जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) फ़्राँसीसी कवि जरक प्रेिेर की कवितरएँा अनूवित: हेमन्त जोशी (जन्म : 04 फ़रवरी 1900 - वनधन : 11 अप्रले 1977) वह सिर सहलाकर कहता है नहीं मनंै े उिे दखे ा जो दिू रों की टोपी पर बठै ा था मगर हाँा कहता है सदल िे पीला पडा था वह वह हााँ कहता है उनिे जो प्यार करते हैं उिे कापाँ रहा था वह अध्यापक िे कहता है नहीं सकिी चीज़ के ...सकिी भी चीज़ के ...इतं ज़ार में था वह वह खडा है यदु ्ध-दसु नया का अतं - िवाल पछू े जाते हैं उििे तकरीबन अिंभव था उिके सलए बोल पाना कई प्रश्न रखे जाते हंै उिके िामने या इशारा कर पाना अचानक सवसिप्त हिँा ी उिे घरे लते ी है और दिू रा जो खोज रहा था अपनी टोपी और वह िब कु छ समटा दते ा है वह और भी ज़्यादा पीला था िखं ्याएँा और शब्द वह भी कापँा रहा था तारीखें और नाम दोहराता था सनरंतर वाक्य और जाल मरे ी टोपी-मरे ी टोपी और अध्यापक की धमकी के बावजदू वह रोना चाहता था- शतै ान बच्चों के शोरगलु मंे मनैं े उिे भी देखा जो पढ़ रहा था अखबार हर तरह के रंगों की खसडया िे मनंै े उिे भी दखे ा जो िलामी दे रहा था झडं े को दखु के श्यामपट पर मनैं े उिे भी दखे ा जो काले कपडे पहने था बनाता है िखु का चेहरा। एक घडी थी उिके पाि घडी की चने थी बहुत पतला था नौजवान नपे ोसलयन बटुआ था और एक सबल्ला था तोपखाने का अफ़िर नाक खजु लाने का औजार भी था उिके पाि बाद मंे बन गया वह िम्राट मनैं े उिे दखे ा जो अपने बच्चे को हाथ िे घिीट रहा बहतु िे दशे जीते उिने था- और उिकी तौंद सनकल आयी बच्चा रो रहा था- मनैं े उिे दखे ा जो कु त्ता सलए हुए था तब भी थी उिकी तौंद मनैं े उिे दखे ा जो गपु ्ती सलए हएु था जब वह मरा था मनंै े उिे दखे ा जो रो रहा था पर बहतु छोटा हो गया था वह। मनंै े उिे दखे ा जो सगरजे में जा रहा था मनैं े उिे भी देखा जो लौट रहा था वहााँ ि।े
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मंै जिै ा हाँ विै ा हँा के वल प्यार करना जानते हंै मंै ऐिा ही बना हाँ प्यार करना जब होती है हिाँ ने की इच्छा प्यार करना हााँ, मैं ठहाके मार कर हिाँ ता हाँ क्यों करते हो मझु िे प्रश्न यहाँा मैं तमु ्हें खशु करने के सलए हँा प्यार करता हँा उन्हें जो प्यार करते हैं मझु े और यहााँ कु छ बदल नहीं िकता। क्या यह मरे ी ग़लती है (अगर यह विै े ही नहीं होता) मूल फ़्रंावससी से अनुिरि : हेमन्त जोशी सक हर बार मैं प्यार करता ह?ँा मैं गया पछं ी-बाज़ार मंै जिै ा हाँ विै ा हाँ और ख़रीदे पंछी मनंै े मंै ऐिा ही बना हाँ तेरे सलए तमु और क्या चाहते हो? मरे ी सप्रये क्या चाहते हो तमु मझु िे? मैं गया िू ल-बाज़ार मंै चाहने के सलए बना हाँ और ख़रीदे मनैं े िू ल मरे ी एसडयाँा बहुत ऊाँ ची हंै तेरे सलए मरे ा कद बहुत झकु ा हुआ मरे ी सप्रये मरे ा िीना बहतु ज़्यादा कठोर और मरे ी आखँा ंे बहुत ज़्यादा कमज़ोर मंै गया लोहा-बाज़ार और सिर और मनंै े ख़रीदीं जजं ़ीरंे इििे तमु ्हारा क्या होगा? भारी-भारी जजं ़ीरें मैं जिै ा हाँ विै ा हँा तरे े सलए मैं ऐिा ही बना हँा मरे ी सप्रये क्या होगा इििे तमु ्हारा सिर मंै गया ग़लु ामों के बाज़ार मंे जो मझु े हुआ था? और तझु े खोजा मगर तझु े पाया नहीं हाँा, मनै े सकिी िे प्यार सकया था मरे ी सप्रये। हााँ, उिने मझु े प्यार सकया था उन बच्चों की तरह जो आपि में प्यार करते हैं मूल फ़्रंावससी से अनिु रि : हेमन्त जोशी
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) फ़्रँासीसी कसव पॉल एल्युआर की कसवतरएाँ मूल फ़्रँासीसी भरषर से हेमन्त जोशी द्वररर (जन्म :14 जदसंबर 1895 - सनधन :18 नवबं र 1952) मरे ी जीभ के नीचे सौभाग्य से सदंु र बहती है सररता दभु ााग्य से वीभत्स ऄधं ों की जनगाहों के जलए जल... मूल फ़्रांसससी से अनुवरद : हेमन्त जोशी जजसकी कल्पना भी नहीं करते हम बडे जानवर मर रहे हंै छोटे भाग रहे हंै मरे ी ऄदृश्य जानवर छोटी-सी नाव अदमी और धरती के बीच और जगरे हएु परदे मूल फ़्रंासससी से अनवु रद : हेमन्त जोशी चलो बात करंे मतृ ्यु अइ थी ऄके ली ऄके ली ही वह चली गइ मूल फ़्रंासससी से अनवु रद : हेमन्त जोशी और जो करता था जीवन से प्यार वह रह गया जीवन बहतु प्यार करने योग्य है मरे े पास अओ ऄके ला खले ही होगा गर तमु ्हारे पास अउँ मूल फ़्रंासससी से अनवु रद : हेमन्त जोशी ओ पररयो गलु दस्ते की जजसमंे फू ल रंग बदलते ह।ंै मूल फ़्रांसससी से अनुवरद : हेमन्त जोशी
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) सब जमट गया वह अइ थी मूल फ़्रांसससी से अनुवरद : हेमन्त जोशी ईस ढलान पर चढ़ती जो काटता था हमारी गली को मस्त है एक भी ईंगली नीचे न रहे हलकी है जबल्ली बहुत मोटा जीव है और ईतनी ही साफ है वह गरदन ईसकी जसर से जडु ी है जजतना जबन बदली अकाश घनू ती है ईसी गोलाइ मंे और सहलाने का दते ी है जवाब पररपणू ा प्रनु ेल तब तक के जलए रात को अदमी को दीखती हैं ईसकी अँखंे जब तक रात की रानी जजनकी पीलाइ ही ईनका वरदान है जदन को आतनी मोटी हंै अँखें जक जछपती नहीं जछपाए ईल्लओु ं के हवाले नहीं करती आतनी भारी जक सपने की हवा हो जाए गायब शब्दरर्थ : जब जबल्ली नाचती है प्रनु ेल एक पक्षी का नाम है ऄपने जशकार को ऄलग रखती है और जब सोचती है वह मूल फ़्रांसससी से अनवु रद : हेमन्त जोशी अखँ की दीवार तक पहचुँ ती है मूल फ़्रांसससी से अनुवरद : हेमन्त जोशी मरे े नयन जोशीले कु त्त!े शातं कभी थे ही नहीं सपं णू ा अवाज़ सागर के ईस जवस्तार को दखे ते हएु और आशारों से जजसमें मैं डूब रहा था ऄपने माजलक के ऄतं तः जीवन को सफे द झाग ईठा हवा की तरह सघँू भागते हएु कालपे न की ओर
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) ऄपनी नाक से चपु रह मूल फ़्रंासससी से अनवु रद : हेमन्त जोशी झठू े होते हैं गगँू े बोल मंै वाकइ नाराज़ हँ ऄके ले ही बोल, बोल और मरे े यह शब्द ईपजाते हैं गलजतयाँ बोल ऐ मरे े नन्हे हृदय बोल। मूल फ़्रांसससी से अनवु रद : हेमन्त जोशी
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) फ़्रँासीसी कवि रोबेर सरबरविए (जन्म: 17 अगस्ि 1923) की कवििरएाँ अनुिरदक: हेमन्ि जोशी पडे ़ गजु रता है सामने से आदमी दखे ता है उसे और महससू करता है उसके हरे बालों को पत्तियों से लदी बाहाँ त्तहलाता है पडे ़ दीवार की ओर त्तिसलता है एक कोमल हाथ शरद बटोरने वाला हाथ और उपजाता है िल समदु ्र को सहलाने के त्तलए बच्चा जब आता है बोलता है जगं ल नहीं जानता बच्चा त्तक बोल सकते हंै पडे ़ भी रेत के घरौंदों की याद सनु ी हों जसै े उसने बढू ी छाल भी पहचानती है उसे पर इस पीले चहे रे से डरती है सब हटते जाते हैं और कु छ पत्तियााँ चरु ाता है वह समचू ा पडे ़ त्तहलता है उसे त्तवदा कहते हएु एक नस के खात्ततर वह रोता है सात जनम एक त्तसतारे के त्तलए खोता है अपनी आखँा ंे और बहा दते ा है अपनी जड़ें नदी मंे गला सखु ा दगें ी आत्तखरी आहंे जब वहाँा त्तचत्तड़याएाँ नहीं बठै ेंगी त्तिर कभी कोई चीरता है वसंत को लगातार छोटा पेड़ िै लाता है अपनी नगं ी बाहंे और कहता है कु छ शब्द त्तजन्हे चबा जाती है हवा।
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) फ़्रँासीसी कवव ववक्टर ह्यूगो की कववतरएँा मूल फ़्राँसीसी भरषर से हेमन्त जोशी द्वररर अनवू दत (जन्म: 26 फ़रर्री 1802 - वनधन: 22 मई 1885) कल, पौ फटते ही, जब खेतों मंे बबखरेगा तजे ़ प्रकाश मूल फ्रँासीसी से अनवु रद : हेमन्त जोशी आउँगा, बटे ी! मझु े ज्ञात है तरे े मन की आस गहन तमों के भीतर होकर, कर पर्तव को पार भोर हई ! और बंद हैं तेरे द्वार दरू रहँ मैं तझु स,े र्हन अब होता नहीं यह भार बप्रय अब अपने दृग खोलो बजस पल बखलंे गलु ाब अपार स्मबृ तयों के मन मंे खोया, मंै बढ़ता ही जाउँगा तमु नर्-बकरर्ों सगं हो लो नयन नहीं कु छ दखे गंे ,े शब्द न मंै कोई सनु ँगू ा एकाकी, अनजान बढूगँ ा, पीठ झकु ाए बाँधे हाथ ओ मरे ी मनमोबहनी और उदास, बदर्स लगगे ा मझु को जसै े हो बनस्तब्ध रात सनु री ! अपने प्रेमी को जो गाए है प्रेम-राबगनी अस्ताचल मंे रबर् की लाली का जाल दखे गँु ा नहीं और बभगोये नयनों को न दरू गोदी में नार्ों के झकु ते असंख्य पाल पहचँ समाबध पर तेरी म,ंै करँ समबपतव तझु े र्हीं तेरे धन्य द्वार पर आकर हरे-हरे कु छ शलू पर्व और फू ल कु छ पीले-लाल। आभा कहती, मैं बदन हँ सगं ीत सधु ा मे,ं कोयल कहती मूल फ्राँसीसी से अनुवरद : हेमन्त जोशी मन कहता, मंै प्रीत हँ ग्रीष्म मंे रबर् ढले जब, पषु ्पाच्छाबदत र्ाबटका ओ मरे ी मनमोबहनी बबखरे ती सब ओर असीबमत अपनी मादक-गधं सनु री ! अपने प्रेमी को बदं हों दृग-द्वार, मात्र हो आभास बकसी शब्द का जो गाए है प्रमे -राबगनी अधखलु े से नयन सोए,ँ आती है बनद्रा मदं -मदं और बभगोये नयनों को स्र्च्छ और बनमलव हों तारे, छाया हो पहले से बहे तर मूल फ़्रँासीसी से अनुवरद : हेमन्त जोशी आधव-बदर्स-सी, संध्या की छाया मानो गगन को भींचे और प्रतीक्षारत है जसै े प्रात सनु हरी और मनोहर लगता बनशा भटकती जसै े, दरू कहीं अब नभ के नीचे
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) डॉ. आभा खेडेकर यहॉंॉआती है सॉझॉं , जहॉंॉ महकता है हर फू ल अपने तने पर धपू दान-सा इठलाकर, स्वर और खशु बू का जादू सॉझंॉ मंे ममलता है और जैसे मबखर कर थम जाता है स्वर और मधरु सॉंगीत का दद!द वायमलन की तान कॉपॉं ती है एक ददद भरे मदल की तरह, नभ मोहक पर उदास मवशाल वेदी की तरह ठहरा हुआ ह।ै सनू ी सॉझॉं दखे कर, एक भावकु मदल हो जाता है उदास और अपनी लाली, अपने अन्त में खोकर सयू द सॉझंॉ में सखु द मदखता ह।ै जो समय गजु र गया, सामने आ जाता है बनकर तेरी याद जो मझु में बाती है और चमकती हंै धाममदक पमवत्र पात्र की तरह।'' मवचारों को प्रतीकों के रुप मंे बनु ने वाली कमवता बॉदंॉ लये र की कमवताएँ ह।ै बादंॉ लये र के मलए जीवन और कमवता एक दसू रे के रुप मंे पयादय ह,ै मजसमंे उन्होने जीवन के बरु े अनभु व और उससे छू टकारा पाने का माध्यम कमवता के द्वारा मकया गया ह।ै अपने मन मंे उपजे द्वन्द को शब्द व प्रतीकों के माध्यम से रखा ह।ै कई बार जीवन मंे असहजताएँ आयी हैं, सॉझंॉ के तरह लेमकन मफर प्रसन्न रहकर, इठलाकर उसे दरू मकया है व प्रकृ मत में जीवन मंे खशु बू का वातावरण फै ला मदया ह।ै मफर भी कई बार झंॉकार की तरह ददद उथल-पथू ल मचाता है और ठाम रहकर खडा है, ऐसे समय मंे मन उदास
