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Kshitiz Hindi E-Magazine for GST Audit-III

Published by ram.dnpr, 2022-02-16 15:42:42

Description: Kshitiz Hindi E-Magazine for GST Audit-III

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प्रथम अकं : 2022 क्षिक्षिज सी.जी.एस.टी. (लेखा परीिा-III) आयुक्तालय, मुंबई 8 वीं मकंु्षजल, लोटस इन्फो सेंटर, परेल पूवव, मंबु ई-400012

आमुख “हहदंि ी भाषा नहीं ये भावों की अहभव्यहि है यह मातभृ हू म पर मर हमटने की भहि ह”ै मनषु ्य के भावों, हवचारों, अनुभवों की अहभव्यहि भाषा के माध्यम से ही सिभं व ह।ै भाषा की शहि के माध्यम से ही मनषु ्य ने ज्ञान-हवज्ञान सहहत सभी क्षेत्रों मंे प्रगहत सहु नहित की ह।ै हकसी भी सदु ृढ़, सक्षम एवंि मज़बूत राष्र की पहचान इस बात से होती है हक उसकी अपनी भाषा हकतनी व्यापक एविं समर्थ ह।ै मझु े प्रसन्नता है हक राष्रीय स्वाधीनता आदिं ोलन के दौरान उपहनवेशवादी वचसथ ्व के हवरुद्ध राष्रीयता की भावना को लके र हवकहसत हुई हहदंि ी भाषा ने तमाम चनु ौहतयों एवंि सकिं टों पर पार पाते हएु आज हवश्वपटल पर अपना गौरवपरू ्थ स्र्ान हनहमतथ हकया ह।ै अपनी व्यापकता एवंि उदारता के कारर् हहदिं ी हमारे दशे की लोकतांहि त्रक व्यवस्र्ा की परू क ह।ै हहदंि ी भाषा मंे सहृ जत रचनात्मक एवंि ज्ञानात्मक साहहत्य हकसी भी अन्य वहै श्वक भाषा से कमतर नहीं ह।ै हहदिं ी भाषा की सिंरचना एवंि प्रकृ हत इतनी उदार है हक वह दसू री भाषा के गुर्-धमथ एवंि सरिंचना तर्ा यगु -सापेक्ष हएु तकनीकी पररवतनथ ों के अनरु ूप स्वयिं को हवकहसत करती हुई, उन्हें आत्मसात कर लेती ह।ै हहदिं ी के इसी गरु ् की ओर सिकं े त करते हुए वररष्ठ हहदिं ी कहव हगररजा कु मार मार्रु ने हलखा हैैः- “सागर मंे हमलती धाराएँ, हहदंि ी सबकी संिगम ह,ै शब्द, नाद, हलहप से भी आगे, एक भरोसा अनपु म ह।ै गंगि ा-कावरे ी की धारा, सार् हमलाती हहदिं ी ह,ै पवू -थ पहिम, कमल-पंिखरु ी, सते ु बनाती हहदिं ी ह।ै ।” हहदंि ी की इस सामाहसक एविं समावशे ी प्रकृ हत के कारर् ही सहंि वधान हनमाथताओंि ने सिंहवधान के अनचु ्छेद 351 के तहत हमंे यह दाहयत्व सौंपा है हक हम हहदंि ी के व्यापक प्रचार-प्रसार के हलए परू ्थ हनष्ठा के सार् कायथ करें और आठवीं अनसु चू ी मंे हवहनहदषथ ्ट भारत की अन्य भाषाओिं में प्रयिु रूप, शलै ी एविं पदों को आत्मसात करते हएु संिस्कृ त और अन्य भाषाओिं से शब्द ग्रहर् करते हुए उसकी समहृ द्ध को सहु नहित करंे। संहि वधान द्वारा प्रदत्त इस दाहयत्व का हमें उत्कृ ष्टता से हनवहथ न करना ह।ै सार् ही, सचू ना तकनीक के वतथमान दौर मंे हहदंि ी को हमंे हवहभन्न ‘ई-टूल्स’ के सार् भी जोड़ना ह।ै हम इस पहत्रका के माध्यम से आयिु ालय के सभी अहधकाररयों एवंि कमथचाररयों से आह्वान करते हंै हक वे हहदिं ी सहहत सभी भारतीय भाषाओंि की समहृ द्ध एवंि हवकास के हलए परू ्थ हनष्ठा एविं प्रहतबद्धता से कायथ करंे। संिपादकीय............

संदेश यह बडे़ हर्ष की बात है कक क़े न्द्रीय वस्तु एवं सव़े ा कर, लख़े ा परीक्षा-।।। आयकु ्तालय, मंबु ई द्वारा कवभागीय कहदं ी ई-पकिका के़ प्रथम अंक “कक्षकतज” का प्रकाशन ककया जा रहा ह।ै व्यकक्तत्व के़ कवकास मंे भावनाओं की अकभव्यकक्त का एक अहम योगदान होता ह,ै अथाषत् आतं ररक मन में उठने़ वाल़े कवचारों को सही मंच एवं उकचत माध्यम स़े अकभव्यक्त करने़ से़ व्यकक्त का व्यकक्तत्व कनखरता है और उसमें आत्मकवश्वास का सचं ार होता ह।ै आजकल कायालष यों मंे कायष की अकिकता और जीवन शैली में पररवतषन क़े कारण ककसी के़ पास आत्ममथं न का समय नहीं है परंतु किर भी कु छ ऐसे़ मदु ्द़े होते़ हंै कजनसे़ उद्वके़ लत होकर हमारा मन मकस्तष्क उसके़ बाऱे में बार-बार सोचता है और उस़े प्रकट करऩे का सही माध्यम ढढं ़ने़ लगता ह।ै ऐसे़ समय मंे कवभागों द्वारा अपऩे काकमकष ों को उनक़े उद्गार व्यक्त करऩे क़े कलए ससं ािन उपलब्ि कराना और इस प्रकार समस्त काकमकष ों का ज्ञानविषन करना, कल्याणकारी उपायों में से़ एक ह।ै पकिका का प्रकाशन भी इसी कदशा मंे हो रही प्रगकत की महत्त्वपणष कडी ह।ै हमारा दश़े कवकवि भार्ाओ,ं बोकलयों एवं संस्कृ कतयों का दश़े ह।ै भारतीय सभ्यता, ससं ्कृ कत, साकहत्य एवं दशनष का गौरवपणष इकतहास कहदं ी भार्ा में उपलब्ि ह।ै अपनी भार्ा मंे मौकलक लखे़ न और कामकाज से़ अकभव्यकक्त बहुत ही सहज और सरल होती ह,ै जो अनवु ाद की भार्ा से़ सभं व नहीं ह।ै इस कवभागीय कहदं ी पकिका के़ माध्मय स़े हम राष्रभार्ा को अकिक स़े अकिक लोककप्रय बनाएँ तथा राजभार्ा से़ संबकं ित प्राविानों के़ अनरु ूप सरकारी कामकाज मंे इसका अकिक से़ अकिक प्रयोग करंे। यह कनकित रूप स़े आयकु ्तालय की राजभार्ा के़ प्रचार एवं प्रसार क़े प्रकत कमषठता और प्रकतबद्धता को उजागर करता ह।ै मंै पकिका से़ जडु े़ सभी अकिकाररयों एवं कमचष ाररयों को बिाई दत़े ा हँ और यह कामना करता हँ कक इस पकिका का प्रकाशन अपने़ सशक्त और सनु्द्दर स्वरूप मंे कनरंतर जारी रहग़े ा। (अशोक कु मार मह़े ता) प्रिान मखु ्य आयकु ्त क़े न्द्रीय वस्तु एवं स़ेवाकर तथा क़े न्द्रीय उत्पाद शलु ्क, मबंु ई जोन

