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Volume 6, Issue 64, August 2020

Published by jankritipatrika, 2020-10-03 13:21:07

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Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अंक 64, अगस्त 2020 वशिा की प्रावि के वलए विज्ञान, इजं ीवनयररंग, सामावजक विज्ञान ि कला के कॉलजे ों और विश्वविद्यालयों मंे िावखला ले रही ह।ै हम आसानी से वहजाब लगाए और बकु ाष पहने मवु स्लम लड़वकयों को विल्ली विश्वविद्यालय, जावमया वमवलया इस्लावमया, जिाहरलाल लाल नेहरु विश्वविद्यालय और इवं िरा गाँधी राष्ट्रीय मकु ्त विश्वविद्यालय मंे अध्ययन करते िखे सकते ह।ै कहने का मतलब यह है वक पिे का एक परू ा सन्िभष ही बिल गया ह।ै अब का सन्िभष पिे के साथ कई आधवु नक गवतविवधयों को समािवे शत वकए हएु ह।ै मनष्कषष: हमने अपने अध्ययन में िखे ा वक 1920 के िशक से शरु ू हुआ तबलीग का कायष अब व्यापक रूप से िै ल चकु ा ह।ै यह इस्लाम के बारे में ज्ञान प्रिान करने का एक उपयकु ्त माध्यम मचं बन चकु ा ह।ै यह ज्ञान मवु स्लम मवहलाओं को अपना जीिन जीने में एक तकष शवक्त प्रिान कर रहा ह।ै जसै े हमने ऊपर वकए अपने अध्ययन में विखाया वक कै से पविमी उत्तर प्रिशे के कई गाँिों मंे तबलीग के कायष का विस्तार हो रहा है और इस कायष के कारण उनके जीिन में बिलाि हो रहा ह।ै इस बिलाि को और अवधक स्प्ष्ट करने के वलए हमने ितमष ान वस्थवत की तलु ना 19 िीं शताब्िी से की ह।ै हमारे अध्ययन से यह तो पता चला है वक बिलाि तो हो रहा है और यह समाज में स्थावपत विवभन्न ससं ्थानों से टकरा ] भी रहा है जसै े; वपतसृ त्ता, जावत व्यिस्था, आधवु नक वशिा और मरे ोपोवलटन ससं ्कृ वत इत्यावि से। लवे कन इन विवभन्न संस्थानों में यह बिलाि वकस तरह विख रहा है उसके वलए और अवधक धरातलीय स्तर पर शोध की आिश्यकता है तथा उसके बाि ही हम वकसी वनष्ट्कषष पर पहुचँ सकते ह।ै सन्दभष सचू ी : मितीिक स्रोत ; पसु ्तकें - 1. Daly,Barbara, Metcalf, Perfecting Women: Maulana Ashraf Ali Thanawi,s Bhishti Zewar, A Partial Translation With Commentary, University Of California Press, 1990. 2. Minault, Gail, Secluded Scholars:Women’s Education And Muslim Social Reform In Colonial India, Oup, Delhi, 1998. 3. Ahmed, Safdar, Reform and Modernity in Islam, I.B.Tauris, London, 2013. 4. Anwar ul-Haq, S. The Faith Movement of Maulana Muhammad Ilyas, George Allen and Unwin, London, 1972. वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 61

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020 5. Daly Metcalfe, Barbara, Islamic Revival In British India: Deoband, 1860- 1900 A.D. Princeton University Press, 2014. 6. Ahmed, Nasreen, Muslim Leadership and Women’s Education : Uttar Pradesh, 1886- 1947, Three Essays Collective, 2012. 7. Minault, Gail. Gender, Language, and Learning: Essays in Indo-Muslim Cultural History, ISBN, New Delhi, 2009. 8. Hasnain, Nadeem (ed.), Sikand, Yogider, Islam and Muslim Communities in South Asia, Serial Publications, New Delhi, 2006. 9. Hasan, Mushirul (ed.), Living with Secularism : The Destiny of India’s Muslims, Manohar Publishers & Distributers, New Delhi, 2007. 10. Nadeem, Hasnain,(ed.) Sikand, Yoginder, The Tablighi Jamat in Post-1947, Mewat, Serial Publications New Delhi, 2006. 11. Jeffrey, Robin & Sen, Ronojoy (ed.) Being Muslim in South Asia: Diversity and Daily Life, OUP, India, 2014. 12. Maulvi Sayed Abul Hasan Ali Nadvi, Hazrat Maulvi Mohmmad Ilyad Ki Dini Dawat, Rasheed Publications, New Delhi, 2008.(In Urdu Language) आमटषकल- 1. Barbara, Metcalf,, Islam and Women : the case of tablighi jamaat , SEHR, vol. 5, 1996. 2. Siddiqi, Bulbul, Reconfiguring the gender relation : The case of the Tablighi Jamaat in Bangladesh, An Interdisciplinary Journal, 2012. 3. Daly,Barbara, Metcalf, Living Hadith in the Tablighi Jamaat, The Journal of Asian Studies, Vol.52, 1993. 4. Sikand, Yoginder (Review), Islamic Education for Girls, EPW, Vol, 41, 2006. 5. Begum, Momotaj, Female Leadership in Public Religious Space: An Alternative Group of Women in Tablighi Jamaat in Bangladesh, JIDC, Vol. 22, 2016, 6. Barbara, Metcalf, Travelers’ Tales in the Tablighi Jamaat , SAGE Publication, 2003. ] वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 62

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020 दमलत ममिला रचनाकारों की आयमकथाओं में अमभव्िंमजत व्िथा मवजिश्री सातपालकर शोधाथी, कामले कला, िावणज्य एिं विज्ञान महाविद्यालय, मडगाि-गोिा 7875507882 [email protected] ________________________________________________________ शोध सारांश मनहला आत्मकथाकारों मंे कौशल्या बैसरं ी की ‘दोहरा अनभशाप’ एवं सुशीला टाकभौरे की ‘नशकं जे का दद’त उल्लखे िीय ह।ै परु ुष लेखक की तलु िा में दनलत लने खकाओं की आत्मकथाएं उतिी मार मंे उपलब्ध िहीं ह।ै भारतीय वणत व्यवस्था के तले दनलत नस्त्रयाँ िे मािनसक एवं शारीररक पीड़ा की दोहरी मार सही ह।ै प्रस्ततु लेख में कौशल्या बसै ंरी कृ त ‘दोहरा अनभशाप’ और सशु ीला टाकभौरे कृ त ‘नशकं जे का दद’त आत्मकथाओंमें अनभव्यि व्यथा का नचरण नकया िया ह।ै बीज शब्द आत्मकथा, दनलत मनहला, दृनिकोण, अनस्मता, नवमशत ________________________________________________________________________ आमुख आत्मकथा वहन्िी सावहत्य में बहतु महत्िपणू ष विधा ह।ै वहन्िी के प्रख्यात रचनाकारों ने अपनी आत्मकथा को सबके समि प्रस्ततु कर आत्मकथा विधा को और चवचतष कर विया ह।ै मनषु्ट्य कोई भी हो उसके जीिन मंे उतार-चढ़ाि आता ही ह।ै आत्मकथा में इन्हीं वबन्िओु ं के साथ अन्य कई वबन्िु आत्मकथाओं में दृवष्टगत होते ह।ंै विशषे तः िवलत आत्मकथाओंमें सिं ास, पीड़ा, संघष,ष अत्याचार, अपमान, अिहले ना, व्यथा आवि िखे ने के वलए वमलता ह।ै आत्मकथा में रचनाकार जीिनानभु वू तयों को अवभव्यक्त करता ह।ै डॉ. बच्चन के अनसु ार आत्मकथा का अथष ‘आत्म वचिण’ ह।ै अवस्मता विमशष उभरने के बाि आत्मकथाओंमंे गवत आने लगी। “आत्मकथा लेखन मंे एक नया मोड़ आता है अवस्मता विमशष के उभार के बाि। लंबे समय तक आत्मकथा लेखन उपेवित पड़ा रहा। अवस्मता विमशों के बाि समाज के िवं चत एिं उपेवित समिु ाय की यातना कथा सामने आने लगी तो आत्मकथा लखे न एक बार महत्िपणू ष हो उठा। ‘पसषनल इज पॉवलवटकल’ की तजष पर िवं चत समिु ायों की जीिन कथा महत्िपणू ष हो गई। यही कारण है वक चाहे िवलत विमशष हो या स्त्री विमशष में आत्मकथाएं बड़ी सखं ्या मंे सामने आई।”1 वहिं ी सावहत्य में सिष प्रथम िवलत आत्मकथा 19 95में प्रकावशत मोहनिास नैवमशराय कृ त ‘अपने-अपने वपजं रे’ को ] माना जाता ह।ै और यहा से िवलत आत्मकथाओं का वसलवसला शरु ू हो जाता ह।ै मवहला आत्मकथाकारों में कौशल्या बैसंिी की ‘िोहरा अवभशाप’ एिं सशु ीला टाकभौरे की ‘वशकं जे का िि’ष उल्लखे नीय ह।ै परु ुष लेखक की तुलना में वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 63

