सत्यदेव—गरीब परवर, य कह ए कक गरीबों के मारे अब इलाके में मारा र ना मुज्श्कल ो र ा ै। आप जानते ैं, सािी उिं गली से घी न ीिं ननकलता। जमीदंि ार को कु छ-न-कु छ सख्ती करनी ी पडती ै, मगर अब य ाल ै कक मने जरा चिूं भी की तो उन् ींि गरीबों की त्योररयािं बदल जाती ंै। सब मुफ्त मंे जमीन जोतना चा ते ंै। लगान मािंधगये तो फौजदारी का दावा करने को तयै ार! अब इसी जगत पािडं े को देखखए, गिगं ा कसम ै ुजरू सरासर झूठा दावा ै। ुजूर से कोई बात नछपी तो र न ींि सकती। अगर जगत पािंडे मकु दमा जीत गया तो में बोररयांि-बंििना छोडकर भागना पडगे ा। अब ुजूर ी बसाएंि तो बस सकते ंै। राजा सा ब ने ुजरू को सलाम क ा ै और अजग की ै क इस मामले में जगत पांिडे की कसी खबर लें कक व भी याद करे। ममस्टर मसन ा ने भवें मसकोड कर क ा—कानून मेरे घर तो न ींि बनता? सत्यदेव—आपके ाथ में सब कु छ ै। य क कर धगज्न्नयों की एक गड्डी ननकाल कर मेज पर रख दी। ममस्टर मसन ा ने गड्डी को आखंि ों से धगनकर क ा—इन् ंे मेरी तरफ से राजा सा ब को नजर कर दीज्जएगा। आखखर आप कोई वकील तो करेंगे। उसे क्या दीज्जएगा? सत्यदेव—य तो ुजरू के ाथ में ै। ज्जतनी ी पेमशयांि ोंगी उतना ी खचग भी बढ़ेगा। मसन ा—मंै चा ूिं तो म ीनों लटका सकता ूंि। सत्यदेव— ािं, इससे कौन इनकार कर सकता ै। मसन ा—पांचि पेमशयािं भी ुयींि तो आपके कम से कम एक जार उड जायगें े। आप य ािं उसका आिा पूरा कर दीज्जए तो एक ी पेशी मंे वारा-न्यारा ो जाए। आिी रकम बच जाय।
सत्यदेव ने 10 धगज्न्नयािं और ननकाल कर मेज पर रख दीिं और घमंडि के साथ बोले— ुक्म ो तो राजा सा ब क दिं,ू आप इत्मीनान रखें, सा ब की कृ पादृज्ष्ट ो गयी ै। ममस्टर मसन ा ने तीव्र स्वर में क ा ‘जी न ीिं, य क ने की जरूरत न ींि। मैं ककसी शतग पर य रकम न ींि ले र ा। मैं करूंि गा व ी जो काननू की मिशं ा ोगी। काननू के खखलाफ जौ-भर भी न ींि जा सकता। य ी मेरा उसूल ै। आप लोग मेरी खानतर करते ैं, य आपकी शरारत ै। उसे अपना दशु ्मन समझंूगि ा जो मेरा ईमान खरीदना चा े। मंै जो कु छ लेता ूंि, सच्चाई का इनाम समझ कर लेता ूंि।‘ 2 जगत पांिडे को पूरा ववश्वास था कक मेरी जीत ोगी; लेककन तजबीज सुनी तो ोश उड गये! दावा खाररज ो गया! उस पर खचग की चपत अलग। मेरे साथ य चाल! अगर लाला सा ब को इसका मजा न चखा हदया, तो बाम् न न ीिं। ैं ककस फे र मंे? सारा रोब भलु ा दिंगू ा। व ािं गाढ़ी कमाई के रुपये ंै। कौन पचा सकता ै? ाड फोड-फोड कर ननकलेंगे। द्वार पर मसर पटक-पटक कर मर जाऊिं गा। उसी हदन सधंि ्या को जगत पाडिं े ने ममस्टर मसन ा के बिंगले के सामने आसन जमा हदया। व ािं बरगद का घना वकृ ्ष था। मकु दमेवाले व ींि सत्तू, चबेना खाते ओर दोप री उसी की छांि में काटते थ।े जगत पाडिं े उनसे ममस्टर मसन ा की हदल खोलकर ननदिं ा करता। न कु छ खाता न पीता, बस लोगों को अपनी रामक ानी सनु ाया करता। जो सुनता व जटिं सा ब को चार खोटी-खरी क ता—आदमी न ीिं वपशाच ै, इसे तो कसी जग मारे ज ािं पानी न ममले। रुपये के रुपये मलए, ऊपर से खरचे समेत डडग्री कर दी! य ी करना था तो रुपये का े को ननकले थे? य ै मारे भाई-बंिदों का ाल। य अपने क लाते ंै! इनसे तो
अिंग्रेज ी अच्छे । इस तर की आलोचनाएंि हदन-भर ुआ करतींि। जगत पािडं े के आस-पास आठों प र जमघट लगा र ता। इस तर चार हदन बीत गये और ममस्टर मसन ा के कानों में भी बात प ुंिची। अन्य ररश्वती कमचग ाररयों की तर व भी ेकड आदमी थ।े कसे ननद्वग ंदि ्व र ते मानो उन् ें य बीमारी छू तक न ीिं गयी ै। जब व कानून से जौ-भर भी न टलते थे तो उन पर ररश्वत का संिदे ो ी क्योंकर सकता था, और कोई करता भी तो उसकी मानता कौन! कसे चतरु खखलाडी के ववरुद्ध कोई जाब्ते की कारगवाई कै से ोती? ममस्टर मसन ा अपने अफसरों से भी खशु ामद का व्यव ार न करत।े इससे ुक्काम भी उनका ब ुत आदर करते थे। मगर जगत पािडं े ने व मतिं ्र मारा था ज्जसका उनके पास कोई उत्तर न था। कसे बांिगड आदमी से आज तक उन् ंे साबबका न पडा था। अपने नौकरों से पूछत—े बडु ्ढा क्या कर र ा ै। नौकर लोग अपनापन जताने के मलए झूठ के पुल बाििं देत—े ुजूर, क ता था भतू बन कर लगिूगं ा, मेरी वेदी बने तो स ी, ज्जस हदन मरूंि गा उस हदन के सौ जगत पांडि े ोंगे। ममस्टर मसन ा पक्के नाज्स्तक थे; लेककन ये बातंे सुन-सुनकर सशंिक ो जात,े और उनकी पत्नी तो थर-थर कांपि ने लगतीि।ं व नौकरों से बार-बार क ती उससे जाकर पछू ो, क्या चा ता ै। ज्जतना रुपया चा े ले, मसे जो मांिगे व दंेगे, बस य ािं से चला जाय, लेककन ममस्टर मसन ा आदममयों को इशारे से मना कर देते थे। उन् ंे अभी तक आशा थी कक भूख- प्यास से व्याकु ल ोकर बुड्ढा चला जायगा। इससे अधिक भय य था कक मंै जरा भी नरम पडा और नौकरों ने मुझे उल्लू बनाया। छठे हदन मालमू ुआ कक जगत पािंडे अबोल ो गया ै, उससे ह ला तक न ींि जाता,चुपचाप पडा आकाश की ओर देख र ा ै। शायद आज रात दम ननकल जाय। ममस्टर मसन ा ने लबंि ी सासिं ली और ग री धचतंि ा मंे डू ब गये। पत्नी ने आखंि ों मंे आिसं ू भरकर आग्र पवू ग क ा—तमु ् ंे मेरे मसर की कसम, जाकर ककसी इस बला को टालो। बुड्ढा मर गया तो म क ींि के न र ेंगे। अब रुपये
