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Kshitiz Hindi E-Magazine for GST Audit-III

Published by ram.dnpr, 2022-02-16 15:42:42

Description: Kshitiz Hindi E-Magazine for GST Audit-III

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यह सब अवचते न मन के कारण ही होता है, यह उसे आदत के रूप में स्वीकार कर लते ा ह।ै जब हमारा अवचेतन मन सकसी चीज को स्वीकार कर लते ा है तो उसे वह हकीकत मान लते ा ह।ै दसु नया में सजतने भी सफल व्यसक्त हएु ह,ैं उनमंे एक बात कॉमन होती ह,ै उनका अवचते न मन बेहतरीन ढंाग से तयै ार सकया हुआ होता ह।ै इसका मतलब उन्हें जो जीवन मंे लक्ष्य प्राप्त करने हंै, वे उनके अवचेतन मन मंे पहले से ही तैयार होता ह।ै अगर हम अपने अवचेतन मन को सवशेष प्रकार से तयै ार करते हंै तो हमारे जीवन में कु छ भी असंाभव नहीं रह जाता ह।ै कु छ प्रसियाओंा द्वारा हम इसे अपने मतु ासबक तयै ार कर सकते ह।ंै अवचते न मन के उदाहरण: अवचेतन मन की अविारणा को समझने के सलए भी हम सभी लोग समरु पर तैरती बफफ की सशला का उदाहरण प्रयोग कर सकते ह।ंै सजस प्रकार चते न मन सवाल खडे करता ह,ै तंगा करता है और उसमंे सोच समझकर सनणयफ लते ा ह।ै ठीक ऐसा ही अवचते न मन के साथ होता ह।ै यह एक तरह से स्टोरेज रूम की तरह काम करता ह।ै यह हमारे अनभु वों, सवचार और िारणाओां का सगंा ्रहण करता है और इन्हीं अनुभवों के आिार पर स्वचासलत रूप से काम करता ह।ै अवचेतन मन का सहदां ी में अथफ होता है स्वप्न। अवचते न मन को हम स्वप्न इसीसलए कह रहे हंै क्योंसक अवचते न मन का काम ससफफ और ससफफ हमंे सपने सदखाना होता है अथाफत् जो कोई भी सपने दखे ता ह,ै वह अवचेतन मन होता ह।ै अवचते न मन को सरल भाषा में आभासी प्रसतसबांब बनाने वाला कहा जा सकता ह।ै सकसी भी व्यसक्त की तरफ आकषफण में अवचते न मन का सवशषे योगदान होता ह।ै क्योंसक अवचते न मन के द्वारा ही हम सकसी भी चीज पर अपनी आससक्त व्यक्त करते ह।ंै --------------------- 43

विश्वास तेजस सालियन कर सहायक विश्वास जीिन ह,ै मरे हुए लोग है िे, वजनका अपना विश्वास मर गया। आदमी का अपना, विश्वास मर जाए तो, श्वास का कोई मलू ्य नहीं। मदु ं है ि,े वजनका, अपने पर स,े भरोसा उठ गया। स्ियं पर से भरोसा उठ गया तो, दवु नया से उठने में दरे नहीं। आदमी का मनोबल टूट जाए तो, उसके टूटने मंे भी िक्त नहीं। मनोबर वकसी नोबल प्राइज से कम नहीं। ******** 44

खुश कै से रहंे? रोहहत हशहरा कर सहायक इस भागदौड़ भरी ज िदं गी मंे प्रत्येक व्यजि के मन में एक ही सवाल उठता है जक आजिर हम िशु कै से रह?ें िशु रहने का क्या रहस्य ह?ै इस दजु नया में बहतु से ऐसे लोग ह,ंै ो िशु ी का नाम सनु ते ही ीवन ीने की इच्छा को बढाना चाहते हैं और ऐसे ही कु छ लोग ह,ंै ज नके ीवन में िशु ी है ही नहीं। वे लोग िशु तो रहना चाहते हैं परंितु िशु रह नहीं पात।े िशु ना रहने के बहतु से कारण ह,ंै परंितु िशु रहने के कारण आपको स्वयंि बनाने होते ह।ंै ऐसे में यजद आप चाहते हैं जक आपकी ज ंिदगी कै सी भी हो अर्ाात आपकी कै सी भी पररजस्र्जत हो, परंितु आप जसर्ा िशु रहंे आपके जलए बहतु ही बड़ी बात होगी। आप सभी लोगों को हमारे इस लिे में िशु रहने के कई तरीके बताए गए ह,ैं ज न्हंे पढकर आप भी अपनी ज िदं गी में िशु रह पाएगिं े और अपनी लाइर् को हमेशा इंि ॉय भी कर पाएंगि े। प्रत्यके व्यजि अपनी लाइर् को िजु शयों से भर दने ा चाहता ह,ै इसके जलए वह जदन रात महे नत करता है परिंतु उसे िशु ी नहीं जमलती। तो हम आपको बता दें जक ीवन मंे िशु रहने के जलए आपको सदवै छोटी-छोटी बातों को िास बनाना चाजहए और आपको अपने ीवन मंे लोगों से प्यार से पशे आना चाजहए। िशु ी एक ऐसी ची ह,ै ज से प्रत्येक व्यजि पाना चाहता ह।ै इसे सभी लोग सदवै अपने पास संि ोए रिना चाहते ह,ैं परंितु यह सदवै सार् रहने वाली नहीं ह।ै िशु ी आपके पास तब तक ही रहगे ी, ब तक आपका व्यवहार लोगों के प्रजत कार्ी अच्छा होगा और आप अपने छोटे-छोटे समय को जवशषे बनाएंगि े। 45

िजु शयांि प्राप्त करना कोई आसान काम नहीं ह,ै िजु शयांि प्राप्त करना बहतु ही कजठन काम ह।ै परंितु अपने छोटे-छोटे कायों को जवशषे तरीके से करके उन्हें अपनी िजु शयों मंे तब्दील जकया ा सकता ह।ै हम सभी लोग अपने ीवन मंे िशु रहने के जलए बहुत कु छ करते ह।ंै यजद आप चाहें तो आप गलत सोच से बाहर जनकल कर एक अच्छी ज ंदि गी व्यतीत कर सकते हैं और आपकी यह ज िंदगी िजु शयों भरी हो सकती ह।ै इस परू े संसि ार में प्रत्यके व्यजि का पहला कतवा ्य एक िशु जम ा व्यजि बनना होता ह।ै परिंतु िशु रहना ीवन का चरम पहलू नहीं ह,ै अर्ाात िजु शयािं ीवन की बजु नयादी पहलू ह,ै ना जक चरम पहल।ू इसका अर्ा है हम ब चाहें दिु ी और ब चाहंे िशु हो सकते ह,ैं परिंतु यह समय पर जनभार करता ह।ै आप सभी लोग अपने ीवन मंे कु छ सधु ार करके िशु रह सकते ह।ैं बहतु से लोग दसू रे लोगों से अपनी तलु ना करके उस समय वे सब कु छ भलू ाते ह,ंै ो उनके पास होता ह।ै अतः हमें सदवै इस बात का ध्यान रिना है जक हमें जकसी दसू रे व्यजि से अपनी तलु ना नहीं करनी ह,ै बजकक आपको कु छ ऐसा करना है जक दसू रे लोग आपसे तलु ना करें। अक्सर दजु नया के ज्यादातर लोग अपने जब नसे को लेकर इतने ज्यादा व्यस्त हो ाते हंै जक वह अपने पररवार के सदस्यों को र्ोड़ा सा भी समय नहीं दे पाते इसी कारण से उनके और उनके पररवार के बीच आपसी मनमटु ाव बढते ाते हैं और धीरे-धीरे इनकी िजु शयांि जछन ाती हंै इसजलए आप िशु रहने के जलए ीवन मंे सदवै अपने पररवार वालों के सार् अपना कीमती वि अवश्य गु ारे। आपके द्वारा आपके पररवार के सार् जबताया गया हर एक पल आपको िशु ी के बहुत ही जवशाल सागर मंे डुबो दगे ा और आप ीवन में िशु रहने के जलए उन्हीं पलों को याद कर सकें गे। 46

संविधान वििस के उपलक्ष्य में प्रस्तािना पठन के छायावित्र 47

मेरा शौक शभु म एस. सरतापे कर सहायक मेरा पसदं ीदा शौक टीवी दखे ना ह।ै मंै खाली समय में टीवी दखे ना बहतु पसदं करता ह।ूँ टीवी दखे ना मरे ा शौक है लके कन मरे ा यह शौक मरे ी पढाई में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करता ह।ै सबसे पहले, मंै अपना गहृ कायय और याद करने का कायय परू ा करता हूँ और उसके बाद टीवी दखे ता ह।ँू मझु े लगता है कक मरे ा यह शौक बहुत अच्छा है क्योंकक टीवी दखे ने से मझु े कवकिन्न क्षेत्रों के बारे मंे जानकारी कमलती ह।ै मझु े आमतौर पर, समाचार और किस्कवरी चनै ल के साथ ही एकनमल प्लैनेट चनै ल पर काययक्रम दखे ना पसंद ह।ै मझु े कु छ अच्छे काटूयन दखे ना िी पसदं ह,ै कजनसे मझु े कला और काटूयन बनाने के रचनात्मक कवचार कमलते ह।ंै मरे े माता-कपता मरे ी इस आदत की प्रशंसा करते हंै और उन्हें उस समय बहतु खशु ी होती ह,ै जब वे मझु से सिी ताजा खबरों को सनु ते ह।ैं मेरे इस शौक का कवकास मरे े बचपन मंे ही हो गया था। सही ढगं से टीवी दखे ना हमारे जीवन मंे बहुत महत्वपरू ्य िकू मका कनिाता ह।ै यह हमंे दकु नया िर मंे होने वाली सिी घटनाओं के बारे में ताजा जानकाररयों के कवषय मंे बताता ह।ै दकु नयािर में घकटत होने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी रखना वतयमान समय के आधकु नक समाज में बढती हुई प्रकतयोकगता के कारर् बहतु अकधक महत्वपरू ्य हो गया ह।ै कु छ लोगों का मानना है कक टीवी दखे ना के वल समय की बरबादी करना है लेककन वे इस वास्तकवकता से कबल्कु ल अनकिज्ञ है कक यकद टीवी को सही ढंग से दखे ा जाए तो यह एक व्यकि को सफलता के रास्ते की ओर ले जाता ह।ै इसे दखे ने के बहुत से लाि ह,ंै क्योंकक यह हमारे ज्ञान मंे सधु ार के साथ ही हमारी जीवन-शैली से संबंकधत बहतु सी सचू नाएं दते ा ह।ै टीवी पर ऐसे कई कायकय ्रम प्रसाररत ककए जाते हैं जो वास्तव मंे, दकु नया िर की घटनाओं के बारे मंे हमारी जागरूकता बढाते ह।ैं टीवी पर बहुत से कवषयों पर आधाररत कायकय ्रम िी प्रसाररत ककए जाते हैं जैसे- इकतहास, गकर्त, अथशय ास्त्र, कवज्ञान, िगू ोल, ससं ्कृ कत आकद के बारे मंे लोगों को अकधक जागरूक करने के कलए प्रसाररत ककए जाते ह।ंै शौक ककसी िी व्यकि में उसकी अन्य आदतों में से एक कवशषे रुकच को प्रदकशयत करता है जो उसकी सारी आदतों से अलग होता ह।ै शौक बहतु अच्छी बात है जो हर ककसी में होता ह।ै ककसी िी वस्तु का शौक होना एक अच्छी आदत है जो सिी में होनी बहतु आवश्यक है क्योंकक यह उस व्यकि को उसकी पसदं की चीजों को करने के कलए प्ररे रत करता ह।ै यह व्यकि को खलु े कदमाग से ककसी कायय मंे व्यस्त करता ह।ै यह हमंे किी िी अके ला नहीं छोड़ता और हमारा मानकसक बीमाररयों से बचाव करता ह।ै मझु े आमतौर पर, बगीचे में अपना खाली समय व्यतीत करना अच्छा लगता था। मंै अपने कपताजी के साथ प्रकतकदन सबु ह 48

