प्रसंग - प्रस्ततु पलं ियाँा रामनरेश लत्रपाठी द्वारा रलचत ‘अरमान’ नामक कलवता से िी गई ह।ै इस कलवता में कलव बच्चों के मन में िागतृ अरमान के बारे में बता रहे ह।ंै भावार्थ - कलव कहते हंै लक िीवन में प्राप्त असफिता के कारण हताश और लनराश होकर िो िोग हार मानकर बैठ गए ह,ंै उम्मीि मारकर बैठ चकु े ह,ंै ऐसे िोगों मंे पनु ः नवीन आशा का संचार करंेग।े उनके बझु े हएु मन में हम पनु ः एक नया उत्साह िगाएगँा ।े लवशेषता - इस कलवता के माध्यम से असफिता को चनु ौती मानकर सफिता की राह पर पनु ः नए उत्साह से आगे बढ़ने की प्रेरणा हमंे लमिती ह।ै 4. रोको मत, आगे बढ़ने िो, आज़ािी के िीवाने हैं। हम मातृभूलम की सेवा मंे, अपना सवथस्व लगाएगाँ े। प्रसंग - प्रस्ततु पंलियाँा रामनरेश लत्रपाठी द्वारा रलचत ‘अरमान’ नामक कलवता से िी गई ह।ैं इस कलवता मंे कलव बच्चों के मन मंे िागतृ अरमान के बारे मंे बता रहे ह।ैं भावार्थ - कलव कहते हंै लक िशे -सेवा और मानवीयता की इस राह में हमें आगे बढ़ने िो। हम आज़ािी के िीवाने ह।ंै िशे - सवे ा के लिए, मातभृ लू म के लिए अपना सभी कु छ समलपथत करके हम आगे बढ़ते िाएगाँ ।े राह मंे आने वािी हर बार्ा और रुकावट को भी हम पार कर िाएगाँ ।े लवशेषता - स्वार्थ–िोिपु समाि को िशे -सवे ा के लिए, सवसथ ्व समलपथत करने के लिए प्रेरणा िने े का सफि प्रयास इस कलवता के माध्यम से लकया गया ह।ै 5. हम उन वीरों के बच्चे हंै, जो धनु के पक्के सच्चे र्े। हम उनका मान बढ़ाएगँा े, हम जग में नाम कमाएगँा े। प्रसंग - प्रस्ततु पंलियााँ रामनरेश लत्रपाठी द्वारा रलचत ‘अरमान’ नामक कलवता से िी गई ह।ंै इस कलवता में कलव बच्चों के मन मंे िागतृ अरमान के बारे मंे बता रहे ह।ैं भावार्थ - कलव कहते हंै लक हम उन वीरों की संतान ह,ैं िो दृढ़-लनश्चयी और आत्म-बलििानी र्।े अपने कमों द्वारा िो मरकर भी अमर हो गए ह।ैं उनके िीवन से प्ररे णा िेकर, उनका अनकु रण करते हुए हम इस िगत् मंे अपना नाम कमाएगाँ े और िशे के वीरों का सम्मान बढ़ाएगाँ ।े लवशेषता - वीर िशे भिों का मागिथ शनथ िेकर आगे बढ़ने और अमर हो िाने की लशक्षा हमंे इस कलवता से लमिती ह।ैं 1. प्रत्येक बच्चा जीवन मंे कु छ बनना चाहता है। सबके मन मंे कोई अलभलाषा होती है। आप क्या बनना चाहते हैं? कारण सलहत बताइए। उ. मंै एक अध्यापक बनना चाहता हँा क्योंलक अध्यापक बन कर ही हम नए समाि का लनमाणथ कर सकते ह।ैं आि के बच्चे ही कि के नागररक ह।ंै उन्हंे अच्छे ससं ्कार िने ा हमारा कतथव्य ह।ै 90