संदेश मझु े यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है धक लखे ा परीक्षा-।।।, मंुबई आयकु ्तालय द्वारा धिभागीय धहदंु ी ई-पधिका “धक्षधतज” के प्रथम अकुं का प्रकाशन धकया जा रहा ह।ै ई-प्रारूप हमारे जीिन ि कायाला यों मंे न के िल काया को सचु ारू ि व्यिधथथत रूप से संुपरू ्ा करने में साथाक हो रहा है बधकक पयाािरर् के प्रधत हमारे उत्तरदाधयत्ि के धनिाहन का भी सशक्त माध्यम ह।ै ई- पधिका के थिरूप में इसका प्रचार ि प्रसार न धसर्ा आसान होगा बधकक लागत प्रभािी भी होगा। एक थितुंि दशे की एक भाषा होती ह,ै जो उस दशे का मान-सम्मान और गौरि होती ह।ै भाषा और सुथं कृ धत ही उस दशे की असली पहचान होती ह।ै भाषा ही एक ऐसा सािन ह,ै धजसकी सहायता से हम अपने धिचारों का आदान-प्रदान कर सकते है।ं धिश्व में कई सारी भाषाएँ बोली जाती है, धजसमंे धहदंु ी भाषा का धिशेष महत्ि ह।ै यह भाषा भारत मंे सबसे अधिक बोली जाती है और धिश्व मंे सबसे अधिक बोली जाने िाली भाषाओुं में तीसरा थथान ह।ै आज धिधभन्न माध्यमों द्वारा धहदुं ी भाषा को जन-जन तक पहचँ ाने का प्रयास धकया जा रहा ह।ै धहदुं ी के िल एक भाषा का काम ही नहीं करती ह।ै यह एक-दसू रे को आपस में जोड़ने का काम भी करती ह।ै ऐसा माना जाता है धक संुथकृ त भाषा का सरलतम रूप धहदंु ी भाषा ही है। राजभाषा धहदंु ी के प्रयोग को बढाने में कायाला यीन धहदुं ी पधिकाएँ धनरंुतर महत्िपरू ्ा योगदान दते ी रही ह।ंै राजभाषा धहदुं ी मंे काया करना हमारा नैधतक कत्तवा ्य ही नहीं बधकक संुिैिाधनक दाधयत्ि भी ह।ै मंै यही कहना चाहता हँ धक आज के समय में धहन्दी के महत्ि को समझना चाधहए और आयकु ्तालय के सभी अधिकाररयों एिंु कमचा ाररयों को इसके प्रधत जागरूक करना चाधहए। धहदंु ी भाषा का सम्मान करते हए इसे एक नये थतर तक पहचुं ाने में कायाालय के सभी अधिकाररयों एिुं कमाचाररयों को धनरुंतर प्रयास करना चाधहए। मैं इस पधिका के माध्यम से सभी अधिकाररयों एिंु कमाचाररयों से अपील करता हँ धक िे थिचे ्छा एिुं समधपात भािना से अपना सरकारी काया शत-प्रधतशत धहदंु ी मंे करने का सुकं कप ले।ं (रमशे चन्र) आयकु ्त जी.एस.टी (लखे ा परीक्षा-III) मबुं ई

सदं ेश जीएसटी, लखे ा परीक्षा-।।। आयकु ्तालय, मबंु ई की विभागीय व दुं ी ई-पविका “वक्षविज” का प्रथम अकुं आपके समक्ष प्रस्ििु करिे एु मझु े अपार र्ष की अनभु वू ि ो र ी ।ै पविका के प्रकाशन का मखु ्य उद्दशे ्य राजभार्ा व दुं ी के प्रचार-प्रसार में अवभिवृ ि करना ै िथा मलू रचनाओुं के प्रकाशन के वलए एक मुंच प्रदान करना ।ै य एक वनविषिाद सत्य ै वक व दुं ी सरलिा ि समरसिा के भंुडार से भरी ुई भार्ा ।ै मेरी य ावदकष अवभलार्ा ै वक सभी अविकाररयों एिुं कमचष ाररयों को अपनी मािभृ ार्ाओुं के साथ-साथ राजभार्ा व दुं ी को राष्ट्रीय भािना, आदर ि समपषण की भािना के साथ अपनाना चाव ए। मारे दवै नक सरकारी कायषकाज में अविक से अविक कायष व दंु ी में करके गौरिपणू ष ि सम्मानजनक स्थान वदलाने में अपनी म त्त्िपणू ष भवू मका वनभाने का प्रयास करना चाव ए। कायाषलय के सभी िररष्ठ अविकारी व दंु ी के प्रयोग को बढाने के वलए चचाष िथा उत्कृ ष्ट कायपष ्रणाली की जानकारी का आदान-प्रदान कर अपनी-अपनी उपलवधि स्िर में सिु ार ला सकिे ।ंै साथ ी उपलधि सचू ना प्रौद्योवगकी की स ायिा से सभी मडुं ल कायालष यों एिुं मखु ्यालय वस्थि सभी अनभु ागों में उपलधि सभी कुं प्यटू रों पर व दुं ी कायष को सगु म बनाने के उद्दशे ्य से यवू नकोड का उपयोग सवु नविि करिाएुं। य अुंक राजभार्ा व दंु ी मंे रुवच रखने िाले अविकाररयों एिंु कमचष ाररयों के सवम्मवलि प्रयास का ी प्रविफल ,ंै जो माननीय आयकु ्त म ोदय से प्राप्त प्रेरणा और प्रोत्सा न द्वारा ी सभुं ि ो सका ।ै मंै इस पविका के प्रकाशन में प्रत्यक्ष एिुं अप्रत्यक्ष स भावगिा के वलए आभार व्यक्त करिे ुए एिुं पविका की रचनात्मक श्रेष्ठिा को अक्षणु ्ण बनाए रखने िे ु अपनी शभु कामनाएंु प्रेवर्ि करिा ।ूँ (वबनय प्रिाप वसंु ) अपर आयकु ्त (राजभार्ा) जी.एस.टी (लेखा परीक्षा-III) मंुबई

।। विवतज ।। विभागीय व दंि ी पविका िर्ष 2022, प्रथम अंिक सपं ादक मंडल सरं क्षक श्री अशोक कु मार मे ता, प्रधान मखु ्य आयकु ्त, के न्द्रीय वस्तु एवं सवे ाकर तथा के न्द्रीय उत्पाद शलु ्क, मंबु ई जोन प्रधान सपं ादक श्री रमेश चन्द्र, आयकु ्त, के न्द्रीय वस्तु एवं सवे ाकर तथा के न्द्रीय उत्पाद शलु ्क, लखे ा परीक्षा-III, मबंु ई संपादक श्री वििय प्रताप वसिं , अपर आयकु ्त, के न्द्रीय वस्तु एवं सवे ाकर, लखे ा परीक्षा-III, मबंु ई राजभार्ा स ायक अविकारी सपंि ादक श्री ओम प्रकाश विपाठी, श्री एि. एि. कमलापरु े, सहायक आयकु ्त, के न्द्रीय वस्तु एवं वररष्ठ अनुवाद अलधकारी, के न्द्रीय वस्तु एवं सेवाकर, लखे ा परीक्षा-III, मबंु ई सवे ाकर, लेखा परीक्षा-III, मंबु ई विजाइवििंग & स योग श्री रामवििास मीिा, श्री अजय वमश्रा, कर सहायक, के न्द्रीय वस्तु एवं सवे ाकर, आशलु ललपक, के न्द्रीय वस्तु एवं सवे ाकर, लखे ा परीक्षा-II, मबंु ई लेखा परीक्षा-III, मबंु ई प्रकाशक (पलिका में प्रकालशत रचनाओं में व्यक्त लवचार रचनाकारों के लनजी लवचार ह।ंै )

अनकु ्रमविका क्र.सं. विषय लेखक/संकलनकर्त्ता पषृ ्ठ सं. सर्शा ्री/श्रीमती/कु . 1. बसतं मधमु तस: सषृ्टि कत उत्सर् 1-5 2. हम कु छ बततंे भलू गये हैं ष्टिनेश के . र्ोहरत 6-7 3. ररश्ते चन्िन ष्टबि 8-9 4. मेरे सपनों कत भतरत ओम प्रकतश ष्टिपतठी 10-11 5. स्र्च्छतत प्रोजके ्ट रतमष्टनर्तस मीनत 12-14 6. आज की नतरी शष्टि सपं तिकीय 15-16 7. हम आजति हंै रतष्टधकत य.ू ष्टपल्ले 17 8. जीर्न मंे ज्ञतन कत महत्र् आकतश अच्छरत 18-19 9. र्कृ ्षतरोपण एस. ओ. शटे ्टी 20-22 10. सजानत के क्षण संपतिकीय 23 11. प्रशतसष्टनक शब्ितर्ली ष्टशतशे श्रीर्तस्तर् 24-28 12. ग़ज़ल संपतिकीय 29-30 13. स्र्च्छतत पखर्तडत चन्िन ष्टबि 31-32 14. मतं कत र्तत्सल्य सपं तिकीय 33-34 15. यतित र्तृ ततं (एम्बी र्लै ी ष्टसटी) अष्टनतत एन. ष्टर्चतरे 35-37 16. ष्टनरतशत से कै से बतहर ष्टनकलें आर. एस. चौहतन 38-39 आर. जी. ितसे 40-41 17. आजतिी कत अमतृ महोत्सर् संपतिकीय 42-43 18. जड बनतम चते न मन तपन कु मतर मतइष्टत 44 45-46 19. ष्टर्श्वतस तजे स सतष्टलयन 47 20. खशु कै से रह?ंे रोष्टहत ष्टशहरत 48-49 21. संष्टर्धतन ष्टिर्स (Constitution day) सपं तिकीय 50 22. मेरत शौक शभु म एस. सरततपे 23. मतत-ृ भतषत के प्रष्टत प्रेम हरेश गंगरतमतनी