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) होकर रह जाता है व कु छ नहीं कर पाता हंॉ । हर पल बीते हुए मदनों की याद मदलाता है समय सामने आकर खड़ा हो जाता है, लेमकन उसमंे भी याद आती है व उस याद मंे सच्चाई मदखायी दते ी ह।ै धमद में मतृ ्य,ु भय, दडॉं , नफरत, तड़प, व्यमभचार आमद ह,ै तो भी धाममदक कहा ह।ै जीवन को बन्धन में आबध्द मकया गया ह।ै भावों को प्रकृ मत के माध्यम से द:ु ख, दद,द इच्छाओॉं का जंॉगल कहा है व उस जंॉगल मंे यह सभी फू ल की तरह खीले हएु ह।ैं यह कमवता आपसी द्वन्द्व से उपजे त्रास और ददद की कमवता ह।ै मजसमें मदव्य सौन्दयद और लौमकक सनु ्दरता के मध्य पाये जाने वाले मवचलन की कमवता ह।ै बॉदॉं लये र का जीवन बड़ा ही तफू ानी रहा है व मानमसक सॉंताप से गजु रना पड़ा है व उसी को रचनात्मकता में स्थान मदया ह।ै इस तरह बॉदॉं लये र ने पथृ क शैली व वैचाररक मवमवधता को स्थान मदया ह।ै इस कमवता मंे सॉंरचनात्मक तकनीकों का इस्तेमाल मकया गया है, मफर भी अलग-अलग प्रमतबद्धताओंॉ का पालन मकया है व अमभव्यमि की आजादी के प्रयास तो हएु लेमकन मफर भी कमवता बंमॉ धत ह।ै
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) बांाग्ला देश- तसलीमा नसरीन की कविताएंा मूल बांाग्ला से अनुिादः रतन चांद ‘रत्नेश’ कभी-कभी इच्छा होती है बहुत कहां हंै मनषु ्य भाग जाऊं जो प्रतीक्षा कर रहे हंै मरे ी बर्च के रेतीले तट से इस धरा पर? ओक और र्ीड़ के र्मत्कारी वन मंे शांत, शीतल बाल्टटक सागर ल्घरे तमु के वल एक बार आगं न मंे उतरो सजे-धजे नगर म।ें मैं ग्यारह हजार मील पार कर कहां भाग?ंू तमु ्हंे दखे ने आऊं गी। कहां है ऐसा नगर जो तमु के वल एक बार उच्र्ारण करो प्रतीक्षा कर रहा हो मरे ी मरे े नाम का इस धरा पर? मंै पवतच के ल्शखर से ये ढक रखते हैं मरे ा सवागां जने ेल्टयनस के सभी पषु ्प उष्ण र्ादर से लाकर दगंू ी तमु ्ह।ें हाथ बढाने से पहले आ जाता है एक बार लो मरे ा नाम हथेली पर प्रेमार्द्च हृदय मंै बर्च, मपे टस और जलु्नपर के सारे रंग इच्छा होती है सब कु छ छोड़कर आषाढ की पहली वषाच की तरह कहीं भागने की बरसा दगंू ी तमु ्हारे शरीर पर। कहां भाग?ंू प्यास लगती हो गर, मत सोर्ो... डेन्यबू , सेइन, टाइबर और राइन नदी का
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) सारा पानी तमु ्हंे ही दगंू ी। वषाच की दो बदंू पड़ते ही एक बार आगं न मे उतरो आकाश में बादल ल्घरते ही मैं ल्वशाल सागर को पार कर घर मंे धमू मर् जाती थी स्पशच करं गी तमु ्हंे सखु ों की। एक बार कहो के वल सारा ल्दन हो-हटला, धमा-र्ैकड़ी प्यार करते हो मझु े कथाएं ल्नकल आती थीं ठस ब्रह्ाडं से खदु को छीनकर दादी-मां की झोली स।े सौंप न दंू तमु ्हें कोई गाता खलु कर वषाच-गीत तो कहना। कोई बैठ जाता लेकर गरम मगंू फली, तीखे-र्रपरे मरु मरु े मंै भी ढकी जा रही हं सफे द बफच से भाप उगलती र्ाय, ताश या कोई और खले घास की तरह, पेड़-पौधों की तरह घर-द्वार की तरह मरे ा उद्धार करो तमु , ऐ उष्णता। मंै भी ढकी जा रही हं नील अधं कार मंे कोई सरच से उतर आता पल्क्षयों की तरह, आकाश की तरह, सागर की तरह दालान में झरती बंदू ों में मरे ा उद्धार करो तमु , ऐ प्रकाश! ल्खर्ड़ी और तली ल्हलसा मछली की गधं मरे ा हृदय भी करता है मरे ा उद्धार फै ल जाती घर म।ें दहे -भरी उसकी अल्ग्न। और यहां
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) आकाश मेघाच्छन्न होते ही लोगों का मन कु म्हला जाता ह।ै भकृ ु ल्टयां र्ढ जाती हैं सबकी वषाच होने पर। मझु े आश्चयच होता है --- वषाऋच तु नाम की कोई र्ीज इनके ल्लए नहीं ह।ै काल-बैशाखी नहीं र्नु ना आमों का भी नहीं। वषाच में भींग ल्बस्तर पर पड़े रहने का सखु वह भी नहीं। दधू धलु े सफे द लोग धपू के ल्लए कातर प्राथनच ा करते रहते हैं सारा ल्दन। मैं ही के वल दरू इस अलग दशे में सबकी अनदखे ी करते हएु आकाश में बादल का टुकड़ा दखे ते ही खशु ी से नार् उठती हं ररमल्झम ररमल्झम। [email protected]
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) लिलटश कलव जमे ्स फ़े ण्टन (जन्म 1949) क़ी कलवताएँ सभी कववताओं का मूल अँग्रेज़ी से अनवु ाद प्रमोद कौंसवाल आदमी एक रोज़ मसु ्कराएगा बात ये नहीं है लक उन्होंने क्या बनाया एक रोज़ वह कह दगे ा उन्होंने जो ध्वस्त लकया ये उसक़ी बात है सदा के लिए अिलवदा ये घर नहीं हंै दो छू ट जाएगं े ये घरों के बीच क़ी दरू रयां हैं बाक़ी दो रह जाएगं े मरने के लिए बात उन घरों क़ी? नहीं है जो अलस्तत्व में हंै एक आदमी तमु को सबसे बहे तर सिाह दगे ा ये वो ठीये हंै लजनके लमटा लदए गए नामोलनशान तीन आदमी भगु तंगे े उसे ये तमु ्हारी स्मलृ तयां नहीं हैं एक आदमी जीलवत रहगे ा खदे जताने के लिए परेशान कर डािती हैं और आती हैं बार-बार िौटकर चार आदमी आपको कज़़ िेने के लिए लमिंेगे ये वह भी नहीं जो तमु ने लिख डािा एक आदमी आतंक के ? लबस्तर से जाग उठेगा यह है तो वह है पाचं आदमी जान गवं ा बैठेंगे लजसे तमु को भिू जाना चालहए हर हाि मंे पांच मंे से एक आदमी लज़दगीभर के लिए स्मलृ तपटि से दस िाख िोगों मंे से भी एक ही अगर साधारण-से लवचारों के साथ ये सबके सब मरे लमिंेगे अब भी आगे को बढ़ सकते हो और यदु ्ध है लक जारी रहगे ा। तो यक़ीनन कभी अपने को मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद प्रमोद कौंसवाल अके िा महससू नहीं करोगे दखे ो कि तक तो ये फ़नीचर ही
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) तमु ्हारी ओर दखे ते थे तहस नहस करती आज तमु पाते हो बठै े हएु आग और तिवार क़ी कहानी के साथ खदु को जीवन क़ी लखड़क़ी म।ंे कै से गजु ़र जाते हैं हज़ारों साि मूल अँग्रेज़ी से अनवु ाद प्रमोद कौंसवाल ये बात मनंै े दो पि में दखे ी हैं ये बयार बह चिी है ज़मीन ात्म हो गई लनकिी है भटु ्टे के खते से भाषाएं बनीं और लवभालजत हुई ं यहां पर अच्छी ाासी भीड़ जमा है ईश्वर पवू ़ क़ी ओर चिा गया एक भयावह त्रासदी के बाद और अपने को महफ़ू ज़ महससू कर रहा है नीचे चिने वािी मदं -मद हवा उसके भाई को अफ्ऱीका में है आफ़त में कहीं खोजा गया लवचरते हएु झखं ाड़ों में पररवार जनजातीय िोग सलदयां तो सलदयां राष्ट्र और तमाम जीलवत शलियां कोई पछू भी सकता है लजन्होंने कु छ सनु ा है दखे ा है एक लमनट बाद लजसक़ी कोई उम्मीद हो या ग़ितफ़हमी कै से एक तिवार क़ी मठू जो हवा अपने साथ िहरा रही है िोहार के यहां से िे गई उड़ाकर लशखर को और जाने कहां वो गाएगं -े झाड़यों क़ी कतार को झकु ाती हुई समदं र के कारोबार क़ी तरह लकसी हसं ी-ठहाके के साथ हवा में
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) ये बयार बह चिी है ठंडी हवा के झोंके क़ी तरह जो लनकिी है भटु ्टे के खते से उड़ा िे जाए पत्ते को मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद प्रमोद कौंसवाल यहां तक लक जानने वािे भी चौंधया जाए इसमंे वह असिी बात बताना भिू गया क्या तमु नीचे आओगे यह नहीं है वह कभी आए भी हो नीचे लजसे जानना चाहता है वह एक तीाी-सी हसं ी असि में लजसे वह नहीं जानना चाहता कहने को कु छ ज़्यादा न था यह तो वह है इन कई सािों मंे वह दबु िे हो गए जो उन्होंने कहा कै से तमु ने उनको एक सकं रे लपंजरे मंे ये वह नहीं है ढापं लदया ऊपर से ये तो वह है वह आलार लसकु ड़ने क़ी लजसे वह कहते ही नहीं। कोलशश करंे भी तो कै से। सभी कववताओं का मूल अगँ ्रेज़ी से अनवु ाद मूल अँग्रेज़ी से अनवु ाद प्रमोद कौंसवाल प्रमोद कौंसवाल उसक़ी पत्नी ने हामी भरी और वह हसं दी एक रहस्यमय ढंग से
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) ब्रिब्रिश कब्रि स्िेफ़ान स्पैण्डर की कब्रिताएँ अनिु ादक: रमेशचंद्र शाह, अब्रनल एकलव्य लगता था अनन्त प्रकाश इस खखड़की का मलू अगं ्रजे ी से अनवु ाद : रमशे चंद्र शाह रहते थे जब तमु यहाँा, मरे े खलए खिपती थी पडे ़़ों के ऊपर वह पत्त़ों के झरु मटु से कभी नहीं होता, पर होने की कगार पर सदा टंगा-सा, मरे े भरोसे की तरह मरे ा खसर-मत्यु का मखु ौटा, लाया जाता है प्रकाश म।ंे िाया पड़ती आर-पार गाल के और मंै, ह़ोंठ खहलाता हँा अस्त हो गया है प्रकाश वह और हो चकु े हो तमु भी िू ने को; कब के लेखकन मरे ी पहचँा महज िू ने तक ही सीखमत रह जाती, ओझल एक खड्ग के उजले प्रायद्वीप़ों मंे भले आत्मा खकतना ही बाहर खनकाल कर गरदन झाँाके । खचथड़े-खचथड़े हो चकु ी है शाखन्त समचू े यरू ोप मंे खनरख रहीं ह़ों वे गलु ाब, सोना, आखाँ ंे या दृश्य भला- जो बहती थी हमारे आर-पार कभी सा ये मरे ी इखं द्रयाँा आकाँ ती खिया चाहने भर की; चढ़ता हाँ अके ला अब मंै सीखढ़याँा इस ऊँा चे कमरे की होने की कामना दृश्य, सोना, गलु ाब, दसू रा व्यखि वह। अधं रे े चौक के ऊपर “ करता हाँ मैं प्यार ”- एक बस इसी तथ्य पर जहााँ पत्थर और जड़़ों के बीच है कोई अन्य दावा मरे ा परू ्कद ाम बनने का खटका हआ ह।ै अक्षत प्रमे ीजन अगं ्रेजी से अनवु ाद : रमशे चंद्र शाह मलू अगं ्रेजी से अनवु ाद : रमशे चदं ्र शाह टहल रहे हम साथ आज; म,ंै मेरी खबखटया मैं हमशे ा उनके बारे में सोचता हँा जो सच मंे महान थे खकतनी उजली पकड़ हाथ की उस के परू े मंै हमशे ा उनके बारे में सोचता हाँ जो सच में महान थे। मरे ी इस उंगली पर खजन्ह़ोंने, गभद से, आत्मा के इखतहास को याद खकया आजीवन आलोक-वलय यह रोशनी के गखलयाऱों से होते हए जहााँ समय के सरू ज इस हड्डी के खगदद करं गा अनुभव मैं, जब होते हैं हो जाएगी बड़ी- आज से दरू , खक जसै े अतं हीन और गाते हए, खजनकी खबू सरू त महत्वाकांक्षा दरू दखे ती आखँा ंे उस की अभी, आज ही थी खक उनके ह़ोंठ, अब भी आग की तपन से लसै , खसर से पैर तक गीत पहने उस जीवट की बात कहंे और खजन्ह़ोंने बसतं की शाख़ों से जमा कर लीं
