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Vol.2,issue.13, March 2016

Published by jankritipatrika, 2019-03-18 11:44:43

Description: Vol.2,issue.13, March 2016
Special Issue on World Poet and Poetry

Keywords: poetry,literature,english,hindi,art,media,science,history

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जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) आस्ट्रेलियाई कलि िेस मरे (जन्म: 17 अक्तू बर 1938) की कलिताएँ मूि अँग्रेज़ी से अनुिाद : अनालमका और दोपहरी-सी तणृ -छाया! मंै घोंसला हँू चलता-फिरता लाल तलवार को ओढाया हआु कपड़ा, वह अण्डा हँू जो अब है ही नहीं, उजला-भिाते हएु भात जसै ा, मैं समदु ्रतट, खाना बालू में िंे का हआु , अपराफजता-सा नीला। छाया जो घोंघे चनु ती ह,ै छाया फचपक जाती है जो! फपटे-फपटाए से परु ाने नगर, आदमी की हरी छाल में मढंे क! धलु कर चमकीला हो जाने के बाद की जोते हएु खते ों पर चलता हरवाहा डगमग जसै ेफक अनभु फू त हूँ मैं चकाचक, जजं ीरों में ईटं के गफलयारों मंे इधर-उधर दौड़ते हएु यवु कों की ह- अनभु फू त हँू मंै यहाूपँ न की- हा पर चोंच की सीध में दौड़ती कौंधा फवचार- दौड़ती डैने उठाए हएु िे न म-ंे कौंधा, जसै े कौंधते हैं कच्चे टाूकँ े रुकती, रुकी रहती, तडु ़े-मडु ़े रेशम पर, या कौंधा, ऐसे जसै े झपट लने ी है उसको गोली पहाड़ी पहाफड़यों की और भोजनभट्ट सागर! उछलकर। मंै हूँ गलतपन यहाूँ का तब जब सही हो भावना मंे उड़ना अधजमे दही की तरह छलमल मंै हूँ महान सहीपन की लम्बाई तब आकाश के नीचे, शादी से लौटते हएु जब फदन जलते हों- ऊपरी बाड़े में जब हमने गाड़ी मोड़ी फवराट से लके र छाया के कं गारू भाग फनकले फकसी अधूँ रे े मंे पड़े सनु हरे गलफ़र तक तब जाकर साफ़-साफ़ दीखा और फिर वापस उमड़ते हों उसी फवराट तक चहे रा उस चदं ्रमानव का भोजन-पानी के फलए, उपलाते आरामों की खाफतर- जो अब तक करता है तले -माफलश अपनी माूँ की तब तक, जब तक और उसे भेजता है रोशनी सामने का सरू ज, पीछे का सरू ज न हो जाए और रात के नन्ह,े दरू स्थ फदन लगने लगें एकदम अलग! मरे े ही सगं पहुचँू ती है ठीक-ठीक सवं दे ना यहाँूपन की! फजसके फलए नाच नाचा गया- वह घोंसला हँू म,ंै मंै हूँ फसर धनु ा हुआ, मंै ही हूँ सागर-तट, खाने में पड़ी हुई बालू, छाया में पड़ी हुई छफड़याँू

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) फक उसने उसको हाथ-पाँूवों से सलामत, हो सकता है प्रेम ठीक डील-डौल के साथ फकया पैदा! ताजा - टटका और तरल, इतना फक उसकी चमक हमारे खनू मंे ह।ै रंध्रों से करके प्रवशे मलआु दे वह धरती अगर स्वस्थ हो चकु ती परू ी जो भी घर मंे है मसु ्तदै ी से सजा-धजा! उस प्रसव के बाद पदै ा नहीं होता कु छ छोटा! घर है पहली यौफनकता है नाजी! और अफन्तम कफवता। स्कू ल मंे ही यह समझ जाते हंै फवद्याथी! बीच की हर कफवता इसकी खाफतर सभी हंै अद्धडमानव में होती हंै धाररयाँू जीवन में कु छ समय तक माूँ के घर की! और कु छ तो सारी फजन्दगी! यफद तमु ्हें इसकी बहुत फचन्ता हो तो घर सबसे कमजोर दशु ्मन तमु भी उनमंे से एक हो जाओग!े जसै े फक फपघलता हुआ लोहा, पर यदु ्ध घर के फखलाफ़ खबू सरू त नाजी, क्यों होते हैं वे इतने क्रू र? है सबसे लम्बी पगयात्रा! बफधयाकरण क्योंकर अलग लीक कोड़ लेने वाला, मौलकों, आहतों का, घर के पड़ोसी नहीं होते जो कर सकते हैं हमारा नस्ल-सधु ार? पेड़ या साइनबोडड से भी कौन हैं जो फक स्कू ल कभी नहीं छोड़ते! कमजोर होते हैं व!े अपने वही होते ह-ैं सच के फलए चपु हैं हम! लौट आते हैं जो! खशु कर दने े वाले सपने की खाफतर सामफू हक, िटिफटया आश्वासन के बीच और फिर उसके तरु न्त बाद हम ऐठं ते हंै पीड़ा से, फचल्लाते ह-ैं लफे कन नाजी क्या अपने उदास, रजाई-पर िै लाए ह?ै उड़ता है एक चकाचक-सा हवाईजहाज। रुमानी चीजों के साथ भीड़ों की खाफतर ट्यनू हुई यौफनकता! घर लौटना चाफहए भावों को यह कै ल्वन एस०एस० है : अफन्तम फनणयड के तरु न्त बाद! तमु हो वो फमला है तमु ्हंे जो! गोली जब चल चकु ी होगी तमु पर- काम शरु ू होगा तमु ्हारा, तमु तड़पोगे और फिर करोगे मीठी बातें

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) हालाफँू क भीतर के गरम-गरम बादल से िू ट पड़ंेगे आसँू ू गपु चपु !

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) ईरानी कवि फ़रीदे हसनजादे मोस्ताफ़ािी की कविताएँ सभी कविताओं का अँग्रेजी से अनुिाद : यादिेन्द्र पाण्डे अदमी दहल जाती धरती जसै े लेती है ऄगं डाइ जब सोए और मझु े सम्भाले हुए तमाम खम्भे धराशाइ हो जाते तो लाश जसै ा होता ह।ै पलक झपकते बततयाए तब लोगों को समझ अता तो मधमु क्खी जसै ा। मरे े तदल के तहखाने मंे कै से कलपता है दःु ख जब खाए तो ममे ने सा तदखता ह।ै काश! मंै ईग पाती जब यात्रा पर तनकले हर सबु ह सरू ज की मातनन्द तो लगता है घोडे जसै ा। और अलोतकत कर दते ी बणि से ढँके पवति और धरती जब कभी वह सटकर खडा हो तखडकी से तातक लोग कभी न सोच पाएँ और बाररश की दअु एँ करे... तक रहा जा सकता है प्यार की ललक के बगरै । या जब वह दखे े कोइ लाल गलु ाब और मचल जाए ईसका मन बात तमु ्हारे प्रमे पत्रों के पतु लन्दे की नहीं है थमाने को वह लाल गलु ाब तकसी के हाथों में जो सरु तित हैं स्मतृ तयों की मरे ी ततजोरी मंे के वल तभी होता है वह न ही फू लों और फलों से भरे हुए थैलों की है अदमी। तजन्हें घर लौटते शाम को लके र अते हो तमु काश! मंै सतदयि ों में जम जाती ईस चौबीस कै रेट सोने के ब्रेसलेट की भी नहीं जसै े जम जाता है पानी धरती पर बने छोटे-बडे गड्ढों जो शादी की सालतगरह पर भंटे तदया था तमु ने म-ें तक चलत-े चलते लोग तििक कर दखे ते नीचे तमु ्हारे प्रमे की आकलौती राजदार है कै सी ईभर अइ हंै मरे ी रूह मंे झरु रियाँ प्लातस्टक की वह बदरंग कू डेभरी बाल्टी और टूटे हएु तदल में दरारें। तजसे चौथी मतं जल से एक-एक सीढी ईतरते हर रात काश! मैं कभी कभार तबला नागा मरे े थके ऄलसाए हाथों से परे हटाते हुए बाहर तलए जाते हो तमु ।