पाकय मंे जाना बहतु पसदं करता था। जब मंै छोटा बच्चा था, तब मेरे कपताजी मझु े छोटे पौधों को पानी दते े हएु दखे कर अक्सर हसूँ ा करते थ।े लेककन अब वह मझु पर गवय करते हैं कक मंैने पौधों के जीवन को बचाने के कलए कु छ ककया और पथृ ्वी पर जीवन के अकस्तत्व के कलए उनके महत्व और मलू ्य को समझा। शौक हमारे प्रकतकदन के जीवन का वो कहस्सा होता है, कजसे हम हर रोज अवश्य करते ह।ैं यह हमारी प्रकतकदन के दबाव से बचाने में मदद करता ह।ै यह हमें बहुत अकधक आनदं और शारीररक, मानकसक व आकत्मक शाकन्त प्रदान करता ह।ै यह एक योग और ध्यान की तरह है, किी-किी तो इससे िी अकधक लाि प्रदान करता ह।ै यह हमारे मकस्तष्क को कक्रयात्मकता की ओर ले जाता है और जीवन मंे कु छ बहे तर करने के कलए प्रेररत करता ह।ै अच्छी आदतें नाटकीय रूप से हमारे व्यकित्व और चाररकत्रक कवशषे ताओं में सधु ार करने के साथ ही हमारे प्रदशयन को बहे तर करता ह।ंै यह हमारी योग्यता और क्षमता को खोजने में मदद करता है और उन्हें सही कदशा में प्रयोग करने के कलए प्रोत्साकहत करता ह।ै हमारे शौक हमंे जीवन की दकै नक िीड़ से अलग रखकर, हमारे कदमाग को ताजा और शान्त बनाता ह।ै मेरा शौक बागवानी करना है और मझु े नए पौधों को लगाना और उन्हें हर सबु ह पानी दने ा बहतु अच्छा लगता ह।ै कखलते हएु फू लों और बढते हुए पौधों को दखे कर मझु े महान उपलब्धी महससू होती है और जीवन की वास्तकवकता का अहसास होता ह।ै यह मझु े तदं रु ुस्त, मजबतू , स्वस्थ और तरोताजा रखने मंे मदद करता ह।ै प्रकतकदन पेड़ों को पानी दने ा और बागवानी करना, मेरे कलए सबसे अच्छा व्यायाम है जो मेरे मकस्तष्क और शरीर को सकारात्मकता की ओर मोड़ता ह।ै ककसी िी वस्तु या कु छ करने का शौक अच्छी चीज ह,ै जो एक व्यकि को बचपन से प्राप्त होता ह।ै इसे ककसी िी आयु में कवककसत ककया जा सकता ह।ै हालांकक, बचपन से ही ककसी शौक का होना अपना एक अलग महत्व रखता ह।ै हम सिी कु छ कामों को अपनी रुकच के अनसु ार करते हंै जो हमंे खशु ी और आनंद प्रदान करते ह,ंै वही शौक कहलाता ह।ै कु छ लोगों में अपनी रुकचयों, पसंद और नापसदं के अनसु ार अलग-अलग शौक होते ह।ैं ऐसे बहुत से शौक हैं, जो हम कवककसत कर सकते हंै; जसै े- नाचना, गाना, सगं ीत सनु ना, कचत्रकारी करना, इिं ोर या आउटिोर खले खेलना, कचकियों को दखे ना, प्राचीन चीजों को एकत्र करना, फोटो खींचना, कलखना, अलग-अलग चीजों को खाना, पढना, बागवानी करना आकद। हमारे शौक हमारे जीवन-यापन मंे मदद करते ह,ैं कजसकी मदद से हम सफल कॅ ररयर का कनमायर् कर सकते ह।ैं शौक वह होता है, कजसका हम अपने खाली समय में परू ी तरह आनंद लेते ह।ंै ****** 49

मातृ-भाषा के प्रतत प्रेम निज भाषा उन्िनि अह,ै सब उन्िनि को मलू । हरेश गगं रामानी नबि निज भाषा-ज्ञाि के , नमटि ि नहय को सलू ।। अधीक्षक अगं ्रजे ़ी पऩि के जदनप, सब गिु होि प्रव़ीि। पै निज भाषाज्ञाि नबि, रहि ह़ीि के ह़ीि।। उन्िनि परू ़ी है िबनहं जब घर उन्िनि होय। निज शऱीर उन्िनि नकये, रहि म़ू ि सब कोय।। निज भाषा उन्िनि नबिा, कबहुँ ि ह्यहै ंै सोय। लाख उपाय अिके यों भले करो नकि कोय।। इक भाषा इक ज़ीव इक मनि सब घर के लोग। िबै बिि है सबि सों, नमटि म़ू ििा सोग।। और एक अनि लाभ यह, या मंे प्रगट लखाि। निज भाषा मंे कीनजए, जो नवद्या की बाि।। िेनह सनु ि पावै लाभ सब, बाि सिु ै जो कोय। यह गिु भाषा और मह,ं कबहँु िाहीं होय।। नवनवध कला नशक्षा अनमि, ज्ञाि अिेक प्रकार। सब दसे ि से लै करह, भाषा मानह प्रचार।। भारि में सब नभन्ि अनि, िाहीं सों उत्पाि। नवनवध दसे मिह नवनवध, भाषा नवनवध लखाि।। सब नमल िासों छाँुऩि कै , दजू े और उपाय। उन्िनि भाषा की करह, अहो भ्रािगि आय।। -भारतंेदु हररश्चंद्र 50

पसु ्तकों से जुड़ा शिष्ट़ाच़ार पवन पटेल कर सह़ायक ज्ञान का सागर अथाह ह।ै इस सागर मंे जीवनपर्यंत डुबकी लगाने पर भी तपृ्ति नहीं हो सकती। कई पसु ्तकंे इतनी महगं ी व दलु भल होती हंै प्तक पसु ्तकंे पड़ने की चाह होते हएु भी सभी के प्तलए उन पसु ्तकों को खरीदना सभं व नहीं हो पाता ह।ंै ऐसी प्तस्थप्तत मंे एक ही तरीका शषे रह जाता है प्तक प्तकसी पसु ्तकालर्य से चाहे वह सावलजप्तनक पसु ्तकालर्य हो अथवा कार्याललर्य का पसु ्तकालर्य र्या प्तिर उन व्र्यप्तिर्यों के पास से प्तजनके पास वे पसु ्तकें उपलब्ध हों, उनके पसु ्तकें लेकर ज्ञान प्तपपासा को शांत प्तकर्या जाए। ज्ञान तो बाँाटने से बढ़ता ह,ै इसी बात को ध्र्यान मंे रखकर पसु ्तक प्रपे्तमर्यों के बीच पसु ्तकों का आदान-प्रदान जारी रहता ह।ै पसु ्तक प्रेमी पसु ्तक प्राि करने से लके र लौटाने तक र्यप्तद कु छ बातों का ध्र्यान रखंे तो पसु ्तकों के आदान-प्रदान की प्तनरंतरता बनी रह सकती ह।ै ❖ पसु ्तकें प्तकसी कार्याललर्य, वाचनालर्य एवं राष्ट्र की धरोहर होती ह।ै उनकी रक्षा करना हम सभी का परम कर्त्वल ्र्य ह।ै ❖ आप पसु ्तक प्राि करने को प्तजतने आतरु रहते ह,ंै पसु ्तक लौटाने मंे भी उतने ही तत्पर रह।ें ❖ र्यप्तद आपका समर्य अमलू ्र्य है तो दसू रों का समर्य भी अनमोल ह।ैं अचानक बगैर प्तकसी सचू ना के प्तकसी के र्यहाँा जाना अप्तशष्टता ह।ै अतः िोन पर प्तमलने का समर्य प्तनप्तित करके ही पसु ्तक लने े जाए।ाँ ❖ पसु ्तक लते े समर्य र्यह जानकारी अवश्र्य प्राि कर लें प्तक वह पसु ्तक आप कब तक रख सकते ह।ैं ❖ र्यप्तद आप प्तकसी कारणवश प्तनधारल रत अवप्तध में पसु ्तक न लौटा सके तो प्तजनसे आपने पसु ्तक प्राि की है उन्हें इसकी पवू ल सचू ना प्रदान कर अनमु प्तत अवश्र्य प्राि कर लें। ❖ पसु ्तक पर प्तकसी तरह के प्तचन्ह लगाना, कु छ प्तलखना, िाड़ना र्या लापरवाही से क्षप्ततग्रस्त करना अप्तशष्टता ह।ै ❖ आपने प्तजनसे पसु ्तक ली है उन्हें अपना पता व िोन नबं र अवश्र्यक दंे ताप्तक आवश्र्यकता होने पर वे आपसे सपं कल कर सकंे । ❖ पसु ्तक को र्यथाप्तस्थप्तत र्या बहे तर प्तस्थप्तत में ही लौटाए,ं बदतर प्तस्थप्तत मंे नहीं। ❖ र्यप्तद प्तकसी कारणवश आप स्वर्यं पसु ्तक लौटाने न जा सके , तो प्तजनके साथ पसु ्तक भेजगें ,े उसे सही नाम व पता प्तलखकर दें तथा उसी प्तदन िोन द्वारा पपु्तष्ट कर लंे प्तक पसु ्तकदाता को पसु ्तक समर्य पर प्राि हो गई है र्या नहीं। प्तजसने आपको अमलू ्र्य व दलु भल पसु ्तक प्रदान कर आपकी ज्ञानवपृ्ति में सहार्यता की उसका धन्र्यवाद करना न भलू े।ं ❖ पसु ्तकंे लने े से दने े तक ऐसा व्र्यवहार प्रदप्तशतल करें ताप्तक भप्तवष्ट्र्य में कोई भी आपको पसु ्तक दने े में परहजे न करें। 51

