दारोगा को मालूम था कक कप्तान सा ब और मसु ा ब मंे गाढी मैत्री ै। अगर सा ब नाराज ो जा िंगे, तो रोशनदु ्दौला की कोम मसफाररश मेरी रषों ा न कर सके गी। उसने राजा सा ब की बेडडयाँ खोल दी। राजा सा ब जब तलवार लेकर जेल से तनकले, तो उनका हृदय राज्य-भग्क्त की तरिंगों से आंिदोमलत ो र ा था। उसी वक्त घडडयाल ने 11 बजा । 3 आिी रात का समय था। मगर लखनऊ की तिगं गमलयों मंे खूब च ल-प ल थी। ीसा मालूम ोता था कक अभी 9 बजे ोंगे। सराफे में सबसे ज्यादा रौनक थी। मगर आचया य था कक ककसी दकू ान पर जवा रात या ग ने न ीिं हदखाम देते थ।े के वल आदममयों के आने-जाने की भीड थी। ग्जसे देखो, पाचँ शस्त्रों से ससु ग्ज्जत, मँूछंे खडी कक , ींिठता ुआ चला जाता था। बाजार के मालूमी दकू ानदार भी तनःशस्त्र न थ।े स सा क आदमी भारी साफा बाँिे, पैर की घुटतनयों तक नीची कबा प ने, कमर में पटका बािँ ,े आकर क सराफ की दकू ान पर खडा ो गया। जान पडता था कोम मरानी सौदागर ै। उन हदनों मरान के व्यापारी लखनऊ मंे ब ुत आते-जाते थे। इस समय ीसे आदमी का आ जाना असािारण बात न थी। सराफ का नाम मािोदास था। बोला - कह मीर सा ब, कु छ हदखाऊँ ? सौदागर - सोने का क्या तनखा ै? मािो - (सौदागर के कान के पास मँु ले जाकर) तनखा की कु छ न पूतछ । आज करीब क म ीना से बाजार का तनखा त्रबगडा ुआ ै। माल बाजार में आता ी न ी।िं लोग दबा ु ै। बाजार मंे खौफ के मारे न ींि लात।े अगर आपको
ज्यादा माल की दरकार ो तो मेरे साथ गरीबखाने तक तकलीफ कीग्ज । जैसा माल चाह , लीग्ज । तनखा मनु ामसब ी ोगा। इतना इतमीनान र ख । सौदागर - आजकल बाजार का तनखा क्यों त्रबगडा ुआ ै? मािो - क्या आप ाल ी मंे वाररद ु ै? सौदागर - ाँ, मैं आज ी आया ूँ। क ींि प ले की-सी रौनक न ींि नजर आती। कपडे का बाजार भी ससु ्त था। ढाके का क कीमती थान ब ुत तलाश करने पर भी न ममला। मािो - इसके बडे ककस्से ंै; कु छ ीसा ी मआु मला ै। सौदागर - डाकु ओंि का जोर तो न ीिं ै? प ले तो य ाँ इस ककस्म की वारदातें न ोती थी। मािो - अब व कै कफयत न ींि। हदनद ाडे डाके पडते ै। उन् ंे कोतवाल क्या, बादशा -सलामत भी धगरफ्तार न ीिं कर सकत।े अब और क्या क ूँ। दीवार के भी कान ोते ै। क ींि कोम सनु ले तो लेने के देने पड जा ँ। सौदागर - सेठ जी, आप तो प ेमलयाँ बुझवाने लगे। मंै परदेशी आदमी ूँ, य ाँ ककससे क ने जाऊँ गा। आ खर बात क्या ै? बाजार क्यों इतना त्रबगडा ुआ ै? नाज की मंडि ी की तरफ गया था। सन्नाटा छाया ुआ ै। मोटी ग्जंसि भी दनू े दामों पर त्रबक र ी थी। मािो - (इिर-उिर चौकन्नी आखँ ों से देखकर) क म ीना ुआ; रोशनदु ्दौला के ाथ मंे मसया -सफे द का अग्ख्तयार आ गया ै। य सब उन् ींि की बदइंितजामी का फल ै। उनके प ले राजा बख्तावरमसिं मारे मामलक थ।े उनके वक्त मंे ककसी की मजाल न थी कक व्यापाररयों को टेढी आँख से देख सके । उनका रोब
सभी पर छाया ुआ था। कफरिंधगयों पर उनकी कडी तनगा र ती थी। ुक्म था कक कोम कफरंिगी बाजार में आवे, तो थाने का मसपा ी उनकी देखभाल करता र े। इसी वज से कफरंिगी उनके जला करते थे। आ खर सबों नें रोशनुद्दौला को ममलाकर बख्तावरमसंि को बेकसूर कै द करा हदया। बस तब से बाजार मंे लटू मची ुम ै। सरकारी अमले अलग लटू ते ै। कफरिंगी अलग नोचते-खसोटते ैं। जो चीज चा ते ै, उठा ले जाते ैं। दाम माँगों तो िमककयाँ देते ै। शा ी दरबार में फररयाद करो, तो उलटे सजा ोती ै। अभी ाल मंे म-सब ममलकर बादशा -सलामत की खदमत मंे ाग्जर ु थ।े प ले तो व ब ुत नाराज ु , पर आ खर र म आ गया। बादशा ों का ममजाज ी तो ै। मारी मशकायतें सुनी और तसकीन दी कक म त कीकात करंेगे। मगर अभी तक व ी लटू -खसोट जारी ै। इतने में तीन आदमी राजपतू ी ढिंग की ममजमा प ने आकर दकू ान के सामने खडे ो ग । मािोदास उनका रिंग-ढिंग देखकर चौंका। शा ी फौज के मसपा ी ब ुिा इसी सज-िज से तनकलते ै। तीनों आदमी सौदागर को देखकर हठठके ; पर उसने उन् ंे कु छ ीसी तनगा से देखा कक तीनों आगे चले ग । सौदागर ने मािोदास से पूछा - इन् ें देखकर तमु क्यों चौंके ? मािोदास ने क ा - ये फौज के मसपा ी ैं। जब से राजा बख्तारमसिं नजरबदिं ु ै, इन पर ककसी की दाब ी न ींि र ी। खुले साडँ की तर बाजार में चक्कर लगाया करते ै। सरकार से तलब ममलने का कु छ ठीक तो न ीिं ै। बस, नोच- खसोट करके गजु र करते ै। - ाँ तो कफर अगर मरजी ो, तो मेरे साथ घर तक चमल , आपको माल हदखाऊँ । सौदागर - न ीिं भाम, इस वक्त न ी।ंि सबु आऊँ गा। देर ो गम ै, और मुझे भी य ाँ की ालत देखकर खौंफ मालमू ोने लगा ै।
य क कर सौदागर उसी तरफ चला गया, ग्जिर वे तीनों राजपूत ग थ।े थोडी देर मंे तीन आदमी और सराफे मंे आ । क तो पंिडडतों की तर नीची चपकन प ने ु था, मसर पर गोल पधगया था और कंि िे पर जरी के काम का शाल। उसके दोनों साथी खदमतगारों के -से कपडे प ने ु थे। तीनों इस तर इिर- उिर ताक र े थे, मानो ककसी को खोज र े ों। यों ताकते ु तीनों आगे चले ग । मरानी सौदागर तीव्र नेत्रों से इिर-उिर देखता ुआ क मील चला गया। व ाँ क छोटा-सा बाग था। क पुरानी मसग्जद भी थी। सौदागर व ाँ ठ र गया। का क तीनों राजपूत मसग्जद से बा र तनकल आ और बोले - ुजरू तो ब ुत देर तक सराफ की दकू ान पर बठै े र े। क्या बातंे ुम। सौदागर ने अभी कु छ जवाब न हदया कक पीछे से पंडि डत और उनके दोनों खदमतगार भी आ प ुँच।े सौदागर ने पंिडडत को देखते ी भत्सना ापणू ा शब्दों में क ा - ममयाँ रोशनदु ्दौला, मुझे इस वक्त तुम् ारे ऊपर इतना गुस्सा आ र ा ै कक तुम् ंे कु त्तों से नचु वा दँ।ू नमक राम क ीिं काय दगाबाजय तनू े मेरी सल्तनत को तबा कर हदयाय सारा श र तरे े जुल्म का रोना रो र ा ैय मझु े आज मालमू ुआ कक तूने क्यों राजा बख्तावरमसंि को कै द कराया। मेरी अकल पर न जाने क्यों पत्थर पड ग थे कक मंै तरे ी धचकनी-चपु डी बातों में आ गया। इस नमक रामी की तुझे व सजा दँगू ा कक देखनेवालों को भी इबरत (मशषों ा) ो। रोशनुद्दौला ने तनभीकता से उत्तर हदया - आप मेरे बादशा ै; इसमल आपका अदब करता ूँ, वनाा इसी वक्त बद-जबानी का मजा चखा देता। खुद आप को म ल में सीनों के साथ ीश ककया करते ै, दसू रों को क्या गरज पडी ै कक सल्तनत की कफक्र से दबु ले ो? खूब, म अपना खून जला ंि और आप जशन मना ँय ीसे अ मक क ीिं और र ते ोंगे. बादशा (क्रोि से कापँ ते ु ) - मम... मैं तमु ् ें ुक्म देता ूँ कक इस नमक राम को अभी गोली मार दो। मैं इसकी सरू त न ीिं देखना चा ता। और, इसी वक्त