2. जीवन मंे हम अनेक कायथ करते हैं, कु छ अपने ललए तो कु छ िूसरों के ललए। आप लकसके ललए काम करना पसंि करेंगे और क्यों? इस बारे में अपने लमत्रों के भी लवचार जालनए। उ. िीवन में हम अनेक कायथ करते ह।ैं उनमें मैं िसू रों के लिए काम करना पसिं करँा गा। क्योंलक िसू रों की सहायता करना मझु े अच्छा िगता ह।ै समाि की सवे ा करके ही परम शांलत का अनभु व होता ह।ै अलतररि प्रश्न 1. बच्चे लकसको गिे िगाना चाहते ह?ैं 2. हमें लफर से उत्साह िगाने की आवश्यकता कब पड़ती ह?ै 3. क्या आिकि बच्चों में भी अपना सभी कु छ मातभृ लू म की सेवा में िगाने की भावना ह?ै 4. आज़ािी के लिए िड़ने वािे िोग कै से र्े? 1. नीचे िी गई पलं ियाँा पलढ़ए। इनमें कलवता की लजन पंलियों के भाव आए हैं, उन्हंे लललिए। क) जो लोग लनधथन या गरीब हैं, भीि माँाग कर अपना जीवन लबताते हैं, लजनका कोई ध्यान नहीं रिता, लजनकी कोई सहायता नहीं करता, हम उनकी सहायता करंेगे। उनको सुिी बनाएगँा े। उ. िो िोग गरीब लभखारी ह,ैं लिनपर न लकसी की छाया ह।ै हम उनको गिे िगाएगँा े, हम उनको सखु ी बनाएगाँ ।े । ि) हमारे पूवथज बहुत बहािुर र्े। बडे मेहनती र्े। उन्होंने हमंे बहुत कु छ लसिाया। लवश्व में भारत िेश की अलग पहचान बनाई। अब हम उनका नाम और आगे बढ़ाएगाँ े। उ. हम उन वीरों के बच्चे ह,ैं िो र्नु के पक्के सच्चे र्।े हम उनका मान बढ़ाएगाँ े, हम िग में नाम कमाएगँा े।। 2. ‘रोको मत, आगे बढ़ने िो, आज़ािी के िीवाने हंै।’ इस पंलि का भाव स्पष्ट कीलजए। उ. भाव – अरे भाईयो! हमंे मत रोको। हमंे हमारी मलं ज़ि पाने के लिए आगे बढ़ने िो! हम िोग आज़ािी के िीवाने ह।ैं अलतररि प्रश्न 1. लनम्न पंलियों को िम मंे लललिए। यही अरमान है यही शौक, लिखिाएगाँ े हम करके कु छ िलु नया हम मंे वािों मरने, लिखाएगँा े नाम अमरों म।ें 2. कलवता में आए ध्वलन साम्य शब्िों को रेखांलकत कीलिए। 3. लकसी अन्य कलव की कोई िशे भलि से सबं लं र्त कलवता कक्षा में सनु ाइए। अध्यापन सकं े त - सलु नए-बोलिए और पलढ़ए में लिए गए अलतररि प्रश्न छात्रों की ज्ञान-वलृ ि हते ु लिए गए ह।ैं - अध्यापक/अध्यालपका छात्रों से लनम्न प्रश्न पछू ंे। उनके उत्तर की सराहना करें। 91
1. अमरों मंे नाम ललिाने के ललए हमंे क्या करना होगा? चचाथ कीलजए। उ. अमरों मंे नाम लिखाने के लिए हमें लनम्न कायथ करने चालहए - 1. लनःस्वार्थ भाव से िशे –सेवा मंे संिग्न होना चालहए। 2. अपने कमों से िगत् में इतनी कीलतथ अलितथ करंे लक मरने के बाि भी अमर हो िाए।ाँ 3. िशे –लहत के लिए प्राणों की परवाह न करके सच्चे सपतू के रप मंे यश अलितथ करना होगा। 4. अपने मन मंे अमर शहीिों के प्रलत श्रिा भाव रखकर उनका अनकु रण करना चालहए। 5. अपने िीवन मंे ऐसे कमथ करने चालहए, लिससे मरने के बाि भी हम िोगों के हृिय में अमर रह।ंे 2. उम्मीि िोने का क्या मतलब है? उम्मीि िो िेने वाले लोगों का जीवन कै सा होता है? उ. एक बार प्राप्त असफिता के कारण िो िोग हार मान चकु े ह,ैं लनराश व हताश होकर बैठ चकु े ह,ैं वे अपनी उम्मीिें खो िते े ह।ैं उम्मीि अर्ातथ ् नवीन आशा िो मनषु ्य को िीने की प्रेरणा िते ी ह।