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vol.2, issue.15, May 2016 (Special Issue on Water)

Published by jankritipatrika, 2019-03-18 12:10:11

Description: vol.2, issue.15, May 2016 (Special Issue on Water)

Keywords: science,envoiremnt,arts,Literature,Media,Public,News,Water

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ISSN 2454-2725 2 विषय सूची कविता भारत का जल ससंा ाधन: वमवथलेश िामनकर एिां डॉ. श्याम गपु ्त (कविता), सरोज उत्प्रते ी (कनाड़ा) विजय वमिा (कविता), हर्षिधनष आयष (कविता), महशे कु मार लातरू पानी के वलए सांघर्:ष रिीि पाठक माटा (कविता), निीन मवि विपाठी (कविता), एवशयाई दशे ों मंे गहराता जल सकंा ट: विश्व रजनीकांात शकु ्ला (कविता), शावलनी ‘शालू’ नज़ीर जलरिीि रभाकर (कविता), संाजय िमाष (कविता), सोनू चौधरी भारत मंे पानी: रमे चंाद श्रीिास्ति (कविता), सशु ातां सवु रय (कविता), रीता चौधरी जल एिंा संाभावित स्िास््य संाकट: आर. सपना (कविता) भारत मंे घटते संासाधन: रंाजीत जल समस्या: स्थानीयता ही है समाधान: एस.जी. कहानी िोम्बाटकर पानी: सीमा जनै (कहानी) जल साकं ट के महु ाने पर गगंा ा यमनु ा का दोआब: शालू अग्रिाल लघकु था जल रदरू ्ि के कारि और रभाि: सोवनया माला पानी का हर बंादू : लालजी ठाकू र (लघकु था) संका ट मंे पानी: यएू नईपी बैगा जनजावत में िर्ाष गीत: अजनषु वसंहा धिु े व्यंग्य लोकगीतों में िर्ाष: डॉ. रामनारायाि वसंहा ‘मधरु ’ सरकारी हडै पम्प की व्यथा: मोहनलाल मौयष (व्यगंा्य) आलेख: जल संरक्षण एिं प्रबधं न आलेख: जल सम्पदा एिं जल सकं ट जल संाकट के रवत लोगों को जागरूक करने मंे 21िीं सदी की बड़ी और विकराल समस्या: अनीता विज्ञापन की भवू मका: शवश गौड़ दिे ी जल विद्यतु नीवत, बांधा ों के वनमािष , समीक्षा की वहदां ी सावहत्प्य में पानी एक सिके ्षि: सनु ीता आिश्यकता: वििके रंाजन श्रीिास्ति राकृ वतक उपहार ‘जल’: अमर कु मार चौधरी ‘जल’ ‘सरंा क्षि’ ही अवंा तम विकल्प: शौभा जनै मघे ों का मनाने का अदंा ाज अपना-अपना: आकााकं ्षा जल भण्डारि, संारक्षि तथा रबंाधन: ए. के . चतिु दे ी यादि सम्पिू ष जल रबंधा न: राजशे गपु ्ता जल की धार-राि आधार: डॉ. मिृ ावलका ओझा िर्ाष जल संरा क्षि: रेशमा भारती सभ्यता और संसा ्कृ वत की अविरल धारा है गगां ा: कै से सहज और व्यिवस्थत हो तालाब वनमाषि: कृ ष्ि कु मार यादि मविशकंा र उपाध्याय डॉक्यमू टंे री विल्मों मंे वचवित विश्वव्यापी जल साकं ट जल संरा क्षि के आसान उपाय: वनवतन रोडेकर की दशा और वदशा: मनीर् खारी सरकंा डे से होगी नवदयों की सिाई: विकास रुपहले पदे पर पानी (Water in Cinema): उमशे धवू लया/अरविदंा शखे र कु मार राय िॉर िॉर िाटर: एएमएि न्यज़ू अब की बार िसल शहर म:ंे वनलामे गजानन छत के पानी का एकिीकरि: इवंा डया िॉटर पोटषल सयू कष ातां

ISSN 2454-2725 3 भारत मंे जलक्षेि के वनजीकरि और बाजारीकरि के Water and Journey: Rakesh Kumar रभाि: इवां डया िॉटर पोटषल Mathur (London) जल रदरू ्ि: वनजात वदलाएगा एसएसएि: इवण्डया िॉटर पोटषल अवतवथ संपादक: रमशे कु मार जलाशयों की मरम्मत, जीिोद्धार ि निीकरि स्कीम विशेष आभार: इवण्डया िॉटर पोटषल पर नोट: जल संासाधन मिंा ालय, भारत सरकार Some Useful Website, Articles and Documentary on Water Issue: Kavita Singh Chauhan

ISSN 2454-2725 4 जल की प्रत्येक बूंद का सूंचयन आने वाली सभ्यता का भववष्य तय करेगी... कु छ वक्त पहले यह चेतावनी दी गई वक तालाब सतंू कृ वत है. एक वक्त था जब भारत अगला ववश्वयु्ध पानी क लेकर ह सकता मंे तालाबों की सूंख्या मंे थी आज इनकी है. यह चेतावनी सही सावबत ह सकती है, सूखं ्या उलगवलयों पर वगनी जा सकती है. वजस तरह से जल का द हन ह रहा है और हमारी अंूधाधधूंु ववकास की दौड़ में हमने हमारे अवततत्व पर सकूं ट मूंडरा रहा है ऐसे मंे अपने प्राकृ वतक सूंसाधनों का लगातार वनवित ही यह पररवतथवत उत्पन्न ह सकती श षण वकया अब यह वतथवत ववकराल रूप है. आप इन्टरनेट पर तलाशेंगे त अफ्रीका धारण कर चुकी है इसका तपष्ट उदाहरण हम से लेकर कई देशों की भयावह ततवीर देखने उत्तर प्रदेश के बंूुदेलखंूड इलाके एवंू क वमलेगी. आवखर जल की एक बूंद क महाराष्र के लातरू वजले क देख सकते हंै, तरसते हुए ल गों की इस वतथवत का असली जहाल अकाल जैसी वतथवत उत्पन्न ह गई. कारण ख जे त हमें तवयंू पर प्र्न उााने इस वतथवत से वनपटने के वलए सरकार ने होंगे. आज जब जल सूंरक्षण क लेकर तत्कालीन उपाय भी वकए लेवकन वचंूता व्यक्त की जा रही है कई सतंू थाएंू इस वैज्ञावनकों की चेतावनी क दरवकनार करते क्षेत्र मंे प्रयासरत है तब भी हम भववष्य में हुए क ई सशक्त कदम नहीं उााए गए. जल की उपवतथवत क लेकर सशूवं कत है. आवखर हम इस तरह की पररवतथवत का हमारी यह वचंूता मानव अवततत्व क लेकर इतंू ज़ार कयूल करते हैं. यवद हमें ऐसी वतथवत से है कयूंवक धरती पर कु छ ही प्रवतशत पानी वनपटना है त तालाब सूंतकृ वत की ओर पीने य ग्य है और इसमंे भी ज शेष जल है लौटना ह गा. हमें अपने प्राचीन जल उसे हमारे तवाथथ ने ववकास के नाम पर खत्म सूंरक्षण नीवतयों एवंू आधुवनक साधनों के कर वदया है. वमश्रण से ऐसा मागथ तलाशना ह गा, वजससे शेष जल क सूंरवक्षत वकया जा सके . यवद हम अपने मानव सभ्यता के प्रारंूवभक समय क देखंे त वहाूं जल सूंरक्षण के कई जनकृ वत का यह अूंक वतथमान जल सूकं ट, उपाय नजर आयंेगे इसका तपष्ट उदाहरण जल सूरं क्षण एवंू जल सूसं ाधनों पर के वन्ित

ISSN 2454-2725 5 है. इस अंूक मंे जल के ववववध पक्षों पर वैवश्वक कायों से जड़ु सकें . इस आशा के ववचारों क प्रकावशत वकया है. इस अंूक के साथ वक हम ‘जल’ के महत्त्व क समझंेगे माध्यम से हम जल सूंकट की भयावता क और इस वदशा में कारगर कदम उााएगूं े, वदखाना चाहते हैं और आग्रह करते हैं वक जनकृ वत अंूतरराष्रीय पवत्रका का जल हम इस समतया के प्रवत गूंभीरता से स चें ववशेषांूक आपके समक्ष प्रतततु है. और कारगर कदम उााए.ंू इस अंूक में ववश्वभर में जल सूंरक्षण क लेकर कायथ कर अंूत मंे इस अंूक क साथथक रूप देने हेतु रही सूंतथाओूंके वलूंक क भी तथान वदया है इवूं डया वॉटर प टथल का ववशेष रूप से तावक हम जल सरूं क्षण क लेकर ह रहे आभार.. -कु मार गौरव वमश्र

ISSN 2454-2725 6 में हूँ पानी की वही बँूद , आततहास मरे ा दखे ा भाला॥ 7 आततहास मरे ा दखे ा भाला | मैं शाश्वत, तवतवध रूप मरे े, मंै वही बदूँ जो पथृ ्वी पर, सागर घन वषाा तहम नाला। 1 पहला बादल बनकर बरसी। नतदया नाला बनकर बहती, धरती आक अग का गोला थी, झीलों तालों को थी भरती। 8 जब मातंड से तवलग हुइ। शीतल हो ऄणु परमाणु बने, राजा संतों की राहों को, बहु तवतध तत्वों की सतृ ि हुइ । 2 मझु से ही सींचा जाता था। मीठा ठंडा और शदु ्ध नीर, अकाश व धरती मध्य बना, कु ओं से खींचा जाता था। 9 जल वाष्प रूप में छाया था। शीतल होने पर पनु ः वही, बन कु ए सरोवर नद झीलें , बन प्रथम बदँू आठलाया था । 3 मनंै े सब धरती को पाला। मैं वही बूदँ हँू पानी की , जग का हर कण कण मरे ी आस , आततहास मरे ा दखे ा भाला॥ 10 शीतलता का था मतवाला । मंै पानी की वही बूँद, उँू चे उँू चे तगरर- पवता पर, आततहास मरे ा दखे ा भाला।। 4 शीतल होकर जम जाती ह।ँू तहमवानों की गोदी में पल, तिर यगु ों यगु ों तक वषाा बन, तहमनद बनकर आठलाती ह।ूँ 11 मंै रही ईतरती धरती पर । तन मन पथृ ्वी का शीतल कर, सतवता के शौया रूप से मंै, मैं तनखरी सप्ततसन्धु बनकर। 5 हो द्रतवत भाव जब बहती ह।ूँ प्रेयतस सा नतदया रूप तलए, पहली मछली तजसमें तरै ी, सागर मंे पनु ः तसमटती ह।ूँ 12 मंै ईस पानी का तहस्सा ह।ँू ऄततकाय जतं ु से मानव तक, मैं ईस तहमनद का तहस्सा ह,ँू की प्यास बझु ाता तकस्सा ह।ूँ 6 तनकला पहला नतदया नाला। मंै हूँ पानी की वही बूदँ , रतव ने ज्वाला से वातष्पत कर, आततहास मरे ा दखे ा भाला॥ 13 तिर बादल मझु े बना डाला। मंै हूँ पानी की वही बँूद, तब से ऄब तक मंै वही बूदँ , तन मन मरे ा यह शाश्वत ह।ै

वाष्पन संघनन व द्रवणन से , ISSN 2454-2725 मरे ा यह जीवन तनयतमत ह।ै 14 7 मंै वही परु ातन जल कण हँू , शाश्वत हैं नि न होते हंै । भीषण गमी से बादल बन, यह मरे ी शाश्वत यात्रा ह,ै ईस महावतृ ि को लायेगी। 21 जलचक्र आसी को कहते ह।ंै 15 अयेगी महा जलप्रलय जब, सरू ज सागर नभ मतह तगरर न,े ईमडे सागर हो मतवाला। तमलकर मझु को पाला ढाला। मैं वही बूदँ हँू पानी की , मैं ही पानी बादल वषाा, आततहास मरे ा दखे ा भाला॥ २२. ओला तहमपात ओस पाला। 16 डा श्याम गपु ्त, सुश्यानिदी, के -३४८, आनियािा, मरे े कारण ही तो ऄब तक, लखिऊ २२६०१२ नश्वर जीवन भी शाश्वत ह।ै मो. ९४१५१५६४६४.. ऄतत सखु -ऄतभलाषा से नर की, ऄब जल थल वायु प्रदतू षत है ।१७. सागर सर नदी कू प पवता , मानव कृ त्यों से प्रदतू षत ह।ंै आनसे ही पोतषत होता यह, मानव तन मन भी दतू षत ह।ै 18 प्रकृ तत का नर ने स्वाथा हते ,ु है भीषण शोषण कर डाला। मैं हँू पानी की वही बदँू , आततहास मरे ा दखे ा भाला॥ 19 कर रहा प्रदषू ण तप्त सभी, धरती अकाश वायु जल को। ऄपने ऄपने सखु मस्त मनुज, है नहीं सोचता ईस पल को। 20 पवता ों ध्रवु ों की तहम तपघले, सारा पानी बन जायेगी।

ISSN 2454-2725 8 बबना जल के रेत के टीलों सा यह ससं ार होता हम ना होते तमु ना होते, अगर दबु नयां में जल न होता कै से उडती फू ल की खशु बू कै से भवं रो का गनु्जन होता हरी भरी घास न होती , बन उपवन सब उजड़ा होता गगं ा होती ना, जमनु ा होती ना बहता झरनो से पानी सखू े ताल तलैय्या होते, सागर गड्डे सा फै ला होता दशे बवदशे कु छ भी नही होते ,ससं ार नाम नही होता धरती का सीना रहता खाली , रहने वाला कोई नही होता नही होती सभ्यता बवकबसत, परु ाना कोई इबतहास न होता मबं दर मबजजद नही चचच न होत,े ग्रन्थ साबहब पाठ न होता - सरोज उप्रेती ( कनाडा)

ISSN 2454-2725 9 \"जल\" जजसके जिना सजृ ि के अजतित्व की कल्पना करना ही मजु ककल है । सकू्ष्मिम जीव से लेकर वनतपजियााँ िक जजसके जिना जनजीव हैं । ऐसे अमिृ रस जल को ििादा करना जीव हत्या के समान जनिदं नीय है । जागो !! समझो !! अपनाओ !! जल िचाओ -जीवन िचाओ । प्रेरणा गीत : ……………………. वरुण दवे के अमिृ घट से िहिा जीवन रस प्रजिपल अरे सम्हालो धरिी पतु ्रो नि ना हो धरिी का जल ॥ जल में धरिी, धरिी में जल है अद्भुि िाना-िाना जल के जिन धरिी पर अन्न का उग सकिा ना इक दाना पड़े धरा की िाहें िन कर िलु ा रहे होिे हैं घन उमड़-घमु ड़ घन सखु वर्ाा से भरिे धरिी का आगाँ न िहिी सरस नेह की धारा एकाकार हवु े जल-थल अरे सम्हालो धरिी पतु ्रो नि ना हो धरिी का जल ॥ जल जीवन का सार धरा पर, जल सिसे अनमोल रिन जल जिन है जग सनू ा मरुथल, जल जिन है दखु मय जीवन थलचर-नभचर-जलचर सिका जल ही है जीवन दािा धरिी पर जीवों का जल से जपिा-पतु ्र का है नािा जो जल को दजू र्ि करिे ह,ैं करिे मानविा से छल अरे सम्हालो धरिी पतु ्रो नि ना हो धरिी का जल ॥ चाँदा -जसिारों पर पानी को मानव आज रहा है खोज पर धरिी के अमिृ -घट को दजू र्ि करिा है हर रोज भौजिक सखु मंे जलप्त रसायन िहा रहा है नजदयों मंे जमनटों मंे जवर्मय करिा जो अमिृ िनिा सजदयों मंे आज सधु ारोगे ग़र खदु को िभी सधु र पायेगा कल अरे सम्हालो धरिी पतु ्रो नि ना हो धरिी का जल ॥ वरुण दवे के अमिृ घट से िहिा जीवन रस प्रजिपल अरे सम्हालो धरिी पतु ्रो नि ना हो धरिी का जल ॥

ISSN 2454-2725 10 2. जल के जिना है सनू ी, मानरु ् की यह जनू ी जल से कभी भी, जखलवाड़ मि कररये िदिंू -ििदंू जल अनमोल होिा मोजियों सा नल खलु ा छोड़ने का, लाड़ मि कररये जल को िहा रहे जो मढ़ू मजि नाजलयों मंे ऐसे िावलों की कभी, आड़ मि कररये जल ना रहा िो जल जाएगा ये जग सारा भलू के भी जल से, जिगाड़ मि कररये ।। अध्यक्ष -रोटरी क्लब ऑफ दिल्ली अपटाउन पिा - 2497/191,ओकंि ार नगर ,जत्रनगर ,जनै तथानक रोड,जदल्ली -110035 मोिाइल - 9968421236,

हाथो में तलवार ललए ISSN 2454-2725 बंूद बूँद पानी को तरसते कूं ठ मंे भीषण चीत्कार ललए 11 मर रहे असमय मौत से चहँू और हाहाकार ललए Mahesh kumar matta हे लवधाता 114-A, k-1 extension, gurudwara road, mohan लवशाल जलसमहू मंे समायी है धरा garden, new delhi 110059 लिर क्यों खाली है घड़ा Phone: 9711782028 वीरान कमरे मंे औधूं ा धरा शषु ्क लनजीव पड़ा मन हो रहा क्रलददत सखू ी नलदयांू दखे नालो पे थामे पतवार ललए हे मनषु ्य अब भी सम्भल जा अदयथा बहत पछतायगे ा या तो रेलगस्तान में मरता या समदु ्र में डूबता नज़र आयेगा चीख चीख कर कह रही धरती रोक लो अभी भी दोहन मरे े गभभ का बचा लो पानी की एक एक बँदू हाथों में समय की धार ललए न लबगाड़ो सदतलु न प्रकृ लत का कर लो प्रलतज्ञा ह्रदय मंे भलवष्य का ज्वार ललए नही तो यँू ही कटते रहोगे एक एक बूदँ के ललए हाथो में तलवार ललए हाथों मंे तलवार ललए (महेश कु मार माटा )

ISSN 2454-2725 12 जल जीवन आधार है मत कर जल बरबाद । बदँू बँूद में प्राण ह,ै है यह ईश प्रसाद ।। जल को सरं क्षित करो बाधो तगड़ा सते ु । क्षवश्वयदु ्ध अगला कभी होगा जल के हते ु ।। कं करीट जगं ल हुआ नगर नगर का िते ्र । पानी क्षबन बहे ाल हो तरसा मानव नेत्र ।। ताल तलयै ा खो रहे इन्हंे बचाये कौन । जल सरं िण पर हुआ संक्षवधान क्यों मौन ।। उन्नक्षत की कै सी चनु ी यह तमु ने तरकीब । दकू्षषत सारा जल हआु मरने लगा गरीब ।। नक्षदयों के इस दशे का यह कै सा सम्मान । मल्टी नेशनल जल क्षलए सजी हुई दकू ान।। रुष्ट हईु गगं ा बहुत हुआ बहुत अपमान । दवे ी अपना खो गयीं कलयगु मंे पहचान ।। जीवन से गर प्रीक्षत है तो मत करना उपहास । जल की मयादा ा रखो हो तभी बझु गे ी प्यास ।। --नवीन मणि णिपाठी

