Important Announcement
PubHTML5 Scheduled Server Maintenance on (GMT) Sunday, June 26th, 2:00 am - 8:00 am.
PubHTML5 site will be inoperative during the times indicated!

Home Explore Mansarovar_clone

Mansarovar_clone

Published by THE MANTHAN SCHOOL, 2021-04-06 04:47:47

Description: Mansarovar

Search

Read the Text Version

प्रेमचंदि मानसरोवर भाग 3 ह दंि ीकोश www.hindikosh.in

Manasarovar – Part 3 By Premchand य पुस्तक प्रकाशनाधिकार मुक्त ै क्योंकक इसकी प्रकाशनाधिकार अवधि समाप्त ो चकु ी ंै। This work is in the public domain in India because its term of copyright has expired. यूनीकोड ससंि ्करण: सजंि य खत्री. 2012 Unicode Edition: Sanjay Khatri, 2012 आवरण धचत्र: ववककपीडडया (प्रेमचदिं , मानसरोवर झील) Cover image: Wikipedia.org (Premchand, Manasarovar Lake). ह दिं ीकोश Hindikosh.in http://www.hindikosh.in

Contents ववश्वास........................................................................................................4 नरक का मागग ............................................................................................25 स्त्री और परु ुष............................................................................................34 उद्धार .........................................................................................................42 ननवासग न.....................................................................................................52 नरै ाश्य लीला ..............................................................................................61 कौशल .......................................................................................................77 स्वगग की देवी .............................................................................................83 आिार .......................................................................................................94 एक आचंि की कसर...................................................................................102 माता का ह्रदय..........................................................................................109 परीक्षा ...................................................................................................... 120 तेंतर ........................................................................................................124 नैराश्य .....................................................................................................134 दिंड ..........................................................................................................148 धिक्कार (2).............................................................................................165

विश्िास उन हदनो ममस जोसी बम्बई सभ्य-समाज की राधिका थी। थी तो व एक छोटी सी कन्या पाठशाला की अध्यावपका पर उसका ठाट-बाट, मान-सम्मान बडी-बडी िन-राननयों को भी लज्जजत करता था। व एक बडे म ल मंे र ती थी, जो ककसी जमाने में सतारा के म ाराज का ननवास-स्थान था। व ँॉ सारे हदन नगर के रईसों, राजों, राज-कमचाररयों का तांिता लगा र ता था। व सारे प्रातिं के िन और कीनतग के उपासकों की देवी थी। अगर ककसी को खखताब का खब्त था तो व ममस जोशी की खुशामद करता था। ककसी को अपने या सबिं िी के मलए कोई अच्छा ओ दा हदलाने की िुन थी तो व ममस जोशी की अरािना करता था। सरकारी इमारतों के ठीके ; नमक, शराब, अफीम आहद सरकारी चीजों के ठीके ; लो े-लकडी, कल-परु जे आहद के ठीके सब ममस जोशी ी के ाथो मंे थे। जो कु छ करती थी व ी करती थी, जो कु छ ोता था उसी के ाथो ोता था। ज्जस वक्त व अपनी अरबी घोडो की कफटन पर सरै करने ननकलती तो रईसों की सवाररयांि आप ी आप रास्ते से ट जाती थी, बडे दकु ानदार खडे ो- ो कर सलाम करने लगते थ।े व रूपवती थी, लेककन नगर में उससे बढ़कर रूपवती रमखणयांि भी थी। व समु शक्षक्षता थीिं, वक्चतरु थी, गाने में ननपणु , ंिसती तो अनोखी छवव से, बोलती तो ननराली घटा से, ताकती तो बािंकी धचतवन से; लेककन इन गुणो मंे उसका एकाधिपत्य न था। उसकी प्रनतष्ठा, शज्क्त और कीनतग का कु छ और ी र स्य था। सारा नगर ी न ी ; सारे प्रान्त का बच्चा जानता था कक बम्बई के गवनरग ममस्टर जौ री ममस जोशी के बबना दामों के गुलाम ै।ममस जोशी की आिखं ो का इशारा उनके मलए नाहदरशा ी ुक्म ै। व धथएटरो मंे दावतों मंे, जलसों मंे ममस जोशी के साथ साये की भ नॉँ त र ते ै। और कभी-कभी उनकी मोटर रात के सन्नाटे मंे ममस जोशी के मकान से ननकलती ुई लोगो को हदखाई देती ै। इस प्रेम में वासना की मात्रा अधिक ै या भज्क्त की, य कोई न ी जानता । लेककन ममस्टर जौ री वववाह त ै और ममस जौशी वविवा, इसमलए जो लोग उनके प्रेम को कलुवषत क ते ै, वे उन पर कोई अत्याचार न ींि करत।े

बम्बई की व्यवस्थावपका-सभा ने अनाज पर कर लगा हदया था और जनता की ओर से उसका ववरोि करने के मलए एक ववराट सभा ो र ी थी। सभी नगरों से प्रजा के प्रनतननधि उसमें सज्म्ममलत ोने के मलए जारो की संखि ्या में आये थे। ममस जोशी के ववशाला भवन के सामने, चौडे मदै ान मंे री-भरी घास पर बम्बई की जनता उपनी फररयाद सुनाने के मलए जमा थी। अभी तक सभापनत न आये थे, इसमलए लोग बठै े गप-शप कर र े थ।े कोई कमचग ारी पर आक्षपे करता था, कोई देश की ज्स्थनत पर, कोई अपनी दीनता पर—अगर म लोगो में अगडने का जरा भी सामर्थयग ोता तो मजाल थी कक य कर लगा हदया जाता, अधिकाररयों का घर से बा र ननकलना मुज्श्कल ो जाता। मारा जरुरत से जयादा सीिापन में अधिकाररयों के ाथों का खखलौना बनाए ुए ै। वे जानते ंै कक इन् ें ज्जतना दबाते जाओ, उतना दबते जायेगें, मसर न ींि उठा सकत।े सरकार ने भी उपद्रव की आंशि का से सशस्त्र पुमलस बुला ली।ैै उस मदै ान के चारों कोनो पर मसपाह यों के दल डरे ा डाले पडे थे। उनके अफसर, घोडों पर सवार, ाथ में ंिटर मलए, जनता के बीच में ननश्शिंक भाव से घोंडे दौडाते कफरते थे, मानों साफ मैदान ै। ममस जोशी के ऊंि चे बरामदे में नगर के सभी बड-े बडे रईस और राजयाधिकारी तमाशा देखने के मलए बठै े ुए थ।े ममस जोशी मे मानों का आदर-सत्कार कर र ी थीिं और ममस्टर जौ री, आराम-कु सी परलेटे, इस जन-समू को घणृ ा और भय की दृज्ष्ट से देख र े थे। स सा सभापनत म ाशय आपटे एक ककराये के तांिगे पर आते हदखाई हदये। चारों तरफ लचल मच गई, लोग उठ-उठकर उनका स्वागत करने दौडे और उन् ंे ला कर मिंच पर बेठा हदया। आपटे की अवस्था ३०-३५ वषग से अधिक न थी ; दबु ले-पतले आदमी थे, मुख पर धचन्ता का गाढ़ा रिंग-चढ़ा ुआ था। बाल भी पक चले थे, पर मखु पर सरल ास्य की रेखा झलक र ी थी। व एक सफे द मोटा कु रता प ने थे, न पांिव मंे जतू े थे, न मसर पर टोपी। इस अद्धनगग ्न, दबु लग , ननस्तजे प्राणी में न जाने कौल-सा जादू था कक समस्त जनता उसकी

पजू ा करती थी, उसके परै ों मंे न जाने कौन सा जादू था कक समस्त जरत उसकी पूजा करती थी, उसके पैरों पर मसर रगडती थी। इस एक प्राणी क ाथों में इतनी शज्क्त थी कक व क्षण मात्र में सारी ममलों को बिदं करा सकता था, श र का सारा कारोबार ममटा सकता था। अधिकाररयों को उसके भय से नीिंद न आती थी, रात को सोत-े सोते चौंक पडते थ।े उससे जयादा भंियकर जन्तु अधिकाररयों की दृज्ष्टमंे दसू रा नथा। ये प्रचिंड शासन-शज्क्त उस एक ड्डी के आदमी से थरथर कापंि ती थी, क्योंकक उस ड्डी मंेएक पववत्र, ननष्कलकिं , बलवान और हदव्य आत्मा का ननवास था। 2 आपटे नें मंचि पर खडें ोकर प ले जनता को शािंत धचत्त र ने और अह सिं ा- व्रत पालन करने का आदेश हदया। कफर देश में राजनननतक ज्स्थनत का वणगन करने लगे। स सा उनकी दृज्ष्ट सामने ममस जोशी के बरामदे की ओर गई तो उनका प्रजा-दखु पीडडत हृदय नतलममला उठा। य ांि अगखणत प्राणी अपनी ववपज्त्त की फररयाद सनु ने के मलए जमा थे और व ािं मंेजो पर चाय और बबस्कु ट, मेवे और फल, बफग और शराब की रेल-पेल थी। वे लोग इन अभागों को देख-देख ंिसते और तामलयािं बजाते थ।े जीवन में प ली बार आपटे की जबान काबू से बा र ो गयी। मेघ की भानिं त गरज कर बोले— ‘इिर तो मारे भाई दाने-दाने को मु ताज ो र े ै, उिर अनाज पर कर लगाया जा र ा ै, के वल इसमलए कक राजकमगचाररयों के लवे-पूरी मंे कमी न ो। म जो देश जो देश के राजा ंै, जो छाती फाड कर िरती से िन ननकालते ैं, भूखों मरते ंै; और वे लोग, ज्जन् ंे मने अपने सखु और शानत की व्यवस्था करने के मलए रखा ै, मारे स्वामी बने ुए शराबों की बोतले उडाते ंै। ककतनी अनोखी बात ै कक स्वामी भखू ों मरें और सेवक शराबंे उडाय,ें मेवे खायें और इटली और स्पेन की ममठाइयांि चलंे! य ककसका अपराि ै? क्या सेवकों का? न ींि, कदावप न ींि, मारा ी अपराि ै कक मने अपने सेवकों को इतना

अधिकार दे रखा ै। आज म उच्च स्वर से क देना चा ते ैं कक म य क्रू र और कु हटल व्यव ार न ींि स सकत।े य मारंे मलए असह्य ै कक म और मारे बाल-बच्चे दानों को तरसंे और कमचग ारी लोग, ववलास में डू बंे ुए मारे करूण-क्रन्दन की जरा भी परवा न करत ुए वव ार करंे। य असह्य ै कक मारंे घरों मंे चलू ् ें न जलें और कमचग ारी लोग धथएटरों में कश करें, नाच-रंिग की म कफलंे सजायें, दावतें उडाय,ें वशे ्चाओंि पर किं चन की वषाग करें। सिंसार मंे और कसा कौन कसा देश ोगा, ज ांि प्रजा तो भखू ी मरती ो और प्रिान कमचग ारी अपनी प्रेम-कक्रडा मंे मग्न ो, ज ािं ज्स्त्रयांि गमलयों मंे ठोकरें खाती कफरती ों और अध्यावपकाओंि का वेष िारण करने वाली वेश्याएिं आमोद- प्रमोद के नशंे मंे चरू ों... 3 एकाएक सशस्त्र मसपाह यों के दल में लचल पड गई। उनका अफसर ुक्म दे र ा था—सभा भिंग कर दो, नेताओिं को पकड लो, कोई न जाने पाए। य ववद्रो ात्मक व्याख्यान ै। ममस्टर जौ री ने पमु लस के अफसर को इशारे पर बलु ाकर क ा—और ककसी को धगरफ्तार करने की जरुरत न ीं।ि आपटे ी को पकडो। व ी मारा शत्रु ै। पमु लस ने डडंि े चलने शुरु ककये। और कई मसपाह यों के साथ जाकर अफसर ने अपटे का धगरफ्तार कर मलया। जनता ने त्यौररयािं बदलीि।ं अपने प्यारे नते ा को यों धगरफ्तार ोते देख कर उनका िैयग ाथ से जाता र ा। लेककन उसी वक्त आपटे की ललकार सनु ाई दी—तमु ने अह संि ा-व्रत मलया ै ओर अगर ककसी ने उस व्रत को तोडा तो उसका दोष मेरे मसर ोगा। मंै तमु से

सववनय अनुरोि करता ूिं कक अपने-अपने घर जाओ।िं अधिकाररयों ने व ी ककया जो म समझते थे। इस सभा से मारा जो उद्दशे ्य था व परू ा ो गया। म य ािं बलवा करने न ीिं , के वल ससंि ार की ननै तक स ानुभूनत प्राप्त करने के मलए जमा ुए थे, और मारा उद्देश्य पूरा ो गया। एक क्षण में सभा भगंि ो गयी और आपटे पमु लस की वालात मंे भेज हदए गये 4 ममस्टर जौ री ने क ा—बच्चा ब ुत हदनों के बाद पंिजे मंे आए ंै, राज-द्रो कामकु दमा चलाकर कम से कम १० साल के मलए अडिं मान भंेजगू ाि।ं ममस जोशी—इससे क्या फायदा? ‘क्यों? उसको अपने ककए की सजा ममल जाएगी।’ ‘लेककन सोधचए, में उसका ककतना मूल्य देना पडगे ा। अभी ज्जस बात को धगन-े धगनाये लोग जानते ैं, व सारे ससंि ार मंे फै लेगी और म क ीिं मुिं हदखाने लायक न ींि र ेंगें। आप अखबारों मंे सिंवाददाताओिं की जबान तो न ीिं बिंद कर सकत।े ’ ‘कु छ भी ो मैं इसे जोल मंे सडाना चा ता ूंि। कु छ हदनों के मलए तो चनै की नींिद नसीब ोगी। बदनामी से डरना ी व्यथग ै। म प्रांति के सारे समाचार-पत्रों को अपने सदाचार का राग अलापने के मलए मोल ले सकते ैं। म प्रत्येक लािछं न को झठू साबबत कर सकते ैं, आपटे पर ममर्थया दोषारोपरण का अपराि लगा सकते ंै।’ ‘मैं इससे स ज उपाय बतला सकती ूिं। आप आपटे को मेरे ाथ में छोड दीज्जए। मंै उससे ममलगूंि ी और उन यतिं ्रों से, ज्जनका प्रयोग करने मंे मारी जानत मसद्ध स्त ै, उसके आंति ररक भावों और ववचारों की था लेकर आपके

