कोई ख़त लेकर के प़िोसी के घर आया होगा P a g e | 139 इस गमु लस्ताँ की यही रीत है ऐ र्ाख़-ए-गुल जलु ाई 2023 तू ने जजस फू ल को पाला वो तो पराया होगा ददल की ककस्मत ही में मलक्खा था अधं रे ा र्ायद वनाश मजस्जद का ददया तो ककस ने बझु ाया होगा गुल से मलपटी हुई नततली को चगरा कर देखो आचँ धयो तमु ने ही तो दरख़्तों को चगराया होगा खेलने के मलए बहुत बच्चे ननकल आए होंगे चाँद अब उस की गली मंे उतर आया होगा तमु परदेस में मत याद करो अपना मकाँ अब के बाररर् ने तो उसे तो़ि चगराया होगा 154. पंकज र्माश चनु -चनु समटे े हैं, ये कु छ बबखरे हुए अल्फाज़, बबखरे प़िे हंै हर तरफ र्ब्दों के मोती जजन्हंे चनु कर मैं कपवताएँ बुन लेता हूँ हफश की पोर्ीदगी और ज़रानाबाज़ी में अपने उम्दा अल्फाज़ों को चनु लेता हूँ महकते हंै हँस कर कभी, उं गली थामे ले जाते हंै कभी वक़्त के उस पार. सासँ लेते हैं सीने मंे कभी, स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
कदमों को देते हंै कभी सुस्त कभी तजे ़ चाल P a g e | 140 ख़्वाबों मंे बोलते हैं मझु से, जलु ाई 2023 ख़यालों मंे करते हंै कु छ खट्टी कु छ मीठी बात ये कु छ बबखरे हुए अल्फाज़, सोचते हंै कभी. कभी ये मुझको ख़दु समझाते रौर्न जहाँ से ये ही ममलवाते, पछू ते हैं ये कभी. कभी ख़दु मझु को बतलाते ख़रु ्बू की तरह ये हर-सू आ जाते, गनु गनु ा कर ये दरू हर ग़म मुझसे हटा जाते लहरों की तरह कभी आते कभी जाते, यादों की वादी से करके आते ये मुझ तक परवाज़ सोच-सोच कभी ददल ये होता हैरान, थो़िे थे अभी ये, अभी इतने कै से ये बढते जाते ये कु छ बबखरे हुए अल्फाज़, ख़बू सरू त गुलदस्ता बन साथ ननभाते,सही राह ददखाते 155. अपव ओबरे ॉय कीमत यँू ही नही बढती रत्नों को ज़िना प़िता है मसर पर ताज सजाने को ककतनो से ल़िना प़िता है ऐसे ही नहीं उगता सोना जाकर के देखो खेतों में स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 141 बीज को धरती के अन्तर मंे जाकर स़िना प़िता है..!! 156. दीजप्त मसन्हा नग्न पैर मंे है चले उससे ररस्ता पानी कह रहे हैं मरे े गरीबी की कहानी चलते पथरा गए जब पाव मेरे खली पेट सूखी जबु ां आखं ों का पानी साथ कहदे वे ददश मंे मेरे सोच रही थी क्या इतनी महेंगी है जजदं ा पेट कक आग तक बझु ा ना पा रहा आखं ों का पानी मौत न तय हुई जब करीब आने को मरे े र्ायद कु छ भखू ा तन को दे दे ये बरसात का पानी यही है गरीबों के सांस की कहानी आसं ू तो झर झर करते ही रहते हंै पर प्यासी रे जातीहै गरीब की जजदं गी. स्पदं न अंक 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
157. गमु नाम पवरासत – रचना दीक्षित P a g e | 142 सददयों परु ानी, टू टती चगरती, जलु ाई 2023 बजे ान ईमारत और हम... ख़िी कर देते हंै उसके चारों ओर एक चहारदीवारी घोपषत करवा देते हैं उसे \"धरोहर\" कभी हमारे घर की जीती जागती पवरासत तगं आकर हमसे ही खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर इक चहारददवारी ककतनी ही बार उज़िने बसने की दास्ताँ बयां करती हैं वो सददयों परु ानी टू टती चगरती बजे ान ईमारत पर अपने ही घर की पवरासत के चहे रे पर पढ नहीं पाते उज़िने, बसने और बबग़िने की जद्दोजहद की लकीरें परु ाने अवर्षे ों को जीवंत करने की कवायत मंे उन इमारतों को उनका चहे रा लौटाने को चचनाई में लगाते हैं गोंद, चनू ा, सकु ी स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 143 अपनी पवरासत की कमजोर, कापं ती, टू टती, चरमराती हड्डडयाँ नहीं नजर आती कभी ख्वाब मंे कभी चमकाने को खडं हर की सरू त पलस्तर करके चढा देते हैं मोटी मोटी परतों मंे सगं मरमर का पाउडर, बेल का र्ीरा, उ़िद की दाल अपने घरों में नहीं नसीब होती दो जनू की रोटी उन्हें रौर्न घरों के इन्हीं ककन्हीं कमरों के चकाचौंध अधं ेरों में बसती हंै हमारी अपनी वो गमु नाम पवरासतें 158. पकं ज र्माश जब आप अपने दृजटटकोण को प्रनतस्पधी मानमसकता से योगदान पर कें दद्रत करते हंै, तो एक गहरा पररवतनश होता है ..... जीवन एक उत्सव बन जाता है। दसू रों को हारने अथवा प्रनतद्वंद्पवयों के रूप मंे देखने की बजाय, आप उन्हंे अपनी यारा में सभं ापवत सहयोगी अथवा स्थाई सहयोगी के रूप मंे देखना र्रु ू करते हंै तो जोर दसू रों को पछा़िने से हटकर उनका ददल जीतने पर होता है। प्रनतयोचगता अक्सर प्रनतद्वदं ्पवता, तलु ना और दसू रों से आगे ननकलने के ननरंतर प्रयास की भावना पैदा करती है। यह तनाव और असतं ोष के एक सतत चक्र को जन्म दे सकता है। हालाकँ क, जब आप अपनी ऊजाश को अपने आसपास की दनु नया में योगदान करने के मलए पनु ननदश ेमर्त करते हंै, तो उद्देश्य और पनू तश की एक नई भावना उभरती है। स्पंदन अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 144 इसमलए, ननरंतर प्रनतस्पधाश की आवश्यकता को छो़ि दें और योगदान की मानमसकता को अपनाए।ं ददल जीतने और सकारात्मक प्रभाव डालने के साथ आने वाली खरु ्ी और तजृ प्त को गले लगाओ। जीवन को एकता, ज़ु िाव और सामदू हक पवकास का उत्सव बनने दंे। 159. योग क्या है - पवकास के र्रवानी र्रीर से मन मन से आत्मा आत्मा से भी आगे एक खोज है अ से उ उ से म और म से भी आगे एक खोज है गंगा से जमनु ा जमुना से सरस्वती और सरस्वती से भी आगे एक खोज है मानव से गुरु एक खोज है गरु ु से सतं संत से भी आगे धरती से आकार् आकार् से पाताल पाताल से भी एक खोज है स्पंदन अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