जाकर इसकी सारी जायदाद जब्त कर लो। इसके खानदान का क बच्चा भी ग्जदिं ा न र ने पा । रोशनुद्दौला - मम... मंै तुमको ुक्म देता ूँ कक इस मुल्क और कौम के दु मन, रैयत के काततल और बदकार आदनी को फौरन धगरफ्तार कर लो। य इस कात्रबल न ीिं कक ताज और तख्त का मामलक बन।े इतना सुनते ी पाँचों अगँ ्रेज-मसु ा बों ने, जो भेष बदले ु साथ थे, बादशा के दोनों ाथ पकड मलये और खीिंचते ु गोमती नदी की तरफ ले चले। तब बादशा की आखँ ें खलु ी। समझ ग कक प ले ी से य षड्यिंत्र रचा गया था। इिर-उिर देखा, कोम आदमी न ीिं। शोर मचाना व्यथा था। बादशा ी का नशा उतर गया। दरु वस्था ी व परीषों ाग्नन ै, जो मुलम्मे और रोगन को उतार कर मनुष्य का यथाथा रूप हदखा देती ै। ीसे ी अवसरों पर ववहदत ोता ै कक मानव-हृदय पर कृ ममत्र भावों का ककतना ग रा रिंग चढा ोता ै। क षों ण मंे बादशा की उद्दंिडता और घमंिड ने दीनता और ववनयशीलता का आश्रय मलया। बोले - मनैं े तो आप लोगों को मेशा अपना दोस्त समझा ै। रोशनुद्दौला - तो म लोग जो कु छ कर र े ंै, व भी आपके फायदे ी के मल कर र े ै। म आपके मसर से सल्तनत का बोझ उतारकर आपको आजाद कर दंेगे। तब आपके ीश में खलल न पडगे ा। आप बेकफक्र ोकर सीनों के साथ ग्जदिं गी की ब ार लहू ट गा। बादशा - तो क्या आप लोग मुझे तख्त से उतारना चा ता ंै? रोशनदु ्दौला - न ीिं, आपको बादशा ी की ग्जम्मेदाररयों से आजाद कर देना चा ते ंै। बादशा - जरत इमाम का कसम, मंै य ग्जल्लत न बदाा त करूँ गा। मंै अपने बुजुगों का नाम न डू बाऊँ गा।
रोशनदु ्दौला - आपके बजु गा ों के नाम की कफक्र मंे आपसे ज्यादा ै। आपकी ीश- परस्ती बुजगु ों का नाम रोशन न ींि कर र ी ै। बादशा (दीनता से) - वादा करता ूँ आइंिदा से आप लोगों को मशकायत का कोम मौका न दँगू ा। रोशनुद्दौला - नशबे ाजों के वादों पर कोम दीवाना ी यकीन कर सकता ै। बादशा - तुम मझु े जबरदस्ती तख्त से न ींि उतार सकत।े रोशनदु ्दौला - इन िमककयों की जरूरत न ी।िं चपु चाप चले चमल ; आगे आपको सेजगाडी ममल जा गी। म आपको इज्जत के साथ रुखसत करेंगे। बादशा - आप जानते ैं, ररआया पर इसका क्या असर ोगा? रोशनुद्दौला - खूब जानता ूँय आपकी ह मायत मंे क उँ गली भी न उठे गी। कल सारी सल्तनत मंे घी के धचराग जलेंगे। इतनी देर में सब लोग उस स्थान पर आ प ुचे, ज ाँ बादशा को ले जाने के मल सवारी तयै ार खडी थी। लगभग 25 सशस्त्र गोरे मसपा ी भी खडे थ।े बादशा सेजगाडी को देखकर मचल ग । उनके रुधिर की गतत तीव्र ो गम, भोग और ववलास के नीचे दबी ुम मयादा ा सजग ो गम। उन् ोंने जोर से झटका देकर अपना ाथ छु डा मलया और नैरायपूणा दसु ्सा स के साथ, पररणाम-भय को त्याग कर, उच्च स्वर से बोले - ी लखनऊ के बसनेवालोय तमु ् ारा बादशा य ाँ दु मनों के ाथों कत्ल ककया जा र ा ै। उसे इनके ाथों से बचाओंि, दौडो वनाा पछताओगेय
य आता पुकार आकाश की नीरवता को चीरती ुम गोमती की ल रों में ववलीन ो न ीिं ुम बग्ल्क लखनऊवालों के हृदयों मंे जा प ुँची। राजा बख्तावरमसिं बदिं ी- गृ से तनकल कर नगर-तनवामसयों को उत्तगे ्जत कर और प्रततषों ण रषों ाकाररयों के दल को बढात,े बडे वेग से दौडे चले आ र े थे। क पल का ववलभंि भी षड्यतिं ्रकाररयों के घातक ववरोि को सफल कर सकता था। देखते-देखते उनके साथ दो-तीन जार सशस्त्र मनषु ्यों का दल ो गया था। य सामूह क शग्क्त बादशा का और लखनऊ-राज्य का उद्धार कर सकती थी। समय सब कु छ था। बादशा गोरी सेना के पिजं े मंे फँ स ग , तो कफर समस्त लखनऊ भी उन् ें मुक्त न कर सकता था। राजा सा ब ज्यों-ज्यों आगे बढते जाते थे, नरै ाय से हदल बठै ा जाता था। ववफल मनोरथ ोने की शिंका से उत्सा भगंि ुआ जाता था। अब तक क ींि उन लोगों का पता न ींयि अवय म देर से प ुँच।े ववरोह यों ने अपना काम पूरा कर मलया। लखनऊ राज्य की स्वािीनता सदा के मल ववसग्जता ो गमय ये लोग तनराश ोकर लौटना ी चा ते थे कक अचानक बादशा का आतना ाद सुनाम हदया। कम जार कंि ठों से आकाश-भेदी ध्वतन तनकली - ुजरू को खदु ा सलामत रख।े म कफदा ोने को आ प ुँचये समस्त दल क ी प्रबल इच्छा से प्रेररत ोकर, वेगवती जलिारा की भातँ त घटनास्थल की ओर दौडा। अशक्त लोग भी सशक्त ो ग । वपछडे ु लोग आगे तनकल जाना चा ते थे। आगे के लोग चा ते थे कक उड कर जा प ुँचंेय इन आदममयों की आ ट पाते ी गोरों ने बंदि कू ें भरींि और 25 बदंि कू ों की बाढ सर ो गम। रषों ाकाररयों में ककतने ी लोग धगर पडे; मगर पीछे न टे। वीर मद ने और भी मतवाला कर हदया। क षों ण मंे दसू री बाढ आम; कु छ लोग कफर वीर- गतत को प्राप्त ु लेककन कदम आगे बढते ी ग । तीसरी बाढ छू टने ी वाली थी कक लोगों ने ववरोह यों को पा मलया। गोरे भागे।
