मझु े काट भी ले तो मेरे पास ऐसे मितं ्र और औषधियॉ ॉँ ै कक मैं एक क्षण में उसके ववष को उतार सकता ूँ। आप इस ववषय मंे कु छ धचतिं ा न ककल्जए। मैं ववष के भलए अजेय ूँ। जगदशीचदंि ्र को अब कोई उज्र न सझू ा। ॉ,ँॉ उन् ोंने एक ववशेष प्रयतन य ककया कक ढाके में ी वववा ो। अतएब वे अपने कु टु ल्म्बयों को साथ ले कर वववा के एक सप्ता प ले गये। चलते समय अपने संदि कू , बबस्तर आहद खबू देखभाल कर रखे कक सॉपँॉ क ीिं उनमें उनमंे तछप कर न बैठा जाय। शुभ लगन मंे वववा -ससंि ्कार ो गया। ततलोततमा ववकल ो र ी थी। मुख पर एक रिंग आता था, एक रंिग जाता था, पर संिस्कार में कोई ववध्न-बािा न पड़ी। ततलोततमा रो िो-कर ससुराल गयी। जगदीशचिदं ्र घर लौट आये, पर ऐसे धचतंि तत थे जैसे कोई आदमी सराय मे खलु ा ुआ संदि कू छोड़ कर बाजार चला जाय। ततलोततमा के स्वभाव में अब एक ववधचत्र रुपािंतर ुआ। व औरों से ूँसती- बोलती आराम से खाती-पीती सरै करने जाती, धथयेटरों और अन्य सामाल्जक सम्मेलनों मंे शरीक ोती। इन अवसरों पर प्रोफे सर दया राम से भी बड़े प्रेम का व्यव ार करती, उनके आराम का ब ुत ध्यान रखती। कोई काम उनकी इच्छा के ववरु्ध न करती। कोई अजनबी आदमी उसे देखकर क सकता था, गहृ णी ो तो ऐसी ो। दसू रों की दृल्ष्ट में इस दम्पल्तत का जीवन आदशय था, ककन्तु आंितररक दशा कु छ और ी थी। उनके साथ शयनागार मंे जाते ी उसका मखु ववकृ त ो जाता, भौं ें तन जाती, माथे पर बल पड़ जात,े शरीर अल्ग्न की भॉतॉँ त जलने लगता, पलकंे खलु ी र जाती, नते ्रों से ज्वाला-सी तनकलने लगती और उसमंे से झलु सती ुई लपटंे तनकलती, मुख पर काभलमा छा जाती और यद्यवप स्वरुप में कोई ववशषे अन्तर न हदखायी देखायी देता; पर न जाने क्यों भ्रम ोने लगता, य कोई नाधगन ै। कभी –कभी व फुँू कारने भी लगती।ंि इस ल्स्थतत में दयाराम को उनके समीप जाने या उससे कु छ बोलने की ह म्मत न पड़ती। वे उसके रुप- लावण्य पर मगु ्ि थे, ककन्तु इस अवस्था मंे उन् ें उससे घणृ ा ोती। उसे इसी उन्माद के आवेग मंे छोड़ कर बा र तनकल आत।े डाक्टरों से सला ली, स्वयिं
इस ववषय की ककतनी ी ककताबों का अध्ययन ककया; पर र स्य कु छ समझ मंे न आया, उन् ें भौततक ववञा ान मंे अपनी अकपञा ता स्वीकार करनी पड़ी। उन् ंे अब अपना जीवन असह्य जान पड़ता। अपने दसु ्सा स पर पछतात।े ना क इस ववपल्तत मंे अपनी जान फूँ सायी। उन् ें शंिका ोने लगी कक अवश्य कोई प्रेत- लीला ै ! भम्यावादी न थे, पर ज ॉ ॉँ बवु ्ध और तकय का कु छ वश न ीिं चलता, व ॉ ॉँ मनषु ्य वववश ोकर भम्यावादी ो जाता ै। शन:ै -शनै: उनकी य ालत ो गयी कक सदैव ततलोततमा से सशंिक र त।े उसका उन्माद, ववकृ त मखु ाकृ तत उनके ध्यान से न उतरत।े डर लगता कक क ीिं य मुझे मार न डाले। न जाने कब उन्माद का आवगे ो। य धचन्ता ह्रदय को व्यधथत ककया करती। ह प्नाहटज्म, ववद्यतु शल्क्त और कई नये आरोग्यवविानों की परीक्षा की गयी । उन् ें ह प्नाहटज्म पर ब ुत भरोसा था; लेककन जब य योग भी तनष्फल ो गया तो वे तनराश ो गये। एक हदन प्रोफे सर दयाराम ककसी वैञा तनक सम्मेलन मंे गए ुए थ।े लौटे तो बार बज गये थे। वषाय के हदन थ।े नौकर-चाकर सो र े थ।े वे ततलोततमा के शयनगृ में य पूछने गये कक मेरा भोजन क ॉ ँॉ रखा ै। अन्दर कदम रखा ी था कक ततलोततमा के भसरिं ाने की ओर उन् ें एक अततभीमकाय काला सॉपॉँ बैठा ुआ हदखायी हदया। प्रो. सा ब चुपके से लौट आये। अपने कमरे में जा कर ककसी औषधि की एक खरु ाक पी और वपस्तौल तथा सागँू ा ले कर कफर ततलोततमा के कमरे में प ुूँच।े ववश्वास ो गया कक य व ी मेरा पुराना शत्रु ै। इतने हदनों में टो लगाता ुआ य ॉ ॉँ आ प ुूँचा। पर इसे ततलोततामा से क्यों इतना स्ने ै। उसके भसर ने यों बैठा ुआ ै मानो कोई रस्सी का टु कड़ा ै। य क्या र स्य ै ! उन् ोंने साूँपों के ववषय मंे बड़ी अदभतू कथाऍ िं पढी और सुनी थी, पर ऐसी कु तू लजनक घटना का उकलेख क ींि न देखा था। वे इस भॉतॉँ त
सशसत्र ो कर कफर कमरे में प ुूँचे तो सापूँ का पात न था। ॉ,ँॉ ततलोततमा के भसर पर भतू सवार ो गया था। व बैठी ुई आग्ये ुई नेत्रों के द्वारा की ओर ताक र ी थी। उसके नयनों से ज्वाला तनकल र ी थी, ल्जसकी ऑचंि दो गज तक लगती। इस समय उन्माद अततशय प्रचंिड था। दयाराम को देखते ी बबजली की तर उन पर टू ट पड़ी और ाथों से आघात करने के बदले उन् ें दॉतॉँ ों से काटने की चषे ्टा करने लगी। इसके साथ ी अपने दोनों ाथ उनकी गरदन डाल हदये। दयाराम ने ब ुतरे ा चा ा, ऐड़ी-चोटी तक का जोर लगा कक अपना गला छु ड़ा लंे, लेककन ततलोततमा का बा ुपाश प्रततक्षण सापँू की के ड़ली की भॉतँॉ त कठोर एविं संिकु धचत ोता जाता था। उिर य संिदे था कक इसने मझु े काटा तो कदाधचत इसे जान से ाथ िोना पड़।े उन् ोंने अभी जो औषधि पी थी, व सपय ववष से अधिक घातक थी। इस दशा मंे उन् ंे य शोकमय ववचार उतपन्न ुआ। य भी कोई जीवन ै कक दम्पतत का उततरदातयतव तो सब भसर पर सवार, उसका सुख नाम का न ीिं, उलटे रात-हदन जान का खटका। य क्या माया ै। व सॉपॉँ कोई प्रेत तो न ी ै जो इसके भसर आकर य दशा कर हदया करता ै। क ते ै कक ऐसी अवस्था मंे रोगी पर चोट की जाती ै, व प्रेत पर ी पड़ती ैं नीचे जाततयों मंे इसके उदा रण भी देखे ंै। वे इसी ंैसिबं सै में पड़े ुए थे कक उनका दम घुटने लगा। ततलाततमा के ाथ रस्सी के फंि दे की भॉतॉँ त उनकी गरदन को कस र े थंे वे दीन अस ाय भाव से इिर-उिर ताकने लगे। क्योंकर जान बचे, कोई उपाय न सूझ पड़ता था। साँूस लेना। दसु ्तर ो गया, दे भशधथल पड़ गयी, पैर थरथराने लगे। स सा ततलोततमा ने उनके बाूँ ों की ओर मूँु बढाया। दयाराम कॉपँॉ उठे । मतृ यु ऑखंि ंे के सामने नाचने लगी। मन मंे क ा—य इस समय मेरी स्त्री न ीिं ववषलै ी भयिंकर नाधगन ै: इसके ववष से जान बचानी मलु ्श्कल ै। अपनी औषधि पर जो भरोसा था, व जाता र ा। चू ा उन्मतत दशा मंे काट लेता ै तो जान के लाले पड़ जाते ै। भगवान ? ककतन ववकराल स्वरुप ै ? प्रतयक्ष नाधगन मालूम ो र ी ै। अब उलटी पड़े या सीिी इस दशा का अंित करना ी पड़गे ा। उन् ंे ऐसा जान पड़ा कक अब धगरा ी चा ता ूँ। ततलोततमा बार-बार सॉपँॉ की भॉतॉँ त फूँु कार मार कर जीभ तनकालते ुए उनकी ओर झपटती थी। एकाएक व बड़े ककय श स्वर से बोली—‘मखू य ? तरे ा इतना सा स कक तू इस