आयावश तश से भारत P a g e | 145 भारत से इंडडया इंडडया से भी आगे जलु ाई 2023 दहन्दसु ्तानी खोज है मै से तमु तुम से हम हम से भी आगे खोज है ब्रह्मा से पवटणु पवटणु से महेर् महेर् से भी आगे खोज है 160. योग ददवस - नीलम पाठक र्ून्य पथ में है अके ला र्ान्त है ,एकान्त है ,पवश्रातं है र्नू ्य से ही आदद है र्नू ्य से ही अन्त है ममल गई जो साथ गणना र्नू ्य ही जीवन्त है एक सगं यदद जा ममला दहाई का प्रारंभ है र्नू ्य के संग र्ून्य बढते पररसाख्य ये अनन्त हंै योग भी है जो़िना मन मोह को है तो़िना हर सांस में भगवान है सांसों के साथ जो़िना स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
ध्यान है ,पवज्ञान है,अन्तमश न की P a g e | 146 पहचान है जुलाई 2023 योग योगी की कला से भारत देर् महान है। जनू इक्कीस आ गया पवश्व मंे यह छा गया योग में जो लीन हंै कमश मंे तल्लीन हंै भाग्य को मटु ्ठी में बांधे ददखते नहीं गमगीन हैं र्ान्त हैं, स्वस्थ हैं, स्फू नतश बदे हसाब है ये योग की पहचान है, ये योग की पहचान है।। 161. डा मनोरमा मसहं आईना सच तो ददखाता है लेककन गुजरा वक़्त नही,ं तस्वीरंे तो गजु रे हुए वक़्त को कै द करतीं हंै, और वापस उस वक़्त मंे बस जाती हैं, यादंे बनकर!! 162. दीजप्त मसन्हा ज़रा देखो आईना कै सा धीरे से स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
मुस्कु रा रहा है P a g e | 147 र्ायद आपकी बातंे सुनकर जलु ाई 2023 वो भी देखो र्माश रहा है धीरे से कहो सखखयाँ ना सनु ले पपया ममलन को उनका ददल भी चाह रहा है.... 163. पंकज र्माश बंद करो र्ोर, बातंे रुक जाएं, आओ चपु चाप, इस ददल की आवाज़ सुनंे। सुनो ऐ जजन्दगी, तस्वीरें बोलतीं हैं, इन रंग-बबरंगी चचरों मंे अनके ों यादंे बसी हैं। देखो वहां, मुस्कानों की एक बस्ती है, खेल रही हैं ख्वादहर्ों की मस्ती है। प्यार की छाया बबखरी हुई यहा,ं ददल की गहराइयों मंे अनंत उम्मीदें बसी हंै। मौसमों के रंग देखो जो बदलते हैं, इक ददन धपू है, दसू रे ददन बरसातें हंै। बहती हैं सगं ीतों की लहरें यहां, जीवन की स्वखणमश गाथा बसी है। चलो ऐसा करंे, कदम बढा लंे, स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
जजन्दगी के रंगों मंे खुद को बसा लंे। P a g e | 148 तस्वीरें बोलतीं हंै, आपको बता रही,ं जलु ाई 2023 जो रंग हंै खोए हुए, उन्हें कफर से जी लें। सनु ो ऐ जजन्दगी, तस्वीरंे बोलतीं हंै, इन अनेक रंगों मंे छु पी है सबकी कहानी। बस आप देखो, सुनो और महसूस करो, यह जज़न्दगी है, खदु को आपको सवं ार रहीं। 164. तस्वीर - पप्रयकं ा श्रीवास्तव घर की दीवार पर टंगी , ये मसफश एक तस्वीर नहीं है । चदं न की माला से सजी, ये मसफश एक याद नहीं है ।। ये मेरे ददन की र्रु ुआत , वाली तस्वीर है । ये मेरी चनै की नीदं ों वाली, तस्वीर है।। यादों का एक पूरा पुमलदं ा, ये तस्वीर है । मेरे अजस्तत्व के होने की वजह, भी ये तस्वीर है।। मरे े जन्मदाता, मरे े मगं लाकांिी, मझु े हौसला देत,े मरे ेआंसू पोंछते मेरी पीठ थपथपाते, ये मेरे पपता की तस्वीर है ।। स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
165. सधु ा टेरी P a g e | 149 हामसल नहीं है कु छ भी जुलाई 2023 पर तकरीर चल रही है। ददल के अधं ेरे गभश मंे, इक उम्मीद पल रही है। देखती हूं तो, उसकी आखं ों मंे तस्वीर है मेरी, बहुत धधंु ली परु ानी, अब पहचान में नहीं मरे ी, कहा नहीं है उसने, पर सनु रही हूं म,ंै मेरी तस्वीर उसकी तकदीर बन रही है। 166. राजश्री मरे े कमरे के एक कोने मंे ख़िी लोहे की अलमारी परु ानी, थी वो संभली इकलौती ननर्ानी, खोलते ही यादआती नीचपे पे रों के दबी तस्वीर , कहतीमरे ी कहानी, वही मसु ्कराती जोडी ़ जजसे देखकर स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
थी जान मंे जान आती, P a g e | 150 प्यार भरी वही आवाज जलु ाई 2023 मरे े कानों में गजंू ती मझु े चौंकाती, मअै पनआे प को समझाती, आखों से झलकते, अतीत की यादों के पानी को पसीने मंेममलाती गमु समु खडी ़ उसी कोने मंे बस लेकर तस्वीर अपने हाथ मंे माता पपता की।। 167. आगोर् - रचना दीक्षित रात के आगोर् से सवरे ा ननकल गया, समदं र को छो़ि कर ककनारा ननकल गया रेत की सजे पे चादं नी रोया करी, छो़ि कर दररया उसे बसे हारा ननकल गया सोई रही ज़मी,ं आसमाँ सोया रहा, चाँद तारों का सारा नज़ारा ननकल गया ठूं ठ पर यूँ ही धपू दठठकी सलु गती रही, साया ककसी का थका हारा ननकल गया गगंू े दर की मरे े सांकल बजा के रात, स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 151 कु दरत का कोई इर्ारा ननकल गया घलु ती रही ममसरी कानों में सारी रात, हुई सबु ह तो वो आवारा बंजारा ननकल गया बाँहों मंे उसकी आऊं , पपघल जाऊं , ख्वाब ये मेरा कं वारा ननकल गया मरे ी तस्वीर पे अपने लब रख कर, मेरे इश्क का वो मारा ननकल गया 168. सच की तस्वीर - नीलम पाठक चाहती हूँ एक नई तस्वीर बनाना ढूढती हो सत्य को गर ममल जाए दठकाना रंग ब्ररु ् हाथ में, पर अक्र् नहीं है र्ायद इस युग में सच का अजस्तत्व नहीं है। तस्वीर नहीं पास है सतयगु की बात है खोलते ककवा़ि ही ममलता था हर जगह अब ढूढती कफर रही ममलता नहीं है। स्पदं न अंक 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
