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Jankriti October 2020

Published by jankritipatrika, 2020-10-23 03:22:53

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Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 66, October 2020 www.jankriti.com िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 इसमलए तुमिे एक की िी ‘‘डॉ॰ िगेन्फर का आग्रि िै मक आसमाि जमीि।’’2 मूल्यांकि के मलए विी प्रमतमाि इस्तेमाल मकया जाए मजसका संबंध काव्य के ‘अंतरंग’ से िो आचायष रामचरि शकु ्ल ने ितषमान अिाषत् जो िदु ् काव्य मूल्य िो। एवमस्तु मफर काव्य रस के प्रवतमान की प्रसगं ानकु ू लता की है जो राष्रीयता और ससं ्कृ मत को मूल्यांकि मंे ले जािे विवभरन अनभु वू तयों पर अपने विचार प्रकट करती ह।ै की जरूरत? ‘सामामजक यिािष की अमभव्यमि’ अवधकतर लोग उसको नहीं जानते, हृदय की अनभु वू त यमद काव्येतर मूल्य िै तो ‘राष्रीय उल्लास और सावहत्य में रस और भाि प्रकट करती ह।ै आज ‘सांस्कृ मतक गौरव’ काव्य-मूल्य कै से िैं, डॉ॰ छायािावदयों की तरह कोई ‘हृदय की अनभु वू त’ भले न िगेन्फर की मुमश्कल यि िै मक वे अपिे रस बोध कहता हो, वकं तु ‘अनभु वू त की प्रामावणकता’ को िामक काव्य-मूल को िुद् रखिे के साि िी उसे तवकया-कलाम की तरह आज खबू इस्तमे ाल वकया व्यापक और समकामलत भी बिािा चािते िंै। इस जाता ह।ै ‘‘हृदय की अिभु ूमत’ ि सिी ‘अिमु मत की प्रकार व्यापकता की िर घोषणा के साि एड-ि- प्रामामणकता’ िी सिी, अिभु ूमत पर बल तो अब एड काव्येतर मूल्य चोर दरवाजे से अंदर घसु ता भी िै। मफर रस से इस प्रकार दामि बचािे या मुँि मदखता िै, कभी ‘मौमलक पररदिषि’ कभी चुरािे का मतलब दरअसल रस मसद्ांत से आज ‘परम्परा की जीवतं स्वीकृ मत’ कभी ‘पररवेि के टकरािा इसमलए भी आवश्यक िो गया मक रस के प्रमत जागरूकता’ और कभी ‘िैमतक सांस्कृ मतक िए व्याख्याकार िई कमवता की चचाष में इस्तेमाल प्रभाव’। युमि यि दी गई िै मक ये सभी काव्येत्तर िोिे वाला तमाम िए मफकरों को रस की अपिी मूल्य अंगभूत और गौण िंै जबमक प्राधान्फय तो व्याख्या में अंतमषुि करके उसकी प्रासंमगकता रागायमक समृमद् का िी िै।’’4 अिवा प्रसगं ािकु ू लता का दावा लेकर मैदाि में आ मिकले िैं।’’3 वकं तु जब काव्य-मलू ्यों की रिा का प्रश्न उठता है तो उसके साथ एक नवै तक दावयत्ि जड़ु आज काव्य के िेि में सजृ नशीलता जाता ह,ै जो काव्य मलू ्यों को एक व्यापक मलू ्य प्रणाली की दृवि से रस वसद्ातं की सप्रसंवगकता का वनणयष करते से संबंध कर दते ा है और उिशष ी पररचचाष से स्पि है वक समय उस वसद्ांत की उत्पवत्त के मलू ्य वनवहत वनवश्चत जागरूक नए लखे क समस्या के इस पहलू के प्रवत ऐवतहावसक आिश्यकताओं को ध्यान मंे रखना अत्यवधक सतकष ह।ैं उदाहरण के वलए इतनी दरू तक आिश्यक ह।ै इसके साथ ही रस वसद्ांतों की मवु क्तबोध और अज्ञये दोनों सहमत हैं वक भगितशरण पररवणवतयों को न भलू ना चावहए। आज परिती परम्परा उपाध्याय की समीिा बहुत कु छ सावहत्येतर है वकं तु मंे काव्य के प्रवतमान बदल रहे तथा धीरे-धीरे इनका इसके बाद अज्ञये की दृवि मंे जहाँ िह लखे छपने लायक स्िरूप भी बदल रहा ह।ै नहीं था मवु क्तबोध उसे अत्यंत उपयोगी मानते ह।ंै क्योंवक सामावजक प्रवतष्ठा और प्रभाि के विकास और प्रसार के दृश्य वहदं ी मंे खबू ही ह।ैं ऐसी वस्थवत में दंभ और आडंबर ] िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 66, October 2020 215