ै उम्मीि खो िने े वािे िोगों का िीवन लनराशामयी हो िाता ह।ै उनके लिमाग मानो बझु िाते ह।ैं लनलष्िय अवस्र्ा में पहचुाँ िाते ह।ैं वह िीलवत होकर भी मतृ –समान हो िाते ह।ंै उसे िीवन भार िगने िगता ह।ै इस तनावपणू थ वातावरण में उसे िीवन बोलझि, अरुलचकर, भारी, लनरुत्साही, अनावश्यक–सा िगने िगता ह।ै 3. हमंे गरीब लोगों की मिि क्यों करनी चालहए? उ. हमें गरीब िोगों की सिवै मिि करनी चालहए. क्योंलक उन पर लकसी की छाया नहीं होती। वे लनरालश्रत होते ह।ैं हमें उनके िःु खों को िरू करके उन्हंे गिे िगाना चालहए। उन्हंे सखु ी बनाने का हर सभं व प्रयास करना चालहए। लनर्थन िोगों की कोई सहायता नहीं करता। गरीब की सहायता करके ही सच्चे परमार्थ की अनभु लू त होती ह।ै गरीब यलि सक्षम बन िाए तो वह अन्यों के लिए भी प्रेरणा बनगे ा, लिससे सामालिक व्यवस्र्ा मंे भी सतं ुिन बना रहगे ा। 4. हमारा िेश आगे कै से बढ़ सकता है? हमारे िशे को आगे बढ़ाने के लिए हमें लबना रुके लनबाथर् गलत से आगे बढ़ते िाना होगा। हमें मातभृ लू म की सेवा मंे अपना सवसथ ्व अलपतथ करना होगा। अपने िक्ष्य की ओर लनरंतर बढ़कर अपने वीरों का मान बढ़ाना होगा। िशे की प्रगलत के लिए सच्ची िगन व लनष्ठा का पररचय िने ा होगा। अपने वीरों के प्रलत श्रिा भाव रखते हुए उनका अनकु रण करना होगा। 5. धुन के पक्के लोग कै से होते हैं? र्नु के पक्के िोग दृढ़ लनश्चयी, आत्मलवश्वासी, अपने िक्ष्य के प्रलत समलपतथ और कलटबि होते ह।ैं वे अपने मागथ में आने वािी बार्ाओं और लवपलत्तयों से घबराकर मागथ नहीं बििते वरन् अलड़ग रहते ह।ंै वे हर चनु ौती का सामना करते हुए लनरंतर प्रगलत की ओर अग्रसर रहते ह।ंै वे अपने उद्दशे ्य–पलू तथ तक तलनक भी लवचलित या भ्रलमत नहीं होते। 92
भाषा की बात नीचे लिए गए मुहावरों का अपने वाक्यों मंे प्रयोग करो। 1. कु छ कर लिखिाना - कु छ साध्य करना वाक्य - कु छ कर लिखिाने की चाह हो तो हम लज़िं गी में बहतु आगे बढ़ सकते ह।ैं 2. अमर हो िाना – स्र्ायी रप से रहना वाक्य – भगतलसहं अपने प्राण त्याग कर इलतहास के पन्नों में अमर हो गए। 3. लकसी की छाया न होना – लकसी से सहायता न लमिना वाक्य – लनर्नथ िोगों पर लकसी की छाया नहीं होती ह।ै 4. गिे िगाना - प्रमे से िखे ना वाक्य - अच्छे अकं लमिने पर लपतािी ने मझु े गिे िगाया। 5. लिमाग बझु िाना – लनराश हो िाना वाक्य - रािू का लिमाग बझु गया। इसलिए उसे परीक्षा मंे अच्छे अकं नहीं लमि।े 6. उत्साह िगाना – उमगं भरना वाक्य – नेता िोग अपने अनुचरों में उत्साह िगाते ह।ंै 7. आगे बढ़ना – उन्नलत पाना वाक्य - हमें अपने िीवन मंे आगे बढ़ने की कोलशश करनी चालहए। 8. नाम कमाना – यश कमाना वाक्य – हमें अपने िशे के लिए नाम कमाना ह।ै 1. नीचे लिए गए शब्िों में संज्ञाएाँ और उनके लवशेषण रूप हंै। इनका अपने वाक्यों में प्रयोग करंे और अंतर समझंे। उ. 1. शौक - शौकीन उ. मझु े कहानी पढ़ने का शौक ह।ै वह शतरंि का शौकीन ह।ै 2. नाम - नामी उ. मरे ा नाम भास्कर ह।ै अबं ानी एक नामी व्यवसायी ह।ै 3. सखु - सखु ी सखु के सार् िःु ख भी आता ह।ै सिाचरण से हम सखु ी बन सकते ह।ैं 93