सामने रख दंिगू ी। मंै कसे प्रमाण खोज ननकालना चा ती ूिं ज्जनके उत्तर में उसे मुिं खोलने का सा स न ो, और ससंि ार की स ानुभनू त उसके बदले मारे साथ ो। चारों ओर से य ी आवाज आये कक य कपटी ओर िूतग था और सरकर ने उसके साथ व ी व्यव ार ककया ै जो ोना चाह ए। मझु े ववश्वास ै कक व षंडि ्यंित्रकाररयों को मखु खया ै और मंै इसे मसद्ध कर देना चा ती ूिं। मंै उसे जनता की दृज्ष्ट मंे देवता न ीिं बनाना चा तींि ूिं, उसको राक्षस के रुप मंे हदखाना चा ती ूंि। ‘कसा कोई परु ुष न ींि ै, ज्जस पर यवु ती अपनी मोह नी न डाल सके ।’ ‘अगर तुम् ंे ववश्वास ै कक तुम य काम परू ा कर हदखाओिंगी, तो मुझे कोई आपज्त्त न ीिं ै। मंै तो के वल उसे दिंड देना चा ता ूंि।’ ‘तो ुक्म दे दीज्जए कक व इसी वक्त छोड हदया जाय।’ ‘जनता क ींि य तो न समझगे ी कक सरकार डर गयी?’ ‘न ीिं, मेरे ख्याल मंे तो जनता पर इस व्यव ार का ब ुत अच्छा असर पडगे ा। लोग समझगे ंे कक सरकार ने जनमत का सम्मान ककया ै।’ ‘लेककन तमु ् ंे उसेक घर जाते लोग देखेंगे तो मन में क्या क ेंगे?’ ‘नकाब डालकर जाऊंि गी, ककसी को कानोंकान खबर न ोगी।’ ‘मझु े तो अब भी भय ै कक व तमु ् े सदंि े की दृज्ष्ट से देखेगा और तुम् ारे पजंि े में न आयेगा, लेककन तुम् ारी इच्छा ै तो आजमा देखों।’ य क कर ममस्टर जौ री ने ममस जोशी को प्रेममय नते ्रों से देखा, ाथ ममलाया और चले गए।

आकाश पर तारे ननकले ुए थे, चतै की शीतल, सुखद वायु चल र ी थी, सामने के चौडे मदै ान मंे सन्नाटा छाया ुआ था, लेककन ममस जोशी को कसा मालूम ुआ मानों आपटे मंिच पर खडा बोल र ा ै। उसक शांित, सौम्य, ववषादमय स्वरुप उसकी आिखं ों मंे समाया ुआ था। 5 प्रात:काल ममस जोशी अपने भवन से ननकली, लेककन उसके वस्त्र ब ुत सािारण थे और आभषू ण के नाम शरीर पर एक िागा भी नथा। अलिकं ार-वव ीन ो कर उसकी छवव स्वच्छ, जल की भानंि त और भी ननखर गयी। उसने सडक पर आकर एक तािंगा मलया और चली। आपटे का मकान गरीबों के एक दरू के मु ल्ले मंे था। तािगं ेवाला मकान का पता जानता था। कोई हदक्कत न ुई। ममस जोशी जब मकान के द्वार पर प ुिंची तो न जाने क्यों उसका हदल िडक र ा था। उसने कापिं ते ुए ाथों से किंु डी खटखटायी। एक अिेड औरत ननकलकर द्वार खोल हदय। ममस जोशी उस घर की सादगी देख दंिग र गयी। एक ककनारंे चारपाई पडी ुई थी, एक टू टी आलमारी मंे कु छ ककताबें चुनी ुई थींि, फशग पर खखलने का डसे ्क था ओर एक रस्सी की अलगनी पर कपडे लटक र े थ।े कमरे के दसू रे ह स्से में एक लो े का चलू ् ा था और खाने के बरतन पडे ुए थ।े एक लम्बा-तगडा आदमी, जो उसी अिडे औरत का पनत था, बैठा एक टू टे ुए ताले की मरम्मत कर र ा था और एक पाचंि -छ वषग का तजे स्वी बालक आपटे की पीठ पर चढ़ने के मलए उनके गले मंे ाथ डाल र ा था।आपटे इसी लो ार के साथ उसी घर में र ते थे। समाचार-पत्रों के लेख मलखकर जो कु छ ममलता उसे दे देते और इस भािंनत गृ -प्रबििं की धचतंि ाओंि से छु ट्टी पाकर जीवन व्यतीत करते थंे।

ममस जोशी को देखकर आपटे जरा चौंके , कफर खडे ोकर उनका स्वागत ककया ओर सोचने लगे कक क ांि बैठाऊंि । अपनी दररद्रता पर आज उन् ें ज्जतनी लाज आयी उतनी और कभी न आयी थी। ममस जोशी उनका असमिंजस देखकर चारपाई पर बैठ गयी और जरा रुखाई से बोली—मंै बबना बलु ाये आपके य ािं आने के मलए क्षमा मागंि ती ूंि ककिं तु काम कसा जरुरी था कक मेरे आये बबना परू ा न ो सकता। क्या मंै एक ममनट के मलए आपसे एकाितं मंे ममल सकती ूिं। आपटे ने जगन्नाथ की ओर देख कर कमरे से बा र चले जाने का इशारा ककया। उसकी स्त्री भी बा र चली गयी। के वल बालक र गया। व ममस जोशी की ओर बार-बार उत्सुक आखिं ों से देखता था। मानों पछू र ा ो कक तमु आपटे दादा की कौन ो? ममस जोशी ने चारपाई से उतर कर जमीन पर बैठते ुए क ा—आप कु छ अनुमान कर सकते ंै कक इस वक्त क्यों आयी ूिं। आपटे ने झंेपते ुए क ा—आपकी कृ पा के मसवा और क्या कारण ो सकता ै? ममस जोशी—न ीिं, ससिं ार इतना उदार न ींि ुआ कक आप ज्जसे गािंमलयािं दंे, व आपको िन्यवाद दे। आपको याद ै कक कल आपने अपने व्याख्यान में मझु पर क्या-क्या आक्षपे ककए थे? मंै आपसे जोर देकर क ती ूिं ककवे आक्षेप करके आपने मुझपर घोर अत्याचार ककया ै। आप जसै े सहृदय, शीलवान, ववद्वान आदमी से मझु े कसी आशा न थी। मंै अबला ूंि, मेरी रक्षा करने वाला कोई न ीिं ै? क्या आपको उधचत था कक एक अबला पर ममर्थयारोपण करें? अगर मंै परु ुष ोती तो आपसे ड्यलू खले ने काक आग्र करती । अबला ूंि, इसमलए आपकी सजजनता को स्पशग करना ी मेरे ाथ में ै। आपने मुझ पर जो लाछंि न लगाये ैं, वे सवथग ा ननमलूग ंै। आपटे ने दृढ़ता से क ा—अनुमान तो बा री प्रमाणों से ी ककया जाता ै।

ममस जोशी—बा री प्रमाणों से आप ककसी के अितं स्तल की बात न ींि जान सकते । आपटे—ज्जसका भीतर-बा र एक न ो, उसे देख कर भ्रम में पड जाना स्वाभाववक ै। ममस जोशी— ांि, तो व आपका भ्रम ै और मैं चा ती ूंि कक आप उस कलकंि को ममटा दे जो आपने मुझ पर लगाया ै। आप इसके मलए प्रायज्श्चत करेंगे? आपटे—अगर न करूिं तो मझु से बडा दरु ात्मा संिसार मंे न ोगा। ममस जोशी—आप मझु पर ववश्वास करते ंै। आपटे—मनैं े आज तक ककसी रमणी पर ववश्वास न ींि ककया। ममस जोशी—क्या आपको य संिदे ो र ा ै कक मंै आपके साथ कौशल कर र ी ूिं? आपटे ने ममस जोशी की ओर अपने सदय, सजल, सरल नेत्रों से देख कर क ा— बाई जी, मंै गवंि ार और अमशष्ट प्राणी ूंि। लेककन नारी-जानत के मलए मेरे हृदय में जो आदर ै, व श्रद्धा से कम न ींि ै, जो मझु े देवताओंि पर ंै। मनंै े अपनी माता का मखु न ीिं देखा, य भी न ीिं जानता कक मेरा वपता कौन था; ककिं तु ज्जस देवी के दया-वकृ ्ष की छाया में मेरा पालन-पोषण ुआ उनकी प्रेम-मनू तग आज तक मेरी आंखि ों के सामने ै और नारी के प्रनत मेरी भज्क्त को सजीव रखे ुए ै। मै उन शब्दों को मिंु से ननकालने के मलए अत्यंित द:ु खी और लज्जजत ूंि जो आवशे मंे ननकल गये, और मै आज ी समाचार-पत्रों में खदे प्रकट करके आपसे क्षमा की प्राथनग ा करुिं गा। ममस जोशी का अब तक अधिकाशिं स्वाथी आदममयों ी से साबबका पडा था, ज्जनके धचकने-चपु डे शब्दों मंे मतलब छु पा ुआ था। आपटे के सरल ववश्वास

पर उसका धचत्त आनंिद से गद्गद ो गया। शायद व गगिं ा में खडी ोकर अपने अन्य ममत्रों से य क ती तो उसके फै शनबे लु ममलने वालों में से ककसी को उस पर ववश्वास न आता। सब मिुं के सामने तो ‘ ांि- ांि’ करते, पर बा र ननकलते ी उसका मजाक उडाना शुरु करत।े उन कपटी ममत्रों के सम्मुख य आदमी था ज्जसके एक-एक शब्द मंे सच्चाई झलक र ी थी, ज्जसके शब्द अतिं स्तल से ननकलते ुए मालमू ोते थे। आपटे उसे चपु देखकर ककसी और ी धचतंि ा में पडे ुए थें।उन् ंे भय ो र ा था अब मंै चा े ककतना क्षमा मािंग,ू ममस जोशी के सामने ककतनी सफाइयांि पेश करूिं , मेरे आक्षेपों का असर कभी न ममटेगा। इस भाव ने अज्ञात रुप से उन् ें अपने ववषय की गुप्त बातें क ने की प्रेरणा की जो उन् ें उसकी दृज्ष्ट मंे लघु बना दंे, ज्जससे व भी उन् ें नीच समझने लगे, उसको सिंतोष ो जाए कक य भी कलुवषत आत्मा ै। बोले—मैं जन्म से अभागा ूिं। माता-वपता का तो मुंि ी देखना नसीब न ुआ, ज्जस दयाशील मह ला ने मझु े आश्रय हदया था, व भी मझु े १३ वषग की अवस्था में अनाथ छोडकर परलोक मसिार गयी। उस समय मेरे मसर पर जो कु छ बीती उसे याद करके इतनी लजजा आती े कक ककसी को मुिं न हदखाऊिं । मनैं े िोबी का काम ककया; मोची का काम ककया; घोडे की साईसी की; एक ोटल मंे बरतन मािंजता र ा; य ािं तक कक ककतनी ी बार क्षिु ासे व्याकु ल ोकर भीख मागंि ी। मजदरू ी करने को बुरा न ींि समझता, आज भी मजदरू ी ी करता ूिं। भीख मांगि नी भी ककसी-ककसी दशा मंे क्षम्य ै, लेककन मनैं े उस अवस्था में कसे-कसे कमग ककए, ज्जन् ें क ते लजजा आती ै—चोरी की, ववश्वासघात ककया, य ांि तक कक चोरी के अपराि में कै द की सजा भी पायी। ममस जोशी ने सजल नयन ोकर क ा—आज य सब बातंे मुझसे क्यों कर र े ैं? मैं इनका उल्लेख करके आपको ककतना बदनाम कर सकतीिं ूंि, इसका आपको भय न ींि ै?

आपटे ने ंिसकर क ा—न ीिं, आपसे मुझे भय न ींि ै। ममस जोशी—अगर मैं आपसे बदला लेना चा ूिं, तो? आपटे—जब मंै अपने अपराि पर लज्जजत ोकर आपसे क्षमा मागंि र ा ूंि, तो मेरा अपराि र ा ी क ाँा, ज्जसका आप मुझसे बदला लेंगी। इससे तो मुझे भय ोता ै कक आपने मुझे क्षमा न ीिं ककया। लेककन यहद मनंै े आपसे क्षमा न मांिगी तो मुझसे तो बदला न ले सकतीिं। बदला लेने वाले की आखिं ंे यो सजल न ींि ो जाया करती।िं मंै आपको कपट करने के अयोग्य समझता ूिं। आप यहद कपट करना चा तींि तो य ांि कभी न आती।िं ममस जोशी—मै आपका भेद लेने ी के मलए आयी ूिं। आपटे—तो शौक से लीज्जए। मैं बतला चकु ा ूंि कक मनंै े चोरी के अपराि मंे कै द की सजा पायी थी। नामसक के जले में रखा गया था। मेरा शरीर दबु लग था, जले की कडी मे नत न ो सकती थी और अधिकारी लोग मझु े कामचोर समझ कर बेंतो से मारते थ।े आखखर एक हदन मैं रात को जले से भाग खडा ुआ। ममस जोशी—आप तो नछपे रुस्तम ननकले! आपटे— कसा भागा कक ककसी को खबर न ुई। आज तक मेरे नाम वारिंट जारी ै और ५०० रु.का इनाम भी ै। ममस जोशी—तब तो मंै आपको जरुर पकडा दिंगू ी। आपटे—तो कफर मंै आपको अपना असल नाम भी बता देता ूंि। मेरा नाम दामोदर मोदी ै। य नाम तो पमु लस से बचने के मलए रख छोडा ै।