का मंिु मत देखो। दो-चार जार भी देने पडंे तो देकर उसे मनाओ। तमु को जाते शमग आती ो तो मैं चली जाऊिं । मसन ा—जाने का इरादा तो मंै कई हदन से कर र ा ूंि; लेककन जब देखता ूिं व ािं भीड लगी र ती ै, इससे ह म्मत न ीिं पडती। सब आदममयों के सामने तो मुझसे न जाया जायगा, चा े ककतनी ी बडी आफत क्यों न आ पड।े तमु दो-चार जार की क ती ो, मंै दस-पाचिं जार देने को तयै ार ूिं। लेककन व ांि न ीिं जा सकता। न जाने ककस बुरी साइत से मनंै े इसके रुपये मलए। जानता कक य इतना कफसाद खडा करेगा तो फाटक मंे घसु ने ी न देता। देखने में तो कसा सीिा मालूम ोता था कक गऊ ै। मनैं े प ली बार आदमी प चानने में िोखा खाया। पत्नी—तो मैं ी चली जाऊंि ? श र की तरफ से आऊंि गी और सब आदममयों को टाकर अके ले में बात करुंि गी। ककसी को खबर न ोगी कक कौन ै। इसमंे तो कोई रज न ींि ै? ममस्टर मसन ा ने सहंि दग्ि भाव से क ा-ताडने वाले ताड ी जायगंे े, वा े तुम ककतना ी नछपाओ। पत्नी—ताड जायगें े ताड जायें, अब ककससे क ािं तक डरुंि । बदनामी अभी क्या कम ो र ी ै,जो और ो जायगी। सारी दनु नया जानती ै कक तुमने रुपये मलए। यों ी कोई ककसी पर प्राण न ींि देता। कफर अब व्यथग कंिथ क्यों करो? ममस्टर मसन ा अब ममवग ेदना को न दबा सके । बोले—वप्रये, य व्यथग की कंिठ न ींि ै। चोर को अदालत में बेंत खाने से उतनी लजजा न ीिं आती, ज्जतनी ककसी ाककम को अपनी ररश्वत का परदा खुलने से आती ै। व ज र खा कर मर जायगा; पर सिंसार के सामने अपना परदा न खोलेगा। अपना सवनग ाश देख सकता ै; पर य अपमान न ीिं स सकता, ज्जिंदा खाल खीचंि ने, या कोल् ू मंे पेरे जाने के मसवा और कोई ज्स्थनत न ींि ै, जो उसे अपना अपराि स्वीकार
करा सके । इसका तो मझु े जरा भी भय न ीिं ै कक ब्राह्मण भूत बनकर मको सतायेगा, या मंे उनकी वदे ी बनाकर पूजनी पडगे ी, य भी जानता ूिं कक पाप का दिंड भी ब ुिा न ीिं ममलता; लेककन ह दंि ू ोने के कारण संिस्कारों की शंिका कु छ-कु छ बनी ुई ै। ब्रह्म त्या का कलकंि मसर पर लेते ुए आत्मा कापंि ती ै। बस इतनी बात ै। मैं आज रात को मौका देखकर जाऊंि गा और इस सिकं ट को काटने के मलए जो कु छ ो सके गा, करुिं गा। नतर जमा रखो। 3 आिी रात बीत चुकी थी। ममस्टर मसन ा घर से ननकले और अके ले जगत पांिडे को मनाने चले। बरगद के नीचे बबलकु ल सन्नाटा था। अन्िकार कसा था मानो ननशादेवी य ींि शयन कर र ी ों। जगत पाडिं े की सासिं जोर-जोर से चल र ी थी मानो मौत जबरदस्ती घसीटे मलए जाती ो। ममस्टर मसन ा के रोएिं खडे ो गये। बुड्ढा क ींि मर तो न ींि र ा ै? जेबी लालटेन ननकाली और जगत के समीप जाकर बोले—पाडंि े जी, क ो क्या ाल ै? जगत पािडं े ने आिखं ें खोलकर देखा और उठने की असफल चषे ्टा करके बोला— मेरा ाल पूछते ो? देखते न ीिं ो, मर र ा ूंि? मसन ा—तो इस तर क्यों प्राण देते ो? जगत—तुम् ारी य ी इच्छा ै तो मैं क्या करूंि ? मसन ा—मेरी तो य ी इच्छा न ींि। ांि, तमु अलबत्ता मेरा सवनग ाश करने पर तलु े ुए ो। आखखर मनैं े तमु ् ारे डढे ़ सौ रूपये ी तो मलए ंै। इतने ी रुपये के मलए तुम इतना बडा अनुष्ठान कर र े ो! जगत—डढे ़ सौ रुपये की बात न ींि ै। जो तुमने मुझे ममट्टी मंे ममला हदया। मेरी डडग्री ो गयी ोती तो मुझे दस बीघे जमीन ममल जाती और सारे इलाके
मंे नाम ो जाता। तुमने मेरे डढे ़ सौ न ीिं मलए, मेरे पािचं जार बबगाड हदये। परू े पाचिं जार; लेककन य घमंिड न र ेगा, याद रखना क े देता ूिं, सत्यानाश ो जायगा। इस अदालत मंे तमु ् ारा राजय ै; लेककन भगवान के दरवार मंे ववप्रों ी का राजय ै। ववप्र का िन लेकर कोई सुखी न ीिं र सकता। ममस्टर मसन ा ने ब ुत खदे और लजजा प्रकट की, ब ुत अननु य-से काम मलया और अन्त मंे पछू ा—सच बताओ पाडिं े, ककतने रुपये पा जाओ तो य अनुष्ठान छोड दो। जगत पांडि े अबकी जोर लगाकर उठ बैठे और बडी उत्सकु ता से बोले—पािंच जार से कौडी कम न लंिूगा। मसन ा—पांिच जार तो ब ुत ोते ैं। इतना जुल्म न करो। जगत—न ींि, इससे कम न लिगूं ा। य क कर जगत पाडिं े कफर लेट गया। उसने ये शब्द ननश्चयात्मक भाव से क े थे कक ममस्टर