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SHREE MAHAPRABHAVAK BHAKTAMAR STOTRA

Published by DRRINASHAH8, 2022-02-09 00:29:54

Description: SHREE MAHAPRABHAVAK BHAKTAMAR STOTRA

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ी मानतगुं ाचाय वर चत ी भ ामर तो मलू , ह द अथ, च , मगं ल-गीता, यं , ऋ , मं , अघ तथा ऐ तहा सकता स हत म संकलन और संपादक कता, DR. RINA SHAH, PHARMD थम सं करण, 8 February, 2022

ी भ ामर जी का सं प रचय ी भ ामर ो क रचना 7 वी शता ी म जनै धम के महान आचाय ी मानतंुगाचाय ने क थी। इस ो म हर एक अ र म के समान है। इस ो के एक- एक ोक से जो िन तरंगे उठी उस से ी मानतंुगाचाय ज राजा भोज ने कारागहृ म डाल िदया था, उनके एक एक ताले तटु ते गए और वह बं धन मु हो गए। बाद म इस ोक के साथ गणधर वलय ो क 48 ऋि या,ं अ उनसे जडु े ए बीजा र, और आकृ ितयों को सं क लत कर के यं बनाए गए। इस 48 ऋि याँ म ही 64 ऋि याँ समािहत है। िकसी िवशाल प को छोटे सं कु चत ान पर अिं कत करके यं बनाया जाता है। यं भोजप या उ म धातु पर अकं ो, श ो, या आकृ ितयों से बनाकर मं ो से लखकर काय साधना म उपयोग िकया जाता है। यं साधना म मान सक, शारीरीक, और शिु एवं पूण आ ा आव क है। हमारे जैन धम के पूजा ानो को बनाने से पहले उनका नकशा बनाया जाता है। िफर िव श कार क शुि के साथ उ म मु त म वा ु िवधान करके उसे बनाया जाता है। जो िन िदन अ भषके , पूजा, िवधान, ो पाठ, भजन-िकतन, म अनु ान आिद से अ भम त होने से उनके आसपास एक आभा वलय हो जाता है। जस क ऊजा से सभी को लाभ हेता है। ये एक कार के यं ही है। यह यं िकसने बनाए यह माण लु हो गया। लिे कन उनक साधना से आज भी लोग अनु ान आिद करके लाभा त होते है। मं और बीजा र क रचना कै से होती है यह हम सफ गणधर और के वली भगवान ही बता सकते है। - Dr. Rina Shah, PharmD 1

1.सव िव उप वनाशक ोक - भ ामर णत मौ ल म ण भाणा-, मु ोतकं द लत पाप तमो िवतानम् । स क् ण जनपाद युगं यगु ादा-, वाल नं भवजले पततां जनानाम् ॥1॥ अथ - झुके ए भ देवो के मुकु ट जिड़त म णयों क था को का शत करने वाले, पाप पी अंधकार के समुह को न करने वाले, कमयुग के ार म सं सार समु म डूबते ए ा णयों के लये आल न भतू जने देव के चरण युगल को मन वचन काय से णाम करके म मुिन मानतं ुग उनक िु त क ँ गा। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१) मं गल-चरण- भा - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ नत-म क सुर भ ों के , जनवर-पद अनरु ों के । मुकु टों क झलिमल म णयाँ , म णयों क हीरक लिडय़ाँ ॥ जगमग-जगमग दमक उठी,ं ितिब त हो चमक उठी।ं जनके पावन चरणों से, चरण युगल क िकरणों से॥ यगु -यगु शरण दाता हो,ं पिततों के भव ाता हो।ं जो समु म डूबे ह, ज मरण से ऊबे ह॥ उनके सारे क हर, पाप ितिमर को न कर। उनको स क् नमन क ँ , भ ामर आभरण क ँ ॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 2

यं - ऋि - ीं अह णमो अ रहंताणं णमो जणाणं ां ीं ं ौं ः अ स आ उ सा अ ितच े फट् िवच ाय ौं ौं ाहा। मं - ां ीं ं ीं ीं ं ू ौं ीं नमः ाहा। अ - ीं िव िव हराय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 3

