा। एक झटके म ही दशु ाला साले के हाथ म प चँ गया। दशु ाला हटते ही वातावरण म मल क दगु ध फै ल गई। साले ने जज साहब के हाथ मं◌े मतबान दखे ा तो वह यह दखे ने क कोिशश करने लगा क मतबान म या ह।ै जज साहब इस यास म थे क उनका साला मतबान म झाँक नह सके । इस यास म छीना-झपटी होने लगी और जज साहब के हाथ से मतबान िगरकर टूट गया और उसम जो मल था, वह वहाँ पर फै ल गया। जज साहब ने मजबरू होकर सारी बात साले को बता दी और झपते ए ससुराल लौटे। साले के िलए दलु हन दखे ने क र म अदायगी के बाद जज साहब अपने घर लौट आए। शखे िच ली उनके साथ ही आया। जज साहब ने अपनी बीवी को शेखिच ली क सारी कार तानी बताई और कहा-‘‘बेगम! इस चालबाज और धूत इनसान से मिु पाने का अब एक ही तरीका है क हम लोग कु छ दन के िलए यहाँ से चुपचाप कह चले जाएँ और राशन-पानी पर तालाब दी कर द। भूख क मार से अ छे-अ छ क अ ल ठकाने आ जाती ह।ै यह तो शेखिच ली ह।ै “ बेगम ने हामी भर दी और गपु चपु या ा क तैयारी चलने लगी। कसी तरह शेखिच ली ने यह भाँप िलया। िजस दन जज साहब के कमरे म सामान सहजे कर रखा जाने लगा, उस दन शेखिच ली बेगम सािहबा क बे डगं म घसु कर लटे गया। रात को जज साहब ने गाड़ी मगँ ाई और उस पर सामान लादने का काम शु कर दया तो जज साहब से बे डगं उठी ही नह । उ ह ने बेगम सािहबा से कहा-‘‘अरे, इसम या भर िलया है बगे म आपने? या ा के समय आपका सामान िजतना कम और ह का हो उतना ही अ छा होता ह.ै ..।’’ बगे म च कत थ य क उस बे डगं म◌ं े एक ह का िब तर ही तो उसने बाँधा था। बगे म ने बे डगं को खोला तो उसम से शेखिच ली िनकला और जज साहब को सलाम करते ए कहा-‘‘ जरू , आपको न जाने राह म कब मरे ी ज रत पड़ जाए, ऐसा सोचकर म आपके साथ चल रहा था...।’’
अब जज साहब का धयै जवाब दे चकु ा था। उ ह ने शेखिच ली से कहा-‘‘ल,े मेरा कान काट ले। ल!े यह रही तेरी एक साल क पगार और यह ले खुराक ।’’ उ ह ने अपनी जेब से पए िनकाल-िनकालकर शखे िच ली को थमाए और कहा-‘‘और भी कु छ लने ा हो तो ले मगर अब हम लोगां◌े को ब श द।े ’’ शखे िच ली ने पए अपनी जेब म रख।े कची उठाई और जज साहब का कान ठीक उसी तरह काटा िजस तरह जज साहब ने उन तीन नवयवु क का काटा था। कान को अपनी जेब म डालकर उसने अपना झोला उठाया और जज साहब के घर से िनकलकर उसी सराय के एक कमरे म जाकर ठहर गया य क आनेवाला कल अगले महीने क पहली तारीख म ढलना था। दसू रे दन सराय के चबतू रे पर उसक मुलाकात उन तीन यवु क से ई। शखे िच ली ने अपनी जेब से जज साहब का कटा आ कान िनकालकर मसं रू को थमाया और उनसे िवदा लते े ए कहा-‘‘दो तो! मने अपना वादा पूरा कया। जज को सजा िमल गई। अब म अपनी अ मी और अपनी बेगम से िमलने अपने गाँव जा रहा ।ँ खदु ा ने चाहा तो फर कभी मलु ाकात होगी।’’ चबूतरे पर बठै े तीन यवु क शखे िच ली को जाते ए दखे ते रह।े
काले धागे म िज दगी ससरु ाल से शेखिच ली अपनी बगे म रिजया के साथ अपने घर लौट आया। कु छ दन उसके अ मी-अ बू उसका रंग-ढंग दखे ते रह।े वह दन-भर रिजया बगे म के साथ छतवाले कमरे म गु तगू करता रहता। रिजया के बगैर एक पल भी रहना उसके िलए क ठन था। शेख बद ीन अपने बेटे क इस जीवन-शैली से परेशान थे। उसक अ मी रसीदा बगे म भी मन-ही-मन शखे िच ली पर खफा थ मगर सयं ोगवश कु छ कहती नह थ । एक दन उनसे रहा न गया और शखे िच ली से कहने लग -‘‘बेटा! अब तू प रवारवाला बन चकु ा ह।ै कु छ करने क सोच। कु छ ऐसा कर क दो पैसे कमा सके ...दो पैसे जोड़ सके । बठै े-बैठे तो िज दगी दु ार हो जाएगी और लोग तु ह कािहल समझने लगग।े कब तक जो का प लू थामे कमरे म कै द रहगे ा? जरा बाहर िनकल। घूम- फर। लोग से िमल-जलु । दखे -सीख क दिु नया म◌ं े लोग कै स-े कै से काम कर रहे ह और कै से पैसा कमा रहे ह। अ छी िज दगी जीने के िलए पैसे क भी ज रत ह।ै और पसै ा कमाने के िलए दहे चलाना भी ज री ह।ै ऐसा कर, आज ही बाहर जा और कोई काम तलाश कर कु छ पसै े कमा कर आ।’’ शेखिच ली के दल म अ मी क बात लग गई। वैसे भी वह अपनी अ मी क कही ई बात नह टालता था। वह तैयार आ और चुपचाप घर से बाहर िनकल आया। घर से बाहर िनकलकर वह सोचने लगा क कधर जाए और या काम करे। कहाँ काम खोज।े अ मी ने तो कह दया-जा, कमा के आ...यहाँ मुझे पता ही नह है क या करके कमाई क जा सकती ह।ै अपने मन म इसी तरह क उधेड़बनु िलये शखे िच ली धीरे-धीरे चला जा रहा था क रा ते म उसे एक कसान िमल गया। उसने बिे हचक राह चलते उस कसान से कहा-‘‘जनाब, मेरी अ मी ने मझु े कमाकर लौटने को कहा ह।ै म कसी भी तरह का काम करने को तैयार ँ य द मुझे उसके बदले म वािजब मजदरू ी िमल जाए।’’ उस कसान ने शेखिच ली को ऊपर से नीचे तक दखे ा और कहा- ‘‘बरखरु दार! मुझे भी एक आदमी चािहए जो कु हाड़ी चलाना जानता हो। दरअसल मेरा एक बगीचा है िजसम फलदार पड़े लगे ए ह। इन पेड़ क गैर-ज री डािलयाँ काटनी ह। म परू े बगीचे के पेड़ क उन डािलय पर िनशान बनाकर छोड़ दगँू ा िज ह काटकर पेड़ से अलग करना ह।ै एक डाल काटने का एक पया द◌ँ गू ा। तमु कु हाड़ी चला सकते हो तो चलो मेरे साथ। कम से कम छह महीने का काम ह।ै कई बीघे म फै ला है मेरा फलदार पड़े का बागान।’’ ‘‘हाँ, म कु हाड़ी चला सकता ।ँ मगर मेरे पास कु हाड़ी नह ह।ै ’’ शखे िच ली ने कसान से कहा।