मसन ा को और कु छ क ने का सा स न ुआ। रुपये लाने घर चले; लेककन घर प ुंिचते-प ुिंचते नीयत बदल गयी। डढे ़ सौ के बदले पांिच जार देते कलंकि ुआ। मन मंे क ा—मरता ै जाने दो, क ांि की ब्रह्म त्या और कै सा पाप! य सब पाखडिं ै। बदनामी न ोगी? सरकारी मलु ाज्जम तो यों ी बदनाम ोते ैं, य कोई नई बात थोडे ी ै। बचा कै से उठ बैठे थे। समझा ोगा, उल्लू फंि सा। अगर 6 हदन के उपवास करने से पाचंि जार ममले तो मैं म ीने में कम से कम पाचिं मरतबा य अनुष्ठान करूिं । पािंच जार न ींि, कोई मुझे एक ी जार दे दे। य ािं तो म ीने भर नाक रगडता ूिं तब जाके 600 रुपये के दशगन ोते ंै। नोच-खसोट से भी शायद ी ककसी म ीने में इससे जयादा ममलता ो। बठै ा मेरी रा देख र ा ोगा। लेना रुपये, मिंु मीठ ो जायगा।
व चारपाई पर लेटना चा ते थे कक उनकी पत्नी जी आकर खडी ो गयी।ंि उनक मसर के बाल खलु े ुए थ।े आखंि ंे स मी ुई, र -र कर कािंप उठती थी।ंि मुंि से शब्द न ननकलता था। बडी मुज्श्कल से बोली—िं आिी रात तो ो गई ोगी? तमु जगत पाडंि े के पास चले जाओ। मनैं े अभी कसा बरु ा सपना देखा ै कक अभी तक कलेजा िडक र ा ै, जान सिंकट में पडी ुई ै। जाके ककसी तर उसे टालो। ममस्टर मसन ा—व ीिं से तो चला आ र ा ूिं। मझु े तुमसे जयादा कफक्र ै। अभी आकर खडा ी ुआ था कक तमु आयी। पत्नी—अच्छा! तो तमु गये थे! क्या बातंे ुईं, राजी ुआ। मसन ा—पाचंि जार रुपये मांिगता ै! पत्नी—पािंच जार! मसन ा—कौडी कम न ींि कर सकता और मेरे पास इस वक्त एक जार से जयादा न ोंगे। पत्नी ने एक क्षण सोचकर क ा—ज्जतना मांगि ता ै उतना ी दे दो, ककसी तर गला तो छू ट। तमु ् ारे पास रुपये न ों तो मंै दे दंिगू ी। अभी से सपने हदखाई देन लगे ंै। मरा तो प्राण कै से बचंेगे। बोलता-चालता ै न? ममस्टर मसन ा अगर आबनसू थे तो उनकी पत्नी चदिं न; मसन ा उनके गुलाम थे, उनके इशारों पर चलते थे। पत्नी जी भी पनत-शासन मंे कु शल थीं।ि सौंदयग और अज्ञान में अपवाद ै। सदिंु री कभी भोली न ीिं ोती। व पुरुष के ममसग ्थल पर आसन जमाना जानती ै! मसन ा—तो लाओ देता आऊिं ; लेककन आदमी बडा चग्घड ै, क ींि रुपये लेकर सबको हदखाता कफरे तो?
पत्नी—इसको य ािं से इसी वक्त भागना ोगा। मसन ा—तो ननकालो दे ी दिं।ू ज्जदिं गी मंे य बात भी याद र ेगी। पत्नी—ने अववश्वास भाव से क ा—चलो, मंै भी चलती ूिं। इस वक्त कौन देखता ै? पत्नी से अधिक पुरुष के चररत्र का ज्ञान और ककसी को न ींि ोता। ममस्टर मसन ा की मनोवजृ ्त्तयों को उनकी पत्नी जी खबू जानती थी।ंि कौन जान रास्ते मंे रुपये क ीिं नछपा दंे, और क दंे दे आए। या क ने लगें, रुपये लेकर भी न ींि टलता तो मंै क्या करूिं । जाकर सिदं कू से नोटों के पुमलदिं े ननकाले और उन् ें चादर में नछपा कर ममस्टर मसन ा के साथ चलीि।ं मसन ा के मिंु पर झाडू - सी कफरी थी। लालटेन मलए पछताते चले जाते थ।े 5000 रु. ननकले जाते ंै। कफर इतने रुपये कब ममलंेगे; कौन जानता ै? इससे तो क ीिं अच्छा था दषु ्ट मर ी जाता। बला से बदनामी ोती, कोई मेरी जेब से रुपये तो न छीन लेता। ईश्वर करे मर गया ो! अभी तक दोनों आदमी फाटक ी तकम आए थे कक देखा, जगत पांडि े लाठी टेकता चला आता ै। उसका स्वरूप इतना डरावना था मानो श्मशान से कोई मरु दा भागा आता ो। पत्नी जी बोली—म ाराज, म तो आ ी र े थे, तमु ने क्यों कष्ट ककया? रुपये ले कर सीिे घर चले जाओगे न? जगत— ािं- ािं, सीिा घर जाऊंि गा। क ांि ैं रुपये देखिं!ू पत्नी जी ने नोटों का पुमलदिं ा बा र ननकाला और लालटेन हदखा कर बोली—ंि धगन लो। 5000 रुपये ैं!
पािंडे ने पुमलदंि ा मलया और बठै कर उलट-पलु ट कर देखने लगा। उसकी आिंखंे एक नये प्रकाश से चमकने लगी। ाथों में नोटों को तौलता ुआ बोला—पूरे पाचिं जार ंै? पत्नी—परू े धगन लो? जगत—पाचिं जार में दो टोकरी भर जायगी! ( ाथों से बताकर) इतने सारे पांचि जार! मसन ा—क्या अब भी तुम् ंे ववश्वास न ीिं आता? जगत— ंै- ंै, परू े ंै पूरे पािचं जार! तो अब जाऊंि , भाग जाऊिं ? य क कर व पुमलदिं ा मलए कई कदम लडखडाता ुआ चला, जैसे कोई शराबी, और तब िम से जमीन पर धगर पडा। ममस्टर मसन ा लपट कर उठाने दौडे तो देखा उसकी आखंि ंे पथरा गयी ंै और मुख पीला पड गया ै। बोले—पािंड,े क्या क ींि चोट आ गयी? पािंडे ने एक बार मंुि खोला जसै े मरी ुई धचडडया मसर लटका चोंच खोल देती ै। जीवन का अिंनतम िागा भी टू ट गया। ओंठि खुले ुए थे और नोटों का पुमलदिं ा छाती पर रखा ुआ था। इतने में पत्नी जी भी आ प ुिंची और शव को देखकर चौंक पडीं!ि पत्नी—इसे क्या ो गया? मसन ा—मर गया और क्या ो गया? पत्नी—(मसर पीट कर) मर गया! ाय भगवान!् अब क ांि जाऊिं ?
