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Shekhchilli Ki Anokhi Duniya (Hindi)

Published by THE MANTHAN SCHOOL, 2022-07-08 08:41:21

Description: Shekhchilli Ki Anokhi Duniya (Hindi)

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िवषय सचू ी 1. अब न लँूगा कभी कटोरे क त ली म तेल 2. अ बू ने मुझे य मारा? 3. अ लाह नह , शेखिच ली का घर 4. अनाम मिं जल क ओर 5. अपना नाम शेखिच ली है जनाब! 6. अपनी रईसी खाक म िमल गई 7. बखु ार तो बखु ार ह,ै आदमी को हो या खरु पी को 8. चैराहे से ससुराल तक 9. चोरी न करने का सकं प 10. द ली से मोहभंग 11. दने ा-एक गज दधू ! 12. द ली म शेखिच ली 13. जज साहब क ससरु ाल म 14. काले धागे म िज दगी 15. कु यात इनामी डकै त का सफाया 16. न रहगे ा बासँ , न बजगे ी बाँसरु ी 17. ससरु ाल म शेखिच ली क शोहरत

18. शखे िच ली क ल दन-या ा 19. शखे िच ली को िमला कले म मकान 20. शखे िच ली ने दकु ान खोली 21. िसर मुड़ाते ओले पड़े 22. ताजमहल बचे ूँगा तब न!

अब न लगँू ा कभी कटोरे क त ली म तले अजमेर शरीफ क या ा के आर भ म ही शखे िच ली को सच बोलना महगँ ा पड़ा क या ा का मजा ही जाता रहा। शखे बद ीन ने भी महसूस कया क उनके चाँटे ने शखे ू क रेल- या ा का मजा कर करा कर दया ह।ै उ ह ने या ा के दौरान इस बात का परू ा यान रखा क शखे ू को कोई बात बुरी न लगे। अपने अ बू क द रया दली के कारण शेखिच ली उनके चाँटे क पीड़ा भलू गया मगर उसके दलो दमाग को यह सवाल उ िे लत करता रहा क अ बू ने मझु े य मारा? अजमेर से लौटने के बाद शखे िच ली रोज क तरह मदरसे जाने लगा। शखे बद ीन आम दन क तरह खते का काम दखे ने जाने लगे। रसीदा बेगम घर के कामकाज म लग ग । रसीदा बेगम ने महसूस कया क शखे ू कभी-कभी अचानक ही उदास हो जाता है और घंट उदास रहता ह।ै एक दन शेखू को उदास दखे कर रसीदा बेगम ने उसे लाड़ दते े ए पूछा-‘‘बेटा, तमु इतने गमु सुम य हो? या सोच रहे हो?’’ ‘‘कु छ नह अ मी!’’ शखे िच ली ने सहजता से उ र दया मगर रसीदा बेगम उसे पचु कारते ए बोल -‘‘मरे ा राजा बटे ा! अपनी अ मी को नह बताएगा?’’ अपनी अ मी क पुचकार पाकर शखे िच ली िपघल गया और सुबकते ए कहने लगा-‘‘अ मी! मरे ी समझ म नह आ रहा क अजमरे जाते समय रेलगाड़ी म अ बू ने मझु े चाँटा य मारा। म तो उनक गलत-बयानी ही सुधार रहा था। म चार साल कब का पार कर चुका ।ँ अ बू ने मदरसे म मरे ी उ खदु चार साल िलखाई ह।ै उस दन टकट मागँ नेवाले से वे मरे ी उ तीन साल बता रहे थे...मने सोचा क भूलवश अ बू ऐसा कह रहे ह, सो मने अपनी उ सधु ारकर बता दी...और अ बू खफा हो गए...आिखर य अ मी? यही सवाल मझु े हमेशा हरै ान करता ह।ै ’’ ‘‘अ छा, मेरे बेटे! अब इस सवाल को अपने दमाग से झटक द।े अ बू खफा ए तो या! आिखर तु हारे अ बू तु ह यार भी तो करते ह!’’ शखे िच ली क बात सुनकर रसीदा बेगम का मन भर आया था। वाकई इस ब े ने तो कोई गलती क ही नह थी!... रात को सोते समय रसीदा बेगम ने शेख बद ीन को शखे िच ली के दल क हालत का खुलासा कया।

बेटे के मन म घुमड़ते सवाल को जान लेने के बाद शखे बद ीन ब त दखु ी ए और रसीदा बगे म से कहा-”वाकई रसीदा! सच पूछो तो गलती सरासर मेरी थी। एक ब े का टकट नह लने ा पड़,े इस लोभ म मने टी. टी.ई. से उसक उ तीन साल बता दी मगर शेखिच ली ने यह समझा क मुझे उसक सही उ याद नह है िजसके कारण उसने तरु त सधु ार कर अपनी सही उ बता दी। सचमचु मझु े ब त अफसोस है क मने उसे चाटँ ा मारा। अब गलती तो हो चकु । तुम शखे िच ली के मन से ये सारे खयालात हटाने के िलए उसे घर के कामकाज म लगाए रखा करो। मदरसे से लौटने पर हाथ-मुँह धलु ाकर कु छ ना ता कराने के बाद उसे घर के छोटे-मोटे काम म लगा दो...इस तरह वह धीरे-धीरे दिु नयादारी क बात भी समझने लगगे ा। ब त सारी बात िसखाई या बताई नह जात ...तजबु से आती ह।“ ”हा,ँ ज र! म ऐसा ही क ँ गी...तमु भी शखे ू से बात- वहार करते समय इस बात का खयाल रखना क वह वाकई ब त सीधा है और दिु नया के छल- पचं वह िबलकु ल नह समझता ह।ै “ इस तरह अपने घर म शेखिच ली को दिु नयावी िज दगी का सलीका िसखाने के िलए एक सधी ई तैयारी शु हो गई। दसू रे दन शखे िच ली मदरसे से लौटा तो उसक अ मी ने उसे एक चव ी थमाते ए कहा-‘‘बेटा, यह कटोरा लते ा जा और चार आने का सरस का तले ले आ। हा,ँ यान रखना-यह चव ी खोटी ह।ै न जाने कसने हम यह चव ी थमा दी! जसै े कसी ने यह चव ी दके र हम ठगा है वसै े ही हम य द इस चव ी को कह और चला ल, तो इसम कोई बरु ाई नह ह।ै यह बात म तु ह इसिलए बता रही ँ क य द कोई दकु ानदार यह चव ी खोटी बताकर लौटा दे तो तुम िनराश मत होना और दसू री दकु ान क ओर चले जाना। थोड़ा धयै से काम लोगे तो यह चव ी कह -न-कह अव य चल जाएगी।’’ हाथ म खोटी चव ी और कटोरा लेकर शखे िच ली घर से िनकला। ऐस,े जैसे कसी बड़ी मुिहम पर जा रहा हो! उसे मन-ही-मन गव भी हो रहा था क उसक अ मी ने उसे एक िवशषे काम से बाजार भजे ा ह।ै खोटी चव ी चलाने के िलए शखे िच ली को अिधक मश त नह करनी पड़ी। सव थम वह िजस दकु ान म गया उस दकु ानदार ने उससे चव ी लेकर िबना उस पर यान दए ही ग ले म डाल िलया और शखे िच ली के कटोरे म तले डालने लगा। अपनी मुिहम क सफलता से शेखिच ली मन-ही-मन ब त खुश आ तभी दकु ानदार क आवाज ने उसे चका दया। दकु ानदार उससे पूछ रहा था-‘‘अरे! तु हारा कटोरा तो बीस पैसे के तेल म ही भर गया...बताओ, पाँच पैसे का तले कहाँ डालँू?’’ इस सवाल से शेखिच ली का दमाग ही घूम गया...मगर उसने तरु त अपने पर काबू पाया और कटोरे को उलटकर दकु ानदान से कहा-‘‘लो, कटोरे क त ली म डाल दो!’’

कटोरा उलटने से कटोरे म रखा गया तेल पनु ः दकु ानदान के तेल के मतबान म िगर गया और कटोरे क त ली म तले िलये शखे िच ली दकु ान से बाहर आया और सड़क पर दौड़ लगाते ए चीख पड़ा-”चल गई भाई, चल गई!“ उसे भीड़-भरे बाजार म इस तरह चीखकर दौड़ता दखे बाजार क सड़क पर चल रहे लोग भौच े हो गए और िबना कु छ सोचे-समझे शखे िच ली क तरह ही दौड़ने लगे। दखे त-े ही-दखे ते पूरे बाजार म भगदड़ मच गई। उन दन बाजार म कु छ गुंडे हाथ म तमचं ा नचाते ए आते थे और दकु ानदार से मनचाही रकम वसूल कर ले जाते थ।े शेखिच ली क रट ‘चल गई’ से लोग ने यही समझा क शायद कसी मवाली ने गोली चला दी ह।ै दकु ानदार को भी इसी तरह ‘चल गई’ क सूचना िमली तो आनन-फानन म दकु ान के दरवाजे ब द होने लग।े हर तरफ हड़ब ग-सा मच गया। इसी बीच बाजार म करमू चाचा ने शखे िच ली को हाथ म कटोरा िलये भागते दखे ा तो पछू बैठै-‘‘का चल गई बेटवा?’’ करमू को दखे कर शखे िच ली ठमका और बोला-‘‘अ मी ने एक चव ी दी थी-खोटी चव ी, वही चल गई चाचा!’’ इतना कहकर शखे िच ली फर घर क ओर दौड़ पड़ा। उसका मन बि लय उछल रहा था और वह ज दी-से-ज दी अपने घर प चँ कर चव ी चल जाने क सचू ना दने े के िलए बेताब था। दसू री तरफ जब करमू को ‘चल गई’ क हक कत मालूम पड़ी तब उसने दकु ानदार को तस ली बँधाई क दहशत क कोई बात नह ह।ै लोग एक ब े क अधरू ी बात सनु कर घबरा गए ह िजससे बाजार म अफरा-तफरी का माहौल ह।ै करमू के समझान-े बझु ाने से बाजार का माहौल सामा य हो पाया। उधर शेखिच ली जब अपने घर प चँ ा तब अ मी ने उसे उलटा कटोरा पकड़े दखे कर पूछा-‘‘ य शखे ू! तले नह िमला या चव ी नह चली?’’ ‘‘चव ी चल गई, अ मी!’’ शखे ू ने खुश होते ए जवाब दया। ‘‘चल गई? तो या चार आने का तले तू कटोरे क त ली म लेकर आया ह?ै ’’ अ मी के सवाल पर चकै ा होते ए शखे िच ली ने कटोरे को सीधा कया और कहा-‘‘बाक तले इधर है अ मी।’’ मगर यह या...शेखिच ली का दमाग एकबारगी घमू गया। कटोरा तो खाली था। खाली कटोरा दखे कर शेखिच ली ने घबराकर कहा-‘‘अ मी! सच कहता -ँ बीस पसै े के तेल से यह कटोरा भर गया था, तब दकु ानदार ने मुझसे पछू ा था क पाचँ पैसे का तेल कहाँ डालँ?ू मने कटोरा उलटकर इसक त ली म पाचँ पैसे का तले डलवा िलया और वहाँ से सीधे घर आया...मुझे नह मालूम क कटोरे का तले कहाँ गया?’’

रसीदा बेगम अपने बेटे क मासूिमयत पर फदा हो ग । डाटँ का एक जमु ला भी उनके मुँह से नह िनकला...मन-ही-मन रसीदा बेगम ने सोचा- ‘खोटी चव ी न होती तो दखु होता...’ और कट तौर पर वे शखे िच ली को कटोरे का उपयोग करना बताने म लग ग । िबना डाँट सनु े ही शखे िच ली क समझ म आ गया क उससे कै सी गलती हो गई ह।ै उसने मन-ही-मन सकं प कया क वह अब कभी भी कटोरे क त ली म तेल नह लगे ा।

अ बू ने मुझे य मारा? शेखू आिखर शेखिच ली बन ही गया। मदरसे म जाने पर उसे मालूम आ क वह चार साल का ह।ै मदरसे से उसे पहली तालीम यही हािसल ई क य द कोई उससे उसका प रचय पछू े तो वह बताएगा क उसका नाम शखे िच ली व द शखे बद ीन ह।ै और अगर इसके बाद उससे कोई उसक उ पूछे तो वह बताए क उसक उ चार साल ह।ै अममू न रोज ही उसे अपना प रचय दने ा िसखाया जाता। शखे ू होिशयार तो था मगर उसक होिशयारी म मासूिमयत ब त थी िजसके कारण ायः उसे मौलाना साहब क डाटँ पड़ जाती। इसी डाँट के डर से उसे अपना प रचय और अपनी उ अ छी तरह याद हो गई। अिलफ, बे, ते भी उसने खूब महे नत करके सीख िलया। मदरसे के छह माह परू े होने पर शखे साहब एक दन उसक तालीम के बारे म द रया त करने के िलए मदरसे प चँ ।े मौलाना ने उ ह बताया क शखे िच ली अ य लड़क से इस मामले म बेहतर है क उसे जब कोई बात बताई जाती ह,ै तब वह उस बात को इतनी बार रटता है क वह बात उसे इस तरह याद हो जाती है िजसे कभी भलू ा ही नह जा सकता। मगर शखे िच ली म एक ऐब भी है क उसे जो कु छ भी याद हो जाता है उसम वह कोई सुधार करना सोच ही नह सकता। मौलाना का कहना था क अभी क पढ़ाई के िलए तो यह बात ठीक है मगर रोज बदलती दिु नया म शखे ू का यह गुण आगे क पढ़ाई के िलए ठीक नह है य क रोज नई खोज हो रही ह, रोज नए आिव कार हो रहे ह इसिलए छा ा को तो लचीली सोच का होना ही चािहए मगर शखे िच ली अगर ‘क’ से कबूतर सीखेगा और उसे कोई ‘क’ से कलम पढ़ाए तो वह अड़ जाएगा क ‘क’ से कलम नह , कबूतर होता ह।ै शखे बद ीन यह सनु कर थोड़े दखु ी ए मगर मौलाना ने उ ह तस ली दी-‘‘इसम दखु ी होने क कोई बात नह ह,ै समय आने पर सब ठीक हो जाएगा। शेखिच ली अभी ब ा है और खदु ा क खैर मािनए क समय रहते उसक कमजोरी हम लोग क समझ म आ गई ह।ै हम लोग उसक यह कमी दरू करने म कोई कसर नह छोड़गे। वैसे आपको जानकर खशु ी होगी क शेखिच ली ने छमाही परी ा म अपनी क ा म सबसे अिधक अंक हािसल कए ह। यह उपलि ध उसक उसी कमी क बदौलत ह।ै वह अपनी धनु का प ा है और बताई गई बात को कसी भी क मत पर याद रखना चाहता ह।ै उठत-े बैठत,े चलते- फरते आप उसे बदु बदु ाते ए दखे गे... जब भी आप उसे बुदबदु ाते ए दखे तो समझ जाएँ क वह कु छ याद करने क कोिशश कर रहा ह।ै “ शखे ू के बारे म शेख बद ीन को यह नई जानकारी िमली। वे मदरसे से घर वापस आ गए। रसीदा बगे म को उ ह ने सारी बात बता । रसीदा बगे म ने ढाढ़स बँधाते ए