‘‘म तु ह कु हाड़ी दे दगँू ा। मरे े पास कु हाड़ी ह।ै मुझे लगता है क दन भर म तमु दस डािलयाँ काट लोग.े ..यानी कम से कम दस पए कमाकर अपने घर लौटोग।े और दस पए एक प रवार के िलए ब त होते ह, य ? मंजूर हो तो चलो मेरे साथ।’’ शखे िच ली ने तरु त हामी भर दी और उस कसान के साथ चला गया। कसान ने उसे कु हाड़ी दी और अपने बागान म ले गया। सचमचु वह बागान जगं ल क तरह दरू तक फै ला आ था। शेखिच ली ने दखे ा, बागान म आम, लीची, जामनु , फालसा, अम द, शरीफा, नीबू जैसे अनके क म के फला◌ं े के पेड़ थ।े बागान के कनारे- कनारे के ले के पड़े करीने से उगाए गए थ।े कसान ने उससे कहा-‘‘चलो, अब तमु डाल काटने म लगो।“ एक पेड़ क ितरछी और बते रतीब डाल क ओर इशारा करते ए कसान ने शखे िच ली से कहा-”बरखरु दार! अब तमु इस डाल को काट लो तब तक म सामनवे ाले पेड़ क उन डािलय पर िनशान लगा दते ा ँ िज ह काटना ह।ै ’’ शेखिच ली उस ितरछी डाल पर चढ़ गया और उसे काटने लगा। कसान सामनेवाले पड़े के झुरमटु म गायब हो चुका था। खट्-खट्! खट्-खट्! शखे िच ली डाली पर परू े जोश से कु हाड़ी चला रहा था। थोड़ी दरे के बाद एक आदमी उधर से गुजरा। उसने दखे ा क शेखिच ली उसी डाल को काट रहा है िजस पर बठै ा ह।ै उसने तुर त उसे आवाज दी- ‘‘अरे लड़के ! कु हाड़ी चलाना ब द करो, नह तो डाल के साथ तुम भी िगरोगे और उतनी ऊँ चाई से िगरने से तु हारी मौत भी हो सकती ह।ै ’’ उस आदमी क बात सुनकर शेखिच ली तुर त पड़े से उतरा और उससे पूछने लगा-‘‘ य भाई, यह तमु ने कै से जाना क म पड़े से डाली के साथ िगर पड़गूँ ा और मेरी मौत हो जाएगी?’’ उस ि ने सोचा क कह द-े ‘अबे िजस डाल पर बठै ा ह.ै ..उसी को काटेगा तो तरे ी मौत नह होगी तो और या होगा?’ मगर वह चपु रहा, कु छ बोला नह । तब बेचनै होकर शखे िच ली ने पछू ा-‘‘ या तमु भिव य ा हो?’’ उस ि ने सोचा क मेरे सामने खड़ा यह नौजवान िनरामूख ह।ै इसके पास सामा य ान ही नह ह।ै इसिलए इसके सामने भिव य ा बनने म कोई हज नह । उसने हामी भर दी। शेखिच ली तुर त उ साह म आ गया और बोला-‘‘भिव य ा हो तो कोई उपाय
बताओ िजससे म डािलयाँ काटूँ तो उसके साथ िगरकर म ँ नह ।’’ ‘‘हा,ँ म उपाय बता सकता ँ मगर उसके िलए तु ह चार आने दने े पड़गे।’’ शखे िच ली ने जबे से एक चव ी िनकालकर उस आदमी को थमा दी और उस आदमी ने एक काला धागा उसके गले म बाँध दया और कहा- ‘‘बेटे, जब तक यह काला धागा तु हारे गले म रहगे ा, तुम महफू ज रहोग।े हा,ँ एक बात पर अमल करना क िजस डाल को काटो उस पर खदु न खड़े रहना और न बैठना। हमेशा दसू री डाल पर बैठकर उस डाल पर कु हाड़ी चलाना िजसे तमु काट रहे हो।’’ इतना कहकर वह आदमी चला गया। शेखिच ली फर उस डाल को काटने के िलए पड़े पर चढ़ गया और उस आदमी क बात पर अमल करते ए दसू री डाल पर चढ़कर पहलवे ाली डाल पर कु हाड़ी चलाने लगा। थोड़ी ही दरे म वह डाल कटकर पड़े से अलग हो गई और ‘चरर’ करती ई पड़े से नीचे िगर पड़ी। डाल काटकर शेखिच ली पड़े के नीचे आकर सु ताने लगा। थोड़ी दरे के बाद कसान उसके पास आ गया और शेखिच ली को एक ऐसे पेड़ के पास ले गया िजसम दस-प ह डािलय पर काटे जाने के िलए िनशान लगाए गए थे। कसान ने शखे िच ली को आम का वह सायादार वृ दखाते ए कहा-”बटे े, य द इस पेड़ क डािलय का सफाया तमु ने आज ही कर दया तो समझो क आज तु हारी कमाई प ह पए क होगी। इस पेड़ पर चैदह डािलयाँ काटनी ह। कु छ पतली और कु छ मोटी डािलयाँ मगर सभी डाली के एक-एक पए...और एक डाल तमु काटकर आए हो...शाम तक काम िनपटाओ और प ह पए लके र जाओ।’’ शखे िच ली तुर त पड़े पर चढ़ गया। शाम से पहले ही उसने पेड़ क चैदह डािलयाँ काट डाल । पेड़ से उतरकर सभी कटी ई डािलय को एक जगह पर एक ा करके वह बठै गया और कसान के आने का इ तजार करने लगा। शाम होते ही कसान लौटा। उसने शखे िच ली का काम दखे ा और उसे प ह पए दके र कहा-‘‘कल समय पर आ जाना। म तु ह यह िमलगँू ा। मुझे तु हारा काम पस द आया ह।ै लगता है क तुम एक दन म बीस पए तक कमा लोगे। मुझे बागान के पेड़ क सफाई ज द से ज द करनी ह।ै मगर म यह काम िसफ तमु से कराऊँ गा य क तुम मझु े ईमानदार लगते हो।’’ और इस तरह अपनी जबे म प ह पए डालकर शखे िच ली म ती म अपने घर आया और घर प चँ कर अ मी के हाथ म◌ं े प ह पए रखते ए कहा-‘‘ले अ मी, यह आज क कमाई।’’
