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Volume 6, Issue 64, August 2020

Published by jankritipatrika, 2020-10-03 13:21:07

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Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 64, August 2020 www.jankriti.com िषष 6, अंक 64, अगस्त 2020 तेरा सतु िाँ वजसम् है तरे ा बोल वक जां अब तक तेरी ह’ै ’114 इस उिाहरण में फ़ै ज़ अतय् ाचारों के वखलाि आिाज उठाने के वलए उत्सावहत करते ह।ंै जब भी वकसी जन आन्िोलन की शरु ूआत होती ह,ै तो उसमंे प्रचरु मािा में गीत गाए जाते ह।ंै गीत समहू मंे गाया जाता ह।ै गीत आसानी से जनसम् वृ तयों का वहसस् ा बन जाती ह,ै इससे आनि् ोलन को िय् ापक सत् र पर जन समथनष जटु ाने में सहायता पहचुँ ती ह।ै तरक़्िीपसनि् वजतने भी सावहतय् कार थे, िे बड़े पैमाने पर तराना वलखते ह।ै उिाहरण- '‘बोल अरी ओ धरती बोल, राज वसंहासन डामाडोल’' -मज़ाज़ लखनिी \"भगत वसंह इस बार न लने ा काया भारतिासी की िशे भक् वत के वलए आज भी सजा वमलेगी िासं ी की\" -शकं र शलै ने ्र \"िरबार-ए-ितन में जब इक विन सब जाने िाले जाएगं े कु छ अपनी सज़ा को पहुचँ गे ,े कु छ अपनी जज़ा ले जाएगं े ऐ खाक-नशीनों! उठ बैठो, िो िक़्त िरीब आ पहुचँ ा है जब तख्् ़ैत वगराए जाएगं े, जब ताज उछाले जाएगं े\"115 -फ़ै ज अहमि फ़ै ज़ इसके अवतररक् त अनय् तरक़्कीपसिं आविबों में भी चते ना का सि् र विखाई िते ा ह।ै उिाहरण- ‘‘मौत जब आ के कोई शमम् ा बझु ा िते ी है वज़न्िगी एक कं िल और वखला िते ी ह’ै ’ -अली सरिार ज़ाफ़री ‘‘काम है मरे ा तगय्यरु नाम है मरे ा शबाब मरे ानाम इनक् लाब ि इनक् लाब ि इनक् लाब’’ -ज़ोश मलीहािािी इस प्रकार से सभी तरक़्िीपसंि सावहतय् कारों ने शोषण, अतय् ाचार से वपस रही जनता का िासत् विक वचिण अपनी रचनाओं मंे वकया, और जनता को संगवठत कर इन सभी के विरोध मंे खड़ा वकया। नये विषय परु ानी शलै ी में और परु ाने विषय नए ढंग से प्रस्ततु करने का जो कला कौशल फ़ै ज़ को प्रापत् ह,ै आधवु नक काल के बहतु कम शायर उसकी गिष को पहुचँ ते ह।ंै उिाहरण- \"तनू े िखे ी है िो पेशानी, िो रुख्सार, िो होंट वज़न्िगी वजनके तसत्व्िरु र में लटु ा िी हमने हमने इस इशि् मंे क् या खोया ह,ै क् या पाया है जनु ु तेरे और को समझाऊ तो समझा न सकंू \" -फ़ै ज़ 114 पषृ ्ठ-22 ] 115 पषृ ्ठ-27 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 121 वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अंक 64, अगस्त 2020 फ़ै ज़ महबबू , आवशि, रकीब़ और इशि् के मआु मलों तक ही सीवमत नहीं, फ़ै ज़ ने हर जगह नई और परु ानी बातों और नई और परु ानी शलै ी का बड़ा सनु ि् र समनि् य प्रसत् तु वकया ह।ै उिाहरण- \"हम परिररश-ए-लोह-ए-कलम करते रहगंे े जो विल पर गज़ु रती है रिम करते रहगंे ।