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 4

2. नजरबं दी एवं ि दोष हेतु ोक - य: सं ुत: सकल वा य त बोधा-, दु तु बिु पटु भ: सुरलोक नाथै:। ो जै ग तय च हरै दारै:-, ो े िकलाहमिप तं थमं जने ं॥ 2॥ अथ - स ूण ुत ान से उ ई बिु क कु शलता से इ ों के ारा तीन लोक के मन को हरने वाल,े गं भीर ो ों के ारा जनक ुित क गई है उन आिदनाथ जने क िन य ही म (मानतं गु ) भी ुित क ँ गा। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (२) त ों ारा ु - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ जनक मं गल-गीता को, ादशागं नवनीता को। इ ों ने गा पाया है, तीनों लोक रझाया है॥ त बोध ितभा ारा, बहा का -रस क धारा। ल लत, मनोहर छ ों म, बड़े-बड़े अनबु ं धों म॥ भाव भरी िु तयों म, भि भरी अँजु लयों म। उ ीं थम परमे र का, तीथकर वषृ भे र का॥ अ भन न म करता ँ, पद व न म करता ँ। यही अचं भा भारी ह,ै सचमचु िव यकारी है॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 5

यं - ऋि - ीं अह णमो ओिह जणाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ीं ीं ीं ं ू नमः सकलाथ सि णं । अ - ीं नानामरसं ुताय सकलरोगहराय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 6

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 7

3. सव सि दायक का ोक - बु या िवनािप िवबुधा चत पादपीठ-, ोतं ु समु त मितिवगत पोऽहम् । बालं िवहाय जलसं त िम िु ब , म ः क इ ित जनः सहसा हीतमु ् ॥3॥ अथ - देवों के ारा पू जत ह संहासन जनका, ऐसे हे जने ! म बुि रिहत होते ए भी िनल होकर ुित करने के लये त र आ ँ ोिं क जल म त च मा के ितिब को बालक को छोड़कर दसू रा कौन मनु सहसा पकड़ने क इ ा करेगा? अथात् कोई नही।ं मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (३) मरे ा साहस पणू कदम - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ नाथ! आपका संहासन, संहासन के युगल-चरण। अ चत ह देवों ारा, च चत ह इ ों ारा॥ मरे ा का अस त है, िफर भी मरे ी िह त है। िनमल-जल के अ र जो, चं दा िदखता सु र जो॥ वह उसक परछैया है, अथवा भूल-भुलैयाँ है। मु ी म जकडऩे क , िह त उसे पकडऩे क ॥ बालक ही कर सकता है, अँजलु म भर सकता है। बुि हीन कहलाऊँ गा, लाज छोडक़र गाऊँ गा॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 8

यं - ऋि - ीं अह णमो परमोिह जणाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ीं ीं ीं स े ो बु े ः सव सि दायके ो नमः ाहा । नमो भगवते परमत ाथ भावकायॅ सि ः ां ीं ं ः अस पाय नमः । अ - ीं म ािदसु ान काशनाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 9

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 10

4. पानी के उप व न ोक - व ंु गणु ान् गणु समु शशा कातं ान्, क े मः सरु गु ितमोऽिप बु या । क ा काल पवनो त न च ं , को वा तरीतु मलम ु िन धं भजु ा ां ॥4॥ अथ - हे गुणों के भं डार! आपके च मा के समान सु र गुणों को कहने लये बहृ ित के स श भी कौन पु ष समथ है? अथात् कोई नही।ं अथवा लयकाल क वायु के ारा च है मगरम ों का समूह जसम ऐसे समु को भजु ाओं के ारा तरै ने के लए कौन समथ है अथात् कोई नही।ं मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (४) अ रा ा क आवाज - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ जनवर के गुण कै से ह? धलु ी चाँ दनी जसै े ह। उ न कोई गा सकता, पार न कोई पा सकता॥ चाहे यं वृह ित हो,ं ु महामित हो।ं वे भी आ खर हारे ह, िफर तो हम बेचारे ह॥ लयं कर तूफानी हो, गहरा-गहरा पानी हो। मगरम भी उछल-उछल, मचा रहे हों उथल-पुथल॥ ऐसा स ु भजु ाओं से, हाथों क नौकाओं स।े कौन भला ितर सकता है, द रया म िगर सकता है? मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 11