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) ईरानी कवि फ़रोग फ़रोखजाद की कविताएँ अनिु ादक: यादिेन्द्र, भारत भूषण वतिारी एकबार फिर से मैं अफिवादन करती हँू सरू ्य का जो प्रेम में हंै डूबे हएु आकं ठ मरे े अदं र जो बह रही है नदी दखे ो तो एक लङकी अब िी खङी है वहाूँ मरे ी अतं हीन सोच के घमु ङते मघे ों का फसलफसला प्रेम से फसरे तक आकु ल। बाग मंे फचनार की अनगच बची हुई ंक्र्ाररर्ाूँ गमी के इस मौसम मंे िी मैं तमु ्हंे चाहती हूँ हालाफूँ क मालमू है सब मरे े साथ-साथ चल रहे ह।ैं किी अपने सीने से लगा नहीं पाऊं गी तमु ्हंे स्वच्छ और चमकीले आकाश हो तमु खते ों में रात में आने वाली गधं और मंै अपने फपंजरे के इस कोने मंे मझु तक पहचुूँ ाने वाले कौवों के झडंु िी दबु की हुई एक बदं ी फचफङर्ा। मरे ी माँू िी फजसका इस आईने मंे अब अक्स फदखता है सदय और काली सलाखों के पीछे से और मझु े खबू मालूम है बचती हैं तमु ्हारी ओर बचु ापे मंे फदखगूँ ी मंै ह-ब-ह वसै ी ही। लालसापरू ्य मरे ी कातर फनगाहें आतरु होकर दखे ती रहती हँू बाट उस बाहं की एक बार मंै फिर से धरती का अफिवादन करूँ गी जो मझु तक पहचुँू े और मंै िङिङाकर खोल दँू फजसकी आलोफकत आत्मा मंे अपने सारे पखं तमु ्हारी ओर। जङे हुए है मरे े अफवराम आवगे के हरे-िरे बीज। सोचती ह,ूँ गछलत के पल िी आएगूँ े मंै लौटूँगी, घरर लौटूँगी, मझु े लौटना ही होगा और मंै इस सन्नाटे की कै द से उङ जाऊँू गी िु रय से अपनी लटों के साथ, नम माटी की सगु धं के साथ पहरेदार की आखँू ों के इद-य फगदय करूँ गी चहु लबाफजर्ाूँ अपनी आखँू ों के साथ, और नए फसरे से श्रीगर्शे करँू गी अधं कार की गहन अनिु फू तर्ों के साथ, जीवन का तमु ्हारे साथ-साथ। उन जगं ली झाफङर्ों के साथ फजन्हंे दीवार के उस पार से ऐसी ही बातंे सोचती रहती हँू चनु चनु कर मनंै े इकट्ठा फकर्ा था। हालाूफँ क मालमू है है नहीं मझु मंे इतना साहस मंै लौटूँगी, घरर लौटूँगी, मझु े लौटना ही होगा फक मफु ि के आकाश मंे उङ चलँू प्रवशे द्वार सजार्ा जाएगा प्रमे के बदं नवार से कालकोठरी से बाहर – और वहीं खङी होकर मैं एकबार फिर से उन सबका स्वागत करूँ गी

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) पहरेदार बहुत महे रबान िी हो जाएँू ठंडा था पानी और फथरकती लहरों के साथ बह रहा था नहीं फमलेगी मझु े इतनी साँूस और हवा हल्के से िु सिु सार्ा और फलपट गर्ा मरे े बदन से फक िङिङाकर उङ सकंे मरे े पंख। और जागने-कु लबलु ाने लगीं मरे ी चाहतंे हर एक चटक सबु ह सलाखों के पीछे से शीशे जसै े फचकने हाथों से मरे ी आखँू ों में आखँू ें डालकर मसु ्कु राता है एक बच्चा धीरे-धीरे वह फनगलने लगा अपने अदं र और जब मंै उन्मत्त होकर गाना शरु करती हँू खशु ी के मरे ी दहे और रह दोनों को ही। गीत बच आते हंै उसके मरु झाए हुए होंठ मझु तक चमू ने को तिी अचानक हवा का एक बगलू ा उठा मझु ।े और मरे े के शों में झोंक गर्ा धूल-फमट्टी उसकी साँसू ों मंे सराबोर थी मरे े आकाश, जब किी मंै चाहूँ जगं ली िू लों की पगला दने े वाली िीनी खशु बू इस सन्नाटे की कालकोठरी से िाग कर तमु तक र्ह धीरे-धीरे िरती गई मरे े महँूु के अदं र। पहुचँू ना क्र्ा सिाई दगूँ ी कलपते हुए उस बच्चे की आखँू ों को आनदं में उन्मत्त हो उठी मनैं े फक बंदी फचफङर्ों का ही माफलक होता है मदँू लीं अपनी आखूँ ंे एक ही माफलक और रगङने लगी बदन अपना कै दखाना। कोमल नई उगी जगं ली घास पर जसै ी हरकतें करती है प्रफे मका मैं वह शमा हँू अपने प्रेमी से सटकर जो आत्मदाह से रौशन करते है अपने घोंसले और बहते हुए पानी में र्फद मैं बझु ा दगँू ी अपनी आग और लौ धीरे-धीरे मनैं े खो फदर्ा अपना आपा िी तो फिर कहाँू बचेगा अधीर, प्र्ास से उत्तप्त और चबंु नों से उि-चिु र्ह अदद घोंसला िी। पानी के कापूँ ते होंठों ने फगरफ़्त में ले लीं मरे ी टागं ें अठखफे लर्ाूँ करती हवा में मनंै े अपने कपङे उतारे और हम समाते चले गए एक दसू रे म…ंे फक नहा सकँू कलकल बहती नदी मंे दखे ते – दखे ते पर स्तब्ध रात ने बाँूध फलर्ा मझु े अपने मोहपाश में तफृ प्त और नशे से मदमत्त और ठगी-सी मैं मरे ी दहे और नदी की रह अपने फदल का ददय सनु ाने लगी पानी को। दोनों ही जा पहचुँू े – गनु ाह के कटघरे म।ंे