य क कर बंगि ले की ओर बडी तजे ी से चलीिं। ममस्टर मसन ा ने भी नोटो का पमु लदंि ा शव की छाती पर से उठा मलया और चले। पत्नी—ये रुपये अब क्या ोंगे? मसन ा—ककसी िम-ग कायग में दे दिंगू ा। पत्नी—घर मंे मत रखना, खबरदार! ाय भगवान! 4 दसू रे हदन सारे श र मंे खबर मश ूर ो गयी—जगत पांडि े ने जटंि सा ब पर जान दे दी। उसका शव उठा तो जारों आदमी साथ थ।े ममस्टर मसन ा को खुल्लम-खलु ्ला गामलयािं दी जा र ी थीिं। सिंध्या समय ममस्टर मसन ा कच री से आ कर मन मार बठै े थे कक नौकरों ने आ कर क ा—सरकार, मको छु ट्टी दी जाय! मारा ह साब कर दीज्जए। मारी बबरादरी के लोग िमकते ंै कक तुम जंटि सा ब की नौकरी करोगे तो ुक्का- पानी बदिं ो जायगा। मसन ा ने झल्ला कर क ा—कौन िमकाता ै? क ार—ककसका नाम बताएिं सरकार! सभी तो क र े ंै। रसोइया— ुजरू , मझु े तो लोग िमकाते ंै कक मज्न्दर मंे न घसु ने पाओगे। साईस— ुजरू , बबरादरी से बबगाड करक म लोग क ांि जाएिंगे? मारा आज से इस्तीफा ै। ह साब जब चा े कर दीज्जएगा। ममस्टर मसन ा ने ब ुत िमकाया कफर हदलासा देने लगे; लेककन नौकरों ने एक न सनु ी। आि घण्टे के अन्दर सबों ने अपना-अपना रास्ता मलया। ममस्टर
मसन ा दाितं पीस कर र गए; लेककन ाककमों का काम कब रुकता ै? उन् ोंने उसी वक्त कोतवाल को खबर कर दी और कई आदमी बेगार मंे पकड आए। काम चल ननकला। उसी हदन से ममस्टर मसन ा और ह दंि ू समाज मंे खीिचं तान शुरु ुई। िोबी ने कपडे िोन बंिद कर हदया। ग्वाले ने दिू लाने में आना-कानी की। नाई ने जामत बनानी छोडी। इन ववपज्त्तयों पर पत्नी जी का रोना-िोना और भी गजब था। इन् ंे रोज भयिंकर स्वप्न हदखाई देत।े रात को एक कमरे से दसू रे में जाते प्राण ननकलते थे। ककसी को जरा मसर भी दखु ता तो न ींि में जान समा जाती। सबसे बडी मसु ीबत य थी कक अपने सम्बज्न्ियों ने भी आना- जाना छोड हदया। एक हदन साले आए, मगर बबना पानी वपये चले गए। इसी तर एक ब नोई का आगमन ुआ। उन् ोंने पान तक न खाया। ममस्टर मसन ा बडे िैयग से य सारा नतरस्कार स ते जाते थ।े अब तक उनकी आधथकग ानन न ुई थी। गरज के बावले झक मार कर आते ी थे और नजर- नजराना ममलता ी था। कफर ववशेष धचतिं ा का कोई कारण न था। लेककन बबरादरी से वरै करना पानी मंे र कर मगर से वरै करने जसै े ै। कोई-न-कोई कसा अवसर ी आ जाता ै, जब मको बबरादरी के सामने मसर झुकाना पडता ै। ममस्टर मसन ा को भी साल के अन्दर ी कसा अवसर आ पडा। य उनकी पुत्री का वववा था। य ी व समस्या ै जो बड-े बडे ेकडों का घमिंड चरू कर देती ै। आप ककसी के आने-जाने की परवा न करंे, ुक्का-पानी, भोज-भात, मेल-जोल ककसी बात की परवा न करे; मगर लडकी का वववा तो न टलने वाली बला ै। उससे बचकर आप क ािं जाएंिगे! ममस्टर मसन ा को इस बात का दगदगा तो पह ले ी था कक बत्रवणे ी के वववा मंे बािाएिं पडगे ी; लेककन उन् ें ववश्वास था कक द्रव्य की अपार शज्क्त इस मजु ्श्कल को ल कर देगी। कु छ हदनों तक उन् ोंने जान-बूझ कर टाला कक शायद इस आंिि ी का जोर कु छ कम ो जाय; लेककन जब बत्रवेणी को सोल वािं साल समाप्त ो गया तो टाल-मटोल की गुंिजाइश न र ी। सिंदेशे भेजने लगे; लेककन
ज ांि सदिं ेमशया जाता व ीिं जवाब ममलता— में मजंि रू न ी। ज्जन घरों मंे साल- भर प ले उनका सदंि ेशा पा कर लोग अपने भाग्य को सरा ते, व ािं से अब सखू ा जवाब ममलता था— मंे मंजि रू न ी।ंि ममस्टर मसन ा िन का लोभ देत,े जमीन नजर करने को क ते, लडके को ववलायत भेज कर ऊिं ची मशक्षा हदलाने का प्रस्ताव करते ककंि तु उनकी सारी आयोजनाओंि का एक ी जवाब ममलता था— में मजिं ूर न ीिं। ऊंि चे घरानों का य ाल देखकर ममस्टर मसन ा उन घरानों में संदि ेश भजे ने लगे, ज्जनके साथ प ले बैठकर भोजन करने में भी उन् ंे सकंि ोच ोता था;लेककन व ांि भी व ी जवाब ममला— में मंिजूर न ी। य ांि तक कक कई जग वे खदु दौड-दौड कर गये। लोगों की ममन्नतंे कींि, पर य ी जवाब ममला—सा ब, मंे मिंजरू न ीिं। शायद बह ष्कृ त घरानों मंे उनका सिंदेश स्वीकार कर मलया जाता; पर ममस्टर मसन ा जान-बझू कर मक्खी न ननगलना चा ते थे। कसे लोगों से सम्बन्ि न करना चा ते थे ज्जनका बबरादरी मंे काई स्थान न था। इस तर एक वषग बीत गया। ममसेज मसन ा चारपाई पर पडी करा र ी थीिं, बत्रवणे ी भोजन बना र ी थी और ममस्टर मसन ा पत्नी के पास धचतिं ा में डू बे बठै े ुए थ।े उनके ाथ मंे एक खत था, बार-बार उसे देखते और कु छ सोचने लगते थे। बडी देर के बाद रोधगणी ने आंिखें खोलीिं और बोलींि—अब न बचूिंगी पाडिं े मेरी जान लेकर छोडगे ा। ाथ में कै सा कागज ै? मसन ा—यशोदानंिदन के पास से खत आया ैं। पाजी को य खत मलखते ुए शमग न ीिं आती, मनंै े इसकी नौकरी लगायी। इसकी शादी करवायी और आज उसका ममजाज इतना बढ़ गया ै कक अपने छोटे भाई की शादी मेरी लडकी से करना पसदिं न ीिं करता। अभागे के भाग्य खलु जात!े पत्नी—भगवान,् अब ले चलो। य ददु गशा न ीिं देखी जाती। अंिगूर खाने का जी चा ता ै, मंिगवाये ै कक न ीिं? मसना —मंै जाकर खदु लेता आया था।