ISSN 2454-2725 13 cwna &cwna dj cgrk tk,] ty vueksy [k+tkuk] gS lhfer HkaM+kj /kjk ij] ty dks gesa cpkuk] cckZnh gks de] cpr djsxa s ge] /;ku vxj ns]a NksVh ckrs]a Ckgqr cM+h cu tkrh] cwna &cnwa ls curk lkxj] vkSj ufn;k Hkj tkrh] lkxj dks ckny ls gksdj] fQj ufn;ksa rd ykuk] gS lhfer HkaM+kj /kjk ij] ty dks gesa cpkuk] ckrksa esa gS ne] cpr djsxa s ge] rjl tk, ;s lw[kh /kjrh] Ik”kq i{kh vkS turk] D;k nwtk fodYi gS dksbZ] Tkks dj ik, lerk] i<+&s fy[ks dks vkSj vui<+ dks] lcdks ;s le>kuk] gS lhfer HkaM+kj /kjk ij] ty dks gesa cpkuk] lq[kh cus lc tu] cpr djsxa s ge] jtuhdkUr “kqDy

ISSN 2454-2725 14 मैं हंू नन्हीं बूंद जल की , िंे क रहा मानषु , बूंद-बूदं प्रवाहहत कू डा करकट सागर तल की । समा रहा मझु में गदूं गी का जमघट ॥ मझु में हहम्मत सराबोर है , मरे ी आशाएूं चहओंू र है ॥ रूके - रूके से ये श्ांूस है , पल में प्रलय , अब मझु े ना , पल में सखू ा , मौत का आभास है । हजदंू गी का एक कोना , अभी है रूखा-रूखा । हर क्षण , हर पल , तमु ्हारी नजरंे ढूढं े , समा रही मंै तझु मंे , मझु े पहरों में , तरे ा अतूं हमल जायगे ा मैं कल-कल करती , ऐ मानषु ! बहती लहरों में ॥ भटकते-भटकते मझु म॥ें पहाडों से उद्गार हआ , शालिनी'शाि'ू नजीरऺ कभी सागर का श्गंूृ ार हकया , नोहर तहसीि वसधंूु रा तझु पे बहते-बहते लजिा हनमु ानगढ़(राजस्थान) माततृ ्व सा व्यवहार हआ । मझु े चोट लगे , गर पाषाणों से , नादान बालक है वो , मैं चाहंू उसे जी प्राणों से ॥ मैं जब- जब आती , बहती बाररश मंे , कोख हररयाली हो जाए , वसधूंु रा की खव्वाहहश मंे । हिर से िहर उठे , प्रकृ हत की पताका , बस इतनी सी अजमाइश है ।

जल कहता ISSN 2454-2725 इसं ान व्यर्थ क्यों ढोलता है मझु े आवश्यकता होने पर 15 खोजने लगता है क्यों मझु े । बादलों से छनकर मै पानी का प्रेम -सदं शे ा भजे ते रहे जब बरसता ररमलझम फु हारों से । सहजे ना ना जानता इसं ान इसललए तरसता । धरती का रोम -रोम, संदशे ा पाकर ये माहौल दखे के हररयाली बन खड़े हो जाते नलदयाँा रुदन करने लगती मोर पखं ों को फै लाकर उनका पानी आसँा ओु ं के रूप मंे स्वागत हते ु नाचने लगते इसं ानों की आखँा ों में भरने लगती । लकं तु बादल चले जाते कै से कहे मझु े व्यर्थ न बहाओ बेवफाई करके जल ही जीवन है छोड़ जाते हररयाली/ पानी की यादें ये बातंे इसं ानो को कहााँ से धरती पर समझाओ । प्रेम संदशे के रूप मंे । आकाश को लनहारते मोर सजं य वर्मा \"दृष्टि \" सोच रहे , बादल भी इज्जत वाले हो गए 125 , शहीद भगत ष्टसगं र्मगा लबन बलु ाए बरसते नहीं र्नमवर ष्टजलम -धमर (र् प्र ) शायद बदल को 454446 कड़कड़ाती लबजली डराती होगी सौतन की तरह । बादल का लदल पत्र्र का नहीं होता प्रेम जागतृ होता है आकषकथ संदु र, धरती के ललए धरती पर आने को तरसते बादल तभी तो सावन में

फितरत ISSN 2454-2725 ये पलु की फितरत है सब का भार सहन करना 16 और फितरत ये नदी के महु ाने की पानी की टकराती धार वहन करना और इस मौन मंे पवतव की फितरत मखु र होने की कु लबुलाहट गडररये के फकस्सों की पोटली सभं ाले रखना ये तो नयी बात हुई सागर की फितरत है परु ाने फकस्सों को खगं ालना नदी के मलै े पानी को फदन भर यादों की अजं रु ी भर महकना अपनी साफ़ नजर दने ा फबना बात के छोटी को धौल जमाना बाररश की फितरत कनफखयों से दखे कर मसु ्कराना बादल को चीर दने ा इस उम्र में नवले ी जसै ी चाल ..और तमु ्हारी क्या हो गया तमु ्हंे तरेरती नजरों मंे उठे सवाल मुखर मौन अब फकस फकस को फगरते उठते मौसम की माफनदं क्या क्या बताएं सारी सवु ासों से भीगा था मन जाना है उस पी के घर बस एक कसक बाकी थी जहाँा से लौटना नहीं इधर उधर की बातों के बीच नयी बात इसफलये लम्बी चपु ्पी का अन्तराल कह दी , कर दी बस कहीं कोई मलाल न रह जाये ररश्ते तल्ख़ ख़ामोशी के बीच गनु गनु ाती हवाएं

ISSN 2454-2725 17 रूह को आजाद करती बादल की बोफलयाँा फकतनी दरू तलक मौसम संभालेगा सबं ंधों की धपू छावँा को फिन्दगी रोटी सी फसकती है तेरी मरे ी प्रेम कहानी जरा सा झझं ावत आते ही अधपकी रह जाती है हाँा कभी कभी भनु त,े भनू ते जल भी जाती है खो जाते हैं जब एक दसू रे के अहं में हम

1. ISSN 2454-2725 यह बझु े हएु गाावँ का ससयार नहीं 18 सगरवी पडे खते ों का रुदन है समट्टी से भर सदया गया कु ाअाँ यह सखू ी नदी नहीं सजसके सीने में धडकती है ाऄब भी ददद का ाअख्यान है मीठे जल की स्मसृ त यह बरबाद खते ी नहीं ………….. सनष्ठुर त्रासदी है 3. यह सकसान की परू ी ाईम्र नहीं ाईसके गदनद तक दलदल में बहतु सदनों बाद धँसा े होने की छटपटाहट है सजगरी यार से समलना यह कसवता नहीं जसै े ममाातं क पीडा है मीठे पानी के कु एाँ पर प्यास बझु ाना यह मरघटी शांसा त नहीं प्रजाततंा ्र का क्षरण है जसै े सखू रहे खते का ……………….. सिर से लहलहा जाना शोक-गीत-सा यह दशे जसै े त्रासदी-सा यह काल हािँा ते हुए िे िडों में कासलख़-पतु े-से ये नीसत-सनयतंा ा सिर से ताजी हवा भर जाना और मैं जसै े जसै े सिर से बचपन में लौट कर कां चे खले ना रांग-सबरांगी पतगंा ें ाईडाना जसै े

ISSN 2454-2725 19 पश-ु पसक्षयों पेड-पौधों िू लों-सततसलयों चााँद-ससतारों से सिर से बसतयाना बहुत सदनों बाद सजगरी यार से समलना जसै े तन-मन का सरू जमखु ी-सा सखलना प्रषे काः A-5001, गौड ग्रीन ससटी , वभै व खडां , ाआसां दरापरु म, गासजयाबाद – 201014, ( ाई. प्र. ) मो: 8512070086 ाइ-मले : [email protected]

कहते हैं ISSN 2454-2725 ‘जल’ ही जीिन है पर, 20 आज इसके ही अवततत्ि पर मडं रा रहा है खतरा.... रीता चौधरी ‘जल’ रहा ह.ै ... शोधार्थी (कलकत्ता विश्वविद्यालय) इसका ही जीिन। सोचा है कभी? मनषु ्य भविष्य के वलए पहले तो गन्दगी और संचय करता है ‘धन’ कू ड़ा-करकट से बनाता है बैकं -बलै ने ्स जल को दवू ित भी खदु ही करो भविष्य के वकस हद तक काम आएगा और...विर उसकी शदु ्धता के वलए ऐसा धन?? मशीनंे भी खदु ही बनाओ कौन करेगा िाह! िाही! पाओ? संचय ‘प्रकृ वत-धन’.... अपने वहतसे की विम्मदे ाररयों को ‘जल’? मशीनों के कं धे डालकर जो परू ी धरती का है भविष्य. कब तक ? कब तक ? एक ग्लास पानी जीिन बच सकता है पीने के वलए कब तक ? चार ग्लास के नकु सान को सारी की सारी गदं वगयों को कौन चकु ाएगा जल मंे यँू बवे िक्र बहाकर खदु को तिच्छ और तितर्थ रखा जा सकता है सोचनीय वििय ह…ै . वक.... रफ्तार विकास की ओर है या विर विनाश की ओर....

ISSN 2454-2725 21 सीमा जैन मरे ा बचपन और मााँ का जीवन सबकु छ पानी की भटें चढ़ गया।क्या करते? मरे ी माँा इस घर में पानी भरने के लिए ही िाई ंगई थी। राजस्थान के गाँवा ों मंे जो थोड़ा खचच उठा सकते है; दो शालदयााँ करते ह।ै एक पत्नी घर मंे राज करने के लिए और एक पानी िाने के लिए। पैसे दे कर लकसी को रखने से सस्ता जो पड़ता ह।ै ररश्ते से जड़ु ी वफ़ादारी काम आ जाती ह।ै मरे ी माँा गरीब घर से थी तो उनके लहस्से आया, घर का काम और पानी भरना। सबु ह तीन बजे उठना, कोसों दरू जाकर पानी िाना लिर लदन भर घर का काम। माँा हड़बड़ा कर सबु ह उठती, कभी दरे हो जाये तो छोटी माँा का लचल्िाना शरु ू हो जाता।बीमारी हो या त्यौहार मााँ को कभी भी इस काम में छु ट नही लमिी। बँादू -बदाँू टपकते पानी से एक घड़ा भरने में घण्टों िग जाते थे। इस रेलगस्तान से तपते कलठन जीवन की एक ही उपिलधध थी मरे ी पढ़ाई।सुबह जब मााँ पानी भरने के लिए उठती तो मंै भी जाग जाता और पढ़ने बठै जाता।सबु ह की पढ़ाई और मरे ी िगन का उजािा ही हमारी आज की दौित ह।ै पानी िाकर मााँ घर के काम करने में िग जाती।मझु े गोदी मंे बैठाकर सीने से िगाकर बहुत प्यार करती और हमशे ा कहती-\"िािा, मन िगाकर पढ़ना यही तरे े काम आएगा।\" लपताजी ने कभी लखिौने और नए कपडों का िाड़ तो नही लकया पर लशक्षा से जड़ु े खचे का मना भी नही लकया। गांव के मास्टरजी को घर बिु ाकर कहते-\"िािा का ध्यान रखना कोई ज़रूरत हो तो बता दने ा।\" मााँ की बात सही हईु , लशक्षा ही हमारे काम आई। आज जो भी लमिा उसमें माँा की दआु और लकताबों का योगदान ही ह।ै दो साि बाद गावाँ जा रहा ह।ाँ अब माँा शहर मंे मरे े साथ ही रहगे ी। सबु ह के चार बजे घर गया तो मााँ नही लमिी लिर याद आया वो तो पानी िने े गई होगी। हाड़ कं पा दने े वािी ठण्ड में इस अधं ेरे में कार से जाते समय मैं सोच रहा था लपछिे पच्चीस सािों से मााँ ऐसे ही...जीवन इतना दुु ःखद भी हो सकता ह!ै कोई लशकायत सनु ने वािा भी नही।

ISSN 2454-2725 22 मझु े दखे कर माँा ने मझु े गिे िगा लिया बोिी -\"यहााँ क्यों आया िािता तू? लकतनी ठण्ड है चि, घर चि मंै अभी पानी िे कर आती ह।ँा \" मनै े मााँ का हाथ थाम कर कहा-\"माँा, ये पानी यहीं छोड़ और मरे े साथ घर चि ।\" माँा के लिए पानी छोड़ना लकसी आश्चयच से कम नही था वो बोिी -\"बेटा, लिर लदन भर... मनै े मााँ को बीच मंे ही रोककर कहा-\"एक लदन पानी के लबना भी इनको रहने दे ना माँा!\" लपता तो अब है नही लकससे इजाज़त िेते, मााँ को अपने साथ िेकर मंै शहर मंे आ गया। सोसायटी में मरे ा फ्िटै है सारी सलु वधाओं से यकु ्त। मााँ को अपने साथ लस्वलमगं पिु िे कर गया तो वहां पहचुं कर मााँ उदास हो गई।मझु े तरै ता दखे मााँ रोने िगी। घर आकर माँा से पछू ा-\"क्या बात है माँा तमु उदास क्यों हो गई?\" मााँ ने बहतु दुु ःखी होकर बोिा-\"लजस पानी के चार घड़ो ने परू ी लज़न्दगी का सखु िे लिया उस पानी का ये हाि...\" हम दोनों की आखाँ ों मंे पानी और बीता कि घमू गया। मझु े िगा मंे भी छोटी मााँ जसै ा हो गया हँा दसू रों के ददच से अनजान! मैं भी माँा के ददच को परू ी तरह नही समझ पाया।यदी समझा होता तो... पता-82, माधव नगर 201,संगम अपार्टमंेर् ग्वालियर-9 फोन~09826511033

ISSN 2454-2725 23 लघुकथा लालजी ठाकु र हम स्वाथी के साथ साथ इतने लोभी हो गए है कक खदु के जान की परवाह ही नहीं करते तो अपने बच्चे और दकु नया की परवाह कै से करंेगे बस मस्ती करते है और मस्ती करते रह जाते ह।ै एक बार हम अपने पररवार के साथ घमू ने का मन बनाया।सोचा की साथ कमलकर कही दरू घमू ने के कलए कनकला जाए।और एक दो कदन बाद कनकल भी गया घमू ने के कलए।बहुत दरू सनु सान जगं ल मंे एक रमणीय स्थल बनाया गया था जो प्रकृ कत की असकलयत को यूँ ही बयां करती थी।यहाँू पहचुं ना सब की बस की बात नहीं थी।हमने तो कहम्मत जटु ाई कसर्फ इसकलए की हमने कई साल से कमाई रखी थी और आमदनी भी अच्छी थी।बहतु दरू दरू ही नही बककक कवदशे ो से भी लोग आये थे। बड़े बड़े टंैकर से हजारो लीटर पानी लाया जाता था और बनाये हएु कस्वकमगं पलू आकद मंे डाला जाता था ताकक वहाँू का लतु ्फ़ उठाया जा सके ।और कर्र पानी यँू ही बबाफद हो जाता था।पर ये सारा इसकलए चल रहा था क्योंकक उसके प्रत्यके कदन कमाई बहतु अकधक थी।और बहुत दरू से पानी लाना हो या कर्र कही से वो उसका इतं जाम कर ही लते ा था।आसपास की हररयाली दखे ते ही बनता था क्या बताऊँू उसके संदु रता के बारे म।ंे उसका र्व्वारा इस तरह कदख रहा था जसै े समनु्दर से जड़ु ा हआु हो।पर इस सब का कजम्मबे ार तो बस हम लोग ही थ।े पानी की बबाफदी मझु े झकझोर कर रख दी इसकलए क्योंकक जब मैं घमू ने जा रहा था तभी मनैं े एक अखबार उसी शहर का पढ़ा था,कजसमे कलखा हुआ था\"चार मासमू बच्चे और एक बजु गु फ की मौत\" कजसका मखु ्य कारण था पानी का न कमलना मतलब प्यास की वजह से उन सारे की कजदं गी गई थी।सच में ककतनी तरपी होगी उन सबो की आत्मा।हम अगर यही पानी उन सबो को कदए होते तो आज वो भी हमारे साथ होते और शायद हम सभी घमू ने वाले और पानी को बबाफद करने वाले उनकी मौत का कजम्मदे ार थे।मंै यँू ही एक जगह पानी में स्तब्ध बठै ा सोच रहा था ।तभी मरे ी छोटी बेटी जो कसर्फ पाचं साल की थी अपने कपडे एक हाथ में कलए और दसू रे हाथ में अखबार का वो पजे कलए दौड़ती हुई मरे े नजदीक आ कर बोली ,पापा ये दके खये इन लोगो की मौत प्यास के कारण हुई है और हम यहाूँ पानी को बबादफ कर रहे ह।ै मंै यहाूँ एक पल भी नहीं रहना चाहती ह।ूँ मरे ी आखूँ े भर आई और मनंै े उसे गले से लगा कलया।कर्र बोला हाूँ बेटा इसका कजम्मदे ार हम जसै े लोग ही है जो यहाूँ आकर मस्ती करते ह।ै और कर्र हम अपने पररवार के साथ बाहर आ गए पत्नी के मना करने पर भी क्योंकक मरे ी बटे ी ने मझु े साथ ही नहीं बटे ी होने का एहसास भी करा दी।। उसके बाद से पानी के हर बनू ्द को बचाना चाहता हूँ ।और गमी मंे प्यासे ट्रेन के यात्रीयों को अपने पररवार के साथ उसके प्यास को बझु ाता ह।ूँ लालजी ठाकु र दरभंगा बिहार।। 09421055750,व्हाटसअप 9097081932 ।।।