कहा-‘‘मौलाना ने अपने शेखू म जो किमयाँ बताई ह, दखे लेना, एक दन वही किमयाँ शखे ू क िवशषे ता बन जाएगँ ी और उन किमय क बदौलत ही शखे ू क दशे -दिु नया म शोहरत होगी। वह छमाही परी ा म जैसे अ वल आया है वैसे ही सालाना परी ा म भी अ वल आएगा।’’ रसीदा बेगम क बात सनु कर शेख बद ीन क िच ता कम हो गई और वे अपनी बगे म के साथ बैठकर सनु हरे कल के ताने-बाने बनु ने लग।े बात चली तो चलती ही गई। अचानक रसीदा बगे म को याद आया क शेखिच ली के िलए उ ह ने अजमरे वाले बाबा क म त मागँ ी थी। याद आते ही रसीदा बगे म ने शेख बद ीन से कहा-‘‘ऐ जी! शखे ू जब गभ म था तब ही मने अजमेर वाले बाबा क म त माँगी थी। अब शखे ू चार साल से भी यादा का ह,ै हम चलकर म त उतारनी चािहए। हो सकता है क म त उतरने पर शेखू का दमाग और उसक सोच दु त हो जाए! अजमरे वाले बाबा के बारे म मने सनु रखा है क उनके दरबार से कोई खाली नह लौटता ह.ै ..चलो न! एक म त पूरी हो चुक ह.ै ..हम वह म त तो उतारनी ही होगी...वह अजमेर वाले बाबा के सामने अपने शखे ू क सम या भी रख आएगँ े। बाबा ही उसका िनदान करगे और उसे दु त दमाग ब शग।े ’’ शेख बद ीन को इनकार करते नह बना। उ ह ने रसीदा बेगम को िव ास दलाया क खते -पथार का ब दोब त दखे कर दो-चार दन म अजमेर चलने का इ तजाम कर लग।े अपने पित क इसी आदत पर फदा थ रसीदा बगे म। मुहँ से कु छ िनकला नह क वे उसको परू ा करने म लग जाएँगे...! अपनी बगे म से बात करने पर शखे बद ीन का मन शा त हो गया। शखे ू के बारे म जो अजीबोगरीब खयालात उनके मन म आने लगे थे, वे वतः दरू हो गए। अब उनके मन म अजमेर या ा को लेकर नए खयाल उभरने लगे। कई वष हो गए, वे गावँ से बाहर नह िनकले। शखे ू ने तो गावँ से बाहर का जीवन ही नह दखे ा ह!ै शेख साहब सोच रहे थे क यह पहला मौका होगा जब शेखू रेलगाड़ी दखे ेगा, मोटरगाड़ी, बस, र शा-सबक सवारी कराऊँ गा उसे। अजमरे जाने से पहले पसै का अ छा ब दोब त कर ल.ूँ ..ता क बेगम क कोई वािहश अधरू ी न रहे और शखे ू को भी यह सफर याद रहे क अ बू के साथ गए तो रेलगाड़ी पर चढ़े, मोटरकार पर सफर कया, बस पर बठै े... र शा पर घमू .े ..। इस तरह शखे बद ीन ने पसै े का ब ध कर िलया और एक दन अजमरे जानवे ाली ेन का टकट कटाकर ले आए। रसीदा बेगम क खिु शय का ठकाना नह रहा। शेखू के ज म के बाद से वह भी कह घमू ने नह गई थ । शखे बद ीन क ओर दखे कर रसीदा बगे म ने अनुमान लगा िलया क इस या ा को लेकर शखे साहब भी खशु ह। रसीदा बेगम ने खुशी- खुशी सामान सहजे ा। रा ते म खाने के िलए मठ रयाँ और नमक न तयै ार कया। जब अपने ढंग से उ ह ने या ा क तैया रयाँ मुकि मल कर ल तब शेख साहब से कहा-‘‘ऐ जी! अजमेर वाले बाबा के पास जाने के िलए मने सारी तैया रयाँ परू ी कर ली ह।’’

शखे बद ीन अपनी बेगम क उ सुकता समझ रहे थ।े उ ह ने मु कु राते ए कहा-‘‘ठीक है बगे म! हम लोग अपने घर से सुबह चार बजे िनकलगे। हमने कम ँ िमयाँ को बलै गाड़ी लते े आने को कहा ह।ै बलै गाड़ी से कम ँ िमयाँ हम टेशन छोड़ आएँगे। जब तक हम लोग वापस नह आ जाते तब तक कम ँ िमयाँ ही घर क रखवाली करगे। सुबह छह बजे अजमेर जानेवाली टेªन खलु ेगी और दसू रे दन सुबह छह बजे अजमेर प चँ गे ी। समझ लो क चबै ीस घटं े ेन म ही िबताना होगा।’’ यह सब सुनकर रसीदा बगे म रोमािं चत हो उठ । रात गहराती गई मगर बगे म रसीदा को कोई थोड़ी-सी झपक लने े के िलए राजी नह कर पाया। सबु ह चार बजे कम ँ िमयाँ बलै गाड़ी लेकर हािजर हो गए। शखे बद ीन ने सामान बलै गाड़ी पर रखा और रसीदा बेगम अपने यारे बटे े शखे ू क उँ गिलयाँ थामे बलै गाड़ी पर सवार । शेखू के िलए यह पहला मौका था जब वह अपने अ बू और अ मी के साथ कसी या ा पर िनकल रहा था। अ मी ने उसे खूब सजाया था और शानदार कपड़े पहनाए थ।े उसका दल झूम रहा था। शेख बद ीन घर के दरवाज म ताला लगा आए और बैलगाड़ी पर सवार होकर बोले-‘‘चलो कम ँ िमयाँ!’’ बलै गाड़ी चल पड़ी। रा ते भर शखे ू चहकता रहा। कभी अ मी से पूछता-‘‘रेलगाड़ी कै सी होती ह?ै ’’ तो कभी अ बू से पूछता-‘‘हम लोग मोटरगाड़ी पर भी सवारी करगे न?’’ बलै गाड़ी अपनी र तार म चलती रही और टेशन पर प चँ कर क । अजमेर जानवे ाली ेन लेटफाम पर लगनवे ाली थी। शेख बद ीन और कम ँ िमयाँ ने िमलकर ब से उतारे और उ ह लेकर लटे फाम पर प चँ गए। थोड़ी ही दरे म ेन आ गई। एक िड बे म खाली सीट दखे कर शखे बद ीन ने अपना सामान उस िड बे म रखवा िलया और कम ँ िमयाँ के हाथ म दस पए थमाते ए कहा-‘‘कम ँ िमया!ँ घर का खयाल रखना।’’ कम ँ िमयाँ उ ह आदाब करता आ चला गया। शेख बद ीन ने रसीदा बेगम और शखे ू को िड बे म बैठाया और खुद भी िड बे म आ गए। गाँव के टेशन पर ेन अिधक दरे तो कती नह है इसिलए शखे बद ीन पहले से ही सचेत थ।े शखे ू के िलए ेन का यह सफर कसी अजबू े से कम नह था-झक- झक, छु क-छु क, झक- झक, छु क-छु क करती रेलगाड़ी भाग रही थी और रेलगाड़ी क िखड़क से शखे ू बाहर का नजारा दखे रहा था-मु दत मन स।े तभी एक आदमी काला कोट पहने टेªन के उस िड बे म आया और टेªने म बठै े लोग के टकट मागँ कर दखे ने लगा। शेखू टेªन क िखड़क भूलकर उस आदमी को दखे ने लगा। वह काला कोटवाला जब शखे बद ीन के पास आया और उ ह टकट दखाने को कहा तो शखे बद ीन ने जेब से दो टकट िनकालकर उसे दखा दये। तभी उस काले कोटवाले क नजर

शेखिच ली पर पड़ी और उसने शखे बद ीन से पूछा-‘‘और यह ब ा? या आपके साथ ह?ै ’’ ‘‘हा,ँ जी हाँ!’’ शखे बद ीन ने उ र दया-‘‘हा-ँ हाँ, यह मरे ा बेटा ह-ै शेखू! तीन साल का है इसिलए टकट नह िलया ह।ै ’’ शेख बद ीन के मुहँ क बात ख म भी नह हो पाई थी क शखे ू ने टनक-भरी आवाज म कहा-‘‘गलत! म शेखू नह ! अपना नाम तो शखे िच ली है जनाब! और म तीन साल का नह , चार साल का ँ और पाँचव साल म वशे कर चुका ,ँ तब ही तो अ मी और अ बू म त उतारने अजमेर वाले बाबा के पास जा रहे ह...’’ काले कोटवाले टी.टी.ई. ने एक बार शखे िच ली क तरफ दखे ा और उसका टकट बनाकर शखे बद ीन से कहा-‘‘अब तो आपको इसके टकट के पैसे फाइन के साथ भरने ही पड़गे।“ शेख बद ीन ने जबे से िबना कु छ कहे पए िनकाले और टकट एवं फाइन क रकम चुकाई। टी.टी.ई. के जाते ही शेख बद ीन ने शेखू के गाल पर एक चाँटा रसीद कया। बचे ारा शखे ू सोचने लगा-‘अ बू ने मुझे य मारा?’

अ लाह नह , शेखिच ली का घर शखे िच ली प ह साल का हो चकु ा था। उसके गावँ म कई मकान प े और दो-मंिजले थ।े उसके एक सहपाठी मुतजु ा अहमद का मकान भी दो- मंिजला बन चुका था। मगर उसका घर जैसा था वसै ा ही रहा, कोई त दीली नह ई। उसक भी हसरत थी क उसका घर भी दो-मंिजल वाला बन।े खपरैल मकान म रहते-रहते उसक तबीयत भर गई थी। एक दन वह मदरसे से ज दी वापस आ गया था। घर प चँ ने पर उसने शखे बद ीन और रसीदा बगे म को एक जगह बैठकर बितयाते ए दखे ा। हालाँ क उसे बचपन से अब तक ऐसा मौका कम िमला जब उसने अपने अ मी-अ बू को एक साथ बैठकर बितयाते ए दखे ा हो। उसे दखे कर शखे बद ीन ने आवाज लगाई-‘‘तू भी इधर ही आ जा शखे ू!’’ शखे िच ली ने अपना ब ता रैक पर रखा और अ बू-अ मी के बीच म जाकर बठै गया। अ मी ने उसका िसर यार से सहलाते ए कहा-‘‘बता तो बटे े, इस बार ईद म तू कै से कपड़े लेगा? तू जसै े कपड़े चाहगे ा, इस बार तु ह वसै े कपड़े दलवाएँगे हम।’’ अ मी-अ बू को खशु दखे कर शेखिच ली ने आिखर अपने मन क बात कह दी-‘‘अ मी! हर ईद म कपड़े बनते ही ह, इस बार नह भी बने तो चलगे ा। मरे ी तम ा है क अपना घर प ा हो-दो छत वाला, िजसम ऐसा छ ा भी हो जहाँ टहला जा सके ...घमू -घमू कर पढ़ा जा सके ।’’ शेखिच ली क बात सनु कर शखे बद ीन चक पड़।े तभी रसीदा बेगम ने कहा-‘‘हाँ जी! इस बार ग े क फसल अ छी ई ह।ै हम लोग इस बार हाथ खोलकर खच करगे...और कु छ नह तो बाहरवाले दोन कमर पर छत डलवाकर उसके ऊपर एक कमरा शखे ू के िलए बनवा दग।े शेखू अब बड़ा हो रहा ह।ै कल को उसक शादी के िलए पैगाम लेकर लोग आएँगे। इस बात का खयाल करके ही सही, अपना जी कड़ा कर लीिजए और मकान बनवाने म हाथ लगवा दीिजए। खदु ा ने चाहा तो मकान बन ही जाएगा। अ छा स ब ध पाने के िलए थोड़ा दखावा भी तो करना ज री ह।ै ’’ शेख बद ीन अपनी बेगम और बेटे क बात सनु कर ग भीर हो गए और थोड़ी दरे सोचने के बाद धीरे से रसीदा बगे म से बोल-े ‘‘ठीक ह,ै कल म सभु ान िम तरी से बात क ँ गा...वह िहसाब लगाकर बता दगे ा क कतना खच आएगा-य द बाहर के दोन कमर पर छत डलवाई जाए तो...!’’ इस घटना के दो दन के बाद ही शखे िच ली ने दखे ा, उसके घर म राज-िम तरी काम

कर रहे ह। अ मी ने उसे बताया क उनके मकान के आगवे ाले भाग म छत ढलाई का काम दो-तीन दन म हो जाएगा और उसके बाद छत पर उसके िलए एक अ छा-सा कमरा बनवाया जाएगा िजसम बड़ी-बड़ी िखड़ कयाँ ह गी...रोशनदान होगा। उसके कमरे का फश भी रंगीन होगा-चकमक-बूटेदार! यह सब सुनकर शेखिच ली ब त खशु आ और उस दन से ही उसे ती ा रहने लगी क कब उसके घर म छत ढलाई हो...और कब उसके िलए कमरा बने। और वह दन भी ज दी आ गया। शखे बद ीन इस बात पर आमादा थे क जब पसै े खच हो ही रहे ह तो दो-चार मजदरू बढ़ाकर मकान का सारा काम ईद से पहले परू ा करा िलया जाए। शखे बद ीन को अपने इस मकसद म कामयाबी िमली। ईद से पहले नई ढली छत पर शेखिच ली के िलए कमरा बनकर तयै ार हो गया। नीचे के दो कमरे अ बू-अ मी के िलए और छत का शानदार फशवाला कमरा शखे िच ली के िलए मकु रर हो गया। रसीदा बेगम ने बड़े जतन से शखे िच ली का सामान छतवाले कमरे म करीने से सजाया और ईद के दन ही शेखिच ली को वह कमरा स प दया गया। अब शखे िच ली के पास जब भी व होता, वह झरोखे से मु आकाश का सौ दय िनहारता। घर के सामने क सड़क पर आन-े जानेवाले लोग को दखे ता। छ े पर टहलता। उसक स ता का ठकाना नह था य क बाहर से दखे ने पर उसका पूरा घर दो-मंिजला ही दखता था। उसका सीना गव से चैड़ा हो गया क अब गावँ म वह भी दो-मंिजला मकानवाला कहा जाएगा। एक शाम शेखिच ली अपने कमरे के सामने क खलु ी छत पर टहल रहा था तभी उसने सुना, नीचे सड़क से कसी क आवाज आई-”दखे ो, यह दो-मिं जला मकान शखे िच ली का ह।ै “ शखे िच ली ने जब यह सुना तो उसका दल बि लय उछलने लगा। ‘‘व लाह! या बात ह!ै अब तो इस मकान के कारण लोग मझु े भी जानने लगे ह!’’ खशु होकर उसने छत से नीचे झाँककर दखे ा। तीन-चार लड़के उसके मकान के सामने नु ड़ पर खड़े होकर बात कर रहे थ।े शखे िच ली छत पर टहलता आ उस कनारे तक गया जहाँ से नु ड़ पर खड़े लड़क क बातचीत वह सनु सके । शखे िच ली ने सुना, उनम से एक लड़का कह रहा था-‘‘शेखिच ली का घर ह।ै ’’ ‘‘यह कहकर तमु या जताना चाहते हो? अरे! म तो मानकर चलता ,ँ यह सारी कायनात अ लाह ने बनाई है इसिलए हर घर अ लाह का घर है फर शखे िच ली का घर कहे जाने क ज रत ही या ह?ै ’’

इतना सनु ना था क शखे िच ली गु से से ितलिमला उठा। वह तशै म आकर बुदबुदाने लगा-”मरे े अ मी-अ बू ने मेरे िलए यह घर बनवाया ह।ै मरे े कहने पर बना है यह दो- मिं जला। यह मुआ कौन है जो इस बात को अहिमयत दने े से इनकार कर रहा ह.ै ..अभी चलकर मजा चखाता ँ इसे!“ और शखे िच ली दनादन सीि़ढयाँ लाघँ ते-कू दते उन लड़क के पास प चँ कर दहाड़ा-‘‘अब!े कौन कह रहा था क शखे िच ली का घर ह,ै इस बात को अहिमयत दने े क ज रत नह ?’’ शखे िच ली का तवे र दखे कर लड़के डर गए और उनम से एक ने उँ गली दखाकर दसू रे लड़के क तरफ इशारा कर दया और शखे िच ली का एक घँसू ा उस लड़के के जबड़े पर पड़ा-‘‘तो तू ह-ै मेरे घर को अ लाह का घर बतानेवाला! तो ले, मेरे घसूँ े को अ लाह का घसँू ा समझ!’’ इतना कहते ए शेखिच ली ने दसू रा घूँसा भी जड़ दया। घसूँ ा खाकर उस लड़के ने तुर त माफ माँग ली। कहा-‘‘भूल हो गई, माफ करो, अब म ऐसा नह बोलगूँ ा। बोलना होगा तो क गँ ा, अ लाह का घर भी शेखिच ली का घर ह।ै “ शेखिच ली शान से फर अपनी छत पर आकर टहलने लगा।

अनाम मिं जल क ओर शेखिच ली अपनी बीवी रिजया बगे म और अपनी अ मी के साथ कु छ दन तक चैन से रहा। अ बू के नह होने से उसे सब कु छ अजीब-सा लग रहा था। घर म◌ं े हर जगह कु छ न कु छ उसे ऐसा ज र दख जाता था िजससे उसे अपने अ बू क याद आ जाती थी। अ बू क याद के अलावा अगर उसे कोई चीज परेशान कर रही थी तो वह थी उसक बरे ोजगारी। शेखिच ली ने शहर या जले से लौटने के बाद अपने गावँ म जो भी दन िबताए थे, उन दन म वह इसी गुन-धुन म लगा रहा था क अब वह करे भी तो या करे! गाँव म तो लकिड़ याँ काटने, कु दाल चलाने, खेत- बागान क रखवाली करने जैसे ही काम थे। ये काम ऐसे नह थे िजसे करके वह अपने घर क परव रश कर पाता। उसे ऐसे काम क ज रत थी िजसे करके वह इतने पसै े हािसल कर सके िजससे उसक अ मी और बगे म क हसरत पूरी हो सकं ◌।े शेखिच ली अभी इसी उधड़े बुन म पड़ा था क एक शाम उसके गावँ म सरकार क तरफ से एक फ म दखाने के िलए कु छ लोग आए। परू े गाँव म◌ं े डुगडुगी िपटवा दी गई क जो भी चाहे वह नाच- गान से भरपरू वह फ म दखे ने को मदरसा-मदै ान म एकि त हो जाए। फ म शाम को छह बजे शु होगी और रात के नौ बजे ख म होगी। मनु ादी शेखिच ली ने भी सनु ी। उसने सोचा-चलो, आज क शाम मजे म कट जाएगी। मु त म फ म दखे ने को िमलेगी। अ मी को बताकर क मदरसा-मदै ान म सरकार क तरफ से िसनमे ा दखाया जा रहा ह,ै शेखिच ली ठीक छः बजे मदरसा-मैदान प चँ गया। मैदान म दरी िबछाकर लोगा◌ं े के बैठने क व था क गई थी। मदरसे क एक दीवार पर िसनेमा दखाने का पदा लगा आ था। दखे त-े दखे ते मदरसा-मदै ान लोगा◌ं े से भर गया और पद पर रोशनी पड़नी शु हो गई। शेखिच ली के िलए यह कसी अजबू े से कम नह था। फ म शु होते ही उसका महँु खुला का खुला रह गया-व लाह! यह तो वैसी ही फ म है जैसी िसनेमा हालॅ म दखाई जाती ह।ै मन-ही-मन अचरज म डूबता आ वह पूरी फ म दीवानगी के आलम म दखे गया। उस फ म म नायक का एक सहयोगी उसी क तरह ह क नुक ली दाढ़ी और गोल टोपी पहने ए था। शेखिच ली को यह करदार ब त पस द आया और उसने फ म दखे त-े दखे ते ही तय कर िलया क वह फ म म काम करेगा। फ म ख म होने के बाद सभी लोग अपने-अपने घर को वापस चले गए मगर शखे िच ली वह बैठा रहा। फ म दखानवे ाले लोग पदा उतारने लगे तब शखे िच ली