य क कर उन् ोंने तश्तरी में अगिं ूर भरकर पत्नी के पास रख हदये। व उठा- उठा कर खाने लगीिं। जब तश्तरी खाली ो गयी तो बोलींि—अब ककसके य ािं सिंदेशा भेजोगे? मसन ा—ककसके य ांि बताऊिं ! मेरी समझ में तो अब कोई कसा आदमी न ीिं र गया। कसी बबरादरी मंे र ने से तो य जार दरजा अच्छा ै कक बबरादरी के बा र र ूिं। मनैं े एक ब्राह्मण से ररश्वत ली। इससे मझु े इनकार न ी।िं लेककन कौन ररश्वत न ीिं लेता? अपने गौं पर कोई न ीिं चकू ता। ब्राह्मण न ींि खुद ईश्वर ी क्यों न ों, ररश्वत खाने वाले उन् ंे भी चूस लंेगे। ररश्वत देने वाला अगर कोई ननराश ोकर अपने प्राण देता ै तो मेरा क्या अपराि! अगर कोई मेरे फै सले से नाराज ोकर ज र खा ले तो मंै क्या कर सकता ूिं। इस पर भी मैं प्रायज्श्चत करने को तैयार ूिं। बबरादरी जो दंिड दे, उसे स्वीकार करने को तैयार ूिं। सबसे क चकु ा ूिं मझु से जो प्रायज्श्चत चा ो करा लो पर कोई न ीिं सनु ता। दंिड अपराि के अनुकू ल ोना चाह ए, न ीिं तो य अन्याय ै। अगर ककसी मसु लमान का छु आ भोजन खाने के मलए बबरादरी मझु े काले पानी भेजना चा े तो मंै उसे कभी न मानंगूि ा। कफर अपराि अगर ै तो मेरा ै। मेरी लडकी ने क्या अपराि ककया ै। मेरे अपराि के मलए लडकी को दिंड देना सरासर न्याय-ववरुद्ध ै। पत्नी—मगर करोगे क्या? और कोई पचंि ायत क्यों न ीिं करते? मसन ा—पचिं ायत में भी तो व ी बबरादरी के मखु खया लोग ी ोंगे, उनसे मझु े न्याय की आशा न ीि।ं वास्तव में इस नतरस्कार का कारण ईष्याग ै। मुझे देखकर सब जलते ंै और इसी ब ाने वे मझु े नीचा हदखाना चा ते ैं। मैं इन लोगों को खबू समझता ूंि। पत्नी—मन की लालसा मन में र गयी। य अरमान मलये सिसं ार से जाना पडगे ा। भगवान ् की जसै ी इच्छा। तमु ् ारी बातों से मुझे डर लगता ै कक मेरी
बच्ची की न-जाने क्या दशा ोगी। मगर तमु से मेरी अनिं तम ववनय य ी ै कक बबरादरी से बा र न जाना, न ींि तो परलोक में भी मेरी आत्मा को शानिं त न ममलेगी। य शोक मेरी जान ले र ा ै। ाय, बच्ची पर न-जाने क्या ववपज्त्त आने वाली ै। य क ते ममसेज मसन ा की आंिखंे में आंसि ू ब ने लगे। ममस्टर मसन ा ने उनको हदलासा देते ुए क ा—इसकी धचतंि ा मत करो वप्रये, मेरा आशय के वल य था कक कसे भाव मन मंे आया करते ंै। तमु से सच क ता ूंि, बबरादरी के अन्याय से कलेजा छलनी ो गया ै। पत्नी—बबरादरी को बरु ा मत क ो। बबरादरी का डर न ो तो आदमी न जाने क्या-क्या उत्पात करे। बबरादरी को बुरा न क ो। (कलेजे पर ाथ रखकर) य ांि बडा ददग ो र ा ै। यशोदानदंि ने भी कोरा जवाब दे हदया। ककसी करवट चनै न ीिं आता। क्या करुंि भगवान।् मसन ा—डाक्टर को बुलाऊिं ? पत्नी—तुम् ारा जी चा े बुला लो, लेककन मैं बचिंगू ी न ीिं। जरा नतब्बो को बुला लो, प्यार कर लूिं। जी डू बा जाता ै। मेरी बच्ची! ाय मेरी बच्ची!! ***
धधक्कार (2) ईरान और यूनान मंे घोर सगंि ्राम ो र ा था। ईरानी हदन-हदन बढ़ते जाते थे और यूनान के मलए संिकट का सामना था। देश के सारे व्यवसाय बंिद ो गये थे, ल की मुहठया पर ाथ रखने वाले ककसान तलवार की मुहठया पकडने के मलए मजबूर ो गये, डिडं ी तौलने वाले भाले तौलते थे। सारा देश आत्म- रक्षा के मलए तैयार ो गया था। कफर भी शत्रु के कदम हदन-हदन आगे ी बढ़ते आते थ।े ज्जस ईरान को यूनान कई बार कू चल चुका था, व ी ईरान आज क्रोि के आवेग की भांिनत मसर पर चढ़ आता था। मदग तो रणक्षेत्र मंे मसर कटा र े थे और ज्स्त्रयांि हदन-हदन की ननराशाजनक खबरें सुनकर सूखी जाती थी।िं क्योंकर लाज की रक्षा ोगी? प्राण का भय न था, सम्पज्त्त का भय न था, भय था मयादग ा का। ववजेता गवग से मतवाले ोकर यूनानी ललनाओिं को घरू ंेगे, उनके कोमल अगिं ों को स्पशग करेंगे, उनको कै द कर ले जायगंे े! उस ववपज्त्त की कल्पना ी से इन लोगों के रोयें खडे ो जाते थे। आखखर जब ालत ब ुत नाजुक ो गयी तो ककतने ी स्त्री-परु ुष ममलकर डले ्फी के महंि दर मंे गये और प्रश्न ककया—देवी, मारे ऊपर देवताओंि की य वक्र-दृज्ष्ट क्यों ै? मसे कसा कौन-सा अपराि ुआ ै? क्या मने ननयमों का पालन न ींि ककया, कु रबाननयािं न ींि कीिं, व्रत न ींि रखे? कफर देवताओिं ने क्यों मारे मसरों से अपनी रक्षा का ाथ उठा मलया? पुजाररन ने क ा—देवताओंि की असीम कृ पा भी देश को द्रो ी के ाथ से न ींि बचा सकती। इस देश में अवश्य कोई-न-कोई द्रो ी ै। जब तक उसका वि न ककया जायेगा, देश के मसर से य संकि ट न टलेगा। ‘देवी, व द्रो ी कौन ै?