सुदंिरी से प्रेमभलगिं न करे।’ य क कर व बड़े वगे से काटने को दौड़ी। दयाराम का ियै य जाता र ा। उन् ोंने दह ना ाथ सीिा ककया और ततलोततमा की छाती पर वपस्तौल चला हदया। ततलोततमा पर कु छ असर न ुआ। बा ें और भी कड़ी ो गयी; ऑखिं ों से धचनगाररयॉ ँॉ तनकलने लगी। दयाराम ने दसू री गोली दाग दी। य चोट पूरी पड़ी। ततलोततमा का बा ु-बिंिन ढीला पड़ गया। एक क्षण मंे उसके ाथ नीचे को लटक गये, भसर झ्रकु गया और व भूभम पर धगर पड़ी। तब व दृश्य देखने मंे आया ल्जसका उदा राण कदाधचत अभलफलैला चंदि ्रकातंि ा मंे भी न भमले। व ी फ्लँूग के पास, जमीन पर एक काला दीघकय ाय सपय पड़ा तड़प र ा था। उसकी छाती और मूँु से खून की िारा ब र ी थी। दयाराम को अपनी ऑखंि ों पर ववश्वास न आता था। य कै सी अदभुत प्रेत-लीला थी! समस्या क्या ै ककससे पछू ू ूँ ? इस ततलस्म को तोड़ने का प्रयतन करना मेरे जीवन का एक कततवय ्य ो गया। उन् ोंने सॉगँॉ े से सॉपॉँ की दे मे एक कोचा मारा और कफर वे उसे लटकाये ुए ऑगिं न मंे लाये। बबलकु ल बेदम ो गया था। उन् ोंने उसे अपने कमरे में ले जाकर एक खाली सिदं कू मंे बदिं कर हदया। उसमंे भुस भरवा कर बरामदे मंे लटकाना चा ते थ।े इतना बड़ा गे ुँूवन सापँू ककसी ने न देखा ोगा। तब वे ततलोततमा के पास गये। डर के मारे कमरे मंे कदम रखने की ह म्मत न पड़ती थी। ॉ,ँॉ इस ववचार से कु छ तस्कीन ोती थी कक सपय प्रेत मर गया ै तो उसकी जान बच गयी ोगी। इस आशा और भय की दशा मंे वे अन्दर गये तो ततलोततमा आईने के सामने खड़ी के श सँूवार र ी थी। दयाराम को मानो चारों पदाथय भमल गये। ततलोततमा का मुख-कमल खखला ुआ था। उन् ोंने कभी उसे इतना प्रफु ल्कलत न देखा था। उन् ें देखते ी व उनकी ओर प्रेम से चली और बोली—आज इतनी रात तक क ॉ ॉँ र े ?
दयाराम प्रेमोन्नत ो कर बोले—एक जलसे में चला गया था। तमु ् ारी तबीयत कै सी े ? क ीिं ददय न ीिं ै ? ततलोततमा ने उनको आश्चयय से देख कर पूछा—तमु ् ें कै से मालूम ुआ ? मेरी छाती मंे ऐसा ददय ो र ा ै, जसै धचलक पड़ गयी ो। ***
ववनोद ववद्यालयों मंे ववनोद की ल्जनती लीलाएूँ ोती र ती ैं, वे यहद एकत्र की जा सकंे तो मनोरंिजन की बड़ी उततम सामग्री ाथ आए, य ाूँ अधिकाशंि छात्र जीवन की धचन्ताओिं से मकु ्त र ते ंै, ककतने ी तो परीक्षाओंि की धचन्ता से भी बरी र ते ैं। व ाँू मटरगश्ती करने, गप्पें उड़ाने और ूँसी-मजाक करने के भसवा उन् ें कोई और काम न ींि र ता! उनका कक्रयाशील उतसा कभी ववद्यालय के नाट्य- मचिं पर प्रकट ोता ैं, कभी ववशेष उतसवों के अवसर पर, उनका शषे समय अपने भमत्रों के मनोरंिजन में व्यतीत ोता ैं। व ाूँ, ज ाूँ ककसी म ाशय ने ककसी ववभाग मंे ववशषे उतसव हदखाया ( कक्रके ट, ाकी, फु टबाल को छोड़कर) और व ववनोद का लक्ष्य बना, अगर म ाशय बड़े िमतय नष्ठ ैं, सन्ध्या और वन में ततपर र ते ंै तो, बबना नागा नमाजंे अदा करते ंै तो उन् ें ास्य का लक्ष्य बनने में देर न ीिं लगती। अगर ककसी को पुस्तकों से प्रेम ंै, कोई परीक्षा के भलए बड़े उतसा से तयै ाररयाूँ करता ैं तो समझ लील्जए कक उसकी भमट्टी खराब करने के भलए क ींि-न-क ीिं अवश्य षड्यन्त्र रचा जा र ा ंै, सारािंश य ैं कक तनद्वय ंिद्व, तनरी , खलू े हदल आदभमयों के भलए कोई बािा न ीिं, उनसे ककसी को भशकायत न ीिं ोती, लेककन मुकलाओंि और पिंडडतों की बड़ी दगु तय त ोती ंै। म ाशय चक्रिर इला ाबाद के एक सुववख्यात ववद्यालय के छात्र ंै। एम. ए. क्लास में दशयन का अध्ययन करते ंै, ककन्तु जसै ा ववद्वजनों का स्वभाव ोता ंै, ँूसी-हदकलगी से कोसों दरू भागते थे, जातीयता के गवय मंे चूर र ते थे। ह न्दू आचार-ववचार की सरलता और पववत्रता पर मगु ्ि थे, उन् ें नेकटाई, कॉलर, वास्कट आहद वस्त्रो से घणृ ा थी, सीिा-सादा कु रता और चमरौिे जतू े प नते, प्रातःकाल तनयभमत रूप से सन्ध्या- वन करके मस्तक पर चन्दन का ततलक भी लगाया करते थे, ब्रह्मचयय के भस्ध ान्तों के अनुसार भसर घुटाते थे, ककन्तु लम्बी चोटी रख छोड़ी थी, उनका कथन था कक चोटी रखने में प्राचीन आयय-ऋवषयों ने अपनी
सवञय ा ता का प्रचंिड पररचय हदया ैं, चोटी के द्वारा शरीर की अनावश्यक उण्णता बा र तनकल जाती ंै और ववद्युत-प्रवा शरीर मंे प्रववष्ट ोता ैं इतना ी न ींि, भशखा को ऋवषयों ने ह न्द-ू जातीयता का मुख्य लक्ष्ण घोवषत ककया ंै, भोजन सदैव अपने ाथ से बनाते थे और व भी ब ुत सपु ाच्य और सकू ्ष्म, उनकी िारणा थी कक आ ार का मनुष्य के नैततक ववकास पर ववशषे प्रभाव पड़ता ंै, ववजातीय वस्तुओंि को ेय समझते थे, कभी कक्रके ट या ॉकी के पास न फटकते थे, पाश्चातय सभ्यता के शत्रु ी थे, य ाूँ तक की अिंग्रेजी भलखने-बोलने में भी संकि ोच ोता था, ल्जसका पररणाम य था कक उनकी अिंग्रेजी कमजोर थी और उसमंे सीिा-सा पत्र भी मुल्श्कलसे भलख सकते थे अगर उनको कोई व्यसन था तो पान खाने का। इसके गणु ों का समथनय और वदै ्यक ग्रथिं ों से उसकी पररपलु ्ष्ट करते थ।े ववद्यालय के खखलाडड़यों को इतना ियै य क ाूँ कक ऐसा भशकार देखें और उस पर तनशाना न मारंे। आपस में कानाफू सी ोने लगी कक इस जगिं ली को सीिे रास्ते पर लाना चाह ए, कै सा पिंडडत बना कफरता ै! ककसी को कु छ समझता ी न ीिं, अपने भसवा सभी को जातीय-भाव से ीन समझता ै। इसकी ऐसी भमट्टी पलीद करो कक सारा पाखंिड भूल जाए। सियं ोग से अवसर भी अच्छा भमल गया। कॉलेज खुलने के थोड़े ी हदनों बाद एक ऐिंग्लो इंिडडयन रमणी दशयन की क्लास में सल्म्मभलत ुई। व कववकल्कपत सभी उपमाओंि की आगार थी, सेब का-सा खखला ुआ रिंग, सकु ोमल शरीर, स ास्य छवव और उस पर मनो र वषे -भूषा! छात्रों को ववनोद का मसाला ाथ लगा। लोग इतत ास और भाषा को छोड़कर दशयन की कक्षा में प्रववष्ट ोने लगे। सभी आँूखें उसी चन्द्रमुखी की ओर चकोर की नाईं लगी र ती थीिं। सब उसकी कृ पा-कटाक्ष के अभभलाषी थ।े सभी उसकी मिरु वाणी सुनने के भलए लालतयत थे, ककन्तु प्रकृ तत को जैसा तनयम ै, आचारशील हृदयों पर प्रेम का जादू जब चल जाता ै, तब वारा-न्यारा करके ी छोड़ता ंै, और लोग तो आँखू ें ी सकें ने में