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मनंै े पाप फकर्ा पर पाप मंे था फनस्सीम आनदं जो पङा है अब फनस्तजे और फशफथल समा गई गमय और उत्तप्त बाहँू ों में मझु े र्ह पता ही नहीं चला हे ईश्वर ! मझु से पाप हो गर्ा फक मझु से क्र्ा हो गर्ा पलु फकत, बलशाली और आक्रामक बाूँहों म।ंे एकातं के उस अधँू ेरे और नीरव कोने म।ंे एकांत के उस अधँू रे े और नीरव कोने में मनैं े एक ख़्वाब देखा फक कोई आ रहा ह.ै मनंै े उसकी रहस्र्मर्ी आखूँ ों मंे दखे ा मनंै े एक लाल फसतारे को ख़्वाब में दखे ा, सीने में मरे ा फदल ऐसे आवगे मंे धङका उसकी आँखू ों की सलु गती चाहत ने और मरे ी पलकें झपकने लगती हंै मझु े अपनी फगरफ़्त मंे ले फलर्ा। मरे े जतू े तङकने लगते हैं अगर मैं झठू बोल रही हूँ एकातं के उस अधूँ रे े और नीरव कोने मंे तो अन्धी हो जाऊँू . जब मंै उससे सटकर बठै ी मनैं े तब उस लाल फसतारे का ख़्वाब दखे ा अदं र का सब कु छ फबखर कर बह चला जब मंै नींद मंे नहीं थी, उसके होंठ मरे े होंठों मंे िरते रहे लालसा कोई आ रहा ह,ै और मंै अपने मन के कोई आ रहा ह,ै तमाम दखु ों को फबसराती चली गई। कोई बहे तर. मनंै े उसके कान में प्र्ार से कहा – मरे ी रह के साथी, मंै तमु ्हंे चाहती हँू कोई आ रहा ह,ै मंै चाहती हँू तमु ्हारा जीवनदार्ी आफलंगन कोई आ रहा ह,ै मंै तमु ्हें ही चाहती हूँ मरे े फप्रर् वो जो अपने फदल में हम जसै ा ह,ै और सराबोर हो रही हूँ तमु ्हारे प्रमे म।ंे अपनी साूसँ ों में हम जसै ा ह,ै अपनी आवाघ मंे हम जसै ा है, चाहत कौंधी उसकी आखँू ों में छलक गई शराब उसके प्र्ाले मंे वो जो आ रहा है और मरे ा बदन फिसलने लगा उसके ऊपर फजसे रोका नहीं जा सकता मखमली गद्दे की िरपरू कोमलता फलए। हथकफङर्ाूँ बाँधू कर जले मंे नहीं िें का जा सकता वो जो पैदा हो चकू ा है मनंै े पाप फकर्ा पर पाप मंे था फनस्सीम आनंद र्ाह्या के परु ाने कपडों के नीच,े उस दहे के बारद में लेटी हूँ और फदन ब फदन होता जाता है बङा, और बङा, वो जो बाररश से, वो जो बनू ्दों के टपकने की आवाघ से ,

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) वो जो िू लों के डाफलर्ों की िु सिु साहट में, जो आसमान से आ रहा है आफतशबाघी की रात मदै ान-ए-तपू खाने में दस्तर-ख्वान फबछाने रोफटर्ों के फहस्से करने पपे ्सी बाटँू ने बाग-ए-मले ी के फहस्से करने काली खाूँसी की दवाई बाटँू ने नामघदगी के फदन पफचरय ्ाँू बाूटँ ने सिी को अस्पताल के प्रतीक्षालर्ों के कमरे बाूँटने रबङ के जतू े बाूँटने िरदीन फसनेमा के फटकट बाूटँ ने सय्र्द जवाद की फबफटर्ा के कपङे दने े दने े वह सब जो फबकता नहीं और हमंे हमारा फहस्सा तक दने े. मनंै े एक ख़्वाब देखा.

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) एस्तोनियाई कनि मार्गस लैनिक (जन्म 1973) की कनिताएँ अँग्रेज़ी से अिुिाद र्ौतम िनसष्ठ हाथ जो उठते हैं एक फकद नहीं पड़ता... अधरू े धसू र को तराशने को मरे े कहने से, तमु ्हें जाना ही होगा... अपने कलए दखे ने और महससू ने को न हाथ मकु म्मल कक शहरों की चोटी पर पवतद ों के साए न धसू र मकु म्मल! और नन्हीं सी जानों के बीच बहती नदी तमन्नाएाँ कदलों के घर मंे रहती हैं वक्त की ककताब में और रह रह रूप बदलते ह.ंै .. हैं नक्शे भरे हएु , उस परू े जमाने का हाँा सच है की बसतं आने को ह.ै .. जो ख्वाबीदा गजु र गया! मघे , सरगोशी और गमगीन खामोशी म.ें .. इस से पहले की बहती हवा पेड़ों से सरसराती कनकले मगर हा.ाँ .. और परु ानी धसू र छतों पे जाके मचल.े .. तमु ्हारी महफू ज नींदों मंे तमु ्हारे लब्जों में रंग और रवानी याँू हर याद हो दफन, दोनों कखल उठंेग.े .. जसै े जदद चााँद मंे और रंग चढगे ा हाथों पर मरहम का, इनायत का... हर बात है दफन! लके कन सोच करवट लगे ी शायद कजदं गी के माने बदल जाएँा कफर वो धाररयों वाली कु छ ऐसे कक कजदं गी झाकाँ े गी आखाँ ों से इक परु ानी सी थैली और कनममद ता से धो दगे ी काफी है ढोने को, कदल के सारे मले परु ाने... हर चीज जरूरत की... और रह रह कर खोलगे ी नए कसरों से महु ान.े .. वो नक्शे की ककताब कु छ बेर और क्या कमल सके गी राह तमु ्ह?ंे मटु ्ठी भर रोशनी!! क्या पहुचाँ पाओगे लक्ष्य तक जो कक तमु खदु हो मातभृ कू म!! मरे ी टूटी हईु कश्ती!! मैं प्रकाश ढूढँा ता हाँ

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) और कसफद तमु को पाता ह!ँा हम... पथरीले खते ! वक्त के कनशाँा है लाल गीली कमटटी... हम सब के सब... वो नींबू की कतारंे... और हमें वक्त कमला ही नहीं... ऐसे जसै े ककसी सगु कं धत, कु सकु मत इसीकलए हम भरोसा करते हंै वक्ष ने मझु े गोद में बठै ा कदया हो इसी लम्हे मझु े नाभरोसे में आगोश में कलया हो... अपने से भी ज्यादा क्या यही लम्हा... मरे ा मक्खी बचपन महकता, उमड़ताह?ै तमु बसतं बनोग.े .. चाादँ के टीले पर और झलु सती सड़कों पर और अखरोटों की फु नकगयों पर... यहाँा से बहुत दरू ... कगरते हैं तारे... अधाँ ेरों से कमलोगे और गदु ते हैं संदशे .े .. और मरे े कप्रये ठंड के सलवटों पे वहाँा तमु रक्तरंकजत शहीद नहीं होग.े .. दखे ो... तमु सफे द मोमबकियों खलु े हंै तमु ्हारे हाथ की लौ के कसवा जीवन के गजु रते कु छ और होग.े .. लम्हों को रंगत.े .. इतना तय ह.ै .. और कनधादररत राहों के मडु ़े हएु कदम को ! मगर तमु ्हारे भीतर की आस तमु से कहती है कक यथाथद जवानी को पहाड़... ये कभी था ही नहीं... रवानी को नकदयााँ और हम सब को और ये मालमू है हौसले को चीकटया.ाँ .. कक तमु ्हारा सोचना क्या ह!ै कजसे भी हो चाहत मगर हम सब ने लेकर दकु नया चलने की सच कहंे तो ऐसा जरूरी है की अपना कदल कभी नहीं सोचा... भी वो साथ में ले ले

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) कभी जहाज के पालों मं!े ग्रीष्म ने आते ही, जो समदं र पर चरु ा कलए लाती हंै हवाएँा हमारे सारे कवच... जो जदु ा नहीं होती हमसे एक लबं े अतं राल तक, एकटक कनगाह के अलावा हम कघरे रहे इक हर कु छ गहरी,श्वते खामोशी म.ें .. अनन्त है हररयाली मंे आहंे गथु ती गई ं कभी चोकटयों म,ें

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) (गांाग अन ग्यो ) दक्षिणी हमग्यंेग प्रान्त -\"पहाड़ मंे फू ल \" कोररयाई कक्षिता सांग्रह अनिु ाद क्षकम िू जो, कणणक्षसह ौहहान बहुत बाद के ददन चलती वायु को मै जानती यह भी दि बहुत बाद के ददन बर्फ दमली वाररस दकसी घर की दखड़की चोखट से आती -जाती है दरे तक नींद न आने से मज्जा के बाहर दनकल बैठने के ददन मंे तो सचमचु वसै े ही जरूर रट हएु दवदा लने े वाले आप लोग ददखते पोल सनं रुमाल पकडे पोछते -पोछते न पंछु ने खनू को पोछते आह , या दो ददन सयू ाफस्त हुए आवाज की और ताकते हएु जाते जान सकते है हम तो धरती के अदं र दर्र न लटे ने पर भी संजय वमाफ \"दृष्टी \" 125 शहीद भगत दसंग मागफ मनावर दजला धार (म.प्र.)