ISSN 2454-2725 24 व्यंग्य मोहनलाल मौयय,(एम.ए,बीएड़,बीजेएमसी,) मंै वहीं हडैं पम्प ह।ंू जजसके पनघट पर जमघट लग रहता था। पजनहारी 'मन की बात’ करती थी। मोहल्ले के कच्चे जचट़ठे यहीं खोलते थ।े सखु -दखु की वाताालाप होती थी। त-ू त,ू म-ैं मंै होती थी। पानी भरने पर। कतार पर। नम्बर पर। मैं अपना ठण्डा पेयजल जपलाकर,इनको शातंू कर दते ा था। मेरे समीप मरे ा जल गता भरा रहता था। जजसमें पश-ु पक्षी अपनी प्यास बझू ाते थे। मरे े प्रादभु ावा पर ग्राममजु खया ने गडु बाूटं ा था। परू े मोहल्ले मंे मनु ादी हईु थी। सरकारी हडैं पम्प का जल पये जल ह।ै लोग प्रफु जल्लत थ।े मनैं े कभी भी मोहल्लेवाजसयों को धोखा न जदया। सदवै उनकी सेवा में तत्पर रहा। यह भी मरे ा परू ा खयाल रखते थे। समय-समय पर मरे ी सजवसा -वजवसा करवाते रहते थे। मरे ा और मोहल्लवे ाजसयों का अटूट सूंबूधं था। जब से मरे ी जलपजू ता बूंद हईु ह।ै तब से सूबं ंधू टूट गया। अब तो मोहल्लवे ासी मरे ी ओर झाकते भी नहीं। इनसान जकत्ता खदु गजा ह,ै जब मंै इनकी जलपजू ता करता था,तो मरे ा गणु गान करते थे। अब कोई मरे ा हाल भी नहीं पहचुंू ने आता। धरा में जल ही नहीं ह,ै तो मंै कहांू से खींचकर लाओ?ूं जल रसातल मंे चल गया ह।ै वहाूं तक मरे ी पहुचूं असूंभव ह।ै मंै दलाल तो हूं नहीं,जो जगु ाड करके पहचुूं जाओ।ूं ररश्वत दके र जल ले आऊूं । लेन-दने का काया तो इनसान करता ह।ै वसै े भी भारतीय मानव जगु ाड करने में अग्रणी ह।ंै इन्होंने तो जल बचाने का ही जगु ाड नहीं जकया। जब तो चार-चार बाल्टी उडेलते थ।े नहाने-धोने म।ें पशओु ंू को लहलाने म।ें वाहन साफ करने म।ंे अब बंदू -बदूं के जलए तरस रहे ह।ंै सरकार को कोस रहे ह।ंै जल सरकार की मटु ्ठी में थोडी ह,ै जो भींच कर बठै ी ह।ै दने े से नकार कर रही ह।ै सरकार अपील कर सकती ह।ै जल बचाने की। जलमतूं ्री को भजे सकती ह।ै सखू ाग्रस्त इलाकों म।ंे जायजा लने ।े सेल्फी लेने। एक पत्रकार बूंधु इधर से गजु र रहा था। उससे मरे ी हालत दखे ी नहीं गई। इसजलए छाप जदया अखबार म।ंे मंै अखबार मंे क्या छपा?स्थानीय नेताओूं में होड मच गई। मझु े दरु ूस्त करवाने की। श्रये लेने की। वोट बटोरने की। इनके भी अखबार मंे छपने के बाद ही चक्षु खोल।े जबजक मैं तो इनके नाक तले ही था। खरै ,छोडो। नते ाओूं को मदु ्दा चाजहए,सो जमल गया। ग्रामसजचव से बीडीओूं तक। ग्राम पचंू ायत से पचंू ायत सजमजत तक। मझु े घसीट ले गए। मदु ्दा बनाकर। इनको,जलसकूं ट म।ंे सखू े म।ें मरे ा मदु ्दा क्या जमल गया?अखबारों की कजटंूग काट-काट कर सोशल मीजडया पर चस्पा कर रहे ह।ंै सजु खया ाूं बटोर रहे ह।ंै एक सरकारी हडंै पम्प की इज्जत उछाल रहे ह।ैं दरअसल असर यह हुआ जक जलदाय जवभाग का कमी आया। मझु े दखे बदु बदु ाया। जो पहले से दरु ूस्त ह।ै उसे क्या दरु ूस्त करों? इत्ती दरू से आया ह।ूं कु छ करके ही जाऊंू गा। ओर वह मरे े मरे े कु छ नये अंूग लगाकर चला गया। उसे भी ज्ञात ह।ै मझु े भी ज्ञात ह।ै लोगों को भी ज्ञात ह।ै जल जलस्तर तक नहीं रहा। यह जल बबादा करने का नतीजा ह।ै अब तो मझु े मानसनू ही दरु ूस्त कर सकता ह।ै वहीं मेे ेरे पनघट पर जफर से जमघट लगा सकता ह।ै (नोटः- यह रचना दजै नक हररभजू म में 29 अप्रलै 2016 के अकूं में एवूं दजै नक सांूध्य 6pm मंे 01 मई 2016 के अकंू मे प्रकाजशत हईु ह)ै

ISSN 2454-2725 25 अनीता देवी जल के बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती| जल प्रकृ बत का बदया एक ऄनपु म ईपहार है जो न बसर्फ जीवन िबल्क पयाफवरण के बलए भी ऄमलू ्य ह|ै जसै े पानी के बिना जीवन सभं व नहीं है वसै े सार् पानी के बिना स्वस्थ जीवन संभव नहीं| अज बवश्व भर में स्वच्छ पये जल के संकट की बस्थबत िनी हयु ी ह|ै भारत जसै े बवकासशील दशे आस समस्या से सवाबफ धक प्रभाबवत ह|ंै ‚ बवश्व िंकै की एक ररपोटफ के ऄनसु ार 21वीं सदी की सिसे िड़ी और बवकराल समस्या होगी पये जल की| आसका बवस्तार सम्पणू फ बवश्व में होगा तथा बवश्व के सभी िड़े शहरों में पानी के बलए यदु ्ध जसै ी बस्थबत हो जाएगी|‛¹ जल का ऄधं ाधधंु व बववके हीन प्रयोग वतमफ ान जल सकं ट का सिसे प्रमखु कारण है , जो अज बवश्व के सम्मखु एक गभं ीर समस्या के रूप मंे खड़ा ह|ै एक मलू भतू अवश्यकता होने के कारण मानवीय प्रजाबत सबहत जीव ,वनस्पबत व सम्पणू फ पाररबस्थबतक ततं ्र के बलए जल जरूरी ह|ै जल सकं ट ने मानव जाबत के समक्ष ऄबसतत्व का संकट पैदा कर बदया ह|ै ईसके बलए जल की ईपलब्धता सबु नबित करना एक िड़ी चनु ौती िन गयी ह|ै सयं कु ्त राष्ट्र के अकलन के ऄनसु ार पथृ ्वी पर जल की कु ल मात्रा लगभग 1700 बमबलयन घन बक.मी. है बजससे पथृ ्वी पर जल की 3000 मीटर मोटी परत बिछ सकती है ,लेबकन आस िड़ी मात्रा मंे मीठे जल का ऄनपु ात ऄत्यंत ऄल्प ह|ै पथृ ्वी पर ईपलब्ध कु ल जल में मीठा जल 2.7% ह|ै आसमें से लगभग 75.2% ध्रवु ीय प्रदशे ों मंे बहम के रूप में बवद्यमान है और 22.6% जल ,भबू मगत जल के रूप मंे है ,शषे जल झीलों ,नबदयों ,वायमु डं ल में अर्द्तफ ा व जलवाष्ट्प के रूप मंे तथा मदृ ा और वनस्पबत मंे ईपबस्थत ह|ै घरेलू तथा औधोबगक ईपयोग के बलए प्रभावी जल की ईपलब्धता मबु श्कल से 0.8% ह|ै ऄबधकांश जल आस्तेमाल के बलए ईपलब्ध न होने और आसकी ईपलब्धता में बवषमता होने के कारण जल सकं ट एक बवकराल समस्या के रूप मंे हमारे सम्मखु अ खड़ा हुअ ह|ै ‚यद्दबप जल एक चक्रीय ससं ाधन है तथाबप यह एक बनशबचत सीमा तक ही ईपलब्ध होता ह|ै मानव को ईपलब्ध होने वाले जल की मात्रा ईतनी है बजतनी बक पहले थी| परन्तु जनसखं ्या मंे बनरंतर वबृ द्ध तथा कु छ जलाशयों के ह्रास से प्रबत व्यबक्त जल में भारी कमी अ रही ह|ै 1947 मंे स्वतंत्रता के समय भारत में 6008 घन मीटर जल प्रबत व्यबक्त प्रबतवषफ ईपलब्ध था ,1951 मंे यह मात्रा घट कर 5177 घन मीटर प्रबत व्यबक्त रह गइ तथा 2001 में 1820 घन मीटर प्रबत व्यबक्त प्रबतवषफ रह गइ| दसवीं योजना के मध्यवती अकलन के ऄनसु ार यह मात्रा 2025 मंे 1340 घन मीटर तथा 2050 मंे 1140 घन मीटर रह जाएगी|‛² दशे का पानी सखू रहा ह|ै धरती पर भी और धरती के नीचे भी| जलसकं ट के कारण मराठवाड़ा और महाराष्ट्र के ऄन्य बहस्सों तथा अधं ्र प्रदशे एवं तेलागं ना के ग्रामीण क्षेत्रों से िड़ी सखं ्या मंे लोग नगरों की तरर् पलायन कर रहें ह|ै ‚ मराठवाड़ा के परभणी कस्िे मंे पानी के बलए झगड़ा न हो आसबलए ऄप्रलै के पहले हफ्ते मंे धारा 144 लगा दी गइ| लातरू में रेन से पानी पहचुं ाया जा रहा ह|ै ‛³ जल ससं ाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के बलए ईपयोगी हों या बजनके ईपयोग की सभं ावना हो। पानी के ईपयोगों में शाबमल हंै कृ बष, औद्योबगक, घरेलू, मनोरंजन हते ु और पयावफ रणीय गबतबवबधयों मंे । वस्ततु ः आन सभी मानवीय ईपयोगों में से ज्यादातर मंे ताजे जल की अवश्यकता होती है । अज जल संसाधन की कमी, आसके ऄवनयन और आससे सिं ंबधत तनाव और संघषफ बवश्वराजनीबत और राष्ट्रीय राजनीबत में महत्वपणू फ मदु ्दे ह।ैं जल बववाद राष्ट्रीय और ऄतं राफष्ट्रीय दोनों स्तरों पर महत्वपणू फ बवषय िन चकु े ह।ंै यबद हम भारत के संदभफ में िात करें तो भी हालात बचतं ाजनक

ISSN 2454-2725 26 है बक हमारे दशे मंे जल संकट की भयावह बस्थबत है और आसके िावजदू हम लोगों मंे जल के प्रबत चते ना जागतृ नहीं हुइ ह।ै ऄगर समय रहते दशे में जल के प्रबत ऄपनत्व व चेतना की भावना पैदा नहीं हुइ तो अने वाली पीबियां जल के ऄभाव मंे नष्ट हो जाएगी। हम छोटी छोटी िातों पर गौर करें और बवचार करंे तो हम जल सकं ट की आस बस्थबत से बनपट सकते ह।ंै बवकबसत दशे ों मंे जल ररसाव मतलि पानी की बछजत सात से पंर्द्ह प्रबतशत तक होती है जिबक भारत मंे जल ररसाव 20 से 25 प्रबतशत तक होता ह।ै आसका सीधा मतलि यह है बक ऄगर मोबनटररंग ईबचत तरीके से हो और जनता की बशकायतों पर तरु ंत कायवफ ाही हो साथ ही ईपलब्ध ससं ाधनों का समबु चत प्रकार से प्रिंधन व ईपयोग बकया जाए तो हम िड़ी मात्रा में होने वाले जल ररसाव को रोक सकते ह।ंै बवकबसत दशे ों मंे जल राजस्व का ररसाव दो से अठ प्रबतशत तक है, जिबक भारत मंे जल राजस्व का ररसाव दस से िीस प्रबतशत तक है यानी बक आस दशे में पानी का बिल भरने की मनोवबृ ि अमजन में नहीं है और साथ ही सरकारी स्तर पर भी प्रबतिंधात्मक या कठोर काननू के ऄभाव के कारण या यंू कहंे बक प्रशासबनक बशबथलता के कारण िहुत िड़ी राबश का ररसाव पानी के मामले मंे हो रहा ह।ै ऄगर दशे का नागररक ऄपने राष्ट्र के प्रबत भबक्त व कतवफ ्य की भावना रखते हुए समय पर बिल का भगु तान कर दे तो आस बस्थबत से बनपटा जा सकता है साथ ही ससं ्थागत स्तर पर प्रखर व प्रिल प्रयास हो तो भी आस बस्थबत पर बनयंत्रण प्राप्त बकया जा सकता ह।ै प्रत्यके घर मंे चाहे गांव हो या शहर पानी के बलए टोंटी जरूर होती है और प्रायः यह दखे ा गया है बक आस टोंटी या नल या टेप के प्रबत लोगों में ऄनदखे ा भाव होता ह।ै यह टोंटी ऄबधकांशत: टपकती रहती है और बकसी भी व्यबक्त का ध्यान आस ओर नहीं जाता ह।ै प्रबत सेकं ड नल से टपकती जल िदंू से एक बदन मंे 17 लीटर जल का ऄपव्यय होता है और आस तरह एक क्षेत्र बवशषे में 200 से 500 लीटर प्रबतबदन जल का ररसाव होता है और यह अकं ड़ा दशे के सदं भफ में दखे ा जाए तो हजारों लीटर जल बसर्फ टपकते नल से ििाफद हो जाता ह।ै ऄि ऄगर आस टपकते नल के प्रबत संवदे ना ईत्पन्न हो जाए और जल के प्रबत ऄपनत्व का भाव अ जाए तो हम हजारों लीटर जल की ििाफदी को रोक सकते ह।ैं ऄि और कु छ सकू्ष्म दबै नक ईपयोग की िातें है बजन पर ध्यान दके र जल की ििाफदी को रोका जा सकता ह।ै  र्व्वारे से या नल से सीधा स्नान करने के स्थान पर िाल्टी से स्नान करने से पानी की कर सकते ह।ंै  शौचालय में फ्लश टंेक का ईपयोग करने की जगह यही काम छोटी िाल्टी से बकया जाए तो पानी की िचत कर सकते ह।ैं ऄि राष्ट्र के प्रबत और मानव सभ्यता के प्रबत बजम्मदे ारी के साथ सोचना अम अदमी को है बक वो कै से जल िचत मंे ऄपनी महत्वपूणफ बजम्मदे ारी बनभा सकता ह।ै याद रखें पानी पदै ा नहीं बकया जा सकता है यह प्राकृ बतक ससं ाधन है बजसकी ईत्पबि मानव के हाथ में नहीं ह।ै पानी की िदंू -िदंू िचाना समय की मांग है और हमारी वतमफ ान सभ्यता की जरूरत भी। आस समस्या से ईिरने के बलए मात्र सरकारी प्रयास ही पयापफ ्त नहीं है क्योंबक जल का ईपयोग सभी लोगों द्वारा बकया जाता है और सभी का जीवन जल पर अबित है| दशे के नागररकों ऄपनी क्षमता के ऄनसु ार जल सरं क्षण के प्रयासों मंे

ISSN 2454-2725 27 ऄपना योगदान दने ा चाबहए तभी दशे में नये लातरू को िनने से रोका जा सकता ह|ै ‚वल्डफ वाच आसं ्टीट्यटू के ऄनसु ार पानी को पानी की तरह िहाना िदं करना होगा| यबद समाज पानी को एक दलु फभ वस्तु नहीं मानगे ा , तो अने वाले समय में पानी हम सिके के बलए दलु फभ हो जायेगा|‛4 ग्लोिल वाबमगंि मंे वबृ द्ध भी वतफमान जल संकट का एक महत्वपणू फ कारण ह|ै वबै श्वक तापमान में होने वाली वबृ द्ध से बवश्व के मौसम , जलवायु , कृ बष व जल स्रोतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा ह|ै ग्लोिल वाबमगिं के कारण तापमान मंे होने वाली वबृ द्ध से ग्लबे शयर तीव्रता से बपघल रहें ह|ै आससे भबवष्ट्य में जल सकं ट का खतरा ईत्पन्न हो सकता ह|ै जल सकं ट से बनपटने के बलए :  तालािों और गड्डों का बनमाफण करना चाबहए बजससे वषाफ का जल एकबत्रत हो सके और प्रयोग में लाया जा सके | आससे जलस्तर में वबृ द्ध होगी और भबू मगत जल िना रहगे ा|  पेड़ों को काटने से रोकना और वकृ ्षारोपण को िढावा दने ा बजससे वबै श्वक तापन की समस्या कम हो| वबै श्वक तापन से बहम बपघलते हंै और बहम का जल नबदयों के माध्यम से समरु्द् में चला जाता ह|ै  नदी बकनारे िसने वाले नगरों द्वारा नबदयों को प्रदबू षत बकया जाता है बजससे नबदयों का जल पीने लायक नही रहता और नबदयााँ सखू ने की कगार पर अ खड़ी है ईदाहरण के बलए बदल्ली में यमनु ा नदी|  ईिर भारत की नबदयों में सदा जल िहता रहता है और दबक्षण भारत की नबदयााँ सदा वाहनी नहीं रहती ऐसे में नदी जोड़ो पररयोजना का सहारा बलया जा सकता ह|ै ऄतं मंे कह सकते है बक सबृ ष्ट के हर जीव का ऄबसतत्व पानी पर ही बटका ह|ै जल संकट जसै ी बवकराल समस्या का सामना करने के बलए वयबक्तगत , सामदु ाबयक , सामाबजक ,राष्ट्रीय व ऄतं राफष्ट्रीय स्तर पर साथकफ पहल की जरूरत ह|ै सन्दर्भ : 1. कु रुक्षेत्र पबत्रका , मइ 2015 2. खडं – ‘घ’ 14.35 , भगू ोल , डी. अर. खलु ्लर 3. पषृ ्ठ 26 , क्राबनकल , जनू 2016 4. पषृ ्ठ 2 , क्राबनकल , जनू 2016 5. दृबष्ट The Vision ,करंेट ऄर्े यसफ टुडे , नवम्िर 2015 शोधार्थी कमरा न.115/2 यमुना छात्रावास जवाहरलाल नेहरु ववश्वववद्यालय नई वदल्ली (110067) मोबाइल न. 9013927321

ISSN 2454-2725 28 lquhrk 'kk/s kkFkhZ ih,p-Mh- vEcMs dj fo'ofo|ky;] fnYyh nqfu;k eas tyok;q ifjorZu dk vlj yxkrkj ns[kus dks fey jgk gSA dgha lw[kk gS rks dgha ck<+] rkieku ds fjdkWMZ VwV jgs gSaA ekSle dk fetkt rsth ls cny jgk gSA ekSle foHkkx ds vuqlkj Hkkjr esa 114 cjl ckn chrs lky dk fnlEcj ekg lcls xeZ jgk rks bl lky dk 'kq:vkrh lIrkg fiNys ukS lky eas lcls xeZ jgk gAS fiNys lky Hkkjr eas dbZ bykdksa us detksj ekulwu dh ekj >syh rks nf{k.k eas Hkkjh ckfj'k dk lkeuk djuk iM+kA vkf[kj okrkoj.k eas c<+rs bl vlarqyu ds dkj.k D;k gS\\ i;kZoj.k esa cnyko vkuk rks ,d LokHkkfod izfØ;k gSA ysfdu fnDdr vc blfy, gks jgh gS D;kasfd bleas cgqr rst xfr ls cnyko vkus yxk gSA fiNys 200&300 lkykas eas vkS|ksfxd fodkl ds lkFk&lkFk geus tks dkcZu mRltZu fd;k] og [krjukd fLFkfr rd vk igq¡pk gSA vxj /kjrh dk rkieku c<+sxk rks lcls igys cQZ fi?kysxh blls tqM+k gS ^fgeky; dk lda V*A cQZ vkSj ikuh ds chp ds QdZ dks le>uk gksxkA igkM+ksa esa tc cQZ fxjrh gS rks og igys ls tek cQZ ds Åij terh gS blls igys ls tek cQZ dks jkds us esa enn feyrh gSA ;g ekSle dk ,d larqfyr pØ gSA ijUrq D;k gkxs k tc lfnZ;kas esa cQZckjh dh txg ckfj'k gksus yxsA ,d rks cQZ fxjus ds ekSle eas cQZckjh ugha gqbZ vkSj nwljk ckfj'k gks xbZ ftlls tek cQZ fupys bykdksa esa cgdj pyh xbZA 2013 esa dsnkjukFk dh rckgh bldk ueuw k gSA dsnkjukFk esa rckgh ds le; vkSlr ls 200 xquk T;knk ckfj'k gqbZ FkhA i;kZoj.k eas lc ,d&nwljs ls tqM+s gq, gSa blfy, fdlh Hkh xM+cM+h dks vyx&vyx djds ns[kuk lgh ugha gksxkA bls vxj ,d txg ls Bhd djsxa s rks mldk ldkjkRed vlj nwljh txg fn[kus yxxs kA ;g Li\"V gS fd fodkl ds uke ij va/kk/kqa/k [kuu] taxyksa dks lekIr dj yxk, x, ikoj IykVa vkSj vU; m|kxs kas eas ftl rjg i;kZoj.k dh vuns[kh dh xbZ gS og varr% lewps okrkoj.k dks nwf\"kr dj jgk gSA gesa miHkkxs dh y{e.k js[kk rks [khpa uh gh iM+sxhA mlls nks leL;k,¡ gy gksxhA igyk izÑfr dh fouk'kyhyk ls cpk tk,xk nwljk lkekftd vlekurk dks nwj fd;k tk ldsxkA i;kZoj.k laj{k.k vkSj vkfFkZd izxfr ds chp rkyeys djds pyus esa gh ekuo lH;rk fouk'k ls cp ldrh gSA i;kZoj.k ds ladV ij fopkj&foe'kZ djus okys okdbZ fdrus xHa khj gSa bl ij 'kda k tkfgj dh tk ldrh gS] ijUrq bleas dkbs Z nks jk; ugha gS fd i;kZoj.kh; ladV orZeku esa lcls vf/kd ykds fiz; vkSj egRoi.w kZ fo\"k; cu pqdk gSA fiNys dqN le; ls i;kZoj.k ij ljdkjh rFkk xSj&ljdkjh laLFkkuksa }kjk fpra k tkfgj dh tk jgh gSA LFkkuh; Lrj ls ysdj jk\"Vªh; ,oa varjk\"Vªh; Lrj rd Xykcs y okfe±x vkSj ikuh ds ladV dks ysdj xksf\"B;kas dk vk;kstu tkjh gSA ;gk¡ rd fd