जब लोग बादशा के पास प ुँचे, तो अद्भतु दृय देखा। बादशा रोशनुद्दौला की छाती पर सवार थे। जब गोरे जान लेकर भागे, तो बादशा ने इस नरवपशाच को पकड मलया और उसे बलपवू का भूमम पर धगरा कर उसकी छाती पर बठै ग । अगर उनके ाथों मंे धथयार ोता, तो इस वक्त रोशनुद्दौला की लाश तडफती ुम हदखाम देती। राजा बख्तावरमसिं आगे बढकर बादशा को आदाब बजा ला । लोगों की जय- ध्वतन से आकाश ह ल उठा। कोम बादशा के पैरौं को चमू ता था। कोम उन् ंे आशीवादा देता था, और रोशनदु ्दौला का शरीर तो लातों और घूसों का लक्ष्य बना ुआ था। कु छ त्रबगडे हदल ीसे भी थे, जो उसके मँु पर थूकने मंे भी संिकोच न करते थ।े 4 प्रातःकाल था। लखनऊ में आनदंि ोत्सव मनाया जा र ा था। बादशा ी म ल के सामने लाखों आदमी जमा थ।े सब लोग बादशा को यथायोनय नजर दे ने आ थे। जग -जग गरीबों को भोजन कराया जा र ा था। शा ी नौबतखाने में नौबत झड र ी थी। दरबार सजा। बादशा ीरे और जवा र से जगमाते, रत्नजहटत आभषू णों से सजे ु , मसंि ासन पर त्रबराज।े रमसों और अमीरों से नजरें गुजारीि।ं कववजनों ने कसीदे पढे। का क बादशा ने पछू ा - राजा बख्तावरमसंि क ाँ ै? कप्तान सा ब ने जवाब हदया - कै दखाने में। बादशा ने उसी वक्त कम कमचा ाररयों को भेजा कक राजा सा ब को जेलखाने से इज्जत के साथ ला िं। जब थोडी देर के बाद राजा ने आकर बादशा को सलाम ककया, तो वे तख्त से उतर कर उनसे गले ममले और उन् ें अपनी दाह नी ओर मसंि ासन पर बैठाया। कफर दरबार में खडे ोकर उनकी सकु ीतता और राज-भग्क्त
की प्रशंिसा करने के उपरातिं अपने ी ाथों से उन् ंे खलअत प नाम। राजा सा ब के कु टुंिब के प्राणी आदर और सम्मान के साथ ववदा कक ग । अंित को जब दोप र के समय दरबार बखासा ्त ोने लगा तो बादशा ने राजा सा ब से क ा - आपने मुझ पर और मेरी सल्तनत पर जो सास ककया ै, उसका मसला (पुरस्कार) देना मेरे इमकान से बा र ै। मेरी आपसे य ीिं इग्ल्तजा (अनरु ोि) ै कक आप वजरत का कलमदान अपने ाथ मंे लीग्ज और सल्तनत का, ग्जस तर मनु ामसब सम झ , इंितजाम कीग्ज । मैं आपके ककसी काम मंे दखल न दँगू ा। मुझे क गोशे में पडा र ने दीग्ज । नमक राम रोशन को भी मंै आपके सपु ुदा कक देता ूँ। आप इसे जो सजा चा ंे, दें। मंै इसे कब का ज न्नुम भेज चुका ोता; पर य समझकर कक य आपका मशकार ै, इसे छोडे ु ूँ। लेककन बख्तावरमसिं बादशा के उच्छृ ंि खल स्वभाव से भली-भाँतत पररधचत थे, व जानते थे, बादशा की ये सहदच्छा ँ थोडे ी हदनों की मे मान ैय मानवचररत्र में आकग्स्मक पररवतना ब ुत कम ुआ करते ंै। दो-चार म ीने मंे दरबार का कफर व ी रंिग ो जा गा, इसमल मेरा तटस्थ र ना ी अच्छा ै। राज्य के प्रतत मेरा जो कु छ कतवा ्य था, व मनैं े पूरा कर मलया। मैं दरबार से अलग र कर तनष्काम भाव से ग्जतनी सेवा कर सकता ूँ, उतनी दरबार मंे र कर कदावप न ीिं कर सकता। ह तैषी ममत्र का ग्जतना सम्मान ोता ै, स्वाममभक्त सेवक का उतना न ींि ो सकता। व ववनीत भाव से बोले - ुजूर, मुझे इस ओ दे से मुआफ रखंे। मंै यों ी आपका खाहदम ूँ। इस मसिं ब पर ककसी लायक आदमी को माशूर फरमाइ (तनयुक्त कीग्ज )। मंै अक्खड राजपतू ूँ। मुल्की इंितजाम करना क्या जानँ।ू बादशा - मझु े तो आपसे ज्यादा लायक और वफादार आदमी नजर न ीिं आता।
मगर राजा सा ब उनकी बातों में न आ । आ खर मजबरू ोकर बादशा ने उन् ें ज्यादा न दबाया। षों णभर बाद जब रोशनदु ्दौला को सजा देने का प्रन उठा, तब दोनों आदममयों में इतना मतभेद ुआ कक वाद-वववाद की नौबत आ गम। बादशा आग्र करते थे इसे कु त्तों से नचु वा हदया जा । राजा सा ब इस बात पर अडे ु थे कक इसे जान से न मारा जा , के वल नजरबंिद कर हदया जा । अंित में बादशा ने क्रु द्ध ोकर क ा - य क हदन आपको जरूर दगा देगाय राजा - इस खौफ से मंै इसकी जान न लँगू ा। बादशा - तो जनाब, आप चा ंे इसे मआु फ कर दें, मंै कभी मआु फ न ींि कर सकता। राजा - आपने तो इसे मेरे सपु दु ा कर हदया था। दी ुम चीज को आप वापस कै से लेंगे? बादशा ने क ा - तुमने मेरे तनकलने का क ीिं रास्ता ी न ींि रखा। रोशनदु ्दौला की जान बच गम। वजारत का पद कप्तान सा ब को ममला। मगर सबसे ववधचत्र बात य थी कक रेग्जडंटे ने इस षड्यिंत्र से पणू ा अनमभज्ञता प्रकट की और साफ मलख हदया कक बादशा -सलामत अपने अँग्रेज मसु ा बों को जो सजा चा े दंे, कोम आपग्त्त न ोगी। नंै उन् ें पाता, तो स्वयंि बादशा की खदमत में भेज देता; लेककन पाँचों म ानुभावों में से क का भी पता न चला। शायद वे सब के सब रातों-रात कलकत्ते भाग ग । इतत ास में उक्त घटना का क ीिं उल्लेख न ीिं ककया गया, लेककन ककंि वदंिततयों, जो इतत ास से अधिक वववसनीय ैं, उसकी सत्यता की साषों ी ैं। ****
अधधकार-धचिं ा टामी यों देखने में तो ब ुत तगडा था। भँकू ता तो सुननेवालों के कानों के परदे फट जात।े डील-डौल भी ीसा की अिँ रे ी रात मंे उस पर गिे का भ्रम ो जाता। लेककन उसकी वानोधचत वीरता ककसी सिंग्रामषों ेत्र मंे प्रमा णत न ोती थी। दो- चार दफे जब बाजार के लेडडयों ने उसे चुनौती दी, तो व उनका गव-ा मदान करने के मल मैदान में आया; और देखनेवालों का क ना ै कक जब तक लडा, जीवट से लडा, नखों और दाँतों से ज्यादा उसकी दमु ने की। तनग्चत रूप से न ीिं क ा जा सकता कक मैदान ककसके ाथ र ा, ककिं तु जब उस दल को कु मक मँगानी पडी, तो रण-शास्त्र के तनयमों के अनुसार ववजय का श्रेय टामी ी को देना उधचत नयायानुकू ल जान पडता ै। टामी ने उस अवसर पर कौशल से काम मलया और दातँ तनकाल हद ; जो सिधं ि की याचना थी। ककिं तु तब से उसने ीसे सन्नीतत-ववह न प्रततद्वंिद्ववयों के मँु लगना उधचत न समझा। इतना शांति त-वप्रय ोने पर भी टामी के शत्रओु ंि की संिख्या हदनोंहदन बढती जाती थी। उसके बराबरवाले उससे इसमल जलते थे कक व इतना मोटा-ताजा ोकर इतनी भीरू क्यों ै। बाजारी दल इसमल जलता था कक टामी के मारे घूरों पर की ड्डडयाँ भी न बचने पाती थी। व घडी-रात र े उठता और लवाइयों की दकू ानों के सामने के दोने और पत्तल, कसामखाने के सामने की ड्डडयाँ और छीछडे चबा डालता। अत व इतने शत्रुओंि के बीच मंे र कर टामी का जीवन संिकटमय ोता जाता था। म ीनों बीत जाते और पेट भर भोजन न ममलता। दो- तीन बार उसे मनमाने भोजन करने की ीसी प्रबल उत्कंि ठा ुम कक उसने सहंि दनि सािनों द्वारा उसको पूरा करने की चषे ्टा की; पर जब पररणाम आशा के प्रततकू ल ुआ और स्वाहदष्ट पदाथों के बदले अरुधचकर दगु ्रााह्य वस्तु ँ भरपेच खाने को ममली - ग्जससे पेट के बदले कम हदन तक पीठ पर ववषम वेदना ोती