श्री आर. एस. चौहान, सहायक आयकु ्त (सवे ाननवतृ ्त) द्वारा सीमा शलु ्क में सेवाकाल के दौरान जहाजरानी और क्रू मंबे सस के छायानचत्र 52

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ससं ्कृ ति और सभ्यिा रति मीना कर सहायक वस्ततु : ससं ्कृ तत और सभ्यता का अत्यतं करीबी ररश्ता ह।ै यह ररश्ता कु छ-कु छ वैसा ही ह,ै जसै ा आत्मा और दहे का होता ह।ै दोनों साथ-साथ चलते ह,ंै उनका सह-अतस्तत्व होता ह।ै एक के तबना दसू रा परू ्ण नहीं हो सकता ह।ै तन:संदहे ससं ्कारों का ससं ्कृ तत से अटूट संबधं होता ह।ै सच तो यह है तक ससं ्कारों का घनीभतू स्वरूप ही ससं ्कृ तत के रूप में सामने आता ह।ै हम कह सकते हैं तक ससं ्कृ तत की आधारतिला संस्कार ही होते ह।ैं अच्छे संस्कारों से ही कोई संस्कृ तत सरु तित होती ह।ै अत: सांस्कृ ततक उन्नयन की प्रारंतभक इकाई संस्कार ही होते ह।ैं संस्कार हमें घर से तमलते ह,ंै उसके बाद तवद्यालय और पाठिालाओं में। माता को प्रथम गरु ू यँू ही नहीं कहा गया ह।ै पररवार में माता ही सबसे पहले बच्चों को ससं ्कार दते ी ह।ै इन्हीं संस्कारों से उसके आचरर् की नींव बनती ह।ै तिर वह पाठिाला जाता है और श्रषे ्ठ गरु ूजनों के सातन्नध्य मंे रहकर ससं ्कारों की पजँू ी अतजतण करता ह।ै इस तरह वह एक परू ्ण व्यतित्व के रूप मंे तनखरता है और समाज में अपनी भागीदारी सतु नतित करता ह।ै ये संस्कार हमने एक तदन मंे उत्पन्न नहीं तकए ह।ंै पररष्कृ त ससं ्कारों को व्यवहार में लाने मंे सतदयां बीत चकु ी ह।ंै आज अगर हम अपनी संस्कृ तत पर गवण करते ह,ंै तो इसके पीछे उन ससं ्कारों की महती भतू मका ह,ै तजन्हंे हमने एक लंबी अवतध में सतं चत तकया ह।ै आज हम अपनी तजस संस्कृ तत का बखान करते नहीं थकत,े उसके तनमातण ा हमारे वे तपस्वी-मनस्वी, तवद्वान व तवचारक ह,ंै तजन्होंने हमें ससं ्कार तदए। वे माताएं ह,ंै जो ससं ्कारों की घटु ्टी अपने बच्चों को दके र उनमें जीवन-मलू ्यों की समझ पैदा करती ह।ंै सभ्यता के तवकास में भी इनका महत्वपरू ्ण योगदान होता ह।ै स्पष्ट है तक यतद ससं ्कृ तत सही होगी, तो सभ्यता भी िालीन और सौम्य होगी, तवकासपरक होगी तथा तवकृ ततयों और तवसगं ततयों से रतहत होगी। ससं ्कृ तत और सभ्यता के तनमाणर् में संस्कारों की अहतमयत कािी होती ह।ै प्रसगं वि एक दृष्टांत पर गौर करें। एक डाकू ने अपने आतखरी समय मंे अपना आक्रोि अपनी मां के प्रतत व्यि करते हएु कहा तक यतद पहली चोरी करते समय मां ने मझु े रोका होता, डाटं ा होता, 57

सजा दी होती और चोरी करना बरु ा ह,ै यह समझाया होता तो मंै आज इतना बडा डाकू न बनता, इतनी तहसं ा, मार-काट, लटू -पाट न करता और सम्मातनत जीवन गजु ारता। जातहर ह,ै उस डाकू में इस बात की टीस थी तक संस्कारों के बीजारोपर् में उसकी मां से चकू हुई और पररर्ाम यह सामने आया तक वह ददु ांात दस्यु बन गया और जीवन को अतभिप्त बना तदया। ससं ्कारों के सन्दभण मंे अब यहां गौर करने की बात यह है तक अगर लगातार अतधकािं माताएं ऐसी ही चकू करती तो हमारी संस्कृ तत लटु ेरों की होती और सभ्यता बबणर कहलाती। इस तरह हम कह सकते हंै तक संस्कार रूपी चते ना से ही ससं ्कृ तत तनतमणत होती ह।ै संस्कार तजतने उज्जज्जवल होंगे, तजतने मजबतू होंगे, तजतने मलू ्यवान होंगे,ससं ्कृ तत भी उतनी ही उज्जज्जवल और उच्च मलू ्यों से यिु होगी। जब संस्कृ तत में ये खतू बयां होंगी, तो इसकी सगु धं सभ्यता में भी होगी। जब हम ससु सं ्कृ त होंगे, तभी ससु भ्य भी कहलाएगं े। सभ्यता और ससं ्कृ तत साथ-साथ चलते ह।ैं ये एक ही रथ के उन दो पतहयों के समान ह,ैं जो संतलु न की दृतष्ट से एक-दसू रे पर तनभरण करते ह।ैं सभ्यताएं धीरे-धीरे तवकतसत होती ह,ैं उसी के साथ-साथ संस्कृ तत भी समतृ ि होती ह।ै सभ्यता हमें जडता से बाहर तनकालती है और संस्कृ तत सभ्यता का पथ प्रदिणन करती ह।ै सांस्कृ ततक कट्टरता ससं ्कृ तत की सबसे बडी दशु ्मन होती ह।ै ससं ्कृ तत का सतहष्र्ु होना आवश्यक ह।ै यह सभ्यता के तनमारण ् के तलए भी जरूरी ह।ै दसू री संस्कृ ततयों के अच्छे तत्वों को आत्मसात कर लेने में कोई बरु ाई नहीं ह।ै इससे मले - जोल भी बढ़ता है और सासं ्कृ ततक उन्नयन भी होता ह।ै ससं ्कृ तत को एक दायरे मंे बाधं ना उतचत नहीं ह।ै दसू री ससं ्कृ ततयों से तमलकर ससं ्कृ तत को व्यापकता दने ी चातहए। संस्कृ तत के दरवाजों को खलु ा रखकर इसे और उन्नत और गततिील बनाया जा सकता ह।ै दो संस्कृ ततयों का तमलन भले ही दोस्ती या ित्रतु ा मंे ही क्यों न हो, कु छ न कु छ नया तो तमलता ही ह,ै तजससे सभ्यता के तवकास पर भी असर पडता ह।ै सासं ्कृ ततक जीवंतता की दृतष्ट से हम सदा आगे रहे ह।ंै यह हमारी सभ्यता मंे भी पररलतित होती ह।ै ससं ्कृ तत ने जो रास्ते तनधारण रत तकए, उन्हीं पर सभ्यता आगे बढ़ी। संस्कृ तत हमारे आतत्मक तवकास का साधन बनी, तो सभ्यता के जररए हमने भौततक तवकास तकया। संस्कृ तत हमारी तवरासत ह,ै तो सभ्यता हमारी पजंू ी। आवश्यकता इसकी है तक हम इन दोनों को इतना सहजे कर रखें तक जडता और तस्थरता इन्हें छू न सकंे । ये तनरंतर तवकतसत होती रह।ंे **************** 58

ग़ज़ल चन्दन फ़बष्ट सहायक आयुक्त (सेवाफ़नवतृ ्त) राहज़न भी रहबरों में आ गया है। काफ़िला मुफ़ककल दरों मंे आ गया है। पाँवा में अब कीमती से जख़्म हैं कु छ, ताज़ कोई ठोकरों मंे आ गया है। हर फ़कसी को मोज़ज़ा दरकार है बस, आज ईसा मसखरों में आ गया है। मछफ़लयाँा अब फ़हज़रतों का सोचती हैं, कीच गारा पोखरों में आ गया है। काटकर जो फें क डाले थे ज़मीं पर, कु छ बदन सा उन परों में आ गया है। इतने सारे डर इकट्ठा कर फ़लए हंै, मेरा डर सारे डरों में आ गया है। शह्र की रंगीफ़नयाँा वीरान हंै सब, जश्न सारा खण्डरों मंे आ गया है। 59

रूह उसकी आज तक भी अनछु ई है, फ़जस्म तो सौदागरों में आ गया है। अब नहीं प्यासा मरेगा कोई 'चन्दन', बाढ़ का पानी घरों मंे आ गया है। [ राहज़न = लटु ेरा; रहबर = मागगदशगक; दर = द्वार, स्थान, अंदर, में; क़ाफ़िला = कारवााँ, यात्री-दल; फ़हज़रत = प्रस्थान, गमन; पोखर = तालाब; कीच-गारा = कीचड़ औ रमलबा; मोज़ज़ा = चमत्कार; दरकार = इफ़छछत; ईसा = मसीहा, देवदूत; मसखरों = फ़वदूषकों, हसँा ोड़ों; पर = पखं ; शह्र = शहर; जश्न = उत्सव; खण्डर = ध्वस्त इमारत, खाँडहर ] ************* एक मुक्तक कद्दावर जब मजबरू ी मंे रीढ़ झकु ा कर खड़े हो गए। पाँाव उचक कर फ़पद्दी बौने क़द मंे उनसे बड़े हो गए। 'सच' क़ै दी था 'झठू ' दरोगा', फ़जसका डर था वही हुआ है, वक़्त ररहाई का आया तो पहरे दुगुने कड़े हो गए। 60

भारतीय समाज मंे नारीीः तब और अब अननता एन. निचारे प्रशासननक अनिकारी हमारे भारतीय समाज में नारी को बचपन से ही कु छ संस्कार दिए जाते हैं और वो संस्कार उसे सहजे कर रखना होता ह।ै जैसे धीरे बोलो, दकसी के सामने ज्यािा नहीं हसँ ना, गंभीर बनो यानी समझिार बन कर रहना। उस बच्ची का बचपन न जाने दकस अधँ रे े कमरे मंे गमु हो जाता ह।ै हमारा परु ूष प्रधान िशे क्यों नहीं समझता दक नारी प्रकृ दत का अनमोल उपहार ह।ै उसके मन मंे कु छ कोमल संवेिनाएँ होती है जो उसे खबु सरू त बनाती ह।ै वो ममता का एक रूप है और इस ममता रूपी नारी को हर रूप में हमेशा छल कपट ही दमला ह।ै परन्तु आज की नारी इन सब बातो को छोड़कर काफी आगे दनकल आई ह।ै आज नारी में आधदु नक बनने की होड़ लगी हईु ह।ै नारी के जीवन में क्ादं तकारी पररवततन हआु ह,ै क्षेत्र में आगे बढ़ रही ह,ंै बिल रही हैं और ये पररवतनत सभी को िखे ने को दमल रहा ह।ै पहले नारी का जीवन घर की चार िीवारों में ही बीत जाता था। चलू ्हा-चौका करके और संतानोत्पदत तक ही उसका जीवन सीदमत था। दवशषे रूप से नारी का एक ही कर्त्वत ्य था। घर संभालना, उसे घर की इज्जत मान कर घर में ही पिे के पीछे रखा जाता था। उसे माँ के रूप मंे, पत्नी के रूप मंे, पतु ्री के रूप म,ंे आज नारी का किम घर से बाहर की और बढ़ गया ह।ै पहले नारी के वस्त्रों पर ध्यान दिया जाता था। नारी के वल साड़ी ही पहन सकती थी। मतलब अपने आप को उसे परू ी तरह से ढ़ँक कर रखना नारी का कतवत ्य था। आज की नारी 61

