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Vol.2,issue.13, March 2016

Published by jankritipatrika, 2019-03-18 11:44:43

Description: Vol.2,issue.13, March 2016
Special Issue on World Poet and Poetry

Keywords: poetry,literature,english,hindi,art,media,science,history

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जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) दबस्तर की आखँा ंे भी एकदम दबटली-सी चमक रही थीं और तदकय़ों को लग चकु े थे पखंि ध्वदनयााँ दनकल रही थीं हमारे शरीऱों से ऐसी जसै े प्रभु की पजू ा मंे भक्त बजा रहे ह़ों शखिं दकतना ऊँा चा है प्रमे का यह सिंसार इसमें नहीं अराजक कोई भी व्यवहार ऐसा क्या है बने प्रेम के दलए जो हदथयार आदी हो जाना इसका व्यदक्त को कर दते ा बेकार नहीं जानना प्रमे को गहरे है बहे द दखु की बात प्रेम में जो पागलपन होता है वही है आह्लाद दो शरीर एक-दसू रे मंे यँाू गथँाु े हुए थे दो दसर आपस मंे ऐसे सँाथु े हुए थे सबकी ईष्याा का कारण बनता उस ददन गभााधान हमने नहीं प्रयोग दकया था उस ददन कोई दनदान सभी कतिताएँ मूल रूसी से अनिु ाद : अतनल जनतिजय

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक)  डॉ. आभा खेडेकर यहॉंॉआती है सॉझॉं , जहॉंॉ महकता है हर फू ल अपने तने पर धपू दान-सा इठलाकर, स्वर और खशु बू का जादू सॉझंॉ मंे ममलता है और जैसे मबखर कर थम जाता है स्वर और मधरु सॉंगीत का दद!द वायमलन की तान कॉपॉं ती है एक ददद भरे मदल की तरह, नभ मोहक पर उदास मवशाल वेदी की तरह ठहरा हुआ ह।ै सनू ी सॉझॉं दखे कर, एक भावकु मदल हो जाता है उदास और अपनी लाली, अपने अन्त में खोकर सयू द सॉझंॉ में सखु द मदखता ह।ै जो समय गजु र गया, सामने आ जाता है बनकर तेरी याद जो मझु में बाती है और चमकती हंै धाममदक पमवत्र पात्र की तरह।'' मवचारों को प्रतीकों के रुप मंे बनु ने वाली कमवता बॉदंॉ लये र की कमवताएँ ह।ै बादंॉ लये र के मलए जीवन और कमवता एक दसू रे के रुप मंे पयादय ह,ै मजसमंे उन्होने जीवन के बरु े अनभु व और उससे छू टकारा पाने का माध्यम कमवता के द्वारा मकया गया ह।ै अपने मन मंे उपजे द्वन्द को शब्द व प्रतीकों के माध्यम से रखा ह।ै कई बार जीवन मंे असहजताएँ आयी हैं, सॉझंॉ के तरह लेमकन मफर प्रसन्न रहकर, इठलाकर उसे दरू मकया है व प्रकृ मत में जीवन मंे खशु बू का वातावरण फै ला मदया ह।ै मफर भी कई बार झंॉकार की तरह ददद उथल-पथू ल मचाता है और ठाम रहकर खडा है, ऐसे समय मंे मन उदास

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) होकर रह जाता है व कु छ नहीं कर पाता हंॉ । हर पल बीते हुए मदनों की याद मदलाता है समय सामने आकर खड़ा हो जाता है, लेमकन उसमंे भी याद आती है व उस याद मंे सच्चाई मदखायी दते ी ह।ै धमद में मतृ ्य,ु भय, दडॉं , नफरत, तड़प, व्यमभचार आमद ह,ै तो भी धाममदक कहा ह।ै जीवन को बन्धन में आबध्द मकया गया ह।ै भावों को प्रकृ मत के माध्यम से द:ु ख, दद,द इच्छाओॉं का जंॉगल कहा है व उस जंॉगल मंे यह सभी फू ल की तरह खीले हएु ह।ैं यह कमवता आपसी द्वन्द्व से उपजे त्रास और ददद की कमवता ह।ै मजसमें मदव्य सौन्दयद और लौमकक सनु ्दरता के मध्य पाये जाने वाले मवचलन की कमवता ह।ै बॉदॉं लये र का जीवन बड़ा ही तफू ानी रहा है व मानमसक सॉंताप से गजु रना पड़ा है व उसी को रचनात्मकता में स्थान मदया ह।ै इस तरह बॉदॉं लये र ने पथृ क शैली व वैचाररक मवमवधता को स्थान मदया ह।ै इस कमवता मंे सॉंरचनात्मक तकनीकों का इस्तेमाल मकया गया है, मफर भी अलग-अलग प्रमतबद्धताओंॉ का पालन मकया है व अमभव्यमि की आजादी के प्रयास तो हएु लेमकन मफर भी कमवता बंमॉ धत ह।ै