उके रती हूँ अक्र् P a g e | 152 पर सच नहीं बना तस्वीर हो ककसी के पास जलु ाई 2023 प्लीज भजे ना। 169. राजश्री कै नवास तरे ी तस्वीर बनाता हूं कु छ पल ननहारता हूं, कफर ममटाता हूं गहरे सोच में डू ब जाता हूं वो बात कहां! जो तेरी सरू त में देख पाता हूं, सब झठू ा सा लगता है, हकीकत कहां उके र पाता हूं, ककस ककस अदा को अजं ाम दं,ू ककन ककन रंगों का ननखार दं,ू इस कागज के कै नवास पर, जो मरू त छायी है ददलो ददमाग पर स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
उसे हू -ब-हू उतार दं।ू P a g e | 153 170. पकं ज र्माश जुलाई 2023 अदं ाज़ उनका , उनकी ख़ास है अदाएं, जैसे ठं डा इक झोंका, मस्तानी सा हवाए।ं मुस्कान की झलक, सुरमई सी ये आखँ ंे, देख अदं ाज़ उनका खखल जाती मेरी बाछं ंे । देखो ये अदं ाज़ उनका, है रंगीन और नया, चारों ओर उनकी आभा चमकती है सदा। मरूधरा पर मसु ्कान खखलाते हैं वो हर पल, उमगं ों से भर देते हैं मेरे जीवन का हर तल। बातें करते हैं देखो इतनी अदा से लगातार, अदं ाज़ कु छ ऐसा कक हो जाता उनसे प्यार। मानों मेरी इन कपवताओं में रंग भरते हैं वो, र्ब्दों को ऐसे सजाते हंै मानो नाचते हैं वो। सुरों की मधरु ता, आवाज़ ने बांधा है समां, अदं ाज़ उनका, जगाए मोहब्बत के अरमा।ं छू जाता है मरे े ददल को उनका हर बोल, खो देते हंै हम अपनी हदें करते वो कमाल। जीने का अदं ाज़, वो खरु ् रहने की कला, चहे रे पर मानों खमु र्यों का रंग हो मला। चमकता है चहे रा जैसे मसतारे आसमान मंे, अदं ाज़ उनका, अद्भतु जीवन के ख़ज़ाने में। स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 154 उनकी हंसी की गमाशहट, उनकी मधरु सदा, छू जाती हंै ददल को, उनकी अलबेली अदा। फै ली जैसे चदं न की खरु ्बू, फू लों की छाया, यह अदं ाज़ उनका, 'कमळ' सबको है भाया। 171. दीजप्त मसन्हा लंबी सैर ददर्ा हीन बस यहीं हवाएं के साथ बादलों संग मस्ती करते चादं से आखं ममचौली करते उमर से लंबी स़िको पर ककतनी बदल चकु ी है यहदनु नया इतनी सारी ऊं ची इमारात मानो न्यूयॉकश र्हर रंेगती स़िको पर दौ़िती गाडड़ यां सभी जल्दी बदलने को तयै ार कोई र्ायद ये भी नहीं जानता कहाँ से आया और कहाँ जाना है... 172. पकं ज र्माश स्पंदन अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
मदु ्दतों बाद आज खदु से मलु ाकात हुई, P a g e | 155 परु ानी यादों के संग कु छ नयी सी बात हुई। जुलाई 2023 वक्त की थी कमी तो बस इतना समझ आया यही इक र्ख्स है जजसने हरदम साथ ननभाया ददल मंे जजसने हर राज को दफन भी ककया जरूरत पर बबना मागं े सहारा भी ददया खदु से ज्यादा नहीं खदु को कोई समझ सकता हुनर अपना कोई, अपना ही है समझ सकता 173. पकं ज र्माश घटु न की चभु ती हवाओं मंे ठीक हूँ गमों की जलती कफजाओं मंे ठीक हूँ खमु र्यों से दरू रयां रहना ही बेहतर हैं मंै ददों की सलु गती पनाहों में ठीक हूँ दआु ओं की ख्वादहर् नहीं रही अब मंै अपनों की दी बद्दआु ओं मंे ठीक हूँ ना झूठी हंसी चादहए ना झठू ी खरु ्ी मंै ददल की सलु गती आहों मंे ठीक हूँ ना चादहए कोई कं धा दो पल के मलए मैं सहमा सा खदु की बांहों मंे ठीक हूँ ना चादहए ये आग बरसाते हुए बादल ददश से मससकते इन धआु ं मंे ठीक हूँ स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
खमु र्यों से दरू रयां रखना ही बेहतर हैं P a g e | 156 मैं ददों की सलु गती पनाहों में ठीक हूँ जुलाई 2023 174. अपव ओबरे ॉय रेत पे नक़्र् बनाते हुए, थक जाते हैं ख़्वाब आँखों मंे सजाते हुए, थक जाते हंै यूँ ही कब्रों में नहीं सोए, थके हारे बदन लोग दनु नया से ननभाते हुए, थक जाते हैं मेहरबाँ कोई नहीं र्हर में, इक तेरे मसवा यूँ तो हम हाथ ममलाते हुए, थक जाते हैं छो़ि जाते हैं वही लोग, क़िे वक़्त मंे क्यों हम जजन्हें अपना बताते हुए, थक जाते हैं लौट आओ न ककसी रोज़, ऐ जाने वालो हम ग़म-ए-दहज्र छु पाते हुए, थक जाते हैं उन के सीनों मंे भी होते हैं, तलातमु ग़म के वो जो औरों को हँसाते हुए, थक जाते हंै..!! 175. ख्वाब और ख़ामोर्ी - रचना दीक्षित उजाले रोर्नी से ममल, धपू में घलु ममल जो गये स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
बहे द नाजुक कु छ ख्वाब हमारे, P a g e | 157 होर् के आगोर् में बहे ोर् हो गये जलु ाई 2023 भूख की फसल उगी ही थी अभी, वो आ के जुबाँ पे चरस बो गये मौत भी इस कदर ममली हमसे, कांपते कांपते खजं र भी रो गये आवाज़ ननकली भी तो ऐसे, ज्यों चीख के पावँ खो गये ध़िकने थम गई जब हमारी, हम सासँ ों के सहारे हो गये अचं धयारे ओढ मसयाही की चादर, अमावस के चाँद हो गये सन्नाटे की सतह पर तब, गुमनाम ख़ामोर्ी के लब खो गये 176. पंकज र्माश बबना र्ब्दों के स्पर्श करती हंै, कै नवास पर मरे ी भावनाएं। रंगों के जहाज़ उ़िाता हूं म,ंै पवचारों के परमाणु तेरे तवज्जो में। सपनों की उ़िने का है माध्यम, कै नवास पर मेरी ध़िकनें है ये तूमलका। अनचगनत आकार् मंे बहती हैं, ख़्वाबों की रेखाएं मेरी इन रंगों मंे। मानों जीवन की गनत को रोकती हैं, कै नवास पर रंगों से मलखी मरे ी कपवताएं। स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