मग्न र ा करते, ककन्तु पिंडडत चक्रिर प्रेम-वदे ना से ववकल और सतय अनुराग से उन्मतत ो उठे , रमणी के मखु की ओर ताकते भी झेंपते थे कक क ीिं ककसी की तनगा पड़ जाए तो इस ततलक और भशखा पर फल्ब्तयाँू उड़ने लगें, जब अवसर पाते तो अतयन्त ववनम्र, सचषे ्ट, आतरु और अनुरक्त नते ्रों से देख लेत।े ककन्तु आँखू ंे चुराए ुए और भसर झुकाए ुए कक क ीिं अपना परदा न खुल जाए। दीवार से कानों को खबर न ो जाए। मगर दाई से पेट क ाँू तछप सकता ै, ताडने वाले ताड गए। यारों ने पंडि डतजी की मो ब्बत की तनगा प चान ी ली, मूँु माूगँ ी मुराद पाई, बाूँछे खखल गई। दो म ाशयों ने उनसे घतनष्ठता बढानी शुरु कर दी। मतै ्री को सघिं हटत करने लगे, जब समझ कक इन पर मारा ववश्वास जम गया, भशकार पर वार करने का अवसर आ गया तो एक रोज दोनों ने बठै कर लेडड़यों की शैली में पडिं डतजी के नाम एक पत्र भलखा - 'माई डडयर चक्रिर, ब ुत हदनों से ववचार कर र ी ूँ कक आपको पत्र भलख,ूँ मगर इस भय से कक बबना पररचय से ऐसा सा स अनधु चत ोगा। अब तक जब्त करती र ी, पर अब न ीिं र ा जाता। आपने मझु पर न-जाने क्या जादू कर हदया ै कक एक क्षण के भलए भी आपकी सरू त आखँू ों से न ींि उतरती। आपकी सौम्य मूतत,य प्रततभाशाली मस्तक और सािारण प नावा सदैव आूँखों के सामने कफरा करता ै। मझु े स्वभावतः आडम्बर से घणृ ा ै, पर य ाूँ सभी को कृ भमत्रता के रिंग मंे डू बा पाती ूँ। ल्जसे देखखए, मेरे प्रेम मंे अनुरक्त ै, पर मंै उन प्रेभमयों के मनोभावों से पररधचत ूँ। वे सब-के -सब लम्पट और शो दे ै। के वल आप एक ऐसे सज्जन ै ल्जनके हृदय में मुझे सद्भाव और सदनुराग की झलक दीख पड़ती ै। बार-बार उतकंि ठा ोती ै कक आपसे कु छ बातें करती, मगर आप मझु से इतनी दरू बैठते ै कक वातालय ाप का सअु वसर न ींि प्राप्त ोता। ईश्वर के भलए कल से आप मेरे समीप ी बठै ा कील्जए, और कु छ न स ी तो आपके समीप्य ी से मेरी तपृ ्ती ोती र ेगी। इस पत्र को पढकर फाड़ डाभलएगा और इसका उततर पुस्तकालय की तीसरी अलमारी के नीचे रख दील्जएगा।'
आपकी लसू ी। य पत्र डाक में डाल हदया गया और लोग उतसकु नते ्रों से देखने लगे कक इसका क्या असर ोता ै। उन् ंे ब ुत लम्बा इन्तजार न करना पड़ा। दसू रे हदन कॉलेज मंे आकर पंिडडतजी को लूसी के सल्न्नकट बैठने की किक ुई। वे दोनो म ाशय ल्जन् ोंने उनसे आतमीयता बढा रखी थी, लसू ी के तनकट बैठा करते थ।े एक का नाम था नईम और दसू रे का धगररिरस ाय। चक्रिर ने आकर धगररिर से क ा - 'यार, तमु मेरी जग जा बठै ो, मझु े य ाँू बैठने दो।' नईम - 'क्यों? आपको सद ोता ै क्या?' चक्रिर - ' सद-वसद की बात न ींि, व ाूँ प्रोफे सर सा ब का लेक्चर सनु ाई न ीिं देता, मैं कानों का जरा भारी ूँ?' धगररिर - 'प ले तो आपको य बीमारी न थी, य रोग कब से उतपन्न ो गया?' नईम - 'और कफर प्रोफे सर सा ब तो य ाूँ और भी दरू ो जाएँूगे जी?' चक्रिर - 'दरू ो जाएँूगे तो क्या, य ाँू अच्छा र ेगा, मुझे कभी-कभी झपककयाँू आ जाती ै, सामने डर लगा र ता ै कक क ींि उनकी तनगा न पड़ जाए।' धगररिर -'आपको तो झपककयाूँ ी आती ै न, य ाूँ तो व ी घंटि ा सोने का ै परू ी एक नींिद लेता ूँ, कफर?' नईम - 'तुम भी अजीब आदमी ो, जब दोस्त ोकर एक बात क ते ै तो उसके मानने मंे तुम् ंे क्या एतराज? चुपके से दसू री जग जा बठै ो।'
धगररिर - 'अच्छी बात ै, छोड़े देता ूँ, ककन्तु समझ लील्जएगा कक य कोई सािारण तयाग न ींि ै। मैं अपने ऊपर ब ुत जब्र कर र ा ूँ, कोई दसू रा लाख रुपए भी देता तो जग न छोड़ता।' नईम - 'अरे भाई, य जन्नत ै जन्नत! लेककन दोस्त की खाततर भी तो कोई चीज ै?' चक्रिर ने कृ तञा तापूणय दृल्ष्ट से देखा और व ाूँ जाकर बैठ गए। थोड़ू़ ी देर के बाद लूसी भी अपनी जग पर बैठी। अब पिंडडतजी बार-बार उसकी ओर सापेक्ष भाव से ताकते र े कक व कु छ बातचीत करे और व प्रोफ्सर का भाषण सुनने मंे तन्मय ो र ी ै। आपने समझा शायद लज्जावश न ींि बोलती, लज्जाशीलता रमखणयों का सबसे चतरु भूषण भी तो ै। उसके डसे ्क की ओर मूँु फे र-फे रकर ताकने लगे। उसे इनके पान चबाने से शायद घणृ ा ोती थी। बार-बार मँूु दसू री ओर फे र लेती, ककन्तु पंिडडतजी इतने सकू ्ष्मदशी, इतने कु शाग्रबुव्ध न थे। इतने प्रसन्न थे, मानो सातवें आसमान पर ै, सबको उपेक्षा की दृल्ष्ट से देखते थे, मानो प्रतयक्ष रूप से क र े थे कक तुम् ंे य सौभाग्य क ाँू नसीब? मुझ-सा प्रतापी और कौन ोगा? हदन तो गजु रा, सन्ध्या समय पिंडडतजी नईम के कमरे मंे आकर बोले - 'यार, एक लेटर-राइटर (पत्र-व्यव ार-भशक्षक) की आवश्यकता ै, ककसका लेटर-राइटर सबसे अच्छा ै?' नईम ने धगररिर की ओर कनखखयों से देखकर पछू ा -'लेटर-राईटर लेकर क्या कील्जएगा?' धगररिर - 'फजूल ै, नईम खुद ककस लेटर-राइटर से कम ै।'