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 66, October 2020 www.jankriti.com िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 का उद्घाटन और वनराकरण करना भी एक कायष हो जाता वजनका गत कविता के नये प्रवतमान मंे उद्ात ह।ै डॉ॰ ह।ै रामविलास शमाष के ‘आस्था और सौरदयष’ मंे भी यही मारयता व्यक्त की गई है तथा नामिर वसहं ने भी कविता कु छ लोगों के वलए मलू ्यगत मतभदे कािय के वलए के नये प्रवतमान स्थावपत वकए हैं इगं्लंैड के माक्र्सिादी अप्रसावं गक काव्येत्तर हो सकता ह।ै जसै ा वक मवु क्तबोध आलोचक जरे ेमी हॉथानष ने आइडेंवटटी एडं ररलशे नवशप ने अपनी कविता में दशायष ा ह।ै उिशष ी एक काव्य वजस (लारेंस एडं विशाटष, लदं न 1972) नामक पसु ्तक मंे इस प्रकार से रामचररत मानस के बाद में कामायानी की प्रश्न पर विचार करते हुए सझु ाि वदया है वक कविता की आलोचना हुई उसी प्रकार उिशष ी को भी आलोचक ‘स्िायत्तता’ आथातष अटानामी के स्थान पर ‘अवस्मता’ विषय बनाया। वकं तु स्पि है वक ‘महत्ि’ का प्रश्न मलू ्यों ‘आइडेंवटटी’ शब्द का प्रयोग अवधक सगं त है और से संबद् ह,ै इसवलए नए मलू ्यों की खाे ज और वनमाषण जीिन या समाज के सरदभष में उसकी सापेिता को स्पि मंे रत नए सजकष यवद उिशष ी के उस महत्ि के सामने करने के वलए सबं धं भािना अथाषत् ‘ररलशे नवशप’ का प्रश्नवचरह लगाते हैं तो यह मलू ्यंगत अराजकता के प्रसार प्रयोग उवचत ह।ै कविता के नये प्रवतमानों मंे स्ि. डॉ॰ का प्रयास नहीं बवल्क परु ाने और नए मलू ्यों का नामिर वसंह का विवशि योगदान रहा िे माक्र्सिादी सजनष ात्मक टकराि ह।ै विचारधारा के थे। उनकी अवधकतर कविताएं माक्र्सिाद पर के वरित ह।ैं मिष्कषष माक्र्सिादी सावहत्य की दृवि बराबर ही कविता (सापेि सितिं ता) पर बल दते ी ह।ै मवु क्तबोध के अलािा सन्फदभष सचू ी 1. वसंह नामिर, कविता के नये प्रवतमान, राजकमल प्रकाशन, वदल्ली, संस्करण 2016, प.ृ 28 2. वसंह नामिर, कविता के नये प्रवतमान, राजकमल प्रकाशन, वदल्ली, ससं ्करण 2016, प.ृ 38 3. वसहं नामिर, कविता के नये प्रवतमान, राजकमल प्रकाशन, वदल्ली, ससं ्करण 2016, प.ृ 43 4. वसहं नामिर, कविता के नये प्रवतमान, राजकमल प्रकाशन, वदल्ली, ससं ्करण 2016, प.ृ 57 ] िषष 6, अकं 66, अक्टूबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 66, October 2020 216

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 66, October 2020 www.jankriti.com िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 ममिक इमतिास और वतषमाि डॉ. िेिा कल्याणी सहायक व्याख्याता गो. से. अथष-िावणज्य महाविद्यालय, नागपरू भ्रमणध्िवन क्रमाकं - 8237983333 [email protected] सारांि ससं ्कृ त के तमथ िलद का अथत तभन्न हंै । इस तमथ का अथत है जोडा। इससे तमथनु -जोडा, दम्पतत का तवकास हुआ ह।ै व्याकरर् में एक ही अक्षर की आवतृ त्त को भी तमथ कहे ह-ै ‘नमथः सावण्र्य वाच्यं। ऋग्वदे में तमथ और तमथू का प्रयोग दो (दोनों और नजर डालने वाला ) और तमवीया(तमथू कः - तमवीया काषीत) तकन्तु वततमान मंे तहन्दी मंे के वल तमवीया वाला अथत िषे रह गया। इसी की छाया तमथक पर भी प्रतीत होती ह।ै आधतु नक तमथकों में सबसे ितििाली तमथक उपतनविे ी तहतों और यरू ोपीय वचसत ्व को कायम करने के तलए गढे गये। इन तमथकों के खतडडत होने पर सत्य तो सामने आता ही है, पर तजनका तहत तसद्ध होता है । वे यने के न प्रकारेर् इन तमथकों को तजलाये रखने का प्रयत्न करते ह।