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) रूसी महाकवि अलेक्सान्दर पूवककन (जन्म: 06 जून 1799-- वनधन: 10 फ़रिरी 1837) की कविताएँ सभी कविताएँ मूल रूसी से अनिु ाद : मदनलाल मधु तेरे लिए प्यार में डूबी और व्यलथत वाणी मरे ी मरे ी प्यारी वह क्षण आया, चनै चाहता मरे ा मन, अधध-रालि का मौन, लनशा जो भदे े अधं रे ी, बीत रहे घण्टों पर घण्टे, सतत उडे जाते हैं लदन, लनकट पिगं के मोम गि रहा, जिती है बाती और इन्हीं के साथ हमारा, ख़त्म हो रहा है जीवन, झर-झर झर-झर लनझरध -सी कलवता उमडी आती, हम दोनों जीने को उत्सकु , लकन्तु आ रहा लनकट डूबी हईु प्रणय मंे तरे े, बहती सररताएँ लनधन, चमक लिए तम में दो आखँ ंे सम्मखु आ जाएँ, इस जग में सुख-ख़शु ी नहीं ह,ै लकन्तु चैन ह,ै चाह यहा,ँ वे मसु ्काए,ँ और चते ना सनु ती यह मरे ी एक ज़माने से मन मरे ा, मझु े खींचता दरू , वहाँ- मरे े मीत, मीत प्यारे तमु ... प्यार करँ ... मैं हँ तेरी ...हँ जहाँ बठै कर सजृ न करँ मैं और चैन मन का पाऊँ , तरे ी! दास सरीखा थका हआु मंै, सोचँ,ू भाग कहीं जाऊँ । रचनाकाल : 1823 रचनाकाल : 1834 मनैं े प्यार लकया था तमु को और बहुत सम्भव है अब मन ही मन दिु रा िँू मैं लप्रय लबम्ब तमु ्हारा भी ऐसा साहस करता हँ मंै अलन्तम बार, मरे े लदि में उसी प्यार की सिु ग रही हो लचगं ारी, हृदय-शलि से मंै अपनी कल्पना जगाकर लकन्तु प्यार यह मरे ा तमु को और न अब बचे ैन करेगा सहमे, बझु -े बझु े वे सखु के क्षण िौटाकर, नहीं चाहता इस कारण ही अब तमु पर गजु ़रे भारी। मधरु े, मंै करता हँ याद तमु ्हारा प्यार। मनंै े प्यार लकया था तमु को, मकू -मौन रह, आस लबना वषध हमारे भागे जाते, बदि रहे हैं लहचक, लझझक तो कभी जिन भी मरे े मन को बदि रहे वे हमको, सब कु छ बदि रहा, दहकाए, अपने कलव के लिए लप्रये तमु तो ऐसे जसै े प्यार लकया था मनंै े सच्चे मन, कोमिता से मानो लकसी क़ब्र का ओढे तम जसै े, हे भगवान, दसू रा कोई, प्यार तमु ्हंे यों कर पाए! और तमु ्हारा मीत तमस मंे लिप्त हआु । रचनाकाल : 1829 तमु अतीत की लमि करो, स्वीकार करो मरे े मन की कर िो अगं ीकार लवदा,