चक्रिर ने कु छ सकु चाते ुए क ा - 'अच्छा, कोई प्रेम-पत्र भलखना ो तो कै से आरम्भ ककया जाए?' नईम - 'डाभलगंा भलखते ै, और जो ब ुत ी घतनष्ठ सम्बन्ि ो तो डडयर डाभलगंा भलख सकते ै।' चक्रिर - 'और समाप्त कै से करना चाह ए?' नईम - 'पूरा ाल बताइए तो खत ी न भलख दें?' चक्रिर - 'न ींि, आप इतना बता दील्जए, मंै भलख लँूगा।' नईम - 'अगर ब ुत प्यारा माशूक ो तो भलखखए - your dying lover, और अगर सािारण प्रेम ो तो भलख सकते ै -yours for ever' चक्रिर - 'कु छ शुभकामना के भाव भी तो र ने चाह ए न?' नईम - 'बेशक, बबना आदाब के भी कोई खत ोता ै और व भी मु ब्बत का। माशूक के भलए आदाब भलखने मंे फकीरों की तर दआु एँू देनी चाह ए। आप भलख सकते ै - God give you everlasting grace and beautu, या May you remain happy in love and lovely.' चक्रिर -'कागज पर भलख दो।' धगररिर ने एक पत्र के टु क़ड़े पर कई वाक्य भलख हदए। जब भोजन करके लौटे तो चक्रिर ने अपनी ककवाड़े बन्द कर ली और खबू बना-बनाकर पत्र भलखा। अक्षर बबगड़-बबगड़ जाते थे, इसभलए कई बार भलखना पड़ा। क ीिं वपछले प र जाकर पत्र समाप्त ुआ, तब आपने उसे इत्र मंे बसाया। दसू रे हदन पुस्तकालय में तनहदयष्ट स्थान पर रख हदया। यार लोग तो ताक मंे थे ी, पत्र उड़ा लाए और खबू मजे ले-लेकर पढा।
तीन हदन के बाद चक्रिर को कफर एक पत्र भमला, भलखा था - 'माई डडयर चक्रिर, तमु ् ारी प्रेम-पत्री भमली, बार-बार पढा, आँखू ों से लगाया, चुम्बन भलया, ककतनी मनो र म क थी। ईश्वर से य ी प्राथनय ा ै कक मारा प्रेम भी ऐसा ी सरु भभभसधंि चत र े। आपको भशकायत ै कक मंै आपसे बातें क्यों न ींि करती। वप्रय, प्रेम बातों से न ी,ंि हृदय से ोता ै। जब मंै तमु ् ारी ओर से मूँु फे र लेती ूँ तो मेरे हदल पर क्या गजु रती ै, य मैं ी जानती ूँ। एक ज्वाला ै जो अन्दर ी अन्दर मझु े भस्म कर र ी ै। आपको मालूम न ीिं, ककतनी आँखू ंे मारी ओर एकटक ताकती र ती ै। जरा भी सन्दे ुआ, और धचर-ववयोग की ववपल्तत मारे भसर पड़ी। इसीभलए मंे ब ुत साविान र ना चाह ए। तुमसे एक याचना करती ूँ, क्षमा करना, मैं तुम् ें अगिं ्रेजी पोशाक में देखने को ब ुत उतकिं हठत ो र ी ूँ। यों तो तुम चा े जो वस्त्र िारण करो, मेरी आखूँ ों के तारे ो, ववशषे कर तमु ् ारी सादा कु रता मुझे ब ुत ी सनु ्दर मालमू ोता ै। कफर भी बाकयावस्था से ल्जन वस्त्रों को देखते चली आई ूँ, उन पर ववशषे अनरु ाग ोना स्वाभाववक ै, मुझ आशा ै, म तनराश न करोगे। मनंै े तुम् ारे भलए एक वास्कट बनाई ै! उसे मेरे प्रेम का तचु ्छ उप ार समझकर स्वीकार करो।' तुम् ारी, लसू ी। पत्र के साथ एक छोटा-सा पकै े ट था। वास्कट उसी में बन्द था। यारों ने आपस मंे चन्दा करके बड़ी उदारता से उसका मलू िन एकत्र ककया था। उस पर संटे - परसेंट से भी अधिक लाभ ोने की सम्भावना थी। पडंि डत चक्रिर उक्त उप ार और पत्र को पाकर इतने प्रसन्न ुए, ल्जसका हठकाना न ीं।ि उसे लेकर सारे छात्रावास मंे चक्कर लगा आए। भमत्रवनृ ्द देखते थे, उसकी काट-छाूँट की सरा ना करते थे। तारीफों के पुल बािँू ते थे, उसके मूकय का अततशयोल्क्तपूणय अनमु ान करते थ।े कोई क ता था - य सीिे पेररस से भसलकर आया ै, इस मकु क मंे
ऐसे कारीगर क ाँू और कौन। अगर कोई इस टक्कर का वास्कट भसलवा दे तो 100 रुपए की बाजी बदता ूँ? पर वास्तव में उसके कपड़े का रंिग इतना ग रा था कक कोई सुरुधच रखने वाला मनषु ्य उसे प नना पसन्द न करता। चक्रिर को लोगों ने पूवय मखु करके खड़ा ककया और कफर शुभ मु ूतय में व वास्कट उन् ंे प नाया। आप फू ले न समाते थे, इिर से जाकर क ता - भाई, तुम तो बबककु ल प चाने न ीिं जाते, चोला ी बदल गया, अपने वक्त के यूसुफ ो, यार क्यों न ो, तभी तो य ठाट ै, मखु ड़ा दमकने लगा, मानो तपाया ुआ किंु दन ै। अजी, एक वास्कट पर य जीवन ै, क ींि परू ा अग्रेजी सूट प न लो तो न जाने क्या गजब ो जाए? सारी भमसंे लोट-पोट ो जाएूँ, गला छु टाना मुल्श्कल ो जाएगा। आखखर सला ुई कक उनके भलए एक अंिग्रेजी सूट बनवाना चाह ए। इस कला के ववशषे ञा उनके साथ गटु बाँिू कर सटू बनवाने चले। पडिं डतजी घर के सम्पन्न थे। एक अिगं ्रेजी दकु ान से ब ुमकू य सूट भलया गया, रात को इसी उतसव मंे गाना- बजाना भी ुआ। दसू रे हदन, दस बजे, लोगों ने पडिं डतजी को सूट प नाया। आप अपनी उदासीनता हदखाने के भलए बोले - 'मुझे तो बबककु ल अच्छा न ीिं लगता, आप लोगों को न जाने क्यों ये कपड़े अच्छे लगते ै।' नईम - 'जरा आइने मंे सरू त देखखए तो मालूम ो, खासे शा जादे मालमू पड़ते ो, तुम् ारे ुस्न पर मझु े तो रस्क ै। खदु ा ने तो आपको ऐसी सरू त दी और उसे आप मीठे कपड़ों में तछपाए ुए थे।' चक्रिर को नके टाई बाूिँ ने का ञा ान न था, बोले -'भाई, इसे तो ठीक कर दो।' धगररिरस ाय ने नके टाई इतनी कसकर बािँू ी कक पंडि डतजी को सासूँ लेना भी मुल्श्कल ो गया। बोले - 'यार ब ुत तगिं ै।' नईम - 'इसका फै शन ी य ै, म क्या करें, ढीली टाई ऐब में दाखखल ै।' चक्रिर - 'अजी, इसमें तो दम घटु र ा ै।'
नईम -'और टाई का मिशं ा ी क्या ै? इसीभलए तो बाूिँ ी जाती ै कक आदमी ब ुत जोर-जोर से सासूँ न ले सके ।' चक्रिर के प्राण संिकट मंे थ।े आूखँ ंे सजल ो र ी थी, चे रा सुखय ो गया था, मगर टाई को ढीला करने की ह म्मत न पड़ती थीिं। सजिज से आप कॉलेज चले तो भमत्रों का एक गटु सम्मान का भाव हदखाता आपके पीछे -पीछे चला, मानो बराततयों का समू ै। एक-दसू रे की तरफ ताकता और रूमाल मूँु में देकर ँूसता था मगर पंडि डतजी को क्या खबर? व तो अपनी िनु मंे मस्त थ।े अकड़-अकड़कर चलते ुए आकर क्लास में बठै गए। थोड़ी देर बाद लूसी भी आई। पडिं डत का य वेष देखा तो चककत ो गई। उसके अिरों पर मुस्कान की एक अपवू य रेखा अंकि कत ो गई। पडंि डतजी ने समझा, य उनके उकलास का धचह्न ै। बार-बार मुस्कराकर उसकी ओर ताकने और र स्यपूणय भाव से देखने लगे। ककन्तु व लेशमात्र भी ध्यान न देती थी। पंिडडतजी की जीवनचयाय, िमोतसा और जातीय प्रेम में बडे वगे से पररवतनय ोने लगे। सबसे प ले भशखा पर छु रा कफरा, अग्रेजी फै शन के बाल कटवाए गए। लोगों ने क ा - 'य क्या म ाशय? आप तो फरमाते थे कक भशखा ववद्युतप्रवा शरीर मंे प्रवशे करता ै। अब व ककस मागय से जाएगा?' पिंडडतजी ने दाशयतनक भाव से मुस्कराकर क ा - 'मंै तमु लोगों को उकलू बनाता था, क्या मैं इतना भी न ींि जानता कक य सब पाखंडि ै? मुझे अन्तःकरण से इस पर ववश्वास ी कब था, आप लोगों को चकमा देना चा ता था।' नईम - 'वकला , आप एक ी झाूँसेबाज तनकले, म लोग आपको बतछया के ताऊ ी समझते थे मगर आप तो आठों गाँूठ कु म्मतै तनकले।' भशखा के साथ-साथ सन्ध्या और वन की भी इततश्री ो गई, वन-किंु ड कमरे में चारपाई के नीचे फें क हदया गया, कु छ हदनों के बाद भसगरेट के जले ुए टु कड़े