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) चाहतंे जो उसके शरीर पर फै ली थीं मजं ररय़ों जसै े कभी नहीं बलु ाया। ना ही रेस्तरााँ के शीश़ों के दरवाजे घमू े उसे अदं र ले बेशकीमती है कभी न भलू ना लेने के खलए। अमर बसंत के रि से खलया गया आह्लाद का सार उसका नाम कभी अखबाऱों मंे नहीं आया। हमारी पथृ ्वी के पहले की दखु नयाओं से चट्टानंे तोड़ कर दखु नया ने अपनी पारंपररक दीवार बनाए रक्खी आते हए, मतृ क़ों के चाऱों तरर्फ और अपने सोने को भी गहरे कभी ना नकारना सबु ह के सहज प्रकाश में इसके दबाए रक्खा, आनंद को जबखक उसकी खजदं गी, शये र बाजार की अगोचर ना ही इसकी शाम की प्रमे की गभं ीर मागं को। अर्फवाह की तरह, बाहर भटकती रही। यातायात को कभी आखहस्ता से ना घ़ोंटने दने ा शोर से और धंधु से इस जीवट का पनपना। अरे, उसने अपनी टोपी खले -खले में ही फें क दी एक खदन जब हवा ने पडे ़़ों से पंखखु ड़यााँ फंे कीं। बर्फद के पास, सरू ज के पास, सबसे ऊं चे मदै ाऩों मंे फू लहीन दीवार से बदं कू ें फू ट पड़ीं, दखे ो कै से इन नाम़ों का सम्मान हो रहा है लहराती मशीन गन के गसु ्से ने सारी घास काट डाली; घास द्वारा झडं े और पखत्तयााँ खगरने लगे हाथ़ों और शाख़ों से; और सर्फे द बादल़ों की नाव़ों के द्वारा ऊनी टोपी बबलू में सड़ती रही। और ध्यान से सनु रहे आकाश मंे हवा की फु सफु साहट द्वारा उसकी खजदं गी पर गौर करो खजसकी कोई कीमत नहीं खजन्ह़ोंने अपने खदल मे रखा आग के मरकज को, थी सरू ज से जन्मे वे कु ि समय सरू ज की तरफ ही चल रोजगार मंे, होटल़ों के रखजस्टर मंे, खबऱों के दस्तावजे ़ों पड़े, में और चंचल हवा पर अपने मान के हस्ताक्षर िोड़ गए। गौर करो। दस हजार मंे एक गोली एक आदमी को मारती ह।ै मलू अगं ्रजे ी से अनवु ाद : अखनल एकलव्य पिू ो। क्या इतना खचाद जायज था इतनी बचकानी और अनाड़ी खजदं गी पर बदं कू ें धन के अखं तम कारर् के खहज्जे बताती हैं जो जतै नू के पडे ़़ों के नीचे पड़ी ह,ै ओ दखु नया, ओ बसतं में पहाड़़ों पर सीसे के अक्षऱों मंे मौत? लखे कन जतै नू के पेड़़ों के नीचे मरा पड़ा वो लड़का अभी बच्चा ही था और बहत अनाड़ी भी मलू अगं ्रेजी से अनवु ाद : अखनल एकलव्य उनकी महती आखाँ ़ों के ध्यान में आने के खलए। वो तो चंबु न के खलए बहे तर खनशाना था। जब वो खजदं ा था, खमल़ों की ऊाँ ची खचमखनय़ों ने उसे
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) ब्रिब्रिश कब्रव हैरॉल्ड ब्रिण्िर (जन्म: 1930 - ब्रनधन: 26 ब्रदसम्बर, 2008) की कब्रवताएँ अनवु ाद: व्योमेश शुक्ल, अब्रनल एकलव्य लाश कहाँा ममली ? एक बादली शरु ुआत से आएगा मदन लाश मकसे ममली ? यह खासा सदद होगा क्या मरी हुई थी लाश जब ममली थी ? लेमकन मदन बीतते-न-बीतते लाश कै से ममली ? सरू ज मनकल आएगा और तीसरा िहर सखू ा और गमद होगा लाश मकसकी थी ? शाम चमके गा चााँद कौन मिता या बेटी या भाई और खासा चमकीला या चाचा या बहन या मााँ या बटे ा तब, यह कहा जाना है मक था मतृ और िररत्यक्त शरीर का ? तेज़ हवा होगी लमे कन वह आधी रात तक ख़त्म हो जाएगी क्या लाश मरी हईु थी जब फे की गई ? मफर कु छ नहीं होगा क्या लाश को फे का गया था ? मकन्होंने फे का था इसे ? यह अमं तम िवू ादनमु ान है लाश नगं ी थी मक सफर की िोशाक मंे ? मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : व्योमेश शुक्ल तमु ने कै से घोमषत मकया मक लाश मरी हईु है ? कोई उम्मीद नहीं क्या तमु ्हीं ने घोमषत मकया मक लाश मरी हुई है ? बड़ी सावधामनयाँा ख़त्म तमु लाश को इतना बेहतर कै से जानते थे ? वे मदख रही हर चीज की मार दगंे े तमु ्हंे कै से िता था मक लाश मरी हुई है ? अिने मिछवाड़े की मनगरानी कीमजए क्या तमु ने लाश को नहलाया ? मूल अंग्रेज़ी से अनवु ाद : व्योमेश शुक्ल क्या तमु ने उसकी दोनों आखाँ े बन्द की ? क्या तमु ने लाश को दफनाया ? क्या तमु ने उसे उिमे ित छोड़ मदया ? क्या तमु ने लाश को चमू ा ? मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : व्योमेश शकु ्ल
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) और कहने के मलए शब्द बाकी नहीं है नये मतृ उनकी तरफ़ हमने जो कु छ छोड़ा है सब बम हैं जो हमारे सरो िर फट जाते हैं धड़कन की हल्की आवाज़ होती है हमने जो कु छ छोड़ा है सब बम हंै जब मतृ गले ममलते हंै जो हमारे ख़नू की आमखरी बँादू तक सोख लेते हंै उनसे जो बहुत समय से मतृ हंै जो कु छ छोड़ा है सब बम हंै और उन नये मतृ ों से जो मतृ को की खोिमड़यााँ चमकाया करते हंै जो आ रहे हैं उनकी तरफ़ मूल अंग्रेज़ी से अनवु ाद : व्योमेश शुक्ल वे रोते हंै और चमू ते हंै जब वे ममलते हैं मफर से िहली और आमख़री बार और दोिहर के बाद आते हंै सजे-धजे प्राणी मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : अब्रनल एकलव्य लाशों मंे संूघने के मलए और करने के मलए अिना भोजन ख़दु ा ने अिने ख़मु फ़या मदल मंे आह्वान मकया एक शब्द ढूंढने के मलए और तोड़ लेते हंै ये ढेर से सजे-धजे प्राणी नीचे इकठ्ठे जमाव को दने े के मलए आशीष। फू ले हुए नाशिाती धलू से और ममनेस्त्रोन-सिू महलाते हंै मबखरी हड्मडयों से लमे कन उसने ढूंढा और चाहे मजतना ढूंढा और प्रेतों से मफर जी उठने की ममन्नत की और जब हो जाता है भोजन िर गीत की कोई आवाज़ उसने वहाँा नहीं सनु ी वे वहीं िसर जाते हंै आराम से जलते हुए ददद के साथ बस इतना समझ आया मनथारते हएु लाल ममदरा को सुमवधाजनक खोिमड़यों मक उसके िास दने े के मलए कोई आशीष नहीं थी। में मूल अंग्रेज़ी से अनवु ाद : अब्रनल एकलव्य मूल अंग्रेज़ी से अनवु ाद: अब्रनल एकलव्य यह रात का मतृ समय है बहतु िरु ाने मतृ दखे ते हैं उस तरफ़ जहाँा से आ रहे हैं
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) तुर्की र्के महार्कवि नाविम वहक़मत र्की र्कविताएँ अनुिाद: सोमदत्त, त्पल ैनन्ी, वविततन ाानि,, न, ा (्न्म: 1901 --वनधन: 1963) वह क्या कर रही होगी अभी क्या सोच रही होगी वह अभी, इस क्षण, अभी ! अभी, इस क्षण, अभी घर मंे या बाहर कहीं काम कर रही है झकु ी या खडी हुई है ? उन्होंने हमंे धर पकडा शायद अगं डाई ले रही हो-- डाल प्रदया कारागार में ओह मरे ी प्रिया ! मझु े भीतर दीवारों के ऎसा करते हुए तमु ्हें उनके बाहर । प्रकतनी नगं ी प्रदखने लगती हंै उसकी पषु ्ट कलाइयाँा मरे ी हालत उतनी बरु ी नहीं है वह क्या कर रही होगी अभी उससे कहीं ज़्यादा खराब बात है अभी, इस क्षण, अभी ! जाने या अनजाने ढोना अपने भीतर कारागार को शायद सहला रही हो ज़्यादातर लोग यही करते हंै आजकल गोद में ले प्रबल्ली के बच्चे को । ईमानदार, महे नती, भले लोग शायद टहल रही हो, उठा रही हो अगला क़दम-- और वे भी उतने ही हक़दार हैं प्यार के आह, वे खबू सरू त पाँाव प्रजतनी तुम । जो उसे लाते थे मझु तक उडाते हुए जब-जब मंै डूबा अधं ेरे मंे । जानते हंै हम दोनों, मरे े प्यार ! हमें प्रसखाया गया है और सोच रही है क्या वह भी मरे े बारे में ? कै से रहना है भखू ,े सहनी है ठंड क्या मरे े बारे में सोच रही है वह भी इस समय मरते दम तक कै से चरू रहे आना थकान से या प्रक हरै ान-परेशान है वह यह सोच-सोच कर और सोचना अलग-अलग दरू रह के एक-दसू रे से । (छोडो, क्या पता) प्रक छीप्रमयाँा पकने में इतनी दरे क्यों लगती है ? अभी तक प्रमली नहीं कोई वज़ह मारने की या प्रक शायद यह प्रक इतने लोग क्यों हैं और कारोबार मंे : मारे जाने के अब भी इतने दखु ी ? रुप्रच नहीं रही अपनी । जानते हैं अपन दोनों अपन प्रसखा सकते हंै :
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जझू ना अपनों के प्रलए गवोन्नत और यह भी प्रक प्रदन-ब-प्रदन पहले से ज़्यादा डूबकर गजु ़रना ही चाप्रहए तमु ्हें नाप्रज़म प्रहक़मत की और ज़्यादा तन्मयता से पत्नी की गररमा से भर के । कै से करंे प्यार । अंग्रेि, से अनिु ाद : सोमदत्त बादल गजु ़रते हैं : खबरों से लदे हुए । भारी आओ, वह बोली तमु ्हारी वह प्रचट्ठी जो अभी प्रमली नहीं मझु े, उसे गडु ी- और रुको, वह बोली और मसु ्काओ, वह बोली मडु ी करता हाँ और खपो, वह बोली । प्रदल के आकार की बरौप्रनयों की नोकों पर : मंै आया पलु क उठती है असीम धरती । मंै रुका और बहुत ज़ोरों से मन हो रहा है प्रक प्रचल्लाऊँा : मै मसु ्काया मैं खपा । पी..रे... पी..रे.. अंग्रेि, से अनुिाद : सोमदत्त पटे ी से प्रनकालो वह घाघरा मैं प्रक़ताब पढ़ता हँा प्रजसमें मंनै े दखे ा था तमु ्हें पहली बार, तमु उसमें हो और बालों में लगाओ वह कारनेशन गीत सनु ता हँा जो तमु ्हें भजे ा था मनंै े जले से तमु उसमें हो चाहे प्रजतना प्रबखरा, मरु झा चकु ा हो । खाने बैठा हँा रोटी सँवा रो और प्रखली प्रदखो तमु बठै ी हो सामने आदमकद वसन्त-सी । मंै काम करता हाँ तमु वहााँ मौज़दू हो आज के रोज़ प्रदखना नहीं चाप्रहए तमु ्हें खोई-खोई ग़मगीन हालापँा्रक हाप्रज़र हो तमु सभी जगह प्रकसी हाल में ! बात नहीं कर सकती तमु मझु से आज के प्रदन सनु नहीं पाते हम आवाज़ एक-दजू े की तमु ्हंे प्रनकलना चाप्रहए सर ऊँा चा प्रकए हुए