उनके पास गया और उनसे पछू ा-‘‘जनाब! आपने यह फ म कहाँ और कै से बनाई?’’ वे लोग बोले-‘‘भइया! ये फ म मने नह बनाई। हम तो सरकार के सूचना एवं सारण िवभाग के मलु ािजम ह। लोगां◌े को मनोरंजन दान करने के उ े य से सरकार ने फ म दखाने का काय म शु कया ह।ै उसी काय म के तहत हम यह फ म आप लोग को दखाने आए थे।“ ‘‘दिे खए जनाब! चाहे जो हो, इतना तो तय है क आप लोग फ म िवभाग से जुड़े ह। मुझे बस इतना बता दीिजएगा क मझु े फ म मं◌े काम कै से िमलगे ा। आप लोग क पहचान तो फ म बनानवे ाल से ज र होगी। अगर आप लोग मझु े फ म म◌ं े काम दलवा द तो बड़ी महे रबानी होगी।“ शखे िच ली क बात सनु कर वे लोग हसँ ने लगे। शेखिच ली समझ नह पाया क आिखर ये लोग हसँ य रहे ह? शेखिच ली धयै पूवक उन सब का चहे रा बारी-बारी से दखे ता रहा। उसे अचरज म डूबा दखे कर उनम से एक ि ने संजीदा होते ए कहा- ‘‘िमयाँ! फ म तो ब बई म बनती ह। तु ह फ म म काम करना है तो यहाँ या कर रहे हो? ब बई जाओ।’’ शेखिच ली ने उस आदमी का शु या अदा कया और अपने घर वापस लौट आया। िजस समय वह अपने घर प चँ ा उसक अ मी और बेगम दोन जगी ई थ और आँगन मं◌े बैठकर ग प लगा रही थ । शेखिच ली ने उनके पास प चँ कर कहा-‘‘अ मी! मने तय कर िलया है क म फ म म काम क ँ गा। इसके िलए मझु े ब बई जाना होगा। म कल ही ब बई चला जाऊँ गा।’’ उसक अ मी और बगे म दोन ने आ य से उसक तरफ दखे ा। उसक अ मी ने च कत होकर उससे कहा-‘‘अरे, आज अचानक तू िसर फर जसै ी बात य कर रहा ह?ै अचानक ब बई जाने क सनक तुझ पर कै से सवार हो गई? कसने तु हारे दमाग म यह बात भर दी?’’ ‘‘अ मी! मेरे मन म खुद-ब-खुद यह खयाल आया है क मुझे ब बई जाना चािहए। मरे ा कान कौन भरेगा और अ मी! म यह बात कसी सनक म नह कह रहा ।ँ मेरे भीतर से यह आवाज आ रही है क शखे िच ली, तू इस गावँ म बठै ा या कर रहा ह?ै तु हारा इ तजार ब बई म हो रहा ह।ै मुझे िव ास है अ मी क ब बई प चँ ने पर मुझे काम ज र िमलगे ा और वह भी फ म म।’’ शेखिच ली ने कहा। अ मी ने उसे ब त समझाया मगर वह अपनी िजद पर अड़ा रहा। जब वह सोने के िलए

अपने कमरे म गया तो उसक बगे म ने भी उसे समझाया क फ म म◌ं े काम िमलना आसान नह होता। मगर शेखिच ली तो शखे िच ली था, कै से उसे अपनी बेगम क बात समझ मं◌े आती? अ ततः अ मी और उसक बेगम ने दसू रे दन उसे ब बई जाने क इजाजत दे दी। शखे िच ली बन-सँवरकर अपने घर से िनकला। रेलवे टेशन प चँ कर उसने वहाँ के लोगा◌ं े से पता कया क ब बई जाने के िलए उसे या करना होगा। लोग ने उसे टकट िखड़क दखाते ए कहा-”पहले तो उस िखड़क से ब बई जाने के िलए टकट खरीदो फर जब ब बई जानवे ाली ेन आ जाए तब उसके कसी िड बे म बैठ जाना और जब ब बई आ जाए तो िड बे से उतर जाना और जहाँ जाना होगा, वहाँ चले जाना।“ शेखिच ली ब बई का टकट खरीदने के िलए जब टकट िखड़क पर गया तब वहाँ भी उसने कु छ ऐसा कया क वहाँ खड़े लोग हसँ ने लगे और वह उन तमाम हसँ नवे ाल क तरफ दखे ने लगा क आिखर वे लोग हसँ य रहे ह और जब उसे कु छ भी समझ मं◌े नह आया तब खदु भी हसँ ने लगा-यह सोचकर क य द वह नह हसँ ा तो लोग उसे नासमझ समझग।े ... आ यह क ब बई का टकट मागँ ने पर टकट बु कं ग लक ने उससे 4 पाँच पए बारह आने क माँग क तो शेखिच ली ने उससे कहा-‘‘अरे भाई! इतना महगँ ा है टकट? कु छ कम करो तो ल भी।’’ मानो वह स जीवाले से मोल-भाव कर रहा हो! टकट लक ने उसे िझड़क दया-‘‘ य मजाक कर रहे हो भाई साहब? टकट लेना हो तो पसै े िनकालो, नह तो िखड़क से हट जाओ।’’ शेखिच ली ने समझ िलया क टकट लक ब बई के टकट का पाँच पए बारह आने ही लेगा। तब उसने टकट लक को उतने पसै े िगनकर दे दये और उससे ब बई का टकट लेकर ेन आने क ती ा म लटे फाम पर बठै गया। ेन आने पर कु छ िड ब म उसने खचाखच भीड़ दखे ी मगर भीड़- भाड़वाले िड ब के अलावा उसे उसी ेन म एक िड बा ऐसा भी दखा िजसम िब कु ल भीड़ नह थी। वह उसी िड बे मं◌े चढ़ गया। ेन खुली। शेखिच ली एक सीट पर बैठकर सोचने लगा-इस ेन क सीट तो बड़ी ग ेदार ह।ै मजा आ रहा है इस ग ेदार सीट पर बैठकर। ेन अभी कु छ दरू ही गई होगी क शखे िच ली का टकट दखे ने के िलए टी.टी.ई. प चँ गया। शखे िच ली ने टी.टी.ई. से भी झड़प कर ली-” य भाई? य दखाऊँ तु ह टकट?“ जब उसने बताया क सरकार क ओर से उसे इस ेन मं◌े या ा करने वाल का टकट

दखे ने के िलए बहाल कया गया है और य द वह उसे टकट नह दखाएगा तो मजबूर होकर वह उसे िगर तार कर जले भेज दगे ा। जेल क धमक सुनकर उसक िस ी-िप ी गमु हो गई। उसने तरु त अपना टकट िनकालकर टी.टी.ई. को थमा दया। टी.टी.ई. ने टकट दखे कर उससे कहा-‘‘अब समझ म◌ं े आया िमयाँ क तुम मझु े टकट य नह दखा रहे थ।े टकट तुमने िलया है थड लास का और सफर कर रहे हो फ ट लास म। िनकालो चार पए और। तु ह फ ट लास क क मत चुकानी होगी।’’ चार पए क मागँ पर शखे िच ली के हाथ-पैर फू ल गए। उसने कहा- ‘‘अरे भाई, पहले मझु े यह थड लास और फ ट लास का भदे तो समझाओ। परू ी क परू ी ेन ही ब बई जा रही ह।ै फर यह थड लास और फ ट लास का या च र ह?ै ’’ टी.टी.ई. ने उसे समझाया-‘भाई, फ ट लास क सीट ग ेदार ह और अिधक सुिवधाजनक। थड लास म तो तु ह पटरे पर बठै ना पड़ता ह।ै ’’ ‘‘तो हटा ले अपना ग ा। म पटरे पर ही बठै लँगू ा। य मुझे लूटने क कोिशश कर रहे हो?’’ शेखिच ली ने कहा। टी.टी.ई. इस मसु ा फर से हलकान हो चुका था। उसने डपटते ए कहा-‘‘िमया,ँ अब ब द भी करो ामा और चार पए दके र अपना टकट बदलवाओ, नह तो अगले टेशन पर म तु ह रेलवे-पुिलस के हवाले कर दगँू ा। जब जले जाना पड़गे ा तो खुद समझ म आ जाएगा क कसी सरकारी मुलािजम से काम के व मसखरी करने का नतीजा या होता ह!ै ’’ शखे िच ली ने जसै े ही जेल क धमक सनु ी तो उसके शरीर से पसीना छलछला आया। उसने तुर त जेब म हाथ डाला और चार पए िनकालकर टी.टी.ई. को थमा दया। टी.टी.ई. ने उसे चार पए क रसीद थमा दी और कहा-‘‘अब करो आराम से फ ट लास म सफर!’’ शखे िच ली मन-ही-मन जोड़ रहा था-परू े नौ पए बारह आने लग गए ब बई का टकट बनवाने म। इसके बाद वह अ लाहताला को याद कर मन- ही-मन िवनती करने लगा-‘या मेरे खदु ा! अब रा ते म कोई और इस टकट मं◌े इजाफा करनेवाला न आ धमके । पूरे नौ पए बारह आने खच हो चुके ह। मरे े मौला! अपने ब दे पर रहम करना।’ इसी तरह खदु ा-खुदा करते ए शेखिच ली ब बई प चँ गया। ब बई स ल रेलवे टेशन पर ेन क और वह ेन से उतरा तो वहाँ क भीड़ दखे कर उसके होशो-हवास गमु हो गए-‘बाप रे! कतनी भीड़ है यहा?ँ कतना बड़ा रेलवे टेशन है यहाँ का?’ सोचते ए वह

िजधर नजर दौड़ाता, उधर ही उसे लोग का सैलाब-सा उमड़ता दखता। अ ततः शेखिच ली ने अपना मन मजबूत कया और भीड़ के साथ चलता आ रेलवे टेशन से बाहर आ गया। असबाब के नाम पर उसके पास एक झोला था। वह चलता रहा, चलता रहा, चलता रहा। उसक आँख के सामने से बड़ी-बड़ी इमारत◌ं े गुजरती रह । उसने अपने जीवन म इतनी ऊँ ची इमारत क क पना नह क थी िजतनी ऊँ ची इमारत उसे हक कत म दखे ने को िमल रही थ । भटकते-चलते वह गटे वे आॅफ इंिडया प चँ गया। वहाँ उसे सलै ािनय क भीड़ दखे ने को िमली। चलत-े चलते शखे िच ली ब त थक गया था इसिलए वह वह एक सुरि त थान दखे कर पावँ फै लाकर बैठ गया। उसे भूख भी लगी थी इसिलए उसने एक पावभाजी बचे नवे ाले लड़के से पावभाजी खरीदकर खाया और फर वह पर लेट गया। वह थोड़ी दरे ही सो पाया था क कसी आदमी ने उसके पाँव को िहलाना शु कर दया। पाँव िहलाए जाने से शखे िच ली क न द खुल गई। वह हड़बड़ाकर उठ बठै ा। पूरी तरह न द खुलने पर उसने दखे ा क एक गोल-मटोल-सा स प आदमी उसका पाँव पकड़ते कह रहा ह-ै ‘‘बाबा का वचन सच आ। िमल गया मेरी फ म का हीरो।’’ शखे िच ली ने झटककर अपना पावँ छु ड़ाया और खीज-भरे वर म पूछा-‘‘ य बे? मुझे क ी न द से य जगाया? म कतना हसीन वाब दखे रहा था! म अपनी हीरोइन के साथ बाग म गाना गा रहा था। तुमने मरे ा पैर िहलाकर सब गुड़-गोबर कर दया।’’ ‘‘अरे, नह जनाब! आप नाराज न ह । म फ म का ो ूसर-डायरे टर ।ँ मझु े अपनी फ म के िलए नए चहे रे क तलाश थी। म अभी-अभी बाबा घ घड़मल के दशन करके आया ।ँ बाबा के कहने पर ही म गटे वे आॅफ इंिडया आया। बाबा ने कहा क गटे वे आॅफ इंिडया के पास एक यवु क गोल टोपी पहने लटे ा होगा, उसक हलक नुक ली दाढ़ी होगी। उसी यवु क को अपनी फ म म हीरो बनाऊँ गा तब मेरी फ म िस वर जुबली मनाएगी और बाॅ स आॅ फस के सारे रकाॅड तोड़गे ी। आप मझु े यहाँ ठीक वैसे ही िमले जसै े बाबा घ घड़मल ने बताया था...मेरी तो तकदीर सवँ र गई-हा-हा- हा! कसी ने ठीक ही कहा है क खुदा जब दते ा है तो छ पर फाड़ के दते ा ह।ै ’’ शेखिच ली ने जब जाना क यह मोटा-मुट ला आदमी खुद फ म बनाता है और उसे अपनी फ म म हीरो बनाना चाहता है तब वह ब त खशु आ और बोला-‘‘जनाब! जब आप मझु े अपनी फ म म हीरो बनाना चाहते ह तो फर मरे े पाँव य पकड़ रहे ह? मझु े मौका दीिजए। मुझे आपका पाँव पकड़ना चािहए।’’ ‘‘अरे नह , यह ठीक नह होगा। िस वर जुबली मनानवे ाली फ म के हीरो का तो कोई भी िनमाता पाँव पकड़ना चाहगे ा। य द मने पकड़ा तो या कमाल कया!’’

तुर त िनमाता ने एक फामॅ िनकाला और शेखिच ली के सामने रखते ए कहा-‘‘जनाब हीरो साहब! यह लीिजए। इस फाॅम म यहाँ द तखत कर दीिजए।’’ शेखिच ली ने पछू ा-‘‘ य ? य कर दँू द तखत?’’ ‘‘आप द तखत करगे इसिलए क यह शतनामा यह बताने के िलए है क आप हमारी फ म म बतौर हीरो काम करग।े और यह लीिजए एक हजार पए-आपक साइ नंग एमाउं ट।’’ शेखिच ली को पया थमाते ए उस गोल-मटोल-से आदमी ने कहा। पए दखे कर शखे िच ली क बाछ िखल ग । उसने तरु त कलम ली और उस फाॅम पर द तखत कया और गोल-मटोल-से आदमी के हाथ से पए िलये और पछू ा-‘‘एक हजार ही ह न?’’ उस गोल-मटोल आदमी को लगा क शेखिच ली इस रकम को कम बता रहा है इसिलए वह तुर त बोला-‘‘जनाब! आप पैस क परवाह मत क िजए। यह तो ‘टोकन मनी’ ह।ै आपको मँुहमागँ ी रकम दी जाएगी। पैसे दने े म इस झाड़ईवाला क पूरी इंड ी म कोई सानी नह ह।ै बस, अब आप मेरी गाड़ी म बैठ जाए।ँ आपको अब फ म के करदार के िहसाब से तयै ार कया जाएगा। इसके िलए आपके बाल-दाढ़ी को करीने से सजाया जाएगा। से र के पास आपके नए कपड़ के नाप भी दए जाएँगे। आप गाड़ी म◌ं े बठै ...गाड़ी म ही आपको सारी बात समझा दी जाएगँ ी।’’ शेखिच ली उसके साथ उसक कार म जा बैठा। गोल-मटोल ि उसे लेकर सलै नू म गया। सलै ूनवाले ने शेखिच ली का बाल काटा, फर दाढ़ी बनाई। शखे िच ली ने अपना चेहरा आईने मं◌े दखे ा तो दगं रह गया। खुद को इतना खबू सरू त उसने इससे पहले कभी नह दखे ा था। वह स िच होकर कार म लौट आया। कार म ो ूसर डायरे टर िम टर झाड़ूवाला ने उससे कहा-‘‘जनाब शखे साहब! अब लगे हाथ आपके कपड़ का भी इ तजाम हो जाए। मरे ी फ म का हीरो सूट पहनता ह,ै बूट पहनता है और टाई लगाता ह।ै अभी अपन चलते ह रेडीमेड क दकु ान म◌ं े और आप पर जचँ नेवाले सटू -बटू -टाई का इ तजाम करते ह।’’ कार एक शानदार रडे ◌ीमडे कपड़ा ◌ं◌े क दकु ◌ान पर क । िम टर झाड़वू ाला शेखिच ली को साथ लेकर सीधे दकु ान म गया और उसको बहे तरीन से बेहतरीन सूट-बटू म◌ं े सजाकर लाने का म दया। ायल म से िनकलकर जब शेखिच ली बाहर आया तो िम टर झाड़ूवाला उसे शसं ाभरी िनगाह से दखे ता आ बोला-‘‘हाउ हडसम! आप तो सभी हीर क छु ी कर दोगे जनाब! मेरी फ म िहट होने दो। दखे ना, सारी इंड ी तु हारा कदम चमू ेगी।’’