‘ज्जस घर से रात को गाने की ध्वनन आती ो, ज्जस घर से हदन को सगु ििं की लपटंे आती ों, ज्जस पुरुष की आंखि ों मंे मद की लाली झलकती ो, व ी देश का द्रो ी ै।‘ लोगों ने द्रो ी का पररचय पाने के मलए और ककतने ी प्रश्न ककये; पर देवी ने कोई उत्तर न हदया। 2 यूनाननयों ने द्रो ी की तलाश करनी शुरू की। ककसके घर में से रात को गाने की आवाजंे आती ंै। सारे श र मंे सिधं ्या ोते स्यापा-सा छा जाता था। अगर क ीिं आवाजंे सुनायी देती थीिं तो रोने की; ंिसी और गाने की आवाज क ीिं न सुनायी देती थी। हदन को सगु िंि की लपटंे ककस घर से आती ैं? लोग ज्जिर जाते थे, ककसे इतनी फु रसत थी कक घर की सफाई करता, घर मंे सुगििं जलाता; िोबबयों का अभाव था अधिकाशंि लडने के मलए चले गये थे, कपडे तक न िुलते थे; इत्र-फु लेल कौन मलता! ककसकी आंिखों मंे मद की लाली झलकती ै? लाल आखंि ें हदखाई देती थी; लेककन य मद की लाली न थी, य आंसि ुओंि की लाली थी। महदरा की दकु ानों पर खाक उड र ी थी। इस जीवन ओर मतृ ्यु के सिंग्राम में ववलास की ककसे सूझती! लोगों ने सारा श र छान मारा लेककन एक भी आखिं कसी नजर न आयी जो मद से लाल ो। कई हदन गुजर गये। श र मंे पल-पल पर रणक्षेत्र से भयानक खबरंे आती थीिं और लोगों के प्राण सूख जाते थ।े आिी रात का समय था। श र मंे अििं कार छाया ुआ था, मानो श्मशान ो। ककसी की सरू त न हदखाई देती थी। ज्जन नाट्यशालाओिं मंे नतल रखने की
जग न ममलती थी, व ािं मसयार बोल र े थ।े ज्जन बाजारों मंे मनचले जवान अस्त्र-शस्त्र सजायें किंठते कफरते थे, व ािं उल्लू बोल र े थे। महिं दरों मंे न गाना ोता था न बजाना। प्रासादों में अिंि कार छाया ुआ था। एक बूढ़ा यनू ानी ज्जसका इकलौता लडका लडाई के मदै ान में था, घर से ननकला और न-जाने ककन ववचारों की तरंिग में देवी के मंहि दर की ओर चला। रास्ते मंे क ींि प्रकाश न था, कदम-कदम पर ठोकरें खाता था; पर आगे बढ़ता चला जाता। उसने ननश्चय कर मलया कक या तो आज देवी से ववजय का वरदान लंूगि ा या उनके चरणों पर अपने को भंेट कर दंिगू ा। 3 स सा व चौंक पडा। देवी का मिंहदर आ गया था। और उसके पीछे की ओर ककसी घर से मिुर सिगं ीत की ध्वनन आ र ी थी। उसको आश्चयग ुआ। इस ननजनग स्थान में कौन इस वक्त रिंगरेमलयांि मना र ा ै। उसके पैरों में पर लग गये, मिंहदर के वपछवाडे जा प ुंिचा। उसी घर से ज्जसमें मंिहदर की पुजाररन र ती थी, गाने की आवाजंे आती थी!ंि वदृ ्ध ववज्स्मत ोकर खखडकी के सामने खडा ो गया। धचराग तले अिंि ेरा! देवी के मंिहदर के वपछवाडे य अिंि रे ? बूढ़े ने द्वार झाकिं ा; एक सजे ुए कमरे मंे मोमबज्त्तयांि झाडों में जल र ी थींि, साफ-सुथरा फशग बबछा था और एक आदमी मेज पर बठै ा ुआ गा र ा था। मेज पर शराब की बोतल और प्यामलयांि रखी ुई थी।िं दो गलु ाम मेज के सामने ाथ मंे भोजन के थाल खडे थे, ज्जसमंे से मनो र सगु िंि की लपटें आ र ी थी।िं बूढ़े यूनानी ने धचल्लाकर क ा—य ी देशद्रो ी ै, य ी देशद्रो ी ै! महिं दर की दीवारों ने दु राया—द्रो ी ै!
