Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 1
Impact Factor: 1.888 [GIF] (बहभु ार्ी अतं रराष्ट्रीय माविक पविकtा)u—fr Jankriti बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका संपादन मण्डल ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com Multidisciplinary International Magazine ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 www.jaपnरkाrमitरi्pश मatंडrलika.com Volumeडॉ5. ,सIुधssाuओe म60ढ, Aगंी रpाri(अl 2म0रे र2क0ा),प्रो. सरन घई (कनाडा), प्रो. अननल जनविजय वर्ष 5, अंक 60.अप्रैल 2020 (रूस), प्रो. राज ह रामन (मॉर शस), प्रो. उदयनारायण ससहीं (कोलकाता), स्ि. प्रो. • Online Journal ओमकार कौल (ददल्ल ), प्रो. चौथीराम यादि (उत्तर प्रदेश), डॉ. हर श निल • Indexed Journal (ददल्ल ), डॉ. हर श अरोड़ा (ददल्ल ), डॉ. रमा (ददल्ल ), डॉ. प्रेम जन्मेजय (ददल्ल ), • Refereed Journal प्रो.जिर मल पारख (ददल्ल ), पींकज चतुिदे (मध्य प्रदेश), प्रो. रामशरण जोशी • Peer Reviewed Journal (ददल्ल ),डॉ. दगु ाा प्रसाद अग्रिाल (राजस्थान), पलाश बिस्िास (कोलकाता), डॉ. कै लाश कु मार समश्रा (ददल्ल ), प्रो. शलै ेन्र कु मार शमाा (उज्जैन), ओम पाररक (कोलकाता), प्रो. विजय कौल (जम्मू ), प्रो. महेश आनदीं (ददल्ल ), ननसार अल (छत्तीसगढ़), संपादक कु मार गौरि समश्रा सह-संपादक जैनने ्र (ददल्ल ), कविता ससहंी चौहान (मध्य प्रदेश) कला संपादक विभा परमार सपं ादन मडं ल प्रो. कवपल कु मार (ददल्ल ), डॉ. नामदेि (ददल्ल ), डॉ. पुनीत बिसाररया (उत्तर प्रदेश), डॉ. जजतंेर श्रीिास्ति (ददल्ल ), डॉ. प्रज्ञा (ददल्ल ), डॉ. रूपा ससहीं (राजस्थान), स्ि. तेजजदंी र गगन (रायपुर), विमलशे बिपाठी (कोलकाता), शंकी र नाथ नतिार (बिपरु ा), िी.एस. समरगे (महाराष्ट्र), िीणा भादिया (ददल्ल ), िैभि ससहंी (ददल्ल ), रचना ससहीं (ददल्ल ), शैलेन्र कु मार शकु ्ला (उत्तर प्रदेश), सजीं य शेफडा (ददल्ल ), दानी कमाका ार (कोलकाता), राके श कु मार (ददल्ल ), ज्ञान प्रकाश (ददल्ल ), प्रद प बिपाठी (महाराष्ट्र), उमेश चंरी ससरिार (उत्तर प्रदेश), चन्दन कु मार (गोिा) सहयोगी गीता पींडडत (ददल्ल ) ननलय उपाध्याय (मीिंु ई, महाराष्ट्र) मनु ्ना कु मार पाण्डये (ददल्ल ) अविचल गौतम (िधा,ा महाराष्ट्र) महंेर प्रजापनत (उत्तर प्रदेश) विदेर् प्रतितनधि िंपकष डॉ. कु मार गौरव वमश्रा, G-2, बागशे ्वरी अपार्षमेर्, आयापष रु ी, डॉ. अनीता कपरू (कै सलफोननया ा) डॉ. सशप्रा सशल्पी (जमना ी) रातू रोड़, राचं ी, झारखडं , भारत राके श माथरु (लन्दन) 8805408656 मीना चौपड़ा (िोरींिो, कै नडे ा) पजू ा अननल (स्पने ) वेबिाई-www.jankriti.com अरुण प्रकाश समश्र (स्लोिने नया) ईमेल- [email protected] ओल्या गपोनिा (रसशया) सोहन राह (यनू ाइिेड ककंी गडम) Vol. 5, Issue 60, April 2020 2 परू ्णमा ा िमना (यएू ई) डॉ. गगंी ा प्रसाद 'गुणशखे र' (चीन) Ridma Nishadinee Lansakara, University of Colombo, Sri Lanka Ekवatरe्rष i5na, अKoकंstin6a0, S,aअintप्रPैलete2rs0bu2r0g University ISSN: 2454-2725 Anna Chelnokova, Saint Petersburg University सोननया तनजे ा, दहदंी प्राध्यावपका, स्िेनफ़डा विश्िविद्यालय, के सलफोननया ा डॉ. इदीं ु चौहान, संीयोजक, दहदीं स्िडी प्रोग्राम, यूननिससिा ऑफ साउथ पेससकफक, कफ़जी
Jankritiंिपादक की कलम ेि.... tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com आप िभी पाठकों के िमक्ष जनकृ वत का अप्रैल अकं वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 प्रस्ततु ह।ै प्रस्ततु अंक में िावहत्य, कला, पिकाररता, अनवु ाद इत्यावद क्षिे िे लखे , शोध आलेख प्रकावशत वकया जा रहा है िाथ ही कलािंवाद पविका का वकए गए हैं। पविका के प्रारूप में आवं शक बदलाव करते प्रकाशन भी वकया जा रहा ह।ै जनकृ वत के अंतगषत हुए इि अकं में के वल लेख और शोध आलखे को भववष्ट्य में दशे की वववभन्न भार्ाओं एवं बोवलयों में स्थान वदया गया ह,ै जबवक पविका मंे िावहवत्यक उपक्रम प्रारंभ करने की योजना है इि कड़ी में जनकृ वत रचनाएँ भी प्रकावशत होती ह।ै पंजाबी एवं अन्य भार्ाओं पर कायष जारी ह।ै जनकृ वत वतषमान मंे ववश्व के दि िे अवधक ररिचष इडं ेक्ि जनकृ वत के द्वारा लेखकों को एक मचं पर लाने के उद्दशे ्य में शावमल ह।ै इिके अवतररक्त जनकृ वत की इकाई िे वववभन्न दशे ों की िंस्थाओं के िाथ वमलकर ‘ववश्व ववश्ववहदं ीजन िे ववगत दो वर्ों िे वहन्दी भार्ा िामग्री लखे क मचं ’ के वनमाणष का कायष जारी ह।ै इि मचं मंे का िकं लन वकया जा रहा है िाथ ही प्रवतवदन ववश्व की वववभन्न भार्ाओं के लखे कों, छािों को पविकाओ,ं लखे , रचनाओं का प्रचार-प्रिार वकया शावमल वकया जा रहा। इि मंच के माध्यम िे वैवश्वक जाता ह।ै जनकृ वत की ही एक अन्य इकाई कलािवं ाद स्तर पर िजृ नात्मक कायष वकये जाएँग।े िे कलाजगत की गवतवववधयों को आपके िमक्ष प्रस्ततु धन्यवाद -डॉ. कु मार गौरव वमश्रा वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 3
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com क्रम ववर्य वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 1. प्रमे चदं के उपन्यािों मंे नारी की पाररवाररक वस्थवत लेखक पषृ ्ठ िंख्या का वचिण डॉ. प्रकाश कु मार अग्रवाल 06-12 2. भारत मंे नई कृ वर् प्रणाली के रूप में जवै वक कृ वर् का चन्दन कु मार 13-27 पयावष रण और कृ वर् उत्पादन पर प्रभाव 3. िमकालीन िसं ्कृ वत और स्त्री प्रश्न अचनष ा यादव 28-32 4. िमय िे मठु भड़े :एक िामावजक यथाथष रवव कु मार पाण्डेय 33-38 5. वहदं ी की प्रमखु लघु पविकाओं का िामावजक एवं डॉ. वनवकता जनै 39-56 राजनीवतक हस्तक्षपे Hemanta Rajbanshi 57-64 (1950 िे 1980 के ववशरे ् िंदभष मे)ं Dr. Bairagi Patra 65-70 6. Treatment of Indianness and Indian Lexical Dr. Fthima Jaseena 71-79 Items in the Poetry of Jayanta Mahapatra 7. ATROCITIES&CHALLNGES OF NEW Dr.D.K.Parmar 80-89 GEN 2020-A REFLECTION Dr. A K Jain 90-95 8. SKILLING THE WORKFORCE Mr Nikhar K Pandya 96-106 THROUGH TVET FOR POVERTY Randeep Dhoot ALLEVIATION IN RURAL AREAS 9. Women Human Rights: A Study of डॉ. वनवतन िेठी International and National Perspective 10. डॉ. यायावर के गीतों मंे िामावजक िवं दे ना डॉ. पनू म दवे ी ‘झील अनबझु ी प्याि के िंदभष मंे’ 11. िमकालीन वहन्दी ग़ज़ल मंे िामावजक चेतना वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 4
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com +…. वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 5
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 प्रमे चदं के उपन्यािों मंे नारी की पाररवाररक वस्थवत का वचिण डॉ. प्रकाश कु मार अग्रवाल अविस्र्ंेर् प्रोफे िर, वहदं ी-ववभाग, खड़गपरु कॉलेज, खड़गपरु -721305, प.बं मो.िं- 9932937094 िारांश:- पररवार की िखु - शावं त का आधार स्नेह, िहयोग और िद्भाव ही ह।ै पररवार में इिी वातावरण का िजृ न होता है और गवृ हणी उि वातावरण का वनमाषण करती ह।ै पररवार की आंतररक व्यवस्था का वनयंिक वही ह।ै पररवार का िांस्काररक वातावरण बनाना उिी का दावयत्व ह।ै इिवलए नारी को पररवार का प्राण कहा जाता ह।ै पररवार मंे नारी की भवू मका महत्वपूणष होती ह।ै वकिी भी पररवार को गवत और वदशा दने े में इिके योगदान की अनदखे ी नहीं की जा िकती। कहीं ये आदशष पिु ी के रूप में नजर आती ह,ै तो कहीं आदशष पत्नी और कहीं ममतामयी मां। प्रेमचंद ने अपने उपन्यािों में नारी की इिी पाररवाररक वस्थवत का वचिण वकया ह।ै मलू शब्द:- परोपजीवी, वतरस्कृ त, नगण्य, िवावष धक, स्वत्व। प्रस्तावना:- मनसु ्मवृ त के अनिु ार नारी बचपन िे लेकर मतृ ्यु तक पराधीन ह।ै पररवार मंे नारी की ववववध भवू मकाओं मंे मखु ्य एवं मूल भवू मका पत्नी की होती ह।ै इि भवू मका की िफलता पर ही पररवार का बनना- वबगड़ना वनभरष करता ह।ै पररवार में नारी की दिू री महत्वपणू ष भवू मका माता रूप की है। मां के आचार- ववचार का प्रभाव बच्चों पर पड़ता ह।ै पररवार में नारी का तीिरा महत्वपणू ष रूप कन्या का ह।ै उपयषकु ्त िमस्त रूपों मंे नारी की भवू मका पराधीनता की ही रही ह।ै परंतु पाश्चात्य नारी- आंदोलन िे प्रभाववत होकर भारतीय नारी भी अपनी स्वतंिता के िबं धं में िोचने लगी। ियं कु ्त पररवार मंे स्त्री :- प्रमे चदं िामावजक जीवन के कथाकार थे। डॉ. रामववलाि शमाष ने प्रेमचदं को िमाज को नई वदशा दने े वाले यगु वनमातष ा िावहत्यकार के रूप मंे प्रवतवष्ठत वकया ह।ै प्रमे चंद के िमाज- िधु ार का कंे द्र पररवार ह।ै प्रमे चदं आदशवष ादी थ।े इिवलए परु ाने आदशों को नष्ट वकए वबना नए मलू ्यों को स्थावपत करना चाहते थे। लेवकन वह परु ाने आदशों के अंधभक्त नहीं थे। परु ाने आदशों मंे जो ग्रहण योग्य होता था, उिी का वे िमथषन करते थ।े ... इन अच्छे आदशों में िंयकु ्त पररवार के आदशष को प्रमे चदं अपने दशे के वलए वहतकर िमझते थे और उिे बनाए रखने पर उन्होंने जोर वदया ह।ै ”1 प्रेमचंद यगु में ही िंयकु ्त पररवार र्ूर्ने लगे थे । डॉ. रामववलाि शमाष एवं डॉ. इदं ्रनाथ मदान ने िंयकु ्त पररवार के वछन्न- वभन्न होने की पषृ ्ठभवू म में ववद्यमान कारणों की ववस्ततृ चचाष की ह।ै इन कारणों मंे उन्होंने वस्त्रयों के झगड़ों, ववमाताओं की दषु ्टता, ववधवा- िमस्या, आवथकष ववर्मता आवद को महत्ता प्रदान की ह।ै प्रमे चदं के ‘रंगभवू म’, ‘कमषभवू म’, ‘वनमलष ा’ आवद उपन्यािों मंे िंयकु ्त पररवार की इन्हीं उपयकषु ्त दशाओं को दखे ा जा िकता ह।ै वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 6
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 ववधवा के रूप मंे स्त्री:- हालांवक ववधवाओं की िमस्या एक िामावजक िमस्या है लेवकन क्योंवक ववधवा पररवार मंे रहती है “तो इिके वलए आवथकष स्वतंिता की आवश्यकता होती ह।ै वह बैठे-बठै े खाती है इिवलए िबको वह भार मालमू होती है और लोग उिे तंग करते ह।ंै ”2 प्रमे चदं के उपन्यािों मंे अनके ऐिी ववधवाएँ ह,ंै जो परोपजीवी बनकर दयनीय जीवन जीने को बाध्य ह।ैं ‘वनमलष ा’ उपन्याि मंे कल्याणी, वनमलष ा, रुक्मणी, िधु ा जिै ी नाररयां ववधवा जीवन का भार ढोने को वववश ह।ैं डॉ. महदें ्र भर्नागर के अनिु ार ‘‘प्रवतज्ञा’ मंे ववधवा िमस्या प्रमखु ह।ै ‘वरदान’ व ‘वनमलष ा’ मंे गौण और ‘कमषभवू म’ में आवथषक दृवष्ट िे िंपन्न ववधवा होने के कारण नगण्य ही ह।ै ”3 प्रेमचंद के उपन्यािों की ववधवा नाररयों मंे िवावष धक दयनीय वस्थवत ‘वनमषला’ में तोताराम की ववधवा बहन रुवक्मणी की ह।ै वह पाररवाररक तथा िामावजक दोनों धरातलों पर दीन- हीन उपवे क्षत एवं वतरस्कृ त जीवन जीने को बाध्य ह।ै ‘गबन’ उपन्याि में पवत की मतृ ्यु के बाद ववधवा रतन अपने भतीजे मवणभरू ्ण द्वारा शोवर्त होती ह।ै आवथकष कवठनाइयों के कारण वह रोर्ी- कपड़े तक के वलए मोहताज हो जाती ह।ै वह िमाज की इि व्यवस्था के प्रवत अपना आक्रोश व्यक्त करती हुई कहती ह-ै “न जाने वकि पापी ने यह काननू बनाया वक पवत के मरते ही वहदं ू नारी इि प्रकार स्वत्व ववं चत हो जाती ह।ै ”4 पवत की िंपवत्त पर कब्जा कर लेने वाले स्वाथी ररश्तदे ारों को वह वनगल जाने वाला जंतु कहती है। वह इतनी स्वावभमावननी है वक पवत की िपं वत्त हड़प करनवे ाले मवणभरू ्ण िे कहती ह।ै “मंै अपनी मयाषदा की रक्षा आप कर िकती हू,ं तमु ्हारी मदद की जरूरत नहीं ह…ै िंिार में हजारों ववधवाएँ ह,ैं जो महे नत- मजदरू ी करके अपना वनवाषह कर रही ह।ंै मैं भी उिी तरह मजदरू ी करंूगी। और अगर न कर िकंू गी तो वकिी गड्ढे मंे डूब मरंूगी। जो अपना परे ् न पाल िके उिे जीते रहने का दिू रों का बोझ बनने का कोई हक नहीं।”5 रतन का उपयषकु ्त कथन नारी के जागतृ होने का िकं े त दते ा ह।ै आज तक कठपतु ली की तरह दिू रों के इशारों पर नाचने वाली नारी अब अपने स्वत्व के प्रवत अवधकारों के प्रवत जागतृ हो गई ह।ै अपनी परंपरागत वस्थवत के प्रवत अपना ववद्रोह प्रकर् करती ह।ै िंयकु ्त पररवार मंे नारी की वस्थवत की वदे ना को प्रेमचंद ने रतन के ववद्रोही मन िे इि प्रकार व्यक्त कराया है- “अगर मेरी जबु ान में इतनी ताकत होती वक िारे दशे मंे उिकी आवाज पहुचं ती, तो मंै िब वस्त्रयों िे कहती, बवहनों वकिी िवम्मवलत पररवार मंे वववाह न करना और अगर करना तो जब तक अपना घर अलग न बना लो, चनै की नींद न िोना। यह मत िमझो वक तमु ्हारे पवत के पीछे उि घर मंे तमु ्हारा मान के िाथ पालन होगा। अगर तमु ्हारे परु ुर् ने कोई तरीका नहीं छोड़ा, तो तमु अके ली रहो चाहे पररवार मंे, एक ही बात ह।ै तमु अपमान और मजरू ी िे नहीं बच िकती। अगर तमु ्हारे परु ुर् ने कु छ छोड़ा है तो अके ली रहकर भोग िकती हो, पररवार मंे रहकर तमु ्हंे उििे हाथ धोना पड़ेगा। पररवार तमु ्हारे वलए फू लों की िेज नहीं, कारं ्ो की शैय्या ह।ै तमु ्हंे पार लगाने वाली नौका नहीं, तमु ्हें वनगल जानेवाला जंतु ह।ै ”6 ‘प्रवतज्ञा’ की पणू ाष ऐिी नारी है जो यवु ावस्था मंे ही ववधवा बन जाती ह।ै पणू ाष का पवत गगं ा स्नान करते िमय पानी मंे डूबकर मर जाता ह।ै पणू ाष को उिके पवत के वमि एवं पड़ोिी कमलाप्रिाद के घर आश्रय वमलता ह।ै कमलाप्रिाद के मन मंे पणू ाष के प्रवत वािना का भाव जागता ह।ै और वह उिे अपनी अंकशावयनी बनाना चाहता ह।ै पणू ाष इिका ववरोध करती वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 7