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अंग्रेि, से अनिु ाद : सोमदत्त सपै्रनक अड्डा बन जाने के प्रलए तमु स्वतन्र हो । तमु दावा कर सकते हो प्रक तमु नहीं हो तमु खचच करते हो अपनी आखँा ों का शऊर, महज़ एक औज़ार, एक सखं ्या या एक कडी अपने हाथों की जगमगाती महे नत, बप्रल्क एक जीता-जागते इन्सान और गधाँू ते हो आटा दजनच ों रोप्रटयों के प्रलए काफी वे फौरन हथकप्रडयााँ जड दगंे े मगर खदु एक भी कौर नहीं चख पाते, तमु ्हारी कलाइयों पर । तमु स्वतन्र हो दसू रों के वास्ते खटने के प्रलए प्रगरफ़्तार होने, जले जाने अमीरों को और अमीर बनाने के प्रलए या प्रफर फासँा ी चढ़ जाने के प्रलए तमु स्वतन्र हो । तमु स्वतन्र हो । जन्म लते े ही तमु ्हारे चारों ओर नहीं है तमु ्हारे जीवन मंे लोह,े काठ वे गाड दते े हंै झठू कातने वाली तकप्रलयाँा या टाट का भी परदा, जो जीवनभर के प्रलए लपेट दते ी हंै स्वतन्रता का वरण करने की कोई ज़रूरत नहीं : तमु ्हंे झठू के जाल मंे । तमु तो हो ही स्वतन्र । अपनी महान स्वतन्रता के साथ मगर तारों की छााहँ के नीचे प्रसर पर हाथ धरे सोचते हो तमु इस प्रक़स्म की स्वतन्रता कचोटती है । ज़मीर की आज़ादी के प्रलए तुम स्वतन्र हो । अंग्रेि, से अनिु ाद : सोमदत्त तमु ्हारा प्रसर झकु ा हुआ मानो आधा कटा हो मरे ी प्रियतमा गदनच से, अपनी आप्रखऺ री प्रचट्ठी में लंजु -पंजु लटकती हंै बाहाँ ,ें तमु ने प्रलखा था: यहाँा-वहााँ भटकते हो तमु ददच से तमु ्हारा प्रसर फटा जा रहा है अपनी महान स्वतन्रता मंे, बदहवास है तमु ्हारा रृदय। बरे ोज़गार रहने की आज़ादी के साथ तमु ने प्रलखा था: तमु स्वतन्र हो । मझु े यप्रद वे लोग फाँसा ी दते े हंै मझु े यप्रद खो दते ी हो तमु तमु प्यार करते हो दशे को तो तमु प्रज़न्दा नहीं रहोगी। सबसे क़रीबी, सबसे क़ीमती चीज़ के समान । लपे्रकन एक प्रदन, वे उसे बेच दगंे ,े तमु प्रज़न्दा रहोगी, मरे ी प्रियतमा उदाहरण के प्रलए अमरे रका को मरे ी याद काले धएु ँा की तरह घलु जाएगी हवा में, साथ मंे तमु ्हंे भी, तमु ्हारी महान आज़ादी समते तमु प्रज़न्दा रहोगी
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मरे े रृदय की लाल बालों वाली बहन, प्रक चाहा और तोड प्रलया! अभी इसे लके र प्रचन्ता मत करो बीसवीं शताब्दी मंे ये सब तो दरू की बातंे हंै बहुत ज़्यादा हआु तो बस एक साल है इन्सानों के शोक की उम्र! हाथ मंे अगर कु छ पैसे हों तो एक गरम पाजामा खरीदकर प्रभजवा दने ा मझु े मतृ ्य.ु .. पैरों मंे गप्रठये की तकलीफशरु ू हो गई ह।ै रस्सी के एक छोर पर लम्बा होकर झलू ता रहे शरीर -- मैं ऐसी मौत नहीं चाहता मत भलू ना प्रक लपे्रकन मरे ी प्रियतमा, तमु जानना प्रजसका पप्रत जले मंे हो जल्लाद के बालों भरे हाथ उसके मन में हमशे ा उत्साह रहना चाप्रहए। अगर कभी मरे े गले में फााँसी का फन्दा पहनाए अंग्रेि, से अनिु ाद : त्पल ैनन्ी वे बके ार ही ढूढँा ़गें े डर चरे ी की एक टहनी नाप्रज़म की नीली आँखा ों में। एक ही तफू ान मंे दो बार नहीं प्रहलती वकृ ्षों पर पप्रक्षयों का मधरु कलरव है आप्रखऺ री सबु ह के अस्फु ट उजाले में टहप्रनयााँ उडना चाहती ह।ंै दखे गाँू ा अपने साप्रथयों को, तमु ्हंे दखे गाँू ा। यह प्रखडकी बन्द ह:ै मरे े साथ कब्र मंे जाएगी एक झटके मंे खोलनी होगी। प्रसफच मरे ी मैं बहुत चाहता हँा तमु ्हें एक असमाप्त गीत की वदे ना। तमु ्हारी तरह रमणीय हो यह जीवन मरे े साथी, ठीक मरे ी प्रियतमा की तरह ... दलु ्हन मरे ी तमु मरे ी कोमलिाण मधुमक्खी हो मैं जानता हाँ तमु ्हारी आखाँ ें शहद से भी मीठी ह,ंै दुु ःख की टहनी उजडी नहीं है आज भी -- मैं क्यों प्रलखने गया तमु ्हंे एक प्रदन उजडेगी। प्रक वे फाँसा ी दने ा चाहते हंै मझु े क्यों प्रलखने गया! अभी तो प्रजरह शरु ू हुई है अंग्रेि, से अनुिाद : त्पल ैनन्ी और आदमी का प्रसर टहनी पर प्रखलने वाला फू ल तो नहीं
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) उजले नीले फू लों की मजं री से लदी टहनी की ओर सबसे सनु ्दर है जो प्रशशु मैं दखे रहा ह।ाँ वह आज तक बडा नहीं हो सका ह,ै तमु ... मानो मणृ ्मयी वसन्त ऋत,ु हमंे आज तक नहीं प्रमल सके हंै मरे ी प्रियतमा हमारे सबसे सनु ्दर प्रदन, और मैं तमु ्हारी ओर दखे ता हुआ। मधरु तम जो बातें मैं कहना चाहता हाँ आज तक नहीं कह सका ह।ाँ धरती पर पीठ प्रटकाकर मंै आकाश को दखे ता हँा जसै े प्रक तमु मधुमास हो, आकाश हो तमु ही अंग्रेि, से अनुिाद : त्पल ैनन्ी मैं तमु ्हंे दखे रहा ह,ाँ प्रियतमा। रात के अधँा ेरे में गााँव-दशे में दरवाज़े पर मंै आपके मनंै े सखू े पत्तों से आग जलाई थी दस्तक दे रही ह।ँा मंै छू रहा हाँ उसी आग को प्रकतने ही द्वार खटखटाए हंै मनंै े तमु नक्षरों के नीचे जलते अप्रननकु ण्ड की तरह हो प्रकन्तु दखे सकता है कौन मझु े मरे ी प्रियतमा मरे हुओं को कोई कै से दखे सकता है मंै तमु ्हंे छू रहा ह।ँा मंै मरी प्रहरोप्रशमा मंे इन्सानों में घलु -प्रमलकर ही बचना है मझु े दस वषच पहले मरे ा प्यार है इन्सानों के प्रलए ही मंै थी सात बरस की गप्रत की तरंगों पर बहने को प्यार करता हाँ आज भी हाँ सात बरस की प्यार करता हँा सोचने को मरे हएु बच्चों की आयु नहीं बढ़ती अपने संग्राम को प्यार करता हाँ पहले मरे े बाल झलु से और इसी संग्राम की आंतररक सतहों में प्रफर मरे ी आखाँ े भस्मीभतू हुई ं मनषु ्य के आसन पर आसीन हो तमु राख की ढरे ी बन गई मंै मरे ी प्रियतमा... हवा प्रजसे फँाू क मार उडा दते ी है मंै तमु ्हंे प्यार करता ह।ाँ अपने प्रलए मरे ी कोई कामना नहीं मंै जो राख हो चकु ी हाँ अंग्रेि, से अनुिाद : त्पल ैनन्ी जो मीठा तक नहीं खा सकती । सबसे सनु ्दर है जो समदु ्र मैं आपके दरवाज़ों पर हमने आज तक उसे नहीं दखे ा,
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) दस्तक दे रही हँा आते वसन्त मंे वह बाप बनने वाला है । मझु े आपके हस्ताक्षर लने े हैं ओ मरे े चाचा ! ताऊ ! अपनी दसवीं सालप्रगरह मना रहे हंै वे बच्चे ओ मरे ी चाची ! ताई ! जो उस प्रदन कोख में आए ताप्रक प्रफर बच्चे इस तरह न जलें प्रजस प्रदन मझु े इस गड्ढे मंे फें का गया । ताप्रक प्रफर वे कु छ मीठा खा सकें । ठीक उसी प्रदन जनमे अपनी लम्बी छरहरी टाँगा ों पर काँापते बछेडे अब तक ' अंग्रेजी से अनुिाद : तशिरिन थानिी चौडे कू ल्हे प्रहलाती आलसी घोप्रडयों में तबदील हो चकु े होंगे । जब से मझु े इस गड्ढे मंे फंे का गया लेप्रकन ज़तै नू की यवु ा शाखंे पथृ ्वी सरू ज के प्रगदच दस चक्कर काट चकु ी है अब भी कमप्रसन हैं अब भी बढ़ रही हंै । अगर तमु पथृ ्वी से पछू ो, वह कहगे ी - ‘यह ज़रा-सा वक़्त भी कोई चीज़ है भला !’ वे मझु े बताते हैं अगर तमु मझु से पछू ो, मंै कहगँा ा - नयी-नयी इमारतें और चौक बन गए हंै ‘मरे ी प्रज़न्दगी के दस साल साफ !’ मरे े शहर मंे जब से मंै यहााँ आया और उस छोटे-से घर मरे ा पररवार प्रजस रोज़ मझु े क़ै द प्रकया गया अब ऐसी गली मंे रहता ह,ै एक छोटी-सी पंेप्रसल थी मरे े पास प्रजसे मंै जानता नहीं, प्रजसे मनंै े हफ़्ते भर में प्रघस डाला। प्रकसी दसू रे घर में अगर तमु पेंप्रसल से पछू ो, वह कह कहगे ी - प्रजसे मैं दखे नहीं सकता । ‘मरे ी परू ी प्रज़न्दगी !’ अगर तमु मझु से पछू ो, मंै कहगाँ ा - अछू ती कपास की तरह सफे द थी रोटी ‘लो भला, एक हफ़्ता ही तो चली !’ प्रजस साल मझु े इस गड्ढे में फें का गया प्रफर उस पर राशन लग गया जब मंै पहले-पहल इस गड्ढे में आया - यहाँा, इन कोठररयों मंे हत्या के जमु च मंे सज़ा काटता हआु उस्मान काली रोटी के मटु ्ठी भर चरू के प्रलए साढ़े सात बरस बाद छू ट गया । लोगों ने एक-दसू रे की हत्याएाँ कीं । बाहर कु छ असाच मौज-मस्ती मंे गजु ़ार अब हालात कु छ बेहतर हैं प्रफर तस्करी मंे धर प्रलया गया लेप्रकन जो रोटी हमंे प्रमलती ह,ै और छै महीने बाद ररहा भी हो गया । उसमंे कोई स्वाद नहीं । कल प्रकसी ने सनु ा - उसकी शादी हो गई है प्रजस साल मझु े इस गड्ढे में फें का गया दसू रा प्रवश्वयदु ्ध नहीं शरु ू हआु था,
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) दचाऊ के यातना प्रशप्रवरों मंे जसै े मरे ी दस वषों की यातना गसै -भरट्ठयाँा नहीं बनी थीं, फालतू की बात ह।ै हीरोप्रशमा में अण-ु प्रवस्फोट नहीं हआु था । अँग्रेि, से अनुिाद : न, ा आह, समय कै से बहता चला गया है क़त्ल प्रकये गये बच्चे के रक्त की तरह । वह सब अब बीती हुई बात है । लपे्रकन अमरीकी डालर अभी से तीसरे प्रवश्वयदु ्ध की बात कर रहा है । प्रतस पर भी, प्रदन उस प्रदन से ज़्यादा उजले हंै जबसे मझु े इस गड्ढे में फंे का गया। उस प्रदन से अब तक मरे े लोगों ने खदु को कु हप्रनयों के बल आधा उठा प्रलया है पथृ ्वी दस बार सरू ज के प्रगदच चक्कर काट चकु ी ह.ै .. लेप्रकन मैं दोहराता हँा उसी उत्कट अप्रभलाषा के साथ जो मनंै े प्रलखा था अपने लोगों के प्रलए दस बरस पहले आज ही के प्रदन : ‘तमु असंख्य हो धरती मंे चींप्रटयों की तरह सागर में मछप्रलयों की तरह आकाश में प्रचप्रडयों की तरह कायर हो या साहसी, साक्षर हो या प्रनरक्षर, लेप्रकन चपाँू्रक सारे कमों को तमु ्हीं बनाते या बरबाद करते हो, इसप्रलए प्रसफच तमु ्हारी गाथाएँा गीतों में गायी जायेंगी।’ बाक़ी सब कु छ