ै तमथको का अतत प्राचीन स्रोत सतृ ि और प्रकृ तत के कारोबार को समझने के तलए की गयी कु छ कल्पनायें ह,ै तजनमंे कु छ ने कथा का रूप तलया तो कु छ कथा बनते बनते रह गयी। तमथक वह ह,ै तजसे हम मानते है , परन्तु जो प्रामातर्क या यथातवीय घतित नहीं है । तनष्ट्कषतत ः भारतीय सातहत्य की तमथक परम्परा का एक अतवतच्छन्न इततहास है जो यह प्रमार् दते ा है तक तमथक और सातहत्य का अभदे सम्बन्ध ह।ै मानव की समग्र चेतना को वार्ी दने े के कारर् तमथक तथा सातहत्य लोकमानस की पतु ि से भरी प्रगाढ अतभव्यति ह।ै प्रकृ तत की मानवीय रूपों मे सजनत ा करने मंे तमथक सहायक होता है । सातहत्य कमत का उद्दशे ्य ह-ै भावों का पररष्ट्कार और मनषु्ट्यता का तवकास जबतक तमथक मलू तः जातीय तविास का माघ्यम है । बीज िब्द तमथक, ससं ्कृ तत, परु ार्कथा , लोक, सातहत्य, आधतु नक। प्रस्ताविा के वमथ शब्द का अथष वभरन हंै । इस वमथ का अथष है जोडा। इससे वमथनु -जोडा, दम्पवत का विकास हुआ ह।ै िस्तुतः वमथक मनुष्ट्य का इवतहास है, जबवक व्याकरण में एक ही अिर की आिवृ त्त को भी वमथ कहे सावहत्य सभ्य मनुष्ट्य की िास्तविकता है, वजसमें ह-ै वमथः सािण्र्य िाच्यं। ऋग्िदे मंे वमथ और वमथू का उसका अपना उद्देश्य और दृविकोण भी समावहत है। प्रयोग दो (दोनों और नजर डालने िाला ) और सावहत्य वमथक नहीं है परंतु सावहत्य में वमथक का वमथ्या(वमथू कः - वमथ्या काषीत) वकरतु ितषमान में सावभप्राय प्रयोग होता है। वमथक एक भ्रामक शब्द है वहरदी में के िल वमथ्या िाला अथष शेष रह गया; इसी , पहले इसके वलए परु ाणकथाओं का प्रयोग होता था। की छाया वमथक पर भी प्रतीत होती ह।ै अगं ्रजे ी में वमथ का अथष भी परु ाणकथा ही होता ह।ै पररतु परु ाणकथा या वमथ का बल असत्य पर नहीं परु ाने जब हम वमथ या वमथक का प्रयोग करते है तो हमारे इवतहास और मारयताओं और विश्वासों को उजागर अिचेतन मे जमी वमथ्या की अथछष ाया इसकी करने पर रहता ह।ै हर समाज के पास अपनी विश्वसनीयता को कम या नि कर दते ी ह।ै वकरतु ससं ्कृ त ] िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 66, October 2020 217

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 66, October 2020 www.jankriti.com िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 परु ाणकथायें ह,ै वजसके माध्यम से कहने -सनु ने की प्रयत्न करते ह।ै वमथको का अवत प्राचीन स्रोत सवृ ि परम्परा में वबसरने और वबसरे हएु को गढ कर परू ा करने और प्रकृ वत के कारोबार को समझने के वलए की गयी का क्रम भी जारी रहा। इस ज्ञान को रूवचकर और कु छ कल्पनायंे ह,ै वजनमें कु छ ने कथा का रूप वलया तो स्मरणीय बनाने के वलए इनको कथाओंमंे वपरोने का भी कु छ कथा बनते -बनते रह गयी। वमथक िह ह,ै वजसे हम प्रयत्न वकया, चमत्कार पदै ा करने के वलए अवतरंजनाओं मानते है , पररतु जो प्रामावणक या यथातथ्य घवटत नहीं का भी सहारा वलया गया; इसवलए माना जाता है वक ह,ै तो हम वमथकों के चररि को भी समझ सकते हंै और उसी यगु मंे वमथकों की रचना हुई। यहाँ वमथक का सत्य से विचलन ही अवधक व्यापक अथष पा जाता ह।ै यह परु ाने और नये वमथकों से बाहर वनकल कर ितषमान की वनराधार मारयता या विश्वास या कपोलकवल्पत कथा चनु ौवतयों का सामना भी कर सकते ह,ै वमथकों को का द्योतक हो जाता ह।ै भारतीय वमथक कथायंे समझे वबना हम वमथकों के व्यूह मंे ही वघरे रह जाते ह।ै पौरावणकों के हाथों में पडकर अजब सी रूवढयों में वघर वमथक का अथष ;- िास्ति मंे वमथक अगं ्रजे ी के वमथ का जाती ह,ै वजससे उनके मलू अथष या व्यजं ना का पता ही पयाषय है और अगं ्रजे ी का वमथ शब्द यनू ानी भाषा के नहीं चलता। माइथॉस से व्यतु ्परन ह-ै वजसका अथष ह-ै आप्त िचन स्थलू रूप में वमथक सत्य से विचलन और झठू के अथिा अतक्र्य कथन। अरस्तू ने कथा विधान के अथष आिरण में सत्य से दबे रह जाने या दबाये जाने से पैदा मंे इस शब्द का प्रयोग वकया ह।