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 13

5. ने रोग सं हारक का ोक - सोऽहं तथािप तव भि वशा ुनीश, कतु वं िवगत शि रिप वृ ः । ी ा वीय मिवचाय मृगी मृगे ं-, नाऽ िे त िकं िनज शशोः प रपालनाथम् ॥5॥ अथ - हे मनु ीश ! शि रिहत होता आ भी, म अ , भि वश, आपक िु त करने को तैयार आ ँ। ह र ण, अपनी शि का िवचार न कर, ीितवश अपने शशु क र ा के लय,े ा संह के सामने नहीं जाती? अथात जाती ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (५) गुणों का क तन - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ शि हीन होने पर भी, चतरु ाई खोने पर भी। भगवत् भि उमड़ती है, िु त करनी पड़ती है॥ जसै े कोई िहरिनया हो, छौना चनु -चनु मिु नया हो। उस पर शेर झपटता हो, नहीं हटाये हटता हो॥ तो ा िहरणी माँ मोरी? िदखलायगे ी कमजोरी? नहीं सामना करती ा? भला शरे से डरती ा? अपना व बचाती है, तिनक नहीं सकु चाती है। बछड़ा उसको ारा है, जसने उसे दलु ारा है॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 5॥ 14

यं - ऋि - ीं अह णमो अणं तोिह जणाणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ीं ीं ीं ौं सव-सं कट िनवारणे ः सुपा य े ो नमो नमः ाहा। अ - ीं सकलकाय सि कराय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 15

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 16

6. सर ती साधना एवं बिु शि म उपयोगी ोक - अ तु ं ुतवतां प रहासधाम्, द् भि रेव मुखरी कु ते बला ाम् । य ोिकलः िकल मधौ मधरु ं िवरौित, त ा चा क लका िनकरैक हेतु ॥6॥ अथ - िव ानों क हँसी के पा , मुझ अ ानी को आपक भि ही बोलने को िववश करती ह। बस ऋतु म कोयल जो मधरु श करती है उसम िन य से आ क लका ही एक मा कारण ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (६) उमड़ती ई भि रे णा - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ हँसी उड़ाया जाऊँ गा, मूख बनाया जाऊँ गा। य िप म िव ानों स,े गानों क तकु तानों स॥े तो भी भि ढके ल रही, नाकों डाल नके ल रही। वही रे णा करती है, बोल कं ठ म भरती है॥ ों बसं त के आने पर, मादकता छा जाने पर। महक उठी है बिगया ो?ं चहक उठी कोय लया ो?ं ोिं क कै रयाँ महक उठी,ं अत: कोयल चहक उठी।ं गणु से आप महकते ह, इससे भ बहकते ह॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 17

यं - ऋि - ीं अह णमो कु बु ीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ीं ां ीं ंू ः हं सं थ थ थः ठः ठः सर ती भगवती िव ा सादं कु कु ाहा। अ - ीं या चताथॅ ितपादनशि सिहताय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 18

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 19

7. सव सं कट िनवारक का ोक - ं वेन भवस ित सि ब ं, पापं णा य मपु ैित शरीरभाजाम् । आ ांत लोक म लनीलम शेषमाशु, सूयाशु भ िमव शावरम कारम् ॥7॥ अथ - आपक िु त स,े ा णयों के , अनेक ज ों म बाँ धे गये पाप कम ण भर म न हो जाते ह जसै े स णू लोक म ा रा ी का अंधकार सूय क िकरणों से णभर म छ भ हो जाता है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (७) पाप-सं तित का समापन - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ ज -ज से जोड़ रख,े अपने सर पर ओढ़ रख।े जीवों ने जो पाप यहाँ , द:ु ख और स ाप यहाँ ॥ वे भु के गणु गाने से, मं गल-गीत सनु ाने से। छन भर म उड़ जाते ह, नहीं फटकने पाते ह॥ भौरं े सा जो काला है, जगत ढाँ कने वाला है। ऐसा घोर अँधरे ा हो, िम ातम का डेरा हो॥ सूरज-िकरन िनकलते ही, ान-दीप के जलते ही। सचमचु वह खो जाता है, छू मं तर हो जाता है॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 20