4. उत्साह - उत्साही उ. वे िोग उत्साह के सार् काम करते ह।ंै उत्साही िोग हमेशा लविय पाते ह।ैं 5. वीर - वीरता उ. वीर िोग बहतु र्ैयथवान होते ह।ंै वन के अलर्कारी ने बहुत वीरता से शरे का सामना लकया। 6. िया - ियािु उ. हमें िसू रों पर िया करनी चालहए। ियािु व्यलि आिर का पात्र होता ह।ै 1. जीवन मंे सबका कु छ-न-कु छ अरमान होता है। कभी-कभी एक की इच्छा िूसरे की इच्छापलू तथ में बाधक बन जाती है। अपनी इच्छा पूरी करते समय िूसरों की इच्छा का ख्याल रिना सज्जन मनुष्य का गुण है। इस सिं भथ में आप अपने लवचार स्पष्ट कीलजए। उ. स्वाभालवक रप से प्रत्यके मनषु ्य के अपने-अपने कु छ अरमान होते ह।ैं लिन्हें पणू थ करने के लिए वह हर पि िािालयत व प्रयत्नरत रहता ह।ै अपनी इच्छाओं को पणू थ करने के लिए वह लवलभन्न मागों का चयन करते ह,ैं लकन्तु इस कायथ में ध्यान िने े योग्य बात यह है लक स्वयं की इच्छापलू तथ करते समय हम िसू रों को कि न ि।ंे अन्यों की इच्छापलू तथ मंे हम बार्क न बनंे। लवशषे यह भी है लक हमारे अर्वा िसू रों के अरमान उलचत हों। लकसी को उनसे पीड़ा या कि ना पहचुाँ ।े सज्िन मनषु ्य का यही गणु है लक वह समािोचना की दृलि से अरमानों के उलचत-अनलु चत का मकू यांकन करता ह।ै तत्पश्चात् उनकी उपयोलगता और सार्कथ ता को दृलि में रखते हुए कायथ सपं न्न करता ह।ै 1. आप भी कलवता ललिने का प्रयास कर सकते हैं। इस कलवता की पंलियााँ आगे बढ़ाइए। उ. िो िन पररश्रम, करते हंै उन्ह,ें लपछड़े न रहने िो। प्रकृ लत मंे सबसे पहिे, उसे सखु पाने िो। ... 1. कोई एक व्यलि लजसे आप अमर मानते हैं, उसके बारे मंे जानकारी एकत्र करके लललिए। उ. भगतलसंह भारत के एक प्रमखु अमर सेनानी र्े। भगतलसंह का िन्म 28 लसतम्बर, 1807 में हुआ र्ा। उनके लपता का नाम सरिार लकशन लसहं और माता का नाम लवद्यावती कौर र्ा। यह लसख पररवार के र्े। भगतलसहं ने 12 वषथ की उम्र में िलियाावँ ािा बाग हत्याकांड के बारे मंे सनु ा। उस घटना का उन पर गहरा असर पड़ा। बड़े होकर उन्होंने एसमे ्बिी मंे बम भी फें का। बम फटने के बाि उन्होंने ‘इकं िाब–लज़न्िाबाि! साम्राज्यवाि–मिु ाथबाि!’ का नारा िगाया और अपने सार् िाए 94