रसीदा बगे म बटे े के इस अ दाज पर ब त खुश और कहा-‘‘चल बेटे, हाथ-महँु धोकर अपने कमरे म जाकर कपड़े बदल और रिजया को भजे द।े तरे े िलए उसी के हाथ से ना ता भजे ती ।ँ ’’ शखे िच ली हाथ-महँु धोकर अपने कमरे म प चँ गया और कपड़े उतारकर पाजामा और गंजी पहनकर ना ते क ती ा करने लगा। रिजया उसके िलए ना ता लके र आ गई। वह ना ता करने लगा। तभी रिजया क नजर उसके गले से लटके काले धागे पर गई। रिजया ने पूछा-‘‘अरे! तु हारे गले म यह कै सा धागा बधँ ा ह?ै ’’ ‘‘यह धागा एक नजूमी ने दया ह।ै यह जब तक मेरे गले म रहगे ा तब तक म महफू ज र गँ ा...’’ शेखिच ली ने रिजया बेगम को बताया। ‘‘अरे, यह कै सा अ धिव ास! मतलब यह क धागा नह रहने पर तमु महफू ज नह रहोग?े ’’ रिजया बेगम ने पछू ा। ‘‘धागा टूटने पर मेरी मौत हो जाएगी।’’ शेखिच ली ने कहा। ‘‘म नह मानती।’’ कहते ए रिजया बगे म ने एक झटके म वह धागा तोड़ दया। धागा टूटते ही शखे िच ली ने खाना छोड़ दया और उसी जगह पर मदु क तरह िचत पड़ गया और बोला-‘‘म मर गया।’’ रिजया बेगम ने उसे ब त समझाया क तमु मरे नह हो, िज दा हो मगर शेखिच ली पड़ा रहा, कु छ बोला भी नह । हारकर रिजया बगे म गई और अपनी सास को सारी बात बताकर उ ह बुला लाई। रसीदा बेगम ने कमरे म आते ही हाथ पकड़कर शेखिच ली को झटके से उठाकर बठै ा दया और डाटँ ते ए बोल -‘‘ य इस तरह का नाटक करते हो...बचे ारी रिजया क हालत खराब ह।ै यह भी कोई तरीका है मजाक करने का?’’ ‘‘म मजाक नह कर रहा अ मी! नजमू ी ने कहा था क जब तक वह धागा तु हारे गले म ह,ै तमु महफू ज रहोग।े अब रिजया ने वह धागा तोड़ डाला तो म महफू ज नह रहा-मर गया!’’ शेखिच ली ने कहा। रसीदा बगे म ने उसके गाल पर यार से एक चपत जमाई और कहा- ‘‘बटे े, मर तु हारे दु मन! तमु मरे नह हो, िज दा हो और मझु से बात कर रहे हो...कभी कसी मुद को बात करते दखे ा है तुमन?े ’’
शेखिच ली को अपने िज दा होने का सबतू िमल गया। उसने हसँ ते ए कहा-‘‘हा,ँ अ मी! म तो िज दा ।ँ बस, म जरा रिजया से मजाक कर रहा था-ह..ह..ह!’’
कु यात इनामी डकै त का सफाया अभी शेखिच ली को शखे मतु जु ा अली क जम दारी का काम-काज दखे ते कु छ दन ही बीते थे क एक दन रयाया से बातचीत करते समय शखे मुतजु ा अली को अपनी जम दारी क सीमा म एक डकै त िगरोह के स य होने क खबर िमली। शेख मतु जु ा अली ने तुर त शखे िच ली को बलु ाकर अपने पास बैठा िलया और उससे कहा-‘‘बरखरु दार! एक दन मने तु ह कहा था, रयाया से बात करते रहना हमेशा फायदमे द ह।ै इससे जानकारी िमलती है और जानकारी ही स तनत चलाने क ताकत दते ी ह।ै ’’ ‘‘जी हाँ, जरू ! िजस दन म आपसे पहली बार िमला था, उस दन ही आपने यह बात मुझसे कही थी। मुझे याद ह।ै ’’ शेखिच ली ने कहा। ‘‘शाबाश! अब व आया है तु ह बताने का क स तनत चलानवे ाल को जो जानका रयाँ रआया से िमलती ह, वे ताकत कै से बन जाती ह।’’ शेख मतु जु ा अली ने शेखिच ली से कहा-‘‘अब हमारी बात यान से सनु ो।’’ शेखिच ली को पास बठै ाकर शखे मुतुजा अली फर अपनी जम दारी म बसे लोग से बात करने लगा-‘‘हाँ िमया,ँ अब तुम बताओ क तु ह य लग रहा है क हमारे इलाके म कभी भी इनामी डकै त िगरोह घसु आएगा?’’ ‘‘शेख साहब! इन जु मी डकै त को दखे ते ही गोली मार दने े का आदशे अं जे ी कू मत ने दे दया ह।ै पिु लस के िसपाही लगातार उनके िलए दिबश डाल रहे ह। शहर म मुनादी करा दी गई है क य द कसी होटल या घर म◌ं े उ ह खाना िमला तो डकै त को खाना िखलानेवाल को उसका सगा माना जाएगा और सरकार ऐसे लोग से स ती से पशे आएगी।. ..आलम यह है क शहर म◌ं े शाम होते-होते घर के दरवाजे-िखड़ कयाँ ब द हो जाते ह। जगह-जगह महु ला सुर ा सिमितयाँ ग ठत हो गई ह िजसके कारण रातां◌े को हरबा-हिथयार के साथ नौजवान मुह ले क सुर ा के िलए ग त लगाते ह। ऐसे म इस आततायी डकै त िगरोह को कह तो पनाह लेनी होगी। अपना गाँव शहर के नजदीक ह।ै आस-पास जंगल भी ह।ै डकै त को छु पने के िलए इससे अ छी जगह कोई दसू री कहाँ िमलगे ी? इसी से लगता है क डकै त शहर से भागगे तो इसी गाँव का ख करगे।’’ ‘‘ !ँ “ शखे मतु जु ा अली ने एक ल बी कं ारी भरी और फर पूछा- ‘‘ कतना इनाम है इस िगरोह पर?’’ ”इस िगरोह को तो छोिड़ ए जरू ! इसके सरगना लखना डकै त पर प ह हजार पए का