बहतु आगे दनकल गई ह।ै उसकी वेशभषू ा काफी बिल गयी ह।ै वह अब अपनी मनचाही वशे भषू ा अपनाने के दलए स्वतंत्र ह।ै परन्तु नारी स्वयं अपनी आधदु नक वशे भषू ा और स्वच्छंि दवचरण को ही आधदु नक होना मान रही हैं परन्तु स्वततं ्रता को अपनाना आधदु नकता नहीं ह।ै नारी को शदि का प्रतीक माना जाता रहा है और उसने अिम्य साहस का पररचय भी दिया ह।ै रूदढ़वािी मान्यताओं और परु ूष प्रधान दवचारों को मदहलाएं अब चनु ौती िे रही हैं और हर क्षते ्र में अपने हनु र को आजमा रही ह।ंै औरतंे अब तो नई-नई सफलता की दमसालें गढ़ रही ह।ंै समाज के पढ़े-दलखे लोग लड़दकयों की दशक्षा के प्रदत जागरूक हो रहे हंै और दशदक्षत मदहलाएं िशे के दवकास मंे अपना अहम योगिान िे रही ह।ैं क्यों कहती है िदु नया दक नारी कमजोर ह,ै आज भी नारी के हाथों मंे घर चलाने की डोर ह.ै िदु नया की पहचान है औरत हर घर की जान है औरत बटे ी, बहन, माँ और पत्नी बनकर घर-घर की शान है औरत 62

कोविड महामारी से बचाि एिं रोकथाम हते ु आयकु ्तालय मंे स्िच्छता सामग्री का वितरण 63

राष्ट्रीय एकता आर. वी. के नी अधीक्षक हमारा भारत दशे विश्व के मानवित्र पर एक विशाल दशे के रूप में विवत्रत ह।ै प्राकृ वतक रिना के आधार पर तो भारत के कई अलग-अलग रूप और भाग ह।ंै उत्तरी पिवतीय भाग, गगं ा-यमनु ा सवहत अन्य नवदयों का समतलीय भाग, दविण का पठारी भाग और समनु ्र तटीय मैदान इत्यावद। भारत का एक भाग दसू रे भाग से अलग-थलग पडा हुआ ह।ै नवदयों और पिवतों के कारण ये भाग एक दसू रे से वमल नहीं पाते ह।ैं इसी प्रकार से जलिायु की विवभन्नता और अलग-अलग िते ्रों के वनिावसयों के जीिन आिरण के कारण भी दशे का स्िरूप एक दसू रे से वभन्न और पथृ क पडा हुआ वदखाई दते ा ह।ै इन विवभन्नताओं के होते हएु भी भारत एक ह।ै भारतिर्व की वनमाणव सीमा ऐवतहावसक ह।ै िह इवतहास की दृवि से अवभन्न ह।ै इस विर्य मंे हम जानते हैं वक िन्रगपु ्त, अशोक, विक्रमावदत्य और बाद में मगु लों ने भी इस बात की बडी कोवशश की थी वक वकसी तरह सपं णू व दशे एक शासक के अधीन लाया जा सके । उन्हंे इस कायव मंे कु छ सफलता भी वमली थी। इस प्रकार के भारत की एकता ऐवतहावसक दृवि से एक ही वसद्ध होती ह।ै हमारे दशे की एकता का आधार दशनव और सावहत्य ह।ै हमारे दशे का दशनव सभी प्रकार की वभन्नताओं और असमानताओं को समाप्त करने िाला ह।ै यह दशवन ह-ै सिवसमन्िय की भािना का पोर्क। यह दशनव वकसी एक भार्ा में नहीं वलखा गया है अवपतु यह दशे की विवभन्न भार्ाओं मंे वलखा गया ह।ै इसी प्रकार से हमारे दशे का सावहत्य विवभन्न िेत्र के वनिावसयों के द्वारा वलखे जाने के बािजदू भी िेत्रिाद या प्रान्तिाद के भािों को नहीं उत्पन्न करता है, बवकक सबके वलए भाई-िारे और सद्भाि की भािना उत्पन्न करता ह।ै मेल-वमलाप का सन्दशे दते ा हआु दशे भवि के भाि को जगाता ह।ै इस प्रकार के सावहत्य की वलवप भी परू े दशे की एक ही वलवप ह-ै दिे नागरी वलवप। प्रख्यात वििारक कवििर वदनकर जी का इस सम्बन्ध में इसी प्रकार का वििार था- ‘वििारों की एकता जावत की सबसे बडी एकता होती ह।ै अतएि भारतीय जनता की एकता के असली आधार भारतीय दशनव और सावहत्य हैं, जो अनके भार्ाओं में वलखे जाने पर भी अन्त मंे एक ही सावबत होते ह।ंै यह भी ध्यान दने े की बात है वक फारसी वलवप को छोड दें तो भारत की अन्य सभी वलवपयों की िणमव ाला एक ही ह।ै यद्यवप यह अलग-अलग वलवपयों में वलखी जाती ह।ै 64

यद्यवप हमारे दशे की भार्ा एक नहीं, अनेक ह।ैं यहाँा पर लगभग पन्रह भार्ाएाँ ह।ैं इन सभी भार्ाओं की बोवलयाँा अथावत् उपभार्ाएाँ भी ह।ंै सभी भार्ाओं को संविधान से मान्यता वमली ह।ै इन सभी भार्ाओं से रिा हआु सावहत्य हमारी राष्ट्रीय भािनाओं से ही प्ररे रत ह।ै इस प्रकार से भार्ा भेद की भी ऐसी कोई समस्या नहीं वदखाई दते ी है जो हमारी राष्ट्रीय एकता को खवं ित कर सके । उत्तर भारत का वनिासी दविणी भारत के वनिासी की भार्ा को न समझने के बािजदू उसके प्रवत कोई नफरत की भािना नहीं रखता ह।ै रामायण, महाभारत आवद ग्रन्थ हमारे दशे की विवभन्न भार्ाओं मंे तो हंै लेवकन इनकी व्यि हुई भािना हमारी राष्ट्रीयता को ही प्रकावशत करती ह।ै तलु सी, सरू , कबीर, मीरा, नानक, रैदास, तकु ाराम, विद्यापवत, रिीन्रनाथ टैगोर, वतरूिकलिु र आवद की रिनाएँा एक दसू री की भार्ा से नहीं वमलती ह।ै वफर भी इनकी भािानात्मक एकता राष्ट्र के सासं ्कृ वतक मानस को ही पकलवित करने मंे लगी हुई ह।ै हमारे दशे की परम्पराएाँ, मान्यताए,ँा आस्था एिं जीिन-मकू य सभी कु छ हमारी राष्ट्रीयता के ही पोर्क ह।ंै पिव-वतवथ एिं त्योहारों की मान्यताएँा यद्यवप अलग-अलग ह,ैं वफर भी सबसे एकता और समन्िय का ही भाि प्रकट होता ह।ै यही कारण है वक एक जावत के लोग दसू री जावत के वतवथ पिव त्योहारों में शरीक होकर आत्मीयता की भािना को प्रदवशतव करते ह।ैं धमव के प्रवत आस्था और विश्वास की भािना हमारी जातीय िगव को प्रकट करते हंै। अतएि धमों के मलू मंे कोई भेद नहीं ह।ै यही कारण है वक हमारे दशे मंे न के िल राष्ट्रीयता के पोर्क विवभन्न प्रकार के धमों को अपनाने की परू ी छू ट हमारे संविधान ने दे दी है अवपतु सवं िधान की इस छू ट के कारण ही भारत को धमववनरपिे राष्ट्र की सजं ्ञा भी दे दी। इसका यह भी अथव है वक यहााँ का कोई धमव वकसी दसू रे धमव मंे हस्तिेप नहीं कर सकता ह।ै भारत की एकता की सबसे बडी बाधा थी; ऊँा िे-ऊाँ िे पितव , बडी-बडी नवदयां, दशे का विशाल िेत्रफल आवद। जनता इन्हंे पार करने में असफल हो जाती थी। इससे एक दसू रे से सम्पकव नहीं कर पाते थ।े आज की िजै ्ञावनक सवु िधाओं के कारण अब यह बाधा समाप्त हो गई ह।ै दशे के सभी भाग एक दसू रे से जडु े हएु ह।ैं इस प्रकार हमारी एकता बनी हुई ह।ै हमारे दशे की एकता का सबसे बडा आधार प्रशासन की एकरूपता ह।ै हमारे दशे का प्रशासन एक ह।ै हमारा संविधान एक है और हम वदकली मंे बठै े-बैठे ही परू े दशे पर शासन करने में समथव ह।ंै राष्ट्रीय एकता एक ऐसी भािना है जो वकसी भी दशे के लोगों में अपने राष्ट्र के प्रवत प्रेम एिं भाईिारा प्रदवशवत करती ह।ै राष्ट्रीय एकता दशे को एक सतू ्र मंे बाधं ती है यही एक ऐसी भािना है जो विवभन्न धमों, जावत, िशे -भरू ्ा, सभ्यता एिं संस्कृ वत के लोगों को एक सतू ्र में वपरोए रखती ह।ै यहां राष्ट्रीय एकता होती है िहां अनेक विवभन्नताओं के बािजदू भी आपसी मले -जोल बना रहता ह।ै हमारा भारत दशे राष्ट्रीय एकता की ऐसी ही जीती जागती वमसाल ह।ै वजतनी विवभन्नताएं भारत मंे पायी जाती हंै उतनी शायद ही वकसी अन्य दशे में पायी जाती हों क्योंवक भारत विवभन्न संस्कृ वत, सम्प्रदायों 65