शेखिच ली को लेकर झाड़वू ाला कार म बैठ गया और शखे िच ली से कहा-‘‘अपन अब सीधे शू टंग साइट पर चलते ह। वहाँ एक ‘रेप सीन’ से शू टंग शु होगी। फ म का िवलने हीरोइन के साथ ‘रेप’ करने क कोिशश करेगा और हीरो उस हीरोइन को बचाने के िलए कू दगे ा और िवलने को मारकर भगा दगे ा। हीरोइन हीरो क जाबँ ाजी पर फदा होकर उससे अपने यार का इजहार करेगी।...समझ गए जनाब? हमारी फ म म ि ट नह होता। आप समय के मतु ािबक अपना ए शन करोगे और डायलाॅग बोलोगे। आपके िलए इतना समझाना ही काफ ह।ै “ तब तक शू टंग साइट आ गई। कार क । िम टर झाड़ूवाला कार से उतरा और शेखिच ली के िलए कार का दरवाजा खोल दया। वह भी कार से उतरा। उसे लेकर झाड़वू ाला अपनी यूिनट के लोग के पास गया और कहा-‘‘दो तो, अपनी फ म के हीरो का वागत करो।’’ सबने तािलयाँ बजाकर शखे िच ली का वागत कया। फर झाड़ईवाला शेखिच ली को एक च ान पर खड़ा करा दया और बोला-‘‘अभी नदी से नहाकर िबकनी म हीरोइन िनकलेगी और िवलने उस पर टूट पड़गे ा और उसके साथ रेप करना चाहगे ा। आप इस च ान से कू दोगे और िवलने क िपटाई करोगे। िवलने भाग जाएगा और िबकनी गल आपसे िलपटकर अपने मे का इजहार करेगी।’’ फर वह चीखा-‘‘कै मरा! लाइट! ए शन!’’ शखे िच ली ने दखे ा, नदी से एक लड़क िनकली जो नाममा ा का कपड़ा पहने ए थी। उसके नदी से िनकलते ही एक मु टंडा आदमी न जाने कधर से वहाँ आ गया और कु छ कहते ए हीरोइन को दबोचने लगा और हीरोइन िच लाकर अपने बचाव क गहु ार करने लगी-”बचाओ! बचाओ!“ शेखिच ली इस कार उ िे लत हो गया क वह भूल गया क यह फ म क शू टंग हो रही ह।ै वह च ान से ही चीखा-‘‘अब!े ओ मवाली! ठहर, आज म तु ह छ ी का दधू याद दलाता ।ँ तु ह बताता ँ क मा-ँ बहनां◌े के साथ कै से बताव करना चािहए।’’ उसक चीख का जब उस मु टंडे पर कोई असर नह आ तो उसने च ान से इतनी जबद त छलागँ लगाई क कै मरा मनै िव मय से बोल उठा-‘‘हाउ रयिलि टक! गजब का टैलट ह.ै ..।’’ झाडू ◌ाला चीखा-‘‘दा-◌े चार एसे ◌े शाटॅ िमल जाए ◌ँ ता ◌े फ म बाक् ◌ॅस िआॅफस पर अपना जलवा दखा दगे ी। शाबाश! जय हो घ घड़बाबा क ।’’ शेखिच ली ने िवलने को अपनी बाँह म जकड़ िलया और उसके बाल मु य म

पकड़कर उसका मुहँ जमीन म रगड़ने लगा। िवलने कसी तरह उससे मु होकर भाग गया। शेखिच ली उसके पीछे दौड़ता आ बोला- ‘‘अबे भागता कहाँ ह?ै माँ का दधू िपया है तो क!“ मगर िवलने का नह । ऊपर िम टर झाड़वू ाला कै मरा मनै से कह रहा था-”ऐसा शाॅट तो मजँ े ए कलाकार भी नह दे पात।े ए शन म तो अपना हीरो इतना भावपणू लगता है क उसका जवाब नह ।’’ इतने मं◌े हीरोइन अपनी बाहँ फै लाकर शखे िच ली क ओर बढ़ी और बोली-‘‘म तो दलोजान से तुम पर फदा हो गई। तुम न होते तो वह बदमाश मरे ी इ त लूट लेता। अब म तु हारा शु या कै से अदा क ँ ?’’ शखे िच ली अचानक पीछे हटा और बोला-‘‘अरे...अरे! यह या कर रही हो...म शादीशदु ा ।ँ मरे ी बीवी ह।ै परे हटो...दरू रहो।’’ मगर वह लड़क ब त अदा से लचकती-मटकती और पलक झपकाती उसके पास आने लगी। शेखिच ली तजे ी से पीछे हटा और वह लड़क तेजी से आगे बढ़ी। और दखे ते ही दखे ते शेखिच ली ने दौड़ लगा दी और हीरोइन भी उसे पकड़ने के िलए दौड़ी। ऊपर िम टर झाड़ूवाला चीख रहा था-‘‘कट! कट!’’ ‘‘उफ! सारा गुड़-गोबर कर दया। यह अपना हीरो कहाँ भाग रहा ह!ै दौड़ो! उसे पकड़ो!“ मगर शखे िच ली भागता ही रहा। उसको पकड़ने के िलए कै मरा मैन, लाइट वाय आ द दौड़े मगर वह कसी क पकड़ म नह आया। भागते-भागते उसे समु तट दख गया। वह उधर भागने लगा और इस तरह वह शू टंग पाटॅ से एक ब दरगाह पर प चँ गया। ब दरगाह पर पानीवाला एक जहाज उसे दख गया और वह भागता आ उस जहाज पर चढ़ गया। एक जगह जहाँ ब त सारा सामान रखा आ था वहाँ जाकर छु पकर बैठ गया। अचानक एक तेज सायरन क आवाज ई और वह जहाज तट छोड़ता आ समु क तरफ बढ़ने लगा और धीरे-धीरे जहाज क गित तजे होती चली गई। शेखिच ली इस बार अनाम मंिजल क ओर बढ़ता जा रहा था।

अपना नाम शेखिच ली है जनाब! शखे बद ीन के घर बटे ा आ तो परू े गावँ म उ ह ने िमठाइयाँ बटँ वा । ऐसे वे ब त धनी नह थे ले कन पैस क मोहताजी भी नह थी। गावँ म रसखू था। गाँव के लोग इ त से उनका नाम लेते थ।े लोग शखे साहब कहकर पकु ारते थ।े शखे साहब एक साधारण कसान थे। गावँ म दस-बारह बीघा जमीन थी। उसी क फसल पर उनका प रवार िनभर था। शखे बद ीन क बगे म पूरे गाँव म रसीदा बेगम के नाम से मश र थ । घर म तहजीब और तमीज का जो ताना-बाना उनके आने के बाद बुना गया, उसक चचा परू े गावँ म हो रही थी। उनके घर कोई अदना इनसान भी आ जाता तो उसे बधना भर पानी और दो-चार बताशे पहले दए जाते और बाद म आने का सबब पछू ा जाता। रसीदा बेगम से िनकाह के बाद शेख बद ीन क जीवन-शैली म भी प रवतन आया। सोने, जगन,े खेत जान,े यार- दो त से िमलने-िमलाने तक म एक सलीका आ गया। गावँ म उनक क बढ़ गई। िनकाह के चार साल बाद शेख बद ीन क बगे म क गोद भरी और शखे ू क कलका रय से उनका सूना आगँ न गँूजने लगा। शखे बद ीन ब त खशु थे क अ लाह ने उनका नाम रौशन करने के िलए उनके घर का िचराग भेज दया ह।ै गावँ के लोग भी शेख साहब के बेटे क बलाइयाँ लते े और कहते क दखे ना, एक दन यह लड़का अपना और अपने खानदान का नाम रौशन करेगा।...दखे ो, अभी से इसक पेशानी कतनी चैड़ी ह!ै इसके हाथ कतने ल बे ह...यह सब इसके खशु हाल होने का सकं े त ह.ै ..बड़ा होकर यह लड़का गम से कोस दरू रहगे ा और खुिशय के चहब े म गोते लगाता फरेगा... स दय तक इसक पहचान बनी रहगे ी।...गाँव के लोग क भिव यवािणयाँ सुन- सनु कर बेगम रसीदा फू ली न समात । शेख बद ीन भी खशु होत।े इसी तरह समय गुजरता रहा। एक दन शेख बद ीन के घर के दरवाजे पर ग े क परे ाई चल रही थी। ग े के रस से गड़ु बनाने के िलए अलाव जल रहा था िजस पर बड़े कड़ाह म ग े का रस उबाला जा रहा था। शखे बद ीन अपने बटे े को गोद म लके र बठै े थे। उनका सारा यान काम म लगे मजदरू पर था। उनक गोद म बैठा न हा शखे ू कु छ दरे तक चपु चाप अपने अ बू क गोद म बठै ा रहा मगर जब अ बू क तरफ से उसके ित कोई ित या नह ई तब अपने अ बू का यान अपनी ओर आक षत करने के िलए पूछा-‘‘अ बू, ये लोग या कल लय (अ बू ये लोग या कर रहे ह?)?’’ बेटे क तोतली आवाज सनु ने के बाद शेख बद ीन ने उसका िसर सहलाते ए कहा-‘‘बटे े! ये लोग गड़ु बना रहे ह!’’ ‘‘गलु (गड़ु ) या होता ए◌ं े!’’ शखे ू ने पछू ा।

‘‘तुम गुड़ नह जानत?े ’’ आ य से शेख बद ीन ने पछू ा। ‘न !’’ शेखू ने कहा। शेख बद ीन ने एक मजदरू को आवाज लगाई-‘‘रहमू काका! जरा गड़ु क एक छोटी भले ी तो लेके आना! मेरा शखे ू ‘गड़ु ’ नह जानता ह.ै ..उसे बताऊँ क गड़ु या होता ह।ै ’’ रहमू गड़ु क भले ी लेकर आ गया। शेख बद ीन ने शेखू के हाथ म गड़ु क भेली थमा दी और कहा-‘‘दखे बटे ा, यह है गुड़! चख के दखे , तु ह पस द आएगा।’’ शेखू ने गड़ु के उस टुकड़े को दखे ा फर मँहु म डालकर उसका छोटा-सा टुकड़ा अपने नए- नकु ले दाँत से काट िलया। गुड़ का वाद उसे अ छा लगा...आह! कतना मीठा है गुड़! न हे शेखू के िलए यह वाद अ भतु था। ज दी ही वह अपने हाथ का गुड़ ख म कर चकु ा था...इ छा हो रही थी क और गुड़ खाए। अपनी इस इ छा क पू त के िलए वह अपने अ बू क गोद से उतर गया और रहमू काका के पास चला गया। गड़ु उसक लार से सनकर उस समय उसके मुँह और ठु ी पर लगा आ था। हथले ी भी गड़ु सनी लार से तर-बतर थी। इसी हाल म ढाई-तीन साल का शेखू रहमू काका से कह रहा था-‘‘लहमू काका...औल गलु खाएँगे...गलु दो!’’ उसक तोतली आवाज सनु कर रहमू काका हसँ दए और गड़ु का एक छोटा-सा टुकड़ा उसे थमा दया। ठीक इसी समय रसीदा बेगम अपने दरवाजे पर कसी काम से आ और उनक नजर शखे ू पर पड़ी िजसके महुँ और हथले ी पर गुड़ िचपक रहा था...वे उसे दखे ते ही उसके पास आ ग और शखे ू के हाथ से गड़ु का टुकड़ा छीनते ए बोल -‘‘छीः, परू ा मुँह ग दा कर िलया... कसने दे दया तु ह इस तरह गड़ु खाने के िलए...तबीयत खराब हो जाएगी, चल! तरे ा मुँह साफ क ँ ...उफ् ! तूने अपनी हथिे लय क कै सी हालत बना रखी ह!ै चल...धोऊँ !’’ अ मी क िझड़क और अ मी ारा गुड़ छीन िलये जाने पर शखे ू जोर-जोर से रोने लगा। उसके रोने क आवाज सनु कर शखे बद ीन ने उसे आवाज दी-‘‘शेखू...चपु हो जा... य िच ला रहा ह?ै ’’ शखे ू ने सुबकते ए कहा-‘‘म...कआँ िच ला रआ ऊँ ...अ मी िच ली रई ऐ!’’ तोतली आवाज म शखे ू के इस उ र से वहाँ काम कर रहे मजदरू हसँ पड़।े रसीदा बेगम और शखे साहब भी हसँ े िबना नह रहे और इसके बाद शेखू क भोली तुतली आवाज सनु ने के िलए एक मजदरू ने शखे ू का दामन थामकर पछू ा-‘‘कौन िच ली रई ऐ बेटा?’’ शेखू ने भोलेपन से उ र दया-‘‘अ मी!’’

इसके बाद यह िसलिसला-सा चल पड़ा-‘कौन िच ली रई ऐ!’ सवाल गावँ के छोटे-बड़े ब े और बड़-े बढ़ू क जबान पर आ जाता, जैसे ही वे भोल-े भाले शखे ू को दखे त।े दखे त-े दखे ते शखे ू का नाम ‘शेखिच ली’ हो गया। फर कसी ने शखे ू को िसखाया-‘‘कोई तु हारा नाम पछू ेगा तो बताना-अपना नाम तो शेखिच ली है जनाब!’’ ‘‘ या बताओगे...?’’ ‘‘शखे िच ली!’’ ‘‘नह , ऐसे नह ! बोलो-अपना नाम तो शेखिच ली है जनाब!’’ ‘‘अपना नाम तो शखे िच ली है जनाब!’’ शखे ू ने तोतली आवाज म यह वा य दहु राया। लोग उससे उसका नाम पूछते और शेखू के जवाब से हसँ त-े हसँ ते लोट-पोट हो जात।े शखे ू लोग को हसँ ता दखे ता तो खदु भी हसँ ने लगता। इस तरह शखे ू के दमाग म बठै गया क उसका नाम शखे िच ली ह।ै जब शेखू चार साल का आ तो शखे बद ीन उसे लेकर मदरसे म गए। रा ते भर वे शखे ू को समझाते रह-े ‘‘शखे ू बटे े! अब तुम बड़े हो गए हो। अब पढ़ने के िलए तु ह रोज मदरसे जाना पड़गे ा। आज तु हारा नाम मदरसे म िलखवा दगँू ा। फर तु हारे िलए लटे और पिसल खरीद दगँू ा िजसे लेकर तमु रोज मदरसे जाओग.े ..और वहाँ पढ़ोगे-अिलफ, बेत.े ..’’ ‘‘पढ़ने से या होगा अ बू?’’ शेखू ने मासूम-सा सवाल पूछा। ‘‘पढ़ने से तू बड़ा आदमी बन जाएगा शखे ू!’’ शखे बद ीन ने शखे ू का उ साह बढ़ाते ए कहा। शखे ू कोई और सवाल करता मगर तब तक मदरसा आ गया। जब मदरसे म मौलाना ने शेख बद ीन से पछू ा-‘‘ब े का नाम या ह?ै ’’ शेख बद ीन ने कु छ िवचारते ए कहा-‘‘ऐसे तो हम लोग इसे शखे ू बलु ाते ह मगर मदरसे म इसका नाम शखे कम ीन दज कर...शखे कम ीन व द शेख बद ीन! यही बि़ढया नाम होगा।’’ मौलाना और अ बू के बीच हो रही बातचीत को शखे ू सुन रहा था। उसने जब अपना नाम कम ीन सनु ा तो तुर त बोला-‘‘नह अ बू, मरे ा नाम कम ीन नह िलखाना...अपना नाम है शखे िच ली जनाब!’’ उसने मौलाना क तरफ मुँह करते ए कहा।

शेख बद ीन ने ब त चाहा क शेखू अपना नाम कम ीन िलखवाए मगर शखे ू बार-बार यही दहु राता रहा-‘अपना नाम शखे िच ली है जनाब!’ अ ततः मदरसे म शेखू का नाम दज हो गया-‘शेखिच ली’!

