ये बातंे वैद्य जी के अंितःकरण से तनकली थींि। ***
चकमा सेठ चिंदमू ल जब अपनी दकु ान और गोदाम में भरे ु माल को देखते तो मँु से ठिं डी साँस तनकल जाती। य माल कै से त्रबके गा? बकैं का सूद बढ र ा ै, दकू ान का ककराया चढ र ा ै, कमचा ाररयों का वेतन बाकी पडता जाता ै। ये सभी रकमंे गाँठ से देनी पडगे ी। अगर कु छ हदन य ी ाल र ा तो हदवाले के मसवा और ककसी तर जान न बचगे ी। ततस पर भी िरनेवाले तनत्य मसर पर शैतान की तर सवार र ते ै। सेठ चिंदमू ल की दकू ान चाँदनी चौक, हदल्ली में थी। मुफग्स्सल मंे भी कम दकु ानंे थीं।ि जब श र कागंि ्रेस कमेटी ने उनसे ववलायती कपडे की खरीद और त्रबक्री के ववषय मंे प्रततज्ञा करानी चा ी तो उन् ोंने कु छ ध्यान न हदया। बाजार के कम आढततयों ने उनकी देखा-देखी प्रततज्ञा-पत्र पर स्ताषों र करने से इनकार कर हदया। चिदं मू ल को जो नते तृ ्व कभी न नसीब ुआ था, व इस अवसर पर त्रबना ाथ-पैर ह ला ी ममल गया। वे सरकार के खैरख्वा थे। सा ब ब ादरु ों को समय-समय पर डामलयाँ नजर देते थ।े पमु लस से भी घतनष्ठता थी। म्यतु नमसपैमलटी के सदस्य भी थे। कागिं ्रेस के व्यापाररक कायका ्रम का ववरोि करके अमनसभा के कोषाध्यषों बन बैठे । य इसी खैरख्वा ी की बरकत थी। युवराज का स्वागत करने के मल अधिकाररयों ने उनसे पचीस जार के कपडे खरीदे। ीसा सामथी पुरुष कागंि ्रेस से क्यों डरे? कांगि ्रेस ै ककस खते की मलू ी? पुमलसवालों ने भी बढावा हदया - मुआह दे पर रधगज दस्तखत न कीग्ज गा। देखे ये लोग क्या करते ै। क- क को जेल ने मभजवा हदया तो कह गा। लालाजी के ौसले बढे। उन् ोंने कागंि ्रेस से लडने की ठान ली। उसी के फलस्वरूप तीन म ीनों से उनकी दकु ान पर प्रातःकाल से 9 बजे तक प रा र ता था। पमु लस-दलों ने उनकी दकु ान पर वालिहं टयरों पर कम बार गामलयाँ दी,ंि कम बार पीटा, खदु सेठ जी ने भी कम बार उन पर बाण चला , परिंतु प रेवाले ककसी तर न टलते थ।े बग्ल्क इस अत्याचारों के कारण चंिदमू ल का बाजार और भी धगरता जाता। मफु ग्स्सल की दकू ानों से मनु ीम लोग और भी दरु ाशाजनक समाचार
भेजते र ते थे। कहठन समस्या थी। इस संकि ट से तनकलने का कोम उपाय न था। वे देखते थे कक ग्जन लोगों ने प्रततज्ञा-पत्र पर स्ताषों र कर हद ै वे चोरी तछपे कु छ-न-कु छ ववदेशी माल लेते ै। उनकी दकु ानों पर प रा न ींि बैठता। य सारी ववपग्त्त मेरे ी मसर पर ै। उन् ोंने सोचा, पुमलस और ाककमों की दोस्ती से मेरा भला क्या ुआ? उनके टा ये प रे न ीिं टत।े मसपाह यों की प्रेरणा से ग्रा क न ींि आतये ककसी तर प रे बिंद ो जाते तो सारा खले बन जाता। इतने में मुनीम जी ने क ा - लाला जी, य दे ख , कम व्यापारी मारी तरफ आ र े थे। प रेवालों ने उनको न जाने क्या मंति ्र पढा हदया, सब चले जा र े ैं। चिंदमू ल - अगर इन पावपयों को कोम गोली मार देता तो मैं ब ुत खशु ोता। य सब मेरा सवना ाश करके दम लंेगे। मनु ीम - कु छ ेठी तो ोगी, यहद आप प्रततज्ञा-पत्र पर स्ताषों र कर देते तो य प रा उठ जाता। तब म भी य सब माल ककसी न ककसी तर खपा देत।े चिंदमू ल - मन में तो मेरे भी य बात आती ै, पर सोचो, अपमान ककतना ोगा? इतनी ेकडी हदखाने के बाद कफर झुका न ीिं जाता। कफर ाककमों की तनगा ों मंे धगर जाऊँ गा। और लोग भी ताने देंगे कक चले थे बच्चा कागंि ्रेस से लडनये ीसी मँु की खायी कक ोश हठकाने आ ग । ग्जन लोगों को वपटा और वपटवाया, ग्जनको गामलयाँ दीिं, ग्जनकी ँसी उडाम, अब उनकी शरण कौन मँु ले कर जाऊँ ? मगर क उपाय सूझ र ा ै। अगर चकमा चल गया तो पौ बार ै। बात तो तब ै जब साँप को मारूँ , मगर लाठी बचा कर। प रा उठा दँ,ू पर त्रबना ककसी की खुशामद कक । 2
नौ बज ग थे। सेठ चंिदमू ल गगिं ा-स्नान करके लौट आ थे और मसनद पर बठै कर धचहट्ठयाँ पढ र े थ।े अन्य दकू ानों के मनु ीमों ने अपनी ववपग्त्त-कथा सनु ाम थी। क- क पत्र को पढ कर सेठ जी का क्रोि बढता जाता था। इतने मंे दो वालंहि टयर गाडडयाँ मलये ु उसकी दकु ान के सामने आ कर खडे ो ग । सेठ जी ने डाटँ कर क ा - ट जाओ मारी दकु ान के सामने से। क वालिहं टयर ने उत्तर हदया - म ाराज, म तो सडक पर ै। क्या य ाँ से भी चले जा ँ? सेठजी - मैं तमु ् ारी सरू त न ीिं देखना चा ता। वालहिं टयर - तो आप कागंि ्रेस कमेटी को मल ख । मको तो व ाँ से य ाँ खडे र कर प रा देने का ुक्म ममला ै. क कान्सटेत्रबल ने आ कर क ा - क्या ै सेठ जी, य लौंडा क्या टराता ा ै। चिंदमू ल बोले - मंै क ता ूँ कक दकू ान के सामने से ट जाओ, पर य क ता ै कक न टंेगे, न टंेगे। जरा इसकी जबरदस्ती देखो। कान्सटेत्रबल - (वालिंहटयरों से) तुम दोनों य ाँ से जाते ो कक आ कर गरदन नापँू? वालहंि टयर - म सडक पर खडे ै, दकू ान पर न ींि। कान्सटेत्रबल का अभीष्ट अपनी कारगजु ारी हदखाना था। य सेठ जी को खुश करके कु छ इनाम-इकराम भी लेना चा ता था। उसने वालिंहटयरों को अपशब्द क े और जब उन् ोंने उसकी कु छ परवा न की तो क वालहिं टयर को इतने जोर से
िक्का हदया कक व बेचारा मँु के बल जमीन पर धगर पडा। कम वालंहि टयर इिर-उिर से आ कर जमा ो ग । कम मसपा ी भी आ प ुँच।े दशका वनृ ्द को ीसी घटनाओिं में मजा आता ी ै। उनकी भीड लग गम। ककसी ने ाकँ लगाम, म ात्मा गाँिी की जय। औरों ने भी उसके सुर मंे सुर ममलाया, देखते-देखते क जनसमू कत्रत्रत ो गया। क दशका ने क ा - क्या ै लाला चदिं मू ल? अपनी दकु ान के सामने इन गरीबों की दगु ता त करा र े ो और तमु ् ंे जरा भी लज्जा न ींि आती? कु छ भगवान का भी डर ै या न ीिं? सेठ जी ने क ा - मुझसे कसम ले लो जो मनैं े ककसी मसपा ी से कु छ क ा ो। ये लोग तो अनायास बेचारों के पीछे पड ग । मझु े सेतं मंे बदनाम करते ै। क मसपा ी - लालाजी, आप ी ने तो क ा था कक ये दोनों वालंिहटयर मेरे ग्रा कों को छे ड र े ै। अब आप तनकले जाते ै? चंदि मू ल - त्रबलकु ल झूठ, सरासर झूठ, सोल ों आना झूठ। तमु लोग अपनी कारगजु ारी की िनु में इनसे उलझ पड।े य बेचारे तो दकू ान से ब ुत दरू खडे थ।े न ककसी से बोलते थे, न चालते थे। तमु ने जबरदस्ती ी इन् ंे गरदनी देनी शुरू की। मुझे अपना सौदा बचे ना ै कक ककसी से लडना ै? दसू रा मसपा ी - लाला जी, ो बडे ोमशयार। मझु से आग लगवा कर आप अलग ो ग । तमु न क ते तो में क्या पडी थी कक इन लोगों को िक्के देते? दारोगा जी ने भी मको ताकीद कर दी थी कक सेठ चदिं मू ल की दकू ान का ववशेष ध्यान रखना। व ाँ कोम वालिंहटयर न आ । तब म लोग आ थे। तमु फररयाद न करते, तो दारोगा जी मारी तनै ाती ी क्यों करते?
चदंि मू ल - दारोगा जी को अपनी कारगजु ारी हदखानी ोगी। मंै उनके पास क्यों फररयाद करने जाता? सभी लोग कांिग्रेस के दु मन ो र े ै। थाने वाले तो उनके नाम से ी जलते ै। क्या मैं मशकायत करता तभी तुम् ारी तैनाती करते? इतने मंे ककसी ने थाने में इग्त्तला दी कक चदंि मू ल की दकू ान पर कान्सटेत्रबलों और वालिहं टयरों में मारपीट ो गम। कािगं ्रेस के दफ्तर में भी खबर प ुँची। जरा देर में मय सशस्त्र पुमलस के थानदे ार और इन्सपेक्टर सा ब आ प ुँच।े उिर कांिग्रेस के कमचा ारी भी दल-बल के सह त दौड।े समू और बढा। बार-बार जयकार की ध्वतन उठने लगी। कािंग्रेस और पमु लस में नेताओंि में वाद-वववाद ोने लगा। पररणाम य ुआ कक पुमलसवालों ने दोनों को ह रासत मंे मलया और थाने की ओर चले। पमु लस अधिकाररयों के जाने के बाद सेठ जी ने कािंग्रेस के प्रिान से क ा - आज मुझे मालमू ुआ कक ये लोग वालिंहटयरों पर इतना घोर अत्याचार करते ै। प्रिान - तब तो दो वालहिं टयरों का फँ सना व्यथा न ीिं ुआ। इस ववषय में अब तो आपको कोम शंिका न ीिं ै? म ककतने लडाकू , ककतने रो ी, ककतने शांिततभिंगकारी ै, य तो आपको खूब मालूम ो गया ोगा? चदंि मू ल - जी ा,ँ मालूम ो गया। प्रिान - आपकी श ादत तो अवय ी ोगी। चंिदमू ल - ोगी तो मंै भी साफ-साफ क दँगू ा; चा े बने या त्रबगड।े पुमलस की सख्ती अब न ीिं देखी जाती। मंै भी भ्रम मंे पडा ुआ था। मतंि ्री - पुमलसवाले आपको दबायगें े ब ुत।
चदिं मू ल - क न ीिं, सौ दबाव पडे, मंै झूठ कभी न बोलँूगा। सरकार उस दरबार में साथ न जा गी। मितं ्री - अब तो मारी लाज आपके ाथ ै। चदंि मू ल - मुझे आप देश का रो ी न पायगें े। य ाँ से प्रिान और मितं ्री और अन्य पदाधिकारी चले ग तो मंति ्री जी ने क ा - आदमी सच्चा जान पडता ै। प्रिान - (सिंहदनि भाव से ) कल तक आप ी मसद्ध ो जा गा। 3 शाम को इन्सपेक्टर-पुमलस ने लाला चिंदमू ल को थाने में बलु ाया और क ा - आपको श ादत देनी ोगी। म आपकी तरफ से बेकफक्र ै। चिंदमू ल बोले - ाग्जर ूँ। इन्स. - वालंहि टयरों ने कान्सटेत्रबलों को गामलयाँ दी? चिंदमू ल - मनंै े न ीिं सुनी। इन्स. - सनु ी या न सुनी य ब स न ींि ै। आपको य क ना ोगा व सब खरीदारों को िक्के दे कर टा र े थे, ाथापाम करे थे, मारने की िमकी देते थे, ये सभी बातंे क नी ोगी। दारोगाजी, व बयान लाइ जो मनैं े सेठ जी के मल मलखवाया ै।
चंिदमू ल - मझु से भरी अदालत मंे झूठ न बोलो जा गा। अपने जारों जाननेवाले अदालत में ोंगे। ककस-ककस से मँु तछपाऊँ ? क ीिं तनकलने की जग भी चाह । इन्स. - य सब बातंे तनज के मआु मलों के मल ै। पोमलहटकल मुआमलों में झठू -सच, शमा और या, ककसी की भी खयाल न ी ककया जाता। चिदं मू ल - मँु में कामलख लग जा गी। इन्स. - सरकार की तनगा मंे इज्जत चौगुनी ो जा गी। चिंदमू ल - (सोच कर) जी न ीिं, गवा ी न दे सकूँ गा। कोम और गवा बना लीग्ज । इन्स. - याद र ख , य इज्जत खाक मंे ममल जा गी। चिंदमू ल - ममल जा , मजबरू ी ै। इन्स. - अमन-सभा के कोषाध्यषों का पद तछन जा गा। चिंदमू ल - उससे कौर रोहटयाँ चलती ै? इन्स. बिंदकू का लाइसेंस तछन जा गा। चदंि मू ल - तछन जा ; बला सेय इन्स. - इनकम टैक्स की जाचँ कफर से ोगी। चिंदमू ल - जरूर कराइ । य तो मेरे मन का बात ुम। इन्स. - बैठने को कु रसी न ममलेगी।