ै वहरदी मंे वमथ के वलए होता ह।ै अतः वमथकों के असखं ्य स्रोत हो सकते ह।ै लोक विश्वास के अगं ये वमथक इस तरह बार-बार वमथक शब्द आचायष हजारीप्रसाद वद्िदे ी ने चलाया। दोहराये गये वक िे पाि और घटनायंे इवतहास का वहस्सा लगने लगी। वमथ के वलए वहरदी में दिे कथा, परु ाणकथा, वमथकों का एक घवटया स्रोत यह भी था वक वजसमें प्रतीककथा, कल्पकथा, परु ाकथा आवद ना प्रचवलत ह।ै अपने स्िाथो के आदशीकरण के वलए कथा रचना का वकरतु वमथक ही एक प्रकार से रूढ हो गया ह।ै डॉ. सहारा वलया जाता था। अपने वहत से जडु े दशनष और नगरे ि के अनसु ार वमथक का अथष है - ऐसी परम्परागत विचार के वलए चररिों और कथाओं की सवृ ि वमथकों कथा वजसका सम्बरध अवत प्राकृ त घटनाओंऔर भािों का एक प्रबल स्रोत रहा ह।ै वमथक रोचक होते है जो से होता है । वमथक मलू तः आवदम मानि के समवि मन श्रोता या पाठक को बारधे रखते ह।ै वमथक गदु गदु ाते है की सवृ ि ह,ै वजसमें सामवू हक अिचते न की प्रवक्रया , मन मंे उत्साह भरते ह।ै नानी दादी की तरह लाड करने अवधक सवक्रय रहती ह।ै आधवु नक सावहत्यशास्त्र मंे िाले , ससं ्कार दने े िाले , चररि वनमाणष करने िाले होते वमथ ने नयी वचतं न वदशायें ग्रहण की है । है वमथक। िवै दक कथाओंसे लेकर आज तक वमथक वनबद् काव्य रचना रहे ह।ै जयशकं र प्रसाद की कामायनी, वनराला की आधवु नक वमथकों मंे सबसे शवक्तशाली वमथक राम की शवक्त पजू ा, धमिष ीर भारती की प्रमथ्यु गाथा, उपवनिशे ी वहतों और यरू ोपीय िचसष ्ि को कायम करने कंु िरनारायण की आत्मजयी, अज्ञये की असाध्य िीणा, के वलए गढे गये। इन वमथकों के खवण्डत होने पर सत्य जरा व्याध ऐसी कृ वतयां है वजनके वमथक हमारी जातीय तो सामने आता ही ह,ै पर वजनका वहत वसद् होता है िे स्मवृ त की सम्पवत है और वजनसे परम्परा नया अथष पाती येन के न प्रकारेण इन वमथकों को वजलाये रखने का ह।ै वमथक िे कथायें है वजनके माध्यम से हमारे लोकवचत्त और लोकस्मवृ त यावन जातीय स्मवृ त की सरंचना सम्भि होती ह।ै इरहंे आधवु नक अथो मंे इवतहास या िास्तविक ] िषष 6, अकं 66, अक्टूबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 66, October 2020 218

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अतं रराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 66, October 2020 www.jankriti.com िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 अथो में हएु चररि या घटनायंे- वहस्री या इस्टोररया नहीं 20 िीं शती मंे अिचेतन मनोविश्लेषण शास्त्र के विकास वकया जा सकता, लवे कन यवद इवतहास मानिीय वचत्त ने वमथक शास्त्र के वलए नये ििे क्या खोले स्िप्न, आद्यवबम्ब तथा वमथक पर नये वसरे से विचार होने लगा। की प्रिवृ त्तयों का पनु ः- पनु ः प्रकटन हो तो ये परु ाकथायंे सावहत्य के िेि मंे फ्रायड, एडलर, यगंु के मनोविश्लेषण ऐसा हआु है के अथष मंे तो नहीं पर ऐसा होता आया है शास्त्र से वमथक का प्रिशे ने सम्पणू ष संकल्पनाओं को के अथष में इवतहास ही ह।ै इस अथष मंे इवतहास होने के बदलने में महत्िपणू ष भवू मका अदा की। ररचडष चंजे ने ‘नोट्स ऑन द स्टडी ऑफ वमथ’ मंे कहा है वक वमथक कारण वमथकों या परु ाकथाओं में एक सनातनता तो के साथ इतनी खींचतान की गयी है वक उसके अथष का रहती ही है साथ ही एक समकालीनता भी, जो समय अनंत विस्तार हो गया ह।