हुए पचे हवा में उछाि लिए। इसके बाि पलु िस ने उन्हें लगरफ्तार कर लिया। ििे में भगतलसहं ने करीब िो साि के कठोर कारावास में िेख लिखकर अपने िालन्तकारी लवचार व्यि लकए। 23 माचथ, 1939 को शाम मंे करीब 7 बिकर 33 लमनट पर भगतलसंह तर्ा इनके िो सालर्यों को फााँसी िे िी गई। भगतलसहं हमशे ा के लिए अमर हो गए। क्या मैं ये कर सकता ह/ाँ सकती हँा हााँ () नहीं (×) 1. पाठ के भाव के बारे में बातचीत कर सकता ह।ँा 2. पाठ के लवषय में लिलखत व मौलखक अलभव्यलि िे सकता ह।ाँ 3. पाठ के शब्िों का प्रयोग अपनी भाषा मंे कर सकता ह।ँा 4. सेवाभाव का महत्व बता सकता ह।ँा 5. पररलचत लवषय पर कलवता लिखने का प्रयास कर सकता ह।ँा इस पाठ में मंैने ये नए शब्ि सीिे - 95
अलतररि कायथ प्रश्नोत्तर 1. बच्चों के मन में क्या अरमान हंै? उ. बच्चों के अरमान हैं लक वे अपने इस िीवन मंे कु छ लवशेष अवश्य करके लिखाएगाँ ।े मरने वािी िलु नया अर्ातथ ् िहााँ मानवीयता िपु ्त हो गई ह,ै मानव-समाि स्वार्ी हो गया ह,ै ऐसी िलु नया में वे अमरों की श्रेणी मंे अपना नाम अवश्य लिखाएगाँ े। कलव कहते हैं लक िो िोग लनर्नथ है, लभक्षकु ह,ै लिन पर लकसी की कृ पा-दृलि नहीं ह,ै लिन्हें लकसी का आश्रय नहीं लमिता, ऐसे िोगों को हम गिे िगाकर, उनका िीवन सखु ी बनाएगाँ ।े 2. ‘अरमान’ कलवता का साराशं अपने शब्िों मंे लललिए। उ. रामनरेश लत्रपाठी द्वारा रलचत ‘अरमान’ िशे भलिपणू थ कलवता ह।ै िशे के लिए सवसथ ्व त्यागकर अमर हो िाने वािे वीरों के प्रलत श्रिािं लि अलपथत करते हुए वतथमान समाि को उनका अनकु रण करने की प्ररे णा इस कलवता द्वारा िी गई ह।ै बच्चों के अरमान हैं लक वे अपने इस िीवन मंे कु छ लवशेष अवश्य करके लिखाएगँा ।े मरने वािी िलु नया अर्ाथत् िहाँा मानवीयता िपु ्त हो गई ह,ै मानव-समाि स्वार्ी हो गया ह,ै ऐसी िलु नया में वे अमरों की श्रणे ी में अपना नाम अवश्य लिखाएगाँ ।े कलव कहते हैं लक िो िोग लनर्थन है, लभक्षकु ह,ै लिन पर लकसी की कृ पा-दृलि नहीं ह,ै लिन्हंे लकसी का आश्रय नहीं लमिता, ऐसे िोगों को हम गिे िगाकर, उनका िीवन सखु ी बनाएगँा ।े िीवन में प्राप्त असफिता के कारण हताश और लनराश होकर िो िोग हार मानकर, उम्मीि मारकर बठै चकु े ह,ैं ऐसे िोगों मंे पनु ः नवीन आशा का सचं ार करेंग।े उनके बझु े हएु मन मंे एक नया उत्साह पनु ः िगाएगँा ।े कलव कहते हंै लक िशे -सवे ा और मानवीयता की इस राह मंे हमें आगे बढ़ने िो। हम आज़ािी के िीवाने ह।ंै िशे -सेवा और मातभृ लू म के लिए अपना सवसथ ्व समलपथत करके भी हम आगे बढ़ते िाएगाँ े। राह मंे आने वािी हर बार्ा और रुकावट को भी हम पार कर िाएगाँ ।े कलव कहते हंै लक हम उन वीरों की संतान ह,ंै िो दृढ़-लनश्चयी और आत्म-बलििानी र्े। अपने कमों द्वारा िो मरकर भी अमर हो गए ह।ंै उनके िीवन से प्ररे णा िेकर, उनका अनकु रण करते हुए हम इस िगत् मंे अपना नाम कमाएगाँ े और िशे के वीरों का सम्मान बढ़ाएगँा ।े लवशेषता – अपने कमों द्वारा मर कर भी अमर होने की प्ररे णा, असफिता को चनु ौती मानकर सफिता की राह पर नए उत्साह से आगे बढ़ने की प्ररे णा हमंे इस कलवता के माध्यम से लमिती ह।ै मानवीय गणु ों के प्रलत िन-िमाि को िागतृ करने का प्रयास इस कलवता द्वारा लकया गया ह।