बालक अब तक तो चपु चाप बठै ा ुआ था। ममस जोशी के मंुि से पकडाने की बात सुनकर व सजग ो गया। उन् ें डांिटकर बोला— माले दादा को कौन पकडगे ा? ममस जोशी—मसपा ी और कौन? बालक— म मसपा ी को मालंेगे। य क कर व एक कोने से अपने खले ने वाला डडिं ा उठा लाया और आपटे के पास वीरोधचता भाव से खडा ो गया, मानो मसपाह यों से उनकी रक्षा कर र ा ै। ममस जोशी—आपका रक्षक तो बडा ब ादरु मालूम ोता ै। आपटे—इसकी भी एक कथा ै। साल-भर ोता ै, य लडका खो गया था। मझु े रास्ते में ममला। मंै पछू ता-पछू ता इसे य ांि लाया। उसी हदन से इन लोगों से मेरा इतना प्रेम ो गया कक मैं इनके साथ र ने लगा। ममस जोशी—आप अनमु ान कर सकते ंै कक आपका वतृ ान्त सनु कर मंै आपको क्या समझ र ी ूंि। आपटे—व ी, जो मंै वास्तव में ूिं....नीच, कमीना िूत.ग ... ममस जोशी—न ीिं, आप मझु पर कफर अन्याय कर र े ै। प ला अन्याय तो क्षमा कर सकती ूिं, य अन्याय क्षमा न ींि कर सकती। इतनी प्रनतकू ल दशाओिं में पडकर भी ज्जसका हृदय इतना पववत्र, इतना ननष्कपट, इतना सदय ो, व आदमी न ींि देवता ै। भगवन,् आपने मझु पर जो आक्षेप ककये व सत्य ैं। मंै आपके अनुमान से क ींि भ्रष्ट ूिं। मैं इस योग्य भी न ीिं ूंि कक आपकी ओर ताक सकिंू । आपने अपने हृदय की ववशालता हदखाकर मेरा असली

स्वरुप मेरे सामने प्रकट कर हदया। मुझे क्षमा कीज्जए, मुझ पर दया कीज्जए। य क ते-क ते व उनके परैं ो पर धगर पडी। आपटे ने उसे उठा मलया और बोले—ईश्वर के मलए मझु े लज्जजत न करो। ममस जोशी ने गद्गद कंि ठ से क ा---आप इन दषु ्टों के ाथ से मेरा उद्धार कीज्जए। मुझे इस योग्य बनाइए कक आपकी ववश्वासपात्री बन सकिंू । ईश्वर साक्षी ै कक मझु े कभी-कभी अपनी दशा पर ककतना दखु ोता ै। मंै बार- बार चषे ्टा करती ूंि कक अपनी दशा सुिारुिं ; इस ववलामसता के जाल को तोड दिं,ू जो मेरी आत्मा को चारों तरफ से जकडे ुए ै, पर दबु लग आत्मा अपने ननश्चय पर ज्स्थत न ींि र ती। मेरा पालन-पोषण ज्जस ढंिग से ुआ, उसका य पररणाम ोना स्वाभाववक-सा मालूम ोता ै। मेरी उच्च मशक्षा ने गहृ णी- जीवन से मेरे मन में घणृ ा पदै ा कर दी। मझु े ककसी परु ुष के अिीन र ने का ववचार अस्वाभाववक जान पउत़ ा था। मैं गहृ णी की ज्जम्मेदाररयों और धचतंि ाओंि को अपनी मानमसक स्वािीनता के मलए ववष-तुल्य समझती थी। मंै तकग बुवद्ध से अपने स्त्रीत्व को ममटा देना चा ती थी, मैं पुरुषों की भािनं त स्वततंि ्र र ना चा ती थी। क्यों ककसी की पािंबद ोकर र ूिं? क्यों अपनी इच्छाओिं को ककसी व्यज्क्त के साचंि े मंे ढाल?ू क्यों ककसी को य अधिकार दिंू कक तमु ने य क्यों ककया, व क्यों ककया? दाम्पत्य मेरी ननगा मंे तचु ्छ वस्तु थी। अपने माता-वपता की आलोचना करना मेरे मलए अधचत न ींि, ईश्वर उन् ें सद्गनत दे, उनकी राय ककसी बात पर न ममलती थी। वपता ववद्वान ् थे, माता के मलए ‘काला अक्षर भसंै बराबर’ था। उनमें रात-हदन वाद-वववाद ोता र ता था। वपताजी कसी स्त्री से वववा ो जाना अपने जीवन का सबसे बडा दभु ागग्य समझते थ।े व य क ते कभी न थकते थे कक तुम मेरे पांवि की बेडी बन गयींि, न ींि तो मैं न जाने क ािं उडकर प ुिंचा ोता। उनके ववचार मे सारा दोष माता की अमशक्षा के मसर था। व अपनी एकमात्र पुत्री को मूखाग माता से संसि गग से दरू रखना चा ते थ।े माता कभी मझु से कु छ क तींि तो वपताजी उन

पर टू ट पडत—े तुमसे ककतनी बार क चुका कक लडकी को डािंटो मत, व स्वयिं अपना भला-बुरा सोच सकती ै, तुम् ारे डांिटने से उसके आत्म-सम्मान का ककतना िक्का लगेगा, य तमु न ीिं जान सकतींि। आखखर माताजी ने ननराश ोकर मुझे मेरे ाल पर छोड हदया और कदाधचत ् इसी शोक में चल बसींि। अपने घर की अशानंि त देखकर मझु े वववा से और भी घणृ ा ो गयी। सबसे बडा असर मुझ पर मेरे कालेज की लेडी वप्रमंि सपल का ुआ जो स्वयिं अवववाह त थींि। मेरा तो अब य ववचार ै कक यवु को की मशक्षा का भार के वल आदशग चररत्रों पर रखना चाह ए। ववलास में रत, कालेजों के शौककन प्रोफे सर ववद्याधथयग ों पर कोई अच्छा असर न ींि डाल सकते । मंै इस वक्त कसी बात आपसे क र ी ूिं। पर अभी घर जाकर य सब भूल जाऊंि गी। मैं ज्जस ससंि ार मंे ूाँ, उसकी जलवायु ी दवू षत ै। व ािं सभी मझु े कीचड में लतपत देखना चा ते ै।, मेरे ववलासासक्त र ने मंे ी उनका स्वाथग ै। आप व प ले आदमी ैं ज्जसने मुझ पर ववश्वास ककया ै, ज्जसने मझु से ननष्कपट व्यव ार ककया ै। ईश्वर के मलए अब मुझे भलू न जाइयेगा। आपटे ने ममस जोशी की ओर वेदना पूणग दृज्ष्ट से देखकर क ा—अगर मैं आपकी कु छ सेवा कर सकूँा तो य मेरे मलए सौभाग्य की बात ोगी। ममस जोशी! म सब ममट्टी के पुतले ंै, कोई ननदोषग न ीं।ि मनषु ्य बबगडता ै तो पररज्स्थनतयों से, या पवू ग सिसं ्कारों से । पररज्स्थनतयों का त्याग करने से ी बच सकता ै, सिंस्कारों से धगरने वाले मनुष्य का मागग इससे क ीिं कहठन ै। आपकी आत्मा सुन्दर और पववत्र ै, के वल पररज्स्थनतयों ने उसे कु रे की भािनं त ढिंक मलया ै। अब वववके का सूयग उदय ो गया ै, ईश्वर ने चा ातो कु रा भी फट जाएगा। लेककन सबसे प ले उन पररज्स्थनतयों का त्याग करने को तयै ार ो जाइए। ममस जोशी—य ी आपको करना ोगा।

आपटे ने चुभती ुई ननगा ों से देख कर क ा—वदै ्य रोगी को जबरदस्ती दवा वपलाता ै। ममस जोशी –मैं सब कु छ करुगींि। मंै कडवी से कडवी दवा वपयंूिगी यहद आप वपलायगें े। कल आप मेरे घर आने की कृ पा करंेगे, शाम को? आपटे—अवश्य आऊंि गा। ममस जोशी ने ववदा देते ुए क ा—भूमलएगा न ींि, मंै आपकी रा देखती र ूंिगी। अपने रक्षक को भी लाइएगा। य क कर उसने बालक को गोद मे उठाया ओर उसे गले से लगा कर बा र ननकल आयी। गवग के मारे उसके पांवि जमीन पर न पडते थे। मालूम ोता था, वामें उडी जा र ी ै, प्यास से तडपते ुए मनषु ्य को नदी का तट नजर आने लगा था। 6 दसू रे हदन प्रात:काल ममस जोशी ने मे मानों के नाम दावती काडग भेजे और उत्सव मनाने की तैयाररयािं करने लगी। ममस्टर आपटे के सम्मान में पाटी दी जा र ी थी। ममस्टर जौ री ने काडग देखा तो मुस्कराये। अब म ाशय इस जाल से बचकर क ांि जायेगे। ममस जोशी ने ने उन् ंे फसाने के मलए य अच्छी तरकीब ननकाली। इस काम में ननपणु मालूम ोती ै। मनै े सकझा था, आपटे चालाक आदमी ोगा, मगर इन आन्दोलनकारी ववद्राह यों को बकवास करने के मसवा और क्या सूझ सकती ै। चार ी बजे मे मान लोग आने लगे। नगर के बडे-बडे अधिकारी, बडे-बडे व्यापारी, बडे-बडे ववद्वान, समाचार-पत्रों के सम्पादक, अपनी-अपनी मह लाओिं के साथ आने लगे। ममस जोशी ने आज अपने अच्छे -से-अच्छे वस्त्र और

आभूषण ननकाले ुए थे, ज्जिर ननकल जाती थी मालूम ोता था, अरुण प्रकाश की छटा चली आर ी ै। भवन में चारों ओर सुगिंि की लपटे आ र ी थीिं और मिुर सगिं ीत की ध्वनन वा मंे गजंूि र ींि थी। पांिच बजते-बजते ममस्टर जौ री आ प ुंिचे और ममस जोशी से ाथ ममलाते ुए मुस्करा कर बोले—जी चा ता ै तुम् ारे ाथ चमू लूंि। अब मुझे ववश्वास ो गया कक य म ाशय तमु ् ारे पजंि े से न ीिं ननकल सकत।े ममसेज पेहटट बोलींि—ममस जोशी हदलों का मशकार करने के मलए ी बनाई गई ै। ममस्टर सोराब जी—मनैं े सुना ै, आपटे बबलकु ल गवंि ार-सा आदमी ै। ममस्टर भरुचा—ककसी यूननवमसटग ी मंे मशक्षा ी न ींि पायी, सभ्यता क ािं से आती? ममस्टर भरुचा—आज उसे खूब बनाना चाह ए। म ंित वीरभद्र डाढ़ी के भीतर से बोले—मनैं े सनु ा ै नाज्स्तक ै। वणाशग ्रम िमग का पालन न ींि करता। ममस जोशी—नाज्स्तक तो मै भी ूंि। ईश्वर पर मेरा भी ववश्वास न ीिं ै। म िंत—आप नाज्स्तक ों, पर आप ककतने ी नाज्स्तकों को आज्स्तक बना देती ैं। ममस्टर जौ री—आपने लाख की बात की क ींि मिं त जी! ममसेज भरुचा—क्यों म िंत जी, आपको ममस जोशी ी न आज्स्तक बनाया ै क्या?

स सा आपटे लो ार के बालक की उिं गली पकडे ुए भवन में दाखखल ुए। व परू े फै शनेबुल रईस बने ुए थ।े बालक भी ककसी रईस का लडका मालूम ोता था। आज आपटे को देखकर लोगो को ववहदत ुआ कक व ककतना सदु िंर, सजीला आदमी ै। मखु से शौयग ननकल र ा था, पोर-पोर से मशष्टता झलकती थी, मालमू ोता था व इसी समाज मंे पला ै। लोग देख र े थे कक व क ीिं चकू े और तामलयांि बजाय,ें क ी कदम कफसले और क क े लगायंे पर आपटे मचिं े ुए खखलाडी की भानिं त, जो कदम उठाता था व सिा ुआ, जो ाथ हदखलाता था व जमा ुआ। लोग उसे प ले तचु ्छ समझते थे, अब उससे ईष्याग करने लगे, उस पर फबनतयािं उडानी शुरु कीिं। लेककन आपटे इस कला मंे भी एक ी ननकला। बात मंुि से ननकली ओर उसने जवाब हदया, पर उसके जवाब मंे मामलन्य या कटु ता का लेश भी न ोता था। उसका एक-एक शब्द सरल, स्वच्छ , धचत्त को प्रसन्न करने वाले भावों में डू बा ोता था। ममस जोशी उसकी वाक्यचातुरी पर फु ल उठती थी? सोराब जी—आपने ककस यूननवमसटग ी से मशक्षा पायी थी? आपटे—यनू नवमसटग ी मंे मशक्षा पायी ोती तो आज मैं भी मशक्षा-ववभाग का अध्यक्ष ोता। ममसेज भरुचा—मंै तो आपको भयकिं कर जंति ु समझती थी? आपटे ने मसु ्करा कर क ा—आपने मुझे मह लाओिं के सामने न देखा ोगा। स सा ममस जोशी अपने सोने के कमरे मंे गयी ओर अपने सारे वस्त्राभूषण उतार फंे के । उसके मखु से शुभ्र सकंि ल्प का तजे ननकल र ा था। नेंत्रो से दबी जयोनत प्रस्फु हटत ो र ी थी, मानों ककसी देवता ने उसे वरदान हदया ो। उसने सजे ुए कमरे को घणृ ा से देखा, अपने आभूषणों को परै ों से ठु करा हदया और एक मोटी साफ साडी प नकर बा र ननकली। आज प्रात:काल ी उसने य साडी मंिगा ली थी।