े \" -फ़ै ज़ \"हम तो ठहरे अजनबी वकतनी मिारतो के बाि विर बनगे ें आसना वकतनी मलु ाकातो के बाि फ़ै ज़ जो कहने गए थे उनसे जां सिका वकए अनकही ही रह गई ओ बात सब बातों के बाि\" - ‘ढाका से िापसी पर’ \"मझु से पहली सी महु ब्बत मरे े महबबू न मागं मनंै े समझा था वक तू है तो िरख़्शा है हयात तरे ा ग़म है तो ग़म-ए- िहर का झगड़ा क् या है तेरी सरू त से है आलम में बहारों को सबात तेरी आधं ो के वसिा िवु नया मंे रक्खा क्या है ? तू जो वमल जाये तो तकिीर वनगू हो जाय\" अब मंै सीधे फ़ै ज़ की शायरी की ओर आता हू,ं वजसके पीछे िषों बवल्क सवियों की सावहवत्यक पजंू ी ह।ै स्ियं सावहतय् और समाज िोनों वमलकर िषों तपसय् ा करते ह,ैं तब जाकर ऐसी मन्ि-मगु ध् कर िने े िाली शायरी जनम् लेती ह।ै फ़ै ज़ अहमि फ़ै ज़ आधवु नक काल के सबसे लोकवप्रय शायरों मंे से एक ह।ै इनकी विशषे ता यह है वक एक तरि आम परमप् रा से भी जड़े हएु है और िसू री तरि आधवु नक शायरों से भी इनकी यहीं विशषे ता इनह् ें अनय् तरक़्िीपसंि आविबों से अलग करती ह।ै फ़ै ज़ अपने से पिू ष प्रचवलत परमप् रा- इशक् , प्रेम.... का िणनष तब करते ह,ै परनत् ु बहुत ही चतरु ाई के साथ उसमें नया अथष वपरो िते े ह।ैं उिाहरण- \"विया है विल अगर उसको बरार है क् या कवहए हआु करीब तो हो, नामिर है क् या कवहए\" # # # ### ‘‘हम तो ठहरे अजनबी वकतनी मलु ािातों के बाि विर बनंगे े आशना वकतनी मलु ािातों के बाि’’ 116 ‘‘मझु से पहली-सी महु बब् त मेरी महबबू न मागं और भी िखु हैं ज़माने में मोहब्बत के वसिा’’ 117 फ़ै ज़ अपने वलखने के शरु ूआती विनों मंे रोमावनयत से भरी कविताएँ वलखते थे, परनत् ु जलि् ही िे इससे मकु ् त हो गए।जसै े इस उिाहरण में िवे खए- \"लेवकन उस शोख के आवहसत् ा से खलु ते हुए होंट 116 पषृ ्ठ-72 ] 117 पषृ ्ठ-16 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 122 वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 64, August 2020 www.jankriti.com िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020 हाए उस वजसम् के कमबख्त विलआिज़े खतु तू \" 118 फ़ै ज़ ने अपनी शायरी में नई उपमाओंऔर नए प्रतीकों का भी प्रयोग करते ह।ैं जो अन्य शायरों मंे िखे ने को नहीं वमलती- ‘‘ये गवलयों के आिारा बके ार कु त्ते ये चाहें तो िवु नया को अपना बनाते वक बख़्शा गया वजनको ज़ौक-ए-ग़िाई ये आकाओं की हवड्डयाँ तक चबा ले ज़माने की िटकार सरागाया इनका कोई इनको एहसासे-वज़लल् त विला िे जहां भर की धतु कार इनकी कमाई कोई इनकी सोई हईु िमु वहला ि’े ’ 119 यहाँ कु त्ते उन बेघर लोगों के प्रतीक हंै जो अपनी रातंे िु टपाथ पर वबताते ह,ंै उसी प्रकार इसमंे (नज्म) वजिं गी का यथाथष भी ह।ै लवे कन- \"यों न था, मनैं े िकत चाहा था, यों हो जाए और भी िखु हैं ज़माने मंे महु बब् त के वसिा गा-बजा वबकते हएु कू ची बाज़ार मंे वजसम् खाक में वलथड़े हुए, घनू में नहलाए हुए पीप बहती हुई गलते हएु नासरू ों से लौट जाती है इधर को भी नज़र क् या कीजे मझु से पहली-सी महु ब्बत मरे ी महबतू न मांग।\" रोमावनयत का उिाहरण- \"लेवकन उस शोख के आवहसत् ा से खलु ते हएु होंट हाए उस वजसम् के कमबख् विलािजे खतु तू आप ही कवहए कहीं ऐसे भी अफ़संू होंगे अपना मौजएु सखु न इनके वसिा और नहीं तबए-शायर का ितन इनके वसिा और नहीं।