इस रंगों के अद्भतु समागम में जीने को, P a g e | 158 मंै चचरों की दनु नया में खो जाता हूँ। जलु ाई 2023 एक पल के मलए जब लेता हूँ मैं पवराम, कै नवास पर अकं कत होती मरे ी गहराईयाँ। कपवताओं के आगे झुकता है समय, और मैं रचता रहता हूँ ननत नई कहाननया।ँ कै नवास पर जीवन का रंग भरता हूँ, मंै मलखता हूँ कपवताओं की रातें। र्ब्दों के पवतश पर कफरता हूँ, और खदु को डु बो देता हूँ रंगों की बाररर् में। 177. पकं ज र्माश पवडबं ना है धन का रंग कै सा सबको चढा हुआ, देखो के वल दौलत नजरों में उठती बार - बार। चाहे ररश्ते अनमोल हों, पर आज हंै सब बेजार, आज के मतलबी ददलों का बस पैसा है सरकार। पसै े के आगे सभी नाचते - तामलयाँ बजती हंै, पररवाररक ररश्तों का बस ढोंग रचा जाता है। ररश्तों को छो़ि, सबको बस पैसे से ही है प्यार, आज तो पैसे वालों का ही बस होता है सत्कार। सम्पपत्त के आगे ररश्ते की गौण हंै अहममयतंे, पवपपत्त आए तो सभी संबधं ी कन्नी काट लेते हंै । आचथकश रुप से कमजोर नहीं हमारे ररश्तदे ार, मसफश स्वाथश की पजू ा होती , ररश्ते बने व्यापार। स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 159 178. राजश्री 179. गौरैय्या – पप्रयकं ा श्रीवास्तव आज कल गौरैया कम ही ददखती है। बहुत ददनो बाद, अपने बगीचे में मनै े, नन्ही सी गौरैया को देखा । फु दकती हुई, कभी इस डाल कभी उस डाल, सच कहूं तो उसकी चीं ची की आवाज से ही , उस ददन नीदं खलु ी थी।। स्पदं न अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
सुबह सबु ह चाय का कप, P a g e | 160 ले कर मैं भी झूले पर जा बठै ी। जलु ाई 2023 उसे ननहारने लगी।। एक चच़िा भी आ गया, कफर तो रोज वो आने लगी। मंै भी उत्सुक सी देखती रहती।। एक ददन मनैं े उन्हें, नतनके उठाते देखा, नीम के प़े ि पर अब एक छोटा सा, घोंसला बन गया। दोनो चच़िी और चच़िा, र्ाम होते ही यहीं आ जाते।। एक सबु ह गौरैया थो़िी बचे नै थी, अब घोंसले मंे अडं े ददख रहे थे, र्ायद तीन थ।े हफ्ते दस ददन बाद छोटे छोटे, चजूं े ननकल आए।। चच़िा दाना ले कर आता, और उन्हंे खखलाता, उन्हंे उ़िना भी सीखाता। एक ददन सुबह देखा तो घोंसला, जमीन पर चगरा था।। चचड़िया और चच़िा नही थे, छोटे छोटे टू टे हुए पखं , और नतनके बबखरे प़िे थे। समझते देर न लगी की , यहां क्या हुआ होगा।। मन उदास था, प्रकृ नत की यह प्रवनृ त, स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
मुझे पसदं नही आई। P a g e | 161 ब़िा छोटे को ग्रास बना ले , जलु ाई 2023 यह उचचत नहीं लगा।। आज छुः सात महीने बाद , एक बार कफर गौरैया घर बना रही। इस बार ननगरानी की जजम्मेदारी, मैने संभाल रखी है .... 180. गौरैय्या – नीलम पाठक मेरे घर के अतं स में एक गौरैया सी बटे ी थी फु दक फु दक कर उछलकू द कर सबका ददल बहलाती थी अपने मोहक जाल मंे हम सबको ,कै से -कै से भरमाती थी। उस गौरैया के कारण ही मीठा-मीठा सा गजंु न था, उसके रहते घर के कण-कण मंे मधु मकरंद, सुगधं था मेरे अमलदं ननलय में अब प्यारा सा एक पपजं रा है। यादों को अब कै द ककया है उसका दरू बसरे ा है। एक िण दरू न रहती थी स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
मा-ं मां कह कर बुलाती थी P a g e | 162 याद हमंे उस गौरैया की हर पल बहुत सताती है जलु ाई 2023 उ़ि गई है जो दरू देर् मंे याद वहां भी करती है प्रथम नी़ि मां के घर का अनतर्य प्यारा होता है। दजू ा बना आलना जजसमंे जीवन सारा होता है ऐसी प्यारी गौरैयों को एक मां का आर्ीष है रहें चहकती उस उपवन में अब जजसमंे उनका नी़ि है। 181. दीजप्त मसन्हा सबु ह-सबु ह काम से रुखसत होकर मंै देखती इक चचरैया रोज आती दाना चगु ती कफर कहीं उ़ि जाती मेरी ददनचररया मंे वो इक पवर्षे अनतचथ बन जाती इक ददन ऐसा आया गोराया के सगं चार चजु ो को पाया मां की ममता की याद आयी कै से माँ हमंे प्यार से स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 163 खखलाती थी और कफर हम सब अपने कम्मो मंे लग जाते माँ भी चनै की नीदं सो जाती थी. 182. डा सौममर मखु जी एक छोटा चजू ा रो रहा है और अपनी माँ को बलु ा रहा है। माँ ने उसे घोंसले से उ़िते हुए देखा, सोचो तो, मैं दौ़िता नही,ं ददल के जज्बातों को रोकने के मलए वो बेवकू फ पररदं ा उ़ि गया, वह जल्दी से अपनी माँ की करुण आखँ ों को देखने गया। उस क़िी के अन्तराल पर माँ की ममता की वेदना से कापँ उठे पवर्ाल भवन-गहृ , यदद जीवन का भ्रम पाले रहो, तो पखं ों पर बैठो और कू दो स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 164 183. रचना दीक्षित स्पंदन अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 165 स्पंदन अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
184. रंजीता सक्सने ा P a g e | 166 न रूठा कर मुझसे यूँ मरे े हमसफर, जलु ाई 2023 कक तुझको नहीं मेरे ईश्क की कदर, ककस कदर जी रहंे हंै तरे ी बरे ुख़ी सह कर, मेरे हाल की तुझे नहीं है ख़बर, जो रूठ गये कभी हम मसतमगर, ढूँढते रहोगे हर गली हर र्हर, खो जाऐगं े हम तेरी महकफलों से , रह जाऐंगे बस यादों के ननर्ाँ बनकर। 185. गौरैया - डा मनोरमा मसहं बचपन लौट आता है गौरैया को देख कर, चंू चंू करती, इधर-उधर फु दकती, अपनी सारी बातंे इन दो र्ब्दों में करती, ककतनी र्दु ्ध और उच्च स्तरीय ऊजाश से यकु ्त हो तमु , तमु ्हंे देख कर अपने ही ननकट, अपने घर मंे ही तमु ्हारा घर बसाने का मन करता है परन्तु तुम र्ायद रूटट हो गई हो हमस,े सही भी है वो आगँ न, वो घर में नीम का प़े ि जहां तमु ्हारा बसेरा था , सब प्रगनत और पवकास के नाम से, नटट कर ददये हमने, प्रकृ नत से दरू हुए तो तुमसे तो दरू होना ही था लेककन पश्चाताप का भाव मलये स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 167 भूल सधु ार के मलए तैयार हंै हम, तमु ्हारे संरिण के मलए, हर जतन कर, तमु ्हारे साथ खले न,े तुम्हारी कफर वही चूं चूं ,स्वयं और अपनी भावी पीदढयों को को सनु ाने की महती जजम्मेदारी है हमारी, मेरी प्यारी गौरैया हमसे रुटट न होना, हमसे दरू न जाना!! 