और धमों का दशे है। यहां रहने िाले लोगों का खान-पान, िशे -भरू ्ा एक दसू रे से वभन्न है इतनी विवभन्नताओं के बािजदू भी सभी लोग एक साथ वनिास करते हंै सभी राष्ट्रीय एकता के सतू ्र बाँधे हुए ह।ंै जब तक वकसी दशे की एकता मज़बतू है तब तक िह उस दशे की सबसे बडी ताकत है बाहरी शवियां वकसी भी पररवस्थवत मंे उस दशे की शावं त को वबगाड नहीं सकती वकन्तु जब राष्ट्रीय एकता खवं ित होती है तभी उसे अनके मवु ककलों का सामना करना पडता ह।ै यवद हम ख़दु के इवतहास की तरफ नज़र िालंे तो इससे हमंे पता िलता है वक जब-जब हमारे दशे की राष्ट्रीय एकता भगं हुई है तब-तब बाहरी शवियों ने उसका फ़ायदा उठाया है। हमंे उनकी गलु ामी की जजं ीरों के अधीन रहना पडा। इसीवलए दशे की एकता, अखिं ता और शावं त को बनाए रखने के वलए राष्ट्रीय एकता का होना बहुत ज्यादा जरूरी होता ह।ै दशे में जावतिाद, भार्ािाद, िते ्रीयिाद, साम्प्रदयावकता आवद यह सभी राष्ट्रीय एकता की कमजोर कडी ह।ैं इन तत्िों के प्रभाि में आये कु छ स्िाथी लोग अपने वहत के वलए जावत, भार्ा और धमव आवद की दीिारंे खडी करते हैं वजससे उस दशे की एकता वबगड जाती है। इसके इलािा बाहरी शवियां भी उस समय फायदा उठाती हैं जो लोग देश की शावं त से ईष्ट्याव रखते हंै िे शांवत को भंग करने का लगातार प्रयास करते रहते ह।ंै राष्ट्रीय एकता एिं शावन्त को बनाये रखने के वलए जरूरी है वक राष्ट्रीय एकता के तत्िों जसै े हमारी राष्ट्रभार्ा, सविंधान, राष्ट्रीय विन्हों, समानता आवद पर विशरे ् ज़ोर दने ा िावहए। उन सच्िे दशे भिों के बवलदान की जीिनगाथा को उजागर करंे वजन्होंने दशे की स्िततं ्रता और शावं त के वलए अपने प्राण तक न्योछािर कर वदए। गरु ुओ,ं फकीरों के बताए हएु मागव दशवन पर िलना भी राष्ट्रीय एकता को बढ़ािा दते ा ह।ै इससे राष्ट्रीय एकता से दशे में होने िाले अपराधों में कमी होगी और इससे दशे के संसाधन दशे के विकास में लगेंगे ना वक दशे मंे होने िाली लडाइयों को वनपटाने मंे इसीवलए हमंे दशे की स्ितंत्रता को बनाये रखने के वलए एकता की शवि को समझना होगा और हमंे अपनी तचु ्छ सोि को स्ियं से दरू रखना होगा। हमें यह कभी नहीं भलू ना िावहए वक हम वकसी भी िेत्र, जावत, धमव और समदु ाय के हों वकन्तु उससे पहले हम एक भारतीय नागररक ह।ैं भारतीय नागररक ही हमारी असली पहिान ह।ै कभी ऐसे तचु ्छ काम ना करंे वजससे दशे की शांवत और उसकी प्रगवत को कोई हावन पहुिं ।े हमें अपने राष्ट्र के प्रतीकों एिं अपने दशे के संविधान का सम्मान करें। राष्ट्रीय एकता से लोगों में दशे के प्रवत प्रेम बढ़ेगा। आपसी सम्मान की भािना जागतृ होगी वजससे दशे -विदशे ों मंे दशे की शान और नाम ऊं िा होगा और दशे में रहने िाले लोगों का जीिन खशु हाल होगा। 66

समय मनोज कु मार यादव ननरीक्षक समय का मलू ्य क्या ह?ै समय बहमु लू ्य ह,ै अमलू ्य ह।ै समय तो जीवन ह,ै उसे बबााद करना, ततल-ततल मरने जसै ा ह।ै समय तकसी का नौकर नहीं, वह न तकसी का इतं जार करता ह,ै न ही तकसी से इकरार, और न ही पीछे मडु कर दखे ता ह।ै अभी बारह बजे थ,े और समय आगे सरक गया, कल शतनवार था, आज रतववार हो गया। मतलब तजन्दगी की मटु ्ठी स,े एक तदन और तखसकृ गया। 67

चतुर वचवडया पवन पटेल कर सहायक एक बार की बात है। एक राजा साहब के पास मंे बडा सुन्दर विशाल महल था और उस विशाल महल मंे एक संुदर सी बगीची थी। उस बगीची मंे एक माली था और अुंगूरों की बेल थी। माली जो था िो इस बात से परेशान था वक अंुगूरों की बेल पर रोजाना एक वचवडया आकर आक्रमण करती थी और कु छ इस तरीके से िो आक्रमण करती थी वजससे वक जो मीठे-मीठे अंुगूर थे, उसे तो खा लेती थी और जो अधपके एिुं खट्ठे अुंगूर थे, उसे ज़मीन पर वगरा देती थी। माली इस बात से बडा परेशान चल रहा था वक इन अुंगूरों की बेल को यह वचवडया एक वदन तबाह कर देगी, नष्ट कर देगी। उसने बहुत कोवशश की लेवकन उसे कोई उपाय नहीं वमला तो िह राजा के पास पहुंचा और कहााः मावलक आप ही कु छ कीवजये। मुझसे कु छ नहीं हो पा रहा है। अंुगूरों की बेल कभी भी ख़त्म हो सकती है। राजा ने कहा माली साहब आप वचंुता मत कीवजये। मैं आपका काम करूँ गा। अगले वदन राजा साहब खुद पहुंचे और अुंगूरों की बेल के पीछे जाकर छु प गए और जैसे ही वचवडया आयी, राजा ने फु ती वदखाते हुए वचवडया को पकड वलया। जैसे ही वचवडया को पकडा, वचवडया ने राजा से कहा- हे राजन, मुझे माफ़ करना। मुझे मत मारो। मंै आपको चार ज्ञान की बातंे बताऊंु गी। राजा बहुत गुस्से मंे था। राजा बोला- पहली बात बताओ। वचवडया ने कहा- अपने हाथ में आए शत्रु को कभी भी जाने न दें। 68

राजा ने कहा- दूसरी बात बता। वचवडया ने कहा- कभी भी असम्भि बात पर यकीन न करंे। राजा ने कहा बहुत हो गया नाटक, तीसरी बात बताओ। वचवडया ने कहा- बीती बात पर पछतािा न करंे। राजा ने कहा- अब चौथी बात बता, अब खेल खत्म करता हुूँ। बहुत देर से परेशान कर रखा है। वचवडया ने कहा- राजा साहब, आपने वजस तरीके से मुझे पकड रखा है, मुझे साँूस नहीं आ रही। आप मुझे थोडी-सी ढील देंगें तो शायद मैं आपको चौथी बात बता पाऊंु । राजा ने हल्की सी ढील दी और वचवडया उड कर डाल पर बैठ गई। वचवडया ने कहा- मेरे पेट में दो हीरे हैं। यह सुनकर राजा पश्चाताप करने लगा और उदास हो गया। राजा की शक्ल देख कर वचवडया बोली- राजा साहब, मैंने जो आपको अभी चार ज्ञान की बातंे बताई थी। पहली बात बताई थी वक अपने शत्रु को कभी हाथ मंे आने के बाद छोडंे न। आपने हाथ मंे आए शत्रु यावन मुझे छोड वदया। दूसरी बात बताई थी, असंुभि बात पर यकीन न करंे। आपने यकीन कर वलया वक मेरे छोटे से पेट मंे दो हीरे हंै। तीसरी बात बताई थी वक बीती हुई बात पर पश्चताप न करें, आप उदास है और पश्चाताप भी कर रहंे है जबवक मेरे पेट मंे हीरे हैं ही नहीं। यह सोच कर आप पश्चाताप कर रहें है। उस वचवडयाँू ने राजा को ही नहीं, हम सभी को यह बताया वक हम भी जो बीत चुका है, उस पर कई बार पश्चाताप कर रहे होते हैं। हमेशा भूत-काल मंे रहते हैं और भविष्य की सोचते नहीं हैं। िततमान मंे रहना शुर कीवजए। भविष्य की योजना बनाना प्रारंुभ कीवजए और अपने सपनों का अनुसरण करना शुर कीवजए। वजंुदगी में जो हो गया, आपका उस पर वनयुंत्रण नहीं है लेवकन जो होगा, उसको आप बदल सकते हैं। 69

श्री आर. एस. चौहान, सहायक आयकु ्त (सवे ाननवतृ ्त) द्वारा नानसक भ्रमण के दौरान निये गए छायानचत्र 70

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जीने की राह मनीष रॉय अधीक्षक जिन्दगी के कु छ पहलू ऐसे होते है जिन्हें समझना बड़ा ही मजु ककल होता ह।ै सभी िानते हैं जक खाली हाथ आये हंै और खाली हाथ िाना ह।ै जिर भी िब कभी हम िीवन के जकसी मोड़ पर असफ़लता का सामना करते हैं तो हमारे चेहरे की हसं ी गायब हो िाती है और हम अदं र से दखु ी हो िाते ह।ै ऐसा अजिकतर लोगों के साथ होता ह।ै असिल होने के बाद उन लोगों का सिल होना बड़ा कजिन हो िाता ह,ै िो मन से हार मान लते े ह।ंै असिलता के बाद सिल होना है तो ख़दु को यह जवश्वास जदलाएं जक आप के अंदर ईश्वर जनवास करते हंै और िब तक वो आपके शरीर में है तब तक आप हर असभं व कायय को संभव बना सकते ह।ैं खदु को थोड़ा अध्यात्म से िोड़ कर दजे खए, आपको मानजसक और आतं ररक ऊिाय जमलेगी। जदन के बाद रात का आना और रात के बाद जदन का आना जिनता सत्य ह,ै उतना ही सत्य है दुु ःख के बाद सुख का आना। काम या कमय जकये जबना इस िरती पर िीवन सम्भव नहीं है। यजद आपके पास बहतु दौलत है और आप कोई काम न करंे तो आप अपने िीवन मंे कभी खशु नहीं रह सकते ह।ै काम करने से इसं ान खशु रहता है और अपने िीवन मंे सखु -शाजं त-समजृ ि को प्राप्त करता है इसजलए काम करने मंे कभी आलस्य न करंे। पररश्रम करने से कभी डरे नहीुः दजु नया में रहना है तो काम कर प्यारे, हाथ िोड़ सबको सलाम कर प्यारे, वरना ये दजु नया िीने नहीं दगे ी, खाने नहीं दगे ी पीने नहीं दगे ी. जकसी व्यजि को अपनी जिन्दगी में इतना झकु कर नहीं िीना चाजहए जक लोग उसकी पीि को पायदान बना लें। स्वाजभमान और सम्मान के साथ िीना चाजहए। सभी के िीवन में सखु -दुु ःख 73