इनाम ह-ै िज दा या मदु ा लानेवाले को िमलेगा। इस िगरोह म कतने लोग ह, इसका ठीक पता कसी को नह ह।ै डाकू मगं ल सहं , डाकू हीरा सहं , डाकू मौजा सहं , गनौर डकै त और डाकू सलु मे ान के नाम पाचँ -पाँच हजार पए का इनाम ह।ै यह तो अ छा आ क कल म कचहरी गया...वह यह सब मालमू आ तो म भागा-भागा आपके पास आ गया। शहर म तो सने ा क पलटन घमू रही है जरू ! हम गाँववाल क ‘र ा’ के िलए तो आपका ही सहारा ह।ै आप ही हमारी सरकार ह, आप ही माई-बाप!’’ ‘‘ !ँ “ शखे मतु ुजा अली ने फर ल बी कं ारी भरी और अपनी दाढ़ी सहलाते ए बोला-‘‘तमु समझदार आदमी हो, लाठी म तले िपलाना शु कर दो। मरे े रहते ए तु ह डरने क कोई ज रत नह । वैसे भी तुमम तो इतना दमखम है क दो-चार जवान को अभी भी पछाड़ सकते हो। जाओ और मौज करो। जो होगा, दखे ा जाएगा। सौ बात क एक बात! डरना नह है और अगर कोई आए तो िभड़ जाना ह.ै ..पीछे नह हटना है और पीठ नह दखाना ह।ै दो-चार लाश िगर भी जाएँ तो परवाह नह । कोट-कचहरी, थाना-पुिलस से हम िनबट लगे!...अब जाओ और मौज करो. ..कु छ भी नया मालमू पड़े तो रात-बरे ात भी आ जाना, हम तमु से िमल लगे। वैसे तु ह कोई रोके गा नह । सभी जानते ह क तमु मरे े खास आदमी हो।’’ उस आदमी ने अपने साथ आए ामीण को उठने का इशारा कया और शेख मतु ुजा अली को आदाब करता आ वहाँ से चला गया। इसके बाद शखे मतु ुजा अली ने अपने लठैत को बलु ाकर कहा-‘‘तुम लोग अब लाठी लके र नह , भाले के साथ पहरा दोगे। य द कोई भी कले म घसु ने क कोिशश करे तो बिे हचक भाला मार दने ा।“ कले क सरु ा के िलए तैनात अिधका रय को भी शेख मतु ुजा अली ने तलब कया और सबको अपनी सरु ा व था चाक-चैब द कर लेने क चेतावनी दे दी। अपनी व था से स तु होकर शखे मुतजु ा अली ने शखे िच ली से पछू ा-‘‘कु छ समझे बरखरु दार! मने यह सब य कया?...नह समझे होगे... म समझाता ।ँ मने उस आदमी को लाठी म तेल िपलाने के िलए कहा, इसका मतलब यह आ क वह अपनी सुर ा आप करे। ऐसे भी डकै त य द इस गावँ म आएगँ े तो इन गरीब के घर म या डाका डालगे? उ ह इनके घर म िमलेगा या? उनका िनशाना तो हम ह ग।े डकै त के आने क स भावना क सचू ना समय रहते िमल जाने से हम अपनी सरु ा के इ तजामात कर लेने का अवसर िमल गया है और तुमने दखे ा क मने यह इ तजाम तुर त कर िलया। उस आदमी को मने अपना खास आदमी कहकर चारा डाला है क ऐसी कोई भी खबर िमले तो वह सीधे मरे े पास आकर बताएगा। इन गरीब का उपयोग स तनत के शीष पर बैठा आ आदमी इसी तरह से करता ह।ै ...दरअसल तुमम म एक यो य शासक क स भावना दखे रहा ँ िजसके कारण ये बात तु ह समझा रहा ।ँ ज दी ही इस कले क जवाबदहे ी म तु ह स प दने ा
चाहता ँ ता क म कारोबार पर परू ी तरह से यान दे सकँू ।’’ शखे िच ली चुपचाप सनु ता रहा। कु छ बोला नह । दसू रे दन वह जगा ही था क ससरु ाल से उसका बलु ावा आ गया। साले क शादी तय होनवे ाली थी। अवसर ऐसा था क वह टाल नह सकता था। इसिलए वह शेख मतु जु ा अली के पास ससरु ाल जाने क इजाजत लने े गया। मतु जु ा अली ने उसक बात सनु और कहा-‘‘ससरु ाल जाना है तो ज र जाओ बरखरु दार! मगर ससुरालवाल को लगना चािहए क तमु शखे मुतुजा अली के िनजी सलाहकार हो। तमु मेरा सफे द घोड़ा ले लो और म तु हारे िलए एक तलवार भी भजे दते ा .ँ ..एक सु दर पगड़ी भी भेजँगू ा... बाँध लेना। कपड़े ढंग से पहनोग!े ’’ शेखिच ली इजाजत लेकर लौट आया। शेख मतु ुजा अली ने उसके िलए तलवार और पगड़ी ही नह भजे ी बि क रेशमी सलवार और जालीदार कु ता भी भेज दया। शखे िच ली उन कपड़ को पहनते समय सोच रहा था-ये बड़े लोग अपनी शान और शोहरत के िलए या- या नह करते ह! कपड़े पहन, तलवार कमर म बाँधकर शेखिच ली अ तबल म गया और सफे द घोड़ा िनकालकर उस पर बठै ा। वह वहाँ से कू च करने ही वाला था क उसक अ मी एक थलै ी ल डू िलये ए आ और उसे दते े ए बोल -‘‘बटे ा, तु हारे िलए ज दी-ज दी यह ल डू बनाए ह, लते ा जा। रा ते म भखू लगगे ी तब खा लेना।’’ शेखिच ली ने अपनी अ मी से ल डू ले िलया और घोड़े को एड़ लगाई। घोड़ा दौड़ने लगा। अभी वे लोग कले क सरहद म ही थे क एक ग े को छलागँ मारकर पार करने के िलए शखे िच ली का घोड़ा कू दा और शेखिच ली के हाथ से ल डू का थैला छू टकर ग े के पास रखे एक टब म जा िगरा। इस टब मं◌े सफे द दधू जसै ा पदाथ भरा आ था िजसमं◌े थैला डूब गया। शखे िच ली घोड़े से उतर गया और थैले को टब से िनकाल िलया। उसने कु छ ग ध-सी महससू क तो घोड़े पर बैठते-बठै ते बुदबदु ाया-”यह कै सा दधू है िजससे इतनी अजीब ग ध आ रही ह?ै “ शखे िच ली का घोड़ा फर अपनी र तार म दौड़ने लगा। शेखिच ली को अपनी ससुराल जाने के िलए जगं ल से होकर गजु रना था। जब जंगल आ गया तब शखे िच ली को लखना डकै त क याद आ गई। वह िसहर उठा क कह उस भगोड़े डाकू का िगरोह इस जंगल म