186. अटू ट पवश्वास – राजश्री हर रोज की तरह घर के अहाते में बने बरामदे मंे प़िी आराम कु रसी पर बैठकर चाय की चजु स्कयां ले रही थी, बाहे हाथ की ओर मधमु ालती की घनी लता ,चपं ा के प़े ि से मलपटी अपना प्यार जता रही थी, मनंै े एक नाररयल की जटाओं से बना घोंसला चम्पा की टहनी पर लटका ददया था, चाहकर कक कोई गौरेया आकर अपना घर बसा लें, पक्षियों को दाना डालना ,पानी रखना , प्यार ़ करना, बचपन से ही जह़न में बसा था। पडोस मंे दीप्ती ने भी अपने घर के पपछवाडे मंे चार- पांच पक्षियों के जोडे पाल रखे थे, उनको फु दकते, गुनगनु ाते देख मन करता, इस घोसलंे के ददन कब आएगंे, सहसा मरे े कानों में मीठी -मीठी, चंू चंू की आवाज सुनाई प़िी, मैं दौड कर अपने घोंसले के पास गयी, झाकं कर देखा, ननरार्ा ही हाथ लगी, घोंसला खालीथा,इधर - उधर नजर दौ़िाई दो - तीन फु ट की दरू ी पर घनी पपत्तयों के बीच नतनको से बना घोंसला ,उसमंे नन्हंे- नन्हें दो बच्च,े छोटे- छोटे पखं उनके र्रीर पर ददखाई दे रहे थे, तभी दो पक्षियों का जो़िा मेरे इरद- चगरद म़िराने लगा, जोर -जोर से ची -चीं करने लगा।मझु े समझते देर नहीं लगी कक यही अपना पररवार बसाये हुए है। मरे ा मन खरु ्ी से झूम रहा था , अपने पररश्रम से बनाये अपने घोंसले में अपने बच्चों को पालते इस गौरेया पररवार को देख। मन मजस्तटक मंे एक लहर उठ रही थी,जसै े कह रही हो - इन पक्षियों को अपने कडे़ पररश्रम पर ही अटू ट पवश्वास है। 187. पंकज र्माश स्पदं न अंक 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 168 जीवन एक अद्पवतीय यारा है जो हमें अनचगनत जस्थनतयों में ले जाती है। हमारी मानमसकता और दृजटटकोण हमारे जीवन के प्रनत अहम भूममका ननभाते हैं। जब हम ककसी भी जस्थनत पर अफसोस करते हैं, तो हम अपने आप को उस जस्थनत मंे दबा देते हैं और उससे सीखने और आगे बढने का अवसर खो देते हंै। जब हम अच्छी जस्थनत में होते हैं, तो हमें उसे अद्भुत और आनंददायक मानना चादहए। हमें धन्यवाद करना चादहए कक हमारे पास इससे अचधक कीमती वस्तुएं हैं और हमंे उस अवसर का सम्मान करना चादहए। इससे हमारी सोच सकारात्मक होती है और हमें आगे बढने के मलए प्रेररत करती है। पवपरीत रूप स,े ख़राब जस्थनत मंे होने पर हमें यह जानना चादहए कक यह एक अनुभव है, जो हमें सीखने और पवकमसत होने का अवसर प्रदान करता है। ककसी भी असामान्य पररजस्थनत में, हम अपनी आत्मपवश्वास को बढाने, सामररकता को पवकमसत करने और समस्याओं का समाधान खोजने के मलए सदैव तत्पर एवं प्रयासरत रहंे। 188. पकं ज र्माश यादों की लहरों में खो जाऊँ , कु छ इस तरह उनमें बह जाऊँ । एक बहे द हसीन ग़ज़ल बन के , उन मीठी यादों मंे मंै बह जाऊँ । जसै े कोई पतझ़ि की पंखडु ़ियों पर, रुदादा मलख गयी हो कपवता खबू सूरत। उसी तरह अपने इस ददल की पन्नों पर, तरे ी ये यादंे मलखता रहूँ मंै अनचगननत। हर सांस मलए तेरी यादों का यह अहसास, स्पंदन अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 169 क्योंकक यह यादें मेरे ददल के मलए हैं ख़ास। बीते हुए उन लम्हों के आगे ख़िा, मंै आधी दनु नया को भी भूल जाऊँ । तारों भरी इन एकाकी रातों में याद तरे ी आती, मरे े भीतर की इस मन वीणा को वो छू जाती। इन बीते लम्हों को र्ब्दों मंे रूपांतररत करती । तब तेरी वो हंसीं यादँे बन एक ग़ज़ल उभरती, तेरी यादों के गमलयारों में मैं खो जाता हूँ, ननउश द्देश्य पचथक की भांनत भटकता पाता हूँ। कफर से एक ग़ज़ल की सूरत मंे बह कर, कमळ यादें ख़दु को बयाँ कर जाता हूँ। 189. पलु – रचना दीक्षित एक पलु ने ददल लगाया भी तो पदहयों से, छोटे-ब़िे, मोटे-पतले ददल भले ही साफ रहा हो पर ददखने में एकदम काले देता रहा अपने चौ़िे सीने पर सबको सहारा, प्यार, ला़ि, दलु ार रौंदते रहे पदहये उसे हर दम नहीं ममला उसे एक पल भी आराम बदले में नहीं माँगा उसने कभी स्पदं न अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 170 सीमेंट, सररया, पानी, पेंट कभी सनु ा था उसने बबन मागं े मोती ममले मांगे ममले न भीख पर एक ददन टाटा, बजाज, मदहदं ्रा, मारुती, सबका प्यार सीने में दफन ककये अपनी ही मौत मर गया बचे ारा 190. पंकज र्माश प्रैजक्टकल लोगों का तो पता नहीं लेककन इमोर्नल लोगों के मलए ररश्ते में इससे ब़िी सज़ा और कु छ नहीं हो सकती कक जब वह ककसी का बहुत अपना हो और अचानक से उससे वह अपनेपन का हक छीन मलया जाय... तब न कु छ कहने को बनता है न करने को मसवाय बीते वक़्त को याद कर के इंतज़ार करने के अलावा और कु छ नहीं बचता... और यह भी सच है वह वक़्त कभी वापपस नहीं आएगा क्यकूं क जजसे रहना होता है वह कभी जाता नहीं और जो जाता है वह कभी आता नही.ं ..। 191. नीलम पाठक न जानूं क्यों कपवता आयी लोग कहे गम और तन्हाई, झकु जाती ननज चरण र्ारदे तब उसने दी हमें दहु ाई , स्पंदन अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
लोग कहे गम और तन्हाई। P a g e | 171 कपवता है या रुप र्ारदे जलु ाई 2023 क्यों करते रुसवा उसको, गम की तलु ना की कपवता से बहुत ब़िी है यह रुसवाई, न जानंू क्यों कपवता आयी लोग कहे गम और तन्हाई। र्ब्दों के जमघट ने मन में गीतों का यह रुप दे ददया, स्वच्छ लेखखनी चली एकदम कपवता यह बरबस मलखवाई, लोग कहे गम और तन्हाई। सब को गम ममलता दनु नया में नहीं खरु ्ी सबको ममल पाती , क्यों न सबको कपवता आयी लोग कहे गम और तन्हाई , न जानूं क्यों कपवता आयी लोग कहे गम और तन्हाई। 192. पकं ज र्माश चादं पर ग़ज़ल मलखँू मन में ये भाव भरे हुए, आगं न मंे रौर्नी की दलु ्हन झलू े अदाएं मलए। चादं नी की बाररर् मंे भर आये ददलों मंे ख्वाब, ददल के तारों की झकं ार का मधरु सगं ीत मलए। चाँद से ममलने की अमभलाषा है मन मंे, उसके संग खोने की ख्वादहर् मलए मलए। स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