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020 िवलत लवे खकाओं की आत्मकथाएं उतनी माि मंे उपलब्ध नहीं ह।ै भारतीय िणष व्यिस्था के तले िवलत वस्त्रयाँ ने मानवसक एिं शारीररक पीड़ा की िोहरी मार सही ह।ै “िवलत परु ुष माि जावतभिे का वशकार ह,ैं जबवक िवलत वस्त्रयाँ जावतभिे के साथ-साथ वलगं भिे की िोहरी चक्की मंे वपसती आई ह।ंै 2”अपनी इसी िासिी को लवे खकाओं ने अपनी आत्मकथाओं मंे वचवित वकया ह।ै कौशल्या कृ त ‘िोहरा अवभशाप’ कौशल्या बसै ंिी की आत्मकथा ‘िोहरा अवभशाप’ 1999 मंे प्रकावशत हुई। कौशल्या बैसंिी ने अपने वििावहत जीिन में बहतु कष्टों का सामना वकया। उन्होने वििाह के लगभग चार िशक तक यातनाएं सही। उनका वििाह एक स्ितंिता सेनानी से हआु था जो भारत सरकार के उच्च पि पर वस्थत होते हुये भी अपनी पत्नी पर जलु ्म करता था। इसीवलए उनसे अलग होने के बाि ही लवे खका ने अपने परू े जीिनानभु िों को कलमबद्ध वकया। कौशल्या ने आत्मकथा में अपने तीन पीवढ़यों की वस्थवत को उजागर वकया ह।ै “कौशल्या बैसंिी ने अपनी इस आत्मकथा में अपनी तीन पीवढ़यों की िवलत वस्त्रयों की वजजीविषा को रेखावं कत वकया ह।ै आत्मकथा मंे यह समाज मंे व्याि रूवढ़िाि, जावतिाि से उत्पन्न छु आछू त, भिे भाि, पिू ाषग्रह और वस्त्रयों के प्रवत वहन नजररया, गरीबी, भखु मरी, िवलत मवहला वहसं ा को सभ्य समाज के समि प्रस्ततु करती ह।ंै लेवखका ने अपनी अवभव्यवक्त के साथ-साथ उनके आस-पास हो रही वहसं ा को बड़ी गभं ीरता से महससू वकया और उन पर भी वटप्पणी की ह।ै ” 3 कौशल्या जी का जन्म िवलत पररिार मंे होने के कारण उन्हंे बहूत सहना पड़ा ह।ै िे बचपन से ही जावतभिे का वशकार रही ह।ै वनम्न जावत की होने के कारण स्कू ल की वशविका भी उनपर अत्याचार वकया करती थी। बाल्यािस्था मंे उनकी आवथकष वस्थवत ठीक नहीं थी। इसी आवथषक बिहाली के चलते पाँचिी किा मंे कौशल्या के माता-वपता िीस नहीं िे पाय।े “बाबा ने हडे वमस्रेस को आश्वासन विया और उनके चरणों के पास अपना वसर झकु ाया िरू स,े क्योंवक िे अछू त थे, स्पशष नहीं कर सकते थे। बाबा का चहे रा वकतना मायसू लग रहा था उस िक्त! मरे ी आखँ ंे भर आयी थीं। अब भी इस बात की याि आते ही बहुत व्यतीत हो जाती हू।ँ अपमान महससू करती हू।ँ जावत-पाँवत बनाने िालों का महंु नोचने का मन करता ह।ै अपमान का बिला लने े का मन करता ह।ै ”4 कौशल्या जी ने तत्कालीन िवलत वस्त्रयों की वस्थवत का भी िणनष अपने आत्मकथा में वकया। िवलत वस्त्रयों पर शारीररक, ] मानवसक अत्याचार वकया जाता था। वजससे वििश होकर िे आत्महत्याएं करने के वलए प्रितृ हो जाती थी।“ सखाराम की औरत विहाड़ी पर मजिरू ी कर रही थी। िह सीमटंे -ईटं ें ढोकर वमस्त्री को िते ी थी। िह िखे ने मंे सिंु र थी, वमस्त्री बिमाश था। िह आते-जाते उसे छेड़ता था। एक विन उसने सीमटें का गोला बनाकर उसकी छाती पर मारा। उस औरत ने उसे गवलया िी परंतु िह बेशमष हसँ ता रहा। साथ में खड़े मजिरू भी िखे कर हसं रहे थ।े यह बात उस औरत ने अपने पवत से कही पवत का काम था जाकर उस बिमाश को डाटं े िटकारे। परंतु उसने अपनी औरत को ही डाटना शरु ू वकया और कहने लगा वक तमु और औरतंे भी तो िहाँ काम करती ह,ंै उन्हंे िह कु छ नहीं कहता और तमु ्हें ही क्यों छेड़ता ह।ै तुम ही बिचलन हो, यह कहकर उसे रात भर घर के बाहर रखा िह बेचारी झाड़ी में वछपी रही क्योंवक उसके बिन पर परू े कपड़े नहीं थे। रात मंे िह बस्ती के कु एं मंे कू ि गई। सिरे े उसका शरीर पानी के ऊपर तरै रहा था। उसके माँ बाप आए और कहने लगे वक इसने हमारी नाक कटिाई अच्छा ही हुआ वक यह कु लटा मर गई।”5 वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 64