चदंि मू ल - कु रसी ले कर चाटूँ? हदवाला तनकला जा र ा ै। इन्स. - अच्छी बात ै। तशरीफ ले जाइ । कभी तो आप पजिं े में आयगें े। 4 दसू रे हदन इसी समय कांिग्रेस के दफ्तर मंे कल के मल कायका ्रम तनग्चत ककया जा र ा था। प्रिान ने क ा - सेठ चदिं मू ल की दकू ान पर िरना देने के मल दो स्वयसिं ेवक भेग्ज । मितं ्री- मेरे ववचार से व ाँ अब िरना देने की जरूरत न ी।िं प्रिान - क्यों? उन् ोंने अभी प्रततज्ञा-पत्र पर स्ताषों र तो न ींि कक ? मिंत्री - स्ताषों र न ीिं कक , पर मारे ममत्र अवय ो ग । पमु लस की तरफ से गवा ी न देना य ी मसद्ध करता ै। अधिकाररयों का ककतना दबाव पडा ोगा, इसका अनमु ान ककया जा सकता ै। य नतै तक सा स मंे पररवतना ु त्रबना न ींि आ सकता। प्रिान - ाँ कु छ पररवतना तो अवय ुआ ै। मितं ्री - कु छ न ींि म ाशयय परू ी क्रािंतत क ना चाह । आप जानते ै, ीसे मआु मलों मंे अधिकाररयों की अव ेलना करने का अथा ै? य राजववरो की घोषणा के समान ैय त्याग मंे संनि ्यास से इसका म त्त्व कम न ीिं ै। आज ग्जले के सारे ाककम उनके खून के प्यासे ो र े ै। आचया न ींि कक गवनरा म ोदय को भी इसकी सचू ना दी गम ो।
प्रिान - और कु छ न ीिं तो उन् ंे तनयम का पालन करने ी के मल प्रततज्ञा-पत्र पर स्ताषों र कर देना चाह था। ककसी तर उन् ें य ाँ बुलाइ । अपनी बात तो र जा । मितं ्री - व बडा आत्ममभमानी ै, कभी न आ गा। बग्ल्क म लोगों को ओर से इतना अवववास देख कर सम्भव ै कक कफर उस दल मंे ममलने की चषे ्टा करने लगे। प्रिान - अच्छी बात ै, आपको उन पर इतना वववास ो गया ै तो उनकी दकू ान छोड दीग्ज । तब भी मैं य ी क ूँगा कक आपको स्वयिं ममलने के ब ाने से उस पर तनगा रखनी चाह । मंित्री - आप ना क इतना शक करते ै। नौ बजे सेठ चंदि मू ल अपनी दकू ान पर आ तो व ाँ क भी वालंिहटयर न था। मखु पर मसु ्करा ट की झलक आम। मुनीम से बोले - कौडी धचत्त पडी। मुनीम - मालमू तो ोता ै। क म ाशय भी न ींि आ । चंिदमू ल - न आ और न आयगें े। बाजी अपने ाथ र ी। कै सा दावँ देखा - चारों खाने धचत्त। चंिदमू ल - आप भी बातंे करते ै? इन् ें दोस्त बनाते ककतनी देर लगती ै। कह , अभी बलु ाकर जूततयाँ सीिी करवाऊँ । टके के गलु ाम ै, न ककसी के दोस्त, न ककसी के दु मन। सच कह , कै सा चकमा हदया ै? मनु ीम - बस, य ी जी चा ता ै कक आपके ाथ चूम लें। सापँ भी मरा और लाठी भी न टू टी। मगर कांगि ्रेसवाले भी टो में ोंगे।
चिंदमू ल - तो मंै भी तो मौजूद ूँ। व डाल-डाल चलंेगे, तो मंै पात-पात चलँगू ा। ववलायती कपडे की गाँठ तनकलवाइ और व्यापाररयों को देना शुरू कीग्ज । क अठवारे में बेडा पार ै। ***
पछिावा पडिं डत दगु ाानाथ जब कालेज से तनकले तो उन् ंे जीवन-तनवाा की धचतिं ा उपग्स्थत ुम। वे दयालु और िाममका थे। इच्छा थी कक ीसा काम करना चाह ग्जससे अपना जीवन भी सािारणतः सखु पवू का व्यतीत ो और दसू रों के साथ भलाम और सदाचरण का भी अवसर ममले। वे सोचने लगे - यहद ककसी कायाला य मंे क्लका बन जाऊँ तो अपना तनवाा ो सकता ै, ककन्तु सवसा ािारण से कु छ भी संिबंिि न र ेगा। वकालत में प्रववष्ट ो जाऊँ तो दोनों बातंे सिंभव ंै, ककिं तु अनेकानके यत्न करने पर भी अपने को पववत्र रखना कहठन ोगा। पमु लस- ववभाग में दीन-पालन और परोपकार के मल ब ुत-से अवसर ममलते र ते ै; ककंि तु क स्वतंित्र और सद्ववचार-वप्रय मनुष्य के मल व ाँ की वा ातनप्रद ै। शासन-ववभाग में तनयम और नीततयों की भरमार र ती ै। ककतना ी चा ो, पर व ाँ कडाम और डाँट-डपट से बचे र ना असभिं व ै। इसी प्रकार ब ुत सोच-ववचार के पचात उन् ोंने तनचय ककया कक ककसी जमीदंि ार के य ाँ 'मखु ्तारआम' बन जाना चाह । वते न तो अवय कम ममलेगा; ककंि तु दीन खते त रों से रात-हदन का संिबंिि र ेगा, उनके साथ सद्व्यव ार का अवसर ममलेगा। सािारण जीवन-तनवाा ोगा और ववचार दृढ ोगे। कँु वर ववशालमसंि जी क सिंपग्त्तशाली जमीिंदार थे। पि.ं दगु ाना ाथ ने उनके पास जा कर प्राथना ा की कक मझु े भी अपनी सेवा मंे रख कर कृ ताथा कीग्ज । कुँ वर सा ब ने इन् ंे मसर से परै तक देखा और क ा - पंडि डत जी, आपको अपने य ाँ रखने मंे मुझे बडी प्रसन्नता ोगी, ककिं तु आपके योनय मेरे य ाँ कोम स्थान न ींि देख पडता। दगु ाना ाथ ने क ा - मेरे मल ककसी ववशेष स्थान की आवयकता न ीिं ै। मंै र क काम कर सकता ूँ। वते न आप जो कु छ प्रसन्नतापवू का देंगे, मैं स्वीकार करूँ गा। मनैं े तो य सकिं ल्प कर मलया ै कक मसवा ककसी रमस के और ककसी की नौकरी न करूँ गा। कँु वर ववशालमसिं ने अमभमान से क ा - रमस की नौकरी
नौकरी न ींि, राज्य ै। मैं अपने चपरामसयों को दो रुपया मा वार देता ूँ और वे तजंि बे के अँगरखे प न कर तनकलते ंै। उनके दरवाजों पर घोडे बँिे ु ंै। मेरे काररदिं े पाँच रुपये से अधिक न ीिं पाते, ककंि तु शादी-वववा वकीलों के य ाँ करते ंै। न जाने उनकी कमाम में क्या बरकत ोती ै। बरसों तनख्या का ह साब न ीिं करत।े ककतने ीसे ै जो त्रबना तनख्या के काररदंि ेगी या चपरासधगरी को तैयार बैठे ैं। परिंतु अपना य तनयम न ीिं। समझ लीग्ज , मुख्तारआम अपने इलाके मंे क बडे जमींदि ार से अधिक रोब रखता ै, उसका ठाट-बाट और उसकी ुकू मत छोटे-छोटे राजाओिं से कम न ीिं। ग्जसे इस नौकरी का चसका लग गया ै, उसके सामने त सीलदारी झूठी ै। पंडि डत दगु ाानाथ ने कुँ वर सा ब की बातों का समथना ककया, जसै ा कक करना उनकी सभ्यतानुसार उधचत था। वे दतु नयादारी मंे अभी कच्चे थे, बोले - मुझे अब तक ककसी रमस की नौकरी का चसका न ींि लगा ै। मैं तो अभी कालेज से तनकला आता ूँ। और न मैं इन कारणों से नौकरी करना चा ता ूँ ग्जनका आपने वणना ककया। ककिं तु इतने कम वते न मंे मेरा तनवाा न ोगा। आपके और नौकर असाममयों का गला दबाते ोंगे मझु से मरते समय तक ीसे काया न ोंगे। यहद सच्चे नौकर का सम्मान ोना तनचय ै, तो मुझे वववास ै कक ब ुत शीघ्र आप मुझसे प्रसन्न ो जा ँगे। कुँ वर सा ब ने बडी दृढता से क ा - ाँ, य तो तनचय ै कक सत्यवादी मनषु ्य का आदर सब क ीिं ोता ै, ककिं तु मेरे य ाँ तनख्वा अधिक न ींि दी जाती। जमीदिं ार के इस प्रततष्ठा-शून्य उत्तर को सनु कर पंिडडत जी कु छ खन्न हृदय से बोले - तो कफर मजबूरी ै। मरे े द्वारा इस समय कु छ कष्ट आपको ो तो षों मा कीग्ज गा। ककंि तु मैं आप से क सकता ूँ कक ममानदार आदमी आपको सस्ता न ममलेगा।
कँु वर सा ब ने मन मंे सोचा कक मेरे य ाँ सदा अदालत-कच री लगी ी र ती ै, सकै डों रुपये तो डडगरी और तजवीजों तथा और-और अिगं रेजी कागजों के अनवु ाद में लग जाते ंै। क अँगरेजी का पणू ा पंिडडत स ज ी में ममल र ा ै। सो भी अधिक तनख्वा न ींि देनी पडगे ी। इसे रख लेना उधचत ै। लेककन पंडि डत जी की बात का उत्तर देना आवयक था, अतः क ा - म ाशय, सत्यवादी मनुष्य को ककतना ी कम वते न हदया जा , व सत्य को न छोडगे ा, और न अधिक वते न पाने से बेममान सच्चा बन सकता ै। सच्चाम का रुप से कु छ सिबं ििं न ीं।ि मनंै े ममानदार कु ली देखे ै और बेममान बडे-बडे िनाढ्य पुरुष। परिंतु अच्छा, आप क सज्जन पुरुष ै। आप मेरे य ाँ प्रसन्नतापूवका रह । मंै आपको क इलाके का अधिकारी बना दँगू ा और आपका काम देख कर तरक्की भी कर दँगू ा। दगु ाना ाथ जी ने 20 रु॰ मामसक पर र ना स्वीकार कर मलया। य ाँ से कोम ढाम मील पर कम गावँ ों का क इलाका चादँ पार के नाम से ववख्यात था। पडिं डत जी इसी इलाके के काररदंि े तनयत ु । 2 पिंडडत दगु ाना ाथ ने चादँ पार के इलाके में प ुँच कर अपने तनवास-स्थान को देखा तो उन् ोंने कँु वर सा ब के कथन को त्रबल्कु ल सत्य पाया। यथाथा में ररयासत की नौकरी सुख-सपंि ग्त्त का घर ै। र ने के मल सुदिं र बँगला ै, ग्जसमंे ब ुमलू ्य त्रबछौना त्रबछा ुआ था, सैकडो बीघे की सीर, कम नौकर-चाकर, ककतने ी चपरासी, सवारी के मल क संदुि र टागँ न, सखु ठाट-बाट के सारे सामान उपग्स्थत। ककंि तु इस प्रकार की सजावट और ववलास की सामग्री देख कर उन् ंे उतनी प्रसन्नता न ींि ुम। क्योंकक इसी सजे ु बँगले के चारों ओर ककसानों के झोंपडे थे। फू स के घरों में ममट्टी के बतना ों के मसवा और सामान ी क्या थाय व ाँ के लोगों में व बँगला कोच के नाम से ववख्यात था। लडके उसे भय की
दृग्ष्ट से देखत।े उसके चबूतरे पर परै रखने का उन् ंे सा स न पडता। इस दीनता के बीच मंे इतना बडा ीवयया ुक्त दृय उनके मल अत्यंित हृदय-ववदारक था। ककसानों की य दशा थी सामने आते ु थर-थर काँपते थे। चपरासी लोग उनसे ीसा बतााव करते थे कक पशुओिं के साथ भी वसै ा न ीिं ोता। प ले ी हदन कम सौ ककसानों ने पडिं डत जी को अनेक प्रकार के पदाथा भेंट के रूप में उपग्स्थत कक , ककंि तु जब वे सब लौटा हद ग तो उन् ंे आचया ुआ। ककसान प्रसन्न ु , ककिं तु चपरामसयों का रक्त उबलने लगा। नाम और क ार खदमत को आ , ककिं तु लौटा हद ग । अ ीरों के घरों से दिू से भरा ुआ मटका आया, व भी वापस ुआ। तमोली क ढोली पान लाया, ककंि तु व भी स्वीकार न ुआ। असामी आपस में क ने लगे कक कोम िमाता ्मा पुरुष आ ै। परिंतु चपरामसयों को तो ये नम बातें असह्य ो गम। उन् ोंने क ा - ुजूर, अगर आपको ये चीजें पसंिद न ों तो न लें, मगर रस्म को तो न ममटा ँ। अगर कोम दसू रा आदमी य ाँ आ ँगा तो उसे न मसरे से य रस्म बािँ ने मंे ककतनी हदक्कत ोगी? य सनु कर पिंडडत जी ने के वल य ी उत्तर हदया - ग्जसके मसर पर पडगे ा व भगु त लेगा। मझु े इसकी धचतिं ा करने की क्या आवयकता? क चपरासी ने सा स बाँि कर क ा - इन असाममयों को आप ग्जतना गरीब समझते ै उतने गरीब ये न ीिं ै। इनका ढिंग ी ीसा ै। भषे बना र ते ैं। देखने में ीसे सीिे-सादे मानो बेसीिंग की गाय ै, लेककन सच मातन , इनमें का क- क आदमी ामकोटा का वकील ै। चपरामसयों के इस वाद-वववाद का प्रभाव पिडं डत जी पर कु छ न ुआ। उन् ोंने प्रत्येक गृ स्थ से दयालतु ा और भामचारे का आचरण करना आरिंभ ककया। सबेरे से आठ बजे तक तो गरीबों को त्रबना दाम औषधियाँ देते, कफर ह साब-ककताब का काम देखत।े उनके सदाचरण ने असाममयों को मो मलया। मालगुजारी का रुपया, ग्जसके मल प्रतत वषा कु रकी और नीलामी की आवयकता ोती थी, इस वषा क इशारे पर वसूल ो गया। ककसानों ने अपने भाग सरा े और वे मनाने लगे कक मारे सरकार की हदनोंहदन बढती ो।