र ी - तो उसने वववश ोकर कफर समिं ागा का आश्रय मलया। पर डडंि ों से पेट चा े भर गया ो, व उत्किं ठा शािंत न ुम। व ककसी ीसी जग पर जाना चा ता था, ज ाँ खूब मशकार ममले; खरगोश, ह रन, भेडो के बच्चे मैदानों में ववचर र े ों और उनका कोम मामलक न ो, ज ाँ ककसी प्रततद्विंद्वी की गििं तक न ो; आराम करने को सघन वषृ ों ों की छाया ो, पीने को नदी का पववत्र जल। व ाँ मनमाना मशकार करूँ , खाऊँ और मीठी नीदंि सोऊँ । व ाँ चारों ओर मेरी िाक बठै जा ; सब पर ीसा रोब छा जा कक मुझी को अपना राजा समझने लगंे और िीरे-िीरे मेरा ीसा मसक्का बैठ जा कक ककसी द्वषे ी को व ाँ परै रखने का सा स ी न ो। सिंयोगवश क हदन व इन् ीिं कल्पनाओंि के सखु स्वप्न देखता ुआ मसर झुका सडक छोड कर गमलयों से चला जा र ा था कक स सा क सज्जन से उसकी मुठभेड ो गम। टामी ने चा ा कक बच कर तनकल जाऊँ , पर व दषु ्ट इतना शािंततवप्रय न था उसने तरु ंित झपट कर टामी का टेटु आ पकड मलया। टामी ने ब ुत अनुनय-ववनय की, धगडधगडा कर क ा - मवर के मल मझु े य ाँ से चले जाने दो; कसम ले लो, जो इिर परै रख।ूँ मेरी शामत आम थी कक तुम् ारे अधिकार षों ेत्र में चला आया। पर उस मदाििं और तनदाय प्राणी ने जरा भी ररआयत न की। अतिं मंे ार कर टामी ने गदाभ स्वर मंे फररयाद करनी शुरू की। य कोला ल सनु कर मो ल्ले के दो-चार नते ी लोग कत्र ो ग ; पर उन् ोंने भी दीन पर दया करने के बदले उलटे उसी पर दिंत-प्र ार करना शुरू ककया। इस अन्यायपूणा व्यव ार ने टामी की हदल तोड हदया। व जान छु डा कर भागा। उन अत्याचारी पशुओिं ने ब ुत दरू तक उसका पीछा ककया, य ाँ तक की मागा मंे क नदी पड गम और टामी ने उसमें कू द कर अपनी जान बचाम। क ते ै, क हदन सबके हदन कफरते ै। टामी के हदन भी नदी में कू दते ी कफर ग । कू दा था जान बचाने के मल , ाथ लग ग मोती। तरै ता ुआ उस पार प ुँचा, तो व ाँ उसकी धचर-सिंधचत अमभलाषा ँ मतू तमा ती ो र ी थींि।
2 य क ववस्ततृ मदै ान था। ज ाँ तक तनगा जाती थी, ररयाली की छटा हदखाम देती थी। क ींि नालों का मिरु कलरव था, क ींि झरनों का मदंि गान; क ींि वषृ ों ों के सुखद पजुिं थ,े क ींि रेत के सपाट मदै ान। बडा सुरम्य मनो र दृय था। य ाँ बडे तजे नखोंवाले पशु थे, ग्जनकी सूरत देखकर टामी का कलेजा द ल उठता था, पर उन् ोंने टामी की कु छ परवा न की। वे आपस में तनत्य लडा करते थे; तनत्य खून की नदी ब ा करती थी। टामी ने देखा, य ाँ इन भयिकं र जितं ुओिं से पेश न पा सकँू गा। उसने कौशल से काम लेना शुरू ककया। जब दो लडनेवाले पशुओिं मंे क घायत और मदु ाा ोकर धगर पडता, तो टामी लपककर मासिं का कोम टु कडा ले भागता और काितं में बठै कर खाता। ववजयी पशु ववजय के आनंदि में उसे तचु ्छ समझकर कु छ न बोलता। अब क्या था, टामी के पौ-बार ो ग । सदा दीवाली र ने लगी। न गडु कमी थी, न गे ूँ की। तनत्य न पदाथा उडाता और वषृ ों ों के नीचे आनंिद से सोता। उसने ीसे सखु स्वगा की कल्पना भी न की थी। व मर कर न ींि, जीते जी स्वगा पा गया। थोडे ी हदनों में पौग्ष्टक पदाथों के सेवन से टामी की चषे ्टा ी कु छ और ो गम। उसकी शरीर तजे स्वी और सुगहठत ो गया। अब व छोटे-मोटे जीवों पर स्वयंि ाथ साफ करने लगा। जगिं ल के जंति ु अब चौंके और उसे व ाँ से भगा देने का यत्न करने लगे। टामी ने क नम चाल चली। व कभी ककसी पशु से क ता, तुम् ारा फलाँ शत्रु तुम् ें मार डालने की तैयारी कर र ा ै; ककसी से क ता, फलाँ तमु को गाली देता था। जंिगल के जितं ु उसके चकमे मंे आकर आपस मंे लड जाते और टामी की चाँदी ो जाती। अतिं में य ाँ तक नौबत प ुँची कक बडे-बडे जंति ओु ंि का नाश ो गया। छोट-मोटे पशओु िं का उससे मकु ाबला करने का सा स न ोता था। उसकी उन्नतत और शग्क्त देखकर उन् ंे ीसा
प्रतीत ोने लगा, मानो य ववधचत्र जीव आकाश से मारे ऊपर शासन करने के मल भेजा गया ै। टामी भी अब अपनी मशकारबाजी के जौ र हदखाकर उनकी इस भ्रांति त को पुष्ट ककया करते था। बडे गवा से क ता - परमात्मा ने मझु े तुम् ारे ऊपर राज्य करने के मल भेजा ै। य मवर की इच्छा ै। तमु आराम से अपने घर में पडे र ो। मंै तुमसे कु छ न बोलँूगा, के वल तमु ् ारी सेवा करने के परु स्कारस्वरूप तमु में से काि का मशकार कर मलया करूँ गा। आ खर मेरे भी तो पेट ै; त्रबना आ ार के कै से जीववत र ूँगा और कै से तमु ् ारी रषों ा करूँ गा। व अब बडी शान से जिगं ल में चारों ओर गौरवािवं वत दृग्ष्ट से ताकता ुआ ववचरा करता। टामी को अब कोम धचतिं ा थी तो य कक इस देश में मेरा कोम मुद्दम न उठ खडा ो। व सजग और सशस्त्र र ने लगा। ज्यों-ज्यों हदन गजु रते थे और सखु -भोग का चसका बढता जाता था, त्यों-त्यों उसकी धचतंि ा बढती जाती थी। बस अब ब ुिा रात को चौंक पडता और ककसी अज्ञात शत्रु के पीछे दौडता। अक्सर 'अिँ ा कू कू र बात से भँूके ' वाली लोकाग्क्त को चररताथा करता। वन के पशुओिं से क ता - मवर न करे कक तमु ककसी दसू रे शासक के पजिं े में फँ स जाओ। व तुम् ंे पीस डालेगा। मैं तमु ् ारा ह तैषी ूँ, सदैव तमु ् ारी शुभ-कामना में मनन र ता ूँ। ककसी दसू रे से य आशा मत रखो। पशु क स्वर में क त,े जब तक म ग्ज िंगे, आप ी के अिीन र ंेगे। आ खरकार य ुआ कक टामी को षों ण भर भी शािंतत से बैठना दलु भा ो गया। व रात-रात हदन-हदन भर नदी के ककनारे इिर से उिर चक्कर लगाया करता। दौडते-दौडते ाँफने लगता, बेदम ो जाता; मगर धचत्त को शांति त न ममलती। क ींि कोम शत्रु न घुस आ । लेककन क्वार का म ीना आया तो टामी का धचत्त क बार कफर अपने परु ाने स चरी से ममलने के मल लालातयत ोने लगा। व अपने मन को ककसी भाँतत रोक न सका। व हदन याद आया जब व दो-चार ममत्रों के साथ ककसी प्रेममका