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 हईु कहती ह-ै “अब जाने भी दो बाबजू ी, क्यों मेरा जीवन भ्रष्ट करते हो? तमु मदष हो, तमु ्हारे वलए तो िब माफ़ है। मंै औरत ह,ूं कहां जाऊं गी? डूब मरने के विवाय मरे े वलए कोई रास्ता न रह जाएगा।”7 ‘वनमषला’ की िधु ा अपने पवत की कामकु कु चषे ्टाओं िे वचढ़कर उिे इतना फर्कारती है वक वह आत्महत्या कर लेता ह।ै अपने हाथ िे अपना िौभाग्य विदं रू पोंछ लने े वाली िधु ा जीवन के भयानकतम वेदना के क्षणों में भी ववचवलत नहीं होती, क्योंवक वह नारी के वयै वक्तक, पाररवाररक और िामावजक दावयत्वों के प्रवत पणू ष जागरूक रहती है और उिका वनवाहष करती ह।ै कामकु पवत के स्थायी- ववछोह की वस्थवत मंे उिका एक ही उत्तर है- “ऐिे िौभाग्य िे वैधव्य को मैं बरु ा नहीं िमझती।”8 प्रेमचदं िे पवू ष के उपन्यािों मंे नारी ववधवा होना अपना दभु ाषग्य िमझती थी। अपने पवू ष जन्म का फल मानती थी। इिवलए वे अपने आपको दोर्ी िमझकर अपने को ही कोिती रहती थी। हीनता की भावना के कारण पररवार में दािी जिै ा व्यवहार वमलने पर भी मंहु न खोलती थी। परंतु प्रेमचदं के उपन्याि की ववधवा अपनी वस्थवत के वलए परू ी तरह भाग्य को दोर्ी नहीं ठहराती, बवल्क कहीं-कहीं तो उिके अदं र ववद्रोह की भी भावना ह।ै प्रमे चदं को ववधवा के प्रवत परू ी िहानभु वू त थी। वे ववधवा- वववाह के भी पक्षधर थ।े इि िंदभष में डॉ. शंभनु ाथ कहते ह-ैं “प्रवतज्ञा के परु ाने औपन्याविक रूप ‘प्रेमा’ मंे बाबू अमतृ राय ने ववधवा पणू ाष िे वववाह का वनश्चय वकया था, इििे िमाज में खलबली मच गई थी। वह प्रगवतशील कदम था, लवे कन पता नहीं, प्रेमचंद ने ‘प्रवतज्ञा’ मंे यह कदम क्यों वापि ले वलया।”9 िच तो यह है वक ‘प्रवतज्ञा’ में प्रेमचदं ने ववधवा- वववाह वाली अपनी िोच िे पैर पीछे नहीं खींचा है बवल्क एक वकै वल्पक िमाधान प्रस्ततु वकया ह।ै इि उपन्याि में ववधवा- वववाह को अंवतम ववकल्प के रूप में नहीं बवल्क ववधवा की इच्छा एवं रूवच के िापेक्ष दशायष ा गया है। कु ल वमलाकर “प्रमे चदं ने ववधवा जीवन की वववशताओ,ं उन पर होने वाले अत्याचार, उनके वलए िम्मानपणू ष वातावरण बनाने के उपाय का वणनष अपनी कृ वतयों में वकया ह।ै ववधवा के प्रवत उनके ह्रदय में जो ददष था वहीं जगह-जगह ज्वालामय शब्दों मंे अंवकत हो गया ह।ै ”10 माता के रूप मंे स्त्री:- पररवार मंे नारी का िबिे महत्वपणू ष रूप माता का होता है और “प्रमे चंद के कथा- िावहत्य मंे वचवित नारी के वजि रूप को आलोचकों ने िवावष धक महत्वपणू ष एवं गररमामय माना, वह है उिका माततृ ्व रूप।”11 प्रमे चदं ने भी नारी को प्रथमत: माता माना ह।ै उिके उपरातं वह जो कु छ ह,ै वह िब माततृ ्व का उपक्रम माि ह।ै वे कहते ह-ंै “िंिार में जो कु छ है िब वमथ्या ह,ै वनस्िार ह,ै मातपृ ्रेम ही ित्य ह,ै अक्षय ह,ै अनश्वर है… माता का हृदय दया का िागर होता ह।ै उिे जलाओ तो भी दया की ही िगु धं वनकलती ह,ै पीिो तो भी दया का ही रि वनकलता ह।ै ”12 माता के कई रूप होते ह।ंै प्रमे चदं के उपन्यािों में माता के वववभन्न रूपों के दशनष होते ह,ंै यथा- ममतामयी माता:- माता का यही रूप िबिे महान ह।ै ‘गोदान’ में प्रेमचदं ने वलखा ह-ै “माततृ ्व ही ििं ार की िबिे बड़ी िाधना ह,ै िबिे बड़ी तपस्या ह,ै िबिे बड़ा त्याग और िबिे महान ववजय ह।ै एक शब्द मंे उिे लय कहूगं ा- जीवन का, व्यवक्तत्व का और नारीत्व का भी।”13 वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 8
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 ‘वरदान’ की िवु ामा अनके मन्नतों के बाद एक पिु की माता बनती ह,ै परंतु दभु ाषग्यवश छह वर्ों बाद िवु ामा के पवत िाधु बनकर कहीं चले गए। िवु ामा पर ववपवत्तयों का पहाड़ र्ूर् पड़ा, लेवकन उिने िारी ववपवत्तयों का डर्कर मकु ाबला वकया, परंतु अपने पिु पर ववपवत्तयों की आंच न पड़ने दने े का िंकल्प वकया-“… इि िौंदयष और िकु ु मारता की मवू तष पर अभी िे दररद्रता की आपवत्तयां आ जाएंगी। नहीं- नहीं मंै स्वयं िब भोग लंगू ी, परंतु अपने प्राण- प्यारे पिु पर आपवत्त की परछाई तक न पड़ने दगंू ी।”14 ‘वनमषला’ उपन्याि की नावयका अत्यंत दवु खयारी नारी ह।ै अपने वपता के उम्र के व्यवक्त को पवत के रूप मंे पाकर उिने वनयवत के आगे िर झकु ा वलया ह।ै वह एक पिु ी की माता बनती ह।ै हालांवक पिु ी उिके वलए अयावचत और अवावं छत ितं ान ही ह,ै वफर भी कन्या के जन्म लने े िे वह प्रिन्न ह।ै घर की प्रवतकू ल पररवस्थवतयों, दखु ों, कष्टों मंे वह बावलका को हृदय िे लगाकर वचतं ामकु ्त हो जाती ह।ै उिके मन में ममता का िागर वहलोरें मारने लगता ह।ै उि दवु खया की प्रिन्नता को प्रमे चदं ने इन शब्दों मंे व्यक्त वकया ह-ै “वशशु के ववकवित और प्रदीप्त निे ों को दखे कर उिका हृदय प्रफु वल्लत हो रहा था। माततृ ्व के इि उद्गार में िारे क्लशे ववहीन हो गए… माता का हृदय प्रेम मंे इतना अनरु क्त रहता है वक भववष्ट्य की वचंता और बाधाएं उिे जरा भी भयभीत नहीं करतीं। उिे अपने अंतःकरण में एक अलौवकक शवक्त का अनभु व होता है जो बाधाओं को उिके िामने परास्त कर दते ी ह।ै ”15 ‘रंगभवू म’ उपन्याि में िोवफया की मां िोवफया िे इि कारण रुष्ट है वक िोवफया को अपने धमष पर आस्था नहीं ह।ै वफर भी जब िोवफया बीमार पड़ती है तो लोकाचार के चलते वह अपने पिु के िाथ ववनय के घर उिे दखे ने जाती ह।ै वह यह वनश्चय करके जाती है वक वह िोवफया िे बात नहीं करेगी और दरू ही खड़ी रहगे ी, वकं तु जब वह िोवफया के मरु झाए चेहरे को दखे ती ह,ै तो उिका माततृ ्व उमड़ पड़ता ह।ै लेखक के शब्दों मंे- “उिका मात-ृ स्नहे उबल पड़ा, आखं ों िे आंिू बहने लग।े इि प्रवाह मंे िोवफया का मनोमावलन्य बह गया। उिने दोनों हाथ माता के गदनष मंे डाल वदए।”16 ‘गोदान’ की धवनया भी त्याग और ममता की िाकार प्रवतमा ह।ै उिने न के वल अपनी िंतानों पर ममता लरु ्ाई है बवल्क दवे र, दवे रानी यहां तक वक वनम्न जावत की विवलया को भी अपने हृदय िे लगाया ह।ै ववमाता:- ववमाता शब्द िनु ते ही दषु ्ट माता का अक्ि मन में उभरता ह।ै इिकी मखु ्य वजह यह धारणा है वक ववमाता कभी स्वमाता नहीं होती। लवे कन प्रमे चदं ने इि धारणा के ववपरीत अपने अवधकाशं उपन्यािों में ववमाता के मागं वलक रूप का ही वचिण वकया ह।ै बवल्क कहीं- कहीं उनके द्वारा ववणषत ववमाता स्वमाता िे भी बढ़कर ममतामयी विद्ध होती ह।ै इिका िबिे अच्छा उदाहरण है ‘वनमलष ा’ की ववमाता वनमषला। ववमाता वनमषला के िबं ंध में डॉ. गीतालाल कहती हंै वक “वह ममता का मानो अजस्र स्रोत है, उिका वनश्छल, िहज, माततृ ्व रूप स्वयं उिके पिु वियाराम की बालबवु द्ध को भी अचरज में डाल दते ा ह।ै शरारत के वलए िजा पाना तो उिकी िमझ मंे आता था, लेवकन मार खाने पर चमु कारा जाना उिकी िमझ में न आता था।”17 ‘प्रेमाश्रम’ की श्रद्धा वन:िंतान ह।ै वह अपने दवे र के मातहृ ीन पिु मायाशंकर को अपने पिु के िमान प्यार करती ह।ै वह उिके खाने-पीने का इतना ध्यान रखती है वक मायाशंकर को भी यह याद नहीं रहता वक उिकी माता जीववत नहीं ह।ै वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 9
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 ‘कायाकल्प’ उपन्याि में वागीश्वरी और मनोरमा ऐिी ही माताएं ह,ंै वजन्होंने अपनी कोखजायी ितं ान न होते हएु भी परायी िंतान को माततृ ्व- वात्िल्य प्रदान वकया। ‘गबन’ की जग्गू के हृदय मंे भी वात्िल्य की अजस्र धारा प्रवावहत होती रहती ह।ै इिी वजह िे जग्गो के प्रवत रमानाथ के मन में अिीम श्रद्धा जागतृ होती ह।ै ‘गोदान’ की मालती झवु नया के चेचकग्रस्त पिु मंगल की वजतनी िवे ा करती ह,ै उतनी झवु नया भी नहीं कर पाती। पराये बालक के प्रवत मालती की ऐिी ममता को दखे कर प्रो. मेहता िोचते ह-ंै “मालती के वल रमणी नहीं, माता भी है और ऐिी- वैिी माता नहीं िच्चे अथों में दवे ी माता और जीवन दने े वाली जो पराये बालक को भी अपना िमझ िकती ह।ै जैिे उिने मातापन का िदवै िचं न वकया हो और आज दोनों हाथों िे लरु ्ा रही हो। उिके अगं - अंग िे मातापन फू र् पड़ता था, मानो यही उिका यथाथष रूप हो।”18 ववमाता के अमांगवलक रूप का भी वचिण प्रेमचंद के उपन्यािों मंे वमलता ह।ै डॉ. रामववलाि शमाष रंगभवू म एवं कमषभवू म की आलोचना मंे ववमाता की अमागं वलक छवव का उद्घार्न करते हएु वलखते ह-ंै “रंगभवू म उपन्याि में तावहर अली और उिकी दो ववमाताओं के िघं र्ष का कारण है ववमाताओं की धतू तष ा और तावहरअली का िीधापन।”19 कमषभवू म में भी एक स्थान पर इिी बात का िकं े त वमलता है वक “ववमाता के आने िे पररवार में कै िी- कै िी गवु त्थयाँ पड़ जाती ह,ैं वजनका मनषु्ट्य के चररि पर भी गहरा प्रभाव पड़ता ह।ै जिै े- अमरकातं तथा उिकी नई मां का द्वंद्व, जो आगे चलकर वपता के ववरोध का भी कारण बनता ह।ै ”20 पत्नी के रूप में स्त्री:- पररवार मंे माता के बाद नारी का प्रमखु स्थान पत्नी का ही होता ह।ै डॉ. रामववलाि शमाष ने वववाह के स्वरूप, महत्व एवं आदशष के िदं भष मंे कहा ह-ै “वववाह का बधं न स्त्री और परु ुर् दोनों के वलए पववि है और उन्हें इनका पालन करना चावहए। प्रमे चंद के इि आदशष में भारतीयता की परू ी छाप ह।ै ”21 आदशष पत्नी के रूप में वजन नारी पािों का वचिण प्रेमचंद ने वकया है उनमें प्रमुख ह-ंै धवनया, जालपा, िमु न, िखु दा, जग्गो आवद वकं तु इनमंे धवनया िवाषवधक चवचतष ह।ै डॉ. रामववलाि शमा,ष हिं राज रहबर आवद आलोचकों ने धवनया की चाररविक ववशेर्ताओंकी अनेक कोणों िे िमीक्षा की। डॉ. विलोकीनारायण दीवक्षत ऐिी िवगष ुण िंपन्न नारी को आदशष पत्नी ही नहीं, वरन् िच्ची िखा एवं िच्ची मंिी िमझते ह-ंै “वे घर की िीमा में कु शल पत्नी ह,ै कृ र्क जीवन मंे िहचरी ह,ै आपवत्त के क्षणों मंे कु शलतापवू षक मवं ित्व करती ह,ै वनराशा के क्षणों मंे शवक्त और प्रेरणा की ववद्यतु है और प्रत्यके पग पर पवत की छाया ह।ै ”22 ‘गबन’ की जालपा एक आदशष पत्नी का पररचय दते ी हुई अपने पवत को िन्मागष पर ले आती ह।ै ‘कमभष वू म’ की िखु दा उपवे क्षता होते हएु भी पवत को अपनी िेवा, िहायता तथा प्रेरणा िे वंवचत नहीं करती। ‘िवे ािदन’ की नावयका िमु न पवतव्रत धमष का पालन करने में िलं ग्न वदखाई दते ी ह।ै लेवकन ‘रंगभवू म’ की इदं ु एक ऐिी आधवु नक नारी के रूप में िामने आती है जो पवतदवे की आज्ञानिु ार विर के बल चलना अपना धमष नहीं िमझती। वह अपने ववद्रोह को इन शब्दों मंे वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 10
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 व्यक्त करती ह-ै “स्त्री का कतषव्य है वक अपने परु ुर् की िहगावमनी बन।े पर प्रश्न यह है वक क्या स्त्री का अपने परु ुर् िे पथृ क कोई अवस्तत्व नहीं ह?ै इिे तो बवु द्ध नहीं स्वीकारती।” यही ववद्रोही भाव ‘मगं लििू ’ की वतब्बी ने इन शब्दों मंे व्यक्त वकया ह-ै “नाररयों मंे पावतव्रत्य इतना अवधक कू र्-कू र्कर भरा है वक उनका अपना व्यवक्तत्व रहा ही नहीं।” बावजदू इनके प्रमे चंद ने अपने उपन्यािों मंे पावतव्रत को नारी- जीवन का परम तत्व माना ह।ै वनष्ट्कर्ष:- वनष्ट्कर्तष ः हम कह िकते हंै वक प्रेमचंद के उपन्यािों में नारी के ववववध रूपों का वचिण ह,ै जिै -े मा,ँ पत्नी, प्रवे मका, वशे ्या, ननद, िमाज-िधु ारक, दशे प्रेमी, आवश्रता, बहन, िौतेली मा,ँ ववधवा आवद। इन ववववध रूपों मंे नारी अपने योगदान को बखबू ी वनभाती ह।ै िदं भ-ष ग्रंथ:- 1. प्रेमचदं : आलोचनात्मक पररचय, डॉ. रामववलाि शमाष,प.ृ 117 2. वही, प.ृ 119 3. िमस्यामलू क उपन्यािकार प्रेमचदं , डॉ. महदें ्र भर्नागर,प.ृ 158 4. गबन, प्रमे चंद, प.ृ 333 5. वही, प.ृ 230 6. वही, प.ृ 266 7. प्रवतज्ञा, प्रेमचंद, प.ृ 25 8. वहदं ी उपन्याि : प्रमे और जीवन, डॉ. शावं त भारद्वाज,प.ृ 108 9. प्रेमचदं का पनु मलषू ्याकं न, डॉ. शम्भनू ाथ, प.ृ 41 10. िमस्यामलू क उपन्यािकार प्रेमचदं , डॉ. महदंे ्र भर्नागर,प.ृ 133 11. पदमु लाल पनु ्नालाल बख्शी,प्रमे चंद और गोकी(िं. शचीरानी गरु ्ूष),प.ृ 94 12. प्रेमचंद और उनका िावहत्य, श्रीमती शीला गपु ्ता, प.ृ 219 13. गोदान, प्रेमचंद, प.ृ 269 14. वरदान,प्रेमचदं , प.ृ 20 15. वनमलष ा,प्रमे चंद, प.ृ 100 16. रंगभवू म, प्रमे चंद, प.ृ 49 17. प्रेमचंद का नारी-वचिण, डॉ. गीतालाल प.ृ 183 18. गोदान, प्रमे चदं , प.ृ 438-439 19. प्रेमचदं – आलोचनात्मक पररचय, डॉ. रामववलाि शमाष,प.ृ 118 20. वही, प.ृ 118- 119 वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 11
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com 21. वही, प.ृ 124 वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 22. प्रेमचदं : वचतं न एवं कला, ि.ं डॉ. इदं ्रनाथ मदान, प.ृ 224 वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 12
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 भारत में नई कृ वर् प्रणाली के रूप में जवै वक कृ वर् का पयाषवरण और कृ वर् उत्पादन पर प्रभाव चन्दन कु मार पीएच.डी, राजनीवतक ववज्ञान ववभाग वदल्ली ववश्वववद्यालय-07 मो:.9540141445 ईमले :. [email protected] िारिंक्षपे ः भारत मंे कृ वर् वकिानों की आजीववका के िाथ-िाथ ववशाल जनिखँ ्या के वलए भोजन का मखु ्य िाधन भी ह।ै भारत में पररवेशीय और राजनीवतक मागँ एवं जरूरतों के वहिाब िे कृ वर् प्रणाली के स्वरूप में बदलाव होता रहा ह।ै कृ वर् के ववकाि और भोजन की आपवू तष के वलए वर्ष 1967 मंे हररत क्रांवत के माध्यम िे रािायवनक खते ी का आरम्भ होता ह।ै वजिके प्रभाव िे उत्पादन बढ़ा परन्तु इिमें वस्थरता नही होने के कारण इिके नकारात्मक प्रभाव ने वकिान और पयाषवरण दोनों को नकु िान पहचु ाया। इिवलए नई कृ वर् प्रणाली के रूप मंे जैववक कृ वर् का आगमन हुआ ह,ै वजिे जीरो बजर् कृ वर् पद्धवत भी कहा जाता ह।ै भारत मंे जवै वक खते ी को बढ़ावा दने े की वलए वर्ष 2002 मंे राष्ट्रीय उत्पादन जैववक कायषक्रम को लागू वकया गया। भारत मंे जवै वक उत्पादों की बढती मागँ ों के कारण जवै वक खेती का क्षिे फल 2003-04 मंे 42 हजार हके ्र्ेयर िे बढ़कर 2018 मंे 3.56 वमवलयन हके ्र्ेयर हो गया ह।ै आज भारतीय वकिान अपना भववष्ट्य जैववक खते ी की ओर दखे रहे ह।ै जो उत्पादन और आमदनी को बढ़ा िकंे । वतषमान मंे परम्परागत कृ वर् ववकाि योजना के माध्यम िे िरकार द्वारा जैववक खते ी को अपनाने के वलए वकिानों को अनदु ान वदया जा रहा ह।ै मखु ्य शब्दः हररत क्रावं त, पयावष रणीय िकं र्, जवै वक कृ वर् प्रणाली, उत्पादन, आमदनी, िंिाधन िंरक्षण वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 13
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com 1. पररचय वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 2. कृ वर् 3. पारंपररक कृ वर् 4. आधवु नक कृ वर् 5. जवै वक कृ वर् 6. भारत मंे जवै वक कृ वर् 7. वनष्ट्कर्ष पररचय: इि ववशाल जनिखँ ्या वाले ििं ार मंे जीवन को कायम रखने मंे कृ वर् की महत्वपूणष भवू मका ह।ै वकिी भी देश की अथषव्यवस्था की नीव रखने में कृ वर् की अहम भवू मका होती ह।ै भारतीय अथषव्यवस्था अवत प्राचीन काल िे कृ वर् आधाररत रही ह।ै भारत के पाि कृ वर् योग्य 157.35 वमवलयन हके ्र्ेयर भवू म है जो ववश्व में दिू रा स्थान रखता ह।ै 1 कृ वर् के वलए भारत में उपयोगी जलवायु वस्थवत और वमट्टी की गणु वता ह।ै राष्ट्रवपता महात्मा गाधँ ी ने कहा था की “भारत की आत्मा गावं ो में बिती ह”ै इि प्रकार भारतीय अथवष ्यवस्था हो या भारतीय जन जीवन िभी कृ वर् के इद-ष वगदष ही चक्कर कार्ते नजर आते ह।ै भारत गावं ो का दशे है वजिके कारण भारत मंे कृ वर् को ज्यादा प्राथवमकता वदया जाता ह।ै वर्ष 1958 में कृ वर् के महत्व को रेखांवकत करते हुए कृ वर् प्रशािवनक िवमवत ने कहा था वक “कृ वर् ही िभी उधोगो की जननी है और मनषु्ट्य को जीवन प्रदान करने वाली ह।ै कृ वर्- “Agriculture” की उत्पवत लवै र्न शब्द ager या agri, वजिका मतलब soil (वमट्टी) और culture का मतलब cultivation(जोताई) िे हुआ ह।ै 2 वजिका यह अवभप्राय है वक वमट्टी की जोताई की प्रवक्रया को कृ वर् कहते ह।ै यह वमट्टी के जोताई की ववज्ञानं और कला है। जो कई दश्को िे अनाजों की उत्पादन के वलए वकया जाता रहा ह।ै अन्न 1 Retrieved from: Agriculture, www.ibef.org. 2 Retrived from: https://www.merriam-webster.com/dictionary/agriculture,5:27pm,09/29/2016. वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 14