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) लवदा लजस तरह से हम लवधवा को करते, बाहँ ों मंे चपु चाप लमि को ज्यों भरते, लनवाधसन से पहिे िते े गिे िगा। अरी रपसी, मरे े सम्मखु मत गाओ करुण जालज़यध ा गीत, लकसी दसू रे तट, जीवन की याद लदिाएँ भिू ा हुआ अतीत। क्रू र तराने उण वे तरे े, ज़लु ्म करंे मझु को स्मरण कराए,ँ रात चादँ नी, स्तपे , दखु ी-सी वह यवु ती स्मलृ तयाँ लघर-लघर आए।ँ दखे तझु े उस प्यारी, दखु की छाया को भिू तलनक मंै जाता, िले कन जब तमु गाती हो, उसको लिर से बरबस सम्मखु पाता। अरी रपसी, मरे े सम्मखु मत गाओ करुण जालज़यध ा गीत, लकसी दसू रे तट जीवन की याद लदिाएँ भिू ा हुआ अतीत। सभी कविताएँ मूल रूसी से अनिु ाद : मदनलाल मधु

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) रोमादनयाई कदव माररन सोरस््यू (जन्म: 19 फ़रवरी 1936 - ननधन: 8 ददसम्बर 1995) की कदवताएँ रसोमभादीनकयानईिकतादओव मंाकररानअसँगो्रेज़स््ीयसू (ेजअन्नमुि: ा1द9:फम़रनविरीम1ो9ह3न6म-ेहननतधा न: 8 ददसम्बर 1995) की कदवताएँ आखँ ों की रोशनी धँधु ली पड़ चकु ी है दबना बाधा ख़त्म हो चकु ी है होंठों की मसु ्कराहट इस बात से फ़कद पड़े दबना पर ददन अभी ख़त्म नहीं हुआ है दक वे इस तरफ़ हैं या उस तरफ़ सड़कों पर हसँ ी-दठठोली करते शब्द लोगों की आवा-जाही जारी है धरती के यह सब कु छ दकतनी अच्छी तरह से तयशदु ा है दक मंै गायब हो जाऊँ गा इस भीड़ से यह पासपोटद और कोई ध्यान नहीं दगे ा मरे ी हड्दडयों पर दलखा हआु है दलखा हआु है मरे े कपाल, जाँघ की हड्डी कु छ भी नहीं होता इस ददु नया में और रीढ़ पर दसवा इसके सब कु छ व्यवदस्थत दक वस्तओु ं की अवस्था, नहाई हुई है मरे े मनषु ्य होने के अदधकार की दनदयद ता में घोषणा करते हएु सरहद पार करना दोनों हाथों से थामो सयू दमखु ी और डेजी के बीच रो़ि की यह ट्रे हस्तदलदखत घटनाओं और आगे बढ़ा दो और छपी हुई घटनाओं इस काउन्टर से के अक्षरों के बीच यहाँ पयादप्त सयू द है उन तमाम परमाणओु ं से यारी करना हर आदमी के लायक जो रोशनी का दहस्सा हैं यहाँ पयापद ्त आसमान है गाते हुए परमाणओु ं के साथ गाना और चन्रमा भी पयापद ्त है मरते हुए परमाणओु ं के साथ रोना । इस धरती से फू टती है प्रवशे करना एक सगु न्ध दकसी की द़िन्दगी के तमाम ददनों मंे सौभाग्य की, ख़दु शयों की, सौन्दयद की जो तमु ्हारी नादसका को

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मदमस्त करती है जो जगं ल से था । इसदलए कं जसू ों की तरह परन्तु अनवु ाद कदठन होता गया दसफ़द अपने दलए मत दजयो जसै े-जसै े मंै ख़दु के करीब पहुचँ ा कु छ भी हादसल नहीं होगा थोड़ी कोदशश के साथ उदाहरण के दलए, दसफ़द एक जीवन से मझु े नाख़नू ों और परै ों के बालों के दलए तमु पा सकते हो पयादय दमल गए सबसे ख़बू सरू त स्त्री साथ ही एक दबस्कु ट घटु नों के आसपास मनंै े हकलाना शरु ू कर ददया मैं एक इम्तहान मंे बैठा था हृदय की तरफ़ जाते हएु मरे े हाथ काँपने लगे एक मतृ भाषा के साथ और काग़ि पर रोशनी के दाग लगा ददए और मझु े अनवु ाद करना था स्वयं का दफर भी मनंै े मरम्मत की कोदशश की मनषु ्य से बन्दर मंे । बालों और छाती के साथ परन्तु बरु ी तरह असफल हआु मनंै े धयै द रखा आत्मा के मामले में । एक पाठ का अनवु ाद करते हुए सभी कनिताओं का अँग्रेज़ी से अनिु ाद : मनि मोहन मेहता