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) चीनी कवि गनू ल्यू (जन्म 1927) की कविताएँ सभी कविताओं का रूसी से अनुिाद जनविजय तमु जानना चाहते हो वहाँू नमली उन्हंे कु छ खाइयाँू सनै नक कै सा लगता है उस परु ाने यदु ्ध की परछाइयाँू लाल नसतारा जडे लोहे के टोप म?ें ओ माँू चीन! वहाँू गहरी झरु्रियाँू थी तेरे माथे पर पर मझु े लगता है लडाई के गड्ढे थे परु ाने चमक उठी है नबजली इमारत के ऊबड-खाबड अहाते पर जब दखे ता हँू मंै उसकी नज़र को उजली नजसे कभी तरे े बेटों ने था अपने खनू से सींचा लाल नसतारा जडा अब नखलंेगे रंग-नबरंगे फू ल वह लोहे का टोप उसका उस जख़्मी धरती पर नहीं है उसकी पहचान अब बनाया जाएगा वहाँू वो तो है उसके फू लों का बगीचा मन की नहलोर से परू ी तरह अनजान आकाश मंे तारे हंै अनके पर मरे ा है जब उस टोप के नीचे उनमंे से बस एक अन्धेरे में चमकें गी दो आखँू ंे उस तारे का घर शत्रु के घरे े में है आकाश दे रहा है दरू से वो तब ही ऐ कनव! मझु े अपना प्रकाश झलके गी उसमंे सैननक की छनव। पर नचनन्तत हूँ मंै उस बन रही इमारत से दरू कहीं नगर न पडे त,ू ओ तारे! पहचँू े जब कु छ मज़दरू वहाूँ ऊूँ चाई से भमू डं ल पर हमारे आ बठै मरे ी हथेली पर यहाूँ सरु नित रहगे ा तू प्यारे

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) यार, दशे के संग कर रहे नठठोली मरे ी आत्मा के खले रहे हंै खनू की वे होली कमरे मंे नहीं कनव! शानन्त से अब ज़रूरी नहीं है रक्त सोया हआ है प्यार बदलना है दशे को इस वक़्त। नजसे जगा सकती है नसर्फि एक लडकी मंै अब तक नहीं जानता उसे लौटकर अब दनसयों साल बाद नफर से बात कर रहा है तू मझु से ओ कनव! पढ़ रहा हूँ तेरी 'लाल बत्ती' बहा रहा हँू आसूँ ू मंै उसी तरह पढ़ रहा हँू और गनु रहा हँू बात तेरी मैं सनु रहा हँू क्यों हमारा दशे नफर बढू ़ा हआ सवरे े से हई उस मलु ाकात के बाद क्यों हमारा दशे नफर कू डा हआ? अन्धरे ा का हआ है क्यों साथ? क्यों? क्या सचमचु नफर से इस वक़्त चीन माँू को चानहए बेटों का रक्त?

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) चीनी कवि बेई दाओ (जन्म 1949) की कविताएँ अँग्रेज़ी से अनिु ाद -- गीत चतुिेदी मंै आईने से चीनी भाषा मंे बात करता हँू मंै समय ठीक करता हंा जसै े वह परू ा मरे े जीवन से गजु ़र जाएगा पाकक के पास अपनी ननजी सनदयक ांा हंै मंै सांगीत चला दते ा हूँ शहर पलायन कर रहे हंै सनदयक ाां मनखखयों से मकु ्त हंै होटल बड़े और छोटे पटररयों पर क़तार मंे हैं मैं नबना नकसी हड़बड़ी के कॉफ़ी बनाता हूँ पयकटकों क़ी नतनकों से बनी टोनपयाां घमू गई हैं कोई उन पर ननशानेबाज़ी का ररयाज़ कर रहा है मनखखयों को समझ नहीं आता नक मातभृ नू म का अथक खया है मैं समय ठीक करता हां जसै े वह परू ा मरे े जीवन से गजु ़र जाएगा मंै थोड़ी शखकर नमलाता हूँ यायावरों के घमु खकड़ बग़ीचों के पीछे मातभृ नू म एक नकऺ स्म का स्थानीय लहजा होती है झडंाु बना उड़ती हंै मधमु नखखयाां मैं फोन पर दसू री तरफ नेत्रहीन और गायक अपने भय को बोलता पाता हँू अपनी दोहरी मनहमा से आसमान मंे हलचल मचा दते े हंै जलु ाई, एक पररत्यक्त पत्थर खोदता है मैं समय ठीक करता हंा नतरछी हवा को और काग़ज़ से बने पचास बाज़ उड़ते जसै े वह परू ा मरे े जीवन से गजु ़र जाएगा ननकल जाते हैं घटु नों के बल समदंा र क़ी ओर जाते हुए लोगों ने मतृ ्यु के ऊपर फै ले नक़्शे पर अपना हज़ार साल परु ाना यदु ्ध त्याग नदया है खनू क़ी बदंाू आनखऺ री ननशान बनाती है मरे े परै ों के नीचे पत्थर परू े होश मंे हैं मैं समय ठीक करता हंा नजन्हंे भलु ा नदया है मनैं े जसै े वह परू ा मरे े जीवन से गजु ़र जाएगा आज़ादी के जयकारे के साथ रामल्लाह मंे नसतारों भरे आसमान तले परु खे-परु ननया शतरांज पानी के भीतर से आती है सनु हरी रेत क़ी आवाज़ें खले ते हैं गभक मंे भटकते नशशु के महंाु में तंबा ाकू का स्वाद है उसक़ी माां का नसर गाढे कोहरे से नलपटा हआु है