अपनी रईसी खाक म िमल गई शेखिच ली जवान हो गया। मदरसे क पढ़ाई परू ी हो गई। गाँव म मदरसे क पढ़ाई के बाद उसके सामने सम या थी क करे भी तो या करे! मदरसे के आगे क पढ़ाई के िलए गाँव म कोई इ तजाम नह था। शखे िच ली के मन म बचपन से ही काम के ित िवशेष आ ह था। वह ायः कहा करता था क खुदा ने हम दो हाथ ब शे ह तो काम करने के िलए। काम चाहे जैसा भी हो, करना चािहए। शेखिच ली क यह बात गावँ भर म मश र हो गई। शेख बद ीन अपने बेटे शेखू के िलए कोई काम सोच नह पाए और िनठ ला बठै ना शखे िच ली को पस द नह था। इसिलए वह दन-भर मटरग ती करता और जो भी उसे कोई काम कर दने े को कहता, वह कर दते ा। उसके मन म कसी के ित कोई भदे भाव तो था नह । बस, काम करने का ज बा था। हाथ का उपयोग करने क चाहत थी। लोग उससे काम कराते और उसके मुहँ पर उसक खबू तारीफ करते क उसके जसै ा काम करनवे ाला श स उस गाँव म कोई दसू रा नह ह.ै ..वही ह,ै जो उस काम को कर पाया। अपनी तारीफ सनु ना भला कसे अ छा नह लगता! शेखिच ली को भी अपनी तारीफ ब त अ छी लगती थी। जब भी कोई उसक तारीफ करता तो वह फू लकर कु पा हो जाता। एक दन शखे िच ली गाँव के एक आदमी क लकिड़ य का ग र तयै ार करने म इतना मशगलू हो गया क उसे समय का खयाल ही नह रहा। उसे पता ही नह चला क कब दन ढला और रात हो गई। उसने दन-भर लकिड़ य का ग र तैयार कर उस आदमी क बलै गाड़ी पर उन ग र को करीने से लादकर बाँध दया ता क वह आदमी ये लकिड़ याँ शहर ले जाकर बेच सके । अपना काम परू ा करने के बाद उसे खयाल आया क रात हो आई ह।ै घर म अ बू-अ मी उसके िलए परेशान हो रहे ह गे। वह तेज कदम से चलता आ अपने घर आ गया। दरवाजे के कु एँ पर अपने हाथ-पावँ धोकर उसने बाहर से ही आवाज लगाई-‘‘अ मी! कहाँ हो? मुझे जोर क भूख लगी ह।ै कु छ दो खाने को!’’ दन-भर उसका इ तजार करते-करते थक चकु रसीदा बेगम ने जब िमयाँ शखे िच ली क आवाज सुनी तो बदु बदु ाने लग -”आ! आज तझु े खाना िखलाती ।ँ दन-भर आवारागद करता फरेगा और घर आते ही इसको भूख लगगे ी। पता नह कहाँ मारा-मारा फरता ह!ै पाचँ फ ट का मु टंडा जवान हो गया पर जीने का शऊर नह आया। यह भी खयाल नह रहता क शाम तक घर वापस लौट आए...आ, आज बताती ँ तुझे!“ रसीदा बेगम का गु सा उबाल खा रहा था और िमयाँ शेखिच ली लाड़ म इतराते ए बोल रहा था-‘‘अरे, अ मीजान, खाना िनकाल दो, बड़ी भूख लगी ह।ै ’’

ऐसा बोलते ए शेखिच ली ने जसै े ही घर म वशे कया क रसीदा बगे म दहाड़ उठ -‘‘घर म घसु ते ही खाना चािहए। बता, कहाँ रहा दन-भर? रात गए घर लौटा ह.ै ..यह कोई तरीका है घर आने का? जैसे घर न आ सराय हो गया! जब मज िनकल जाओ और जब मज आ जाओ! बता, कहाँ था दन-भर?’’ अ मी का रौ प दखे कर शखे िच ली सहम-सा गया। उसके िलए अ मी का यह प नया और चका दने वे ाला था। उसके अ बू से उसे डाटँ सुनने को िमली थी...ल पड़-थ पड़ भी खा चुका था मगर अ मी ने कभी उसे डाँटा नह था। ‘‘ या आ अ मी? ऐसे नाराज य हो रही हो?’’ ब त सहमे ए अ दाज म शखे िच ली ने रसीदा बेगम से पूछा। और कोई अवसर होता तो रसीदा बगे म अपने लाड़ले के इस मासूम- सवाल पर फदा हो जात और उसे अपने गले से लगा लते मगर आज तो उ ह ने ठान रखा था क शेखू को तबीयत-भर डाटँ गी और उसे दिु नयादारी समझने के िलए े रत करगी। ऐसे तो मटरग ती करते-करते शेखू कसी काम का नह रह जाएगा। ऐसा सोचकर उ ह ने पूछा-‘‘पहले बता, कहाँ रहा इतनी दरे तक? सुबह ही िनकल गया था, जैसे कसी ज री काम से जा रहा हो।’’ ‘‘हाँ, अ मी, ज री काम था। महमूद िमयाँ ने अपना एक पेड़ कटवाया था और उसक लकिड़ याँ चीड़ी थ । कल सबु ह वे बैलगाड़ी से उन लकिड़ य को लेकर शहर जाएँगे ता क उ ह बेच सक। उ ह ने मझु से कहा था क ‘बटे ा, लकि़डय क लदाई म मरे ी मदद कर दने ा...’ जब उ ह ने मुझसे मदद के िलए कहा तो मझु े आपक कही बात याद आ गई क ‘बटे ा, य द तू कसी क मदद करेगा तो खुदा तरे ी मदद करेगा।’ इसिलए आज सुबह ही म महमूद िमयाँ के घर चला गया और दन-भर उनक लकिड़ य का ग र बनाया और शाम को उन लकिड़ य को उनक बलै गाड़ी पर लादना शु कया। जैसे ही काम ख म आ, म भागता आ घर आया क अ मी-अ बू मेरे िलए परेशान हो रहे ह ग।े मझु े जोर क भूख भी लगी ह.ै ..न!“ रसीदा बगे म अपने बटे े क बात सनु कर फर से ोध के उबाल म आ ग और शखे िच ली पर बरस पड़ -‘‘अरे, तू दन-भर मुआ महमदू का बगे ार करता रहा और उसने तुझे खाना तक नह िखलाया?’’ ‘‘अ मी! उसने मुझे खाने के िलए कहा था मगर मझु े तु हारी नसीहत याद आ गई क ‘बेटा, भखू ा रहना पड़े तो रह लो मगर कभी कसी गैर का दया कबूल न करो।’ मने सोचा क आिखर ये महमूद िमयाँ मेरे अपने तो ह नह , तो वह गैर ही ए न! इसिलए उनके ब त कहने पर भी मने कु छ खाया नह !’’

बटे े का उ र सनु कर रसीदा बेगम अवाक् रह ग । थोड़ी दरे चुप रहने के बाद उ ह ने कहा-‘‘तुमसे तो कु छ कहना ही बेकार ह!ै कसी भी बात के कहे जाने का कारण तो तू िबलकु ल नह समझता...श द म ही तेरा दमाग अटक जाता ह।ै चल, बैठ! खाना लगा दते ी ।ँ खा ले!’’ एक आ ाकारी पु क तरह शखे िच ली चकै े म पीढ़े पर बठै गया और रसीदा बगे म ने उसके सामने थाल सजा दी। शेखिच ली खाना खाने लगा। रसीदा बेगम उसे खाता आ दखे ती रह और सोचती रही-‘ कतना मासमू है मरे ा शेख!ू दिु नया क मतलबपर ती को भी नह समझता ह।ै आिखर यह कब समझदार बनगे ा? इतना बड़ा हो गया। कु छ दन म इसक शादी होगी। बाल-ब े ह ग।े तब भी या यह ऐसा ही रहगे ा?’ वह शखे िच ली का मुहँ दखे े जा रही थ और शेखिच ली िसर झुकाए खाना खाता रहा। खाना ख म करके वह उठा और हाथ-मँहु धोकर सोने चला गया। थका होने क वजह से उसे तरु त न द आ गई। ले कन रसीदा बगे म क आखँ म न द नह थी। शेख बद ीन ने िब तर पर जब बगे म क बेचैनी का कारण पूछा तो रसीदा बगे म ने शेखिच ली क सारी दनचया बताते ए कहा-”यह लड़का कब कािबल इनसान बनगे ा, यही सोच-सोचकर मेरा जी हलकान हो रहा ह।ै “ शेख बद ीन कु छ दरे तक रसीदा बेगम क बात सनु ते रहे और फर उ ह तस ली दते े ए बोल-े ‘‘बगे म! मन छोटा करने क ज रत नह । शेखू अभी दिु नयादारी से प रिचत नह आ ह।ै जब िज मदे ा रयाँ आएँगी तो वह भी दिु नयादार हो जाएगा। तुम उसे कल कहना-‘जाओ और कु छ कमा कर लौटो!’ दखे ना, तु हारी बात का उस पर जादईु असर होगा। वह तु हारी बात मानता है और तु हारा कहा नह टालता ह।ै ’’ दसू रे दन, सुबह होते ही रसीदा बेगम ने शखे िच ली को जगाया और कहा-‘‘बेटे! आज तुम ज दी नहा-धोकर िनकलो और कह भी जाकर कोई भी काम करके कु छ कमा कर लौटो। शाम को घर आओ तो तुम मुझे यह कहने लायक रहो क ‘अ मी, यह लो, मेरे दन- भर क कमाई ह।ै ’ “ शेखिच ली तरु त िब तर से उठा। नहा-धोकर तैयार आ और काम क खोज म िनकल पड़ा। आज उसके भीतर एक नया जोश भरा आ था। उसे लग रहा था क वह हर तरह के काम कर सकता ह।ै गाँव क सड़क से वह बाजार जाने क राह पर चल पड़ा। रा ते म उसने एक आदमी को अंड से भरे झाबे के साथ बैठे दखे ा। उसे समझते दरे नह लगी क इस आदमी को मदद क ज रत ह।ै खुदाई िखदमतगार क तरह शेखिच ली उस आदमी के पास प चँ गया और पछू ा-‘‘ य भाई! कोई मदद चािहए?’’

वह आदमी शेखिच ली को दखे कर वसै े ही खुश आ, जसै े कोई िब ली चहू े को दखे कर होती ह!ै उसने तरु त कहा-‘‘हाँ, भाई! यह झाबा िसर पर लादकर म पार वाले गावँ से आ रहा ।ँ थक गया ।ँ य द तमु मरे ा यह झाबा उठाकर बाजार तक ले चलो तो म तु हारा शु गुजार होऊँ गा!’’ और दन होता तो शेखिच ली िबना कसी हील- त के वह झाबा उठाकर बाजार तक प चँ ा आता मगर आज तो अ मी का आदशे िमला है क कु छ कमा कर लौटना! अ मी का आदशे याद आते ही शेखिच ली ने कहा-‘‘ठीक है भाई! प चँ ा दगँू ा...मगर िसफ शु गजु ार होने से काम नह चलगे ा। बताओ, मझु े इस काम के एवज म तुम या दोग?े ’’ उस आदमी ने शखे िच ली से कहा-‘‘भैया! मरे े पास पसै े नह ह◌ं ।ै तमु चाहो तो दो अंडे ले लेना!’’ ‘‘िसफ दो अंड?े ’’ शखे िच ली ने हरै त-भरे अ दाज म पूछा। ‘‘हा,ँ दो अडं !े ...दो अडं को तुम कम मत समझो! दो अडं से दो चूजे िनकल सकते ह और बाद म यही चूजे मु गय म त दील हो जाएँग।े मु गयाँ रोज अंडे दते ी ह। इस तरह सोचो तो तु हारे पास एक मगु खाना ही तयै ार हो जाएगा और तमु मरे ी तरह अंड का कारोबार शु कर सकते हो।’’ शखे िच ली को उसक बात जँच गई और वह तरु त झाबा उठाकर बाजार क तरफ तजे ी से चल पड़ा-एक नई उमगं के साथ। उसके जेहन म सुनहरे वाब तैरने लगे-दो अडं से दो मु गया,ँ दो मुगय से सकै ड़ अडं ,े सैकड़ अडं से सकै ड़ मु गयाँ...सकै ड़ मु गय से हजारा◌ं े अडं .े .. फर तो म अडं का ापारी बन जाऊँ गा...और गाँव के रईस वसीम खान क तरह अकड़कर चलगँू ा-मछूँ ठते ए! अगर कसी ने कभी मरे े साथ बदसलकू क तो म भी उसे वसीम खान क तरह ही इस तरह लात जमा दगँू ा...ऐसा सोचते-सोचते शेखिच ली ने अपना एक परै सामने क तरफ इस तरह उछाला मानो वह कसी को लात मार रहा हो। सड़क पर उसके ठीक सामने एक बड़ा-सा प थर पड़ा आ था। अपने ही खयाल म डूबे रहने के कारण शेखिच ली उस प थर को दखे नह पाया था। लात जमाने के अ दाज म जब उसने अपना पैर जोरदार ढंग से सामने क तरफ उछाला तो उसका परै उस प थर से टकराया और वह मुँह के बल सड़क पर िगर पड़ा। उसके िसर से झाबा दरू जा िगरा और उसम रखे अंडे चकनाचूर हो गए। अब तो अडं वे ाले का गु सा सातव आसमान पर था। उसने शखे िच ली का िगरेबाँ पकड़कर उठाया और उसे थ पड़ मारते ए कहा-‘‘दखे के नह चल सकता था? तनू े तो मरे े सारे अंडे बरबाद कर दए!’’ फर उसने शेखिच ली पर लात-घसूँ े क वषा कर दी। बचे ारा शखे िच ली! बु ा फाड़कर रोने लगा और अंडवे ाले क दहु ाई दते ा आ बोलने

लगा-‘‘ य मारते हो भाई? मझु े मारने से तरे े अडं े तो दु त नह हो जाएँगे...। तमु या जानो, मेरा कतना नकु सान हो गया...। कहाँ तो म गावँ का सबसे बड़ा रईस बनने जा रहा था और कहाँ अपनी रईसी खाक म िमल गई।’’ अडं वे ाला शखे िच ली क बात सुनकर उसे फर एक चाँटा रसीद कया और कहा-‘‘दखे कर चला करो!’’ और अपनी राह चला गया। अपना गाल सहलाता आ शेखिच ली अपने घर क तरफ चल पड़ा, अपने मन को तस ली दते े ए क बटे े! जान बची तो लाख पाए!

बुखार तो बुखार ह,ै आदमी को हो या खरु पी को मदरसा जाते-जाते शखे िच ली ने ब त-कु छ सीखा। मौलाना साहब क एक नसीहत उसे ब त भा गई थी और यह नसीहत थी-अ लाह ने इनसान को दो हाथ दये ह काम करने के िलए। इसिलए इनसान को कभी खाली नह बठै ना चािहए। कु छ-न-कु छ करते रहना चािहए। ग मय के दन थ।े मदरसे क ल बी छु ी चल रही थी। शखे िच ली घर म रहने के िलए मजबरू था। मगर घर म खाली बैठे रहने म उसे परेशानी महससू हो रही थी इसिलए वह बार-बार अपनी अ मी से जाकर कहता-‘‘अ मी, बताओ न कोई काम! खाली बठै ना इनसान के िलए ठीक नह ह!ै खुदा ने उसे दो हाथ ब शे ह तो इसिलए क वह कु छ काम करता रह!े ’’ रसीदा बेगम अपने बटे े के महुँ से इस तरह क बात सुनकर ब त खुश और सोचने लग क शेखिच ली को ऐसा कौन-सा काम बताएँ िजसम उसका दन िनकल जाए। ब त सोच-िवचार करने के बाद रसीदा बगे म ने एक खुरपी लाकर शेखिच ली को थमाई और कहा-‘‘बटे े! दरवाजे के सामने क खुली जमीन म तु हारे अ बू ने आलू लगवा रखे ह। आलू के पौधे अब बड़े हो चले ह। जाकर उन पर िम ी चढ़ा द।े यान रखना- आलू के पौध क या रयाँ िबलकु ल सीध म रह।’’ शेखिच ली ने अपने खते म मजदरू - कसान को काम करते दखे ा था। आलू क खेती उसके गाँव म ायः हर कसान घर क ज रत के मुतािबक करता था िजसके कारण शखे िच ली को पूरा भरोसा था क वह आलू के पौध पर िम ी चढ़ाने का काम ठीक तरह से कर लगे ा इसिलए उसने उ साहपवू क खरु पी थामी और आलू के खते क तरफ चला गया। दो-तीन घटं े वह मनोयोग से आलू के पौध पर िम ी चढ़ाते ए उसक या रयाँ बनाने म जुटा रहा। दोपहर म उसक अ मी बाहर िनकल और उसके पास आकर बोल -‘‘शेखू बेटा! अब चल, हाथ-मुँह धोकर खाना खा ल।े फर आकर लगना खेत म।’’ शखे िच ली ने आलू के खेत म ही खुरपी छोड़ दी और कु एँ पर जाकर खुद कु एँ से पानी िनकाला और अ छी तरह हाथ-परै धोए फर अ मी के साथ घर म आ गया। भोजन करने के बाद शेखिच ली आलू के खते म काम करने के उ े य से परू े उ साह के साथ प चँ ा। उसने िम ी कोड़ने के िलए खुरपी उठाई। उफ! खरु पी तप-सी रही थी। खरु पी