रखने का काम देने लगा। ल्जस आसन पर बैठकर वन ककया करते थे, व पायदान बना। अब प्रततहदन साबुन रगड़ते, बालों में किं घी करते और भसगार पीत।े यार उन् ें चगंि पर चढाए र ते थे। य प्रस्ताव ुआ कक इस चिडं ू ल से वास्कट के रुपए वसूल करने चाह ए मय सूद के , कफर क्या था, लूसी का एक पत्र आ गया - आपके रूपान्तर से मझु े ल्जतना आनन्द ुआ उसे शब्दों में न ीिं प्रकट कर सकती! आपसे मुझे ऐसी ी आशा थी, अब आप इस योग्य ो गए ै कक कोई यरू ोवपयन लेडी आपके स वास मंे अपना अपमान न ींि समझ सकती। अतः आपसे प्राथनय ा के वल य ी ै कक मझु े अपने अनन्त और अववरल प्रेम का कोई धचह्न प्रदान कील्जए, ल्जसे मैं सदैव अपने पास रखू,ँ मंै कोई ब ुमकू य वस्तु न ीिं, के वल प्रेमोप ार चा ती ूँ। चक्रिर ने भमत्रों से पूछा - 'अपनी पतनी के भलए कु छ सौगात भेजना चा ता ूँ, क्या भेजना उधचत ोगा?' नईम - 'जनाब, य तो उसकी तालीम और मजाक पर मनु सर ै। अगर व नए फै शन की लेडी ै, तो कोई बेशकीमत, सुबकु वज दार चीज या ऐसी ी कई चीजंे भेल्जए, मसलन रूमाल, ररस्टवाच, लवेंडर की शीशी, फैं सी किं िी, आईना, लॉके ट, ब्रसु वगैर , और खुदा न खास्ता अगर गूँवाररन ै तो ककसी दसू रे आदमी से पतू छए। मझु े गँूवाररनों के मजाक का इकम न ींि।' चक्रिर - 'जनाब, पढी ुई ै, बड़े ऊूँ चे खानदान ी ै।' नईम -'तो कफर मेरी सला पर अमल कील्जए।' सिंध्या समय भमत्रगण चक्रिर के साथ बाजार गए और ढेर चीजंे बटोर लाए। सब-की-सब ऊँू चे दरजे की, कोई 75 रुपए ुए, मगर पडंि डतजी ने उफ तक न की, ँूसते ुए रुपए तनकाले। लौटते वक्त नईम ने क ा - 'अफसोस, मंे ऐसी खशु मजाक बीवी न भमली!'
धगररिर - 'ज र का लो, ज र!' नईम - 'भाई दोस्ती के माने तो य ी ै कक एक बार में भी उनकी ल्जयारत ो, क्यों पंडि डतजी, आप इसमें कोई रज समझते ै?' नईम - 'खरै , खदु ा उन् ें जकद ी दतु नया से नजात दे।' रातोंरात पकै े ट बना और प्रातःकाल पडिं डतजी उसे ले जाकर लाईब्रेरी मंे रख आए। लाइब्रेरी सबेरे ी खलु जाती थी, कोई अड़चन न ुई। उन् ोंने इिर मँूु फे रा, उिर यारों ने माल उड़ाया और चम्पत ुए। नईम के कमरे मंे चन्दे के ह साब से ह स्सा-बाटूँ ुआ। ककसी ने घड़ी पाई, ककसी ने रूमाल, ककसी ने कु छ। एक रुपए के बदले पाँचू -पाँूच ाथ लगे। प्रेमीजन का िैयय अपार ोता ै, तनराशा पर तनराशा ोती ै, पर िैयय ाथ से न ींि छू टता। पिंडडतजी बेचारे ववपलु िन व्यय करने के पश्चात भी प्रेभमका से सम्भाषण का सौभाग्य न प्राप्त कर सके । प्रेभमका भी ववधचत्र थी, जो पत्रों में भमसरी की डली घोल देती, मगर प्रतयक्ष दृल्ष्टपात भी न करती थी। बेचारे ब ुत चा ते थे कक स्वयंि ी अग्रसर ो, पर ह म्मत न पड़ती थी। ववकट समस्या थी, ककन्तु इससे भी व तनराश न थे। वन-संिध्या तो छोड़ ी बैठे थे, नए फै शन के बाल कट ी चुके थे, अब ब ुिा अग्रेजी ी बोलत,े यद्यवप व अशु्ध और भ्रष्ट ोती थी। रात को अग्रेजी मु ावरों का ककताब लेकर पाठ की भाूतँ त रटत।े नीचे के दरजों मंे बेचारे ने इतना श्रम से कभी पाठ न याद ककया थी, उन् ीिं रटे ुए मु ावरों को मौके -बे-मौके काम में लात,े दो-चार बार लूसी के सामने भी अिगं ्रेजी बघारने लगे, ल्जससे उनकी योग्यता का परदा और भी खुल गया। ककन्तु दषु ्टों को अब भी उनपर दया न आई। एक हदन चक्रिर के पास लसू ी का पत्र प ुँूचा, ल्जसमंे ब ुत अनुनय-ववनय के बाद य इच्छा प्रकट की गई थी कक मंै भी आपको अग्रेजी खले खले ते देखना चा ती ूँ। मनंै े आपको कभी फु टबॉल
या ॉकी खेलते न ींि देखा। अिंग्रेजी जंेहटलमैन के भलए ॉकी, कक्रके ट आहद मंे भस्ध स्त ोना परमावश्वक ै! मुझे आशा ै, आप मेरी व तुच्छ याचना स्वीकार करंेगे। अगिं ्रेजी वषे -भषू ा में, बोलचाल मंे, आचार-ववचार में, कॉलेज में अब आपका कोई प्रततयोगी न ीिं र ा। मंै चा ती ूँ कक खले के मदै ान मंे भी आपको सवशय ्रेष्ठता भस्ध ो जाए। कदाधचत कभी आपको मेरे साथ लेडडयों के सम्मखु खले ना पड़े, तो उस समय आपकी और आपसे ज्यादा मेरी ेठी ोगी, इसभलए टेतनस अवश्य खेभलए। दस बजे पंिडडतजी को व पत्र भमला, दोप र को ज्यों ी ववश्राम की घटंि ी बजी कक आपने नईम से जाकर क ा -'यार, जरा फु टबॉल तनकाल दो।' नईम फु टबॉल के कप्तान भी थे, मुस्कराकर बोले -'खरै तो ै, इस दोप र मंे फु टबॉल लेकर क्या कील्जएगा? आप तो कभी मैदान की तरफ झाूँकते भी न ींि, आज इस जलती-बलती िपू में फु टबॉल खेलने की िनु क्यों सवार ै?' चक्रिर - 'आपको इससे क्या मतलब, आप गेंद तनकाल दील्जए, मैं गंेद में भी आप लोगों को नीचा हदखाऊूँ गा।' नईम - 'जनाब, क ीिं चोट-चपेट आ जाएगी, मफु ्त में परेशान ोइएगा। मारे ी भसर मर म-पट्टी को बोझ पड़गे ा, खदु ा के भलए इस वक्त र ने दील्जए।' चक्रिर - 'आखखर चोट तो मझु े लगेगी आपका इससे क्या नकु सान ोता ै? जरा-सा गंेद तनकाल देने मंे इतनी आपल्तत क्यों ै?' नईम ने गंेद तनकाल दी और पडंि डतजी उसी जलती ुई दोप री में अभ्यास करने लगे। बार-बार धगरते थे, बार-बार ताभलयाँू पड़ती थी, मगर व अपनी िनु मंे ऐसे मस्त थे कक उसकी कु छ परवा ी न थी। इसी बीच लूसी को आते देख भलया और भी फू ल गए। बार-बार परै चलाते थे, मगर तनशाना खाली जाता था, परै पड़ते भी थे तो गंेद पर कु छ असर न ोता था और लोग आकर गंेद को एक
