मेरे सपनों का भारत एक दिन जब माता की गोिी मंे सोया था । लाल अच्छरा भारत माँा की झाकँा ी का सपना तब मनंै े िखे ा था ।। अधीक्षक चारों ओर थी हररयाली और समांा सहु ाना था। अमन-अमान और शांादत का झंाडा जहााँ लहराता था ।। बच्चों द्वारा संास्कृ दत और सभ्यता को बढ़ते िखे ा । विे , परु ाण,कु रान, बाईबल और गीता पढ़ते िखे ा।। गांधा ीजी, सरिार,दतलक और नेहरु जसै े नते ा। इस धरती पर मैंने इनको दिर से आते िखे ा।। दसांह और मगृ को एक घाट पर पानी पीते िखे ा। राम-रहीम को पाया मैंने गंगा ा तट पर बैठा। इस बात को िखे कर सचमचु िगां रहकर मंै बठै ा। दहन्ि,ू मदु स्लम, ईसाई और दसक्ख को भाईचारे मंे िखे ा।। शहीि भगतदसाहं , सखु िले , राजगरु ु और जैसा। हर जवान में क्ाांती और आजािी का जज्बा िखे ा।। काश! कु िरत मेरी बना िे ऐसी भाग्य की रेखा। वतन की खादतर मर-दमट जाऊँा भारत बने दवजेता।। 93
विभाग मंे निवनयकु ्त वनरीक्षकों के प्रविक्षण के दृश्य 94
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जैसा खाए अन्न वैसा बने मन अननता एन. बाबू अधीक्षक भोजन सभी के ज़िन्दगी मंे महत्वपरू ्ण ह।ै भोजन का सवे न करने से हमंे कार्ण करने की क्षमता जमलती ह।ै जसै ा हम खाना खाते हैं उसका असर हमारे मन और मजततष्क पर पड़ता ह।ै भोजन को सनातन धमण में भगवान् के समान माना जाता ह।ै शास्त्रों के मतु ाजिक अन्न को ब्रह्म ईश्वर के रूप मंे माना जाता ह।ै जसै ा हम भोजन का सेवन करते ह,ै उसका प्रभाव हमारे चररत्र पर भी पड़ता ह।ै पहले लोग ज़्र्ादा शदु ्ध भोजन का सवे न करते थे। ति जमलावट नहीं होती थी, प्रदषू र् ज़्र्ादा नहीं था। फसलों की पदै ावार के जलए रासार्जनक कीटनाशक दवाईर्ों का प्रर्ोग नहीं जकर्ा जाता था। इसीजलए ति के जमाने में लोग अजधक िीमार नहीं पड़ते थे। आज भोजन इतना शदु ्ध नहीं है क्र्ोंजक खाद्य सामग्री शदु ्ध नहीं जमलते ह।ै कीटनाशकों का प्रर्ोग फसलों में आजकल अजतररक्त होता ह।ै इससे उपज और खाद्य सामग्री अशदु ्ध होते ह।ै अशदु ्ध भोजन ग्रहर् करने से मनषु ्र्ों के शारीररक और मानजसक सहे त पर िरु ा असर पड़ता ह।ै मनषु ्र् ने अन्न को जकस तरह से प्राप्त जकर्ा, र्ह जानना ़िरूरी ह।ै जो अन्न हम खाते है, वह जकस प्रकार घर पर आर्ा, जकस माध्र्म से आर्ा, उसका ध्र्ान रखना ़िरूरी ह।ै कु छ लोग पररश्रम करके अन्न कमाते ह।ै कु छ लोग गलत, धोखे के राह पर चलकर कमाई करते ह।ै कु छ चोरी और लटू पाट करके अन्न प्राप्त करते ह।ै अगर सही मागण को अपनाकर लोग अन्न लाते है तो उसका सकारात्मक प्रभाव लोगों पर पड़ता ह।ै कोई गलत मागण को अपनाकर अन्न लाते है तो जनजित तौर पर उसका िरु ा प्रभाव पड़ता ह।ै ईमानदारी, सच्चाई, पररश्रम जसै े गरु ्ों को अपनाकर लोग चनै की नींद सोते ह।ै 96