3 कुँ वर ववशालमसंि अपनी प्रजा के पालन-पोषण पर ब ुत ध्यान रखते थे। वे बीज के मल अनाज देते और मजरू ी और बलै ों के मल रुप । फसल कटने पर क का डढे वसलू कर लेतये चादँ पार के ककतने ी असामी इनके ऋणी थ।े चैत का म ीना था। फसल कट-कटकर खमलयानों में आ र ी थी। खमलयान मंे से कु छ अनाज घर में आने लगा था। इसी अवसर पर कँु वर सा ब ने चाँदपरु वालों को बलु ाया और क ा - मारा अनाज और रुपया बेबाक कर दो। य चैत का म ीना ै। जब तक कडाम न की जा , तमु लोग डकार न ींि लेत।े इस तर काम न ीिं चलेगा। बूढे मलकू ा ने क ा - सरकार, भला असामी कभी अपने मामलक से बेबाक ो सकता ैय कु छ अभी ले मलया जा , कु छ कफर दे देंगे। मारी गदान तो सरकार की मटु ्ठी में ै। कुँ वर सा ब - आज कौडी-कौडी चकु ा कर य ाँ से उठने पाओगे। तमु लोग मेशा इसी तर ीला- वाला ककया करते ो। मलू का (ववनय के साथ) - मारा पेट ै, सरकार की रोहटयाँ ैं, मको और क्या चाह ? जो कु छ उपज ै व सब सरकार ी की ै। कुँ वर सा ब से मलूका की य वाचालता स ी न गम। उन् ें इस पर क्रोि आ गया; राजा-रमस ठ रे। उन् ोंने ब ुत कु छ खरी-खोटी सनु ाम और क ा - कोम ै? जरा इस बुड्ढे का कान तो गरम करो, ब ुत बढ-बढकर बातें करता ै। उन् ोंने तो कदाधचत िमकाने की इच्छा से क ा, ककिं तु चपरासी काहदर खाँ ने लपक कर बढू े की गदान पकडी और ीसा िक्का हदया कक बेचारा जमीन पर जा धगरा। मलू का के दो जवान बेटे व ाँ चपु चाप खडे थ।े बाप की ीसी दशा देख कर उनका रक्त गरम ो उठा। वे दोनों झपटे और काहदर खाँ पर टू ट पड।े िमािम
शब्द सनु ाम पडने लगा। खाँ सा ब का पानी उतर गया, साफा अलग जा धगरा। अचकन के टु कडे-टु कडे ो ग । ककिं तु जबान चलती र ी। मलकू ा ने देखा, बात त्रबगड गम। व उठा और काहदर खाँ को छु डा कर अपने लडकों को गामलयाँ देने लगा। जब लडकों ने उसी को डाटँ ा तब दौड कर कुँ वर सा ब के चरणों मंे धगर पडा। पर बात यथाथा में त्रबगड गम थी। बूढे के इस ववनीत भाव का कु छ प्रभाव न ुआ। कुँ वर सा ब की आखँ ों से मानो आग के अिंगारे तनकल र े थ।े वे बोले - बेममान, आँखों के सामने से दरू ो जा। न ीिं तो तरे ा खून पी जाऊँ गा। बढू े के शरीर मंे रक्त तो अब वैसा न र ा था, ककंि तु कु छ गमी अवय थी। समझता था कक ये न्याय करेंगे, परिंतु य फटकार सनु कर बोला - सरकार, बुढापे में आपके दरवाजे पर पानी उतर गया और ततस पर सरकार मी को डाटँ ते ै। कुँ वर सा ब ने क ा - तमु ् ारी इज्जत अभी क्या उतरी ै, अब उतरेगी। दोनों लडके सरोष बोले - सरकार अपना रुपया लंेगे कक ककसी की इज्जत लेंगे? कुँ वर सा ब (ींिठ कर) - रुपया पीछे लंेगे, प ले देखेंगे कक तमु ् ारी इज्जत ककतनी ैय 4 चाँदपार के ककसान अपने गाँव पर प ुँचकर पंिडडत दगु ाानाथ से अपनी रामक ानी क ी र े थे कक कँु वर सा ब का दतू प ुँचा और खबर दी कक सरकार ने आपको अभी-अभी बलु ाया ै।
दगु ाना ाथ ने असाममयों को पररतोष हदया और आप घोडे पर सवार ोकर दरबार में ाग्जर ु । कँु वर सा ब की आखँ ंे लाल थीं।ि मुख की आकृ तत भयिंकर ो र ी थी। कम मखु ्तार और चपरासी बठै े ु आग मंे तले डाल र े थे। पिडं डत जी को देखते ी कुँ वर सा ब बोले - चाँदपरु वालों की रकत आपने देखी? पिडं डत जी ने नम्र भाव से क ा - जी ाँ, सनु कर ब ुत शोक ुआ। ये तो ीसे सरकश न थ।े कुँ वर सा ब - य सब आप ी के आगमन का फल ै। आप अभी स्कू ल के लडके ै। आप क्या जाने कक सिसं ार में कै से र ना ोता ै। यहद आपका असाममयों के साथ ीसा ी र ा तो कफर मंै जमीदिं ारी कर चकु ा। य सब आपकी करनी ै। मनैं े इसी दरवाजे पर असाममयों को बाँि-बािँ कर उलटे लटका हदया ै और ककसी ने चँू तक न की। आज उनका व सा स मेरे ी आदमी पर ाथ चला ंि। दगु ाानाथ (कु छ सोचते ु ) - म ाशय, इसमंे मेरा क्या अपराि? मैं तो जब से सनु ा ै तभी से स्वयंि सोच मंे पडा ूँ। कँु वर सा ब - आपका अपराि न ीिं तो ककसका ै? आप ी ने तो इनको मसर चढाया। बेगार बिंद कर दी, आप ी उनके साथ भामचारे का बतावा करते ै, उनके साथ ँसी-मजाक करते ै। ये छोटे आदमी इस बतावा की कदर क्या जानंे, ककताबी बातें स्कू लों ी के मल ैं। दतु नया के व्यव ार का कानून दसू रा ै। अच्छा, जो ुआ सो ुआ। अब मैं चा ता ूँ कक इन बदमाशों की इस सरकशी की मजा चखाया जा । असाममयों को आपने मालगजु ारी की रसीदंे तो न ीिं दी ैं?
दगु ाना ाथ (कु छ डरते ु ) - जी न ीिं, रसीदें तयै ार ै, लेककन आपके स्ताषों रों की देर ै। कुँ वर सा ब (कु छ संितुष्ट ोकर) - य ब ुत अच्छा ुआ। शकु न अच्छे ै। अब आप इन रसीदों को धचरागअली के मसपुदा कीग्ज । इन लोगों पर बकाया लगान की नामलश की जा गी, फसल नीलाम कर लँूगा। जब भखू े मरंेगे तब सूझगे ी। जो रुपया अब तक वसूल ो चुका ै, व बीज और ऋण के खाते में चढा लीग्ज । आपको के वल य गवा ी देनी ोगी कक रुपया मालगजु ारी के मद में न ींि, कजा में वसूल ुआ ै। बसय दगु ाना ाथ धचतिं तत ो ग । सोचने लगे कक क्या य ाँ भी उसी आपग्त्त का सामना करना पडगे ा ग्जससे बचने के मल इतने सोच-ववचार के बाद, इस शाितं त-कु टीर को ग्र ण ककया था? क्या जान-बूझ कर इन गरीबों की गदान पर छु री फे रूँ , इसमल कक मेरी नौकरी बनी र े? न ींि, य मुझसे न ोगा। बोले - क्या मेरी श ादत त्रबना काम न चलेगा? कुँ वर सा ब (क्रोि से) - क्या इतना क ने में भी आपको कोम उज्र ै? दगु ाानाथ (द्वववविा मंे पडे ु ) - जी, यों तो मनंै े आपका नमक खाया ै। आपकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करना मुझे उधचत ै, ककिं तु न्यायालय मंे मनंै े गवा ी न ींि दी ै। संिभव ै कक य काया मझु से न ो सके , अतः मुझे तो षों मा ी कर हदया जा । कँु वर सा ब (शासन के ढिंग स)े - य काम आपको करना पडगे ा, इसमें ' ाँ-न ींि' की कोम आवयकता न ीि।ं आग आपने लगाम ै। बुझा गा कौन? दगु ाना ाथ (दृढता के साथ) - मंै झठू कदावप न ीिं बोल सकता, और न इस प्रकार की श ादत दे सकता ूँय
कँु वर सा ब (कोमल शब्दों में) - कृ पातनिान, य झूठ न ीिं ै। मनंै े झूठ का व्यापार न ींि ककया ै। मैं य न ींि क ता कक आप रुप का वसूल ोना अस्वीकार कर दीग्ज । अब असामी मेरे ऋणी ै, तो मुझे अधिकार ै कक चा े रुपया ऋण के मद में वसलू करूँ या मालगुजारी की मद में। यहद इतनी-सी बात को आप झठू समझते ै तो आपकी जबरदस्ती ै। अभी आपने सिंसार देखा न ीं।ि ीसी सच्चाम के मल सिंसार में स्थान न ीि।ं आप मेरे य ाँ नौकरी कर र े ै। इस सेवक-िमा पर ववचार कीग्ज । आप मशक्षषों त और ोन ार परु ुष ै। अभी आपको सिंसार में ब ुत हदन तक र ना ै और ब ुत काम करना ै। अभी से आप य िमा और सत्यता िारण करंेगे तो अपने जीवन में आपको आपग्त्त और तनराशा के मसवा और कु छ प्राप्त न ोगा। सत्यवप्रयता अवय उत्तम वस्तु ै, ककिं तु उसकी भी सीमा ै, 'अतत सवता ्रवजया यु् ' अब अधिक सोच-ववचार की आवयकता न ीिं। य अवसर ीसा ी ै। कुँ वर सा ब परु ाने खुराटा थे। इस फंै कनतै से यवु क खलाडी ार गया। 5 इस घटना के तीसरे हदन चादँ परु के असाममयों पर बकाया लगान की नामलश ुम। सम्मन आ । घर-घर मंे उदासी छा गम। सम्मन क्या थे, यम के दतू थे। देवी-देवताओंि की ममन्नतें ोने लगी।ंि ग्स्त्रयाँ अपने घरवालों को कोसने लगी और पुरुष अपने भानय को। तनयत तारीख के हदन गाँव के गँवार किं िे पर लोटा-डोर रखें और अगँ ोछे मंे चबेना बाँिे कच री को चले। सैकडो ग्स्त्रयाँ और बालक रोते ु उनके पीछे -पीछे जाते थ।े मानो अब वे कफर उनसे न ममलंेगे। पडिं डत दगु ाना ाथ के तीन हदन कहठन परीषों ा के थे। क ओर कुँ वर सा ब की प्रभावशामलनी बातंे, दसू री ओर ककसानों की ाय- ाय; परंितु ववचार-सागर मंे तीन हदन तनमनन र ने के पचात उन् ें िरती का स ारा ममल गया। उनकी आत्मा ने क ा - य प ली परीषों ा ै। यहद इसमंे अनुत्तीणा र े तो कफर आग्त्मक
दबु ला ता ी ाथ र जा गी। तनदान तनचय ो गया कक मैं अपने लाभ के मल इतने गरीबों को ातन न प ुँचाऊँ गा। दस बजे हदन का समय था। न्यायालय के सामने मेला-सा लगा ुआ था। ज ाँ- त ाँ यामवस्त्रच्छाहदत देवताओिं की पूजा ो र ी थी। चाँदपार के ककसान झंुडि के झडंिु क पेड के नीचे आकर बैठ ग । उनसे कु छ दरू पर कुँ वर सा ब के मुख्तारआम, मसपाह यों और गवा ों की भीड थी। ये लोग अत्यिंत ववनोद में थ।े ग्जस प्रकार मछमलयाँ पानी में प ुँचकर ककलोंले करती ै, उसी भातँ त ये लोग भी आनंिद में चरू थ।े कोम पान खा र ा था। कोम लवाम की दकू ान से परू रयों की पत्तल मलये चला आता था। उिर बेचारे ककसान पेड के नीचे चपु चाप उदास बैठे ु थे कक आज न जाने क्या ोगा, कौन आफत आ गीय भगवान का भरोसा ै। मकु दमे की पेशी ुम। कँु वर सा ब की ओर से गवा गवा ी देने लगे कक असामी बडे सरकश ै। जब लगान मागँ ा जाता ै तो लडाम-झगडे पर तयै ार ो जाते ै। अबकी इन् ोंने क कौडी भी न ींि दी। काहदर खाँ ने रोकर अपने मसर की चोट हदखाम। सबसे पीछे पडिं डत दगु ाना ाथ की पुकार ुम। उन् ींि के बयान पर तनपटारा ोना था। वकील सा ब ने उन् ें खूब तोते की भातँ त पढा रखा था, ककिं तु उनके मखु से प ला वाक्य तनकला ी ती कक मग्जस्ट्रेट ने उनकी ओर तीव्र दृग्ष्ट से देखा। वकील सा ब बगलंे झाकँ ने लगे। मखु ्तारआम ने उनकी ओर घूर कर देखा। अ लमदपेशकार आहद सब के सब उनकी ओर आचया की दृग्ष्ट से देखने लगे। न्यायािीश ने तीव्र स्वर से क ा - तुम जानते ो कक मैग्जस्ट्रेट के सामने खडे ो? दगु ाानाथ (दृढतापवू का ) - जी ाँ, भली-भाँतत जानता ूँ। न्यायािीश - तमु ् ारे ऊपर असत्य भाषण का अमभयोग लगाया जा सकता ै।