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अंक 64, अगस्त 2020 यह लबं ा उद्धरण िवलत स्त्री की वििशता को भली भांवत स्पष्ट करता ह।ै इससे तत्कालीन समाज की मानवसकता को परखना आसान हो जाता ह।ै परु ुष अपना िचसष ्ि स्थावपत करने के वलए स्त्री की गलती के वबना उसे ही कसरू िार ठहरता ह।ै कौशल्या जी ने स्त्री होने के कारण बहुत अत्याचार सह।े परु ुष के वलए स्त्री कभी मायने नहीं रखती थी। स्त्री उसके वलए उपभोग की िस्तु माि थी। कौशल्या जी का ििै ावहत जीिन कभी सखु ी नहीं रहा। उनके पवत लखे क और स्ितिं सने ानी थे अपने पवत के बारे मंे िह वलखती हंै “ििे रंे कु मार को पत्नी वसिष खाना बनाने और शारीररक भकू वमटाने के वलए चावहए थी। िफ्तर के काम और वलखना यही उसकी वचतं ा थी। मझु े वकस चीज की जरूरत ह,ै उसका उसने कभी ध्यान नहीं विया।”6 लेवखका के पवत उच्च वशवित होकर भी अपनी पत्नी को कभी सम्मान नहीं िे पाए। वपतसृ त्तात्मक समाज ने कभी स्त्री को उसका अवधकार नहीं विया। कौशल्या जी आत्मकथा की भवू मका मंे वलखती ह,ैं “ पवत ने कभी मरे ी किर ही नहीं की बवल्क रोज-रोज के झगड़े, गावलयों ने मझु े मजबरू न घर छोड़ना पड़ा और कोटष के स करना पड़ा।7” कौशल्या ने अपने ऊपर होने िाले अत्याचार का सििै प्रवतरोध वकया। उन्होने कंु वठत जीिन व्यतीत करने की अपेिा अवधकार के वलए लड़ने की प्ररे णा िी ह।ै लवे खका को िवलत होने के वलये प्रतावड़त भी वकया जाता था वकन्तु िह वनभयष होकर उनका प्रवतरोध वकया करती। एक बार लेवखका ने अपने मोहल्ले में बी. सी डाल िी । उसमंे अवधकतर ब्राह्मण मवहलाएँ थी, वजन्होंने कौशल्या पर आपवत्त जताई तब लेवखका ने अपनी आिाज बलु ंि की,“ आपने मझु े मझु से मरे ी जावत नहीं पवू छ। क्या मंै अपनी जावत का पोस्टर पीठ पर वचपका कर रख?ँू आप सभ्य नहीं लगती। सभ्य आिमी जावत- पाँवत का विचार अपने मन मंे नहीं रखते और जावत-पावँ त मानने िालों से मंै अपना सपं कष नहीं रखती मझु े पहले पता होता वक आप जावत-पावँ त मानती हो तो मैं स्ियं आपके वचटिं ड मंे नहीं आती। 8” सशु ीला टाकभौरे कृ त “वशकं जे का िि”ष सशु ीला का जन्म मध्यप्रिशे के होशगं ाबाि वजले के बानापरु ा गाँि में िवलत पररिार में हआु । उस गािँ मंे छु आछू त, उंच- नीच, जावतभिे की भािना हर जगह विद्यमान थी। वनम्न जाती के लोग वजनमें भगं ी हररजन शावमल थे। उनके घर गािँ के बाहर ही थे। उन्होने वशिा को ज्यािा महत्ि नहीं विया। उनका मानना था “बच्चों को पढ़ाकर का होयगो? अपनी जात तो िही रहगे ी। काम, रोजगार तो अपनी जात के ही करनो पड़ेगों विर क्यों बच्चों को परेशान करें?”9 वकन्तु सौभाग्यिश सशु ीला के माता-वपता वशिा की महत्ता को जानते थ।े तमाम जवटलताओंके बािजिू उन्होंने सशु ीला को पढ़ाया। सशु ीला को स्कू ल मंे भी जावतभिे का वशकार होना पड़ा। तत्कालीन समाज मंे छु आछू त का इतना प्रभाि था वक बच्चे अपने हाथ से पानी भी लेकर नहीं पी सकते थे। उन्हंे िशष पर बठै ना पड़ता था। अपने ऊपर होने िाले शोषण से पीवड़त होकर लेवखका ने स्ियं को वहन्िू मनाने से भी इकं ार वकया ह।ै “वहन्िू धमष में निी, पहाड़, पड़े -पौधे, जानिर सभी को महत्ि और सम्मान विया जाता ह,ै लेवकन अछू त मनषु्ट्य को कोई सम्मान नहीं। वहन्िू धमष के आडंबर में वमट्टी से बने पतु लों को भी भगिान की तरह पजु ा जाता है मगर इसं ान को इसं ान नहीं मानते। यह वहन्िू धमष की विडम्बना ह,ै वहन्िू ससं ्कृ वत का कलकं ह।ै लोग इसे ही धमष कहते ह।ै 10” ] वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 65

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020 भारतीय िणष व्यिस्था के तहत िषों से िवलतों का शोषण वकया जा रहा ह।ै उन्हें नारकीय एिं उपवे ित जीिन जीने के वलए बाध्य वकया जाता ह।ै लवे खका अपने आत्मकथा के माध्यम से िवलत समाज, िवलत स्त्री की वस्थवत, लाचारी, वििशता को स्पष्ट वकया ह।ै मनिु ािी व्यिस्था ने िवलतों को कभी कु छ समझा ही नहीं। “मनसु ्मवृ त में अछू तों को वशिा से िरू रहने के वनिशे विये गए ह।ैं समाज मंे इन वनिशे ों का पालन श्रद्धा और वनष्ठा के साथ वकया जाता था।11” इस मानवसकता के चलते िवलत वशिा से सििै िरू ही रहा। वकन्तु सशु ीला के पररिार िाले खास कर उनकी माँ ने उनका साथ विया। सशु ीला ने बाल्यािस्था में प्रतड़ाना सहीं थी वकन्तु िह जान गई वक इन सबसे छू टकारा उन्हंे वशिा प्रावि से ही वमलेगा। अपनी मन की व्यथा िह इस तरह बयान करती ह,ै “ सच यह था कब आया योिन जान न पाया मन। वशकं जे में जकड़ा जीिन कभी मकु ्त भाि का अनभु ि ही नहीं कर पाया। वजिं गी एक वनवित की गई लीक पर चलती रही। िह उमगं कभी वमली ही नहीं जो योिन का अहसास करती। उम्र के साथ कटु अनभु वू तयों के िशं महससू होते रह।े पीड़ा से छटपटाता मन मवु क्त का ध्येय लेकर आगे बढ़ता रहा। तब मवु क्त का मागष मनैं े वशिा प्रावि को ही माना था।”12 समाज की उलाहना, शोषण, उपेिा, वतरस्कार सहते हएु सशु ीला वशिा ग्रहण करती रही। स्कू ल मंे सब उनका मज़ाक उड़ाया करते थे। किा मंे वसिष वशिक सिणों पर ही ज्यािा ध्यान िते े थ।े िवलत बच्चों को स्िणों के वपछली पवं क्त मंे वबठाया जाता। एक विन सशु ीला पहली पवं क्त मंे बैठ जाती है तब गरु ुजी उन्हें डांटकर कहते है ,“ सशु ीला तमु आगे क्यों बैठी ह।ै तमु ्हंे पीछे बठै ना चावहए।”13 सशु ीला को लगता है वक उनकी नानी गिं ा साि करती है इसीवलए उन्हंे कोई सम्मान नहीं िते ा। नानी मौसम की परिाह वकए वबना अपना काम करती बाररश मंे गिं ा उठाकर टोकरी मंे भरकर सर पर रखकर िरू िंे क िते ी। इसी पर िह अत्यंत शबु ्द्ध होकर कहती ह,ै “ यह सब तरे ी करततू है भगिान। जात पातं क्यों बनाई? हम ही क्यों करे ये नरक सिाई का काम।”14 तमाम उपेिा के बािजिू लवे खका सबकु छ सहते हुए आगे बढ़ती रही। लवे खका जानती थी वक वशिा िवलतों की समस्या का हल ह।ै उम्र के साथ जीिन के हर किम पर उन्हें समाज के लोगों ने िवलत होने के कारण उनके साथ िवु ्यषिहार वकया। िवलत स्त्री की पररवस्थवत वशकं जे में िं से पिी की भावं त है जो अपने मवु क्त के वलए छटपटाता ह।ै यह जाती रूपी वशकं जा िवलत स्त्री का जीिन िखु मय करता ह।ै इसी वशकं जे के ििष को लवे खका ने अपने आत्मकथा में व्यक्त वकया ह।ै सशु ीला के वशकं जे की जकड़न वििाह के पिात और कसती गई। उनका सिंु रलाल टाकभौरे के साथ अनमले वििाह था। उनमें बीस साल का अतं र था। वपतसृ त्तात्मक समाज के तहत सशु ीला अपने पवत का अत्याचार सहने के वलए वििश थी। पवत का मारना वमटना, सास-ननि के ताने सनु ना आवि। सशु ीला जी घरेलू वहसं ा का वशकार थी। आत्मकता मंे हर जगह इस व्यथा को िखे ा जा सकता ह।ै “स्कू ल से या बाहर से आने के बाि कभी-कभी टाकभोरे जी मरे े सामने परै लंबे कर िते ।े मरे ा ध्यान न रहने पर हाथों से इशारा करके जतू े उतारने के वलए कहते। मंै चपु चाप उनके परै ों के पास बैठकर जतू े के विते खोलती जतू े उतारती, मौजे उतारती। यह बात मझु े अजीब लगती थी। 15 ” ] वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 66