24. पसु ्तकों से जडु ़ा शिष्ट़ाच़ार पवन पटेल 51 52-56 25. जह़ाजऱानी एवं क्रू मंबे सस आर. एस. चौह़ान 57-58 59-60 26. संस्कृ शत और सभ्यत़ा रशव मीऩा 61-62 27. ग़ज़ल चन्दन शबष्ट 63 64-66 28. भ़ारतीय सम़ाज में ऩारीीः तब और अब अशनत़ा एन. शवच़ारे 67 29. स्वच्छत़ा स़ामग्री क़ा शवतरण सपं ़ादकीय 68-69 70-72 30. ऱाष्ट्रीय एकत़ा आर. वी. के नी 73-74 75-76 31. समय मनोज कु म़ार य़ादव 77-78 79-80 32. चतुर शचशडय़ा पवन पटेल 81-83 33. ऩाशसक भ्रमण के छ़ाय़ाशचत्र आर. एस. चौह़ान 84 85 34. जीने की ऱाह मनीष रॉय 86 87-89 35. वे नमक बऩाने आए हैं एस. एस. ज़ाधव 90 91-92 36. वशै िक ि़ाशन्त एन. एन. कमल़ापरु े 93 94-95 37. स्वच्छत़ा प्रोजेक्ट के अन्य दृश्य संप़ादकीय 96-97 38. हम़ारी सोच ऱाशधक़ा य.ू शपल्ले 98 99-100 39. मशदऱा अजय कु म़ार िम़ास 101 40. स्वर कोशकल़ा को श्रद़्ाजं शल संप़ादकीय 41. सरू ज और च़ादं अजय कु म़ार िम़ास 42. सेव़ाशनवशृ ि सम़ारोह संप़ादकीय 43. ऱाष्ट्रभ़ाष़ा सशचन 44. सक़ाऱात्मक दृशष्टकोण अरुण अग्रव़ाल 45. मरे े सपनों क़ा भ़ारत ल़ाल अच्छऱा 46. नवशनयकु ्त शनरीक्षकों क़ा प्रशिक्षण सपं ़ादकीय 47. जैस़ा ख़ाए अन्न वैस़ा बने मन अशनत़ा एन. ब़ाबू 48. कवच अजय शमश्ऱा 49. वकृ ्षों क़ा महत्व रशव मीऩा 50. छ़ाय़ाशचत्र आर. एस. चौह़ान

बसतं मधमज ास: सतृ ि का उत्सव धदनशे के . र्ोहरव सहवयक समवहतवा (सरे ्वधनर्िृ ) ऋतओु ं मंे बसंत ऋतु को सर्वाधिक मनमोहक, मनभवर्न और प्रमे ऋतु मवनव गयव ह।ै बसतं ऋतु कव जवदू जब छव जवतव है तो मनषु ्य ही क्यव, सधृ ि भी इठलवती ह,ै िरती से अबं र तक बस के र्ल प्रकृ धत के संदु र नज़वरे और मनषु ्य के हृदय में प्रमे ही प्रेम समव जवतव ह।ै मवघ मवह की शकु ्ल पंचमी के आते-आते सधृ ि के कण-कण से लके र हृदय से होते हयु े बसंत की मवदक आहट चहुं ओर सनु वई लगती ह।ै अलसवई-सी सबु ह में अब भी ठंडक कव एहसवस है लधे कन सयू ा मदं -मंद मसु कवते सबको जगव ही दते व ह।ै पीले र्स्त्र िवरण धकए सधृ ि नर्र्िू सी धदखवई दते ी ह।ै पेड़-पौिों की टहधनयों से पीली पीडी चकु ी पधियवाँ धर्दव लने े को हंै और नई कोंपलंे नर्-जीर्न कव पयवाय बनकर बसतं के स्र्वगत के धलए लवलवधयत लगती ह।ंै टेस-ू पलवश कव यौर्न परू े शबवब पर ह।ै ऐसे में नागार्ुजन कह उठते है- दूर कहीं पर अमराई में कोयल बोली परत लगी चढ़ने झींगरज की शहनाई पर वदृ ्ध वनस्पततयों की ठूँठी शाखाओं में पोर-पोर टहनी-टहनी का लगा दहकने सयू ा कव उिरवयन प्रवरम्भ होते ही ऋतु सहु वनी हो जवती ह।ै र्वतवर्रण शदु ्ध और धनमाल हो जवतव ह।ै गलु वब, गेदं व, सरु जमखु ी और सरसों के फू ल मंद-मदं मसु कु रवते ह।ैं चवरों 1

ओर एक मनभवर्न सगु िं फै ल जवती ह।ै बसंत अपने चरम पर होतव ह।ै खते ों की हररयवली मंे सरसों के खेत लहलहव कर बसंत-रवग गनु गनु वते ह।ै ऐसे मंे भगवती चरण वमाु कह उठते है- मस्ती से भरके र्बतक हवा सौरभ से बरबस उलझ पडी तब उलझ पडा मेरा सपना कज छ नये-नये अरमानों से; गंेदा फू ला र्ब बागों में सरसों फू ली र्ब खेतों में तब फू ल उठी सहस उमगं ..... िरती से गगन तक, मवटी से पर्न तक सब बसतं की मवदकतव मंे डूबेहुये ह।ै नई फसल आते ही दरे ्तवओं के चरणों में समधपता की जवती ह।ै मकर-संक्वधं त, लोहड़ी, पोंगल जसै े और भी कई त्यौहवर बसतं -ऋतु को समधपात ह।ंै अमरवई में बौर की तीव्र गंि पश-ु पक्षी और मवनर् को भी आकधषता करती ह,ैं कोयल कु ह-ु कु हु कव रवग सनु वती ह,ै आम की मंजररयवाँ झोंकों संग बसतं -रवग पर धिरकती ह।ैं इसी बीच धप्रयतमव अपने धप्रयतम को स्मरण करते हएु सधखयों के संग हसाँ ी-धठठोली करते हएु मन-मस्त हो कर गवती ह,ै “बसतं मन भवए सखी री....” अमराई की मादक सगज धं से आल्हातदत अमीर खजसरो तलखते है- सकल बन फू ल रही सरसों। बन तबन फू ल रही सरसों। अम्बवा फू टे, टेसू फू ले, कोयल बोले डार-डार, और गोरी करत तसगं ार 2

बसतं के आगमन के सवि ही बवज़वर मंे आ जवतव है नयव अनवज, नई सब्जी- तरकवरी, नए फल और नए सदंु र पषु ्प भी। परु र्वई मगं ल-गवन सनु व रहीं ह।ै पर्ता , जंगल, नधदयव,ं तवल-तवलवब, बवग-बगीचे बसतं के सौन्दया को पररभवधषत करने के धलए तत्पर ह।ंै िरती पर फू लों के मेले लग गए हंै और भौरंे-धततधलयवँा उन पर मचल रहें ह।ैं सोहनलाल तिवेदी इस ऋतज को अपने शब्दों में ढालते हंै- सरसों खेतों में उठी फू ल बौरें आमों में उठीं झूल बेलों में फू ले नये फू ल पल में पतझड का हआु अंत आया वसतं आया वसंत..... कड़वके की ठंड अब धर्दव लेने को ह।ै धदशवएँा नमा धकरणों में स्नवन कर सयू ा को अर्धया दे रही ह।ैं जब कृ ष्ण गीतव में कहते है धक, “ऋतओु ं मंे मंै ही बसतं ह”ाँ तो बसंत कव महत्र् कु छ और अधिक बढ़ जवतव ह।ै ऐसी आकषाक बसंत ऋतु रचनवकवरों के मनोभवर्ों पर भी अपनव प्रभवर् डवलती है और उन्हें धलखने के धलए प्रेररत करती ह।ै सवधहत्यकवरों ने बसतं ऋतु पर कई गीत, लधलत धनबिं , किवएँा आधद कव सजृ न धकयव ह।ंै इस तरह बसंत सजृ न कव उत्सर् ह।ै बसतं को प्रेम की ऋतु भी कहव जवतव ह,ै ऐसे मंे प्रेम हृदय में प्रेम की अनभु धू तयों को आमधं ित करतव ह।ै तभी तो तनराला तलखते है- सतख, वसन्त आया भरा हर्ु वन के मन, नवोत्कर्ु छाया। 3