\" ग़ज़ले- फ़ै ज़ अहमि फ़ै ज़ ने बहुत शानिार ग़ज़ले भी वलखी ह-ै \"गलु ों मंे रंग भरे बाि-ए-नौबहार चले चले भी आओ वक गलु सन का कारोबार चल\"े - \"मिु ाम िै ज़ै़ कोई राह में जचं ता ही नहीं जो कु -ए-यार से वनकले तो स-ू ए-िार चले।\" मता-ए-लौहो किम वछन गई तो क् या ग़म है वक तनू े-विल में डूबो ली है मनैं े मखिमू कयार म\"ें - ‘‘आप की याि आती रही रात भर 118 पषृ ्ठ-23 ] 119 पषृ ्ठ-21 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 123 वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 64, August 2020 www.jankriti.com चािं नी विल िखु ाती रही रात भर िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020 गाह जलती हुई गाह बझु ती हईु शम-ए-गम वझलवमलाती रही रात भर।’’ इन उिाहरणों में पररितषन का सकं े त भी छु पा हआु ह।ै तरक़्कीपसिं आविबों के वलए आजािी का अथष वसिष सरकार के शोषणों, अतय् ाचारों से छु टकारा पाना नहीं था, बवल्क मनषु्ट्य के द्वारा मनषु य् के शोषण से मकु ् वत थी। आजािी फ़ै ज़ के वलए आजािी के रूप मंे नहीं बवल्क एक सिमंे के रूप मंे आयी थी। आजािी नामक नजम् मंे यह रूप सप् षट् िखे ा जा सकता ह-ै \"ये िाग िाग उजाला ये शबगज़ीिा सहर िो इतं जार था वजस का ये िो सहर तो नहीं ये ओ सहर तो नहीं वक वजसकी आरजू लेकर चले ये यार वक वमल आयेगी कहीं न कहीं\"120 यहाँ सप् षट् ह,ै वक वजस आजािी की चाह फ़ै ज़ रखते थ।े िह उन्हें नहीं वमल पाती। फ़ै ज़ लोगों के वहत में लड़ते रह,े वजससे उनको नौकरी से हाथ धोना ही पड़ा और इसी के चलते कई बार जले और वनिासष न कषट् भी उठाना पड़ा। फ़ै ज़ ने जले में रहकर भी वलखा करत।े ‘वज़नि् ानामा’ ऐसी ही पसु त् क ह।ै ‘िसत् े सबां’ जले मंे वलखी िसू री पसु त् क थी। वजस पर सजज् ात ज़हीर ने वलखा ह-ै ‘बहतु अरसा गजु र जाने के बाि जब लोग रािलवपंडी सावज़श के मकु द्दमे को भलू जायगे े और पावकसत् ान का मिु ररषख 1952 के अहम िाियात पर नजर डाले तो ग़ावलब इस साल का सबसे अहम तारीखी िािया मज़्मों की इस छोटी सी वकताब की इशाअत को ही िरार विया जायेगा।’ इससे फ़ै ज़ की मलू ्यित्ता का बोध होता ह।ै जले मंे रहकर फ़ै ज़ पावकसत् ान के शासन के विरोध में आिाज उठाते रह।े विरोह करने को उकसाती उनकी यह नज़्म कािी लोकवप्रय ह-ै '‘हम िखे गंे े लावज़म है वक हम भी िखे गें े सब ताज उछाले जाएगं े सब तख्् ़ैत वगराए जाएगं े'’121 विरोह और प्रमे िोनों की वनस्िाथष कमष की मागं करते ह।ै क्रावन्त और प्रमे को एक तरह से महससू कर पाना यह फ़ै ज़ की बहतु बड़ी विशषे ता है जो उनह् ंे तरक़्िीपसिं सावहतय् कारों से अलग करती ह।ै उिाहरण- ‘गलु ों में रंग भरे बाि-ए-नौबहार चले चले भी आओ के गलु शन का कारोबार चल’े 122 ‘मिु ाम फ़ै ज़ कोई राह में जचँ ता ही नहीं जो कू -ए-यार से वनकले तो स-ू ए-िार चले।’