ISSN 2454-2725 29 lHkh tukna ksyuksa dk eq[; eqn~nk i;kZoj.k gh gSA ns'k ds Hkhrj ueZnk vkna kys u] fpidks] fVgjh lc blh dk fgLlk gSA 21oha lnh esa foe'kZ dk lcls cM+k eqn~nk i;kZoj.k gSA ftl fo\"k; us lekt dks bruk fpafrr dj j[kk gS mlls Hkyk lkfgR; dlS s vNwrk jg ldrk gSA vxj iwNk tk, fd lkfgR; D;k gS\\ rks bldk lcls lVhd tokc jkepæa 'kqDy us dqN bl rjg fn;k ^lkfgR; 'ks\"k l`f\"V ds lkFk gekjs jkxkRed laca/k dh j{kk vkSj fuokZg djrk gSA* bl 'k\"s k l`f\"V eas vkrk gS lewy izk.kh txr vkSj leLr izÑfrA euq\"; dh l`f\"V ds izfr ,d ftEens kjh gS vkSj bl ftEens kjh dks fuHkkus esa dfork mldh enn djrh gSA 'kqDy th fy[krs gSa ^dfork euq\"; ds ân; dks LokFkZ&laca/kkas ds ladqfpr eMa y ls Åij mBkdj yksd&lkekU; dh Hkko&Hkwfe ij ys tkrh gSA ;kuh ckdh lHkh ds cus jgus eas gh euq\"; dk vfLrRo Hkh lHa ko gSA ;gk¡ ;g ns[kuk fnypLi gksxk fd lkfgR; ds laca/k eas dh xbZ ;g ifjdYiuk vk/kqfud fgUnh lkfgR; eas fdl :i eas ifjyf{kr gks jgh gSA lkfgR; esa ^izÑfr* ges'kk ls ekStwn jgh gS] ijUrq ;gk¡ egRoi.w kZ loky ;g gS fd i;kZoj.kh; ladV] fgUnh lkfgR; dk fo\"k; dc cuk\\ njvly tc ls lekt eas i;kZoj.kh; psruk mBh rHkh ls bl fo\"k; ij fy[kk Hkh T;knk tkus yxkA vc ;g ekax iqjtksj mBus yxh gS fd lkfgR; dh vkykps uk i;kZoj.kksUeq[kh gksuh pkfg,A ifjfLFkfrdh ds :i eas vkykspuk ds u, mikxe lkfgR; dh dlkSVh cu jgs gSaA geus dHkh ikuh ds eksy dks ugha le>k vkSj ns[krs gh ns[krs ikuh vueksy gks x;kA gkykr ,sls vk x, gSa fd ns'k Hkj esa dbZ txg yksx cnwa &cwan ikuh dks rjlus yxs gSaA ikuh dh egÙkk ij cgqr dqN dgk vkSj fy[kk x;k gSA ikuh dks thou] ve`r vkSj u tkus D;k&D;k miek,¡ nh x;hA iz'u ;g mBrk gS fd D;k ikuh dks geus ve`r vkSj thounk;h inkFkk±s dh rjg lgst dj j[kuk lh[kk gS\\ euq\"; ds 'kjhj dk 70 Qhlnh fgLlk ikuh ls cuk gvq k gSA ek¡ ds nw/k esa Hkh 70 Qhlnh ty gksrk gSA ;gk¡ rd fd i`Foh ftu ik¡p rRoksa ls feydj cuh gS mleas ls ,d rRo ty gh gSA leL;k dsoy ikuh cpkus dh ugha gS cfYd mldk bLrseky Hkh U;k;fiz; rjhds ls gksuk pkfg, og Hkh leku fgLlsnkjh ds lkFkA fgUnh lkfgR; eas vxj ikuh dh ckr djas rks lcls igys jghe dk nkgs k ;kn vkrk gSA ^^jfgeu ikuh jkf[k,A fcu ikuh lc lwuAA ikuh x, u ÅcjsA eksrh ekul pwu**AA ;g nksgk ikuh ds egRo dks Li\"V dj jgk gSA ,slk ugha gS fd dgha ij dsoy ikuh gh l[w kxs k cfYd mlds izHkko ls lkjk thou gh l[w k tk,xkA ikuh ij fy[ks lkfgR; ds vykok ikuh ds fy, yM+s x, tukna kys ukas dk fo'y\"s k.k Hkh t:jh gSA 1927 esa MkW- vEcMs dj us egkM+ lR;kxzg dj pkSnkj rkykc dk ikuh vNwrksa ds iz;kxs ds fy, [kqyok;k FkkA og ,ls k nkSj Fkk tc ikuh bruk ewY;oku Fkk fd mldh igq¡p lekt ds ,d fof'k\"V

ISSN 2454-2725 30 rcds ds lkFk lhfer dj nh x;h FkhA ikuh ds lkFk ifo=rk ck/s k tqM+k gqvk Fkk ftldk vk/kkj Fkh ^tkfr&O;oLFkk*A blh lanHkZ esa ge izsepna }kjk jfpr dgkuh ^Bkdqj dk dq¡vk* ns[k ldrs gSaA ;g dgkuh 1923 dh gS ftleas xxa h vius chekj ifr tk[s kw }kjk eSyk&xank ikuh ihus dk fojks/k djrh gS vkSj jkr eas fNidj Bkdqj ds dq,¡ ls ikuh Hkjus Hkh tkrh gSA ijUrq dgkuh dk var izsepna dqN bl rjg djrs gSas fd ^xaxh ds gkFk ls jLlh NwV x;hA jLlh ds lkFk ?kM+k /kM+ke ls ikuh esa fxjk vkSj dbZ {k.k rd ikuh esa gydkjs s dh vkotsa lqukbZ nsrh jghaA Bkdqj dkSu gS] dkSu gS\\ iqdkjrs gq, dq,¡ dh rjQ tk jgs Fks vkSj xxa h txr ls dqndj Hkkxh tk jgh FkhA ?kj igq¡pdj mlus ns[kk fd tks[kw yksVk eq¡g ls yxk, ogha eSyk xna k ikuh ih jgk gSA fopkj.kh; iz'u ;g gS fd nfyr xxa h foæksg ds ckotwn ikuh tSls izkÑfrd lalk/ku dh tkfrxr ?kjs kcna h D;ksa rksM+ ugha ikrh\\ izsepna tSls cM+s lkfgR;dkj Hkh xxa h dks lQy gksrs ugha fn[kk ikrsA 'kk;n ml le; egkM+ lR;kxzg tlS k dkbs Z vkanksyu ugha FkkA MkW- vEcMs dj ikuh ij vNwrksa ds vf/kdkj ds fy, vkanksyu 1927 esa djrs gSaA vFkkZr~ ikuh ij fy[ks x, lkfgR; vkSj ikuh ds fy, yM+s x, ledkyhu tu tukankys uksa eas xgjs varZlac/a k ns[kus dks feyrs gSaA orZeku le; dh ckr djsa rks ^Bkdqj dk dq¡vk* vkt Hkh ftank gSA cqansy[kaM lesr ns'k ds dbZ bykdksa eas vkt Hkh nfyrkas dks dq¡vkas ls ikuh Hkjus dh vuqefr ugha gSA cs'kd ;g mudk laoS/kkfud vf/kdkj gSA cqansy[k.M dh izfl) yksdksfDr gS& ^cqansyk rsjk ikuh xtc dj tk, xkxj u QwVs Hkys ifr ej tk,A* ;g cgqr gh 'keZukd gS fd 21oha lnh ds 16oas lky esa Hkh ikuh ij tkfrxr igjk gS\\ ubZ lnh eas ikuh ds lkFk 'kq)hdj.k dk ewY; Hkh tqM+ x;k gSA vc eVdh dk ikuh ihus okys dks vlH;] vLoPN vksj xjhc le>k tkrk gSA ikuh ds 'kq)hdj.k dks ysdj mldk O;kolk;hdj.k rsth ls gks jgk gSA 1 yhVj lkekU; ikuh dh dher 15 #i;k vkSj 1 yhVj fgeky; ds ikuh dh cksry dh dher 200 #i;kA orZeku le; eas fodkl dk fijkfeM dqN bl rjg f'k¶V gks x;k gS fd tks fgeky; dk ikuh ihrk gS oks lcls T;knk fodflr gSA ikuh ds bl 'kq)hdj.k dk vk/kkj gS oxZ&Hkns A dfo mek'kda j dh dfork gS& ^^cksrycan ikuh ihdj ml ckrs y dks Ø'k dj nsrs gks D;ksfa d rqEgs ;kn gS] og funsZ'k Ø'k n cksry vk¶Vj ;wt! ij D;k rqEgsa irk gS] bl rjg Q¡lrs&Q¡lrs fopkj ds en eaAs ml cksry dh rjg rqe Hkh fjDr gkrs s tk jgs gks! vkSj ftl fnu rqe iwjh rjg fjDr gks tkvkxs s

ISSN 2454-2725 31 rqe Hkh dj fn, tkvksxs Ø'k!** dfo us bl dfork eas ty lalk/ku dh ywV] cktkjhdj.k dh miHkkxs laLÑfr vkSj ;wt ,.M Fkzks ls iSnk gq, dpjs ls vVh i`Foh ds ladV dks dV?kjs esa [kM+k fd;k gSA izkÑfrd lalk/kukas fo'ks\"kdj ikuh ds vfoosdiw.kZ nkgs u ls mRiUu izkÑfrd vkinkvksa vkSj lkekftd [krjksa dks le>uk vkSj mldk fo'ys\"k.k djuk cgqr t:jh gks x;k gSA euq\"; lnSo ls izÑfr dk lgpj jgk gSA b/kj fodkl dh va/kk/kqa/k nkSM+ ds en esa euq\"; us izÑfr dks fu;af=r djus dh dkfs 'k'k dh izÑfr dk iyVokj 'kq: gqvk rks lepw h i`Foh ij i;kZoj.k dk ladV mRiUu gks x;kA QkLVj us bl ckr dks js[kkafdr fd;k gS fd ^i`Foh dk ladV dsoy izÑfr dk ladV ugha gS cfYd ;g lekt dk ladV gS*A lkspus okyh ckr gS fd dbZ lkS o\"kZ iwoZ dchj }kjk jfpr myVcklh dSls orZeku esa ikuh ds ladV ls tqM+ tkrh gSA ^vks ubZ vkbZ cnjhA cjlu yxk lalkjAA mBh dchj /kkg nsA nk{kr gS lalkj!!AA* ckny f?kj vk, rks yksxksa us lkspk ikuh cjlsxkA blls riu feVsxh] I;kl cq>sxh] i`Foh lty gksxh] thou dk ;g nkg feV tk,xk] fdUrq gqvk Bhd mYVkA ;g nwljs rjg ds ckny gSa] buls ikuh dh cw¡ns ugha vaxkjs cjl jgs gSaA lalkj ty jgk gSA dchj ,ls s Ny ckny ls lalkj dks cpkus ds fy, cps Su gks mBrs gSaA ikuh eas vkx yxkuk ,d eqgkojk gSA ysfdu fodkl dh vk/kqfud vo/kkj.kk vkSj mlds fØ;kUo;u us bl eqgkojs dks pfjrkFkZ Hkh dj fn;k gS! fiNys fnukas cSaxyq: dh lcls cM+h >hy] cYs ykMqaj eas vkx yx xbZA bl vkx dh otg ml >hy ij QSyk vlk/kkj.k iznw\"k.k FkkA chrs nks n'kdksa ds nkSjku caxyw: 'kgj dh dbZ cM+h >hyksa dks igys nwf\"kr fd;k x;k fQj mUgsa ikVk x;k vkSj mlds ckn mldk bLrseky 'kgjhdj.k ds fy, gks x;kA blh dk ifj.kke gS fd FkkMs +h lh ckfj'k eas vc 'kgj eas ck<+ vk tkrh gSA gSnjkckn dh ckr djsa rks ;g 'kgj 15oha 'krkCnh esa clk;k x;k FkkA ml le; bls <sj lkjh >hykas vkSj rkykckas ls lEiUu cuk;k x;kA ijUrq fodkl dh pdkpkSa/k us bldks iznw\"k.k ls vkV fn;k vkSj [kcw lwjr thounkf;uh >hyksa o rkykc 'kgjhdj.k dh HkaVs p<+ x,A orZSeku esa Hkkjr ds dbZ 'kgj ikuh ds ladV ls tw> jgs gSa cqansy[k.M vkSj ykrwj dk lw[ks ls cqjk gky gS fonHkZ esa fdlkuksa dh vkRegR;k dk lcls cM+k dkj.k lw[kk gSA vr% orZeku ;qx esa ikuh cgqr loa ns u'khy eqn~nk cu pqdk gSA /kjrh ds rkieku eas gks jgh c<+ksrjh ds pyrs ekSle eas cnyko gks jgk gS vkSj blh dk ifj.kke gS fd ;k rks ckfj'k vfu;fer gks jgh gS ;k fQj csgn deA ;s lHkh ifjfLFkfr;k¡ ufn;ksa ds fy, vfLrRo dk ladV iSnk dj jgh gSaA ikuh vkSj taxy laHkor% nks ,ls s lalk/ku gSa ftueas Hkkjrh; i;kZoj.k vkanksyu dks gky ds o\"kk±s eas lcls T;knk la?k\"kZ djuk iM+k gSA ^fpidks vkna kys u* izkÑfrd

ISSN 2454-2725 32 lalk/kukas ls lacaf/kr la?k\"kk±s ds O;kid flyflys dk izfrfuf/k Fkk tks fd 1970 ls 80 ds n'kd eas Hkkjr ds fofHkUu fgLlksa esa QVw iM+s FkAs bu la?k\"kks± esa taxy] eNyh vkSj i'kqvkas ds fy, pkjs ds lalk/kukas rd igq¡p ds la?k\"kZ vkS|ksfxd izn\"w k.k vkSj [kuu ds ifj.kkeksa ls tqM+s la?k\"kZ vkSj cM+s ck/a kksa ds f[kykQ la?k\"kZ 'kkfey FkAs ;gk¡ /;ku nsus ;kXs ; gS fd dSls i;kZoj.kh; vkna kys u oxZ&la?k\"kZ dk elyk Hkh cu tkrs gSa\\ jkepaæ xqgk us viuh fdrkc ^miHkkxs dh y{e.k js[kk* eas bls le>kus dk iz;kl fd;k gSA os crkrs gSa fd bu vf/kdrj fooknksa eas vly eas vehjkas us xjhckas dk neu fd;k ftldk izfrjks/k tukankys uksa ds :i eas QVw kA  ydM+h dkVus okyh daifu;ksa us igkM+h xkaookyksa dk  cka/k fuekZrkvksa us taxy eas jgus okys vkfnfok;ksa dk  cM+s tky okys tgktkas okyh cgqjk\"Vªh; daifu;kas us NksVh ukoksa ds tfj, eNyh idM+us okys NksVs eNqvkjksa dk tSls fd e/; Hkkjr esa ueZnk ij ljnkj ljksoj ck/a k ds fuekZ.k dk ekeyk gS ftldk edln xqtjkr dks fctyh vkSj ikuh eqgS;k djkuk gS tcfd e/; izns'k ds Åijh bykdksa eas fdlku vkSj vkfnoklh cs?kj gq, gSaA 1970 ds n'kd eas Hkkjrh; i;kZoj.koknh cgl ij ou laca/kh fookn gkoh FksA tcfd 1980&90 ds n'kdksa esa ueZnk cpkvks vkanksyu vkSj dsjy ds eNqvkjksa ds la?k\"kZ us ikuh vkSj eNyh ds leqfpr mi;ksx ds loky dks dsUæfcUnq cuk;kA usg: tSls mifuos'kokn fojks/kh usrkvksa ds fy, lkezkT;okn dsoy vkSifuosf'kd rkdrkas dh vkfFkZd vkSj rduhdh Js\"Brk }kjk gh laHko gqvk FkkA vukSifuos'khdj.k us igys ls vfodflr Hkkjr ds fy, if'pe dh rtZ ij gh fodkl dh lEHkkouk,¡ [kkys h FhkA ,d ih<+h xqtjh vkSj urhts lkeus vk,A nqfu;k dks ns[kus dk utfj;k cnyk vkSj i;kZoj.kh; ljkds kj ,d ckj fQj /khjs&/khjs lkoZtfud foe'kZ esa txg ikus yxAs lkfgR; eas ikuh dh leL;k ij ckr djus ds fy, lcls egRoi.w kZ gksxk unh&dFkkvksa ij ckr djukA ve`ryky csxM+ }kjk jfpr ^lkSan;Z dh unh ueZnk* vkSj jtuhdkra dh ^ueZnk dh ubZ dFkk* esa dkQh cM+k varj gSA csxM+ dh unh ds izfr lkaSn;Zoknh n`f\"V vf/kd izHkkoh jgh gSA tSlk fd 'kh\"kZd ls gh Li\"V gS mUgksaus ueZnk dk cgqr gh dykRed fp=.k fd;k gSA ys[kd ck/a k ifj;kstukvkas dks Hkh mRlkg vkSj vk'kk dh n`f\"V ls ns[krk gSA og bls cgqr gh mi;kxs h Hkh ekurs gSa ftlls ,d rjQ rks lw[ks ls ihfM+r yksxkas dks jkgr feysxh ogha nwljh rjQ uenZ k dk O;FkZ cgrk ty mi;kxs esa yk;k tk,xkA csxM+ dh /kkfeZd vkSj ikSjkf.kd vkLFkk Hkh ueZnk ds izfr fdrkc eas ns[kus dks feyrh gSA ogha jtuhdkra }kjk jfpr ^ueZnk dh ubZ dFkk* eas ys[kd ck/a k dks unh] iÑz fr vkSj foLFkkfirksa dh =klnh ds :i esa ns[krs gSaA cka/kksijkra tks Hk;kog n`'; mRiUu gqvk mldh dFkk Hkh bleas 'kkfey gS ftlus ve`ryky dh lkSan;Z dh unh ueZnk dks yqIr izk;% dj nsus dk chM+k mBk;k gSA