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020 इससे परु ुष सत्तात्मक मानवसकता का पता चलता ह।ै परु ुषों ने कभी वस्त्रयॉं को अपने बराबर नहीं समझा। सििै उन्हें भयभीत रखा और के िल उपभोग की िस्तु ही समझा। स्त्री को धमकाकर उन पर अवधकार जमाकर अपनी सत्ता को कायम रखा ह।ै सशु ीला जी के वलए पवत द्वारा मार-पीट, गाली-गलौच, नौकरनी जसै ा व्यिहार करना आम बात हो गई थी। “कभी कभी िे स्पष्ट शब्िों मंे कहते थ।े मरे े पैर पर अपना वसर रखकर मािी मांग तब मंै तरे ी बात मानँगू ा। 16” कटु जीिनानभु वू तयों को सहने के पिात सशु ीला जी ने अपनी हक की लढाई लड़ना शरु ू कर विया। जलु ्म करने से ज्यािा जलु ्म सहनेिाला होता ह।ै यह बात लवे खका जान गई। सड़ी गली परंपरों, रूवढ़यों से टकराने का साहस जटु ाकर समाज उद्धार के कायों में सवक्रय हो गयी। लेवखका लेखन कायष, िवलत-सावहत्य सम्मले नों, चचाओष ं में भाग लने े लगी, िवलत सावहत्य से सबं वन्धत स्ियं की पसु ्तकें प्रकावशत कर वहन्िी िवलत सावहत्य मंे अपनी पहचान बनाई। वनष्ट्कषतष ः कहा जा सकता है वक इन आत्मकथाओं मंे िवलत होने के कारण िवलतों पर होने िाले अत्याचार, शोषण, प्रताड़णा, उपिे ा, हीनता, व्यथा को िखे ा जा सकता ह।ै भारतीय िणष व्यिस्था के तले िवलत सििै से ही वपसता आ रहा ह।ै िवलत आत्मकथायें िहकता हआु िस्तािज़े सावबत हो रही ह।ै इन आत्मकथाओं में िवलत होने के साथ ही एक स्त्री पर होने िाले शोषण को व्यक्त वकया ह।ै इन लवे खकाओं ने कभी हर नहीं मानी। वशिा प्रावि को सारे िखु ों का हल जानकार अपने जीिन में आगे बढ़ती रहीं। सदं भष ग्रंथ : ] (1अनावमका कु मारी, 2018, स्त्री आत्मकथा लेखन के प्ररे क तत्ि:, ररसचष ररविऊ इटं रनेशनल जनलष औफ़ मल्टीवडवसवप्लनरी, प.ृ 576 । 2) डॉ. राजशे ्वरी, 2016, प्रवतरोध के स्िर बलु िं करतीक िवलत लेवखकाओं की आत्मकथाए:ं शब्ि ब्रह्म, , volume 4, प॰ृ 6। (3 रजनी वतलक, 2018, ‘वहन्िी िवलत सावहत्य मंे स्त्री वचिण ि वपतसृ त्ता’, समकालीन भारतीय िवलत मवहला लेखन आत्मकथा:, स्िराज प्रकाशन विल्ली, प॰ृ 45। (4 कौशल्य बैसिं ी, 2012, िोहरा अवभशाप, परमशे ्वरी प्रकाशन, प॰ृ 47। (5कौशल्य बैसिं ी, 2012, िोहरा अवभशाप:, परमशे ्वरी प्रकाशन, प॰ृ 56। (6 िहीं, (7 िहीं, प॰ृ 7 (8 िहीं, प॰ृ 116 (9सशु ीला टाकभौरे, 2014, वशकं जे का ििष िाणी प्रकाशन, प॰ृ 16। (10 िहीं, प॰ृ 51 (11 िहीं, प॰ृ 16 (12 िहीं, प॰ृ 19 (13 िहीं, पृ ॰ 22 (14 िहीं, प॰ृ 26 (15 िहीं, प॰ृ 143 वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 67