यं - ऋि - ीं अह णमो बीजबु ीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ीं हं सं ां ीं ौं ीं सव दु रत सं कट ु ोप व क िनवारणं कु कु ाहा। ीं ीं ीं नमः । अ - ीं सकलपापफलक िनवारणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 21

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 22

8. सवा र योग िनवारक का ोक - म िे त नाथ तव सं वनं मयदे -, मार ते तनु धयािप तव भावात् । चते ो ह र ित सतां न लनीदलषे ु-, मु ाफल िु त मुपिै त ननदु िब ःु ॥8॥ अथ - हे ािमन!् ऐसा मानकर मुझ म बुि के ारा भी आपका यह वन ार िकया जाता है, जो आपके भाव से स नों के च को हरेगा। िन य से पानी क बँ दू कम लनी के प ों पर मोती के समान शोभा को ा करती ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (८) वन का मूल कारण - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ पानी क भी बँ दू अगर, िगरे कमल के प ों पर। मोती तु दमकती है, चमचम चा चमकती है॥ यही सोच ारंभ िकया, मं गल गीतारंभ िकया। स न खशु हो जायग,े फू ले नहीं समायग॥े वे तो इस पर रीझग,े ेय आपको ही दगे। भले र ँ अ ानी म, भोला-भाला ाणी म॥ भाव- भाव तु ारा है, के वल चाव हमारा है। तमु ने उसे सं वारा है, स ु षों को ारा है॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 23

यं - ऋि - ीं अह णमो अ रहंताणं णमो पादाणुसा रणं ौं ौं नमः ाहा। मं - ां ीं ं ः अ स आ उ सा अ ितच े फट् िवच ाय ौं ौं ाहा। ीं ल ण रामचं दे ै नमः ाहा। ीं ीं सव स े ः । अ - ीं अनके सं कटसं सारदःु खिनवारणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 24

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 25

9. भय-पाप नाशक ोक - आ ां तव वनम सम दोषं , ं कथािप जगतां दु रतािन ह । दरू े सह िकरणः कु ते भैव, प ाकरेषु जलजािन िवकास भा ॥9॥ अथ - स ूण दोषों से रिहत आपका वन तो दरू , आपक पिव कथा भी ा णयों के पापों का नाश कर देती है। जैस,े सयू तो दरू , उसक भा ही सरोवर म कमलों को िवक सत कर देती है। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (९) गुण-गाथा का पु भाव - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ चरू -चूर हो जाते ह, दोष दरू हो जाते ह। जनक मं गल गीता स,े पावन परम पनु ीता से॥ उसक चचा नहीं यहाँ , उसक अचा नहीं यहाँ । लिे कन पु कथाएँ ही, धरती जगत थाएँ ही॥ पाप सभी धलु जाते ह, ओलों से घलु जाते ह। कोसों दरू िदवाकर है, िफर भी वे कमलाकर ह॥ जल म कमल खलाते ह, िकरणों को प ँचाते ह। अचाय तो दरू रह, चचाय भरपूर रह॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 26

यं - ऋि - ीं अह णमो अ रहंताणं णमो सं भ सोदराणं ां ीं ं ः फट् ाहा। ऋ ये नमः । मं - ीं ीं ौं वीं रः रः हं हः नमः ाहा। नमो भगवते जयय ाय ीं ं नमः ाहा। अ - ीं सकलमनोवां छतफल दा े ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 27

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 28

10. कु कर िवष िनवारक का ोक - ना तु ं भवु न भषू ण भूतनाथ, भतू गै ुणै भिु व भव म भी ुव ः । तु ा भवं ित भवतो ननु तेन िकं वा, भू ा तं य इह ना समं करोित ॥10॥ अथ - हे जगत् के भषू ण! हे ा णयों के नाथ! स गणु ों के ारा आपक िु त करने वाले पु ष पृ ी पर यिद आपके समान हो जाते ह तो इसम अ धक आ य नहीं है। ोिं क उस ामी से ा योजन, जो इस लोक म अपने अधीन पु ष को स ि के ारा अपने समान नहीं कर लते ा। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१०) भि योग से सा योग - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ भतू नाथ जन भगवन हे! ि भवु न के आभषू ण हे! गुणगाथा-गाथा गाने वाले, िु त अपनाने वाले॥ तमु जसै े बन जाते ह, सब िवभिू तयाँ पाते ह। भौितक और भौितक भी लौिकक और अलौिकक भी॥ इसम कु छ आ य नही,ं पा जाते ऐ य यही।ं जो अपने आधीनों को, दास द र ी दीनों को॥ करे नहीं अपने जसै ा, वह ामी ामी कै सा? कै सा उसका धन पसै ा? अगर गरीब िनरा यसा॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 29