आते ह,ंै इसका मतलब यह नहीं जक आप घटु नों पर आ िाएँ बजकक िीवन की उन समस्याओं को घटु ने पर लाने का प्रयास करंे िो आपको परेशान करती ह,ंै िो आपको सिल होने से रोकती ह।ंै ना मँहु छु पा के जियो और ना सर झकु ा के जियो गमों का दौर भी आये तो मसु ्कु रा के जियो। कई बार दोस्त, ररकतेदार या कोई अन्य कु छ ऐसा कह दते ा है जक हम परेशान हो िाते ह।ंै ऐसे लोगों को निर-अदं ाि करना सीखंे क्योंजक इसं ान तो भगवान तक को गाली दे दते ा ह।ै ऐसे लोग अजिकत्तर अजशजित या अज्ञानी होते ह।ंै िो अपनी जिन्दगी मंे तो कु छ ढगं का कर नहीं पाते है और यजद कोई कु छ करता है तो उसमंे दोष जनकालते ह।ंै कु छ तो लोग कहगंे े लोगो का काम है कहना छोड़ो बके ार की बातों मंे कही बीत न िाये रैना ********* 74

वे नमक बनाने आए हैं ठंूस-ठंूस कर थैलों मे,ं एस. एस. जाधव वे यरो, डालर लाए ह,ंै हेड हवलदार सात समन्दर पार से, वे नमक बनाने आए ह,ै नहीं जरुरत आटा, चावल, और रसोई गैस की घर-घर मंे खशु हाली लाने वे पीजा-बगरग लाए ह,ै सात समन्दर पार से, वे नमक बनाने आए ह।ै जल,जमीन और जूंगल पर अब उनकी नजरें गडी हईु ह,ै जडी-बटटयों के बदले म,ंे वे जानी वाकर लाए ह,ै सात समन्दर पार स,े वे नमक बनाने आए ह,ै नटदयों के पानी पर उनकी, नीयत हईु खराब ह,ै एटम बम से हमंे डराकर, वंे नींम चरु ाने आए ह,ै सात समन्दर पार स,े वे नमक बनाने आए ह,ै 75

चाकलटे मंे असली कीडे, फास्ट फड में के मीकल, बच्चों की टहफाजत करने वे दध का पावडर लाएँ ह,ै सात समन्दर पार से, वे नमक बनाने आए ह,ै गली-गली में उनके कॉलजे , घर-घर में उनके चाकर, दध-दही के दशे मंे यारों, वे पेप्सी, कोला लाए ह,ैं सात समन्दर पार से, वे नमक बनाने आए ह,ै भखमरी से हमें बचान,े वे डूंकल लके र आए ह.ै सपु र पॉवर हमें बनाने, वे भषे बदल कर आए ह,ैं सात समन्दर पार से, वे नमक बनाने आए ह,ै वे सड़क बनाने आए ह,ै वे बजट बनाने आए ह,ै खशु हाली को खरीदकर हमारी, वे कूं गाल बनाने आए ह,ै सात समन्दर पार स,े वे नमक बनाने आए ह।ै 76

वैश्विक शाश्वति एन. एन. कमलापरु े, िररष्ठ अनिु ाद अवधकारी सचमचु में आज मनषु ्य विनाश की कगार पर खडा मतृ ्यु की गोद मंे धडाधड चला जा रहा ह।ै मनषु ्य ने मनषु ्य को अपने स्िार्थों से जकड वलया ह।ै उसे आज कु छ भी नहीं वदखाई दे रहा ह।ै उसे के िल स्िार्थथ वदखाई दे रहा ह।ै िह इस स्िार्थथ की पवू तथ के वलए आज भयानक और कविन से कविन अस्त्र-शस्त्रों की होड लगाए जा रहा ह।ै आज इसीवलए मनषु ्य सिथविनाश के वलए अणबु म, परमाणु बम आवद बना बनाकर अपनी अपार शवि का पररचय दे रहा ह।ै यह अशान्तमय और भयानक िातािरण का वनमाणथ करने मंे लगा हुआ सब कु छ भलू चकु ा है वक क्या उवचत है और क्या अनवु चत ह?ै इस प्रकार सम्पणू थ विश्व एक बहुत बडी अशावन्त के दौर में पहचुं चकु ा ह।ै ितमथ ान मंे विश्व अशांुवत के दौर से गजु र रहा ह।ै इस अशावन्त के कारण कई ह।ंै इनमंे से मखु ्य कारण यह भी है वक आज विश्व के अनेक सबल राष्र एक दसू रे वनबलथ और शविहीन राष्र को अपने चंुगलु मंे फुं साए रखने के वलए भारी उद्योग वकया करते ह।ंै इसके वलए िे अपनी वनजी शवि और आिश्यकताओंु को बढाते ही जा रहे ह।ैं इसके सार्थ ही अपने सम्पकों अन्य शविहीन और छोटे राष्रों के प्रवत उकसाने या भडकाने की कोवशश में बराबर लगे रहते ह।ंै इस प्रकार से आज परू ा विश्व कई भागों मंे बटँ ा हुआ परस्पर विनाश के गतथ में पहुचँ ने के वलए वनत्य उद्योग करते हुए वदखाई दते ा है इसवलए आज विश्व मंे शावन्त की आिश्यकता बढती जा रही ह।ै विश्व शावन्त कै से और वकस प्रकार से हो सकती है? यह एक विचारणीय प्रश्न ह।ै इस विषय के वलए हम यह कह सकते हंै वक िवै श्वक शावन्त के वलए भाईचारे की भािना सबसे अवधक जरूरी ह।ै भाईचारे, मेल-वमलाप की भािना और परस्पर वहत-वचन्तन की भािना विश्व शावन्त की वदशा में महान कदम और सार्थथक कायथ होगा। परस्पर दुु ःख सखु की भािना और कल्याण स्र्थापना की भािना िवै श्वक शावन्त के वलए िोस कदम होगा। िैवश्वक शावन्त के वलए अपने ही समान समझना और अपने ही समान आचरण करना, एक िोस और प्रभािशाली विचार होगा। अगर इस तरह की सद्भािना और श्रेष्ठ विचार प्राणी-प्राणी के मन मंे उत्पन्न हो जाएगा तो वकसी प्रकार से विश्व मंे अशावन्त और अव्यिस्र्था की भािना नहीं हो सकती ह।ै बढी हुई दभु ाथिनाएँ समाप्त हो सकती ह।ैं 77

विश्व शावन्त और विश्व को समान दशा मंे लाने के वलए हमंे मानि कल्याण समारोह का आयोजन करना चावहए। इसके द्वारा जन-जन मंे यह प्ररेणा जगानी चावहए वक हमंे वकस प्रकार से अमानिीय और पावश्वक दभु ाथिनाओुं से बचना चावहए। हमारे अन्दर जो शत्रतु ा, दजु थनता और दानिता का प्रिशे हो चकु ा ह,ै िह वकस प्रकार से समाप्त हो सकता ह।ै इसके अन्दर वकस प्रकार सज्जनता और मानिता उत्पन्न हो सकती है। इस प्रकार के विचार हमें विवभन्न प्रकार की योजनाओंे और कायकथ ्रमों के द्वारा अपनाने की प्रेरणा दने ी चावहए। यह तभी संुभि ह,ै जब हम भौवतकिादी दृविकोण का पररत्याग कर सकंे गे। इसके स्र्थान पर हमें प्रकृ वतगामी और प्रकृ वतिादी दृविकोणों को अपनाना चावहए। विश्व शावन्त के वलए हमें प्रयास करना चावहए वक हम भौवतकतािादी जंगु ल से आध्यावत्मकता के सपाट मदै ान की ओर लौट आएँ। इस अर्थथ में हमंे अपने परु ातन काल के ऋवषयों और मवु नयों के अलौवकक और वदव्य जीिन सदुं शे को समझना होगा। उनका हमें अनसु रण करना होगा। विश्व शावन्त के प्रयास में हमंे महान दाशथवनकों और महात्माओुं के जीिन वसद्धान्तों और आचरणों को अपनाना होगा। उनके अनसु ार चलना होगा। इसके पररणामों को हमें समझ करके दसू रे को इससे प्रभावित करना होगा, तभी विश्व शावन्त की वदशा में सार्थकथ और िोस प्रयास होगा। आज यह सौभाग्य का विषय है वक विश्व के कई बडे राष्र विश्व शावन्त के प्रयास की वदशा में प्रयत्नशील वदखाई दे रहे ह।ंै प्रर्थम विश्वयदु ्ध और वद्वतीय विश्वयदु ्ध के भयंकु र पररणामों और इससे प्रभावित आज के जीिन स्िरूपों पर भी विचार वकए जा रहे ह।ंै इसके वलए कई िोस और प्रभािशाली कदम उिाए गए ह।ैं सयंु िु राष्रसघंु की स्र्थापना इसी दृविकोण का पररणाम ह।ै इससे पारस्पररक झगडे और संघु षों को हल वकया जाता ह।ै इसी तरह का कु छ और उद्योग और प्रयास विश्व स्तर पर होना चावहए। विश्व के जो वपछडे और दखु ी राष्र ह,ैं उनको हर प्रकार की सवु िधाएँ प्रदान करने के वलए हमें विश्व स्तर पर कोई संुयिु सुसं ्र्था की स्र्थापना अिश्य करनी चावहए। गटु वनरपेक्ष संसु ्र्थान इस वदशा में काफी सफल और उवचत प्रयास ह।ै इस तरह अिश्य कोई प्रयास होना चावहए। इस प्रकार से हमंे कोई न कोई विचार और दृविकोण अिश्य अपनाना चावहए। इससे विश्व शावन्त यर्थाशीघ्र स्र्थावपत होकर मानिता का गला घोंटती हुई पावश्वकता का दम तोड दगे ी। --------------- 78

माननीय आयकु ्त महोदय द्वारा स्वच्छता प्रोजेक्ट के तहत ददनाकंा 23-12-2021 को बहृ न मांबु ई महानगरपादिका, थाडवाडी दहदां ी दवद्यािय में आधारभतू सामग्री का दवतरण के अन्य दृश्य। 79