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) नई राष्रीि मशक्षा नीमत 2019: एक अवलोकन (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 64, August 2020 www.jankriti.com िषष 6, अंक 64, अगस्त 2020 डॉ. अजि कु मार मसिं सीवनयर एके डेवमक िे लो, भारतीय इवतहास अनसु धं ान पररषि,् नई विल्ली सारांश कंे द्रीय मािव ससं ाधि नवकास मंरालय िे िई नशक्षा िीनत तैयार करिे के नलये वषत 2015 में पवू त कै नबिटे सनचव टी.एस.आर. सबु ्रमण्यम की अध्यक्षता मंे पाचँ सदस्यीय सनमनत का िठि नकया िया। सनमनत की ओर से तयै ार िई नशक्षा िीनत का मसौदा सरकार को सौंप नदया िया। इस िीनत की सबसे बड़ी नवशषे ता यह है नक स्कू ली नशक्षा, उच्च नशक्षा के साथ कृ नष नशक्षा, काििू ी नशक्षा, नचनकत्सा नशक्षा और तकिीकी नशक्षा जसै ी व्यावसानयक नशक्षाओं को इसके दायरे में लाया िया ह।ै यह िीनत इि चार िींवों पर रखी िई है – उपलब्धता, समािता, िणु वत्ता, सलु भता और उत्तरदानयत्व। बीज शब्द नशक्षा, िीनत, समािता, भाषा, िीनत, भनवष्य आमखु ] वशिा का मतलब होता है ज्ञान, यह ज्ञान हम सभी को न वसिष सम्पणू ष मानि बनाने मंे सहायक होता है बवल्क एक सभ्य समाज का वनमाणष करने और मानि को उसका सही अथष बताने मंे परू ी तरह से सिम होता ह।ै वशिा एक ऐसा साधन है जो िशे के बच्चों से लके र यिु ाओं तक के भविष्ट्य का वनमाषण करता ह।ै यही कारण है वक मानि सभ्यता के आरंभ से ही वशिा को अवधक से अवधक व्यवक्तयों में आत्मसात करने के वलए कायष वकया गया। इस संिभष मंे भारत प्राचीन काल से ही महत्िपणू ष रहा है तथा वशिा के के न्र के रूप मंे जाना जाता रहा ह।ै ितषमान समय में भारत िवु नया की सबसे बड़ी वशिा प्रणावलयों में जाना जाता है जहाँ तकरीबन 1.53 वमवलयन स्कू ल, 864 से अवधक विश्वविद्यालय, 45 के न्रीय विश्वविद्यालय सवहत 51 राष्ट्रीय महवि की संस्थाएँ ह,ैं वजनमंे लगभग 23 आईआईटी और 30 एनआईटी (NIT) शावमल ह।ंै िहीं 300 वमवलयन से अवधक छाि ह।ंै इसके बािजिू अभी भी वशिा की सलु भता और गणु ित्ता मंे विस्तार की आिश्यकता ह।ै भारत में राष्रीि मशक्षा नीमत: ऐमतिामसक सन्दभष वशिा में सधु ार का िौर िशे में आजािी के पहले से ही चला आ रहा है लवे कन यह सधु ार औपवनिवे शक वहतों के अनकु ू ल था। उिाहरण के वलए मैकाले का घोषणा-पि 1835, वुड का घोषणा पि 1854, िण्टर आिोग 1882 आवि। इसके साथ ही उस िक्त के सीवमत संसाधनों में हर व्यवक्त तक वशिा पहुचँ ाना मवु श्कल होता था। स्ितिं ता के पिात् सभी तक वशिा की पहुचँ सलु भ कराने के उद्दशे ्य से सिपष ्रथम 1948-49 मंे राधाकृ ष्ण आिोग तथा 1953 का माध्िममक मशक्षा आिोग िा मदु ामलिर आिोग को स्थावपत वकया गया और वशिा के गणु ित्ता पर ध्यान िने े के उद्दशे ्य से साल 1961 में एनसीईआरटी की स्थापना हुई। उच्च वशिा में सधु ार के वलए 1953 मंे मवश्वमवद्यालि अनदु ान आिोग की स्थापना की गई। इसके बाि कोठारी वशिा आयोग द्वारा की गई वसिाररशों के अनसु रण मंे प्रथम राष्ट्रीय वशिा नीवत अपनाई गई वजसमंे 6 िषष तक के बच्चों के उवचत विकास के वलए समेवकत बाल विकास सिे ा योजना की शरु ूआत हईु । 1976 में 42िंे संविधान संशोधन के माध्यम से के न्र और राज्य िोनों की वजम्मेिारी को समझते हएु वशिा को समिती सचू ी मंे शावमल वकया गया। िहीं वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 68

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020 1986 मंे नई राष्रीि मशक्षा नीमत को अपनाया गया वजसे 1992 मंे आचािष राममूमतष समममत िारा समीक्षा के आधार पर राष्ट्रीय वशिा नीवत में कु छ बिलाि कर भारतीय वशिा व्यिस्था को सही विशा िने े की गभं ीर कोवशश की गई। लेवकन इसके बािजिू अवनिायष वशिा की माँग चलती रही और समय-समय पर इसके वलए आन्िोलन होते रह।े वशिा का अवधकार िशे के हर बच्चे को वमले इसके वलए वशिा को संिैधावनक िजाष िने े की मागँ कई िशकों तक की गई। सरकार ने 2002 में सवं िधान मंे नई धारा जोड़ी वजसके बाि RTE यानी वशिा के अवधकार की राह खलु गई। हालाँवक सवं िधान में पहले भी वशिा का वजक्र था लेवकन यह अवनिायष नहीं था। अनचु ्छेि 45 के मतु ावबक बच्चों की पढ़ाई की व्यिस्था राज्य की वजम्मेिारी ह,ै लवे कन वशिा के अवधकार को मौवलक अवधकार के िायरे में नहीं रखा गया था। इस संिभष मंे 1966 में कोठारी आिोग ने वशिा की बहे तरी और िायरा बढ़ाने की वसिाररश की थी। इस विशा में आगे बढ़ते हएु 2002 में समं वधान मंे अनुचछेद 21ए जोड़ा गया, वजसके पिात् 1 अप्रलै 2010 में जाकर वशिा का अवधकार काननू लागू हुआ। इसके तहत 6- 14 साल तक के बच्चों को वशिा का सिं ैधावनक अवधकार विया गया तावक िह मफ़ु ्त और अवनिायष वशिा हावसल कर सकें । उल्लखे नीय है वक वशिा के अवधकार के मौवलक अवधकार बन जाने के बाि हालात में कािी सधु ार हआु है लवे कन यह योजना लक्ष्य से अभी-भी कािी पीछे है और सरकार तेजी से लक्ष्य की ओर बढ़ रही ह।ै सिष वशिा अवभयान से पहले 1993-94 मंे मजला प्राथममक मशक्षा अमभिान की शरु ूआत हुई थी वजसमें िशे भर के 18 राज्यों के 272 वजलों मंे हर बच्चों को वशिा िने े की योजना थी, लवे कन बाि में इसे भी सिष वशिा अवभयान में ही वमला विया गया। हालाँवक बिलते िौर में िशे की वशिा नीवत में भी बड़ा बिलाि िखे ने को वमला ह।ै मौजिू ा सरकार बच्चों को स्कू लों से जोड़ने के अलािा कौशल आधाररत वशिा पर भी जोर िे रही ह।ै िषष 2000 में बच्चों के हाथों में वकताब और कलम थमाने की महत्िाकािं ी योजना के तौर पर सिष वशिा अवभयान की शरु ूआत की गई। सिष वशिा अवभयान में लड़वकयों और विशषे रूप से बच्चों के वशिा पर जोर िने े की बात कही गई ह।ै यही नहीं कम्प्यटू र एजकु े शन के जररए बिलते जमाने में बच्चों को तकनीकी रूप से िि करना भी लक्ष्य ह।ै सरकारी स्कू लों के बवु नयािी ढाँचे मंे विकास के साथ ही छाि-वशिक अनपु ात को अतं राष्ट्रीय मानकों तक लाना आज की नई वशिा नीवत की अहम प्राथवमकताएँ ह।ंै इसी उद्दशे ्य को ध्यान मंे रखते हएु वशिा में बड़े लक्ष्य को पाने के वलए राष्ट्रीय वशिा नीवत के वनधाषरण हते ु 2018 में डॉ. के . कस्तरू ीरंगन की अध्यिता मंे सवमवत का गठन वकया। नई राष्रीि मशक्षा नीमत का मसौदा: प्रमुख मसफाररशंे कें रीय मानि संसाधन विकास मिं ालय ने नई वशिा नीवत तयै ार करने के वलये िषष 2015 मंे पिू ष कै वबनटे सवचि टी.एस.आर. सबु ्रमण्यम की अध्यिता में पाचँ सिस्यीय सवमवत का गठन वकया गया। सवमवत की ओर से तैयार नई वशिा नीवत का मसौिा सरकार को सौंप विया गया। इस नीवत की सबसे बड़ी विशषे ता यह है वक स्कू ली वशिा, उच्च वशिा के साथ कृ वष वशिा, काननू ी वशिा, वचवकत्सा वशिा और तकनीकी वशिा जसै ी व्यािसावयक वशिाओं को इसके िायरे में लाया गया ह।ै यह नीवत इन चार नींिों पर रखी गई है – उपलब्धता, समानता, गणु ित्ता, सलु भता और उत्तरिावयत्ि। नई वशिा नीवत के तहत वशिा के अवधकार अवधवनयम (RTE) के िायरे को विस्ततृ करने का प्रयास वकया गया ह,ै साथ ही स्नातक पाठ्यक्रमों को भी संशोवधत वकया गया ह।ै इसमें आट्षस साइसं एजकु े शन के चार िषीय कायषक्रम को विर से शरु ू करने तथा कई कायकष ्रमों को हटाने के विकल्प के साथ एम. विल प्रोग्राम को रद्द करने का भी प्रस्ताि वकया गया ह।ै नई वशिा नीवत के अनसु ार, पी-एच- डी- करने के वलए अब या तो मास्टर वडग्री या चार साल की स्नातक वडग्री अवनिायष होगी। नए पाठ्यक्रम मंे 3 से 18 िषष तक ] वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 69