पनाह न िलये हो। कु छ दरू ही उसका घोड़ा जंगल क सड़क पर दौड़ा होगा क छह मु टंड ने घोड़े क राह रोक ली और फु त से घोड़े को चार तरफ से घेर िलया। शखे िच ली क समझ म कु छ नह आया। वह अचकचाया आ घोड़े को तलवार क नोक पर घेरनेवाल को दखे ता रहा। शखे िच ली के घोड़े क लगाम अपने हाथ मं◌े झपटते ए एक मु टंडे ने कहा-‘‘लखना डकै त ँ म! तु हारे पास जो कु छ भी ह,ै उसे मरे े हवाले कर दो...।’’ ‘‘मरे े पास बस कु छ ल डू ह जो इस थलै े म ब द ह...ले लो!’’ शेखिच ली ने कहा और लखना डकै त क तरफ अपना थलै ा बढ़ा दया। उसे इन डकै त से डर नह लग रहा था बि क इस बात क खुशी हो रही थी क उसक आशकं ा सही सािबत ई, लखना डकै त उसे जगं ल म िमल गया। थलै ा िमलते ही लखना डकै त उसम से ल डू िनकाल-िनकालकर अपने सािथय को दने े लगा। घोड़े को घेरकर सभी ल डू खाने लगे। उनम से एक डकै त ने कहा-‘‘ब त अजीब वाद है इस ल डू का...इससे ऐसी ग ध आ रही है जसै ी ग ध क ड़े मारनेवाली दवा म होती ह।ै ’’ लखना डकै त ने अपने उस साथी को घरू कर दखे ा और बोला-‘‘बसे ी बक-बक मत कर और चपु चाप जो िमला ह,ै खा ले! इस जंगल म तो कसी पड़े पर फल भी नह दख रहा...और या खाएगा...बड़ा आया है वाद दखे नेवाला!“ सबने चार-चार ल डू खाए। मतलब यह क अ मी ने शखे िच ली को चैबीस ल डू दए थे जो टब म िगर गए थे। दरअसल उस टब म क टनाशक दवा रखी थी िजसका िछड़काव कले के िविभ भाग म कया जाना था। शखे िच ली ने टब के सफे द तरल पदाथ को दधू समझ िलया था। नतीजा यह आ क टब म िगरने के कारण सारे ल डू िवषैले हो गए। और उ ह खा लने े के बाद िवष के भाव से सभी छह डकै त अपनी-अपनी जगह ही लढ़ु क गए। शखे िच ली ने घोड़े से उतरकर दखे ा तो सभी डकै त मौत का िशकार हो चुके थे। शेखिच ली ने चैन क साँस ली। ऊपरवाले को ध यवाद दया और अपनी तलवार िनकालकर सभी डकै त का बायाँ कान काट-काटकर उसी थैले म रख िलया िजसम अ मी ने उसे ल डू दये थ।े इसके बाद शखे िच ली अपने ससुराल चला गया। साले के िलए लड़क दखे ने क र म ई फर दोन प म शादी क रजाम दी ई और अगँ ठू ी-बदल सगाई ई। चार-पाँच दन शेखिच ली ने ससरु ाली हसँ ी- ठठोली म◌ं े िबताए फर अपने गावँ क ओर घोड़े पर सवार होकर चल पड़ा। कले म वशे से पवू ही उसे गाँव के एक आदमी ने बताया क लखना डाकू अपने िगरोह
के सािथय के साथ मार िगराया गया ह।ै पड़ोसी शहर के थानदे ार ने इस परू े िगरोह का सफाया अके ले कया ह।ै सरकार उसे इनाम दने वे ाली ह।ै इनाम दने े के िलए थाने म एक जलसा होगा। उस जलसे म गाँव के मिु खया को भी बलु ाया गया ह।ै मिु खया के हरकारे ने ही सबसे पहले उन लाश को दखे ा था। थानदे ार ने तो बाद म बताया क डाकु का सफाया उसने कया ह।ै शखे िच ली को जोर का झटका लगा। उसने घोड़ा दौड़ाया और सीधे शखे मतु जु ा अली के पास जाकर डाकु के मरने क सारी घटना सही-सही बता दी। सारी बात सनु कर मतु ुजा अली ने एक ल बी कं ार भरी और पछू ा-‘‘डकै त के कटे कान तु हारे पास ही ह न?’’ ‘‘जी हा।ँ ’’ शखे िच ली ने झोला शेख मुतजु ा अली के सामने कर दया। शेख मतु ुजा अली ने कहा-‘‘तो इसका मतलब है क इनाम तु ह िमलना चािहए। यह अ छी बात है क इन डकै त क लाश के िलए अभी तक उनका कोई सगा सामने नह आया है िजसके कारण उन लाश का पो टमाटम अभी नह हो पाया ह।ै कानूनी तौर पर िशना त हो जाने पर ही लाश का पो टमाटम होगा और उनके सग को अि तम सं कार के िलए लाश स पी जाएगी।...तुम ठहरो, म अभी आता ।ँ मेरे िलए भी एक घोड़ा मगँ वा लो। अभी हम शहर चलना होगा।“ थोड़ी ही दरे म शेख मतु जु ा अली और शेखिच ली घोड़े पर सवार होकर शहर क ओर जा रहे थ।े शहर प चँ कर सीधे वे लोग िजला कल टर से िमले और बताया क शेखिच ली वह असली आदमी है िजसने उन आततायी डकै त को अके ले अपनी सूझ-बझू से मार िगराया। चँू क उसका अपने साले क शादी म जाना अिनवाय था इसिलए िजलािधकारी को इस बात क सूचना दने े म दरे ई। इस तरह शखे िच ली क दरखा त िजलािधकारी तक प चँ गई। शखे िच ली क तरफ से शेख मतु ुजा अली ने िजलािधकारी से कहा- ”डकै त क सभी लाश म कु छ खास बात ह।ै आप इन डकै त को मारने का ेय लने वे ाले श स से पछू क वह खास बात या है और य द वह नह बता सके ...तो हम माण सिहत वह खास बात बताएगँ ।े “ िजलािधकारी ने पुिलस अधी क को बलु ाकर सारी ि थितय और दाव से अवगत कराया। थानेदार को बुलाकर उससे पछू ताछ ई मगर थानदे ार यह नह बता पाया क उन लाश म िवशेष या ह।ै फर शेखिच ली और शेख मतु जु ा अली को बलु वाया गया तब शासन के सामने शेखिच ली ने यह त य रखा क सभी छह लाश का बायाँ कान कटा आ ह।ै