उसे इस नेय वेश मंे देख कर सब लोग चककत ो गये। कायापलट कै सी? स सा ककसी की आखिं ों को ववश्वास न आया; ककंि तु ममस्टर जौ री बगलंे बजाने लगे। ममस जोशी ने इसे फिं साने के मलए य कोई नया स्वांिग रचा ै। ‘ममत्रों! आपको याद ै, परसों म ाशय आपटे ने मझु े ककतनी गािमं लयांि दी थी। य म ाशय खडे ैं । आज मैं इन् ें उस दवु ्यवग ार का दण्ड देना चा ती ूंि। मंै कल इनके मकान पर जाकर इनके जीवन के सारे गुप्त र स्यों को जान आयी। य जो जनता की भीड गरजते कफरते ै, मेरे एक ी ननशाने पर धगर पड।े मैं उन र स्यों के खोलने मंे अब ववलिंब न करुंि गी, आप लोग अिीर ो र े ोगंे। मनैं े जो कु छ देखा, व इतना भंियकर ै कक उसका वतृ ाितं सनु कर शायद आप लोगों को मूछाग आ जायेगी। अब मुझे लेशमात्र भी संदि े न ीिं ै कक य म ाशय पक्के देशद्रो ी ै....’ ममस्टर जौ री ने ताली बजायी ओर तामलयों के ल गिंूज उठा। ममस जोशी—लेककन राज के द्रो ी न ींि, अन्याय के द्रो ी, दमन के द्रो ी, अमभमान के द्रो ी... चारों ओर सन्नाटा छा गया। लोग ववज्स्मत ोकर एक दसू रे की ओर ताकने लगे। ममस जोशी—गुप्त रुप से शस्त्र जमा ककए ै और गपु ्त रुप से त्याऍ िं की ैं... ममस्टर जौ री ने तामलयािं बजायी और तामलयािं का दौगडा कफर बरस गया। ममस जोशी—लेककन ककस की त्या? द:ु ख की, दररद्रता की, प्रजा के कष्टों की, ठिमी की ओर अपने स्वाथग की।

चारों ओर कफर सन्नाटा छा गया और लोग चककत ो- ो कर एक दसू रे की ओर ताकने लगे, मानो उन् ंे अपने कानों पर ववश्वास न ींि ै। ममस जोशी—म ाराज आपटे ने डकै नतयािं की और कर र े ैं... अब की ककसी ने ताली न बजायी, लोग सुनना चा ते थे कक देखे आगे क्या क ती ै। ‘उन् ोंने मझु पर भी ाथ साफ ककया ै, मेरा सब कु छ अप रण कर मलया ै, य ािं तक कक अब मंै ननरािार ूंि और उनके चरणों के मसवा मेरे मलए कोई आश्रय न ीिं ै। प्राण्िार! इस अबला को अपने चरणों में स्थान दो, उसे डू बने से बचाओ। मंै जानती ूंि तुम मुझे ननराश न करोंगें।’ य क ते-क ते व जाकर आपटे के चरणों मंे धगर पडी। सारी मण्डली स्तंमि भत र गयी। 7 एक सप्ता गजु र चुका था। आपटे पमु लस की ह रासत मंे थ।े उन पर चार अमभयोग चलाने की तयै ाररयांि चल र ीिं थी। सारे प्रांित में लचल मची ुई थी। नगर में रोज सभाएिं ोती थींि, पुमलस रोज दस-पाचंि आदममयािं को पकडती थी। समाचार-पत्रों मंे जोरों के साथ वाद-वववाद ो र ा था। रात के नौ बज गये थ।े ममस्टर जौ री राज-भवन में मेंज पर बैठे ुए सोच र े थे कक ममस जोशी को क्यों कर वापस लाएंि? उसी हदन से उनकी छाती पर सांपि लोट र ा था। उसकी सरू त एक क्षण के मलए आिखं ों से न उतरती थी। व सोच र े थे, इसने मेरे साथ कसी दगा की! मनैं े इसके मलएक्या कु छ न ींि ककया? इसकी कौन-सी इच्छा थी, जो मनै े पूरी न ींि की इसी ने मुझसे बेवफाई

की। न ींि, कभी न ीिं, मंै इसके बगरै ज्जिदं ा न ींि र सकता। दनु नया चा े मुझे बदनाम करे, त्यारा क े, चा े मुझे पद से ाथ िोना पडे, लेककन आपटे को न ीिं छोडूगाि।ं इस रोडे को रास्ते से टा दंिगू ा, इस कांटि े को प लू से ननकाल बा र करुंि गा। स सा कमरे का दरवाजा खुला और ममस जाशी ने प्रवेश ककया। ममस्टर जौ री कबका कर कु सी पर से उठ खडे ुए, य सोच र े थे कक शायद ममस जोशी ने ननराश ोकर मेरे पास आयी ैं, कु छ रुखे, लेककन नम्र भाव से बोले—आओ बाला, तुम् ारी याद मंे बठै ा था। तुम ककतनी ी बेवफाई करो, पर तुम् ारी याद मेरे हदल से न ीिं ननकल सकती। ममस जोशी—आप के वल जबान से क ते ै। ममस्टर जौ री—क्या हदल चीरकर हदखा दंि?ू ममस जोशी—प्रेम प्रनतकार न ींि करता, प्रेम में दरु ाग्र न ीिं ोता। आप मरे खून के प्यासे ो र े ैं, उस पर भी आप क ते ैं, मंै तुम् ारी याद करता ूंि। आपने मेरे स्वामी को ह रासत में डाल रखा ै, य प्रेम ै! आखखर आप मझु से क्या चा ते ैं? अगर आप समझ र े ों कक इन सज्ख्तयों से डर कर मै आपकी शरण आ जाऊंि गी तो आपका भ्रम ै। आपको अज्ख्तयार ै कक आपटे को काले पानी भेज दंे, फांसि ी चढ़ा दें, लेककन इसका मुझ परकोई असर न ोगा।व मेरे स्वमी ंै, मैं उनको अपना स्वामी समझती ूिं। उन् ोने अपनी ववशाल उदारता से मेरा उद्धार ककया । आप मझु े ववषय के फिं दो मंे फंि साते थे, मेरी आत्मा को कलुवषत करते थे। कभी आपको य खयाल आया कक इसकी आत्मा पर क्या बीत र ी ोगी? आप मुझे आत्मशुन्य समझते थ।े इस देवपुरुष ने अपनी ननमलग स्वच्छ आत्मा के आकषणग से मुझे प ली ी मलु ाकात मंे खीचंि मलया। मैं उसकी ो गयी और मरते दम तक उसी की र ूंिगी। उस मागग से अब आप टा न ींि सकत।े मुझे एक सच्ची आत्मा की जरुरत थी , व मुझे ममल गयी।

उसे पाकर अब तीनों लोक की सम्पदा मेरी आिखं ो में तचु ्छ ै। मैं उनके ववयोग में चा े प्राण दे दंि,ू पर आपके काम न ींि आ सकती। ममस्टर जौ री—ममस जोशी । प्रेम उदार न ीिं ोता, क्षमाशील न ींि ोता । मेरे मलए तमु सवसग ्व ो, जब तक मंै समझता ूिं कक तुम मेरी ो। अगर तुम मेरी न ीिं ो सकती तो मुझे इसकी क्या धचतिं ा ो सकती ै कक तुम ककस हदशा मंे ो? ममस जोशी—य आपका अंिनतम ननणयग ै? ममस्टर जौ री—अगर मैं क दिंू कक ािं, तो? ममस जोशी ने सीने से वपस्तौल ननकाल कर क ा—तो प ले आप की लाश जमीन पर फडकती ोगी और आपके बाद मेरी ,बोमलए। य आपका अनिं तम ननणयग ननश्चय ै? य क कर ममस जोशी ने जौ री की तरफ वपस्तौल सीिा ककया। जौ री कु सी से उठ खडे ुए और मुस्कर बोले—क्या तमु मेरे मलए कभी इतना सा स कर सकती थीिं? जाओ,ंि तमु ् ारा आपटे तुम् ें मबु ारक ो। उस पर से अमभयोग उठा मलया जाएगा। पववत्र प्रेम ी मे य सा स ै। अब मझु े ववश्वास ो गया कक तुम् ारा प्रेम पववत्र ै। अगर कोई परु ाना पापी भववष्यवाणी कर सकता ै तो मंै क ता ूंि, व हदन दरू न ींि ै, जब तमु इस भवन की स्वाममनी ोगी। आपटे ने मुझे प्रेम के क्षते ्र में न ींि, राजनीनत के क्षते ्र में भी परास्त कर हदया। सच्चा आदमी एक मलु ाकात में ी जीवन बदल सकता ै, आत्मा को जगा सकता ै और अज्ञान को ममटा कर प्रकाश की जयोनत फै ला सकता ै, य आज मसद्ध ो गया। ***

नरक का मार्ग रात “भक्तमाल” पढ़त-े पढ़ते न जाने कब नींदि आ गयी। कै से-कै से म ात्मा थे ज्जनके मलए भगवत-् प्रेम ी सब कु छ था, इसी मंे मग्न र ते थे। कसी भज्क्त बडी तपस्या से ममलती ै। क्या मैं व तपस्या न ींि कर सकती? इस जीवन मंे और कौन-सा सखु रखा ै? आभूषणों से ज्जसे प्रेम ो जाने , य ािं तो इनको देखकर आंिखे फू टती ै;िन-दौलत पर जो प्राण देता ो व जाने, य ांि तो इसका नाम सुनकर जवर-सा चढ़ आता ंै। कल पगली सुशीला ने ककतनी उमगिं ों से मेरा श्रगंिृ ार ककया था, ककतने प्रेम से बालों में फू ल गिूथं ।े ककतना मना करती र ी, न मानी। आखखर व ी ुआ ज्जसका मझु े भय था। ज्जतनी देर उसके साथ िंसी थी, उससे क ींि जयादा रोयी। ससिं ार मंे कसी भी कोई स्त्री ै, ज्जसका पनत उसका श्रगंिृ ार देखकर मसर से पािवं तक जल उठे ? कौन कसी स्त्री ै जो अपने पनत के मंुि से ये शब्द सनु —े तमु मेरा परलोग बबगाडोगी, और कु छ न ीिं, तुम् ारे रंिग-ढिंग क े देते ंै---और मनुष्य उसका हदल ववष खा लेने को चा े। भगवान!् संसि ार मंे कसे भी मनषु ्य ैं। आखखर मंै नीचे चली गयी और ‘भक्तमाल’ पढ़ने लगी। अब वदिंृ ावन बब ारी ी की सेवा करुिं गी उन् ीिं को अपना श्रिगंृ ार हदखाऊिं गी, व तो देखकर न जलेगे। व तो मारे मन का ाल जानते ंै। 2 भगवान! मंै अपने मन को कै से समझाऊंि ! तुम अंितयागमी ो, तमु मेरे रोम-रोम का ाल जानते ो। मंै चा ती ुंि कक उन् ें अपना इष्ट समझूंि, उनके चरणों की सेवा करुिं , उनके इशारे पर चलूंि, उन् ंे मेरी ककसी बात से, ककसी व्यव ार से नाममात्र, भी द:ु ख न ो। व ननदोष ैं, जो कु छ मेरे भाग्य में था व ुआ, न उनका दोष ै, न माता-वपता का, सारा दोष मेरे नसीबों ी का ै। लेककन य सब जानते ुए भी जब उन् ें आते देखती ूिं, तो मेरा हदल बठै जाता ै, मु पर मुरदनी सी-छा जाती ै, मसर भारी ो जाता ै, जी चा ता ै इनकी सरू त न

देखिूं, बात तक करने को जी न ी चा ता; कदाधचत ् शत्रु को भी देखकर ककसी का मन इतना क्लांित न ींि ोता ोगा। उनके आने के समय हदल मंे िडकन सी ोने लगती ै। दो-एक हदन के मलए क ीिं चले जाते ैं तो हदल पर से बोझ उठ जाता ै। ंिसती भी ूंि, बोलती भी ूिं, जीवन मंे कु छ आनिंद आने लगता ै लेककन उनके आने का समाचार पाते ी कफर चारों ओर अंििकार! धचत्त की कसी दशा क्यों ै, य मंै न ींि क सकती। मुझे तो कसा जान पडता ै कक पूवजग न्म मंे म दोनों में बैर था, उसी बैर का बदला लेने के मलए उन् ोंने मझु से े वववा ककया ै, व ी परु ाने ससंि ्कार मारे मन मंे बने ुए ैं। न ींि तो व मझु े देख-देख कर क्यों जलते और मंै उनकी सरू त से क्यों घणृ ा करती? वववा करने का तो य मतलब न ीिं ुआ करता! मंै अपने घर क ींि इससे सुखी थी। कदाधचत ् मैं जीवन-पयनग ्त अपने घर आनंिद से र सकती थी। लेककन इस लोक-प्रथा का बुरा ो, जो अभाधगन कनयाओिं को ककसी-न-ककसी परु ुष के गलंे मंे बाििं देना अननवायग समझती ै। व क्या जानता ै कक ककतनी युवनतयांि उसके नाम को रो र ी ै, ककतने अमभलाषाओिं से ल राते ुए, कोमल हृदय उसके परै ो तल रौंदे जा र े ै? यवु नत के मलए पनत कै सी-कै सी मिरु कल्पनाओंि का स्रोत्र ोता ै, परु ुष मंे जो उत्तम ै, श्रेष्ठ ै, दशगनीय ै, उसकी सजीव मनू तग इस शब्द के ध्यान में आते ी उसकी नजरों के सामने आकर खडी ो जाती ै।लेककन मेरे मलए य शब्द क्या ै। हृदय मंे उठने वाला शूल, कलेजे में खटकनेवाला कािंटा, आिंखो मंे गडने वाली ककरककरी, अिंत:करण को बेिने वाला व्यंगि बाण! सशु ीला को मेशा ंिसते देखती ूंि। व कभी अपनी दररद्रता का धगला न ींि करती; ग ने न ींि ैं, कपडे न ीिं ंै, भाडे के नन् ंेसे मकान मंे र ती ै, अपने ाथों घर का सारा काम-काज करती ै , कफर भी उसे रोते न ीिं देखती अगर अपने बस की बात ोती तो आज अपने िन को उसकी दररद्रता से बदल लेती। अपने पनतदेव को मसु ्कराते ुए घर में आते देखकर उसका सारा द:ु ख दाररद्रय छू मतंि र ो जाता ै, छाती गज-भर की ो जाती ै। उसके प्रेमामलगंि न मंे व सखु ै, ज्जस पर तीनों लोक का िन न्योछावर कर दिं।ू