ै िह दशनष ह,ै िह प्रतीकात्मक विचार ह,ै वसद्ारत संवहता या विश्व दशनष ह।ै सदं भष के अनसु ार विविध रूपों में अपने नये -नये आशय निजागरण यगु के बाद तकष और दशनष का शोर उठा तो उजागर करती रहती ह।ै वमथक और कल्पना का महत्ि घट गया। लेवकन स्िच्छरदतािाद आदं ोलन ने परू े विश्व मंे वमथक के आधवु नक सावहत्य मंे वमथक का प्रयोग और वमथकीय महत्ि को पनु ः स्थावपत वकया। आवदमानि ने प्रकृ वत के आलोचना नये विषय ह।ै पवश्चम में वमथक पर विचार कोप से िस्त होकर मगं ल की कामना हते ु पजु ा आवद से सिं ाद काफी जोर से हो रहा ह।ै ितमष ान काल मंे सम्बवरधत वमथक वनवमषत वकये । परु ाने इवतहास और बवु द्िाद, विज्ञानिाद, सासं ्कृ वतक सामार् ज्यिाद, दशनष में वमथकों को उसने घलु ाया-वमलाया। पररणामतः आधवु नकतािाद के आतंक ने विश्वास एिं भािना के वमथकों के अनके रूपो-तत्िों का वनरूपण प्रतीक शैली सामने प्रश्नवचरह लगा वदये ह।ै उपयोवगतािाद-उत्तर मंे वकया। इवतहास और वमथक मंे भािनात्मकता तथा आधवु नकतािाद ने सहज रागात्मक मलू ्यों को खवं डत कल्पना का प्राधारय रहता है । यह वमथक की व्यापक कर वदया ह,ै आज समाज विचारशरू यता के अधं ेरे समय सामावजकता का ही प्रमाण है वक उसमें जातीय जीिन मंे जीने के वलए वििश ह,ै इस कवठन अधं कार यगु का तथा फवटषवलटी वमथ अपनी वनरतरतरता रखते ह।ै सामना करने के वलए आवदम प्रिवृ त्तयों और ससं ्कारों उदाहरणतः बाइवबल में आने िाली के न की कथा। की पनु ः प्रवतष्ठा करने की आिाज उठ रही है । यह फ्रायड ने कविता-स्िप्न तथा वमथक मंे नावभ नाल समाजशावस्त्रयों और नतृ त्ििेत्ताओं ने माना है वक सम्बरध घोवषत तौर पर स्िीकार वकया। आवदम मानि आवदम प्रिवृ त्तयों में वमथकों का विशषे स्थान ह।ै आज तथा प्रकृ वत के साहचयष से वमथकों की उत्पवत मानते हुए उनके प्रवत आकषणष आधवु नक सिं दे ना का एक अगं अनेक कथा ितृ ्तों मंे ररच्यअु ल या रीवत ररिाजों के बन गया ह।ै वकरतु भारतीय सावहत्य में वमथक के कमकष ाण्ड खोजे गये। भलू ना न होगाा वक अितारिाद विचार विश्लेषण का प्रारम्भ कामायनी’ के मूल्यांकन का भारतीय वसद्ारत इसी वचरतन क्रम का अगला से शुरू हुआ , वजसके आधार पर यह कहा गया है चरण ह।ै भारतीय सावहत्य अितारिाद के इन वमथकों वक कामायनी का मनु िेदकालीन मनु न होकर का अिय भण्डार ह,ै वजससे न जाने वकतने ही प्रसादकालीन है। िह उस संक्रमण काल का मनु है कविताओ,ं कहावनयों, उपरयासों, नाटकों, वनबरधों को वजसमें भारतीय समाज सांस्कृ वतक जीिन-मूल्यों से सजृ न विस्तार वमला ह।ै साथ ही िवै दक वमथकों, परु ाण कटकर औद्योवगक तथा संयावरिक होने की वदशा मंे अग्रसर है। के दारनाथ वमश्र की ’प्रभात की कै के यी’ रचना मंे दशरथ और कै के यी दोनों ही समकालीन षड्यरि-प्रधान राजनीवत की विडम्बनाओंके संिाहक है। ] िषष 6, अकं 66, अक्टूबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 66, October 2020 219

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 66, October 2020 www.jankriti.com िषष 6, अकं 66, अक्टूबर 2020 वमथकों का अलग महत्ि ह।ै हमारे अनके उपाख्यान का रम्याद्भुत ससं ार वनवमतष वकया गया ह।ै वहरदी सावहत्य वमथक के ही अगं ह-ै जसै े समिु मथं न, इिं , दिे ो दानिों मंे जायसी कृ त पद्माित , प्रसाद कृ त कामायनी फतसं ी का संघष,ष दिे ासरु रागं ्राम, यम, उिषशी, मने का अहल्या, ह।ै कु िरं नारायण कृ त आत्मजयी नवचके ता कथा का िोपदी, सीता, मदं ोदरी आवद की कथायंे । आधवु नक विस्तार ह।