ISSN 2454-2725 33 ;gk¡ loky [kM+k gkrs k gS fd vk/kqfud lekt eas ,d unh dks fdl rjg gksuk pkfg,! D;k ;g unh ds o'k eas jg x;k gS\\ ck¡/k dj Ñf=e Mwc iSnk dj lw[kk xzLr bykdksa eas gfj;kyh dk izca/k djuk] 'kgjksa esa txexkrs rduhdh fodkl ds fy, ÅtkZ mRiUu dj [ki tkuk] ;k fQj izkÑfrd :i ls fu'Ny cgrs jguk vkSj vpkud vk;h ck<+ ls ykxs kas dks rckg djuk ;k lw[kk izHkkfor {k=s ksa ls fdukjk dj ysukA ;g iz'u bruk ljy ;k likV ugha gS bleas dbZ isphnk eqn~ns gSaA blfy, geas unh dh fodkl ;k=k ds lkFk&lkFk fodflr gksrh lH;rk vkSj le; dh xfr dks Hkh ysdj pyuk gksxkA Hkkjrh; lekt eas unh ,d thou n'kZu dh rjg gS ftldk fo'ks\"k egRo gSA foy{k.k iznw\"k.k ukf'kuh 'kfDr okyh xxa k dkuiqj esa eSyk <kus s okyh ekyxkM+h cu pqdh gSA xaxk unh dk 'kk\"s k.k vkSj fouk'k /kkfeZd dedZ kMa vkjS vkMEcjkas us fd;kA izn\"w k.k dh ck<+ us mls e`r;q ds dxkj ij igq¡pk fn;kA xxa k dks LoPN djus ds fy, orZeku ljdkj }kjk Hkkjh&Hkjde ctV okyh ;kstuk ^uekfe xxa s* pyk;h tk jgh gSA uke eas gh fganw laLÑfr dh xksycanh utj vk jgh gSA budk /;s; i;kZoj.k laj{k.k ;k unh dks lkQ djus eas ugha gS cfYd jktuhfrd rkSj ij ,d unh dks xkns ysdj mldk fgna wdj.k dj /kkfeZd mUeknrk QSykuk gSA ueZnk tlS h fo'kkydk; unh dk 'kk\"s k.k vkSj fouk'k vk/kqfud lH;rk vkSj rduhd us fd;kA lalk/kuksa dk nksgu dj cM+h&cM+h ifj;kts ukvkas us unh gh ugha mlds vkl&ikl clh ijaijk dks Hkh jkSandj cckZn dj fn;kA ikuh cgqr egRoiw.kZ lalk/ku gSA orZeku le; esa ekStwn lcls cM+s oSf'od ladV ds ifj.kke vkSj dkj.k nksukas eas ikuh egRoiw.kZ :i ls 'kkfey gSA geas ;g ns[kuk gksxk fd gekjk lkfgR; vkSj lekt bldks fdl :i eas le>rk vkSj O;k[;kf;r djrk gSA unh o ikuh ij vk/kkfjr lkfgR; dk fo'ys\"k.k djsa rks irk pyrk gS fd dbZ iqLrdsa furkra /kkfeZd o f?klh&fiVh ikSjkf.kd ifjikVh ij fy[kh xbZ gSaA tSlk fd MkW- ykfs g;k us dgk Fkk fd ^Hkkjrh; lekt ,fs rgkfld ugh cfYd ikSjkf.kd eYw ;ks ds vk/kkj ij pyrk gS*A Bhd ;gh ckr Hkkjr dh ufn;ksa vkSj ty ij Hkh ykxw gkrs h gSA ,d vkSj rks vke tu dh le> dk ;g fiNM+kiu vkSj nwljh rjQ uo lkezkT;okn }kjk ty lalk/kukas dh fnu&jkr dh ywV [klkSVA c<+rs ty izn\"w k.k us ty ds vfLrRo dk ladV iSnk dj fn;k gSA ty ls tqM+k gS ^i`Foh ij thou*A ^Mwc* miU;kl esa ohjsUæ tSu us cM+s ck/s kksa ds dkj.k vk;h rckgh ds lkFk&lkFk nks laLÑfr ds chp ds varjky dks Hkh js[kkafdr fd;k gSA miU;kl ;g iz'u [kM+k djrk gS fd ^;fn vlqfo/kk ls gh lqfo/kk vkus okyh gS rks ml vlqfo/kk vkSj lqfo/kk eas Hkkxhnkjh dk vuqikr cjkcj D;kas ugha gS\\ xk¡o mtM+s vkfnokfl;ksa ds foLFkkfir os gks] mudh tehu nyny cus] ftudk taxy lewpk u\"V gks vkSj vki ikuh fctyh dgha vkSj ys tk, rks ;g dSlk U;k; gqvkA* ohjsUæ tSu bl miU;kl esa ,d NkVs s ls izlax ds ek/;e ls fn[kkrs gSa fd dSls lÙkk i{k bl rckgh dk lw=/kkj cudj ywV dh eykbZ mM+k jgk gSA miU;kl dk va'k gS ^^bfa njk th ,d b±V j[k xbZ Fkh] fd Qasd xbZ Fkh]a jke tkus] exj ml ,d b±V ls csrck esa tks mQku vk;k og tkus fdrus

ISSN 2454-2725 34 xk¡o ds xk¡o yhy x;kA yMSbZ esa igyh ckj gk¡] igyh ckj ck<+ vkbZ Fkh ml cjlA** ikuh ds ladV ds lkFk foLFkkiu dh leL;k xgu :i eas tqM+h gqbZ gSA ;g le>uk t:jh gS fd dSls ^ueZnk fookn* vkfnoklh cuke xSj&vkfnoklh ds :i eas ns[kk x;k gSA vkfnokfl;kas dk loky gS fd muds vkt ds vfLrRo dks xSj vkfnoklh vfHktkR; oxZ dh Hkkoh ih<+h ds fy, D;kas dqckZu dj fn;k tk,\\ es/kk ikVdj fy[krh gSa ^ijEijk vkjs vk/kqfudrk ds chp dk foHkktu vc iqjkuk gks x;kA fodkl ds lanHkZ eas vc tks loky mBuk pkfg, og gS lkekftd&vkfFkZd U;k; dkA vr% fodkl i;kZoj.k lEer gksuk pkfg,A fgUnh lkfgR; esa ikuh dks ysdj dkSu dkSu lh n`f\"V;k¡ vkSj leL;k,¡ ekStwn gSa blds xgu fo'ys\"k.k dh vko';drk gSA tSls /kkfeZd n`f\"V] lkSan;Zoknh n`f\"V] tkfr dk iz'u oxZ&Hksn vkSj foLFkkiu dh leL;k vkfn orZeku le; esa ikuh dk ladV vius vki eas ,d cgqr xHa khj leL;k cu dj mHkjk gS ;fn gekjk lekt vc Hkh lprs ugha gqvk rks cgqr nsj gks tk,xhA lanHkZ xzaFk%& 1. izsepna dh loZJs\"B dgkfu;k¡] jktdey izdk'ku] ubZ fnYyh 2. Mwc] ohjsUæ tSu] ok.kh izdk'ku] ubZ fnYyh 3. lkSan;Z dh unh uenZ k] ve`ryky csxM+] iSaxqbu izdk'ku 4. ueZnk dh ubZ dFk] jtuhdkar] Lojkt izdk'ku 5. miHkkxs dh y{e.k js[kk] jkepaæ xqgk 6. ty] taxy] tehu lora= feJ] Lojkt idz k'ku 7. es/kk ikVddj ueZnk vkna kys u vkSj vkxs] v:.k dqekj f=ikBh

SSN 2454-2725 35 अमर कु मार चौधरी जल मनषु ्य की बहुत बड़ी अवश्यकता ह,ै आसके बबना हमारे ज़ीवन की कल्पना करना कबिन है | हमारे शऱीर मंे जल की मात्रा भ़ी 90 प्रबतशत तक माऩी जात़ी ह।ै आससे ऄनमु ान लगाया जा सकता है जल का हमारे ज़ीवन मंे बकतना महत्व ह।ै जबसे पथृ ्व़ी का बनमाणा हअु ह,ै जल भ़ी हमारे साथ रहा ह।ै पथृ ्व़ी के हर छोटे बडे प्राण़ी, ज़ीव और पडे -पौधों के बलए जल की बहुत अवश्यकता होत़ी है । हमारे पथृ ्व़ी में जल ह़ी चारों तरफ व्याप्त ह।ै पथृ ्व़ी में सबसे ऄबधक जल की मात्रा ह।ै हमाऱी पथृ ्व़ी में यह तरल और िोस रूपों में बवद्यमान रहता ह।ै । यह समदृ ्र, नबदयों में पाया जाता है । समदृ ्र का पाऩी खारा होता ह,ै यह जल़ीय ज़ीवों के बलए ईबचत होता है । ऄन्य कोइ आस जल का प्रयोग नहीं कर सकते ह।ैं नबदयों का पाऩी प़ीने के बलए ईपयकु ्त होता है और आस़ी पर सभ़ी बनभरा रहते ह।ैं नबदयो में जल बफों के बपघलने से प्राप्त होता है । हमारे दबै नक ज़ीवन मंे जल का बहतु महत्व है । हमारे ज़ीवन तो आस़ी पर बनभरा ह।ै यह हमारे दबै नक ज़ीवन में हर प्रकार से आसका प्रयोग बकया जाता ह।ै मनषु ्य के शऱीर मंे यबद पाऩी की कम़ी हो जाए तो ईसको बहतु स़ी कबिनाइयों का सामना करना पडे । परन्तु बवडंबना दबे खए हम मनषु ्य ने ऄपने आस ज़ीवनदाय़ी ऄमतृ को दबू षत करना प्रारं भ कर बदया है । आसका पररणाम यह हअु है बक ऄब हमारे प़ीने के बलए ह़ी जल ईपलब्ध नहीं हो रहा है । यह हमारे और हमाऱी अने वाल़ी प़ीब़ियों के बलए ईपयकु ्त नहीं है । जल, मानव जाबत के बलए प्रकृ बत के ऄनमोल ईपहारों में से एक ह।ै मानव शऱीर में दो बतहाइ मात्रा पाऩी की ह।ै आससे स्पष्ट है बक जल का हमारे ज़ीवन मंे बकतना महत्व ह।ै पथृ ्व़ी के हर ज़ीव के बलए जल की बहतु अवश्यकता होत़ी है । पेड-पौधों के बलए भ़ी जल की बहुत अवश्यकता होत़ी ह।ै जल तरल, िोस एवं गसै रूप में बवद्यमान होता है । जल ज़ीवन का सबसे अवश्यक घटक है और ज़ीबवका के बलए महत्वपणू ा ह।ै यह समदृ ्र, नद़ी, तालाब, पोखर, कु अ,ं नहर आत्याबद मंे पाया जाता ह।ै हमारे दबै नक ज़ीवन मंे जल का बहुत महत्व ह।ै हमारा ज़ीवन तो आस़ी पर बनभरा ह।ै यह पाचन काया करने के बलए शऱीर मंे मदद करता है और हमारे शऱीर के तापमान को बनयंबत्रत करता ह।ै यह हमाऱी धरत़ी के बलए बहुत महत्वपणू ा ह।ै यह हमारे ज़ीवन की गणु वत्ता बनधारा रत करने मंे महत्वपणू ा घटक है और एक सावभा ौबमक बवलायक ह।ै जल के बबना हमारे ज़ीवन की कल्पना करना भ़ी कबिन है । परन्तु बवडंबना है बक जल के महत्व को समझते हएु भ़ी मनषु ्य ने आसे दबू षत करना प्रारं भ कर बदया है । जल-प्रदषू ण और जल की बबााद़ी के पररणामस्वरूप ऄब हमारे प़ीने के बलए ह़ी शदु ्ध जल ईपलब्ध नहीं हो पा रहा ह।ै बजसके दरू गाम़ी पररणाम ऄच्छे नहीं हैं । यह भबवष्य के बलए कदाबप ईबचत नहीं ह।ै जल ज़ीवन के ऄमतृ के रूप में जाना जाता ह।ै आसबलए ज़ीवन को बचाने के बलए पाऩी का सरं क्षण ऄबत अवश्यक ह।ै हमारे कृ बष प्रधान भारत में जल का ऄबधक महत्त्व है | अषा़ि मास से जल के ऄमतृ बबन्दओु ं का स्पशा होता ह़ी धरत़ी से स़ीध़ी गधं ईिने लगत़ी है | कइ बदनों की धरत़ी की प्यास बझु जात़ी है | श़ीतल मधरु जल पाकर पेड-पोधे हरे-भरे होने लगते है | चारों और हररयाल़ी छा जात़ी है | रंग-बबरंगे फू लों पर रंगबबरंग़ी बततबलयााँ मडँा राने लगत़ी है | बादलों की गडगडाहट सनु कर मोर ऄपने मनोहर पंख फै लाकर नतृ ्य करने लगते है | जल वनस्पबत एवम् प्राबणयों के ज़ीवन का अधार है ईस़ी से हम मनषु ्यों, पशओु ं एवम् वकृ ्षों को ज़ीवन बमलता है | यंू तो सम्पणू ा पथृ ्व़ी में ७५% पाऩी है बकन्तु प़ीने योग्य जल मात्र १% ह़ी है आसबलए जल का बवशषे महत्त्व है | भारत नबदयों का देश कहा जाता है | पहले जमाने में, गगं ाजल वषों तक बोतलो बडब्बों में बन्द रहने पर भ़ी खराब नहीं हअु करता था,

SSN 2454-2725 36 परन्तु अज जल-प्रदषु ण के कारण ऄनके स्थानों पर गगं ा-यमनु ा जसै ़ी नबदयों का जल भ़ी छु ने को ज़ी नहीं करता| हमें आस जल को स्वच्छ करना है एवं भबवष्य मंे आसे प्रदबू षत होने से बचाना है | गाँवा में ऄक्सर पाऩी की तंग़ी रहत़ी है | गावँा के ऄबधकाश कु एाँ सखु चकु े ह,ै बाकी कु ओं के तल बदखाइ दे रहे होते हंै | गाँवा ो मंे बियााँ मटके पर मटके लाद कर दरू -दरू तक चलकर पाऩी लात़ी ह,ै बफर भ़ी पाऩी पयााप्त न होता है | ऐस़ी दशा में नहाने-धोने की भ़ीषण समस्या होत़ी है | मझु जैसे बनत्य स्नान करने वाले व्यबक्त के बलए वहाँा रहना कबिन होगा | जल बँदाू -बाँदू मोत़ी की तरह कीमत़ी है | गाँावो मंे जल संकट को दरू करने के बलए सरकार को ओर से नये कु एँा खदु वाए जा रहें है और परु ाने कु ओं को ऄबधक गहरा बकया जा रहा है | गाँवा हो या शहर हमे वतमा ान समय से जल को बबु द्धमत्ता से प्रयोग करना है ताबक सबके प़ीने योग्य जल बमले एवम् भबवष्य की प़ी़ि़ी को भ़ी पयापा ्त मात्रा मंे जल नस़ीब हो | भगवान कभ़ी वो बदन न बदखाए जब एक दसु रे राज्य दशे पाऩी के बलए बववाद खडा करें | हमें नये-नये तऱीको से वषाा ऋतु के पाऩी के बचना है | कहते हंै जल ह़ी ज़ीवन ह।ै जल के बबना धरत़ी पर मानव ज़ीवन की कल्पना भ़ी नहीं की जा सकत़ी। मनषु ्य चादं से लके र मगं ल तक की सतह पर पाऩी तलाशने में लगा ह,ै ताबक वहां ज़ीवन की सभं ावनायें तलाश़ी जा सकें । लबे कन, क्या धरत़ी पर रहने वाले हम पाऩी के वाबस्वतक मलू ्य को समझते ह।ैं कहते हैं पाऩी तो बजतना बपयो ईतना कम ह।ै लेबकन, क्या यह बात परू ़ी तरह से सह़ी ह।ै शायद नहीं !जरूरत से ज्यादा पाऩी प़ीना भ़ी सेहत को नकु सान पहुचं ा सकता ह।ै ऄबत हर च़ीज की बरु ़ी होत़ी है और पाऩी भ़ी कोइ ऄपवाद नहीं। पाऩी काबोहाआड्रेट्स, प्रोट़ीन और वसा की तरह ह़ी पोषण का काम करता है । पाऩी हमारे घटु नों, कलाइ और सभ़ी ऄतं रंग भागों की बचकनाइ के साथ-साथ जोडों को स्वस्थ रखने में महत्वपणू ा भबू मका बनभाता है । जल ज़ीवन के बलए जरूऱी है .लोगों के बलए पडे पौधों और जानवरों के पालन पोषण के बलए पाऩी बहुत ह़ी जरूऱी ह.ै लबे कन दभु ागा्य बक बात है बक ससं ार के कइ बहस्सों मंे लोगो को सेहतमदं रहने के बलए बजतना पाऩी जरूऱी है वहईन्हें बमल नहीं पाता.बहुत बार लोगों को पाऩी के बलए म़ीलों चलना पडता है और तब भ़ी ईन्हें जो पाऩी बमलता हवै ह प़ीने के बलए सरु बक्षत नहीं होता.यबद लोगों को ईनकी रोजमराा जरूरतों के बलए पाऩी नहीं बमलता तो ईनका ज़ीवन कबिन हो जाता है और ईन्हें तरह तरह की खतरनाक ब़ीमाररयों का सामना करना पडता ह.ै और ऄगर लोगों को जो पाऩी बमलता है वो ऄगर साफ़ नहीं है ईसमे कीडे मकोडे या बफर खतरनाक रासायबनक तत्व बमले हुए हंै तो ये भ़ी रोगों को ब़िावा दे सकते ह.ंै यबद समदु ाय के पास ऐसे पाऩी बक ईपलब्धता है बजसे सभ़ी असऩी से पा सकते हो या जो सवा सलु भ हो साथ ह़ी सरु बक्षत भ़ी हो तो समदु ाय के हर एक सदस्य का स्वास्थ्य ईनकी सहे त जरूर ह़ी ऄच्छ़ी होग़ी.साथ ह़ी ऄगर औरतो को रोज पाऩी धोने के काम और ईसे साफ करने के काम से छु ट्ट़ी बमल सके तो औरतो की सेहत और परु े पररवार की सहे त सधु रेग़ी.बच्चे स्वस्थ हो कर बडे होंगे और वे डायररया या ऄबतसार जसै े रोग जो प्रदबू षत पाऩी से पैदा होते है ईनसे बचे रहगे े.सबसे ऄच्छ़ी बात यह होग़ी बक औरते और लडबकया प्रभाव़ी रूप से समदु ाय के और कामो मंे बहस्सा ले सकें ग़ी और स्कू ल भ़ी जा सकें ग़ी | वस्ततु ः ये लेख ईन सभ़ी बवबधयो पर रोशऩी डालता है जो पानं ़ी भरने , रखने और ईसके सरं क्षण के बलये ऄपनाय़ी जात़ी है . आसमे वे बवबधया भ़ी शाबमल है बजनसे पांऩी को प़ीने योग्य साफ और सरु बक्षत बनाया जाता ह.ै ये लखे जल सरु क्षा (साफ और सरु बक्षतपांऩी की बनरंतर ईपलब्धता) के बलये समदु ाय मंे जागरूकता लाने और ईन्हे पांऩी से जडु ़ी बहुत स़ी समस्या के प्रबत बशबक्षत भ़ी करता है | यह़ी नह़ी यह समदु ाय को पररवतान लाने के बलये संगबित करने का रास्ता भ़ी बदखाता ह.ै आस लेख मंे प्रस्ततु समाधानो और बवकल्पो को बकस़ी भ़ी छोटे जल ततं ्र ( पाऩी की प्रणाल़ी) में लागू बकया जा सकता ह,ै यबद लोगो मंे पानं ़ी भरने, रखने और ईसके सरं क्षण के तऱीको पर बहस की शरु ुअत हो जात़ी है तो आससे