शवगृह म सभी छह लाश का मुआयना आ। शेखिच ली क बात सही पाई गई। शेखिच ली ने अपने झोले से िनकालकर बारी-बारी से सभी लाश मं◌े कान लगाकर िजलािधकारी को मािणत कर दखाया क उसके पास जो कान थ,े वे सभी इन शव के ही कान थे। िजलािधकारी और पिु लस अधी क ने शेखिच ली को उसक सूझ-बूझ और दलरे ी के िलए शाबाशी दी और उसे चालीस हजार पए के इनाम का हकदार माना। कु छ दन बीतने के बाद शखे िच ली के पते से िजलािधकारी का एक शसं ा-प ा और चालीस हजार पए का एक चेक शखे िच ली को िमला। शेख मुतजु ा अली ने शखे िच ली को अपने साथ बक ले जाकर उसका खाता खलु वाया और उसम उसके नाम का चके जमा करा दया। इस तरह कु यात डकै त के खा मे का इनाम िमलने के कारण शखे िच ली का नाम उसके गावँ के ब े-ब े क जुबान पर आ गया। उसके गाँव के लोग अब उसे स मान क -ि से दखे ने लगे थ।े
न रहगे ा बाँस, न बजेगी बाँसुरी शेखिच ली ने अपनी महे नत से कु छ पैसे अ जत कए और धीरे-धीरे इस लायक भी हो गया क अपनी पस द क कोई चीज खरीद ल।े बचपन से ही उसका दल एक घोड़े के िलए मचलता था। ायः वह सोचता था क य द उसके पास पसै े ह गे तब वह भी अपने िलए घोड़ा खरीदगे ा। कु छ पैसे बचाने के बाद उसने रिजया बेगम से अपनी दली तम ा बताई तो रिजया भी यह सनु कर खुशी से मचल उठी। उसने कहा-‘‘हा!ँ बेहतर है क अपने दरवाजे पर भी एक घोड़ा हो। कभी-कभी मेरा मन भी अपनी अ मी और अ बू से िमलने के िलए मचलता ह।ै य द अपना घोड़ा होगा तो सुबह हम लोग चलगे और अ मी-अ बू से िमलकर शाम को लौट आएँगे।’’ प ी से बढ़ावा िमलने पर शखे िच ली पैसे लेकर िनकल गया घोड़ा खरीदने के िलए। मगर उसके पास िजतने पैसे थे उतने म घोड़ा तो नह िमला मगर एक दबु ली-पतली बीमार-सी घोड़ी िमल गई। उसने वही थोड़ी खरीदकर स तोष कर िलया। वह घोड़ी को लेकर पदै ल ही घर आया। घर के पास प चँ ने पर उसे एक आदमी ने टोका-‘‘शेखिच ली! तुम भी अजीब इनसान हो। घोड़ी तु हारे साथ है फर भी पदै ल चल रहे हो?’’ शेखिच ली तरु त घोड़ी पर बैठ गया और अपने घर प चँ गया। घोड़ी से उतरकर उसने अ मी और रिजया को आवाज लगाई। जब दोन बाहर आ तब उसने कहा-‘‘दखे ो, बचत का कमाल! अपनी बचत से मने यह घोड़ी खरीदी ह।ै ’’ दबु ली-पतली घोड़ी को दखे कर उसक अ मी ने कहा-‘‘ठीक है बेटा... मगर तु हारी घोड़ी बीमार-सी दखती ह।ै इसे रोज भरपरू खाना िखलाना होगा...कु छ दन लगग,े घोड़ी ठीक दखने लगेगी।“ घोड़ी लाए एक स ाह बीत चला था। रिजया बेगम एक दन सबु ह- सबु ह शखे िच ली से मनुहार करने लगी-”आज मुझे अ मी क बड़ी याद आ रही ह।ै चलो न! अपनी घोड़ी से चलते ह। शाम तक लौट आएँगे।’’ शखे िच ली मान गया। उसने अपनी बगे म से कहा-‘‘अपनी घोड़ी अभी कमजोर ह।ै ऐसा करो, कु छ दरू तक तुम पदै ल चलो फर कु छ दरू म पदै ल चलँूगा। इस तरह घोड़ी पर एक आदमी का बोझ ही रहगे ा।’’
इस तरह पहली बार अपनी घोड़ी के साथ शखे िच ली क ससरु ाल-या ा आर भ ई। अभी वे लोग थोड़ी ही दरू गए थ।े शखे िच ली घोड़ी पर सवार था। बगे म पैदल चल रही थी क रा ते म एक आदमी ने कहा-‘‘अरे िमयाँ! कै से बेदीद इनसान हो तुम! बेचारी औरत पदै ल चल रही है और तमु घोड़ी पर लदे हो। कु छ तो शम करो!’’ उस आदमी क बात सनु कर शेखिच ली पानी-पानी हो गया और तरु त घोड़ी से उतर गया। उसने रिजया बेगम से कहा-”बगे म! तमु घोड़ी पर बठै ो, म पैदल चलता ।ँ “ रिजया बगे म रा ते म उस ि ारा कही ई बात सुन चकु थी इसिलए उसने इनकार नह कया और घोड़ी पर सवार हो गई। दोन फर आगे बढ़े। लगभग एक कोस चलने के बाद रा ते म फर एक आदमी अपने साथ चल रहे दसू रे आदमी को कोहनी मारते ए बोला-‘‘अबे दखे ! इस जो के गुलाम को! बीवी को घोड़ी पर बठै ाए ए खुद पदै ल चल रहा ह।ै ऐसे ही लोगा◌ं े के कारण औरत हमारे िसर पर सवार हो जाती ह...’’ कु छ दरे सोचने के बाद शखे िच ली ने घोड़ी रोक और खदु भी उस घोड़ी पर बैठ गया। घोड़ी अपनी म रयल चाल से बढ़ने लगी-‘खट्-खट्, प- प, खट्-खट्, टप-् टप!् ’ शखे िच ली क ससुराल जाने के िलए एक नदी के पुल से गुजरना पड़ता था। घोड़ी जब पलु से एक फलाग क दरू ी पर प चँ ी तब एक और आदमी ने शखे िच ली और उसक बेगम को एक ही घोड़ी पर बठै े दखे उ ह िध ारा-”अरे! िनदयी हो तमु लोग। इस बीमार घोड़ी पर दोन चढ़े हो...!“ बेचारा शेखिच ली तरु त घोड़ी से उतर गया और अपनी बगे म से भी घोड़ी से उतर जाने को कहा। अब दोन घोड़ी के साथ पदै ल चलने लगे। अभी वे थोड़ी ही दरू गए थे क फर एक आदमी ने कहा-‘‘हद हो गई मूखता क ! अरे भाई! जब तु हारे पास घोड़ी है तब पदै ल या◌ं े चल रहे हो...घोड़ी पर सवार होकर य नह जात?े ’’ शखे िच ली पर जैसे ोध का दौरा पड़ा, उसने तरु त घोड़ी को अपने क धे पर उठा िलया और उसे ले जाकर नदी म बहा दया, फर रिजया बगे म के साथ भुनभुनाता आ अपनी ससुराल क राह पर चलने लगा-‘न रहगे ा बाँस, न बजगे ी बाँसरु ी! नह चढ़ना है हम घोड़ी पर!’