के पीछे गली-गली और कू च-े कू चे मंे चक्कर लगाता था। दो-चार हदन तो उसने सब्र ककया, पर अंित मंे आवेग इतना प्रबल ुआ कक व तकदीर ठोंक कर खडा ुआ। उसे अब अपने तजे और बल पर अमभमान भी था। दो-चार को तो व ी मजा चखा सकता था। ककिं तु नदी के इस पार आते ी उसका आत्मवववास प्रातःकाल के तम के समान फटने लगा। उसकी चाल मंिद पड गम, आप ी आप मसर झुक गया, दमु मसकु ड गम। मगर क प्रेममका को आते देखकर व ववह्वल ो उठा; उसके पीछे ो मलया। प्रेममका को उसकी य कु चषे ्टा अवप्रय लगी। उसने तीव्र स्वर से उसकी अव ेलना की। उसकी आवाज सुनते ी उसके कम प्रेमी आ प ुँचे और टामी को व ाँ देखते ी जामे से बा र ो ग । टामी मसटवपटा गया। अभी तनचय न कर सका था कक क्या करूँ कक चारों ओर से उस पर दाँतों और नखों की वषाा ोने लगी। भागते ी न बन पडा। दे ल ूलु ान ो गम। भागा भी, तो शैतानों का क दल पीछे था। उस हदन से उसके हदल में क शंिका-सी समा गम। र घडी य भय लगा र ता कक आक्रमणकाररयों का दल मेरे सुख और शातिं त में बािा डालने के मल मेरे स्वगा को ववध्वंिस करने के मल आ र ा ै। य शंिका प ले भी कम न थी; अब और भी बढ गम। क हदन उसका धचत्त भय से इतना व्याकु ल ुआ कक उसे जान पडा, शत्रु-दल आ प ुचा। व बडे वगे से नदी के ककनारे आया और इिर से उिर दौडने लगा। हदन बीत गया, रात बीत गम; पर उसने ववश्राम न ककया। दसू रा हदन आया और गया, पर टामी तनरा ार, तनजला नदी के ककनारे चक्कर लगाता र ा। इस तर पाचँ हदन बीत ग । टामी के पैर लडखडाने लगे, आखँ ों-तले अिँ रे ा छाने लगा। षों ुिा से व्याकु ल ोकर धगर पडता, पर व शिंका ककसी भातँ त शांित न ुम।
अिंत में सातवंे हदन अभागा टामी अधिकार-धचतिं ा से ग्रस्त, जजरा और मशधथल ो कर परलोक मसिारा। वन का कोम पशु उसके तनकट न गया। ककसी ने उसकी चचाा तक न की; ककसी ने उसकी लाश पर आँसू तक न ब ा । कम हदनों उस पर धगद्ध और कौ मँडराते र े; अिंत मंे अग्स्थपंिजरों के मसवा और कु छ न र गया। ***
दरु ाशा (प्र सन) पात्र ---- दयाशंिकर - कायाला य के क सािारण लेखक। आनदिं मो न - कालेज का क ववद्याथी तथा दयाशंिकर का ममत्र। ज्योततस्वरूप - दयाशंिकर का क सुदरू -संिबंिि ी। सेवती - दयाशिंकर की पत्नी। ( ोली का हदन) समय - 9 बजे रात्रत्र, आनिदं मो न तथा दयाशिंकर वाताला ाप करते जा र े ैं।) आ. - म लोगों को देर तो न ुम। अभी तो नौ बजे ोंगेय द. - न ींि, अभी क्या देर ोगीय आ. - व ाँ ब ुत इंितजार न कराना। क्योंकक क तो हदन भर गली-गली घूमने के पचात मझु में इिंतजार करने की शग्क्त ी न ीिं, दसू रे ठीक नयार बजे बोडडगंा ाउस का दरवाजा बिदं ो जाता ै। द. - अजी, चलते-चलते थाली सामने आवगे ी। मनंै े तो सेवती से प ले ी क हदया था कक नौ बजे तक सामान तयै ार रखना। आ. - तुम् ारा घर तो अभी दरू ै। य ाँ मेरे परै ों में चलने की शग्क्त ी न ी।िं आ कु छ बातचीत करते चलें। भला य तो बताओ कक परदे के सिबं ििं में
तुम् ारा क्या ववचार ै? भाभी जी मेरे सामने आ िंगी या न ींि, क्या मैं उनके चिरं मखु का दशान कर सकूँ गा? सच क ो। द. - तमु ् ारे और मेरे बीच मंे तो भामचारे का संिबंिि ै। यहद सेवती मँु खोले ु भी तमु ् ारे सम्मखु आ जा तो मुझे कोम म्लान न ीिं। ककिं तु सािारणतः मंै परदे की प्रथा का स ायक और समथका ूँ। क्योंकक म लोगों की सामाग्जक नीतत इतनी पववत्र न ीिं ै कक कोम स्त्री अपने लज्जा-भाव को चोट प ुँचा त्रबना अपने घर से बा र तनकले। आ. - मेरे ववचार से तो पदाा ी कु चषे ्टाओिं का मलू कारण ै। पदे से स्वभावतः पुरुषों के धचत्त में उत्सकु ता उत्पन्न ोती ै और व भाव कभी तो बोली-ठोली मंे प्रकट ोता ै और कभी नेत्रों के कटाषों ों में। द. - जब तक म लोग इतने दृढप्रततज्ञ न ो जा ँ कक सतीत्वरषों ा के पीछे प्राण भी बमलदान कर दंे तब तक परदे की प्रथा को तोडना समाज के मागा मंे ववष बोना ै। आ. - आपके ववचार से तो य ी मसद्ध ोता ै कक यरू ोप में सतीत्व-रषों ा के मल रात-हदन रुधिर की नहदयाँ ब ा करती ंै। द. - व ाँ इसी बेपदागी ने तो सतीत्विमा को तनमलूा कर हदया ै। अभी मनैं े ककसी समाचार-पत्र में पढा था कक क स्त्री ने ककसी परु ुष पर इस प्रकार का अमभयोग चलाया था कक उसने मुझे तनभीकतापूवका कु दृग्ष्ट से घूरा था, ककिं तु ववचारक ने उस स्त्री को नख-मशख से देखकर य क कर मुकदमा खाररज कर हदया कक प्रत्येक मनषु ्य को अधिकार ै कक ाट-बाट में नवजवान स्त्री को घरू कर देख।े मुझे तो य अमभयोग और य फै सला सवथा ा ास्यास्पद जान पडते ै और ककसी भी समाज को तनहंि दत करनेवाले ैं।
आ. - इस ववषय को छोडो। य तो बताओ कक इस समय क्या-क्या खलाओगे? ममत्र न ीिं तो ममत्र की चचाा ी ो। द. - य तो सेवती की पाक-कला-कु शलता पर तनभरा ै। परू रयाँ और कचौररयाँ तो ोंगी ी। यथासिभं व खूब खरी भी ोंगी। यथाशग्क्त खस्ते और समोसे भी आ ंिगे। खीर आहद के बारे में भववष्यवाणी की जा सकती ै। आलू और गोभी की शोरबेदार तरकारी और मटर, दालमोटे भी ममलेंगे। फीररनी के मल भी क आया था। गूलर के कोफते और आलू के कबाब, य दोनों सेवती खूब पकाती ै। इनके मसवा द ी-बडे और चटनी-अचार की चचाा तो व्यथा ी ै। ाँ, शायद ककशममश का रायता भी ममलंे। ग्जसमें के सर की सगु िंि उडती ोगी। आ. - ममत्र, मेरे मँु में तो पानी भर आया। तुम् ारी बातों ने तो मेरे परै ों मंे जान डाल दी। शायद पर ोते तो उडकर प ुँच जाता। द. - लो, अब तो आ ी जाते ै। व तबिं ाकू वाले की दकू ान ै, इसके बाद चौथा मकान मेरी ी ै। आ. - मेरे साथ बठै कर क ी थाली मंे खाना। क ींि ीसा न ो कक अधिक खाने के मल मुझे भाभी जी के सामने लग्ज्जत ोना पड।े द. - इससे तुम तनशिंक र ो। उन् ें ममता ारी आदमी से धचढ ै। वे क ती ै जो खा गा ी न ीिं दतु नया मंे काम क्या करेगा? आज तुम् ारी बदौलत मझु े भी काम करनेवालों की पगिं ्क्त मंे स्थान ममल जाव।े कम से कम कोमशश तो ीसी ी करना। आ. - भम, यथाशग्क्त चषे ्टा करूँ गा। शायद कोम प्रिानपद ममल जा ।