बगीचे की तरफ से आवाज आयी—द्रो ी ै! मिंहदर की पुजाररन ने घर में से मसर ननकालकर क ा— ािं, द्रो ी ै! य देशद्रो ी उसी पुजाररन का बेटा पासोननयस था। देश में रक्षा के जो उपाय सोचे जात,े शत्रओु िं का दमन करने के मलए जो ननश्चय ककय जात,े उनकी सूचना य ईराननयों को दे हदया करता था। सेनाओंि की प्रत्येक गनत की खबर ईराननयों को ममल जाती थी और उन प्रयत्नों को ववफल बनाने के मलए वे प ले से तयै ार ो जाते थे। य ी कारण था कक यनू ाननयों को जान लडा देने पर भी ववजय न ोती थी। इसी कपट से कमाये ुये िन से व भोग-ववलास करता था। उस समय जब कक देश में घोर संकि ट पडा ुआ था, उसने अपने स्वदेश को अपनी वासनाओंि के मलए बेच हदया। अपने ववलास के मसवा और ककसी बात की धचतंि ा न थी, कोई मरे या ज्जये, देश र े या जाये, उसकी बला से। के वल अपने कु हटल स्वाथग के मलए देश की गरदन मंे गुलामी की बेडडयांि डलवाने पर तयै ार था। पुजाररन अपने बेटे के दरु ाचरण से अनमभज्ञ थी। व अपनी अिंिरे ी कोठरी से ब ुत कम ननकलती, व ीिं बैठी जप-तप ककया करती थी। परलोक-धचतिं न में उसे इ लोक की खबर न थी, मनजे ्न्द्रयों ने बा र की चते ना को शून्य-सा कर हदया था। व इस समय भी कोठरी के द्वार बिंद ककये, देवी से अपने देश के कल्याण के मलए वन्दना कर र ी थी कक स सा उसके कानों मंे आवाज आयी—य ी द्रो ी ै, य ी द्रो ी ै! उसने तुरंित द्वार खोलकर बा र की ओर झांकि ा, पासोननयम के कमरे से प्रकाश की रेखाएंि ननकल र ी थींि और उन् ींि रेखाओंि पर संिगीत की ल रंे नाच र ी थीि।ं उसके परै -तले से जमीन-सी ननकल गयी, कलेजा िक् -से ो गया। ईश्वर! क्या मेरा बेटा देशद्रो ी ै? आप- ी-आप, ककसी अंित:प्रेरणा से पराभूत ोकर व धचल्ला उठी— ांि, य ी देशद्रो ी ै! 4
यनू ानी स्त्री-परु ूषों के झडंुि -के -झंडुि उमड पडे और पासोननयस के द्वार पर खडे ोकर धचल्लाने लगे-य ी देशद्रा ी ै! पासोननयस के कमरे की रोशनी ठिं डी ो गयी, सगिं ीत भी बिंद था; लेककन द्वार पर प्रनतक्षण नगरवामसयों का समू बढ़ता जाता था और र -र कर स स्त्रों किं ठो से ध्वनन ननकलती थी—य ी देशद्रो ी ै! लोगों ने मशालें जलायी और अपने लाठी-डडिं े सभंि ाल कर मकान मंे घुस पड।े कोई क ता था—मसर उतार लो। कोई क ता था—देवी के चरणों पर बमलदान कर दो। कु छ लोग उसे कोठे से नीचे धगरा देने पर आग्र कर र े थे। पासोननयस समझ ् गया कक अब मुसीबत की घडी मसर पर आ गयी। तुरिंत जीने से उतरकर नीचे की ओर भागा। और क ीिं शरण की आशा न देखकर देवी के मंहि दर मंे जा घसु ा। अब क्या ककया जाये? देवी की शरण जाने वाले को अभय-दान ममल जाता था। परम्परा से य ी प्रथा थी? महंि दर मंे ककसी की त्या करना म ापाप था। लेककन देशद्रो ी को इसने सस्ते कौन छोडता? भांनि त-भािंनत के प्रस्ताव ोने लगे— ‘सअू र का ाथ पकडकर बा र खीिंच लो।’ ‘कसे देशद्रो ी का वि करने के मलए देवी में क्षमा कर दंेगी।’ ‘देवी, आप उसे क्यों न ींि ननगल जाती?’ ‘पत्थरों से मारों, पत्थरो से; आप ननकलकर भागेगा।’ ‘ननकलता क्यों न ीिं रे कायर! व ांि क्या मुिं मंे कामलख लगाकर बैठा ुआ ै?’
रात भर य ी शोर मचा र ा और पासोननयस न ननकला। आखखर य ननश्चय ुआ कक महंि दर की छत खोदकर फंे क दी जाये और पासोननयस दोप र की िपू और रात की कडाके की सरदी मंे आप ी आप अकड जाये। बस कफर क्या था। आन की आन मंे लोगों ने मंहि दर की छत और कलस ढा हदये। अभगा पासोननयस हदन-भर तजे िपू मंे खडा र ा। उसे जोर की प्यास लगी; लेककन पानी क ािं? भखू लगी, पर खाना क ािं? सारी जमीन तवे की भांिनत जलने लगी; लेककन छािं क ांि? इतना कष्ट उसे जीवन भर में न ुआ था। मछली की भािंनत तडपता था ओर धचल्ला-धचल्ला कर लोगों को पकु ारता था; मगर व ांि कोई उसकी पुकार सनु ने वाला न था। बार-बार कसमंे खाता था कक अब कफर मझु से कसा अपराि न ोगा; लेककन कोई उसके ननकट न आता था। बार-बार चा ता था कक दीवार से टकरा कर प्राण दे दे; लेककन य आशा रोक देती थी कक शायद लोगों को मझु पर दया आ जाये। व पागलों की तर जोर-जोर से क ने लगा—मुझे मार डालो, मार डालो, एक क्षण मंे प्राण ले लो, इस भानंि त जला-जला कर न मारो। ओ त्यारों, तमु को जरा भी दया न ीं।ि हदन बीता और रात—भयंकि र रात—आयी। ऊपर तारागण चमक र े थे मानो उसकी ववपज्त्त पर िंस र े ों। जयों-जयों रात बीतती थी देवी ववकराल रूप िारण करती जाती थी। कभी व उसकी ओर मिंु खोलकर लपकती, कभी उसे जलती ुई आिंखो से देखती। उिर क्षण-क्षण सरदी बढती जाती थी, पासोननयस के ाथ-पािवं अकडने लगे, कलेजा कापिं ने लगा। घटु नों में मसर रखकर बैठ गया और अपनी ककस्मत को रोने लगा। कु रते की खीिचं कर कभी पैरों को नछपाता, कभी ाथों को, य ांि तक कक इस खीिंचातानी में कु रता भी फट गया। आिी रात जाते-जाते बफग धगरने लगी। दोप र को उसने सोचा गरमी ी सबसे कष्टदायक ै। ठंि ड के सामने उसे गरमी की तकलीफ भलू गयी। आखखर शरीर मंे गरमी लाने के मलए एक ह मकत सझू ी। व महंि दर मंे इिर-उिर दौडने लगा। लेककन ववलासी जीव था, जरा देर में ांफि कर धगर पडा। 5