िपू कव कु न-कु नव तवप अब दहे को भवने लगतव ह।ै बसतं ऋतु में धर्द्यव की दरे ्ी सरस्र्ती की भी आरविनव की जवती ह।ै प्रमे के दरे ्तव कवमदरे ् को भी बसतं ऋतु कव दरे ्तव मवनव गयव है इसीधलए बसंत के आते ही मन के द्ववर पर प्रेम अपनी उपधस्िती अंधकत करतव ह।ै मन चंचल हो जवतव ह।ै कवमदरे ् बसतं ऋतु मंे अपनव प्रमे रस घोल दते े ह।ै समस्त सधृ ि प्रेममय हो जवती ह।ै अंबर ऐसव मवनो अभी स्नवन कर धनकलव हो, सरू ज भी सज-िज कर तैयवर बैठव हो, िरती पर नमा घवस के कवलीन धबछ जवते ह,ै धजन पर पछं ी पअपने घरोंदों के धलए धतनके चगु ते ह।ैं बसंत ऋतु में पश-ु पधक्षयों के सवि ही मवनर्-हृदय भी अनभु धू तयों से अधभभतू रहतव ह,ै कोई प्रेम मंे हैं तो कोई प्रेम में रहनव चवहतव ह,ै कोई प्रेम से धर्रह तक पहचुँा गयव जहवँा उसकव प्रमे उससे दरू ह,ै कोई प्रेम मंे धसक्त है तो कोई प्रेम से ररक्त है धकन्तु प्रेम की टीस सबके हृदय में उठ रहीं ह।ै और बसतं ऋतु इस टीस को, प्रेम की कसक को और अधिक तवप दे रही ह।ैं इसीतलए अज्ञेय तलखते हैं- वसन्त आया है पततयाया-सा सभी पर छाया है हर र्गह रगं लाया है पर यह दखे कर तक कीकर भी तपयराया है मेरा मन एकाएक डबडबा आया है। नहीं, इस बार, मेरे मीत! नहीं उमडेगी धार मंै नहीं गा सकूँ गा गीत पधिमी दशे ों में प्रेम को मनवने और प्रेम कव इज़हवर करने कव कु छ धर्शषे महत्र् होतव ह।ै इसी क्म मंे धर्श्व के अधिकवंश दशे ों मंे प्रमे -पर्ा के रूप मंे 14 फरर्री को ‘र्ले ंटे वइन्स डे’ परंपररक रूप से मनवयव जवतव ह।ै रोम के एक संत र्लै टंे वइन के स्मधृ त में “र्ैलेटं वइन डे कव 4

यह त्यौहवर मनवयव जवतव ह,ै यह धदन परू े धर्श्व मंे आपस मंे प्रमे और सौहवदा के धलए जवनव जवतव ह।ै हवलवंधक हमवरे भवरत दशे मंे भी आज यरु ्क-यरु ्धतयवँा और सभी उम्र के लोग ‘र्ले टें वइन्स डे’ बड़े प्यवर से और खधु शयों के सवि मनवते ह।ै यह बड़े आिया और सखु द सयं ोग है धक भवरत में जब बसंत को प्रमे -पर्ा के रूप मंे दखे व जवतव है उसी समय यह ‘र्ेलेंटवइन्स डे’ भी मनवयव जवतव है यवने की इस मौसम में र्वस्तर् मंे कु छ खवस ह।ै अिवात ही आज यह धदन ‘ग्लोबल फे धस्टर्ल’ के रूप में मनवयव जव रहव ह।ैं आज जबधक कई दशे ों में घणृ व, नफरत, र्ैमनस्यतव के बीज बोये जव रहंे ह,ैं ऐसे में इस धदन कव महत्र् और अधिक ही बढ़ जवतव ह।ै दखे व जवए तो सभी उत्सर्ों, पर्ों और त्यौहवरों में प्रेम कव पर्ा सबसे अधिक महत्र्पणू ा है क्योंधक दधु नयव में प्यवर होगव तो तभी तो दधु नयव खबू सरू त होगी। 5

हम कु छ बातें भूल गये हंै... चन्दन बबष्ट सहायक आयकु ्त (सेवाबनवृत्त) गीतों के सगं तनु -तनु बजता हम इकतारा भलू गये ह।ैं जीवन का सगं ीत सनु ाता वह बनजारा भलू गये ह।ैं छोटे थलै े में भर लाता ककतने खकु ियों के सन्दिे े, गावाँ -िहर में किरता था जो इक हरकारा भलू गये ह।ंै बच्चों की लोरी में पररयाँा, जादगू र की चाल कहानी, दादी-नानी का वह प्रमे लसा पचु कारा भलू गये ह।ैं परु खे अनपढ़ थे पर गहरी ज्ञान समझ की बातंे कहत,े चार ककताबंे पढ़ कर हम वह जीवन धारा भलू गये ह।ंै धरती और प्रकृ कत माँा ने जो हम को ये उपहार कदए ह,ैं कनमोही नािकु ्रे हम उपकार वो सारा भलू गये ह।ैं कसरहाने पर प्रहरी बनकर सकदयों से जो रक्षा करता, आज कहमालय का वह छाजन वह ओ सारा भलू गये ह।ैं अकवरल बहती है वह जीवन दने े वाली पावन गगं ा, हम ने स्वयं ककया है कजसका मकलन ककनारा भलू गये ह।ैं दकु दनि मंे हैं आज वहीं पर वह के वट वह जजिर तरनी, कजसने प्रभु को गगं ा के उस पार उतारा भलू गये ह।ैं िहरों की जगमग ने जब से आखँा ों को हरै ान ककया ह,ै गाावँ , सवेरा, दीपक, जगु न,ू चन्दा, तारा भलू गये ह।ैं 6

कोयल कजसके तट पर िै ली अमराई मंे गीत सनु ाती, उस चचं ल नकदया की अल्हड़ बहती धारा भलू गये ह।ैं कसमटे हैं अकस्तत्व हमारे छोटे कमरों के बाड़ों मंे, पनघट, पीपल, झलू ा, आगँा न, घर, चौबारा भलू गये ह।ंै हम सब खदु गर्ज़ी में डूबे बस अपना-अपना ही करते, कोई बेघर भखू ा सोता है दकु खयारा भलू गये ह।ंै कौन ककसी के दखु सखु में अब कदल से िाकमल हो पाता ह,ै करते हैं बस रस्म-अदाई जज़्बा सारा भलू गये ह।ंै माना हमने भौकतकता में खबू तरक्की कर ली लके कन, भाव सहज में जीने का जो मतं ्र उचारा भलू गये ह।ैं दिे वही है लोग वही हंै कमल जलु कर रहते थे 'चन्दन', नफ़रत की बातों मंे पड़ कर भाईचारा भलू गये ह।ैं 7

रिश्ते ओम प्रकाश त्रिपाठी, सहायक आयकु ्त शिशिर ऋतु की िाम थी। फू लमती अपनी पाचां वर्षीय बेटी को साथ लके र खते से अपनी कु शटया की ओर चल पडी। उसका पशत कहीं और काम पर गया था। झोपडी मंे पहचुँ कर फू लमती ने बततन धोकर कु छ खाना बनाने की तयै ारी की। तब तक उसका पशत रामसखु भी आ गया। अपनी बेटी को स्नेह से उठाया, थोडी दरे बाहर घमू कर आया और खाकर सो गया। रात मंे ठांड थी, ओढ़ने-शबछाने के वस्त्र भी अपयापत ्त ही थ।े उनमंे बच्ची को भी ढँुकना था कु छ हद तक अपने िरीर को भी ठंाड से बचाने की असफल कोशिि करते हए वे सोने की कोशिि कर रहे थ।े जीशवका के साधन सीशमत थ।े खते में महे नत मजदरू ी या अन्य शकसी ग्रामीण कायत से शकसी प्रकार से भरण-पोर्षण हो जाता था शकन्तु गरम कपडे, रजाई गद्दे तो उनकी पहचँु से काफी दरू थ।े परु ाने कपड़ों की फटेहाल गदु डी ही उनका सदी कवच थी। उस वर्षत ठंाड भी ज्यादा थी। िीत लहर में मज्जा भी शसकु ड जाती थी। भगवान अंिा मु ाली का दिनत दलु भत हो गया था। इस हाल में रात शबताना अत्यन्त दषु ्कर एवां कष्टमय था। रामसखु को िीत का प्रकोप हो गया। सीने मंे कफ जम गया और साांस लेने मंे कशठनाई होने लगी। घरेलू इलाज के नसु ्खे अपनाए पर कोई लाभ न होता था। खांासी और श्वास अवरोध बढ़ता जा रहा था, ऊपर से आत्मा को भी जमा दने े वाली ठांड। एक रात रामसखु ने प्राण त्याग शदए। फू लमती पर मानो वज्रपात हो गया। पांाच साल की िीतल तो थी ही और एक शििु उसके पटे मंे भी पल रहा था। गभवत ती अवस्था मंे मजदरू ी करना, अपनी बटे ी को पालन-पोर्षण करना तथा प्रकृ शत के प्रकोप को भी झेलना, यह सारे दषु ्कर कायत फू लमती की शदनचयात हो गए थ।े एक शदन फू लमती ने एक और बच्ची को जन्म शदया। अब काम पर जाते समय िीतल और अपनी नवजात कन्या मीतल को भी साथ ले जाना उसकी बाध्यता थी। घर पर उनकी दखे भाल करने वाला कोई नहीं था। फू लमती जब मजदरू ी करती होती थी तो िीतल, मीतल की दखे भाल करती। उसे शहलाती-डूलाती, उसके साथ खले ती। उससे बातें करने की कोशिि करती। िीतल को तो एक बडा प्यारा शखलौना मीतल के रुप में शमल गया था। िीतल अपनी छोटी गशु डया सी बहन के एक-एक हाव भाव पर शखल-शखलाकर हसुँ पडती थी। उसे उठाकर अपने नन्हें हाथ़ों मंे भरने की कोशिि करती। इतने में मीतल जोर से शचल्ला पडती। कहीं माँु को उसके शचल्लाने से पता न चल जाए, िीतल, मीतल के महँु पर अपनी नन्हीं सी हथले ी रख कर उसे चपु कराने की असफल कोशिि करती। शदन का हर पल िीतल के शलए बडा मनोरांजक हो गया था। इधर उसकी माुँ की आशथकत शस्थशत बद से बदतर होती जा रही था। पशत शदवागं त था। दो छोटी-छोटी जाऩों की दखे भाल, भरण-पोर्षण सब दषु ्कर होता जा रहा था। आय के सीशमत साधन तथा शजम्मदे ारी का सामंाजस्य एकदम शबगड गया था। हताि- शनराि जझू ती हई फू लमती ने अपनी ददु ित ा गावंा के एक शिक्षक रामचदंा र को बतायी। रामचंादर शिक्षक तो थे ही वे एक सामाशजक ससंा ्था से भी जडु े थे जो िहर में एक बाल आश्रम चलाती थी। रामचांदर के प्रयास से 8