द. - य लो, आ ग । देखना सीहढयों पर अिँ रे ा ै। शायद धचराग जलाना भलू गम। आ. - कोम जा न ींि। ततममरलोक ी में तो मसकंि दर को अमतृ ममला था। द. - अंति र इतना ी ै कक ततममरलोक मंे पैर कफसले तो पानी में धगरोगे और य ाँ कफसला तो पथरीली सडक पर। (ज्योततस्वरूप आते ै) ज्योतत. - सेवक भी उपग्स्थत ो गया। देर तो न ींि ुम? डबल माचा करता आया ूँ। द. - न ींि, अभी तो देर न ींि ुम। शायद आपकी भोजनामभलाषा आपको समय से प ले ी खीचिं लाम। आ. - आपका पररचय कराइ । मुझे आपसे देखा-देखी न ींि ै। द. -(अगँ रेजी मंे) मेरे सदु रू के सिंबंिि में साले ोते ै। क वकील के मु ररार ै। जबरदस्ती नाता जोड र े ै। सेवती ने तनमंति ्रण हदया ोगा; मुझे कु छ भी ज्ञात न ी।ंि ये अगँ रेजी न ींि जानत।े आ. - इतना तो अच्छा ै। अँगरेजी मंे ी बातें करंेगे। द. - सारा मजा ककरककरा ो गया। कु मानुषों के साथ बठै कर खाना फोडे के आप्रेशन के बराबर ै। आ. - ककसी उपाय से इन् ें ववदा कर देना चाह ।
द. - मझु े तो धचतिं ा य ै कक अब सिंसार के कायका त्तााओिं मंे मारी और तमु ् ारी गणना ी न ोगी। पाला इनके ाथ र ेगा। आ. - खरै ऊपर चलो। आनिंद तो जब आवे इन म ाशयों को आिे पेट ी उठना पड।े (तीनों आदमी ऊपर जाते ैं) द. - अरेय कमरे मंे भी रोशनी न ींि, घपु अिँ ेरा ै। लाला ज्योततस्वरूप, दे ख गा। क ीिं ठोकर खाकर धगर न पडड गा। आ. - अरे गजब...(अलमारी से टकरा कर िम ्ु से धगर पडता ै।) द. लाला ज्योततस्वरूप, क्या आप धगरे? चोट तो न ीिं आम? आ. - अजी, मैं धगर पडा। कमर टू ट गम। तमु ने अच्छी दावत की। द. - भले आदमी, सैकडों बार तो आ ो। मालमू न ीिं था कक सामने आलमारी रखी ै। क्या ज्यादा चोट लगी? आ. - भीतर आओ। थामलयाँ लाओ और भाभी जी से क देना के थोडा-सा तले गमा कर लें। मामलश कर लँूगा। ज्योततस्वरूप - म ाशय, य आपने क्यो रख छोडा ै। जमीन पर धगर पडा। द. - उगालदान तो न ीिं लुढका हदया? ाँ, व ी तो ै। सारा फशा खराब ो गया। आ. - बंिि वु र, जाकर लालटेन जला लाओ। क ाँ लाकर काल-कोठरी में डाल हदया।
द. - (घर में जाकर) अरेय य ाँ भी अँिरे ा ैय धचराग तक न ी।िं सेवती, क ाँ ो? से. - बठै ी तो ूँ। द. - क्या बात ै? धचराग क्यों न ींि जलेय तबीयात तो अच्छी ै? से. - ब ुत अच्छी ै। बारे, तुम आ तो ग य मनंै े समझा था कक आज आपका दशान ी न ोगा। द. - ज्वर ै क्या? कब से आया? से. - न ींि, ज्वर-स्वर कु छ न ींि, चैन से बैठी ूँ। द. - तुम् ारा परु ाना बायगोला तो न ींि उभर आया? से. - (व्यंिनय से) ाँ, बायगोला ी तो ै। लाओ, कोम दवा ै? द. - अभी डाक्टर के य ाँ से मँगवाता ूँ। से. - कु छ मुफ्त की रकम ाथ आ गम ै क्या? लाओ, मझु े दे दो, अच्छी ो जाऊँ । द. - तमु तो ँसी कर र ी ो। साफ-साफ कोम बात न ींि क ती। क्या मेरे देर से आने का य ींि दिंड ै? मनंै े नौ बजे आने का वचन हदया था। शायद दो-चार ममनट अधिक ु ो। सब चीजंे तयै ार ैं न? से. - ाँ, ब ुत ी खस्ता आिो-आि मक्खन डाला था। द. - आनदंि मो न से मनैं े तमु ् ारी खूब प्रशिंसा की ै।
से. - मवर ने चा ा तो वे भी प्रशंिसा ी करंेगे। पानी रख आओ, ाथ-वाथ तो िोय।ें द. - चटतनयाँ भी बनवा ली ै न? आनंदि मो न को चटतनयों से ब ुत प्रेम ैय से. - खबू चटतनयाँ खलाओ। सेरों बना रखी ै? द. - पानी मंे के वडा डाल हदया था?ट से. - ाँ, ले जाकर पानी रख आओ। पानी आरंिभ करंे, प्यास लगी ोगी। आ. - (बा र से) ममत्र, शीघ्र आओ। अब इंितजार करने की शग्क्त न ींि ै। द. - जल्दी मचा र ा ै। लाओ, थामलयाँ परसो। से. - प ले चटनी और पानी तो रख आओ। द. - (रसोम में जाकर) अरेय य ाँ तो चलू ् ा त्रबलकु ल ठंि डा पड गया ै। म री आज सबेरे ी काम कर गम क्या? से. - ाँ, खाना पकने से प ले ी आ गम थी। द. - बतना सब मँजे ु ै। क्या कु छ पकाया ी न ीिं? से. - भतू -प्रेत आकर खा ग ोंगे। द. - क्या - चूल् ा ी न ींि जलाया? गजब कर हदया। से. - गजब मैं कर हदया या तमु ने?
द. - मनैं े तो सब सामान लाकर रख हदया था। तमु से बार-बार पूछ मलया था कक ककसी चीज की कमी ो तो बतलाओ। कफर खाना क्यों न पका? क्या ववधचत्र र स्य ैय भला मैं इन दोनों को क्या मँु हदखाऊँ गा। आ. - ममत्र, क्या तुम अके ले ी सब सामग्री चट कर र े ो? इिर भी लोग आशा लगा बैठे ै। इिंतजार दम तोड र ा ै। से. - यहद सब सामग्री लाकर रख ी देते ो मझु े बनाने में क्या आपग्त्त थी? द. - अच्छा, यहद दो- क वस्तओु ंि की कमी ी र गम थी; तो इसका अमभप्राय कक चूल् ा ी न जले? य तो ककस अपराि का दंिड हदया ै? आज ोली के हदन और य ाँ आग ी न जली? से. - जब तक ीसे चरके न खाओगे, तुम् ारी आँखें न खलु ेंगी। द. - तुम तो प ेमलयों से बातें कर र ी ो। आ खर ककस बात पर अप्रसन्न ो? मनंै े कौन-सा अपराि ककया? जब मैं य ाँ से जाने लगा था, तुम प्रसन्नमखु थी और इसके प ले भी मनैं े तुम् ंे दखु ी न ीिं देखा था। तो मेरी अनपु ग्स्थतत में कौन ीसी बात ो गम कक तमु इतनी रूठ गम? से. - घर मंे ग्स्त्रयों को कै द करने का य दंिड ंै। द. - अच्छा तो य इस अपराि का दिंड ै? मगर तुमने मुझसे परदे की तनदिं ा न ीिं की। बग्ल्क इस ववषय में जब कोम बात तछडती थी तो तुम मेरे ववचारों से स मत ो र ती थी। मुझे आज ी ज्ञात ुआ कक तमु ् ें परदे से ककतनी घणृ ा ैय क्या दोनों अधथततयों से य क दँ ू कक परदे की स ायता के दिंड मंे मेरे य ाँ अनशन व्रत ै, आप लोग ठंि डी-ठिं डी वा खा ँ?