123 फ़ै ज़ की दृषव् ट अपने िशे पर ही नहीं थी, बवल्क िे संसार के अनय् िशे ों को भी िखे ते थे। वजस प्रकार सि् िशे की जनता के ि:ु ख ििष के साथ घड़े हुए उसी प्रकार ससं ार के अनय् िशे ों की जनता जो आजािी की मांग कर रही थी। फ़ै ज़ इन सबके िखे कर बड़े होते ह।ै अफ्रीका के नशल् विरोधी आनि् ोलन का समथनष वकया और Africa come back नामक 120 पषृ ्ठ–सबु हे आज़ािी ] 121 पषृ ्ठ-120 122 पषृ ्ठ-135 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 124 123 पषृ ्ठ-135 वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अंक 64, अगस्त 2020 कविता वलखी। ईरानी में जो सरकारी तिं वखलाि के वलए अिं ोलन हुआ उसमें छािों ने बड़ी संखय् ा मंे भाग वलया था। उनकी याि मंे आपने ‘ईरानी तलु बा के नाम’शीषकष से नज़्म वलखी। इसी प्रकार विवलसत् ीन, बरूत और बांगल् ािशे पर आपने नज़्मे वलखी। उिाहरण- ‘‘आ जाओ, मनंै े सनु ली तेरे ढोल की तरंग आ जाओ, मसत् हो गई मरे े लहू की ताल आ जाओ, एफ्रीका’’124 इस ज़माने मंे इपट् ा का आनि् ोलन भी शरु ू हुआ। इसका के नर् बमब् ई इसी प्रकार आनध् ्र प्रिशे , बगं ाल, य.ू पी., और पजं ाब में भी वथयेटर सिल सथ् ापना हुई। वथयेटर मंे काम करने िाले राजनीवत से भी होते थे। इसवलए गीतों, नाचों और नाटकों मंे राजनीवतक और सामावजक समसय् ाओं और उनके ि:ु ख-सखु , उनकी आकािं ा को िय् क् त वकया जाता था। वथयेटर और प्रगवतशील लखे कों मंे चोली-िामन का साथ था। प्रगवतशील लेखकों की संसथ् ा के कायषकत्ताष, वथयेटर में भी काम करतथे ।े जसै े- ख्् ि़ै ाजा अहम अबब् ास, सरिार ज़ािरी, मख्् ़ैिमू , िावमि आवि। लवे कन आधं ्र प्रिशे मंे वथयटे र और प्रगवतशील लखे क संघ संबंध सबसे जय् ािा गहरा था। िहाँ इस जमाने मंे एक ड्रामा आधं ्र वथयटे र ने पशे वकया, जो खासा पसंि वकया गया। इस ड्रामे का विषय वकसानों की ज़मीन के वलए जद्दोजहि थी। आधं ्र प्रिशे तले ंगाना में वकसानोंको जाग्रत और संगवठत करने मंे पीपलु वथयेटर के इस तरक़्िीपसिं ड्रामे और कथाओं का बहुत बड़ा हाथ ह।ै इस प्रकार से तरक़्िी पसंि आविबों म-ें वज़गर मरु ािािािी, सावहरलवु धयानिी,अली सरिारज़ािरी, फ़ै ज़, कै फ़ी आज़मी, ज़ोश मलिािी आवि ह।ैं इनमंे से सबसे जय् ािा लोकवप्रयता फ़ै ज़ को वमली इसका कारण इनकी रोमावनयत के साथ यथाथतष ा, हसु ्न के साथ वनजकमतष ा का सि् र,साथ ही नई-नई उपमाएं ह।ै इन्हीं गणु ों से आज भी फ़ै ज़ अहमि फ़ै ज़ की लोकवप्रयता और प्रासवं गकता बनी हुई ह।ै संदभष-ग्रंथ रोशनाई- तरक़्िीपसिं तहरीक की यािे सजज् ाि ज़हीर उिषू से अनिु ाि- जानकी प्रसाि शमाष िाणी प्रकाशन, नई विलल् ी- 110002 प्रथम ससं क् रण- 2000 फ़ै ज़ अहमि फ़ै ज़ प्रवतवनवध प्रकाशन विलल् ी तीसरी आिवृ त्त- 2007 सिािक-ग्रथं रौशनाई, प्रगवतशील आनि् ोलन का इवतहास फ़ै ज अहमि फ़ै ज प्रवतवनवध कविताए।ँ फ़ै ज़ की शायरी- प.ं प्रकाश पंवडत। 124 पषृ ्ठ-113 ] वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 125