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मैक्ससको के कक्व ओक्ताक्वयो पास की कक्वताएँ अनुवाद: ररनू तलवाड़, सरु ेश सल़ील (जन्म: 31 मार्च, 1914 - क्नधन: 19 अप्रैल, 1998) ददव्य चहे रा कहानी जो गाती है बदलाव का गीत जो गलु बहार जसै े खोल दते ा है अपनी पखं दु ़ियाँा सरू ज जो करती है सघं षि की उम्मीद की ओर सघं षि दो दहे ों के एक होने के प्रेम के दलए वसै े ही तमु खोल दते ी हो सघं षि नए ददन के सगं जागे नए आवशे ों के दलए अपना चहे रा मरे ी ओर जब मैं पन्ना पलटता हँा । सघं षि उपेदित अदधकारों के दलए या संघषि के वल एक और रात जीदवत रहने के दलए । मोहक मसु ्कान कोई भी आदमी हो सकता है तमु ्हारे जादू मंे दगरफ़्तार, हाँा, यह तमु ्हारे दलए ह,ै ओ पदिका की सदंु री । तमु जो जीती हो दुु ःख की ददु नया में तमु जो हो हर पल नष्ट होते ब्रह्माण्ड का चमकता दकतनी कदवताएँा दलखी गयी हैं तमु ्हारे दलए ? दसतारा, दकतने दातँा े तमु ्हें पि दलख चकु े ह,ैं बेआिीस ? तमु जो हो एक-हजार-एक ल़िाइयों की योिा, तमु ्हारी सम्मोहनी माया को तमु ्हारे दलए, मरे े मन की मीत । तमु ्हारी दनदमति फं तासी को । अब स,े मरे ा दसर झकु कर नहीं दखे गे ा कोई पदिका, मगर आज एक और रूढोदि के तहत बदकक उठ कर दनहारेगा रात को, यह कदवता मैं तमु ्हारे दलए नहीं दलखगंू ा. और उसके चमकते दसतारों को, नहीं. और रूढोदियाँा नहीं. तो अब और रूढोदियााँ नहीं । यह कदवता समदपति है उन दियों को अँग्रेज़ी से अनुवाद : ऱीनू तलवाड़ दजनका सौंदयि है उनकी सौम्यता मंे, उनकी बदु ि म,ें अपनी पारददशति ा पर मोदहत ददन उनके चररि में दझझकता है जाने और ठहरने के बीच । न दक उनके बनाये हएु रूप में । यह गोलाकार दोपहर अब एक घाटी है जहाँा दन:शब्दता मंे ददु नया झलू ती है । यह कदवता तमु ्हारे दलए है सब प्रत्यि है और सब पक़ि से बाहर, तमु जो शहरजाद की तरह सब पास है और छु आ नहीं जा सकता । रोज उठती हो एक नई कहानी के साथ, काग़ज, द़िताब, पंदे सल, दगलास
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अपने-अपने नामों की छावँा में बठै े हैं । हवा से अदधक मरे ी धमदनयों में ध़िकता समय पानी से अदधक होंठों से अदधक उसी न बदलने वाले रदिम शब्दांश रोशन रोशन तमु ्हारा बदन को दोहराता है । संके त भर है तमु ्हारे बदन का रोशनी बना दते ी है उदासीन दीवार को प्रदतदबम्बों का एक अलौदकक मचं । अँग्रेज़ी से अनुवाद : ऱीनू तलवाड़ मैं स्वयं को एक आखाँ की पतु ली में पाता ह,ँा उसकी भावशनू्य ताक में स्वयं को ही दखे ता हुआ । वह पल दबखर जाता है । एकदम दस्थर, मैं ठहरता हँा और जाता हँा : मैं एक दवराम हँा । अँग्रेज़ी से अनुवाद : ऱीनू तलवाड़ नहीं है पे़िों के बीच कोई भी इस पल और इस पल के बीच, और मैं मंै हाँ और तमु हो के बीच, न जाने मंै कहााँ चला गया हँा एक शब्द है पलु । अँग्रेज़ी से अनुवाद : ऱीनू तलवाड़ उसको पार करते समय तीसरे पहर के मध्य प्रदतरोध करती हईु तमु पार करते हो अपने आप को : और रादि के मध्य समटे ती-सहजे ती हईु ददु नया ज़ु िने लगती है एक कमदसन ल़िकी की टकटकी । और हो जाती है एक छकले की तरह बंद । पढ़ने-दलखने के प्रदत बेपरवाह, एक तट से दसू रे तट तक, उसका समचू ा अदस्तत्व दो दस्थर आखँा ों मंे दसमटा हमशे ा होती है हआु । एक फै ली हईु दहे : दीवार पर रोशनी खदु -ब-खदु हट जाती है । इन्रधनषु । मंै सोऊँा गा उसकी महे राबों के तले । वह अपना अतं दखे ती है या अपना आरम्भ ? कहगे ी दक कु छ नहीं दखे ती । अँग्रेज़ी से अनुवाद : ऱीनू तलवाड़ अनतं दवस्तार पारदशी ह।ै
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) वह कभी नहीं जानगे ी दक उसने क्या दखे ा । अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सक्लल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सक्लल सद,ि सत्वर हाथ उतारते ह,ैं एक के बाद एक अधँा रे े की परियााँ, मंै अपनी आखाँ ंे खोलता ह—ाँ अभी तक मरे ी सासँा के तार दकसी ताजादम जख़्म के ममसि ्थल से ज़ु िे ह।ैं
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) यूनाऩी कलव कं स्तालततन कवाफ़ी की कलवताएँ अनुवादक: सुरेश सि़ीि, लियूष दईया (जतम: 29 अप्रैल 1863 - लनधन: 29 अप्रलै 1933) मकानों, कहवाघरों और पास-पड़ोस का पररवशे जदनानजु दन की चलू ें बैठाते हुए । जजसे मनंै े दखे ा और सालों-साल अँग्रेज़ी से जजससे ह़ोकर गजु ़रा : अनवु ाद : सुरेश सलिि मनैं े तमु ्हें जसरजा अपनी खशु ी एक जक़ं दील काफी है । उसकी मजिम ऱोशनी अपनी उदासी के दौरान ज़्यादा मौजँू ह़ोगी, ज़्यादा रमर्ीय जब रंगतंे उभरंेगी... बहतु सारी घटनाओं से बहुत-से ब्य़ोरों से प्यार की रंगतें उभरंेगी । और अब तमु -सब एक जक़ं दील काफी है । आज रात कमरे में मरे े जलए अनभु जू त मंे बदल गए ह़ो । ज़्यादा ऱोशनी नहीं चाजहए । खबू ख़्वाब़ो-खयाली भरपरू जशद्दत और मजिम ऱोशनी— अँग्रेज़ी से अनवु ाद : सरु ेश सलिि इस खबू ख़्वाब़ो-खयाली से मैं सवारँू ँूूगा नज़्ज़ारे— ताजक रंगतें उभरें । प्यार की रंगतें उभरंे । जदवास्वप्न की-सी हालत में मैं बठै ा हँू । कला मंे समाजहत कर दी हैं मनैं े अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिि इच्छाएँू-अनभु जू तयाँू जसै े जक— अस्पष्ट चीज़,ें चेहरे या रेखाएूँ ब-े वक़्त मर गए ल़ोगों के खबू सरू त जजस्म, कु छेक धँधूु ली यादें अपरू ्ण प्रमे -प्रसंगों की । जकसी शानदार मक़बरे में उदासी के बीच क़ै द जसरहाने गलु ाब और पायतूँ ाने चबूँ ेली के फू ल, मझु े कला की सरपरस्ती में जाने द़ो : उसे पता है जक सौन्दयण के रूपाकारों क़ो वसै े ही हंै वे इच्छाएँू, ज़ो परू ी हुए जबना बीत गई,ं जजनमंे से जकसी क़ो भी कै से अरेहा जाए, तक़रीबन अतीजन्िय भाव से चाहत-भरी एक रात तक मयस्सर न हईु , जीवन क़ो परू ्तण ा दते े हएु प्रभावाजन्वजत के साथ—
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) या उसके बाद की खशु नमु ा सबु ह ही क़ोई । सबसे क़रीबवाजलयों से अभी तक धआु ूँ उठ रहा है ठंडा, जपघला हुआ और मडु ा-तडु ा । अँग्रेज़ी से अनवु ाद : सुरेश सलिि मैं उनकी तरफ दखे ना नहीं चाहता : आवाज़ें, प्रीजत-पगी और जमसाल बन चकु ीं उनकी शक़्ल मझु े उदास कर जाती है । उनकी, ज़ो मर गए, या— ज़ो मरे हओु ं की ही तरह उदास कर जाती है मझु े उनकी शरु ूआती ऱोशनी । मैं आगे, ऱोशन जक़ं दीलों क़ो, दखे ता हँू । हमारे जलए गमु ह़ो गए, उनकी । मैं पीछे मडु ना नहीं चाहता, दखे ना नहीं चाहता डरा हुआ हँू जक जकतनी तजे ़ी से वह काली कभी-कभार वे ख़्वाबों मंे हमसे बजतयाते हैं कभी-कभार स़ोच मंे गहरे डूबा जदमाग़ उनक़ो सनु ता है क़तार । लम्बी ह़ोती जाती ह,ै जकतनी तेज़ी से एक और बझु ी हईु जक़ं दील जा जमलती है और उनकी आवाज़ के साथ, पल भर के जलए जपछलीवाजलयों से । लौट आती हैं हमारी जज़न्दगी की पहली कजवता की आवाज़ंे— अँग्रेज़ी से अनवु ाद : सुरेश सलिि जसै े जक रात के वक़्त मजिम पडता जाता दरू स्थ सगं ीत । एक ऊबाने वाला जदन लाता है दसू रा जबलकु ल वसै ा ही उबाऊ । अँग्रेज़ी से अनुवाद : सरु ेश सलिि एक-सी चीज़ें घटेंगी, वे घटंेगी जफर... वही घजडयाूँ हमंे पाती हैं और छ़ोड दते ी हमें । आने वाले जदन गजु ़रता है महीना एक और दसू रे में आता । खडे हंै हमारे सम्मखु क़ोई भी सरलता से घटनाएूँ भाँूप ले सकता है आने वाली; जसै े जक— वे वही हैं बीते जदन की ब़ोजझल वाली । ऱोशन जक़ं दीलों की एक पाूतँ — और खत्म ह़ोता है आने वाला कल जबना एक आने वाला कल लगे सनु हरी, चमकीली और भरपरू जक़ं दीलें । अँग्रेज़ी से अनवु ाद : ि़ीयूष दईया बीत चकु े जदन पीछे जा पडे हंै हमारे, जसै े जक एक उदास क़तार; बझु ी जक़ं दीलों की,
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) बीते कल हवाख़ोरी करते एक सीमावती । पड़ोस में, मैं गजु ़रा उस मकान के नीचे जहाँू वह आइने के सामने गया और अपने पर एक नज़र डाली । अक्सर जाता था जब बहतु जवान था मंै । और सीधी की उसने अपनी टाई । वहाँू प्रमे ने अपनी अचंजभत करती मज़बूती से पाूचँ जमनट बाद जकड ली मरे ी दहे । वे पावती वापस लाए । इसे ले वह चला गया । और बीते कल लेजकन परु ाना आइना जजसने देखे थे और दखे े अपने अजस्तत्व के लंबे, लबं े सालों के दौरान, ज्यों मंै गजु ़रा परु ानी सडक के बगल से हज़ारों चीज़ें और चहे रे, दकु ान,ें बाज़-ू पटररयाूँ, पत्थर, दीवालें, बाल्कजनयाँू और जखडजकयाूँ इस दफे लेजकन परु ाना आइना आनजं दत था, बनी थी संदु र एकाएक प्रेम के जादजू ़ोर से; और इसने महससू ा गवण जक इसमें पाया था अपने में कु छेक लम्हों के जलए अजनन्य सौंदयण का एक जबंब । वहाँू असदंु र कु छ भी नहीं बचा था । और ज्यों मंै खडा रहा वहाँू, और दरवाज़े क़ो दखे ा, अँग्रेज़ी से अनुवाद : ि़ीयूष दईया और खडा रहा, और झकु ा मकान तले, मरे े ह़ोने ने लौटा जदया वापस सारा इस याद क़ो मंै बखानना चाहगँू ा... जमारखा आनंदमय ऐजन्िय जज़्बा । लेजकन अब इतना जझलजमला गई है यह...शायद ही बचा है कु छ - अँग्रेज़ी से अनुवाद : ि़ीयूष दईया ज़माना पहले थी यह क्योंजक, मरे ी मसें भीगने के सालों म।ंे था आलीशान घर के दाजखले पर एक आदमकद, बहतु परु ाना आइना, एक त्वचा माऩो चमले ी से बनी... जजसे ह़ो न ह़ो अस्सी बरस पहले त़ो खरीदा ही गया था अगस्त की उस शाम - क्या वह अगस्त था ? - उस । शाम... एक असाधारर् खबू सरू त लडका, एक दज़ी का नौकर अब भी ला सकता हूँ पर याद में आखँू ंे : नीली, मंै (इतवार के जदनों मंे एक नौजसजखया धावक) स़ोचता हँू वे थीं... खडा था एक पासणल थामे । इसे सौंप जदया उसने अरे हाूँ,नीली : एक नीला नीलम । जकसी क़ो घर मंे, ज़ो इसे अदं र ले गया पावती लाने । दज़ी का नौकर अँग्रेज़ी से अनुवाद : ि़ीयूष दईया छू ट गया अके ला अपने संग, और उसने इतं ज़ार जकया
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जकसी क़ो यह बरामद करने की क़ोजशश मत करने द़ो जक मैं कौन था उस सब से ज़ो मनंै े कहा और जकया । अडचन थी वहाूँ जजसने बनावट बदल दी मरे े जीवन के लहज़े और करनी की । अक्सर वहाँू अटकाव था एक ऱोक लेने क़ो मझु े जब मैं बस ब़ोलने ब़ोलने क़ो था । मरे ी जनतान्त अलजित करनी मरे े खजु फया लेखन से - मंै समझा जाऊं गा के वल इन सबसे । लेजकन शायद यह इस जानलेवा छानबीन के लायक नहीं है ख़ोज लने े के जलए जक असल मंे कौन हूँ मैं । बाद में । एक ज़्यादा मजूँ े-जखले समाज मंे जबल्कु ल मरे े जसै ा बना क़ोई और जदखाई दगे ा ही जफरता छु ट्टा । अँग्रेज़ी से अनवु ाद : ि़ीयूष दईया