बाल-आश्रम में रहने लगी। यहाँु खाना-पीना अच्छा था, बच्चे भी कई थ।े वह उनके साथ खले ती और आश्रम के शनयमानसु ार उसे कु छ समय अक्षर ज्ञान भी कराया जाने लगा। िीतल तजे थी, बताई गई शिक्षा का अनकु रण िीघ्रता से करने लगी। दखे ते ही दखे ते बाकी बच्च़ों में उसने शवशिष्ट शस्थशत प्राप्त कर ली। यहांा िीतल की प्रशतष्ठा रह-रहकर उसे उसकी नन्हीं बहन की याद सांत्रस्त कर दते ी थी। उसके साथ शबताए कु छ पल उसके शलए अशवस्मरणीय थे। इन्हीं शदऩों आश्रम मंे एक शस्वस दपां शि शकसी बच्चे को गोद लने े आए। उन्ह़ोंने िीतल को गोद लने े की इच्छा व्यक्त की। बाबा ने उसकी माुँ से रामचादं र के माध्यम से स्वीकृ शत ले िीतल को शस्वस दपंा शि को सौंप शदया। िीतल शस्वटजरलंडै चली गई उसके ठाट-बाट वहाँु बन पडे। एक उत्कृ ष्ट आवास रहन-सहन की आधशु नक सशु वधाएंा और अपने माता-शपता का प्यार सब कु छ बेिमु ार था। िीतल बडी होने लगी, उत्कृ ष्ट शिक्षा पाई और बडी होकर एक शसनमे ा कम्पनी मंे सहायक शनमातत ा बन गई। सब कु छ बहत अच्छा हो गया। िीतल अब शसटोनी नाम पा चकु ी थी। उसका सब कु छ बदल गया था। नाम, भार्षा, विे , जीवन स्तर सब कु छ आमलू पररवशततत हो चकु ा था, शकन्तु जो नहीं बदला था वह था उसके ह्रदय में जागतृ मीतल की याद। उसने अपने शस्वस माँु बाप से अपने परु ाने जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त की। उस दिे , िहर एवां आश्रम का नाम उसने अपनी अशवस्मरणीय उपादाऩों की श्रणे ी में संाग्रशहत कर शलया। कालान्तर मंे उसने शसनमे ा की िशू टंाग के शसलशसले में भारत आने का एक अवसर शमल ही गया। भारत आकर वह मंात्र-मगु्ध थी। उसकी, धशु मल पडी भारतीय पररविे की याद़ों उसके नते ्र-पटल पर अतीत के उन असखां ्य दृश्य़ों की पनु रावशृ ि हो रही थी। वह जाद-ू सा स्पन्दन अपने रोम-रोम मंे अनभु व कर रही थी। यह एक स्वप्न या शनद्रा न थी, भारतीय यथाथत था शजससे वह बहत पहले दरू चली गई थी। शकन्तु अब पनु ः उसके इतने शनकट खडी थी, उसे लगा उसकी बहन मीतल अब जोर से आवाज दके र उसे बलु ा रही ह,ै मैं यहाुँ ह,ँु आओ न बहन। उसका मन व्यशथत हो चला। अब वह मीतल से शमलना चाहती थी शकन्तु उससे शमलने का कोई सतू ्र उसे नहीं सझू रहा था। वह अपने शस्वस माँु-बाप द्वारा बताए िहर मंे गई। उस आश्रम का पता लगाया शजसे 20 वर्षत पवू त छोड उसने पशिम की ओर रुख शकया था। आश्रम के अशभलेख़ों की पडताल करने पर उसे शिक्षक रामचंादर के नाम का ज्ञात हआ जो सदंा भतकतात के रूप मंे वहाां उशल्लशखत था। आश्रम का एक कमतचारी रामचदंा र को जानता था। वह उसे रामचदंा र के गांवा ले गया। रामचादं र अब बढू ़े हो चले थ,े शकन्तु उन्हें यह परू ी घटना याद थी। रामचदां र उसे शलए उसकी बहन की झोपडी की ओर चल पडे। वहाुँ पहचुँ कर शसटोनी ने दखे ा शक एक बढू ़ी स्त्री बैठी है तथा घास का एक गठ्ठर शलए एक अन्य लडकी भी वहाँु आ गई है। रामचादं र सहमे हए थे और शसटोनी बेताब थी। उसने पछू ा, कौन है मरे ी बहन? रामचांदर ने घास का गठ्ठर शसर पर शलए उस लडकी की ओर इिारा शकया। शसटोनी के धैयत का बाधुँ टूट गया। उसने दौडकर मीतल को अपनी बाह़ों में वसै े ही भर शलया जैसे कभी अतीत मंे वह करती थी। रामचंादर ने सारी बातें उनको बताई। मीतल हतप्रभ थी और माुँ स्तब्ध। पररवार के उन टूट चकु े अांग़ों का पनु शमतलन एक अलौशकक स्वप्न की भाशंा त लग रहा था, यह स्वप्न नहीं था यह भतू ल का अटूट सत्य था शजसे धरतीवासी ररश्ते के नाम से सांजोये ह।ंै ------------------ 9

मेरे सपनों का भारत खलु ी आखं ों स,े दखे ा जो सपना, रामननवास मीना ये सपना अब, परू ा होना चाहहए। कर सहायक सारे जहाँा से अच्छा, हहदं सु ्तान होना चाहहए। हनकाल कर कलजे ा, भजे हदया सीमा पर। आंचल मंे छु पकर रोना, कोई उस मााँ से सीख।े हो गया कु बाान, वतन पर, हजसके माथे का हसंदरू , हसं त-े हसं ते सबु कना, कोई उस बवे ा से सीख।े मस्तक झकु जाए, जब कोई फौजी हदख जाए, सीमा के पहरेदारों का, सम्मान होना चाहहए। सारे जहााँ से अच्छा.............. आहखर क्यों ना घमू ंे वो, अके ली, सनू ी सड़कों पर। आंच कभी ना आए, मेरी माता बहनों पर। अगर जवानी, ना रहे वश म,ें हकसी हवस के पजु ारी की, सर उसका कलम, सरेआम होना चाहहए। जहााँ सलामत रह,े एक नारी की इज्जत, मबंु ई शहर जैसा, हर शहर होना चाहहए। सारे जहााँ से अच्छा ................. नींद कै से आएगी साहब, ठंडी सदा रातों म।ें फु टपाथों पर सोने वालों को, एक आहशयाना हमल जाए। कै से सो पाएगी वो मा,ाँ हजसका भखू ा बच्चा सोया ह।ै काश ऐसे लोगों को, दो वक्त का, हनवाला हमल जाए। हमट जाए भ्रष्टाचार इस दशे से, हर हाथ मंे रोजगार होना चाहहए। सारे जहाँा से अच्छा............ 10

हगर जाएगं ी, ये मजहबी दीवारें, जब भाई के गले से, भाई हमल जाएगा बरसगंे ी खहु शयों की, हर तरफ फु हारें, जब गीता और कु रान का, हमलन हो जाएगा नफरतों का खात्मा, पल भर मंे हो जाएगा। जब इसं ान को इसं ान मंे, एक इसं ान हदख जाएगा। ना मोब-हलंहचंग हो कभी, जय श्रीराम बोलकर, अल्लाह के नाम पर भी, आतकं वाद खत्म होना चाहहए। सारे जहााँ से अच्छा ............. कजाा लके र कजा, कभी चुकाया नहीं जाता अंगारों से आग को, कभी बझु ाया नहीं जाता कजा के बोझ से बाहर, हनकल जाए हर इसं ान। ना झलू ंे, फं दा गले में डालकर, इस दशे के हकसान। कजाा माफ हो, या ना हो, लेहकन हकसानों की हालत मे,ं सधु ार होना चाहहए। सारे जहााँ से अच्छा ............... खलु ी आखं ों स,े दखे ा जो सपना, ये सपना अब, पूरा होना चाहहए। सारे जहााँ से अच्छा, हहदं सु ्तान होना चाहहए। 11

स्वच्छता प्रोजेक्ट माननीय आयकु ्त महोदय द्वारा स्वच्छता प्रोजके ्ट के तहत ददनाकंा 23-12-2021 को बहृ न मांबु ई महानगरपादिका, थाडवाडी दहदां ी दवद्यािय में आधारभतू सामग्री का दवतरण के दृश्य 12