ख़बू सरू त चादं से कह दो तुम, हमरे ्ा बने रहना, P a g e | 172 बबछ़िे ददल ममलाने की ये जजम्मेदारी मलए मलए। जलु ाई 2023 कै से इस चाँद की रौर्नी मंे जगमगाते हैं ये तारे, हर ददल को ममलाने-लुभाने की अदा मलए मलए। चांद की मोहब्बत में पंजक्त मंे उ़िते ख्वाबों के पररदं े, ददन ढलते ही ददल को बहकाने की माया मलए मलए। चादँ के साथ खो जाएँ हम ख्वाबों की दनु नया मंे, उसकी सदुं रता इस ननदं ्रा की धरा पर बबखेरंे हुए। चांद की रौर्नी से सजे है हर रात का ये आंगन, हर चहे रे पर खरु ्ी देने की ख़्वादहर् मलए मलए। सोचा चाँद पर मलखँू ग़ज़ल मैं आप सब के मलए, मगर र्ब्द कम प़ि गए कमळ तारीफ के मलए। 193. खबू सरू त - सधु ा टेरी एक उम्र है, नहीं खत है हकीकत का, कक तमु चादं हो, तुम में दाग है मोहब्बत का। एक उम्र है, नहीं आईना है खबू सूरती का कक तमु सुंदर हो, कामदेव से भी संदु र छु पके नजर उतारे तमु ्हारी एक बादल बदसूरती का एक उम्र है नहीं खत्म है हकीकत का स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 173 194. पकं ज र्माश हजारों ख्वाब हकीकत में बदलते है, तो लाखों टू ट भी जाते है, ये र्हर मुम्बई बहुत कु छ देता है, पर बहुत कु छ छीन भी लेता है. 195. चादँ को ख़त - सधु ा टेरी पप्रय चदं ा कै से हो, हम सब यहां कु र्लता से हंै आर्ा करते हंै आप सब भी निरों के साथ कु र्लता से होंगे। आज देवर्यनी एकादर्ी है, कु छ ददन बाद पखू णमश ा होगी और तुम्हारी खबू सूरती र्बाब पर होगी जैसे तीस साल की युवती की होती है। हर कोई तमु ्हे ही पछू रहा होगा, पूज रहा होगा, तुम्हारी मधरु चांदनी में बैठ ध्यान लगा रहा होगा। तो मनंै े सोचा अभी आपको थो़िी फु रसत होगी, जरा यंू ही गफु ्तगू कर लें। सुनो नही पढो तमु ्हारे नाते ररश्ते भी हमारी तरह हो गए हैं क्या? समझ ही नहीं आत,े ककसी के प्यारे मामा बन जाते हो, ककसी के महबूब। कोई ननहारता है तुम्हें, सराहता है तो कोई जलता है। कोई ननगो़िा चांद कहता है, कोई प्रमे ी चादं । ककसी को चांदनी लभु ाती है तमु ्हारी, ककसी को जलाती है। कल ककसी ने मलखा तुम्हारे बारे में कक तुम्हारी चांदनी से फफोले प़ि गए उनको। कोई भ्रममत है तमु ्हारी संुदरता से पर सनु ा है कइयों को दाग ददखता है तमु ्हारा। पर मझु े मरे ी मां ने बताया कक उनकी तरह तमु ्हारी अम्मा ने भी नजर का दटक्का लगाया है तुम्हारे नहीं तो ननगो़िी दनु नया बहुत नजर लगाती है। तुम ककसी की बातों मंे न आना मेरे हमराज मरे े दोस्त, जलते हंै सब हमसे। आज मैं भी बहुत अच्छी लग रही थी मां ने मरे े भी भी माथे की बाईं तरफ काला टीका लगाया पर झग़ि के मैने अब काम के पीछे कर ददया है। तमु देखा रात को, तब तक ये खत सरू ज ताऊ जी तुम तक पहुंचा देंगे अगर आज बरखा बआु ने उन्हंे घर आने ददया तो। पता है पपछले बरस ताऊ जी और बआु मंे झग़िा हुआ था थो़िा तब से ही तो जी जब स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 174 सावन में बुआ आती हंै तो घर काम ही आते हैं। वो न आए तो रात अम्मा घर के बाहर रखेंगी, पढ लेना। न मलया तो अम्मा को बोलगंू ी इस बार खीर न देंगी तमु ्हंे। ढेर सारा प्यार। बाकी सब तारों को यथानुसार। तुम्हारी गहरी वाली दोस्त सधु ा 196. चंदा मामा - पप्रयकं ा श्रीवास्तव चदं ा मामा बचपन में दधू पपलाते समय, मां कहती थी , \"चदं ा मामा आरे आवा , पारे आवा, नददया ककनारे आवा, सोने के कटोररया मंे , दधू भात ले ले आवा, बबुआ के मुंहवा मंे.. घुटु क.. घुटु क\"। तब चांद अपना लगता था, बबल्कु ल अपना।। पर आज चादं , एक सपना है । और चादं पर पहुंचना, हमारी अगली मजं जल।। चदं ्रयान बन रहे हैं , चादं पर जा रहे हैं । एक ददन हम वहां से , धरती को पकु ारेंगे।। \"धरती मईया आरे आवा, पारे आवा , स्पंदन अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 175 चदं ा मामा के दआु रे आवा, सोने की कटोररया मंे.........\" (हमने बचपन में दादी नानी से सुनी भोजपरु ी कपवता के कु छ दहस्से अपनी आज की रचना में डाले हैं) 197. चाँद – रचना दीक्षित वो कहते हंै कक चांद पर मलखो������������पर चांद पर तो वो मलखंे जो ढूंढते हंै उसे, आसमान मंे बादलों ☁☁ के पीछे, गली मोहल्लों और स़िकों ������ पर त्योहार मनाने को l त्योहार ������������������������������कफर चाहे ईद का हो, करवा चौथ हो या सकट चौथ का l मरे ा चादं तो मरे े पास होता है हरदम, जब चाहा उसे देखा और हो गया त्योहार l ददनभर रहता है वो मेरे पल्लू में रात को मो़िकर तककए के नीचे रख लेती हूं l कल रात......���������, रात नही.ं ... नही,ं आज सुबह चादं ने मझु े देखा, मेरी आखं ों की लाली ������ देख समझ गया l रात उमस भरी रात थी र्ायद नींद नहीं आई मुझे l बोल उठी म,ंै कार् रात और लंबी हो जाए, मैं एक भरपूर नींद ले पाऊं ������������ l चांद के चहे रे पर कु दटल मुस्कान ������������आई, देखती हूं बाहर अधं रे ा सा हो गया������������, सरू ज जाने कहां खो गया जानते हो आप लोग क्या हुआ होगा ? पढते समय आप भी एक बार बाहर नजर कफरा आना l बाहर अधं ेरा है... मतलब ... रात वाला नहीं...l सरू ज नहीं है, धपू भी नहीं है, रोर्नी भी नहीं है l आज सूरज के पास न तो उषा ककरण है, न ही रजश्म प्रभा l आज उसके साथ है अमावस ������������������������ जो चांद ने उसे भेजी है l देखो! देखो! सरू ज कै से इतने इत्मीनान से अमावस ओढ कर सो रहा है l��������� 198. चाँद - डा मनोरमा मसहं कभी देखती हूँ जब चाँद और सरू ज को, सोचती हूँ,तमु कब से हो नीले अम्बर मंे, तुमने देखा होगा महादेव को तपस्या करते हुए, दहमालय पर, तुम मर्व-माता पावतश ी के पववाह के सािी भी बने होगे, स्पंदन अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