साजत्वक भोजन के सवे न से शरीर सेहतमदं रहता ह।ै सजज़िर्ां और जिना तला और मसालदे ार रजहत खाना तवतथ के जलए अच्छा होता ह।ै ऐसे भोजन खाने से हमारा मन और शरीर तरोता़िा रहता है और हमेशा हम सक्रीर् रहते ह।ै मजं दर में लगार्ा हआु भोग तवाजदष्ट होता ह।ै इसे खाने से मन प्रसन्न हो जाता ह।ै इसकी वजह से शदु ्ध वातावरर् और शदु ्ध जवचार सानववक भोजन सजक्रर् रहते ह।ैं अगर हम साजत्वक भोजन नहीं करते है तो हमंे कार्ण करने के जलए ताकत नहीं जमलती है और व्र्जक्त आलतर् महससू करता ह।ै अगर व्र्जक्त तले हुए भोजन और जकं फू ड का सवे न करता ह,ै तो उसका ध्र्ान एक तथान पर नहीं जटकता ह।ै तले हएु भोजन तवात्र् के जलए अच्छे नहीं होते ह।ै इससे व्र्जक्त की सहे त पर िरु ा प्रभाव पड़ता ह।ै मन जतथर नहीं रहता ह।ै जजन्दगी मंे लक्ष्र् प्राजप्त के जलए साजत्वक भोजन का सवे न करना अच्छा होता ह।ै हमे ज़िन्दगी में हमेशा सही राह पर चलना चाजहए। सत्र्जनष्ठा की नीजत और पररश्रम करके रोजगार करना चाजहए। उन्हीं पसै ों से खाने का िंदोितत करे और ईश्वर का शजु क्रर्ा करे। ईश्वार को तमरर् करते हएु भोजन करे , इससे मन और मजततष्क दोनों शदु ्ध रहगे ा। ********* “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा ह।ै ” – महात्मा गाधं ी “मंै दबु नया की सभी भाषाओूं की इज्जत करता हँू पर मेरे दशे में बहदंू ी की इज्जत न हो, यह मंै सह नहीं सकता।” - आचार्ण जवनोिा भावे “बजस दशे को अपनी भाषा और साबहत्य का गौरव का अनभु व नहीं ह,ै वह उन्नत नहीं हो सकता।” -डॉ.राजंदे ्र प्रसाद “हमारी नागरी बिबप दबु नया की सिसे वैज्ञाबनक बिबप ह।ै ” - राहुल सांकृ त्र्ार्न 97
कवच बस मिसाइल,ें बनाकर अजय मिश्रा आशमु िमिक दमु नयाँा को शिशान बना रहे ह,ै मिकास की डगर पर, िौत को बढा रहे ह।ै कु छ लोग, टुकडे भर रोटी, बाँद भर पानी और मसर पर छप्पर के मलए, तड़प-तरस रहे ह,ै कोई नहीं है गि, कारखानों िें परिाणु बि बना रहे ह।ै लपु ्त हो गई लोररयााँ, बचपन सहि गया ह,ै होंठो से िसु ्कान, मछनकर हाथों िंे बन्दक थिा रहे ह।ै इन्सान को, िौत को सौदागर बना रहे ह।ै िाना मक, मिसाइलों िें मसर्फ , बारुद की नहीं, र्ल भी भरकर, भजे े जा सकते ह।ैं िगर र्लों को भेजने के मलए, ताबत क्यों बना रहे ह?ै सिाल यह है मक, मिसाइलों के किच, तो बना लेंगे हि, आदिी के मलए, किच कहााँ बना रहे ह?ै 98
वृक्षों का महत्व रवव मीना अधीक्षक पड़े प्रकृ ति की वो देन है तिसका कोई तवकल्प उपलब्ध नहीं ह।ै पेड़ हमारा सबसे घतनष्ठ तमत्र ह।ै हमारे द्वारा लगाया गया पड़े तसर्फ हमें ही लाभ नहीं पहचँु ािा बतल्क आने वाली कई पीतियों को लाभ पहचुँ ािा ह।ै पड़े हमारे िीवन का अततित्व ह।ंै पेड़ों के तबना धरिी पर िीवन की कल्पना करना असंभव ह।ै ये धरिी पर अमलू ्य सम्पदा के समान ह।ंै पड़े ों के कारण ही मनषु ्य को अपनी आधारभिू आवश्यकिाओं को पूरा करने के संसाधन प्राप्त होिे ह।ैं यतद पड़े न हों िो पयाफवरण का संिलु न ही तबगड़ िाये और चहँु ओर िबाही मच िाये। आिकल मनषु ्य तवकास के नाम पर कं करीट के िगं ल बना रहा है और वे भी इस प्राकृ तिक सम्पदा की कीमि पर। यतद पेड़ काटने के साथ-साथ इनका रोपण न तकया गया िो इस ग्रह पर िीवन की सभं ावनायंे ही खत्म हो िायंेगी। हवा, पानी, खान-े पीने की सामग्री, ईधं न, वस्त्र, िानवरों का चारा अन्य कायों में प्रयोग करने के तलए लकड़ी सब हमंे पड़े ों से ही तमलिा ह।