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अंक 64, अगस्त 2020 के बच्चों को किर करने के वलये 5+3+3+3+4 वडजाइन (आयु िगष 3-8 िषष, 8-11 िषष, 11-14 िषष और 14-18 िष)ष तयै ार वकया गया ह।ै वजसमंे प्रारंवभक वशिा से लके र स्कू ली पाठ्यक्रम तक वशिण शास्त्र के पनु गषठन के भाग के रूप मंे समािेशन के वलये नीवत तैयार की गई ह।ै यह मसौिा धारा 12(1)(सी) (वनजी स्कू लों में आवथकष रूप से कमजोर िगष के छािों के वलये अवनिायष 25 प्रवतशत आरिण का िरु ुपयोग वकया जाना) की भी समीिा करती ह।ै उच्च वशिा के ििे ों के वलए तीन प्रकार के उच्च वशिण ससं ्थानों के पनु गठष न की योजना भी प्रस्तावित है वजसके तहत सभी उच्च वशिा संस्थानों को तीन श्रेवणयों में पनु गवष ठत वकया जायगे ा। टाइप 1: इसमें विश्व स्तरीय अनसु धं ान और उच्च गणु ित्ता िाले वशिण पर ध्यान के वन्रत वकया गया ह।ै टाइप 2: इसके तहत अनसु धं ान के ििे मंे महत्िपणू ष योगिान के साथ ही विषयों मंे उच्च गणु ित्ता िाले वशिण पर ध्यान के वन्रत वकया गया ह।ै टाइप 3: उच्च गणु ित्ता िाला वशिण स्नातक वशिा पर के वन्रत होगा। उल्लेखनीय है वक यह कायषक्रम िो वमशनों द्वारा संचावलत होगा- वमशन नालंिा और वमशन तिवशला। स्कू ली वशिा के वलये एक स्ितंि वनयामक ‘राज्य विद्यालय वनयामक प्रावधकरण’ (SSRA) और उच्च वशिा के वलये राष्ट्रीय उच्चतर वशिा वनयामक प्रावधकरण स्थावपत वकया जाएगा। वनजी स्कू ल अपनी िीस वनधाषररत करने के वलये स्ितंि होंगे, लवे कन िे मनमाने तरीके से स्कू ल की िीस मंे िवृ द्ध नहीं करंेगे। ‘राज्य विद्यालय वनयामक प्रावधकरण’ द्वारा प्रत्यके तीन साल की अिवध के वलए इसका वनधारष ण वकया जाएगा। प्रधानमंिी के नेततृ ्ि मंे एक नए शीषष वनकाय ‘राष्ट्रीय वशिा आयोग’ की स्थापना की जाएगी जो सतत् आधार पर वशिा के विकास, कायाषन्ियन, मलू ्यांकन और वशिा के उपयकु ्त दृवष्टकोण को लागू करने के वलये उत्तरिायी होगा। वििशे ों मंे भारतीय संस्थानों की सखं ्या में िवृ द्ध करने के साथ-साथ िवु नया के शीषष 200 विश्वविद्यालयों को भारत में अपनी शाखाएँ स्थावपत करने की अनमु वत िी जाएगी। इस प्रकार उच्च वशिा के अतं राष्ट्रीयकरण पर बल विया गया ह।ै नई राष्रीि मशक्षा नीमत का लक्ष्ि 0-6 साल के बच्चों तक उच्च गणु ित्ता िाले ईसीसीई (ECCE - Early Childhood Care and Education) प्रोग्राम वजनमें बच्चों को भाषा संबंवधत गवतविवधयाँ करिाई जाती हंै की पहुचँ वनःशलु ्क और सरल बन।े प्रारंवभक बाल अिस्था वशिा से सबं ंवधत सभी पहलू मानि संसाधन विकास मिं लय के िायरे में आयेगं े। नई वशिा नीवत द्वारा ड्रॉप आउट बच्चों को वशिा से िोबारा जोड़ने और सभी तक वशिा की पहचुँ को सवु नवित करिाने का भी लक्ष्य रखा गया ह।ै इसके तहत 2030 तक 3-18 साल के उम्र के सभी बच्चों के वलए वनःशलु ्क और अवनिायष गणु ित्तापणू ष वशिा तक पहुचँ और भागीिारी को सवु नवित वकया गया ह।ै माध्यवमक वशिा को सुवनवित करने के वलए वशिा के अवधकार अवधवनयम को विस्ताररत वकया गया है वजसके तहत साल 2030 तक किा 12 तक मफ़ु ्त और अवनिायष वशिा महु यै ा कराने की व्यिस्था की गई ह।ै 2022 तक वशिा और वशिा शास्त्र में आमलू -चलू बिलाि करना भी एक लक्ष्य है तावक रटने के चलन को खत्म वकया जा सके और हुनर एिं कौशल जैसे तावकष क वचंतन, सजृ नात्मकता, िैज्ञावनक सोच, सिं ाि और सहयोग की िमता, बहभु ावषकता, सामावजक वजम्मिे ारी और सरोकार के साथ ही वडवजटल विकास सािरता को समग्र रूप मंे बढ़ािा विया जा सके । नई राष्रीि मशक्षा नीमत की आवश्िकता क्िों? भारत मंे नई वशिा नीवत की जरूरत को वनम्न वबन्िओु ं के अतं गषत समझा जा सकता ह-ै ] वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 70