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) ल़ीगियाई कगव इदऱीस मौहम्मद तैयि (11 मई 1952) की कगवताएँ सभ़ी कगवताएँ अँग्रेज़ी से इन्दुकान्त आगं िरस द्वारा अनगू दत उसकी गरदन के तिल से पानी फाड़िा है अपनी ही छािी को मरे ा याराना हो गया है एक रहस्यमयी आवाज़ को अपनी िाकि बिला कर मंै कभी-कभी उसका अतभवादन करिा हँू हवा भय को समतपिच करिी अपना तवलाप लते कन मंै कभी भी गजूँ बनिी है टकरा कर भावतवभोर होकर उसे सलाम नहीं ठोंकिा । ज़मीन यूँ ले रही है अगँू ड़ाई रचनाकाल : 14 मार्च 2002 जसै े कोई नाज़कु दोशीजा इश्कक के र्ौराहे पर िन्हा खड़ी हो अंग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दुकान्त आगं िरस और जो मझु े दरू , बहुि दरू तदखाई दिे ी हो एक कहकह,े एक गलु ाब दतु नया की भीड़ में एक सदी की िरह, जहाँू मंै पहुरँू ् नहीं सकिा आदमी कै से रख लेिा है याद एक ऐसी औरि को िमु ्हारे और मरे े बीर् जवान हसरिों की दतु नया है जो भीड़ में शातमल नहीं होिी और धीरे धीरे सरकिा बढु ापा हकीकि मंे मैं पिझर के र्हे रों मंे उलझा हँू जो मौजदू है वहीं मौजदू नहीं है और िमु वसन्ि के तदल में तखल रही हो । और जो मौजदू है वही मौजदू नहीं रचनाकाल : 21 अिस्त 2005, रोम रचनाकाल : 14 मार्च 2002 अंग्रेज़ी से अनवु ाद : इन्दुकान्त आगं िरस अंग्रेज़ी से अनवु ाद : इन्दुकान्त आगं िरस

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) श्रीकांात दुबे द्वारा अनदू दत- बनारस / होर्खे लइु स बोर्खेस (अर्जंेटीना) कोई भ्रम, कोई तितिस्म डाििा है अपने उजािे की दृति । जसै े आईने मंे उगिा तकसी उपवन का तबंिब, मतस्जदों के तशखर से उठिी अजान इन आखँ ों से अदेखा हवा को गभंि ीर बनािी एक शहर, शहर मरे े ख़्वाबों का, करने िगिी है जय-जयकार जो बटिा है फासिों को एकांिि के दवे िा की रेशों से बटी रस्सी की मातनदंि अन्यान्य दवे ों के उस नगर मंे । और करिा रहिा है पररक्रमा अपने ही दगु मग भवनों की । (और जबतक मैं खिे रहा हँ उसके अतस्ित्व की खातिश कल्पनाओंि से, मतंि दरों, कू डे के पहाडों, चौक और कारागारों िक से वह शहर अब भी आबाद है अधिं रे े को खाक करिी दतु नया के ियशदु ा कोने में, चटकार धपू अपने तनतिि भगू ोि के साथ चढ़ आिी है दीवारों के ऊपर िक तजसमें मरे े सपनों की िरह भरे िोग ह,ैं और चमकिी रहिी है और हैं अस्पिाि, बैरक और पीपि के छाँव वािी पावन नदी के छ्ि-छि पानी में । ससु ्ि गतियाँ और पोपिे होंठों वािे िोग भी गहरी उसाँसंे भरिा शहर, तजनके दािँ हमशे ा कठुआए रहिे ह)ंै । जो तबखरे दिे ा है समचू े तितिज पर तसिारों का घना झडिंु , नींद और चहिकदमी से सनी एक उनींदी सबु ह में रोशनी उसकी गतियों को खोििी है मानो खोििी हो अपनी बाँहें । ठीक िभी उठिा है सयू ग, पवू ग मंे दखे िी चीजों के कपाट पर