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) यनू ानी कमव यामनस ररत्सोस (जन्म: 01 मई 1909 - मनधन: 11 नवम्बर 1990) की कमवताएाँ अनुवाद: मंगलेश डबराल कोई बीमारी नहीं है यह एक जवाब ह।ै बढ़इयों से कहा, मममियों से कहा, मबजलीवाले से अिना गीला तौमलया मजे िर मत छोडो । कहा चलने की तयै ारी करने का समय आ गया है । राशन की दकू ान के लड़के से कहा, 'इस दरवाजे को क़रीब महीने भर में बीत जायगे ा एक और ग्रीष्म । ठीक कर दो, कै सा उदास मनष्कासन है यह, उतार कर रखना नहाने इसकी चलू ें उखड़ी हुई ह,ैं सारी रात यह हवा में भड़भड़ाता रहता ह,ै मझु े सोने नहीं दते ा। के सटू को, घर का मामलक बाहर ह।ै और घर खडं हर धिू के चश्मों, बमनयानों, चप्िलों, हो रहा ह।ै मिछले बारह साल से यहााँ कोई नहीं रहा। इसे ठीक कर दो चमकते हएु समदु ्र की शाम के रंगों को । सारा ख़चाा मैं उठाऊँा गा।' जल्द ही आउटडोर मसनेमा बंद हो जायगें ,े उनकी उन्होंने कहा, 'इस िर हमारा कोई हक़ नहीं ह।ै ' कु मसायां उन्होंने कहा, 'हम इसमंे कोई दख़ल नहीं दे सकते।' मखसका दी जायंेगी कोने मंे । नावें िहले से कम 'मामलक बाहर ह।ै यह एक अजनबी का मकान ह।ै ' -- चलने लगगें ी सनु ्दर टूररस्ट लड़मकयां सकु शल घर मझु े लौटकर इसी जवाब की उम्मीद थी, यही मंै उनसे दरे रात तक जागगंे ी। हमारी नहीं तैराकों, मछु आरों, सनु ना चाहता था, यही जानना चाहता था मक इस िर उनका अमधकार नहीं ह।ै मल्लाहों की रंगीन तस्वीरों को उलटती-िलु टती रहगंे ी। दरवाजे को ऐसे ही रहने दो, उसे इसी तरह भड़भड़ िहले से ही दछु त्ती िर रखे हुए हमारे सटू के स जानना करने दो बागीचे के ऊिर, घोंघों और मछिकमलयों से चाहते हैं मक हम कब जाने वाले ह,ंै इस बार कहाँा जा रहे हंै भरे सखू े तालाब के ऊिर मबच्छु ओं और खाली चमखया ों के ऊिर, और मकतने मदनों के मलए । तमु यह भी जानते हो मक टूटे हएु काँचा के ऊिर। वह आवाज मझु े एक उन मघसे हुए, जायज तका दते ी ह,ै और मझु े सलु ा दते ी ह।ै खोखले सटू के सों के भीतर कु छ रमस्सयाँा िड़ी ह,ंै कु छ रबर बडंै ह,ंै और कोई झडं ा नहीं है । यह उबकाई औरतें बहतु दरू ह।ंै उनकी चादरों से 'शभु रामि' की महक आती ह।ै
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) वे ब्रडे लाकर मजे िर रख दते ी हैं तामक हमें यह न लगे जबमक भीतर के कमरों मंे हो चकु ी हंै िााँच घायलों की मक वे अनिु मस्थत ह।ंै मौत। तब हमंे यह महससू होता है मक यह हमारी गलती थी। हम एक गहरी आवाज सनु ाई दी और भी गहरी रात म।ंे कु सी से उठते हंै और कहते हैं : मफर टंैक गजु रे। भोर हुई। 'आज तमु ने बहतु ज्यादा काम कर मलया' या 'तमु तब आवाज मफर से सनु ाई दी, थोड़ी धीमी, कु छ और रहने दो, दरू । बत्ती मैं जला लँगाू ा।' दीवार सफे द थी। रोटी लाल थी। सीढ़ी लगभग लंबाकार िरु ानी सड़कबत्ती से सटी हुई थी। जब हम मामचस जलाते हंै तो वह आमहस्ता से मडु ़ती बढू ी औरत काले ित्थरों को एक-एक कर है जमा करती जाती थी काग़ज के एक थैले म।ें और एक अमनवचा नीय एकाग्रता के साथ रसोईघर की तरफ जाती ह।ै उसकी िीठ एक बहे द आगे वही िदचाि, िीछे भी वही। दोनों तरफ उदास एक जसै ी दीवार। िहाड़ी है कई मतृ कों से लदी हुई -- इसके एक छेद में मछिकली बैठी ह।ै िररवार के मतृ क, उसके मतृ क, तमु ्हारी खदु की मतृ ्य।ु छत िर मकड़ी ह।ै अगर बाररश होने लगे तो मचमड़या कहााँ जायगे ी और वह आदमी कहाँा तमु िरु ाने लकड़ी के फशा िर उसके चरमराते क़दमों जायेगा को मजसके िास एक िरु ाना-सा टोि ह,ै जबे में सनु ते हो। तमु अलमारी में तश्तररयों का रोना एक गन्दा-सा रुमाल ह,ै सनु ते हो। मफर तमु उस ट्रेन की आवाज सनु ते हो और जो फशा की ईटं िर नमक के दो डले रखे हएु ह।ंै जो मोचे की ओर फौमजयों को ले जाती ह।ै मैं मामलू ी चीजों के िीछे मछिता हँा बरामदे मंे छतररयााँ, जतू े, आईना तामक तमु मझु े िा सको; आईने मंे मखड़की बाकी चीजों से कु छ ज़्यादा तमु मझु े नहीं िाओगी तो उन चीजों को िाओगी। ख़ामोश : तमु उसे छु ओगी मजसे मरे े हाथों ने छु आ ह।ै मखड़की से मदखता सड़क के उस िार अस्िताल का हमारे हाथों की छाि आिस में ममल जायेगी। प्रवशे द्वार। वहााँ रक्तदाताओं की एक लम्बी, बचे ैन, जानी-िहचानी कतार -- िहली खिे ने अिनी कमीजों की आस्तीनंे ऊिर कर रखी हंै
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) रसोईघर मंे अगस्त का चन्द्रमा कलई मकये हएु बतान जसै ा चमकता है (जो बात मंै तमु से कह रहा हाँ उसकी वजह से ऐसा होता ह)ै वह खाली घर को प्रकामशत कर रहा है और उसकी घटु ने टेके बैठी ख़ामोशी को - ख़ामोशी हमशे ा ही घटु ने टेके रहती ह।ै प्रत्यके शब्द एक मलु ाक़ात का दरवाजा है जो अक्सर स्थमगत हो जाती है और शब्द तभी सच्चा होता है जब वह हमेशा मलु ाक़ात के मलए आकु ल हो। सभी कववताओं का अंग्रेजी से अनुवाद : मंगलेश डबराल
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) यनू ानी महाकलव ग्योगसे सेफ़े ररस (जन्म: 13 मािा 1900 - लनधन: 20 लसतम्बर 1971) की कलवताएाँ अनवु ादक: अमृता भारती, अननल जननवजय यह सरू ज मरे ा था और वह तमु ्हारा था: हमने उसे बााँट एक औरत गरु ाईा , ’कायरो !’ रात में कु त्ते की तरह । लिया । वह कभी तमु -सी ही सनु ्दर रही होगी कौन तकिीफ़ मंे है उस सनु हरी यवलनका के पीछे ? नम होंठों से, त्विा के नीिे जीवन्त लशराओं से कौन मर रहा है ? प्रेम से -- एक औरत लिल्िाई, अपनी सखू ी छालतयों को यह सरू ज हमारा था ; तमु ने इसे साबतु रखा ; पीटकर : कायरो, तमु मरे ा अनसु रण करना नहीं िाहते थे । और तब मनैं े सनु हरी यवलनका के पीछे इन वस्तओु ं को वे मरे े बच्िों को िे गए हंै और उन्हंे टुकडे-टुकडे कर जान लिया । लदया है । हमारे पास समय नहीं है । दतू सही थे । तमु ने उन्हें मार डािा, शाम के समय जगु नू दखे ते हुए उस लवलित्र दृलि से, जो अन्धे ध्यान में खो गई थी । अँग्रेज़ी से अनुवाद : अमृता भारती वकृ ्ष की हरर रोशनी हाथ पर, जहाँा खनू सखू रहा था, एक सोया हआु योद्धा भािा पकडे, जो उसके बग़ि में लसकन्दररया पर एक नया िााँद उगा अपने हाथों में एक परु ाना िाँदा थामे हुए िमक रहा था । और हम अपने रास्ते पर सयू ा के द्वार की ओर रृदय की रालत्र म,ें -- तीन दोस्त यह सरू ज हमारा था । सनु हरे बेिबटू ों के पीछे हमने कु छ नहीं दखे ा । हमने खोजा था अपनी यवु ावस्था मंे रूपान्तर बाद में दतू आए बदे म और गन्द,े इच्छाओं से जो िमक उठी थी बडी मछलियों-सी अस्फु ट, अज्ञात शब्दों को बदु बदु ाते हुए : समदु ्रों मंे जो अिानक लसकु ड गए : बीस लदन और रात बजं र भलू म और के वि कााटँ ों पर हम लवश्वास लकया करते थे दहे की सवशा लक्तमत्ता मंे । बीस लदन और रात घोडों के पटे से रक्त िआु ते भागते और अब नया िादँा आलिगं न मंे उग आया है रहे परु ाने िादाँ के साथ ; और खबू सरू त द्वीप िटे ा है और एक पि नहीं लवश्राम के लिए और वषाा जि पीने ज़ख़्मी और खनू िआु ता, शान्त द्वीप, शलक्तशािी, के लिए । मासमू । तमु ने उनसे कहा था, पहिे आराम करें बात बाद मंे ; और शरीर टूटी हईु शाखाओं के समान रोशनी ने तमु ्हें अन्धा कर लदया था । धरती से उखडी हुई जडों के समान । वे यह कहते हुए मर गए, ’हमारे पास समय नहीं ह’ै , हमारी प्यास छु आ था उन्होंने सरू ज की कु छ लकरणों को । तमु भिू गए थे कोई कभी आराम नहीं करता है ।
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) एक घडु सवार की मलू त्ता अँग्रेज़ी से अनुवाद : अमृता भारती ’सरू ज’ के अन्धरे े ’द्वार’ पर नहीं जानती क्या माँगा े ; रक्षक बन खडी है लनवाासन मंे यहााँ कहीं लसकन्दर के दफ़्न-स्थान के समीप । अँग्रेज़ी से अनवु ाद : अमृता भारती उन्होंने हमसे कहा, तमु जीतोगे यलद तमु आत्मसमपणा कर दो । ...अब मरे े जाने का वक़्त है । हमने आत्मसमपाण कर लदया और पाई धिू और राख मैं एक दवे दारु वकृ ्ष को जानता हँा । जो समदु ्र पर लनकट झकु ा हआु है । उन्होंने हमसे कहा, तमु जीतोगे यलद तमु प्रेम करो । दोपहर के समय हमने प्रमे लकया और पाई धिू और राख । वह थके हुए शरीर को उन्होंने हमसे कहा, तमु जीतोगे यलद तमु अपना जीवन हमारे जीवन लजतनी ही छाया दते ा है उत्सगा कर दो । और शाम को हमने जीवन उत्सगा कर लदया और पाई धिू और राख इसकी नकु ीिी पलत्तयों के बीि से । बहती हुई हवा एक ऐसे लविक्षण गीत का आरम्भ करती है अँग्रेज़ी से अनवु ाद : अमृता भारती मानो वह आत्माओं का हो, लजन्होंने मतृ ्यु का अन्त कर लदया हो, वह काँपा रही है ठीक उसी क्षण जब वे बह रही हवा के ज़ोर से त्विा और होंठ बनना शरु ू करती हंै । बरु ी तरह से काापँ रही है वह ’ एक बार मंै परू ी रात हवा से क्यों नहीं इस वकृ ्ष के नीिे जागता रहा । काापँ सकती वह नाव सबु ह के समय मंै नया था, वहााँ दरू समदु ्र में मानो मझु े अभी-अभी बहतु दरू खोद कर लनकािा गया हो । धपू में िमक रहा है एक द्वीप और हाथ यलद कोई के वि इस तरह जी सके , पकड िते े हंै पतवार को मज़बतू ी से तो कोई बात नहीं । बन्दरगाह तक पहिुाँ ने के लिए