इतनी गरम हो चकु थी क उसक बट शेखिच ली क पकड़ से छू ट गई। शेखिच ली यह नह समझ पाया क दोपहर क धपू म पड़ी रहने के कारण खुरपी गरम हो गई ह।ै इसक जगह उसे याद आया क एक बार उसका शरीर भी तपने लगा था। तब अ मी हक म साहब को बलु ाकर ले आई थ और हक म साहब ने उसे दखे कर अ मी से कहा था-‘बगे म सािहबा! शेखू को तेज बुखार ह।ै म दवा बनाकर भेज दते ा ।ँ इसे हर चार घटं े पर दो-दो च मच दवा िपलाती रिहएगा...।’ शेखू को स दहे आ क उसक खुरपी भी बीमार है और उसे तेज बखु ार हो गया ह.ै ..ऐसा खयाल आते ही शेखिच ली ने दौड़ लगाई और भागता आ हक म साहब के पास प चँ गया। हक म साहब उस समय खाना खाकर आराम फरमा रहे थे। शखे िच ली ने उनके पास प चँ कर हाफँ ते ए कहा-‘‘हक म साहब! ज दी चिलए!’’ ‘‘ य , या आ शेखिच ली? कसक तबीयत खराब हो गई?’’ हक म साहब ने पूछा। ‘‘मेरी खुरपी धूप म पड़ी थी, अभी उसे तजे बुखार हो आया ह।ै आप चलकर उसे दखे लीिजए और कोई अ छी-सी दवा दे दीिजए िजससे मेरी खरु पी ज दी से ठीक हो जाए।’’ शेखिच ली ने कहा। हक म साहब को बात समझते दरे नह लगी क धपू म पड़ी रहने के कारण खरु पी गरम हो गई है िजसे शखे िच ली बुखार समझ रहा ह।ै उ ह ने यार-भरे अ दाज म शेखिच ली से कहा-‘‘बटे ा, तु हारे खते के पास तो एक तालाब भी है न? अपनी खुरपी को र सी से बाँधकर उस तालाब म दो-तीन डुब कयाँ लगा दो। खरु पी का बुखार उतर जाएगा। खुरपी- ख ती-कु दाल का बखु ार उतारने के िलए यह श तया इलाज ह।ै हाँ, य द ऐसा करने पर भी खरु पी का बखु ार नह उतरे तब आना। म चलगँू ा और दखे ूँगा क तु हारी खरु पी को या रोग लग गया ह।ै अभी तुम जाओ और जैसा मने बताया ह,ै वसै ा करो।’’ शेखिच ली पुनः अपने आलू के खेत म प चँ ा और खुरपी को एक र सी म बाँधकर तालाब के पानी म दो-तीन बार डुबोया और िनकाला। इसके बाद उसने खुरपी को कपड़े से प छा और उसे छू कर दखे ा। खरु पी का तापमान सामा य हो चला था। शेखिच ली इस कामयाबी पर उछल पड़ा। उसने मान िलया क बखु ार उतारने क कामयाब तरक ब उसने सीख ली ह।ै इस बोध के साथ वह दनू े उ साह से आलू के खेत म काम करने लगा। शाम को सरू ज ढलने के बाद भी जब वह घर वापस नह लौटा तब रसीदा बगे म खुद प चँ ग आलू के खते पर। वहाँ उ ह ने दखे ा क शखे िच ली ने उ मीद से ब त यादा आलू क या रयाँ तयै ार कर दी ह- िबलकु ल सीधी या रया!ँ अपने बटे े के इस कारनामे पर वह ब त खशु और उसे साथ लेकर लौट और उसके हाथ-परै धुलवाकर घर म ले ग।

अब यह आलू का खेत शेखिच ली के हवाले हो गया। उसक कोड़ाई और पौध पर िम ी चढ़ाने का काम शखे िच ली ने परू ी तरह अपने िज मे ले िलया। आलू क फसल जब तैयार ई तो सयं ोगवश उस खते क पदै ावार अ छी ई िजसम शखे िच ली ने काम कया था। शेखिच ली क इस उपलि ध क चचा शेख बद ीन ब त शान से अपनी िम ा-मडं ली म करते थे िजसे सनु कर शखे िच ली ब त स होता था। इसी तरह दन गुजर रहे थे। अचानक एक रात पड़ोस के एक घर म अफरा-तफरी मच गई। घर क बूढ़ी औरत को तजे बुखार था। हक म साहब को बलु ा लाने के िलए पास- पड़ोस के लोग से कहा जा रहा था य क उस व उस घर म पु ष सद य नह थ।े मिहलाएँ थ या फर ब े थे। अफरा-तफरी के कारण शेख बद ीन भी जगे और उनक बगे म भी जग । शखे िच ली क भी न द खलु गई। सभी बाहर आए। पड़ोसी के घर कोहराम मचने का कारण जानकर शखे बद ीन हक म साहब को बुला लाने के िलए चले गए। रसीदा बगे म उस बूढ़ी औरत को दखे ने चली ग । बाहर रह गया शखे िच ली। उसने लोग से िमली जानकारी को आधार बनाकर कहना शु कया-‘‘भाई! दादी जी को बखु ार ह।ै इतनी-सी बात को आफत समझने क ज रत नह । मझु े बखु ार उतारने का नु खा हक म साहब ने ही िसखाया ह।ै दादी जी को सामनेवाले तालाब म दो-तीन डुब कयाँ दलवा द... फर दिे खए क बुखार कै से छू -म तर हो जाता ह।ै ’’ शेखिच ली ने यह बात इतने िव ास और संजीदगी से कही क आसपास के लोग को उस पर भरोसा हो गया और आनन-फानन म बीमार बूढ़ी को उठाकर कु छ लोग ले आए और उ ह लके र तालाब के पानी म उतर गए। पानी म बूढ़ी को दो-तीन डुब कयाँ लगाई ग और इसका असर यह आ क बूढ़ी क हालत और खराब हो गई। उसक साँस उलटी चलने लग । सयं ोगवश उसी समय शेख बद ीन अपने साथ हक म साहब को लके र प चँ ।े हक म साहब ने तुर त वृ मिहला को कोई दवा िखलाई और इस बात पर खफा होने लगे क बूढ़ी को पानी म य डुबोया गया। जब हक म साहब को पता चला क शखे िच ली ने खरु पी के बुखार उतारने का नु खा इस वृ मिहला का बखु ार उतारने के िलए आजमाया है तब उ ह ने शखे िच ली को बलु ाकर समझाया-‘‘बटे े शखे ू! आज तो म समय पर आ गया िजससे बूढ़ी क जान बच गई। अब ऐसा इलाज मत करना। खुरपी का इलाज आदमी पर आजमाओगे तो हमशे ा धोखा खाओगे। अभी पढ़ो और इलाज-िवलाज के च र म मत पड़ो...।’’ शेखिच ली अजीब िनगाह से हक म साहब को दखे रहा था और मन-ही-मन सोच रहा था-‘बुखार तो बुखार ह,ै आदमी को हो या खुरपी को...! तो दोन के िलए दवा तो एक ही होगी न!’

चरै ाहे से ससुराल तक शखे िच ली का दो-मिं जला मकान या बना क उसके उमंग के पर िनकल आए। वह जब भी मौका िमलता, शेखी बघारने से नह चूकता। गाँव के लड़क म भी उसक धाक जम गई थी। वह जब भी घर से बाहर िनकलता तो उसके हमउ लड़के उसके इद-िगद मडँ राने लगत।े इधर एक नई अदा भी सीख ली थी शखे िच ली न।े वह एक गोल टोपी लगाकर ही घर से बाहर िनकलता था और जब कभी भी कोई साथी उसे टोकता तो वह अपने िसर क टोपी को जरा-सा घमु ाकर उसक बात का जवाब दते ा। एक दन शखे िच ली अपने कु छ सािथय के साथ अपने गावँ के चैराहे पर बने चबूतरे पर बैठा आ इधर-उधर क बात कर रहा था। तभी एक अजनबी आदमी वहाँ पर आकर क गया और लड़क से मखु ाितब होकर बोला-‘‘ य ब ो, या यही सड़क शेख साहब के घर जाएगी।’’ शेखिच ली को उस ि का सवाल सनु कर मसखरी सझू ी और वह तुर त बोल पड़ा-‘‘नह जनाब! शेख साहब के घर न यह सड़क जाती है और न वह सड़क जाती ह।ै ’’ वह ि हरै त म डूबकर बोला-‘‘ या बात कर रहे हो बेटे? ऐसा कै से हो सकता ह?ै बारह साल पहले म यहाँ आया था...अभी भी ब त-कु छ वसै ा ही ह-ै इस गावँ का। तुम समझ तो रहे हो-शखे साहब से मेरा मतलब शेख बद ीन से ह।ै या शेख बद ीन इस गावँ म नह रहते?’’ शखे बद ीन का नाम सुनकर शेखिच ली चका तो ज र मगर दो त के बीच रौब गािलब करने के िलए फर उसी अ दाज म बोला- ‘‘शेख बद ीन तो इसी गाँव म रहते ह जनाब! मगर ये सड़क इसी तरह यह पड़ी रहती ह जनाब! कह आती-जाती नह ।’’ शखे िच ली क बात सुनकर वह आदमी थोड़ा झप-सा गया और झपते ए ही शेखिच ली से कहा-‘‘हाँ, बटे े! सड़क खदु नह चलत । उन पर चलकर मुसा फर एक थान से दसू रे थान तक जाते ह...अब मझु े यह बता दो क कस सड़क से चलकर जाऊँ क म शखे बद ीन के घर प चँ जाऊँ !’’ शेखिच ली क मसखरी का अ दाज अब थोड़ा कम हो चला था। उसने उस ि से पूछा-‘‘मगर जनाब! आप शेख बद ीन साहब के घर य जाना चाहते ह?’’ ”शेख बद ीन मरे े बचपन का दो त ह।ै कभी हम दोन साथ-साथ खले ा करते थे। मगर

व ने हम अलग-अलग रहने को मजबूर कर दया। वह तो मरे ा सबसे अजीज दो त आ करता था क तु व का कु छ ऐसा च र चला क उसके अ बा अपना पूरा प रवार साथ लेकर इस गावँ म बस गए। बारह साल पहले जब शखे बद ीन के घर एक जलसा आ तब म अपने पूरे प रवार के साथ उसके पास आया था।’’ अब शखे िच ली को लगा क इस इनसान से मसखरी करना ठीक नह है इसिलए तुर त बेहद शालीन अ दाज म बोला-‘‘जनाब! आप पहले तो मरे ा आदाब कबलू फरमाइए फर म आपको शखे साहब के घर ले चलगँू ा। शेख साहब मेरे अ बा जरू ह।’’ शखे िच ली क शालीनता से वह आदमी भािवत आ और बोला- ‘‘खशु रहो बरखुरदार! तु हारी हािजरजवाबी का कायल आ। ब त अ छा लगा तमु से िमलकर। शेख साहब ने तु ह अ छी तालीम दी ह।ै खदु ा तु ह कामयाबी ब शे।’’ शेखिच ली एक अजनबी इनसान से अपनी तारीफ सुनकर ब त खुश आ और बोला-‘‘चिलए जनाब! मेरे साथ चिलए। म आपको बागानवाली सड़क से लके र चलता ।ँ अगर अ बू बागान म ह गे तो दख जाएँगे, नह तो घर पर आपक उनसे मलु ाकात ज र हो जाएगी।’’ वह ि शखे िच ली के साथ चलने लगा। शेखिच ली चपु चाप चल रहा था और आदत के अनसु ार थोड़ी-थोड़ी दरे पर अपनी टोपी घमु ा दते ा था। उस ि ने उसे बार-बार टोपी घमु ाते दखे कर पूछा-‘‘ या बात ह,ै बेटे, अपनी टोपी को तमु बार-बार घमु ाते य हो? या तु हारे िसर म खजु ली हो रही ह?ै ’’ ‘‘िबलकु ल नह जनाब! बस, म यह सोच रहा था क दिु नया गोल है जैसे मेरी टोपी गोल ह।ै िज दगी इधर से गजु रे या उधर से-प चँ ती कहाँ ह,ै कोई समझ नह पाता। यह टोपी घमू गई फर भी दखे ने म वसै ी क वैसी...इसका न कोई आगे का भाग है और न पीछे का...’’ वह ि शखे िच ली के मुँह से फलसफाने अ दाज म इस तरह क बात सनु कर ब त भािवत आ और बोला-‘‘वाह, बटे े! इतनी छोटी उ म तु ह िज दगी का अ छा तजुबा ह।ै शखे साहब ने तु ह अ छी परव रश दी ह.ै ..म तो तु हारी सोच का कायल आ।’’ अब तक बागान का इलाका आ चुका था। शखे िच ली बागान क तरफ दखे ते ए बोला-‘‘जनाब, आप भी बागान म झाकँ ते चल, शायद अ बा दख जाए।ँ अ बा या तो बागान म रहते ह या फर घर म और कह आते-जाते नह ह!’’ बागान का इलाका समा हो जाने के बाद शेखिच ली ने उस ि से कहा-‘‘अ बा बागान म नह ह। इसका मतलब है क वे घर म ही ह ग।े आगेवाले मोड़ से दस कदम क दरू ी पर हमारा घर ह.ै ..अब एक

फलाग ही समिझए!’’ वह ि मु कु राकर शेखिच ली क तरफ दखे ने लगा और बोला- ‘‘बेटे, म दखे रहा ,ँ तुमम शेख साहब के ब त सारे गुण ह। तु हारे अ बा भी समय और दरू ी का अ दाज लगाकर चला करते थे। कह भी दरे से प चँ ना उ ह अ छा नह लगता था।’’ बातचीत करते ए शेखिच ली उस ि के साथ अपने घर आ गया। उस ि को अपने प े मकान म अ बा के िलए सरु ि त कमरे म ले जाकर बैठाकर उसने कहा-‘‘म अभी अ बा को बलु ाता ँ शायद वे ऊपर ह।’’ इतना कहकर शखे िच ली वहाँ से चला गया। वह ि उस कमरे म रखी परु ानी न ाशीदार कु सय , गाव-त कय से सजे दीवान, मेहराबदार िखड़ कय और आबनसू के बने दरवाज को दखे रहा था तभी शेख बद ीन ने कमरे म वेश कया और उस ि को दखे कर हरै त से बोल पड़-े ‘‘अरे महमदू िमया.ँ ..तुम! अ लाह कसम! मझु े तस वुर म भी यह खयाल नह आया क तुमसे इस तरह मलु ाकात होगी।’’ महमूद िमयाँ कु स से उठ खड़े ए और शखे बद ीन से गले िमले और फर दोन दो त बात करने लगे। इसी बीच शखे िच ली दो िगलास शबत लेकर कमरे म प चँ ा और उन दोन के सामने रख दया। उस व वे दोन ब त अजीजी से गु तगू कर रहे थे। शेखिच ली को वहाँ आया दखे महमूद िमयाँ ने कहा-‘‘बद ीन! मझु े तु हारा बटे ा ब त पस द आया। इसक बात म इतनी गहराई है क सुनकर हरै त होती ह।ै मने इस उ के लड़क को कभी इतनी ऊँ ची और बहे तरीन खयालातवाली बात करते नह सुन ।’’ अपनी तारीफ सुनता आ शेखिच ली धीरे-धीरे कदम बढ़ाता आ कमरे से बाहर हो गया। दसू रे दन सुबह शेखिच ली क अ मी ने उसे जगाया और बोल - ‘‘बेटे, जा, हलवाई क दकु ान से दो-तीन तरह क िमठाइयाँ िमलवाकर सरे -भर िमठाई और एक सेर दधू ले आ। महमूद साहब क अ छी खाितरदारी करनी ह।ै यह तु हारे अ बा का म ह।ै ’’ अलसाए ए शखे िच ली ने उबािसयाँ लते े ए कहा-‘‘अ मी, मझु े सोने दो। अ बा खदु चले जाएँ िमठाई और दधू लान।े खाितरदारी उनके दो त क होनी ह.ै ..मरे ी न द य खराब करती हो?’’ ‘‘बेटे! उनके दो त अब तु हारे ससरु बननवे ाले ह। उठ, तु हारे साथ हम लोग कल ही उनक बेटी को दखे ने जाएँगे और खदु ा ने चाहा तो ज दी ही उनक बेटी का िनकाह तु हारे साथ हो जाएगा।’’