तुमने प्रभु राम का वनवास भी देखा होगा, P a g e | 176 तमु राम-रावण युद्ध के भी सािी बने होगे, तमु ने वंदृ ावन मंे मुरलीधर की लीलाओं को भी देखा होगा, जलु ाई 2023 तुमने कु रुिेर मंे गीता उपदेर् को भी सुना होगा, तमु महाभारत के प्रचडं यदु ्ध के भी सािी बने होगे, तुमने आतताइयों से मनु पुरों को यदु ्ध करते देखा होगा, रणभमू म मंे माँ भारती की रिा हेतु अपने सम्राटों और महाराणाओं को देखा होगा, तमु तराइन और हल्दीघाटी यदु ्ध के सािी बने होगे, सोचती हूँ यदद धवन्यालेखन हो उस नाद का, तमु ्हारे पास, कफर वही पररजस्थनतयाँ आ ख़िी हो हमारे साथ, सत्य, न्याय और धमश के मलए मनु सतं ानों की वीरता और कीनतश के सािी बनोगे तमु !! 199. चाँद – नीलम पाठक नतममर ढल गई ,चन्दा छु पने चला वक्त खदु ही मंे करवट बदलने लगा। साथ चन्दा के मैं भी तो चलने लगी, रात दीपक सी यंू ही तो जलने लगी जजस्म मरे ा भी करवट बदलने लगा वक्त खदु ही मंे करवट बदलने लगा। साथ चन्दा के अगखणत तारे भी थे, रात कटने के वे भी सहारे ही थे, साथ मरे े भी अगखणत यादें ही थी, ददल जलाने को वे भी काफी ही थी, पौ फटने लगी ,रपव ननकलने लगा यादंे धमू मल प़िी,मंै भी उठने लगा स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 177 चन्दा छु पने लगा ,तारे छु प भी गये चादं अके ला रहा वे सहारे भी गये, मैं भटकने लगा चादं हंसने लगा, चांद को देखकर कर मंै बदलने लगा, चन्दा छु पने लगा,चन्दा छु पने लगा। 200. दीजप्त मसन्हा हमारा और चादं का है वादा तन्हाई मंे ममलने का है इरादा रात गहरी तो जरा हो जाने दो तारों को भी जरा सो जाने दो बदली तमु आसमान मंे छा जाना चदं ा को भी जरा समझा. जाना पुरवाई को सगं में लेकर आऊं गी प्यार में ममलन के गीत गाऊं गी 201. र्र्ी स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 178 202. र्र्ी 203. रचना दीक्षित मुझे मर्कायत है लोगों के दोगलेपन से ������������ उदाहरण – जानवर पालने वालों खास तौर पर कु त्ता पालने वालों या स़िक के कु त्तों के खाना खखलाने वालों स।े ,������������������������ मैं ने बचपन से घर पर कु त्ते देखे हैं नानी के घर में भी बाद मंे मरे े मायके में भी। मुद्दा ये है कक जब लोग बे सर परै की बहस करते हैं जानवरों को ले कर। एक बात साफ कर दं।ू न मझु े जानवरों से तकलीफ है न ही उनको पालने वालों से न ही उन्हें खखलाने वालों से ।������������������������ मुझे तकलीफ है उपरोक्त सभी के तौर तरीकों से। सोसायटी के ब़िे ब़िे लॉन ������������������स़िकंे सब जगह गंदगी फै लाते हैं लोगों की नजर बचा कर कफर बहस करते हैं। जब बोलो कक सोसायटी के गेट⛩⛩ स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 179 के बाहर खाना खखलाने के मलए एक सीमंेट का पक्का सा चबूतरा या गाय ������������के मलए हौद बनावा लेते हैं तो बोलते हंै ये बजे बु ान जानवर������������������������������������������ कहां जायेगा अब आती है मदु ्दे की बात –इस ककस्म की बातंे ज्यादातर वही करते हंै जो नॉन वेजजटेररयन हैं। अब सवाल ये है कक जब आप ककसी जानवर का मांस ������������खाते हंै तब वो बेजबु ान नहीं रहता। वो आपको अनुमनत देता है कक काट कर मुझे पका कर खा लो ������������������������������������������कफर मार कु त्ता ही बजे ुबान क्यों... क्योंकक वो कु त्ता है... ������कु त्ता कहीं का������������������ 204. चादँ की व्यथा अमावस की कथा - नीलम पाठक पूरे मास मंे एक ददवस गर सो जाता चादं नी*सगं हाहाकार मचे धरती पर लोग कहे आ गई अमावस * कोई नहीं होता र्ुभ काम गंगा जी मंे गोता खाते दान पुण्य खबू करवाते सोया था मैं प्रये सी साथ आया पाप *तुम्हारे हाथ उछलकू द समुद्र मचाता ज्वारभाटा रह रह आता मैं भी मदश तुम्हारे जैसा ददल मंे उठता प्रीत का झोंका ऐसी कै से जलन*तुम्हारी रात सहु ागन कर दी काली मैं भी बदला लेता हूं थो़िा थो़िा बढता हूं परू ा होने तक मैं सबको पन्द्रह ददन तरसाता हूं तब मंै पजू ा जाता हूं स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 180 चादं पखू णमश ा मेरा नाम नत मस्तक हो करते काम। 205. सादहत्य साधक समहू की छठी गोटठी का पववरण जो 29.06. 2023 को सपं न्न हुई सादहत्य साधक समूह की छठी गोटठी 29.06.2023 को A – 83 परै ामाउं ट गोल्फ फोरेस्टे में सपं न्न हुई। इस बठै क में जो साधक उपजस्थत रहे उनका पररचय इस प्रकार है – दीजप्त मसन्हा जी, नीलम पाठक जी, सधु ा टेरी जी, पंकज गुप्ता जी, ननरंजन श्रीवास्तव जी, डा मनोरमा मसहं जी, रंजीता सक्सेना जी, रचना दीक्षित जी एवं मंै स्वम।