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) आलखर तक खने ा िाहते हैं नाव जहू ी का फू ि थकी हुई आखँा ें बन्द होती जा रही हंै िमकता है ज्योलतमया और हवा सरसरा रही है समदु ्र में और उज्ज्वि उतने ही भयानक ढंग से जसै े शभु ्र, श्वेत काँपा रही हाँ मैं लनदोष प्रकाश । सरसरा रही हँा हवा की तरह यहााँ सफ़े दे के पेड की छाहँा मंे अँग्रेज़ी से अनवु ाद : अननल जननवजय वसन्त से शरद तक नगं ी खडी जंगि में सरसरा रही हँा म,ैं मरे े भगवान ! अँग्रेज़ी से अनुवाद : अननल जननवजय समदु ्री गफु ़ाओं में प्यास है लसफ़ा थोडा-सा और प्रेम है लफर हमंे लदखगें े उल्िास है बादाम-वकृ ्ष के बौर सीलपयों की तरह कठोर है सब सरू ज मंे िमकता सगं मरमर अपनी हथले ियों मंे थाम सकते हो तमु लजसे सागर की तरंलगत िहरें समदु ्री गफु ़ाओं में लसफ़ा थोडा-सा और सारा-सारा लदन हमें ऊपर उठना है मंै झाकाँ ता रहता हाँ तमु ्हारी आखँा ों मंे पाना है ठौर न तमु मझु े जानती हो न मैं तमु ्हें जानता हँा । अँग्रेज़ी से अनुवाद : अननल जननवजय अँग्रेज़ी से अनुवाद : अननल जननवजय िाहे हो सयू ोदय या हो सयू ाास्त का पहिा आभास ।
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) रूसी कवि अनतोली परपरा (जन्म - 15 जुलाई 1940) की कविताएँ सभी कविताएँ मूल रूसी भाषा से अनुिाद : अवनल जनविजय घर लौट रहा था दफ़्तर से मंै बहे द थका हुआ हवा बही जब बडे ज़ोर से मन भरा हुआ था मरे ा कु छ, ज्यों फल पका हुआ बरसी वषाम झम-झमा-झम दखे रहा था शाम की दनु नया, खबू सरू त हरी-भरी मन में उठी कु छ ऐसी झंझा लोगों के चेहरों पर भी सनु ्दर सधं ्या थी उतरी नदल थाम कर रह गए हम तभी लगा यह जसै े कहीं कोई बजा हो सनु ्दर साज याद आ गई मझु े अपनी माँा की मीठी आवाज़ गरजे मेघा झमू -झमू कर जसै े बजा रहे हों साज घमू रहा था मंै अपनी नन्ही नबनटया के साथ ता-ता थयै ा नाचे धरती थामे हएु हाथ मंे अपने उसका छोटा-सा हाथ खनु शयाँा मना रही वह आज तभी अचानक वह हसाँ ी ज़ोर से, ज्यों गजँाू ा सगं ीत लगे स्मनृ त से मरे ी भी झरे है कोई जलगीत भीग रही बरखा के जल में वही धनु थी, वही स्वर था उसका, वही था अन्दाज़ तेरी कोमल चंदन-काया कानों मंे बज रही थी मरे े मााँ की मीठी आवाज़ मन मरे ा हलु स रहा, सजनी घरे े है रनत की माया नकतने वषों से साथ नलए हाँ मन के भीतर अपने नदन गजु ़रे मााँ के संग जो थोडे, वे अब लगते सपने शरदकाल का नदन था पहला, पहला था नहमपात थका हुआ माँा का चहे रा ह,ै जारी है दसू री लडाई धवल स्तपू से घर खडे थे, चमक रही थी रात नचन्ता करती माँा कभी मरे ी, कभी नपता, कभी भाई नपररदले नकना स्टेशन पे था मझु े गाडी का इन्तज़ार तब जमनम हमले की नगरी थी, हम पर भारी गाज श्वते पंखों-सा नहम झरे था, कोहरा था अपार याद मझु े है आज भी, यारों, माँा की मीठी आवाज़ कोहरे मंे भी मझु े दीख पडा, तरे ा चारु-लोचन भाल आज सबु ह-सवरे े बठै ा था मैं अपने घर के छज्जे तन्वगं ी काया झलके थी, पीन-पयोधर थे उत्ताल जोड रहा था धीरे-धीरे कनवता के कु छ नहज्जे नखला हआु था तेरा चेहरा जसै े चन्र अकास चहक रही थीं नचनडया चीं-चीं, मचा रही थीं शोर याद मझु े ह,ै निया, तेरे मखु डे का वह उजास उसी समय नगरजे के घटं ों ने ली मनिम नहलोर लगी तैरने मन के भीतर, भयै ा, नफर से आज वही सधु ीरा और सरु ीली मााँ की मीठी आवाज
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) नफर न तझु को लगगे ा जीवन यह अरोच (एक लोकगीत को सनु कर) दखे , दखे , दखे बन्धु ! ओ झडबरे ी, ओ झडबरे ी रीता नहीं रहगे ा नफर कभी तेरा मन मैं तझु े कहाँ व्यथा मरे ी िसन्न रहगे ा तू हमशे ा, हर क्षण सनु मरे ी बात, री झडबरे ी नींद मंे मझु े लगा नक ज्यँाू आवाज़ दी नकसी ने आता जो तेरे पास अहरे ी मंै चौंक कर उठ बैठा और आखाँ खोल दी मनैं े चकाचौंध रोशनी फै ली थी औ' कमरा था गनतमान वह मरे ा बालम सांवररया मैं उड रहा था महाशनू्य मंे जसै े कोई नभयान न कर उससे, यारी गहरी मैं तैर रहा था वायसु ागर में अदृश्य औ' अनवराम वह छनलया, ठग है जादगू र आसपास नहीं था मरे े तब एक भी इन्सान करता फु सला कर रनत-लहरी नकसकी यह आवाज़ थी, नकसने मझु े बलु ाया न कु नपत हो त,ू बहना, मझु पे इतनी गहरी नींद से, भला, नकसने मझु े जगाया बहुत आकु ल ह,ाँ कातर गहरी क्या सचमचु में घटा था कु छ या सपना कोई आया कै सी अनभु नू त थी यह, कनव, कै सी थी यह माया ? 5. मौत के बारे में सोच सभी कविताएँ मूल रूसी भाषा से अनुिाद : मौत के बारे में सोच अवनल जनविजय और उलीच मत सब-कु छ अपने दोनों हाथों से अपनी ही ओर हो नहीं लालच की तझु में ज़रा भी लोच मौत के बारे में सोच भलू जा अनभमान, क्रोध, अहम खदु को नवनम्र बना इतना नकसी को लगे नहीं तझु से कोई खरोंच मौत के बारे मंे सोच दे सबको नहे अपना दसू रों के नलए उाँडेल सदा हास-नवहास
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) रूसी कमव मनकलाय रेररख (जदम: 09 अक्तू बर 1874 -- मनधन: 13 मदसम्बर 1947) की कमवताएाँ सभी कविताएँ मूल रूसी से अनिु ाद : िरयाम वसंिह तमु ्हारी मसु ्कराहट ? तट पर हम गले ममले और अलग हुए, आज मैं बनाँगू ा जादगू र सनु हरी लहरों मंे मिप गई हमारी नाव ! अपनी असफलताओं को बदल डालँगाू ा सफलताओं में । द्वीप पर हम थ,े हमारा परु ाना घर था ममददर की चाबी हमारे पास थी मौन धारण कर रखा था मजन लोगों ने हमारे पास थी अपनी गफु ा वे बातें करने लगे हंै । अपनी चट्टानंे, दवे दार और समदु ्री मचऺ म़ियाँा पीिे म़ु िने लगे हंै हमारी अपनी थी दलदल मजदहंे आगे जाना था । और हमारे ऊपर तारे भी अपन।े डर गए डरावने लोग, धममकयााँ दने े वाले मग़िमग़िाने लगे । हम िो़ि दगंे े द्वीप मनकल जाएगं े अपने मिकाने की तरफ फाख़्ताओं की तरह मवचार आए हम लौटेंगे, पर मसफ़ रात म।ें और रुक गए संसार पर शासन करने के मलए । बदधओु ं कल हम जल्दी उिेंगे सबसे अमधक शादत थे जो शब्द सयू ोदय से पहले तफू ानों को लेते आए अपने साथ जब चमकीली आभा िाई होती है परू ब मंे और तमु चलते रहे उसकी िाया की तरह जब नींद से मसफ़ पथृ ्वी उि रही होती है मजसे अभी अमस्तत्त्व मंे आना था । लोग अभी सो रहे होंगे, उनकी मचदताओं के सीमादत से बाहर तमु अब एक बच्चे का रूप धारण करोगे हम मकु ्त होकर जान सकें गे अपने आप को । तामक बाधा न पहुचाँ ाए तमु ्हंे मकसी तरह की लज्जा । तमु बैिे रहे बाहर की दहे री पर दसू रे लोगों से मनमित ही मभदन होंगे । मजस तक पहुचाँ सकते थे हर तरह के िग । सीमादत के पास पहुचँा ने पर तमु पिू ते थे -- कौन िगना चाहता है मझु े ? चपु ्पी और खामोशी में हम दखे गें े- इसमंे हरै ानी की क्या बात ? मौन बिै ा हुआ वह उत्तर में हमंे कु ि कहगे ा । सफल मशकारी ढूढँा ़ लेगा ओ सबु ह, बताओ मकसे ले गई थीं तमु अदधकार मंे और मकसका स्वागत कर रही है
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अपना मशकार अभी कल ही तो आसददी मबना डरे । इतनी उदास थी और इतनी मनष्प्प्रभ, पर सफलता प्राप्त कर सहमी-सहमी मटममटमा रही थी मचत्रा यहााँ से जाते हएु मैं जानता हँा और शकु ्र ने तो दशऩ ही नहीं मदए, तमु से हर एक से मंै ममल नहीं पाया हँा घर अब सब चमकने लगे हैं अधरू ी रह गई हंै अच्ची मलु ाकातंे । चमक उिे हैं सप्तऋमष और स्वामत । बहुत से भले लोग जा चकु े हंै दरू नक्षत्रमालाओं के पीिे या अभी तक यहाँा पहचुाँ े नहीं । चमकने लगे हंै नए-नए तारे मंै उदहें जानता नहीं था । मदखने लगा है आकाशगगं ाओं का स्पष्ट और पारदशी धधाँु लापन । मंै नए-नए वस्त्र पहनकर बिै ा रहा तमु ्हारे बीच क्या तमु ्हंे मदखाई नहीं दे रहा यह रास्ता तमु भी धारण करते रहे पररधान तरह-तरह के मजस पर से हमें खोज मनकालना है कल उसे । और चपु चाप रखवाली करते रहे जाग उिे हंै आकाश पर अमं कत अक्षर । द्वारों की जगं लगी चामबयों की । उिाओ अपनी सम्पदा ! अपने साथ हमथयार ले जाने की ज़रूरत नहीं । उिो ममत्र, समाचार ममल चकु ा है जतू े कस कर पहनना परू े हो गए हंै तमु ्हारे मवश्राम के क्षण कस कर बााधँ ना अपनी कमर ! अब मालमू हआु है मझु े पत्थरों से भरा होगा हमारा रास्ता । कहााँ खो गया था पमवत्र मचह्नों में से एक वह मचह्न । चमकने लगा है परू ब । सोचो तो मकतनी खशु ी होगी हमें समय आ गया है अब हमारा । यमद ढूढँा ़ सकंे हम वह मचह्न । सभी कविताएँ मूल रूसी से अनुिाद : िरयाम वसिंह हमंे मनकल जाना होगा सरू ज मनकलने से पहले परू ी करनी होंगी तयै ाररयाँा एक रात में । दखे ो तो कै सा है आज की रात का आकाश ! पहले कभी नहीं मदखा वह इतना सदु दर । उसका वह रूप मझु े याद नहीं रह सके गा ।
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) रूसी कवि मरीना वविताएिा (जन्म: 08 वसतम्बर 1892 वनधन: 1941 में आत्महत्या) की कविताए।ँ मूल रूसी से अनिु ाद -- िरयाम वसिंह ज़िन्दा है मरा नहीं खटँू े की तरह गडी हईु इस दहे मंे मरे े भीतर का राक्षस ! और अपने भीतर जसै े बॉयलर में । मरे ी दहे में जसै े जकसी जहा़ि के अन्दर ़िरूरत नहीं बचाकर रखने की अपने अन्दर जसै े जकसी जले मंे । ये नश्वर महानताएँ दहे मंे जसै े दलदल मंे ! दजु नया बस जसलजसला है दीवारों का । दहे मंे जसै े तहखाने मंे । बाहर जनकलने का रास्ता-जसण़ एक खजं र (दजु नया एक मचं है मरु झा गए हम ततु लाया है अजभनेता) अपनी ही दहे में जनष्काजसत, दहे में जसै े जकसी षड्यन्त्र मंे छल-कपट नहीं जकया कोई लोहे के मखु ौटे के जिकं जे में । लँगडे जवदषू क ने । जसै े ख्याजत में, आज रात स्वगल़ ोक से मैं जसै े चोगे में अजतजथ बनकर आई हँ तमु ्हारे दिे में वह रहता है अपनी दहे मंे । मनंै े दखे े हंै उनींदे जगं ल और दखे ा है खते ों को गहरी नींद मंे सोए हुए । वषों बाद ! ज़िन्दा हो -- ख़याल रखो ! दरू कहीं रात मे (के वल कजव खरु ों ने खोद रखी है घास, बोलते हंै झठू , जसै े जएु में !) भारी जन:श्वास छोडा है गाय ने सोए पडे मविे ीख़ाने में । ओ गीतकार बन्धओु , हमारी ज़िस्मत मंे नहीं है टहलना सनु ो, बताती हँ तमु ्हें जपता के चोगे की तरह परू ी उदासी, परू ी जवनम्रता के साथ इस दहे में । उस एक सतं री हसं और सोई हुई हजं सजनयों के बारे मंे । हम पात्र है इससे कहीं अजधक श्रषे ्ठ के मरु झा जाएगँ े इस गरमी मंे ।