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) आनखऺ री सलु ह नटमनटमाती है एक परू ा जीवन बबादक करने सबक़ सीखते घड़ी मंे क़ै द एक नचनडया मंै नचनडयों क़ी आवाज़ों पर मांडराता हां समय बताने के नलए कू दकर बाहर ननकलती है ठीक वसै ा ही कभी नहीं बोलता रामल्लाह मंे जब तफू ान गसै ों से भर जाते हंै सरू ज दीवार पर चढता है नकसी बढू े आदमी क़ी तरह प्रकाश क़ी नकरणंे अक्षर को छीन लेती हंै और ताबंा े क़ी परु ानी ज़गां लगी तश्तररयों पर उसक़ी तहें खोलती हैं और नफर उसे फाड़ दते ी हैं आईनों क़ी रोशनी फंे कते हुए बाज़ार क़ी तरफ ननकल जाता है रामल्लाह में अतंा में ठंाडे कौए सारे टुकड़े जोड़कर दवे तागण नमट्टी के मतबक ानों से पानी पीते हंै रात बनाते हंै : एक काला नक़्शा धनषु नदशाओां के बारे में पछू ता है प्रत्यंाचा से मंै घर पहुचां गया हां - पीछे रास्ता आसमान के नकनारे से एक लड़का ननकलता है ग़लत रास्ते से भी ज़्यादा लांबा ननकला और समदंा र क़ी नवरासत अपने नाम करता है उतना ही लांबा नजतना जीवन रामल्लाह में जाड़ों का हृदय लाओ भरी दपु हरी में बोए जाते हंै बीज जब चश्मे का पानी और बेतहाशा नवशाल दवा- मरे ी नखड़क़ी के नीचे मौत फू ल उगाती है गोनलयाां एक पडे ़ मकु ़ाबला करता है बाक़ायदा रात के शब्द बन जाती हंै तफू ान के नहसंा क असली स्वरूप से जब स्मनृ त भौंकती है इदां ्रधनषु काले बाज़ार पर प्रेतबाधा क़ी तरह उगता है शब्द नकसी भी गीत का नवष हंै मरे े नपता के जीवन क़ी कौंध उतनी ही छोटी थी नजतनी मटर का दाना गीतों से बनी रात के रास्तों पर मंै उनक़ी प्रनतध्वनन हां पनु लस का सायरन मलु ाक़ातों के कोनों को पलटता हआु नींद में चलने वाले के अल्कोहल का उत्तर-स्वाद है एक पवू -क प्रमे ी नचरियों से चकराती हवा के पीछे नछप जाता है जागना ही एक नसरददक है जसै े नखड़क़ी के पारदशी स्पीकर बीनजगंा , शराब का यह जाम सन्नाटे से गजनक ा क़ी ओर तमु ्हारी राहबनत्तयों के नलए

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मरे े सफे द बालों को इस अधंा रे े नक़्शे से रास्ता खोज ननकालने दो जसै े नक कोई तफू ान तमु ्हंे उड़ाए ले जा रहा हो मैं क़तार में खड़ा इतंा ज़ार करता हंा जब नक तक वह छोटी नखड़क़ी बदां नहीं हो जाती : ओ मरे े चमक़ीले चांाद मंै घर जा रहा हां जीवन में कु ल नजतनी अलनवदा होती हैं उनसे एक कम पनु नमलक न होता है

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जममन कवि हाइनररश हाइने की कवितायेँे (मूल जममन से अनूवित) अनुिािक – प्रवतभा उपाध्याय हाइनररश हाइने (जन्म : 13 हदसबं र 1797, मतृ ्य:ु 17 फरवरी 1856) जमनम कहव, पत्रकार, हनबधं कार और साहहहत्यक आलोचक थ।े वह अपने गीत काव्य के हलए सपु ्रहसद्ध हैं . प्रहसद्ध संगीतकार रॉबर्म शमू ान और फ्ांत्स शबू र्म ने हाइने की कहवताओं को गीत रूप में गाकर जमनम ी से बाहर उनका प्रचार प्रसार हकया । हाइने की कहवता और गद्य उनकी हववके क्षमता और व्यगं्य के हलए सहु वख्यात ह।ंै यवु ा जमनम ी आदं ोलन मंे उनकी महत्वपरू ्म भहू मका रही है । उग्र सधु ारवादी राजनीहतक कायों का नते तृ ्व करने के कारर् जमनम प्रशासन ने उनकी अनेक कृ हतयों को प्रहतबंहधत हकया। अपने जीवन के अहन्तम 25 साल हाइने ने परे रस मंे एक प्रवासी के रूप मंे हबताए. उनकी मुख्य कृ वतयाँे हैं : Die Romantik, Gedichte , Briefe aus Berlin, Buch der Lieder , Zur Geschichte der Religion und Philosophie in Deutschland etc. मंै सपने मंे रोने लगा, सपने में रोने लगा म,ंै कब्र में पड़ा दखे ा मंनै े तमु ्हें सपने मंे । मैं उठ बैठा और आंसू प्रवाहहत हो रहे थे अभी भी मरे े गाल से नीचे I सपने मंे रोने लगा म,ंै मझु े छोड़ हदया सपने मंे तमु ने । मैं उठ बैठा और रोने लगा

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) दरे तक फू र् फू र् कर। सपने में रोने लगा मैं , दखे ा मैनं े सपने मंे तमु अभी भी मझु पर दयालु थीं मंै उठ बैठा , और अब भी बह रही थी मरे े आँसओु ं की बाढ़। मतृ ्यु मतृ ्य-ु यह एक ठंडी रात है जीवन उमस भरा हदन है अन्धेरा हो चकु ा है , मंै डूब रहा हँ हदन के प्रकाश से थक चकु ा हँ I मरे े हबस्तर के ऊपर एक पड़े खड़ा है हजसके अन्दर छोर्ी बलु बलु गाती है वह प्रमे के गीत ही जोर से गाती है मंै सपने में भी इन्हंे सनु ता हँ II जब मैं तमु ्हारी आखँे ों में िेखता हेँ दखे ता हँ मैं जब तमु ्हारी आँखों में

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मेरा सारा ददम और शोक गायब हो जाता है लेहकन जब मैं तमु ्हारा महंु चमू ता हँ तब हो जाता हँ मंै परू ी तरह स्वस्थ I जब मंै तमु ्हारी छाती पर अपना हसर रखता हँ एक स्वहगमक कामना मरे े ऊपर छा जाती है जब तुम कहती हो: मंै तमु ्हें प्यार करता हँ तब मझु े फू र् फू र् कर रोना आता है II मैं स्वर्ग मंे ववश्वास नहीं करता स्वगम मंे नहीं हवश्वास हजसके बारे में बताता है पजु ारी : के वल तमु ्हारी आखँ ों पर हवश्वास है मेरा यही है मरे ा रोशनदान भगवान मंे नहीं हवश्वास मरे ा हजसके बारे में बताता है पजु ारी: हवश्वास है मरे ा के वल तमु ्हारे ह्रदय पर और नहीं कोई दसू रा भगवान मरे ा I नहीं करता हवश्वास मंै अमगं ल में

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) नहीं हवश्वास मेरा नरक और नारकीय ददम मंे हवश्वास है मरे ा अब के वल तमु ्हारी आँखों पर और भरोसा है मझु े तुम्हारे अजबू े हदल पर. उन्होंने तझु े बहुत सनु ाया उन्होंने तुझे बहुत सी कहाहनयाँ सनु ाई ं और बहुत फ़ररयाद की लेहकन मरे ी आत्मा हजसके हलए तड़प रही थी उसके बारे मंे नहीं बताया उन्होंने I उन्होंने गढ़ा एक बड़ा हकरदार हसर हहलाते हुए और फ़ररयाद करते हुए दषु ्ट कहा उन्होंने मझु े और तनू े मान ली उनकी हर बात I हफर भी जो था सबसे बरु ा उसे तो वे जानते ही नहीं सबसे बरु ा और बेवकू फी भरा तो मैं हलए जा रहा था सीने मंे हछपाकर II

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) भीषर् गरमी है तमु ्हारे कपोलों पर ग्रीष्म की गरमी है तुम्हारे छोर्े से ह्रदय मंे जाड़े की ठंडक है खदु बदलेगा यह तमु ्हारे हलए, मेरी हप्रय, जाड़ा तमु ्हारे कपोलों पर होगा और गरमी तुम्हारे हदल मंे होगी. 6. हप्रय हमत्र, तुम प्यार में डूबे हो

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मरे े हप्रय हमत्र, डूबे हो तमु प्यार म,ें और पहुचं ा रहा है पीड़ा नया ददम तमु ्ह;ंे है अँधरे ा छा रहा हदमाग मंे तुम्हारे, है हववर्म यह हदल तमु ्हारा I मरे े हप्रय हमत्र, डूबे हो तमु प्यार म,ें और चाहते नहीं कबलू करना इसे तमु दखे रहा हँ मैं ज्वाला तुम्हारे हदल की हंै बहनयान से तुम्हारी लपर्ें हनकल रहीं II 7. मेरा हदल उदास है मरे ा हदल है उदास और व्यग्र याद आते हंै परु ाने हदन मझु ,े दहु नया थी तब इतनी सखु दाई रहते थे लोग बाहर प्रशातं .