अ मी क बात सनु कर शेखिच ली के पूरे िज म म एक सनसनी-सी दौड़ गई...उसक आँख क न द गायब हो गई और वह हरै त के उबाल म िब तर पर बठै गया और पूछा-‘‘अरे अ मी! या कह रही हो तुम!’’ ‘‘हा,ँ बेटे! महमूद साहब तमु पर फदा हो गए ह। तु हारे अ बू से कह रहे थे क तमु से अ छा नौजवान वे अपनी बेटी रिजया के िलए लाख कोिशश भी कर तो नह तलाश सकत।े वे चाहते ह क ज दी-से-ज दी तु ह अपना दामाद बना ल◌ं ।े आज वे लौट जाएगँ े और हम लोग क अगवानी का इ तजाम करगे। कल हम लोग उनके घर जाएँगे। तु हारी होनेवाली बीवी को दखे न।े सबकु छ ठीक रहा तो ज दी ही तु हारी शादी उनक बेटी से हो जाएगी और तु हारे अ बू क बचपन क दो ती र तेदारी म बदल जाएगी।’’ शेखिच ली आनन-फानन म िब तर से उठा और हलवाई क दकु ान से िमठाई और दधू लके र आ गया। महमूद साहब क जोरदार महे माननवाजी हो, इसके िलए उसने जी-जान लगा दी। दसू रे दन उनक बटे ी को दखे न-े छेकने क र म अदायगी भी हो गई और महीन-े डढ़े महीने म शेखिच ली का िववाह भी हो गया। जब शखे िच ली अपनी दलु हन के साथ अपने घर आ रहा था तब गावँ के उस चरै ाहे पर प चँ कर उसने अपनी बगे म से कहा-‘‘यही चैर ता ह-ै दखे ो, यहाँ से चार राह चार दशा म जाती ह मगर मरे े िलए इस चरै ते ने तु हारे घर का ार खोला और तु हारे िलए मरे े घर प चँ ने का रा ता बना दया...मगर या क ँ , तुम मरे ी बात अभी नह समझोगी! तु हारे अ बा होते तो समझ भी जात।े ’’ उसक बेगम ने घूघँ ट क ओट से उस चैराहे का नजारा िलया और फर घघूँ ट म खुद को समेट िलया।

चोरी न करने का संक प एक दन एक भ मिहला शेखिच ली क दकु ान म कु छ खरीदने के िलए आई। शखे िच ली उसे लाउज के कपड़,े सूट-सलवार के कपड़े दखाने लगा। उस मिहला ने एक सूट का कपड़ा िलया और उस कपड़े के पैसे चकु ाए। पसै े लेकर शखे िच ली अपने ग ले के पास जा बैठा और ग ले म से अपनी गोल टोपी िनकालकर पहन ली। मिहला ने जात-े जाते, ठमककर शखे िच ली क तरफ दखे ा और उसे पहचान गई। यह वही मिहला थी िजसके घर म कु े का पीछा करते ए शखे िच ली घसु गया था और वहाँ से लौटते समय पलगं से सौ- सौ के नोट क ग ी उठाकर ले आया था। मिहला ने उसे गुसलखाने से दखे ा था। उसक नुक ली दाढ़ी और गोल टोपी उसे याद रह गई थी। घर से पए चोरी कए जाने क घटना क जानकारी उसने पिु लस को दे दी थी िजसम उसने चोर का िलया भी बता रखा था। मिहला ने पूरे इ मीनान के साथ शखे िच ली का चेहरा दखे ा और जब उसे यह तस ली हो गई क यह वही आदमी है जो उसके घर से नोट क ग ी ले आया था तब वह उसक दकु ान से िबना कु छ कहे िनकली। वह सीधा पुिलस थाने गई और वहाँ उसने पुिलस को जानकारी दे दी क िजस चोर ने उसके घर से दस हजार पए चरु ाए थ,े वह बाजार म◌ं े कपड़े क दकु ान चला रहा ह।ै मिहला क सचू ना के बाद पुिलस हरकत म आई और शेखिच ली के कपड़े क दकु ान पर छापा मारकर उसे पकड़ िलया। पहले तो अपनी िगर तारी से च कत आ ले कन जब पुिलस ने उससे पूछताछ शु क तब उसक समझ म आ गया क मामला दस हजार पए का ह।ै उसी दस हजार पए का जो वह एक घर से रोटी के एवज म उठा लाया था। उस र का कु ा उसके हाथ से रोटी छीनकर भाग गया था और वह कु े का पीछा करते ए उस घर मं◌े जा घसु ा था और पलगं पर रखी नोट क ग ी उड़ा लाया था। पिु लस थाने म उससे पूछताछ करने लगी-‘‘बताओ! तुमने उस भ मिहला जबु ैदा खातून का पया िलया था या नह ?’’ ‘‘म कसी भ मिहला जुबैदा खातून को नह जानता।’’ ‘‘तुमने कसी घर से पलगं पर रखे नोट का बंडल चरु ाया।’’ थानेदार ने रौब डालते ए पूछा। ‘‘हाँ, एक कु े के घर से! कु ा मरे ी रोटी चरु ाकर भागा था। म कु े के पीछे दौड़ता आ उस घर म◌ं े घुसा था और कु े को नह पकड़ पाने के कारण म वहाँ से पए लके र भाग

आया था।’’ थानदे ार ने शखे िच ली के जवाब से ही समझ िलया क यह आदमी ईमानदार भी है और परले दज का बवे कू फ भी। दसू रे दन दडं ािधकारी क इजलास म शखे िच ली क पशे ी ई और आदशे आ-‘शखे िच ली क दकु ान क नीलामी कर उस मिहला के पसै े वापस कर दए जाएँ और शेखिच ली को तीन महीने के िलए जले भजे दया जाए।’ दडं ािधकारी ने मामले क सनु वाई करते ए आगे कहा- ‘‘शेखिच ली ईमानदार ह।ै वह समझ रहा है क वह रोटी के बदले पए ले आया ह।ै उसक बात से कट होता है क उसे अपने अपराध का ान नह ह।ै मगर उससे अनजाने ही सही, दडं नीय अपराध आ है िजसके कारण उसे सजा भगु तनी होगी। उसक नके चलनी और ईमानदारी के कारण उसे मा ा तीन महीने क सजा ही बामश त दी जाती ह।ै ’’ इस तरह शेखिच ली क दकु ान क नीलामी हो गई और शखे िच ली को जले भजे दया गया। शखे िच ली के जेल जाने क खबर जब उसक अ मी रसीदा बगे म को िमली तो उसका कलेजा मँहु को आ गया। वह रोती- कलपती भागी-भागी जेल प चँ ी और शेखिच ली से िमलकर िबलख पड़ी। शेखिच ली ने अपनी अ मी को समझाया-‘‘अ मी! जो होना था सो हो गया। म अपनी पूव क ि थित म आ गया ।ँ कोई बात नह ह,ै अ मी! जले से िनकलकर म जी लगाकर काम क ँ गा और फर बेहतर िज दगी िजएँगे हम सब। यह मेरा वादा ह।ै ’’ अ मी को िवदा करके शखे िच ली अपने बीते दन को याद करने लगा। दसू रे दन जब उसक अ मी उससे िमलने आई तब उसने कहा- ‘‘अ मी! तमु रिजया को लके र गाँव वापस चली जाओ। जले से िनकलने के बाद म गाँव आऊँ गा तब सभी िमलकर सोचगे क अब आगे या करना ह।ै ’’ थोड़ी दरे चुप रहने के बाद शेखिच ली ने पनु ः कहा-‘‘अ मी! मझु से िमलने एक दन भी रिजया नह आई, या बात ह?ै या वह मझु से नाराज ह?ै ’’ ‘‘नह बटे े! वह य नाराज होने लगी? तु हारी िगर तारी क वजह से वह मायसू है और अपने गम से हलकान ह।ै म उसे कल लेकर आऊँ गी। तू िच ता न कर।’’ शेखिच ली को ममता से िनहारते ए रसीदा बगे म ने कहा। अपने बटे े से जेल म िमलकर जब रसीदा बेगम घर लौटी तब उसने अपनी ब रिजया

बगे म से बताया क शखे िच ली उससे िमलना चाहता है तब अचानक रिजया बेगम फफक- फफककर रो पड़ी और बोली-”अ मी, मुझसे यह बदा त नह होगा क म अपने पित को जले क सलाख के पीछे दखे ।ँू जो गनु ाह उ ह ने कया है उसक सजा तो वे भोग रहे ह और उनसे स बि धत होने के कारण सारी दिु नया मुझे चोर क बीवी कहगे ी और आपको चोर क अ मी। यह मुझसे कतई बदा त नह होगा। म तो उनसे िमलने जेल कसी भी हालत म नह जाऊँ गी।“ ब त मनाने के बाद भी जब रिजया बेगम नह मानी तब रसीदा बगे म अके ले ही शेखिच ली से िमलने दसू रे दन जले प चँ ी। रसीदा बगे म को अके ले आया दखे वह मन ही मन समझ गया क रिजया बगे म उससे नाराज ह।ै उसने अपनी अ मी से कहा-‘‘अ मी! रिजया से कहना-म उसक नजर मं◌े अ छा इनसान बनकर लौटूँगा।’’ इसके बाद रसीदा बगे म ने शखे िच ली को बताया क वह मकान मािलक के पसै े चुकाकर उसका घर खाली करके गाँव लौट रही ह।ै जेल से छू टने के बाद वह सीधे वह आए। अपने बटे े से िवदा लके र रसीदा बगे म वापस लौट गाई। वह उदास थी और मायसू भी। सास क उदासी को समझते ए रिजया बेगम ने उससे कहा- ‘‘अ मीजान! आप सोच रही ह गी क म कतने कठोर दल क ँ क जेल मं◌े ब द अपने पित से िमलने नह गई। मगर अ मी, वे इतने भोले और लापरवाह ह क उ ह कभी अपनी गलितय का अहसास भी नह होता ह।ै मने यह कठोरता उ ह समझदार बनाने के िलए अपना ली ह।ै वे अब भी ब जसै ी हरकतं◌े करते ह...मुझे तो हरै त होती ह।ै ’’ रसीदा बगे म ने रिजया क ओर दखे ा और उसे तस ली दते ी ई बोल -‘‘ब ! तु हारा कहना जायज ह।ै अ लाह करे क शेखिच ली अब समझदारी से काम लने ा सीख जाए। अगर उसने थानेदार के सामने सच क जगह झूठ बोल दया होता तो यह आफत गले नह पड़ी होती। खैर! खुदा जो करता ह,ै भले के िलए करता ह।ै “ दसू रे दन रसीदा बगे म अपनी ब रिजया के साथ गावँ प चँ ग और अपनी सामा य दनचया म लग ग । अभी उ ह आए प ह दन भी नह बीते थे क गाँव मं◌े हजै ा फै ल गया और शेख बद ीन का उि टयाँ करत-े करते इ तकाल हो गया। रिजया बगे म स रह गई ससरु क मौत से और रसीदा बेगम को काठ सा मार गया। भावशू य अव था मं◌े ही रसीदा और रिजया ने सारे सगे-स बि धय को सचू ना दी। शेख बद ीन को सुपदु -खाक कया गया।

शखे िच ली को जब जले म अपने अ बू के इ तकाल क खबर िमली तो वह फू ट-फू टकर रोया और तीन महीना बीतने क बेकली से ती ा करने लगा। अब उसके िलए अ मी और रिजया क परव रश के िलए कु छ करने क ज रत आन पड़ी थी। कसी तरह तीन महीने क अविध पूरी ई। शेखिच ली जले से बाहर आया और सीधे अपने गावँ प चँ ा। अ मी उससे िलपटकर फू ट-फू टकर रो । मगर रिजया बगे म उससे कोई बात करने के िलए तयै ार नह ई। अ मी के गुहार लगाने पर उसने कहा- ‘‘अ मी! पहले आप अपने बेटे को कह क िज दगी म कभी भी कोई चोरी नह करने क शपथ ल तब ही म उनसे बात क ँ गी, नह तो म उनक ओर दखे ◌ँ ूगी भी नह ।’’ िबना अ मी के कु छ बोले ही शेखिच ली ने रिजया बेगम के सामने शपथ ली क वह जीवन म कभी भी कसी क कोई चीज नह चरु ाएगा, तब रिजया बेगम का गु सा शा त आ और वह उससे िलपटकर दरे तक रोती रही। शेखिच ली उसके िसर पर थप कयाँ दके र उसके शा त होने का इ तजार करता रहा और जब वह शा त ई तो उसे बाँह मं◌े लेकर अपने कमरे म चला गया। एक अरसे बाद शखे िच ली अपने घर म चैन क न द सोया।

द ली से मोहभंग िजन दन शखे िच ली द ली म अपने दन गजु ार रहा था, उन दन महरौली इलाके म एक सेठ के घर पर चोरी हो गई। चोर बड़ी दलेरी के साथ सेठ क ितजोरी खोलकर उसम से जेवर और नकदी िनकालकर ले गया। ितजोरी म चोर एक पचा िलखकर छोड़ गया-‘अगली पूणमासी को फर आकर इसी घर म◌ं े चोरी क ँ गा, रोक सकते हो तो रोक लो।’ सठे ने पिु लस को खबर कर दी। पणू मासी क रात को पुिलस ने सेठ के घर क नाके ब दी कर दी। सठे का घर पुिलस छावनी म बदल दया। पिु लस को िव ास था क चोर तो या, सठे के मकान म प र दा भी अब पर नह मार सकता। ले कन दसू रे दन पुिलस के इस िव ास को जबद त झटका लगा य क रात को ही चोर ने सेठ क स दकू से क मती सामान चुरा िलया था और स दकू म फर एक पचा छोड़ गए थे-‘दखे िलया पिु लस बलु ाने का अंजाम! अब अगली अमावस क रात को फर आऊँ गा, रोक सको तो रोको।’ सठे ने सोचा क पुिलस बुलाने का तो कोई फायदा नह आ, उ टे पुिलसवाल क आवभगत म सैकड़ पए खच हो गए मगर इस िसर फरे जनु ूनी चोर को रोकना भी तो ज री ह।ै सेठ चोर को रोकने का उपाय सोच ही रहा था क तभी उसके पास काम क तलाश म शखे िच ली प चँ गया। सठे ने शखे िच ली से कहा-‘‘काम तो म तु ह दे दगँू ा। तमु चाहो तो तु हारी अ छी कमाई हो जाएगी। अमावस क रात तक तु ह कना पड़गे ा। अमावस क रात को एक चोर इस मकान म चोरी करने आएगा। अगर तुमने चोरी होने से इस घर को बचा िलया तो म तु ह एक हजार पए दगँू ा और अगर तुमने चोर को पकड़ िलया तो इनाम म तु ह पाँच जार पए िमलग।े ’’ शखे िच ली को भला या एतराज होता! पल मं◌े जीनेवाले शखे िच ली के िलए अमावस तक िसर िछपाने का इ तजाम हो गया। वह यह सोचकर स हो गया क अमावस तक उसे खाने के िलए नह सोचना पड़गे ा...आगे क फर आगे सोची जाएगी। एक के बाद एक दन गुजरते गए और आिखर अमावस आ ही गया। शखे िच ली ने दन म ही छत का मआु यना कर िलया था। छत पर एक ऐसी जगह थी जो सठे के मकान को दो भाग म बाँटती थी। इस जगह के ठीक नीचे से एक तीन फ ट क गली जाती थी। यह गली सनु सान थी जो आगे मु य माग से जड़ु जाती थी। शखे िच ली ने एक पटरा उठाया और दोन छत क मडँु ़रे पर उसे रख दया और तय कर िलया क चोर को पकड़ने के िलए वह

इस पटरे पर बठै कर नीचवे ाली गली पर यान लगाए रहगे ा। चोर ज र इसी गली से घर म घुसगे ा य क मु य माग से वह आने का साहस नह करेगा। अपनी तैया रयाँ करने के बाद शेखिच ली घर म आ गया। सठे ने उसे याद दलाया-‘‘आज अमावस ह।ै ’’ ‘‘हाँ, सेठ जी! मगर अमावस क िच ता मझु े नह , चोर को होनी चािहए य क मेरा नाम शखे िच ली ह।ै ’’ सठे शेखिच ली क बात से आ त आ और बोला-‘‘भाई शेख! तुम अके ले नह हो। आज रात मेरा परू ा प रवार तु हारे सहयोग के िलए तयै ार रहगे ा।’’ शेखिच ली ने अपनी तरफ से सठे को तस ली दी-”अगर चोर आया तो मरे े िबछाए जाल म फँ सकर ही रहगे ा।“ वह खाना खाकर छत पर आ गया। जब रात गहराने लगी तब वह मुँडरे पर रखी त ती पर चढ़कर गली पर नजर रखने लगा। अमावस क रात गहरा गई। गली म घु प अँधरे ा हो गया। तभी छत पर कोई आया और पटरे से टकरा गया। पटरे पर शखे िच ली बठै ा था। वह िछटककर नीचे िगरा क तु जमीन पर न िगरकर कसी के शरीर पर। धपाक् क आवाज रात के स ाटे म गँूज गई और इसके साथ ही कसी के जोर से कराहने क आवाज भी उभरकर आई-”बाप रे! मेरी टाँग ग ।“ सेठ के घर म लोग जगे ए थे, वे हाथ म लालटेन िलये दौड़ते ए बाहर आए। गली म प चँ कर दखे ा क एक आदमी पर शखे िच ली सवार था। सठे और उसके लड़के ने िमलकर उस आदमी को अपनी पकड़ म ले िलया था। वह आदमी दद से अब भी िबलिबला रहा था। उसके एक पावँ क ह ी टूट गई थी। शखे िच ली उसके ऊपर ही पटरे सिहत िगरा था। उस आदमी पर िगरने के कारण शखे िच ली चोट खाने से साफ बच गया था। उस आदमी को दबोचे-दबोचे सेठ का लड़का बोल रहा था क छत पर अभी म गया था तब इस आदमी के कसी साथी से टकरा गया था। इसक बात सुनकर मन ही मन शेखिच ली ने खदु ा का शु या अदा कया क पटरे से उसके िगरने क बात कोई नह जानता ह।ै उसने उस चोर के बाल को मु ी म पकड़ते ए सठे से पूछा-‘‘ य जनाब! मने अपना वादा तो पूरा कर दया न?’’ ”हा,ँ भाई! तुमने तो कमाल कर दया।’’ सेठ ने कहा। शखे िच ली ने पछू ा-‘‘आप भी अपना वादा पूरा करोगे न?’’