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) हाथ डूबे हुए थे कु त्ते के बालों मंे जवदिे से भी आग।े कु त्ता था- अधडे जिर छह बजते-बजते तनू े मझु े प्यार जकया खलु गई थी रात । काल से अजधक दीघ़- हाथों के िै लाव से रचनाकाल : 20 जलु ाई 1916 तू अब नहीं करता प्यार मझु े- सच्चाई है इन छह िब्दों म।ंे आज रात इस अधं कार में रचनाकाल : 12 अक्तू बर 1923 अके ली हँ मैं उनींदी, बेघर संन्याजसन । आज रात मरे े हाथों में हरेक की ओर बढाने के जलए मझु े जमले हैं दो हाथ, चाजभयाँ हैं राजधानी के सब द्वारों की । नाम लेने के जलए मझु े जमले हंै दो होंठ, इस पथ पर ढके ला है मझु े जनद्रा-रोग ने । जदखती नहीं आखँ ंे, ऊँ ची हैं उन पर भौंह-ें जकतने सनु ्दर हो तमु , ओ जनष्राण क्रे मजलन ! रमे से अजधक अरेम पर होता है आश्चय़ । आज रात मैं चमू ती रहँ वक्ष- परू ी-की-परू ी यदु ्धरत पथृ ्वी का । और क्रे मजलन के घण्टों से भी भारी घण्टा बज रहा है मरे ी छाती मंे अजवराम ! रोंगटे नहीं, खडे होते हैं णरकोट के बाल, जकसे मालमू ...यह ? दमघोंटू हवा घसु आती है सीधे हृदय मंे । मझु े नहीं मालूम, आज रात तरस आ रहा है मझु े उन सब पर सम्भव है मातभृ जू म का मझु े जजन पर तरस करते और जजन्हें चमू ते हंै लोग । जमलेगा नहीं आजतथ्य अजधक । रचनाकाल : 1 अगस्त 1916 रचनाकाल : 2 जलु ाई 1916 तनू े प्यार जकया मझु े सभी कविताओिं का मूल रूसी भाषा से अनुिाद : सच्चाई के झठू िरयाम वसंिह और झठू की सच्चाई स।े तनू े प्यार जकया मझु े अब बता कहाँ जाएँ
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक)
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) रूसी कति येव्गेनी येव्तुशंेको की कतिताएँ यदद दोस्त मरे ा मर गया, मरे ी जनता भी मर गई यदद दोस्त मरे ा मारा गया, दशे भी मारा गया सभी कतिताएँ मूल रूसी से अनुिाद : अतनल जनतिजय जुम्बेरता बेताश्वीली की स्मृतत मंे अब जोङ नहीं सकते हम अपना टूटा हआु वह दशे मनंै े दोस्त खो ददया हाथ से छू ट कर दगर पङा है जो और आप दशे की बात करते हंै मतृ क शरीऱों के उस ढेर के बीच मरे ा बन्धु खो गया दछना ददया गया है दजन्हंे दबना कब्र के ही और आप जनता की चचाा कर रहे हैं मझु े नहीं चादहए वह दशे ,जहााँ हर चीघ की कीमत है मरे ा दोस्त कभी मरा नहीं मझु े नहीं चादहए वह जनता, जो आघाद होकर भी वह इसदलए दोस्त है गलु ाम है और दोस्त व जनता पर कभी मरे ा दोस्त खो गया, और खो गया मंै भी सलीब खङा नहीं दकया जा सकता हमने खो ददया वह जो दशे से अदधक है अब आसान नहीं होगा धपू दखली थी हमंे हमारी आवाघ़ों से पहचानना और ररमदझम वषाा तो कोने में गोली एक छू टती है छत पर ढोलक-सी बज रही थी लगातार तो रॉके ट़ों का रुदन सनु ाई दते ा है सयू ा ने फै ला रखी थीं बाहंे अपनी वह जीवन को आदलिंगन मंे भर मैं थोङा-सा वह था कर रहा था प्यार और वह थोङा-सा मंै उसने मझु े कभी बेचा नहीं और मनंै े भी उसे नव-अरुण की दशे हमशे ा दोस्त नहीं होता ऊष्मा से वह मरे ा दशे था दहम सब दपघल गया था जनता बेवछा दोस्त होती है जमा हआु वह मरे ी जनता था जीवन सारा तब जल मंे बदल गया था मंै रूसी वह जादजया ाई वसन्त कहार बन काके शस अब शवगहृ है बहगंि ी लके र लोग़ों के बीच बेहूदा लङाई जारी है
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) दहलता-डुलता आया ऎसे वहाँा मरे े मन की भी चोर भावनाएँा दो बादटटय़ों में चरू -चरू हो गई थीं दखे असपभावनाएाँ भर लाया हो दो कदपपत सरू ज जसै े वह थी लावण्या सनु ्दर, अदतसनु ्दर कन्या ऊषा भोली थी वह अभी मपे ल वकृ ्ष के पदवत्रा, अछू ती वन्या हाथ़ों मंे थी लाल जबे ़ों वाली अपनी नीली फ्राक में सो रही थी यँाू जसै े कोई गघु रती थी जब वह मरे े पास से नन्हा दशशु हो नन्हंे बादल़ों की तरह नीली अपनी और चन्रमा झलक रहा था प्यारी आखँा ़ों से छेङती थी मझु े इतना नाघकु जसै े बलु ाती हो अपने पास मघे ़ों के बीच गमु हो जाने का दनमन्त्रण दते ी हो सायास इच्छु क वो पर जसै े ही मंै बचता था उसकी तरछ गमी की वह अचानक खङी हो जाती थी उस सबु ह को पक्षी अपने दोऩों घटु ने जोङ घटिं ी जसै े घनघना रहे थे नघरें नीची कर लते ी थी नए उमगे पत्त़ों पर धपू एक हाथ कन्धे के पीछे मोङ दबछल रही थी दसू रे हाथ की एक उाँगली से और बङे े पर पङे हएु थे अपने ह़ोंठ़ों को ढककर मछली के ढरे धीरे से फु सफु साती थी शभु ्र, सनु हरे कंिु दन-से कहती थी -- न...ना...मत कर वे चमचमा रहे थे तब मैं मखू ा हुआ करता था क्या आप इकाू त्सस्क गए हैं कभी कु छ भी करते मन-ही-मन डरता था वहाँा आपने दखे ी ह़ोंगी बहे द सनु ्दर दखङदकयााँ सब औरत़ों को मनैं े बाटाँ रखा था दो दहस्स़ों मंे और उनसे झाकँा ती इन्हें छू सकते हैं और उन्हंे नहीं उनसे भी कहीं अदधक खबू सरू त लङदकयाँा दवश्वास करता था गवा झलकता है दजनके चेहऱों पर असीम कु छ इसी तरह के सनु -े सनु ाए दकस्स़ों मंे दक मन में पैदा हो जाती है भावना हीन झठू बोलते हंै लोग मरे े बारे में जब दते े हैं ये आभास दक जीवन सारा गघु रा है मरे ा
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) दसछा दराय़ों के साथ कदवता ने दहला रखा था परू ा दशे उन्हीं के आसपास लोग प्रतीक्षारत् थे दक कु छ होगा नया शायद बदल जाएगा अब पररवशे तब मैं डरता था दक और उस सकु न्या के मन मंे दरयाँा होती हंै चौकस खबू शायद दवचार था यह प्रमे मंे होती हंै कायर दक दववाह हो जाए और वह... दकसी फन्द-े सा लगता है उन्हे प्यार पर हो सकता है वह चाहती हो परु ुष़ों से वे बचती हंै लगातार दसछा धीमे प्रेम मंे पगना और प्यार की मीठी-धीमी आाचँ मंे सलु गना सनु ्दर चेहरे वाली उस सकु न्या ने एक पत्र दलखा था मझु े ऐसा सब लङके हम जो मझु े लगा था दकसी कदवता जसै ा -- तब ढीठ बैल थे छैल-छबीले और हठैल थे ‘‘तमु कटपना करो पल भर को प्रमे मंे हम फटे ढोल थे दक रात हो, अधँा ेरा हो जटदबाघ थे, गोलमोल थे बकाइन के फू ल दखले ह़ों भोले थे इतने दक समझ न पाते और उनकी गन्ध महका रही हो घर को होगा क्या अब, क्या करना पङेगा टैरेस हो, टैरेस पर हम ह़ों सोचते थे बस इतना ही दक और हमारी नघरें एक-दसू रे पर थमी ह़ों ऊपर वाला हमें सब क्षमा करेगा यहाँा तक दक हम यह समझ न पाते वहााँ जल रही मोमबत्ती हमंे दक वह कहती है जब -- न...ना... परस्पर दनकट ला रही हो मतलब इसका होता है -- हााँ...हााँ... दपघल रही हो धीरे-धीरे कान मंे हमारे कु छ फु सफु सा रही हो कौन जाने सामने मघे पोश पर रखा हो मरु ब्बा वह अब कहााँ होगी ररमदझम बाररश बरस रही हो इकाू त्सस्क नगर की वह लावण्या स्वर उसके हवा मंे गजाँू रहे ह़ों ऐसे वह नाघकु , भोली, अछू ती कन्या जसै े वह हम पर हसाँ रही हो वह दादी होगी, नानी होगी हम मौन खङे ह़ों वहाँा एक साथ पौत्ऱों के संिग दीवानी होगी शरीर के दोऩों तरछ उन्हें घमु ाती, गोद उठाती नीचे की ओर लटके हएु ह़ों हमारे हाथ...’’ इकाू त्सस्क के मोहटल़ों में कहीं ददखती होगी आती-जाती छठा दशक वह उङ गए ददन वे भाप की तरह क्या समय था
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जसै े उङ गई जवानी मरे ी सहऱों दरयााँ एक साथ ही मझु े चमू रही ह़ों जसै े वह न जानेगी मझु े आपकी तरह खत्सम हो गई यहााँ कहानी मरे ी पटे नहीं भरा था तरे ा दसछा चपु बन से अब मैं भावकु ता मंे यह सोचँाू कभी-कभी मरे े ह़ोंठ़ों को दनगल रही थी मरू ख थी वह तू परू े मन से पर दफर यथाथा मंे आ जाता हूाँ काँाप रही थी ऐसे जसै े मंै मरू ख खदु था पागल हो गई हो तू परु ुष की इस दपाभरी मरु ा म,ें दमत्रो उछल रहे थे दतल भी सारे दक वह ‘कु छ’ है तरे े नाजकु ऺ बदन के उसकी यह दयनीयता दछपी है दक वह बहे द तचु ्छ है परू ा शरीर तेरा जसै े दफर ह़ोंठ़ों मंे जब उम्र हुई तो समझा मंै बदल गया था प्रमे में जटदबाघी होती है बेकार और मरे ा शरीर उनसे उठती अदनन में प्यार होता है होते-होते जल गया था अमटू य है धीमा प्यार तू रौंद रही थी मझु को चसू रही थी भसू ्खलन हआु हो अचानक जसै े महँाु मंे घमु ा रही थी तू मझु े चमू रही थी ऐसे ह़ोंठ़ों पर नचा रही थी रात थी वह प्राग मंे नए वषा की मसल रही थी, च्याँटू रही थी, गदु गदु ा रही थी सीमा नहीं थी कोई उस ददन तरे े हषा की मंै भी जसै े दफर दकसी पके हुए तरे ी बेटट का बक्कल चमक रहा था वसै े फल मंे बदल गया था आसमान से धरती पर आ चाादँ दगरा हो जसै े तनू े मझु े जसै े अपने काले जादू से दवस्फोट हुआ था भीतर तरे े अधऱों मंे बाँधा दलया था ज्वालामखु ी से लावा ज्य़ों बह रहा था पदत-पत्सनी के सपबन्ध़ों को कु छ ही मझु े अपनी बाँाह़ों मंे घरे े पल में साध दलया था मन तेरा कदपपत स्वर मंे कु छ कह रहा था श्लील-अश्लील की ददु नया से हम ह़ोंठ़ों से ह़ोंठ जङु े थे हो चकु े थे बहतु दरू तू खो चकु ी थी आपा हम पर चच गया था तब बहे द तेरे चपु बन से मरे ा तन भी प्रेमामतृ का सरु ूर बचे ैनी से काापँ ा पहचुँा गए थे उस ददु नया में हम तमु दोऩों मरे े अधऱों को आवगे मंे तू चमू रही थी ऐसे जहाँा हमारे रृदय़ों ने दफर कु छ सविं ाद दकया था
Search
Read the Text Version
- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- 11
- 12
- 13
- 14
- 15
- 16
- 17
- 18
- 19
- 20
- 21
- 22
- 23
- 24
- 25
- 26
- 27
- 28
- 29
- 30
- 31
- 32
- 33
- 34
- 35
- 36
- 37
- 38
- 39
- 40
- 41
- 42
- 43
- 44
- 45
- 46
- 47
- 48
- 49
- 50
- 51
- 52
- 53
- 54
- 55
- 56
- 57
- 58
- 59
- 60
- 61
- 62
- 63
- 64
- 65
- 66
- 67
- 68
- 69
- 70
- 71
- 72
- 73
- 74
- 75
- 76
- 77
- 78
- 79
- 80
- 81
- 82
- 83
- 84
- 85
- 86
- 87
- 88
- 89
- 90
- 91
- 92
- 93
- 94
- 95
- 96
- 97
- 98
- 99
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
- 192
- 193
- 194
- 195
- 196
- 197
- 198
- 199
- 200
- 201
- 202
- 203
- 204
- 205
- 206
- 207