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 उत्पादन को बढ़ा कर पथृ ्वी जगत पर मानव जीवन को कयाम रखा गया ह।ै वजिमे कृ वर् का महत्वपणू ष योगदान ह।ै मानव जीवन के आरम्भ िे ही कृ वर् मानव िभ्यता का पोर्ण कताष रहा ह।ै इवतहािकारों का मानना ही वक कृ वर् का ववकाि मध्य पवू ष मंे 10000 हजार िाल पहले हुआ था3 कृ वर् की कला जोताई की खोज िे पहले लोग वनरंतर घमू घमू कर भोजन की तलाश और पशपु ालन करते थ।े वजि प्रकार मानव िभ्यता का इवतहाि है उिी प्रकार कृ वर् का भी इवतहाि ह।ै कृ वर् या खेती को एक प्रणाली के माध्यम िे िमझ िकते है इि प्रणाली में कृ वर् के 6 स्तम्भ है बीज, वमट्टी, जल, मौिम, औजार, वकिान। वमट्टी कृ वर् के वलए महत्वपणू ष तथ्य है वमट्टी की प्रकृ वत फिल के पैदावार को िवु नवश्चत करता है कृ वर् के वलए जल का उवचत प्रबधं न भी फिलो के वलए अच्छा होता है मौिम का भी फिलो की चनु ाव में अहम भवू मका वनभाता है अच्छे बीज के प्रयोग िे अच्छी उत्पादन होता है यंि के प्रयोग मानव श्रम मंे मदद करता ह।ै परन्तु यह िमय के िाथ िाथ बदलता रहा ह।ै डेवनयल थोनेर (Daniel Thorner) का मानना है वक कृ वर् कृ र्को का पारम्पररक और प्राथवमक व्यविाय ह।ै 4 आज कृ वर् में ज्यादा िे ज्यादा तकनीको का इस्तमे ाल वकया जा रहा ह।ै परन्तु कु छ वकिान अभी भी परु ाने तकनीको का इस्तेमाल कर रहे है क्योवक ये कृ वर् के रीढ़ ह।ै कृ वर् को दो स्वरूपो के माध्यम िे िमझ िकते है पारम्पररक कृ वर् और आधवु नक कृ वर्। पारम्पररक कृ वर् पारम्पररक कृ वर् के िमय लोग िमदु ाय बनाकर गांवो मंे रहने लगे । वजिमे खेती, पशपु ालन, वमट्टी के बतनष ो का वनमाणष , अनाजों का वपिाई और कपड़े की बनु ाई आरम्भ वकये। पारम्पररक कृ वर् में यिं ो का वनमाषण वकिान अपने पररवशे के अनिु ार करते थे। जो वकिानों की जरूरतो के अनकु ू ल होता था।5 उि िमय ज्यादा कायष हाथो के माध्यम िे वकया जाता था। जमीन, मानिनू , वर्ाष के माध्यम िे जो प्राकृ वतक अविर फिल के बोआई के वलए प्राप्त होता था उिी के अनिु ार 3 Kaul, sushila. “historical and scientific study of development of agriculture at national agriculture science museum, Indian agricultural statistics research institute, New Delhi. 4 Daniel,Thornier. (1956). The Agrarian Prospect In India, P-1. 5 Karthikeyan, C., D Veeraragavathantham, D Karpagam And S Ayisha Firdouse. (2008). Traditional Tools In Agriculture Practices, Indian Journal Of Traditional Knowledge, Vol.8(2), April 2009,P1. वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 15
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 फिल का उत्पादन होता था। पशओु ं के मल-मिू के माध्यम िे खाद तैयार वकया जाता था। जो कृ वर् यिं बनया जाता था वह गाँव में में ही बनाया जाता था। प्राय: परम्परागत कृ वर् में घरेलू आवश्कताओं के अनिु ार ही अनाज का उत्पादन वकया जाता था।6 अनाजों का वववभन्न प्रकार के वकस्मो का उत्पादन वकया जाता था। अपने आवश्कयता िे ज्यादा अनाज को दिु रे वस्तओु ं को खरीदने मंे इस्तमे ाल वकया जाता था उि िमय िमाज मंे वस्तु वववनयम प्रणाली ववधमान था वस्तु के बदले लोग वस्तुओं का लेने-दने वकय जाता था। लोग ग्रामीण स्तर पर ही रहते थे लोगो का ववस्थापन कम था। उि िमय कृ वर् ही अथषव्यवस्था का मलू िाधन था परन्तु कृ वर् िे उधोग की तरह िमाज अग्रिर हआु वजिके कारण कृ वर् के िरचना मंे भी बदलाव हआु । वजिके कारण कृ वर् परंपरागत कृ वर् िे आधवु नक कृ वर् वक ओर अग्रिर हो गया। आधवु नक कृ वर् वजि प्रकार िे जनिँख्या बढ़ता जा रहा है कृ वर् पर दबाव बढता जा रहा है परन्तु कृ वर् योग्य जमीन में बढ़ोतरी नही हो रहा ह।ै आधवु नक कृ वर् का ववकाि ववकवित दशे ो मंे हुआ था।7 इि वलए कृ वर् मंे तकनीक के प्रयोग के माध्यम िे कृ वर् मंे उत्पादन को बढ़ाने पर बल वदया जा रहा ह।ै आधवु नक कृ वर् का आरम्भ उधोगो के आगमन के बाद होता ह।ै आधवु नक कृ वर् में ज्यादा िे ज्यादा कृ वर् कायष यिं ो के माध्यम िे वकया जाता ह।ै नये ज्यादा उत्पादन वाले बीजो का प्रयोग वकया जाता ह।ै रािायवनक खादों का प्रयोग वकया जाता ह।ै आधवु नक कृ वर् िे अनाज की गणु वता और मािा दोनों बढ़ गया ह।ै ग्रामीण भारत की भूखमरी और गरीबी को कम करने में िहायक िावबत हआु ह।ै आधवु नक कृ वर् ने भगू ोवलक और आवथकष दोनों पर प्रभाव डाला है बजं र जमीनों को उपकरणों के माध्यम िे िंवचत बना कर कृ वर् योग्य बनाया जा रहा ह।ै वजििे वकिानों की आवथषक आमदनी बढ़ गई ह।ै 8 आज ज्यादा लोग अच्छा भोजन करना पिदं कर रहे है वजिमे आधवु नक कृ वर् का अहम भवू मका ह।ै 6 Traditional agriculture in india: high yields and no waste, The ecologist, vol.13, no.2/3,1983. 08/10/2016, 10:25. 7 Dr. William And C. Motes. (2010). Modern Agriculture And Its Benefits – Trends, Implications And Outlook, p-13. 5 Maheshwari, P And S. L. Tandon (1959). Agriculture And Economic Development In India, Economic Botany, Vol. 13, No. 3 (Jul. - Sep., 1959), p-4. वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 16
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 परन्तु आधवु नक कृ वर् का नकारात्मक प्रभाव भी ह।ै कृ वर् मंे उत्पादन को बढ़ाने के वलए ज्यादा रिायवनकी खाद, तकनीक का उपयोग वकया जाता ह।ै आधवु नक तकनीको का वनमाषण वकिानों के पररवशे के अनिु ार नही वकया जाता है वजििे पयाषवरण और मनषु्ट्य दोनों को खतरा ह।ै नई कृ वर् पद्धवत के रूप मंे जवै वक कृ वर् जैववक कृ वर् भववष्ट्य के वलए उभरता हुआ एक वववशष्ट कृ वर् पद्धवत ह।ै जो उत्पादन मंे वस्थरता और पयावष रण में ितं लु न बनाये रखने के वलए बेहतर ह।ै परम्परागत कृ वर् िे वभन्न यह कृ वर् पद्धवत वनवशे कों के वलए लाभकारी ह।ै इिवलए जवै वक खेती में कृ र्क वगष के िाथ-िाथ गरै -कृ र्क वगष की भी भागीदारी ह।ै गैर-कृ र्क वगष उत्पादन िे लके र उपभोक्ता तक जवै वक उत्पाद पहुचाने में वकिानों के िाथ कायष कर रहे ह।ै एवं इि कारण िे वकिानों के आवथषक वस्थवत में तजे ी िे बदलाव हो रहा ह।ै वतमष ान िमय मंे जैववक उत्पादों के प्रवत ग्राहकों की जागरूकता बढ़ने के कारण आज 100 िे ज्यादा दशे ों में जैववक कृ वर् पद्धवत को अपनाया जा रहा ह।ै 9 वतमष ान िमय मंे उपभोगता मानविक पररवतषन के कारण रािायवनक पदाथो के बजाय जवै वक खेती िे उत्पावदत भोज्य पदाथष उच्च गणु वता और मलू ्य पर स्वास्थ्य रहने के वलए खाना पिंद कर रहे ह।ै नीवत-वनमाषता भी जवै वक कृ वर् पद्दवत को बढ़ावा दने े के िदं भष मंे कायष कर रहे ह।ै वजिमें ग्रामीण िरं चना को मजबतू ी के िाथ-िाथ वमट्टी के स्वास्थ्य और पयावष रण को ध्यान मंे रखा जाता ह।ै भारत मंे वदन-प्रवतवदन जवै वक खते ी का क्षिे फल बढ़ता जा रहा ह।ै राष्ट्रीय उत्पादन जैववक कायषक्रम के माध्यम िे जैववक खेती के वलए राष्ट्रीय मानक तय वकया गया ह।ै राष्ट्रीय जैववक कृ वर् कंे द्र कृ वर् मंिालय के अधीन कायष करते हएु , जैववक खते ी की िवु वधाओं को परु े दशे में जैववक व्यविायी और वकिानों तक पहुचा रहे ह।ै जवै वक कृ वर् का इवतहाि 9 Bhattacharyya, P and G. Chakaraborty.(2005). Current Status of Organic Farming in India and Other Countries. Indian Journal of Fertilisers. Vol. 1 (9). December 2005, pp.111-123. वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 17
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 आज के िमय में जवै वक कृ वर् का महत्व बढ़ गया ह।ै परन्तु इिका इवतहाि 10000 िाल परु ाना ह,ै क्योवक यह एक पारम्पररक खेती ह।ै वजिका वजक्र रामायण, महाभारत, ऋग्वदे , कौवर्ल्य के अथषशास्त्र आवद मंे वमलता ह।ै आधवु नक िमय में जवै वक खते ी के जनक िर अल्बर्ष होवाडष (Sir Albert Howard) को माना जाता ह।ै इन्होंने जवै वक खेती के प्रवक्रया को ववकवित वकया। जो “An Agriculture Testament” (1940) पसु ्तक के नाम िे प्रकावशत हआु ह।ै जवै वक खेती के िंदभष मंे Rudolph Steiner जो अध्यावत्मक और दाशवष नक थ,े वजन्होंने जमषनी मंे जैव-गवतशील (Bio- dynamic) कृ वर्-क्षिे का स्थापना वकया। इनका योगदान जवै वक कृ वर् मंे महत्वपणू ष रहा ह।ै J.I. Rodel(1950) ने U.S.A मंे वर्काऊ कृ वर् के ढांचा और जवै वक खेती के पद्धवत के िंदभष में बात वकया ह।ै International Federation of Organic Agriculture Movements (IFOAM) की स्थापना 1972 में वकया गया। जो जवै वक कृ वर् को बढ़ावा दने े के वलए एक आन्दोलन के रूप में उभर कर आया। Masanobu Fukoka एक जापानी वकिान और दाशषवनक द्वारा वलवखत पसु ्तक On Straw Revolution 1975 में प्रकृ वतक खते ी और भवू म को पनु : उपजाऊपन बनाने के वलए कृ वर् पद्धवत का उल्लेख वकया गया ह।ै पारम्पररक खते ी और जवै वक खते ी में अंतर ह।ै Earlier Lampkin के अनिु ार “जैववक कृ वर् उत्पादन की येिी प्रणाली ह,ै जो रिायवनक खादों, कीर्नाशकों को पणू षत: नकारता ह।ै और पशधु न के ववृ द्ध और इिके वनयामको के आधार पर ववकवित होता ह।ै ” जैववक खेती के चार स्तम्भ होते ह,ै 1. जवै वक मानक, 2. प्रमाण/वनयामक तंि, 3. िरं क्षण का तकनीक, 4. बाजार तंि जवै वक मानक- आधवु नक िमय मंे जैववक कृ वर् का महत्वपणू ष तथ्य प्रमावणकता वनयोजन ह।ै जो वनयम, वनगरानी(प्रमाण, न्याय) पर आधाररत ह।ै इिके तहत ही जैववक कृ वर् अन्य कृ वर् पद्धवतओं िे अलग माना जाता ह।ै यह मानक का एक स्तर तय करता ह,ै जो व्यविाय के वलए प्रमावणत वकया जाता ह।ै इिके उत्पादक और ववक्रे ता का जाचँ होता ह।ै इिको एक अवभकरण के माध्यम िे प्रमावणत वकया जाता ह।ै और बाजार तिं जैववक उत्पादों को उच्च दाम पर कृ वर्-क्षिे िमदु ायों िे खरीदता ह।ै इिका पहला वनयम है वक आप पहले घरेलू बाजारों के वलए उपजायेंगे और बाद में वनयाषत करने के वलए उगाया जायगे ा। आज ववश्व में िबिे ज्यादा जैववक खेती आस्रेवलया मंे वकया जाता ह।ै भारत मंे परम्परागत कृ वर् के माध्यम िे जैववक खेती को वकिानों के द्वारा 1950 के मध्य तक अपनाया गया था। 1960 के दशक में हररत क्रावन्त वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 18
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 का आगमन भारतीय कृ वर् के वलए मील का पत्थर िावबत हुआ। जो अनाज के उत्पादन मंे आत्मवनभरष ता को बढ़ावा वदया। इि अववध मंे भारतीय कृ वर् मंे अनाजों का उत्पादन 1950-51 मंे 50.82 वमवलयन र्न िे बढ़कर 2003-04 मंे 212.05 वमवलयन र्न पहचूँ गया। परन्तु इि काल में ज्यादा रािायवनक खादों के इस्तमे ाल ने भारतीय कृ वर् के िमक्ष चार प्रश्नों को खड़े कर वदए। प्रथम उत्पादन मंे वस्थरता की कमी, वमट्टी की गणु वता में वगरावर्, मानव स्वास्थ्य का वबगड़ना और पयाषवरण में प्रदरू ्ण। इििे वनपर्ने के वलए भारतीय कृ वर् मंे जैववक खेती के अलावा कोई ववकल्प नही था जो वस्थरता को कायम करे। िमकालीन भारत में जवै वक कृ वर् िमकालीन भारत में दिू री हररत क्रावं त के माध्यम िे जैववक खते ी को बढ़ावा वदया जा रहा ह।ै वजिके कारण भारतीय वकिान अपनी भववष्ट्य जैववक खते ी की ओर दखे रहे ह।ै परम्परागत कृ वर् ववकाि योजना के माध्यम िे िरकार द्वारा जवै वक खेती को अपनाने के वलए वकिानों को अनदु ान वदया जा रहा ह।ै जवै वक खते ी को बढ़ावा दने के वलए िरकारी िंस्थाए और गैर-िरकारी िसं ्थाए वकिानों के िाथ वमलकर खते िे लेकर बाजार तक कायष कर रही ह।ै इि प्रकार ि,े क्या जवै वक खेती एक नई कृ वर् प्रणाली के रूप मंे उभरी ह।ै वजि प्रकार िे उत्पाद को उगाने और उत्पाद को बचे ने के मानक तय वकये गये ह,ै शायद यह वकिानों के िमझ िे दरू ह।ै इिवलए वकिान गरै -िरकारी िसं ्थाओ के िाथ वमलकर जैववक खते ी को अपना रहे ह।ै वजििे स्वास्थ्य और पयावष रण के िरं क्षण के िाथ-िाथ उत्पादन और अपनी आमदनी को भी वर्काऊ बना िके । भारत मंे जवै वक खते ी की शरु ुआत 19वी िदी मंे कृ वर् वैज्ञावनक िर अल्बर्ष होवाडष द्वारा इदं ौर में शरु ू वकया गया था। इन्होंने वायजु ीवी खाद ववकवित वकया। इिके बाद भारत में वर्ष 2000 जवै वक खते ी के वलए बहतु महत्वपणू ष रहा। इि वर्ष चार मुख्य कायष वकये गये। प्रथम- योजन आयोग ने 10वी पंचवर्ीय योजना के माध्यम िे जैववक खते ी को बढ़ावा दने े के वलए उतर-पवू ष भारत में पररयोजनाओं का आरम्भ वकया। दिू रा- राष्ट्रीय कृ वर् नीवत-2000 ने परम्परागत और जैववक खेती के ज्ञान को प्रोत्िाहन दने े का कायष वकया। वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 19