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आज की नारी शक्ति राक्तिका यू. क्तिल्ले क्तनजी सक्तिव समाज का महत्वपरू ्ण अगं नारी ह।ै नारी के बिना इस समाज का कोई अबतित्व नहीं ह।ै पहले नाररयों को बसर्ण घर और घर पर काम करने िक ही सीबमि रखा जािा था। उसका ससं ार घर की चारदीवारी िक ही सीबमि होिा था। अि नारी इन सि िंधनों से आजाद ह।ै ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां नारी ने अपने आपको साबिि ना बकया हो। आज मबहलाएं परु ुषों के साथ कं धे से कन्धा बमलाकर चल रही ह।ै चाहे दफ्िर हो, बचबकत्सा क्षते ्र, खेल का मदै ान और प्लने उडाना आबद मबहलाएं सि कु छ कर सकिी ह।ैं पहले मबहलाओं का बिबक्षि होना सही नहीं माना जािा था। उसे पाररवाररक मलू ्यों के नाम पर अपने सपनों को मारना पडिा था। नारी अपनों के साथ अि खदु के बलए भी जी रही ह।ै अि मबहलाएं कमजोर नहीं ह।ैं मबहलाएं परु ुषों की भाँाबि बिबक्षि हो रही हैं और दफ्िरों मंे कायण भी कर रही हैं। जीवन के िकरीिन हर क्षते ्र में चाहे वह राजनीबिक हो या सामाबजक, सरकारी हो या गरै सरकारी नौकरी, नारी हर जगह अपने कदम िढा चकु ी ह।ै नारी को तवावलम्िी और आत्मबनभणर िनने के बलए नौकरी का सहारा लेना पडा। इसके साथ ही नारी िाहरी दबु नया के संपकण मंे भी रहिी ह।ै इससे उनका आत्मबवश्वास िढिा ह।ै वह नौकरी के साथ घर को भी व्यवबतथि िौर पर चलािी ह।ै सारा बदन नौकरी करने के िाद, वह घर पर आकर रसोई और पररवार के सदतयों की बजम्मदे ाररयों को भी सभं ाल लिे ी ह।ै नारी बजम्मेदार पत्नी, मााँ होने के साथ-साथ अपनी नौकरी भी परू ी बजम्मदे ारी के साथ बनभािी ह।ै अि वह नारी नहीं जो घाघँू ट में बछपकर रहिी थी। आज की नारी िबु िमान और बनडर ह।ै वह बकसी भी पररबतथबि से घिरािी नहीं है और उसका मकु ािला भी करिी ह।ै आज इक्कीसवीं ििाब्दी में मबहलाएं बकसी भी वगण की क्यों ना हो, नौकरी कर रही हंै। मबहलाओं की पहचान बसर्ण उनके पबि से नहीं होिी ह।ै आज मबहलाओं ने अपने आपको बसि बकया है बक वह आबथणक रूप से बकसी पर 15

बनभणर नहीं ह।ै परु ुष भी उनकी इस प्रबिभा को जान चुके हैं और मबहलाओं का सम्मान भी करिे ह।ंै मगर आज भी कु छ परु ुष ऐसे हैं बजन्हें मबहलाओं की उन्नबि से परेिानी होिी ह।ै आज मबहलाओं की सोच को घर और िाहर दोनों ही जगह प्राथबमकिा दी जािी ह।ै नारी नौकरी करके अपने पररवार की आबथकण बतथबि को िेहिर करने की चषे ्टा करिी ह।ै आजकल के इस यगु में महगं ाई कार्ी िढ गयी ह।ै नारी नौकरी करके परु ुषों को घर चलाने में सहायिा कर रही ह।ै महगं ाई के इस जमाने मंे परु ुषों की कमाई से घर को चलाना मबु ककल होिा ह।ै जि पत्नी नौकरी करिी है िो घर चलाने की बजम्मेदारी आधी िाटाँ लिे ी ह।ै जि िच्चे अपने माँा को नौकरी करिे हएु दखे िे हंै िो वे खदु बजम्मदे ार िनिे हैं और अपनी मााँ का सहयोग करिे हैं। ऐसे िच्चे भबवष्य में सघं षण करने से घिरािे नहीं ह।ैं आज-कल पररवार छोटे होिे जा रहे हंै। िहरों मंे ज़्यादािर मबहलाएं जि नौकरी करिी हैं िो वह घर के कु छ कायों के बलए नौकर रखिी हंै। कु छ समय के बलए घर को नौकरों पर बवश्वास करके छोडकर चली जािी ह।ैं ऐसी बतथबि में मबहलाओं को घर की दखे भाल करने का वक़्ि नहीं बमल पािा ह।ै मबहलाओं के नौकरी करने से कभी-कभी उनके िच्चों को नौकर के भरोसे या बििगु हृ ों में छोडकर जाना पडिा ह।ै जि वह काम से वापस आिी है िो िच्चो को साथ लेकर आ जािी ह।ै वह नौकरी पर जाने से पहले घर के िहुि सारे कायों को बनपटाकर चली जािी ह।ै इससे मबहलाओ में िनाव भी िढिा है, लेबकन बर्र भी वह काम और पररवार के िीच सिं ुलन िनाने का परू ा प्रयत्न करिी ह।ै ऐसे मंे परु ुष और मबहलाओं दोनों को बमलकर घर का दाबयत्व उठाना होगा। परु ुषों को जरूरि है वह अपनी कामकाजी पत्नी को समझें और घर के सिं लु न को िनाये रखने में मबहलाओं का योगदान द।ंे आज ज़्यादािर मबहलाएं िाहर जाकर नौकरी कर रही ह,ैं लबे कन कु छ मबहलाएं बिबक्षि होकर भी पररवार के उसलू ों के कारर् नौकरी नहीं कर पा रही ह।ंै हमंे इस जज़्िे को समाप्त नहीं होने दने ा ह।ै जि मबहलाएं नौकरी कर रही ह,ैं उनकी आबथणक बतथबि मजििू हो गयी ह।ै समाज मंे उनकी सोच को अहबमयि दी जाने लगी ह।ै अि मबहलाओं को कोई भी चीज परु ुषों से मागं ने की जरूरि नहीं ह।ै मबहलाएं तवयं अपनी चीजें खरीद सकिी हंै और पररवार का सहयोग करिी हैं ------------- 16

हम आजाद हंै आकाश अच्छरा सुपुत्र श्री लाल अच्छरा, अधीक्षक चार कदम चल सके तो आजाद हो तमु , कु छ पल सो सके , कु छ पल हसं सके , अपनों से ममल सके , चाादँ को दखे सके , तो आजाद हो तमु , वो बसै ाकी पर चलने वाले से पछू े, चलने की कीमत, वो सरहद पार हमारे जवानों से पछू ो, सोने की कीमत, वो बंदी बने लोगों से पछू ो, अपनों से ममलने की ताकत वो तनाव में डुबे हएु लोगों से पछू ो, हसाँ ी की कीमत, वो जो कभी ना दे सके उस मासमू आँाखों से पछू ो, चादं को दखे ने की जरु ात, थोडी बगावत, थोडी मिकायत जरुरी है करना, मगर ये तो नहीं मक उन छोटी मिकायत और परेिानी के वजह से आजाद हो तमु ? *********** 17

जीवन मंे ज्ञान का महत्व एस. ओ. शेट्टी अधीक्षक कहते हैं ज्ञान हमारे जीवन का आधार ह।ैं बिना ज्ञान के बिना जीवन सँवारना हमारे बिए काफी मबु ककि हो जाता ह।ै अगर आपके पास ज्ञान ह,ै तो आप जीवन में हर मकु ाम हाबसि कर सकते ह।ंै ज्ञान एक चमु ्िक के सामान होता है जो हमारे आस-पास की ज्ञान रूपी चीजों को अपनी ओर आकबषित करता ह।ै ज्ञान हमारे जीवन में अंधकार रूपी अधँ रे े को दरू भगाता ह।ै ज्ञान के माध्यम से आप िहे तर चीजों और िेहतर समय का उपयोग कर सकते ह।ंै ज्ञान हमारे जीवन में एक महत्वपरू ्ि भबू मका अदा करता ह।ै वास्तव मंे दखे ा जाए तो ज्ञान ससं ्कृ त भाषा का शब्द ह,ै बजसका अर्ि होता हंै िोद्ध होना या जानना। ज्ञान सझू िझू और सकारात्मकता का प्रतीक ह।ै ज्ञान का जीवन में होना काफी महत्वपरू ्ि ह।ै अज्ञान रूपी शख्स बकसी भी काम को करने के बिए उत्तम या उत्कृ ष्ट नहीं होता ह।ै ज्ञान हमारे जीवन मंे उजािा भरने का काम करता है। ज्ञान एक ऐसा िार् ह,ै बजससे आप अपने भबवष्य को एक नई मजितू ी दे सकते ह।ंै ज्ञान को बवज्ञान मंे काफी िडा और ज्यादा महत्त्व बदया जाता ह।ै बकसी भी बवषय को समझने ज्ञान का होना जरूरी ह।ै ज्ञान के बिना जीवन की बकसी भी परीक्षा को पास करना मबु ककि होता ह।ै ज्ञान के िारे मंे पढ़ना, इसके बिए भी ज्ञान का होना आवकयक है क्योंबक ज्ञान का क्षेत्र काफी िडा है। ज्ञान और भी कई अिग-अिग भागों में िंटा होता है जैसे पसु ्तकों से ज्ञान, सामान्य ज्ञान इत्याबद। 18