से. - जो चीजंे तयै ार ै व जाकर खलाओ और जो न ीिं ै, उसके मल षों मा मागँ ो। द. - मैं तो कोम चीज तयै ार न ींि देखता? से. - ंै क्यों न ी, चटनी बना ी डाली ै और पानी भी प ले से तयै ार ै। द. - य हदल्लगी तो ो चकु ी। सचमुच बताओ खाना क्यों न ीिं पकाया? क्या तबीयत खराब ो गम थी, अथवा ककसी कु त्ते ने आकर रसोम अपववत्र कर दी थी? आ. - बा र क्यों न ीिं आते ो भाम, भीतर ी भीतर क्या ममसकोट कर र े ो? अब सब चीजंे न ींि तयै ार ंै, न ीिं स ी, जो कु छ तैयार ो व ी लाओ। इस समय तो सादी पूररयाँ भी खस्ते से अधिक स्वाहदष्ट जान पडगे ी। कु छ लाओ, भला श्रीगणेण तो ो। मझु से अधिक उत्सुक मेरे ममत्र मुंिशी ज्योततस्वरूप ै। से. - भैया ने दावत के इंितजार में आज दोप र को भी न खाया ोगा। द. - बात क्यों टालती ो, मेरी बातों का जवाब क्यों न ीिं देती? से. - न ींि जवाब देती, क्या कु छ आपका कजा खाया ै या रसोम बनाने के मल लौंडी ूँ? द. - यहद मंै घर का काम करके अपने को दास न ींि समझता तो तमु घर का काम करके अपने को दासी क्यों समझती ोय से. - मंै न ीिं समझती ूँ, तुम समझते ोय द. - क्रोि मुझे आना चाह , उल्टी तमु त्रबगड र ी ो।
से. - तमु ् ें क्यों मझु पर क्रोि आना चाह ? इसमल कक तुम पुरुष ो? द. - न ीिं, इसमल कक तमु ने आज मेरे ममत्रों तथा सबिं िंधियों के सम्मुख नीचा हदखाया। से. - नीचा हदखाया तुमने मुझे कक मनैं े तमु ् ंे? तमु तो ककसी प्रकार षों मा करा लोगे, ककंि तु कामलमा तो मेरे मखु लगेगी। आ. - भम, अपराि षों मा ो, मंै भी व ी आता ूँ। य ाँ तो ककसी पदाथा की सगु ंिि तक न ीिं आती। द. - षों मा क्या करो लँूगा, लाचार ो कर ब ाना करना पडेगा। से. - चटनी खलाकर पानी वपलाओ। इतना सत्कार ब ुत ै। ोली का हदन ै, य भी क प्र सन र ेगा। द. - प्र सन क्या र ेगा, क ींि मुख हदखाने योनय न र ूँगा। आ खर तमु ् ें य क्या शरारत सझू ी? से. - फरर व ी बातय शरारत क्यों सूझतीय क्या तमु से और तुम् ारे ममत्रों से कोम बदला लेना था? लेककन जब लाचार ो गम तो क्या करती? तमु तो दस ममनट पछता कर और मझु पर क्रोि ममटा कर आनिंद से सोओगे। य ाँ तो मैं तीन बजे से बैठी झीकंि र ी र ी ूँ। और य सब तुम् ारी करततू ै?? द. - य ी तो पछू ता ूँ कक मनैं े क्या ककया? से. - तुमने मझु े वपजंि रे में बिंद कर हदया, पर काट हद य मेरे सामने दाना रख दो तो खाऊँ , मधु िया में पानी डाल दो तो पीऊँ , य ककसका कसूर ै? द. - भाम तछपी-तछपी बातंे न करो। साफ-साफ क्यों न ींि क तीय
आ. - ववदा ोता ूँ, मौज उडाइ । न ीिं तो बाजार की दकु ानें भी बंिद ो जा ँगी। खूब चकमा हद ममत्र, कफर समझेंगे। लाला ज्योततस्वरूप तो बैठे -बैठे अपनी तनराशा को खरु ााटों से भुला र े ै। मुझे य सतंि ोष क ाय तारे भी न ींि ै कक बठै कर उन् ें ी धगनँ।ू इस समय तो स्वाहदष्ट पदाथों का स्मरण कर र ा ूँ। द. - बंिि वु र, दो ममनट और सतिं ोष करो। आया। ाँय लाला ज्योततस्वरूप से क दो कक ककसी लवाम की दकू ान से परू रयाँ ले आ ँ। य ाँ कम पड गम ैं। आज दोप र ी से इनकी तबीयत खराब ो गम ै। मेरे मेज की दराज में रुप रखे ैं। से. - साफ-साफ तो य ी ै कक तुम् ारे परदे ने मझु े पिगं ु बना हदया ै। कोम मेरा गला भी घोंट जा तो फररयाद न ींि कर सकती। द. - कफर व ी अन्योंग्क्तय इस ववषय का अतिं भी ोगा या न ीियं से. - हदयासलाम तो थी ी न ींि, कफर आग कै से जलातीय द. - अ ाय मनंै े जाते समय हदयासलाम की डडत्रबया जेब मंे रख ली थी... जरा सी बात का तुमने इतना बतंिगड बना हदया। शायद मुझे तगिं करने के मल अवसर ढूँढ र ी थी। कम से कम मुझे तो ीसा ी जान पडता ै। से. य तुम् ारी ज्यादती ै। ज्यों ी तुम सीढी से उतरे, मेरी दृग्ष्ट डडत्रबया की तरफ गम, ककंि तु व लापता थी। ताड गम कक तुम ले ग तमु मुग्कल से दरवाजे तक प ुँचे ोंगे। अगर जोर से पकु ारती तो तमु सुन लेत।े लेककन नीचे दकु ानदारों के कान मंे भी आवाज जाती तो सनु कर तुम न जाने मेरी कौन-कौन ददु ाशा करत।े ाथ मल कर र गम। उसी समय से ब ुत व्याकु ल ो र ी ूँ कक ककसी प्रकार भी हदयासलाम ममल जाती तो अच्छा ोता। मगर कोम वश न चलता था। अिंत मंे लाचार ोकर बठै र ी।
द. - य क ो कक तमु मझु े तगिं करना चा ती थी। न ींि तो क्या आग या हदयासलाम न ममल जाती? से. - अच्छा, तमु मेरी जग ोते तो क्या करते? नीचे सब के सब दकु ानदार ंै। और तुम् ारी जान-प चान के ैं। घर के क ओर पिडं डत जी र ते ै। उनके घर मंे कोम स्त्री न ीिं। सारे हदन फाग ुम ै। बा र के सकै डों आदमी जमा थे दसू री ओर बगंि ाली बाबू र ते ै। उनके घर की ग्स्त्रयाँ ककसी सिंबंिि ी से ममलने गम ंै और अब तक न ीिं आम। इन दोनों से भी त्रबना छज्जे पर आ चीज न ममल सकती थी। लेककन शायद तमु इतनी बेपदागी को षों मा न करत।े और कौन ीसा था ग्जससे क ती कक क ींि से आग ला दो। म री तुम् ारे सामने ी चौका- बतना करके चली गम थी। र -र कर तुम् ारे ऊपर क्रोि आता था। द. - तुम् ारी लाचारी का कु छ अनमु ान कर सकता ूँ, पर मझु े अब भी य मानने में आपग्त्त ै कक हदयासलाम का न ोना चूल् ा न जलने का वास्तववक कारण ो सकता ै। से. - तुम् ींि से पूछती ूँ कक बतलाओ, क्या करती? द. - मेरा मन इस समय ग्स्थर न ींि, ककिं तु मुझे वववास ै कक यहद मंै तमु ् ारे स्थान पर ोता तो ोली के हदन और खास कर जब अततधथ भी उपग्स्थत ों, चलू ् ा ठंि डा न र ता। कोम-न-कोम उपाय अवय ी तनकालता। से. - जैसे? द. - क रुक्का मलखकर ककसी दकु ानदार के सामने फंे क देता। से. - यहद मंै ीसा करती तो शायद तमु आखँ ममलाने का मझु पर कलिंक लगात।े
द. - अिँ रे ा ो जाने पर मसर से पैर तक चादर ओढ कर बा र तनकल जाता और हदयासलाम ले आता। घंिटे दो घटंि े में अवय ी कु छ-न-कु छ तयै ार ो जाता। ीसा उपवास तो न पडता। से. - बाजार जाने से मझु े तुम गली-गली घूमनवे ाली क ते और गला काटने पर उतारू ो जात।े तमु ने मुझे कभी इतनी स्वततंि ्रता न ींि दी। यहद कभी स्नान करने जाती ूँ तो गाडी का पट बदंि र ता ै। द. - अच्छा, तमु जीती और मैं ारा। सदैव के मल उपदेश ममल गया कक ीसे अत्यावयक समय पर तमु ् ंे घर से बा र तनकलने की स्वतंति ्रता ै। से. - मैं तो इसे आकग्स्मक समय न ीिं क ती। आकग्स्मक समय तो य ै कक देवात ्ु घर मंे कोम बीमार ो जा और उसे डाक्टर के य ाँ ले जाना आवयक ो। द. - तनस्सदंि े व समय आकग्स्मक ै। इस दशा मंे तमु ् ारे जाने मंे कोम स्तषों पे न ीि।ं से. - और भी आकग्स्मक समय धगनाऊँ ? द. - न ींि भाम, इसका फै सला तमु ् ारी बुवद्ध पर तनभरा ै। आ. - ममत्र, सतिं ोष की सीमा तो अिंत ो गम, अब प्राण-पीडा ो र ी ै। मवर करे, घर आबाद र े, त्रबदा ोता ूँ। द. - बस, क ममनट और। उपग्स्थत ुआ। से. - चटनी और पानी लेते जाओ और परू रयाँ बाजार से मँगवा लो। इसके मसवा इस समय ो ी क्या सकता ै?