यं - ऋि - ीं अह णमो सयं बु ीणं ौं ौं नमः ाहा। मं – ज सं ानतो ज तो वा मनो ष धृतावािदनोयाना ांता भावे बु ा नो ां ीं ौं ः ां ीं ंू ः स बु कृ ताथ भव भव वषट् स णू ाहा। ीं अह णमो श िु वनाशनाय जय पराजय उपसगहराय नमः । ीं िव मा धपतये नमः । अ - ीं अह जन रण जनस ूताय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 30

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 31

11. वाछं ापरू क का ोक - ा भवं तमिनमेष िवलोकनीयं , ना तोषमपु याित जन च ःु । पी ा पयः श शकर िु त दु स ोः , ारं जलं जलिनधे र सतं ु क इ ेत् ॥11॥ अथ - हे अ भमषे दशनीय भो! आपके दशन के प ात् मनु ों के ने अ स ोष को ा नहीं होत।े च क ित के समान िनमल ीरसमु के जल को पीकर कौन पु ष समु के खारे पानी को पीना चाहेगा? अथात् कोई नही।ं मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (११) दय क आँ खों से - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ इकटक तु िनहार रही,ं तमु पर सब कु छ वार रही।ं ये अँ खयाँ अब जाएँ कहाँ ? तमु जसै ा अब पाएँ कहाँ? दशनीय हो नाथ! तु ी,ं वणनीय हो नाथ! तु ी।ं जसने िनमल-नीर िपया, ीर स ु का ीर िपया॥ छटक धवल जु या सा, मीठा मधरु िमठइया सा। वह ा लवण समु ों का? खारा पानी ु ों का? पीकर ास बझु ायेगा? सागर तट पर जायेगा? कभी नहीं पी सकता है, ासा ही जी सकता है॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 32

यं - ऋि - ीं अह णमो प ये बु ीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो भगवते स पाय भि यु ाय सां सीं सौं ां ीं ौं ौं ौं नमः ाहा। ीं ीं ीं ां ीं कु मितिनवा र ै महामायायै नमः ाहा। ीं ीं ीं ां भि ं पाय नमः । अ - ीं सकलपिु तुि कराय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 33

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 34

12. ह ीमद िनवारक का ोक - यःै शा राग च भः परमाणु भ ं , िनमािपत भुवनैक ललामभूत । ताव एव खलु तेऽ णवः पृ थ ां, य े समानमपरं न िह पम ॥12॥ अथ - हे ि भुवन के एकमा आभुषण जने देव! जन रागरिहत सु र परमाणओु ं के ारा आपक रचना ई वे परमाणु पृ ी पर िन य से उतने ही थे ोिं क आपके समान दसू रा प नहीं है । मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१२) परमौदा रक िद देह - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ वीतराग हर कण-कण है, चु क य आकषण है। कण-कण म सु रता है, कण-कण मोिहत करता है॥ जसने तु बनाया है, सु र प सजाया ह।ै वे सारे कण पृ ी पर, उतने ही थे धरती पर॥ सो सब तमु म ा ए, परमाणु समा ए। इसी लए तो कोई नही,ं तमु सा सु र िदखे कही॥ं तुम ही शा मनोहर हो, तीन लोक म सु र हो। हे शांत मु ा धारी! सु रता क ब लहारी॥ मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 35