ठोकर मंे आसमान तक प ुँूचा देते तो आप क ते ै, मैं जोर से मारूूँ तो इससे भी ऊपर जाए, लेककन फायता क्या? लसू ी दो-तीन भमनट तक खड़ी उनकी बौखला ट पर ूँसती र ी। आखखर नईम से बोली - 'वेल नईम, इस पंडि डत को क्या ो गया ै? रोज एक-न-एक स्वागंि भरा करता ै, इसका हदमाग में खलल तो न ींि पड़ गया?' नईम - 'मालमू तो कु छ ऐसा ी ोता ै।' शाम को सब लोग छात्रावास मंे आए तो भमत्रों ने जाकर पिंडडतजी को बिाई दी -'यार, ो बड़े खुशनसीब, म लोग फु टबाल को कॉलेज की चोटी तक प ुँूचाते र े, मगर ककसी ने तारीफ न की। तुम् ारे खेल की सबने तारीफ की, खासकर लूसी ने। व तो क ती थी, ल्जस ढिंग से य खेलते ै, उस ढंिग से मनंै े ब ुत कम ह न्दसु ्तातनयों को खले ते देखा ै। मालमू ोता ै, ऑक्सफोडय का अभ्यस्त खखलाड़ी ै।' चक्रिर -'और भी कु छ बोली? क्या क ा, सच बताओ?' नईम -'अजी, अब साफ-साफ ने क लवाइए, मालमू ोता ै, आपने टट्टी की आड़ से भशकार खेला ै। बड़े उस्ताद ो यार! म लोग मँूु ताकते र े और तमु मदै ान मार ले गए, जभी आप रोज य कलेवर बदला करते थे? अब भेद खलु ा, वाकई खशु नसीब ो।' चक्रिर - 'मैं उसी कायदे से गंेद में ठोकर मारता था, जैसे ककताब मंे भलखा ै।' नईम -'तभी तो बाजी मार ले गए भाई! और न ींि क्या म आपसे ककसी बात मंे कम ै! ाँू, तमु ् ारी-जसै ी सूरत क ाूँ से लावें' चक्रिर -'ब ुत बनाओ न ीिं, मंै ऐसा क ाूँ का बड़ा रूपवान ूँ।'
नईम -'अजी य नतीजे ी से जाह र ै, य ाँू साबुन और तेल लगात-े लगाते भौंरा ुआ जाता ूँ और कु छ असर न ींि ोता। मगर आपका रिंग बबना कदी-कफटकरी के ी चोखा ै।' चक्रिर - 'कु छ मेरे कपड़े वगैर की तनस्बत तो न ींि क ती थी?' नईम - 'न ीिं और तो कु छ न ींि क ा, ाँू इतना देखा कक जब तक खड़ी र ी, आपकी ी तरफ उसकी टकटकी लगी ुई थी।' पडिं डतजी अकड़े जाते थे, हृदय फू ला जाता था, ल्जन् ोंने उनकी व अनुपम छवव देखी, वे ब ुत हदनों तक याद रखेंगे। मगर इस अतुल आनन्द का मकू य उन् ें ब ुत देना पड़ा, क्योंकक अब कॉलेज का सेशन समाप्त ोने वाला था और भमत्रों की पडिं डतजी के माथे एक बार दावत खाने की बड़ी अभभलाषा थी, प्रस्ताव ोने की देर थी। तीसरे हदन उनके नाम लूसी का पत्र प ुँूचा। ववयोग के दहु दयन आ र े ै, न-जाने आप क ाँू ोंगे और मंै क ाूँ ूँगी। मंै चा ती ूँ, इस अटल प्रेम की यादगार में एक दावत ो। अगर उसका व्यय आपके भलए असह्य ो तो मंै सम्पूणय भार लेने के भलए तयै ार ूँ। इस दावत मंे मैं और मेरी सखखयाँू-स ेभलयाूँ तनमिबं त्रत ोंगी। कॉलेज के छात्र और अध्यापकगण सल्म्मभलत ोंगे। भोजन के उपरान्त म अपने ववयुक्त हृदय के भावों के प्रकट करेंगे। काश, आपका िमय, आपकी जीवन-प्रणाली और मेरे माता-वपता की तनदययता बािक न ोती तो में ससंि ार की कोई शल्क्त जुदा न ींि करती। चक्रिर य पत्र पाते ी बौखला उठे । भमत्रों से क ा -'भाई, चलते-चलते एक बार स भोज तो ो जाए, कफर न जाने कौन क ाँू ोगा, भमस लूसी को भी बुलाया जाए।' यद्यवप पंिडडतजी के पास इस समय रूपए न थे, घर वाले उसनकी कफजलू खची की कई बार भशकायत कर चकु े थे, मगर पंिडडतजी का आतमाभभमान य कब मानता कक प्रीततभोज का भार लूसी पर रखा जाए। व तो अपने प्राण तक उस
पर वार चकु े थे। न-जाने क्या-क्या ब ाने बनाकर ससु राल से रुपए मूँगवाए और बड़े समारो से दावत की तयै ाररयाूँ ोने लगी। काडय छपवाए गए, भोजन परोसने वाले के भलए नई वरहदयाूँ बनवाई गईं। अगंि ्रजी और ह न्दसु ्तानी दोनों ी प्रकार के व्यिंजनों की व्यवस्था की गई। अंगि ्रेजी खाने के भलए रायल ोटल से बातचीत की गई, इसमें ब ुत सुवविा थी। यद्यवप चीजें ब ुत म ँूगी थीिं, लेककन झिंझट से नजात ो गई, अन्यथा सारा भार नईम और उसके दोस्त धगररिर पर पड़ता। ह न्दसु ्तानी भोजन के व्यवस्थापक धगररिर ुए। परू े दो सप्ता तक तैयाररयाूँ ुई थी। नईम और धगररिर तो कॉलेज मंे के वल मनोरंिजन के भलए थे, पढना-पढाना तो उनको था न ीिं, आमोद-प्रमोद ी में समय व्यतीत ककया करते थ।े कवव-सम्मेलन की भी ठ री, कववजनों के नाम बुलावे भेजे गए। साराशंि य कक बड़े पैमाने पर प्रीततभोज का प्रबन्ि ककया गया और भोज ुआ भी ववराट। ववद्यालय के नौकरों ने पूररयाँू बेचीं।ि ववद्यालय के इतत ास में व भोज धचरस्मरणीय र ेगा। भमत्रों ने खूब बढ-बढकर ाथ मारे। दो-तीन भमसें भी खीचिं बलु ाई गईं। भमरजा नईम लसू ी को घरे -घारकर ले ी आए। इसने भोजन को और भी रसमय बना हदया। ककन्तु शोक, म ाशोक। इस भोज का पररणाम अभागे चक्रिर के भलए ककयाणकारी न ुआ। चलते-चलते लल्ज्जत और अपमातनत ोना पड़ा था। भमत्रों की तो हदकलगी थी और उस बेचारे की जान पर बन र ी थी। सोचे, अब तो ववदा ोते ी ै, कफर मलु ाकात ो या न ो, अब ककस हदन के भलए सब्र करंे? मन के प्रेमोद्गार को तनकाल क्यों न लंे, कलेजा चीरकर हदखा क्यों न दें, औऱ लोग तो दावत खाने में जुटे ुए थे, और व मदन-बाण-पीडड़त यवु क बठै ा सोच र ा था कक य अभभलाषा क्योंकर पूरी ों? अब य आतमादमन क्यों? लज्जा क्यों? ववरल्क्त क्यों? गुप्त-रोदन क्यों? मौन-मुखापेक्षा क्यों? अन्तवदे ना क्यों? बठै े - बैठे प्रेम को कक्रयाशील बनाने के भलए मन मंे बल का सिचं ार करते र े, कभी देवताओंि का स्मरण करते, कभी ईश्वर को अपनी भल्क्त याद हदलाते, अवसर की
ताक में इस भाँूतत बैठे थे, जैसे बगलु ा मेढक की ताक में बैठता ै। भोज समाप्त ो गया, पान-इलाइची बट चकु ी थी, ववयोगवाताय ो चकु ी। भमस लसू ी अपनी श्रवणमिुर वाणी से हृदयों में ा ाकार मचा चकु ी, और भोजशाला से तनकलकर बाईभसककल पर बैठी। उिर कवव-सम्मेलन में इस तर भमसरा पढा गया - कोई दीवाना बनाए, कोई दीवाना बन।े इिर चक्रिर चुपके से लूसी के पीछे ो भलए और साईककल को भयिकं र वेग से दौड़ाते ुए उसे आिे रास्ते में जा पकड़ा। व इन् ें इस व्यग्रता से दौड़े आते देखकर स म उठी कक कोई दघु टय ना तो न ींि ो गई, बोली - 'वले पंिडडतजी! क्या बात ै? आप इतने बद वास क्यों ै? कु शल तो ै?' चक्रिर का गला भर आया, कल्म्पत स्वर से बोलो - 'अब आपसे सदैव के भलए बबछु ड़ ी जाऊूँ गा, य कहठन ववर -पीड़ा कै से स ी स ी जाएगी! मझु े तो शिंका ै, क ीिं पागल न ो जाऊँू !' लसू ी ने ववल्स्मत ोकर पछू ा -'आपकी मिशं ा क्या ै? आप बीमार ै क्या?' चक्रिर - 'आ डडयर डाभलगंा , तुम पछू ती ो, बीमार ूँ? मैं मर र ा ूँ, प्राण तनकल चुके ै के वल प्रेमाभभलाषा का अवलम्बन ै!' य क कर आपने उसका ाथ पकड़ना चा ा। व उनका उन्माद देखकर भयभीत ो गई। क्रोि में आकर बोली -'आप मुझे य ाूँ रोककर मेरा अपमान कर र े ै, इसके भलए आपको पछताना पड़गे ा।' चक्रिर -'लसू ी, देखो चलत-े चलते इतनी तनष्ठु रता न करो। मनैं े ये ववर के हदन ककस तर काटे ै, सो मेरा हदल ी जानता ै। मंै ी ऐसा बेगय ूँ कक अब तक जीता ूँ, दसू रा ोता तो अब तक चल बसा ोता, बस, के वल तमु ् ारी सुिामई पबत्रकाएूँ ी मेरे जीवन का एकमात्र आिार थी।'