3 आज मझु से जब्त न ो सका। मनैं े पछू ा—तुमने मझु से ककसमलए वववा ककया था? य प्रश्न म ीनों से मेरे मन में उठता था, पर मन को रोकती चली आती थी। आज प्याला छलक पडा। य प्रश्न सनु कर कु छ बौखला-से गये, बगलें झाकने लगे, खीसें ननकालकर बोले—घर सिभं ालने के मलए, गृ स्थी का भार उठाने के मलए, और न ींि क्या भोग-ववलास के मलए? घरनी के बबना य आपको भतू का डरे ा-सा मालमू ोता था। नौकर-चाकर घर की सम्पनत उडाये देते थे। जो चीज ज ािं पडी र ती थी, कोई उसको देखने वाला न था। तो अब मालमू ुआ कक मंै इस घर की चौकसी के मलए लाई गई ूंि। मझु े इस घर की रक्षा करनी चाह ए और अपने को िन्य समझना चाह ए कक य सारी सम्पनत मेरी ै। मखु ्य वस्तु सम्पज्त्त ै, मै तो के वल चौकी दाररन ूंि। कसे घर में आज ी आग लग जाये! अब तक तो मंै अनजान में घर की चौकसी करती थी, ज्जतना व चा ते ंै उतना न स ी, पर अपनी बवु द्ध के अनसु ार अवश्य करती थी। आज से ककसी चीज को भूलकर भी छू ने की कसम खाती ूंि। य मैं जानती ूिं। कोई पुरुष घर की चौकसी के मलए वववा न ींि करता और इन म ाशय ने धचढ़ कर य बात मुझसे क ी। लेककन सशु ीला ठीक क ती ै, इन् ें स्त्री के बबना घर सनु ा लगता ोगा, उसी तर जैसे वपजंि रे में धचडडया को न देखकर वपजंि रा सूना लगता ै। य म ज्स्त्रयों का भाग्य! 4 मालमू न ींि, इन् ें मुझ पर इतना सिंदे क्यो ोता ै। जब से नसीब इस घर में लाया ैं, इन् ें बराबर संिदे -मलू क कटाक्ष करते देखती ूिं। क्या कारण ै? जरा बाल गुथवाकर बठै ी और य ोठ चबाने लगे। क ींि जाती न ीिं, क ीिं आती न ींि, ककसी से बोलती न ींि, कफर भी इतना सदिं े ! य अपमान असह्य ै। क्या मुझे अपनी आबरु प्यारी न ीिं? य मुझे इतनी नछछोरी क्यों समझते ंै, इन् ें मुझपर संदि े करते लजजा भी न ीिं आती? काना आदमी ककसी को िंसते देखता ै तो समझता ै लोग मझु ी पर ाँस र े ै। शायद इन् ंे भी य ी ब म ो

गया ै कक मैं इन् ें धचढ़ाती ूिं। अपने अधिकार के बा र से बा र कोई काम कर बैठने से कदाधचत ् मारे धचत्त की य ी वजृ ्त्त ो जाती ै। मभक्षुक राजा की गद्दी पर बैठकर चैन की नीिंद न ींि सो सकता। उसे अपने चारों तरफ शुत्र हदखायी दंेगें। मै समझती ूंि, सभी शादी करने वाले बडु ्ढ़ो का य ी ाल ै। आज सुशीला के क ने से मैं ठाकु र जी की झािकं ी देखने जा र ी थी। अब य सािारण बुवद्ध का आदमी भी समझ सकता ैकक फू ड ब ू बनकर बा र ननकलना अपनी ंिसी उडाना ै, लेककन आप उसी वक्त न जाने ककिर से टपक पडे और मेरी ओर नतरस्कापणू ग नेत्रों से देखकर बोले—क ाँा की तैयारी ै? मनंै े क हदया, जरा ठाकु र जी की झांिकी देखने जाती ूिं। इतना सुनते ी त्योररयािं चढ़ाकर बोले—तुम् ारे जाने की कु छ जरुरत न ीिं। जो अपने पनत की सेवा न ींि कर सकती, उसे देवताओिं के दशगन से पणु ्य के बदले पाप ोता। मझु से उडने चली ो । मंै औरतों की नस-नस प चानता ूिं। कसा क्रोि आया कक बस अब क्या क ूिं। उसी दम कपडे बदल डाले और प्रण कर मलया कक अब कभ दशनग करने जाऊंि गी। इस अववश्वास का भी कु छ हठकाना ै! न जाने क्या सोचकर रुक गयी। उनकी बात का जवाब तो य ी था कक उसी क्षण घरसे चल खडी ुई ोती, कफर देखती मेरा क्या कर लेत।े इन् ंे मेरा उदास और ववमन र ने पर आश्चयग ोता ै। मुझे मन-मंे कृ तघ्न समझते ै। अपनी समणमंे इन् ोने मरे से वववा करके शायद मुझ पर ए सान ककया ै। इतनी बडी जायदाद और ववशाल सम्पज्त्त की स्वाममनी ोकर मझु े फू ले न समाना चाह ए था, आठो प रइनका यशगान करते र ना

चाह ये था। मंै य सब कु छ न करके उलटे और मंिु लटकाए र ती ूंि। कभी- कभी बेचारे पर दया आती ै। य न ींि समझते कक नारी-जीवन में कोई कसी वस्तु भी ै ज्जसे देखकर उसकी आंिखों मंे स्वगग भी नरकतलु ्य ो जाता ै। 5 तीन हदन से बीमार ैं। डाक्टर क ते ैं, बचने की कोई आशा न ींि, ननमोननया ो गया ै। पर मुझे न जाने क्यों इनका गम न ींि ै। मंै इनती वज्र-हृदय कभी न थी।न जाने व मेरी कोमलता क ािं चली गयी। ककसी बीमार की सूरत देखकर मेरा हृदय करुणा से चिंचल ो जाता था, मैं ककसी का रोना न ीिं सनु सकती थी। व ी मैं ूंि कक आज तीन हदन से उन् ें बगल के कमरे में पडे करा ते सुनती ूिं और एक बार भी उन् ंे देखने न गयी, आखंि ो मंे आसंि ू का ज्जक्र ी क्या। मझु े कसा मालमू ोता ै, इनसे मेरा कोई नाता ी न ीिं मझु े चा े कोई वपशाचनी क े, चा े कु लटा, पर मझु े तो य क ने मंे लेशमात्र भी सिंकोच न ींि ै कक इनकी बीमारी से मझु े एक प्रकार का ईष्यागमय आनदंि आ र ा ै। इन् ोने मुझे य ांि कारावास दे रखा था—मैं इसे वववा का पववत्र नाम न ीिं देना चा ती---य कारावास ी ै। मंै इतनी उदार न ींि ूंि कक ज्जसने मझु े कै द मे डाल रखा ो उसकी पूजा करुिं , जो मुझे लात से मारे उसक परै ो का चंमूि ू। मझु े तो मालूम ो र ा था। ईश्वर इन् ंे इस पाप का दण्ड दे र े ै। मै ननस्सकोंच ोकर क ती ूिं कक मेरा इनसे वववा न ीिं ुआ ै। स्त्री ककसी के गले बांिि हदये जाने से ी उसकी वववाह ता न ीिं ो जाती। व ी सियं ोग वववा का पद पा सकता ै। ज्जसंि मे कम-से-कम एक बार तो हृदय प्रेम से पुलककत ो जाय! सनु ती ूिं, म ाशय अपने कमरे में पडे-पडे मझु े कोसा करते ैं, अपनी बीमारी का सारा बुखार मुझ पर ननकालते ैं, लेककन य ािं इसकी परवा न ी।िं ज्जसका जी चा े जायदाद ले, िन ले, मझु े इसकी जरुरत न ीं!ि

6 आज तीन हदन ुए, मंै वविवा ो गयी, कम-से-कम लोग य ी क ते ैं। ज्जसका जो जी चा े क े, पर मंै अपने को जो कु छ समझती ूिं व समझती ूंि। मनैं े चूडडया न ींि तोडी, क्यों तोडू ? क्यों तोडू ? मािगं में संेदरु प ले भी न डालती थी, अब भी न ीिं डालती। बढू ़े बाबा का कक्रया-कमग उनके सपु ुत्र ने ककया, मैं पास न फटकी। घर में मुझ पर मनमानी आलोचनाएिं ोती ंै, कोई मेरे गिुंथे ुए बालों को देखकर नाक मसकिं ोडता ैं, कोई मेरे आभषू णों पर आंिख मटकाता ै, य ांि इसकी धचतंि ा न ीं।ि उन् ंे धचढ़ाने को मैं भी रंिग=-बबरंिगी साडडया प नती ूंि, और भी बनती-सविं रती ूिं, मुझे जरा भी द:ु ख न ींि ैं। मंै तो कै द से छू ट गयी। इिर कई हदन सुशीला के घर गयी। छोटा-सा मकान ै, कोई सजावट न सामान, चारपाइयािं तक न ीिं, पर सशु ीला ककतने आनिदं से र ती ै। उसका उल्लास देखकर मेरे मन में भी भािनं त-भािनं त की कल्पनाएिं उठने लगती ंै--- उन् ें कु ज्त्सत क्यों क ुंि, जब मेरा मन उन् ंे कु ज्त्सत न ीिं समझता ।इनके जीवन मंे ककतना उत्सा ै।आंखि े मसु ्कराती र ती ंै, ओठों पर मिरु ास्य खेलता र ता ै, बातों मंे प्रेम का स्रोत ब ता ुआजान पडता ै। इस आनदंि से, चा े व ककतना ी क्षखणक ो, जीवन सफल ो जाता ै, कफर उसे कोई भलू न ीिं सकता, उसी स्मनृ त अतंि क के मलए काफी ो जाती ै, इस ममजराब की चोट हृदय के तारों को अंति काल तक मिरु स्वरों में कंि वपत रख कती ै। एक हदन मैने सुशीला से क ा---अगर तरे े पनतदेव क ीिं परदेश चले जाए तो रोत-रोते मर जाएगी! सशु ीला गभंि ीर भाव से बोली—न ींि ब न, मरुगीिं न ींि , उनकी याद सदैव प्रफु ज्ल्लत करती र ेगी, चा े उन् ें परदेश मंे बरसों लग जाएंि। मैं य ी प्रेम चा ती ूिं, इसी चोट के मलए मेरा मन तडपता र ता ै, मै भी कसी ी स्मनृ त चा ती ूिं ज्जससे हदल के तार सदैव बजते र ें, ज्जसका नशा ननत्य छाया र े।

7 रात रोत-े रोते ह चककयांि बंिि गयी। न-जाने क्यो हदल भर आता था। अपना जीवन सामने एक बी ड मदै ान की भािनं त फै ला ुआ मालूम ोता था, ज ािं बगूलों के मसवा ररयाली का नाम न ीं।ि घर फाडे खाता था, धचत्त कसा चचंि ल ो र ा था कक क ींि उड जाऊंि । आजकल भज्क्त के ग्रंथि ो की ओर ताकने को जी न ीिं चा ता, क ी सरै करने जाने की भी इच्छा न ीिं ोती, क्या चा ती ूिं व मंै स्वयिं भी न ींि जानती। लेककन मै जो जानती व मेरा एक-एक रोम- रोम जानता ै, मैं अपनी भावनाओिं को सजंि ीव मूनतग ैं, मेरा एक-एक अगंि मेरी आंितररक वेदना का आतनग ाद ो र ा ै। मेरे धचत्त की चचिं लता उस अनंि तम दशा को प िंच गयी ै, जब मनुष्य को ननदिं ा की न लजजा र ती ै और न भय। ज्जन लोभी, स्वाथी माता-वपता ने मुझे कु एिं मंे ढके ला, ज्जस पाषाण- हृदय प्राणी ने मेरी मागिं में सदंे रु डालने का स्वांिग ककया, उनके प्रनत मेरे मन मंे बार-बार दषु ्कामनाएंि उठती ।ंै मैं उन् े लज्जजत करना चा ती ूिं। मंै अपने मंिु में कामलख लगा कर उनके मुख में कामलख लगाना चा ती ूंि मअै पने प्राणदेकर उन् े प्राणदण्ड हदलाना चा ती ूिं।मेरा नारीत्व लुप्त ो गया ै,। मेरे हृदय में प्रचंिड जवाला उठी ुई ै। घर के सारे आदमी सो र े ै थे। मंै चुपके से नीचे उतरी , द्वार खोला और घर से ननकली, जसै े कोई प्राणी गमी से व्याकु ल ोकर घर से ननकले और ककसी खुली ुई जग की ओर दौड।े उस मकान मंे मेरा दम घुट र ा था। सडक पर सन्नाटा था, दकु ानंे बिदं ो चुकी थी। स सा एक बहु ढयांि आती ुई हदखायी दी। मंै डरी क ीिं य चुडलै न ो। बहु ढया ने मेरे समीप आकर मुझे मसर से पावंि तक देखा और बोली --- ककसकी रा देख र ी ो मनंै े धचढ़ कर क ा---मौत की!