यं - ऋि - ीं अह णमो बोिहबु ीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो भगवते अतुलबल परा माय आिद र य ा ध ाय ां ीं नमः । ीं ीं नमो अनुिदत मनजु ायानसमी ायजािम तु जलािन रप धनैकै ी देवा परपािदतािन नादकिनना देव कै च ाल धुममु न सखु ान बो धतान बुधादानं । आं आं अं अः सवराजा जा मोिहनी सवजनव ं कु कु ाहा। ीं ीं ीं िनज धम चंताय ौं ौं रं ीं नमः । अ - ीं वां छत पफलश ये ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 36

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता - 37

13. चोर भय िनवारक का ोक - व ं ते सुर नरोरग ने हा र-, िनः शेष िन जत जग तयोपमानम् । िब ं कलं क म लनं िनशाकर , य ासरे भवित पा ु पलाश क म् ॥13॥ अथ - हे भो! स णू प से तीनों जगत् क उपमाओं का िवजते ा, देव मनु तथा धरणे के ने ों को हरने वाला कहां आपका मखु ? और कलं क से म लन, च मा का वह म ल कहा?ं जो िदन म पलाश (ढाक) के प े के समान फ का पड़ जाता। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१३) वीतराग मखु मु ा - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ तीन लोक क उपमाएँ , जसे देखकर शरमाएँ । देवों और नरे ों के , िव ाधर धरणे ों के ॥ नयनों को हरने वाला, मन मोिहत करने वाला। कहाँ आपका मखु ड़ा है? कहाँ चाँ द का टुकड़ा है? कहाँ मलीन मयं क अरे? जसको लगा कलं क अरे? िदन म फ का पड़ जाता, ल ा से गड़-गड़ जाता॥ कु लाता अलव ा है, ों पलाश का प ा है। उपमा नहीं च मा क , आनन से दी जा सकती॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 38

यं - ऋि - ीं अह णमो ऋजमु दीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - भा ना अ सि ौं ौं ह् य् ँ ू यु ाय नमः । ीं ीं हं सः ौं ां ीं ां ीं ौं ः मोहनी सवजनव ं कु कु ाहा। नमो भगवते सौभा पाय ीं नमः । अ - ीं ल ीसुखिवधायकाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 39

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 40

14. आ ध ा ध नाशक का ोक - स ूण म ल शशा कला कलाप, शु ा गुणा भुवनं तव ल य । ये सं ता जगदी र नाथमके ं , क ाि वारयित सं चरतो यथे म् ॥14॥ अथ - पूण च क कलाओं के समान उ ल आपके गुण, तीनों लोको म ा ह ोिं क जो अि तीय ि जगत् के भी नाथ के आ त ह उ इ ानसु ार घुमते ए कौन रोक सकता ह? कोई नही।ं मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१४) आ ीक गुणों क ं दता - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ सकल कलाओं वाले ह, चं दा से उजयाले ह। गुण अनं त परमे र के , उ ल ान कलाधर के ॥ भरते खबू छलाँ गे ह, तीनों लोक उलाँ गे ह। फै ल रहे मनमाने ह, कोई नहीं िठकाने ह॥ जसने प ा पकड़ लया, दामन कसके जकड़ लया। के वल एक जने र का, तीन लोक ाने र का॥ जन पर छ छाया है, वीतराग क माया है। रोक-टोक कु छ उ नही,ं घमू वे तो जहाँ कही॥ं मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 41

यं - ऋि - ीं अह णमो िवउलमदीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो भगवती गुणवती महा मानसी ाहा। अ - ीं भूत ते ािदभयिनवारणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 42

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 43

15. राजवभै व दायक का ोक - च ं िकम यिद ते ि दशा ना भ-, न तं मनागिप मनो न िवकार मागम् । क ा काल म ता च लता चलेन, िकं म राि शखरं च लतं कदा चत् ॥15॥ अथ - यिद आपका मन देवागं नाओं के ारा िकं चत् भी िव ित को ा नहीं कराया जा सका, तो इस िवषय म आ य ही ा है? पवतों को िहला देने वाली लयकाल क पवन के ारा ा कभी मे का शखर िहल सका है? नही।ं मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१५) िनिवकार िन ं प भो - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ देवलोक क प रयाँ भी, सु रयाँ िक रयाँ भी। कामकु हाव-भाव लाई, रंचक नहीं िडगा पा ॥ इसम अरे अच ा ा? ितलो मा या रंगा ा? आँ धी उठे कयामत क , शामत हो हर पवत क ॥ उड़ते और उखड़ते हो,ं बनते और िबगड़ते हो।ं पर समु े क चोटी ा? छोटी से भी छोटी ा? डाँ वाडोल आ करती, आँ धी उसे छुआ करती। मे नहीं टस से मस हो,ं जनवर नहीं काम वश हो॥ं मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 44