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 64, August 2020 www.jankriti.com िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020  मौजिू ा वशिा नीवत उन अपिे ाओं पर खरा नहीं उतर सकी वजसकी उम्मीि की गई थी। उिाहरण के तौर पर उद्योग- व्यापार जगत द्वारा लगातार इस बात को लके र वचंता व्यक्त की गई वक स्कू लों और कॉलेजों से ऐसे यिु ा नहीं वनकल पा रहे हंै जो उसकी आिश्यकताओं के वहसाब से उपयकु ्त हों।  मौजिू ा वशिा व्यिस्था की एक खामी यह भी है वक िशे मंे वजस तरह के नैवतक आचार-व्यिहार का पररचय विया जाना चावहए उसको यह प्राि करने में असिल रही ह।ै  ितमष ान वशिा व्यिस्था में ज्ञान से ज्यािा महवि अच्छे अकं ों को विया जाने लगा ह,ै नतीजतन विद्यावथषयों मंे ज्ञान की जगह अच्छे अकं ों को प्राि करने की प्रवतस्पद्धाष बढ़ी है जबवक कु छ िषों पहले ही इस बात की अनभु वू त हो गई थी वक वकताबी ज्ञान का एक सीमा तक ही महवि होता है इसके बािजिू नए तौर-तरीके अपनाने को प्राथवमकता नहीं प्रिान की गई।  यह बात सही है वक स्कू लों-कॉलजे ों से वनकले कई यिु ाओं ने िशे -िवु नया मंे भारत को एक नई पहचान विलाई ह,ै लेवकन यह भी एक यथाथष है वक ऐसा अिसर मटु ्ठीभर छािों को ही वमल पाया है वजसके वलए कहीं न कहीं मौजिू ा व्यिस्था उत्तरिायी ह।ै  वशिा राष्ट्र वनमाषण का प्रभािी माध्यम होता ह।ै ऐसे मंे वशिा मंे असमानता राष्टीय एकता के वलए खतरा उत्पन्न कर सकती है वजसको एक समान पाठयक्रम अपनाकर िरू वकया जा सकता ह,ै लेवकन इस विशा मंे कोई ठोस किम नहीं उठाया गया। नतीजतन नई वशिा नीवत का महवि बढ़ जाता ह।ै  समान पाठयक्रम के अलािा नई वशिा नीवत में इस बात पर भी ध्यान विया गया है वक वशिा के िल वडग्री-वडप्लोमा पाने का जररया और नौकरी पाने भर तक ही सीवमत न रहे बवल्क इससे व्यवक्त का सिांगीण विकास होने के साथ उनके सोचने-समझने की िमता भी बढ़े।  नई वशिा नीवत राज्यों और संघ शावसत प्रिशे ों को अपने उपलब्ध ससं ाधनों के वहसाब से अपनी प्राथवमकता तय करने और योजना के प्रािधान लागू करने का अिसर िते ा है वजसका अभाि ितषमान वशिा व्यिस्था मंे िखे ा गया। नई राष्रीि मशक्षा नीमत की चुनौमतिाँ नई वशिा नीवत के माध्यम से सरकार द्वारा शिै वणक ढाचँ े को बेहतर बनाने का प्रयास अपने-आप में एक सराहनीय कायष ह,ै लेवकन इसके समि कई चनु ौवतयाँ मौजिू हंै वजनका िणनष वनम्न वबन्िओु ं के अतं गषत वकया जा सकता ह-ै  भारत में लगभग एक वतहाई बच्चे प्राथवमक वशिा परू ी होने से पहले ही स्कू ल छोड़ िते े ह।ंै उल्लेखनीय है वक जो बच्चे स्कू ल नहीं जा पाते हैं उनमें से अवधकतर बच्चे अनसु वू चत जावतयों और अनसु वू चत जनजावतयों के अलािा धावमषक अल्पसंख्यक ि विव्यांग समहू के होते ह।ैं  एक महत्िपणू ष चनु ौती बवु नयािी ढाचँ े के अभाि से सबं ंवधत ह।ै सामान्यतः िखे ा गया है वक विद्यालयों ि विश्वविद्यालयों मंे वबजली, पानी, शौचालय, बाउंड्री िीिार, लाइब्ररे ी, कम्प्यटू र आवि की कमी होती ह,ै नतीजतन इससे वशिा व्यिस्था प्रभावित होती ह।ै विश्व बंकै की िल्डष डेिलपमटंे ररपोटष 2018 ‘लवनगं टू ररयलाइज एजकु े शन प्रॉवमस’ के अनसु ार भारत की वशिा व्यिस्था बितर वस्थवत मंे ह।ै ] वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 71

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अकं 64, अगस्त 2020  सरकार द्वारा वशिा िेि मंे सधु ार के वलये जो प्रयास वकए जाते हैं उसके असिल होने का जोवखम रहता ह।ै िरअसल इसकी िजह वशिा नीवत मंे पररितषन करते समय रोडमपै का अनसु रण नहीं करना ि नीवतयाँ बनाते समय सभी वहतधारकों को ध्यान मंे नहीं रखना ह।ै  असर (ASER) के मतु ावबक ग्रामीण िेिों मंे सरकार ने वशिा िेि के बवु नयािी ढाचँ े मंे भले ही वनिशे वकया है लवे कन उसे अपेिाकृ त सिलता नहीं वमली ह।ै नई वशिा व्यिस्था के समि एक चनु ौती वशिकों की कमी िरू करने की भी ह।ै वनयंिक एिं महालेखा परीिक (कै ग) की 2017 के ररपोटष के अनसु ार बड़ी संख्या मंे ज्यािातर स्कू ल एक वशिक के ही भरोसे चल रहे हंै वजसका असर वशिा की गुणित्ता पर पड़ता ह।ै यजू ीसी (UGC) के हावलया सिे के मतु ावबक कु ल स्िीकृ त वशिण पिों में से 35% प्रोिे सर के पि, 46% एसोवसएट प्रोिे सर के पि और 26% सहायक प्रोिे सर के पि ररक्त ह।ंै  एक अन्य चनु ौती उच्च वशिा की गणु ित्ता बढ़ाने की भी ह।ै उल्लखे नीय है वक टॉप-200 विश्व रैंवकं ग मंे बहुत कम भारतीय वशिण संस्थानों को ही जगह वमल पाती ह।ै  वशिा नीवत के समि एक महत्िपणू ष चनु ौती विश्वविद्यालयों और कॉलजे ों में प्रोिे सरों की जिाबिहे ी और प्रिशनष सवु नवित करने सबं ंवधत िामषलू ा लागू करने को लेकर भी ह।ै आज विश्व के कई विश्वविद्यालयों में वशिकों के प्रिशनष का मलू ्यांकन उनके सावथयों और छािों के प्रिशनष के आधार पर वकया जाता ह।ै  मसौिे में मौजिू विभाषा नीवत भी नई वशिा नीवत के समि चनु ौती पेश कर रही है िरअसल इसमें गैर वहन्िी भाषा ििे मंे मातभृ ाषा, सपं कष भाषा, अगं ्रेजी भाषा के अलािा तीसरी भाषा के रूप मंे वहन्िी को को अवनिायष वकए जाने की वसिाररश की गई ह।ै  नई वशिा नीवत मंे वशिा पर खचष होने िाली धनरावश को िगु नु ा कर GDP का 6% करने तथा वशिा पर समग्र सािजष वनक व्यय को ितषमान 10% से बढ़ाकर 20% करने की बात कही गई ह।ै यह िाछं नीय तो है पर वनकट भविष्ट्य में यह सभं ि नहीं विखता क्योंवक अवधकाशं अवतररक्त धनरावश राज्यों से आनी ह।ै  प्रारूप में पावल, प्राकृ त और िारसी के वलए नए संस्थान बनाने की बात कही गई ह।ै यह एक निीन विचार ह,ै परन्तु क्या अच्छा नहीं होता वक इसके बिले मैसरू ू मंे वस्थत के न्रीय भारतीय भाषा संस्थान को ही एक विश्वविद्यालय बनाते हुए इन भाषाओं के अध्ययन के वलए सदु ृढ़ वकया जाता।  वशिा अवधकार अवधवनयम को विस्ताररत करते हुए उसमंे स्कू ल-पिू ष बच्चों को शावमल करना एक अच्छा प्रस्ताि ह।ै परन्तु यह काम धीरे-धीरे होना चावहए क्योंवक ितमष ान शैिवणक अिसंरचना और वशिक पिों मंे ररवक्तयों को िखे ते हएु यह काम तेजी से नहीं हो सकता ह।ै पनु ः वशिा अवधकार अवधवनयम में इस आशय का सधु ार करने मंे भी समय लग सकता ह।ै  नई नीवत के अनसु ार प्रधानमिं ी की अध्यिता मंे एक राष्ट्रीय वशिा आयोग गवठत होना ह।ै परन्तु इस आयोग की राह कई प्रशासवनक कारणों से काँटों भरी हो सकती ह।ै उिाहरण के वलए, राष्ट्रीय वचवकत्सा आयोग विधेयक, 2017 का क्या होगा? वचवकत्सा, कृ वष और विवध से सम्बंवधत ससं ्थानों को एक ही छतरी के अन्िर लाना सरल नहीं होगा। ] वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 72