बहु ढ़या---तमु ् ारे नसीबों में तो अभी ज्जन्दगी के बड-े बडे सखु भोगने मलखे ंै। अििं ेरी रात गजु र गयी, आसमान पर सुब की रोशनी नजर आ र ी ैं। मैने ंिसकर क ा---अिंि ेरे मंे भी तमु ् ारी आिंखे इतनी तजे ंैकक नसीबों की मलखावट पढ़ लेती ंै? बहु ढ़या---आिंखो से न ींि पढती बेटी, अक्ल से पढ़ती ूंि, िपू मंे चडू े न ी सुफे द ककये ंै। तुम् ारे हदन गये और अच्छे हदन आ र े ै। ंिसो मत बेटी, य ी काम करते इतनी उम्र गजु र गयी। इसी बहु ढ़या की बदौलत जो नदी में कू दने जा र ी थीिं, वे आज फू लों की सेज पर सो र ी ै, जो ज र का प्याल पीने को तैयार थींि, वे आज दिू की कु ज्ल्लयािं कर र ी ैं। इसीमलए इतनी रात गये ननकलती ू कक अपने ाथों ककसी अभाधगन का उद्धार ो सके तो करुंि । ककसी से कु छ न ीिं मािंगती, भगवान ् का हदया सब कु छ घर में ै, के वल य ी इच्छा ै उन् े िन, ज्जन् े संितान की इच्छा ै उन् ंे सिंतान, बस औरक्या क ूंि, व मितं ्र बता देती ूंि कक ज्जसकी जो इच्छा जो व परू ी ो जाये। मनैं े क ा---मुझे न िन चाह ए न सितं ान। मेरी मनोकामना तुम् ारे बस की बात न ीिं ै। बहु ढ़या ंिसी—बेटी, जो तुम चा ती ो व मै जानती ूिं; तमु व चीज चा ती ो जो ससिं ार मंे ोते ुए स्वगग की ै, जो देवताओंि के वरदान से भी जयादा आनदिं प्रद ै, जो आकाश कु सुम ै, गलु र का फू ल ै और अमावसा का चांदि ै। लेककन मेरे मितं ्र में व शंिज्क्त ै जो भाग्य को भी सवंि ार सकती ै। तमु प्रेम की प्यासी ो, मंै तमु ् े उस नाव पर बठै ा सकती ूिं जो प्रेम के सागर में, प्रेम की तंरि गों पर क्रीडा करती ुई तमु ् े पार उतार दे। मनै े उत्कंि हठत ोकर पूछा—माता, तमु ् ारा घर क ांि ै।

बहु ढया---ब ुत नजदीक ै बेटी, तमु चलों तो मंै अपनी आिखं ो पर बैठा कर ले चल।िूं मुझे कसा मालमू ुआ कक य कोई आकाश की देवी ै। उसेक पीछ-पीछे चल पडी। 8 आ ! व बुहढया, ज्जसे मंै आकाश की देवी समझती थी, नरक की डाइन ननकली। मेरा सवनग ाश ो गया। मंै अमतृ खोजती थी, ववष ममला, ननमलग स्वच्छ प्रेम की प्यासी थी, गदंि े ववषाक्त नाले में धगर पडी व वस्तु न ममलनी थी, न ममली। मंै सुशीला का –सा सुख चा ती थी, कु लटाओिं की ववषय-वासना न ीि।ं लेककन जीवन-पथ मंे एक बार उलटी रा चलकर कफर सीिे मागग पर आना कहठन ै? लेककन मेरे अि:पतन का अपराि मेरे मसर न ींि, मेरे माता-वपता और उस बूढ़े पर ै जो मेरा स्वामी बनना चा ता था। मैं य पिजं ्क्तयािं न मलखतींि, लेककन इस ववचार से मलख र ी ूिं कक मेरी आत्म-कथा पढ़कर लोगों की आिंखे खलु ंे; मंै कफर क ती ूिं कक अब भी अपनी बामलकाओ के मलए मत देखों िन, मत देखों जायदाद, मत देखों कु लीनता, के वल वर देखों। अगर उसके मलए जोडा का वर न ीिं पा सकते तो लडकी को क्वारी रख छोडो, ज र दे कर मार डालो, गला घोंट डालो, पर ककसी बढू ़े खूसट से मत ब्या ो। स्त्री सब-कु छ स सकती ै। दारुण से दारुण द:ु ख, बडे से बडा संकि ट, अगर न ींि स सकती तो अपने यौवन- काल की उिं मगो का कु चला जाना। र ी म,ैं मेरे मलए अब इस जीवन मंे कोई आशा न ीिं । इस अिम दशा को भी उस दशा से न बदलंगूि ी, ज्जससे ननकल कर आयी ूिं। ***

स्त्री और परु ुष वववपन बाबू के मलए स्त्री ी संसि ार की सुन्दर वस्तु थी। व कवव थे और उनकी कववता के मलए ज्स्त्रयों के रुप और यौवन की प्रशसा ी सबसे धचतिं ाकषकग ववषय था। उनकी दृज्ष्ट मंे स्त्री जगत मंे व्याप्त कोमलता, मािुयग और अलंकि ारों की सजीव प्रनतमा थी। जबान पर स्त्री का नाम आते ी उनकी आिखं े जगमगा उठती थींि, कान खडंे ो जाते थे, मानो ककसी रमसक ने गाने की आवाज सनु ली ो। जब से ोश सभंि ाला, तभी से उन् ोंने उस सदंिु री की कल्पना करनी शुरु की जो उसके हृदय की रानी ोगी; उसमंे ऊषा की प्रफु ल्लता ोगी, पषु ्प की कोमलता, कंिु दन की चमक, बसतंि की छवव, कोयल की ध्वनन—व कवव वखणगत सभी उपमाओंि से ववभवू षत ोगी। व उस कज्ल्पत मूनतग के उपासक थ,े कववताओिं में उसका गणु गात,े व हदन भी समीप आ गया था, जब उनकी आशाएिं रे- रे पत्तों से ल रायगें ी, उनकी मुरादें परू ी ो ोगी। कालेज की अिंनतम परीक्षा समाप्त ो गयी थी और वववा के सदंि ेशे आने लगे थ।े 2 वववा तय ो गया। बबवपन बाबू ने कन्या को देखने का ब ुत आग्र ककया, लेककन जब उनके मांमि ू ने ववश्वास हदलाया कक लडकी ब ुत ी रुपवती ै, मनैं े अपनी आखंि ों से देखा ै, तब व राजी ो गये। िूमिाम से बारात ननकली और वववा का मु ूतग आया। विू आभूषणों से सजी ुई मिंडप मंे आयी तो वववपन को उसके ाथ-पािंव नजर आये। ककतनी संुिदर उिं गमलया थींि, मानों दीप- मशखाएिं ो, अिगं ो की शोभा ककतनी मनो ाररणी थी। वववपन फू ले न समाये। दसू रे हदन विू ववदा ुई तो व उसके दशगनों के मलए इतने अिीर ुए कक जयों ी रास्ते मंे क ारों ने पालकी रखकर मिुं - ाथ िोना शुरु ककया, आप चपु के से विू के पास जा प ुंिच।े व घंिूघट टाये, पालकी से मसर ननकाले बा र झािंक र ी थी। वववपन की ननगा उस पर पड गयी। य व परम संदुि र रमणी

न थी ज्जसकी उन् ोने कल्पना की थी, ज्जसकी व बरसों से कल्पना कर र े थे---य एक चौडे माँु , धचपटी नाक, और फु ले ुए गालों वाली कु रुपा स्त्री थी। रंिग गोरा था, पर उसमें लाली के बदले सफदी थी; और कफर रंिग कै सा ी सदंिु र ो, रूप की कमी न ीिं पूरी कर सकता। वववपन का सारा उत्सा ठिं डा पड गया--- ािं! इसे मेरे ी गले पडना था। क्या इसके मलए समस्त ससिं ार में और कोई न ममलता था? उन् ंे अपने मामिं ू पर क्रोि आया ज्जसने विू की तारीफों के पलु बािंि हदये थ।े अगर इस वक्त व ममल जाते तो वववपन उनकी कसी खबर लेता कक व भी याद करत।े जब क ारों ने कफर पालककयााँ उठायींि तो वववपन मन मंे सोचने लगा, इस स्त्री के साथ कै से मंै बोलूगा, कै से इसके साथ जीवन काटूँागा। इसकी ओर तो ताकने ी से घणृ ा ोती ै। कसी कु रुपा ज्स्त्रयााँ भी संसि ार मंे ैं, इसका मुझे अब तक पता न था। क्या माँु ईश्वर ने बनाया ै, क्या आाँखंे ै! मंै और सारे कबों की ओर से आंिखे बंदि कर लेता, लेककन व चौडा-सा माँु ! भगवान!् क्या तुम् ें मुझी पर य वज्रपात करना था। 3 वववपन ो अपना जीवन नरक-सा जान पडता था। व अपने मांमि ू से लडा। ससुर को लबंि ा खराग मलखकर फटकारा, मा-िं बाप से ुजजत की और जब इससे शािंनत न ुई तो क ीिं भाग जाने की बात सोचने लगा। आशा पर उसे दया अवश्य आती थी। व अपने का समझाता कक इसमें उस बेचारी का क्या दोष ै, उसने जबरदस्ती तो मझु से वववा ककया न ीिं। लेककन य दया और य ववचार उस घणृ ा को न जीत सकता था जो आशा को देखते ी उसके रोम-रोम मंे व्याप्त ो जाती थी। आशा अपने अच्छे -से-अच्छे कपडे प नती; तर -तर से बाल संिवारती, घटंि ो आइने के सामने खडी ोकर अपना श्रंगिृ ार करती, लेकन वववपन को य शुतुरगमज-से मालमू ोत।े व हदल से चा ती थी कक उन् ंे प्रसन्न करूाँ , उनकी सेवा करने के मलए अवसर खोजा करती थी;

लेककन वववपन उससे भागा-भागा कफरता था। अगर कभी भंेट ो जाती तो कु छ कसी जली-कटी बातंे करने लगता कक आशा रोती ुई व ांि से चली जाती। सबसे बरु ी बात य थी कक उसका चररत्र भ्रष्ट ोने लगा। व य भलू जाने की चषे ्टा करने लगा कक मेरा वववा ो गया ै। कई-कई हदनों क आशा को उसके दशगन भी न ोत।े व उसके क -क े की आवाजे बा र से आती ुई सनु ती, झरोखे से देखती कक व दोस्तों के गले में ाथ डालंे सरै करने जा र े ै और तडप कर र े जाती। एक हदन खाना खाते समय उसने क ा—अब तो आपके दशनग ी न ींि ोतें। मेरे कारण घर छोड दीज्जएगा क्या ? वववपन ने मुंि फे र कर क ा—घर ी पर तो र ता ूिं। आजकल जरा नौकरी की तलाश ै इसमलए दौड-िपू जयादा करनी पडती ै। आशा—ककसी डाक्टर से मेरी सूरत क्यों न ींि बनवा देते? सुनती ूिं, आजकल सूरत बनाने वाले डाक्टर पदै ा ुए ै। वववपन— क्यों ना क धचढ़ती ो, य ांि तुम् े ककसने बुलाया था? आशा— आखखर इस मजग की दवा कौन करंेगा ? वववपन— इस मजग की दवा न ींि ै। जो काम ईश्चर से ने करते बना उसे आदमी क्या बना सकता ै? आशा – य तो तुम् ी सोचो कक ईश्वर की भलु के मलए मझु े दिंड दे र े ो। ससंि ार में कौन कसा आदमी ै ज्जसे अच्छी सूरत बरु ी लगती ो,ककन तमु ने ककसी मदग को के वल रूप ीन ोने के कारण क्वारंि ा र ते देखा ै, रूप ीन लडककयािं भी मांि-बाप के घर न ीिं बैठी र तींि। ककसी-न-ककसी तर उनका

ननवाग ो ी जाता ै; उसका पनत उप पर प्राण ने देता ो, लेककन दिू की मक्खी न ींि समझता। वववपन ने झंझिु ला कर क ा—क्यों ना क मसर खाती ो, मै तमु से ब स तो न ीिं कर र ा ूँा। हदल पर जब्र न ीिं ककया जा सकता और न दलीलों का उस पर कोई असर पड सकता ै। मंै तुम् े कु छ क ता तो न ींि ूिं, कफर तुम क्यों मुझसे ुजजत करती ो? आशा य खझडकी सुन कर चली गयी। उसे मालूम ो गया कक इन् ोने मेरी ओर से सदा के मलए ह्रदय कठोर कर मलया ै। 4 वववपन तो रोज सैर-सपाटे करत,े कभी-कभी रात को गायब र त।े इिर आशा धचतंि ा और नरै ाश्य से घलु त-े घुलते बीमार पड गयी। लेककन वववपन भूल कर भी उसे देखने न आता, सेवा करना तो दरू र ा। इतना ी न ीिं, व हदल मंे मानता था कक व मर जाती तो गला छु टता, अबकी खुब देखभाल कर अपनी पसिंद का वववा करता। अब व और भी खलु खले ा। प ले आशा से कु छ दबता था, कम-से-कम उसे य िडका लगा र ता था कक कोई मेरी चाल-ढ़ाल पर ननगा रखने वाला भी ै। अब व िडका छु ट गया। कु वासनाओंि मंे कसा मलप्त ो गया कक मरदाने कमरे में ी जमघटे ोने लगे। लेककन ववषय-भोग में िन ी का सवनग ाश ोता, इससे क ीिं अधिक बुवद्ध और बल का सवनग ाश ोता ै। वववपन का चे रा पीला लगा, दे भी क्षीण ोने लगी, पसमलयों की ड्डडयांि ननकल आयीिं आंखि ों के इदग-धगदग गढ़े पड गये। अब व प ले से क ीिं जयादा शोक करता, ननत्य तले लगता, बाल बनवाता, कपडे बदलता, ककन्तु मुख पर कानिं त न थी, रंिग-रोगन से क्या ो सकता?