यं - ऋि - ीं अह णमो दसपु ीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमो अ चं बल परा माय सवाथ काम पाय ां ीं ौं ीं नमः । नमो भगवती गुणवती सुसीमा पृ ी व ंृखला मानसी महामानसी ाहा। अ ितच ाय ीं नमः । अ - ीं मे व नोबलकरणाय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वषृ भनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 45

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 46

16. सव िवजयदायक का ोक - िनधूमवित रपव जत तैलपरू ः , कृ ं जग यिमदं कटी करोिष । ग ो न जातु म तां च लता चलानां, दीपोऽपर म स नाथ जग काशः ॥16॥ अथ - हे ािमन्! आप धमू तथा बाती से रिहत, तले के वाह के िबना भी इस स णू लोक को कट करने वाले अपवू जगत् काशक दीपक ह जसे पवतों को िहला देने वाली वायु भी कभी बुझा नहीं सकती । मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१६) च य र -दीप - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ िबना धआु ँ ब ी वाला, तेल नहीं जसम डाला। िफर भी जो आलोक भरे, जग-मग तीनों लोक करे॥ ऐसे -पर काशक हो, पाप-ितिमर के नाशक हो। ोितमय हो जीवक हो, आप िनराले दीपक हो॥ तेज आँ धयाँ चले भल,े पवत-पवत िहल भल।े िफर भी बझु ा नहीं पाया, अमरदीप हमने पाया॥ जसम काम-कलं क नही,ं देह नहे का पं क नही।ं चदानं द च यता है, िनज म ही त यता है॥ मानतु मुिनवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 47

यं - ऋि - ीं अह णमो चउदसपु ीणं ौं ौं नमः ाहा। मं - नमः सु-मं गला ससु ीमा नाम देवी सव समीिहताथ सव व ं खलां कु कु ाहा। ीं जयाय नमः । ीं िवजयाय नमः । ीं अपरा जताय नमः । ौं म णभ ाय नमः । अ - ीं लै ो वशं कराय ीं महाबीजा रसिहताय दय ताय ी वृषभनाथ जने ाय नमः अ िनवपामीित ाहा। 48

मिु न कामकु मार न ीजी महाराज कृ त ो क ऐितहा सकता – 49

17. सवरोग िनरोधक का ोक - ना ं कदा चदपु या स न रा ग ः , ीकरोिष सहसा युगप ग । ना ोधरोदर िन महा भावः , सयू ाितशाियमिहमा स मनु ी लोके ॥17॥ अथ - हे मनु ी ! आप न तो कभी अ होते ह न ही रा के ारा से जाते ह और न आपका महान तजे मेघ से ितरोिहत होता है आप एक साथ तीनों लोकों को शी ही का शत कर देते ह अतः आप सूय से भी अ धक मिहमाव ह। मं गल गीता (पं फु लचं दजी, पु े ,ु खरु ई): (१७) कै व ान मात - आिदनाथ के ी चरणों म, सादर शीश झुकाता ँ। भ ामर के अ भनं दन क , मं गल-गीता गाता ँ॥ होते ह जो अ नही,ं कभी रा से नही।ं एक साथ झलकाते ह, तीनों लोक िदखाते ह॥ सरू ज से भी बढक़र ह, मिहमाएँ बढ़-चढ़ कर ह। नहीं बादलों म गहरा, छपा रहे अपना चहे रा॥ परम तापी तेज ी, महा मन ी ओज ी। सचमुच आप मुनी र ह, सूरज से भी बढक़र ह॥ एक साथ झलकाते ह, जग िदखाते ह। मोह-रा का हण नही,ं कम का आवरण नही॥ं मानतु मिु नवर क कृ ित को, भि - सनू चढ़ाता ँ। उनके भावों क यह माला, भ ों को पहनाता ँ॥ 50


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