लूसी -'मेरी पबत्रकाएँू! कै सी? मंै आपको कब पत्र भलख!े आप कोई नशा तो न ींि खा आए ै?' चक्रिर - 'डडयर डाभलगंा , इतनी जकद न भूल जाओ। इतनी तनदययता न हदखाओ, तुम् ारे वे प्रेम-पत्र, जो तुमने मुझे भलखे ै, मेरे जीवन की सबसे बड़ी सम्पतत र ेंगे। तमु ् ारे अनरु ोि से मनंै े य वेष िारण ककया, अपना संधि ्या- वन छोड़ा, य आचार-व्यव ार ग्र ण ककया। देखो तो जरा, मेरे हृदय पर ाथ रखकर, कै सी िड़कन ो र ी ै, मालूम ोता ै, बा र तनकल पड़गे ा। तमु ् ारा य कु हटल ास्य मेरे प्राण ी लेकर छोड़गे ा, मेरी अभभलाषाओं.ि ..।' लसू ी - 'तुम भिगं तो न ीिं खा गए ो या ककसी ने तमु ् े चकमा तो न ींि हदया ै? मंै तमु को प्रेम-पत्र भलखती, ः ः। जरा अपनी सरू त तो देखो, खासे बनलै े सअू र मालमू ोते ो।' ककन्तु पंडि डतजी अभी तक य ी समझ र े थे कक व मुझसे ववनोद कर र ी ै। उसका ाथ पकड़ने की चषे ्ठा करके बोले - 'वप्रये, ब ुत हदनों के बाद य सअु वसर भमला ै, अब न भागने पाओगी।' लूसी को अब क्रोि आ गया। उसने जोर से एक चाटँू ा उनके लगाया, और भसंि नी की भाँतू त गरजकर बोली - 'यू ब्लाड़ी! ट जा रास्ते से, न ीिं तो, अभी पुभलस को बुलाती ूँ, रॉस्कल!' पंडि डतजी चाटँू ा खाकर चौंधिया गए। आखूँ ों के सामने अििं ेरा छा गया, मानभसक आघात पर व शारीररक वज्रपात! य दु री ववपल्तत! व तो चाटँू ा मारकर वा ो गई और य व ींि जमीन पर बैठकर इस सम्पूणय वतृ ान्त की मन- ी-मन आलोचना करने लगे। चाटँू े ने बा र की आखँू ें आँूसओु ंि से भर दी थी,िं पर अन्दर की आँूखंे खोल दी थीिं। क ीिं कॉलेज के लौंडो ने तो य शरारत न ीिं की? अवश्य य ी बात ै, आ ! पाल्जयों ने बड़ा चकमा हदया! तभी सब-के -सब मुझे देख- देखकर ँूसा करते थ!े मंै भी कु छ कमअक्ल ूँ न ींि तो इनके ाथों टेसू क्यों
बनता! बड़ा झाँूसा हदया, उम्र-भर याद र ेगा, व ाूँ से झकलाए ुए आए और नईम से बोले - 'तुम बड़े दगाबाज ो, परले भसरे के ितू य, पाजी उकलू, गि,े शैतान!' नईम -'आखखर कोई बात भी कह ए, या गाभलयाूँ ो देते जाइएगा?' धगररिर -'क्या बात ुई, क ीिं लसू ी से आपने कु छ क ा तो न ीिं?' चक्रिर - 'उसी के पास से आ र ा ूँ, चाटूँ ा खाकर और मूँु में काभलख लगवाकर! तुम दोनों ने भमलकर मझु े खबू उकलू बनाया, इसकी कसर न लूँ तो मेरा नाम न ीिं। मैं न ींि जानता था कक तुम लोग भमत्र बनकर मेरी गरदन पर छु रा चला र े ो! अच्छा जो व गसु ्से मंे आकर वपस्तौल चला देती तो।' नईम -'अरे यार माशूकों की घातंे तनराली ोती ै!' चक्रिर - 'तमु ् ारा भसर! माशकू ंे चाँूटे लगाया करते ै, वे आखूँ ों से तीर चलाते ै, कटार मारते ै, या ाथों से मुल्ष्ठ-प्र ार करते ै?' धगररिर - 'उससे आपने क्या क ा?' चक्रिर - 'क ा क्या अपनी बबर व्यथा की गाथा सनु ाता र ा, इस पर उसने ऐसा चाटूँ ा रसीद ककया कक कान भन्ना उठे , ाथ ै उसके कक पतथर!' धगररिर -'गजब ी ो गया, आप ै तनरे चोंच! भले आदमी, इतनी मोटी बुव्ध ै तमु ् ारी! म क्या जानते थे कक आप ऐसे तछछोरे ै, न ींि तो मजाक ी क्यों करत।े अब आपके साथ म लोगों पर भी आफत आई। क ीिं उसने वप्रभंि सपल से भशकायत कर दी तो न इिर के ुए न उिर के , और जो क ींि अपने ककसी अगंि ्रेज आशना से क ा तो जान के लाले पड़ जाएँूगे। बड़े बेवकू फ ो यार, तनरे चोंच, इतना भी न ीिं समझे कक व सब हदकलगी थी, ऐसे बड़े खूबसूरत भी तो न ींि ो।'
चक्रिर- 'हदकलगी तमु ् ारे भलए थी, मेरी तो मौत ो गई। धचडड़या जान से गई, लड़कों का खेल ुआ, अब चुपके से मेरे पाँचू सौ रुपए लौटा दील्जए, न ींि तो गरदन ी तोड़ दँूगू ा!' नईम -'रुपयों के बदले खखदमत चा े ले लो, क ो तुम् ारी जामत बना दंे, जतू े साफ कर दें, भसर स ला दंे, बस, खाना देते जाना। कसम ले लो जो ल्जन्दगी-भर क ींि जाऊूँ , या तरक्की के भलए क ूँ, माँू-बाप के भसर से तो बोझ टल जाएगा।' चक्रिर - 'मत जले पर नमक तछड़को, जी! आप-के -आप गए, मुझे ले डू बे। तुम् ारी तो अंिग्रेजी अच्छी ै, लोट-पोटकर तनकल जाओगे, मंै तो पास भी न ूँगा। बदनाम ुआ, व अलग। पाचँू सौ की चपत भी पड़ी। य हदकलगी ै कक गला काटना? खरै समझँूगा और चा े मंै न समझूँ, पर ईश्वर जरूर समझेंगे।' नईम -'गलती ुई भाई, मुझे अब खदु इसका अफसोस ै।' धगररिर - 'खरै , रोने-िोने का अभी ब ुत मौका ै, अब य बतलाइए कक लूसी ने वप्रभंि सपल से क हदया तो क्या नतीजा ोगी, तीनों आदमी तनकाल हदए जाएूँगे, नौकरी से भी ाथ िोना पड़गे ा! कफर?' चक्रिर -'मंै तो वप्रभिं सपल से तमु लोगों की सारी कलई खोल दूँगू ा।' नईम - 'क्यों यार, दोस्त के य ी माने ै?' चक्रिर -'जी ाूँ, आप जसै े दोस्तों की य ी सजा ै।' उिर तो रात-भर मशु ायरे का बाजार गरम र ा और इिर य बत्रमूततय बठै ी प्राण- रक्षा के उपाय सोच र ी थी। वप्रभंि सपल के कानों तक बात प ुँूची और आफत आई। अंिग्रेज वाली बात ै, न जाने क्या कर बठै े । आखखर ब ुत वाद-वववाद के पश्चात य तनल्श्चत ुआ कक नईम और धगररिर प्रातःकाल भमस लसू ी के बिंगले