एक हदन आशा बरामदे मंे चारपाई पर लेटी ुई थी। इिर फ्तों से उसने वववपन को न देखा था। उन् े देखने की इच्छा ुई। उसे भय था कक व सन आयगें े, कफर भी व मन को न रोक सकी। वववपन को बुला भेजा। वववपन को भी उस पर कु छ दया आ गयी आ गयी। आकार सामने खडे ो गये। आशा ने उनके मुिं की ओर देखा तो चौक पडी। व इतने दबु लग ो गये थे कक प चनाना मुमशकल था। बोली—तमु भी बीमार ो क्या? तमु तो मुझसे भी जयादा घलु गये ो। वववपन—उिं , ज्जदंि गी मंे रखा ी क्या ै ज्जसके मलए जीने की कफक्र करुंि ! आशा—जीने की कफक्र न करने से कोई इतना दबु ला न ींि ो जाता। तमु अपनी कोई दवा क्यों न ींि करते? य क कर उसने वववपन का दाह न ाथ पकड कर अपनी चारपाई पर बठै ा मलया। वववपन ने भी ाथ छु डाने की चषे ्टा न की। उनके स्वाभाव मंे इस समय एक ववधचत्र नम्रता थी, जो आशा ने कभी ने देखी थी। बातों से भी ननराशा टपकती थी। अक्खडपन या क्रोि की गंिि भी न थी। आशा का कसा मालमु ुआ कक उनकी आिंखो मंे आिंसू भरे ुए ै। वववपन चारपाई पर बठै ते ुए बोले—मेरी दवा अब मौत करेगी। मै तुम् ंे जलाने के मलए न ींि क ता। ईश्वर जानता ै, मंै तमु ् े चोट न ीिं प ुंिचाना चा ता। मै अब जयादा हदनों तक न ज्जऊिं गा। मुझे ककसी भयिंकर रोग के लक्षण हदखाई दे र े ै। डाक्टर नें भी व ी क ा ै। मझु े इसका खेद ै कक मेरे ाथों तुम् े कष्ट प ुिंचा पर क्षमा करना। कभी-कभी बठै े -बठै े मेरा हदल डू ब हदल डू ब जाता ै, मूछाग-सी आ जाती ै। य क तंे-क ते एकाएक व काापँ उठे । सारी दे में सनसनी सी दौड गयी। मूनछगत ो कर चारपाई पर धगर पडे और ाथ-परै पटकने लगे।

माँु से कफचकु र ननकलने लगा। सारी दे पसीने से तर ो गयी। आशा का सारा रोग वा ो गया। व म ीनों से बबस्तर न छोड सकी थी। पर इस समय उसके मशधथल अिंगो में ववधचत्र स्फू नतग दौड गयी। उसने तजे ी से उठ कर वववपन को अच्छी तर लेटा हदया और उनके मखु पर पानी के छींटि े देने लगी। म री भी दौडी आयी और पिंखा झलने लगी। पर भी वववपन ने आिखं ें न खोलींि। सधिं ्या ोत-े ोते उनका मुंि टेढ़ा ो गया और बायांि अिंग शून्य पड गया। ह लाना तो दरू र ा, मूंि से बात ननकालना भी मुज्श्कल ो गया। य मूछाग न थी, फामलज था। 5 फामलज के भयिंकर रोग मंे रोगी की सेवा करना आसान काम न ींि ै। उस पर आशा म ीनों से बीमार थी। लेककन उस रोग के सामने व पना रोग भूल गई। 15 हदनों तक वववपन की ालत ब ुत नाजकु र ी। आशा हदन-के -हदन और रात-की-रात उनके पास बठै ी र ती। उनके मलए पर्थय बनाना, उन् ंे गोद में सम्भाल कर दवा वपलाना, उनके जरा-जरा से इशारों को समझाना उसी जैसी ियै शग ाली स्त्री का काम था। अपना मसर ददग से फटा करता, जवर से दे तपा करती, पर इसकी उसे जरा भी परवा न थी। १५ हदनों बाद वववपन की ालत कु छ सभंि ली। उनका दाह ना परै तो लजिंु पड गया था, पर तोतली भाषा में कु छ बोलने लगे थ।े सबसे बरु ी गत उनके सुन्दर मुख की ुई थी। व इतना टेढ़ा ो गया था जैसे कोई रबर के खखलौने को खीिंच कर बढ़ा दंे। बैटरी की मदद से जरा देर के मलए बैठे या खडे तो ो जाते थे; लेककन चलने−कफरने की ताकत न थी। एक हदनों लेटे−लेटे उन् े क्या ख्याल आया। आईना उठा कर अपना मुिं देखने लगे। कसा कु रुप आदमी उन् ोने कभी न देखा था। आह स्ता से बोले−−आशा, ईश्वर ने मझु े गरुर की सजा दे दी। वास्तव मंे मुझे य उसी बरु ाई का

बदला ममला ै, जो मनै े तुम् ारे साथ की। अब तुम अगर मेरा मँाु देखकर घणृ ा से मँाु फे र लो तो मझु से उस दवु ्यवग ार का बदला लो, जो मैने, तुम् ारे साथ ककए ै। आशा ने पनत की ओर कोमल भाव से देखकर क ा−−मै तो आपको अब भी उसी ननगा से देखती ूँा। मझु े तो आप में कोई अन्तर न ींि हदखाई देता। 6 वववपन−−वा , बन्दर का−सा मिंु ो गया ै, तुम क ती ो कक कोई अन्तर ी न ीि।ं मैं तो अब कभी बा र न ननकलंिूगा। ईश्वर ने मुझे सचमुच दिंड हदया। ब ुत यत्न ककए गए पर वववपन का मिंु सीिा न ुआ। मखु ्य का बायािं भाग इतना टेढ़ा ो गया था कक चे रा देखकर डर मालमू ोता था। ांि, पैरों में इतनी शज्क्त आ गई कक अब व चलने−कफरने लगे। आशा ने पनत की बीमारी में देवी की मनौती की थी। आज उसी की पुजा का उत्सव था। मु ल्ले की ज्स्त्रयािं बनाव−मसगिं ार ककये जमा थी।ंि गाना−बजाना ो र ा था। एक स ेली ने पछु ा−−क्यों आशा, अब तो तुम् ंे उनका मंिु जरा भी अच्छा न लगता ोगा। आशा ने गम्भीर ोकर क ा−−मझु े तो प ले से क ींि मिुं जरा भी अच्छा न लगता ोगा। ‘चलों, बातंे बनाती ो।’ ‘न ी ब न, सच क ती ूँा; रूप के बदले मझु े उनकी आत्मा ममल गई जो रूप से क ीिं बढ़कर ै।’ वववपन कमरे मंे बैठे ुए थे। कई ममत्र जमा थे। ताश ो र ा था।

कमरे में एक खखडकी थी जो आंिगन मंे खुलती थी। इस वक्त व बन्द थी। एक ममत्र ने उसे चुपके से खोल हदया। एक ममत्र ने उसे चुपके हदया और शीशे से झांिक कर वववपन से क ा−− आज तो तमु ् ारे य ांि पररयों का अच्छा जमघट ै। वववपन−−बन्दा कर दो। ‘अजी जरा देखो तो: कै सी−कै सी सरू तंे ै ! तमु ् े इन सबों मंे कौन सबसे अच्छी मालूम ोती ै? वववपन ने उडती ुई नजरों से देखकर क ा−−मझु े तो व ींि सबसे अच्छी मालमू ोती ै जो थाल मंे फू ल रख र ी ै। ‘वा री आपकी ननगा ! क्या सूरत के साथ तमु ् ारी ननगा भी बबगड गई? मुझे तो व सबसे बदसूरत मालमू ोती ै।’ ‘इसमलए कक तमु उसकी सूरत देखते ो और मै उसकी आत्मा देखता ूिं।’ ‘अच्छा, य ी ममसेज वववपन ंै?’ ‘जी ािं, य व ी देवी ै। ***

उद्धार ह दिं ू समाज की ववै ाह क प्रथा इतनी दवू षत, इतनी धचतिं ाजनक, इतनी भयंिकर ो गयी ै कक कु छ समझ में न ीिं आता, उसका सिु ार क्योंकर ो। बबरलें ी कसे माता-वपता ोंगे ज्जनके सात पुत्रों के बाद एक भी कन्या उत्पन्न ो जाय तो व स षग उसका स्वागत करंे। कन्या का जन्म ोते ी उसके वववा की धचतिं ा मसर पर सवार ो जाती ै और आदमी उसी में डु बककयाँा खाने लगता ै। अवस्था इतनी ननराशमय और भयानक ो गई ै कक कसे माता-वपताओंि की कमी न ीिं ै जो कन्या की मतृ ्यु पर ह्रदय से प्रसन्न ोते ै, मानों मसर से बािा टली। इसका कारण के वल य ी ै कक दे ज की दर, हदन दनू ी रात चौगनु ी, पावस-काल के जल-गुजरे कक एक या दो जारों तक नौबत प ुिंच गई ै। अभी ब ुत हदन न ींि गुजरे कक एक या दो जार रुपये द ेज के वल बडे घरों की बात थी, छोटी-छोटी शाहदयों पााँच सौ से एक जार तक तय ो जाती थीिं; अब मामलू ी-मामलू ी वववा भी तीन-चार जार के नीचे तय न ींि ोते । खचग का तो य ाल ै और मशक्षक्षत समाज की ननिनग ता और दररद्रता हदन बढ़ती जाती ै। इसका अन्त क्या ोगा ईश्वर ी जान।े बेटे एक दजनग भी ों तो माता-वपता का धचतिं ा न ींि ोती। व अपने ऊपर उनके वववा -भार का अननवायग न ींि समझता, य उसके मलए ‘कम्पलसरी’ ववषय न ीिं, ‘आप्शनल’ ववषय ै। ोगा तों कर देगंे; न ी क देंगे--बेटा, खाओंि कमाओिं, कमाई ो तो वववा कर लेना। बेटों की कु चररत्रता कलकिं की बात न ींि समझी जाती; लेककन कन्या का वववा तो करना ी पडगे ा, उससे भागकर क ांि जायेगंे? अगर वववा मंे ववलम्ब ुआ और कन्या के पािंव क ीिं ऊाँ चे नीचे पड गये तो कफर कु टु म्ब की नाक कट गयी; व पनतत ो गया, टाट बा र कर हदया गया। अगर व इस दघु टग ना को सफलता के साथ गपु ्त रख सका तब तो कोई बात न ींि; उसकों कलिंककत करने का ककसी का सा स न ींि; लेककन अभाग्यवश यहद व इसे नछपा न सका, भंडि ाफोड ो गया तो कफर माता-वपता के मलए, भाई-बंििुओंि के मलए सिंसार मंे मुंि हदखाने को न ीिं र ता। कोई अपमान इससे दसु ्स , कोई ववपज्त्त इससे भीषण न ीिं। ककसी भी व्याधि

की इससे भयिंकर कल्पना न ीिं की जा सकती। लतु ्फ तो य ै कक जो लोग बेहटयों के वववा की कहठनाइयों को भोग चुके ोते ै व ीिं अपने बेटों के वववा के अवसर पर बबलकु ल भूल जाते ै कक मंे ककतनी ठोकरें खानी पडी थींि, जरा भी स ानुभनू त न ी प्रकट करतें, बज्ल्क कन्या के वववा में जो तावान उठाया था उसे चक्र-ववृ द्ध ब्याज के साथ बेटे के वववा मंे वसूल करने पर कहटबद्ध ो जाते ैं। ककतने ी माता-वपता इसी धचतिं ा में ग्र ण करलेता ै, कोई बढू ़े के गले कन्या का मढ़ कर अपना गला छु डाता ै, पात्र-कु पात्र के ववचार करने का मौका क ांि, ठे लमठे ल ै। मिंुशी गलु जारीलाल कसे ी तभागे वपताओिं मंे थे। यों उनकी ज्स्थनत बरु ी न थी। दो-ढ़ाई सौ रुपये म ीने वकालत से पीट लेते थे, पर खानदानी आदमी थे, उदार ह्रदय, ब ुत ककफायत करने पर भी माकू ल बचत न ो सकती थी। संबि ंधि ियों का आदर-सत्कार न करंे तो न ींि बनता, ममत्रों की खानतरदारी न करंे तो न ी बनता। कफर ईश्वर के हदये ुए दो पतु ्र थे, उनका पालन-पोषण, मशक्षण का भार था, क्या करते ! प ली कन्या का वववा टेढ़ी खीर ो र ा था। य आवश्यक था कक वववा अच्छे घराने मंे ो, अन्यथा लोग िंसेगे और अच्छे घराने के मलए कम-से-कम पािचं जार का तखमीना था। उिर पुत्री सयानी ोती जाती थी। व अनाज जो लडके खाते थे, व भी खाती थी; लेककन लडकों को देखो तो जसै े सखू ों का रोग लगा ो और लडकी शुक्ल पक्ष का चादंि ो र ी थी। ब ुत दौड-िपू करने पर बचारे को एक लडका ममला। बाप आबकारी के ववभाग में ४०० रु० का नौकर था, लडका समु शक्षक्षत। स्त्री से आकार बोले, लडका तो ममला और घरबार-एक भी काटने योग्य न ींि; पर कहठनाई य ी ै कक लडका क ता ै, मंै अपना वववा न करुंि गा। बाप ने समझाया, मनै े ककतना समझाया, औरों ने समझाया, पर व टस से मस न ीिं ोता। क ता ै, मै कभी वववा न करुंि गा। समझ मंे न ीिं आता, वववा से क्यों इतनी घणृ ा करता ै। कोई कारण न ीिं बतलाता, बस य ी क ता ै, मेरी इच्छा। मांि बाप का एकलौता लडका ै। उनकी परम इच्छा ै कक इसका वववा ो जाय, पर करंे क्या? यों उन् ोने फलदान तो रख मलया ै पर मझु से क हदया ै कक

लडका स्वभाव का ठीला ै, अगर न मानगे ा तो फलदान आपको लौटा हदया जायेगा। स्त्री ने क ा--तमु ने लडके को एकातंि मंे बुलावकर पछू ा न ी?ंि गलु जारीलाल--बलु ाया था। बैठा रोता र ा, कफर उठकर चला गया। तमु से क्या क ूंि, उसके पैरों पर धगर पडा; लेककन बबना कु छ क े उठाकर चला गया। स्त्री--देखो, इस लडकी के पीछे क्या-क्या झले ना पडता ै? गुलजारीलाल--कु छ न ींि, आजकल के लौंडे सलै ानी ोते ंै। अगिं रेजी पसु ्तकों में पढ़ते ै कक ववलायत मंे ककतने ी लोग अवववाह त र ना ी पसदिं करते ै। बस य ी सनक सवार ो जाती ै कक ननद्गवद्व र ने मंे ी जीवन की सुख और शानिं त ै। ज्जतनी मुसीबतंे ै व सब वववा ी में ै। मैं भी कालेज में था तब सोचा करता था कक अके ला र ूंिगा और मजे से सैर-सपाटा करुिं गा। स्त्री-- ै तो वास्तव में बात य ी। वववा ी तो सारी मसु ीबतों की जड ै। तुमने वववा न ककया ोता तो क्यों ये धचतंि ाएंि ोतींि ? मंै भी क्वांिरी र ती तो चनै करती। 2 इसके एक म ीना बाद मुिंशी गलु जारीलाल के पास वर ने य पत्र मलखा-- ‘पजू यवर, सादर प्रणाम। मंै आज ब ुत असमिंजस मंे पडकर य पत्र मलखने का सा स कर र ा ूंि। इस िषृ ्टता को क्षमा कीज्जएगा।