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com www.jankriti.com Volume 6, Issue 64, August 2020 िषष 6, अंक 64, अगस्त 2020  प्रस्तावित नीवत मंे राष्ट्रीय उच्चतर वशिा वनयामक प्रावधकरण (National Higher Education Regulatory Authority) की अवभकल्पना ह।ै पर यह प्रावधकरण वनयमन करने में कहाँ तक सिल होगा कहा नहीं जा सकता।  नई वशिा नीवत के प्रारूप में उच्चतर वशिा वनवध एजंसे ी (Higher Education Funding Agency) जसै ी एजेवं सयों और उत्कृ ष्ट संस्थानों के विषय मंे मौन ह।ै मनष्कषषतः कहा जा सकता है वक नई वशिा नीवत 2019 सरकार द्वारा वशिा व्यिस्था मंे व्यापक पररितषन को इवं गत करती है लेवकन इसके समि कई चनु ौवतयाँ भी ह।ंै उल्लखे नीय है वक इन चनु ौवतयों से वनपटने का कायष पिू ष में होते रहे हंै लवे कन उपलवब्धयाँ सराहनीय नहीं रहीं ह।ंै इस संिभष में यहाँ कु छ सझु ािों को अमल में लाये जाने की आिश्यकता ह-ै  इस नीवत के तहत वशिा अवभयान को सिल बनाने के वलए सरकार, नागररक, सामावजक संस्थाएँ, विशेषज्ञों, माता- वपता, सामिु ावयक सिस्यों को अपने स्तर पर कायष करना चावहए।  वशिा जगत और उद्योग जगत के बीच एक सहजीिी ररश्ता स्थावपत वकया जाना चावहए तावक निाचारों का एक ऐसा पाररवस्थवतकी तंि बन सके वजसमंे रोजगार के व्यापक अिसर पिै ा हों। इसके वलए जरूरी है वक उद्योग जगत शैिवणक ससं ्थानों से जड़ु े।  इसके अवतररक्त कॉपोरेट प्रवतष्ठानों को चावहए वक विशेष महवि के ििे ों की पहचान कर उससे जड़ु े डॉक्टरेट और पोस्ट डॉक्टरेट अनसु धं ानों को वित्त महु यै ा करिाएं।  क्रे वडट रेवटंग एजवंे सयों, प्रवतवष्ठत उद्योग संगठनों, मीवडया घरानों और पशे िे र वनकायों को इस बात के वलए प्रोत्सावहत वकया जाना चावहए वक िे भारतीय विश्वविद्यालयों और संस्थानों को रेवटंग िे सकंे । एक सदु ृढ़ रेवटंग प्रणाली से विश्वविद्यालयों के बीच स्िस्थ प्रवतस्पद्धाष बढ़गे ी और उनके प्रिशषन में सधु ार होगा।  भारतीय विश्वविद्यालय आज भी विश्व के 100 शीषष रंैवकं ग िाले विश्वविद्यालयों मंे शावमल नहीं हो सका ह।ै इस वसलवसले में विश्वविद्यालयों और वशिावििों को आत्मअिलोकन कर संबवं धत मानकों में सधु ार करना चावहए।  इसके अलािा स्कू ली वशिा में सुधार के वलये वशिण विवधयों, प्रवशिण की विवधयों मंे भी सधु ार वकया जाना चावहए। अभी वशिा नीवत का जो प्रारूप हमारे सामने है उसे तयै ार करने की प्रवक्रया कािी पहले शरु ू हो गई थी तावक गुणित्तापणू ष वशिा, निाचार और अनसु ंधान के संबधं में जनसंख्या की बिलती हुई आिश्यकताओंको परू ा वकया जा सके । ऐसी वशिा नीवत तयै ार करने पर ज़ोर विया गया जो विद्यावथषयों को आिश्यक कौशल और ज्ञान से यकु ्त कर विज्ञान, प्रौद्योवगकी, वशिावििों और उद्योग मंे जनशवक्त की कमी को परू ा कर सके । यह नीवत अवभगम्यता, वनष्ट्पिता, गणु ित्ता, िहनीयता और जिाबिहे ी आधारभतू संरचना के आधार पर तयै ार की गई ह।ै िषष 1986 मंे तयै ार वशिा नीवत मंे िषष 1992 मंे व्यापक संशोधन वकया गया और यही नीवत अभी तक प्रचलन मंे ह।ै लवे कन बीते 28 सालों में िवु नया कहाँ-से-कहाँ पहचुँ गई है और इसी के मद्दने ज़र िशे की विशाल यिु ा आबािी की समकालीन ज़रूरतों और भविष्ट्य की ज़रूरतों को परू ा करने के वलये यह वशिा नीवत बनाई गई ह।ै अब समय की कसौटी पर यह वकतना खरा उतरती ह,ै यह भविष्ट्य के गभष में वछपा ह।ै सन्दभष:  प्रारूप राष्ट्रीय वशिा नीवत 2019 ,भारत सरकार ]  जएे स राजपतू , )पिू ष वनिशे क, राष्ट्रीय शैविक अनसु ंधान और प्रवशिण पररषि,् नई विल्ली) बोडष परीिाओं का िबाि कम करना क्रावन्तकारी किम वर्ष 6, अंक 64 ,अगस्त 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 64, August 2020 73






















































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