ै वीर िशे भिों का मागिथ शनथ िके र अमर होने की लशक्षा हमंे इस कलवता से लमिती ह।ै कलवता- लेिन िखे न ससं ार मंे कलवता िखे न सबसे लभन्न एवं आकषकथ िेखन किा ह।ै कलवता िेखन में भाषा के लनयमों की कलटबिता के स्र्ान पर मिू भाव को प्रर्ानता िी िाती ह।ै भावना का सहारा िेकर शब्िों के भावनात्मक िाि को बनु कर ऐसा शब्ि भडं ार तयै ार लकया िाता ह,ै लिन्हें पढ़कर मन डोि उठता ह।ै वड्सथ वर्थ के शब्िों में, “कलवता मानव मन की सशि भावनाओं का बहाव ह।ै ” पोइट्री (कलवता) शब्ि ग्रीक भाषा से आया है लिसका अर्थ है – “कु छ बनाना, कु छ रचना।” कलवता लिखते समय लनम्नलिलखत बातों का ध्यान रखना चालहए- 96
1. अपनी सच्ची भावनाओं को अलभव्यि करने से न शरमाए।ाँ 2. सही शब्िों का प्रयोग करंे। (शब्ि भडं ार का ज्ञान आवश्यक) 3. ककपना का सहारा िंे। 4. तकु ातं शब्िों का प्रयोग प्रभावशािी रप में करें। 5. काव्यमयी भाषा का प्रयोग करें। 6. अलं तम पंलियों मंे कोई सिं शे ि।ें 7. कलवता को लिखकर बार-बार पढ़ें। 8. कलवता लिखने का सतत अभ्यास करते रह।ंे कलवता लेिन का उिाहरण सिलता सफिता लमिकर रहगे ी, समझ िो सकं कप का बि। हृिय ने िब िीत मानी, हर समस्या हो गई हि। कलठन है यलि काम कोई, िखे लिसको आखँा रोई। हार् बोिे श्रम साँभािो, हृिय से भय को लनकािो। काम हो िाता सरि िब, पररश्रम का लमि िाता बि। मत कह लक कराँ गा कि। भाववाचक सजं ्ञा भाववाचक सजं ्ञाओं की रचना कु छ भाववाचक सजं ्ञा शब्ि मौलिक होते ह,ैं िसै े- घणृ ा, प्रेम, िोर्। अलर्काशं भाववाचक सजं ्ञाएँा िालतवाचक संज्ञा, सवनथ ाम, लवशषे ण, लिया शब्िों तर्ा लिया-लवशेषण अव्ययों में प्रत्यय िोड़कर बनती ह।ंै 1. जालतवाचक सजं ्ञाओं से भाववाचक संज्ञा बनाना : - ि. सं. जालतवाचक संज्ञा भाववाचक सजं ्ञा 1 ईश्वर ऐश्वयथ 2 व्यलि व्यलित्व 3 प्रभु प्रभतु ा\\ प्रभतु ्व 4 कु मार कौमायथ 5 लशशु शशै व\\ लशशतु ा 6 िास िासता 97
2. सवथनाम से भाववाचक संज्ञा बनाना : - भाववाचक संज्ञा अपनापन\\ अपनत्व ि. स.ं सवथनाम लनिता\\ लनित्व 1 अपना 2 लनि परायापन 3 पराया स्वत्व 4 स्व ममत्व / ममता 5 मम एकता 6 एक भाववाचक संज्ञा 3. लवशेषण से भाववाचक संज्ञा बनाना : - बड़प्पन ि. सं. लवशेषण हररयािी 1 बड़ा ठंडक 2 हरा खटास 3 ठंडा लमठास 4 खट्टा कु शिता 5 मीठा 6 कु शि भाववाचक सजं ्ञा पढ़ाई 4. लिया शब्ि से भाववाचक सजं ्ञा बनाना: - माागँ ि. स.ं लिया मसु ्कराहट 1 पढ़ना लिखाई 2 मागँा ना र्कान\\ र्कावट 3 मसु ्कराना हसाँ ी 4 लिखना 5 र्कना भाववाचक संज्ञा 6 हसाँ ना सामीप्य लनकटता 5. अव्यय से भाववाचक सजं ्ञा बनाना : - शीघ्रता ि. सं. अव्यय लर्क्कार 1 समीप वाहवाही 2 लनकट 3 शीघ्र आगा-पीछा 4 लर्क् 5 वाह 6 आगे-पीछे 98