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 तीिरा- जैववक खते ी के बढ़ावा दने े के वलए र्ास्क फ़ोिष का गठन कृ वर् और िहकाररता ववभाग द्वारा वकया गया। चौथा- व्यविाय मंिालय ने वर्ष 2000 में राष्ट्रीय जवै वक पररयोजना और कृ वर् और प्रिंस्कृ त खाद्य उत्पाद वनयाषत ववकाि प्रावधकरण, Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority (एपीडा) (APEDA) के माधयम िे राष्ट्रीय उत्पादन जवै वक कायषक्रम (N.P.O.P) का वनमाणष वकया गया। इि प्रकार िे भारत मंे जैववक खते ी के ववकाि को िमझ िकते ह।ै भारत मंे जवै वक खते ी के माध्यम िे प्राथवमक क्षिे मंे वस्थरता को कायम करने के वलए वववभन्न कायो को अपनाया जा रहा ह।ै जवै वक खते ी एक पद्धवत के रूप में िंिाधन, उजाष और पयावष रण के िंरक्षण के वलए वकिानों के अनभु वों को प्रस्ततु करता ह।ै 10 भारत में दो-तीन दशकों िे ही जवै वक खते ी के उत्पादन के वलए बाजार, शोध, और नीवतयों का महत्व बढ़ा ह।ै इि अववध मंे यह दखे ने को वमलता है वक कै िे कम लागत पर उत्पादन और आमदनी बढ़ी ह।ै वजिने पयावष रण और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हएु अच्छे गणु वता वाले उत्पादों का उत्पादन वकया ह।ै भारत में इिको योजनाबद्ध तरीके िे लागू वकया जा रहा ह,ै तावक घरेलू और ववै श्वक स्तर पर इिका माँग बढ।े जैववक कृ वर् का उत्पादन और पयावष रण पर प्रभाव जैववक कृ वर् का पयाषवरण और उत्पादन पर िकारात्मक प्रभाव पड़ा ह।ै क्योवकं ववज्ञान के आधार पर जवै वक खेती की िमझ यह है वक जैव ववज्ञान और भौवतक ववज्ञान में भौवतक ववज्ञान ने ज्यादा तरक्की वकया ह।ै 11 भौवतक ववज्ञान उधोग के क्षेिोँ मंे प्रयोग वकया जाता ह।ै वही जैव ववज्ञान का प्रयोग कृ वर् क्षेि के वलए वकया जाता ह।ै वजिमे खेती, ववनका, मत्स्य पालन और पशपु ालन शावमल ह।ै प्राथवमक क्षिे के पररणाम का गणु ाक करने पर यह नकारात्मक और िकारात्मक दोनों हो िकते ह,ै और इिका प्रभाव जल्दी या ववलंब िे नजर आ िकता ह।ै 1950 के अवं तम दश्क मंे हररत क्रांवत का भारत मंे आरम्भ होता ह।ै जो पणू षत: भौवतक ववज्ञान पर आधाररत होता है जो ववज्ञान और तकनीक के माध्यम िे वमट्टी को नष्ट करना आरम्भ कर दते ा ह।ै 1960-70 मंे भोजन की आपवू तष के वलए यदु ्ध स्तर पर कायष वकया गया, इिका कोई 10 Sharma, Arun.(2014). Organic Agriculture Programming for Sustainability in Primary Sector of India: Action and Adoption. Productivity, Vol. 55, No.1, April-June, 2014. 11 ibid. वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 20
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 आलोचना नही वकया गया। 1970 तक हम अनाज मंे आत्म-वनभरष हो गये परन्तु रािायवनक खादों के इस्तेमाल ने बहुत िारे बीमारीओं को भी आमंवित कर वदया। उत्पादन को जल्दीबाजी मंे बढ़ाने के वलए जैववय प्रणाली को अनदखे ा कर वदया गया था वजिके कारण 1980 के दश्क के बाद दशे में पयावष रण, िामावजक, आवथकष िमस्या उभर आई। इिका मखु ्य कारण जवै -् ववज्ञान को अनदखे ा करके प्राथवमक क्षिे में भौवतक ववज्ञान का िहारा वलया जाना था। परम्परागत खते ी- जैववक खेती के आगमन िे पहलंे उत्पादन बाहरी लागत जैिे रिायवनक खाद, बीज, विंचाई आवद पर वनभरष था। जो उत्पादन को िही स्तर पर नही पहुचा पाता था जो वमट्टी के गणु वता को भी नष्ट कर दते ा था। इििे उत्पादक को कई वबमाररयों का िामना करना पड़ता था। 1990 के बाद भारत में वकिान आत्महत्या बढ़ गया इिका मखु ्य कारण ज्यादा लागत और कम आगता या नही भी था। इि िदं भष में एम.ि.स्वामीनाथन भी हररत क्रावं त की बात करते है वजिमंे प्रकृ वत को वबना नकु िान पहुचाये उत्पादन को बढाया जा िकता ह,ै जो पणू षत: प्रकृ वत पर ही वनभरष ह।ै जवै वक खेती- 1970 के दश्क में रिायवनक खेती के हावनकारक पररणाम और 1990 के दश्क में ग्राहकों को वबमाररयों के वशकार होने के कारण प्राथवमक क्षिे मंे एक शदु ्ध और वस्थर उत्पादन प्रणाली के वलए जवै वक खते ी ववकल्प के रूप में अपनाया गया। जैववक खेती के बहतु िारे महत्वपणू ष पक्षों पर चचाष वकया गया। जैववक खते ी प्रकृ वतक उत्पादन, ग्राहक वहतकर प्रणाली के िाथ-िाथ प्रकृ वत में ववधमान अववशष्टों के प्रबंधन के वलए महत्वपणू ष ह।ै भारत मंे 17वी िदी में 9 र्न प्रवत हके ्र्ेयर उत्पदान होता था जो विवर्श काल में 7 र्न हो गया। आधवु नक ववज्ञान का अववष्ट्कार विफष रिायवनक खादों के अववष्ट्कार खोज के वलए नही हुआ है बवल्क इिको जवै वक खादों के खोज िे कृ वर् मंे िधु ार वकया जा िकता ह।ै जैववक खते ी के िदं भष मंे वचै ाररक महत्व वपछलें कु छ दश्को मंे िामावजक और पयावष रण के मदु ्दे िे जड़ु कर बढ़ी ह।ै कृ वर् एक येिा क्षिे है जो इन दो मदु ्दो के िदं भष में अहम भवू मका वनभाता ह।ै जैववक खेती उत्पादन प्रणाली विफष पयावष रण के मदु ्दे पर िहमत नही है बवल्क रोजगार, स्वास्थ्य और ववस्थापन आवद के वलए महत्वपूणष ह।ै IFOAM के अनिु ार “जवै वक कृ वर् एक पववि प्रणाली है जो पयाषवरण के स्वास्थ्य को बढ़ावा दने े के वलए पारम्पररक और आधवु नक दोनों ज्ञान का प्रयोग करता ह।ै इि जैववक प्रणाली में बाहरी तिं के बजाय पाररवस्थवतकी तंि को ज्यादा महत्व वदया जाता ह।ै ” Food and Agriculture Organization (FAO) ने 2002 में “जैववक खेती एक पयाषवरणीय और वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 21
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 िामावजक िंवेदनशीलता के आधार पर भोजन आपवू तष की प्रणाली ह।ै इिका प्राथवमक लक्ष्य स्वास्थ्य और उत्पादन में वस्थरता के िाथ-िाथ स्वतिं िमदु ायों जैिे वमट्टी, पौधें, जानवरों और लोगों के अनकु ू ल कायष करना ह।ै ” जैववक उत्पाद के बढ़ते मागं के आधार पर भारत में 2020 तक 100 लाख हके ्र्ेयर भवू म को जवै वक खेती में बदलने का लक्ष्य रखा गया ह।ै इिके वलए भारत मंे उतर-पवू ष राज्यों ने नीवतयाँ बनाई ह।ै जवै वक खते ी के माध्यम िे भववष्ट्य के चनु ौवतयों जैिे खादों के मांग और आपवू तष के अनदु ान िे मवु क्त, जलवायु पररवतषन के प्रभाव को कम करना, खाद िरु क्षा िवु नवश्चत करना, वमट्टी की गणु वता को बनाये रखना, जल िंरक्षण, जैव-ववववधताओ का िंरक्षण, उजाष िरं क्षण िे वनपर्ा जा िकता ह।ै भारत मंे जवै वक खते ी को तीन स्तर पर िमझ िकते ह।ै पहला 70 प्रवतशत है इिको स्थानीय स्तर पर जैववक खते ी मानते है जो कम उत्पादन करता ह।ै जो स्थानीय स्तर पर ही उपभोग के िाथ-िाथ वस्तओु ं और आनाज का िरु क्षा दते ा ह।ै दिू रा 25 प्रवतशत है जो स्थानीय स्तर पर उत्पादन तो वकया जाता ह।ै वजिमे उच्च उत्पदान होता ह,ै परन्तु गणु वता और वनयंिण कम होता ह।ै तीिरा 5 प्रवतशत है वजिमे उच्च उत्पादन, उच्च गुणवता और वनयंिण के िाथ वकया जाता है। जो स्थानीय स्तर िे उठकर जैववक खेती कहलाता ह।ै जैववक खेती की तैयारी चार स्तर पर वकया जा रहा ह।ै शोध, नीवत, उत्पादन और बाजार वजिके माध्यम िे इिको धरातल और बाजार मंे उतरा जा िके । भारतीय कृ वर् अनिु धं ान ने 13 राज्यों में राष्ट्रीय जवै वक खेती पररयोजना (NPOF) का आरम्भ वकया। जो जैववक खेती को बढावा दने े मंे मददगार िावबत हुआ है। भारत में तीन स्तर पर शोध वकया जा रहा है पहला परंपरागत प्रणाली को पनु : महत्व, पयावष रण अनकु ू ल लागत ववकाि, और जैववक प्रणाली शोध वजिमे िरकारी अवभकरणों के िाथ-िाथ गरै -िरकारी िसं ्थाओ की भवू मका ह।ै जैि-े Navdany, ASA, Nature Land Organic आवद। भारत में दिू री हररत क्रावं त मंे जैववक खेती को ही महत्व वदया गया ह।ै भारत के िदं भष में जवै वक खते ी को वर्काऊ कृ वर् का लक्ष्य प्राप्त करने का महत्वपणू ष उपागम मानते ह।ै इि पद्धवत मंे रिायवनक खेती को पणू षत: हम नकार दते े ह।ै जैववक खते ी वजै ्ञावनक ज्ञान िे जड़ु ा ह,ै जो आधवु नक और परंपरागत दोनों तकनीकों का इस्तेमाल खेती मंे वकया जाता ह।ै 12 1940 में Northboune ने Look to the land मंे 12 Seyon, R. (2016). Organic Farming and Its Legal Status In India. The World Journalo Njurisic Polity, November 2016. वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 22
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 जैववक खेती के िदं भष में यह तकष वदया वक इि पद्धवत मंे पणू ष रूप िे खेत मंे जवै वक खेती होना चावहए, जो अपने भीतर पणू षत: जवै वक होना चावहए। डॉ. अब्दलु कलाम “जवै वक खेती को खेती का एक पववि प्रणाली मानते ह”ै , जो वमट्टी की गणु वता को महत्व दने े के िाथ-िाथ स्थानीय लागत और स्थानीय श्रम के प्रयोग िे िखू े क्षिे ोँके वलए लाभकारी िावबत हआु ह।ै वजिको िवु वधा जनक तरीके िे लागु कर िकते ह।ै जैववक खेती का इवतहाि नवपर्ाण काल िे रहा ह।ै रामायण में यह उल्लेवखत है वक जो हम पथृ ्वी पर कायष करेगें वही पथृ ्वी िे प्राप्त होगा। महाभारत् में कामधेनु का चचाष वकया गया जो वमट्टी के गुणवता के वलए िही था। आधवु नक काल मंे राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय स्तर पर इिको बढ़ावा दने े के वलए ववदद् ्वानो और िरकारी एवं गरै िरकारी िगं ठनों ने अहम भवू मका वनभाया ह।ै जैववक खते ी मंे काननू ी पहल वर्ष 1900 मंे िर अल्बर्ष होवाडष के द्वारा आरम्भ होता ह।ै इिके बाद िरकार वर्ष 2000 मंे राष्ट्रीय कृ वर् नीवत लके र आती ह।ै NPOP और एपीडा (कृ वर् और प्रिंस्कृ त खाद्य उत्पाद वनयातष ववकाि प्रावधकरण) के माध्यम िे वनयातष के वलए प्राथवमकता वदया जाता ह।ै National Accreditation Body (NAB) के द्वारा अवभकरणों को वधै ता, और प्रमावणकता वदया जाता ह।ै इि प्रकार िे भारत में जवै वक खेती ने स्थानीय स्तर पर रोजगार के अविर को बढ़ावा वदया ह।ै भारत मंे यह ज्यादा िफल इिवलए नही हो पा रहा है क्योवक उिका वक्रयान्वयन िरकार द्वारा िही िे नही वकया जा रहा ह।ै भारत मंे लगभग 142 वमवलयन हके ्र्ेयर भवू म िवं चत है वजिपर खते ी और खते ी प्रणाली िामान्य ह।ै 13 परन्तु इिमें वववधता है इन क्षेिोँ में दाल, तले हन और ितू जैिे प्रमखु फिल उगाये जाते ह।ै इन क्षेिोँ मंे वकिानों के जीवनयापन मंे पशधु न महत्वपणू ष भवू मका वनभाते ह।ै परंपरागत िमय में िंवचत भवू म पर वकिान खते ी, ववनका और पशपु ालन करते थ।े 1970 के दश्क मंे खेती में रािायवनक प्रणाली के आगमन िे इन िभी चीजों मंे हराि हुआ। भारत िरकार ने इिको बढ़ावा दने े के वलए बहुत िारे नीवतयों के वनमाणष वकया वजिके माधयम िे रािायवनक खादों का इस्तमे ाल बढ़ गया। बहुत िारे िंवचत क्षेिों में वकिान कम लागत और बाहरी चीजों का प्रयोग नही करके उत्पदान करते है जो उनके वलए लाभदायक होता ह।ै िंवचत भवू म के अपके ्षा गैर-िवं चत क्षेिों में ज्यादा रािायवनक खादों का प्रयोग वकया जाता ह।ै िवेक्षण मंे यह पाया गया है वक बहुत िारे िवं चत क्षेिों के वकिान रिायवनक खादों इस्तेमाल नही करते 13Venkateswarlu, B. (2008).Organic Farming in Rain fed Agriculture: Opportunities and Constraints. Central Research Institute for Dry land Agriculture, Hyderabad. वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 23
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 ह।ै इिवलए गरीब वकिान जवै वक खते ी प्रणाली के तहत ही खते ी करते ह।ै भारतीय र्ास्क फ़ोिष और अन्य ररपोर्ष में यह दशषया गया है वक भारत मंे जैववक खेती वर्काऊ खेती प्रणाली है वजिमें िंवचत भवू म और उतर-पवू ष के राज्य शावमल ह।ै इि लखे में यह दशषया गया है वक महाराष्ट्र के वकिानों ने जवै वक खेती के माध्यम िे कपाि की खेती वकया तो कम लागत लगा। वमी कम्पोस्र् के प्रयोग िे िवं चत भवू म क्षिे ों मंे वकिानों के वलए लाभकारी िावबत हुआ ह।ै अतं रराष्ट्रीय स्तर पर ववश्व व्यापार िगं ठन जैववक खेती उत्पाद को कर मकु ्त व्यापार के वलए प्रोत्िाहन दे रहा ह,ै जो उत्पादन और मनु ाफा के वलए बेहतर ह।ै पयाषवरण और स्वास्थ्य के प्रवत लोगों मंे जागरूकता ने जवै वक खेती को बढ़ावा वदया ह।ै जो ववश्व मंे खेती के एक ववकल्प के रूप मंे जैववक खेती के प्रवत लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा ह।ै 14 जैववक भोज्य पदाथो की माँग ववकवित और ववकािशील दशे ों मंे िाल दर िाल 20-25 प्रवतशत बढ़ता जा रहा ह।ै जैववक खते ी के िंदभष मंे बहुत िारे महत्वपणू ष प्रश्न उभर कर आते ह,ै जैिे क्या जवै वक खेती िे इतना उत्पादन हो िकता है वक िभी को भोजन उपलब्ध हो जाये?, क्या कोई महत्वपूणष ववकाि पयाषवरण के िंदभष में जैववक खते ी िे हो रहा ह?ै , क्या जैववक खेती िे उत्पावदत अनाज की गणु वता बेहतर ह?ै , क्या यह आवथषक रूप िे िही ह?ै इन िभी प्रश्नों के िंदभष मंे इि लेख मंे चचाष करेगे। पहला प्रश्न क्या जवै वक खते ी िे ज्यादा उत्पादन िंभव ह?ै जवै वक खेती में वबना बाहरी चीजों के प्रयोग िे उत्पादन बढता ह।ै बहुत िारे अध्ययनों में यह दशषया गया है वक परम्परागत िमय के अनाज उत्पादन िे ज्यादा अनाज का उत्पादन जैववक खते ी िे वकया गया ह।ै 208 िवके ्षणों मंे यह पाया गया वक िंवचत भवू म में जैववक खेती िे अनाज का उत्पादन ज्यादा हआु ह।ै पहले एक िे तीन वर्ो मँ ें उत्पादन थोडा कम होगा क्योवक वमट्टी को ववकवित और जलवायु प्रवतवक्रयाओ को अनकु ू ल होने में िमय लगता ह।ै वजिका प्रमाण नागपरु मंे कपाि का उत्पादन और पंजाब मंे अनाज के उत्पादन िे वमलता ह।ै दिू रा प्रश्न जवै वक उत्पादनों मंे गणु वता िे तो जैवीक खते ी के माध्यम िे बहतु िारे अनाजों का उत्पादन वकया जाता ह।ै जैववक खते ी में उत्पादों की गणु वता को कायम रखने के वलए इिको खादों का इस्तमे ाल पर वनभषर करता ह।ै तीिरा प्रश्न क्या जवै वक खेती पयावष रण के वलए वहतकर ह?ै जवै वक खते ी वमट्टी की गणु वता और िरं क्षण के वलए, स्वास्थ्य के वलए लाभकारी ह।ै वमट्टी के पोर्क तत्वों को बनाये रखने में मदद करता ह।ै चौथ प्रश्न क्या आवथषक रूप िे िही ह?ै 14 Ramesh, P, Mohan Singh and Subba Rao, A. (2005).Organic farming: Its Relevance to the Indian Context. Current Science, Vol. 88, No.4. pp.561-568. वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 24
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 जवै वक खेती िे कम लागत पर ज्यादा आमदनी होता ह।ै इिमें महगे कीर्नाशक, खाद का इस्तमे ाल नही वकया जाता ह।ै यरू ोप और कनाडा का अध्ययन यह दशषता है वक जैववक खते ी मंे मजदरू ी 40-50 प्रवतशत ज्यादा ह।ै पांचवा प्रश्न कीर्नाशकों और वबमाररयों के िे मवु क्त के वलए जवै वक खेती में वकर्नाशको और वबमाररयों िे बचने के वलए प्रबंधन वकया गया ह।ै शोध यह दशषता है वक जैववक उत्पाद ज्यादा िमय तक वर्काऊ रहता ह।ै खेती का प्रबधं न इि प्रकार होता है वक बहार िे कीर् और वचवड़या भी न आ पाए। जैववक खेती का भारतीय कृ वर् मंे महत्व, भारत मंे जैववक खते ी के वलए अच्छा भवू म और ििं ाधन ववधमान ह।ै वजिने भी जैववक खेती को अपनाया है वह एक नई चनु ौती को ज्ञान और खोज के पररपेक्ष्य में अपनाया ह।ै इििे कृ वर् में ग्रामीण स्तर पर एक अलग तरह का लगाव के िाथ रोजगार एवं आवथकष उत्थान को बढ़ावा वदया ह।ै भारत जैिे ववकािशील दशे ों में जवै वक खेती का ववकाि जरूरी है क्योवक इिमंे कम पंजू ी की जरूरत होती ह।ै यहं ा के जलवायु क्षिे भी प्रकृ वत और मानव िंिाधन उपयकु ्त ह।ै भारत में वकिानों की भवू म पर दखल के वहिाब िे छोर्े वकिानो की जनिंख्या ज्यादा ह।ै ये वकिान आज भी जवै वक खेती करते ह,ै क्योवक इनके पाि आधवु नक तकनीक को अपनाने की अिमथतष ा है।15 वकिानो की भागीदारी के आधार पर तकनीको का वनमाषण वकया जाना चावहए। भारत में अभी भी छोर्े वकिान मानिून के ऊपर वनभषर होकर कृ वर् करते है भारत में खेती पूणष तकनीक आधाररत नही वकया जाता ह।ै भारत कृ वर् के भववष्ट्य के वलए आज हररत क्रांवत िे पनु ः हररत क्रावं त की ओर अग्रिर हआु ह।ै परन्तु छोर्े वकिानो के वलए आज भी यह िमस्या है वक कै िे इि तकनीक को अपनाया जाये वजििे कृ वर् में वस्थरता और िफलता को प्राप्त वकया जा िके । जो भववष्ट्य के वलए भी वर्काऊ हो। इि िंदभष मंे जैववक तकनीक और लघु तकनीक को अपनाने का जरूरत ह।ै वनष्ट्कर्ष वतषमान िमय मंे भारत में कृ वर् िकं र् को दखे तंे हुए, जवै वक कृ वर् पद्धवत को आशा के रूप मंे दखे ा जा रहा ह।ै वजिकों पयाषवरणीय(वमट्टी, जल, वाय,ु मानव स्वास्थ्य), उत्पादन (आमदनी, वर्काऊ उत्पादन, उत्पादन मंे ववववधता(अनाजों) 15 Maru,Ajit.“Agriculture, Farming, Food Nutrition And Technology: From The “Green Revolution” To The “Ever Green Revolution”: The Case of India. वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 25