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) ‘नेटवकष ’ मौन अमभव्िमक्तिों का (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 64, August 2020 www.jankriti.com िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020 राम एकबाल कु शवािा मो8447908518 [email protected] सारांश कहािीकार नबिम नसहं का कहािी सगं ्रह ‘आचायत का िेटवकत ’ हमारा ध्याि कई कारणों से अपिी और खींचता ह।ै इिमंे भाषा, भाव, पररवशे , और नवषयित वनै शि्य के साथ ही संवदे िात्मक जड़ु ाव भी शानमल ह|ै लने कि सगं ्रह की कहानियों का मखु ्य आधार नवश्वनवद्यालयी जीवि का उलझा हुआ लोकतंर और सामानजक-जातीय समीकरण में उपने क्षत समदु ाय की नवकनसत हो रही नचतं ि परम्परा को एक रणिीनत के तहत सनमत और अनधग्रनहत नकये जािे के हो रहे प्रयास ह|ैं ये दो मखु ्य स्तर हंै जहाँ पर कहािीकार अपिा एक पक्ष रचता ह|ै यह पक्ष उि मौि अनभव्यनियों का एक िेटवकत िथंू ता (तैयार करता) है नजसे प्रभावशाली तंर और वचतस्ववादी जानतयों द्वारा हमशे ा से नवखनं डत नकया जाता रहा ह|ै यह लखे नबिम नसंह की कहानियों मंे उद्भानसत इि पक्षों तक पहुचँ िे के नलए एक माित की खोज करता ह|ै बीज शब्द लोकतंर,सामानजक, रणिीनत, अनभव्यनि, तंर, माित मवस्तार कु छ सावहत्यकार अपनी सावहवत्यक विवशष्टताओं के बािजिू सावहत्य-समाज में कम चवचतष हो पाते ह।ंै लेवकन न तो इससे उस सावहत्य की गररमा कम होती है और न ही सावहत्यकार की रचनात्मकता का आिशष कमजोर होता है। कु छ सावहत्य और सावहत्यकारों का पररवध पर चले जाना या उपवे ित हो जाना, कोई नई बात नहीं ह।ै छायािाि में के िल चार ही कवि नहीं थे लेवकन चचाष के िल छायािाि के चार स्तंभों की ही रही। इसी तरह प्रगवतिाि, प्रयोगिाि, नयी कविता या नयी कहानी में भी के िल िही रचनाकार सावहत्य के वलए महत्िपूणष नहीं थे जो इन िािों या आिं ोलनों के कंे र मंे रह।े उसी िौर मंे और भी बहतु से रचनाकार सवक्रय रूप से वलख रहे थे वजनकी रचनाएँ महत्िपणू ष होने के बािजिू के िल वहिं ी सावहत्य इवतहास का वहस्सा माि बन सकीं। बहुत से रचनाकार तो इवतहास में भी जगह नहीं बना सके । ितषमान समय में यह वस्थवत और भी वबगड़ी हईु ह।ै इसके कई कारण वचवह्नत वकये जा सकते ह।ैं बाजारिाि के िौर में विज्ञापन की महत्िपणू ष भवू मका ह,ै और सावहत्य के भी अपने बाजार और विज्ञापन ह।ंै ‘सावहत्य की राजनीवत’ तो अक्सर चचाष के कंे र में रहती ह।ै सवहत्य-सत्ता के कें र में रहने िाले लोग और उनकी िचै ाररकी भी सावहत्य के प्रिाह को प्रभावित करते ह।ंै बािजिू इसके हजारों रचनाकार वबना इसकी परिाह वकये वक उनकी रचनाओं का िावज़ब मलू ्य क्या होगा ? और ‘सावहत्य की राजनीवत’ उसे वकतना स्िीकार करेगी, अपने रचना कमष मंे लगे हुए ह।ंै इसे ितमष ान सावहत्य के सबसे उज्ज्िल पि के रूप मंे िखे ा जा सकता है और सावहत्य का यहीं मलू -भािबोध भी ह।ै ] वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 126
















































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