ज्ञान एक चमु ्िक की भांबत हमारे जीवन मंे काम करता ह।ै हमारे जीवन मंे ज्ञान का काफी महत्त्व ह।ै ज्ञान के बिना हम कोई भी काम आसानी से नहीं कर पाते ह।ै ज्ञान हमारे जीवन का मखु ्य आधार ह।ै अगर जीवन मंे सफि होना होना है तो उसके बिए ज्ञान का होना जरूरी ह।ै ज्ञान जीवन के काफी जरूरी होता ह।ै जीवन मंे सफि होने का आधार ही ज्ञान ह।ै जीवन को मोड दने े के बिए ज्ञान काफी महत्वपरू ्ि योगदान बनभाता ह।ै चमु ्िक के समान ही हमारा ज्ञान भी होना चाबहए। बजस तरह चमु ्िक आस-पास की अच्छी चीजों को अपनी ओर खींचता ह,ै उसी तरह ज्ञान भी अपनी ओर चीजों को आकबषति करता ह।ै ज्ञानाजनि की शरु ूआत बकसी मनषु ्य के जीवन में आते ही शरु ू हो जाती ह।ै ज्ञान के के वि स्पशि मात्र से हमंे पता चि जाता है बक कोई अपना है और कौन पराया है और हमारे सार् सौतेिा व्यवहार करता ह।ै ज्ञान शब्द काफी छोटा है परन्तु इसका अर्ि काफी िडा ह।ै ज्ञान हमारे जीवन की सफिता की कंु जी ह।ै अगर जीवन में सफि होना है जो हमारे जीवन में अच्छे ज्ञान का होना जरूरी ह।ै अगर आपके पास अच्छा ज्ञान है तो आप कही भी बवफि नहीं होंगे। ज्ञान भी अिग-अिग प्रकार का होता ह।ै एक मनषु ्य के जन्म से िके र उसकी मतृ ्यु तक ज्ञान का काफी िोि-िािा रहता ह।ै जीवन के शरु ूआत के समय मंे हमारे माता-बपता हमें वो ज्ञान दते े हंै जो हमारे जीवन के शुरूआती दौर में काम आता ह।ै जीवन में आगे िढ़ने के सार् हमारे पररवारजन और ररकतेदार भी हमें कई प्रकार के ज्ञान की िातंे िताते हंै जो बक हमें आगे िढ़ने को प्रोत्साबहत करती ह।ै कािांतर मंे हम जि हम बवद्यािय जाते ह,ंै ति हमंे िहुत सी िातें सीखने को बमिती हंै परंतु उसमंे से हमंे अपने जीवन में उतारनी हैं या नहीं, यह इस िात पर बनभिर करता हैं बक हम ज्ञान प्राबि कहाँ से कर रहे ह।ैं ज्ञान हमारे जीवन की अहम कडी होता ह।ै जीवन मंे सफि होने के बिए ज्ञान एक कंु जी की तरह काम करता ह।ै बिना ज्ञान के कोई भी मनषु ्य अँधरे े में ही रहता ह।ै ज्ञान सफिता की पहिी कंु जी ह।ै 19

वकृ ्षारोपण आजादी के अमतृ महोत्सव के तहत माननीय आयकु ्त महोदय द्वारा पयाावरण सरं क्षण की ददशा में दकए गए वकृ ्षारोपण की झलदकयाँा 20

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सजनज के क्षण शितेि श्रीवास्तव कर सहायक एक क्षण भर और रहने दो मझु े अभभभतू भिर जह ाँ मैनं े सँाजो कर और भी सब रखी हंै ज्योभत: भिख एाँ वहीं तमु भी चली ज न ि तां तेजोरूप। एक क्षण भर और : लम्बे सजनज के क्षण कभी भी हो नहीं सकत।े बदाँू स्व ती की भले हो बेधती है ममज सीपी क उसी भनमजम त्वर से वज्र भजससे िोड़त चट्ट न को भले ही भिर व्यथ के तम मंे बरस पर बरस बीते एक मकु ्त -रूप को पकत।े -अज्ञेय 23

प्रशासनिक शब्दावली..... 24

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ग़ज़ल चन्दन बिष्ट सहायक आयकु ्त (सेवाबनवतृ ्त) ख़्वाबों का आसमान सजाने चला हँू म।ंै सरू ज को अब रक़ीब¹ बनाने चला हूँ मं।ै पानी में कु छ चचराग़ जलाने चला हँू म।ंै यूँ अक्स-े माहताब² चमटाने चला हँू म।ंै करते हंै एहचतजाज³ अँूधरे े, चकया करें! जगु नू को आफ़ताब4 बनाने चला हूँ मै।ं क़ज़्ज़ाक़5 तीरगी6 के मझु े टोकने लगे, राहों मंे क्यों चचराग़ जलाने चला हँू म।ैं लाया हँू कु छ उसलू 7 अना8 ख़चच के चलए, चसक्के परु ाने आज भनु ाने चला हूँ म।ंै यारो दआु करो चक कोई हादसा9 न हो, ररश्ते ईमानदार चनभाने चला हँू म।ैं मेरी तो ये मशाल फ़क़त10 रोशनी की ह,ै उनको शबु ्हा¹¹ है आग लगाने चला हँू म।ंै चदल की तमाम दौलतंे दचु नयाूँ मंे छोड़कर, अबरूह की ख़ैरात¹² कमाने चला हूँ मैं। ऐसा हुआ चक ख़दु को कहीं भलू ता गया, चजस चदन से तरे ी याद भलु ाने चला हूँ मैं। 29

[1.प्रचतद्वंद्वी 2.चादूँ का प्रचतचबम्ब 3.चवरोध 4.सरू ज 5.डाकू /लटु ेरे 6.अधँू रे ा 7.चसद्ातं 8.अह/ं स्वाचभमान 9.दरु ्टच ना 10.के वल/चसफ़च 11.सदं हे /शक़, 12.दान] 30

स्वच्छता पखवाडा एवं शपथ ग्रहण समारोह के दृश्य 31

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मांा का वात्सल्य अनिता एि. नवचारे प्रशासनिक अनिकारी सनु कर बडा अटपटा लग रहा होगा न, लेककन ये हमारे समाज की एक ऐसी सच्चाई है कजसे नकारा नहीं जा सकता, अक्सर लोग अपनी मंकजल पा लेने के बाद अपनी मां को अनपढ़ कहते ह…ंै .. दोस्तों मरे े ख्याल से मााँ एक ऐसा शब्द ह,ै कजसके आगे ‘अनपढ़’ शब्द लगाना, ककसी मंकदर के सामने ‘शराब की दकु ान’ लगाने के बराबर ह।ै जी हााँ…. क्योंकक मेरा मानना है दोस्त, कक एक मकहला भले ही अनपढ़ हो सकती ह,ै मगर एक मां कभी अनपढ़ नहीं हो सकती!!!! हाँा मंै इस बात को मानती हाँ, हाँा मंै इस बात को मानती ह,ँा कक वो ककताबों मंे कलखे चंद शब्दों को नहीं पढ़ सकती, मगर एक माँा जो पढ़ सकती ह,ै वो दकु नया की कोई शकससयत नही पढ़ सकती।। अरे दकु नयां वाले तो कसर्फ कलखावटे पढ़ते हंै दोस्त, मेरी अनपढ़ माँा तो, मरे ी भावनाएं पढ़ लेती ह।ै मरे ी मसु ्कान के पीछे कछपी, मेरी जरूरतंे जान लते ी ह,ै क्या कह रहा है मरे ा उदास चेहरा, मााँ पहचान लते ी ह।ै मेरा दद,फ मेरी उदासी, मरे े ख्वाब पकड़ लेती ह,ै और लोग कहते हंै माँा अनपढ़ होती है, और वो अनपढ़, मेरी आखं ों से कगरत,े आंसुओं को भी पढ़ लेती ह।ै । हाँा सच ही कहते हंै लोग, माँा अनपढ़ ही नहीं गवार भी ह।ै हााँ सच ही कहते हंै लोग, 33