ससुराल म शखे िच ली क शोहरत शेखिच ली क नई-नई शादी ई थी अ बा के बचपन के दो त महमदू क बेटी स।े उन दन ससुराल म ब को नया नाम दने े क था थी। रसीदा बेगम यानी शखे िच ली क अ मी ने अपनी नई-नवले ी ब को नया नाम दया-रिजया! इस तरह शखे िच ली क प ी रिजया बेगम बन गई। शखे िच ली को अपनी बेगम के साथ ग प लड़ाने म इतना मजा आने लगा क वह दो त के साथ अ बे ाजी करना भूल गया। अपने कमरे से बाहर िनकलकर वह छत पर टहलता रहता था और सड़क से गुजरनेवाल को दखे ा करता था। शादी के बाद उसका यह शौक भी छू ट गया। जब से वह रिजया बगे म को याह कर लाया तब से वह उसके साथ ही अपना समय िबता रहा था। एक दन, दो दन नह , इस तरह परू ा एक स ाह बीत गया। उसक अ मी-अ बू ने उसम आए इस प रवतन को महसूस कया क तु यह सोचकर क आवारागद लड़क क सोहबत म मटरग ती करने से तो बेहतर है क शखे िच ली घर म ही रह।े इस तरह रिजया का मन भी लगा रहगे ा। फर तो शेखिच ली को अपना घर चलाने के िलए कह काम करने जाना ही होगा। ऐसे म उसे रिजया के पास रहने का मौका भी कम िमलेगा। रिजया बेगम को ससुराल म आए सात दन हो चले थे। आठव दन रिजया का भाई और महमूद साहब का बड़ा बेटा शखे बद ीन के घर आया और उ ह अपने अ बा का पगै ाम दया क रिजया और उसके खािव द शखे िच ली को कु छ दन के िलए उनके घर भेज दया जाए ता क घर के दामाद से उनके घर के लोग भली कार प रिचत हो सक। शखे िच ली को जब पता चला क उसक ससुराल से बलु ावा आया है तो वह ब त खुश आ और रिजया बेगम के पास जाकर अपने साले सलीम के आने क सचू ना दी। अपने घर से बलु ावा लके र भाई के आने से रिजया भी ब त खुश ई। सलीम क जोरदार मेहमाननवाजी ई। शखे िच ली ने सलीम को अपने गाँव क हर अ छी चीज दखाई और अपने यार-दो त से िमलवाया। दो दन के बाद बलु ावा-कबूल का स दशे दते े ए शखे बद ीन ने शेखिच ली के साले सलीम से कहा-‘‘महमूद भाई से कहना, रिजया सवा महीने यहाँ रह ले तब शेखिच ली उसे लके र अपनी ससरु ाल जाएगा और फर िजतने दन मज हो उतने दन वह ससुराल म रह लगे ा। हम ब त खुशी होगी क वह अपने नए र तेदार को जानगे ा और उनसे सरोकार और वहार क समझ हािसल करेगा। इंशाअ लाह! ऐसा ही होगा। तुम हमारे यहाँ आए। हम अ छा लगा। जब कभी भी रिजया से िमलने क वािहश
हो, तमु आ जाया करना और अपने अ बा को मेरा आदाब कहना।’’ इस तरह शखे बद ीन ने सलीम को िवदा कया। इसके बाद वे ब को पहली बार मायके भेजने क तैया रय म जटु गए। वे जानते थे क र तेदा रयाँ र मो- रवाज से चलती ह◌ं ै िजसम आदान- दान का खासा मह व होता है इसिलए ब के साथ उसके र तदे ार के बीच बाँटे जा सकनेवाले उपहार क खरीद का िसलिसला शु आ। शखे बद ीन और रसीदा बेगम तकरीबन हर एक-दो दन पर बाजार जाते और रिजया के कसी र तेदार के िलए कोई-न-कोई उपहार खरीद लाते। वे चाहते थे क रिजया जब अपने मायके जाए तो उसका कोई र तदे ार यह नह कह सके क उसके ससरु ालवाल ने उसक क नह समझी। शखे बद ीन रईस तो थे नह क एक दन म सारी खरीदारी कर लते े। उनके पास जसै े-जैसे पसै े आते वैसे-वैसे वे चीज बटोरते रहे और जब सवा महीने बाद शखे िच ली अपनी बेगम के साथ ससरु ाल प चँ ा तब यके र तेदार को दने े के िलए उसके पास कोई-न-कोई उपहार था। शखे िच ली को ससुराल जाने से पहले उसक अ मी रसीदा बगे म से कु छ नसीहत िमली थ , मसलन-सबसे मीठा वहार करना, ऊँ ची जबान म कु छ भी मत बोलना, उतना ही बोलना िजतने से काम चल जाए। ससुराल प चँ ने पर जब शखे िच ली का अपने ससुराली र तेदार से प रचय होने लगा तब वह अपनी अ मी क नसीहत को याद करने लगा। एक र तदे ार ने शेखिच ली से कहा-‘‘मझु खाकसार को नसीर कहते ह।’’ शेखिच ली ने भी अदब से झुककर मु कु राते ए कहा-‘‘मुझ िह ली- िस ली को शखे िच ली कहते ह जनाब नसीर साहब!’’ शेखिच ली का जवाब सुनकर उसके ससुरालवाले खशु ए और उनम चचा भी शु हो गई-‘वाकई महमूद भाई का दामाद बड़े सलीके वाला और िवन ह।ै घमंड नाम क कोई चीज उसम नह ह.ै .. क मत से ही ऐसा दामाद कसी को िमलता ह।ै दखे ो न, हर कसी के िलए उपहार लाया ह।ै छोटा हो या बड़ा, नजदीक का हो या दरू का-सभी र तेदार उसक जेहन म थ,े यह बड़ी बात ह.ै ..दखे ना, यह लड़का ब त तर करेगा और दोन खानदान का नाम रौशन करेगा।’ उस दन शखे िच ली से भट करने उसके ससरु ाली र तदे ार लगातार आते रह।े रिजया बगे म उनसे शेखिच ली का प रचय कराती और वह उ ह उपहार थमाता आ कहता-‘‘यह म आपके िलए लाया -ँ कबलू फरमाएँ।’’ उपहार और शेखिच ली क िवन तापवू क कही गई बात उस र तेदार को भािवत