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 एवं आवथकष पहलू के िदं भष मंे िही माना जा रहा ह।ै जैववक कृ वर् के माध्यम िे कृ वर् के उत्पादन में वस्थरता के िाथ- िाथ कृ वर् को लाभकारी व्यविाय बनाने का भी प्रयाि वकया जा रहा ह।ै वतषमान िमय में भारत मंे कृ वर् िकं र् को दखे तें हएु , जवै वक कृ वर् पद्धवत को आशा के रूप मंे दखे ा जा रहा ह।ै वजिकों पयाषवरणीय(वमट्टी, जल, वाय,ु मानव स्वास्थ्य), उत्पादन (आमदनी, वर्काऊ उत्पादन, उत्पादन मंे ववववधता (अनाजों) एवं आवथषक पहलू के िदं भष में िही माना जा रहा ह।ै जवै वक कृ वर् के माध्यम िे कृ वर् के उत्पादन में वस्थरता के िाथ-िाथ कृ वर् को लाभकारी व्यविाय बनाने का भी प्रयाि वकया जा रहा ह।ै कृ वर् और वकिान एक येिा ववर्य था वजिपर बहुत कम लोगों ने वलखा है और इिके िमस्याओं को उजागर वकया ह।ै परन्तु जब खाद िंकर् गहराता है तो िभी को कृ वर् और वकिान की वचतं ा होने लगाती ह।ै िरकार नीवतयों का वनमाषण करती है। परन्तु उिके वक्रयान्यवन पर कम ध्यान वदया जाता ह।ै रोज एक नई कृ वर् योजना के वनमाषण के बावजदू भी दशे की जनिँख्या का परे ् भरने वाला वकिान आज भी दखु ी ह।ै आज भारतीय वकिान अपना भववष्ट्य जैववक खेती की ओर दखे रहे ह।ै जो उत्पादन और आमदनी को बढ़ा िकें । वतमष ान में परम्परागत कृ वर् ववकाि योजना के माध्यम िे िरकार द्वारा जैववक खते ी को अपनाने के वलए वकिानों को अनदु ान वदया जा रहा ह।ै ❖ खो रही वमट्टी के महक को बचाना है वकिनों को खते ो तक ले जाना ह।ै ❖ डॉक्र्र, वकील, पवू लि की जरूरत हमे जीवन मंे एक बार हो िकता है परन्तु वकिान की जरूरत हर वदन तीन बार होती ह।ै िदं भष िवू च 1. Bhattacharyya, P and G. Chakaraborty.(2005). Current Status of Organic Farming in India and Other Countries. Indian Journal of Fertilisers. Vol. 1 (9). December 2005, pp.111-123. 2. Daniel, Thornier. (1956). The Agrarian Prospect in India, p.1. वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 26
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 3. Dr. William and C. Motes. (2010). Modern Agriculture and Its Benefits – Trends, Implications and Outlook, p-13. 4. Karthikeyan, C., D Veeraragavathantham, D Karpagam and S Ayisha Firdouse. (2008). Traditional Tools In Agriculture Practices, Indian Journal Of Traditional Knowledge, Vol.8 (2), April 2009, P.1. 5. Kaul, sushila. “Historical and scientific study of development of agriculture at national agriculture science museum, Indian agricultural statistics research institute, New Delhi. 6. Maheshwari, P and S. L. Tandon (1959). Agriculture and Economic Development in India, Economic Botany, Vol. 13, No. 3 (Jul. - Sep., 1959), P-4. 7. Ramesh, P, Mohan Singh and Subba Rao, A. (2005).Organic farming: Its Relevance to the Indian Context. Current Science, Vol. 88, No.4. pp.561-568. 8. Seyon, R. (2016). Organic Farming and Its Legal Status in India. The World Journalo Njurisic Polity, November 2016. 9. Sharma, Arun.(2014). Organic Agriculture Programming for Sustainability in Primary Sector of India: Action and Adoption. Productivity, Vol. 55, No.1, April-June, 2014. 10. Traditional agriculture in India: high yields and no waste, The ecologist, vol.13, no.2/3, 1983. 08/10/2016, 10:25. 11. Venkateswarlu, B. (2008).Organic Farming in Rain fed Agriculture: Opportunities and Constraints. Central Research Institute for Dry land Agriculture, Hyderabad. वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 27
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 िमकालीन िंस्कृ वत और स्त्री प्रश्न अचनष ा यादव िसं ्था- ररिचष स्कालर, जवाहरलाल नहे रू ववश्वववद्यालय, नई वदल्ली, 110067 मोबाइल नं- 9971437603 ईमेल आईडी- [email protected] िंस्कृ वत वकिी िमाज की िवदयों परु ानी जीवनशैली का प्रमाण होती ह।ै इिके माध्यम िे वकिी िमाज के खान- पान, पहनावा, बोली, भार्ा, धावमकष आस्था और लोक िंस्कृ वत का आिानी िे पता लगाया जा िकता है। िसं ्कृ वत वकिी िमाज मंे एक वदन मंे बनाई गयी जीवनशलै ी का नाम नहीं ह,ै इिके तार तो िमाज के जन्म िे ही जड़ु े होते ह।ैं अगर भारतीय िसं ्कृ वत के िन्दभष में, बात की जाए तो इिकी जड़ें बहुत परु ानी ह।ैं रामधारी विंह वदनकर अपने वनबन्ध ‘िंस्कृ वत क्या ह?ै ’ में कहते भी हैं वक िसं ्कृ वत को वकिी पररभार्ा में बाधँ ा नहीं जा िकता क्योंवक यह जन्मजात होने के कारण िब मंे व्याप्त होती ह।ै भारतीय िसं ्कृ वत की यह ववशरे ्ता रही है वक इिने िमय–िमय पर अनके िमाजों के िासं ्कृ वतक गणु ों को न के वल अपनाया है बवल्क उन्हें िमाज मंे महत्वपणू ष दजाष भी वदया ह।ै यही कारण है वक ववश्व की यनू ान, वमस्त्र और रोम जैिी महत्वपणू ष िंस्कृ वतयों का तो पतन हो गया वकन्तु भारतीय िंस्कृ वत आज भी जीववत ह।ै ‘ववववधता में एकता’ के विद्धांत पर चलने वाला भारतीय िमाज परू े ववश्व में अपनी एकता और िंस्कृ वत के वलए जाना जाता ह।ै अनके यरू ोपीय दशे जो खदु को ववकवित और वैवश्वक राजनीवत का परु ोधा िमझते हैं वे भी भारतीय िभ्यता और िंस्कृ वत को तेजी िे अपनाते हएु दखे े जा िकते ह।ैं भारतीय खान-पान, पहनावा, भार्ा आवद आज परू ी दवु नया में अपनी जगह बना रहे ह।ंै योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक उपहार ह।ै यह मनषु्ट्य और प्रकृ वत के बीच िामंजस्य स्थावपत करता ह।ै योग के इि महत्व को दखे ते हएु ही ियं कु ्त राष्ट्र की पहल पर परू े ववश्व में अंतराष्ट्रीय योग वदवि मनाया जाता ह।ै हाल ही में, अबधु ाबी ने वहदं ी भार्ा को अपने अदालत की तीिरी आवधकाररक भार्ा का दजाष वदया ह।ै यह कु छ उदाहरण हैं जो प्रमावणत करते हंै वक भारतीय िंस्कृ वत दशे ही नहीं बवल्क ववदशे ों में भी अपनी पहचान कायम कर रही ह।ै िमकालीन िमय म,ंे भारत िवहत ववश्व के अनके दशे ों में िामावजक, राजनीवतक और आवथषक पररवतषन हुए ह,ैं वजनका प्रत्यक्ष प्रभाव वहां की िसं ्कृ वतयों मंे दखे ा जा िकता ह।ै िमाज में पररवतषन के िाथ-िाथ िंस्कृ वत मंे भी पररवतषन होते ह।ंै इि प्रकार िमाज और िसं ्कृ वत एक ही विक्के के दो पहलू कहे जा िकते ह।ंै कहा भी जाता ह–ै ‘पररवतषन प्रकृ वत का वनयम ह।ै ’ वफर इि वनयम िे िमाज कै िे अछु ता रह िकता ह।ै वहदं ी के प्रविद्ध कवव अज्ञेय के शब्दों मंे कहें तो- “िसं ्कृ वतयां लगातार बदलती ह।ंै िमाज लगातार बदलते ह।ैं िावहत्य लगातार बदलता ह।ै ’’2 िमकालीन िमय म,ंे भारतीय िमाज के खान-पान, पहनावा, रहन-िहन, भार्ा आवद मंे पररवतषन वदखाई दते ा ह।ै उदाहरण के रूप मंे दखे े तो वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 28
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 वहदं ी भार्ा के बरक्ि वतमष ान मंे अगं ्रेजी भार्ा का बोलबाला काफी बढ़ा ह।ै इिी प्रकार भारतीय पररधानों में पवश्चमी कपड़ों जींि, कोर् आवद का चलन काफी तेजी िे बढ़ा ह।ै खान –पान के स्तर पर लोग पवश्चमी और चाईनीज भोजन को तरजीह दे रहे ह।ैं धावमकष ता की दहलीज पर झाँक कर देखे तो लोग धावमषक आस्था की बजाय बौवद्धकता और तावकष कता को महत्व दे रहे ह।ंै गावँ जो कभी भारतीय िंस्कृ वत की पहचान हुआ करते थे तथा वजनकी वबनाह पर भारत को गांवो का दशे कहा जाता था, आज उन्हीं गांवो का शहरों की तरफ तीव्र पलायन हो रहा ह।ै ये पररवतषन हमारी िमकालीन भारतीय िसं ्कृ वत की पहचान बन चकु े ह।ैं वतषमान मशीनी और औद्योवगक यगु ने एक तरफ जहां िमाज को स्मार्ष बनाने का काम वकया ह,ै वहीं दिू री तरफ इिके कारण अनेक पारंपररक रीवत-ररवाज और उद्योग इत्यावद का पतन भी हआु ह।ै डॉ श्याम िंदु र दबु े कहते भी ह-ंै “आधवु नक जीवन प्राणाली के जो अवनवायष अंग बनते जा रहे ह,ंै उनमंे िे औद्योगीकरण, प्रौद्योवगकीकरण के वन्द्रत जीवन व्यापार, बवु द्धवावदता, व्यवक्तवावदता, तकनीवक जीवनचयाष आवद प्रमखु ह।ंै इनका वचसष ्व स्पस्र्तः हमारे िमकालीन िमाज पर िघनता पवू कष अनभु व वकया जा िकता ह;ै लोकजीवन के परंम्पररत आर्गों पर इनका प्रभाव लोक जीवन को ववनष्ट होने की िीमा तक ले आया ह।ै ’’2 वशै ्वीकरण के इि यगु मंे भारतीय िंस्कृ वत मंे अनके पररवतनष हएु ह।ंै इिके बावजदू यह अपनी पारंपररक चेतना और ववचारधारा को आज भी बनाये हएु ह।ै आवतथ्य ित्कार, विधु ैव कु र्ुंबकम, शांवतपणू षता, खानपान, ववववधता, पहनावा आवद अनेक पहलू हंै जो आज भी हमारे भारतीय िमाज मंे मौजदू ह।ैं िमावेशन का गुण िमकालीन भारतीय िसं ्कृ वत की ववशेर्ता ह।ै िमय–िमय पर अनेक ववदशे ी आक्रमणकाररयों जैिे वक शक, हूण, यनू ानी, कु र्ाण, मवु िम और अगं ्रजे आवद ने भारत पर आक्रमण वकये ह।ंै इन िभी धमों की िसं ्कृ वत को भारतीय िंस्कृ वत ने अपने अदं र िमावेवशत वकया ह।ै यही भारतीय िमाज की ववशेर्ता है वक यहाँ िभी धमो को िमान महत्व वदया जाता ह।ै भारतीयता की खशु बू ही ऐिी है वक यहाँ आकर अजनबी व्यवक्त को भी अपनत्व का अहिाि होता ह।ै तभी तो वहदं ी के महान कवव जयशकं र प्रिाद को वलखना पड़ा- ‘अरुण यह मधमु य दशे हमारा जहां पहचुं अजं ान वक्षवतज को वमलता एक िहारा।’ भारतीय नागररकता काननू के तहत वकिी भी दशे का वनवािी भारत की नागररकता ले िकता ह।ै प्राचीन काल िे चली आ रही ववववधता और िमावशे न की इि परंपरा को भारत आज तक बनाये हएु ह।ै ‘अवतवथ दवे ो भवः’ भारतीय िसं ्कृ वत की मलु भतू ववशरे ्ता ह।ै अपने आवतथ्य ित्कार के वलए भारत दशे दवु नया में जाना जाता ह।ै वतषमान िमय मंे भले ही भारतीय िमाज आधवु नकीकरण की िीवढयां चढ़ रहा हो बावजदू इिके पारम्पररक िंस्कृ वत के तत्व आज भी इिमंे ववद्यमान ह।ैं ‘ववववधता मंे एकता’ यह भारतीयता की पहचान ह।ै प्राचीन काल िे ही भारत मंे अनेक धमष िम्प्रदाय के लोग एक िाथ एकजरु ् होकर रहते आएं ह।ंै वहन्द,ू मिु वलम, विख, ईिाई यहाँ िभी भारतीयता के बंधन में बंधे हुए नजर आते ह।ैं वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 29
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 भारतीय िंववधान भी भारत को धमष जावत िे इतर एक ‘धमवष नरपेक्ष’ राष्ट्र घोवर्त करता ह।ै यहाँ िभी धमाषनयु ावययों के रीवत-ररवाज, आस्था के कें द्र भले ही अलग-अलग हों लवे कन िभी भारतीयता के रंग में ही रंगे वदखाई दते े ह।ैं िभी धमों का मलू उद्दशे ्य यही है- ‘ईश्वर एक ह।ै ’ कहा भी गया है- ‘मंवदर हो, मवस्जद हो या वफर हो गरु ुद्वारा , ईश्वर तो बि एक ही ह,ै यही िभी धमों का नारा।’ इि प्रकार मंवदर, मवस्जद, वगररजा घर और गरु ुद्वारा िभी भारतीय िसं ्कृ वत के िमन्वय के प्रतीक ह।ंै वहन्दू धमष मंे िमकालीन िमय मंे भी वदे ों एवं वैवदक धमष के प्रवत आस्था ववद्यमान ह।ै नदी, वर्, पीपल, ियू ष जिै े अनेक प्राकृ वतक आस्था के के न्द्रों की पजू ा आज भी होती ह।ै गीता तथा उपवनर्दों का िन्दशे यगु ों-यगु ों तक भारतीय िमाज को आईना वदखाता रहगे ा। पारम्पररक भोजन हमारी भारतीय िसं ्कृ वत की पहचान ह।ै वफर भी िमकालीन िमय मंे चाइनीज, इर्ेवलयन जैिे भोजन का चलन तजे ी िे बढ़ा ह।ै बगषर और वपज़्ज़ा जिै े खाद्य पदाथष तो भारतीय यवु ाओं की पहली पिंद बन चकु े ह।ैं खान-पान के स्तर पर इन ववदशे ी खाद्य पदाथों को अपनाया जरुर गया ह,ै परन्तु हमारे पारम्पररक खाद्य पदाथों की महत्ता आज भी कम नहीं हईु ह।ै भारत एक बहुभार्ी दशे ह।ै यहाँ िंस्कृ त, वहदं ी, उदषू िे लके र अंग्रजे ी भार्ी तक ह।ैं भारतीय िंववधान ने भी दशे की बाईि भार्ाओ को आठवीं अनिु चू ी में शावमल कर उन्हें ववशरे ् िरं क्षण प्रदान वकया ह।ै िमकालीन िमय मंे परू े ववश्व मंे भले ही अगं ्रजे ी भार्ा का बोलबाला हो परन्तु आज भी दशे मंे िबिे ज्यादा वहदं ी भार्ी लोग ह।ैं भार्ा वकिी भी िमाज की िंस्कृ वत की पररचायक होती ह।ै इिके माध्यम िे उि िमाज की िभ्यता और िसं ्कृ वत का पता लगाया जा िकता ह।ै इिवलए यह बेहद आवश्यक है वक अपने दशे की भार्ा का िंरक्षण कर अपनी िसं ्कृ वत को िरु वक्षत रखा जाये। िंस्कृ वत, िमय मंे पररवतषन के िाथ वकिी िमाज में कु छ बदलाव भले ही करे परन्तु पणू रष ूपणे खदु को वकिी दिू री िसं ्कृ वत में पररववतषत नहीं करती ह।ै िमकालीन िमय मंे भारतीय िंस्कृ वत में भी बहुत िारे नए गणु ों का िमावशे हुआ ह।ै खान-पान, रहन-िहन, बोली-भार्ा के स्तर पर यह पररवतषन दखे ा भी जा िकता ह।ै इन िभी पररवतषनों के बावजदू भारतीय िसं ्कृ वत अपनी प्राचीनता तथा वनरन्तरता के गणु ों को आज भी बनाये हुए ह।ै िमकालीन िमय मं,े स्त्रीयों की वस्थवत पहले िे काफी बहे तर हुयी ह।ै आज वे अपनी िांस्कृ वतक परम्पराओं का भलीभावत वनवाहष करते हुए भी हर क्षिे में परु ुर्ों के बराबर कं धें िे कं धा वमलाकर काम कर रही ह।ैं आधवु नक स्त्री अबला िे िबला बन चकु ी ह।ै आज के िमय मंे स्त्रीयां आवथषक रूप िे तो आत्मवनभरष हंै ही िाथ ही वे घर-पररवार की वजम्मदे ाररयों को भी बखबू ी वनभा रहीं ह।ंै वतमष ान िमय मं,े स्त्रीयां परु ानी रुवढयों को तोडकर आगे तो बढ़ रही ह,ैं परन्तु उनके िामने बहतु िारी चनु ौवतयाँ भी ववद्यमान ह।ैं आज जरूरत है वक स्त्रीयों िे जड़ु े िभी प्रश्नों का वनराकरण कर उनको बेहतर माहौल उपलब्ध कराया जाये तावक वे वनभषय़ होकर अपना जीवन यापन कर िकें । वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 30