दगु ाना ाथ - अवय, यहद मेरा कथन झूठा ो। वकील ने क ा - जान पडता ै, ककसानों के दिू , घी और भंेट आहद ने य काया- पलट कर दी ै। और न्यायािीश की ओर साथका दृग्ष्ट से देखा। दगु ाना ाथ - आपको इन वस्तुओिं का अधिक तजबु ाा ोगा। मझु े तो अपनी रूखी रोहटयाँ ी अधिक प्यारी ै। न्यायािीश - तो इन असाममयों ने सब रुपया बेबाक कर हदया ै? दगु ाना ाथ - जी ाँ, इसने ग्जम्मे लगान की क कौडी भी बाकी न ींि ै। न्यायािीश - रसीदंे क्यों न ींि दींि? दगु ाना ाथ - मेरे मामलक की आज्ञा। 6 मैग्जस्ट्रेट ने नामलशंे डडसममस कर दी।ंि कँु वर सा ब को ज्यों ी इस पराजय की खबर ममली, उनके कोप की मात्रा सीमा से बा र ो गम। उन् ोंने पडंि डत दगु ाना ाथ को सकै डो कु वाक्य क े - नमक राम, वववासघाती, दषु ्ट। मनंै े उसका ककतना आदर ककया, ककंि तु कु त्ते की पँूछ क ीिं सीिी ो सकती ैय अंति में वववासघात कर ी गया। य अच्छा ुआ कक प.ंि दगु ाानाथ मैग्जस्ट्रेट का फै सला सनु ते ी मुख्तारआम को कंिु ग्जयाँ और कागजपत्र सुपदु ा कर चलते ु । न ीिं तो उन् ंे इस काया के फल में कु छ हदन ल्दी और गुड पीने की आवयकता पडती। कँु वर सा ब का लेन-देन ववशषे अधिक था। चादँ पार ब ुत बडा इलाका था। व ाँ के असाममयों पर कम सौ रुप बाकी थ।े उन् ंे वववास ो गया कक अब रुपया डू ब जा गा। वसूल ोने की आशा न ी।िं इस पिडं डत ने असाममयों को त्रबलकु ल
त्रबगाड हदया। अब उन् ंे मेरा क्या डर? अपने काररदिं ों और मिंत्रत्रयों की सला ली। उन् ोंने भी य ी क ा - अब वसलू ोने की सरू त न ी।ंि कागजात न्यायालय मंे पेश कक जा तो इनकम टैक्स लग जा गा। ककंि तु रुपया वसलू ोना कहठन ै। उजरदाररयाँ ोंगी। क ींि ह साब मंे कोम भलू तनकल आम तो र ी-स ी साख भी जाती र ेगी और दसू रे इलाकों का रुपया भी मारा जा गा। दसू रे हदन कुँ वर सा ब पूजा-पाठ से तनग्चतंि ो अपने चौपाल मंे बठै े , तो क्या देखते ैं कक चाँदपरु के असामी झिुडं के झडंिु चले आ र े ै। उन् ंे य देखकर भय ुआ कक क ीिं ये सब कु छ उपरव तो न करंेगे, ककिं तु ककसी के ाथ में क छडी तक न थी। मूलका आगे-आगे आता था। उसने दरू ी से झुककर वंदि ना की। ठाकु र सा ब को ीसा आचया ुआ, मानो वे कोम स्वप्न देख र े ों। 7 मलू का ने सामने आकर ववनयपूवका क ा - सरकार, म लोगों से जो कु छ भलू - चूक ुम ो उसे षों मा ककया जा । म लोग सब ुजरू के चाकर ै; सरकार ने मको पाला-पोसा ै। अब भी मारे ऊपर य ी तनगा र े। कुँ वर सा ब का उत्सा बढा। समझे कक पिडं डत के चले जाने से इस सबों के ोश हठकाने ु ंै। आज ककसका स ारा लंेगे। उसी खुराटा ने इन सबों को ब का हदया था। कडक कर बोले - वे तमु ् ारे स ायक पिंडडत जी क ाँ ग ? वे आ जाते तो जरा उनकी खबर ली जाती। य सुनकर मलूका की आखँ ों में आँसू भर आ । व बोला - सरकार, उनको कु छ न क ें। वे आदमी न ींि देवता थे। जवानी की सौगिंि ै, जो उन् ोंने आपकी कोम तनदिं ा की ो। वे बेचारे तो म लोगों को बार-बार समझाते थे कक देखो, मामलक से त्रबगाड करना अच्छी बात न ीिं। मसे कभी क लोटा पानी के रवादार न ु । चलते-चलते मसे क ग कक मामलक का जो कु छ तमु ् ारे ग्जम्मे तनकले,
चकु ा देना। आप मारे मामलक ै। मने आपका ब ुत खाया-पीया ै। अब मारी य ी ववनती सरकार से ै कक मारा ह साब-ककताब देखकर जो कु छ मारे ऊपर तनकले बताया जा । म क- क कौडी चकु ा दंेगे, तब पानी वपयगंे े। कँु वर सा ब प्रसन्न ो ग । इन् ींि रुपयों के मल कम बार खेत कटवाने पडे थ।े ककतनी बार घरों मंे आग लगवाम। अनके बार मार-पीट की। कै से-कै से दंिड हद । आज ये सब आप से आप सारा ह साब-ककताब साफ करने आ ै। य क्या जादू ै। मुख्तार सा ब ने कागजात खोले और असममयों ने अपनी-अपनी पोटमलया।ँ ग्जसके ग्जम्मे ग्जतना तनकला, बे-कान-पँूछ ह ला उतना रव्य सामने रख हदया। देखते-देखते सामने रुपयों का ढेर लग गया। छ सौ रुपया बात की बात मंे वसूल ो गया। ककसी के ग्जम्मे कु छ बाकी न र ा। य सत्यता और न्याय की ववजय थी। कठोरता और तनदायता से जो काम कभी न ुआ, व िमा और न्याय ने परू ा कर हदखाया। जब से ये लोग मकु दमा जीत आ तभी से उनको रुपया चुकाने की िुन सवार थी। पडिं डत जी को वे यथाथा में देवता समझते थे। रुपया चकु ा देने के मल उनकी ववशेष आज्ञा थी। ककसी ने बैल, ककसी ने ग ने बंििक रख।े य सब कु थ स न ककया, परिंतु पडंि डत जी की बात न टाली। कँु वर सा ब के मन में पिडं डत जी के प्रतत जो बरु े ववचार थे, सब ममट ग । उन् ोंने सदा से कठोरता से काम लेना सीखा था। उन् ीिं तनयमों पर वे चलते थ।े न्याय तथा सत्यता पर उनका वववास न था। ककंि तु आज उन् ंे प्रत्यषों देख पडा कक सत्यता और कोमलता मंे ब ुत ब ुत शग्क्त ै। ये असामी मेरे ाथ से तनकल ग थ।े मंै इसका क्या त्रबगाड सकता था? अवय व पिडं डत सच्चा और िमाता ्मा पुरुष था। उसमें दरू दमशता ा न ो, काल-ज्ञान न ो, ककिं तु इसमें संिदे न ीिं कक व तनःस्पृ और सच्चा पुरुष था।
8 कै सी ी अच्छी वस्तु क्यों न ो, जब तक मको उसकी आवयकता न ीिं ोती तब तक मारी दृग्ष्ट में उसका गौरव न ींि ोता। री दबू भी ककसी समय अशकफा याँ के मोल त्रबक जाती ै। कुँ वर सा ब का काम क तनःस्पृ मनषु ्य के त्रबना न ीिं रुक सकता था। अत व पंडि डत जी के इस सवोत्तम काया की प्रशिंसा ककसी कवव की कववता से अधिक न ुम। चादँ पार के असाममयों ने तो अपने मामलक को कभी ककसी प्रकार का कष्ट न प ुँचाया, ककंि तु अन्य इलाकोंवाले असामी उसी परु ाने ढिंग से चलते थे। उन इलाकों मंे रगड-झगड सदैव मची र ती थी। अदालत, मार-पीट, डाँट-डपट सदा लगी र ती थी। ककंि तु ये सब तो जमींदि ार के शंिगृ ार ंै। त्रबना इन सब बातों के जमीिदं ारी कै सी? क्या हदन भर बठै े -बठै े मग्क्खयाँ मारें? कँु वर सा ब इसी प्रकार पुराने ढंिग से अपना प्रबििं सँभालते जाते थे। कम वषा व्यतीत ो ग । कँु वर सा ब का कारोबार हदनोंहदन चमकता ी गया। यद्यवप उन् ोंने पाचँ लडककयों के वववा बडी िमू िाम से कक , परंितु ततस पर भी उनकी बढती मंे ककसी प्रकार की कमी न ुम। ाँ, शारीररक शग्क्तयाँ अवय कु छ-कु छ ढीली पडती गम। बडी भारी धचतंि ा य ी थी कक इतनी बडी सम्पग्त्त और ीवया का भोगनवे ाला कोम उत्पन्न न ुआ। भानजे, भतीजे और नवासे इस ररयासत पर दाँत लगा ु थे। कँु वर सा ब का मन अब इस सांिसाररक झगडों से कफरता जाता था। आ खर य रोना-िोना ककसके मल ? अब उनके जीवन-तनयम में क पररवतना ुआ। द्वार पर कभी-कभी सािु-सिंत िूनी रमाये ु देख पडत।े स्वयिं भगवद्गीता और ववष्णुस ्नाम पढते थे। पारलौककक धचतिं ा अब तनत्य र ने लगी। परमात्मा की कृ पा और सािु-सिंतों के आशीवााद से बढु ापे मंे उनको क लडका पैदा ुआ। जीवन की आशा ँ सफल ुम; पर दभु ाना यवश पतु ्र के जन्म ी से कुँ वर सा ब शारीररक व्याधियों से ग्रस्त र ने लगे। सदा वैद्यों और डाक्टरों का तातँ ा लगा
र ता था; लेककन दवाओंि का उल्टा प्रभाव पडता। ज्यों-त्यों करके उन् ोंने ढाम वषा त्रबता । अंित में उनकी शग्क्तयों ने जवाब दे हदया। उन् ंे मालूम ो गया कक अब सिंसार से नाता टू ट जा गा। अब धचतंि ा ने और िर दबाया, य सारा माल- असबाब, इतनी बडी संपि ग्त्त ककस पर छोड जाऊँ ? मन की इच्छा ँ मन ी मन र गम। लडके का वववा भी न देख सका। उसकी तोतली बातें सुनने का भी सौभानय न ुआ। ाय, अब इस कलेजे के टु कडे को ककसे सौपँू, जो इसे अपना पतु ्र समझ।े लडके की माँ स्त्री-जातत, न कु छ जाने, न समझ।े उससे कारोबार सँभलना कहठन ै। मखु ्तारआम, गमु ाते, काररदिं े ककतने ै, परंितु सब के सब स्वाथी- वववासघाती। क भी ीसा पुरुष न ींि ग्जस पर मेरा वववास जमेय कोटा आफ वाडसा के सपु ुदा करूँ तो य ाँ भी वे ी सब आपग्त्तयाँ। कोम इिर दबा गा, कोम उिर। अनाथ बालक को कौन पूछे गा? ाय, मनैं े आदमी न ीिं प चाना। मुझे ीरा ममल गया था, मनंै े उसे ठीकरा समझाय कै सा सच्चा, कै सा वीर, दृढप्रततज्ञ पुरुष थाय यहद व क ींि ममल जा तो इस अनाथ बालक के हदन कफर जा ँ। उनके हृदय मंे करुणा ै, दया ै। व अनाथ बालक पर तरस खा गा। ायँ क्या मझु े उसके दशना ममलेंगे? मैं उस देवता के चरण िोकर माथे पर चढाता। आसँ ओु िं के उसके चरण िोता। व ी यहद ाथ लगा तो य मेरी डू बती नाव पार लगे। 9 ठाकु र सा ब की दशा हदन पर हदन त्रबगडती गम। अब अिंतकाल आ प ुँचा। उन् ंे पिडं डत दगु ाना ाथ की रट लगी ुम थी। बच्चे का मँु देखते और कलेजे से क आ तनकल जाती। बार-बार पछताते और ाथ मलत।े ायय उस देवता को क ाँ पाऊँ ? जो कोम उसके दशान करा दे, आिी जायदाद उस पर न्योिावर कर दँ ू - प्यारे पिंडडतय मेरे अपराि षों मा करो। मैं अंिि ा था, अज्ञान था। अब मेरी बाँ पकडो। मुझे डू बने से बचाओ। इस अनाथ बालक पर तरस खाओ।
ह ताथी और सिबं ंिधियों का समू सामने खडा था। कँु वर सा ब ने उनकी ओर अिखुली आँखों से देखा। सच्चा ह तषै क ीिं देख न पडा। सबके चे रे पर स्वाथा की झलक थी। तनराशा से आखँ ें मँूद ली।ंि उनकी स्त्री फू ट-फू टकर रो र ी थी। तनदान उसे लज्जा त्यागनी पडी। व रोती ुम पास जाकर बोली - प्राणनाथ, मुझे और इस अस ाय बालक को ककस पर छोडे जाते ो? कुँ वर सा ब ने िीरे से क ा - पंडि डत दगु ाना ाथ पर। वे जल्द आ ंिगे। उनसे क देना कक मनैं े सब कु छ उनको भंेट कर हदया। य अंति तम वसीयत ै। ***