‘‘हा,ँ भाई! य नह ! तमु ने इस शाितर चोर को पकड़कर हमारे ऊपर ब त बड़ा एहसान कया ह।ै ’’ सेठ ने दसू रे दन सबु ह थाने को सूचना दके र उस चोर को पिु लस के हवाले कर दया और शखे िच ली को नकद पाँच हजार पए दके र िवदा कया। सठे के घर से शेखिच ली िवदा हो चुका था। उसक जेब म पाचँ हजार पए थे मगर उसक िज दगी का वह मौिलक अब भी उसका पीछा कर रहा था-‘जाएँ तो जाएँ कहा?ँ ’ इसी सवाल को अपने दमाग म बसाए शेखिच ली द ली म महरौली क सड़क पर इधर-उधर भटक रहा था क एक चरै ाहे पर उसे भीड़ दखी और दखा कु तबु मीनार! शेखिच ली ने मदरसे म कताब म◌ं े कु तुबमीनार के बारे म पढ़ा था। वह अ य सलै ािनय क तरह कु तुबमीनार दखे ने के िलए चला गया। मगर गेट पर उसे उसी तरह दरबान ने रोक दया-‘‘‘ टकट दखाओ।’’ शखे िच ली िचढ़ गया-‘‘अरे भाई, कु तुबमीनार दखे ने ही जा रहे ह, वहाँ से कु छ लेने तो नह जा रहे ह! फर काहे का टकट?’’ ”भाई साहब! अगर कु तुबमीनार बाहर से दखे गे तो पसै े नह लगग।े भीतर से दखे ोगे तो इसके िलए तु ह टकट कटाना पड़गे ा।“ दरबान के इस दो-टूक उ र ने बहस क कोई गुंजाइश नह छोड़ी। शेखिच ली क सम या थी क उसने सेठ से िमले पाँच हजार पए एक कपड़े म बाँधकर वह कपड़ा अपनी कमर पर बे ट क तरह बाँध िलया था ता क वह जबे कतर और झपटमार क नजर से अपने पसै को बचाए रख सके । वह यह भलू गया था क मनमोहन से िमली रकम का एक बड़ा िह सा उसके पास है जो अभी तक खच नह आ ह।ै वह कु तबु मीनार के वशे ार से हटकर एक तरफ खड़ा हो गया और अनजाने ही अपने कु त क जबे म हाथ डाला तो उसके हाथ म कागज के कु छ टुकड़े आ गए। शेखिच ली ने कागज के उन टुकड़ को जेब से िनकाला तो दखे ा, कागज के वे टुकड़े सौ-सौ और दस-दस पए के नोट ह। उनम कु छ पाचँ पए और एक पए के नोट भी थे। अब उसे याद आ गया क ये पए मनमोहन से िमले पय मं◌े से बचे ए पए ह। उसने अपने दमाग म ही िहसाब लगाया-सौ पए कमाई के , यारह सौ मनमोहन के यानी कु ल बारह सौ पए। इसम से सात सौ पए अ मी को मनीआडॅ र कया, बचे पाँच सौ पए। इन पाचँ सौ पय म दो दन रैन बसरे ा और भोजन पर तीस-चालीस पए खच ए तो भी अभी जेब म साढ़े चार सौ से अिधक पए ह। उसने पया◌ं े को वापस जबे म रखा तो पाया, जबे म कु छ रेजगा रयाँ भी बची ई थ । पैस क िनि तता महससू होते ही शेखिच ली कतार म लग गया। कु तुबमीनार दखे ने

के िलए दो आने का टकट कटा िलया और कु तबु मीनार दखे ने के िलए सलै ािनय क तरह प रसर म चला गया। उसे ऊँ ची खड़ी मीनार दखे ने म मशगूल लोग क भीड़ तो दखी मगर यह समझ म नह आया क लोग दखे या रहे ह! वह भीड़ से कटकर एक तरफ जाकर बठै गया और सोचने लगा- द ली अजीब शहर ह.ै ..यहाँ चनु ौितयाँ दके र चोर चोरी करते ह। िव ास करनवे ाले मािलक को नौकर चनू ा लगाता है और कत -परायण नौकर पर मािलक हके ड़ी दखाता ह.ै ..यह रहने और बसने लायक जगह नह ह.ै ..कम-से-कम मेरे िलए तो नह । लगभग इसी समय दो आदमी उसके पास खड़े होकर बात करने लग-े ‘‘भयै ा! यह बात समझ म◌ं े नह आती क यह कु तबु मीनार बना कै स?े ’’ ‘‘अरे भाई! मझु े तो लगता है क एक बासँ पर दसू रे बासँ , दसू रे पर तीसरे, तीसरे पर चथै े बासँ को जोड़कर पहले खड़ा कया गया फर इनक जोड़ाई और ढलाई क गई।’’ दसू रे ने कहा। ‘‘मगर भाई! चाहे जैसे बनी हो, यह मीनार है ब त अ भतु और नह लगता क जैसे तमु बता रहे हो, वसै े ही यह बनाई गई होगी!’’ शेखिच ली उन दोनां◌े क बात सनु रहा था। उसने उन दोन को टोका-‘‘अरे यार, तमु लोग भी या बात कर रहे हो! यह भी कोई सोचने क बात ह!ै बेवजह ही मगजमारी कर रहे हो। अरे भाई, पहले इस धरती म एक गहरा कु आँ खोदा गया। उतना गहरा, िजतनी ऊँ ची यह मीनार ह।ै फर उस कु एँ म ट चनु वा दए गए और ढलाई कर दी गई। कु छ दन म जब ढलाई जमकर प हो गई तो उसे कु एँ से िनकालकर मीनार खड़ी कर दी गई और कु आँ भर दया गया।’’ वे दोन अवाक् कभी मीनार को दखे ते और कभी शखे िच ली को। उन दोन को अवाक् छोड़ते ए शखे िच ली अपनी जगह से उठा और धीरे-धीरे टहलता आ गटे से बाहर िनकल गया। उसने घर वापसी का इरादा कर िलया था और अब उसके कदम तेजी से रेलवे टेशन क ओर बढ़ रहे थे।

दने ा-एक गज दधू ! शखे िच ली का बचपन अजीबोगरीब वाकयात से भरा था। शेखिच ली के ारि भक जीवन म सरोकारवाले ब त कम लोग थे। एक अ बू, दसू री अ मी और जब वह मदरसा जाने लगा तब तीसरे मौलाना साहब। कु ल जमा तीन आदमी िजनसे शखे िच ली क बात होत , नसीहत िमलत और डाँट पड़ती। यह ज र है क इसके बावजूद शखे िच ली म नरम द और बुि मान दखने का ज बा था। एक दन शेखिच ली ने अपनी अ मी से कहा-‘‘अ मी! तमु या अ बू मझु से कोई काम नह कराते...आिखर य ? सभी ब के अ मी-अ बू उनसे कोई-न-कोई काम कराते ह मगर तुम तो मुझे कु छ करने ही नह दते ! या म इतना नाकारा ँ क तुम या मेरे अ बू मझु े कसी काम के कािबल नह समझत?े ’’ शखे ू क बात सनु कर रसीदा बगे म चक पड़ । अरे! यह छोटा ब ा, अभी से या काम करेगा? अभी तो खुद से बधना भर पानी ले नह सकता और पछू रहा है क काम य नह करात ? मगर यह बात उ ह ने शखे िच ली पर कट नह होने दी और उसे यार से सहलाते ए बोल - ‘‘ठीक ह,ै मेरे राजा बेटे! अब म तमु से भी कोई-न-कोई काम कराती र गँ ी।’’ माँ का दलु ार पाकर शखे िच ली खुश हो गया और मदरसे से िमला सबक परू ा करने म लग गया। दसू रे दन सुबह जब वह मदरसा जाने के िलए िनकला तो दखे ा, अ मी दरवाजे पर फे रीवाले से लाउज के िलए कपड़े खरीद रही ह। उसे पास से गजु रता दखे कर अ मी ने उसे आवाज दी-‘‘जरा इधर तो आना शखे !ू ’’ शेखिच ली का भी मन था क वह फे रीवाले के पास जाकर नए-नए कपड़े दखे ।े अ मी क पकु ार सनु कर वह खुश हो गया और दौड़कर अ मी के पास प चँ गया। अ मी ने उससे कहा-‘‘बेटे, दखे तो इनम से कौन-सा कपड़ा तु ह अ छा लग रहा ह.ै ..तुम जो कपड़ा पस द करोगे-म उसी कपड़े से अपने िलए लाउज बनवाऊँ गी।’’ शेखिच ली ने एक बार रसीदा बेगम क तरफ खशु होकर दखे ा और फर उसक िनगाह फे रीवाले के कपड़ पर दौड़ने लग और अ ततः उसने लाल-लाल छाप वाले कपड़े के थान पर अपनी अगँ ुली रख दी-‘‘अ मी, यह!’’

रसीदा बगे म को भी लाल बटू वाला वह कपड़ा पस द आ गया और उसने फे रीवाले से कहा-‘‘भैया, इसम से एक गज िनकाल दो।’’ फे रीवाले ने अपने पास से एक फ ता िनकाला और कपड़े के कनारे पर उसे फै लाकर माप िलया और कची से कपड़ा काटकर रसीदा बेगम को थमा दया। शखे िच ली के िलए माप का यह श द ‘गज’ नया था और बाहँ फै लाकर कपड़ा मापने का तरीका भी उसके िलए नया और दलच प था। ‘गज’ और हाथ फै लाकर माप लने ा ये दो बात शखे िच ली के दमाग म बठै ग , और वह कपड़े मापे जाने के - य को याद करता आ मदरसे चला गया। शाम को शेखिच ली मदरसे से वापस आया। ब ता रखकर हाथ-मँुह धोया। तभी रसीदा बगे म ने उसे दअु ी थमाते ए कहा-‘‘बटे ा, दौड़कर जाओ और कोनवे ाले हलवाई से दो आने का दधू लके र आओ!’’ शेखिच ली ने मु ी म दअु ी दबाई और दधू लेने के िलए एक बड़ा कटोरा चैके से लेकर दौड़कर हलवाई क दकु ान पर प चँ गया। गावँ के कई लोग उस हलवाई के पास खड़े थ।े हलवाई अपने दोन हाथ म एक-एक मग पकड़े था और एक हाथ ऊपर करते ए उससे गरम दधू क धार िगराता और दसू रे हाथ को नीचे कर उस दधू क धार को मग म भर लेता। फर भरे मगवाला हाथ ऊपर करता और खाली मगवाला हाथ नीच।े यह या वह बार-बार, यं ावत् कर रहा था। शेखिच ली के िलए यह - य नया था। दधू ठंडा करने का यह तरीका उसके िलए नया था। वह समझने क कोिशश कर रहा था क आिखर यह हलवाई या कर रहा ह!ै फर उसे सुबह क घटना याद हो आई। कपड़ावाला भी तो इसी तरह कपड़े क ल बाई माप रहा था। उसने सोचा-यह दधू वाला ज र दधू क ल बाई माप रहा ह।ै ऐसा सोचकर वह ग वत आ क सही व पर उसके दमाग ने साथ दया और वह यह समझने के कािबल आ क दधू वाला या कर रहा ह।ै शखे िच ली को अपने पास दरे से टकटक लगाए खड़ा दखे कर हलवाई ने पहले तो सोचा क यह लड़का कसी ाहक के साथ आया होगा ले कन जब पहले से खड़े ाहक दधू लेकर लौट गए तब भी शेखिच ली को वह खड़ा दखे हलवाई ने पूछा-‘‘ऐ लड़के ! तु ह या चािहए?’’ शेखिच ली क त ा टूटी और उसने कहा-‘‘दधू !’’ ‘‘ कतना दधू चािहए?’’ हलवाई ने शेखिच ली से पछू ा। हलवाई के इस से शखे िच ली घबरा गया य क अ मी ने तो यह बताया ही नह था क कतना दधू लेना ह?ै फर भी अ ल पर जोर डालते ए उसने कहा-‘‘एक गज दधू

दे दो। एक गज!’’ यह बात शेखिच ली ने पूरी ग भीरता से कही। हलवाई और उसक दकु ान पर खड़े लोग ने जब शखे िच ली क बात सनु ी तो ठहाका मारकर हसँ पड़।े दकु ान पर खड़े एक ाहक ने शखे िच ली म िच ली और उससे यार से पूछा-‘‘ फर बताना बटे े! कतना दधू लेना ह?ै ’’ ‘‘एक गज।’’ आँसा होते ए शेखिच ली ने कहा। शेखिच ली के इस मासमू उ र पर एक बार फर ठहाका गूजँ ने लगा। शखे िच ली समझ नह पा रहा था क लोग हसँ य रहे ह। ले कन हलवाई क समझ म आ गया था क शखे िच ली दधू क माप नह जानता इसिलए उसने शखे िच ली से पूछा-‘‘ य बटे े, पैसे लाए हो?’’ ‘‘हा!ँ ’’ शेखिच ली ने कहा और दअु ी हलवाई को थमा दी। हलवाई ने उसके कटोरे म दो आने का दधू डाल दया। जब शखे िच ली दधू लेकर, दकु ान से अपने घर क ओर चलने लगा तब उसके बढ़ते ही एक ाहक ने दकु ानदार से जोर से कहा-‘‘दने ा भयै ा, मुझे भी एक गज दधू !’’ और फर समवेत ठहाके क गूँज शेखिच ली के कान से टकराई। शेखिच ली यह तो समझ रहा था क लोग उसे िचढ़ाने के िलए हसँ रहे ह मगर वह यह नह समझ रहा था क एक गज दधू माँगकर उसने ऐसा या कर दया क लोग उसे हसँ ी का पा ा बनाने लगे ह। ठहाके क आवाज अभी भी उसे पीछे से आती महससू हो रही थी और वह ल बे डग भरता आ अपने घर वापस जा रहा था...यह सोचता आ क हसँ ो...हसँ ते रहो, मरे ी बला से!

द ली म शेखिच ली ल दन से लौटकर जब जहाज ब बई ब दरगाह पर प चँ ा तब शखे िच ली का दल बि लय उछलने लगा। राॅबट और सोलकं ने उसके पास के पैस और उसक पगार को भारतीय मु ा म बदलवाने म उसक मदद क । जहाज से जब वह उतरा तो उसके पास अठारह हजार पए थे और इसके अित र पाचँ -छह सौ पए और। वह सोच रहा था-कु ल तरे ह महीन म उसके पास इतने पए हो गए...सचमचु मझु पर खदु ा क मेहरबानी रही। इन तेरह महीन म अपनी जेब से खान-े पीने मं◌े भी कोई खच नह करना पड़ा। ल दन गया। पूरे ल दन क सैर क और एक धेला भी जबे से नह गया...इसे कहते ह क मत! वह अपनी क मत को सराहता आ टेशन गया और अपने गावँ का टकट कटाकर वह ेन म बैठ गया। अब वह इन या ा का तजुबा रखता था इसिलए उससे कोई भलू नह ई। दसू रे दन सुबह वह अपने गाँव प चँ चुका था। ल बे-ल बे डग भरता आ वह अपने गाँव के टेशन से अपने घर प चँ ा। अपने दरवाजे पर एक सटू -बूटवाले इनसान को दखे कर उसक अ मी तुर त पद क ओट म चली ग । वह शेखिच ली के प चँ ने के समय अपने दरवाजे पर गे ँ धोकर सूखने के िलए चटाई पर िबछा रही थ । अ मी को पद क ओट म जाता दखे शखे िच ली ने दरू से ही आवाज लगाई-‘‘अरे अ मी! यह म ँ म, तु हारा बेटा शेखिच ली।’’ शखे िच ली क आवाज सुनकर उसक अ मी पद क ओट से बाहर आ और शेखिच ली को नए प मं◌े दखे कर उसक बलाएँ लने े लग । बेटे का मँहु चमू ते ए अ मी क आँख छलछला आ । शखे िच ली ने यार से अ मी को अपनी बाँह मं◌े भरते ए कहा- ‘‘कै सी हो अ मी और रिजया कै सी ह?ै ’’ ‘‘म ठीक ँ बटे े और रिजया भी ठीक ह।ै ...तू तो एकदम परदशे ी हो गया। िपछले साल जठे म तू यहाँ से गया था कमाने। हम उ मीद थी क तू ज दी ही लौट आएगा मगर न तू लौटा और न तेरा कोई स दशे ा आया। हम दोना◌ं े का तो कलजे ा बैठा जा रहा था। मगर न तु हारा कोई पता था और न कोई सुराग। हम करते तो या करते! बस, हर रोज तु हारा इ तजार करते रहते थे हम दोन । सड़क पर ही िनगाह जमी रहती थ ।’’ कहते-कहते अ मी ने आवाज दी-‘‘रिजया! ओ रिजया! अरे आ ज दी! दखे , कौन आया ह!ै ’’


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