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 भारतीय िमाज मंे ववकंि ग वीमेन का चलन तजे ी बढ़ रहा ह।ै ऐिे मंे स्त्रीयों के िामने िबिे बढ़ा प्रश्न उनकी िरु क्षा को लके र ह।ै िरकार ने तो स्त्रीयों की िरु क्षा के वलए अनके काननू बनाये ह,ंै परन्तु इनका वकतनी कठोरता िे पालन होता है और इनके क्या पररणाम वनकलते ह?ंै यह दखे ने योग्य ह।ै कठुआ कांड, उन्नाव के ि और वफर तले ंगाना मंे एक कामकाजी मवहला िे घर लौर्ते िमय रेप करना और वफर जीववत जला दने े जैिी घर्नाएं िरकार के मवहला िरु क्षा िम्बन्धी काननू ों पर प्रश्न खड़ा करती ह।ंै कामकाजी मवहलाओं के वलए िरकार ने ववशाखागाईड लाइिं जैिी अनके क़ाननू ी पहलंे शरु ू कर उन्हें िरु क्षा प्रदान करने की कोवशश की ह।ै बावजदू इिके प्रत्यके वदन अनके स्त्रीयां आवफि मंे परु ुर्ों के शारीररक और मानविक शोर्ण का वशकार होती ह।ैं इि शोर्ण के वखलाफ अगर कोई स्त्री आवाज उठाती है तो उिे या तो आवफि िे वनकाल वदया जाता है या वफर उिके माथे पर चररि हीनता का र्ैग लगाकर हमशे ा के वलए उिकी आवाज को बदं करने की कोवशश की जाती ह।ै ऐिे मंे िवाल उठता है वक िरकार के अनेक प्रयाि करने के बावजदू स्त्रीयों के शोर्ण, रेप और हत्या की घर्नाएं कम क्यों नहीं हो रहीं ह?ंै 2017 में जारी, एक िरकारी आंकड़े के मतु ावबक़ भारत मंे हर रोज औितन नब्बे प्रवतशत िे अवधक रेप के मामले दजष वकये जाते ह।ैं स्त्रीयों के प्रवत बढती वारदातों के मद्दने जर यह प्रश्न उठना वावजब है वक उनकी इि हालत का वजम्मदे ार वकिे ठहराया जाय?े िमाज की दहलीज पर झाकँ कर दखे े तो इन िभी िवालों के जवाब अपने आप वमल जाते ह|ंै दरअिल भारतीय िमाज एक परु ुर् प्रधान िमाज ह।ै यहाँ स्त्रीयों को एक वस्तु िमझा जाता ह,ै वजिे हर कोई प्राप्त करने की वफराक मंे रहता ह।ै राजंदे ्र यादव कहते भी ह-ैं “भारतीय िमाज मंे न नारी का अपना कोई व्यवक्तत्व रहा ह,ै न जावत। वह ऐिा रत्न है वजिे कहीं िे भी उठाया जा िकता है और वजिके पाि है उिी की िंपवत्त ह।ै वे व्यवक्त नहीं चीज है वजन्हें लरु ्ा, छीना और नष्ट वकया जा िकता ह,ै ख़रीदा और बचे ा जा िकता ह।ै िारा इवतहाि इन उदाहरणों िे भरा है वक वकि आक्रमण मंे वकतने हाथी घोड़े, हीरे- जवाहरात और औरतंे लरू ्ी गई।ं’’3 आज जरूरत स्त्रीयों के प्रवत िोच बदलने की ह।ै उन्हें एक वस्तु नहीं बवल्क एक इिं ान िमझने की ह।ै िाथ ही िरकार स्त्रीयों के प्रवत हो रहे अत्याचारों के वखलाफ िख्त काननू बनाये और उनका कठोरता िे पालन करे। यवद िमाज मंे ऐिे कु छ पररवतषन हो पाते हैं तो वनवश्चत ही स्त्रीयों की दशा और वदशा दोनों मंे पररवतषन िभं व हो पायगे ा। मवहलाओं को िशक्त बनाने के वलए आवश्यक है वक िमाज के हर क्षिे मंे उनकी िमवु चत भागीदारी हो। अगर राजनीवतक क्षेि की बात करें तो यहाँ स्त्रीयों की भागीदारी अत्यंत ही न्यनू तम ह।ै यवद लोकिभा चनु ाव 2019 मंे गौर फरमाएं तो पता चलता है वक इिमें जहां बीजपे ी ने बारह प्रवतशत मवहलाओं को वर्के र् वदए हैं वही काँग्रेि माि तरे ह प्रवतशत मवहलाओं को ही वर्के र् दके र अपनी औपचाररकता परू ी करती ह।ै इन आकं ड़ों िे पता चलता है वक स्त्रीयों की भागीदारी इि क्षिे मंे बहतु कम ह।ै पचं ायतों तथा शहरी वनकायों में स्त्रीयों को एक वतहाई आरक्षण प्राप्त ह।ै इिी प्रकार िरकार को िंिद तथा ववधानिभा में भी स्त्रीयों की िहभावगता हते ु काननू बनाना चावहए तावक यहाँ भी उनका पयापष ्त प्रवतवनवधत्व िवु नवश्चत हो िके । िमाज के प्रत्येक क्षिे में स्त्रीयों की परु ुर्ो के बराबर भागीदारी हो यह प्रश्न वतमष ान िमय में महत्वपणू ष हो जाता ह।ै वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 31
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 आवथकष रूप िे भी वस्त्रयों की वस्थवत काफी कमजोर ह।ै जमीन-जायदाद िे लके र िम्पवत्त के प्रत्येक िाधन पर परु ुर्ों का ही वचषस्व ह।ै एक आकं ड़े के मतु ावबक़ ग्रामीण क्षेिों मंे के वल चौदह प्रवतशत मवहलाओं के नाम ही खेत हैं जबवक ग्रामीण क्षेिों के श्रम में मवहलाओंकी भागीदारी िवावष धक ह।ै कमोबेश यही हाल िम्पवत्त के अन्य श्रोतों मंे भी ह।ै 1956 के वहन्दू पिषनल ला ने मवहलाओं को ववराित का अवधकार तो दे वदया परन्तु इिका वक्रयान्वयन वकतना हुआ है यह िमाज मंे बखबू ी दखे ा जा िकता ह।ै जब तक स्त्रीयां आवथषक रूप िे कमजोर रहगंे ी तब तक उनका िामावजक िशवक्तकरण िंभव नहीं ह।ै िामावजक पररप्रके्ष्य मंे दखे ंे तो पता चलता है वक िमाज के िारे वनयम-काननू स्त्री ववरोधी ह।ैं उनके खाने-पीने, पहनने िे लके र हर चीज पर एक लकीर खींच दी गई है वजिको पार करने पर उनको घर पररवार िे लके र िमाज तक की उलाहनाओंका वशकार होना पड़ता ह।ै बदलते िमय के िाथ यह जरूरी है वक अब मवहलाओंको अपने अनिु ार जीवन जीने की आजादी दी जाये। उनकी जीवन जीने की स्वतंिता का िम्मान वकया जाये। वतमष ान यगु बदलाव का यगु ह।ै बदलते वक़्त के िाथ अगर कदमताल वमलाकर नहीं चला गया तो िमाज अपनी उन्नवत मंे काफी पीछे रह जायेगा। इि िमकालीन दौर की अच्छाइयों को अपनाकर बरु ाइयों का पररत्याग कर भारतीय िभ्यता और िसं ्कृ वत को उच्च वशखर तक पहुचँ ाया जा िकता ह।ै िमकालीन िमय मंे मवहलायंे वशवक्षत हो रहीं ह।ंै िमाज के प्रत्यके क्षिे मंे अपनी भागीदारी िवु नवश्चत कर रही ह।ैं इिवलए आज स्त्रीयों िे जड़ु े कई प्रश्न भी उभर कर िामने आ रहे ह।ैं िरु क्षा, स्वतिं ता, िमाज के हर क्षिे मंे भागीदारी, परु ुर्ों के बराबर हक़ प्रदान करना आवद कु छ स्त्रीयों िे िम्बवं धत प्रश्न ह,ंै वजनका जवाब तलाशना हमारे िमाज के वलए बहे द जरुरी ह।ै मवहलाओं को परु ातन दवे ी की पदवी िे इतर एक इिं ान िमझ कर उनिे जड़ु े िभी प्रश्नों का िमाधान खोजना िमाज की प्राथवमकता होना चावहए। िरकार ने बहुत िारी योजनायंे और वनयम-काननू मवहलाओं के पक्ष मंे बनाएं ह।ंै आज इि बात की दरकार है वक इन काननू ों का कठोरता िे पालन वकया जाये और मवहलाओं को हर प्रकार के शोर्ण िे आजादी प्रदान की जाए। तभी हम भारतीय िमाज में मौजदू िंस्कृ वत के मूल भाव यि नायसष ्तु पजू ्यन्ते रमन्ते ति दवे ता को ित्य िावबत कर पायगे ंे। िदं भष ग्रन्थ िचू ी 1. िावहत्य, िसं ्कृ वत और िमाज पररवतनष की प्रवक्रया; अज्ञेय , िं- कृ र्ण दत्त पालीवाल िस्ता िावहत्य मडं ल प्रकाशन, पषृ ्ठ-30, िं-2010 2. िसं ्कृ वत, िमाज और िवं दे ना ; डॉ श्यामिंदु र दबु ,े ग्रन्थलोक वदल्ली, पषृ ्ठ-39, िं-2004 3. आदमी की वनगाह में औरत ; राजने ्द्र यादव, राजकमल प्रकाशन, पषृ ्ठ- 33, िं-2002 वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 32
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 िमय िे मठु भड़े :एक िामावजक यथाथष रवव कु मार पाण्डेय शोधाथी ,पी .एच-डी,वहन्दी राचं ी ववश्वववद्यालय, रांची – 834008 मो. न. 854399990,9102558951 ई मले . [email protected] िामावजक यथाथष शब्द िनु ने में बहुत ही िाधारण िा प्रतीत होता है वकन्तु अथष की व्यापकता बहुत ही ववस्ततृ है । िामावजक यथाथष का िीधा िा अथष है वक िमाज मंे जो कु छ भी घवर्त हो रहा है । उिका ज्यों का त्यों वणषन करना । िमाज में घर्ने वाली प्रत्यके वह घर्ना जो कहीं न कहीं िे मानव जीवन को प्रभाववत करती ह,ै उिका आँखों दखे ा हाल बयान करना ही िामावजक यथाथष है । वफर वह क्यों न राजनीवतक हो, धावमषक हो या आवथकष हो । ‘िमय िे मठु भेड़’, ‘अदम गोंडवी’ की एक उत्कृ ष्ट कृ वत है । वजिमें िमाज के वास्तववक स्वरूप को बख़ूबी वचवित वकया गया ह।ै वगष चते ना, वकिानों का दद,ष राजनीवतक ववद्रूपता, वगष वमै नस्व, गरीबी, दवलत और स्त्री अवस्मता के प्रश्नो पर ववशरे ् प्रकाश डाला गया है। ‘अदम’ के ग़ज़लों का महल, यथाथष की जमीन पर बना, एक ऐिा महल है वजिमें हर शोवर्त की आवाज़ को विंहािन वदया जाता ह।ै जहाँ भेद-भाव, ऊँ च-नीच जिै ी वकिी भी रीवत या ररवाज का कोई स्थान नहीं ह।ै ‘अदम गोंडवी’ नें बहे द बते कल्लफु ़ी के िाथ अपने ववचारों को ग़ज़लों के माध्यम िे प्रकर् वकया ह।ै इतना ही नहीं, वे िमाज में जन्मी अिमानता को ख़त्म करने के वलए क्रावं त के मागष तक जाने का आवाहन भी करते ह।ैं ‘िमय िे मठु भेड़’ एक ऐिा क्रावं तकारी दस्तावज़े ह।ै जो अपने िमय के िामावजक यथाथष को बख़बू ी वचवित करता ह।ै ‘अदम गोंडवी’ वजनका नाम वहदं ी ग़ज़लों मंे बले ाग तरीके िे यथाथष को वचवित करने के वलए अग्रणी रूप िे वगना जाता ह।ै मैं जहां तक महििू करता हूँ वक व्यंग का जैिा तीखापन या यथाथष की ववद्रूपता का वचिण , ‘अदम’ की ग़ज़लों या नज़्मों मंे है विै ा वकिी भी अन्य रचनाकार की रचना में नहीं है । ‘अदम’ अपनी पसु ्तक ‘िमय िे मठु भड़े ’ के प्रारंभ मंे ही िामावजक यथाथष का वचिण करते हएु वलखते हंै वक एक तरफ गरीब लाचार जनता महंगाई िे मर रही है तो दिू री तरफ एक वगष आधवु नकता को भी पार कर उत्तर आधवु नकता की ओर बढ़ता जा रहा है और ये आधवु नकता िे उत्तर आधवु नकता की प्रगवत िाथषक नहीं, क्योंवक हम वदखावे और बनावर् के चक्कर मंे अपने िासं ्कृ वतक स्वरूप को भलू ते जा रहे ह।ंै हमारी िोच जो कभी िवोत्कृ ष्ट हुआ करती थी। वह आज कहाँ िे कहाँ पहुचँ ती जा रही है - “हीरामन बेज़ार है उफ वकि कदर महगाई ह।ै आपके वदल्ली मंे उत्तर आधवु नकता आई ह।ै । र्ीवी िे अख़बार तक वजस्म के मोहक कर्ाव। ये हमारी िोच है और िोच की गहराई ह।ै ।” 1 वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 33
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 यथाथष का एक स्वरूप जो तात्कावलक था और आज भी ह,ै वक जब कभी हक़ की माँग के वलए आवाज उठाई गई तब तब हमारे िमाज मंे एक ववशरे ् तबक़े द्वारा धावमकष वमै नस्व फै लाया गया . “ये अमीरों िे हमारी फै िलाकु न जंग थी। वफर कहाँ िे बीच मंे मवस्जद व मंवदर आ गए।।” 2 ‘अदम’ यहीं नहीं रुकते वो आगे इि परू ी घर्ना के पीछे के र्ड्यंि की तस्वीर भी वदखाते हंै वक मज़हब के नाम पर, ख़दु ा और ईश्वर के नाम पर, ये झगड़े कौन करा रहा है - “ख़दु ा का वास्ता दके र वकिी का घर जला दने ा। ये मज़हब की वफादारी हकीकत मंे वियािी ह।ै ।”3 राजनीवतक ववद्रूपता का जो दृश्य ‘अदम’ की ग़ज़लों में वमलता है वैिा अन्यि कहीं नहीं क्योंवक वे यथाथष के धरातल पर खड़े होकर वलखते ह।ंै ‘अदम’ वलखते हंै वक जो कभी भी पाि नहीं रह,े वजनका वकिी िे कोई लने ा दने ा नहीं रहा, वही आज राजनीवत के वितारे बने हएु ह।ंै िच को िच कहने का जो िाहि अदम के पाि है विै ा वकिी और के पाि नहीं - “दखे ना िनु ना व िच कहना वजन्हें भाता नहीं। कु वियष ों पर वफर वही बापू के बंदर आ गए।।” 4 यही नहीं जो, गरीब और मजदरू ों के नाम पर बड़ा-बड़ा भार्ण दके र, िवषजन वहताय और िवजष न िखु ाय का नारा दते े वफरते हंै हक़ीक़त ये है वक उनके और उनके चार्ुकारों के अलावा वकिी का भी वहत नहीं होता। ‘अदम’ यथाथष का चेहरा और स्पष्ट करते हएु कहते हैं वक - “काजू भनु े प्लेर् में वव्हस्की वगलाि में। उतरा है रामराज ववधायक वनवाि मे।ं । पक्के िमाजवादी हंै तस्कर हों या डकै त। इतना अिर है खादी के उजले वलबाि में।।”5 भ्रष्टाचार जो वक राजनीवत और िमाज का अवभन्न अंग रहा ह।ै जो कैं िर के रोग की तरह वनरंतर फै लता ही जा रहा ह।ै ये लाइलाज हो गया है इिकी कोई और वजह नहीं, बि इतनी िी वजह है वक इिका इलाज करने वाले डॉ. जो वक हमारे रहबर ह,ैं हमारे िमाज के हुक्काम ह।ंै उनका दोगलापन ह।ै अपने स्वाथष के वलए वो कु छ भी कर िकते ह-ै “जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर दगें े। कमीशन दो तो वहन्दसु ्तान को नीलाम कर दगें े।। िरु ा और िनु ्दरी के शौक मंे डूबे हुए रहबर। वदल्ली को रंगीले शाह का हम्माम कर दगें े।।” 6 वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 34
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 वकिी भी दशे या िमाज की िबिे बड़ी ताकत, कु छ और नहीं यवु ा शवक्त होती ह।ै वही यवु ा शवक्त जो अपनी कायष पद्धवत, िजनष शीलता और कल्पना के माध्यम िे परू ी दवु नया का नक्शा बदल िकती ह।ै लेवकन अफ़िोि ऐिा नहीं है िब के िब बेज़ार हंै िबके चेहरे पर हताशा है - “जो बदल िकती है दवु नया के मौिम का वमज़ाज। उि यवु ा पीढ़ी के चेहरे की हताशा दवे खए।।” 7 ऐिा क्यों ह,ै ये हताशा क्यों है इि बात का जवाब भी अदम वलखते हंै – “इि व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आवख़र क्या वदया । िैक्ि की रंगीवनयाँ या गोवलयाँ िल्फाि की ।।” 8 कहने का िीधा िा अवभप्राय है वक वजि व्यवस्था को युवाओं को प्रगवत का अविर दने ा था, रोजगार दने ा था, वह महज उनके वलए वादे ही करती आई ह।ै िमाज का यथाथष जो नग्न आँखों िे दखे ा जा िकता ह,ै वजिे दखे ने के वलए वकिी ववशेर् चश्मे की आवश्यकता कभी नहीं पड़ती। वह है भखू , गरीबी, वजिके पाि ये भखू है गरीबी ह,ै उिी के क्षधु ातरु निे ों िे दखे ने पर िमाज और दवु नया की िही तस्वीर वदखाई दते ी ह।ै िारी बड़ी – बड़ी बात,ंे िारे वाद,े िारे िकु ू न व्यथष लगते हंै - “घर पर ठंढे चलू ्हे पर अगर खाली पतीली ह।ै बताओ कै िे वलख दँू धपू फाल्गनु की नशीली ह।ै । बगावत के कमल वखलते हंै वदल की िखु ी दररया में। मंै जब भी दखे ता हूं आँख बच्चों की पनीली ह।ै ।” 9 भखू और गरीबी ऐिी बला ह।ै जो घीिू और माधव को कफ़न के पिै ों िे खाना खाने पर मज़बरू कर दते ी ह।ै रोर्ी की कीमत वही बता िकता है जो भखू की कीमत जानता है - “ रोर्ी वकतनी महगं ी है ये वो औरत बताएगी वजिने वजस्म वगरवी रखकर ये कीमत चकु ाई ह।ै ।” 10 अगर भखू है तो चाँद वितारे, मीनारंे िब व्यथष लगती ह।ैं वजनके परे ् की आग बझु चकु ी है ये िारे चोंचले उिके वलए ही ह-ैं “जलु ्फ, अगं ड़ाई, तबस्िमु , चादं , आईना, गलु ाब। भखु मरी के मोचे पर ढह गया िारा िबाब।। परे ् के भगू ोल मंे उलझा हुआ है आदमी। इि अहद में वकिको फु ितष है पढ़े वदल की वकताब।।” 11 वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 35