आप-बीिी प्रायः अधिकांिश साह त्य-सेववयों के जीवन मंे क ीसा समय आता ै, जब पाठकगण उनके पास श्रद्धा-पूणा पत्र भेजने लगते ै। कोम उनकी रचना-शैली की प्रशिंसा करता ै, कोम उनके सद्ववचारों पर मुनि ो जाता ै। लेखक को भी कु छ हदनों से य सौभानय प्राप्त ै। ीसे पत्रों को पढकर उसका हृदय ककतना गद्गद ो जाता ै, इसे ककसी साह त्य-प्रेमी ी से पूछना चाह । अपने फटे कंि बल पर बठै ा ुआ व गवा और आत्मगौरव की ल रों में डू ब जाता ै। भूल जाता ै कक रात को गीली लकडी से भोजन पकाने के कारण मसर मंे ककतना ददा ो र ा था, य खटमलों और मच्छरों ने रात-भर कै से नीिदं राम कर दी थी। 'मंै भी कु छ ूँ' य अ ंिकार उसे क षों ण के मल उन्मत्त बना देता ै। वपछले साल सावन के म ीने में मझु े क ीसा ी पत्र ममला। उसमें मेरी षों ुर रचनाओंि की हदल खोलकर दाद दी गम थी। पत्र-प्रेषक म ोदय स्वयिं क अच्छे कवव थ।े मैं उनकी कववता ँ पत्रत्रकाओिं में अक्सर देखा करता था। य पत्र पढकर फू ला न समाया। उसी वक्त जवाब मलखने बैठा। उस तरिंग में जो कु छ मलख गया, इस समय याद न ीिं। इतना जरूर याद ै कक पत्र आहद से अिंत तक प्रेम के उद्गारों से भरा ुआ था। मनंै े कभी कववता न ीिं की और न कोम गद्य-काव्य ी मलखा; पर भाषा को ग्जतना सँवार सकता था, उतना सँवारा। य ाँ तक कक जब पत्र समाप्त करके दवु ारा पढा तो कववता का आनिंद आया। सारा पत्र भाव-लामलत्य से पररपूणा था। पाचँ वंे हदन कवव म ोदय का दसू रा पत्र आ प ुँचा। व प ले पत्र से भी क ींि अधिक ममसा ्पशी था। 'प्यारे भैयाय' क कर मुझे सबंि ोधित ककया गया था; मेरी रचनाओिं की सचू ी और प्रकाशकों के नाम-हठकाने पछू े ग थे। अिंत मंे य शुभ समाचार ै कक 'मेरी पत्नी जी को आपके ऊपर बडी श्रद्धा ै। व बडे प्रेम से आपकी रचनाओिं को पढती ै। य ी पूछ र ी ै कक आपका वववा क ाँ ुआ ै। आपकी संति ानंे ककतनी ै तथा आपका कोम फोटो भी ै? ो तो कृ पया भेज दीग्ज ।' मेरी
जन्म-भमू म और वशंि ावली का पता भी पछू ा गया था। इस पत्र, ववशेषतः उसके अिंततम समाचार ने मझु े पलु ककत कर हदया। य प ला अवसर था कक मुझे ककसी मह ला के मखु से, चा े व प्रतततनधि द्वारा ी क्यों न ो, अपनी प्रशिंसा सुनने का सौभानय प्राप्त ुआ। गरूर का नशा था गया। िन्य ै भगवानय अब रम णयाँ भी मेरे कृ त्य की सरा ना करने लगीयंि मनैं े तुरिंत उत्तर मलखा। ग्जतने कणवा प्रय शब्द मेरी स्मतृ त के कोष मंे थे, सब खचा हद । मतै ्री और बििं ुत्व से सारा पत्र भरा ुआ था। अपनी वशंि ावली का वणना ककया। कदाग्जत मेरे पवू जा ों का ीसा कीतत-ा गान ककसी भाट ने भी न ककया ोगा। मेरे दादा क जमीदंि ार के काररदिं े थे, मनंै े उन् ंे क बडी ररयासत का मैनजे र बतलाया। अपने वपता को, जो क दफ्तर मंे क्लका थे, उस दफ्तर का प्रिानाध्यषों बना हदया। और कातकारी को जमीदिं ारी बना देना तो सािारण बात थी। अपनी रचनाओिं की सिंख्या तो न बढा सका, पर उनके म त्त्व, आदर और प्रचार का उल्लेख ीसे शब्दों में ककया, जो नम्रता की ओट में अपने गवा को तछपाते ंै। कौन न ींि जानता कक ब ुिा 'तचु ्छ' का अथा उससे ववपरीत ोता ै और 'दीन' के माने कु छ और ी समझे जाते ंै। स्पष्ट से अपनी बडाम करना उच्छृ ंि खलता ै; मगर सांिके ततक शब्दों से आप इसी काम को बडी आसानी से पूरा कर सकते ै। खरै , मेरा पत्र समाप्त ो गया और तत्षों ण लेटरबक्स के पेट मंे प ुँच गया। इसके बाद दो सप्ता तक कोम पत्र न आया। मनंै े उस पत्र में अपनी गृ णी की ओर से भी दो-चार समयोधचत बातंे मलख दी थीिं। आशा थी, घतनष्ठता और भी घतनष्ठ ोगी। क ींि कववता में मेरी प्रशिंसा ो जाय, तो क्या पछू नाय कफर तो साह त्य-ससंि ार में मैं ी नजर आऊँ य इस चुप्पी से तनराशा ोने लगी; लेककन इस डर से कक क ींि कवव जी मझु े मतलबी अथवा सहें टमटैं ल न समझ लंे, कोम पत्र न मलख सका।
आग्वन का म ीना था, और तीसरा प र। रामलीला की िमू मची ुम थी। मंै अपने क ममत्र के घर चला गया था। ताश की बाजी ो र ी थी। स सा क म ाशय मेरा नाम पछू ते ु आ और मेरे पास की कु रसी पर बठै ग । और मेरा उनसे कभी का पररचय न था। सोच र ा था, व कौन आदमी ै और य ाँ कै से आया? यार लोग उन म ाशय की ओर देखकर आपस में इशारेबाग्जयाँ कर र े थ।े उनके आकार-प्रकार में कु छ नवीनता अवय थी। यामवण,ा नाटा डील, मखु पर चचे क के दाग, नगंि ा मसर, बाल सँवारे ु , मसफा सादी कमीज, गले मंे फू लों की क माला, पैर मंे फु ल-बटू और ाथ मंे क मोटी-सी पसु ्तकय मंै ववग्स्मत ोकर नाम पूछा। उत्तर ममला - मुझे उमापततनारायण क ते ै। मंै उठकर उनके गले से मलपट गया। य व ी कवव म ोदय थे, ग्जनके कम प्रेम- पत्र मझु े ममल चकु े थ।े कु शल-समाचार पछू ा। पान-इलायची से खाततर की। कफर पछू ा - आपका आना कै से ुआ? उन् ोंने क ा - मकान पर चमल , तो सब वतृ ्तांित क ूँगा। मंै आपके घर गया था। व ाँ मालमू ुआ, आप य ाँ ै। पूछता ुआ चला आया। मैं उमापतत जी के साथ घर चलने को उठ खडा ुआय जब व कमरे से बा र तनकल ग , तो मेरे ममत्र ने पछू ा - य कौन सा ब ंै? मंै - मेरे क न दोस्त ै। ममत्र - जरा इनसे ोमशयार रह गा। मझु े तो उच्चक से मालूम ोते ै। मैं - आपका अनमु ान गलत ै। आप मेशा आदमी को उसकी सजिज से परखा करते ै। पर मनुष्य कपडों में न ींि, हृदय में र ता ै।
ममत्र - खरै ये र स्य की बातें आप ी जाने; मंै आपको आगा कक देता ूँ। मनंै े इसका कु छ जवाब न ीिं हदया। उमापतत जी के साथ घर पर आया। बाजार से भोजन मँगवाया। कफर बातें ोने लगीं।ि उन् ोंने मुझे अपनी कम कववता ँ सनु ाम। स्वर ब ुत सरस और मिुर था। कववता ँ तो मेरी समझ मंे खाक न आम, पर मनैं े तारीफों के पुल बािँ हद । झमू -झूम कर वा -वा करने लगा; जैसे मझु से बढकर कोम काव्य रमसक संसि ार मंे न ोगा। संधि ्या को म रामलीला देखने ग । लौटकर उन् ें कफर भोजन कराया। अब उन् ोंने अपना वतृ ्तांित सुनाना शुरू ककया। इस समय व अपनी पत्नी को लेने के मल कानपुर जा र े थे। उसका मकान कानपरु ी मंे ै। उनका ववचार ै कक क मामसक पत्रत्रका तनकालंे। उनकी कववताओिं के मल क प्रकाशक 1000 रु. देता ै; पर उनकी इच्छा तो य ै कक उन् ंे प ले पत्रत्रका मंे क्रमशः तनकालकर कफर अपनी ी लागत से पुस्तकाकार छपवा िं। कानपरु मंे उनकी जमीदंि ारी भी ै; पर व साह ग्त्यक जीवन व्यतीत करना चा ते ै। जमीिदं ारी से उन् ंे घणृ ा ै। उनकी स्त्री क कन्या-ववद्यालय मंे प्रिानाध्यावपका ै। आिी रात तक बातें ोती र ींि। अब उनमंे से अधिकांशि याद न ींि ै। ायँ इतना याद ै कक म दोनों ने ममलकर अपने भावी जीवन का क कायका ्रम तयै ार कर मलया था। मैं अपने भानय को सरा ता था कक भगवान ने बठै े -बठै ा ीसा सच्चा ममत्र भेज हदया। आिी रात बीत गम, तो सोये। उन् ें दसू रे हदन 8 बजे की गाडी से जाना था। मंै जब सोकर उठा, तब 7 बज चुके थे। उमापतत जी ाथ-मँु िोये तैयार बठै े थे। बोले - अब आज्ञा दीग्ज ; लौटते समय इिर ी से जाऊँ गा। इस समय आपको कु छ कष्ट दे र ा ूँ। षों मा कीग्ज गा। मंै कल चला, तो प्रातःकाल के 4 बजे थ।े दो बजे रात से पडा जाग र े था कक क ींि नीदंि न आ जा । बग्ल्क यों सम झ कक सारी रात जागना पडा; क्योंकक चलने की धचतंि ा लगी ुम थी। गाडी में बठै ा तो झपककयाँ आने लगी।िं कोट उतारकर रख हदया और लेट गया, तरु ंित नीदंि आ गम। मुगलसराय में नीिदं खुली। कोट गायबय नीच-े
ऊपर चारों तरफ देखा, क ींि पता न ींि। समझ गया, ककसी म ाशय ने उडा हदया। सोने की सजा ममल गम। कोट में 50 रु. खचा के मल रखे थे; वे भी उसके साथ उड ग । आप मझु े 50 रु. दंे। पत्नी को मैके से लाना ै; कु छ कपडे वगैर ले जाने पडगंे े। कफर ससरु ाल में सकै डो तर के नगे -जोग लगने ै। कदम-कदम पर रुप खचा ोते ै। न खचा कीग्ज तो ँसी ो। मैं इिर से लौटूँगा तो देता जाऊँ गा। मंै बडे सकिं ोच मंे पड गया। क बार प ले भी िोखा खा चुका था। तुरंित भ्रम ुआ क ीिं अबकी कफर व ी दशा न ो। लेककन शीघ्र ी मन के इस अवववास पर लग्ज्जत ुआ। संसि ार में सभी मनषु ्य क-से न ींि ोत।े य बेचारे इतने सज्जन ै। इस समय सकंि ट में पड ग ै। और ममथ्या सिदं े मंे पडा ूँ। घर मंे आकर पत्नी से क ा - तमु ् ारे पास कु छ रुप तो न ीिं ैं? स्त्री - क्या करोगे। मैं - मेरे ममत्र जो कल आ ै, उनके रुप ककसी ने गाडी मंे चुरा मलये। उन् ें बीवी को त्रबदा कराने ससुराल जाना ै। लौटती बार देते जा ँगे। पत्नी ने व्यिंनय करके क ा - तुम् ारे याँ ग्जतने ममत्र आते ै, सब तुम् े ठगने ी आते ैं, सभी सिकं ट मंे पडे र ते ै। मेरे पास रुप न ीिं ै। मनंै े खशु ामद करते ु क ा - लाओ दे दो, बेचारे तैयार खडे ै। गाडी छू ट जा गी। स्त्री - क दो, इस समय घर में रुप न ींि ैं। मंै - य क देना आसान न ींि ै। इसका अथा तो य ै कक मैं दररर ी न ींि, ममत्र- ीन भी ूँ; न ींि तो क्या मेरे पास 50 रु. का इिंतजाम न ो सकता। उमापतत को कभी वववास न आ गा कक मेरे पास रुप न ींि ै। इससे तो क ीिं
अच्छा ो कक साफ-साफ क हदया जा कक मको आप पर भरोसा न ीिं ै, म आपको रुप न ीिं दे सकत।े कम से कम अपना पदाा तो ढका र जा गा। श्रीमती ने झँझु ला कर सदंि कू की कंिु जी मेरे आगे फंे क दी और क ा - तमु ् ें ग्जनता ब स करना आता ै, उतना क ीिं आदममयों को परखना आता, तो अब तक आदमी ो ग ोतये ले जाओ, दे दो। ककसी तर तमु ् ारी मरजाद तो बनी र े। लेककन उिार समझकर मत दो, य समझ लो कक पानी मंे फंे के देते ंै। मुझे आम खाने से काम था, पेड धगनने से न ीि।ं चुपके से रुप तनकाले और लाकर उमापतत को दे हद । कफर लौटती बार आकर रुप दे जाने का आवासन दे कर व चल हद । सातवंे हदन शाम को व घर से लौट आ । उनकी पत्नी और पुत्री भी साथ थी। मेरी पत्नी ने शक्कर और द ी खलाकर उनका स्वागत ककया। मँु -हदखाम के 20 रु. हद । उनकी पुत्री को ममठाम खाने के मल 2 रु. हद । मनंै े समझा था,उमापतत आते ी आते मेरे रुप धगनने लगंेगे; लेककन उन् ोंने प र रात ग तक रुपयों का नाम भी न ींि मलया। जब मैं घर मंे सोने गया, तो बीवी स क ा - इन् ोंने तो रुप न ींि हद जीय पत्नी ने व्यंिनय से ँस कर क ा - तो क्या सचमचु तुम् ंे आशा थी कक आते ी आते तमु ् ारे ाथ में रुप रख दंेगे? मनंै े तो तमु ् ंे प ले ी क हदया था कक कफर पाने की आशा से रुप मत दो; य समझ लो कक ककसी ममत्र को स ायताथा दे हद । लेककन तमु भी ववधचत्र आदमी ो। मैं लग्ज्जत और चुप ो र ा। उमापतत जी दो हदन र े। मेरी पत्नी उनका यथोधचत आदर-सत्कार करती र ी। लेककन मझु े उतना सतिं ोष न था। मैं समझता था, इन् ोंने मझु े िोखा हदया.