माँा अनपढ़ ही नहीं गवार भी ह।ै । तभी तो दाल रोटी मागं ने पर, थाली में घी और अचार भी रखती ह।ै । साकथयों, दकु नया की हर मााँ अपने बच्चे की पहली गरु ू होती ह।ै बच्चों के साथ-साथ वो उसके गणु ों एवं संस्कारों की भी जननी होती ह।ै एक मााँ खदु अकशकित होते हएु भी अपने बच्चों के कलए सदा ऐसे आदशफ स्थाकपत करती है कजनका अनसु रण करके बच्चे कनत्य नई-नई बलु ंकदयों को छू ते रहते ह।ैं कोई कशिक, कोई डॉक्टर, कोई इजं ीकनयर तो कोई राजनेता इत्याकद बनकर माँा की ममता का मोल चकु ाने की कोकशश करते ह।ंै मगर दोस्त, चाहे मााँ कशकित हो या अकशकित, उसकी ममता का ऋण उतारना ‘असंभव’ ह।ै मेरी ये ककवता माँा के हर उस बच्चे के कलए हंै (चाहे वो लड़का या लड़की), जो बलु ंकदयों को छू लेने पर मााँ मंे ककमयाँा कनकालता ह,ै मााँ को अनपढ़ बोलता है और माँा के बढु ़ापे में अपनी कजम्मदे ाररयों से दरू भागता ह।ै मंै आपको बता दँाू कक इस परू ी दकु नया मंे - परू े ब्रह्माण्ड मंे एक माँा का ही प्यार ऐसा है जो कनिःस्वाथफ होता है तो आप भी अपनी माँा को कबना मतलब प्यार करंे। उसके अंकतम समय मंे अपनी मााँ का भी मााँ बनकर उसका साथ द.ंे .. 34

यात्रा वतृ ्ांात (एम्बी वैली नसटी) आर. एस. चौहान सहायक आयकु ्त (सेवाननवतृ ) एम्बी वैली सिटी मबंु ई िे 120 सिलोमीटर, पणे िे 87 सिलोमीटर और लोनावाला िे 23 सिलोमीटर िी दरू ी पर मंुबई-पणे राजमार्ग पर सथित ह।ै यह भारत िा प्रिम सनयोसजत सहल सिटी हlै यह शहर िड़ि मार्ग द्वारा महाराष्ट्र िे एि अन्य प्रमख पवगतीय शहर महाबलेश्वर िे जड़ा हआु ह।ै इिे िहारा इसंु िया पररवार द्वारा सविसित सिया र्या ह।ै इि िा थवासमत्व और िञ्चालन पणू गतः िहारा और उििे िम्बसन्ित िंु पसनयों िे पाि ह।ै इि शहर िी थिापना वर्ग 2006 में हईु िी। यह शहर 10,600 एिड़ में िह्यासि पवगत शखंु ला िे पहाड़ी भ-ू भार् मंे व्याप्त ह।ै एम्बी वैली सिटी मंे एि हवाई पट्टी भी ह,ै जो वतमग ान में िायरग त नहीं ह।ै यहााँ औितन जनू िे सितम्बर महीने में 4,000 समलीमीटर वर्ाग होती ह।ै यहांु लर्भर् 600 िे 800 आसलशान बुंर्ले ह,ैं सजनिी िीमत 5िरोड़ िे20 िरोड़ ति ह।ै इििे थिापना िे िमय िे ही इिे सवत्त और िानूनी िंुिटों िा िामना िरना पड़ा ह।ै 35

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निराशा से कै से बाहर निकिें आर. जी. दास,े अधीक्षक निराशा एक ऐसा शब्द है निसका अर्थ है िीवि का एक ऐसा चरण िब अपिी समस्याओं से निपटिे के निए आपके पास और अनिक नहम्मत िहीं होती है िने कि क्या यह वास्तव मंे सच ह?ै िब एक सापं आपको काटिे आता है तो क्या होता ह?ै क्या आप चपु रहगंे े और कहगंे े नक इसे मझु े काटिे दो क्योंनक मझु मंे इससे निपटिे की नहम्मत िहीं है या निर आप वहां से नकसी गोिी की रफ्तार से भागेगं े। वास्तव मंे, आपके पास कई नवकल्प र्े, िैसे आप उस पर कोई पत्र्र िें क सकते ह,ैं अगर आपके पास कोई छडी है तो आप उसकी मदद से सांप को खदु से दरू कर सकते हंै और अगर वे दोिों चीिंे काम िहीं करती ह,ंै निर तो भागिा ही आनखरी रास्ता ह।ै मरे े निए निराशा का अर्थ कु छ ऐसा ह,ै िब आप नििीव या असहाय होते हंै और कु छ भी िहीं कर सकत।े यह के वि तब होता है िब आपके पास कोई भी अन्य नवकल्प िहीं होता हैं और मेरे निए, अतं तः यह मौत के समाि ह।ै आप अपिे िन्म या मतृ ्यु को नियनं ित िहीं कर सकते 38

ह,ैं िेनकि आप दनु िया के बीच निस तरह से रहते ह,ंै बढ़ते ह,ैं सोचते ह,ैं िीवि हमारे ऊपर ह,ै उसे नियनं ित कर सकते ह।ैं यह संभव है नक हम अपिे िीवि मंे कु छ समस्याओं का सामिा कर सकते ह,ैं िने कि यहाँा हमेशा एक समािाि पीछे रह िाता ह,ै निसे हम नसिथ अपिी चते िा की कमी के कारण िहीं दखे पाते ह,ंै हम उदास, हताश महससू करते हैं और ये सभी गनतनवनियां हमंे कु छ भी बहे तर सोचिे की अिमु नत िही दते ी ह।ैं स्कू ि मंे एक बच्चा हतोत्सानहत महससू कर सकता ह,ै तो उसे क्या करिा चानहए? उसे सारा नदि रोिा शरु ू कर दिे ा चानहए और स्कू ि िािा बदं कर दिे ा चानहए? बेशक, िवाब 'िा' होगा, तो आप िीवि मंे छोटी चीिों के बारे मंे दखु ी क्यों होते ह?ैं हम सभी अपिे िीवि में उतार-चढ़ाव का सामिा करते हैं और हमंे उिसे निपटिा और उन्हें हि करिा सीखिा चानहए। एक भ्रनमत, उदास और क्रोनित मि ि कभी सोच पाता है और ि ही कोई सटीक समािाि निकाि पाता है इसनिए नस्र्नत िो भी हो, दखु ी िहीं होिा चानहए। सकारात्मक रहें और आप इससे निपटिे के निए एक िया तरीका निकाि िंेग।े अंततः कायािथ य के सभी अनिकाररयों एवं कमथचाररयों से मेरा यह अिरु ोि है नक मरे ी सेवानिवनृ ि के पश्चात भी मझु े यनद कायािथ य की वर्थ-भर मिाई िािे वािी सभी नवनभन्ि गनतनवनियों में कायथ करिे का मौका नदया िाए तो मझु े बहुत खशु ी होगी। मंै स्टाि के वेल्िे अर की गनतनवनियों मंे तर्ा अन्य सभी सामानिक गनतनवनियों में, िो हमारे कायाथिय से सबं ंनित ह,ै उसमंे अपिा योगदाि दिे ा चाहता ह।ँा सेवानिवनृ ि के पश्चात का िीवि भी मंै कायािथ य को समनपथत करिा चाहता ह।ाँ ************* 39

आजादी के अमतृ महोत्सव की झलककयाँा 40

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जड़ बनाम चेतन मन तपन कु मार माइतत कर सहायक मनषु ्य के मन के मखु ्य रूप से दो भाग होते ह।ंै पहला चते न मन और दसू रा अवचते न मन। इसे व्यक्त मन तथा अव्यक्त मन भी कहा जाता ह।ै यह चते न मन का ससद्ांता सबसे असिक ससगमांड फ्रायड द्वारा ही प्रससद् सकया गया ह।ै मनषु ्य का चेतन मन के वल 10 फीसदी ही होता ह,ै इसी के द्वारा हम सोचते समझते तथा बोलते है सजनका हमंे पता होता ह।ै इसी तरह अवचेतन मन सजसके बारे में हमें पता नहीं होता है, यह मन का 90 फीसदी सहस्सा होता है, सजसमें हमारे सवचार, भावनाए,ां इच्छाएां और आदतें होती ह।ंै सामान्यतः हमंे मन के इस सहस्से ही जानकारी नहीं होती ह।ै उदाहरण- सजस उदाहरण का उपयोग चेतन मन का कांासेप्ट समझने के सलए सबसे असिक सकया जाता ह,ै वह है समनु ्र में तैरता एक बफफ का टुकडा। इसकी खास बात यह होती है इसका के वल 10 प्रसतशत भाग ही ऊपर नज़र आता ह,ै बाकी का 90 फीसदी सहस्सा पानी के अंदा र होता ह,ै ठीक इसी तरह हमारा चते न मन भी होता ह।ै हमारा चेतन मन सवाल खडे करता ह,ै तकफ करता है और सोच समझकर सनणफय लते ा ह।ै एक उदहारण द्वारा इसकी कायपफ ्रणाली को समझने का प्रयास करते हैं। सकसी भी अभ्यास मंे जब हम पारंागत हो जाते हंै तब हमारा मन उसे आदत के रूप मंे ले लेता ह।ै जैसे हम बाइक चलाना सीख जाते हंै तो ब्रेक, क्लच और एक्सीलेटर पर हमारे हाथ पैर अपने आप चलने लगते ह।ैं 42


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