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ‘अदम’ यही नहीं रुकते वो आगे भी कहते हंै वक मोहब्बत की बड़ी बड़ी बातंे करने वालों को अगर चार वदन खाना न वमले तब भखू क्या होती है इिका एहिाि उन्हंे भी हो, उन्हंे भी पता चले वक खाली परे ् का मज़हब प्रेम नहीं रोर्ी होती ह-ै “चार वदन फु र्पाथ के िाये में रह कर दवे खए। डूबना आिान है आँखों के िागर मंे जनाब।।”12 वकिी भी दशे या िमाज की वास्तववक प्रगवत वहाँ की कोवठयां दखे ने िे कभी नहीं आंकी जा िकती। प्रगवत का अंदाज़ा तो फु र्पाथ दखे कर ही लगाया जा िकता ह।ै हक़ीक़त कु छ यंू है वक आज भी अिली वहन्दसु ्तान फु र्पाथ पर ही वमलता है जहाँ भखू भी है गरीबी भी और िपनों का मर जाना भी . “कोवठयों िे मलु ्क के मेयार को मत आवं कए। अिली वहन्दसु ्तान तो फ़ु र्पाथ पर आबाद ह।ै ।”13 गरीबी उन्मलू न का ढोंग िवदयों िे चलता चला आ रहा ह।ै इिे ख़त्म करने का दावा भी बहतु वकया जाता रहा ह,ै ये दावा भी इतनी िफ़ाई िे वकया जाता है वक हक़ीक़त को भी अपना अिली चहे रा अपने आईने में ही िमझ में आता है क्यों वक उि पर ऐिा मलु ्लमा चढ़ाया जाता है वक वह स्वयं अपने वास्तववक स्वरूप को पहचान ही नहीं पाती - “उनका दावा मफु वलिी का मोचाष िर हो गया। पर हकीकत ये है वक मौिम बद िे बदत्तर हो गया।।”14 िमाज का एक तबका वजिे अपनी वज़ंदगी जीने के वलए रोज मरना पड़ता ह।ै बात यहीं ख़त्म नहीं होती, कमाल तो ये भी है वक इन्हीं को दशे का कणषधार बता कर इनका भरपरू शोर्ण वकया जाता ह।ै िमाज का ये वगष िबिे ज़्यादा वपिता ह।ै ये वगष कोई और नहीं, वनम्न और मध्यम वगष ह,ै एक उच्च वगष भी है वजिे कोई फक़ष नहीं पड़ता क्योंवक - “इधर इक वदन की आमदनी का औित है चवन्नी। उधर लाखों में िठे ों की वतजोरी की कमाई ह।ै ।”15 और जब कभी हक़ की लड़ाई लड़ने के वलए िाहि बर्ोरा जाता ह।ै तब हक़ के िारे िवालों को दर वकनार करने का िबिे अच्छा तरीका रहा है वक कोई न कोई वशगफू ा उछाल दो . “पहले जनाब कोई वशगफू ा उछाल दो। वफर कर का बोझ कौम की गदनष पर डाल दो।। चीनी नहीं है घर मंे लो मेहमान आ गए। महगं ाई की भट्टी मंे शराफत उबाल दो।।”16 वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 36
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रैल 2020 दावे और वादे शायद कभी न परू े होने के वलए ही बने होते हंै गर ये परू े हो जाएं तो िौभाग्य, फ़ाइलों मंे दशे का भववष्ट्य वलखा जाता है बाद मंे उिे दीमक खा जाते ह।ंै िारे ववकाि कायष, िारे दावे फाइलों मंे परू े हो रहे ह।ैं हक़ीक़त मंे वजिकी वज़दं गी बदलनी चावहए, उनकी वज़ंदगी मंे कोई बदलाव नहीं आ रहा है - “तमु ्हारी फाइलों में गाँव का मौिम गुलाबी ह।ै मगर ये आकं ड़े झठू े हंै ये दावा वकताबी ह।ै । तमु ्हारी मजे चांदी के तमु ्हारे जाम िोने के । यहाँ जमु ्मन के घर मंे आज भी फू र्ी रकाबी ह।ै ।” 17 ‘अदम’ की वनगाह गरीबी उन्मलू न, वगष वमै नस्व, वगष चेतना, राजनीवत के िाथ िाथ उन अदीबों पर भी रही है जो दशे के कवथत कणधष ार होते हैं पर इनकी भवू मका और हकीक़त कु छ और ही होती है . “वकिी का रंग धानी है वकिी का रंग पीला ह।ै जमातों में बंर्ा अपने अदीबों का कबीला ह।ै ।” 18 ‘अदम’ इशारा भी करते हंै उनके वलए वक - “अदीबों ठोि धरती की ितह पर लौर् भी आओ। मलु म्मे के विवा क्या है फ़लक के चाँद तारों मे।ं ।” 19 ‘अदम’ का दृवष्टकोण बहुत ही व्यापक रहा है उन्होंने िमाज की उि हर वविंगवत को अपनी ग़ज़ल में ढाला वजिके बारे में लोग बात करने िे कतराते ह।ंै ‘अदम’ की ग़ज़लों मंे िमाज का जो नग्न स्वरूप है वदखता है। वास्तववक अथों में उिे ही यथाथष कहा जाता ह।ै िमाज का स्वरूप िमय के िाथ िाथ बदलता रहता है लवे कन ववर्मताओं मंे पररवतनष बहुत ही धीरे धीरे होता है। तात्कावलक पररवस्थवतयों मंे जो िमाज का यथाथष था वही कहीं न कहीं थोड़े िे पररवतनष के बाद आज भी व्याप्त ह।ै अंत मंे बि इतना ही कहना उवचत होगा वक ‘िमय िे मठु भेड़’, िामावजक यथाथष का एक मुखर दस्तावज़े था और है भी। िन्दभष ग्रथं िचू ी - 1.गोंडवी, अदम, आववृ त्त :2014, िमय िे मठु भेड़, नई वदल्ली 110002, वाणी प्रकाशन, पषृ ्ठ िखं ्या. 29 2. वही,पषृ ्ठ िखं ्या.31 3.वही,पषृ ्ठ िंख्या.55 4.वही,पषृ ्ठ िंख्या. 31 5.वही, पषृ ्ठ िंख्या.70 6. वही,पषृ ्ठ िंख्या.40 7. वही, पषृ ्ठ िखं ्या.36 8.वही,पषृ ्ठ िखं ्या.38 वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 37
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com 9.वही, पषृ ्ठ िखं ्या. 41 वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 10. वही ,पषृ ्ठ िंख्या. 64 11. वही, पषृ ्ठ िंख्या.49 12.वही, पषृ ्ठ िंख्या. 49 13. वही, पषृ ्ठ िखं ्या. 48 14. वही, पषृ ्ठ िखं ्या. 51 15. वही, पषृ ्ठ िंख्या. 64 16. वही, पषृ ्ठ िंख्या. 56 17. वही, पषृ ्ठ िखं ्या. 59 18. वही, पषृ ्ठ िंख्या. 60 19. वही, पषृ ्ठ िखं ्या. 46 वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 38
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 वहदं ी की प्रमखु लघु पविकाओं का िामावजक एवं राजनीवतक हस्तक्षेप (1950 िे 1980 के ववशरे ् िंदभष म)ें डॉ. वनवकता जनै िसं ्थान – अम्बडे कर ववश्वववद्यालय वदल्ली में अध्यापन ईमले –[email protected] मोबाइल नबं र- 9953058803 िारांश - िन् 1950 के बाद वहदं ी िावहत्य में ही नहीं बवल्क वववभन्न भार्ाओं में ‘लघु पविका आन्दोलन’ ने हलचल मचा दी थी | लघु पविका आन्दोलन ऐिी िंस्थागत पविकाओं के वखलाफ खड़ा हआु था जो िावहवत्यक उद्दशे ्य की अनदखे ी करके के वल अपने वनजी लाभ के वलए वनकाली जाती थीं | इन बड़ी पविकाओं में नए रचनाकारों को स्थान मवु श्कल िे ही वमल पाता था वजि वजह िे वह अपने ववचारों को पाठकों एवं आमजनता तक पहुचं ाने में अिमथष थे और िावहत्य भी इि नई पीढ़ी के जोश िे वंवचत था | इिवलए नई पीढ़ी के लेखकों ने इन बड़ी एवं स्थावपत पविकाओं के ववरुद्ध ‘लघु पविका’ अवभयान चलाया, वजिके अंतगतष कु छ लोग वमलकर िीवमत िाधनों के द्वारा अपनी स्वयं की पविका वनकालने लगे- वजिमें पषृ ्ठों की िखं ्या भले ही कम हो लेवकन वजिके तेवर ित्ता के वखलाफ और क्रांवतकारी हों, जो िमाज की िच्चाइयों िे जनता और पाठकों को रूबरू कराए और िावहवत्यक उद्दशे ्य के िाथ अपने िामावजक कतवष ्य का भी पालन करे | प्रस्ततु शोधालेख में वहदं ी की प्रमखु लघु पविकाओं को आधार बनाते हुए तत्कालीन िामावजक एवं राजनीवतक पररवस्थवतयों को िावहवत्यक आईने मंे दखे ने एवं परखने का प्रयाि वकया गया है तावक ये मलू ्यावं कत वकया जा िके वक वजि उद्दशे ्य को लेकर लघु पविकाओं की शरु ुआत हुई थी उिको पाने वह वकि हद तक िफल रहीं | शोध ववस्तार लघु पविकाओं का िामावजक एवं राजनीवतक हस्तक्षपे - 1960 िे 1980 के दौरान दशे कई ववपरीत पररवस्थवतयों िे गज़ु र चकु ा था, वजिने राजनीवतक रूप िे ही नहीं बवल्क िामावजक रूप िे भी परू े दशे को वहलाकर रख वदया था | िन् 1962 में इडं ो-चाइना यदु ्ध, 1965 में भारत-पावकस्तान यदु ्ध, 1971 में बंगलादशे की आज़ादी के वलए भारत-पावकस्तान का यदु ्ध, 1977 में आपातकाल की िमावप्त और आम चनु ाव का होना, ित्ता मंे जनता पार्ी का आना आवद | इन िभी वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 39
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 प्रिगं ों ने राजनीवतक रूप िे ही नहीं बवल्क िामावजक रूप िे भी दशे को वछन्न-वभन्न कर वदया था | एक के बाद एक घर् रही घर्नाओं िे आम-जनता का ववश्वाि िरकार िे उठने लगा था| वजि प्रजातिं की दहु ाई दके र हम अपने दशे पर गवष करते थे उिी प्रजातिं का िरेआम िरकार, राजनीवतक पावर्षयां मजाक बनाती नज़र आतीं| कभी वकिानों और मजदरू ों को गोवलयों िे भनू वदया जाता तो कभी पिकारों, लेखकों की अवभव्यवक्त की स्विं ता पर पाबंदी लगाकर उन्हें जले मंे दाल वदया जाता तो कभी दशे के चौथे स्तम्भ प्रेि पर िेंिरवशप लागू कर दी जाती | दशे का आम नागररक इन िबिे परेशान हो चकु ा था, जो िपने उिने दशे आज़ाद होने के वक़्त दखे े थे उन िब पर पानी वफर गया था | अपने िपनों को यँू र्ूर्ता हुआ दखे दशे की आम जनता का मोह –भंग होता जा रहा था | ‘लहर’ में प्रकावशत ओम प्रभाकर की कववता िमाज के इिी मोहभंग की ओर िंके त करती हएु कहती है – “क्या करें वकििे कह,ें अब और क्या बाक़ी बचा, वजिके वलए जीववत रहंे ? झर गए िब फू ल, िपने राख बन उड़ गए नदी घर जाते हएु पथ, रेत वन को मड़ु गए विफष भर्कन और वीरानी, यािा हुई बेमानी वदशायंे वदवार बनकर अड़ गयीं और जो कल तक वक्षवतज को बधे जाती थीं हमारी दृवष्टयाँ उनमंे वनरथषक कीवलयों िे गड़ गयीं”1. यह िच्चाई थी तत्कालीन िमाज की | वजि राह पर चलकर मनषु्ट्य ने ववकाि के िपने दखे े थे आज उिी राह पर उिे विवाय अन्धकार के कु छ नज़र नहीं आ रहा था | एक तरफ प्रशािन की मार दिू री तरफ िमाज की रुवढ़वादी परम्पराओं ने मनषु्ट्य के अवस्तत्व को तहि-नहि करके रख वदया था | अब एक आम-आदमी जीने के वलए िमाज,िभ्यता, िरकार इन िब िे दरू भागने लगा था | अवग्नदतू की कववता ‘कतराने लगा हू’ँ एक र्ूर्े हुए मनषु्ट्य की इिी मनोदशा को बयाँ करती है – “िापं िे फंु फकारते इन जलिों/नागफनी-िी उगी इि भीड़/तेज़ाब-िा पिरे इि जलु िू / तथा िकं ्रामक वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 40
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 रोगों िे फै ले इन ररश्तों-िे / अब मैं / कतराने लगा हूँ क्योंवक/ ये िारे के िारे / वही ह/ंै वजन्होंने प्रारंभ ही ि/े मरे े िमचू े व्यवक्तत्व को/ कु रेदना चालू कर वदया था x-x-x-x-x-x वजिमें मंै िमाया हुआ था, मेरी वह अवभव्यवक्त/ वजिमें मैं चैतन्य था, और/ मरे ा वह िमचू े का िमचू ा/ अवस्तत्व/ वजिमें मैं जीवतं था / उि िभी को/बारी –दर-बारी/ मझु पर ि/े छील डाला था /”2. एक आम-आदमी का अवस्तत्व परत-दर-परत छीला जा रहा था कभी प्रशािन के द्वारा तो कभी िमाज के द्वारा | ऐिे भवं र में फं िकर एक मनषु्ट्य स्वयं को एक मनषु्ट्य न िमझकर मांि का वो लोथड़ा िमझने लगा जो अपने आप िे लड़ता हुआ एक कौने में उि जानवर की तरह पड़ा रहता है वजिकी परवाह उिके अदं र पनप रही कंु ठाओं के अलावा वकिी को नहीं होती | शायद आगे जाकर इन्हीं कंु ठाओं ने ही एक मनषु्ट्य को इतना स्वाथी बना वदया वक उिे वफर न इिं ावनयत की परवाह रही न ही वकिी और चीज़ की | धीरे-धीरे यह कंु ठाग्रस्त मनषु्ट्य इतना लालची हो गया वक उिे अपने लाभ के आगे कु छ और वदखाई दने ा बंद हो गया | न उिे िमाज की परवाह रही, न ही उन लोगों की जो िमाज का अंग होकर भी िमाज िे वछन्न-वभन्न कर वदए गए हैं | ऐिे लोगों के स्वाथष और लालच ने दशे का िामावजक ढाचं ा और भी ववकृ त बना वदया | कंु तलु कु मार जनै की कववता ‘चररि’ ऐिे ही स्वाथी वगष की मानविकता की ओर इवं गत करती हैं – “मैंने यह तय वकया था वक गरीब को और गरीब और अमीर को और अमीर होने नहीं दगंू ा लेवकन मंै लोभी और बेईमान दोनों था, मझु े चार कमीजों िे काम चला लेना चावहए था, लेवकन म,ंै बारह कमीजें पहनने लगा , x-x-x-x-x म,ैं अपनी जबे पंजू ीपवत की वतजोरी में लर्काने लगा मैं वजि गरीब की बात कर रहा था वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 41
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 वह हर जगह, नंगा,अधनंगा, भूखा मरने लगा, x-x-x-x-x मैं ज्यों-ज्यों बेईमान होता गया, अवधक िे अवधक बराबरी और न्याय की बातें करना लगा |”3. दरअिल यहाँ गलती के वल उि वगष की नहीं है जो अपने स्वाथष में अधँ ा होता चले जा रहा है बवल्क उि िरकार की है भी है वजिने अपनी नीवतयों के कारण प्रजातिं को एक र्ुच्चे प्रजातंि में तब्दील कर वदया | जहाँ गरीबों के र्ैक्िेज िे अमीरों की वतजोररयां भरी गयीं | जहाँ ववकाि के वल अमीरों का हुआ और शोर्ण के वल गरीबों का | ऐिे प्रजातांविक िरकार की नीवतयों की तलु ना के बरे नतषकी िे करते हएु कंु तलु कु मार जैन वलखते हैं – “मरे ी िरकार बड़ी मस्त थी, गजब की के बरे नतकष ी थी, उिने पहले ववकाि और भलाई के नाम पर, वफर िमाजवाद के नाम पर, र्ैक्िों की, एक महान दवु नया की रचना की, और जम के शोर्ण वकया, लोगों को आपि मंे अलग-अलग वकया पिै े और आदमी दोनों को छोर्ा वकया |”4. जिै -े जैिे आदमी छोर्ा होता हो गया उिकी िंवेदनाएं भी िंकु वचत होती गयीं या यह कहा जाए बदलती गयीं | मलू ्यहीन िमाज में िवं ेदनशील व्यवक्त का क्या काम ? मनषु्ट्य की िवं ेदनाओं पर कर्ाक्ष करते हएु धवू मल ‘िापके्ष्य िवं ेदना’ मंे वलखते हंै – “बम फर्ने का दःु ख होता ह,ै पर उतना ज्यादा नहीं चाय के ठंडा होने का दःु ख – वजतना | कहीं दखे कर बलात्कार की कोई घर्ना वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 42
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 उतनी दरे तड़पती रहतीं नहीं धमवनयां वजतनी उि क्षण- जब दो पररवचत िी आकृ वतयाँ नीची आँखंे वकये परस्पर वबना कु छ कहे पाि-पाि िे गज़ु र गयी हों |”5. यही आज के िमाज की वास्तववक तस्वीर है जहाँ मनषु्ट्य वदन-प्रवतवदन मलू ्यहीन होता जा रहा ह,ै जहाँ अब िवं दे नाओं की जगह मनषु्ट्य के अहकं ार ने ले ली है और यही अहकं ार मनषु्ट्य को मनषु्ट्य होने के एहिाि िे दरू कर रहा है | इिी अहकं ार और िंवेदनहीनता ने मनषु्ट्य की इतनी जावतयां और वगष बना वदए हंै वक वह उिमें ही विमर्ता चला जा रहा है और अपने आने वाले कल को गहरे अन्धकार मंे धके ल रहा है | लघु पविकाओंका आकं लन पर एक ववशरे ् बात यह िामने आती है वक इन पविकाओंमंे 1950-1980 के बीच घर्ने वाली राजनीवतक पररवस्थवतयों पर ववचार अवधक िशक्त तरीके िे पशे वकये गए हैं | राजनीवत िे िम्बंवधत लगभग हर पहलू को इन पविकाओं ने कववता या अन्य ववधाओं के ज़ररये वववेवचत करने का प्रयाि वकया है | हालावँ क िभी ववधाओं में कववता का पलड़ा ही िबिे अवधक भारी एवं िशक्त वदखाई दते ा है | वणे गु ोपाल, ववष्ट्णचु न्द्र शमाष, भवानीप्रिाद वमश्र, धवू मल, िब्यिाची तथा अन्य गंभीर कववयों ने गभं ीर मदु ्दों एवं िवालों की ओर वहदं ी पाठकों का ध्यान आकृ ष्ट करने की कोवशश की है तावक वह दशे में चल रही वास्तववक उथल-पथु ल िे पररवचत होकर उिके बारे मंे अपना एक स्पष्ट दृवष्टकोण ववकवित कर िकें | पविकाओं में वववेवचत राजनीवतक मदु ्दों के कु छ उदाहरण इि प्रकार हंै - िमाजवाद पर कर्ाक्ष – िमाजवाद के बारे में एक बार हरै ाल्ड लास्की ने कहा था वक यह एक ऐिी र्ोपी है वजिे हर कोई अपने अनिु ार पहन लते ा है यानी हर कोई िमाजवाद को अपने अनिु ार ढाल कर उिका वबगलु बजाने लगता ह|ै ‘लहर’ मंे प्रकावशत रामदवे आचायष की कववता ऐिे ही एक िमाजवाद की परतों को खोलती है – “एक दवक्षण-पथं ी नते ा के भार्ण का एक अंश : िमाजवाद......... ! िमाजवाद का अथष है लोगों का धधं ा छीनना | हर दकू ान, फै क्री, कारखाने और वमल पर वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 43