द. - (मरदाने कमरे में आकर) पानी लाया ूँ, प्यामलयों में चटनी ै। आप लोग जब तक भोग लगावंे। मैं अभी आता ूँ। आ. - िन्य ै मवरय भला तमु बा र तो तनकलेय मनंै े तो समझा था कक कातंि वास करने लगे। मगर तनकले तो भी चटतनयाँ लेकर। व स्वाहदष्ट वस्तु ँ क्या ुम ग्जनका आपने वादा ककया था और ग्जनका स्मरण मंै प्रेमानुरक्त भाव से कर र ा ूँ? द. - ज्योततस्वरूप क ाँ ग ? आ. - उद्धवा सिसं ार में भ्रमण कर र े ंै। बडा ी अद्भतु उदासीन मनषु ्य ै कक आते ी आते सो गया और अभी तक न ीिं चौंका। द. - मेरे य ाँ क दघु टा ना ो गम। उसे और क्या क ूँ। सब सामान मौजदू और चूल् े में आग न जली। आ. - खबू य य क ी र ी। लकडडयाँ न र ीिं ोंगी। द. - घर में तो लकडडयों का प ाड लगा ै। अभी थोडे ी हदन ु कक गाँव से क गाडी लकडी आ गम थी। हदयासलाम न थी। आ. (अट्ट ास कर) - वा य य अच्छा प्र सन ुआ। थोडी-सी भूल ने सारा स्वप्न ी नष्ट कर हदया। कम-से-कम मेरी तो बधिया बठै गम। द. - क्या क ूँ ममत्र, लग्ज्जत ूँ। तुमसे सत्य क ता ूँ। आज से मैं परदे का शत्रु ो गया। इस तनगोडी प्रथा के बििं न ने ठीक ोली के हदन ीसा वववासघात ककया कक ग्जसकी कभी भी सभंि ावना न थी। अच्छा अब बतलाओ, बाजार से लाऊँ पूररया?ँ अभी तो ताजी ममल जा ँगी।
आ. - बाजार का रास्ता तो मनंै े भी देखा ै। कष्ट न करो। जाकर बोडडगंा ाउस में खा लँूगा। र े ये म ाशय, मेरे ववचार से इन् ंे छे डना ठीक न ीं।ि पडे-पडे खराटा े लेने दो। प्रातःकाल चौंके गे तो घर का मागा पकडगंे े। द. - तुम् ारा यों वापस जाना मझु े खल र ा ै। क्या सोचा था, क्या ुआय मजे ले-लेकर समोसे और कोफ्ते खाते और गपडचौथ मचात।े सभी आशा ँ ममट्टी में ममल गम। मवर ने चा ा तो शीघ्र ी इसका प्रायग्चत करूँ गा। आ. - मुझे इस बात की प्रसन्नता ै कक तमु ् ारा मसद्धािंत टू ट गया। अब इतनी आज्ञा दो कक भाभी जी को िन्यवाद दे आऊँ । द. - शौक से जाओ। आ. - (भीतर जाकर ) भाभी जी को साष्टांिग प्रणाम कर र ा ूँ। यद्यवप आज के आकाशी भोज से मुझे दरु ाशा तो अवय ुम, ककिं तु व उस आनिंद के सामने शून्य ै जो भाम सा ब के ववचार-पररवतना से ुआ ै। आज क हदयासलाम ने जो मशषों ा प्रदान की ै व लाखों प्रामा णक प्रमाणों से भी सभंि व न ीिं ै। इसके मल मंै आपको स षा िन्यवाद देता ूँ। अब से बिंिवु र परदे के पषों पाती न ोंगे, य मेरा अटल वववास ै। (पटाषों पे ) ***
Search
Read the Text Version
- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- 11
- 12
- 13
- 14
- 15
- 16
- 17
- 18
- 19
- 20
- 21
- 22
- 23
- 24
- 25
- 26
- 27
- 28
- 29
- 30
- 31
- 32
- 33
- 34
- 35
- 36
- 37
- 38
- 39
- 40
- 41
- 42
- 43
- 44
- 45
- 46
- 47
- 48
- 49
- 50
- 51
- 52
- 53
- 54
- 55
- 56
- 57
- 58
- 59
- 60
- 61
- 62
- 63
- 64
- 65
- 66
- 67
- 68
- 69
- 70
- 71
- 72
- 73
- 74
- 75
- 76
- 77
- 78
- 79
- 80
- 81
- 82
- 83
- 84
- 85
- 86
- 87
- 88
- 89
- 90
- 91
- 92
- 93
- 94
- 95
- 96
- 97
- 98
- 99
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
- 192
- 193
- 194
- 195
- 196
- 197
- 198
- 199
- 200
- 201
- 202
- 203
- 204
- 205
- 206
- 207
- 208
- 209
- 210
- 211
- 212
- 213
- 214
- 215
- 216
- 217
- 218
- 219
- 220
- 221
- 222
- 223
- 224
- 225
- 226
- 227
- 228
- 229
- 230
- 231
- 232
- 233
- 234
- 235
- 236
- 237
- 238
- 239
- 240
- 241
- 242
- 243
- 244
- 245
- 246
- 247
- 248
- 249
- 250
- 251
- 252
- 253
- 254
- 255
- 256
- 257
- 258
- 259
- 260
- 261
- 262
- 263
- 264
- 265
- 266
- 267
- 268
- 269
- 270
- 271
- 272
- 273
- 274
- 275
- 276
- 277
- 278
- 279
- 280
- 281
- 282
- 283
- 284
- 285
- 286
- 287
- 288
- 289
- 290
- 291
- 292
- 293
- 294
- 295
- 296
- 297
- 298
- 299
- 300
- 301
- 302
- 303
- 304
- 305
- 306
- 307
- 308
- 309
- 310
- 311
- 312
- 313
- 314
- 315
- 316
- 317
- 318
- 319
- 320
- 321
- 322
- 323
- 324
- 325
- 326
- 327
- 328
- 329
- 330
- 331