तीसरे हदन प्रातःकाल व चलने को तयै ार ु । मझु े अब भी आशा थी कक व रुप देकर जा ंिगे। लेककन जब उनकी नम रामक ानी सुनी तो सन्नाटे में आ गया। व अपना त्रबस्तर बाँिते ु बोले - बडा खेद ै कक मंै अबकी बार आपके रुप न दे सका। बात य ै कक मकान पर वपता जी से भेंट ी न ीिं ुम। व त सील-वसलू करने गाँव चले ग थ।े और मझु े इतना अवकाश न था कक गावँ तक जाता। रेल का रास्ता न ीिं ै। बैलगाडडयों पर जाना पडता ै। इसीमल मैं क हदन मकान पर र कर ससरु ाल चला गया। व ाँ सब रुप खचा ो ग । त्रबदाम के रुप न ममल जात,े तो य ाँ तक आना कहठन था। अब मेरे पास रेल का ककराया तक न ींि ै। आप मझु े 25 रु. और दे दंे। मैं व ाँ जाते ी भेज दँगू ा। मेरे पास इक्के तक का ककराया न ींि ै। जी मंे तो आया कक टका-सा जवाब दे दँ;ू पर इतनी अमशष्टता न ो सकी। कफर पत्नी के पास गया और रुप माँगे। अबकी उन् ोंने त्रबना कु छ क े-सनु े रुप तनकाल कर मेरे वाले क हदये। मनैं े उदासीन भाव से रुप उमापतत दी को हदये। जब उनकी पतु ्री और अिाधा गनी जीने से उतर गम, तो उन् ोंने त्रबस्तर उठाया और मझु े प्रमाण ककया। मनंै े बठै े -बैठे मसर ह लाकर जवाब हदया। उन् ंे सडक तक प ुँचाने भी न गया। क सप्ता के बाद उमापतत जी ने मलखा - मंै कायवा श बरार जा र ा ूँ। लौट कर रुप भेजँूगा। 15 हदन के बाद क पत्र मलखकर कु शल-समाचार पछू े । कोम उत्तर न आया। 15 हदन के बाद कफर रुपयों का तकाजा ककया। उसका भी जवाब न ममला। क म ीने के बाद कफर तकाजा ककया। उसका भी य ी ालय क रग्जस्टरी पत्र भेजा। व प ुँच गया, इसमंे कोम सिंदे न ींि; लेककन जवाब उसका भी न आया। समझ गया, समझदार जोरू ने जो कु छ क ा था, व अषों रशः सत्य थाय तनराश ोकर चुप ो र ा।
इन पत्रों की मनैं े पत्नी से चचाा भी न ींि की और न उसी ने कु छ इस बारे मंे पूछा। 2 इस कपट-व्यव ार का मुझ पर व ी असर पडा तो सािारणतः स्वाभाववक रुप से पडना चाह । कोम ऊँ ची और पववत्र आत्मा इस छल पर भी अटल र सकती थी। उसे य समझ कर सतिं ोष ो सकता था कक मनंै े अपने कतवा ्य को परू ा कर मलया। यहद ऋणी ने ऋण न ीिं चकु ाया, तो मेरा क्या अपराि। पर मैं इतना उदार न ीिं ूँ। य ाँ तो म ीनों मसर खपाता ूँ, कलम तघसता ूँ, तब जाकर नकद- नारायण के दशान ोते ैं। इसी म ीने की बात ै। मेरे यतिं ्रालय में क नया किं पोजीटर त्रब ार-प्रांति से आया। काम में चतुर जान पडता था। मनैं े उसे 15 रु. मामसक पर नौकर रख मलया। प ले ककसी अगिं ्रेजी स्कू ल में पढता था। अस योग आंिदोलन के कारण पढना छोड बैठा था। घरवालों ने ककसी प्रकार की स ायता देने से इनकार ककया। वववश ोकर उसने जीववका के मल य पेशा अग्ख्तयार कर मलया। कोम 17-18 वषा की उम्र थी। स्वभाव मंे गभंि ीरता थी। बातचीत ब ुत सलीके से करता था। य ाँ आने के तीसरे हदन बुखार आने लगा। दो-चार हदन तो ज्यों-त्यों करके काटे, लेककन जब बुखार न छू टा, तो घबरा गया। घर की याद आम। और कु छ न स ी, घरवाले क्या दवा-दरपन भी न करेंगे। मेरे पास आकर बोला - म ाशय, मंै बीमार ो गया ूँ। आप रुप दे दें तो घर चला जाऊँ । व ाँ जाते ी रुपयों का प्रबिंि करके भेज दँगू ा। व वास्तव में बीमार था। मंै उससे भली-भाँतत पररधचत था। य भी जानता था कक य ाँ र कर कभी स्वास्थ्य-लाभ न ीिं कर सकता। उसे सचमुच स ायता की जरूरत थी। पर मुझे शिंका ुम कक क ीिं य भी रुप जम न कर जा । जब क ववचारशील, सुयोनय ववद्वान पुरुष िोखा दे सकते
ै, तो ीसे अद्धामशक्षषों त नवयुवक से कै से य आशा की जा कक व अपने वचन का पालन करेगा? मैं कम ममनट तक घोर सिंकट में पडा र ा। अतंि में बोला - भम, मुझे तुम् ारी दशा पर ब ुत दःु ख ै। मगर मैं इस समय कु छ न कर सकूँ गा। त्रबलकु ल खाली ाथ ूँ। खदे ै। य कोरा जवाब सुनकर उसकी आखँ ों से आँसू धगरने लगे। व बोला - आप चा े तो कु छ न कु छ प्रबिंि अवय कर सकते ै। मैं जाते ी आपके रुप भेज दँगू ा। मनैं े हदल में क ा - य ाँ तुम् ारी नीयत साफ ै, लेककन घर प ुँचकर भी य ी नीयत र ेगी, इसका क्या प्रणाम ै? नीयत साफ र ने पर भी मेरे रुप दे सकोगे या न ींि य ी कौन जाने? कम से कम तमु से वसलू करने का मेरे पास कोम सािन न ींि ै। प्रकट में क ा - इसमें मुझे कोम सिंदे न ीिं ै, लेककन खेद ै कक मेरे पास रुप न ीिं ै। ाँ, तमु ् ारी ग्जतनी तनखवा तनकलती ो व ले सकते ो। उसने कु छ जवाब न ीिं हदया, ककंि कतवा ्यववमढू की तर क बार आकाश की ओर देखा और चला गया। मेरे हृदय मंे कहठन वदे ना ुम। अपनी स्वाथपा रता पर नलातन ुम। पर अंति को मनैं े जो तनचय ककया था उसी पर ग्स्थर र ा। इस ववचार से मन को सितं ोष ो गया कक मैं ीसा क ाँ का िनी ूँ जो यों रुप पानी में फें कता कफरूँ । य ै उस कपट का पररणाम, जो मेरे कवव ममत्र ने मेरे साथ ककया। मालूम न ींि, आगे चलकर इस तनबला ता का क्या कु फल तनकलता, पर सौभानय से उसकी नौबत न आम। मवर को मुझे इस अवयश से बचाना मंजि रू था। जब व आँखों में आँसू-भरे मेरे पास से चला, तो कायाालय के क क्लका , प.ंि
पथृ ्वीनाथ से उसकी भेंट ो गम। पिंडडत जी ने उससे ाल पूछा। परू ा वतृ ्तांित सनु लेने पर त्रबना ककसी आगे-पीछे के उन् ोंने 10 रु. तनकालकर उसे दे हदये। ये रुप उन् ंे कायाला य के मुनीम से उिार लेने पड।े मझु े य ाल मालमू ुआ, तो हृदय के ऊपर क बोझ-सा उतर गया। अब व बेचारा मजे से अपने घर प ुँच जा गा। य सिंतोष मफु ्त में ी प्राप्त ो गया। कु छ अपनी नीचता पर लज्जा भी आम। मैं लंबि े-लिबं े लेखों में दया, मनषु ्यता और सद्व्यव ार का उपदेश ककया करता था; पर अवसर पडने पर साफ जान बचाकर तनकल गयाय और, य बेचारा क्लका , जो मेरे लेखों का भक्त था, इतना उदार और दयाशील तनकलाय गुरु गडु ी र े, चले ा शक्कर ो ग । खैर, उसमंे भी क व्यंिनय-पणू ा सतिं ोष ुआ कक मेरे उपदेशों का असर मुझे पर न ुआ, न स ी; दसू रों पर तो ुआय धचराग के तले अँिरे ा र ा तो क्या ुआ, उसका प्रकाश तो फै ल र ा ैय पर, क ीिं बेचारे को रुप न ममले ( और शायद ी ममले, इसकी ब ुत कम आशा ै) तो खबू छकें गे। जरत को आडे ाथों लँगू ा। ककंि तु मेरी य अमभलाषा न पूरी ुम। पाँचवे हदन रुप आ ग । ीसी और आखँ ंे खोल देनेवाली यातना मुझे और कभी न ींि ममली थी। खैररयत य ी थी कक मनैं े इस घटना की चचाा स्त्री से न ींि की थी; न ीिं तो मुझे घर मंे र ना भी मुग्कल ो जाता। 3 उपयकुा ्त वतृ ्तांित मलखकर मनैं े क पत्रत्रका मंे भेज हदया। मरे ा उद्देय के वल य था कक जनता के सामने कपट-व्यव ार के कु पररणाम का क दृय रखू।ँ मुझे स्वप्न में भी आशा न थी कोम प्रत्यषों फल तनकलेगा। इसी से जब चौथे हदन अनायास मेरे पास 75 रु. का मनीआडरा प ुँचा, तो मेरे आनिंद की सीमा न र ी। प्रेषक व ी म ाशय थे - उमापतत। कू पन पर के वल 'षों मा' मलखा ुआ था। मनैं े रुप ले जाकर पत्नी के ाथों मंे रख हद और कू पन हदखलाया। उसने अनमने भाव से क ा - इन् ंे ले जाकर यत्न से अपने सदिं कू मंे रखो। तमु ीसे लोभी प्रकृ तत के मनषु ्य ो, य मुझे आज ज्ञात ुआ। थोडे-से रुपयों के मल
ककसी के पीछे पंिजे झाडकर पड जाना सज्जनता न ींि ै। जब कोम मशक्षषों त और ववनयशील मनुष्य अपने वचन का पालन न करे, तो य ी समझना चाह कक व वववश ै। वववश मनषु ्य को बार-बार तकाजों से लग्ज्जत करना भलमिशं ी न ींि ै। कोम मनषु ्य, ग्जसका सवथा ा नैततक पतन न ींि ो गया ै, यथाशग्क्त ककसी को िोखा न ीिं देता। इन रुपयों को मैं तब तक अपने पास न ींि रखगूँ ी, जब तक उमापतत का कोम पत्र न ीिं आ जा गा कक क्यों रुप भेजने मंे इतना ववलिंब ुआ। पर इस समय मैं ीसी उदार बातंे सनु ने को तैयार न था। डू बा ुआ िन ममल गया, इसकी खुशी से फू ला न समाता था। ***
राज्य-भक्ि सधंि ्या का समय था। लखनऊ के बादशा नामसरुद्दीन अपने मुसा बों और दरबाररयों के साथ बाग की सरै कर र े थे। उनके मसर पर रत्नजहटत मकु ु ट की जग अगंि ्रेजी टोपी थी। वस्त्र भी अंगि ्रेजी ी थ।े मसु ा बों मंे पाचँ अगिं ्रेज थे। उनमें से क के किं िे पर मसर रख कर बादशा चल र े थ।े तीन-चार ह दंि सु ्तानी भी थ।े उनमंे से क राजा बख्तावरमसिं थ।े व बादशा ी सेना के अध्यषों थे। उन् ंे सब लोग 'जने रल' क ा करते थ।े व अिडे आदमी थे। शरीर खूब गठा ुआ था। लखनवी प नावा उन पर ब ुत सजता था। मुख से ववचारशीलता झलक र ी थी। दसू रे म ाशय का नाम रोशनदु ्दौला था। य राज्य के प्रिानमतिं ्री थ।े बडी-बडी मँूछंे और नाटा डील था, ग्जसे ऊँ चा करने के मल व तन कर चलते थे। नते ्रों से गवा टपक र ा था। शषे लोगों मंे क कोतवाल था और दो बादशा के रषों क। यद्यवप अभी 19वींि शताब्दी का आरंिभ ी था, पर बादशा ने अंिग्रेजी र न-स न अग्ख्तयार कर ली थी। भोजन भी प्रायः अंिग्रेजी ी करते थ।े अगंि ्रेजों पर उनका असीम वववास था। व सदैव उनका पषों मलया करते थे। मजाल न थी कक कोम बडे-से-बडा राजा या राजकमचा ारी ककसी अगिं ्रेज से बराबरी करने का सा स कर सके । अगर ककसी में य ह म्मत थी, तो व राजा बख्तावरमसिं थे। उनसे कंि पनी का बढता ुआ अधिकार न देखा जाता था; कंि पनी की उस सेना की सिखं ्या जो उसने अवि के राज्य की रषों ा के मल लखनऊ में तनयुक्त की थी, हदन-हदन बढती जाती थी। उसी पररणाम से सने ा का व्यय भी बढ र ा था। राज-दरबार उसे चुका न सकने के कारण किं पनी का ऋणी ोता जाता था। बादशा ी सेना की दशा ीन से ीनतर ोती जाती थी। उसमें न संिगठन था, न बल। बरसों से मसपाह यों का वते न न ममलता था। शस्त्र सभी परु ाने थ।े वदी फटी ुम। कवायद का नाम न ी।िं कोम उनका पूछनेवाला न था। अगर राजा बख्तावरमसंि वेतन- ववृ द्ध या न शस्त्रों के सिबं िंि में कोम प्रयत्न करते तो किं पनी का रेजीडंटे उसका घोर ववरोि औऱ राज्य पर ववरो ात्मक शग्क्त-संचि ार का दोषारोपण करता था।