प्रात:काल लोगों ने ककवाड खोले तो पासोननसय को भमू म पर पडे देखा। मालमू ोता था, उसका शरीर अकड गया ै। ब ुत चीखने-धचल्लाने पर उसने आखंे खोली; पर जग से ह ल न सका। ककतनी दयनीय दशा थी, ककंि तु ककसी को उस पर दया न आयी। यनू ान में देशद्रो सबसे बडा अपराि था और द्रो ी के मलए क ीिं क्षमा न थी, क ीिं दया न थी। एक—अभी मरा ै? दसू रा—द्रोह यों को मौत न ींि आती! तीसरा—पडा र ने दो, मर जायेगा! चौथा—मक्र ककये ुए ै? पांचि वा—अपने ककये की सजा पा चुका ै, अब छोड देना चाह ए! स सा पासोननयस उठ बठै ा और उद्दण्ड भाव से बोला—कौन क ता ै कक इसे छोड देना चाह ए! न ीिं, मझु े मत छोडना, वरना पछताओगे! मंै स्वाथी दिं;ू ववषय-भोगी ूिं, मझु पर भलू कर भी ववश्वास न करना। आ ! मेरे कारण तमु लोगों को क्या-क्या झले ना पडा, इसे सोचकर मेरा जी चा ता ै कक अपनी इंिहद्रयों को जलाकर भस्म कर दिं।ू मंै अगर सौ जन्म लेकर इस पाप का प्रायज्श्चत करूंि , तो भी मेरा उद्धार न ोगा। तमु भूलकर भी मेरा ववश्वास न करो। मझु े स्वयिं अपने ऊपर ववश्वास न ीि।ं ववलास के प्रेमी सत्य का पालन न ींि कर सकत।े मंै अब भी आपकी कु छ सेवा कर सकता ूंि, मझु े कसे-कसे गुप्त र स्य मालमू ैं, ज्जन् ंे जानकर आप ईराननयों का सिं ार कर सकते ै; लेककन मझु े अपने ऊपर ववश्वास न ींि ै और आपसे भी य क ता ूंि कक मझु पर ववश्वास न कीज्जए। आज रात को देवी की मनंै े सच्चे हदल से वदिं ना की ै और उन् ोनें मझु े कसे यंति ्र बताये ंै, ज्जनसे म शत्रओु िं को परास्त कर सकते ैं, ईराननयों के बढते ुए दल को आज भी आन की आन मंे उडा सकते
ै। लेककन मुझे अपने ऊपर ववश्वास न ीिं ै। मैं य ांि से बा र ननकल कर इन बातों को भूल जाऊिं गा। ब ुत सशंि य ंै, कक कफर ईराननयों की गुप्त स ायता करने लगं।िू इसमलए मुझ पर ववश्वास न कीज्जए। एक यनू ानी—देखो-देखो क्या क ता ै? दसू रा—सच्चा आदमी मालमू ोता ै। तीसरा—अपने अपरािों को आप स्वीकार कर र ा ै। चौथा—इसे क्षमा कर देना चाह ए और य सब बातें पूछ लेनी चाह ए। पाचंि वा—देखो, य न ींि क ता कक मझु े छोड दो। मको बार-बार याद हदलाता जाता ै कक मुझ पर ववश्वास न करो! छठा—रात भर के कष्ट ने ोश ठंि डे कर हदये, अब आंखि े खुली ै। पासोननयस—क्या तमु लोग मझु े छोडने की बातचीत कर र े ो? मैं कफर क ता ूंि, मैं ववश्वास के योग्य न ींि ूंि। मंै द्रो ी ूिं। मझु े ईराननयों के ब ुत-से भेद मालूम ैं, एक बार उनकी सेना में प ुिंच जाऊिं तो उनका ममत्र बनकर सवनग ाश कर दिं,ू पर मझु े अपने ऊपर ववश्वास न ीिं ै। एक यनू ानी—िोखेबाज इतनी सच्ची बात न ींि क सकता! दसू रा—प ले स्वाथािं ो गया था; पर अब आखंि े खुली ंै! तीसरा—देखद्रो ी से भी अपने मतलब की बातंे मालमू कर लने े मंे कोई ानन न ीिं ै। अगर व अपने वचन पूरे करे तो में इसे छोड देना चाह ए। चौथा—देवी की प्रेरणा से इसकी कायापलट ुई ै।
पाचिं वािं—पावपयों मंे भी आत्मा का प्रकाश र ता ै और कष्ट पाकर जाग्रत ो जाता ै। य समझना कक ज्जसने एक बार पाप ककया, व कफर कभी पुण्य कर ी न ीिं सकता, मान-चररत्र के एक प्रिान तत्व का अपवाद करना ै। छठा— म इसको य ािं से गाते-बजाते ले चलंेगे। जन-समू को चकमा देना ककतना आसान ै। जनसत्तावाद का सबसे ननबलग अंगि य ी ै। जनता तो नेक और बद की तमीज न ींि रखती। उस पर ितू ों, रिंगे-मसयारों का जादू आसानी से चल जाता ै। अभी एक हदन प ले ज्जस पासोननयस की गरदन पर तलवार चलायी जा र ी थी, उसी को जलसू के साथ महंि दर से ननकालने की तैयाररयांि ोने लगीिं, क्योंकक व िूतग था और जानता था कक जनता की कील क्योंकर घमु ायी जा सकती ै। एक स्त्री—गाने-बजाने वालों को बुलाओ, पासोननयस शरीफ ै। दसू री— ािं- ांि, प ले चलकर उससे क्षमा मागंि ो, मने उसके साथ जरूरत से जयादा सख्ती की। पासोननयस—आप लोगों ने पछू ा ोता तो मंै कल ी कल ी सारी बातंे आपको बता देता, तब आपको मालमू ोता कक मझु े मार डालना उधचत ै या जीता रखना। कई स्त्री-परु ूष— ाय- ाय मसे बडी भलू ुई। मारे सच्चे पासोननयस! स सा एक वदृ ्धा स्त्री ककसी तरफ से दौडती ुई आयी और मिंहदर के सबसे ऊंि चे जीने पर खडी ोकर बोली—तुम लोगों को क्या ो गया ै? यनू ान के बेटे आज इतने ज्ञानशून्य ो गये ैं कक झूठे और सच्चे में वववेक न ीिं कर सकते? तुम पासोननयस पर ववश्वास करते ो? ज्जस पासोननयस ने सकै डों ज्स्त्रयों और
बालकों को अनाथ कर हदया, सैकडों घरों में कोई हदया जलाने वाला न छोडा, मारे देवताओिं का, मारे पुरूषों का, घोर अपमान ककया, उसकी दो-चार धचकनी- चपु डी बातों पर तुम इतने फू ल उठे । याद रखो, अब की पासोननयस बा र ननकला तो कफर तुम् ारी कु शल न ी। यनू ान पर ईरान का राजय ोगा और यनू ानी ललनाएंि ईराननयों की कु दृज्ष्ट का मशकार बनेंगी। देवी की आज्ञा ै कक पासोननयस कफर बा र न ननकलने पाये। अगर तुम् ें अपना देश प्यारा ै, अपनी माताओिं और ब नों की आबरू प्यारी ै तो मंिहदर के द्वार को धचन दों। ज्जससे देशद्रो ी को कफर बा र न ननकलने और तमु लोगों को ब काने का मौका न ममले। य देखो, प ला पत्थर मैं अपने ाथों से रखती ूंि। लोगों ने ववज्स्मत ोकर देखा—य मिहं दर की पुजाररन और पासोननयस की माता थी। दम के दम में पत्थरों के ढेर लग गये और मंहि दर का द्वार चुन हदया गया। पासोननयस भीतर दातंि पीसता र गया। वीर माता, तुम् ंे िन्य ै! कसी ी माता से देश का मखु उजजवल ोता ै, जो देश-ह त के सामने मात-ृ स्ने की िलू -बराबर परवा न ींि करतींि! उनके पुत्र देश के मलए ोते ैं, देश पुत्र के मलए न ीिं ोता। ***
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