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ‘िरकारी’ वलख दने ा ही िमाजवाद | िमाजवाद का मतलब ह.ै .......नाजायज़ अवधकार | दवे ी इवं दरा की तानाशाही..................|”6. ज़ावहर है तत्कालीन िरकार िमाजवाद का िहारा लेकर उिका प्रयोग अपने वहत मंे कर रही थी क्योंवक स्थलू रूप में िमाजवाद का अथष यही है वक धन-िम्पवत्त पर वकिी का वनजी अवधकार न होकर उि पर िमाज या राज्य का अवधकार होना चावहए तावक िबका िमान ववकाि हो िके लेवकन िरकारें इिे अपने राजनीवतक फायदे के वलए उपयोग करती हंै | यहाँ िमाजवाद िे के वल नते ाओं का ववकाि होता है और आम-जनता का शोर्ण – “एक बड़े वबज़नेि-कन्िनष के जनरल मनै ेजर ने फरमाया : लोगों मंे गरीबी बारं ्ना है िमाजवाद ! गद्दों पर आधे पिरे हुए मौिम्मी का रि-पान करते हुए एक कांग्रिे ी मंिी ने मझु िे कहा : x-x-x िरकार चलाता है िमाजवाद !”7. रामदवे आचायष ने स्पष्ट शब्दों मंे उि खोखले िमाजवाद की पोल-पट्टी खोली है वजिका िहारा लके र राजनीवतक पावर्षयां या िरकार आम-जनता को बेफकू फ बनाकर अपना वहत िाधती हैं | दरअिल वास्तववक िमाजवाद मंे िे िमाज तो कहीं गायब हो गया है और उिकी जगह ले ली है ‘व्यवक्तपरकता’ ने | इिी व्यवक्तपरकता के कारण ‘िमाजवाद’ इतने र्ुकड़ों में बरं ् चकु ा है वक अब वास्तववक िमाजवाद को पहचानना मवु श्कल नहीं बवल्क नाममु वकन है | यदु ्ध िे पीवड़त दशे पर कववयों का वविेर्ण – स्वतंिता के बाद भारत को कई बार यदु ्ध जिै ी भयंकर पररवस्थवतयों िे गज़ु रना पड़ा | भारत पर िन् 1962 िे लेकर 1971 तक घोवर्त रूप िे तीन बार और अघोवर्त रूप िे न जाने वकतनी बार यदु ्ध के काले बादल मडं राए हंै | यदु ्ध के इन हालातों में एक आम नागररक पर क्या गज़ु रती ह,ै मनोवैज्ञावनक रूप िे इि पररवस्थवत का उन पर क्या अिर होता ह,ै दशे मंे क्या हालात होते हंै आवद पहलओु ं को कववयों ने लघु पविकाओं वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 44
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अंक 60, अप्रलै 2020 के माध्यम िे अलग-अलग िंदभों मंे दशाषने की कोवशश की है | उत्कर्ष में प्रकावशत कववता ‘यदु ्ध िे पीवड़त मरे ा दशे मंे’ िब्यिाची ने यह प्रदवशषत करने का प्रयाि वकया है वक कै िे शांवत का दतू कहे जाने वाले वाले भारत को पड़ोिी मलु ्कों ने अशावं त का प्रतीक बना वदया | यदु ्ध के काले बादलों ने कै िे बच्चों की मीठी वकलकारी को हमेशा के वलए मौन कर वदया | कै िे खेतों में काम करने वाला एक आम वकिान अब अपने हाथ में बन्दकू उठाने को मजबरू हो गया, कै िे इन यदु ्धों ने इिं ावनयत को आतंक का जामा पहना वदया- “तमु ने शांवतदतू ों कपोतों को /खंखू ार बाज़ बना वदया, पकड़ा वदया बदु ्ध के हाथ में विशलू / गाधं ी को थमा दी कर्ार औ’ गाय को भवे ड़ये का जामा पहना वदया | फिलों को कार्ने वाले वकिान के हाथ/ आदवमयों को कार्ने लग,े x-x-x-x आतकं िे इिं ावनयत हो गयी बेहोश/जवानी की उम्र का बढ़ना रुक गया, खशु हाली के आलम का/वक़्त जैिे चकु गया | आह, दोस्त चीन / नेहरु के दशे को बाधँ वदया –यदु ्ध में | बन्धु पावकस्तान / मसु ्काती दवु नया को बना रहे / घवृ णत कविस्तान |”8. दो दशे ों के बीच होने वाले यदु ्ध का कारण भले ही कु छ भी हो लवे कन उि यदु ्ध की बवल िवै नक और उिका पररवार ही िबिे पहले चढ़ता है वफर भले ही वह िैवनक चीन का हो या पावकस्तान का या भारत का | वहदं ी कववयों ने यदु ्ध के इन भयावह हालातों में भी दिू रे पक्ष के ज़ज्बातों को अपनी कववताओं मंे उतारकर यह बताने का प्रयाि वकया है वक िरहद पर लड़ने वाला िवै नक भले ही वकिी भी दशे का हो, भले ही उिके वलए हमारे मन में वकतनी ही नफरत हो लवे कन है वो भी एक इिं ान | वो भी लड़ रहा है अपने दशे की खावतर | उिका भी एक पररवार है हमारी तरह | एक बीबी है जो उिके यदु ्ध िे लौर् आने की िकु शल कामना कर रही है | लेवकन उिे नहीं पता वक उिकी यह कामना परू ी होगी भी या नहीं | श्रीराम वमाष की कववता ‘पाक-बीवबयों का गीत’ िवै नकों की बीवबयों के इिी ददष को बयाँ करती है – “आ जा आ जा वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 45
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 िजन घर आ जा गोवलयां चकु ाव ना गावलयाँ वनकाल मंहु िे बोवलयाँ न बोल आ जा आ जा वपया घर आ जा”9. लघु पविकाओं मंे यदु ्ध के िंदभष मंे वजतनी भी कववतायंे प्रकावशत हईु हंै वह यदु ्ध के उि भयावह वचि को भी प्रस्ततु करती हंै वजििे दशे की आम जनता अनजान हैं | यदु ्ध क्यों होते हंै ? एक आदमी तो यदु ्ध नहीं चाहता और न ही उिको यदु ्ध िे कु छ वमलने वाला है | तो वफर क्यों िरहदों पर यह तनाव जन्म लते ा है | यह तनाव भी दरअिल वियािी है | वियाित के नशे में चरू व्यवक्त का न तो कोई दशे होता है न कोई धमष | तभी तो ऐिे नेता वबना वकिी मतलब के के वल अपने वियािी स्वाथों की पवू तष के वलए दशे की जनता को युद्ध जिै ी भयंकर आग मंे जलने के वलए छोड़ दते े ह|ंै वहदं ी की लघु पविकाओंने यदु ्ध के पीछे वछपी नते ाओंकी वियाित को भी बखबू ी वचवित करने की कोवशश की है तावक एक आम-नागररक वियाित के अिली दांव-पचंे को िमझकर यदु ्ध का बवहष्ट्कार करे | बंगलादशे के स्वंिता िगं ्राम के िदं भष मंे वहदं ी कववतायें - िन् 1971 मंे जब पवू ी पावकस्तान यानी बगं लादशे ने जब पवश्चमी पावकस्तान की कै द िे ररहा होने के वलए अपनी स्वतिं ता का आह्वान वकया तो पावकस्तानी नेताओं और पावकस्तानी िेना ने इि ववद्रोह को दबाने के वलए बगं लादवे शयों का जो खनू बहाया उिकी बदंू ंे इवतहाि के पन्नों मंे आज भी ताज़ा हैं | बंगलादशे के ववभाजन पर पवश्चम बगं ाल के िावहत्यकारों ने तो बहुत कु छ वलखा है लेवकन वहदं ी कववयों या िावहत्याकारों ने बंगलादशे के स्विं ता िगं ्राम को वकि तरह दखे ा एवं दशायष ा ह,ै इिका आंकलन करना भी आवश्यक वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 46
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 है | उत्कर्ष का िन् 1971 मंे प्रकावशत माचष-अप्रलै का अंक ‘बगं लादशे ’ पर के वन्द्रत था वजिमंे बंगाली कववयों और कहानीकारों के िाथ-िाथ कु छ वहदं ी कववयों की कववतायंे भी प्रकावशत की गयी थीं | वहंदी कवव बंगलादशे की पीड़ा को वकि प्रकार बयाँ कर रहे थे इिके कु छ उदाहरण प्रस्ततु हैं – “वखड़वकयों िे लर्के हुए विर िड़कों पर रंेगती लाशों को दखे हिं दते े हैं | पोस्र्रों पर पतु े हुए वघनौने अक्षर तख्ते-ताऊि की छीना-झपर्ी का इवतहाि बता रहे हंै |”10. गोपी डढूला ने अपनी इि कववता मंे बंगलादशे के स्विं ता िगं ्राम में हएु नरिहं ार के िाथ-िाथ उि इवतहाि को भी बयाँ वकया है वजिमंे वकिी भी यदु ्ध या नरिहं ार का के वल एक ही कारण है - ‘ित्ता’ | ित्ता को पाने के वलए मनषु्ट्य वकतना नीचे वगर िकता है इिका उदाहरण है बंगलादशे की वखड़वकयों मंे लर्के विर और िड़कों पर रंेगती वो लाशंे वजनमें जान तो है लवे कन ‘एहिाि’ नहीं | लेवकन वफर भी वह लाशें रंेग रही हैं क्योंवक उन्हें दखे ना है स्विं ता का वे िरू ज वजिके वलए उन्होंने अपनों को बवल चढ़ा वदया | गोपी डढूला की दिू री कववता ‘वजषना’ में उन माता-वपताओं का वचिण है जो अपने बच्चे की अकाल मतृ ्यु पर दखु ी नहीं बवल्क खशु हो रहे हंै क्योंवक उन्हें पता है वक एक नए दशे का वनमाषण होने जा रहा है – “अपने बच्चे की यह अकाल मतृ ्यु मा-ँ बाप के वलए वकतनी िुखद, िंतोर्प्रद है | आखँ ें भींच कर दःु ख मनाना नहीं, यहाँ हर चीज़ बलगम की तरह हमशे ा ही नहीं जाती, कभी-कभी वनगल ली जाया करती है | वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 और हम एक नई वदशा के दरवाजे पर 47 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अतं राराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 बराबर दस्तक वदए जा रहे हंै वक वह दरवाज़ा खलु े जहाँ हम चैन की िािं ले िकें |”11. पावकस्तानी िेना वजि तरह िे बगं लादवे शयों के िाथ िलकू कर रही थी उिे दखे कर शायद एक बार को शैतान की रूह भी कापँ जाए | वहदं ी कववयों ने पावकस्तानी िने ा के इि क्रू र रूप का यथाथष वचिण अपनी कववताओं में वकया है | वेणु गोपाल द्वारा रवचत ‘कु छ भी हो अब’ में ऐिी ही वस्त्रयों का वणनष वकया गया वजनकी िंवदे नाएं मर चकु ी हैं और एहिाि िनु ्न पड़ गया है – “इनकी वबखरे बालों-ढंकी पीठ पर पावँ जमाए खड़े हैं ; अनवगनत िअु र......! भयावने खंडहर | वजन पर िे बहकर आती हवा की हर लहर अपने िाथ लाती है , कन्धों पर लादकर एक तीखी बलात्कार-गधं | िमय की पथराई नि,ंे हर पल यह आवाहान कर रही हैं वकिी िनिनीखेज़ घर्ना का | वक अब कोई नहीं चौंकता याने कु छ भी अप्रत्यावशत नहीं रहा |”12. गोपी डढूला, वणे ु गोपाल के अलावा ‘उत्कर्ष’ में अप्रिाद दीवक्षत, गंगा प्रिाद ववमल आवद कववयों की कववतायंे भी प्रकावशत हुई थं ीं वजनमें बंगलादशे के स्विं ता िगं ्राम की महागाथा को वहदं ी के कववयों ने अपनी-अपनी दृवष्ट िे ववववे चत वकया है | इिके अलावा बंगलादशे के ववभाजन को लेकर कु छेक ववचारकों के लेख भी इि पविका मंे प्रकावशत हुए थे वजनमें मखु ्य रूप िे पवू ी पावकस्तान िे बगं लादशे बनने के पीछे कारणों का मलू ्याकं न प्रस्ततु वकया गया है | इनमें श्यामल चक्रवती का आलेख ‘राष्ट्रीयता की दृवष्ट िे बगं लादशे का िंग्राम’13. प्रमखु है | उत्कर्ष के अलावा अवणमा पविका वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 48
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 वजिके िंपादक शरद दवे ड़ा थे, ने भी बंगलादशे के ववभाजन पर के वन्द्रत एक कहानी ववशरे ्ांक प्रकावशत वकया था| हालाँवक इि कहानी ववशरे ्ांक में मखु ्य रूप िे बंगाली लेखकों की अनवु ावदत कहानी को ही प्रकावशत वकया गया था | ‘मीिा’ काननू पर िपं ादकों एवं िावहत्यकारों का रुख – मीिा काननू यानी आतं ररक िरु क्षा व्यवस्था अवधवनयम (Maintenance of internal security Act) िन् 1971 में भारतीय ििं द द्वारा पाररत एक ऐिा काननू था जो हमेशा िे वववादों मंे वघरा रहा | इि काननू का इस्तमे ाल करके िरकार ने नक्िलवाद का िमथनष एवं आपातकाल का ववरोध करने वाले हजारों यवु क-यवु वतयों को जले में डाल वदया था | इवं दरा गांधी िरकार ने आपातकाल के दौरान इि कानून के तहत लगभग 1 लाख िे अवधक लोगों को जले मंे बंद करवा वदया था | इतना ही नहीं आपातकाल के दौरान इि अवधवनयम कई िशं ोधन भी वकये गए तावक अवधक िे अवधक नागररकों के अवधकारों को कु चला जा िके | इि काननू के ज़ररये न के वल लोगों को जेलों मंे बंद करके प्रतावड़त वकया गया उनिे उनकी िंपवत्त भी छीन ली गयी | यहाँ तक वक आगे चलकर इि काननू को इतना कड़ा कर वदया गया था वक जेलों में बदं कै दी न्यायपावलका मंे अपील तक नहीं कर पा रहे थे |14. िरकार की इि तानाशाही के ववरोध मंे कई िावहत्यकार और िम्पादक आगे आये और लघु पविकाओं मंे इि काननू के वखलाफ ज़ोर-शोर िे वलखने लगे | यवु ा के िपं ादक उदभ् ्रांत ने अपनी पविका के प्रवेशांक में ही िरकार द्वारा लागू इि तानाशाही का ववरोध करते हुए वलखा है – “िरकार फाविज़म की ओर अग्रिर है वकन्तु इवतहाि गवाह है वक िमाजवादी ववचारधारा को फाविस्र् तरीकों िे आज तक न तो दबाया जा िका है और न दबाया जा िके गा | हम िरकार को चेतावनी दते ी हंै वक वह अपने इन फाविस्र्ी तरीकों िे बाज आए और मांग करते हंै वक इन बवं दयों की शीघ्रावतशीघ्र वबना शतष ररहाई हो|”165. एक तरफ पविकाओंमंे लगातार मीिा काननू का वखलाफ ववरोध दजष कराया जा रहा था तो दिू री तरफ िरकार भी लगातार इि काननू को कड़ा बनाती जा रही थी | इि काननू की चपेर् िे पविकाओं के िंपादक एवं वहदं ी के प्रवतवष्ठत िावहत्यकार भी बच न िके थे | िन् 1974 मंे जब वबहार आन्दोलन की शरु ुआत हुई तो उि आन्दोलन िे अनवगनत िावहत्यकार एवं िपं ादक जड़ु े तथा िरकार की नीवतयों का ववद्रोह खलु कर अपनी रचनाओं व पविकाओं में करने लगे | फलस्वरूप िरकार ने वबना कु छ िोचे िमझे कलम के विपावहयों को भी एक-एक करके जले में डालना शरु ू कर वदया | िरकार के इि कृ त्य का ववरोध करते हुए उदभ् ्रातं ‘यवु ा’ के 1974 के अंक मंे िरकार िे िवाल करते हंै – “वबहार आन्दोलन के विलविले मंे अगस्त के वद्वतीय िप्ताह में प्रख्यात कथाकार फणीश्वरनाथ वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 49
Jankriti tu—fr Multidisciplinary International Magazine बह-ू ववर्यी अंतराराष्ट्रीय पविका ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankritipatrika.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 5, Issue 60, April 2020 www.jankritipatrika.com वर्ष 5, अकं 60, अप्रैल 2020 रेणु को आतं ररक िरु क्षा अवधवनयम के अंतगतष वगरफ्तार कर वलया गया |...... इििे पहले रेल हड़ताल के दौरान ‘उत्तराद्धष’ के िपं ादक िब्यिाची और ‘कं क’ के िंपादक वनमलष शमाष को भी वगरफ्तार कर वलया था | हम पछू ते हैं वक मीिा और डी.आई.आर जिै े काले काननू , जोवक माि पजंू ीपवतयों और जमाखोरों के वलए बनाये जाते ह,ैं बवु द्धजीववयों के वखलाफ क्यों इस्तेमाल वकये जा रहे हंै ? क्या इि प्रकार िरकार बवु द्धजीववयों, लेखकों, कववयों और ववचारों का प्रिार करने िे रोक लगा िके गी ?”16. िरकार ने भले ही इि काननू के तहत लाखों लोगों को जेल मंे डाल वदया हो, उनकी अवभव्यवक्त की स्वंिता का हनन कर वलया हो लेवकन यह िच है वक ऐिा करके िरकार ने अनवगनत लोगों को अपने वखलाफ िघं र्ष करने के वलए प्ररे रत वकया | िरकार के इि काननू के वखलाफ प्रचार-प्रिार और भी तेज हो गया | अब के वल पविकाओं के िंपादक ही नहीं बवल्क वहदं ी के कवव एवं कहानीकार भी िरकार के इि काननू का जमकर ववद्रोह अपनी रचनाओं में करने लगे | लहर, कल्पना, नई धारा, उत्कर्ष, यवु ा, आवद पविकाओं में ऐिी कई कववतायंे प्रकावशत हईु ंजो के वल मीिा जिै े काननू का ववरोध ही नहीं करतीं बवल्क िरकार िे उिकी अमानवीय नीवतयों को लके र िवाल भी करती हैं वक कब तक वह अपने स्वाथष के वलए आम-आदमी की आवाज़ को यँहू ी मीिा जिै े काननू ों के नीचे कु चलती रहगे ी | इि िदं भष में भवानीप्रिाद वमश्र की कववता ‘वमिा की भारतीय चक्की’ उल्लखे नीय है जो कल्पना में माचष 1975 मंे प्रकावशत हईु थी | इि कववता में वमश्र जी िरकार की मानविकता पर व्यंग्य करते हएु वलखते हैं – “आप दशे मंे या दवु नया मंे बने रहना चाहते ह/ंै तो हम आपिे कहना चाहते हंै वक जो हम कहंे / वही आप कह/ंे और आराम िे रहंे यह नहीं हो िकता / वक हम एक बात कहें / आप दिू री बात ! x-x-x-x इि वक़्त हम तकलीफ में ह/ैं हमारी परेशावनयाँ न बढ़ाइए लोग घिू खाते हैं /तो आप भी खाइए और जब हम घिू के वखलाफ बोलें /तो आप भी हमारी मंशा िमझकर उिी अथष मंे घिू के वखलाफ मंुह खोलंे/वजि अथष मंे हम बोलते ह”ैं 17. वर्ष 5, अकं 60, अप्रलै 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 5, Issue 60, April 2020 50
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