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अब सब कु छ हबखर गया ह,ै दबाव है अब! कष्ट ह!ै ऊपर भगवान मर गया है और नीचे शतै ान मर गया I लग रहा है हर कोई यहाँ इतना उदास, हकं कतमव्यहवमढ़ू , क्षीर् और भावनाशनू ्य गर होता नहीं यह थोड़े से प्यार के हलए, तो होता नहीं कहीं भी ठहराव II 8. ज़हर भरे हंै गीत मरे े ज़हर भरे हैं गीत मेरे हो सकते कै से इतर य?े ज़हर हदया है भर तमु ने मरे े पहु ष्पत पल्लहवत जीवन मंे. ज़हर भरे हंै गीत मेरे हो सकते कै से इतर य?े लोर् रहे हैं सपम ह्रदय मंे मरे े , और थामे हँ मंै तमु ्ह,ें मरे ी हप्रय II

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) 9. घर वापसी तुम एक पषु ्प की तरह हो इतनी प्यारी और सनु ्दर और अनाघ्रात, दखे ता हँ मैं तुम्हें और उदासी घर कर जाती है ह्रदय मंे मरे े I मन करता है मरे ा हक अपने हाथ रख दँू शीश पर तमु ्हारे, प्राथमना करते हुए हक भगवान् बनाए रखे तमु ्हंे इतना ही हवशदु ्ध, हदव्य और आकषमक II

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जर्मन कवि बर्तोल्र्त ब्रेख़्र्त की कविर्ताएँ अँग्रेज़ी से विजेन्द्र द्वारा अनवू िर्त (जन्द्र्: 10 र्फरवरी 1898 - वनधन: 14 अगस्त 1956) जब मै आवारा भटकता था कमजोररयााँ कु छ भी खास नहीं था मरे े पास तमु ्हारी कोई नहीं थीं पता नहीं कहााँ मरे ा मरे ी थी पसर्फ़ एक टोप पडा था मै प्यार करता था पता नहीं कहााँ पपछले सात महीने वन उगगें े पिर भी पकसान अन्न उपजाएगँा े पिर भी मझु े भरोसा नहीं पिर भी शहर तमु ्हारी आखाँ ों पर रहगें े मौजदू तमु ्हारे कानों पर भी आदमी साँास लंगे े पिर भी भरोसा नहीं तमु पजसे अनं ्धेरा कहते हो एक घाटी पाट दी गई है वो शायद उजाला है एक खाई और बना दी गई है जब में वापस लौटा यह रात है भरू े नहीं थे मरे े बाल पववापहत जोडे तब था मै खबू मकु ्त पबस्तरों पर लेटे है पहाडों की यातनाएाँ हमारे पीछे है मदै ानों की हमारे सामने

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जवान औरतंे अनाथों को जन्म दगंे ी दीवार पर खपडया से पलखा था तमु ्हारे पजं े दखे कर वे यदु ्ध चाहते है डरते है बरु े लोग पजस आदमी ने तमु ्हारा सौंदय़ दखे कर यह पलखा था खशु होते है अच्छे आदमी पहले ही यही तो मंे चाहता हाँ सनु ना परास्त हो चकु ा है । अपनी के बारे में नेता जब रोजाना शापन्त की बात करते है रोटी के पलए बाजार जाता हँा जनता जानती है पक यदु ्ध पबलकु ल क़रीब है जहाँा झठू की खरीद-र्फरोख़्त होती है नेता जब यदु ्ध को बरु ा कहता है एक उम्मीद के साथ मै बेचने वालों के पास यदु ्ध-स्थल पर जाने का अपनी जगह आदशे हो चकु ा होता है बना लेता हँा

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जर्मन कवि रेनय र्ाररया ररल्के की कविताएँ अनुिाद: इला कु र्ार मोती ढुलकते हएु ! ओहे , कोइ सतू ्र टूट गया? अह ईन्हें एकसतू्रत्रत करने मंे मैं कै से सहायक बनं जब भी हमने मानवी सहायता की कामना की मंै तमु ्हारी कमी महससू ता ह,ँू गहरा अत्रलंगन, त्रिय , दवे दतू ईन्हें संग संग बनाए रखने की खात्रतर त्रनश्शब्द क्या यही वो समय नहीं था? एक ही लबं े डग में महंु के बल त्रगर पडे त्रजस भातं्रत ईषःकाल सयू य अगमन की ितीक्षा त्रकया और करता है हमारे हदयकाश को त्यागकर चल त्रदए गतु्रणत रात्रत्र के सगं संग पीत-वत्रणतय होकर एक ठसी हइु ऄत्रभनयशाला की भांत्रत, मनंै े तमु ्हारा आतं जार त्रकया त्रकसी त्रवशाल चेहरे मंे संयतु्रित होकर तात्रक तमु ्हारा अगमन मझु से ऄनदखे ा न रहने पाए ओ, जसै े एक ईपसागर ईत्गंु लाआट हाईस के त्रलए चारों तरफ चकमकाते अकाश को रचता है

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जसै े मरुस्थल के बीचोंबीच पहाड से स्वगय तलु ्य बह जब तक त्रक तमु त्रकसी त्रनश्चतता तक न पंहचु अने वाली जाओ मैं त्रसफय तमु ्हारी लालसा करता हँू बरसाती नत्रदयों के त्रनश्छल तीर क्या बाग की ओर जाने वाली पगडंडी सीमटंे जडी घास के कोंपलों के फू टने से दरक नहीं जाया करती? जसै े त्रनदोष त्रखडकी पर त्रकसी त्रसतारे से ईठ अने क्या वही पणू य वसतं नहीं ह?ै वाले दखे ो! व्योत्रमत वसतं ! संदशे की ितीक्षा में खडा कोइ बंदी जसै े कोइ सहारे की लकडी को थोडा चीर डालता है तात्रक ईन्हंे वदे ी पर लटकाया जा सके और वे वहीं पडी रहती ह,ैं त्रबना त्रकसी चमत्कार के कभी न ईठ खडे होने के त्रलए आसी भातं्रत, मंै ऄपनी तमामा राहों मंे पीडा से छटपटाता रहगूँ ा