करने के िलए काफ होत । इस तरह परू े ससरु ाल म शखे िच ली को िवन और वहार- कु शल दामाद का स बोधन ा हो गया। दोपहर के भोजन के बाद शखे िच ली के साले सलीम ने उसे चाँदी का वरक चढ़ाई ई पान क िगलौरी खाने के िलए दी। इससे पहले उसने कभी पान नह खाया था। उसने मँुह म पान क िगलौरी रखी। मीठी िगलौरी थी। उसने समझा क खाने के िलए उसके साले ने कोई मीठा पकवान दया ह।ै ऐसा सोचकर उसने िगलौरी चबाकर खा ली। अ छा लगा...एक नए क म का वाद! िगलौरी खाते ए वह ससरु ाल म अपने िलए दये ए कमरे म चला गया। रिजया बेगम को उसक खाला अपने साथ ले गई थी। शेखिच ली क तीमारदारी के िलए साला सलीम और साली शक ला तनै ात थ।े शेखिच ली अपने कमरे म गया ही था क उसक नजर आदमकद आईने म उभरे अपने अ स पर गई। उसने अपने ह ठ का बदला आ रंग दखे ा और ह ठ के कोने से लाल रंग का खनू जसै ा व रसते ए दखे ा तो चक गया-‘अरे! यह या? मरे े ह ठ के कनारे से खनू बह रहा ह।ै ’ उसने महुँ खोलकर मुँह के अ दर -ि डाली तो पाया क परू ा महँु लाल हो रहा ह।ै वह तरु त कमरे से बाहर आया और नाली पर जाकर थकू फका तो वह भी लाल! उसक िस ी-िप ी गमु हो गई और वह हताश-सा अपने कमरे म आकर रोने लगा। उसी समय उसक साली शक ला उसके कमरे म आई। शेखिच ली को रोता आ दखे कर शक ला ने उससे बड़े यार से पछू ा-‘‘ या आ जीजा? आप रो य रहे ह?’’ ‘‘म रो इसिलए रहा ँ क अभी-अभी मेरी शादी ई ह।ै अपनी बगे म रिजया से अभी म ठीक तरह से िमल भी नह पाया .ँ ..और मुझे कोई भयकं र रोग हो गया ह।ै म खून क कु ि लयाँ कर रहा ।ँ उफ् ! अब म बचनेवाला नह ! मरे े बाद मरे ी रिजया का या होगा! यही सोचकर मझु े रोना आ रहा ह!ै ’’ शेखिच ली क बात सुनकर शक ला घबरा-सी गई और उसने जाकर अपने अ बू-अ मी से सारी बात कह सुना । शखे िच ली क बीमारी क खबर ने उसके ससुराल म सनसनी फै ला दी। दखे ते-ही-दखे ते उसके सारे र तेदार उसके कमरे म प चँ गए। शेखिच ली अपने कमरे म फश के बीचोबीच िचत पड़ा आ था। रह-रहकर उसके मँुह से कराहती ई आवाज िनकल रही थी-‘‘या खुदा! या परवर दगार! या मरे े मौला...मेरे आका... रहम करना...मेरी रिजया पर रहम करना!’’ महमूद िमयाँ और सलीम भी भाग-े भागे शखे िच ली के कमरे म प चँ े और पूछने लगे-‘‘ या आ दामाद जी? इस तरह फश पर य पड़े ह? कोई तकलीफ है तो बताइए... या हक म साहब को बलु वाऊँ ?’’
‘‘नह -नह , अब तो ब त दरे हो चली। मरे ा परू ा मुहँ रह-रहकर खनू से भर जाता ह.ै ..अब भला हक म या करेगा? अ छा यही है क म शाि त से अपने रब को याद करते ए अपने ाण याग द!ँू बस अफसोस इस बात का है क म रिजया क कोई वािहश पूरी नह कर पाया। यह दिे खए, मुहँ के बाहर भी छलककर खनू आ रहा ह।ै ’’ शेखिच ली क बात सुनकर महमदू साहब तो सकते म आ गए मगर शखे िच ली के साले सलीम को याद आ गया क अभी घंटा-भर पहले उसने जीजा को मीठे पान क िगलौरी खाने को दी थी। वह तरु त शेखिच ली का महँु झुककर दखे ने लगा और बोल पड़ा-‘‘उ ठए जीजा! आपको कोई रोग नह आ है और न आपके मुँह से खून िनकल रहा ह।ै आप भले- चगं े ह और आपके मँहु से खून नह , पान क पीक िनकल रही ह।ै मने ही तो आपके िलए पान क िगलौरी मगँ ाई थी...और आपको खाने के िलए दया था। यह उसी िगलौरी से बनी ई पीक ह,ै आप बवे जह दखु ी हो रहे ह।’’ शखे िच ली को उसने अपना महुँ खोलकर दखाते ए कहा-‘‘यह दिे खए, मने िगलौरी खाई ह।ै मेरे मँुह म झाँ कए, वहाँ भी आपको वैसी ही लाल चीज बहती ई दखेगी जसै ा क आपके मुँह म ह।ै ’’ सलीम के मुहँ म झाकँ ने के बाद शखे िच ली को भरोसा हो गया क उसके मुहँ से खून नह बह रहा ह।ै इस घटना को लेकर भी शेखिच ली क चचा उसके ससरु ाल म होने लगी। कम उ वाले र तेदार ने उसे अहमक बेवकू फ कहा जो पान खाने का भी तरीका नह जानता और पीक को खून समझता ह।ै वह उसके ससरु ाल के बड़-े बुजुग ने शेखिच ली को बेहद शरीफ नौजवान कहा जो पान भी नह खाता। शेखिच ली के पान खाने से जो खलबली मची थी वह धीरे-धीरे शा त हो गई ले कन उसके कारण जो आपाधापी मची थी, उससे कसी को भी यह समझ म नह आया क कब शाम ढल गई और रात हो गई। जनानखाने म खाना बनाने क ज दबाजी म पड़ी औरत शेखिच ली क मासिू मयत क चचा करते ए अपना काम िनपटा रही थ । खाना बनकर तैयार आ। द तरखान िबछा और सलीम ने जाकर शखे िच ली को भोजन कर लने े को कहा। भोजन के दौरान शखे िच ली क सास ने फरनी क कटोरी शेखिच ली के आगे सरकाते ए कहा-‘‘बटे ा, मेरी बहन ने तु हारे िलए खासतौर से यह फरनी तैयार क ह।ै तु हारी रिजया ने उसे बताया है क फरनी तु ह ब त पस द ह।ै ’’ शखे िच ली ने फरनी क वह कटोरी उठाई और अपने िसर पर रख ली। उसक यह अटपटी-सी हरकत दखे कर द तरखान पर साथ बठै े साले सलीम ने पछू ा-‘‘ या आ
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