अभ्यास कायथ (Work Book) अपलठत पद्ांश 1. लनम्न पद्ांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर िीलजए। बार-बार आती है मझु को, मर्रु याि बचपन तरे ी। गया िे गया तू िीवन की, सबसे मस्त खशु ी मरे ी।। लचतं ा-रलहत खिे ना-खाना, वह लफरना लनभयथ स्वच्छंि। कै से भिू ा िा सकता ह,ै बचपन का अतलु ित आनिं ।। ऊँा च-नीच का ज्ञान नहीं र्ा, छु आ-छू त लकसने िानी। बनी हुई र्ी वहााँ झोंपड़ी और चीर्ड़ों में रानी।। प्रश्न- 1. कवलयत्री सभु द्रा कु मारी चौहान लकस मर्रु िीवन को याि कर रही ह?ैं ( ) ई) िन्म-समय ) अ) बचपन आ) यौवन इ) बढु ़ापा 2. बचपन का अतलु ित आनिं कै सा र्ा? ( अ) लचतं ा रलहत आ) खिे ना-खाना इ) लफरना लनभयथ स्वच्छंि ई) सभी 3. कब व्यलि को कोई लचतं ा नहीं होती? उ. _____________________________________________________________________ 4. कवलयत्री रानी कहााँ बनी हुई र्ी? उ. ______________________________________________________________________ 5. बचपन मंे लकस बात का ज्ञान नहीं र्ा? उ. ______________________________________________________________________ 6. ‘लनभयथ ’ का सलं र्-लवच्छेि कर सलं र् का नाम पहचालनए। उ. _____________________________________________________________________ प्रश्नोत्तर 1. हमें अमर बनने के लिए क्या करना चालहए? 2. उम्मीि खोने से हमारे िीवन पर क्या प्रभाव पड़ता ह?ै 3. हमंे लकस प्रकार गरीब िोगों की मिि करनी चालहए? कलवता-लेिन ‘मेरा भारत महान’ लवषय पर कलवता लललिए। संके त लबंिु – लहमािय, लसंर्,ु नलियाा,ँ र्रती, भाषाएँा 99
Search
Read the Text Version
- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- 11
- 12
- 13
- 14
- 15
- 16
- 17
- 18
- 19
- 20
- 21
- 22
- 23
- 24
- 25
- 26
- 27
- 28
- 29
- 30
- 31
- 32
- 33
- 34
- 35
- 36
- 37
- 38
- 39
- 40
- 41
- 42
- 43
- 44
- 45
- 46
- 47
- 48
- 49
- 50
- 51
- 52
- 53
- 54
- 55
- 56
- 57
- 58
- 59
- 60
- 61
- 62
- 63
- 64
- 65
- 66
- 67
- 68
- 69
- 70
- 71
- 72
- 73
- 74
- 75
- 76
- 77
- 78
- 79
- 80
- 81
- 82
- 83
- 84
- 85
- 86
- 87
- 88
- 89
- 90
- 91
- 92
- 93
- 94
- 95
- 96
- 97
- 98
- 99
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
- 192
- 193
- 194
- 195
- 196
- 197
- 198
- 199
- 200
- 201
- 202
- 203
- 204
- 205
- 206
- 207
- 208
- 209
- 210
- 211
- 212
- 213
- 214
- 215
- 216
- 217
- 218
- 219
- 220
- 221
- 222
- 223
- 224
- 225
- 226
- 227
- 228
- 229
- 230
- 231
- 232
- 233
- 234
- 235
- 236
- 237
- 238
- 239
- 240
- 241
- 242
- 243
- 244
- 245
- 246
- 247
- 248
- 249
- 250
- 251
- 252
- 253
- 254
- 255
- 256
- 257
- 258
- 259
- 260
- 261
- 262
- 263
- 264
- 265
- 266
- 267
- 268
- 269
- 270