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हमारी सोच राधिका य.ू धिल्ले धिजी सधिव एक बार की बात है मंगल और मंटू दो धमत्र जगं ल के रास्ते से अििे घर को लौट रहे थ।े जगं ल के बीि िँहुिते ही उन्हंे अििे आगे की झाडी धहलती हईु धदखाई दी। मंटू िे मगं ल से कहा “हो ि हो ये आदमखोर भेधडया ही होगा। मैिं े सिु ा है इसिे बहुत से लोगों को मार डाला ह”ै । मटं ू की बातें सिु कर मगं ल बोला “धबिा दखे े तमु कै से कह सकते हो धक वह एक भेधडया ही है झाडी तो हवा से भी धहल सकती है या धिर कोई और जािवर होगा, तमु ज्यादा मत सोिो और आगे बढ़ते रहो बस कु छ दरे बाद अििा गावँ भी आ जाएगा”। मंटू बोलता है “िहीं-िहीं मझु े उस भधे डये का धिकार िहीं बििा ह।ै मंै सडक के रास्ते से घर िला जाऊं गा” इतिा कहकर मटं ू वहां से िला जाता ह।ै मगं ल, मटं ू के व्यवहार िर िाराजगी जताते हएु आगे झाडी की तरि बढ़ता ह,ै झाडी के उस िार जािे के धलए वो जैसे ही अििे हाथों से ित्तों को हटाता ह,ै उसमंे से एक बकरी का बच्िा धिकल कर मंगल के िास आकर खडा हो जाता ह।ै मंगल उस बकरी के बच्िे को गोद में उठाता है और उसे लेकर घर िला जाता ह।ै अगले धदि जब मटं ू थका हारा घर िहिुँ ता है तो मंगल उस बकरी की तरि इिारा करके कहता है “अरे ओ मंटू ये देख तरे ा आदमखोर भधे डया घास खा रहा है और तू इससे डर कर दगु िी दरू ी तय करके आ रहा ह”ै । मंटू को ये सब सिु कर अििी सोि िर िछतावा होिे लगाता है और वो िमम के मारे वहां से िजरे िरु ा कर धिकल जाता ह।ै तो इस कहािी से हमें यही सीख धमलती है धक धकसी भी िररधस्थधत में हम दसू रों से तभी आगे धिकल िाएंगे जब हमारी सोि सकारात्मक और अच्छी होगी। यधद हमें अििे जीवि में सिल होिा है या खदु को समाज में एक आदिम व्यधि के रूि मंे रखिा है तो हमें अििी सोि सदवै सकारात्मक रखिी िाधहए। िकारात्मक धविारों के साथ आि खदु को और दसू रों को भी धिरािा की ओर ले जायेगं ।े जीवि मंे सिलता की इच्छा रखिे वाले हर व्यधि को सकारात्मक सोि के साथ ही अििा कायम सम्िन्ि करिा िाधहए। हमारी हमेिा यही कोधिि होिी िाधहए धक हमारी धमत्रता एक सकारात्मक सोि वाले व्यधि से हो ताधक उसके धविारों का प्रभाव हमारे ऊिर भी िडे और हम भी उसकी तरह सिलता की ओर बढ़ते जाए।ं जीतिे का दृधिकोण हमारे व्यवहार मंे दृढ़ संकल्ि के साथ सकारात्मकता लके र िलता ह।ै सकारात्मकता हमें एक अितं िधि दते ा है और इस तरह से, इसे जीतिे का दृधिकोण कहा जाता ह।ै 81

सकारात्मक रहिे का यकीि स्वतः ही आिके अन्दर जीतिे के दृधिकोण को धवकधसत करता ह।ै रोधबि िमाम जैसी मिहूर हस्ती हमेिा जीतिे के रवैये िर जोर दते े है और उिका जीवि, जीतिे के दृधिकोण का सच्िा उदाहरण ह।ै सकारात्मक िररणामों में भरोसा करिा और जीवि को सकारात्मक बिाये रखिा ही जीतिे का दृधिकोण कहलाता ह।ै जीतिे के दृधिकोण को सरल िब्दों में आिावादी दृधिकोण कह सकते ह।ंै एक जीतिे का रवयै ा सिलता की कंु जी है और एक प्रयास इसे िमकािे का काम करता ह।ै कोई भी जन्म से धवजेता या सिल िहीं होता ह,ै के वल उसकी सोि और धविारों को लागू करिे का तरीका उसे एक धवजेता बिता ह।ै हर मिषु ्य के धलए सिलता ही उसका आधखरी लक्ष्य होता ह,ै और इसके धलए धकया गया प्रयास बहे द अहम भधू मका धिभाता ह।ै प्रयास वही होते हैं जो हमारा दृधिकोण अििाता है और उसी तत्िरता से कायम करते ह।ंै आगे बढ़िे से िहले मंै यहाँ िर जीतिे के दृधिकोण िर कु छ मखु ्य बातों को उभारिा िाहता हू:ँ • आिावादी • सकारात्मक सोि • प्रगधतिील दृधिकोण • जीवि का दरू दिी तरीका • साहसी व्यधि • ििु ौधतयों को गले लगाते हुए • धवश्वास, भरोसा और उम्मीद जीवि जीिे का सकारात्मक तरीका अििाकर और िकारात्मक धविारों को हटाकर, आि जीतिे का दृधिकोण अििा सकते ह।ंै जीतिे का दृधिकोण अििािा कोई एक धदि की िीज िहीं हैं, जीवि के सकारात्मक िहलओु ं िर भरोसा करिे में थोडा वक़्त लग सकता ह।ै यहाँ िर कु छ तरीके हंै धजसे हमिे सिलता के मन्त्रों से धिकाला है, ताधक जीतिे के दृधिकोण को धवकधसत धकया जा सके : • सकारात्मक रहें: जीतिे का दृधिकोण हमिे ा सकारात्मकता को दिातम ा ह।ै इसधलए जीतिे का रवैया बिािे का िहला और महत्विणू म कदम सकारात्मक सोि ह।ै आसाि िब्दों में, सकारात्मक सोि भी जीतिे का दृधिकोण बिािे का आिार ह।ै • खुद के प्रयासों पर भरोसा करंे: आि िाहे जसै ी भी िररधस्थधत का सामिा कर रहे हों, यह बेहद महत्विणू म है धक अििे प्रयासों िर भरोसा करंे। खदु के प्रयास िर भरोसा करिा आिके 82

अन्दर सकारात्मक सोि धवकधसत करता है और सकारात्मकता जीतिे के दृधिकोण को धवकधसत करिे की कंु जी है। • सकारात्मक तथ्यों पर विश्वास करें: हमेिा अििे आसिास की सकारात्मकता िर भरोसा करें। ये सकारात्मकता आिके सहकमी से, माता-धिता से, यहाँ तक धक अजिधबयों से भी धमल सकती ह।ै अििे आसिास मौजदू सकारात्मकता िर धवश्वास करिा कािी महत्विणू म है खदु के धविार मंे एक आिावादी भाविा लािे के धलए। • जाने दो िाला दृविकोण: मधु ककल िररधस्थधतयों के बारे मंे बहुत ही िातं तरह से बात करिा आिके अन्दर 'जािे दो' वाला दृधिकोण धवकधसत करता ह।ै जब आि धकसी कठोर दृकय के बारे मंे बडी ही आसािी से बात करते हैं, तब आि अििे सोििे के िजररये के बारे मंे बदलाव महससू करते ह।ैं संक्षिे मंे, कधठि समय के बजाय हमारे आसिास होिे वाली सकारात्मक िीजों िर ध्याि कंे धित करिे से आि अििे अदं र एक आिावादी सोि का धवकास कर सकते ह।ैं • अपनी आभा सकारात्मक बनाए:ं आभा क्या है जो आि सोिते है वही है। अगर आि सकारात्मक सोिते हैं तो आिकी आभा भी सकरात्मक होगी। सकारात्मकता हमारे अन्दर एक जीतिे का दृधिकोण धवकधसत करती ह।ै सकारात्मक आभा स्वयं के धिमामण के धलए अच्छी िीजों को अििी तरि आकधषमत करती ह।ै • थैंक यू नोट से साथ करें वदन की शरु ुआत: यह कहा गया है धक हमेिा ईश्वर का आभारी होिा िाधहए। यह सि है, अगर आि अििे धदि की िरु ुआत प्रकृ धत को, भगवाि को (अििे िमम अिसु ार), अििे माता-धिता को िन्यवाद दृधिकोण के साथ करते ह,ंै धिधित रूि से आि िरू े धदि िांधत िायगंे ।े िन्यवाद दृधिकोण िाहे तो प्राथमिा के रूि में हो सकती ह,ै ध्याि के रूि मंे, या आि जसै े भी अििी आस्था धदखाते हंै उस रूि में। जीतिे का रवयै ा एक धवकासिील व्यधित्व की सबसे बडी जरूरत होती ह।ै जीवि के प्रधत एक सकारात्मक और आिावादी दृधिकोण को ही जीतिे का दृधिकोण कहा जाता ह।ै अििे अििे तरीके से हम सभी धवजेता ह।ंै जीवि के सकारात्मक िहलु को अिकु ू ल बिा कर और िकारात्मक सोि को घटा कर हम एक जीतिे का दृधिकोण हाधसल कर सकते ह।ैं जबधक एक व्यधि, एक छात्र के तौर िर या धिर एक व्यािारी के तौर िर हर धकसी के धलए जीतिे का दृधिकोण आवकयक ह।ै -------------------- 83

मदिरा एक मदिरा की बोतल का दकस्सा, अजय कु मार शमाा कु छ दिया और कु छ छू टा था। कर सहायक मदिरा ऐसी सादिश थी दिसन,े बच्चों से उसको लटू ा था। लाश के िास दिलास िडा, उसमंे भी िाम कु छ छू टा था। दबना कफन के लाश िडी थल िर, कौओं ने दमलकर लटू ा था। िानी के दकनारे तक िहचँु ा, दफर भी, वह उसे िी न सका। िखे े थे उसने रंि-दबरंिे सिन,े सिने, सिने ही रह िए, वह िी न सका। सिने उसके िरू े हो न सके , बस तन से हीरा रुठा था। दबना कफन के लाश िडी थल िर, कौओं ने दमलकर लटू ा था। उस बाि मंे प्यारे फू ल थे कु छ, िाते ही माली के सब सखू िए। िडते ही िम की िो दकरणे,ं कु म्हलाए िरा और सखू िए। दिस बाि में उसका िन्म हआ, उस बाि का माली झठू ा था। दबना कफन के लाश िडी थल िर, कौओं ने दमलकर लटू ा था। कु छ अरसे तक प्यार दिया उनको, िो उसको िी िान से प्यारा था। िर क्यों उन्हंे छोडकर सिं दकया मदिरा का, िो नसीब मंे कफन िुँवारा था। बच्चों से प्यारी थी मदिरा उसको, उसका यह दकस्सा अनठू ा था, दबना कफन के लाश िडी थल िर, कौओं ने दमलकर लटू ा था। 84

स्वर कोककला को श्रद्ांाजकल 28 सितंबर 1929 को मध्यप्रदशे के इदं ौर शहर मंे जन्मी िरु िाम्राज्ञी लता मंगशे कर का सदनांक 6 फ़रवरी 2022 को सनधन के िाथ ही िंगीत के एक यगु का अतं हो गया। लता दीदी के िम्मान में महाराष्ट्र िरकार द्वारा 7 फरवरी 2022 को शौक सदवि घोसित सकया गया। िंगीत ही नहीं परू ी दसु नया को लता जी पर नाज रहगे ा। नाम गमु जाएगा, चहे रा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज ही ह,ै पहचान ह।ै अपनी आवाज िे लोगों के सदलों में राज करने वाली स्वर कोसकला लता मंगशे कर की िरु ीली आवाज िदा के सलए शांत हो गई। उनका गाया यह गीत ही उनकी याद सदलाता रहगे ा। उनकी आवाज के जररए उनको दशे हमशे ा ही याद रखगे ा। लताजी के िम्मान में लखे ा परीक्षा-।।।, मबंु ई आयकु ्तालय के असधकाररयों एवं कमचम ाररयों द्वारा उन्हंे श्रद्धािमु न असपमत सकए 85