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जर्मन कवि हेनरिख़ हायने की कविताएँ कविताओं का रूसी से अनुिाद अवनल जनविजय (जन्र्: 13 बदसम्बर 1797 - वनधन: 17 र्फरवरी 1856) बबछोह से पहले वे दोनों दबु नया इसे कभी भी जान नहीं पाएगी खबू उदास हंै औ' रोते हैं बसर्फ़ मछबलयों को मनंै े बताई है यह बात हाथ पकड़ एक-दजू े का वे भला, मछली यह रहस्य बकसको सनु ाएगी आहंे भर रहे होते हैं बिया ! तेरे नाम पर लगे कोई धब्बा लेबकन मंै और तू न रोए पथृ ्वी पर यह बात मैं सह नहीं पाऊाँ गा जब समय बवयोग का आया पास लेबकन, जानम, तनू े मझु े बदया है धक्का पर दरू हुए एक दजू े से जब यह जाकर रोज़-रोज़ मंै सागर को बताऊँा गा रोए तब हम औ' रहे उदास उन्होंने मरे े बदन सारे काले कर बदए वहााँ ढोल-ताशे बज रहे हैं कु छ नाराज़गी स,े कु छ गसु ्से से भर बदए हो रहा है नाच कु छ ने बकया मझु से महाघातक िेम यह बववाह है मरे ी बिया का और कु छ ने बनभाया दशु ्मनी का नमे दावत में गोश्त-माछ मरे े भोजन औ' शराब मंे डाला उन्होंने ज़हर पर यहााँ बादल फट रहे हंै बदन-रात बरसाया मझु पर अपना कहर और आसमान रो रहा है कु छ ने बकया मझु से महाघातक िेम हवा भी उदास-उदास है और कु छ ने बनभाया दशु ्मनी का नमे दखे ो, ये क्या हो रहा है लबे कन उस बिया ने, मझु े सबसे ज़्यादा तोड़ा जसै ा तनू े बकया ह,ै मरे ी जान, मेरे साथ आबखरी पलों तक मझु े रस्सी-सा मरोड़ा दशु ्मनी करती नहीं थी, पर मारती रही कोड़ा िेम उसे था नहीं, बफर भी खबू बनचोड़ा

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) तुर्की र्के र्कनव ओरहान वेल़ी र्की र्कनवताएँ अनवु ाद: अननल जननवजय, मनोज पटेल, नसद्धेश्वर नसिंह (जन्म: 13 अप्रैल 1914 - ननधन: 14 नवम्बर 1950) अँग्रेज़ी से अनवु ाद : अननल जननवजय हमारे मछु आरे रद्दी कबाड ख़रीदता हूँ उन मछु आरों की तरह नहीं हंै ख़रीदता हँू परु ाना-धरु ाना सामान जो क़िताबों में होते हैं और उससे बनाता हँू कसतारे वे समहू गान अपने मन के कलए भोजन नहीं गाते यानी सगं ीत अँग्रेज़ी से अनवु ाद : अननल जननवजय छक कर आनन्द उठाता हूँ सगं ीत का मंै भी चाहता हँू इतना कक घमू ने लगता है कसर काले दोस्त बनाना कजनके अजीब से नाम हों ककवताएँू कलखता हँू और उनके साथ ककवताएँू कलखता हँू और तैरना चाहता हूँ ख़रीदता हँू परु ाना माल मदागस्कर से चीन के बदं रगाहों तक । किर कबाड दके र संगीत ख़रीदता हँू मंै चाहता हँू कक उनमें से एक अगर जहाज़ के डेक पर खडे होकर सीकपयों की ककसी बोतल में तारों को कनहारे और गाए हर रात तैरती मछली बन जाऊूँ \"ललु ू मरे े ललु .ू ..\" तो कै सा रहगे ा? मैं चाहता हूँ अँग्रेज़ी से अनवु ाद : अननल जननवजय इनमें से ककसी एक से ककसी कदन परे रस मंे कमलना

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मरना है मझु े कबना ककसी को बताए तो मरे े महँूु के एक कोने पर चमकनी चाकहए उस मयखाने में टपकते ख़नू की बँदू जाऊूँ ही क्यों जहाूँ कपया करता था जो मझु े नहीं जानते हर रात कहगंे े उसी के ख़्यालों मंे गमु ? \"यह ज़रूर ककसी को प्यार करता होगा...\" और जो जानते हंै अँग्रेज़ी से अनवु ाद : मनोज पटेल \"अच्छा हआु । बेचारा ! बहुत सहा इसन\"े लेककन ठीक-ठीक कारण क्या कु छ नहीं ककया हमने अपनी मातभृ कू म के कलए ! इनमंे से कोई नहीं जानता । ककसी ने दी जान अपनी ककसी ने कदए भाषण । अँग्रेज़ी से अनवु ाद : अननल जननवजय अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल तमु स्कू ल से भागते हो शकु ्र है ख़दु ा का कक एक और शख़्स है इस मकान मंे, तमु कचकडयों को पकडते हो सासँू े हंै समदु ्र के ककनारे और है ककसी के ़िदमों की आहट, गदं े लडकों से बातें करते हो तमु ख़दु ा का शकु ्र है । दीवारों पर गदं -े गदं े कचत्र बनाते हो कु छ ख़ास नहीं अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल पर तमु ने मरे ा भी कदमाग़ ख़राब कर कदया है ककतने गदं े लडके हो तमु ! म,ैं ओरहान वले ी प्रकसद्ध रचनाकार अँग्रेज़ी से अनवु ाद : अननल जननवजय 'सलु मे ान एफांदी को शाकन्त कमले' शीषकष ककवता का । जब सनु ा गया है कक सबको उत्सकु ता है महु ब्बत ही मरे े कनजी जीवन के बारे मंे जानने की । नहीं रही उससे

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अच्छा, तो मझु े कह लेने दो शायद और भी हज़ारों आदतंे हैं मरे ी सबसे पहले तो यह कक मंै एक मनषु ्य हँू , सचमचु का लेककन उनको सचू ीबद्ध करने से क्या लाभ नहीं हँू म,ंै सकष स का जानवर या ऐसा ही कु छ और वे सब कमलती-जलु ती हंै एक दसू रे से - एक से होता है दसू रे का भान मरे ी एक नाक है और दसू रे से पहले का। कान भी हैं हालाूकँ क वे बहुत सगु ढ़ नहीं हंै । अँग्रेज़ी से अनुवाद : नसद्धेश्वर नसिंह मैं एक घर मंे रहता हूँ और कु छ काम-धाम भी करता जब भी ही हूँ । सडक पर चलता हूँ म,ंै मैं अपने कसर पर बादलों की कतार कलए नहीं किरता हँू अके ले न ही मरे ी पीठ पर चस्पाँू है भकवष्य-वाचन का इश्तेहार मंै इगं लंैड के राजा जाजष की तरह नफासत वाला नहीं मनैं े गौर ककया है हँू कक मसु ्कु राता हूँ मैं और न ही अकभजात्य से भरा हँू सले ाल बायार के अस्तबल के हाकलया मकु खया की मंै सोचता हूँ भाँकू त । कक लोगों को लगता होऊँू गा मैं पागल मझु े पसंद है पालक और मंै मसु ्कु रा दते ा ह।ँू मैं दीवाना हँू पफ़्ड चीज़-पेस्रीज का दकु नयावी चीज़ों की मझु े चाह नहीं है अँग्रेज़ी से अनुवाद : नसद्धेश्वर नसिंह कबल्कु ल नहीं दरकार। ओकाते ररफात और मेली वदे े ये हंै मरे े सबसे अच्छे दोस्त मैं ककसी से प्यार भी करता हूँ बहतु ही सम्माकनत है वह लके कन मंै बता नहीं सकता हूँ उसका नाम चलो, साकहत्य के आलोचकों को ही करने दो यह गरु ुतर कायष । महत्वहीन चीज़ों मंे व्यस्त रखता हँू मैं स्वयं को बनाता रहता हँू योजनाएँू और क्या कह?ँू

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) नज़ीम हिकमत की कहिता अनिु ाद: प्रोहमला क़ाज़ी मै तमु ्हे इस तरह प्रेम करता हँू जसै े पावरोटी के एक टुकड़े को नमक मंे डुबो कर खा रहा हँू या फिर बखु ार में जलते फकसी रात यकायक जाग गया हँू और पी रहा हूँ पानी सीधे नल से महु ं लगा के . या तो ऐसे फक जसै े डाफकया दे गया हो एक बड़ा सा पकै े ट और मै फबना जाने फक उसमे क्या है उसे खोल रहा ह,ँू ख़शु ी से , थोड़े सदं हे से और धकड़ते फदल से ! मै तमु ्हे प्रेम करता हूँ ऐसे जसै े पहली बार बठै ा हूँ हवाई जहाज़ मंे, और दखे रहा हूँ उसे समनु्दर पार करते मरे े अतं र मंे जसै े कु छ फहल गया हो इसताबं लु में जसै े शाम गहराती है आफहसता से मै तमु ्हे प्यार करता हँू ऐसे फक जसै े एक शफु िया अता कर रहा हँू ईश्वर को इस जीवन के वासते !