ं इस बार की बठै क मंे एक सदस्या र्र्ीप्रभा नतवारी जी ने भी दहस्सा मलया। र्र्ीप्रभा जी एक नवोददत ग़ज़लकारा है जो समहू के पटल पर तो मलखती रहती हैं परन्तु गोटठी मंे पहली बार ही मर्रकत की। सभी साधकों ने इस बात को स्वीकार की वह सभी गोटठी मंे आने को उत्सादहत रहते है यद्यपप इसके मलए उन्हंे 15 ददन की प्रतीिा रहती है। सभी सदस्यों ने यह भी सचू चत ककया कक समय समय पर जो टास्क होते है उससे उनके ननयममत लेखन के मलए प्रेरणा ममलती है। पपछले कु छ समय मंे एक अन्तािरी टास्क ददया गया था जजसमंे प्रनतभाचगयों को एक कपवता उस र्ब्द से स्वम मलखनी थी जजससे पहली कपवता समाप्त हुई हो। यह टास्क अत्यंत सफल रहा और जजसके पररणामस्वरूप 4 घटं े में 28 नयी कपवतायँे मलखी गयी जो की बहुत ही हषश का पवषय रहा। ऐसी आर्ा है की भपवटय मंे भी ऐसा उत्साह बना रहेगा। इस बार जो प्रमुख पवषय जो साधकों के संज्ञान में आये वह इस प्रकार है – टास्क में पवपवधता बनाये रखना आवश्यक है। अन्तािरी जसै े कायश कफर ददए जा सकते है उसके ननयम कानूनों पर भी स्पटटीकरण ददया गया जजससे भपवटय में कोई मतान्तर न रहे। सभी सदस्यों को यह भी स्पटट ककया गया कक सभी सदस्यों से यह अपेिा है कक पटल पर स्वरचचत रचनाएँ ही पोस्ट करंेगें। दसू रों के लेखन को आप कहीं अन्यंर पोस्ट कर सकते है पर इस पटल पर नही।ं सदस्यगण अपनी रचना के नीचे स्वरचचत अवश्य मलखंे। यदद ककसी बाहर के सादहत्यकार की रचना को उद्धतृ करना अत्यंत आवश्यक ही तो उस सादहत्यकार को क्रे डडट देते हुये सम्मान सदहत उसका नाम और पररचय भी मलखे। इसके पश्चात र्रु ू हुआ कपवता पाठ का मसलमसला जजसकी प्रतीिा सभी को रहती है। सभी सदस्यों मंे अपने कपवता पाठ से भाव पवभोर कर ददया। सभी रचनाकारों की प्रस्तुनतयों की पवडडयो ररकॉडडगां स्पंदन अंक 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 181 भी की गयी जो इस समूह के You Tube Channel – सादहत्य साधक मंच पर सनु ी जा सकता है। आप यदद इस ररपोटश को पढ रहे हंै तो आपसे अनुरोध है कक आप भी इस चनै ल को सब्सक्राइब अवश्य कर लें और अपनी सोसाइटी के रचनाकारों का प्रोत्सादहत करें। चनै ल का मलकं नीचे ददया गया है और इसके साथ ही QR Code भी ददया है जजसे स्कै न कर या मलकं पर जक्लक कर आप इस चनै ल पर आसानी से पहुँच सकते हैं। http://youtube.com/@sahitya-sadhak-manch इस बार की सभा में एक पवर्षे कायकश ्रम भी रखा गया था जजसमंे हमारी एक साधक रचना दीक्षित जी की एक पुस्तक “जीवाश्म” जो अभी प्रकामर्त हुई है का पुस्तक पवमोचन भी सदस्यों द्वारा ककया गया। सभी ने इस पसु ्तक के मलए रचना जी को र्ुभकामनाएं दीं। “जीवाश्म” कपवता संकलन पवज्ञान आधाररत कपवताओं का संकलन है रचना जी ने इस संकलन से तीन कपवताओं का पाठ भी ककया। स्वल्पाहार के पश्चात मीदटगं संपन्न हुई इस अपेिा से की र्ीघ्र ही कफर ममलेंगे। स्पदं न अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 182 स्पंदन अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 183 स्पंदन अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 184 स्पंदन अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 185 स्पंदन अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 186 206. रचना दीक्षित जी की पसु ्तक “जीवाश्म” का पवमोचन सादहत्य साधक समूह की 29.06. 2023 छठी गोटठी मंे इस बार एक पवर्षे कायकश ्रम का आयोजन ककया गया* जजसमंे वररटठ रचनाकार रचना दीक्षित जी की एक पुस्तक “जीवाश्म” जो अभी प्रकामर्त हुई है का पवमोचन इस समहू के उपजस्थत गणमान्य सदस्यों द्वारा ककया गया। सभी ने इस पसु ्तक के मलए रचना जी को र्ुभकामनाएं दीं। रचना जी ने इस सकं लन से तीन कपवताओं का पाठ भी इस आयोजन मंे ककया। जजसका सभी ने तामलयों से अमभनंदन ककया। “जीवाश्म” कपवता संकलन पवज्ञान आधाररत कपवताओं का संकलन है। इस पुस्तक की टैग लाइन है – “पवज्ञान वीचथकाओं मंे कपवता का पवचलन और पवन्यास” ।* अपने आमखु मंे रचना जी ने कहा है कक पवज्ञान में जीवन है या जीवन मंे पवज्ञान, जीवन पवज्ञानमय है या पवज्ञान जीवनमय, नहीं जानती। जानती हूं तो बस इतना कक पहली साँस से लेकर आखखरी सासँ तक, पहली ध़िकन से आखखरी ध़िकन तक, सजीव से ननजीव तक, हर एक स्पंदन मंे सब तरफ पवज्ञान ही पवज्ञान है l चारों तरफ ददखता, पसरा, फै ला सब पवज्ञान ही तो है l बस एक नज़र चादहए उसे पहचानने को उससे रूबरू होने को । ये संकलन बस उसी की एक कोमर्र् मार है l इस पुस्तक की प्रस्तावना मलखी है डॉ ऋपषपाल धीमान ने । डॉक्टर धीमान एक वजै ्ञाननक, कपव, सादहत्यकार और ग़ज़लकार हंै । आपकी पवज्ञान, सादहत्य कपवता और गज़ल की अनेकों पुस्तकंे दहदं ी व अगं ्रेजी मंे प्रकामर्त हंै । आपने बहुत सारी पसु ्तकों का संपादन ककया है। बहुत सारे राटट्रीय, अतं रराटट्रीय परु स्कार आपने अपने लेखन के बल पर अपने नाम ककए हंै जजसमंे सादहत्य अकादमी परु स्कार गजु रात 1996, 2012, 2019 और सादहत्य अकादमी परु स्कार 2018 जसै े अनचगनत पवमर्टट परु स्कार र्ाममल हैं । आपकी गज़ल की कई ऑडडयो सीडी भी बाज़ार मंे उपलब्ध हैं। आप आकार्वाणी, दरू दर्नश व अन्य मचं ों से अपनी कृ नतयों का पाठन कर लोगों को वाह वाह करने पर मजबरू करते रहे हैं । र्ीघ्र ही यह पसु ्तक ऑनलाइन प्लेटफोम्सश पर उपलब्ध होगी जजसकी सूचना आपको जल्द ही दी जाएगी । आप भी इसे पढंे और अपनी प्रनतकक्रया दें । स्पंदन अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 187 स्पंदन अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 188 स्पंदन अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
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