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) स्पानी भाषा के कमर् र्े दररको गामसयया लोकाय (जन्म: 05 जनू 1898 - ननधन: 19 अगस्त 1936) की कमर्ताएाँ अनुवाद: गलु शेर खान शाऩी, धममव़ीर भारत़ी, ग़ीत चतुवेद़ी चम्पा की शाखों के बीच अंग्रेज़ी से अनवु ाद : गुलशेर खान शाऩी मनंै े दखे े दो स्याह फाख़्ते सरू ज था एक काली चाादं नी में राहज़न के झनझना रहे हैं रकाब चादां था दसू रा काले घोड़े, प्यारे दोस्तो ! कहाँा मलए जा रहे हो पीठ पर कहााँ है मक़बरा मरे ा, मनैं े पछू ा ? मदु ाय असर्ार? मरे ी दमु म,ें सयू य ने कहा हलक़ में, चादंा बोला राहज़न बेजान कड़े करख़्त रकाब और कमर-कमर तक ममट्टी में चलते हुए हाथ से मजनकी छू ट चकु ी है लगाम मनंै े दखे े सदय घोड़े दो बर्ानय ी उक़ाब फू ल-गधां चाकू की और एक लड़की मनर्सय ्त्र ! क्या खबू ! दोनों थे एक काली चाांदनी में और लड़की न तो यह थी और न र्ो मोररना पर्तय माला के बाजओु ंा से होता है रक्तपात ! प्यारे उक़ाबो, कहााँ है मरे ा मक़बरा, मनंै े पछू ा ? काले घोड़े मरे ी दमु म,ंे सयू य ने कहा कहााँ मलए जा रहे हो पीठ पर हलक़ में मरे े, चांदा बोला मदु ाय असर्ार ? चम्पा की शाखों के बीच सदय घोड़े मनैं े दखे े दो र्ाख़्ते फू ल-गधंा चाकू की, मनर्सय ्त्र क्या खबू ? दोनों थे एक और दोनों न तो यह और न र्ो ! काली चांदा नी मंे

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) चीरती हईु चीख और अलार् की धार सनु हरी लड़की थी सर्े द बगलु ी काले घोड़े' और तालाब हो गया था सोना ! कहाँा मलए जा रहे हो अपना अंग्रेज़ी से अनुवाद : गुलशेर खान शाऩी मदु ाय असर्ार ? अंग्रेज़ी से अनवु ाद : गलु शेर खान शाऩी मा,ाँ चांादी कर दो मझु े ! तालाब में नहा रही थी सनु हरी लड़की बेटे, और तालान सोना हो गया बहतु सदय हो जाओगे तमु ! कँा पकाँ पी भर गए उसमंे छायादार शाख और शरै ्ाल मा,ाँ पानी कर दो मझु े ! और गाती थी कोयल सर्े द पड़ गई लड़की के र्ास्ते बेटे, जम जाओगे तमु बहुत ! आई उजली रात बदमलयााँ चादां ी के गोटों र्ाली मा,ाँ खल्र्ाट पहामड़यों और बदरंाग हर्ा के बीच काढ़ लो न मझु े तमकए पर लड़की थी भीगी हईु कशीदे की तरह ! जल में सर्े द और पानी था दहकता हआु बेपनाह कशीदा ? हाँा, मफर आई ऊषा आओ ! हज़ारों चहे रों मंे सख़्त और लकु े -मछपे अंग्रेज़ी से अनुवाद : गलु शेर खान शाऩी मजंाु ममद गजरों के साथ लड़की आसाँ ू ही आसाँ ू शोलों में नहाई तारंे हो रहे हंै बेपदय जबमक स्याह पखां ों में रोती थी कोयल