उिर से डाँट पडती तो बादशा अपना गसु ्सा राजा सा ब पर उतारत।े बादशा के सभी अंगि ्रेज मसु ा ब राजासा ब से शंिककत र ते और उनकी जड खोदने का प्रयास ककया करते थ।े पर व राज्य का सेवक क ओर अव ेलना और दसू री ओर से घोर ववरोि स ते ु भी अपने कतवा ्य का पालन करता जाता था। मजा य कक सेना भी उससे संति षु ्ट न थी। सेना में अधिकाशिं लखनऊ के शो दे और गिुंडे भरे ु थ।े राजा सा ब जब उन् ंे टा कर अच्छे -अच्छे जवानों की भरती करने की चषे ्टा करते, तो सारी सेना मंे ा ाकार मच जाता। लोगों को शिंका ोती कक य राजपूतों की सेना बनाकर क ींि राज्य ी पर तो ाथ न ीिं बढाना चा ते? इसमल मुसलमान भी उनसे बदगुमान र ते थ।े राजा सा ब के मन में बार-बार प्रेरणा ोती कक इस पद को त्याग कर चले जा ँ; पर य भय उन् ें रोकता था कक मेरे टते ी अगंि ्रेजों की बन आ गी और बादशा उनके ाथों में कठपतु ली बन जा ँगे, र ी-स ी सेना के ाथ अवि-राज्य का अग्स्तत्त्व भी ममट जा गा। अत व इतनी कहठनाइयों के ोते ु भी चारों ओर बरै -ववरोि से धिरे ोने पर भी, व अपने पद से टने का तनचय न कर सकते थ।े सबसे कहठन समस्या य थी कक रोशनुद्दौला भी राजा सा ब से खार खाता था। उसे सदैव शिंका र ती कक य मराठों से मतै ्री करके अवि-राज्य को ममटाना चा ते ै। इसमल व राजा सा ब के प्रत्येक काम मंे बािा डालता र ता था। उसे अब भी आशा थी कक अवि का मुसलमानी राज्य अगर जीववत र सकता ै, तो अंगि ्रेजों के सरंि षों ण मंे, अन्यथा य अवय ह दंि ओु िं की बढती ुम शग्क्त का ग्रास बन जा गा। वास्तव मंे बख्तावरमसिं की दशा अत्यितं करुण थी। व अपनी चतरु ाम से ग्जह्वा की भाँतत दाँतों के बीच में पडे ु अपना काम कक जाते थे। यों तो व स्वभाव के अक्खड थे, अपना काम तनकालने के मल मिुरता और मदृ लु ता, शील और ववनय का आवा न करते र ते थ।े इससे उनके व्यव ार में कृ ममत्रता आ जाती थी और व शत्रुओंि को उनकी ओर से और भी सशिंक बना देती थी।
बादशा ने क अंिग्रेज मुसा ब से पूछा - तमु को मालमू ै, मैं तमु ् ारी ककतनी खाततर करता ूँ? मेरी सल्तनत में ककसी की मजाल न ींि कक व ककसी अगंि ्रेज को कडी तनगा से देख सके । अिगं ्रेज मुसा ब ने मसर झुका कर क ा - म ुजूर की इस मम रबानी को कभी न ीिं भूल सकत।े बादशा - इमाम ुसैन की कसम, अगर य ाँ कोम आदमी तुम् ें तकलीफ दे, तो मैं उसे फौरन ग्जंिदा दीवार में चनु वा दँ।ू बादशा की आदत थी कक व ब ुिा अपनी अिंग्रेजी टोपी ाथ में लेकर उस उँ गली पर नचाने लगते थे। रोज-रोज नचाते-नचाते टोपी में उँ गली का घर ो गया था। इस समय तो उन् ोंने टोपी उठाकर उँ गली पर रखी तो टोपी में छे द ो गया। बादशा का ध्यान अगंि ्रेजों की तरफ था। बख्तावरमसिं के मँु से ीसी बात सुन कर कबाब ु जाते थ।े उक्त कथन में ककतनी खशु ामद, ककतनी नीचता और अवि की प्रजा तथा राजों का ककतना अपमान थाय और लोग तो टोपी का तछर देखकर ँसने लगे, पर राजा बख्तावरमसंि के मँु से अनायास तनकल गया - ुजूर, ताज मंे सरु ाख ो गया। राजा सा ब के शत्रुओंि ने तरु िंत कानों पर उँ गमलयाँ रख ली।ंि बादशा को भी ीसा मालमू ुआ कक राजा ने मुझ पर व्यिनं य ककया। उनके तवे र बदल ग । अंगि ्रेजों और अन्य सभासदों में इस प्रकार कानाफू सी शुरू की, जैसे कोम म ान अनथा ो गया। राजा सा ब के मँु से अनगला शब्द अवय तनकले। इसमें कोम संिदे न ींि था। सभंि व ै, उन् ोंने जान-बझू कर व्यनिं य न ककया ो, उनके दःु खी हृदय ने सािारण चते ावनी को य तीव्र रूप दे हदया; पर बात त्रबगड जरूर गम थी। अब उनके शत्रु उन् ंे कु चलने के ीसे सुदंि र अवसर को ाथ से क्यों जाने देत?े
राजा सा ब ने सभा का य रंिग देखा, तो खनू सदा ो गया। समझ ग , आज शत्रुओिं के पजिं े मंे फँ स गया और ीसा बुरा फँ सा कक भगवान ी तनकालंे , तो तनकल सकता ूँ। बादशा ने कोतवाल से लाल आँखंे करके क ा - इस नमक राम को कै द कर लो और इसी वक्त इसका मसर उडा दो। इसे मालमू ो जा कक बादशा ों से बेअदबी करने का क्या नतीजा ोता ै। कोतवाल को स सा 'जने रल' पर ाथ बढाने की ह म्मत न पडी। रोशनुद्दौला ने उससे इशारे से क ा - खडे सोचते क्या ो, पकड लो, न ीिं तो तमु भी इसी आग मंे जल जाओगे। तब कोतवाल ने आगे बढ कर बख्तावरमसिं को धगरफ्तार कर मलया। क षों ण मंे उनकी मु कें कस दी गम। लोग उन् ंे चारों ओर से घरे कर कत्ल करने ले चले। बादशा ने मसु ा बों से क ा - मैं भी व ींि चलता ूँ। जरा देखूगँ ा कक नमक रामों की लाश क्योंकर तडपती ै। ककतनी घोर पशुता थीय य ी प्राण जरा देर प ले बादशा का वववासपात्र थाय का क बादशा ने क ा - प ले इस नमक राम की खलअत उतार लो। मैं न ींि चा ता कक मंै खलअत की बेइज्जती ो। ककसकी मजाल थी, जो जरा भी जबान ह ला सके । मसपाह यों ने राजा सा ब के वस्त्र उतारने शुरू कक । दभु ाना यवश उनके जेब से वपस्तौल तनकल आम। उसकी दोनों नामलयाँ भरी ुम थी। वपस्तौल देखते ी बादशा की आखँ ों से धचनगाररयाँ तनकलने लगींि। बोले - कमस ै जरत इमाम ुसनै की, अब इसकी जाबँ ख्शी न ींि करूँ गा। मेरे साथ भरी ुम वपस्तौल लाने की क्या जरूरतय जरूर इसकी नीयत में
कफतूर था। अब मैं इसे कु त्तों से नुचवाऊँ गा। (मसु ा बों की तरफ देख कर) देखा तमु लोगों ने इसकी नीयतय मैं अपनी आस्तीन मंे साँप पाले ु था। आप लोगों के खयाल में इसके पास भरी ुम वपस्तौल का तनकलना क्या माने रखता ै। अगंि ्रेजों को के वल राजा सा ब को नीचा हदखाना मंिजरू था। वे उन् ंे अपना ममत्र बना कर ग्जतना काम तनकाल सकते थे उतना उनके मारे जाने से न ी।ंि इसी से क अिंग्रेज मुसा ब ने क ा - मुझे तो इसमंे कोम गैरमनु ामसब बात न ीिं मालूम ोती। जने रल आपका बाडीगाडा (रषों क) ै। उसे मेशा धथयारबिंद र ना चाह । खासकर जब आपकी खदमत में ो। न ीिं मालूम, ककस वक्त इसकी जरूरत आ पड।े दसू रे अिंग्रेज मसु ा बों ने भी इस ववचार की पगु ्ष्ट की। बादशा के क्रोि की ज्वाला कु छ शांित ुम। अगर ये बातंे ककसी ह दिं सु ्तानी मसु ा ब की जबान से तनकली ोतीिं, तो उनकी जान की खैररयत न थी। कदाधचत अंगि ्रेजों को अपनी न्याय-परता का नमूना हदखाने ी के मल उन् ोंने य प्रन ककया था। बोले - कसम जरत इमाम की, तमु सब के सब शेर के मँु से उसका मशकार छीनना चा ते ोय पर मंै क न मानँगू ा, बुलाओ कप्तान सा ब को। मंै उनसे य ी सवाल करता ूँ। अगर उन् ोंने भी तुम लोगों के खयाल की तामद की, तो इसकी जान न लँूगा। और अगर उनकी राय इसके खलाफ ुम, तो इस मक्कार को इसी वक्त ज न्नमु भेज दँगू ा। मगर खबरदार, कोम उनकी तरफ ककसी तर का इशारा न करे। वनाा मंै जरा भी ररआयत न करूँ गा। सब के सब मसर झकु ा बठै े र ें। कप्तान सा ब थे तो राजा सा ब के आउरदे, पर इन हदनों बादशा की उन पर ववशेष कृ पा थी। व उन सच्चे राज-भक्तों में थे, जो अपने को राजा का न ींि, राज्य का सेवक समझते थे। व दरवार से अलग र ते थ।े बादशा उनके कामों से ब ुत सिंतुष्ट थ।े क आदमी तरु िंत कप्तान सा ब को बुला लाया। राजा सा ब की जान उनकी मटु ्ठी मंे थी। रौशनुद्दौला को छोड कर ीसा शायद क व्यग्क्त
भी न था, ग्जसका हृदय आशा और तनराशा से न िडक र ा ो। सब मन मंे भगवान से य ी प्राथना ा कर र े थे कक कप्तान सा ब ककसी तर से इस समस्या को समझ जा ।ँ कप्तान सा ब आ , और उडती ुम दृग्ष्ट से सभा की ओर देखा। सभी की आखँ ें नीचे झकु ी ुम थी। व कु छ अतनग्चत भाव से मसर झुका कर खडे ो ग । बादशा ने पछू ा - मेरे मुसा बों को अपनी जबे में भरी ुम वपस्तौल रखना मुनामसब ै या न ीिं? दरबाररयों की नीरवता, उनके आशंिककत चे रे और उनकी धचतिं ायुक्त अिीरता देखकर कप्तान सा ब को वतामान समस्या की कु छ टो ममल गम। व तनभीक भाव से बोले - ुजूर, मेरे ख्याल मंे तो य उनका फजा ै। बादशा के दोस्त- दु मन सभी ोते ै। अगर मसु ा ब लोग उनकी रषों ा का भार न लेंगे, तो कौन लेगा? उन् ें सफा वपस्तौल ी न ींि, और भी तछपे ु धथयारों से लैस र ना चाह । न जाने कब धथयारों की जरूरत आ पडे, तो व ीन वक्त पर क ाँ दौडते कफरंेगे? राजा सा ब के जीवन के हदन बाकी थ।े बादशा ने तनराश ोकर क ा - रोशन, इसे कत्ल मत करना, काल कोठरी में कै द कर दो। मुझसे पछू े बगरै इसे दाना- पानी कु छ न हदया जा । जाकर इसके घर का सारा माल-असबाब जब्त कर लो और सारे खानदान को जले में बंदि कर दो। इसके मकान की दीवारंे जमींि-दोज करा देना। घर में क फू टी ाडँ ी भी न र ने पा । इससे तो य ी क ीिं अच्छा था कक राजा सा ब ी की जान जाती। खानदान की बेइज्जती तो न ोती, मह लाओंि का अपमान तो न ोता, दरररता की चोटें तो न स नी पडतीय ववकार को तनकलने का मागा न ीिं ममलता, तो व सारे शरीर मंे फै ल जाता ै। राजा के प्राण तो बचे, पर सारे खानदान को ववपग्त्त में डालकरय