सरू ज और चादां अजय कु मार शमाा कर सहायक बहुत समय पहले की बात ह।ै एक जगह एक बढु ़िया रहती थी। उस बढु ़िया के दो बच्चे थे-सरू ज और चांाद । बढु ़िया अपने छोटे बेटे से खेती में मेहनत करके साग-पात उगाती और उसी से अपने इस छोटे से पररवार का भरण-पोषण करती। इस प्रकार उन तीनों की ढजदंा गी आराम से कट रही थी। उस क्षेत्र का जमींदार एक बार तीथथ यात्रा करने गया। जब वह यात्रा से लौट कर आया तो इसकी खशु ी में उसने एक भोज का आयोजन ढकया। बढु ़िया के दोनों बटे ों, सरू ज और चाांद को भी जमींदार के भोज में बलु ाया गया था। ढनढित ढदन पर जब दोनों भाई भोज मंे जाने लगे तो बढु ़िया ने उनसे कहा, “बेटो, तमु दोनों तो भोज मंे जा रहे हो, मरे े ढलए भी वहाां से कु छ खाने के ढलए ले आना।” दोनों भाई भोज में पहुचंा े। बडे अच्छे-अच्छे पकवान बनाए गए थे। भोज शुरू होते ही ढवढभन्न तरह के पकवान दखे कर सरू ज खाने मंे जटु गया। वह खाने मंे इतना मशगलू हो गया ढक उसे मांा की बात एकदम भलू गई। उधर चाांद को माां की बात याद थी। उसने स्वयां तो भरपटे खाया ही, साथ ही साथ कु छ पकवान माां के ढलए भी रख ढलए। भोजन समाप्त हआु । घर पहुचंा ने पर माां ने सरू ज से खाने की चीज मागंा ी, तो उसने खाली हाथ ढदखा ढदया। मांा को गसु ्सा आ गया और उसने कहा, “जा तू हमशे ा जलेगा और दसू रों को भी जलाएगा।” तभी चांाद आ पहुचंा ा, मांा ने उससे भी खाने की चीज मांगा ी तो उसने अपने साथ लाई सामग्री मांा के सामने रख दी। मांा पकवान दखे कर प्रसन्न हो उठी और उसे आशीवाथद ढदया, “बेटा तू हमेशा ठंाडा रहगे ा और दसू रों को भी ठांडक पहचुंा ाएगा।” -------------------- 86

अधिकारियों के सेवाधिवृधि समािोहों की झलधकयाँा 87

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राष्ट्रभाषा सचिन आशचु िचिक एकता ही है दशे का बल, जरूरी है हहदंि ी का संबि ल. एकता की जान ह,ै हहदिं ी भारत की शान ह.ंै भारत मााँ के भाल पर सजी स्वहणिम हबदंि ी ह,ाँ मैं भारत की बेटी आपकी अपनी हहदिं ी ह।ँा हजसमें है मनैं े ख्वाब बनु े, हजस से जडु ी मेरी हर आशा, हजससे मझु े पहचान हमली, वो है मरे ी हहदिं ी भाषा। हहदंि ी ही तो भारत की एकता और अखडिं ता की पहचान ह,ै हहदिं ी भाषा तो मरे े दशे की शान और जान ह.ै 90

सकारात्मक दृष्टिकोण अरुण अग्रवाल अधीक्षक जीवन की कठिन से कठिन परिठथिठियों को भी हल कि सकने का ठवश्वास ही हमािी सकािात्मक सोच ह।ै मठु ककल से मठु ककल दौि मंे भी ठहम्मि बनाए िखना हमािी सकािात्मक सोच की शठि ह।ै ठकसी भी मठु ककल कायय को किने की ठहम्मि भी हमंे हमािे सकािात्मक सोच से ही ठमलिी ह।ै हम ठकसी काम को ठजिने ज्यादा सकािात्मकिा से किंेगे, काम उिना ही सटीक औि सफल होगा। जीवन की ठवषम परिठथिठियों में सकािात्मक सोच न होने के कािण बहिु से व्यठि अपना मानठसक सिं लु न खो दिे े हैं औि अपना बहुि बडा नकु सान कि बैििे ह।ैं आज िक के सभी सफल व्यठियों की सफलिा का िाज कहीं न कहीं उनकी सकािात्मक सोच ह।ै सकािात्मकिा के वल हमािी सफलिा की ही नहीं बठकक हमािे अच्छे थवाथ्य की कुँ जी भी ह।ै ठकसी भी मठु ककल कायय को किने से पहले ही ‘मझु से नहीं होगा’ की सोच नकािात्मक सोच कहलािी ह।ै नकािात्मक ठवचाि िखने वाले व्यठियों का बनिा हआु काम ठबगडने लगिा है औि नकािात्मक सोच से हमािे थवाथ्य पि भी बहुि बिु ा असि पडिा ह।ै नकािात्मक सोच हमंे असफलिा की खाई में ढ़के लिी जािी है औि हमंे समाज में एक हािे हुए इसं ान का उदाहिण बना दिे ी ह।ै जीवन में मठु ककलों का सामना ठकये ठबना हाि पि हाि िख कि बिै ना औि परिठथिठियों से भागना नकािात्मक सोच का प्रिीक ह।ै ठकसी भी कायय का परिणाम आए ठबना ही उसके बिु े निीजों का अनमु ान लगाना भी नकािात्मक सोच का ही उदाहिण ह।ै ठकसी भी समाज मंे सकािात्मक सोच िखने वाले व्यठियों का थिान सदैव नकािात्मक सोच िखने वाले व्यठि से ऊुँ चा ही िहिा ह।ै सकािात्मक सोच िखने वाला व्यठि भय औि ठनिाशा से मिु होिा ह।ै कठिन से कठिन कायय को उसके परिणाम की ठचंिा ठकए ठबना ही किने के ठलए वह हमेशा ियै ाि िहिा है औि उसके सकािात्मक ठवचािों का प्रभाव उसके जीवन में थपष्ट रूप से ठदखाई दिे ा ह।ै • हमारी सोच का हमारे काम पर प्रभाव- हमािी सोच का सीधा असि हमािे काम पि पडिा है औि हमािे काम से ही समाज मंे हमािी पहचान बनिी ह।ै हमािा कायय अच्छा होगा या खिाब यह पिू ी ििह से हमािी अच्छी या बिु ी सोच पि ठनभयि कििा ह।ै • हमारी सोच का दूसरों पर प्रभाव- सकािात्मक सोच वाले व्यठि समाज में एक सिू ज की भाुठँ ि होिे हैं ठजनके संपकय मंे आने वाले लोग भी उनकी ही ििह सकािात्मक ठवचािों से प्रकाशमान हो जािे ह।ंै 91

यठद आप कु छ ठदनों के ठलए ठकसी नकािात्मक सोच वाले व्यठि के साि िह लंे िो आप भी उसकी ही ििह ठकसी कायय किने से पहले ही उसके बिु े निीजों का अनमु ान लगा कि कायय से भागने लगेगं े। • हमारी सोच का हमारी सफलता पर प्रभाव- हम ठकसी भी कायय के बािे मंे कै सी सोच िखिे हंै, इसका सीधा प्रभाव उसकी सफलिा या असफलिा पि पडिा ह।ै हमािे कायय में भले ही भलू से कोई गलिी हो जाए पिन्िु यठद उसके पीछे हमािी अच्छी सोच है िो आज नहीं िो कल, वह कायय जरूि सफल होगा। हमािी सोच का महत्व हमािे जीवन मंे हमािे द्वािा ठकए गए कायों से ज्यादा होिा है क्योंठक हमािा कायय िभी साियक होगा जब उसे एक अच्छी औि सकािात्मक सोच के साि ठकया गया हो। अगि साफ शब्दों मंे कहंे िो हमािी सोच हमािे व्यठित्व का अत्यंि महत्वपणू य अंग ह।ै हमािे जीवन मंे ठजिना महत्व हमािी बोलने की प्रवठृ ि का ह,ै उससे कहीं ज्यादा महत्व हमािी उस सोच का है ठजससे हम सही थिान पि सही बाि का चनु ाव कििे ह।ैं • हमारी सोच का जीवन के कष्टिन पररष्टथिष्टतयों मंे महत्व- सभी के जीवन में एक न एक ठदन मठु ककल परिठथिठियां अवकय आिी हैं लठे कन ये हमािी सोच पि ठनभयि कििा है ठक हम उस परिठथिठि से खदु को ठकस प्रकाि बाहि ठनकालिे ह।ंै यठद हमािी सोच सकािात्मक होगी िो सभं व है ठक हम जकद से जकद उस मठु ककल का हल ढूढं लेंगे पिंिु अगि हम नकािात्मक सोच िखिे हैं िो शायद ही हम ठबना सकािात्मक सोच वाले व्यठि की मदद के कभी उस मठु ककल से खदु को बचा पाएं। • हमारी सोच का जीवन की प्रष्टतयोष्टिताओं में महत्व- आज की इस प्रठियोठगिाओं से भिी दठु नया मंे हमािी सोच एक महत्वपणू य भठू मका ठनभािी ह।ै ठकसी भी प्रठियोठगिा में जीिना मात्र ही हमािी अच्छी सोच नहीं हो सकिी बठकक प्रठियोठगिा में ठहथसा लने ा औि उस प्रठियोठगिा मंे अपने प्रठिद्वदं ी का डटकि मकु ाबला किने की ठहम्मि िखना भी हमािी एक अच्छी औि सकािात्मक सोच का उदाहिण ह।ै • हमारी सोच का हमारे समाज में महत्व- समाज में हमें ठकस नजि से दखे ा जाएगा, समाज में हमें ठकिना सम्मान ठमलगे ा ये सािी बािें हमािी खदु की सोच औि ठवचािों पि ठनभयि कििी ह।ै समाज मंे जब हम अपनी बािंे िखिे हंै िो लोगों की उस पि क्या प्रठिठिया िहगे ी औि हमािी बािों से समाज के लोग ठकिना सहमि होिे हैं ये सािी चीजें हमािी सोच पि ही ठनभयि कििी ह।ंै ठवषम परिठथियाुँ हमािे जीवन का अठभन्न अंग ह।ंै जीवन मंे उिाि-चढ़ाव आना एक थवाभाठवक प्रठिया है ऐसे मंे सकािात्मक दृठष्टकोण िखना ठनिािं आवकयक है औि सकािात्मक सोच के साि ही जीवन मंे सफलिा हाठसल की जा सकिी ह।ै 92


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