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) दक्षिण़ी अफ़्रीकी कक्षव अमेक्षिया हाउस अनवु ाद : हेमन्त जोश़ी प्रसव के समय से आगे बढ़ी हुई सहो औरत स़ी मरे ़ी जन्मभमू म ओ मरे ़ी जन्मभमू म सहो ध़ीरे-ध़ीरे चलत़ी हो तमु ज़ोर लगाओ बोझ से भाऱी हंै तमु ्हारे पााँव तमु ने गहा है इस ब़ीज को ध़ीरे-ध़ीरे चलत़ी हो तमु उसके परू े समय तक और हम सहो नहीं कर पाते प्रत़ीक्षा और ज़ोर लगाओ प्राकृ मतक प्रसव की के वल तमु ह़ी दे सकत़ी हो जन्म हमंे हमाऱी आज़ाद़ी को जनवाना ह़ी होगा तमु ्हें के वल तमु ह़ी महससू कर सकत़ी हो ज़बरन। इस परू े भार को सहो अंग्रेज़ी से अनवु ाद : हेमन्त जोश़ी हम तमु ्हारे साथ रहगें े तमु ्हें प़ीडा से ममु ि मदलाऩी ह़ी होग़ी सहो सहो और ज़ोर लगाओ ! अंग्रेज़ी से अनवु ाद : हेमन्त जोश़ी

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) नाइजीरिया के कवि चीनआु एचेबे की कविता व ंिदी अनिु ाद: सिु ेश सलील घरा सोचो, हिटलर अगर अपनी जगं जीत जाता िमारी इहतिास की ह़िताबें आज धपङ-चपङ िोतीं, छति के छै़ सले से लबालब अमरीहकयों ने एक जापानी कमाण्डर को, यदु ्ध-अपराधी के बतौर सलू ी पर चचा हदया, एक पीची बाद एक बचे ़ैन उँगली उनकी पसहलयों मंे धँसी िुई, िमंे अपने अमरीका को, हियतनाम में उसके ित्यारे खनू ी कारनामों के हलए सलू ी पर चचाना िोगा । मगर आज िरेक को जानना िोगा हक सलू ी एक पीहङत से बचकर, प्रत्यक्ष अपराध के बोझ से लदी िोने के बािजदू , बितु कु छ हनगल जाती ि,ै़ क्योंहक एक हििके िीन ित्या के हलए भी घरूरी ि़ै -- एक हिजते ा । घरा सोचो, हिटलर अगर जएु की बाजी जीत जाता कै़ सी अछरा-तछरी दहु नया में मच जाती ! चनै़ लिार के उसके कट्टर शत्रु को यदु ्ध-अपराधों के हलए मरना िोता, और जिाँ तक िरै़ ी ट्ुरमने का सिाल ि,़ै हिरोहशमा का िि खलनायक... िाँ, हिटलर अगर अपनी जगं जीत जाता, तो द' गाल पर दोबारा म़ु िदमा चलाने की घरूरत न िोती उसे पिले िी पेररस ने फ़्ाँस के साथ दगाबाघी के हलए

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मौत की सघा निीं सनु ा दी थी ! अगर हिटलर जीत जाता हबडकु न हकह्लगं नािे के प्रधानमतं ्री के पद पर काहबघ िो गया िोता -- अगर हिटलर जीत जाता...

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) नॉवे के कसव ऊलाव हाउगे (जन्म: 1908 - सनधन: 1994) की कसवताएँ अनुवाद अँग्रेज़ी से रुस्तम ससहं जब मैं जागता ह,ूँ एक काला ऐसी हवा हो कऊआ मरे े हृदय को नोचता ह।ै तो फदशा की फकसे परवाह! क्या मंै फिर कभी नहीं जागँगू ा और दखे गूँ ा समदु ्र और फसतारे, जगं ल और रात, अंग्रेज़ी से अनवु ाद : रुस्तम ससहं और सबु ह फजसमें पक्षी गाते ह?ैं आज जब मैं जागा अंग्रेज़ी से अनुवाद : रुस्तम ससहं तो काूँचों पर बर्फ़ थी पर मैं एक अच्चॆ सपने से तलवार गरमाया हुआ था। चीरती है जब उसे फनकाला जाता है पर आफतशदान कमरे में गमी िै ला रहा था और कु छ नहीं तो लकडी के एक टुकडे ने हवा को उसे गनु गनु ा बनाए रखा था। अंग्रेज़ी से अनुवाद : रुस्तम ससहं अंग्रेज़ी से अनुवाद : रुस्तम ससहं मैं कश्ती हँू तमु ठण्डी कठोर पहाडी हवा थीं। बगरै हवा के तब एक अधँू रे ा पदा़ उठ खडा हआु हवा तमु थे और उसने तमु ्हारी ताकत को फबखरे फदया। मतृ ्य!ु अब तमु रेंगती हो -- एक पराफजत हवा क्या यह वही फदशा थी गनु गनु ी ढलानों के साथ-साथ। जो मझु े लने ी थी? अंग्रेज़ी से अनुवाद : रुस्तम ससहं

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) नोबल परु स्कार विजेता बोररस पासतरनाक की कविता, अनुिाद- सूरज प्रकाश नोबेल परु स्कार लेते स स सनु ाने के वलल वल ग ीसग कविता - कलम मंे एक जानवर की तरह, मैं कट गया हूं अपने दोस्तों से, आजादी से, सयू य से लेककन किकारी हैं कक उनकी पकड़ मजबतू होती चली जा रही ह।ै मरे े पास कोई जगह नहीं है दौड़ने की घना जगंू ल और ताल का ककनारा एक कटे हएु पड़े का तना न आगे कोई रास्ता है और न पीछे ही सब कु छ मझु तक ही कसमट कर रह गया ह।ै क्या मैं कोई गडूंु ा हंू या हत्यारा हूं या कौन सा अपराध ककया है मनैं े मैं कनष्काकसत ह?ंू मनंै े परू ी दकु नया को रुलाया है अपनी धरती के सौन्दयय पर इसके बावजदू , एक कदम मरे ी कब्र से मरे ा मानना है कक क्रू रता, अकंू धयारे की ताकत रौिनी की ताकत के आगे कटक नहीं पायेगी।

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) काकतल घरे ा कसते जा रहे हंै एक गलत किकार पर कनगाहें जमाये मरे ी दायीं तरफ कोई नहीं है न कोई कवश्वसनीय और न ही स्चा और अपने गले में इस तरह के फंू दे के साथ मैं चाहगूं ा मात्र एक पल के कलए मरे े आसूं ू पोंछ कदये जायंे मरे ी दायीं तरफ खड़े ककसी िख्स के द्वारा


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