SSN 2454-2725 37 पांऩी से जडु ़ी कबिन परेशाबनयो को भ़ी दरू बकया जा सकता है | जल सरु क्षा एक ऄबधकार है | सभ़ी ज़ीबवत प्राबणयो के ज़ीवन और ईत्तम स्वास्थ्य के बलये, ईन्हे पयापा ्त मात्रा मंे स्वच्छ और सरु बक्षत जल बमलना जरुऱी है या दसू रे शब्दो मंे कहे तो ईनके बलये जल सरु क्षा अवश्यक है | ऄतं रराष्ऱीय काननू आसे मानव ऄबधकार की संज्ञा दते ा है | पाऩी प्रकृ बत द्वारा बदया गया ईपहार है लेबकन पाऩी दने े के बलये प्रकृ बत की भ़ी ऄपऩी स़ीमाये है | कइ स्थानो पर प़ीने के पाऩी की ईपब्धता खतरनाक रूप से कम होत़ी जा रह़ी है . जहा पर जम़ीन को ढक बदया गया है ( घरो , पक्के रास्तो या ऄन्य बकस़ी भ़ी ढंग से) या बफर पडे ों को काट बदया गया है ऐसे स्थानो पर जहां पहले वषाा का जल जम़ीन द्वारा सोख बलया जाता था और भबू मगत जल भडं ार में बमल जाता था वह समदु ्र में जा कर खारे पांऩी का बहस्सा बन जाता है | वषाा का जो पानं ़ी बचा रहता है वह आतना ऄबधक प्रदबू षत हो जाता है बक मानव के ईपयोग लायक नह़ी रह जाता. जल के ऄपने मानव ऄबधकार की सरु क्षा के बलये यह समझना जरुऱी है बक पानं ़ी कै से दलु भा बन जाता है और कै से ईसमे प्रदषू क तत्व बमल जाते ह.ै ऐसे लोग जो दलु भा हो रहे जल के सरं क्षण के बलये बमल जलु कर काम कर रहे है और जो पाऩी का आस्तमे ाल कै से बकया जाये आसका बनणया सामबू हक सहभाबगता के साथ करते है वे ह़ी समदु ाय बक जल सरु क्षा को सबु नबित कर सकते ह.ै सामान्यतया लोग प़ीने के सरु बक्षत पांऩी के बलये ईबचत मलू ्य दने े को तैयार रहते है . लेबकन बहुत से स्थानो पर लोगो के प़ीने का पांऩी ईद्योगो या खते ़ी के ईपयोग में ले बलया जाता है या बफर ऐस़ी कीमतो पर बचे ा जाता जो लोगो की क्रय शबक्त से ईपर होत़ी ह.ै पाऩी का प्रबंध चाहे सरकार द्वारा हो , बनज़ी कम्पबनयो द्वारा हो या समहू ो की भाग़ीदाऱी द्वारा हो जरूरतमदं ो (पाऩी के बलये ) को यह ऄबधकार होना ह़ी चाबहये की वे पाऩी के मलू ्य बनधारा ण , बवतरण और ईपयोग के सभं धं मंे ऄपना मत व्यक्त कर सके | Research Scholar University of Calcutta 9330009530 [email protected]

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (जल तिशेषांक) 38 es?kkas dks eukus dk vankt viuk&viuk vkdka{kk ;kno bls i;kZoj.k&iznw’k.k dk izdksi dgas ;k ikfjfLFkrdh; vlarqyuA xehZ us gj O;fDr dks :yk dj j[k fn;k gSA ckfj”k rks ekuks i`Foh ls :Bh gqbZ gSA iF` oh ij pkjkas rjQ rzkfg&rkz fg eph gqbZ gSA f”keyk tSlh ftu txgksa dks vudq wy ekSle ds fy, tkuk tkrk gS] ogk¡ Hkh xehZ dk izdksi fn[kkbZ ns jgk gSA ,ls s eas :Bs cknyksa dks eukus ds fy, ykxs reke ijaijkxr uqL[kkas dks viuk jgs gSaA ,ls h ekU;rk gS fd cjlkr vkjS nsorkvkas ds jktk banz bu rjdhcksa ls jh> dj cknykas dks Hkst nsrs gSa vkSj /kjrh gfj;kyh ls ygygk mBrh gSA bueas lcls izpfyr uqL[kk es<a d&es<a dh dh “kknh gSA ekulwu dks fj>kus ds fy, ns”k ds reke fgLlksa esa pqujh vk<s +kdj ckdk;nk jhfr&fjokt ls eas<d&es<a dh dh “kknh dh tkrh gSA buesa ekax Hkjus ls ysdj reke fjokt vke “kkfn;kas dh rjg gksrs gSaA ,d vU; izpfyr uqL[kk efgykvkas nkjk [ksr eas gy [khpa dj tqrkbZ djuk gSA dqN vapykas eas rks efgyk, v/kZjkf= dks v/kZuXu gksdj gy [khpa dj tqrkbZ djrha gSaA cPpksa ds fy, ;g volj dkys e?s kk dks fj>kus dk Hkh gksrk gS vkjS “kjkjrsa djus dk HkhA os uaxs cnu tehu ij yksVrs gSa vkSj irz hdkRed :i ls mu ij ikuh Mkydj cknykas dks cqyk;k tkrk gSA ,d vU; etsnkj ijEijk eas x/kksa dh “kknh }kjk bUnz nsork dks fj>k;k tkrk gSA bl vuk[s kh “kknh eas banz nso dks [kkl rkjS ij fuea=.k Hkts k tkrk gSA edln lkQ gS banz nso vk,xa s rks lkFk ekulwu Hkh ys vk,xa As x/ks vkSj x/kh dks u, oL= iguk, tkrs gSa vkSj “kknh ds fy, ckdk;nk eMa i ltk;k tkrk gS] “kknh [kwc /kwe&/kke ls gksrh gSA cjlkr ds vHkko eas euq’; vle; ne rkMs + ldrk gS] bl ckr ls bUnz nsork dks :c: djkus ds fy, thfor O;fDr dh “ko&;k=k rd fudkyh tkrh gSA blesa cjlkr ds fy, ,d ftank O;fDr dks vkleku dh rjQ gkFk tksM+s gq, vFkhZ eas fyVk fn;k tkrk gSA reke izfØ;k ^nkg laLdkj^ dh gksrh gSA ,ls k djds banz dks ;g trkus dk iz;kl fd;k tkrk gS fd /kjrh ij lw[ks ls ;g gky gks jgk gS] vc rks d`ik djkAs bu ijEijkvksa ls ijs dqNsd ijEijk,a oSKkfud ekU;rkvksa ij Hkh [kjh mrjrh gaSA ,ls k ekuk tkrk gS fd iMs +&ikS/ks cjlkr ykus eas izeq[k Hkfw edk fuHkkrs gSaA blh ds rgr iMs +ksa dk yxu djk;k tkrk gSA dukZVd ds ,d xk¡o eas banz nsork dks eukus ds fy, ,d vuk[s kh ijaijk gSA ;gka gky gh esa uhe ds ikS/ks dks nqYgu cuk;k x;k vkSj v”oRFkk isM+ dks nwYgkA iwjh fganw jhfr fjokt ls “kknh laiUu gqbZ ftlesa xk¡o ds lSdM+ksa ykxs kas us fgLlk fy;kA uhe ds iMs + dks ckdk;nk eaxylw= Hkh iguk;k x;kA ykxs kas dk ekuuk gS fd vyx&vyx iztkfr ds iMs +ksa dh “kknh dk vk;kts u djus ls >ek>e ikuh cjlrk gSA vc bls ijEijkvkas dk izHkko dgsa ;k ekuoh; ccs lh] ij varr% ckfj”k gksrh gS ysfdu gj lky ;g euq’; o tho&tUrqvkas ds lkFk iMs +&ikS/kkas dks Hkh rjlkrh gaAS cgs rj gksrk ;fn ge ek= ,d eghus lkspus dh ctk; lky Hkj fopkj djrs fd fdl rjg geus izd`fr dks udq lku igq¡pk;k gS] mlds vkoj.k dks fNUu&fHkUu dj fn;k gS] rks fuf”prr% ckfj”k le; ls gksrh vkjS gesa O;FkZ eas ijs”kku ugha gksuk iM+rkA vHkh Hkh oDr gS] ;fn ge prs lds rks ekuork dks cpk;k tk ldrk gS vU;Fkk gj o’kZ ge blh izyki eas thrs jgasxs fd vc rks /kjrh dk var fudV gS vkSj dHkh Hkh izy; gks ldrh gSA vkdk{a kk ;kno] Vkbi 5 funs'kd caxyk] iksLVy v‚fQllZ d‚yksuh tsMh, lfdZy ds fudV] tks/kijq ] jktLFkku & 342001 Vol.2, issue 15, May 2016. वर्ष 2, अंक 15, मई 2016.

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (जल तिशेषांक) 39 bZ&esy % [email protected] http://shabdshikhar.blogspot.in/ Vol.2, issue 15, May 2016. वर्ष 2, अंक 15, मई 2016.

ISSN 2454-2725 40 MkW- e`.kkfydk vks>k dqN gh fnukas iwoZ ;s lekpkj i<+us feyk Fkk & **NÙkhlx<+ eas ihijVkys k xk¡o ¼ftyk&do/kkZ½ ds 40 cSxkvkas us 44 fMxzh ds rkieku eas 26 fnuksa rd [kqnkbZ djds igkM+ ls ikuh fudkykA** bl xzh\"e eas vk;s fnukas ,ls s lekpkj fey jgs gSaA bl o\"kZ ds Hkh\"k.k *lw[kk* eas bl egku~ Je dks gekjk iz.kkeA cSxkvkas ds bl HkxhjFk Je dh ftruh Hkh ljkguk djas de gaAS ** **jfgeu ikuh jkf[k, fcu ikuh lc lwuA** egkdfo jghe us ty lca a/kh bl egkKku dks ,d gh okD; esa dg fn;k FkkA euq\"; dk /;ku bl ckr ij x;k rks t:j] ij geus bl Kku dks Lohdkjk ughaA gekjs vgadkj ,oe~ ,'s o;Z ds ikuh us bl egkKku ij ikuh Qjs fn;kA ge ikuh ds izfr tkx:d ugha gks ik;Asa oSKkfud dbZ n'kdksa ls ;s ckrsa le>k jgsa gSaA i`Foh ds Hkhrj ihus dk ikuh igys izpjq ek=k eas Fkk] ----------fQj---------3% gqvk fQj 2%vkSj vc ek= 1% jg x;kA oSKkfudksa us rks lprs Hkh dj fn;k gS] fd vxyk fo'o;q) ikuh ds fy, gks ldrk gSA vc ge lc pkdS Uus gks x,---------pkjkas vkjs lw[kk vkSj vdky vkSj ihus dk ikuh bruk egaxk vkSj nqyZHk fd----------A vxj dksbZ iwNs fd fdl /keZ eas ikuh dks lcls egRoiw.kZ crk;k x;k gS] rks ge lHkh vius&vius /keZ dks uke yxsa As lp Hkh ;gh gSA izk;% lHkh /keksZ esa HkkSfrd txr dh lcls egRoiw.kZ oLrq ikuh dks gh dgk x;k gSaA ikuh fcuk ouLifr ugha] vkWDlhtu ugha] vUu ugha] izk.kh ugha] thou ugha loZ= lw[kk vkSj fu\"izk.kA thou fcuk i`Foh lwuh] vkSj i`Foh fcuk czEgk.MA vHkh rd Kku&foKku ds vulq kj dsoy i`Foh ij gh thou miyC/k gSA ;g izeq[kr% ty ds gh dkj.k gSaA i`Foh ij ckj&ckj ladV Hkh ty ds vlarqyu ds dkj.k gh vkrk gSA i`Foh ckj&ckj cpk yh tkrh gSA iz'u rks ;s gS & **tc eka>h uko Mqck;s] mls dkSu cpk;sa \\** euq\"; us rks ty dh bruh mis{kk dh gS] fd vkt i`Foh Hkh\"k.k ty&ladV ls xqtj jgha gSA i;kZoj.k vlarqyu us Hkh fouk'kdkjh ladV [kM+s fd, gSaA blds izeq[k dkj.kkas eas gekjs ,'s k&vkjke dh izo`fÙk vkjS ikuh dh ?kksj mi{s kk gh gSA eq>s ,d ykds dFkk ;kn vk jgh gSA cLrj dh ykds dFkk %& *;qxkas iwoZ i`Foh ty eas Mwch FkhA loZ= ikuh gh ikuh Fkk] vkSj dqN ughaA rHkh ,d fo'kkydk; nsoiq:\"k ftudk uke Fkk & *Hkheknso*] ogk¡ izdV gq,A mUgkusa s ikuh dks ogk¡ ls >kM+uk&cqgkjuk 'k:q dj fn;kA Hkheknso us tgk¡ ls ikuh Qasdk] ogk¡ i`Foh mHkj vkbZ] tgk¡ ls ikuh ugha myhpk ogk¡ vkt Hkh ikuh gSA egs ur ds dkj.k mudh ilhus dh /kkj cg xbAZ ilhuk iksNa dj ogk¡

ISSN 2454-2725 41 fNM+d fn;k] ogk¡ ouLifr vkSj vukt inS k gks x,A muds tkus ds ckn ,d req k tSlk ¼ykSdhuqek½ Qy tks fd vfrfo'kky Fkk] ogk¡ rSjrk gqvk vk;kA mleas ls ,d lk/kq ¼MM~Ms cqjdk dkos klh½ fudkykA mlus Hkheknso ds fc;klh fd, vUu&ty ls thou ft;k vkSj x`gLFkh clkbZA nqfu;k¡ dh lkjh vkfne tutkfr;k¡ mlh dh larku gSaA* bl ykds dFkk eas l`f\"V vkjS ikuh dk egRo Li\"V gksrk gSA ikuh dk vlarqyu ekus fouk'kA euq\"; us ikuh dh mis{kk dhA mls lLrk vkSj ces ksy le> fy;kA ;gk¡ rd fd geus&**ikuh ds eksy**] *ikuh Qjs uk*] *ikuh tSlk cgkuk* vkjS *ikuh iM+uk* tSls eqgkojs Hkh cuk fy,A yxHkx lHkh /keksZa eas ikuh dk egRo Lohdkj fd;k x;k gSA /keZ dksbZ Hkh gks] og dY;k.kdkjh vkSj ifo= gh gksrk gSA vk/kkjHkrw jhfr&fjokt Hkh oSKkfud o euksoSKkfud rF;ksa ij fufeZr gksrs gSaA va/k /kkfeZdrk us gh lPpkbZ;ksa ls nwj vkMacjkas dk tky fcNk fn;kA fQj bleas ik[kMa Hkh izfo\"V gks x;kA ikuh ds lac/a k eas izk;% lHkh dh vkLFkk,¡ ,d tSlh gSaA fcuk ikuh /kkfeZd dk;Z u izkjaHk gksrs gSa] u laiUuA ?kj vk, egs eku dks fcuk ekaxs gh ikuh ¼lRdkj gsrq½ izLrqr fd;k tkrk gSA dqjku&'kjhQ eas Hkh ikuh dks *vYykg dh user* dgk x;k gSA iSxacj gtjr eksgEen us rks *ikuh dk lndk* vFkkZr t:jrena dks ty&nku djus vo'; dgk gSaA I;kls dks ikuh fiykus ls xqukg iMs + ds lw[ks gq, iÙkks dh rjg >M+ tkrs gSA tUur dk cgs rjhu user ikuh gh gSA vusd n`f\"V;ksa ls ikuh ikd+htxh ds fy, vko';d gSA *vkc&,&t+ete* dh egÙkk o ifo=rk dks dkuS ugha tkurk \\ ckbZcy esa Hkh bZ'oj dks thou :ih ty crk;k x;k gSA bl ty ¼Kku½ dks ihus ds ckn dksbZ r`\".kk 'k\"s k ugha jgrh] vkSj ;g vuar thou ds fy, meM+rk gaS fofHkUu /keksZ eas Hkh bZ'oj dks bl izdkj isze djus dgk x;k gS tSls dey ikuh ls djrk gSa tSls eNyh ty ls djrh gSA ikuh dsoy bZ'oj dh d`ik gh ugha] bZ'oj dk ojnku Hkh gS] /kjrh dkAs xzaFk lkgc esa Hkh ikuh dks firk dh rjg ekuk x;k gS] i`Foh dks ekrk dh rjgA thoek= dk chtkjkis .k ikuh ls] vadqj.k ikuh ls fodkl ikuh ls] thou ikuh lsA ek¡ ds xHkZ esa Hkh f'k'kq ikuh eas gksrk gS] vkSj i`Foh Hkh ikuh esa gh gSaA bl idz kj] ikuh o thou dk vVwV lac/a k gSA fganw /keZ esa Hkh ladYi o ozr dh 'kq:vkr rFkk leiZ.k o foltZu Hkh ty ls gh gksrk gSA dkykra j esa bldk :i fodr` gks x;kA geus /keZ ds uke ij cM+h&cM+h efw rZ;k¡] fuekZY; vkSj dbZ ckj rks 'ko rd dks ty eas folftZr dj fn;kA va/k J)k o /kkfeZdrk us ty dks cqjh rjg iznfw \"kr Hkh fd;kA vkt unh] ljksoj] rkykc lc iVrs pys tk jgs gSaA xgjhdj.k dh ckr rks ykxs lksprs gh ughaA vusd /kkfeZd dFkkvkas] ykds dFkkvkas vkSj izFkkvkas esa Hkh rkykc [kqnokus dks cgqr gh egRoiw.kZ ekuk x;k gSA yksd lkfgR; o bfrgkl bldk izek.k gSA

ISSN 2454-2725 42 vkt /kekZa/krk esa Mwcdj ykxs djkMs +ks :i;sa /kkfeZd LFkykas esa nku dj nsrs gSa] ij ,d rkykc] dqvk¡ ;k ckoM+h [kqnokus dh lksprs Hkh ughaA ufn;ksa dks *ekrk* vkjS eks{knkf;uh ekuus okyksa eas ls vusdkas us iq.; dekus ds ykHs k esa ufn;ksa dks flQZ xna k gh fd;k gSA lQkbZ ds fy, lkspk rd ughaA cl [kqn ikieqDr gksus ds vkuan esa Mwcs jgAs ufn;k¡ gesa fdl idz kj ikieqDr ;k 'kkieqDr djrh gS] ;g le>us dh geus p\"s Vk gh ugha dhA pfy,] *'kkieqDr* ls ,d /kkfeZd dFkk ;kn vk xbZA /kkfeZd dFkk %& egkjktk lxj ds lkB gtkj iq= ¼iztk½ 'kkixzLr gks pqds FkAs os ukjdh; ;kruk >syrs gq, HkLe gks x,A muds m)kj ds fy, muds iq= va'kqeku us dfBu ri fd;k fdarq vlQy jgsA mlds i'pkr~ muds ikS= HkxhjFk us cM+k dBkjs ri fd;k os xxa k dks LoxZ ls i`Foh rd ykus eas lQy jgAs xxa k ds i`Foh ij vorj.k gksus ds ckn muds iwoZt ¼iztktu½ 'kkieqDr gq,A bl izdkj HkkxhjFk ds ?kkjs ri ¼i.w kZ lefirZ dBkjs Je½ ls ;g dk;Z lHa ko gqvkA ;g ,d /kkfedZ dFkk gS tks ykds eas feFkdh; Lo:i eas cny tkrh gSA bldh lPpkbZ ;g gS fd egkjktk lxj ds 'kkludky eas yacs le; rd Hkh\"k.k lw[kk iM+kA jkT; *=Lr* vkSj *fou\"V izk;* gks x;kA ,ls s Hkh\"k.k rIr le; eas HkkxhjFk us fgeky; dh pksVh ls /kjrh rd ,d unh dk jkLrk cuk;k] tks fd xaxk FkhA muds bl Je dks **HkkxhjFk&iz;Ru** eqgkojs ds :i eas ge tkurs gSa vkSj ml unh dks *HkkxhjFkh unh* ds :i eaAs ekmVa su&euS %& pkaSfd;s ughaA ;s dkjs h dYiuk ugha] lPpkbZ gSA eq>s fo'okl gS fd fcgkj ¼xgykSj½ ds n'kjFk eka>h vFkkZr~ **ekmVa su eSu* dks vki Hkyw ugha ldrsA blus vdsys gh ckbZl o\"kkZs rd **HkxhjFk iz;Ru** djds 360 QhV yac]s 30 QhV pkSaM]+s vkSj 25 QqV Å¡ps igkM+ dks vdsys dkVdj ,d NksVh lM+d dk fuekZ.k fd;k] tks vuekys gSA bl izdkj vkfndky ls ftl ikuh dks lHkh /keZ] lekt vkSj tkfr;ksa us lokZf/kd egRo fn;k] mlh dh geus lcls vf/kd mis{kk dhA dkØa hVhdj.k us ikuh ds lkjs jkLrs can dj fn;sA ikuh tehu ds vanj tk;s dSls \\ O;olk;hdj.k %& vkt cgjq k\"Vªh; daifu;k¡ gesa chekfj;kas dk Hk; fn[kkdj] 'kq) i;s ty dk gokyk nsdj] gekjh gh tehu dk ikuh ckWVy eas Hkjdj gesa gh csp jgh gSaA ge 40 :i;as izfr yhVj rd ikuh [kjhn dj ih jgs gSaA bl lok vjc tula[;k okys ns'k eas fdrus ykxs fdruk ikuh [kjhn dj ih