पर जाएँू, उससे क्षमा-याचना करें, और इस अपमान के भलए व जो प्रायल्श्चत क े, उसे स्वीकार करंे। चक्रिर - 'मंै एक कौड़ी न दूँगू ा।' नईम - 'ने देना भाई! मारी जान तो ै न।' धगररिर - 'जान लेकर व चाटेगी, प ले रुपए की कफक्र कर लो! व बबना तावान भलए न मानगे ी।' नईम - 'भाई, चक्रिर, खदु ा के भलए इस वक्त हदल न छोटा करो, न ीिं तो म तीनों की भमट्टी खराब ोगी, जो कु छ ुआ उसे मआु फ करो, अब कफर ऐसी खता न ोगी।' चक्रिर -'ऊँू , य ी न ोगा कक तनकाल हदया जाऊूँ गा, दकु ान खोल लँूगा, तमु ् ारी भमट्टी भी खराब ोगी, इस शरारत का मजा चखोगे, ओ कै सा चकमा हदया।' ब ुत खशु ामद औऱ धचरौरी के बाद देवता सीिे ुए। प्रातःकाल नईम लूसी के बंिगले पर प ुूँचे, व ाँू मालमू ुआ कक व वप्रभिं सपल के बिंगले पर गई ै। अब काटो तो बदन मंे ल ू न ी।िं या अली, तमु ् ींि मलु ्श्कल को आसान करने वाले ो, अब जान की खैर न ीि।ं वप्रभंि सपल ने सुना तो कच्चा खा जाएगा, नमक तक न माँगू ेगा। इस कम्बख्त पंडि डत की बदौलत अजाब में जान फँू सी। इस बे ूदे को सूझी क्या? चला नाजनीन से इश्क जतान!े बनववलास की-सी तो आपकी सरू त ै और खब्त य कक य मा रू मुझ पर रीझ गई। में भी अपने साथ डू बोए देता ै, क ीिं लसू ी से रास्ते में मलु ाकात ो गई तो शायद आरजू-भमन्नत करने से मान जाए, लेककन जो व ाँू प ुँूच चुकी ै तो कफर कोई उम्मीद न ीं।ि व कफर परै गाड़ी पर बठै े और बेत ाशा वप्रभंि सपल के बिंगले की तरफ भागे। ऐसे तजे जा र े थे, मानो पीछे मौत आ र ी ै, जरा-सी ठोकर लगती तो ड्डी-पसली चूर-चूर ो जाती। पर शोक! क ीिं लसू ी का पता न ीिं, आिा रास्ता तनकल गया और लूसी
की गदय तक न नजर आई। नैराश्य ने गतत को मन्द कर हदया, कफर ह म्मत करके चले। बिंगले के द्वार पर भी भमल गई तो जान बच जाएगी। स सा लसू ी हदखाई दी। नईम ने पैरों को और तजे चलाना शुरू ककया, व वप्रभिं सपल के बंगि ले पर प ुूँच चुकी थी, एक सेकिं ड में वारा-न्यारा ोता था, नाव डू बती थी या पार जाती थी। हृदय उछल-उछलकर कंि ठ तक आ र ा था। जोर से पुकारा - 'भमस टरनर, ेलो भमस टरनर, जरा ठ र जाओ।' लसू ी ने पीछे कफरकर देखा, नईम को प चान गई और बोली -'मुझसे पंिडडत की भसफाररश करने तो न ींि आए ो! मैं वप्रभंि सपल से उसकी भशकायत करने जा र ी ूँ।' नईम -'तो प ले मझु े और धगररिर- दोनों को गोली मार दो, कफर जाना।' लूसी -'बे या लोगों पर गोली का असर न ींि ोता, उसने मझु े इंिसकट ककया ै।' नईम - 'लूसी, तमु ् ारे कसूरवार मी दोनों ै, व बेचारा पंिडडत तो मारे ाथ का खखलौना था, सारी शरारत म लोगों की थी, कसम तुम् ारे भसर की!' लूसी - 'You naughty boy!' नईम - ' म दोनों उसे हदल-ब लाव का एक स्वांिग बनाए ुए थे, इसकी मंे जरा भी खबर न थी, कक व तुम् ंे छे ड़ने लगेगा। म तो समझते थे कक उससें इतनी ह म्मत ी न ींि ै। खदु ा के भलए मुआफ करो, वरना म तीनों का खनू तमु ् ारी गरदन पर ोगा।' लसू ी -'खरै , तमु क ते ो तो वप्रभंि सपल से न क ूँगी, लेककन शतय य ै कक पंिडडत मेरे सामने बीस मरतबा कान पकड़कर उठे -बठै े औऱ मुझे कम-स-े कम 200 रुपए तावान दे।'
नईम - 'लसू ी, इतनी बेर मी न करो, य समझो, उस गरीब के हदल पर क्या गुजर र ी ोगी, काश, अगर तुम इतनी सीन न ोती।' लसू ी मसु ्कराकर बोली - 'खशु ामद करना कोई तुमसे सीख ले।' नईम - 'तो अब वापस चलो।' लसू ी - 'मेरी दोनों शते बातंे मजंि रू करते ो न?' नईम - 'तुम् ारी दसू री शतय तो म भमलकर पूरी कर दंेगे, लेककन प ली शतय सख्त ै, बेचारा ज र खाकर मर जाएगा। ा,ूँ उसके एवज में मैं पचास दफा कान पकड़कर उठ-बैठ सकता ूँ।' लसू ी - 'तमु छिं टे ुए शो दे ो, तुम् ें शमय क ा!ँू मंै उसी को सजा देना चा ती ूँ, बदमाश, मेरा ाथ पकड़ना चा ता था।' नईम - 'जरा भी र म न करोगी!' लूसी - 'न ीिं, सौ बार न ीि।ं ' नईम लूसी को साथ लाए। पिडं ड़त के सामने दोनों शतें रखी गई तो बेचारा बबलबबला उठा। लूसी के परै ों पर धगर पड़ा और भससक-भससककर रोने लगा। नईम और धगररिर भी अपने कु कृ तय पर लल्ज्जत ुए। अन्त में लूसी को दया आई और बोली - 'अच्छा, इन दोनों मंे से कोई एक शतय मजिं रू कर लो मंै माफ कर दँूगू ी।' लोगों को ववश्वास था कक चक्रिर रुपए वाली शतय स्वीकार करेंगे। लूसी के सामने व कभी कान पकड़कर उठा-बठै ी न करेगा, इसभलए जब चक्रिर ने क ा - 'मैं रुपए तो न दँूगु ा, ाँू, बीस की जग चालीस बार उठा-बैठी कर लूँगा।' तो
सब लोग चककत ो गए, नईम ने क ा - 'यार, क्यों म लोगों को जलील करते ो? रुपए क्यों न ींि देत?े ' चक्रिर - 'रुपए ब ुत खचय कर चुका, अब इस चडु लै के भलए कानी कौड़ी तो खचय करूूँ गा न ींि, दो सौ ब ुत ोते ै। इसने समझा ोगा, चलकर मजे से दो सौ रुपए मार लाऊूँ गी। य न ोगा, अब तक रुपए खचय करके अपनी ूँसी कराई ै, अब बबन खचय ककए ूँसी कराऊूँ गा। मेरे पैरों मे ददय ो बला से, सब लोग ूँस बला से, पर इसकी मुट्ठी तो न गरम ोगी।' य क कर चक्रिर ने कु रता उतार फंे का, िोती ऊपर चढा ली और बरामदे से नीचे मदै ान मंे उतरकर उठा-बैठी करने लगे। मुखमंिडल क्रोि से तमतमाता ुआ था, पर व बैठकंे लगाए जाते थे, मालूम ोता था, कोई प लवान अपना करतब हदखा र ा ै। पिडं डत ने अगर बुव्ध मता का कभी पररचय हदया तो इसी अवसर पर। सब लोग खड़े थे, पर ककसी के ोठों पर ँूसी न थी? सब लोग हदन नंे कटे जाते थे। य ाँू तक कक लसू ी को भी भसर उठाने का सा स न ोता था, भसर गड़ाए बठै ी थी, शायद उसे खदे ो र ा था कक मनैं े ना क य दंिड-योजना की। बीस बार उठत-े बठै ते ककतनी देर लगती ै, पडिं डत ने खूब उच्च स्वर से धगन- धगनकर बीस की संिख्या परू ी की और गवय से भसर उठाए अपने कमरे मंे चले गए, लसू ी ने उन् ें अपमातनत करना चा ा था, उलटे उसी का अपमान ो गया। इस दघु टय ना के पश्चात एक सप्ता तक कॉलेज खुला र ा, ककन्तु पंडि डतजी को ककसी ने ँूसते न ीिं देखा। व ववमन औऱ ववरक्त भाव से अपने कमरे मंे बैठे र ते थे, लसू ी का नाम जबान पर आते झकला पड़ते थे। इस साल की परीक्षा मंे पडंि डतजी फे ल ो गए, पर इस कॉलेज में कफर न आए, शायद अलीगढ चले गए। ***
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