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) झरते हंै पठारों पर मसतारों के मलबास जब चादँा उगता है ज़रूर आएगंा े तीथयय ात्री समदु ्र ज्र्ार में पथृ ्र्ी पर छाने लगता है और खोजगंे े और रृदय बन जाता है आतनय ाद अनन्त प्रसार मंे एक छोटा-सा द्वीप कल के बझु े हएु अलार् जब चादँा उगता है अनवु ाद : गलु शेर खान शाऩी हज़ार हज़ार यकसाँा मबम्बों में तो थमै लयों मंे से रुपहले मसक्के चाहती हंै पहामड़याँा ग्लामन से रो दते े हैं मनकल आएँा उनके पांख अंग्रेज़ी से अनुवाद : धममव़ीर भारत़ी और खोजती हैं र्े बादल शरु ू होता है सर्े द बरु ाकय ़ ! मगटार का रुदन । अंग्रेज़ी से अनुवाद : गुलशेर खान शाऩी चकनाचरू हंै भोर के प्याले । पहामड़याँा चाहती हंै पानी हो जायंे शरु ू होता है और पीठ में खोजती हंै र्े मगटार का रुदन । मटकने के मलए मसतारे व्यथय है उसे चपु कराना । अंग्रेज़ी से अनुवाद : गुलशेर खान शाऩी असम्भर् उसे चपु कराना । जब चाादँ उगता है र्ह रोता जाता है शाम की घमटटयााँ खामोशी में डूब जाती है बोमझल और अभदे ्य रहस्यमय रास्ते दीखने लगते हैं पानी रोता है और बर्य के खते ों पर रोती जाती है हर्ा ।





































जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) निम्बर १९४१ मंे िह जले में ही बीमनर पडन. उसे टनइफस (ततं ्र-ज्िर) ने घरे मलयन. उसकन शरीर बखु नर में तपतन रहतन थन. जोसेमफन को उसने जले से बहुत ही मनममका पत्र मलखे ह.ैं १९४२ के िसंत के आते-आते उसे टीबी (यक्ष्मन) ने भी जकड मलयन. खनंसी, सनसं लेने में ददा और खनू की उमल्टयों के बीच मसफा ३१ िषा कु छ मनह की आयु में इस महनन स्पमे नश कमि कन अतं हआु . तनरीख थी २८, मनचा १९४२. घड़ी मंे समय थन ५ बज कर कु छ ममनट. जले की मजस सकं री-सी खनट पर ममगएु ल हननना ्दज़े ने अमं तम सनँेसंे लीन, उसके बगल की दीिनर पर उसने खरोंच कर मलख रखन थन : ‚अलमिदन, मरे े भनइयो, कनमरेड्स, दोस्तो मझु े अब सरू ज और मदै ननों-खते ों से छु ट्टी ले लेने दो !‛ जले के अमधकनररयों के मतु नमबक़ मतृ ्यु के बनद भी ममगएु ल की आखेँ ें बहतु कोमशशों के बनिजदू बंद नहीं की जन सकीं. िे उसकी चौंकी हईु ंअबोध आखँे ें थीं. नरे ुदन ने कहन थन : ‘जब हम ममगएु ल हननना ्दज़े की कमितनये ेँ पढ़ते ह,ैं तो हमंे उसकी कमितन मंे िह संगीत सनु नई दते न है , जो मकसी मनदन भड़े के अपने छौने को दधू मपलनते समय, उसके थन मंे से, उसके रक्त के दधू में बदलने की प्रमक्रयन में पदै न होतन संगीत हआु करतन ह.ै ‛ आक्तनमियो पनज़ ने मलखन है : उसके कमितन पनि के दौरनन बीच-बीच में, उसकी आिनज़ में जो सनु नई दने े लगतन थन, िह कु छ अलौमकक थन. जसै े कहीं दरू घने बनदलों के बीच मबजली कौंध रही हो . यन कोई अज्ञनत िन्यप्रनणी अपनी मतृ ्यु के िीक पहल,े अपनी डरनिनी लेमकन मनममका आिनज़ मंे अचननक चीख रहन हो. यन शनयद कोई बलै , जो मकसी दोपहर, धंएु और कोहरे से बने लोगों की भीड़ के बीच अपनी व्यनकु ल आखँे ें उिन कर, उनमें से मकसी अपने पररमचत को खोज़तन हुआ, दम तोड़ रहन हो और उसके गले से उसकी अमं तम आिनजंे मनकल रही हों. मकसी और कमि ने मलखन: ‘ममगएु ल हननान्दज़े जब अपनी कमितनये ेँपढ़तन थन, तो लगतन थन मक जसै े इस पथृ ्िी के सनरे ििृ मकसी एक मनषु्ट्य के कं ि से गन रहे हों.