आपके जाने के बाद से मेरे वपताजी और माताजी दोनों मुझ पर वववा करने के मलए नाना प्रकार से दबाव डाल र े ै। माताजी रोती ै, वपताजी नाराज ोते ंै। व समझते ै कक मैं अपनी ज्जद के कारण वववा से भागता ूिं। कदाधचता उन् े य भी सन्दे ो र ा ै कक मेरा चररत्र भ्रष्ट ो गया ै। मंै वास्तववक कारण बताते ुए डारता ूंि कक इन लोगों को द:ु ख ोगा और आश्चयग न ींि कक शोक मंे उनके प्राणों पर ी बन जाय। इसमलए अब तक मैने जो बात गुप्त रखी थी, व आज वववश ोकर आपसे प्रकट करता ूंि और आपसे साग्र ननवदे न करता ूिं कक आप इसे गोपनीय समखझएगा और ककसी दशा में भी उन लोगों के कानों मंे इसकी भनक न पडने दीज्जएगा। जो ोना ै व तो ोगा ै, प ले ी से क्यों उन् े शोक में डु बाऊंि । मुझे ५-६ म ीनों से य अनभु व ो र ा ै कक मैं क्षय रोग से ग्रमसत ूिं। उसके सभी लक्षण प्रकट ोते जाते ै। डाक्टरों की भी य ी राय ै। य ांि सबसे अनुभवी जो दो डाक्टर ंै, उन दोनों ी से मनै े अपनी आरोग्य-परीक्षा करायी और दोनो ी ने स्पष्ट क ा कक तुम् े मसल ै। अगर माता-वपता से य क दिंू तो व रो-रो कर मर जायेगें। जब य ननश्चय ै कक मंै ससिं ार मंे थोडे ी हदनों का मे मान ूंि तो मेरे मलए वववा की कल्पना करना भी पाप ै। सभंि व ै कक मंै ववशषे प्रयत्न करके साल दो साल जीववत र ूिं, पर व दशा और भी भयंकि र ोगी, क्योकक अगर कोई सितं ान ुई तो व भी मेरे ससंि ्कार से अकाल मतृ ्यु पायेगी और कदाधचत ् स्त्री को भी इसी रोग-राक्षस का भक्ष्य बनना पड।े मेरे अवववाह त र ने से जो बीतगे ी, मुझ पर बीतगे ी। वववाह त ो जाने से मेरे साथ और कई जीवों का नाश ो जायगा। इसमलए आपसे मेरी प्राथनग ा ै कक मझु े इस बन्िन मंे डालने के मलए आग्र न कीज्जए, अन्यथा आपको पछताना पडगे ा। सेवक ‘ जारीलाल।’ पत्र पढ़कर गुलजारीलाल ने स्त्री की ओर देखा और बोले--इस पत्र के ववषय मंे तुम् ारा क्या ववचार ंै।

स्त्री--मझु े तो कसा मालमू ोता ै कक उसने ब ाना रचा ै। गलु जारीलाल--बस-बस, ठीक य ी मेरा भी ववचार ै। उसने समझा ै कक बीमारी का ब ाना कर दिंगू ा तो आप ी ट जायगें े। असल में बीमारी कु छ न ी।िं मैने तो देखा ी था, चे रा चमक र ा था। बीमार का मिुं नछपा न ीिं र ता। स्त्री--राम नाम ले के वववा करो, कोई ककसी का भाग्य थोडे ी पढ़े बैठा ै। गलु जारीलाल--य ी तो मै सोच र ा ूिं। स्त्री--न ो ककसी डाक्टर से लडके को हदखाओंि । क ीिं सचमुच य बीमारी ो तो बेचारी अम्बा क ींि की न र े। गलु जारीलाल-तुम भी पागल ो क्या? सब ीले- वाले ंै। इन छोकरों के हदल का ाल मंै खुब जानता ूिं। सोचता ोगा अभी सैर-सपाटे कर र ा ूिं, वववा ो जायगा तो य गलु छरे कै से उडगे े! स्त्री--तो शुभ मु ूतग देखकर लग्न मभजवाने की तैयारी करो। 3 जारीलाल बडे िमग-संदि े में था। उसके पैरों में जबरदस्ती वववा की बेडी डाली जा र ी थी और व कु छ न कर सकता था। उसने ससरु का अपना कच्चा धचट्ठा क सनु ाया; मगर ककसी ने उसकी बालों पर ववश्वास न ककया। मााँ-बाप से अपनी बीमारी का ाल क ने का उसे सा स न ोता था। न जाने उनके हदल पर क्या गुजरे, न जाने क्या कर बठै ंे ? कभी सोचता ककसी डाक्टर की श दत लेकर ससूर के पास भेज दिं,ू मगर कफर ध्यान आता, यहद उन लोगों को उस पर भी ववश्वास न आया, तो? आजकल डाक्टरी से सनद ले लेना कौन-सा

मुज्श्कल काम ै। सोचेंगे, ककसी डाक्टर को कु छ दे हदलाकर मलखा मलया ोगा। शादी के मलए तो इतना आग्र ो र ा था, उिर डाक्टरों ने स्पष्ट क हदया था कक अगर तमु ने शादी की तो तुम् ारा जीवन-सुत्र और भी ननबलग ो जाएगा। म ीनों की जग हदनों मंे वारा-न्यारा ो जाने की सम्भावाना ै। लग्न आ चुकी थी। वववा की तैयाररयािं ो र ी थींि, मे मान आते-जाते थे और जारीलाल घर से भागा-भागा कफरता था। क ांि चला जाऊिं ? वववा की कल्पना ी से उसके प्राण सूख जाते थ।े आ ! उस अबला की क्या गनत ोगी ? जब उसे य बात मालूम ोगी तो व मझु े अपने मन मंे क्या क ेगी? कौन इस पाप का प्रायज्श्चत करेगा ? न ीिं, उस अबला पर घोर अत्याचार न करुिं गा, उसे विै व्य की आग में न जलाऊंि गा। मेरी ज्जन्दगी ी क्या, आज न मरा कल मरुंि गा, कल न ींि तो परसों, तो क्यों न आज ी मर जाऊिं । आज ी जीवन का और उसके साथ सारी धचतिं ाओिं को, सारी ववपज्त्तयों का अन्त कर दिं।ू वपता जी रोयगें े, अम्मांि प्राण त्याग देंगी; लेककन एक बामलका का जीवन तो सफल ो जाएगा, मेरे बाद कोई अभागा अनाथ तो न रोयेगा। क्यों न चलकर वपताजी से क दंि?ू व एक-दो हदन द:ु खी र ंेगे, अम्मांि जी दो- एक रोज शोक से ननरा ार र जायेगीिं, कोई धचतिं ा न ीं।ि अगर माता-वपता के इतने कष्ट से एक युवती की प्राण-रक्षा ो जाए तो क्या छोटी बात ै? य सोचकर व िीरे से उठा और आकर वपता के सामने खडा ो गया। रात के दस बज गये थे। बाबू दरबारीलाल चारपाई पर लेटे ुए ुक्का पी र े थ।े आज उन् े सारा हदन दौडते गजु रा था। शाममयाना तय ककया; बाजे वालों को बयाना हदया; आनतशबाजी, फु लवारी आहद का प्रबन्ि ककया। घिंटो ब्रा मणों के साथ मसर मारते र े, इस वक्त जरा कमर सीिी कर र ंे थे कक स सा जारीलाल को सामने देखकर चौंक पड।ें उसका उतरा ुआ चे रा सजल आिंखे और किंु हठत मखु देखा तो कु छ धचनिं तत ोकर बोले--क्यों लालू, तबीयत तो अच्छी ै न? कु छ उदास मालमू ोते ो।

जारीलाल--मै आपसे कु छ क ना चा ता ूंि; पर भय ोता ै कक क ीिं आप अप्रसन्न न ों। दरबारीलाल--समझ गया, व ी परु ानी बात ै न ? उसके मसवा कोई दसू री बात ो शौक से क ो। जारीलाल--खदे ै कक मैं उसी ववषय में कु छ क ना चा ता ूंि। दरबारीलाल--य ी क ना चा ता ो न मझु े इस बन्िन में न डामलए, मैं इसके अयोग्य ूंि, मै य भार स न ींि सकता, बेडी मेरी गदगन को तोड देगी, आहद या और कोई नई बात ? जारीलाल--जी न ीिं नई बात ै। मैं आपकी आज्ञा पालन करने के मलए सब प्रकार तयै ार ूंि; पर एक कसी बात ै, ज्जसे मनै े अब तक नछपाया था, उसे भी प्रकट कर देना चा ता ूंि। इसके बाद आप जो कु छ ननश्चय करंेगे उसे मंै मशरोिायग करुंि गा। जारीलाल ने बडे ववनीत शब्दों में अपना आशय क ा, डाक्टरों की राय भी बयान की और अन्त में बोलें--कसी दशा मंे मझु े परू ी आशा ै कक आप मुझे वववा करने के मलए बाध्य न करेंगें। दरबारीलाल ने पुत्र के मुख की और गौर से देखा, क े जदी का नाम न था, इस कथन पर ववश्वास न आया; पर अपना अववश्वास नछपाने और अपना ाहदगक शोक प्रकट करने के मलए व कई ममनट तक ग री धचतंि ा मंे मग्न र े। इसके बाद पीडडत कंि ठ से बोले--बेटा, इस इशा मंे तो वववा करना और भी आवश्यक ै। ईश्वर न करें कक म व बरु ा हदन देखने के मलए जीते र े, पर वववा ो जाने से तमु ् ारी कोई ननशानी तो र जाएगी। ईश्वर ने कोई संति ान दे दी तो व ी मारे बढु ़ापे की लाठी ोगी, उसी का मंुि देखरेख कर हदल को समझायगें े, जीवन का कु छ आिार तो र ेगा। कफर आगे

क्या ोगा, य कौन क सकता ै? डाक्टर ककसी की कम-ग रेखा तो न ींि पढ़त,े ईश्वर की लीला अपरम्पार ै, डाक्टर उसे न ींि समझ सकते । तुम ननज्श्चतिं ोकर बैठों, म जो कु छ करते ै, करने दो। भगवान चा ेंगे तो सब कल्याण ी ोगा। जारीलाल ने इसका कोई उत्तर न ींि हदया। आखंि े डबडबा आयींि, कंि ठावरोि के कारण मिंु तक न खोल सका। चपु के से आकर अपने कमरे मे लेट र ा। तीन हदन और गुजर गये, पर जारीलाल कु छ ननश्चय न कर सका। वववा की तैयाररयों मंे रखे जा चकु े थ।े मिंत्रये ी की पजू ा ो चकू ी थी और द्वार पर बाजों का शोर मचा ुआ था। मु ल्ले के लडके जमा ोकर बाजा सनु ते थे और उल्लास से इिर-उिर दौडते थे। संिध्या ो गयी थी। बरात आज रात की गाडी से जाने वाली थी। बरानतयों ने अपने वस्त्राभूष्ण प नने शुरु ककये। कोई नाई से बाल बनवाता था और चा ता था कक खत कसा साफ ो जाय मानों व ांि बाल कभी थे ी न ीिं, बुढ़े अपने पके बाल को उखडवा कर जवान बनने की चषे ्टा कर र े थ।े तले , साबुन, उबटन की लटू मची ुई थी और जारीलाल बगीचे मे एक वकृ ्ष के नीचे उदास बठै ा ुआ सोच र ा था, क्या करुिं ? अज्न्तम ननश्चय की घडी मसर पर खडी थी। अब एक क्षण भी ववल्म्ब करने का मौका न था। अपनी वदे ना ककससे क ंे, कोई सुनने वाला न था। उसने सोचा मारे माता-वपता ककतने अदरू दशी ै, अपनी उमिगं में इन् े इतना भी न ी सूझता कक विु पर क्या गुजरेगी। विू के माता-वपता ककतने अदरू दशी ै, अपनी उमगिं मे भी इतने अन्िे ो र े ै कक देखकर भी न ींि देखते, जान कर न ीिं जानत।े

क्या य वववा ै? कदावप न ी।िं य तो लडकी का कु एंि में डालना ै, भाड मे झोंकना ै, कंिु द छु रे से रेतना ै। कोई यातना इतनी दसु ्स , कर अपनी पुत्री का विै व्य के अज्ग्न-किंु ड में डाल देते ै। य माता-वपता ै? कदावप न ीिं। य लडकी के शत्रु ै, कसाई ै, बधिक ैं, त्यारे ै। क्या इनके मलए कोई दण्ड न ीिं ? जो जानबझू कर अपनी वप्रय सतिं ान के खनू से अपने ाथ रिंगते ै, उसके मलए कोई दिंड न ींि? समाज भी उन् े दिंड न ीिं देता, कोई कु छ न ींि क ता। ाय ! य सोचकर जारीलाल उठा और एक ओर चुपचाप चल हदया। उसके मुख पर तजे छाया ुआ था। उसने आत्म-बमलदान से इस कष्ट का ननवारण करने का दृढ़ संकि ल्प कर मलया था। उसे मतृ ्यु का लेशमात्र भी भय न था। व उस दशा का प ुिंच गया था जब सारी आशाएंि मतृ ्यु पर ी अवलज्म्बत ो जाती ै। उस हदन से कफर ककसी ने जारीलाल की सूरत न ीिं देखी। मालूम न ींि जमीन खा गई या आसमान। नाहदयों मे जाल डाले गए, कु ओंि मंे बांिस पड गए, पमु लस में ुमलया गया, समाचार-पत्रों मे ववज्ञज्प्त ननकाली गई, पर क ीिं पता न चला । कई फ्तो के बाद, छावनी रेलवे से एक मील पज्श्चम की ओर सडक पर कु छ ड्डडयाँा ममलींि। लोगो को अनमु ान ुआ कक जारीलाल ने गाडी के नीचे दबकर जान दी, पर ननज्श्चत रूप से कु छ न मालमु ुआ। भादों का म ीना था और तीज का हदन था। घरों में सफाई ो र ी थी। सौभाग्यवती रमखणयांि सोल ो श्रंगिृ ार ककए गंगि ा-स्नान करने जा र ी थी।िं अम्बा स्नान करके लौट आयी थी और तलु सी के कच्चे चबूतरे के सामने खडी वंिदना कर र ी थी। पनतगृ में उसे य प ली ी तीज थी, बडी उमगंि ो से व्रत रखा था। स सा उसके पनत ने अन्दर आ कर उसे स ास नते ्रों से देखा और बोला--मिंशु ी दरबारी लाल तुम् ारे कौन ोते ै, य उनके य ांि से तमु ् ारे मलए तीज पठौनी आयी ै। अभी डाककया दे गया ै।


Like this book? You can publish your book online for free in a few minutes!
Create your own flipbook