रोशनदु ्दौला को मँु माँगी मरु ाद ममली। उसकी मष्याा कभी इतनी सितं षु ्ट न ुम थी। व मगन था कक आज व काँटा तनकल गया, जो बरसों से हृदय में चुभा ुआ था। आज ह दिं -ू राज्य का अतिं ुआ। अब मेरा मसक्का चलेगा। अब मैं समस्त राज्य का वविाता ूँगा। सिंध्या से प ले ी राजा सा ब की सारी स्थावर और जगंि म सिपं ग्त्त कु का ो गम। वदृ ्ध माता-वपता, सकु ोमल रम णयाँ, छोटे-छोटे बालक, सब के सब जले कै द कर हद ग । ककतनी करुण दशा थी। वे मह ला ँ, ग्जन पर कभी देवताओंि की भी तनगा न पडी थी, खुले मँु , नगंि े पैर, पावँ घसीटती, श र की भरी सडकों और गमलयों से ोती ुम, मसर झुका , शोक- धचत्रों की भातँ त, जले की तरफ चली जाती थी।ंि सशस्त्र मसपाह यों का क बडा दल साथ था। ग्जस पुरुष के क इशारे पर कम घिटं े प ले सारे श र मंे लचल मच जाती, उसी के खानदान की य ददु ाशाय 2 राजा बख्तावरमसंि को बिदं ी-गृ में र ते ु क मास बीत गया। व ाँ उन् ें सभी प्रकार के कष्ट हद जाते थे। य ाँ तक कक भोजन भी यथासमय न ममलता था। उनके पररवार को भी असह्य यातना ँ दी जाती थीं।ि लेककन राजा सा ब को बिंदी-गृ में क प्रकार की शातंि त का अनुभव ोता था। व ाँ प्रतत-षों ण य खटका तो न र ता था कक बादशा मेरी ककसी बात से नाराज न ो जा ँ; मुसा ब लोग क ीिं मेरी मशकायत तो न ींि कर र े ै। शारीररक कष्टों का स ना उतना कहठन न ीिं ै, ग्जतना कक मानमसक कष्टों का। य ाँ सब तकलीफंे थीिं, पर मसर पर तलवार तो न ीिं लटक र ी थी. उन् ोंने मन में तनचय ककया कक अब चा े बादशा उन् ें मुक्त भी कर दें, मगर मैं राज-काज से अलग ी र ूँगा। इस राज्य का सूया अस्त ोनेवाला ै; कोम मानवी-शग्क्त उसे ववनाश-हदशा मंे लीन ोने से न ीिं रोक सकती। ये उसी के पतन के लषों ण ैं। न ीिं तो क्या मेरी राज-भग्क्त का य ी पुरस्कार ममलना चाह था? मनंै े अब तक ककतनी कहठनाइयों से राज्य की रषों ा की ै, य भगवान ी जानते ै। क ओर तो बादशा की तनरिंकु शता,
दसू री ओर बलवान और युग्क्त-संपि न्न शत्रुओंि की कू टनीतत - इस मशला और भँवर के बीच मंे राज्य की नौका को चलाते र ना ककतना कष्टसाध्य थाय शायद ी ीसा कोम हदन गजु रा ोगा, ग्जस हदन मेरा धचत्त प्राण-शिंका से आिंदोमलत न ुआ ो। इस सेवा, भग्क्त और तल्लीनता का य परु स्कार ै। मेरे मुख से व्यंिनय-शब्द अवय तनकले, लेककन उनके मल इतना कठोर दंिड? इससे तो य क ीिं अच्छा था कक मंै कत्ल कर हदया गया ोता, अपनी आँखों से अपने पररवार की य दगु ता त तो न देखता? सुनता ूँ वपता जी को सोने के मल चटाम न ीिं दी गम ैय न जाने ग्स्त्रयों पर कै से-कै से अत्याचार ो र े ोंगे। लेककन इतना जानता ूँ कक प्यारी सुखदा अंित तक अपनी स्तीत्व की रषों ा करेगी; अन्यथा प्राण त्याग देगी। मझु े बेडडयों की परवा न ींि। पर सुनता ूँ लडकों के परै ों मंे भी बेडडयाँ डाली गम ै। य सब इसी कु हटल रोशनदु ्दौला की शरारत ै। ग्जसका जी चा े, इस समय सता ले, कु चल ले, मुझे ककसी से कोम मशकायत न ीि।ं भगवान से य ी प्राथना ा ै कक अब ससंि ार से उठा ले। मझु े अपने जीवन मंे जो कु छ करना था, कर चकु ा, और उसका खूब फल पा चकु ा। मेरे-जैसे आदमी के मल संसि ार मंे स्थान न ीिं ै। राजा इन् ींि ववचारों मंे डू बंे ु थ।े स सा उन् ें अपनी काल कोठरी की ओर ककसी के आने की आ ट ममली। रात ब ुत जा चुकी थी। चारों ओर सन्नाटा छाया था, और उस अिंिकारमय सन्नाटे में ककसी के पैरों की चाप स्पष्ट सनु ाम देती थी। कोम ब ुत पाँव दबा-दबाकर चला आ र ा था। राजा का कलेजा िकु् - िक्ु करने लगा। व उठ कर खडे ो ग । म तनःशस्त्र और प्रततकार के मल असमथा ोने पर भी बैठे -बैठे वारों का तनशाना न ींि बनना चा त।े खडे ो जाना आत्मरषों ा का अितं तम प्रयत्न ै। कोठरी मंे ीसी कोम वस्तु न थी, ग्जससे व अपनी रषों ा तक सकत।े समझ ग अतंि तम समय आ गया। शत्रुओंि ने इस तर मेरे प्राण लेने की ठानी ै। अच्छा ै, जीवन के साथ इस ववपग्त्त का भी अतंि ो जा गा।
क षों ण में उनके सम्मखु क आदमी आकर खडा ो गया। राजा सा ब ने पछू ा - कौन ै? उत्तर ममला - मंै ूँ, आपका सेवक। राजा - ओ ो, तमु ो कप्तानय मंै शंिका में पडा ुआ था कक क ीिं शत्रुओंि ने मेरा वि करने के मल कोम दतू न भेजा ोय कप्तान - शत्रुओिं ने कु छ और ी ठानी ै। आज बादशा -सलामत की जान बचती न ींि नजर आती। राजा - अरेय य क्योंकरय कप्तान - जब से आपको य ाँ नजरबदंि ककया गया ै, सारे राज्य मंे ा ाकार मजा ुआ ै। स्वाथी कमचा ाररयों ने लूट मजा रखी ै। अगँ ्रजे ों की खुदाम कफर र ी ै। जो जी मंे आता ै, करते ै; ककसी को मजाल न ीिं कक चँू कर सके । इस क म ीने मंे श र के सैकडो बडे-बडे रमस ममट ग । रोशनदु ्दौला की बादशा ी ै। बाजारों का भाव चढता जाता ै। बा र से व्यापारी लोग डर के मारे कोम चीज ी न ींि लात।े दकू ानदारों से मनमानी रकमें म सलू के नाम पर वसूल की जा र ी ै। गल्ले का भाव इतना चढ गया ै कक ककतने ी घरों में चलू ् ा जलने की नौबत न ीिं आती। मसपाह यों को अभी तक तनख्या न ीिं ममली। वे जाकर दकू ानदारों को लटू ते ै। सारे राज्य में बदअमनी ो र ी ै। मनंै े कम बार य कै कफयत बादशा -सलामत के कानों तक प ुँचाने की कोमशश की; मगर व य तो क देते ै कक मैं इसकी त कीकात करूँ गा, और कफर बेखबर ो जाते ै। आज श र के ब ुत से दकू ानदार फररयाद लेकर आ थे कक मारे ाल पर तनगा न की गम, तो म श र छोडकर क ीिं और चले जा ँगे। कक्रस्तानों ने उनको सख्त क ा, िमकाया, लेककन उन् ोंने जब तक अपनी सारा मुसीबत न बयान कर ली, व ाँ से न टे। आ खर बादशा -सलामत ने उनको हदलासा हदया, तो चले ग ।
राजा - बादशा पर इतना असर ुआ, मुझे तो य ी ताज्जबु ैय कप्तान - असर-वसर कु छ न ींि ुआ। य भी उनकी क हदल्लगी ै। शाम को खास मसु ा बों को बलु ा कर ुक्म हदया ै कक आज मंै भेष बदल कर श र का गत करूँ ग; तमु लोग भी भेष बदले ु मेरे साथ र ना। मंै देखना चा ता ूँ कक ररआय़ा क्यों इतनी घबराम ुम ै। सब लोग मुझसे दरू र ंे; ककसी को न मालमू ो कक मंै कौन ूँ। रोशनुद्दौला और पाचँ ों अगँ ्रेज-मसु ाह ब साथ र ेंगे। राजा - तुम् ें क्योंकर य बात मालमू ो गम? कप्तान - मनैं े उसी अँग्रेज ज्जाम को ममला रखा ै। दरबार मंे जो कु छ ोता ै, उसका पता मुझे ममल जाता ै। उसी की मसफाररश से आपकी खदमत में ाग्जर ोने का मौका ममला। (घडडयाल में 10 बजते ंै) नयार बजे चलने की तयै ारी ै। बार बजते-बजते लखनऊ का तख्त खाली ो जा गा। राजा (घबराकर) - क्या इन सबों ने उन् ें कत्ल करने की साग्जश कर रखी ै? कप्तान - जी न ींि; कत्ल करने से उनका मंशि ा पूरा न ोगा। बादशा को बाजार की सैर कराते ु गोमती की तरफ ले जा ँगे। व ाँ अँग्रेजी मसपाह यों का क दस्ता तैयार र ेगा। व बादशा को फौरन क गाडी में त्रबठाकर रेग्जडंेसी मंे ले जा गा। व ाँ रग्जडटें सा ब बादशा -सलामत को सल्तनत से इस्तीफा देने पर मजबूर करंेगे। उसी वक्त उनसे इस्तीफा मलखा मलया जा गा और इसके बाद रातों-रात उन् ंे कलकत्ते भेज हदया जा गा। राजा - बडा गजब ो गया। अब तो वक्त ब ुत कम ै, बादशा -सलामत तनकल पडे ोंगे?
कप्तान - गजब क्या ो गया? इनकी जात से ककसे आराम था। दसू री ुकू मत चा ें ककतनी ी खराब ो, इससे अच्छी ोगी। राजा - अगँ ्रेजों की ुकू मत ोगा? कप्तान - अगँ ्रेज इनसे क ीिं बे तर इिंतजाम करंेगे। राजा (करुण स्वर से) - कप्तानय मवर के मल ीसी बातें न करो। तुमने मुझसे जरा देर प ले क्यो न य कै कफयत बयान की? कप्तान (आचया से) - आपके साथ तो बादशा ने कोम अच्छा सलूक न ीिं ककयाय राजा - मेरे साथ ककतना ी बुरा सलूक ककया ो, लेककन क राज्य की कीमत क आदमी या क खानदान की जान से क ीिं ज्यादा ोती ै। तुम मेरे परै ों की बेडडयाँ खुलवा सकते ो? कप्तान - सारे अवि-राज्य में क भी ीसा आदमी न तनकलेगा, जो बादशा को सच्चे हदल से दआु देता ो। दतु नया उनके जुल्म से तगिं आ गम ै। राजा - मैं अपनों के जुल्म को गैरों की बिंदगी से क ीिं बे तर खयाल करता ूँ। बादशा की य ालत गैरों ी के भरोसे पर ुम ै। व इसीमल ककसी की परवा न ींि करते कक अँग्रेजों की मदद का यकीन ै। मंै इन कफरिंधगयों की चालों को गौर से देखता आया ूँ। बादशा के ममजाज को उन् ोंने त्रबगाडा ै। उनकी मिंशा य ी थी, जो ुआ। ररआया के हदल में बादशा की इज्जत और मु ब्बत उठ गम। आज सारा मलु ्क बगावत करने पर आमादा ै। ये लोग इसी मौके का इंितजार कर र े थे। व जानते ैं कक बादशा की माजूली (गद्दी से टा जान)े पर क आदमी भी आसँ ू न ब ावेगा। लेककन मंै जता देता ूँ कक अगर इस वक्त तमु ने बादशा को दु मनों के ाथों से न बचाया, तो तमु मेशा के मल
अपने ी वतन में गलु ामी की जजंि ीरों मंे बँि जाओगे। ककसी गरै कौम के चाकर बनकर अगर तुम् ें आकफयत (शािंतत) भी ममली, तो व आकफयत न ोगी, मौत ोगी। गैरों के बेर म परै ों के नीचे पडकर तुम ाथ भी न ह ला सकोगे, और य उम्मीद कक कभी मारे मुल्क में आमनी सल्तनत (विै शासन) कायम ोगी, सरत का दागर बनकर र जा गी। न ीिं, मझु में अभी मुल्क की मु ब्बत बाकी ै। मैं अभी इतना बेजान न ींि ुआ ूँ। मंै इतनी आसानी से सल्तनत को ाथ से न जाने दँगू ा, अपने को इतने सस्ते दामों गैर के ाथों न बेचँूगा, मलु ्क की इज्जत को न ममटने दँगू ा, चा े इस कोमशश में मेरी जान ी क्यों न जा । कु छ और न ींि कर सकता, तो अपनी जान तो दे ी सकता ूँ। मरे ी बेडडयाँ खोल दो। कप्तान - मंै आपका खाहदम ूँ, मगर मुझे य मजाज न ींि ै। राजा (जोश मंे आकर) - जामलम, य इन बातों का वक्त न ीिं ै। क- क पल में तबा ी की तरफ मलये जा र ा ै। खोल दे ये बेडडयाँ। ग्जस घर में आग लगी ै, उसके आदमी खदु ा को न ीिं याद करते, कु ँ की तरफ दौडते ंै। कप्तान - आप मेरे मु मसन ै। आपके ुक्म से मँु न ीिं मोड सकता। लेककन - राजा - जल्दी करो, जल्दी करो। अपनी तलवार मझु े दे दो। अब इन तकल्लुफ की बातों का मौका न ींि ै। कप्तान सा ब तनरुत्तर ो ग । सजीव उत्सा में बडी सकंि ्रामक शग्क्त ोती ै। यद्यवप राजा सा ब के नीततपणू ा वाताालाप ने उन् ें माकू ल न ीिं ककया, तथावप व अतनवाया रूप से उनकी बेडडयाँ खोलने पर तत्पर ो ग । उसी वक्त जेल के दारोगा को बुलाकर क ा - सा ब ने ुक्म हदया ै कक राजा सा ब को फौरन आजाद कर हदया जा । इसमंे क पल की भी ताखीर ( ववलंिब) ुम, तो तमु ् ारे क में अच्छा न ोगा।
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