ै वदनकर की कृ वत उिशष ी में विद्वानों का एक िगष कहता है वक विज्ञान और तकष के आवकष टाइपल पािों के रूप उभरते है तो धमिष ीर भारती के अधं ायगु तथा प्रमथ्यु गााथा , मवु क्तबोध की कविता साथ वमथक लपु ्त हो जायगें ।ंे फ्रायड ने अद्भुत कौशल से िह्मरािस तथा अधं ेरे में के अनके वमथक पाठ ह।ै वमथ मानि कल्पना के अतं गष त की अतं याषिा मंे वमथक, स्िप्न सम्बरधी अध्ययन ने सावहत्य समीिा में निीन और सावहत्य मंे घवनष्ठ सम्बरध को कई लेखों में प्रस्ततु सम्भािनाओं के द्वार खोले ह।ै वकया ह।ै उसने कहा है वक वमथक आवद मानि का वमथक रचना श्रेष्ठ सजकष और कल्पनाशील मानस ही कर पाता ह,ंै ऐसी कल्पकथायें जीिन के रहस्यों को वदिास्िप्न है -उसमंे आवदम, तपृ ्त- अतपृ ्त , दवमत उद्घावटत करती ह।ै यह तो मानि जीिन का अन्र्तसत्य आकािं ाओं का वनिास होता ह।ै सावहत्य वमथक से न ह-ै सत्य के भीतर वछपा वमथक में वनवहत सच वबदंु मंे जाने कब से प्ररे णा और सौष्ठि प्राप्त करता रहा ह।ै वसधं ु की तरह । सत्य के इतने रूप, इतनी परतंे खोलने की सामथ्र्य रखता है जो पीवढयों को वकसी नये , अदृश्य वमथक की भवू मका -सजृ न मंे वमथक की अवनिायष संसार के दशनष करा सकती ह।ै वमथक का सच भवू मका के महत्ि पर प्रकाश डालते हुए हबषडष रीड तो बहआु यामी सच होता ह,ै कालजयी होता है िह पदाथष यह कहते थे वक वमथक ही गहन प्रेम के िणों में वबम्बों मंे नहीं दृवि मंे ह,ै पारदशी उद्भािना मंे ह।ै को बटोरकर कविता बनाते ह।ै वमथकों मंे प्रतीकों का अमरे रका के आधवु नक वचंतको, कलाकारों और आलोचकों के मन मंे वमथक के प्रवत इतनी अवधक महत्ि कथा, पाि, उद्दशे ्य रूप वशल्प सभी स्तरों पर होता आसवक्त वदखाई दते ी है वक िे वमथक को एक अथष मंे सावहत्य का ही पयायष मानते ह।ै ररचडष चजे का कहना है ह।ै सरस्िती, लक्ष्मी, सीता , पाितष ी, गणशे और हनमु ान वक ‘‘ वमथक ही सावहत्य है तकष उनका यह है वक के न जाने वकतने प्रतीकाथष ह।ै राम-रािण यदु ् पणु ्य और सावहत्य का शदु ् रूप वमथकात्मक होता है और उसी पाप की अपिू ष संघषष गाथा ह।ै शषे नाग के फन पर विष्ट्णु रूप में उसका मलू ्याकं न होना चावहये। वफर यह भी का शयन, कृ ष्ट्ण द्वारा नाग नाथना जसै ी कथाओं की सत्य है वक सावहत्य की सजृ न प्रवक्रया वमथक की सजृ न प्रतीकात्मकता अनके ाथी कही जा सकती ह।ै जो ररश्ता प्रवक्रया से अवभरन ह।ै वमथककार की तरह रचनाकार स्िप्न और कल्पना का है िही ररश्ता वमथक और सामवू हक अिचेतन के प्राक्कतन ससं ्कारों की अवभव्यवक्त करता है । होमर हो या व्यास या िाल्मीवक सावहत्य का ह।ै पाश्चात्य सावहत्य में होमर के महाकाव्य इन सभी ने वमथक रचना की ह।ै नरंेि कोहली जसै े लखे क को भी राम कथा लेखक कहने से वहदं ी का इवलयड तथा ओवडसी वमथ को लके र ही वनवमतष हुए ह।ै नकु सान ही हुआ है क्योंवक वमथकीय चररिों और एवस्कलस, सोफोक्लीज, और यरु ोवपडीज की िासवदयां पािो पर वलखने का कायष वहदं ी मई रयनू तम ही हआु वमथक कथाओं के सदंु र रूप ह।ै श्री अरविरद का अगं ्रजे ी भाषा मंे वलवखत सावििी महाकाव्य, प्रमोवथयस की कथा, एगं ोमने ान, इडीपस की कथा, हमे लटे की कथा , वकं ग वलयर की कथा आवद सभी कथायें वमथकों का कलात्मक संसार सामने लाती ह।ै भारतीय काव्य रामायण और महाभारत वमथकों के भण्डार ह।ै संस्कृ त सावहत्य में कावलदास द्वारा कु मारसम्भि, रघिु ंश, विक्रमोिशीयम आवद मंे वमथकों ] िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 66, October 2020 220