ISSN 2454-2725 43 ldrs gSa \\ gekjs taxy] gekjh tehu] gekjk ty lc gels Nhuk tk jgk gS] vkSj bruk egaxk ikuh cps k tk jgk gS] fd ,d ?kw¡V dh dher ,d :i;as \\ vc rks gesa tkxuk gh gksxkA fdlkuksa dh vkRegR;k] xzkeh.kksa dk iyk;u] etnjw kas dk 'kks\"k.k------------vkf[kj bu lc dk dkj.k D;k gS \\ vkb;]s ikuh dk egRo le>asA gkFk eas ty ysdj] ty ds laj{k.k dk ladYi yAsa ikuh ds O;olk;hdj.k dks jkasdsaA viuk ty] viuk taxy] viuh tehu dks cpk,¡A rHkh ns'k viuh j{kk dj ik;xs kA igys yksx unh] dqvk¡] >juk dk ikuh ihdj Hkh LoLFk jgrs FksA vc gesa bruk ekufld :i ls detksj cuk;k tk jgk gS fd ge fcuk vkj-vk-s ;k ckWVy ds ikuh ds LoLFk ugha jg ldrs \\ ikuh dk O;olk;hdj.k d`f\"kiz/kku ns'k dks [kk[s kyk djus dk \"kM~;a= irz hr gksrk gSA ilz axo'k eq>sa mu ns'kkas dk tuvkna kys u ;kn vk jgk g]s tgk¡ blh ty] taxy] tehu ds fy, vkna kys u gq, vkSj ogk¡ ds eyw fuokfl;kas dh thr gqbZA ikuh cps us okyh cgqjk\"Vªh; daifu;ksa dks okil tkuk iM+kA vkt ge ,ls s gh uktqd o Hkh\"k.k ladV ls xqtj jgs gSaA cM+h&cM+h dkWykfs u;k¡] Økda hVhdj.k ekWy vkSj muds Vk;ysV~l eas gtkjkas yhVj ikuh dh izfr{k.k [kir vkSj vc rks vkj-vk-s rhu xquk ikuh cckZn djrk gSA bruk gh ugha ,;j fQYVj Hkh ekdsZV eas vk x;k gSA D;k ge viuk lc dnq gkj tk,¡xs \\ 'kklu dks pkfg, fd bu daifu;kas ds lkeus igys ufn;ksa rkykcksda s xgjhdj.k@mR[kuu o o`{kkjksi.k dh 'krZ j[kasA D;k vke turk ds fy, ihus dk ikuh o vkWDlhtu Hkh ulhc ugha gksxk vc \\ rks vkb;s ge dqN ;w¡ djsa %& 1- ikuh cpk,¡] ns'kh NUud o dhVk.kuq k'kdksa dk iz;ksx djsAa 2- vkj-vk-s dh vknr u MkyasA rhu xquk ikuh cckZn gksrk gSaA gekjh izfrjk/s kd {kerk dks Hkh detksj djrk gSA 3- Jenku djAsa ljkos j] daqM] dq,¡] [knq ok,¡A 4- fdlh dkWykus h fcYMlZ dks igys l?ku o`{kkjksi.k o ikuh dh fjlkbdfyax dh 'krZ j[kAs 5- vkxa u] cxhpas o lM+dksa ds fdukjs dPps j[k]s dkaØhVhdj.k u djs]a u gksus nAsa vkSj ----------vkSj Hkh cgqr dqN djs]a ty cpkus ds fy,] i`Foh ds izk.k&j{kk ds fy, ;q) ugha I;kj c<+k;sAa MkW- e`.kkfydk vks>k igkM+h rkykc ds lkeus catkjh eafnj ds ikl]

ISSN 2454-2725 44 dq'kkyiqj] jk;iqj ¼N-x-½] 492001 eks-ua- & 7415017400

ISSN 2454-2725 45 —\".k dqekj ;kno xaxk flQZ ,d unh dk uke ugha gS] cfYd ;g thounk;h gSA xaxk dh ygjkas us u tkus fdruh lH;rkvkas o laLd`fr;ksa dks curs fcxM+rs ns[kkA oSfnd dky ls yds j vk/kqfud ;qx rd ds mRFkku&iru dk xokg gS xaxkA jktuhfr] vFkZuhfr] lkekftd O;oLFkk ls yds j /keZ] v/;kRe] i;ZVu] i;kZoj.k rd lc blls izHkkfor gkrs s jgs gSaA ,d gh xaxk ds u tkus fdrus :i gS]a gj dkbs Z mls vius&vius utfj, ls fo'yfs \"kr djrk gSA blds rV ij fodflr /kkfeZd LFky vkSj rhFkZ Hkkjrh; lkekftd O;oLFkk ds fo'ks\"k vax gSaA blds Åij cus iqy] ck¡/k vkSj unh ifj;kts uk,¡ Hkkjr dh fctyh] ikuh vkSj —f\"k ls lacaf/kr t:jrksa dks iwjk djrh gSaA jk\"Vªh; unh xaxk Hkkjr dh lcls yca h unh gS tks ioZrka]s ?kkfV;kas vkSj eSnkuksa eas 2]510 fdykes hVj dh nwjh r; djrh gSA oSKkfud ekurs gSa fd bl unh ds ty esa cSDVhfj;ksQts uked fo\"kk.kq gkrs s gSa] tks thok.kqvksa o vU; gkfudkjd lw{ethokas dks thfor ugha jgus nsrs gSaA rHkh rks bls ek¡ dgk x;k gSA bldh xksn esa u tkus fdrukas dk fodkl gqvk] izHkko c<+k vkSj vkt Hkh xaxk rV ds ckf'kna kas dks xoZ gS fd os ek¡ xaxk ds lkfu/; esa Qyrs&Qwyrs gSaA xkLs okeh rqylhnkl us xaxk dks HkqfDr&eqfDr nkf;uh dgk gSA xaxk th ds ckjs eas rqylhnkl dh pkSikbZ gS%& nj'k~] ijl] eTtu v# ikukA gjfga iki] dg ons iqjkukAA vFkkrZ ] xaxk th ds n'kZu] Li'kZ] Luku vkSj iku ls lHkh izdkj ds iki u\"V gks tkrs gSaA olS s Hkh] xaxk dks 'kkL=ksa eas czã nzo dgk x;k gSA lh/ks 'kCnkas eas dgsa rks xaxk gekjh t:jrkas dks Hkh ijw k djrh gSa vkSj eqfDr Hkh fnykrh gSA ;kuh gekjh HkqfDr&eqfDr nkus kas dk lk/ku curh gSA xaxk unh gekjh le`) lkaLd`frd fojklr dk fgLlk gSA ;g djkMs +ksa yksxksa ds fy, thou j[s kk vkSj vkLFkk dk izrhd gSA xaxk unh ds vorj.k dks ysdj vusd ikSjkf.kd dFkk,¡ tqM+h gqbZ gSaA feFkdksa ds vuqlkj cãz us fo\".kq ds iSj ds ilhus dh cw¡nkas ls xaxk dk fuek.Z k fd;kA f=ewfrZ ds nks lnL;kas ds Li'kZ ds dkj.k bls ifo= le>k x;kA ,d vU; dFkk jktk HkxhjFk ls tqM+h gqbZ gSA blds vuqlkj jktk lxj us tknqbZ #i ls lkB gtkj iq=ksa dh çkfIr dhA ,d fnu jktk lxj us nsoykds ij fot; çkIr djus ds fy;s ,d ;K fd;kA ;K ds fy;s ?kksM+k vko';d Fkk tks bZ\";kyq baæ us pjq k fy;k FkkA lxj us vius lkjs iq=ksa dks ?kksM+s dh [kkst eas Hkst fn;kA var esa mUgsa ?kksM+k ikrky yksd eas feyk tks ,d _f\"k ds lehi c¡/kk FkkA lxj ds iq=ksa us ;g lksp dj fd _f\"k gh ?kksM+s ds xk;c gkus s dh otg gSa mUgksaus _f\"k dk vieku fd;kA riL;k eas yhu _f\"k us gtkjkas o\"kZ ckn viuh vk¡[ksa [kksyh vkSj muds Øk/s k ls lxj ds lHkh lkB gtkj i=q ty dj ogha HkLe gks x;sA lxj ds iq=ksa dh vkRek,¡ Hkwr cudj fopjus yxha D;kafs d mudk vafre laLdkj ugha fd;k x;k FkkA lxj ds iq= va'kqeku us vkRekvkas dh eqfä dk vlQy ç;kl fd;k vkSj ckn eas va'kqeku ds iq= fnyhi us HkhA HkxhjFk jktk fnyhi dh nwljh iRuh ds iq= FksA mUgkaus s vius iow Ztkas dk vafre laLdkj fd;kA mUgkaus s xaxk dks i`Foh ij ykus dk ç.k fd;k ftlls muds vafre laLdkj dj] jk[k dks xaxkty eas çokfgr fd;k tk lds vkSj HkVdrh vkRek,¡a LoxZ eas tk ldAsa HkxhjFk us czã dh ?kksj riL;k dh rkfd xaxk dks i`Foh ij yk;k tk ldsA cãz çlUu gq;s vkSj xaxk dks i`Foh ij Hkstus ds fy;s rS;kj gq;s vkSj xaxk dks i`Foh ij vkSj mlds ckn ikrky eas tkus dk vkns'k fn;k rkfd lxj ds iq=ksa dh vkRekvkas dh efq ä laHko gks ldsA rc xaxk us dgk fd eSa bruh Å¡pkbZ ls tc i`Foh ij fx:¡xh] rks i`Foh bruk oxs dSls lg ik,xh\\ rc HkxhjFk us Hkxoku f'ko ls fuons u fd;k vkSj mUgkusa s viuh [kqyh tVkvksa eas xaxk ds oxs dks jkds dj] ,d yV [kksy nh] ftlls xaxk dh vfojy /kkjk i`Foh ij çokfgr gqbZA og /kkjk HkxhjFk ds ihNs&ihNs xaxk lkxj laxe rd xbZ] tgk¡ lxj&iq=ksa dk m)kj gqvkA f'ko ds Li'kZ ls xaxk vkSj Hkh ikou gks x;h vkjS i`Fohokfl;kas ds fy;s cgqr gh J)k dk dsUæ cu x;haA iqjk.kksa ds vuqlkj LoxZ eas xaxk dks eUnkfduh vkSj ikrky eas HkkxhjFkh dgrs gSaA blh çdkj egkHkkjr eas jktk 'kkaruq vkSj xaxk ds fookg rFkk muds lkr iq=ksa ds tUe dh dgkuh gSA xaxk ds vorj.k dk lp tks Hkh gks] ij ;g ,d rF; gS fd ;g Hkkjr vkSj ckaXykns'k eas feykdj 2510 fdeh dh nwjh r; djrh gbq Z mÙkjkapy eas fgeky; ls yds j cxa ky dh [kkM+h ds lqanjou rd fo'kky

ISSN 2454-2725 46 Hkw&Hkkx dks lhpa rh gSA xaxk viuh lgk;d ufn;kas ds lkFk ns'k ds cM+s Hkw&Hkkx ds fy, flapkbZ dk ckjgeklkas L=ksr gSA bu {k=s ksa eas izeq[k :i ls /kku] xgs wWa] xUuk] nygu] frygu vkSj vkyw dh iSnkokj gkrs h gSA unh dh otg ls eNyh m|kxs Hkh dkQh Qy&Qwy jgk gSA ns'k dh çk—frd laink gh ugh]a tu&tu dh HkkoukRed vkLFkk dk vk/kkj Hkh xaxk gSA 2510 fdeh rd Hkkjr rFkk mlds ckn ckaXykns'k eas viuh yach ;k=k djrs gq, ;g lgk;d ufn;ksa ds lkFk nl yk[k oxZ fdykes hVj {k=s Qy ds vfr fo'kky mitkÅ eSnku dh jpuk djrh gAS xaxk i;ZVdksa dks Hkh vkdf\"kZr djrh gSA xaxk unh 5 jkT;ksa mRrjk[kaM] mRrj izns'k] fcgkj] >kj[kaM vkSj if'pe cxa ky ls gkds j xqtjrh gSA blds fdukjs cls izeq[k 'kgj gSa&gfj}kj] dUukSt] dkuiqj] bykgkckn] okjk.klh] iVuk] Qj[[kk bR;kfnA xaxk rV ij cls 29 'kgjkas dh tula[;k 1 yk[k ls vf/kd gS rks 23 'kgjksa dh tula[;k 1 yk[k ls 50 gtkj ds chp gSA 48 'kgjkas dh tula[;k 50 gtkj ls de gSA mRrj izns'k dh ckr djsa rks ;gk¡ xaxk djhc ,d gtkj fdykes hVj dk lQj r; djrh gSA ;g nqfu;k dh ,slh vdys h unh gS ftlds fdukjs lcls T;knk fefy;u flVh ¼10 yk[k ;k mlls T;knk vkcknh okys 'kgj½ gSA xaxk csflu esa djhc 4 djksM+ dh vkcknh clrh gSA ,sls esa lkekftd] lkfgfR;d] lkLa —frd vkSj vkfFkZd –f\"V ls vR;ar egÙoi.w kZ xaxk dk ;g enS ku viuh ?kuh tula[;k ds dkj.k Hkh tkuk tkrk gAS 100 QhV ¼31 eh½ dh vf/kdre xgjkbZ okyh ;g unh Hkkjr esa ifo= ekuh tkrh gS rFkk bldh mikluk ek¡ vkSj nsoh ds :i eas dh tkrh gSA xaxk unh eas eNfy;kas rFkk liksZa dh vusd çtkfr;k¡ rks ikbZ gh tkrh gSa ehBs ikuh okys nqyZHk MkYfQu Hkh ik, tkrs gSaA ;g —f\"k] i;ZVu] lkgfld [kys kas rFkk m|kxs ksa ds fodkl eas egÙoi.w kZ ;kxs nku nsrh gS rFkk vius rV ij cls 'kgjkas dh tykiwfrZ Hkh djrh gSA xaxk dh bl vlhfer 'kq)hdj.k {kerk vkSj lkekftd J)k ds ckotwn bldk çnw\"k.k jkds k ugha tk ldk gSA fQj Hkh blds ç;Ru tkjh gSa vkSj lQkbZ dh vusd ifj;kstukvksa ds Øe esa uoca j] 2008 esa Hkkjr ljdkj }kjk bls Hkkjr dh jk\"Vªh; unh rFkk bykgkckn vkSj gfYn;k ds chp ¼1600 fdykes hVj½ xaxk unh tyekxZ& dks jk\"Vªh; tyekxZ ?kksf\"kr fd;k gSA ;gh dkj.k gS fd ;g fganh lkfgR; dh ekuoh; prs uk dks Hkh çokfgr djrh gSA _Xons ] egkHkkjr] jkek;.k ,oa vusd iqjk.kksa eas xaxk dks iq.; lfyyk] iki&ukf'kuh] eks{k çnkf;uh] lfjRJ\"s Bk ,oa egkunh dgk x;k gSA laL—r dfo txUukFk jk; us xxa k dh Lrqfr esa Jhxxa kygjh uked dkO; dh jpuk dh gSA fgUnh ds vkfn egkdkO; i`Fohjkt jklk]s rFkk ohlynso jkl ¼ujifr ukYg½ esa xaxk dk mYys[k gSA vkfndky dk lokZf/kd ykds foJqr xazFk txfud jfpr vkYg[k.M] eas xaxk] ;equk vkSj ljLorh dk mYys[k gSA dfo us ç;kxjkt dh bl f=os.kh dks ikiuk'kd cryk;k gSA Jax` kjh dfo fo|kifr] dchj ok.kh vkSj tk;lh ds in~ekor eas Hkh xaxk dk mYys[k gS] lwjnkl vkSj rqylhnkl us Hkfä Hkkouk ls xaxk&ekgkRE; dk o.kZu foLrkj ls fd;k gSA xksLokeh rqylhnkl us dforkoyh ds mÙkjdk.M esa ^Jh xaxk ekgkRE;* dk o.kuZ rhu NUnkas eas fd;k gS&bu NUnksa eas dfo us xaxk n'kuZ ] xaxk Luku] xaxk ty lsou] xaxk rV ij clus okykas ds egÙo dks of.kZr fd;k gSA jhfrdky esa lsukifr vkSj in~ekdj dk xaxk o.kZu 'yk?kuh; gSA in~ekdj us xaxk dh efgek vkSj dhfrZ dk o.kZu djus ds fy, *xaxkygjh* uked xzaFk dh jpuk dh gSA lsukifr *dfoÙk jRukdj* eas xaxk ekgkRE; dk o.kZu djrs gq, dgrs gSa fd iki dh uko dks u\"V djus ds fy, xaxk dh iq.;/kkjk ryokj lh lq'kksfHkr gSA jl[kku] jghe vkfn us Hkh xaxk çHkko dk lqUnj o.kZu fd;k gSA vk/kqfud dky ds dfo;ksa eas txUukFknkl jRukdj ds xzaFk xaxkorj.k eas dfiy eqfu }kjk 'kkfir lxj ds lkB gtkj iq=ksa ds m)kj ds fy, HkxhjFk dh HkxhjFk&riL;k ls xxa k ds Hkfw e ij vorfjr gksus dh dFkk gSA lEiw.kZ xazFk rsjg lxksZa esa foHkDr vkSj lkys g NUn eas fuc) gSA vU; dfo;ksa eas HkkjrsUnq gfj'pUæ] lqfe=kuUnu iUr vkSj Jh/kj ikBd vkfn us Hkh ;=&r= xaxk dk o.kZu fd;k gSA Nk;koknh dfo;ksa dk ç—fr o.kZu fgUnh lkfgR; eas mYys[kuh; gSA lqfe=kuUnu iUr us ^ukdS k fogkj* esa xzh\"edkyhu rkil ckyk xaxk dk tks fp= mdsjk gS] og vfr je.kh; gSA mUgksua s xaxk uked dfork Hkh fy[kh gSA xaxk unh ds dbZ çrhdkRed vFkksZa dk o.kZu tokgj yky usg: us viuh iqLrd Hkkjr ,d [kkts ¼fMLdojh v‚Q bfa M;k½ eas fd;k gSA Hkkjrh; iqjk.k vkSj lkfgR; esa vius lkSan;Z vkSj egRo ds dkj.k ckj&ckj vknj ds lkFk ofa nr xaxk unh ds çfr fons'kh lkfgR; eas Hkh ç'kla k vkSj Hkkodq rkiw.kZ o.kuZ fd, x, gaSA