ै पड़े पयावफ रण से काबफन डाईऑक्साईड लेकर बदले मंे ऑक्सीिन दिे े ह।ंै पेड़ों पर कई िीव-िन्िु अपना घर बनािे ह।ंै यतद पड़े न हों िो हम इन सब चीिों की कल्पना िक नहीं कर सकि।े लते कन क्या मनषु ्य इस प्राकृ तिक संसाधन से अपना लाभ लेना ही िानिा है या वह इसके सरं क्षण और संवर्द्फन की ओर भी िागरूक ह?ै विमफ ान की ततथति दखे कर ऐसा लगिा 99
है तक हम पड़े ों को बचाना िो चाहिे हंै पर शायद उिना प्रयास नहीं कर पा रहे हैं तििना आवश्यक ह।ै ऐसी पररततथति धीरे-धीरे प्रकृ ति का सिं लु न तबगड़िा िायेगा और हम प्रकृ ति की इस अमलू ्य सम्पदा को धीरे-धीरे अन्य प्रिातियों को लपु ्त कर दगंे ।े इस प्रकार इस धरिी पर न िीवन होगा न िीव। अिः हमें चातहये तक हमारे आस-पास हमें तििनी भी खाली भूतम तदखाई द,े हम वहाँु पौधारोपण करें और कु छ न अपने घर मंे गमलों मंे ही इस अमलू ्य धरोहर को संरतक्षि करंे। यतद यह छोटा-सा कदम हर व्यति उठायेगा िो यह धरिी और धरिी पर िीवन सब खशु हाल रहगे ा। पेड़ों को हरा सोना भी कहा िािा है क्योंतक यह बहि मलू ्यवान सम्पदा ह।ै धरिी पर िीवन प्रदान करने वाली ऑक्सीिन और पानी प्रदान करने वाला मखु ्य साधन पड़े ही ह।ंै ऑक्सीिन प्रदान करने का कायफ और कोई नहीं कर सकिा और पेड़ों के तबना पानी की कल्पना करना मतु श्कल ही नहीं, नाममु तकन ह।ै पड़े वायु प्रदषू ण कम करने मंे हमारी सहायिा कर पयाफवरण को शरु ्द् रखिे ह।ंै मात्र वायु प्रदषू ण ही नहीं, ये हातनकारक रसायनों को छानकर िल को भी सार् करिे ह।ंै हर उद्योग में पड़े के उत्पाद का मखु ्य योगदान रहिा ह।ै हमारे दतै नक िीवन में उपयोग होने वाली वतिओु ं मंे पड़े ों का बहि महत्व ह।ै तििने अतधक पड़े होंगे पयावफ रण भी उिना ही शरु ्द् रहगे ा। आिकल लोगों को वायु प्रदषू ण के कारण कई प्रकार के श्ासं संबतं धि बीमाररयों के साथ-साथ अन्य रोगों से पीतड़ि होना पड़ रहा ह।ै यतद पेड़ होंगे िो हवा में तमली हातनकारक गैसों को शोतषि कर हमंे तवच्छ हवा प्रदान करंेगे और रोगों से छु टकारा भी तदलाएंग।े यतद हम पेड़ों की संख्या में वतृ र्द् करेंगे िो ये प्राकृ तिक रूप से हवा को तवच्छ करने के साथ हमें और भी कई र्ायदे पहचँु ायंेगे। इनकी वतृ र्द् से हम एयर कं डीशनर के उपयोग से बच कर इससे तनकलने वाली हातनकारक गसै ों से भी तनिाि तमलिा ह।ैं पेड़ों के कारण ही हमंे भरपरू वषाफ प्राप्त होिी है। वकृ ्षों की िड़े तमट्टी को बांध कर रखिी हंै तिनसे मदृ ा अपरदन भी नहीं होिा व भतू म िल को अच्छे से अवशोतषि कर लिे ी हैं। यही िल भूतमगि िल बनकर िीव-ििं ओु ं को िल सकं ट से बचािा ह।ै पड़े हमंे छाया प्रदान कर गमी के प्रभाव से भी धरिी को बचािे ह।ंै ****** 100
श्री आर. एस. चौहान, सहायक आयकु ्त (सवे ाननवतृ ्त) द्वारा भ्रमण के दौरान निए गए छायानचत्र 101
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