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बह-ु विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशषे ज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 66, October 2020 www.jankriti.com िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 ह।ै पररणामतः नए लखे कों ने वमथकीय लखे न के ििे गढते हैं जो उस ससं ्कृ वत की अवस्मता को और सब में वलखने का साहस नहीं वकया । संस्कृ वतयों से अलग बनाये रखने मंे योग द।े उपसिं ार :- अज्ञये के अनसु ार वमथक एक रहस्यमय सावहत्य मंे पनु ः- पनु ः वमथकों के प्रयोग का तकष यकु ्त शवक्त स्रोत ह।ै वमथक वकसी भी सांस्कृ वतक सम्प्रदाय के उत्तर दते े हएु अज्ञये कहते हंै वक- सावहत्य में वमथक क्यों वलए एक ओर तो अपनी पहचान का साधन होते है और लौट कर आते ह?ै क्यों प्राचीन वमथक नये वसरे से दसू री ओर अपनी रिा का। इस दोहरी प्रिवृ त के कारण प्राणिान हो जाते ह।ै इस बात को हम वबना यह प्रवक्रया ही वमथक रहस्यमय होने के साथ ही शवक्त का स्रोत भी समझे समझ ही नहीं सकत।े हमारे अवस्तत्ि की सत्ता, होते ह।ै ’’ अज्ञये आगे कहते है वक- ‘‘ हर ससं ्कृ वत के हमारी समथषता वमथक के साथ जडु ी हुई है और वमथक वलए अपनी पहचान आिश्यक होती ह।ै इस पहचान के के द्वारा ही हम उनकी रिा करते थे- अथाषत नयी सवृ ि वलए स्िरूप प्रत्यवभज्ञा के वलए वजस समाज की िह करते थे। वमथक की सत्ता का और वमथक के वनररतर ससं ्कृ वत है उसका समचू ा अनभु ि , परम्परा नया होकर सामने आने का कारण यह भी है वक प्रागवै तहावसक काल में उसके उदय से लके र आज तक ससं ्कृ वतयाँ उसके सहारे अपना निीनीकरण करती ह।ै उसका वजतना सचं य ह,ै सबका महत्ि होता ह।ै इन वनष्ट्कषतष ः भारतीय सावहत्य की वमथक परम्परा का एक सबका योग वकसी भी ससं ्कृ वत मंे वकसी भी वमथक का अविवच्छरन इवतहास है जो यह प्रमाण दते ा है वक रूप वनधारष रत करने में महत्ि रखता ह।ै लेवकन इस वमथक और सावहत्य का अभेद सम्बरध ह।ै मानि की पहचान का एक ओर भी पि हःै कोई भी ससं ्कृ वत अपने समग्र चेतना को िाणी दने े के कारण वमथक तथा को पहचानने के वलए , एक अवस्मता गढने और उसका सावहत्य लोकमानस की पवु ि से भरी प्रगाढ अवभव्यवक्त स्िरूप पहचानने के वलए जहां इस परू े के परू े अनभु ि ह।ै प्रकृ वत की मानिीय रूपों मे सजनष ा करने मंे वमथक संचय को अपने परू े समाज के सामने रखना चाहती ह,ै सहायक होता है । सावहत्य कमष का उद्दशे ्य ह-ै भािों का िहां उसे दसू रे हर वकसी से बचाकर, पराये व्यवक्त की पररष्ट्कार और मनषु्ट्यता का विकास जबवक वमथक पहचुं से परे भी रखना चाहती है तो वमथक की शवक्त का मलू तः जातीय विश्वास का माध्यम है । मलू तः सावहत्य दसू रा कारण यह है वक एक तरफ िह वकसी भी ससं ्कृ वत वमथक रूप ही ह।ै आधवु नक यगु मंे वमथक और सावहत्य या जावत की अवस्मता का आधार होती है दसू री तरफ दोनों ही बाजारिाद की उपभोक्तािादी ससं ्कृ वत के िह वकसी भी ससं ्कृ वत के परू े अनभु ि सचं य से काम लते े कारण खतरे मंे ह।ै ह,ै िहां उसके साथ -साथ एक ऐसी रहस्यमय भाषा भी सन्फदभष सूची 1. निनीत पविका- जनिरी 2014 , भारतीय विद्या भिन , मबंु ई 2. डॉ. सत्यरे द:- लोकसावहत्य मंे लोकजीिन 3. डॉ. जगदीश व्योम: लोकसावहत्य मंे सासं ्कृ वतक चते ना 4. वमथक दशनष का विकास,िीरंेि वसहं , स्मवृ त प्रकाशन , नई वदल्ली,1984 5. मिन्फदू ममिक आधमु िक मि, िम्भुिाि, वाणी प्रकािि िई मदल्ली 6. मिदं ी मे ममिको से परिेज क्यों , अितं मवजय, िािाकार पत्र, 20 may 2017 ] िषष 6, अकं 66, अक्टूबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 66, October 2020 221