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मरे ा कोई पिता नहीं, न माँा, न ईश्वर, न दशे , न झलू ा, न कफन, न चबंु न और न ही प्यार। तीन पदनों से मनंै े खाया नहीं, कछ भी नहीं। मरे े २० साल एक ताकत ह।ंै मरे े ये बीस साल पबकाऊ ह।ंै यपद खरीदनवे ाला कोई नहीं, तो शतै ान उसे खरीद ले जाएगा। मंै सच्चे पदल से फू ट िडूाँगा। जरूरत हईु तो मैं पकसी को भी मार डालाँूगा। मैं कै द कर पलया जाऊँा गा और पजस घास से मरे ी मौत आएगी, पवस्मयकारी ढगंु से वह मरे े सच्चे पदल िर उग आएगी। ये िुंपियाँा ह-ंै २०वीं शती के उस महान हगुं री कपव की, पजसके पिता ने तीन साल की उम्र मंे घर को छोड पदया, १४ साल की उम्र में मााँ गजर गयी, कपवताओंु के कारण स्कू ल-कॉलजे ों से पनकाला गया, मारक आलोचना के कारण फै लोपशि जाती रही, प्रेपमकाओुं ने दगा पदया, वचै ाररक स्वततंु ्रता ने कम्यपू नस्ट िाटी से बाहर का रास्ता पदखाया। अपतला यसू फ नाम के इस हगंु री कपव का जन्म ११ अप्रैल १९०५ को एक साबन फै क्ट्री के मजदरू ऐरन यसू फ और पकसान की बटे ी बोलबला िोज के िररवार मंे हआु था। तीन साल की उम्र में पिता के घर त्याग दने े के बाद, दो बपे टयों और एक बटे े के पनवााह मंे अक्षम माँा बोलबला ने बच्चों को अनाथालय मंे दे पदया। यहााँ अपतला को सअू र चराने तक का काम करना िडा। यहाँा के नारकीय जीवन से उकताकर बालक अपतला मााँ के िास आ गया। लाचार और अशि मााँ काम के बोझ और कैं सर से पसफर् ४३ साल की उम्र में चल बसीं। बीच के पदनों में, नवसा ब्रेकडाउन के पशकार बालक अपतला ने नौ साल मंे ही खदकशी की कोपशश की थी। रोज- ब-रोज बचने के इस दौर की जद्दोजहद को याद करते हएु अपतला आत्मवतृ ्त में पलखते हैं पक कई बार ऐसा हुआ पक भोजन के पलए कतार में नौ बजे रात को लगने के बाद, दसू रे पदन साढे आठ बजे बारी आने िर िता चलता पक खाना खात्मा हो चका ह।ै जीपवका मंे अिनी माँा की हरसभंु व मदद की। पवलाग पसनेमा में ताजा िानी बचे ने का काम पकया। जलावन के पलए कछ भी न रहने िर लडकी और कोयला चराया। अिनी उम्र के बच्चों के पलए रंुगीन कागज के पखलौने बनाकर बेच।े टोकरी और िासाल ढोये। अपतला के इन हालात के बरअक्ट्स पहदंु ी कथाकार शलै शे मपटयानी, िजंु ाबी के कज्जाक जहीर ही याद आते ह।ैं सामापजक व्यवस्था में संतु लन की पजस चाहत से इन लोगों की आस्था समाजवाद या माक्र्सवाद से जडती ह,ै वह जीवन से उनका मानवीय सरोकार ह।ै यह पवचारणीय है पक लगभग ऐसी ही पस्थपत से पनकले दपलत लखे कों में, वसै ी आस्था की जगह प्रपतशोध और आवशे क्ट्यों होता है ? भला ऐसी त्रासद व कारुपणक स्मपृ त की छाि अपमट कै से न रह।े इन्हीं अनभवों ने अपतला की रचनाशीलता का भावलोक तयै ार पकया। आकपस्मक नहीं पक लागोस हटवानी ने इनकी कपवताओंु को, िरू ी यद्धोत्तर िीढी के पलए दस्तावजे कहा। यथाथा के गहरे और सघन बोध के साथ वचै ाररक स्वतंतु ्रता




































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