ISSN 2454-2725 47 Hkkjr dh vusd /kkfeZd vo/kkj.kkvksa eas xaxk unh dks nsoh ds :i eas fu#fir fd;k x;k gSA cgqr ls ifo= rhFkZLFky xaxk unh ds fdukjs ij cls gq;s gSa ftueas okjk.klh vkSj gfj}kj lcls çeq[k gSaA xaxk unh dks Hkkjr dh ifo= ufn;ksa eas lcls ifo= ekuk tkrk gS ,oa ;g ekU;rk gS fd xaxk eas Luku djus ls euq\"; ds lkjs ikiksa dk uk'k gks tkrk gSA e`R;q ds ckn ykxs xaxk eas viuh jk[k folftZr djuk eks{k çkfIr ds fy;s vko';d le>rs gSa] ;gk¡ rd fd dqN ykxs xaxk ds fdukjs gh çk.k foltZu ;k vafre laLdkj dh bPNk Hkh j[krs gSaA blds ?kkVkas ij ykxs itw k vpZuk djrs gSa vkSj /;ku yxkrs gSaA xaxkty dks ifo= le>k tkrk gS rFkk leLr laLdkjkas eas mldk gkus k vko';d gSA iapke`r esa Hkh xaxkty dks ,d ver` ekuk x;k gSA vusd iokaZs vkSj mRloksa dk xaxk ls lh/kk lac/a k gSA mnkgj.k ds fy, edj laØkafr] dqaHk vkSj xaxk n'kgjk ds le; xaxk eas ugkuk ;k dsoy n'kuZ gh dj ysuk cgrq egÙoi.w kZ le>k tkrk gSA blds rVkas ij vusd çfl) eys kas dk vk;kts u fd;k tkrk gS vkSj vusd çfl) efa nj xaxk ds rV ij gh cus gq, gSaA egkHkkjr ds vuqlkj ek= ç;kx eas ek?k ekl eas xaxk&;equk ds laxe ij rhu djkMs + nl gtkj rhFkkaZs dk laxe gkrs k gSA ;s rhFkZ LFky lEiw.kZ Hkkjr esa lkLa —frd ,drk LFkkfir djrs gSaA xaxk dks y{; djds vusd Hkfä xazFk fy[ks x, gSaA ftuesa JhxaxklglzukeLrks= vkSj vkjrh lcls yksdfç; gSaA vusd yksx vius nSfud thou esa J)k ds lkFk budk ç;ksx djrs gSaA xaxk=s h rFkk vU; LFkkukas ij xaxk ds eafnj vkSj efw rZ;k¡ Hkh LFkkfir gSa ftuds n'kuZ dj J)kyq Lo;a dks —rkFkZ le>rs gSaA mÙkjk[kMa ds ipa ç;kx rFkk ç;kxjkt tks bykgkckn eas fLFkr gS] xaxk ds os çfl) laxe LFky gaS tgk¡ og vU; ufn;kas ls feyrh gaSA ;s lHkh lxa e /kkfeZd –f\"V ls iwT; ekus x, gSaA xaxk Hkkjr dh laLd`fr] /keZ vkSj i;kZoj.k dk lcls cM+k izrhd Hkh gSA fganw xaxk eas Luku djus vkSj xaxk ty ds vkpu dks eks{k ls tkMs +rs gSA xaxk ty dk bLrseky fgUnqvksa ds cgqr lkjs ifo= dk;ksZ esa fd;k tkrk gSA dbZ 'kks/kkas ls ;g ckr lkfcr gks pqdh gS fd xaxk ds ty esa chekjh iSnk djus okys thok.kqvksa dks ekjus dh {kerk j[krk gSA xaxk ty esa ;g 'kfDr xaxks=h vkSj fgeky; ls vkrh gAS tc xaxk fgeky; ls uhps mrjrh gS rks bleas dbZ rjg dh feV~Vh dbZ rjg ds [kfut] dbZ rjg dh tM+h cfw V;k¡a fey tkrh gSA yacs le; ls çpfyr bldh 'k)q hdj.k dh ekU;rk dk oKS kfud vk/kkj Hkh gSA oSKkfud ekurs gSa fd bl unh ds ty eas cSDVhfj;kQs st uked fo\"kk.kq gkrs s gSa] tks thok.kqvksa o vU; gkfudkjd lw{ethoksa dks thfor ugha jgus nsrs gSaA unh ds ty eas çk.kok;q ¼v‚Dlhtu½ dh ek=k dks cuk, j[kus dh vlk/kkj.k {kerk gSA fdarq bldk dkj.k vHkh rd vKkr gSA blds dkj.k gStk vkSj ifs p'k tSlh chekfj;k¡ gkus s dk [krjk cgqr gh de gks tkrk gS] ftlls egkekfj;k¡ gkus s dh laHkkouk cM+s Lrj ij Vy tkrh gSA ysfdu xaxk ds rV ij ?kus cls vkS|ksfxd uxjksa ds ukyksa dh xanxh lh/ks xaxk unh eas feyus ls xaxk dk çnw\"k.k fiNys dbZ lkyksa ls Hkkjr ljdkj vkSj turk dh fpra k dk fo\"k; cuk gqvk gSA vkS|ksfxd dpjs ds lkFk&lkFk IykfLVd dpjs dh cgqrk;r us xaxk ty dks Hkh cgs n çnwf\"kr fd;k gSA oSKkfud tkpa ds vuqlkj xaxk dk ck;kys kftdy v‚Dlhtu Lrj 3 fMxhz ¼lkekU;½ ls c<+dj 6 fMxzh gks pqdk gSA xaxk eas 2 djkMs + 90 yk[k yhVj çnwf\"kr dpjk çfrfnu fxj jgk gSA fo'o cSad fjiksVZ ds vuqlkj mÙkj&çns'k dh 12 çfr'kr chekfj;kas dh otg çnwf\"kr xaxk ty gSA ;g ?kksj fpUruh; gS fd xaxk&ty u Luku ds ;kXs ; jgk] u ihus ds ;kXs ; jgk vkSj u gh flapkbZ ds ;kXs ;A blds vykok ?kVrk ty izokg] ?kVrh ty laxzg.k {kerk vkSj Ikkuh dk ?kVrk Lrj vkt fpark dk fo\"k; cus gq, gaSA gfj}kj ds ckn tks xaxk vki ns[krs gS mleas eyw xaxk ty ugha jg tkrkA gfj}kj ds ikl HkhexkSM+k ls vkSj mlds ckn ujkjS k eas xaxk dk ty fudky fy;k tkrk gSA mlds vkxs tks xaxk jg tkrh gS mleas mldh lgk;d ufn;kas] ukykas dk ikuh vkSj Hkwty gh jg tkrk gSA vyduank vkSj HkkxhjFkh uked tks nks ufn;k¡ nsoiz;kx vkdj thounkf;uh xxa k curh gaSA mlh nsounh dh gR;k dsoy Ms<+ lkS fdykes hVj vkxs gfj}kj esa ekuo dj nsrk gSA xaxk dh ifo=rk vkSj vPNkb;ka gh mldh nq'eu cu xbZ gSaA xaxk ds cfs lu eas cls 40 djkMs + ls vf/kd ykxs ksa ds thou ij mldk vlj iM+rk gSA blds vykok ;g ehBs ikuh MkWfYQu lfgr 140 ls T;knk eNfy;kas dk ?kj Hkh gSA 10 djkMs + ls vf/kd ykxs ihus vkSj flapkbZ ds ikuh ds fy, ijw h rjg ls xaxk vkSj bldh lgk;d ufn;ksa ij fuHkZj gSA yksxkas dh ukle>h vkSj xSj ftEesnkjkuk joS;s dh otg ls thounkf;uh dqN {k=s ksa eas ^thou ysus^ okyh cu xbZ gAS unh esa yxkrkj c<+rs iznw\"k.k dh otg ls dqN LFkkukas ij rks bldk ty vkpeu djus yk;d Hkh ugh cpk gSA ;g unh /kkfeZd vuq\"Bkukas ds vif'k\"V]

ISSN 2454-2725 48 vkS|ksfxd dpjs vkSj 'kgjkas ls fudyus okys lSdM+ksa ukyksa ls fudyus okyh xanxh us nqfu;k dh lcls ifo= unh dh ;g gkyr dh gSA ,d vuqeku ds eqrkfcd gj jkts xaxk eas 2 vjc yhVj xanxh izokfgr dj nh tkrh gSA xaxk ds fdukjs cls NkVs s&cM+s djhc 100 'kgjkas ds ukyksa dk ikuh fcuk VªhVeasV ds xxa k eas Mky fn;k tkrk gSA 80 Qhlnh dpjk xaxk unh dk lh/ks uxj fuxekas dh ukfy;kas ds tfj;s vkrk gS] tcfd bl unh eas Qsds x, dqy dpjs dk djhc 15 Qhlnh vkS|ksfxd L=ksrkas ls vkrk gSA 12 ls 13 vjc yhVj ty&ey gj fnu xaxk eas Mkyk tkrk gS] blds fdukjs cls 29 ls vf/kd 'kgjka]s 70 dLCkksa vkSj gtkjksa xkaoksa dkA 80 Qhlnh LokLF; leL;k,a vkSj djhc ,d frgkbZ ekSrs Hkkjr eas tytfur chekfj;kas ds dkj.k gksrh gSaA ty inz w\"k.k ds dkj.k gStk] VkbQkbM] gSisVkbfVl] ihfy;k vkSj vehch; ifs p'k tSlh chekfj;kas esa iznwf\"kr ikuh dh vge Hkwfedk jgrh gSA bl otg ls ns'k dh bl lcls cM+h unh dk ikuh ihuk rks nwj Luku djus yk;d Hkh ugh cpk gSA oLrqr% xaxk ds ijkHko dk vFkZ gkxs k] gekjh lepw h lH;rk dk varA xaxk esa c<+rs çnw\"k.k ij fu;a=.k ikus ds fy, ?kfM+;kykas dh enn yh tk jgh gSA 'kgjksa dh xanxh dks lkQ djus ds fy, la;=a ksa dks yxk;k tk jgk gS vkSj m|kxs ksa ds dpjksa dks blesa fxjus ls jksdus ds fy, dkuwu cus gSaA ;wih, ljdkj us xaxk dks 2009 eas jk\"Vªh; unh rks ?kksf\"kr dj fn;k] ij xaxk vfojy jgus ij gh fueZy gkxs hA xaxk ,D'ku Iyku o jk\"Vªh; unh laj{k.k ;kts uk Hkh ykxw dh xbZ gSaA gkykafd bldh lQyrk ij ç'ufpà Hkh yxk, tkrs jgs gSaA turk Hkh bl fo\"k; eas tkx`r gqbZ gSA blds lkFk gh /kkfeZd Hkkouk,¡ vkgr u gkas blds Hkh ç;Ru fd, tk jgs gSaA bruk lcdqN gkus s ds ckotnw xaxk ds vfLrRo ij ladV ds ckny Nk, gq, gSaA 2007 dh ,d la;qä jk\"Vª fjiksVZ ds vuqlkj fgeky; ij fLFkr xaxk dh tykiwfrZ djus okys fgeun dh 2030 rd lekIr gkus s dh laHkkouk gSA blds ckn unh dk cgko ekulwu ij vkfJr gkds j ekSleh gh jg tk,xkA laizx ljdkj us xaxk] ;equk] xksnkojh lfgr fofHkUu ufn;ksa ds laj{k.k ij nl lky esa 2607 djksM+ :Ik;s [kpZ fd,A ckotwn blds bu ufn;ksa eas vkt Hkh iznw\"k.k dk Lrj fpra ktud gSA Ikz/kkuea=h ujasnz eksnh us xaxk lfgr vU; dbZ ufn;kas dh lQkbZ dks viuh ljdkj dh izkFkfedrkvkas eas j[kk gSA blds rgr vyx ea=ky; dk xBu Hkh fd;k x;k gSA e=a ky; us xaxk dks vfojy vkSj fueZy cukus ds fy, lfpokas dh lfefr cukdj bldk [kkdk rS;kj djuk 'k#q dj fn;k gAS gkykfa d fiNyh ljdkj Hkh xaxk lfgr ns'k dh vU; ufn;ksa dh lQkbZ ij dke djrh jgh gSA xaxk dks yds j reke dok;nsa py jgh gSa] ij ;g cgs n t:jh gS fd xaxk lQkbZ vfHk;ku ij gks jgs [kpZ dh ekWuhfVjax gks vkSj tckonsgh r; gkAs ekWuhfVfjax lfefr eas rduhdh fo'ks\"kK j[ks tk,a rks cgs rj gksxkA vkt flQZ inz w\"k.k fu;a=.k ij Qksdl djus ds ctk; xaxk dh leL;k dks lexz :Ik eas ns[ks tkus dh t:jr gSA xaxk dh vfojy /kkjk esa vkbZ :dkoV Hkh bldh ekStwnk fLFkfr ds fy, mRrjnk;h gSA bl unh ij cus fctyh mRiknu dsna z vkSj cka/k bldh /kkjk dks jkds rs gSA bldk lh/kk&lh/kk vlj unh ds tyh; thou ij iM+rk gSA xaxk eas cM+s cka¡/kksa ds fuekZ.k ij jkds yxkus ds lkFk&lkFk ikoj IykVa ds fy, NksVs ck¡a/k eq[; L=ksr ds cxy eas cuk;k tk,aA Hkwty&Lrj laj{k.k dh O;oLFkk] Ok\"kkZ ty laj{k.k dk dM+kbZ ls ikyu ,oa oSdfYid fctyh mRiknu dks viukdj Hkh xaxk o vU; ufn;ksa dk izokg c<+k;k tk ldrk gSA xaxk ek= ,d unh ugha] ek¡ gSA ;g gekjh laLd`fr vkSj lH;rk dh vfojy/kkjk gS] tks vuardky ls ;gk¡ ds fpra u vkSj psruk dks moZjk 'kfDr ls Hkjrh jghA chp ds dky [kMa eas mlds lkFk gqbZ NsM+NkM+ ds dkj.k gh ek¡a xxa k dk og fnO; izokg vo#) gqvkA;fn dfBu ifjJe vkSj lgh j.kuhfr ds lkFk xxa k dks lkQ djus dk iz;Ru fd;k tk, rks ;g dk;Z vlaHko Hkh ugha gSA bl dk;Z ds fy, ,d nh?kZdkfyd j.kuhfr cukus dh t:jr gSA tu&lgHkkfxrk dks Hkh utjvankt ugha fd;k tk ldrk gSA blds fy, O;kid tkx:drk vfHk;ku pykus dh t:jr gSA bl egku dk;Z dks Hkz\"Vkpkj ls eqDr djuk Hkh ,d dfBu pqukrS h gkxs h] D;kasfd dbZ ckj ns[kus eas vk;k gS fd ,ls s dk;Z Hkz\"Vkpkj ds f'kdkj gkus s ds dkj.k chp eas gh cna gks tkrs gSA ;fn nh?kdZ kfyd j.kuhfr ij lgh <ax ls dk;kZUo;u fd;k x;k rks og fnu nwj ugha tc xaxk fQj ls vius xkSjo dks izkIr djsxh vkSj djkMs +ksa ykxs ksa ds fy, okLro esa eks{knkf;uh cu tk,xhA

ISSN 2454-2725 49 funs'kd Mkd los k,¡] jktLFkku if'peh {ks=] tk/s kiqj &342001 ek0s &09413666599 bZ&esy% [email protected] https://www.facebook.com/krishnakumaryadav1977

ISSN 2454-2725 50 euh’k [kkjh bZ esy – [email protected] /keZ vkSj fopkj/kkjk ds leku gh ^ty* esa og “kfDr gS tks cM+s tu lewg dks LFkkfir ;k foLFkkfir dj ldrk gS A ekuo lH;rk ds “kq:vkr ls gh ekuo] ty lalk/kuks ds fudV gh clrs FksA ge vius pkjksa vkSj ut+j mBkdj ns[ks rks ik,Waxs & fd gekjs pkjksa vksj vuUr tyjkf”k gS A rkykc ] iks[kj ] >hy ] unh vkSj leqnz lc ikuh & gh &ikuh gSA ysfdu okLrfodrk rks ;g gS fd ;g lkjk ikuh /kjrh ds izR;sd vkneh dh I;kl cq>kus ds fy, i;kZIr ugh gS A gekjs ihus yk;d ehBk ikuh lkjs ikuh dk ceqf”kdy 0.8% izfr”kr gS vkSj ;g lHkh ds fy, i;kZIr ugh gS A MkD;wesaVjh fQYe % & vk/kqfud flusek ds izpyu ds lkFk gh MkD;weasVjh fQYe Hkh viuk LFkku cukrh vkSj izlkfjr djrh jgh gS A fQYesa ,d l”kDr ek/;e gS vkSj MkD;ew saVjh fQYe fuekZrk bl ek/;e dk iz;ksx djrs gq, lkekftd eqnznksa vkSj fo’k;ksa dk fp=.k dj jgsa gS A dqN fQYe fo”ks’kK dk ekuuk gS fd MkD;wesaVjh fQYe lR; o okLrfod ?kVuk dk fp=.k djrh gS A dqN fo}ku bl dFku ls fHkUu dgrs gS fd bl ckr dk dqN izHkko ugh gksrk fd MkD;wesaVjh fQYe fdruh lR; o okLrfodrk ij vk/kkfjr gS ;k fuekZrk D;k fpf=r djuk pkgrk gS A MkD;wesaVjh fQYe rks lnSo okLrfodrk dk fuekZ.k djrh gS A ikuh dk xgjkrk ladV ,d ,slh gh okLrfodrk gS ftldks vusd dks.kksa ls MkD;wesaVjh ds n~okjk fQYekafdr fd;k x;k gS buds foosd iw.kZ v?;;u ls bl ladV dks le>us o mlls mcjus esa vo”; gh lQyrk gkfly gksxh A fo”o ds vusd dksuksa esa fufeZr dqN MkD;wesaVjh fQYe dk fo”ys’k.k bl lUnHkZ esa vo”; djuk pkfg, & (1) i;kZoj.k guu o ljdkjh Hkz’Vkpkj dks n”kkZrh 2009 esa vkbZ ^vcsyk fxzYyksa * (Abuella grillo) ,d izHkko”kkyh NksVh fQYe gSA ;g fQYe cksyhfo;k ds ,d dkYifud ik= ij vk/kkfjr fQYe gS A ysfdu cksyhfo;k dh ikuh ij vk/kkfjr Hkz’V jktuhfr dh iksy [kksyus esa lQy gS A cksyhfo;k esa lu~ 2000 esa ikuh ds uhftdj.k dks dkuwuh :i nsus ds ckn mBs tuvkdzks”k ] ikuh ds vke turk ds nk;js ls ckgj gksrs ewY; us ogkWa dh turk dk thou nqLokj cuk fn;k Fkk A iznZ”kudkfj;ksa ds nCkko esa rRdkyhu jk’Vzifr dks R;kxi= nsuk iM+k A


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