Multidisciplinary International Magazine JANKRITI जनकृ ति बहु-विषयक अंतरराष्ट्रीय पविका (Peer-Reviewed) (विशेषज्ञ समीवित) ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 www.jankriti.com ISSN: 2454-2725, Impact Factor: GIF 1.888 Volume 6, Issue 66, October 2020 www.jankriti.com िषष 6, अंक 66, अक्टूबर 2020 ‘राष्र की अवधारणा और सांस्कृ मतक पिचाि’ अरुमणमा शोधाथी (पीएच.डी., इवतहास) बाबासाहबे भीमराि अबं ेदकर वबहार विश्वविद्यालय, मजु फ्फरपरु , वबहार ईमले : [email protected] मोबाईल: 8919508737 िोध-सारांि : भारतीय सासं ्कृ ततक पहचान की यतद बात की जाए तो इसमंे हमारे प्राचीन सातहत्य ने काफी उन्नतत की थी। उसकी उन्नत अवस्था का पता इसी बात से चलता है तक सपं रू ्त भारत को एकता के सतू ्र मंे बाधं ने के तलए उत्तर, दतक्षर्, परू ब, पतश्चम हर तदिा मंे तीथत स्थलों की स्थापना की गई। आज की जो राजनीततक चते ना है तब उसका अभाव भले ही था लेतकन सांस्कृ ततक और धातमकत दृति से सपं रू ्त भारत वषत मंे एकरूपता थी। भले ही तीथत करने की दृति से ही लोग अपने प्रांत से बाहर जाते थे लते कन अपनापन और एकरूपता तो महससू करते ही थ।े आज की राजनीततक पररतस्थततयों के तहसाब से उसका मलू ्याकं न करंेगे तो उसने खातमयां जरूर नजर आएगं ी तकं तु हम उसे एक तसरे से ही ख़ाररज नहीं सकत।े ऐसा इसतलए भी तक तत्कालीन भारतीय पररविे मंे लोग धातमकत रूप से एकजिु ता महससू करते थे। वततमान राजनीततक पररदृश्य उस समय मौजदू ही नहीं था। अतः भारतीय एकता के सतू ्र उसी रूप में तलािने होंगे तजस रूप में वह लोगों के बीच मौजदू थे। बीज िब्द : दिे , राष्ट्र, राष्ट्रवाद, भाषा एवं संस्कृ तत, इततहासबोध, इततहास लेखन, षड़यंत्रकारी मानतसकता, तनष्ट्कषत आमुख : ‘राष्ट्र’ की अिधारणा को समझने से पहले अथिा ‘वदशा’ या ‘दशे ातं र’ से हईु ह,ै वजसका संबधं हमें ‘राष्ट्र’ के शावब्दक अथष को समझना होगा। साथ ही भौगोवलक वस्थवत या सीमा-रेखा से ह।ै इस आधार पर राष्ट्र के साथ-साथ ‘दशे ’ के शावब्दक अथष को भी स्पि यवद दशे की पररभाषा गढ़ें तो यह कह सकते हैं वक करना होगा। दोनों को इसवलए भी समझना होगा क्योंवक भौगोवलक रूप से वनवश्चत सीमा रेखा से आबद् ििे दशे कई बार हम ‘दशे ’ और ‘राष्ट्र’ दोनों को एक ही समझने कहलाता ह।ै जबवक राष्ट्र के अतं गतष ना वसफष वनवश्चत की भलू कर बैठते हैं और आसानी से कह दते े हैं वक सीमा रेखा से आबद् प्रदशे आता है बवल्क उस ‘राष्ट्र’ और ‘दशे ’ दोनों अलग-अलग ना होकर एक ही भौगोवलक प्रदशे के अदं र वनिास करने िाले मनषु्ट्य भी ह।ैं यवद हम इन दोनों शब्दों पर गौर करंे तो पाएगं े वक आ जाते ह।ंै अथाषत एक वनवश्चत भौगोवलक सीमा के दोनों में बहुत ही सकू्ष्म अतं र ह।ै इतना सकू्ष्म वक हम भीतर वनिास करने िाले लोगों के समहू को राष्ट्र कहते इसमंे स्थलू अतं र वदखा पाने मंे असमथष होकर कह दते े ह।ंै राष्ट्र और दशे के स्िरूप को हम इस संदभष मंे भी हंै वक दोनों एक ही ह।ैं जहाँ तक राष्ट्र की बात है तो समझ सकते हंै वक दशे भौगोवलक सीमाओं से वघरे ‘राज’ृ धातु में ‘ष्ट्रन’् प्रत्यय जोड़ने से राष्ट्र शब्द की जमीन के वकसी टुकड़े को कहते ह।ैं यह सीमाएं बनती उत्पवत्त होती ह।ै िहीं ‘दशे ’ शब्द की उत्पवत्त ‘वदश’ वबगड़ती रहती ह।ंै जबवक राष्ट्र दशे की भौगोवलक ] िषष 6, अकं 66, अक्टूबर 2020 ISSN: 2454-2725 Vol. 6, Issue 66, October 2020 222
























































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